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मीडिया: ‘वीकली हाट’ हो गई कंटेंट राइटिंग

मीडिया आज पूरी तरह से व्यवसाय का रूप ले चुका है, इस से कंटैंट राइटर की लेखनी ने पैशन की जगह पेशे का रूप ले लिया है. आज लेखक कम, कंटैंट राइटर हर जगह खड़े हैं, जो सहीगलत का नजरिया पेश नहीं कर पाते.

कंटैंट राइटिंग के खराब होने का सीधा असर मानसिक खुराक पर पड़ता है. ग्राहक मुफ्त के चक्कर में सोशल मीडिया के वीकली हाट बाजार में परोसे जा रहे कंटैंट को देख रहा है. वह निष्पक्ष और जिम्मेदारीभरा नहीं होता है. अच्छे कंटैंट के लिए जरूरी है कि ग्राहक उस की अच्छी कीमत देने को तैयार हो. कंटैंट राइटर विचारों को परिपक्व बना कर सोचनेसम?ाने की ताकत और तर्कशक्ति को बढ़ाता है.

कंटैंट राइटिंग जब वीकली हाट में बदल जाएगी तो समाज पूरी तरह से बाजार के अधीन हो जाएगा. बाजार पैसे खर्च कर के जो सम?ाएगा, वही समाज को सम?ाने के लिए मजबूर होना पड़ेगा. निष्पक्ष पत्रकारिता और चौथा स्तंभ जैसी बातें बेमानी हो जाएंगी.

मीडिया का विस्तार हो रहा है. इस का प्रभाव कंटैंट राइटिंग पर भी पड़ रहा है. फिल्मों से ले कर यूट्यूब चैनल तक हर तरफ नएनए विस्तार दिख रहे हैं. कंटैंट राइटर यानी लेखक हर विधा में खुद को परफैक्ट मान कर अंधी दौड़ में जुट गया है. कंटैंट राइटिंग एक तरह से ‘वीकली हाट’ यानी साप्ताहिक बाजार जैसी हो गई है, जहां बड़ी और अच्छी कंपनियों की नकल वाला सामान सस्ती कीमत पर बिक रहा है. सस्ता होने के कारण यह सामान बिक भले ही जा रहा पर उपयोगी साबित नहीं हो रहा है.

कंटैंट राइटर अब किसी प्रोडक्ट का प्रयोग कर के उस के बारे में नहीं लिखता. जो कंपनी की पीआर टीम बता देती है उसी को लिख देता है. कंटैंट राइटर की अपनी खोज नहीं होती है. किसी पुस्तक की समीक्षा वह पुस्तक को पढ़ कर नहीं देता है. जो पुस्तक का लेखक बता देता है, वही वह लिख देता है. समाज और राजनीति के बारे में वह ही लिखा जा रहा जो नेता लिखवाना चाहता है. ऐसे में कंटैंट राइटर को जो निष्पक्ष जानकारी देनी चाहिए उसे वह नहीं दे पाता है.

कंटैंट राइटर एक भेड़चाल में फंस गया है. इस में मौलिक विषय और लेखन दोनों खो गए हैं. सोशल मीडिया के प्रभावी होने से कई बार ऐसे विषयों को भी बेहद पसंद किया जा रहा है जो पूरी तरह से निरर्थक होते हैं. ऐसे में कंटैंट राइटर को लगता है कि जब चलताऊ विषय ही पसंद किए जा रहे हैं तो अच्छे और सार्थक विषयों में समय लगाने की जरूरत ही क्या है? इस सोच के बाद कंटैंट राइटिंग पूरी तरह से ‘वीकली हाट’ जैसी हो गई है. यहां नकल किया हुआ सामान दिखाया जा रहा है. जो लेखन की मूल भावना से पूरी तरह से अलग होता है.

मौलिक विषयों का अभाव

कंटैंट राइटर यानी लेखक के अपने मौलिक विचार नहीं रह गए हैं या फिर उसे अपने लेखन पर भरोसा नहीं रह गया है. वह अपने विचार लिखने की जगह पर यह देखता है कि लेखन के बाजार में क्या चल रहा है. जैसा उसे दिखता है उसे वह सफल मान कर उस के जैसा ही कंटैंट तैयार करने लगता है. जिस तरह से राजनीतिक दलों के लिए उन की एक विचारधारा का होना जरूरी होता है उसी तरह से लेखक के लिए उस की एक सोच का होना जरूरी होता है. यही वजह है कि पहले समाचारपत्र और पत्रिकाओं का एक संपादकीय विचार या दिशा होती थी. कोई वामपंथ के विचारों का समर्थक होता था तो कोई दक्षिण पंथ का. कुछ उदारवादी सोच के होते थे.

धीरेधीरे यह भेद मिटने लगा है. अब मीडिया के एक बड़े वर्ग में विचारों का अभाव हो गया है. वे पूरी तरह से वीकली हाटबाजार की तरह हो गए हैं, जहां बिकाऊ कंटैंट परोसा जा रहा है. मीडिया पर इसी वजह से बिकाऊ होने का आरोप लग रहा है. मुनाफे के चक्कर में ज्यादातर मीडिया विज्ञापनों और प्रचार को ही अपना कंटैंट सम?ा बैठा है. वह विज्ञापन देने वालों के दबाव में होता है. यह दबाव सरकार और उद्योग जगत दोनों का हो सकता है. विज्ञापन और खबर के बीच का फर्क खत्म हो गया है. लेखक के अपने विचार खत्म हो गए हैं. लेखक अब कंटैंट राइटर हो गया है. जैसा कंटैंट हो, उस पर लेख उसी तरह से लिखा जाने लगा है. इस का प्रभाव समाज पर पड़ रहा है. वह सही और गलत को सम?ाने के लिए किस के पास जाए.

जब हम औनलाइन शौपिंग करते हैं तो जो प्रोडक्ट खरीदते हैं, उस के विषय में पढ़ते हैं. प्रोडक्ट की क्वालिटी को जानने के लिए ग्राहकों के कमैंट्स पढ़ते हैं. कमैंट्स में प्रोडक्टस के बारे में सही लिखा जाता है. पहले यह काम मीडिया करता था. अब कंटैंट राइटिंग में वही लिख दिया जाता है तो कंपनी अपने विज्ञापन में लिखती है.

यह बात केवल प्रोडक्ट तक सीमित नहीं है. फिल्म की समीक्षा करनी हो, किसी प्रोडक्ट के बारे में लिखना हो, किताब की समीक्षा हो या राजनीतिक लेखन, कंटैंट राइटर उपभोक्ता की जगह उत्पाद करने वाले की तरफ से लिखता है. इस वजह से सही जानकारी नहीं आती है. राजनीति और सरकार को ले कर भी लेखन इसी तरह का हो गया है. तर्क की लेखन में कमी होने लगी है. इस की वजह यह है कि कंटैंट राइटर यानी लेखक अपनी जिम्मेदारी सही से नहीं निभा पा रहा है.

कंटैंट में क्वालिटी का अभाव

कंटैंट में क्वालिटी का अभाव साफतौर पर दिखाई दे रहा है. यह व्यक्ति और समाज दोनों के लिए घातक है. मीडिया को चौथे स्तंभ का दर्जा दे कर उस को समाज को सही राह दिखाने की जिम्मेदारी दी गई थी. कंटैंट की क्वालिटी खराब होने से मीडिया अपनी सही भूमिका नहीं निभा पा रहा है.

इंग्लिश मीडिया में हिंदी के मुकाबले अच्छे कंटैंट मिल रहे हैं. उन की पाठक संख्या कम होने के चलते सही बात ज्यादा लोगों तक नहीं पहुंच पाती है. खबरिया चैनल जिस तरह का कंटैंट परोस रहे हैं उसे देखसुन कर लगता है कि वह किसी एक वर्ग को खुश रखने के लिए एकतरफा सोच वाले कंटैंट परोस रहे हैं.

हिंदी में कंटैंट लिखने वाले को न तो सही तरह ट्रेनिंग दी जाती है और न ही कंटैंट राइटिंग में इतना पैसा कि लिखने वाला खुद कहीं से ट्रेनिग ले सके. ज्यादातर कंटैंट राइटर अपनी बेरोजगारी दूर करने के लिए लेखन के क्षेत्र में आते हैं.

