बीजेपी जीते बगैर सत्ता हथियाने में माहिर, इससे पहले भी कई राज्यों में चल चुका ऑपरेशन लोटस

‘ऑपरेशन लोटस’ BJP की उस स्ट्रैटजी के लिए गढ़ा गया शब्द है, जिसमें सीटें पूरी न होने के बावजूद पार्टी सरकार बनाने की कोशिश करती है. ऑपरेशन लोटस के तहत बीजेपी उन राज्यों को अपना टारगेट बनाती है जहां बीजेपी सत्ता में नहीं होती या कम सीटें होनी की वजह से वो सत्ता में आ नहीं पाती. महाराष्ट्र से पहले भी बीजेपी कई राज्यों में अपना ऑपरेशन लोटस चला चुकी है. जिसमें से कई राज्यों में बीजेपी को सफलता मिली तो कई राज्यों में बीजेपी को असफलता का स्वाद चखना पड़ा. इस ऑपरेशन के तहत बीजेपी अलग-अलग तरीकें से सत्ता को गिराकर अपनी सरकार बनाने की कोशिश करती है.

  1. मध्य प्रदेश में तख्तापलट मुहिम पास

योजना

कांग्रेस के असंतुष्ट नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थक विधायकों को बीजेपी के पाले में करना और कमलनाथ की सरकार गिराकर अपनी सरकार बना लेना.  इस योजना की कमान बीजेपी नेता नरोत्तम मिश्रा को सौंपी गई.

क्या-क्या हुआ

2018 के विधानसभा चुनाव में किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिला. कांग्रेस ने बीएसपी और निर्दलियों की बैसाखी पर सरकार बनाई. एक तरफ सरकार के पास मजबूत संख्याबल नहीं था, दूसरी तरफ कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया पार्टी से नाराज चल रहे थे.

‘ऑपरेशन लोटस’ के लिए ये बेहद सहीं और बेहतर समय था. बीजेपी के बड़े नेताओं ने सिंधिया से संपर्क साधा और 9 मार्च 2020 को सिंधिया ने अपने समर्थक विधायकों के साथ बगावत कर दी. इन विधायकों को चार्टर प्लेन से बेंगलुरु पहुंचा दिया गया.

तमाम कोशिशों के बाद भी सिंधिया नहीं माने और कमलनाथ सरकार अल्पमत में आ गई. 20 मार्च 2020 को महज 15 महीने मुख्यमंत्री रहने के बाद कमलनाथ ने इस्तीफा दे दिया और कांग्रेस सरकार गिर गई. जिसके बाद शिवराज सिंह चौहान प्रदेश के नए मुख्यमंत्री बने.

2.राजस्थान में गहलोत सरकार को गिराने की साजिश

योजना

राजस्थान का मुख्यमंत्री नहीं बन पाने के कारण नाराज सचिन पायलट के जरिए कांग्रेस विधायकों को बीजेपी के पाले में कर अशोक गहलोत की सरकार को गिराना. इसके लिए राजस्थान बीजेपी की स्टेट यूनिट को अहम जिम्मेदारी सौंपी गई.

क्या-क्या हुआ

राजस्थान में 2018 के चुनाव में कांग्रेस ने 100 सीटें जीतकर मुश्किल से बहुमत आंकड़ा छुआ था. बसपा और निर्दलियों को कांग्रेस के पाले में कर सीएम अशोक गहलोत ने अपनी कुर्सी मजबूत करने की कोशिश की. वहीं विधानसभा में कांग्रेस का चेहरा रहे सचिन पायलट मुख्यमंत्री बनने के लिए अपनी कोशिशें जारी रखीं.

ऐसे में बीजेपी के ‘ऑपरेशन लोटस’ के लिए सचिन पायलट सबसे बेहद पसंदीदा चेहरा थे. राजस्थान बीजेपी के नेताओं ने उनकी नाराजगी को भांप उनसे संपर्क किया. 11 जुलाई 2020 सचिन पायलट ने गहलोत के खिलाफ मोर्चा खोल दिया और कांग्रेस के 18 विधायकों के साथ गुरुग्राम के एक होटल में पहुंच गए. गहलोत भी अपनी कुर्सी बचाने के लिए एक्टिव हो गए. जिसके लिए उन्होंने अपने पाले वाले सभी विधायकों को एक होटल में रखा. इसके बाद प्रियंका गांधी वाड्रा ने सचिन पायलट से 10 अगस्त 2020 को बातचीत कर उन्हें मना लिया. यहां बीजेपी पर कांग्रेस भारी पड़ गई और बीजेपी ॉ की कांग्रेस विधायकों को तोड़ने की स्ट्रैटजी विफल हो गई.

3. कर्नाटक में कुमारस्वामी की सत्ता पलटी

योजना

कांग्रेस और JDS के विधायकों को अपने पाले में करके विधानसभा में बहुमत का आंकड़ा कम करना और बीजेपी की सरकार बनाना. बीजेपी ने बीएस येदियुरप्पा को इस पूरी योजना की कमान सौंपी.

क्या-क्या हुआ

2017 के कर्नाटक विधानसभा चुनाव में बीजेपी 104 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. बीजेपी नेता बीएस येदियुरप्पा ने सीएम पद की शपथ भी ले ली, लेकिन फ्लोर टेस्ट पास नहीं कर पाए. जिसके बाद सरकार गिर गई.

