Download App

सुरक्षा को लेकर खेला गया नाटक

पटियाला, पंजाब में ‘खालिस्तान मुर्दाबाद’ के नारे लगाने से पैदा हुए झगड़ों पर कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए. ये झगड़े कब किस शक्ल में देश भर में होंगे या हो भी रहे होंगे पर सुॢखयां बन नहीं रहे, कहना कठिन है. इतना जरूर है कि देश की एक बड़ी जनता को माचिस की डिब्बियां खाने की जगह पकड़ा दी गई हैं और उन्हें सिखा दिया गया है कि जब कभी पेट की भूख तो सताए तो इस का इस्तेमाल कर ले और चाहे जैसे कर लें.

राजनीतिक मंचों पर प्रधानमंत्री से ले कर निगम पार्षद और पंचायत मेंबर, टीवी न्यूज चैनल, ट्विटर, फेसबुक, धाॢमक आयोजन, यात्राओं के लिए तैयारियां सभी इन डिब्बियों में तीलियां भर रहे हैं और जनता को कह रहे हैं कि यही तीलियां देश की आस्थिता हैं, सुरक्षा है, एकता हैं, अस्तिता हैं. तीलियों से आग ही लगेगी, खाना नहीं पकेगा क्योंकि खाना तो तब मिले जब बेरोजगारी दूर हो, मंहगाई पर काबू हो. यह आग समाज के विभिन्न वर्गों में लगाने के लिए है. ङ्क्षहदूमुसलिम आग तो सब से ज्यादा लगाई जा रही है.

अब ङ्क्षहदू सिख शुरू हो गर्ई है. ङ्क्षहदू अपर फास्ट लोअर कास्ट आग हर समय जलती रहती है पर उस में लपटें नहीं निकलतीं, सिर्फ धुंआ रहता है, दमघोंटू और जहरीला. देश जनता की ख्याति, विशालता, बहुलता को यह आज नष्ट कर रही है. राजनीतिक रोटियां इस आग पर खूब पक रही हैं. इसी आगे पर धाॢमक पूरियां तली जा रही हैं. मेवे से भरा हलवा तैयार हो रहा है और 56 भोग लग रहे हैं.

पटियाला में जो हुआ वह उन काले दिनों की याद दिलाता है जब ङ्क्षमडरावाला के नेतृत्व में पूरा पंजाब एक छावनी बन गया था और गैर सिख को पंजाब में घुसने तक में डर लगता था. यह वह जमाना था जब दिल्ली और चंडीगढ़ के बीच जो रास्ता पंजाब से गुजरता था उस तक पर लोग न जा कर 20-25 किलोमीटर अतिरिक्त चलने लगे थे कि हरियाणा में हो कर ही चंडीगढ़ पहुंचें.

पंजाब में भारतीय जनता पार्टी और उस की पूर्व समर्थक अकाली दल की बुरी तरह की हार, चंडीगढ़ को ले कर विवाद, प्रधानमंत्री का चुनावों से पहले सुरक्षा को ले कर खेला गया नाटक, कृषि कानूनों के खिलाफ  सिख किसानों की मुखरता सब देशभर में बांटी गई माचिस की डिब्बियों का नतीजा हैं.

अलगावबादी या देशद्रोही वे नहीं हैं जो आज जेलों में बंद है बल्कि वे हैं जिन के कहने पर वे राजनीतिबाजी, छात्र, उदारपंथी, प्रोफेसर, विधारक बंद है या मुकदमों के मारे हैं. ये लोग जो असल में कोई मंदिर, पूजापाठ केंद्र धर्म से जुड़ी संस्था, धर्म से जुड़ा व्यापार, धर्म के नाम पर पैसे देेने वाले मशीन चला रहे हैं, असल में देश के समाज को छिन्नभिन्न कर रहे हैं. अताॢकक बातों को सिरमाथे रख रहे हैं. पढऩा छोड़ कर व्हाट्सएप मैसेजों की लगाई ङ्क्षचगारियों को ज्ञान की रोशनी समझ रहे हैं. देश कल अगर बिखरेगा तो उन के कारण जो नारे के रूप में अफगानिस्तान से लेकर थाईलैंड तक वे अखंड भारत का हल्ला मचा रहे हैं और असल में महाभारत की तरह अपने चचेरे भाइयों से लड़ाई को धर्म युद्ध का नाम देकर, मौत को गले लगा कर सदियों बाद भी उन कहानियों पर अपना विश्वास जता सकते हैं जिस में विभाजन की बात है, निर्माण की कहीं नहीं.