हिंदी मीडिया में कंटैंट राइटर को बेहद कम पैसा दिया जाता है. 80 फीसदी कंटैंट राइटर अपने मिलने वाले पारिश्रमिक से खुश नहीं रहते हैं. कंटैंट राइटर को पैसा इसलिए नहीं मिलता क्योंकि इन का प्रोडक्ट बेहद सस्ता होता है. एक समाचारपत्र 5 रुपए कीमत पर बिकता है. पत्रिकाएं 40 से 50 रुपए में बिक रही हैं. ग्राहक को यह कीमत भी देने में परेशानी हो रही है.

जब तक ग्राहक पत्रपत्रिकाओं को खरीदने के लिए पैसा नहीं खर्च करेंगे तब तक प्रकाशन करने वाले को लाभ नहीं होगा. जब तक लाभ नहीं होगा तब तक लेखक को अच्छा पैसा नहीं मिलेगा. जब लेखक को अच्छा पैसा नहीं मिलेगा तब तक वह अच्छा नहीं लिख पाएगा. यही वजह है कि मीडिया अपना वजूद खोती जा रही है. मीडिया के अभाव में जो सोशल मीडिया समाज के सामने है, वहां जो कटैंट परोसा जा रहा है वह समाज के हित में नहीं है.

अच्छी कीमत अच्छा कंटैंट

आज सोशल मीडिया लोगों को अच्छा इस कारण लग रहा है क्योंकि वह लगभग मुफ्त में देखने को मिल रहा है. केवल इंटरनैट और मोबाइल फोन की जरूरत होती है. यह करीबकरीब हर किसी के पास है. कितने गलत वीडियो और सामग्री सोशल मीडिया पर होती है, इस का अंदाजा देखने वाले को नहीं होता है. मुफ्त के चक्कर में लोगों तक सही जानकारी नहीं पहुंच रही है.

एक दौर ऐसे कंटैंट का था जिस के गलत होने पर माफी मांगी जाती थी. आज गलत कंटैंट वायरल हो जाता है. उस के सहीगलत का पता ही नहीं चलता है. कई बार भड़काऊ कंटैंट समाज के विघटन का कारण बनता है. कंटैंट राइटिंग का एकतरफा होना ही ‘गोदी मीडिया’ को जन्म देता है.

पहले के दौर में महंगाई और जरूरतें कम थीं. ऐसे में लेखक को लेखन से जो मिलता था उस से गुजारा कर लेता था. लेखन का पेशा कम पैशन अधिक होता था. जैसेजैसे लेखक का जीवन लेखन पर टिकने लगा और पाठक पढ़ना कम करने लगा, प्रकाशक को नुकसान होने लगा, वैसेवैसे उस का सीधा असर लेखक पर भी पड़ने लगा. अब लेखक जब खुद संतुष्ट न हो, वह बेहतर लेखन कैसे कर पाएगा?

पाठकों की जिम्मेदारी है कि वे पत्रपत्रिकाओं को पढ़ें. मुफ्त के चक्कर में सोशल मीडिया पर दिखाए जा रहे वीकली हाट बाजार के बोगस कंटैंट के चक्कर में न पड़ें. अच्छे कटैंट पढ़ें जिस से अच्छा कंटैंट लिखने और उसे समाज तक पहुंचाने वाले बेहतर तरह से अपने काम को कर सकें.

आधी तस्वीर- भाग 1: क्या मनशा भैया को माफ कर पाई?

वह दरवाजे के पास आ कर रुक गई थी. एक क्षण उन बंद दरवाजों को देखा. महसूस किया कि हृदय की धड़कन कुछ तेज हो गई है. चेहरे पर शायद कोई भाव हलकी छाया ले कर आया. एक विषाद की रेखा खिंची और आंखें कुछ नम हो गईं. साड़ी का पल्लू संभालते हुए हाथ घंटी के बटन पर गया तो उस में थोड़ा कंपन स्पष्ट झलक रहा था. जब तक रीता ने आ कर द्वार खोला, उसे कुछ क्षण मिल गए अपने को संभालने के लिए, ‘‘अरे, मनशा दीदी आप?’’ आश्चर्य से रीता की आंखें खुली रह गईं.

‘‘हां, मैं ही हूं. क्यों यकीन नहीं हो रहा?’’

‘‘यह बात नहीं, पर आप के इधर आने की आशा नहीं थी.’’

‘‘आशा…’’ मनशा आगे नहीं बोली. लगा जैसे शब्द अटक गए हैं.

दोनों चल कर ड्राइंगरूम में आ गईं. कालीन में उस का पांव उलझा, तो रीता ने उसे सहारा दे दिया. उस से लगे झटके से स्मृति की एक खिड़की सहसा खुल गई. उस दिन भी इसी तरह सूने घर में घंटी पर रवि ने दरवाजा खोला था और अपनी बांहों का सहारा दे कर वह जब उसे ड्राइंगरूम में लाया था तो मनशा का पांव कालीन में उलझ गया था. वह गिरने ही वाली थी कि रवि ने उसे संभाल लिया था. ‘बस, इसी तरह संभाले रहना,’ उस के यही शब्द थे जिस पर रवि ने गरदन हिलाहिला कर स्वीकृति दी थी और उसे आश्वस्त किया था. उसे सोफे पर बैठा कर रवि ने अपलक निशब्द उसे कितनी देर तक निहार कर कहा था, ‘तुम्हें चुपचाप देखने की इच्छा कई बार हुई है. इस में एक विचित्र से आनंद का अनुभव होता है, सच.’

मनशा को लगा 20-22 वर्ष बाद रीता उसी घटना को दोहरा रही है और वह उस की चुप्पी और सूनी खाली नजरों को सहन नहीं कर पा रही है. ‘‘क्या बात है, रीता? इतनी अजनबी तो मत बनो कि मुझे डर लगे.’’

‘‘नहीं दीदी, यह बात नहीं. बहुत दिनों से आप को देखा नहीं न, वही कसर पूरी कर रही थी.’’ फिर थोड़ा हंस कर बोली, ‘‘वैसे 20-22 वर्ष अजनबी बनने के लिए काफी होते हैं. लोग सबकुछ भूल जाते हैं और दुनिया भी बदल जाती है.’’

‘‘नहीं, रीता, कोई कुछ नहीं भूलता. सिर्फ याद का एहसास नहीं करा पाता और इस विवशता में सब जीते हैं. उस से कुछ लाभ नहीं मिलता सिवा मानसिक अशांति के,’’ मनशा बोली.

‘‘अच्छा, दीदी, घर पर सब कैसे हैं?’’

‘‘पहले चाय या कौफी तो पिलाओ, बातें फिर कर लेंगे,’’ वह हंसी.

‘‘ओह सौरी, यह तो मुझे ध्यान ही नहीं रहा,’’ और रीता हंसती हुई उठ कर चली गई.

मनशा थोड़ी राहत महसूस करने लगी. जाने क्यों वातावरण में उसे एक बोझिलपन महसूस होने लगा था. वह उठ कर सामने के कमरे की ओर बढ़ने लगी. विचारों की कडि़यां जुड़ती चली गईं. 20 वर्षों बाद वह इस घर में आई है. जीवन का सारा काम ही तब से जाने कैसा हो गया था. ऐसा लगता कि मन की भीतरी तहों में दबी सारी कोमल भावनाएं समाप्त सी हो गई हैं. वर्तमान की चढ़ती परत अतीत को धीरेधीरे दबा गई थी. रवि संसार से उठ गया था और भैया भी. केवल उन से छुई स्मृतियां ही शेष रह गई थीं.

रवि के साथ जीवन को जोड़ने का सपना सहसा टूट गया था. घटनाएं रहस्य के आवरण में धुंधलाती गई थीं. प्रभात के साथ जीवन चलने लगा-इच्छाअनिच्छा से अभी भी चल ही रहा है. उन एकदो वर्षों में जो जीवन उसे जीना था उस की मीठी महक को संजो कर रखने की कामना के बावजूद उस ने उसे भूलना चाहा था. वह अपनेआप से लड़ती भी रही कि बीते हुए उन क्षणों से अपना नाता तोड़ ले और नए तानेबाने में अपने को खपा कर सबकुछ भुला दे, पर वह ऊपरी तौर पर ही अपने को समर्थ बना सकी थी, भीतर की आग बुझी नहीं. 20 वर्षों के अंतराल के बाद भी नहीं.

आज ज्वालामुखी की तरह धधक उठने के एहसास से ही वह आश्चर्यचकित हो सिहर उठी थी. क्या 20 वर्षों बाद भी ऐसा लग सकता है कि घटनाएं अभीअभी बीती हैं, जैसे वह इस कमरे में कलपरसों ही आ कर गई है, जैसे अभी रवि कमरे का दरवाजा खोल कर प्रकट हो जाएगा. उस की आंखें भर आईं. वह भारी कदमों से कमरे की ओर बढ़ गई.