इसके बाद कांग्रेस के 80 और JDS के 37 विधायकों ने मिलकर सरकार बना ली. 2 साल भी पूरे नहीं हुए थे कि कर्नाटक में पॉलिटिकल क्राइसिस शुरू हो गया. जुलाई 2019 में कांग्रेस के 12 और JDS के 3 विधायक बागी हो गए. कांग्रेस-JDS सरकार के पास 101 सीटें बचीं. वहीं बीजेपी की 105 सीटें बरकरार रहीं.

मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और कोर्ट ने फ्लोर टेस्ट का आदेश दिया गया. सरकार फ्लोर टेस्ट में फेल हो गई और CM कुमारस्वामी ने इस्तीफा दे दिया.

4. महाराष्ट्र में अजीत पवार को तोड़ने का पैंतरा

योजना

शिवसेना के कांग्रेस और NCP के साथ जाने के प्लान को अजित पवार के साथ मिलकर बर्बाद करना.

क्या-क्या हुआ

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजे 24 अक्टूबर 2019 को घोषित हुए थे. बीजेपी-शिवसेना गठबंधन को स्पष्ट बहुमत मिला था. बीजेपी को 105 और शिवसेना को 56 सीटें मिलीं. वहीं NCP को 54 और कांग्रेस को 44 सीटों पर जीत मिली. मुख्यमंत्री पद को लेकर बात ना बन पाने पर बीजेपी और शिवसेना अलग हो गईं.

इसके बाद शिवसेना ने NCP और कांग्रेस से हाथ मिलकर सरकार बनाने की घोषणा की, लेकिन इसके एक दिन बाद 23 नवंबर 2019 को ही CM के रूप में देवेंद्र फडणवीस ने शपथ ले ली. उनके साथ ही अजित पवार ने भी डिप्टी CM पद की शपथ ली.

जिसके बाद NCP प्रमुख शरद पवार ने पार्टी के विधायकों को अजित के साथ जाने से रोक लिया. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने फ्लोर टेस्ट का आदेश दिया. जब फडणवीस को लगा कि वह बहुमत नहीं हासिल कर पाएंगे तो उन्होंने 72 घंटे में ही CM पद से इस्तीफा दे दिया.

5. गोवा में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी, फिर भी BJP सरकार

योजना

कम सीटें होने के बावजूद सरकार बनाने का दावा पहले पेश करना.

क्या-क्या हुआ

फरवरी 2017 के गोवा विधानसभा चुनाव में किसी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला, लेकिन कांग्रेस 17 सीटों के साथ सबसे बड़ा पार्टी बनकर उभरी. सत्ता की चाबी छोटे दलों और निर्दलियों के हाथ में थी.

इसके बाद मनोहर पर्रिकर ने बहुमत ना होने के बावजूद भी 21 विधायकों के समर्थन की बात कहते हुए सरकार बनाने का दावा पेश किया. राज्यपाल मृदुला सिन्हा ने उन्हें सरकार गठन का न्यौता दे दिया. जिसपर राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि गोवा में कांग्रेस के बहुमत का बीजेपी ने हरण किया. कांग्रेस का तर्क था कि सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते सरकार गठन के लिए उन्हें पहले बुलाया जाना चाहिए था.

6. अरुणाचल प्रदेश में कांग्रेस पार्टी हुई बागी

योजना

कांग्रेस के दो तिहाई से ज्यादा विधायकों को तोड़कर नई सरकार बनाना.

क्या क्या हुआ

2014 चुनाव के बाद अरुणाचल प्रदेश में कांग्रेस ने पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई. लेकिन कांग्रेस विधायकों के बीच चल रही रंजिश को लेकर लगातार चर्चा चलती रही.

2 साल बाद 16 सितंबर 2016 को कांग्रेस पार्टी के मुख्यमंत्री पेमा खांडू और 42 विधायक पार्टी छोड़कर पीपुल्स पार्टी ऑफ अरुणाचल प्रदेश में शामिल हो गए.  PPA ने बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाई.

7. उत्तराखंड में बहुगुणा की नाराजगी भुनाकर सत्ता को अपने कब्जे में करना

योजना

CM पद से हटाए गए कांग्रेस नेता विजय बहुगुणा की नाराजगी को भुनाकर कांग्रेस को तोड़ना और विधानसभा में बहुमत हासिल करना था.

क्या-क्या हुआ

उत्तराखंड में 2012 के विधानसभा चुनाव में त्रिशंकु विधानसभा रही. कांग्रेस 32 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनी, जबकि बीजेपी को 31 सीटें मिलीं.  ऐसे में बीजेपी इस हार को पचा नहीं पा रही थी, लेकिन जैसे ही कांग्रेस ने केदारनाथ आपदा के बाद विजय बहुगुणा को हटाकर 2014 में हरीश रावत को CM बनाया, बीजेपी को यहां उम्मीदें दिखने लगीं.

बीजेपी बहुगुणा की नाराजगी का फायदा उठाया. 18 मार्च 2016 को बहुगुणा समेत कांग्रेस के 9 विधायक बागी हो गए. हालांकि, उत्तराखंड के स्पीकर ने जब कांग्रेस के 9 बागियों को अयोग्य घोषित कर दिया तो केंद्र सरकार ने उसी दिन राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया.

इसके बाद सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर बागी विधायकों को दूर रखते हुए शक्ति परीक्षण कराया गया. 11 मई 2016 को बहुमत परीक्षण में रावत की जीत हुई. सुप्रीम कोर्ट के चलते यहां भी विधायकों को तोड़ने का BJP का पैंतरा काम नहीं आया.

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