“देख लो, तुम्हारे सामने ही हूं,” अपना सीना चौड़ा कर वह बोला, “मौसी, मेरी पहली कमाई से मैं आप को क्या दूं, बताओ?”
“कुछ नहीं, बस तू खुश रह” मैं ने कहा. रोज वह शेखर के साथ ही औफिस के लिए निकल जाता था और कभी बस से तो कभी ट्रेन से घर आ जाता था. लेकिन आते समय उसे बहुत परेशानी उठानी पड़ती थी, क्योंकि बसट्रेन छूट जाने से उसे घंटों इंतजार करना पड़ता था. फिर शेखर अपने औफिस की गाड़ी से औफिस जाने लगे और अपनी गाड़ी उन्होंने वेदांत को दे दी. वेदांत को अब कोई समस्या नहीं थी. आराम से वह औफिस आनेजाने लगा था. उस के यहां आ जाने से मुझे भी काफी आराम हो गया था. बाहर के कई काम वह कर दिया करता या उस के साथ जा कर मैं ख़रीदारी कर लेती थी. उस दिन हेमा जी को परेशान देख जब मैं ने पूछा कि क्या हुआ तो कहने लगीं कि अभी तक वैजंती घर वापस नहीं आई है. “अरे, तो आती ही होगी. आप चिंता मत करिए,” मैं ने कहा. लेकिन अब मुझे भी उस की चिंता होने लगी थी क्योंकि रात के 9 बज चुके थे और अब तक वह नहीं आई थी. वैसे भी, दिल्ली अब लड़कियों के लिए सुरक्षित नहीं रह गई थी. तभी मैं ने देखा, कंधे पर बैग टांगे वह चली आ रही है. “ये लो, आ गई आप की वैजंती. आप नाहक ही परेशान हो रही थीं.” लेकिन वैजंती बताने लगी कि औफिस में ज्यादा काम होने की वजह से उस की बस छूट गई. और दूसरी बस के इंतजार में घंटों लग गए. सुबह वैजंती को परेशान देख पूछा कि क्या हुआ? तो वह बोली कि आज बसऔटो की हड़ताल है तो औफिस कैसे जाएगी. ट्रेन भी निकल गई होगी अब तो.
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