ट्रेवल स्पेशल: तो यूं होगा सफर सुहाना

बच्चों के साथ सफर करना बहुत ही चुनौतीपूर्ण हो सकता है लेकिन थोड़ी जागरूकता और थोड़ी सी सतर्कता के साथ आप अपने सफर को यादगार बना सकते हैं. बच्चों के साथ सड़क के सफर यानी रोड ट्रिप के कुछ फायदे हैं तो कुछ चुनौतियों का सामना भी करना पड़ता है. इस दौरान आप बच्चों के साथ अपने सब से अच्छे पल तो गुजारेंगे लेकिन कुछ संकेतों पर भी विचार कर अपनी रोड ट्रिप को मजेदार बना सकते हैं तो देर किस बात की, तैयार हो जाइए एक मजेदार और सुहाने रोड ट्रिप के लिए.

रोड ट्रिप के टिप्स

द्य पहले चैक करें कार : कार में सबकुछ ठीक है कि नहीं, सब से पहले इसे जांच लें. किसी भी सड़क के सफर पर जाने से पहले कार का रखरखाव सुनिश्चित कर लेना जरूरी है. साथ ही, रास्ते पर अप्रत्याशित स्थितियों से निबटने के लिए टूल किट भी साथ रखें.

द्य बच्चों की सुरक्षा अहम : बच्चों को सफर पर ले जा रहे हैं तो बच्चों के लिए कार में उचित सीट की व्यवस्था होनी जरूरी है. अगर आप को सीट की व्यवस्था करना नहीं आ रहा या ऐक्स्ट्रा सीट ऐडजस्ट करने में दिक्कत आ रही है तो विशेषज्ञ से इस के लिए संपर्क करें.

द्य ट्रिप की प्री-प्लानिंग : रोड ट्रिप पर जाने से पहले बच्चे का मैडिकल चैकअप करा लें. साथ ही कार में मैडिसिन किट भी रखें. अगर आप को या बच्चे को स्वास्थ्य संबंधी कोई भी परेशानी या गड़बड़ हो तो अपनी रोड ट्रिप की तारीख को आगे बढ़ा लें. यदि संभव हो तो चिकित्सक द्वारा निर्धारित सभी दवाओं को अपने साथ रख लें क्योंकि बच्चों की सेहत से ज्यादा जरूरी आप के लिए कोई दूसरी चीज नहीं है.

द्य समय व मौसम का चुनाव : आप जहां जा रहे हों वहां का मौसम ऐसा हो जिस में न ज्यादा सर्दी हो और न ज्यादा गरमी, क्योंकि बच्चे ज्यादा सर्दी या ज्यादा गरमी बरदाश्त नहीं कर पाते हैं. अपने साथ छाता और रेनकोट भी जरूर रख लें क्योंकि हो सकता है कि आप जहां जा रहे हों वहां बारिश हो रही हो या हो जाए. इसी के साथ अगर सर्दी या ठंड वाली जगहों पर जा रहे हैं तो अपने साथ गरम कपड़े भी रख लें.

द्य फास्टैग रिन्यू करा लें : आजकल रोड पर चलते हुए बारबार टोल टैक्स देना पड़ता है, इसलिए फास्टैग में खासे पैसे रखें. कई जगह एक जर्नी पर हजार रुपए तक के टौलटैक्स हो सकते हैं. एक जर्नी में 3-3, 4-4 कर टोल प्लाजा आ जाते हैं. पहले से इंतजाम करें.