कोई खास परिवर्तन नहीं था. सामने छोटी मेज पर वह तसवीर उसी फ्रेम में वैसी ही थी. कागज पुराना हो गया था पर रवि का चेहरा उतनी ही ताजगी से पूर्ण था. जनता पार्क के फौआरे के सामने उस ने रवि के साथ यह फोटो खिंचवाई थी. रवि की बांह उस की बांह से आगे आ गई थी और मनशा की साड़ी का आंचल उस की पैंट पर गया था. ठीक बीच से जब रवि ने तसवीर को काटा था तो एक में उस की बांह का भाग रह गया और इस में उस की साड़ी का आंचल रह गया.

2-3 वाक्य कमरे में फिर प्रतिध्वनित हुए, ‘मैं ने तुम्हारा आंचल थामा है मनशा और तुम्हें बांहों का सहारा दिया है. अपनी शादी के दिन इसे फिर जोड़ कर एक कर देंगे.’ वह कितनी देर तक रवि के कंधे पर सिर टिका सपनों की दुनिया में खोई रही थी उस दिन.

उन्होंने एमए में साथसाथ प्रवेश किया था. भाषा विज्ञान के पीरियड में प्रोफैसर के कमरे में अकसर रवि और मनशा साथ बैठते. कभी उन की आपस में कुहनी छू जाती तो कभी बांह. सिहरन की प्रतिक्रिया दोनों ओर होती और फिर धीरेधीरे यह अच्छा लगने लगा. तभी रवि मनशा के बड़े भैया से मिला और फिर तो उस का मनशा के घर में बराबर आनाजाना होने लगा. तुषार से घनिष्ठता बढ़ने के साथसाथ मनशा से भी अलग से संबंध विकसित होते चले गए. वह पहले से अधिक भावुक और गंभीर रहने लगी, अधिक एकांतप्रिय और खोईखोई सी दिखाई देने लगी.

अपने में आए इस परिवर्तन से मनशा खुद भी असुविधा महसूस करने लगी क्योंकि उस का संपर्क का दायरा सिमट कर उस पर और रवि पर केंद्रित हो गया था. कानों में रवि के वाक्य ही प्रतिध्वनित होते रहते थे, जिन्होंने सपनों की एक दुनिया बसा दी थी. ‘वे कौन से संस्कार होते हैं जो दो प्राणियों को इस तरह जोड़ देते हैं कि दूसरे के बिना जीवन निरर्थक लगने लगता है. ‘तुम्हें मेरे साथ देख कर नियति की नीयत न खराब हो जाए. सच, इसीलिए मैं ने उस चित्र के 2 भाग कर दिए.’ रवि के कंधे पर सिर रखे वह घंटों उस के हृदय की धड़कन को महसूस करती रही. उस की धड़कन से सिर्फ एक ही आवाज निकलती रही, मनशा…मनशा…मनशा.

वे क्षण उसे आज भी याद हैं जैसे बीते थे. सामने बालसमंद झील का नीला जल बूढ़ी पहाडि़यों की युवा चट्टानों से अठखेलियां कर रहा था. रहरह कर मछलियां छपाक से छलांग लगातीं और पेट की रोशनी में चमक कर विलीन हो जातीं. झील की सारी सतह पर चलने वाला यह दृश्य किसी नववधू की चुनरी में चमकने वाले सितारों की झिलमिल सा लग रहा था. बांध पर बने महल के सामने बड़े प्लेटफौर्म पर बैंचें लगी हुई थीं. मनशा का हाथ रवि के हाथ में था. उसे सहलातेसहलाते ही उस ने कहा था, ‘मनशा, समय ठहर क्यों नहीं जाता है?’

मनशा ने एक बहुत ही मधुर दृष्टि से उसे देख कर दूसरे हाथ की उंगली उस के होंठों पर रख दी थी, ‘नहीं, रवि, समय के ठहरने की कामना मत करो. ठहराव में जीवन नहीं होता, शून्य होता है और शून्य-नहीं, वहां कुछ नहीं होता.’

रवि हंस पड़ा था, ‘साहित्य का अध्ययन करतेकरते तुम दार्शनिक भी हो गई हो.’

न जाने ऐसे कितने दृश्यखंड समय की भित्ती पर बनते गए और अपनी स्मृतियां मानसपटल पर छोड़ते गए. बीते हुए एकएक क्षण की स्मृति में जीने में इतना ही समय फिर बीत जाएगा और जब इन क्षणों का अंत आएगा तब? क्या फिर से उस अंत को झेला जा सकता है? क्या कभी कोई ऐसी सामर्थ्य जुटा पाएगा, जीवन के कटु और यथार्थ सत्य को फिर से जी सकने की, उस का सामना करने की? नहीं, ऐसा नहीं हो सकता, इसीलिए जीवन की नियति ऐसी नहीं हुई. चलतेचलते ही जीवन की दिशा और धारा मुड़ जाती हैं या अवरुद्ध हो जाती हैं. हम कल्पना भी नहीं कर पाते कि सत्य घटित होने लगता है.

भारत भूमि युगे युगे कर्मण्येवाधिकारस्ते मा…

आजकल के युवा बड़े निकम्मे हो चले हैं. इस की वजह उन में ज्ञान का अभाव है. धार्मिक किताबें लबालब भरी पड़ी हैं. युवाओं के रोजगार और नौकरी की चिंता में दुबलाए जा रहे मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने हाहाकारी फैसला यह लिया है कि अब सरकारी कालेजों में श्रीमदभगवद्गीता पढ़ाई जाएगी. इस से

2 फायदे होंगे, पहला तो यह कि युवा डिग्री लेने का कर्म यानी मेहनत तो करेंगे लेकिन उस का फल यानी नौकरी नहीं मांगेंगे जो कर्ज में डूबी सरकार के पास है ही नहीं.

दूसरा फायदा यह होगा कि पंडेपुरोहितों, जो कालेजों में जा कर गीता का ज्ञान बांटेंगे, को मुफ्त सरकारी दक्षिणा मिल जाएगी और वे सरकार को न केवल आशीर्वाद देंगे बल्कि मठमंदिरों से प्रचार भी करेंगे. अब तय युवाओं को करना है कि वे क्या चाहते हैं- नौकरीरोजगार या धार्मिक ज्ञान जो पलायनवादी बनाता है.

बिहारी गुरु

गुरु बनाना बुरी बात नहीं क्योंकि उस से कुछ न कुछ सीखने को ही मिलता है. एक पौराणिक पात्र दत्तात्रेय तो बातबात में गुरु बना लेता था. ऐसे ही एक गुरु शरद यादव हैं जो सूखे बूढ़े पेड़ की तरह हैं जो किसी को छांव या फल नहीं दे सकता. शरद यादव इसलिए महत्त्वपूर्ण हो गए कि बीते दिनों खुद राहुल गांधी दिल्ली स्थित उन के घर जा पहुंचे और उन्हें अपना गुरु बताया.

शरद यादव राहुल गांधी को अपने घर आया देख सुदामा की तरह गद्गद हो उठे और उन्हें कांग्रेस अध्यक्ष बनाने की बात कह डाली. राजनीति में कोई भी मुलाकात बेमकसद नहीं होती. इन दिनों शरद यादव लालू यादव और उन के बेटे तेजस्वी से भी नजदीकियां बढ़ा रहे हैं यानी आज नहीं कल, नया कोई गुल तो खिलेगा.

केजरीवाल पौलिटिक्स

इन दिनों खासतौर से चुनाव वाले राज्यों गुजरात, राजस्थान, हिमाचल, छत्तीसगढ़ सहित मध्य प्रदेश में अरविंद केजरीवाल की बड़ी डिमांड है. राजनीति के जरिए कुछ कर गुजरने वाले या कुछ हासिल कर लेने की हसरत रखने वाले यह पूछते नजर आते हैं कि यार, अरविंद केजरीवाल तक पहुंचने का कोई जुगाड़ हो तो बताओ. 15-20 लाख रुपए आम आदमी पार्टी को दे देंगे.

बिलाशक अरविंद ने इतिहास रच दिया है, जो लोग भ्रष्ट और धार्मिक राजनीति से निराश हो चले थे उन के लिए वे आशा की किरण बन कर उभरे हैं, लेकिन अधिकतर की मंशा पैसा बनाने और रुतबा हासिल करने की ज्यादा है.

