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पंजाब: मंत्री की बर्खास्तगी, मान का मानक

पंजाब में मुख्यमंत्री भगवंत मान दे अपने ही मंत्री डॉ विजय सिंगला को सिर्फ 1% रिश्वतखोरी मामले में बर्खास्त कर दिया और अब डॉक्टर विजय सिंगला जेल में है. यह मामला संभवतः पंजाब प्रदेश का पहला ऐसा मामला है जिसमें सीधे एक मंत्री की बर्खास्तगी हो गई है और देश भर में चर्चा का विषय बन गया है. लोगों को यह विश्वास नहीं हो रहा है कि कोई मुख्यमंत्री अपने ही केबिनेट मंत्री को भ्रष्टाचार रिश्वत मांगने के जुर्म में बर्खास्त कर देगा वह भी सिर्फ एक ऑडियो क्लिप के आधार पर.

जी हां! मगर ऐसा पंजाब में हो गया है जहां अरविंद केजरीवाल की आप पार्टी की सरकार है और जिसकी प्रमुख स्वयं अरविंद केजरीवाल हैं उन्होंने भी सन 2015 में ऐसे ही एक मामले में बर्खास्तगी की थी और चर्चा का विषय बन गए थे.

दरअसल,स्वास्थ्य मंत्री डॉ विजय सिंगला के भ्रष्टाचार में लिप्त होने की जानकारी स्वयं मुख्यमंत्री भगवंत मान ने वीडियो जारी कर देश को  दी. मुख्यमंत्री ने कहा कि मेरी सरकार घूसखोरी बर्दाश्त नहीं करेगी. चाहे वह कोई भी हो, कितना भी रसूखदार क्यों न हो, उसे ऐसी अनियमितताओं की इजाजत नहीं दी जा सकती. मुख्यमंत्री मान ने स्पष्ट किया कि उन्होंने डॉ. सिंगला को अपनी कैबिनेट से बर्खास्त कर दिया है और पुलिस ने केस दर्ज उन्हें गिरफ्तार कर लिया है.

उन्होंने कहा कि यह मामला सिर्फ उनके ही ध्यान में था और वह इसे आसानी से दबा या टाल सकते थे उन्होंने पंजाब को भ्रष्टाचार मुक्त करने का प्रण लिया है और इस दिशा में यह ऐतिहासिक कदम है. मुख्यमंत्री ने कहा कि लोगों ने उन्हें पारदर्शी और भ्रष्टाचार मुक्त व्यवस्था के लिए चुना है और हमारा फर्ज बनता है कि हर एक पंजाबी भाई की इच्छाओं पर खरा उतरें.

कथनी और करनी में  अंतर

वस्तुतः सच यह है कि हमारे देश में नेता खादी पहनकर और महात्मा गांधी की ओर देखते हुए सच्चाई ईमानदारी और देश प्रेम की कसमें खाते हैं. मगर भ्रष्टाचार के मामले में नित्य नये रिकॉर्ड बना रहे हैं.

भ्रष्टाचार की इंतिहा हो चुकी है और मंत्री अधिकारी 20 से 30% तक रिश्वतखोरी कर रहे हैं जो कि देश भर में चर्चा का विषय है मगर सैंया भए कोतवाल की तर्ज पर देशभर में भ्रष्टाचार जारी है. इसे रोकने के लिए कोई प्रयास करता हुआ दिखाई नहीं देता, ऐसे में पंजाब में मुख्यमंत्री भगवंत मान द्वारा अपने ही मंत्री पर बर्खास्तगी की तलवार चलाने का यह मामला यह बताता है कि आज देश में ईमानदारी सच्चाई कीआज और भी  ज्यादा दरकार है.

चुनाव और संपूर्ण व्यवस्था भ्रष्टतम हो चुके हैं मंत्री और मुख्यमंत्री करोड़ों अरबों रुपए की काली कमाई कर रहे हैं और उसे चुनाव जीतने और अपनी निजी संपत्ति बनाने में लगे रहते हैं ऐसे में देश का भविष्य क्या होगा यह भविष्य के गर्भ में है .

ऐसे हुआ मंत्री का स्टिंग ऑपरेशन

पंजाब में बर्खास्त किए गए स्वास्थ्य मंत्री विजय सिंगला का ‘स्टिंग आपरेशन’ एक अधीक्षण अभियंता राजिंदर सिंह ने किया जो ‘पंजाब हैल्थ सिस्टम कार्पोरेशन’ में नियुक्ति  हैं. भगवंत मान के भ्रष्टाचार विरोधी संदेश के बाद उन्होंने साहस करके पुलिस में  शिकायत दी , एक महीना पहले वह अपने कार्यालय में थे जब सिंगला के विशेष कार्य अधिकारी प्रदीप कुमार ने उन्हें पंजाब भवन  में बुलाया . वहां मंत्री डा. सिंगला ने सिंह से कहा – कि जो भी ओएसडी कह रहे हैं, उसे ध्यान से सुनो और समझो कि यह सब मंत्री कह रहे हैं. उसके बाद अधीक्षण अभियंता को बताया गया कि उन्होंने कई करोड़ के निर्माण ठेके आबंटित किए हैं. फिर उनसे  साफ साफ कमीशन की मांग की गई.

मंत्री सिंगला पर दर्ज प्राथमिकी रपट के मुताबिक, ‘मैंने उन्हें कहा कि मैं ऐसा कर पाने में असमर्थ हूं, वह मुझे मेरे गृह विभाग में वापिस भेज सकते हैं. उसके बाद 8, 10, 12, 13 और 23 मई को लगातार वे मेरे वाट्सऐप नंबर पर फोन करते रहे. वे रकम मांगते रहे और रकम नहीं देने की सूरत में मेरा करियर बर्बाद कर देने की धमकी देते रहे. मैंने उनसे निवेदन किया मैं 30 नवंबर को रिटायर होने वाला हूं.उसके बाद 20 मई को उन्होंने मुझे कहा कि मैं उन्हें एकमुश्त 10 लाख रुपए दे दूं और उसके बाद मुझे उन लोगों को सभी कामों के बदले एक फीसद कमीशन देना होगा. मैने उन्हें बताया कि मेरे बैंक खाते में केवल 2.5 लाख रुपए पड़े हैं और 3 लाख रुपए और हैं. इस तरह मैं उन्हें 5 लाख रुपए देकर उनसे पिंड छुड़ा लेना चाहता था.फिर 23 मई को मेरे पास प्रदीप कुमार का फोन आया जिसमें उन्होंने मुझे सिविल सचिवालय आने को कहा। मैं वहां गया और उन्हें 5 लाख रुपए की पेशकश की और पूछा कि मैं यह रकम उन्हें कहां दू.’ और सिंह ने मुख्यमंत्री  के भ्रष्टाचार विरोधी संदेश को याद कर कुछ कार्रवाई की अपेक्षा में यह बातचीत रिकार्ड कर ली थी.

कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि अगर पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान और आप पार्टी के प्रमुख अरविंद केजरीवाल ने यह कदम साफ स्वच्छ मन से राजनीति को स्वच्छ बनाने के लिए उठाया है तो सराहनीय है इसके साथ ही उन्होंने भाजपा और कांग्रेस को एक तरह से चुनौती दे दी है जो भ्रष्टाचार के मामले में आमतौर पर मौन रहते हैं.

GHKKPM की पाखी बनी अंगूरी भाभी, वायरल हुआ फनी Video

‘गुम है किसी के प्यार में’ की पाखी यानी ऐश्वर्या शर्मा सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव रहती हैं. वह अक्सर फैंस के साथ फोटोज और वीडियोज शेयर करती रहती हैं. फैंस को उनके फोटोज और वीडियोज का बेसब्री से इंतजार रहता है. अब पाखी का एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें वह अंगूरी भाभी बन कर फैंस को एंटरटेन कर रही हैं. आइए बताते हैं इस वीडियो के बारे में.

हाल ही में पाखी का एक वीडियो सामने आया है, जिसमें वह अंगूरी भाभी बनी हुई है. पाखी का अंदाज देख फैंस दंग रह गए हैं. इंस्टाग्राम पर एक वीडियो वायरल हो रहा है जिसमें ऐश्वर्या शर्मा अंगूरी भाभी की तरह बोल रही हैं.