द्य नियमित अंतराल पर ब्रेक लें : बच्चों के साथ रोड ट्रिप का मजा ले रहे हैं तो नौनस्टौप सफर न करें. बच्चों को भी लगातार सफर पसंद नहीं आता. थोड़ी मस्ती करने के लिए आप बीचबीच में ब्रेक जरूर लें. इस के साथ ही, बच्चों को रास्ते में आने वाली चीजों व जगहों के बारे में जरूरी जानकारियां देते चलें. इस से बच्चे सफर को ज्यादा एंजौय करेंगे और ये जानकारियां भविष्य में उन के काम आएंगी. सड़क के किनारे बने रिजौर्ट और ईटिंग प्लेस कई बार काफी भरे हो सकते हैं. हमेशा भीड़ का अनुमान लगा कर चलें.

द्य पैट्रोल : गाड़ी में हमेशा कम से कम एकचौथाई टैंक भरा रहे. पैट्रोल पंप आते ही पैट्रोल भरवाने में आलस्य न करें कि आगे भरवा लेंगे. कई बार पैट्रोल पंप फ्लाईओवर के नीचे छूट सकता है.

द्य खानेपीने का सामान रखें : बच्चों को जंक फूड्स व रोड के किनारे मिलने वाले फूड्स ज्यादा पसंद होते हैं लेकिन उन के लिए आप कभी रोड सफर के दौरान रोड साइड रैस्टोंरैंट से खुले, तलेभुने खाद्य पदार्थ या जंक फूड्स न खरीदें. बच्चों को जो भी पसंद हो, उसे आप घर पर ही तैयार कर ले जाएं, जैसे तरहतरह के जूस, चिप्स, पिज्जा, बर्गर, फ्रैंच फ्राइज व सैंडविच खाने की होममेड चीजें आदि.

सड़क के किनारे मिलने वाले जंक फूड्स या स्ट्रीट फूड बासी होने के साथ हाइजीनिक नहीं होते. बच्चे हों या बड़े, दोनों के लिए इस तरह का खाना नुकसानदेह हो सकता है. इस के साथ ही अपने साथ अच्छी मात्रा में पीने का पानी भी जरूर रखें.

द्य रास्तेभर करें मौजमस्ती : बच्चे के सामने यह कभी जाहिर न करें कि आप थके हुए हैं या बोरिंग महसूस कर रहे हैं क्योंकि वे बड़ों के थक जाने या बोर होने पर परेशान हो उठते हैं. बच्चों का एनर्जी लैवल बहुत ज्यादा होता है और वे चाहते हैं कि बड़े भी उन के साथ वही एनर्जी दिखाएं.

आप को सफर के दौरान बच्चों के मूड का पूरा खयाल रखना होगा. इस के लिए आप बच्चों को पसंद आने वाली स्टोरी बुक्स और कुछ गेम्स भी अपने साथ रखें. इस से जब आप थोड़ा थके होंगे तो गेम्स व स्टोरी बुक्स उन का ध्यान भटका देंगे और तब आप आराम कर सकेंगे.

द्य रुचि का रखें खयाल : बच्चे का हर समय ध्यान व उन की खास देखभाल करना आप को मानसिक व शारीरिक रूप से जरूर थका देगा. बच्चों के साथ आप को अपना भी खयाल रखना चाहिए. अपने साथ अपने पार्टनर की भी पसंद की चीजें सफर के दौरान अपने साथ ले जाएं. केवल बच्चों का ही खयाल रखने के चक्कर में आप खुद के साथ नाइंसाफी न कर डालें. इस मामले में थोड़ा स्वार्थी हो जाना बुरा नहीं क्योंकि आप खुश रहेंगे, तभी बच्चों को खुश रख पाएंगे.

