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अभी अगले दोतीन महीने तक किसी को घर पर मत बुलाना. मैं चाहती हूं पहले ये दोनों मु झे तो स्वीकार लें. मैं इन के साथ जीना चाहती हूं. मु झे इस समय सिर्फ ये चाहिए. अगर ऐसा नहीं कर सकते हैं आप तो मैं इन्हें ले कर जौनपुर लौट रही हूं.’ ‘अरे नहीं, ऐसा मत कहो. तुम्हें जो अच्छा लगे, करो. मैं भी अब इन से दूर नहीं रह सकता. एक काम करते हैं,

जब हम इन के साथ खूब अच्छे से रहना शुरू कर लेंगे तब एक पार्टी करेंगे. सब को बुलाएंगे. तब तक सिर्फ तुम, मैं और हमारे अंशुल-रोली,’ यह कहते हुए प्रभाष की आंखें नम हो गईं. प्रभाष ने डा. लतिका की मदद से एक एजेंसी से बात कर के 24 घंटे साथ रहने वाली एक आया ढूंढ़ी जो कल से घर आ जाएगी. उस दिन शाम से माधुरी का मातृत्व जीवन शुरू हुआ. प्रभाष ने सरोजिनी नगर की सभी दुकानों में मिठाई के डब्बे भिजवाए. उधर, इस खबर के बाद माधुरी को जानने वालों के दनादन फोन आने लगे.

प्रभाष ने उसे मना किया था कि किसी की कौल उठाने से. उस ने माधुरी से कहा कि धीरेधीरे सब को बताएंगे, अभी वह अपनी खुशियों पर ग्रहण नहीं लगाना चाहता है. माधुरी ने भी इस समय बहस करना उचित नहीं सम झा. दोनों ने तय किया कि 3 महीने तक वे न तो कोई पार्टी देंगे और न ही बच्चों को कहीं बाहर ले जाएंगे. प्रभाष ने सब से यही कहा कि हमारे यहां रिवाज है 3 महीने बच्चे सिर्फ मांबाप के पास घर में रहते हैं. लोगों ने भी सोचा कि इतने साल बाद बच्चे हुए हैं, सो, प्रभाष का इतना सशंकित होना जायज है. सब ने खूब बधाइयां दीं. घर आ कर माधुरी ने सब से पहले अपना कमरा बच्चों के अनुकूल किया. प्रभाष को उस ने एक लंबी लिस्ट पकड़ा कर बाजार भेजा. सूती कपड़े की लंगोट, बेबी डाइपर, दूध की 4 बोतलें, बिस्तर पर बिछाने का प्लास्टिक,

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