इस रील में पाखी टीवी के शो भाबीजी घर पर हैं की अंगूरी भाभी के अंदाज में नजर आ रही हैं. वह अंगूरी भाभी के किरदार को निभाने वाली शिल्पा शिंदे को कॉपी कर रही हैं. वीडियो में मनमोहन तिवारी और विभूति नारायण मिश्रा की भी आवाज आती है. इसके बाद वह सही पकड़े हैं कहती हुई नजर आ रही हैं.

सोशल मीडिया पर इस वीडियो को खूब पसंद किया जा रहा है. फैंस को पाखी का ये अंदाज काफी पसंद आ रहा है. फैंस मजेदार कमेंट्स कर रहे हैं. ऐश्वर्या शर्मा के इस वीडियो को 77 हजार से ज्यादा व्यूज लाइक मिल चुके हैं. इस वीडियो पर ऐश्वर्या के पति नील भट्ट ने भी कमेंट किया है.

बता दें कि गुम है किसी के प्यार में पाखी का किरदार ऐश्वर्या शर्मा निभाती हैं. ऐश्वर्या को इंस्टाग्राम पर 1.3 मिलियन यूजर्स फॉलो करते हैं.

बुलडोजर शासन शैली

दिल्ली ही नहीं देश के कर्ई शहरों में बुलडोजर आतंक के जरिए सरकारी जमीन, सडक़ों, पटरियों पर बने मकानों दुकानों, खोखो को हटाया जा रहा है. इस के सत्ता में बैठे हुए लोगों को बड़े फायदे हैं. पहली बात तो यह कि शोर मचाया जाता है कि यह मुसलिम इलाकों में ज्यादा किया जा रहा है जहां बुलडोजर का खौफ दिखा कर समझाया जा रहा है कि ङ्क्षहदुस्तान में रहना है तो हक न मांगों, दया पर रहो.

दूसरा, दलितों और गरीबों के घर उखाड़ कर उन्हें मजबूर किया जा रहा है कि वे या तो गांव चले जाए जहां सस्ते में काम करें या शहरों में ऊंची जमात के ङ्क्षहदू घरों और दुकानों में सस्ते में काम करे.

तीसरे, पटरियों पर दुकानों जो सस्ते में सामान बेच लेती थीं, उन के न रहने पर पक्की दुकानों के ऊंची जाति वाले मालिकों को मुनाफा बढ़ जाएगा. लोगों को उन्हीं से सामान खरीदना पड़ेगा.

चौथा, सब से बड़ा फायदा है कि देश में पुलिस राज कायम हो चुका है जो मंदिरों का गुणगान करने वाले पौराणिकवादी चलाते हैं, यह सब को पता चल जाएगा.

इस सारे चक्कर में किसी मंदिर को नहीं गिराया जाएगा ने मंदिर के चारों और बनी वीसियों पक्कीकच्ची दुकानों की क्योंकि मंदिर पर टिकी ङ्क्षजदगी के लिए यह जरूरी है. आज सत्ता में सब से बड़ा फायदा मंदिर मालिकों को हो रहा है, जो पहले साइकिल पर चलते थे अब स्कोॢपयों में घूमते है, जहां एक कमरे का मंदिर होता था वहां 20 कमरों का आश्रम है जो हर रोज बढ़ रहा है. बलडोजर आतंक इस बारे में पूरा साथ दे रहा है.

सडक़ पर बाजार लगाना वैसे बिल्कुल गलत है पर सच बात यह है कि दुनिया का कोर्ईदेश नहीं होगा जिस के शहर में शहर में सडक़ पर व्यापार नहीं होता हो. यह शहरी जीवन का हिस्सा है. खेत, जंगल, छोटे कारखाने से सामान बच कर लाने वाला शहर में न दुकान खोल सकता और न ही जरूरी है कि वह अपना थोड़ा सा बनाया गया सामान किसी दुकानदार को बेचे जिस की शैल्फों में वह खो सा जाए.

हाथ से बनी चीजें, सैंकड हैंड यानि, बे ब्रांड की चीजें सडक़ों और पटरियों पर ही बिक सकती है चाहे इस चक्कर में पैदल चलने वालों की सडक़ें पटरियां गायब हो जाए. सडक़ व पटरी पर कब्जा आम शहरी के हक पर कब्जा है पर शहर इन के बिना ङ्क्षजदा नहीं रह सकते. इसीलिए अमीर देश भी सडक़ किनारे के दुकानों को सहते ही नहीं, उन को खुली छूट भी देते हैं क्योंकि राह चलते शहरी के लिए यह खरीदारी एक सुविधा है.

बुलडोजर शासन शैली एक तरह की पुरानी पौराणिक शासन शैली है जिस में जिस से नाराज हों, जिस ने शास्त्रों के अनुसार कम नहीं किया हो, जो शत्रु लगे उसे तुरंत मार डालो. न पूछताछ करो, न सफाई का मौका दो. राम ने शंबूक को मारा बिना पूछे, राम ने बाली को मारा बिना उस का पक्ष जाने, राम ने सीता को महल से निकाला बिना उस की सफाई लिए, द्रोण ने एवलण्य का अंगूठा कटवाया बिना किसी वजह से. ये सब शासकों की निगाहों में सडक़ पर बैठे लोग थे, जिन के कोई हक नहीं है.

संविधान ने वोट का हक दिया है और लगातार कोशिश हो रही है कि इस हक को कमजोर किया जाए, बुलडोजर से परेशान लोगों को घर बदलना पड़ेगा और उन की बांट कर जाएगी. यह भी एक फायदा है.

जनता आज इतनी डर गर्ई और अदालतें खुद इतनी नकारा हो गई हैं कि जनता अब हक मांगने भी नहीं जाती. रूस ने बिना वजह से यूक्रेन पर हमला किया था और यहां हर राज्य में, हर शहर में रूसी हमले की तरह बुलडोजर टैंकों की शक्ल में चल रहे हैं. पर वहां से व्लोदोमीर जेलेंस्की निकल आए, कौन जानता है.

भारत भूमि युगे युगे: हृदय नहीं मस्तिष्क परिवर्तन

जिसे राम अच्छे लगने लगे, नरेंद्र मोदी शक्तिमान दिखने लगे, भाजपा दमदार पार्टी लगने लगे, कल को उसे वर्णव्यवस्था की खूबियां भी नजर आने लगेंगी, दलितपिछड़ों के शोषण को वह दैवीय व्यवस्था मानने लगेगा, वह साधुसंतोंशंकराचार्यों के पैरों की धूल भी चंदन समझ माथे से लगाएगा. वामपंथी समझे जाने वाले गुजरात के युवा नेता हार्दिक पटेल की मनोस्थिति बदली है तो इस से कांग्रेस को कोई नुकसान नहीं होने वाला क्योंकि हार्दिक ने खुद को ऐक्सिडैंटल नेता साबित कर दिया है.

सत्ता की हवस बड़ी अजीब होती है. त्रेता युग में अंगद भी उन्हीं राम की गोद में जा बैठा था जिन्होंने उस के विद्वान और साहसी पिता बालि की हत्या छल से की थी. तो आज मौकापरस्त हार्दिक का क्या दोष क्योंकि कमजोर और लालची लोग लड़ने से पहले ही हथियार डाल देते हैं.

वो क्या जाने पीरपराई…

साल 2019 के लोकसभा चुनाव में लातूर से भाजपा को रिकौर्ड वोटों से जिताने वाले सांसद सुधाकर श्रंगारे का दर्द आखिर छलक ही गया कि उन के दलित होने के चलते उन्हें प्रशासन सरकारी कार्यक्रमों में आमंत्रित नहीं करता. पेशे से ठेकेदार सुधाकर को तय है यह भी मालूम होगा कि शादी और तेरहवीं में भी दलितों के भोजन के अलग पंडाल लगते हैं जिस से कि दलितों को हीनता और सवर्णों को श्रेष्ठता का एहसास होता रहे.