ऐसे में ‘आप’ को चाहिए कि वह दाखिले के लिए इश्तिहार जारी करना शुरू कर दे. हाल ही में राज्यसभा के लिए निर्वाचित हुए युवा और खुबसूरत सांसद राघव चड्ढा तो खुद को केजरीवाल स्कूल औफ पौलिटिक्स का स्टूडैंट बता भी चुके हैं. अगर हाल यही रहे तो जल्द ही यह स्कूल पहले कालेज और फिर यूनिवर्सिटी में तबदील हो जाना तय है.

अगले जन्म मोहे गुल्लू…

गुल्लू जैसा कि अब बहुतेरे लोग जानने लगे हैं कि योगी आदित्यनाथ के पालतू कुत्ते का नाम है जो गोरखपुर के मठ में रहता है. इस कुत्ते का अपना अलग रुतबा है. पिछले दिनों जब योगी मठ गए तो उन की गुल्लू के साथ खेलते हुए कुछ तसवीरें वायरल हुईं, लेकिन इस बार सोशल मीडिया पर उन की खूब खिल्ली उड़ी.

इस गुल्लू की चर्चा चुनाव के वक्त भी अखिलेश यादव ने की थी कि बाबा अब गुल्लू को बिस्कुट खिलाएंगे. वे भूल गए थे कि गुल्लू कोई मामूली कुत्ता नहीं है, वह पनीर खाता है और एसी में सोता है.

सोशल मीडिया पर सूरज सिंह नाम के यूजर ने कमैंट किया, ‘‘योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के युवाओं के भविष्य के साथ भी खेल रहे हैं, केवल गुल्लू के साथ नहीं.’’ पुष्पेंद्र सिंह ने आगे लिखा, ‘‘योगीजी ने गुल्लू का खेल दिखा कर यूपी वालों को उल्लू बना रखा है.’’

उत्तम यादव का कमैंट था, ‘‘अगर पालतू कुत्ता है तो उसे सिक्योरिटी वालों ने क्यों पकड़ रखा है.’’ अब इन जैसे सैकड़ों यूजर्स को देख लेना चाहिए कि कहीं गुल्लू पर कटाक्ष राजद्रोह की श्रेणी में तो नहीं आता.

Summer Special: पल्स ऑक्सीमीटर खरीदते समय रखें इन बातों का ध्यान

खून में ऑक्सीजन लेवल को मापने वाले मॉनिटर को पल्स ऑक्सीमीटर के नाम से जाना जाता है. कोरोना काल में ऑक्सीमीटर आज हर घर की जरूरत बन चुका है. कोरोना से जूझ रहे वे मरीज जो होम आइसोलेशन में रहकर अपना इलाज करा रहे हैं उनके लिए पल्स ऑक्सीमीटर बहुत मददगार साबित हुआ है. फिजिशियन डॉक्टर  एम पी चतुर्वेदी कहते हैं, “कोरोना  के कारण फेफड़ों में संक्रमण हो जाने से ऑक्सीजन लेवल यदि 90 से कम होने लगे तो चिकित्सक की सलाह जरूरी होती है.” ऑक्सीमीटर से ऑक्सीजन के लेवल पर निगाह रखी जाती है और रीडिंग कम होने पर डॉक्टर से तुरन्त सलाह ली जा सकती है. आकार में बहुत छोटा सा दिखने वाले यह यंत्र तीन प्रकार के होते हैं,
1-फिंगर टिप पल्स ऑक्सीमीटर,
2- हैंडहेल्ड और फेटल पल्स ऑक्सीमीटर. 3-फिंगर टिप पल्स ऑक्सीमीटर  घरों  में फ़िंगर टिप ऑक्सीमीटर का प्रयोग किया जाता है. अन्य दो का उपयोग हॉस्पिटल और क्लिनिक्स में किया जाता है जब भी आप इसे खरीदें तो निम्न बातों का ध्यान अवश्य रखे.
-इसे खरीदते वक्त तीन चार मशीन में उंगली डालकर एक्यूरेसी चेक करें. जिसमें आपको रीडिंग सटीक
लगे वही खरीदें.
-यदि आप ऑनलाइन खरीद रहे हैं तो सम्बंधित मशीन के रिव्यूज पढ़ें फिर आर्डर करें, परन्तु जहां तक सम्भव हो ऐसी इलेक्ट्रॉनिक चीजें ऑनलाइन खरीदने से बचें.
-एफडीए, आरओ एच एस और सी ई जैसे सर्टिफाइड डिवाइस खरीदना सही रहता है क्योंकि इनकी सटीकता, क्वालिटी और स्तर पर भरोसा कियाजा सकता है .
-डिस्प्ले चमकदार और क्लियर होना चाहिए.  कुछ का डिस्प्ले चारों दिशाओं में घुमाया जा सकता है. कुछ कम्पनियां वाटर रेजिस्टेंट मशीन्स भी उपलब्ध करा रहीं हैं. ब्लू टूथ फीचर्स भी उपलब्ध हैं. आप अपनी आवश्यकतानुसार खरीद सकते हैं.
-मशीन के साथ आयी डोरी को उसमें डाल कर प्रयोग करें, साथ ही प्रयोग करने के बाद तुरन्त उसके बॉक्स में रखें ताकि मशीन सुरक्षित रहे.
-यदि मशीन अधिक उपयोग में आ रही है तो 6 माह में बैटरी बदल दें ताकि रीडिंग सही आये.
क्या है कीमत
फ़िंगर टिप ऑक्सीमीटर की रेंज 700 रुपये से लेकर 5000 रुपये तक है. चूंकि इसका काम केवल खून में ऑक्सीजन के स्तर को मापना है इसलिए बहुत अधिक मंहगा लेने का कोई औचित्य नहीं है. 1500 से 2000 तक की रेंज में यह बढ़िया मिल जाता है.
कैसे करें उपयोग
कम से कम 10 मिनट के आराम के बाद ही ऑक्सीजन का लेवल मापें. सीधा बैठकर हथेली को दिल की ऊंचाई पर रखकर इंडेक्स फ़िंगर के अगले हिस्से पर ऑक्सीमीटर लगाएं. रीडिंग सेंसर आपके नाखून पर न होकर त्वचा पर होना चाहिए.
रीडिंग आने तक शांत रहें और ज्यादा हिलें दुलें नहीं. शुरुआती रीडिंग के बाद जो रीडिंग आये उसे ही फाइनल समझें.

YRKKH: अक्षरा की हल्दी सेरेमनी की फोटो आई सामने, फैंस हुए दीवाने

टीवी सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ में अभिमन्यु और अक्षरा की धूमधाम से शादी की तैयारी हो रही है. शो की टीम जयपुर पहुंच गई है. अभिमन्यु और अक्षरा की शादी की शूटिंग भी शुरू हो चुकी है. शो में जल्द ही अभिमन्यु और अक्षरा की हल्दी की रस्म दिखाई जाएगी. हल्दी सेरेमनी की फोटो सोशल मीडिया पर वायरल रहो रही है. आइए एक नजर डालते हैं इन फोटोज पर…

हल्दी के लिए सजी अक्षरा

 

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अक्षरा अपनी हल्दी के लिए बहुत ही खूबसूरत अंदाज में नजर आई. इस तस्वीर में आप देख सकते हैं कि वह ऑरेंज लहंगा और फूलों से बना जेवर पहनी हुई है. इस गेटअप में वह बेहद खूबसूरत नजर आ रही है. यह फोटो देख फैंस भी अक्षू की जमकर तारीफ कर रहे हैं.

 

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शादी के लिए सजाया गया रिजॉर्ट

 

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अक्षरा और अभिमन्यु की हल्दी सेरेमनी के लिए रिजॉर्ट को बड़े ही शानदार अंदाज में सजाया गया है. इन फोटोज को देखकर पता चलता है कि शो में पूल के किनारे अभिमन्यु और अक्षरा की हल्दी की रस्म की जाएगी.

अभिमन्यु और अक्षू की शादी के जश्न में रिजॉर्ट में चार चांद लग गया है. अक्षरा और अभिमन्यु की शादी बड़े ही धूमधाम से होने वाली है. इससे जुड़ी फोटोज ने फैंस का ध्यान अपनी औऱ खींचने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है.