ये बातें भी हैं जरूरी

रोड ट्रिप के दौरान गाड़ी में हमेशा फर्स्टएड बौक्स जरूर रखें. इस के अलावा बच्चों व बड़ों की जरूरी दवाएं, साफसफाई रखने की किट, कुछ टिश्यू पेपर और हैंड सैनिटाइजर का आप के पास होना जरूरी है.

जहां जाएं, बता कर जाएं

जाने से पहले अपनी ट्रिप की पूरी जानकारी करीबी दोस्त व परिवार वालों को दे कर जाएं. आप कहां जा रहे हैं और कब तक आएंगे जैसी जानकारी भी दें. कभी इमरजैंसी होने पर वे लोग आप से संपर्क साध सकते हैं. इस के साथ ही संभव हो तो अपने घर पर किसी न किसी को छोड़ कर जाएं ताकि आप के घर की देखभाल होती रहे.

तीर्थ पर्यटन

तीर्थ स्थान पर जाना पर्यटन नहीं होता. तीर्थ स्थानों की भीड़, चढ़ावे की खिचखिच, प्रसाद के नाम पर मिली मिठाई आप को परेशान कर सकती है. पर्यटन को शुद्ध नेचर या ऐतिहासिक स्थानों को देखने के लिए रखें ज?हां हर कोई आनंद ले सके, बच्चे भी.

मुद्दा: मंदिर-मसजिद पर लाखों खर्च, शिक्षा सरकार के भरोसे

जिस चीज से मनुष्य जाति का भला होने वाला है वह है एक मात्र शिक्षा व ज्ञान, जो स्कूलों में मिलता है, न कि मंदिर या मसजिद में. शिक्षा के बुनियादी सवालों से भटक कर आज हम मंदिरमसजिदों के फुजूल  झगड़ों में उल झ गए हैं. यह मूर्खता के अलावा कुछ नहीं.

अपने देश में आम लोगों द्वारा मंदिर, मसजिद, चबूतरा, मजार आदि का निर्माण खुद के दम पर चंदे और दान से तैयार कर लिया जाता है. भले ही गांव की आबादी थोड़ी ही क्यों न हो. भारत के अधिकतर गांवों में मंदिर, मसजिद, चर्च, चबूतरा, मजार इत्यादि में से कुछ न कुछ जरूर पाए जाते हैं.

अगर एक ही गांव में 2 या 3 धर्म के लोग रहने वाले हैं तो सभी धर्मों के लोग अपनेअपने धर्मस्थल का निर्माण अपनेअपने धर्म के लोगों के सहयोग से कर लेते हैं. भले ही उन के खुद के घर  झोंपड़ी ही क्यों न हों. वे आपसी सहयोग से कोई न कोई धार्मिकस्थल का निर्माण जरूर कर लेते हैं, क्योंकि बात आखिर उन के धर्म को बड़ा दिखाने की भी रहती है.

सदियों से लोगों में धर्म के प्रति इतनी आस्था भर दी गई है कि वे काल्पनिक ईश्वर या अल्लाह के लिए मरमिटने, एकदूसरे को नीचा दिखाने और लड़ाई झगड़े तक करने के लिए तैयार हो जाते हैं.

दूसरी ओर अपने देश में शिक्षा जैसी बुनियादी जरूरत के लिए सरकार पर निर्भर रहना पड़ता है. स्कूल भवन आदि निर्माण के लिए आम लोगों द्वारा एक पैसा भी दान के रूप में नहीं दिया जाता है. अपने देश में सभी सरकारी स्कूल सरकार के भरोसे ही चल रहे हैं जबकि हम इंसानों को शिक्षा से ही तरक्की की राह प्राप्त होती है.