जवाब तो खुद सुधाकर को इस सवाल का देना चाहिए कि वे उस कार्यक्रम में थे ही क्यों जिस में मूर्तिवाद के धुरविरोधी भीमराव अंबेडकर की 72 फुट ऊंची मूर्ति का अनावरण हो रहा था.

दलितों का अपमान, भेदभाव, अनदेखी और तिरस्कार हमारे धार्मिक और सामाजिक संस्कार हैं. देश में कहीं न कहीं रोज दलित लतियाया जाता है. इस पर सुधाकर कभी कुछ नहीं बोले लेकिन खुद पर गुजरी तो तिलमिला उठे. अब अगर मंच से बोलने की हिम्मत कर ही ली है तो जमीनी तौर पर कुछ करने की भी उन्हें पहल करनी चाहिए.

तो नीतीश के बाद सही

देश के गृहमंत्री अमित शाह ने अपने बिहार दौरे में ज्ञान की एक बात यह कही थी कि जल्द ही देशभर में यूसीसी यानी समान नागरिक संहिता लागू की जाएगी. इस पर घबराए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बजरिए अपने प्रिय शिष्य उपेंद्र कुशवाहा के श्री मुख से यह कहलवाया कि अगर ऐसा हुआ तो जदयू इस का विरोध करेगी और नीतीश के मुख्यमंत्री रहते तो बिहार में यूसीसी लागू नहीं होगी.

इस से साफ हो गया कि जदयू और भाजपा में कभी भी डाइवोर्स हो सकता है. वैसे भी नीतीश की पलटीमार फितरत को देखते अंदाजा लगाया जा रहा है कि अब वे फिर पलटी मारने की तैयारी कर रहे हैं.

नीतीश की दिक्कत यह है कि बिहार के लोगों के सिर से उन का जादू उतर रहा है. हालत भाजपा की भी खस्ता है जो अभी बोचहां विधानसभा उपचुनाव का जख्म सहला रही है. यह हालत या समीकरण लालूपुत्र तेजस्वी के हक में है. अब देखना दिलचस्प होगा कि वे इस हालत को कितना भुना पाते हैं.

ममता का जादू जीते बिहारी बाबू

हिंदीभाषी राज्यों की तो 4-6 सीटों के लिए कहा जाता है कि यहां से तो भाजपा का पुतला भी जीत जाएगा लेकिन पश्चिम बंगाल की सभी लोकसभा सीटों के बारे में दिख रहा है कि टीएमसी जिसे खड़ा कर दे, उस की जीत तय है. आसनसोल लोकसभा सीट से अभिनेता शत्रुध्न सिन्हा की जीत तो यही बताती है कि भाजपा को अब बंगाल में वक्त और पैसा जाया नहीं करना चाहिए. यहां के लोग मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को किसी भी हद से ज्यादा चाहते हैं या यों कह लें कि भाजपा की भड़काऊ और बांटने वाली सियासत से नफरत करते हैं.

मुद्दत से बेगारी काट रहे बिहारी बाबू अब बंगाली बाबू हो गए हैं. अब उन के पास मौका है कि लोकसभा में भाजपा को घेरते अपनी भड़ास निकालें और 2024 की तैयारी करें. इतना तो उन्हें भी समझ आ गया होगा कि लोकप्रियता दरअसल, होती क्या है.

अंत भला तो सब भला- भाग 2: ग्रीष्मा की जिंदगी में कैसे मची हलचल

‘‘हां बेटा सच में तू आज अच्छी लग रही है,’’ सासूमां ने भी कहा तो उसे सहसा अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ और फिर सोचने लगी कि क्या सारे जमाने को विनय सर की हवा लग गई है जो सब को वह सुंदर लग रही है.

सासूमां की बात सुन कर वह दूसरी बार चौंकी और अंदर जा कर एक बार फिर आईने में खुद को देखा कि कहीं चेहरे पर तो ऐसा कुछ नहीं है जिस से सब को वह सुंदर नजर आ रही है पर अब न जाने क्यों सुबह स्कूल जाते समय अच्छे से तैयार होने का उस का मन करता. विनय सर और उन की बातों से उस के सुसुप्त मन में प्रेमरस की लहरें हिलोरे लेने लगी थीं.

विवाह के बाद सजनेसंवरने और प्रेमरस में डूबे रहने की जो भावनाएं रवींद्र के शुष्क व्यवहार के कारण कभी जन्म ही नहीं ले पाई उन के अंकुर अब फूटने लगे थे. इधर वह नोटिस कर रही थी कि विनय सर भी किसी न किसी बहाने से उसे लगभग रोज अपने कैबिन में बुला ही लेते.

एक दिन जब ग्रीष्मा एक छात्र के सिलसिले में विनय सर से मिलने गई तो बोली, ‘‘सर, यह बच्चा पिछले माह से स्कूल नहीं आ रहा है?

क्या करूं?’’

की समस्या मैं हल कर दूंगा. उस के घर का फोन नंबर दीजिए पर यह बताइए आप हमेशा इतनी गुमसुम सी क्यों रहती हैं… जिंदगी एक बार मिलती है उसे खुश हो कर जीएं. जो हो गया है उसे भूल जाइए और आगे बढि़ए. चलिए आज शाम को मेरे साथ कौफी पीजिए.

‘‘मैं… नहींनहीं सर, ये सब ठीक नहीं है… मैं कैसे जा पाऊंगी? आप ही चले जाइएगा.’’

ग्रीष्मा को तो कुछ जवाब ही नहीं सूझ रहा था… जो मन में आया कह कर बाहर जाने के लिए कैबिन का दरवाजा खोला ही था कि विनय सर की आवाज उस के कानों में पड़ी, ‘‘मैं बगल वाले इंडियन कौफी हाउस में शाम 7 बजे आप का इंतजार करूंगा. आना न आना आप की मरजी?’’

इस अनापेक्षित प्रस्ताव से उस की सांसें तेजतेज चलने लगीं. वह तो अच्छा था कि

गेम्स का पीरियड होने के कारण बच्चे खेलने गए थे वरना उस की हालत देख कर बच्चे क्या सोचते? बारबार विनय सर के शब्द उस के कानों में गूंज रहे थे. दूसरी ओर मन में अंतर्द्वंद भी था कि यह उसे क्या हो रहा है. जो भावना कभी रवींद्र के लिए भी नहीं जागी वह विनय सर के लिए… विनय सर शाम को इंतजार करेंगे. जाऊं या न जाऊं… वह इसी ऊहापोह में थी कि छुट्टी की घंटी बज गई.

घर आ कर सब को चाय बना कर पिलाई. घड़ी देखी तो 6 बज रहे थे. फिर वह सोचने लगी कि कैसे जाऊं…,मांबाबूजी से क्या कहूं…पर सर…ग्रीष्मा को सोच में बैठा देख कर ससुर बोले, ‘‘क्या बात है बहू क्या सोच रही है?’’

वह हड़बड़ा गई जैसे उस की चोरी पकड़ी गई हो. फिर कुछ संयत हो कर बोली. ‘‘कुछ नहीं पिताजी एक सहेली के बेटे का जन्मदिन है. वहां जाना था सो सोच रही थी कि जाऊं या नहीं, क्योंकि लौटतेलौटते देर हो जाएगी.’’

‘‘जा बेटा तेरा भी थोड़ा मन बहलेगा…बस, जल्दी आने की कोशिश करना.’’

‘‘ठीक है, मैं जल्दी आ जाऊंगी,’’ कह कर उस ने अपना पर्स उठाया और फिर स्कूटी स्टार्ट कर चल दी. स्कूटी चलातेचलाते उसे खुद पर हंसी आने लगी कि कैसे कुंआरी लड़कियों की तरह वह भाग ली. विनय सर का जनून उस पर इस कदर हावी था कि आज पहली बार उस ने कितनी सफाई से ससुर से झूठ बोल दिया.

जैसे ही ग्रीष्मा ने कौफी हाउस में प्रवेश किया विनय सर सामने एक टेबल पर बैठे इंतजार करते मिले. उसे देखते ही बोले, ‘‘मुझे पता था कि आप जरूर आएंगी.’’

‘‘कैसे?’’

