Kanwar Yatra : भारत एक ऐसा देश है जहां अंधविश्वास, आस्था और संस्कृति सदियों से अपनी जड़े जमाई बैठी है. यह जड़ें इतनी गहरी हैं कि इसे जब छेड़ा गया तो लोगों के खून बहे हैं. पूरी दुनिया में केवल भारत ही एक ऐसा देश है जहां धर्म सिर्फ पूजापाठ तक ही सिमित नहीं है बल्कि राजनीतिक रणनीति, समाजिक व्यवस्था और जनमानस की चेतना का हिस्सा है. हिंदू धर्म की जीवंत अभिव्यक्तियों में से एक है कांवड़ यात्रा. श्रावण मास में हर साल लाखों श्रद्धालु सुल्तानगंज एवं अन्य नदियों से जल ले कर देवघर के बाबा बैद्यनाथ में जल अर्पण करते हैं. इस के साथ ही वे इस दौरान पैदल कांवड़ यात्रा पर रहते हैं.

कहां से शुरू होती है कांवड़ यात्रा ?

कांवड़ यात्रा की शुरुआत बिहार के सुल्तानगंज में, गंगा उत्तरवाहिनी से बड़ी भारी मात्रा में श्रद्धालु बाबा बैद्यनाथ धाम के लिए जल भरते हैं. इस के साथ ही पूरे देश भर से लाखों श्रद्धालु अपने अपने गांव और शहर से कांवड़ ले कर निकलते हैं. कुछ मोटर साइकल से, कुछ ट्रेक्टरों से और ज्यादातर लोग पैदल ही बोल बम के जयघोष के साथ देवघर के लिए प्रस्थान करते हैं.

नियम के मुताबिक जल गिराते समय सभी कांवड़िए नंगे पांव होते हैं, चप्पल नहीं पहनते हैं, व्रत रखते हैं. इस के साथ ही धार्मिक अनुशासन का पालन करते हैं. लेकिन क्या सचमुच यह धार्मिक यात्रा का उदहारण है?

हर साल कांवड़ यात्रा से पहले शासन प्रशासन पूरी व्यवस्था करता है. सड़कों की मरम्मत की जाती, बिजली की व्यवस्था, पानी, चिकित्सा, पुलिस के साथ साथ आज कल ड्रोन कैमरों को भी ड्यूटी पर लगाया जाता है. इस के साथ ही कांवड़ियों के लिए विशेष रूट की व्यवस्था और यातायात प्रबंधन एवं शिविर, शौचालय, भोजन, लाउड स्पीकर व सजावट भी की जाती है.

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