ज्योतिबा फूले ने कहा था, ‘‘मंदिर का मतलब होता है मानसिक गुलामी का रास्ता. स्कूल का मतलब होता है जीवन में प्रकाश का रास्ता. मंदिर की जब घंटी बजती है तो हमें संदेश देती है कि हम धर्म, अंधविश्वास, पाखंड और मूर्खता की ओर बढ़ रहे हैं. वहीं जब स्कूल की घंटी बजती है तो वह यह संदेश देती है कि हम तर्कपूर्ण ज्ञान और वैज्ञानिकता की ओर बढ़ रहे हैं. अब तय आप को करना है कि आप को जाना कहां हैं.’’

जिस प्रकार अपने देश में मंदिर, मसजिद, गुरुद्वारे, मठ आदि मौजूद हैं उस से स्पष्ट है कि एक साजिश के तहत आम इंसान को धर्म के नाम पर पाखंड, अंधविश्वास और मूर्खता की ओर ढकेलने के लिए ऐसे धार्मिकस्थल ही नहीं, बल्कि धर्मग्रंथों तक की रचना कर दी गई है और आज भी किया जा रहा है. आज भी आम इंसानों को इसी चक्रव्यूह में गोलगोल घुमाने का प्रयास किया जा रहा है. कल तक इस की दुकानें छोटी जरूर थीं लकिन आज मौल का रूप लेती जा रही हैं. आज भी इस पाखंड और अंधविश्वास के बाजार को बढ़ावा देने की कोशिश जारी है.

किसी भी धर्म के लोगों द्वारा सब को शिक्षा देने की बात नहीं की गई थी. यहां तक कि हिंदू धर्मावलंबियों द्वारा निचले तबके को शिक्षा से दूर रखने की साजिश रची गई थी. इसीलिए भारत में निचले तबके के लोगों को सैकड़ों वर्षों तक शिक्षा जैसी बुनियादी जरूरतों से काफी दूर रहना पड़ा था. निचले तबके के लोगों को धार्मिक ग्रंथों को पढ़ने से रोकने की कोशिश की गई थी. दूसरी ओर निचले तबके को समाज में इतने भेदभाव और छुआछूत जैसे घिनौने षड्यंत्रों में उल झा दिया गया है कि यह वर्ग आज भी उस बीमारी से उबर नहीं पाया है.

अगर देखा जाए तो हम मनुष्यों को शिक्षा की बदौलत ही पशु से इंसान के रूप में बदलने में मदद मिली है. सचाई यह है कि आज भी जिस चीज से मनुष्य जाति का भला होने वाला है वह एकमात्र शिक्षा और ज्ञान है, जो स्कूलों में मिलता है, न कि मंदिर और मसजिदोंचर्चों में.

किसी भी मंदिर या मसजिद से जुड़े लोग आम लोगों को शिक्षित करने की जिम्मेदारी नहीं उठाते. इस के पीछे की वजह यह है कि वे समाज के लोगों को पाखंडी, अंधविश्वासी और अवैज्ञानिक बनाने का काम कर रहे हैं क्योंकि उन्हें पता है कि अगर लोगों को ज्ञान और वैज्ञानिकता की शिक्षा दी जाने लगेगी तो वे अवैज्ञानिकता, पाखंड, अंधविश्वास और मूर्खता को नहीं मानेंगे. सो, वे अपने पैरों पर कुल्हाड़ी कभी नहीं चलाएंगे.

शिक्षा की बदौलत ही इंसान इस मुकाम पर पहुंचा है कि आज मनुष्य का जीवन दिनोंदिन विलासितापूर्ण और आरामदायक होता जा रहा है. लोग शिक्षा के कारण ही अपने अधिकारों के प्रति सचेत हो रहे हैं. लोग अंधविश्वास, पाखंड से दूर हो रहे हैं. लोग वैज्ञानिकता की ओर उन्मुख हो रहे हैं. कल तक इंसान को काफी संघर्ष करना पड़ता था. हालांकि, आज भी मानवजाति संघर्षरत है. उस के संघर्ष कम नहीं हुए हैं और यही संघर्ष उस को पशु से मनुष्य के रूप में परिष्कृत कर रहा है.