‘‘बस पता था,’’ कुछ रोमांटिक अंदाज में विनय सर बोले, ‘‘बताइए क्या लेंगी कोल्ड या हौट.’’

‘‘हौट ही ठीक रहेगा,’’ उस ने सकुचाते हुए कहा.

‘‘आप बिलकुल आराम से बैठिए यहां. भूल जाइए कि मैं आप का बौस हूं. यहां हम सिर्फ 2 इंसान हैं. वैसे आप आज भी बहुत सुंदर लग रही. आप इतनी खूबसूरत हैं, योग्य हैं और सब से बड़ी बात आप अपने पति के मातापिता को अपने मातापिता सा मान देती हैं. जो हो गया उसे भूल जाइए और खुल कर बिंदास हो कर जीना सीखिए.’’

‘‘सर आप को पता नहीं है मेरे पति… और मेरा अतीत…’’ उस ने अपनी ओर से सफाई देनी चाही.

‘‘ग्रीष्मा प्रथम तो तुम्हारा अतीत मुझे पता है. स्टाफ ने मुझे सब बताया है. दूसरे मुझे उस से कोई फर्क नहीं पड़ता… कब तक आप अतीत को अपने से चिपका कर बैठी रहेंगी. अतीत की कड़वी यादों के साए से अपने वर्तमान को क्यों बिगाड़ रही हैं? जब वर्तमान में प्रसन्न रहेंगी तभी तो आप अपने भविष्य को भी बेहतर बना पाएंगी… मेरी बातों पर विचार करिए और अपने जीने के अंदाज को थोड़ा बदलने की कोशिश करिए.’’

विनय सर ने पहली बार उसे उस के नाम से पुकारा था. वह समझ नहीं पा रही थी कि सर उसे क्या कहने की कोशिश कर रहे हैं.

अचानक ग्रीष्मा ने घड़ी पर नजर डाली.

8 बज रहे थे. वह एकदम उठ गई और बोली, ‘‘सर, अब मुझे चलना होगा. मांबाबूजी इंतजार कर रहे होंगे,’’ कह कर वह कौफी हाउस से बाहर आ स्कूटी स्टार्ट कर घर चल दी.

घर आ कर ग्रीष्मा सीधे अपने कमरे में गई और खुद को फिर आईने में देख सोचने लगी कि क्या हो रहा है उसे? कहीं उसे प्यार तो नहीं हो गया… पर नहीं वह एक विधवा है… मांबाबूजी और कुणाल की जिम्मेदारी है उस पर…वह ये सब क्यों भूल गई…सोचतेसोचते उस का सिर दर्द करने लगा तो कपड़े बदल कर सो गई.

अगले दिन जैसे ही स्कूल पहुंची तो विनय सर सामने ही मिल गए. उसे देखते ही बोले, ‘‘मैम, फ्री हो कर मेरे कैबिन में आइएगा, आप से कुछ काम है.’’

‘‘जी सर,’’ कह कर वह तेज कदमों से स्टाफरूम की ओर बढ़ गई.

जब वह सर के कैबिन में पहुंची तो विनय सर बोले, ‘‘मैडम कल शिक्षा विभाग की एक मीटिंग है, जिस में आप को मेरे साथ चलना होगा.’’

‘‘सर मैं… मैं तो बहुत जूनियर हूं… और टीचर्स…’’ न जाने क्यों वह सर के साथ जाने से बचना चाहती थी.

‘‘यह तो मेरी इच्छा है कि मैं किसे ले जाऊं, आप को बस मेरे साथ चलना है.’’

‘‘जी, सर,’’ कह कर वह स्टाफरूम में आ गई और सोचने लगी कि यह सब क्या हो रहा है… कहीं विनय सर को मुझ से… मुझे विनय सर से… तभी फ्री टाइम समाप्त होने की घंटी बजी और वह अपनी कक्षा में आ गई. आज उस का मन बच्चों को पढ़ाने में भी नहीं लगा. दिलदिमाग पर सर का जादू जो छाया था.

अगले दिन मीटिंग से वापस आते समय विनय सर ने गाड़ी फिर कौफी हाउस के बाहर रोक दी. बोले, ‘‘चलिए कौफी पी कर चलते हैं.’’

उन का ऐसा जादू था कि ग्रीष्मा चाह कर भी मना न कर सकी.

कौफी पीतपीते विनय सर उस की आंखों में आंखें डाल कर बोले, ‘‘ग्रीष्मा, आप ने अपने भविष्य के बारे में कुछ सोचा है?’’

‘‘क्या मतलब सर… मैं कुछ समझी नहीं…’’ अचकचाते स्वर में समझ कर भी नासमझ बनते हुए उस ने कहा.

‘‘जो हो गया है उसे भूल कर नए सिरे से जिंदगी शुरू करने के बारे में सोचिए…मैं आप का हर कदम पर साथ देने को तैयार हूं. यदि आप को मेरा साथ पसंद हो तो…’’ सपाट स्वर में विनय सर ने अपनी बात ग्रीष्मा के सामने रख दी.

ऐसी जुगुनी- भाग 2: जुगुनी ने अपने ससुरालवालों के साथ क्या किया?

उस के शब्द सुन कर तो बाबूजी ऐसे चिहुंक उठे जैसे किसी पहाड़ी बिच्छू ने उन्हें डंक मार दिया हो. वे अच्छी तरह समझ रहे थे कि उन की पत्नी उन्हें जुगुनी के ससुराल वालों के खिलाफ बरगला रही है. उन्होंने मांबेटी दोनों को दुनियाभर के चमचमाते सामान के पीछे पागल होते पहले भी देख रखा है. पर, उन्हें यकीन है कि जुगुनी की अम्मा ने जो मन में ठान लिया है, वह उसे पूरा कर के ही दम लेगी. और अगर उन्होंने उस के मनमुताबिक नहीं किया, तो वह उन्हें चैन से जीने न देगी, खानापीनासोना सब हराम हो जाएगा.

वे उधेड़बुन में खो गए. चलो, तेजेंद्र के पापा से बात कर ही लेते हैं. भले ही उन्हें और उन के परिवारजनों के गले से मेरी बात नीचे न उतरे, पर उन्हें तो मनाना ही होगा कि वे दहेज का सारा सामान तेजेंद्र के साथ रवाना कर दें. वरना जुगुनी की अम्मा उन की जान खा जाएगी. उन के परिवार वालों को बुरा लगता है तो लगने दो. जुगुनी को भी इस दो कौड़ी की ससुराल में कहां रहना है? उसे तो मुंबई महानगर में अपनी जिंदगी गुजारनी है तेजेंद्र के साथ.

बाबूजी का मन अभी भी हिचक रहा था. रात को अम्मा ने उन्हें गहरी नींद से जगा कर फिर उन पर दबाव बनाया, ‘‘पौ फटते ही तेजेंद्र के बड़ेबुजुर्गों से बात कर लेना क्योंकि कल शाम की ही ट्रेन से जुगुनी और तेजेंद्र को मुंबई के लिए कूच करना है.’’

सो, सुबह जब बाबूजी उठे तो वे हिम्मत बटोर कर, चाय की चुसकी लेते हुए तेजेंद्र के पापा से मुखातिब हुए, ‘‘भाईसाब अब आप का बेटा तेजेंद्र घरवाला गृहस्थ बन गया है. मुंबई में अपनी बीवी के साथ रहेगा. उस के यहां यारदोस्तों का आनाजाना होगा. इस बार अपनी दुलहन ले कर पहुंचने पर, वे उस से पूछेंगे कि तेजेंद्र, ससुराल से तुम्हें क्या मिला है, तब तेजेंद्र उन से क्या कहेगा कि दहेज तो बाप के घर छोड़ आया हूं. बस, बीवी ले कर आया हूं? वे तो समझेंगे कि बिटिया का बाप तो कंगला है जिस ने उसे एक धेला भी नहीं दिया. मुफ्त में अपनी बेटी उस के गले मढ़ दी.