 

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शो में दिखाया जाएगा कि अक्षरा और अभिमन्यु अपनी हल्दी की रस्म से पहले साथ में वक्त बिताएंगे. जयपुर की सैर पर निकल जाएंगे. वे साथ में क्वालिटी टाइम स्पेंड करेंगे. दोनों साथ में ढेर सारी मस्ती करेंगे. इतना ही नहीं, अभिमन्यु और अक्षरा अपनी शादी की एक्साइटमेंट में सड़कों पर जमकर डांस करेंगे.

अनुज-अनुपमा की सगाई में बापूजी होंगे बीमार, क्या शादी होगी कैंसिल?

टीवी सीरियल ‘अनुपमा’ (Anupama) की कहानी में बड़ा ट्विस्ट देखने को मिल रहा है. शो में  अनुज-अनुपमा की शादी जल्द ही देखने को मिलेगा. शो के बिते एपिसोड में आपने देखा कि वनराज अनुपमा से बाहर मिलता है और पुरानी बातों को याद करता है. अनुपमा उसे बीच में ही टोक देती है, अब उन बातों का कोई मतलब नहीं है. वनराज ये भी कहता है कि जब अनुज और अनुपमा शादी करने जा रहे हैं तो उसे जलन हो रही है. शो के अपकमिंग एपिसोड में बड़ा ट्विस्ट आने वाला है. आइए बताते हैं, शो के अपकमिंग एपिसोड के बारे में.

शो के आने वाले एपिसोड में आप देखेंगे कि अनु अनुज को बताती है कि वनराज और उसके बीच क्या बात हुई.  शो में ये भी दिखाया जाएगा कि अनुपमा की शादी से पहले बापूजी की तबीयत खराब हो जाएगी. और वह अनुपमा के सगाई के दिन बेहोश हो जाएंगे.

 

बापूजी की हालत देखकर वनराज अपना आपा खो देगा. तो वहीं अनुपमा सगाई टालने की बात कहेगी. लेकिन बापूजी चाहते हैं कि अनुपमा और अनुज की जल्द ही शादी हो जाए. अनुज जल्द ही कहेगा कि उनकी शादी कपाड़िया मेंशन में होगी.

 

शो के बिते एपिसोड में ये भी दिखाया गया कि अनुज अनुपमा से वादा करता है कि वे कभी भी अलग नहीं होंगे. वह अनु के हाथों पर किस करता है और सगाई से पहले दोनों एक-दूसरे के साथ क्वालिटी टाइम बिताते हैं.

 

‘अनुपमा’ में ये भी दिखाया गया कि वनराज अनुपमा से कहता है कि उसकी शादी उसकी ही तरह नहीं चलेगी. वह शाह परिवार की जिम्मेदारी से बच नहीं पाएगी. वो कहता है कि शादी के बाद अनुज एक और वनराज बन जाएगा.

मैं अपने बॉयफ्रेंड को कैसे इंप्रेस करूं?

सवाल

मैं 23 साल की हो गई हूं. मुझे बौयफ्रैंड बनाए हुए 3 महीने हुए हैं. वैसे तो हम दोनों ही एकदूसरे को बहुत चाहने लगे हैं लेकिन फिर भी मुझे लगता है कि इस रिश्ते में मेरा एफर्ट 100 फीसदी है जबकि उस का 80 फीसदी. मैं चाहती हूं कि वह भी मुझे उतना ही चाहे जितना मैं उसे चाहती हूं. मैं चाहती हूं कि वह हमेशा मुझसे खुश रहे. उस के दिमाग में मेरा खयाल रहे. इस के लिए मुझे क्या करना होगा?

जवाब

देखिए, जैसे कि आप कह रही हैं कि इस रिश्ते में आप का प्रयास 100 फीसदी है और उस का 80 फीसदी तो सब से पहले किसी भी तरह से यह जरूर जान लें कि वह आप को ले कर सीरियस है भी या नहीं. उस को खुश रखने की कोशिश भी तभी कारगर होगी जब वह भी आप से उतना ही प्यार करता हो जितना कि आप. जबरदस्ती से कुछ नहीं होगा.

चलिए मान लेते हैं कि वह आप से प्यार करता है और आप उसे हर तरह से खुश रखना चाहती हैं ताकि वह सिर्फ और सिर्फ आप का ही हो कर रहे तो कुछ बातों को ध्यान में रखें. सब से पहले तो उसे इस बात का एहसास कराने के लिए उस के काम, पढ़ाई, गुण की तारीफ करें. वह आप के लिए जो काम करता है उस की सराहना करें. दूसरी बात यह कि उसे बांधने की कोशिश बिलकुल मत कीजिए. यदि आप को उस की कोई बात पसंद नहीं आ रही तो बेशक उस से कहो, सम?ाओ, बाकी उस के ऊपर छोड़ दो कि वह क्या करता है.

तीसरी बात, आप जब भी उस से मिलें, फोन पर कम उस पर ध्यान ज्यादा रखें. उस से आंखों में आंखें डाल कर बात करें और हमेशा नहीं लेकिन कभीकभी बौयफ्रैंड से प्यारभरी बातें करें. इस से आप का प्यार बौयफ्रैंड को दिखता रहेगा.

आप उस के लिए कुछ स्पैशल कीजिए कभीकभी, जैसे कि आप उस के लिए उस की मनपसंद डिश बना सकती हैं, कोई गिफ्ट दे सकती हैं आदि.

कभीकभी आप को अपने बौयफ्रैंड के साथ रोमांटिक पल भी बिताने चाहिए. इस तरीके को अच्छे से करने पर लड़का आप से हमेशा खुश रहेगा, पर इस तरीके को कभीकभी करने की ही सोचना ताकि लड़के को आप के प्यार का एहसास होता रहे.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

खारे पानी में झींगा पालन: समस्याएं और उन का निराकरण

रवि कुमार पटेल, डा. अजित कुमार वर्मा, डा. सुबोध कुमार शर्मा, डा. बीके शर्मा और चेतन कुमार गर्ग

भारत के उत्तरपश्चिमी राज्यों मे झींगापालन से होने वाले मुनाफे को देखते हुए यहां के मत्स्य किसान बहुत हतोत्साहित हैं, इसीलिए वर्तमान में भारत के उत्तरपश्चिमी राज्यों में भूलवणीय खारे पानी में झींगापालन करने वाले और भविष्य में इस को करने के इच्छुक मत्स्य किसानों को झींगापालन की विधि और उत्पादन करने की अवधि के बीच होने वाली समस्याओं से अवगत कराना जरूरी है. साथ ही, उन समस्याओं के समाधान के लिए उपयुक्त सुझाव देना बहुत ही आवश्यक है.

यहां झींगा पालने के लिए मत्स्य किसानों को उचित वैज्ञानिक जानकारी दी जा रही है, ताकि किसान अपनी आय में आशातीत बढ़ोतरी के साथसाथ पर्यावरण का संतुलन भी बनाए रख सकते हैं.

झींगा उत्पादन कैसे करें?

तालाब की तैयारी : झींगापालन के दौरान तालाबों के तलहटी की मिट्टी उत्पादन में अहम भूमिका निभाती है. सब से पहले अवांछनीय प्रजातियों के निराकरण के लिए प्रत्येक फसल के बाद तालाब को सुखा दें. तालाब सूखने के बाद इस की जुताई हल चलवा कर करें, जिस से मिट्टी की गुणवत्ता बढ़ती है और हानिकारक पदार्थों का औक्सीकरण हो जाता है. इस के बाद तालाब में चूने का प्रयोग करें, जो तालाब मे कई तरह से लाभकारी होता है.

यह अम्लीय मिट्टी व पानी के पीएच मान को बढ़ाता है और परजीवियों को नियंत्रित करता है. चूने के प्रयोग से तालाब में प्रयुक्त गोबर व खाद में उपस्थित पोषक तत्त्व समायोजित रहते हैं और यह घुलनशील कार्बनिक पदार्थों को कम करता है.

जलकृषि के लिए 3 प्रकार के चूने का उपयोग होता है-

  1. कैल्शियम औक्साइड
  2. कैल्शियम हाइड्रोक्साइड
  3. कैल्शियम कार्बोनेट

चूने का प्रयोग होने के बाद मिट्टी का पीएच मान देखें. झींगापालन के लिए 7.5-8.5 के बीच में होने पर उपयुक्त माना जाता है. साथ ही, तालाब की निचली सतह पर उपलब्ध कार्बनिक कार्बन को देखें, जिस की मात्रा >1.0 फीसदी होने पर सही मानी जाती है और

यह प्राथमिक उत्पादकता को बढ़ाने का काम करती है.

