बिहार के मुख्यमंत्री सहित कई दूसरे अहम पदों पर रहते जीतन राम मांझी ने कोई एक काम दलितों के भले का ऐसा नहीं किया जिसे गिनाते वे फख्र से सिर ऊंचा कर सकें. उन के मामले में तो हो उलटा रहा है कि बढ़ती उम्र में उन की जबान अकसर फिसलने लगी है. उन की नई मांग यह है कि पुलिस में भरती के लिए आरक्षित वर्ग की महिलाओं को कद में छूट मिलनी चाहिए क्योंकि सामान्य वर्ग के मुकाबले उन्हें कम पौष्टिक आहार मिलता है इसलिए उन का कद बढ़ नहीं पाता.
बात में दम होता अगर जीतन राम कद और पौष्टिक भोजन संबंधी कुछ आंकड़े पेश कर पाते और दलील यह देते कि पुलिस भरती में आरक्षित पुरुषों को क्यों कद में डिस्काउंट मिलता है और अच्छा तो यह होता अगर वे यह मांग करते कि सामान्य वर्ग की महिलाओं का न्यूनतम कद दोचार इंच बढ़ा दिया जाए, इस से कथित समस्या ही हल हो जाती.
पार्किंग में सैमिनार
कृष्ण को रोमियो कहने की हिम्मत करने वाले नामी वकील प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट के जजों को भ्रष्ट भी करार दिया था. कोर्ट की अवमानना के आरोप में महज एक रुपए के जुर्माने की सजा हुई थी. इस के बाद से वे सुर्खियों से और सुर्खियां उन से परहेज करने लगी थीं. यही प्रशांत भूषण दिल्ली विश्वविद्यालय के एक सैमिनार में बीती 26 मार्च को बतौर मुख्य वक्ता आमंत्रित थे लेकिन लौ फैकल्टी की डीन उषा टंडन ने बचकाने बहाने बना कर आयोजन रद्द कर दिया.
उत्साहित छात्र और अनुभवी प्रशांत भूषण कहां मानने वाले थे. उन्होंने पार्किंग में ही संगोष्ठी शुरू कर दी. यहां से भी उन्हें खदेड़ा गया तो वे कैंपस के बाहर जा कर सैमिनार करने लगे जहां उन्होंने कहा, ‘‘भाषण की स्वतंत्रता नहीं है. डीयू का कानून विभाग क्यों और किस के इशारे पर उन के बोलने से डरा, यह तो राम जाने, लेकिन सैमिनार का विषय ‘भारतीय संविधान को चुनौतियां’ कम गंभीर नहीं था.
तार दिया प्रभुओं ने कभीकभी भगवान को भी भक्तों से काम पड़े, जाना था गंगा पार प्रभु केवट की नाव चढ़े.
अनूप जलोटा के गाए इस भजन का मर्म तो योगी आदित्यनाथ को साल 2018 में ही समझ आ गया था जब उन की परमानैंट लोकसभा सीट गोरखपुर से उपचुनाव में निषाद पार्टी के संस्थापक डाक्टर संजय निषाद के इंजीनियर बेटे प्रवीण निषाद ने भाजपा के ब्राह्मण उम्मीदवार उपेंद्र शुक्ला को सपा के सहयोग से पटखनी दे दी थी.
तब सकते में आ गए दिल्ली और नागपुर में बैठे विश्वामित्रों और वशिष्ठों को त्रेता युग की याद हो आई जब राज्याभिषेक के वक्त केवट राम के नजदीक बैठा था. देखते ही देखते निषाद पार्टी का भाजपा से गठजोड़ हो गया. प्रवीण 2019 में संत कबीर नगर से भाजपा के टिकट से जीत कर संसद पहुंच गए और तरहतरह की कारें चलाने लगे. इस त्रेतायुगी जुगाड़ से पूर्वांचल की समस्या सीटों की सौदेबाजी से सुलझा ली गई. अब निषाद पार्टी के मुखिया संजय निषाद उत्तर प्रदेश कैबिनेट में हैं. निषाद कुनबे के छोटे युवराज सरवन भी भाजपा विधायक हैं. किस ने किस को तारा, कह पाना मुश्किल है लेकिन भगवा गैंग तो अब यह भजन गा रहा है-
नाथ आज मैं कह न पावा.
मिटे दोष दुख दरिद्र दावा…
गुलाम भी आजाद भी
जम्मूकश्मीर के सीएम रहे वरिष्ठ कांग्रेसी नेता गुलाम नबी आजाद जज्बाती हो कर संन्यास की बात करने लगे हैं. इस से ज्यादा हैरत की बात उन का भगवा गैंग की तरह यह कहना रहा था कि 600 साल पहले मुसलमानों के पूर्वज भी कश्मीरी पंडित थे. ‘द कश्मीर फाइल्स’ फिल्म के रिलीज होने के बाद उन्हें अपनी वंशावली किस पंडित से मिली, यह तो वे बताने से रहे लेकिन यह ज्ञान पद्मभूषण मिलने के बाद ही क्यों बिखरा, यह कतई हैरत की बात नहीं क्योंकि आजकल खैरात और बख्शीश में फर्क कर पाना बड़ा मुश्किल है.
गुलाम नबी आजाद और पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री वामपंथी बुद्धदेव भट्टाचार्य में फर्क तो इस बहाने साफ हुआ.