‘‘सच, यह सोच कर मेरा दिल शर्म से डूबा जा रहा है. बेटी के बाप की तो नाक ही कट जाएगी. सो, मेरी आप से विनती है कि तेजेंद्र को अपने साथ कुछ सामान जैसे टीवी, फ्रिज वगैरा ले जाने की इजाजत जरूर दे दीजिए जिन्हें वह अपने महल्ले वालों और दोस्तों को दिखा सके कि हां, किसी फटीचर खानदान में उस की शादी नहीं हुई है.’’

बाबूजी ने दोनों हाथ जोड़ कर अपनी बात को इतने सलीके से पेश किया था कि तेजेंद्र के पापा से प्रतिक्रिया में कुछ भी कहते नहीं बना. वे हकला उठे, ‘‘मुझे इस में क्या आपत्ति हो सकती है?’’

वहां उपस्थित तेजेंद्र का छोटा भाई प्रेमेंद्र भी बोल उठा, ‘‘हां हां, अगर भाईसाहब ये सामान खुद ले जाने में सक्षम हों तो इस से अच्छी बात क्या हो सकती है. हम तो सोच रहे थे कि भाभीजी का सामान हम खुद धीरेधीरे मुंबई पहुंचा देंगे. इसी बहाने मुंबई भी आनाजाना बना रहेगा.’’

जुगुनी ने सोचा, ‘अगर दहेज का सामान अभी हमारे साथ चला जाएगा तो इन कमीनों द्वारा फुजूल में मुंबई आ कर मेरा दिमाग खराब करने से छुटकारा भी मिल जाएगा.’

उस वक्त बाबूजी अम्मा का मुंह ताकने लगे जैसे कि कह रहे हों कि तुम तो कह रही थी कि दहेज का सारा सामान तेजेंद्र के घर वाले हड़पना चाहते हैं जबकि वे सभी सारे सामान को तेजेंद्र के साथ सहर्ष भेजने को तैयार हैं.

अम्मा ने उन के हावभाव को कनखियों से देखा और मुंह बिचका लिया. तुम्हें जो मगजमारी करनी है, वह करो. हमें तो दहेज का सामान बस मुंबई रफादफा करना है.

सो, कुछ मामूली उपहारों को छोड़ कर बाकी सामान धीरेधीरे 2-3 खेपों में मुंबई स्थानांतरित कर दिया गया. तेजेंद्र मायूस हो गया, यह सोचते हुए कि मेरे घर वाले सोच रहे होंगे कि तेजेंद्र भौतिकवादी हो गया है. उसे अपने घर वालों से ज्यादा निर्जीव वस्तुओं से प्यार हो गया है.

वैसे तो, वह शादी से पहले ऐसी मानसिकता वाले लोगों की नुक्ताचीनी करने से बाज नहीं आता था. भाइयों में सब से छोटे भाई गजेंद्र ने सभी को समझाया, ‘‘भैया सुलझे हुए विचारों के भले आदमी हैं. वे स्वार्थी कभी नहीं हो सकते. उन्हें तो मर्यादित जीवन और अच्छे संस्कारों से हमेशा प्यार रहा है. स्वार्थपरता से तो उन्हें सख्त नफरत है. इसलिए हमें उन के बारे में कोई अनापशनाप धारणा नहीं बनानी चाहिए.

वे हम से और हमारी पारिवारिक संस्कृतियों से हमेशा जुड़े रहे हैं. हां, भाभीजी के बारे में अभी मैं कुछ भी निश्चित तौर पर नहीं कह सकता कि भविष्य में वे अपने ससुराल में क्या गुल खिलाएंगी. पर, यह तो तय है कि वे भारत में पाकिस्तान बनवा कर ही दम लेंगी.’’

तेजेंद्र के विवाह के चिह्न के तौर पर घर में कुछ भी उपलब्ध न रहने के कारण उस की तीनों बहनें नंदिनी, मीठी और रोशनी कुछ समय तक सदमे में थीं. शादी के उल्लास और चहलपहल के बाद अचानक छाए सन्नाटे से घर का कोनाकोना भांयभांय कर रहा था. उन की मां तो डेढ़ साल पहले ही डाक्टर की गलत दवा के कारण मौत का शिकार हो चुकी थीं. मां की असामयिक मौत के बाद, पापा गुमसुम रहने लगे थे.

बड़े भाई कमलेंद्र अपनी एकल पारिवारिक व्यवस्था में ही इस तरह उलझ गए थे जैसे उन का इस के सिवा दुनिया में कुछ और है ही नहीं. ऐसे में, परिवार को तेजेंद्र से ही बड़ी उम्मीदें थीं. उन्हें उन से आर्थिक मदद से अधिक मानसिक संबल की अपेक्षा थी. प्रेमेंद्र कोचिंग इंस्टिट्यूट चला कर अपनी और अपनी बहनों की आर्थिक आवश्यकताएं पूरी कर ही लेता था. पापाजी के पैंशन के रुपए भी काम में आ जाते थे.

इस दरम्यान, जुगुनी की अम्मा का मुंबई आनाजाना अधिक बढ़ गया था. वह जुगुनी को ससुराल से भरसक दूरी बनाए रखने के लिए सचेत करती रहती थी. इस के लिए नएनए तौरतरीके भी वह उसे बताती रहती थी.

एक दिन उस ने जुगुनी से कहा, ‘‘अगर तेजेंद्र के मन में अपने भाईबहनों के प्रति लगाव बना रहेगा तो उसे उन की आर्थिक मदद भी करनी पड़ेगी. सो, तुम्हारी कोशिश ऐसी होनी चाहिए कि उन के बीच संबंधों में दरार बढ़ती जाए. अभी तो उस की तीनों बहनें अनब्याही हैं. उन की शादी के लिए तेजेंद्र को ही पैसे खर्च करने पड़ेंगे. उस के पापा और कमलेंद्र तो कुछ भी करने से रहे. देखो, कमलेंद्र कितनी होशियारी से उन से कन्नी काट गया है. दरअसल, तुम्हें तो दूल्हा कमलेंद्र जैसा मिलना चाहिए था.’’

अम्मा कमलेंद्र का गुणगान करते हुए तेजेंद्र के नाम पर रोरो कर अपना माथा पीटती. एक दिन उस ने जुगुनी से कहा, ‘‘कुछ ऐसे गंभीर हालात पैदा करो कि तेजेंद्र की बहनें कुंआरी ही बूढ़ी हो जाएं. इस से तुम्हें फायदे होंगे-एक तो तेजेंद्र को उन की शादी पर पैसे खर्च नहीं करने पड़ेंगे, दूसरे, तेजेंद्र के कमीने परिवार की सारे समाज में थूथू हो जाएगी.

‘‘जिस घर में बेटियां और बहनें अविवाहित रह जाती हैं, समाज में उसे बड़ी नीची निगाह से देखा जाता है. उस के बाद तुम अपनी सहेलियों और जानपहचान वालों में भाईबहन के रिश्ते के बारे में कुछ गंदी अफवाहें फैला देना. देखना, सारे के सारे सदमों से न केवल बीमार होंगे बल्कि दुश्ंिचताओं में पड़ कर पीलिया से ग्रस्त हो कर दम भी तोड़ देंगे.’’

पर, तेजेंद्र ने तो संकल्प ले रखा था कि वह अपने सहोदरों की जीवननैया पार लगा कर ही दम लेगा. इस बीच, प्रेमेंद्र ने तेजेंद्र को नंदिनी की शादी से संबंधित बातचीत करने और इस बाबत अन्य बंदोबस्त करने के लिए आने का आग्रह किया. जब अम्मा को इस बारे में पता चला तो उस ने जुगुनी को दिनरात बरगलाया, ‘‘बिटिया, तेजेंद्र को किसी भी कीमत पर नंदिनी की शादी के बारे में बातचीत करने के लिए उस के घर मत जाने देना.’’

इस तरह जिस शाम तेजेंद्र को ट्रेन पकड़नी थी, जुगुनी दहेज के मुद्दे पर उस से झगड़ बैठी. उस ने तेजेंद्र से कहा, ‘‘जब तक तुम दहेज में मिला स्कूटर प्रेमेंद्र से छीन कर वापस नहीं लाओगे, तुम्हें तुम्हारे कमबख्त भाईबहनों के पास जाने नहीं दूंगी.’’ फिर, उस ने उस के पर्स से रिजर्वेशन टिकट निकाल कर फाड़ कर चिंदीचिंदी कर दिया. झगड़े पर उतारू औरत के सामने वह बेबस हो गया.