इस के पश्चात तालाब के ऊपर 9-12 सैंटीमीटर की ऊंचाई पर समानांतर पंक्तियों में एक जाल लगा कर तालाब में पाले गए झींगों को परभक्षी पक्षियों से सुरक्षा की जा सकती है.

उर्वरकता : प्राथमिक पादपप्लवक के उत्पादन के लिए कार्बनिक व अकार्बनिक उर्वरक का प्रयोग किया जाता है, जिस में पशु खाद 1,000 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर अथवा मुरगी की खाद 200-300 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर उपयोग करें. तालाब की तैयारी और उर्वरक का प्रयोग कच्चे तालाब में ही करने की आवश्यकता है. पौलीथिन शीट वाले तालाब में इस का प्रयोग न करें.

झींगापालन के लिए जल की गुणवत्ता : झींगापालन के लिए उपयोग में होने वाला पानी उपयुक्त गुणवत्ता का होना बहुत जरूरी है. पानी सामान्य रूप से 1.2-1.5 मीटर गहराई तक भरा जाता है. जल स्रोत के लिए मुख्यत: बोरवैल के पानी का प्रयोग करें. इस  पानी को विभिन्न स्क्रीन द्वारा शुद्ध करें, तत्पश्चात 10 पीपीएम क्लोरीन से उपचारित करें और इसे 4-5 दिनों के लिए छोड़ दें.

झींगापालन के लिए पानी स्वीकार्य सीमा तक अंतर्स्थलीय खारे पानी की गुणवत्ता बहुत ही अलग प्रकार की होती है, इसीलिए तालिका के अनुरूप पानी की गुणवत्ता होने पर ही पालन करें.

पैरामीटर स्वीकार्य सीमा

लवणता : 2-25 पीपीटी

औक्सीजन : 5.4-8.2 पीपीएम

पीएच : 7.5-8.5

क्षारीयता : 200-400 पीपीएम

कठोरता : 1,000-4,000 पीपीएम

मैग्नीशियम : 200-600 पीपीएम

पोटैशियम : 50-100 पीपीएम

पानी की गुणवत्ता जांच करने का यंत्र

बीज की गुणवत्ता और तालाब में भंडारण : झींगे का बीज विशिष्ट रोगजनकमुक्त (एसपीएफ) और विशिष्ट रोगजनक से प्रतिरोधी (एसपीआर) होना चाहिए. यह बीज तटीय जलकृषि प्राधिकरण द्वारा अनुमोदित हैचरी (सीएए) और सर्वोत्तम प्रबंधन (बीएमपी) का पालन करने वाले संस्थान से ही लाएं.

झींगे का स्वभाव अपने ही साथी का भक्षण करने का होता है, अत: परभक्षण से बचने के लिए भोजन के रूप में आर्टेमिया नौप्ली को बीज के साथ प्लास्टिक के थैले में डाला जाता है. बीज के तालाब में भंडारण से पहले, बीज को तालाब के पानी के तापमान के साथ अनुकूलित करें. अनुकूलन के पश्चात बीजों को तालाब में 60 झींगा बीज/मी2 की दर से भंडारित करें.

आहार प्रबंधन : झींगा उत्पादन के लिए आहार बहुत ही महत्त्वपूर्ण कारक होता है. झींगा के मुंह के आकार के अनुसार फीड का आकार का होना बहुत आवश्यक है, जैसे स्टार्टर (प्रारंभिक) के लिए 1 मिलीलिटर, ग्रोअर के लिए 2 मिलीलिटर और फिनिशर के लिए

2.5 मिलीलिटर होता है. भोजन पूरे तालाब में समान रूप से प्रसारित करें और यह मात्रा जैवभार के अनुरूप दें.

फीड की उचित निगरानी के लिए चेक ट्रे

झींगा जैवभार : उपभोग किए गए फीड की उचित निगरानी के लिए चेक ट्रे का उपयोग करें, जो आहार प्रबंधन के लिए बहुत उपयोगी होता है. इष्टतम विकास दर के लिए 30-35 फीसदी प्रोटीन झींगा आहार में होना आदर्श माना जाता है, इसलिए आहार में प्रोटीन इस मात्रा में हो, इस का ध्यान रखें.

झींगा एकत्रीकरण : सर्वोत्तम पालन की विधि अपना कर झींगा 100-120 दिन की कल्चर अवधि में औसतन 22.8-28 ग्राम वजन प्राप्त कर सकता है.

झींगा उपज को 2 तरीके से एकत्रित किया जाता है. सब से पहले तालाब की पूरी जल निकासी द्वारा और दूसरा बैग नेट का उपयोग कर के. नुकसान से बचने के लिए पकड़े हुए झींगे को साफ किया जाता है और बर्फ वाले प्लास्टिक के कंटेनरों में संग्रहित किया जाता है. फिर वैकल्पिक परतों के साथ स्टायरोफोम बक्से में पैक किया जाता है और सुरक्षित ढंग से वाहनों द्वारा बाजार तक पहुंचाया जाता है.

झींगा एकत्रीकरण

भारत के उत्तरपश्चिमी राज्यों में झींगापालन में किसान को होने वाली समस्या और उस का निराकरण :

* भारत के उत्तरपश्चिमी राज्यों में झींगापालन वर्तमान में शुरुआती अवस्था में ही है, जिस से किसानों को इस की ज्यादा जानकारी नहीं है. इस के अभाव में वे सरकार द्वारा प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना या किसी अन्य योजना द्वारा दी जा रही सब्सिडी से वंचित रह जाते हैं. जिले के मत्स्य विकास अधिकारी से संपर्क कर के लाभकारी योजनाओं से संबधित जानकारी प्राप्त करें.

* मत्स्य किसान झींगापालन से पहले और कल्चर अवधि के दौरान पानी की क्वालिटी की जांच अवश्य कराएं. यह जांच केंद्रीय मत्स्य शिक्षा संस्थान, लाहली (रोहतक) केंद्र पर की जाती है. इस जांच के लिए पीएच, क्षारीयता, कठोरता, पोटैशियम, कैल्शियम, सोडियम, खारापन, अमोनिया,  नाइट्रेट इत्यादि की जांच 50-100 रुपए प्रति नमूना और सूक्ष्म जीवाणु विब्रिओ भार की  गणना 200 रुपए प्रति नमूना की मामूली दरों पर करवाई जा सकती है.

* उचित जानकारी के अभाव में किसान घटिया स्तर का आहार और झींगा बीज दोनों एजेंट के विश्वास पर मंगा लेता है. इस समस्या से बचने के लिए किसी एजेंट पर भरोसा न कर प्रत्यक्ष रूप से कंपनी अथवा 4-5 अन्य फार्मर से संपर्क कर के ही अपना उचित फैसला लें. साथ ही, आहार के संयोजन को भी देख लें कि उस में सभी पोषक तत्त्व हैं अथवा नहीं.

* कल्चर अवधि के बीच में कभीकभी झींगा अचानक जल सतह पर आ जाता है. किसान इस समस्या को जल्दी से समझ नहीं पाता है और अंत में पूरा झींगा मर जाता है. इस समस्या के 3 प्रमुख कारण हो सकते हैं :

  1. पानी में अमोनिया का बढ़ना.
  2. घुलित औक्सीजन की कमी का होना.
  3. तालाब की तली में अपशिष्ट प्रदार्थ का अधिक मात्रा में जमा होना.

पहली 2 समस्याओं को कृत्रिम रूप से पानी में औक्सीजन मिला कर सुलझाया जा सकता है, तीसरी समस्या के समाधान के लिए तालाब की तली में एकत्रित अपशिष्ट प्रदार्थ को बाहर निकाल कर और उचित प्रोबायोटिक का उपयोग कर कम किया जा सकता है.

* अंतर्देशीय खारे पानी के मामले में पोटैशियम महत्त्वपूर्ण सीमित कारक है. समुद्री जल की तुलना में अंतर्देशीय खारे पानी में पोटैशियम कम पाया जाता है और कैल्शियम व मैग्नीशियम काफी अधिक मात्रा में पाए जाते हैं.

अत: जब मत्स्य किसान नए सिरे से कल्चर करता है, तो उस के लिए तालाब में पोटैशियम की मात्रा को आवश्यक स्तर पर बनाए रखना बहुत ही महत्त्वपूर्ण है. अंतर्देशीय खारे पानी में झींगापालन के लिए पोटैशियम की उपलब्धता न्यूनतम 50-100 फीसदी के बीच होनी चाहिए.

