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सरोगेसी से हुए बच्चों से प्यार और दुलार को माधुरी किसी भी कीमत पर कम नहीं होने देना चाहती थी लेकिन इस के लिए उसे बहुत बड़ी परीक्षा देनी पड़ी. माधुरी को सम झ नहीं आ रहा था कि इस घटना पर वह प्रसन्न हो या दुखी. प्रकृति का यह कैसा खेल है, वह अपनेआप से सवाल कर रही है. जिस बात के लिए उसे 12 वर्षों से समाज के लांछन और ताने मिले,

लोग जिसे उस के अस्तित्व पर एक धब्बा सम झते हैं, जिस ने न सिर्फ उस के शरीर बल्कि सोच तक को झक झोर दिया, क्या आज के तथ्यों की परिणति उन सब को नकार देगी? उस ने प्रभाष को कौल किया- ‘‘हैलो, आप घर कब आएंगे?’’ ‘‘आज कम ही ग्राहक हैं, सो जल्दी आ जाऊंगा,’’ प्रभाष ने जवाब दिया. ‘‘मु झे एक जरूरी बात कहनी है. पिछले बुधवार को मेरा पीरियड आना था. आप तो जानते हैं मेरे पीरियड एकदो दिनों से ज्यादा आगेपीछे नहीं होते पर बुधवार को नहीं आया तो मैं ने थोड़ा और इंतजार किया.

आज 10 दिन लेट होने पर मैं ने टैस्ट किया,’’ कह कर माधुरी खामोश हो गई. ‘‘हां, तुम ने बताया था कि इस बार... हां, क्या हुआ टैस्ट में?’’ ‘‘दोनों डंडियां रंगीन हो गईं,’’ कह कर माधुरी चुप हो गई. प्रभाष ने चहकते हुए कहा, ‘‘क्या, यह तो चमत्कार हो गया. विश्वास ही नहीं होता, ऐसा भी हो सकता है. इस के लिए हम ने क्याक्या नहीं किया है. प्रकृति के यहां देर है, अंधेर नहीं. ‘‘पहले आप घर आइए, फिर देखते हैं क्या करना है?’’ ‘‘सुनो, अपना ध्यान रखो. कल से घर के सब काम बंद.

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