दूसरी और तीसरी बार भी जब वह नंदिनी के लिए लड़का देखने जाने की तैयारी में था तो जुगुनी ने उसे इसी तरह घर न जाने के लिए मजबूर कर दिया. तेजेंद्र तो जुगुनी के जोरजोर से शोर मचाने के कारण ही सहम जाता था, महल्ले वालों में शोर मच जाएगा तो उसी की बदनामी होगी. गलती भले ही औरत की हो, दुनिया पुरुष को ही दोषी ठहराती है.

जुगुनी ने उस की कमजोर नस पहचान ली थी और जबजब वह किसी ऐसे ही निहायत जरूरी काम से अपने पैतृक घर जाने का मन बनाता, जुगुनी शोर मचाने लगती और तेजेंद्र खामोश हो कर बैठ जाता. वह उस की कमजोर नस पर हाथ रख देती.

बहरहाल, हर बात में तूतूमैंमैं उन के दांपत्य जीवन का रोजमर्रा का हिस्सा बन गया था. जुगुनी तो मुंहफट थी ही, लेकिन जब उग्र होती तो गालीगलौज भी करने लगती. ऐसे में, तेजेंद्र अपना माथा पीट कर अपने बुरे समय को कोसता रहता. उस ने तो अपने ही क्षेत्र की लड़की से सिर्फ इसलिए शादी की थी कि उस की आदतें, रहनसहन आदि उसी की तरह होंगे जिस से रिश्तेदारी निभाने में कोई अड़चन नहीं आएगी. वह मुंबई में रह रहा होगा जबकि उस का और उस की पत्नी का परिवार सुखदुख में एकदूसरे के साथ होगा.

मुंबई में ही उस के लिए कितने ही शादी के प्रस्ताव आए थे. पर, उस ने सब से न कर दिया कि शादी करूंगा तो अपने ही क्षेत्र की किसी संस्कारी लड़की से, वरना नहीं करूंगा.

तेजेंद्र के पापा सेहत से और अपने अक्खड़ स्वभाव से इस लायक नहीं थे कि वे अपनी जिम्मेदारियों को निबटाते. कुल मिला कर वे अपने गृहस्थ जीवन के प्रति उदासीन हो गए थे. यह सोच कर कि मेरे सारे बेटे तो इतने बड़े और समझदार हो ही गए हैं कि वे उन की जिम्मेदारियों को भलीभांति निभा सकें.

इस बीच, तेजेंद्र ने मुंबई से फोन कर के अपने हाथ खड़े कर दिए, ‘‘प्रेमेंद्र, तुम्हारी भाभी मुझे तुम लोगों के लिए कुछ भी करने की इजाजत नहीं देतीं. इसलिए मैं तुम लोगों के लिए कुछ भी न कर पाने के लिए मजबूर हूं.’’

थकहार कर प्रेमेंद्र ने खुद नंदिनी के लिए एक रिश्ता तय किया, वह भी बड़ी अफरातफरी में क्योंकि उस की उम्र शादी के लिहाज से ज्यादा हो रही थी. नंदिनी की शादी हुई, पर अफसोस कि सफल नहीं रही. यह सब हताशा में उठाए गए कदमों के कारण हुआ. किसी को क्या पता था कि जिस लड़के के साथ नंदिनी का विवाह हुआ है, उस का पहले से ही किसी औरत के साथ नाजायज संबंध है जिस से उस की एक संतान भी है.

अम्मा को जब जुगुनी से यह बात पता चली तो वह फूली न समाई, ‘‘चलो, उस कमीने परिवार की बरबादी शुरू हो गई है. अब उन की बरबादी का मंजर हम तसल्ली से देखेंगे. कमीने प्रेमेंद्र को खुद पर कितना गरूर था. हमारे दहेज का स्कूटर हथियाने का उसे अब अच्छा दंड मिला है. उस की बहनों ने भी दहेज का सामान कब्जा कर बहती गंगा में खूब हाथ धोया. अब उन की मांग में कभी सिंदूर नहीं सजेगा, यह मेरी साजिश है. उन सब का ऐसा सत्यानाश हो कि वे फिर कभी आबाद न हो सकें और तेजेंद्र का सारा खानदान मटियामेट हो जाए.’’

एक दिन अम्मा ने जुगुनी को फोन पर बतलाया, ‘‘देखना, नंदिनी को जल्दी ही ससुराल से खदेड़ दिया जाएगा और वह घर आ कर बैठेगी. अब उस का दूसरा ब्याह न हो सकेगा क्योंकि यह सब मेरे ही टोनेटोटके का असर है. मैं एक डायन के भी संपर्क में हूं जिस ने अपने कर्मकांडों से तेजेंद्र के परिवार को नेस्तनाबूद करने का मुझ से वादा किया है.’’

जुगुनी खुश थी कि उस की अम्मा उस के रास्ते के सारे कांटे हटा कर उस की जिंदगी को खुशहाल बनाने के लिए हर संभव कोशिश करने में जुटी हुई है. वैसे भी, वह अकेले यह सब कैसे कर पाती? टोनेटोटकों और औघड़बाजी के बारे में तो उसे इतना ज्ञान भी नहीं है जितना अम्मा को है. इसी वजह से अम्मा का मुंबई आनाजाना बढ़ गया. उस का मुंबई आने का तो उद्देश्य ही था कि येनकेनप्रकारेण तेजेंद्र का अपने परिवार से मोहभंग करा कर उसे ऐसी हालत में छोड़ा जाए जैसे धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का. आखिरकार, वह अपनी बीवी के ही तलवे चाटेगा.

पुरस्कार- भाग 1: आखिर क्या हुआ विदाई समारोह में?

उन्हें एक निष्ठावान तथा समर्पित कर्मचारी बताया गया और उन के रिटायरमेंट जीवन की सुखमय कामना की गई थी. अंत में कार्यालय के मुख्य अधिकारी ने प्रशासन तथा साथी कर्मचारियों की ओर से एक सुंदर दीवार घड़ी, एक स्मृति चिह्न के साथ ही रामचरितमानस की एक प्रति भी भेंट की थी. 38 वर्ष का लंबा सेवाकाल पूरा कर के आज वह सरकारी अनुशासन से मुक्त हो गए थे.

वह 2 बेटियों और 3 बेटों के पिता थे. अपनी सीमित आय में उन्होंने न केवल बच्चों को पढ़ालिखा कर काबिल बनाया बल्कि रिटायर होने से पहले ही उन की शादियां भी कर दी थीं. इन सब जिम्मेदारियों को ढोतेढोते वह खुद भारी बोझ तले दब से गए थे. उन की भविष्यनिधि शून्य हो चुकी थी. विभागीय सहकारी सोसाइटी से बारबार कर्ज लेना पड़ा था. इसलिए उन्होंने अपनी निजी जरूरतों को बहुत सीमित कर लिया था, अकसर पैंटशर्ट की जगह वह मोटे खद्दर का कुरतापजामा पहना करते. आफिस तक 2 किलोमीटर का रास्ता आतेजाते पैदल तय करते. परिचितों में उन की छवि एक कंजूस व्यक्ति की बन गई थी.

बड़ा लड़का बैंक में काम करता था और उस का विवाह साथ में काम करने वाली एक लड़की के साथ हुआ था. मंझला बेटा एफ.सी.आई. में था और उस की भी शादी अच्छे परिवार में हो गई थी. विवाह के बाद ही इन दोनों बेटों को अपना पैतृक घर बहुत छोटा लगने लगा. फिर बारीबारी से दोनों अपनी बीवियों को ले कर न केवल अलग हो गए बल्कि उन्होंने अपना तबादला दूसरे शहरों में करवा लिया था.

शायद वे अपने पिता की गरीबी को अपने कंधों पर ढोने को तैयार न थे. उन्हें अपने पापा से शिकायत थी कि उन्होंने अपने बच्चों को अभावों तथा गरीबी की जिंदगी जीने पर विवश किया पर अब जबकि वह पैरों पर खड़े थे, क्यों न अपने श्रम के फल को स्वयं ही खाएं.

