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अस्तित्व की तलाश
'मानस' शब्द के प्रतिध्वनित होते ही वंदना ने निगाहें उठा कर सामने बैठे शख्स को देखा. बेतरतीब दाढ़ी और हलकी घनी मूंछों ने सामने वाले के चेहरे को काफी ढक रखा था.
भाग - 1
शिशिर और मानस को आता देख तृषा हौले से मुसकरा उठी. उस के ससुर ने उसे मानस के बारे में पहले ही सब बता दिया था. वह मां के पास जा कर उन के कानों में कुछ फुसफुसाई, जिसे सुन कर वंदना के कपोल सुर्ख हो चले.
भाग - 2
रामेश्वरी देवी बुरी तरह टूट चुकी थीं. जायदाद के नाम पर उन के पास अब वह घर ही बचा था जिस में वे रहती थीं. वक्त की इस करवट ने उन्हें चारों खाने चित्त कर दिया.
भाग - 3
तृषा के तर्क और उस के सवालों का कोई जवाब न होने पर प्रशांत बड़बड़ाता हुआ वहां से चला गया. तृषा भी कुछ गुस्से में अपने कमरे की ओर चल दी.
भाग - 4
इस घटना के लगभग एक हफ्ते बाद तृषा ने चहकते हुए घर में प्रवेश किया, ‘मां, मां, कहां हो आप, एक खुशखबरी है आप के लिए.
भाग - 5
कहानी को पूरा करने के उद्दयेश से वंदना ने यहां आ कर इस कौटेज को दोतीन महीने के लिए बुक किया था क्योंकि ऋतिक के पापा का पब्लिशिंग हाउस भी यहीं था और वे वंदना से बात कर आगे की प्रक्रिया शुरू करना चाहते थे.
भाग - 6
तभी सामने वाले शख्स ने धीमी आवाज़ में उसे पुकारा. हां, उस ने वंदना को पहचानने में कोई भूल नहीं की थी क्योंकि वक्त के तमाम झंझावातों को झेलने के बाद भी वंदना के चेहरे की मासूमियत आज भी बरकरार थी.
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