नास्तिकता की ओर बढ़ रही है दुनिया

मैं नास्तिक क्यों हूं…

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बौद्ध धर्म दुनिया का एकमात्र धर्म है जो मानवी मूल्यों और आधुनिक विज्ञान का समर्थक है. बौद्ध अनुयायी काल्पनिक ईश्वर में विश्वास नहीं करते हैं. अल्बर्ट आइंस्टीन, डा. भीमराव अम्बेदकर, बर्नाट रसेल जैसे कई प्रतिभाशाली, बुद्धिजीवी और वैज्ञानिक लोग बौद्ध धर्म को विज्ञानवादी धर्म मानते हैं. चीन देश की आबादी में 91 प्रतिशत से अधिक लोग बौद्ध धर्म के अनुयायी हैं. कहना गलत न होगा कि दुनिया में सबसे अधिक नास्तिक लोग चीन में हैं. चीनी मान्यता में इंसान और भगवान के बीच श्रद्धा का कोई सिद्धांत नहीं है. यहां अपने महान पूर्वजों की शिक्षा का अनुसरण करने वालों के नाम पर ही ताओइज्म या कन्फूशियनिज्म की परम्परा है. गैलप सर्वे में करीब 61 फीसदी चीनियों ने किसी ईश्वर के अस्तित्व को नकार दिया. वहीं 29 फीसदी ने खुद को अधार्मिक बताया. अप्रैल 2015 में हुए सर्वे में गैलप ने 65 देशों में कुल 64 हजार इंटरव्यू किये.

अश्लील नाटक नहीं , नजरिया है

स्वीडेन (76 फीसदी)

इस स्कैंडिनेवियन देश में हाल के सालों में सेक्युलरिज्म तेजी से बढ़ा है. स्वीडेन के सरकारी आंकड़ों के अनुसार केवल 8 फीसदी स्वीडिश नागरिक ही किसी धार्मिक संस्था से नियमित रूप से जुड़े हैं. शायद इसीलिए 31 अक्टूबर 2016 को प्रोटेस्टेंट रिफॉर्मेशन की 500वीं वर्षगांठ मनाने के लिए पोप फ्रांसिस ने स्वीडेन को चुना था.

चेक गणराज्य (75 फीसदी)

करीब 30 प्रतिशत चेक नागरिक खुद को नास्तिक कहते हैं. वहीं इसी देश के सबसे अधिक लोगों ने अपनी धार्मिक मान्यताओं के बारे में कोई भी उत्तर देने से मना कर दिया. कुल आबादी का केवल 12 फीसदी ही कैथोलिक या प्रोटेस्टेंट चर्च से जुड़ा है.

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