हाथ की पांचों उंगलियां बराबर नहीं होतीं. उन का तीसरा बेटा श्रवण कुमार साबित हुआ और उस की पत्नी ने भी बूढ़े मातापिता के प्रति पति के लगाव को पूरा सम्मान दिया और दोनों तनमन से उन की हर सुखसुविधा उपलब्ध कराने का प्रयास करते रहते थे.

सब से छोटी बहू ने तो उन्हें बेटियों की कमी भी महसूस न होने दी थी. मम्मीपापा कहतेकहते दिन भर उस की जबान थकती न थी. सासससुर की जरा भी तबीयत खराब होती तो वह परेशान हो उठती. सुबह सो कर उठती तो दोनों की चरणधूलि माथे पर लगाती. सीमित साधनों में जहां तक संभव होता, उन्हें अच्छा व पौष्टिक भोजन देने का प्रयास करती.

सुबह जब वह दफ्तर के लिए तैयार होने कमरे में जाते तो उन का साफ- सुथरा कुरता- पजामा, रूमाल, पर्स, चश्मा, कलम ही नहीं बल्कि पालिश किए जूते भी करीने से रखे मिलते और वह गद्गद हो उठते. ढेर सारी दुआएं अपनी छोटी बहू के लिए उन के होंठों पर आ जातीं.

उस दिन को याद कर के तो वह हर बार रोमांचित हो उठते जब वह रोजाना की तरह शाम को दफ्तर से लौटे तो देखा बहूबेटा और पोतापोती सब इस तरह से तैयार थे जैसे किसी शादी में जाना हो. इसी बीच पत्नी किचन से निकली तो उसे देख कर वह और हैरान रह गए. पत्नी ने बहुत सुंदर सूट पहन रखा था और आयु अनुसार बड़े आकर्षक ढंग से बाल संवारे हुए थे. पहली बार उन्होंने पत्नी को हलकी सी लिपस्टिक लगाए भी देखा था.

‘यह टुकरटुकर क्या देख रहे हो? आप का ही घर है,’ पत्नी बोली.

‘पर…यह सब…बात क्या है? किसी शादी में जाना है?’

‘सब बता देंगे, पहले आप तैयार हो जाइए.’

‘पर आखिर जाना कहां है, यह अचानक किस का न्योता आ गया है.’

‘पापा, ज्यादा दूर नहीं जाना है,’ बड़ा मासूम अनुरोध था बहू का, ‘आप झट से मुंहहाथ धो कर यह कपड़े पहन लीजिए. हमें देर हो रही है.’

वह हड़बड़ाए से बाथरूम में घुस गए. बाहर आए तो पहले से तैयार रखे कपड़े पहन लिए. तभी पोतापोती आ गए और अपने बाबा को घसीटते हुए बोले, ‘चलो न दादा, बहुत देर हो रही है…’ और जब कमरे में पहुंचे तो उन्हें अपनी आंखों पर विश्वास ही नहीं हुआ. रंगबिरंगी लडि़यों तथा फूलों से कमरे को सजाया गया था. मेज पर एक बड़ा सुंदर केक सजा हुआ था. दीवार पर चमकदार पेपर काट कर सुंदर ढंग से लिखा गया था, ‘पापा को स्वर्ण जयंती जन्मदिन मुबारक हो.’

वह तो जैसे गूंगे हो गए थे. हठपूर्वक उन से केक कटवाया गया था और सभी ने जोरजोर से तालियां बजाते हुए ‘हैपी बर्थ डे टू यू, हैपी बर्थ डे पापा’ कहा. तभी बहू और बेटा उन्हें एक पैकेट पकड़ाते हुए बोले, ‘जरा इसे खोलिए तो, पापा.’

पैकेट खोला तो बहुत प्यारा सिल्क का कुरता और पजामा उन के हाथों में था.

शिवानी- भाग 1: फार्महाउस पर शिवानी के साथ क्या हुआ

विवाह के बाद का 1 महीना कब बीत गया, शिवानी को पता ही नहीं चला. बनारस के जानेमाने समृद्घ, स्नेहिल, सभ्य परिवार की इकलौती बहू बन कर शिवानी खुद पर नाज करती थी. बीएचयू में ही मंच पर एक कार्यक्रम पेश करते हुए वह कब गौतम दंपती के मन में उन के इकलौते बेटे अजय की दुलहन के रूप में जगह बना गई, किसी को पता ही न चला.

यह रिश्ता बिना किसी अवरोध के तय हो गया. शिवानी भी अपने अध्यापक मातापिता रमेश और सुधा की इकलौती संतान थी. गौतम का अपना बिजनैस था. परिवार में पत्नी उमा, बेटा अजय, उन के छोटे भाई विनय और उन की पत्नी लता सब एकसाथ ही रहते थे. उमा और लता में बहनों जैसा प्यार था. विनय और लता बेऔलाद थे. अपना सारा स्नेह अजय पर ही लुटा कर उन्हें चैन आता था.

गौतम परिवार में शिवानी का स्वागत धूमधाम से हुआ था. अजय पिता और चाचा के साथ ही बिजनैस संभालता था. लंबाचौड़ा बिजनैस था, जिस में टूअर पर जाने का काम अजय ने संभाल रखा था. विवाह के बाद की चहलपहल में समय जैसे पलक झपकते ही बीत गया.

एक दिन औफिस से आ कर अजय ने शिवानी से कहा, ‘‘अगले हफ्ते मुझे इंडिया से बाहर कई जगह टूअर पर जाना है.’’

यह सुन कर शिवानी एकदम उदास हो गई, पूछा, ‘‘मुझे भी ले जाओगे?’’

‘‘अभी तो तुम्हारा पासपोर्ट भी नहीं बना है. पहले तुम्हारा पासपोर्ट बनवा लेते हैं, फिर अगली बार साथ चलना.’’

घर में शिवानी की उदासी सब ने महसूस की. उमा ने कहा, ‘‘विवाह की भागदौड़ में ध्यान ही नहीं रहा कि पासपोर्ट की जरूरत पड़ सकती है. कोई बात नहीं बेटा, अगली बार साथ चली जाना. इस के तो टूअर लगते ही रहते हैं… ये दिन हम सासबहू मिल कर ऐंजौय करेंगे.’’

उमा के स्नेहिल स्वर पर अपनी उदासी एकतरफ रख शिवानी को मुसकराना ही पड़ा.

लता ने भी कहा, ‘‘अब इस के लिए अच्छेअच्छे गिफ्ट्स लाना… भरपाई तो करनी पड़ेगी न.’’

सभी शिवानी का मूड ठीक करने के लिए हंसीमजाक करते रहे. शिवानी भी फिर धीरेधीरे हंसतीमुसकराती रही.

रात को एकांत मिलते ही अजय ने कहा, ‘‘मेरा भी मन तो नहीं लगेगा तुम्हारे बिना पर मजबूरी है… अब बाहर के काम मैं ही संभालता हूं. जल्दी निबटाने की कोशिश करूंगा. तुम बिलकुल उदास मत होना. आराम से घूमनाफिरना और फिर हम टच में तो रहेंगे ही. विवाह के बाद अपने दोस्तों से भी नहीं मिली हो न… सब से मिलती रहना. मैं जल्दी आ जाऊंगा.’’

शिवानी का मन उदास तो बहुत था पर अजय के स्पर्श से मन को ठंडक भी पहुंच रही थी. अजय की बाहों के सुरक्षित घेरे में वह बहुत देर तक चुपचाप ऐसे ही बंधी पड़ी रही. 2 दिन बाद अजय चला गया. शिवानी को लगा जैसे वह अकेली हो गई है. वह सोचने लगी कि कैसा होता है पतिपत्नी का रिश्ता. जो कुछ दिन पहले तक अजनबी था, आज उसी के बिना एक पल भी रहना मुश्किल लगता है, सब कुछ उसी के इर्दगिर्द घूमता रहता है.

