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उस की शादी अभी पिछले जून में हुई थी. सुना है, बहुरिया पेट से है. अब तुम लोग भी जल्दी कुछ अच्छी खबर सुनाओ. एक लल्ला का मुंह देख लूं तो चैन से ऊपर जाऊं.’ ऐसी बातें हर दूसरे दिन मां या तो प्रभाष या माधुरी से कहती. पड़ोसी और दोस्तों ने भी गाहेबगाहे पूछना शुरू कर दिया था. पड़ोस के कुशवाहाजी अकसर सुबह टहलते समय प्रभाष से पूछ बैठते,

‘बेटा, जल्दी से मु झे ताऊजी बोलने वाला घर में लाओ. घर पूरा हो जाएगा.’ शादी के 5 साल बाद भी माधुरी की गोद सूनी ही रही. दोनों को अब चिंता होने लगी थी. प्रभाष ने इस बारे में अपने प्रिय मित्र रोहन खत्री से चर्चा की तो उस ने शहर की जानीमानी स्त्रीरोग विशेषज्ञ डाक्टर सुहासिनी शर्मा को दिखाने का सु झाव दिया. मित्र की सलाह मानते हुए दोनों ने डा. सुहासिनी को दिखाया. पूरे 3 साल इलाज चला. दोनों की कई सारी जांचें हुईं, कई सारी दवाएं चलीं.

डा. सुहासिनी ने बहुत प्रयास किए कि माधुरी की सूनी गोद प्राकृतिक रूप से भर जाए पर सफलता हाथ न लगी. आखिर में उन्होंने प्रभाष को नई तकनीक का सहारा लेने की सलाह दी और इस बाबत अपनी मित्र डा. लतिका गुप्ता से बात भी की. डा. लतिका देश की मशहूर आईवीएफ विशेषज्ञ हैं. उन्होंने पहली ही मुलाकात में प्रभाष-माधुरी को सम झाया कि, ‘संतान के लिए पुरुष का शुक्राणु स्त्री के डिम्ब से मिलता है और एंब्रियो यानी कि भ्रूण बनाता है. यह भ्रूण स्त्री के गर्भ में 9 महीने पलता है और फिर बच्चे का जन्म होता है. इस प्रक्रिया के पूर्ण नहीं होने के 3 मुख्य कारण होते हैं- या तो पुरुष के शुक्राणु में कमी है या स्त्री के डिम्ब, जिसे हम आम बोलचाल में अंडे कहते हैं, कमजोर हैं या फिर स्त्री की कोख में दिक्कत है. मैं ने तुम दोनों की सारी रिपोर्टें देखी हैं. तुम्हारे मामले में तीनों ही सही हैं.’

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