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उस दिन वंदना का जन्मदिन था. प्रशांत बिजनैस के किसी काम से शहर के बाहर थे. तृषा ने मम्मी को ट्रीट देने के लिए मनाया और ज़िद कर के उसे अपनी जींस व उस पर शौर्ट कुरती पहना दी. ‘क्या मां, तुम तो आज भी स्वीट सिक्सटीन दिखाई देती हो. रियली, आई जेलस विद यू.’

‘कैसी बातें कर रही है, उम्र हो चली है मेरी. तुझ से मेरी भला क्या तुलना,’ वंदना ने शर्माते हुए कहा.

‘ओयेहोये, अभी इतनी भी उम्र नहीं हुई कि आप को सोचना पड़े. वैसे भी, चालीस पार...पर फिर भी गजब का निखार...’ तृषा एकएक शब्द पर जोर देती हुई गोलगोल आंखें मटकाती हुई बोली. तृषा की यह हरकत देख कर वंदना को जोरों की हंसी आ गई. दोनों एकदूसरे का हाथ थामे बाहर निकल गईं.

नियत प्रोग्राम के मुताबिक, सब से पहले दोनों ने वंदना की फेवरेट स्टारर फ़िल्म ‘मौम’ देखी. श्रीदेवी की ऐक्टिंग ने दोनों को बहुत इम्प्रैस किया. उस के बाद कौफ़ीहाउस में मांबेटी ने जम कर पेटपूजा की. सब से आखिर में शौपिंग का दौर शुरू हुआ जो देरशाम तक चला.

‘क्या मां, आप क्यों इतना टैंशन लेती हो? वैसे भी, पापा बाहर हैं, उन्हें कुछ पता चलने वाला नहीं. और अगर चल भी गया तो क्या, हम कुछ गलत तो नहीं कर रहे हैं न,’ बारबार वंदना का ध्यान घड़ी की ओर जाते देख तृषा बोल उठी.

‘वह तो ठीक है बेटा, पर मैं बेवजह कोई अशांति नहीं चाहती घर में. तुम तो अपने पापा का नेचर जानती हो,’ वंदना की आवाज़ कुछ सहमी हुई सी थी.

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