लेखिका- पूनम पाठक
उस की मां को उस से ज्यादा अपनी जाति या धर्म प्यारा था, जिस के लिए उन्होंने अपनी बेटी के प्यार व उस की ख़ुशी की कुर्बानी दे दी थी. ओह्ह... वंदना ने एक उसांस ली. सिर झटक कर उस ने कड़वी यादों की गिरफ़्त से छुटकारा पाना चाहा, मग़र निष्फल रही. हार कर वह सोफे पर निढाल पड़ गई, उस के मन में विचारों की अनवरत श्रृंखला जारी थी.
काफी रोने और सिसकने के बाद इस शादी को अपना प्रारब्ध मान उस ने समय से समझौता कर लिया. कुछ महीने सुकून में गुज़रे. मां की चाटुकारिता करने की कोशिश में प्रशांत उसे खुश रखता. लेकिन कहते हैं कि वक्त किसी का सगा नहीं होता. अपना बोया हमें यहीं इसी दुनिया में काटना पड़ता है.
विपक्षी पार्टी की साजिशों के तहत सत्तारुढ़ दल की कद्दावर नेता विधायक रामेश्वरी देवी को भ्रष्टाचार के आरोप में अपने पद से इस्तीफ़ा दे कर कुरसी से हाथ धोना पड़ा. सत्ता के जाते ही उन का पैसा, पावर, रुतबा सब जाता रहा. उन की बदनाम छवि से पार्टी को कहीं कोई नुकसान न पहुंचे, इस कारण पार्टी ने उन्हें दूध में पड़ी मक्खी की भांति निकाल फेंका. जिस पार्टी के लिए उन्होंने दिनरात एक कर दिया, उसी ने उन्हें आने वाले इलैक्शन में टिकट न दे कर अंगूठा दिखा दिया.
रामेश्वरी देवी बुरी तरह टूट चुकी थीं. जायदाद के नाम पर उन के पास अब वह घर ही बचा था जिस में वे रहती थीं. वक्त की इस करवट ने उन्हें चारों खाने चित्त कर दिया. इलाके की दबंग नेता को एक लाचार, अबला की खोल में परिवर्तित होते देर न लगी.
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