आम आदमी पार्टी: विचारधारा के बिना कैसे आगे बढ़ेगी राजनीति

आम आदमी पार्टी विकल्प के रूप में भले ही कुछ चुनाव जीत ले लेकिन राजनीतिक विचारधारा के अभाव में उस का लंबे समय तक राजनीति करना आसान नहीं होगा. सामाजिक, आर्थिक व विश्व विचारधारा के अभाव में कोई भी दल न केवल अपने देश बल्कि विदेशों में भी अपनी छाप नहीं छोड़ पाता है.

आम आदमी पार्टी यानी आप कहती है कि उस की कोई विशेष विचारधारा नहीं है. आम आदमी पार्टी ने व्यवस्था को बदलने के लिए राजनीति में प्रवेश किया. अरविंद केजरीवाल कहते हैं, ‘‘हम आम आदमी हैं. अगर वामपंथी विचारधारा में हमारे समाधान मिल जाएं तो हम वहां से विचार उधार ले लेंगे और अगर दक्षिणपंथी विचारधारा में हमारे समाधान मिल जाएं तो हम वहां से भी विचार उधार लेने में खुश हैं.’’

आम आदमी पार्टी के संस्थापक अरविंद केजरीवाल ने सरकारी नौकरी को छोड़ कर सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में अपनी संस्था ‘इंडिया अगेंस्ट करप्शन’ से समाजसेवा करने की शुरुआत की. जनसूचना अधिकार कानून, जन लोकपाल कानून और अन्ना आंदोलन में उन का नाम चर्चा में आया.

सूचना का अधिकार कानून (आरटीआई) को जमीनी स्तर पर सक्रिय बनाने, सरकार को जनता के प्रति जवाबदेह बनाने और सब से गरीब नागरिकों को भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए सशक्त बनाने के लिए किए गए काम को देखते हुए अरविंद केजरीवाल को 2006 में रमन मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया.

हरियाणा के हिसार शहर में जन्मे अरविंद केजरीवाल आईआईटी खड़गपुर से ग्रेजुएट हैं. इस के बाद वे भारतीय राजस्व सेवा (आईआरएस) में आ गए और उन्हें दिल्ली में आयकर आयुक्त कार्यालय में नियुक्त किया गया. यहां से ही उन को लगा कि सरकार में व्याप्त भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ना पड़ेगा. साल 2006 में उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी.

दिल्ली जीत से बदला माहौल

इस के बाद अरविंद केजरीवाल ने अरुणा राय, गोरे लाल मनीषी जैसे प्रमुख सामाजिक कार्यकताओं के साथ मिल कर सूचना अधिकार के कानून के लिए अभियान शुरू किया. 2005 में केंद्र की कांग्रेस की अगुआई वाली सरकार ने सूचना अधिकार अधिनियम (आरटीआई) को पारित कर दिया. अरविंद केजरीवाल का लक्ष्य अलग था. वे राजनीतिक विकल्प बनना चाहते थे. इस के लिए

2 अक्तूबर, 2012 को उन्होंने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत कर दी. इस के लिए केजरीवाल ने गांधी टोपी पर ‘मैं आम आदमी हूं’ लिखवाया.

अब अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली विधानसभा चुनावों को अपना पहला लक्ष्य बनाया. 2013 के दिल्ली विधानसभा चुनावों में उन्होंने नई दिल्ली सीट से चुनाव लड़ा, जहां उन की सीधी टक्कर लगातार 15 साल से दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं श्रीमती शीला दीक्षित से थी. अरविंद केजरीवाल ने नई दिल्ली विधानसभा सीट से 3 बार की विजेता शीला दीक्षित को 25,864 मतों से हरा दिया. नौकरशाह से सामाजिक कार्यकर्ता और सामाजिक कार्यकर्ता से राजनीतिज्ञ बने अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने दिल्ली की राजनीति में धमाकेदार प्रवेश किया.

आम आदमी पार्टी ने 70 सदस्यीय दिल्ली विधानसभा चुनाव में 28 सीटें जीत कर प्रदेश की राजनीति में खलबली मचा दी. इस चुनाव में आम आदमी पार्टी, भारतीय जनता पार्टी के बाद दूसरी सब से बड़ी पार्टी बन कर उभरी. सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी तीसरे स्थान पर खिसक गई. ‘आप’ ने सरकार बनाई पर वह अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाई. अरविंद केजरीवाल ने 28 दिसंबर, 2013 को दिल्ली के 7वें मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. 49 दिनों के बाद 14 फरवरी, 2014 को विधानसभा द्वारा जन लोकपाल विधेयक प्रस्तुत करने के प्रस्ताव को समर्थन न मिल पाने के कारण अरविंद केजरीवाल की सरकार ने त्यागपत्र दे दिया.

2015 में दिल्ली विधानसभा के दोबारा चुनाव हुए. अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में ‘आप’ ने 70 सीटों में 67 सीटें जीत कर भारी बहुमत हासिल किया.

14 फरवरी, 2015 को वे दोबारा दिल्ली के मुख्यमंत्री बने. 2020 के विधानसभा चुनाव में भी ‘आप’ पार्टी को जीत हासिल हुई और अरविंद केजरीवाल तीसरी बार दिल्ली के मुख्यमंत्री बने. दिल्ली में 3 बार सरकार बनाने के साथ ही ‘आप’ ने लोकसभा चुनाव में पंजाब में अच्छा प्रदर्शन किया. लोकसभा का चुनाव जीता. दिल्ली के बाहर आम आदमी पार्टी को सब से बड़ी सफलता 2022 के विधानसभा चुनाव में दिखी, जहां आप ने बहुमत ला कर अपनी सरकार बनाई. भगवंत मान को पंजाब का मुख्यमंत्री बनाया गया.

पंजाब के विधानसभा चुनाव जीतने के बाद देश की राजनीति में ‘आप’ को विकल्प के रूप में देखा जाने लगा है. आने वाले समय में ‘आप’ का लक्ष्य गुजरात के विधानसभा चुनाव हैं.

वहां अगर वह सफल होती है तो

2024 के लोकसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल भाजपा और नरेंद्र मोदी के खिलाफ चेहरा बन सकते हैं.

क्षेत्रीय दलों में आम आदमी पार्टी पहली ऐसी पार्टी है जिस ने एक प्रदेश से बाहर निकल कर राजनीतिक प्रभाव बढ़ा लिया है. आम आदमी पार्टी को अपनी राजनीतिक जमीन तैयार करनी है. किसी भी दल की राजनीतिक जमीन के लिए जरूरी होता है कि उस की अपनी राजनीतिक विचारधारा हो. क्योंकि राजनीतिक विचारधारा से ही समाज के काम होते हैं.

विचारधारा जरूरी क्यों

राजनीतिक दल जिस रूप में आज समाज के सामने हैं, उस का इतिहास बहुत पुराना नहीं है. इन की उत्पत्ति 19वीं शताब्दी में हुई है. राजनीतिक दल लोगों का एक ऐसा संगठित गुट होता है जिस के सदस्य किसी सां?ा विचारधारा में विश्वास रखते हैं या समान राजनीतिक दृष्टिकोण रखते हैं. ये दल चुनावों में उम्मीदवार उतारते हैं और उन्हें निर्वाचित करवा कर दल के कार्यक्रम लागू करवाने का प्रयास करते हैं. राजनीतिक दलों के सिद्धांत या लक्ष्य लिखित दस्तावेज के रूप में होते हैं. विभिन्न देशों में राजनीतिक दलों की अलगअलग स्थिति व व्यवस्था है.

कुछ देशों में मुख्यतया 2 दल होते हैं. बहुत से देशों में 2 से अधिक दल हैं. लोकतांत्रिक राजनीतिक व्यवस्था में राजनीतिक दलों का स्थान अत्यंत महत्त्वपूर्ण है. राजनीतिक दल किसी सामाजिक व्यवस्था में शक्ति के वितरण और सत्ता के आकांक्षी व्यक्तियों एवं समूहों का प्रतिनिधित्व करते हैं.

समाजशास्त्री राजनीतिक दल को सामाजिक समूह मानते हैं जबकि राजनीतिज्ञ राजनीतिक दलों को आधुनिक राज्य में सरकार बनाने की एक प्रमुख संस्था के रूप में देखते हैं. राजनीतिक दल ऐसा संगठन है जिस का प्राथमिक उद्देश्य राजनीतिक नेतृत्व करना होता है. राजनीतिक शक्ति का आधार ‘वोट’ होता है. सरकार बनाने का काम मतदान प्रणाली से किया जाता है. मतदान करने के लिए जनता को यह बताना पड़ता है कि पार्टी किस विचारधारा को मानती है.

