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इसलिए हम दोतीन महीने रुकते हैं. उस के बाद फिर कोशिश करेंगे.’ माधुरी ने दुखी मन से कहा, ‘आप जैसा ठीक सम झें, मैडम. हम तो पिछले 2 महीने से बहुत उत्साहित थे. अब देखिए, अगली बार क्या होता है?’ ‘तुम दोनों धैर्य रखो और प्रकृति पर भरोसा भी. मैं सिर्फ एक वैज्ञानिक प्रक्रिया करती हूं. उस की सफलता या असफलता प्रकृति के हाथ में है.

हमारा काम कोशिश करते रहना है,’ कह कर डा. लतिका ने दोतीन महीने बाद आने को कहा और आने के एक महीना पहले वही दवाएं खाने की सलाह दी. 5 महीने बाद दोनों ने दोबारा प्रयास किया. इस बार भी असफलता हाथ लगी. दोनों टूटते जा रहे थे पर हर बार एक उम्मीद के साथ खुद को तैयार करते. हर बार प्रभाष और माधुरी 2 महीने इसी उम्मीद में जीते कि इस बार सब अच्छा हो. एकएक कर के 4 बार आईवीएफ की प्रक्रियाएं असफल हुईं और ऐसा करतेकरते पूरे 3 साल निकल गए. अब दोनों ने हार मान ली और निराश हो गए. अंतिम बार जब भ्रूण स्थानांतरण असफल हुआ तब डा. लतिका ने उन्हें सरोगेसी की सलाह दी. उन्होंने सम झाया कि इस में भ्रूण किसी अन्य महिला के गर्भ में डालेंगे. वह महिला उसे 9 महीने अपने गर्भ में रखेगी. बच्चा होने के बाद उसे बायोलौजिकल पेरैंट्स यानी प्रभाष-माधुरी को दे दिया जाएगा. सब सम झने के बाद माधुरी ने पूछा,

‘मतलब, वह बच्चा 9 महीने किसी और के गर्भ में पलेगा, फिर मैं उस की मां कैसे हुई?’ ‘उस बच्चे के जैविक यानी बायोलौजिकल मातापिता तुम्हीं दोनों होगे. उस में तुम्हारे ही डीएनए होंगे. बस, यह सम झ लो कि तुम ने किराए की कोख ली है.’ ‘फिर अगर कल को वह महिला आ गई अपना बच्चा मांगने तो हम क्या करेंगे?’ माधुरी ने घबरा कर कहा. ‘यह एक सख्त कानूनी प्रक्रिया के तहत होता है. उस के अंतर्गत तुम दोनों का एक एग्रीमैंट होगा मेरे हौस्पिटल से. फिर हौस्पिटल उस महिला से भी एग्रीमैंट करेगा. इस प्रक्रिया की गोपनीयता हमारी जिम्मेदारी है, इस के उल्लंघन होने पर मेरा लाइसैंस कैंसल हो जाएगा.’ प्रभाष ने डा. लतिका से सोचने का समय मांगा.

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