1952 में बांग्लादेश में भाषा को लेकर एक आंदोलन चला था, भाषा के लिए हुए इस आन्दोलन में हजारों लोगों ने अपनी जान दी थी. यह आंदोलन तत्कालीन पाकिस्तान सरकार द्वारा देश के पूर्वी हिस्से पर भी राष्ट्रभाषा के रूप में उर्दू को थोपे जाने के विरोध से हुई थी.
कहा जाता है कि भाषा के लिए शुरू हुआ यह आन्दोलन देश की आजादी का आन्दोनल बन गया, इस आन्दोलन में पडोसी देश का पूरा साथ भारत ने दिया और नौ महीने तक चले मुक्ति संग्राम की परिणति बांग्लादेश पाकिस्तान से अलग होकर एक नए स्वतंत्र देश के रूप में विश्व पटल पर उभरा. आगे चल कर हर वर्ष 21 फरवरी के दिन बांग्लादेश में भाषा दिवस मनाया शुरू हो गया.
फिर 17 नवंबर, 1999 को सयुक्त राष्ट्र संघ के प्रभाग यूनेस्को ने इसे स्वीकृति देते हुई, यह घोषणा किया था कि हर वर्ष 21 फ़रवरी के दिन को अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के रूप में मनाया जायेगा. तब से हर वर्ष विश्व में भाषाई एंव सांस्कृतिक विविधता और बहुभाषिता को बढ़ावा देने के उद्देश से इसे ऐसी तिथि पर विश्व भर में मनाई जाती है.
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2008 को अन्तर्राष्ट्रीय भाषा वर्ष के रूप में मनाया गया था. यूनेस्को द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस की घोषणा से बांग्लादेश के भाषा आन्दोलन दिवस को अन्तर्राष्ट्रीय स्वीकृति मिली, बांग्लादेश में इस दिन एक राष्ट्रीय अवकाश होता है.
2009 में संयुक्त राष्ट्र ने अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस की पूर्व संध्या पर एक चौकाने वाला आंकड़ा जारी कर सबको चौका दिया था . दुनियाभर के कई मातृभाषा में संरक्षण के अभाव और अंग्रेजी के वर्चस्व ने सैंकड़ों भाषाओं कों समाप्ति के कगार पर ला खड़ा कर दिया हैं . तीन साल पहले जारी इस आंकड़े के अनुसार दुनियाभर में ऐसी सैंकड़ों भाषाएं हैं जो विलुप्त होने की स्थिति में पहुंच गईं है और भारत के बाद दूसरे नंबर पर अमेरिका में स्थिति काफी चिंताजनक है जहां 192 भाषाएं दम तोड़ती नजर आ रही हैं.
इस रिपोर्ट के अनुसार भारत, अमेरिका और इंडोनेशिया क्रमश पहले, दूसरे और तीसरे स्थान पर है, भारत, अमेरिका के बाद इंडोनेशिया है जहां 147 भाषाओं संकट में है. भाषाएं किसी भी संस्कृति का आईना होती हैं और एक भाषा की समाप्ति का अर्थ है कि एक पूरी सभ्यता और संस्कृति का नष्ट होना. अगर इन रिपोर्टो पर बात करे तों 2009 में भारत की 196 , अमेरिका की 192 और इंडोनेशिया की 147 सभ्यता संस्कृति पूर्णत लुप्त होने के कगार पर खड़ा है .
इस आंकड़े के अनुसार दुनियाभर में 6900 भाषाएं बोली जाती हैं लेकिन इनमें से 2500 भाषाओं को चिंताजनक स्थिति वाली भाषाओं की सूची में रखा गया है और समय रहते इसके संरक्षण के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया तों ये 2500 भाषाएं पूरी तरह समाप्त हो जाएंगी.
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संयुक्त राष्ट्र संघ का यह आंकड़ा वर्ष 2001 में किए गए अध्ययन की तुलना में काफी अलग था, इन दोनों आकलनो के बीच काफी तेजी से बदलाव देखने कों था. इन आकंड़ो कों जारी हुई तीन साल बीत गई है और सभी जानते है कि इस क्षेत्र में कितना काम हो रहा है.
कहा जाता हैं कि मातृभाषा हर इंसान की शुरूआती जुबान होती हैं, लेकिन आज के इस भाग दौड़ के लाइफ में हर कोई चकाचौंध और प्रचलित भाषा के पीछे सब भाग रहे हैं. इस आपाधापी में हम जिंदगी के एक अहम अंग कों अपने से दूर कर रहे है.‘नेशनल ज्योग्राफिक सोसायटी एंड लिविंग टंग्स इंस्टीट्यूट फॉर एंडेंजर्ड लैंग्वेजेज’ के अनुसार हरेक पखवाड़े एक भाषा की मौत हो रही है. अगर इसके संरक्षण के लिए कुछ खास नही किया गया तों सन् 2100 तक भू-मण्डल में बोली जाने वाली सात हजार से भी अधिक भाषाए पूर्णतः लोप हो जाएगी. इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि पूरी दुनिया में सात्ताईस सौ भाषाएं संकटग्रस्त हैं.
भाषा संरक्षण के क्षेत्र में काम करने वाले विशेषज्ञ साफ शब्दों में यह मानते है कि इस तेजी से समाप्त हो रही भाषओं के पीछे एक प्रबल मुख्य कारण है, वह है अंग्रेजी का बढ़ता साम्राज्य. विश्व के अन्य भाषओं के साथ भारत की तमाम स्थानीय भाषाएं व बोलियां अंग्रेजी के बढ़ते साम्राज्य के प्रभाव से बेहद नाजुक मोड़ पर आकर खाड़ी हो गई हैं.
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कई स्थानीय भाषा और बोलियों के विनाश का कारण बन अंग्रेजी आज व्यावसायिक, प्रशासनिक, चिकित्सा, अभियांत्रिकी व प्रौद्योगिकी की आधिकारिक भाषा चुका है. भारत सरकार ने उन भाषाओं के आंकड़ों का संग्रह किया है, जिन्हें 10 हजार से अधिक संख्या में लोग बोलते हैं. 2001 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार ऐसी 122 भाषाएं और 234 मातृभाषाएं हैं. जबकि कई भाषा ऐसी थी जिसको बोलने वालो की संख्या बेहद काम है, इसलिए इनका गणना करना मुश्किल है .
जर्मन विद्वान मैक्समूलर ने अपने शोध से भारत के भाषा और संस्कृति संबंधी तथ्यों से जिस तरह समाज को परिचित कराया था. उसी तर्ज पर अब नए सिरे से गंभीर प्रयास किए जाने की जरुरत है, क्योंकि हर पखवाड़े भारत समेत दुनिया में एक भाषा मर रही है. तों आईये इस … दिवस पर अपने मातृभाषा कों बचाने के लिए कसम खाये और जहां तक हो सके इसे जिंदा रखे, ताकि एक सभ्यता-संस्कृति विलुप्त हो जाने से बची रहे.