भारत में जो राजनीतिक पार्टियां हैं उन की अलगअलग विचाराधाराएं हैं. जैसे, कांग्रेस धर्मनिरपेक्ष विचारधारा को ले कर जनता के बीच वोट मांगने जाती है. कम्युनिस्ट दल वामपंथ विचारधारा के हैं. समाजवाद को मानने वाले दल समाजवादी विचारधारा को ले कर जनता के बीच जाते हैं. देश की पुरानी पंरपरा और धर्म के नाम पर भारतीय जनता पार्टी और शिवसेना जैसे दल हैं. इन को प्रतिक्रियावादी दल भी कहा जाता है. ऐसे दल अपनी विचाराधारा को ले कर कट्टरवादी होते हैं. ये अपने काम से सम?ाता नहीं करते. उदारवादी दल पूरे समाज को साथ ले कर चलते हैं. राजनीतिक विचारधारा के आधार पर ही राजनीतिक दलों को जानापहचाना जाता है. इस से ही पता चलता है कि वह किस तरह के काम करेगा. किन लोगों के लिए विशेष तवज्जुह देगा.

‘आप’ की विचारधारा

‘आप’ पार्टी की विचारधारा भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन देने की है. हर राजनीतिक दल इस बात को कहता है. देश का विकास भी हर राजनीतिक दल के एजेंडे में होता है. ‘आप’ जब दिल्ली के बाहर पंजाब में पहली बार चुनाव जीती तो उसे विचारधारा का संकट सामने दिखने लगा. ऐसे में उस ने पंजाब में शहीद भगत सिंह को आगे किया. सरकारी कार्यालयों में भगत सिंह की फोटो लगाई. इस के साथ ही साथ डा. भीमराव अंबेडकर की फोटो भी लगाई गई है.

पंजाब में ‘आप’ पार्टी के नेता भगवंत मान ने भगत सिंह के गांव जा कर शपथ ली. अगर यह माना जाए कि ‘आप’ शहीद भगत सिंह की विचारधारा को मानती है तो उन की विचारधारा वामपंथ को ले कर थी. लेकिन आम आदमी पार्टी वामपंथ को नहीं मानती है. पंजाब में

डा. अंबेडकर की फोटो से यह भी नहीं माना जा सकता कि ‘आप’ की दलित विचारधारा है.

विचारधारा को ले कर ‘आप’ दुविधा में दिखती है. तभी उस के नेता अरविंद केजरीवाल कहते हैं, ‘‘हम आम आदमी हैं. अगर वामपंथी विचारधारा में हमारे समाधान मिल जाएं तो हम वहां से विचार उधार ले लेंगे और अगर दक्षिणपंथी विचारधारा में हमारे समाधान मिल जाएं तो हम वहां से भी विचार उधार लेने में खुश हैं.’’

राजनीति उधार की विचारधारा पर नहीं चलती है. उस के लिए राजनीतिक दल की अपनी विचारधारा होनी चाहिए. विचारधारा के आधार पर केवल देश के अंदर ही नहीं, विदेशों में भी संबंध बनाने में मदद मिलती है. देश के बाहर भी राजनीतिक दल अपनी विचारधारा वाले राजनीतिक दलों के साथ संबंध रखते हैं. ऐसे में राजनीतिक दलों के लिए विचारधारा बेहद जरूरी होती है. विचारधारा के अभाव में राजनीति में लंबे समय तक बने रहना मुश्किल हो जाता है.

सिसकी- भाग 1: रानू और उसका क्या रिश्ता था

राइटर- कुशलेंद्र श्रीवास्तव

वैसे तो चिंटू ने एक छोटा स्टूल रख लिया था. जब वह उस पर खड़ा हो जाता तब ही उस के हाथ किचन में रखे गैसस्टोव तक पहुंचते. ऐसा नहीं था कि उस की हाइट कम थी बल्कि वह था ही छोटा. 8 साल की ही तो उस की उम्र थी. वह स्टूल पर खड़ा हो जाता और माचिस की तीली से चूल्हा जला लेता. उसे अभी गैस लाइटर से चूल्हा जलाना नहीं आता था. वैसे तो उसे माचिस से भी चूल्हा जलाना नहीं आता था.

तीनचार तीलियां बरबाद हो जातीं तब जा कर चूल्हा जलता. कई बार तो उस का हाथ भी जल जाता. वह अपने हाथों को पानी में डाल कर जलन मिटाने का प्रयास करता. चूल्हा जल जाने के बाद वह पानी भरा पतीला उस के ऊपर रख देता और नूडल्स का पैकेट खोल कर उस में डाल देता. अभी उसे संशी से पकड़ कर पतीला उतारना नहीं आता था, इसलिए वह चूल्हे को बंद कर देता और तब तक यों ही खड़ा इंतजार करता रहता जब तक कि पतीला ठंडा न हो जाता. वह सावधानीपूर्वक पतीला उतारता. फिर उस में मसाला डाल देता. चम्मच से उसे मिलाता. फिर एक प्लेट में डाल कर अपनी छोटी बहन रानू के सामने रख देता. रानू दूर बैठी अपने भाई को नूडल्स बनाते देखती रहती.

उसे बहुत जोर की भूख लगी थी. जैसे ही प्लेट उस के सामने आती, वह खाने बैठ जाती. चिंटू उसे खाता देखता रहता, ‘‘और चाहिए?’’

‘‘हां,’’ रानू खातेखाते ही बोल देती.

चिंटू थोड़ी सी मैगी और उस की प्लेट में डाल देता. उस के सामने पानी का गिलास रख देता. रानू जब खा चुकी होती तब जितना नूडल्स बच जाता वह चिंटू खा लेता. अकसर नूडल्स कम ही बच पाते थे. दादाजी नूडल्स नहीं खाते, उन के लिए चिंटू चाय बना देता. फिर चिंटू दोनों की प्लेट, चाय का कप और पतीला साफ कर रख देता. वह रानू का हाथ पकड़ कर बाहर के कमरे में ले आता और दोनों चुपचाप बैठ जाते.

इस कमरे में ही दादाजी का पलंग बिछा था जिस में वे लेटे रहते. उन्हें लकवा लगा हुआ था, इस कारण उन से चलते नहीं बनता था. हालांकि थरथराहट के साथ वे बोल तो लेते थे पर उन की इस भाषा को चिंटू कम ही सम?ा पाता था. चिंटू ही उन का हाथ पकड़ कर उन्हें बाथरूम तक ले जाता और फिर बिस्तर पर छोड़ देता. वे असहायी नजरों से चिंटू को देखते रहते. उन की आंखों से बहने वाले आंसू इस बात के गवाह थे कि वे बहुत कष्ट में हैं.

इस कमरे में ही चिंटू के मातापिता की फोटो लगी थी जिस पर फूलों का हार डला था. फोटो देख कर वे मम्मीपापा की यादों में खो जाते.

‘मम्मी, बहुत जोरों की भूख लगी है.’

‘हां, अभी रोटी सेंकती हूं, तब तक नूडल्स बना दूं क्या?’

‘रोजरोज मैगी, मैं तो बोर हो गया हूं, आप तो परांठे बना दो.’

‘अच्छा, चलो ठीक है. पहले तुम को परांठा बना देती हूं, बाद में काम कर लूंगी,’ यह कहती हुई मम्मी अपना हाथ धो कर किचन में चली जातीं.

कुछ ही देर में वे प्लेट में परांठा, अचार और शक्कर रख कर ले आतीं. ‘शक्कर कम खाया करो, चुनमुना काटते हैं,’ वे हंसती हुई कह देतीं.

‘‘पर मु?ो बगैर शक्कर के परांठा खाना अच्छा नहीं लगता, मम्मी.’

‘अचार तो है, उस से खाओ.’

‘अचार, तेल वाला और फिर कितनी मिर्ची भी तो है उस में,’ चिंटू नाक सिकोड़ लेता.

‘अच्छा बाबा, तुम को जो पसंद है वह खाओ,’ यह कहती हुईं वे रानू को गोद में उठा लेतीं, ‘तुम क्या खाओगी?’

‘मु?ो दूध चाहिए, चौकलेट वाला.’

‘दूध ही दूध पीती हो, एकाध परांठा भी खा लिया करो.’

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