उमा और लता ने उसे कुछ उदास सा देखा, तो उमा ने कहा, ‘‘जाओ बहू, अपने मम्मीपापा के पास कुछ दिन रह आओ, लोकल मायके में अकसर रहने को नहीं मिलता है… जब भी गई हो थोड़ी देर में लौट आई हो. अब कुछ दिन रह लो. टाइमपास हो जाएगा.’’

शिवानी को मायके आ कर अच्छा लगा. रमेश और सुधा बेटी की ससुराल से पूरी तरह संतुष्ट थे.

सुधा ने कहा भी, ‘‘बेटा, वे बहुत अच्छे लोग हैं. उन के साथ तुम हमेशा प्यार से रहना. बहुत ही कम लड़कियों को ऐसा घरवर मिलता है.’’

अजय फोन पर तो शिवानी के संपर्क में रहता ही था. 2 दिन हुए थे. शिवानी के दोस्तों जिन में लड़केलड़कियां दोनों शामिल थे, सब ने शिवानी के लिए एक पार्टी रखी.

उस की सहेली रेखा ने कहा, ‘‘तुम्हारे लिए ही रखी है पार्टी. आजकल बोर हो रही हो न? कुछ टाइमपास करेंगे. खूब धमाल करेंगे.’’

शिवानी ने अजय को फोन पर पार्टी के बारे में बताया, तो वह खुश हुआ. बोला, जरूर जाना…ऐंजौय करो.

पिता रमेश ने तो सुन कर ‘‘हां, जाओ,’’ कहा पर मां सुधा ने मना करते हुए कहा ‘‘दिन भर जहां मन हो, घूमफिर लो, पर रात में रुकना मुझे अच्छा नहीं लगता.’’

‘‘अरे मम्मी, संजय के फार्महाउस पर पार्टी है और अब तो मैं मैरिड हूं. आप चिंता न करें. सब पुराना गु्रप ही तो है.’’

‘‘नहीं शिवानी, मुझे इस तरह रात में रुकना पसंद नहीं है.’’

सुधा शिवानी के रात भर बाहर रुकने के पक्ष में बिलकुल नहीं थीं पर शिवानी ने जाने की तैयारी कर ही ली. तय समय पर वह तैयार हो कर रेखा के घर गई. वहां अनिता, सुमन, मंजू, सोनिया, रीता, संजय, अनिल, कुणाल, रमन सब पहले से मौजूद थे. सब पुराने सहपाठी थे. सब की खूब जमती थी. संजय का फार्महाउस बनारस से बाहर 1 घंटे की दूरी पर था. 2 कारों में सब 1 घंटे में फार्महाउस पहुंच गए.

इन सब में रीता, रमन और शिवानी विवाहित थे. सब मिल कर चहक उठे थे. 6 बज रहे थे. सब से पहले कोल्ड ड्रिंक्स का दौर शुरू हुआ. सब एकदूसरे का गिलास भरते रहे. खूब हंसीमजाक के बीच भी शिवानी को अपना सिर भारी होता महसूस हुआ. वह थोड़ा शांत हो कर एक तरफ बैठ गई. उस के बाद म्यूजिक लगा कर सब थिरकने लगे. सब लोग कालेज स्टूडैंट्स की तरह मस्ती के मूड में थे. वहीं एक सोफे पर शिवानी निढाल सी बैठी थी.

रेखा ने कहा, ‘‘तू किसी रूम में जा कर थोड़ा लेट ले.’’

‘‘हां ठीक है.’’

संजय के फार्महाउस की देखभाल माधव काका और उन की पत्नी करते थे. बहुत पुराने लोग थे. संजय ने उन्हें आवाज दी, ‘‘काकी, शिवानी को एक रूम में ले जाओ और आराम करने देना इसे. इस की तबीयत ठीक नहीं है.’’

रेखा भी साथ जा कर शिवानी को लिटा आई. फिर सब के साथ डांस में व्यस्त हो गई. सब ने जम कर धमाल किया. खूब डांस कर के थक गए तो माधव और जानकी ने सब का खाना लगा दिया. सब डिनर के लिए शिवानी को उठाने गए पर वह गहरी नींद में बेसुध थी.

रेखा ने कहा, ‘‘इसे सोने दो. उठेगी तो खा लेगी. यह तो शादी के बाद कुछ ज्यादा ही नाजुक हो गई है?’’

सब इस मजाक पर हंसने लगे.

सब ने डिनर किया. उस के बाद जिस का जहां मन किया, सोने के लिए लेट गया. रेखा, रीता, सुमन दूसरे कमरे में जा कर सो गई थीं. इस फार्महाउस में 3 रूम थे. तीसरा रूम इस समय खाली था. शिवानी को कोई होश नहीं था. वह बिलकुल बेसुध थी. रात को 3 बजे संजय ने सब पर एक नजर डाली. सब गहरी नींद में सोए थे. संजय चुपचाप उठ कर सीधा शिवानी के रूम में गया. उस ने शिवानी पर कामुक नजरें डाली. शिवानी को वह पहले से ही पसंद करता था.

आज उस ने शिवानी के ड्रिंक्स में नशीला पदार्थ मिला दिया था. यह सब प्रोग्राम उस ने सोचसमझ कर बनाया था. दरवाजा अंदर से बंद कर के वह शिवानी की तरफ बढ़ गया.

शिवानी ने बेहोशी में ही हाथपांव मारे, अपने को बचाने की कोशिश भी की, लेकिन नशे के असर से उस की आंख ही नहीं खुल रही थी. हाथपांव भी निर्जीव ही लग रहे थे.

संजय अपने इरादे में सफल हो चुका था. शिवानी के साथ जबरदस्ती संबंध बना कर वह अपनी योजना के सफल होने पर मुसकराता हुआ कपड़े पहन कर रूम से निकल कर बाकी दोस्तों के बीच जा कर सो गया.

सुबह सब से पहले नशे का असर खत्म होते ही शिवानी की ही आंखें खुलीं.

जरा होश आया तो महसूस हुआ कि उस के साथ बीती रात क्याक्या हुआ है. वह कांप उठी. गुस्से के कारण उस का मन हुआ अभी जा कर बलात्कारी को जान से मार दे. आवेश में वह बिस्तर से उठी और कांपते कदमों से सिर पकड़ कर ड्राइंगरूम में जाते ही चौंक गई.

सब सोए पड़े थे. दूसरे रूम में भी झांका. सब सो रही थीं. शिवानी के पैर डगमगा गए कि यह क्या हो गया. उसे तो यह भी नहीं पता कि किस ने रेप किया है… किस से क्या कहेगी, वह अब क्या करेगी… तनमन से निढाल वह वापस बैड पर आ गिरी.

आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे. वह बहुत देर तक रोती रही. मन हुआ कि चीखचीख कर सब को बता दे कि उस के साथ क्या अनर्थ हुआ है. फिर धीरेधीरे सब 1-1 कर उठते गए. सब उस के पास उस की तबीयत पूछने आ रहे थे. उस ने सब लड़कों के चेहरे पढ़ने की कोशिश की पर किसी के चेहरे से उसे कुछ पता नहीं चल सका.

मेरी बेटी गलत संगत के कारण कैरियर पर ध्यान नहीं दे रही है, क्या करूं?

सवाल

हमारी 18 साल की बेटी है, जो शुरू में तो पढ़ाई में काफी अच्छी थी लेकिन गलत संगत के कारण अब वह न तो हमारी बात मानती है और न ही अपने कैरियर पर ध्यान दे रही है. हम उस के कैरियर को ले कर काफी चिंतित हैं. कैसे उसे सही राह दिखाएं, कुछ समझ नहीं आ रहा?

जवाब

जैसेजैसे बच्चों की उम्र बढ़ती है उन्हें अपने पेरैंट्स से ज्यादा अपने फ्रैंड्स की बातें सही लगने लगती हैं. कई बार वे उन के प्रभाव में इतना अधिक आ जाते हैं कि सहीगलत में फर्क नहीं कर पाते. ऐसे में आप उन्हें प्यार से सही राह पर लाइए और समझाइए कि अगर अभी पढ़ाई पर ध्यान नहीं दिया तो आगे जा कर नुकसान उठाना पड़ेगा. हो सकता है आप की बात उसे समझ आ जाए वरना सख्ती ही बरतनी होगी.

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