रमा की ये बातें इंदु को ऐसी लगीं मानो किसी ने उस के कानों में शीशा घोल दिया हो. इंदु सोचने लगी कि क्या जीवन में शादी और बच्चों वालों को ही खुशियां मनाने का अधिकार है.