मंदिरमसजिद जरूरी या स्कूल

मैं ने अपने दौरों के दौरान कुछ गांवों को करीब से देखने का प्रयास किया तो पाया कि कुछेक गांवों को छोड़ कर लगभग सभी गांवों में छोटेबड़े एकदो मंदिर या मसजिद जरूर मिले. मैं यहां सिर्फ एक गांव का ब्योरा दे रहा हूं. उस गांव की आबादी लगभग 1,200 है. उस गांव में 5 मंदिर हैं.

प्रत्येक मंदिर पर लाखों रुपए खर्च किए गए हैं. सिर्फ एक मंदिर की भव्यता की बात की जाए तो मंदिर का प्रांगण संगमरमर से बना हुआ है. अंदर फर्श पर टाइल्स लगे हुए हैं. मंदिर की खिड़कियां और दरवाजे मोटेमोटे लोहे की ग्रिल से बने हुए हैं.

उस मंदिर की बाउंड्री वौल काफी कलात्मक बनी हुई है. मंदिर के चारों तरफ सुंदर लाइटिंग की व्यवस्था की गई है. मंदिर के प्रांगण में सुंदर फूलों की क्यारियां हैं. जगहजगह नल की व्यवस्था की गई है.

मंदिर के गेट के पास हैंडपंप लगे हुए हैं. अन्य मंदिरों में इतनी सजावट तो नहीं है, लेकिन उस गांव के लोगों द्वारा धीरेधीरे उन्हें भी सुंदर बनाने के प्रयास जारी हैं. उस गांव के लोगों द्वारा चंदा इकट्ठा कर मंदिर की भव्यता प्रदान की गई है.

गांव के एक सज्जन ने बड़े गर्व से बताया, ‘‘मंदिर निर्माण के लिए बाहरी लोगों से एक रुपए की भी मदद नहीं ली गई है. सबकुछ ग्रामीणों के चंदे से किया गया है.’’

लगभग ऐसे ही सभी भारतीय गांवों में मंदिर, मसजिद, गुरुद्वारे, मठ इत्यादि में से कोई न कोई एकदो धर्मस्थल जरूर पाए जाते हैं.

वहीं, उस गांव में स्कूल की बात की जाए तो एकमात्र सरकारी प्राइमरी स्कूल है. गांव में एक भी लाइब्रेरी नहीं है. उस स्कूल की बाउंड्री वाल टूटीफूटी है. उस गांव के दोचार ग्रामीणों से बात करने पर पता चला कि उस गांव में सरकारी स्कूल के प्रांगण में गायबकरियां भी चली जाती हैं क्योंकि मुख्य गेट टूटे हुए हैं.

उस गांव के स्कूल के प्रधानाध्यापक रंजन प्रसाद ने बताया, ‘‘गांव के अधिकतर लोग स्कूल की संपत्ति को सरकारी सम झ कर दुरुपयोग करते हैं. यहां के कुछ बच्चे, जो इसी स्कूल में पूर्व में पढ़ कर निकल चुके हैं, दूसरे स्कूल में शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं, वे स्कूल बंद होने के बाद इस में तोड़फोड़ भी कर देते हैं. स्कूल बंद होने के बाद इंसान से ले कर जानवर तक यहां अपना बसेरा बना लेते हैं. स्कूल में अव्यवस्थित शौचालय गांववासियों के सौजन्य से टूट चुका है. वहीं संपूर्ण स्कूल की बात की जाए तो पूरा स्कूल जीर्णशीर्ण अवस्था में है.

‘‘स्कूल के बारे में गांव के लोग सुरक्षा के लिए चिंतनशील नहीं रहते हैं. इसलिए यह स्कूल ग्रामीणों के नजर में महत्त्वहीन है, जबकि इस गांव के अधिकतर बच्चे इसी स्कूल से पढ़ कर निकले हैं. कुछ वर्तमान अध्ययनरत बच्चों के मातापिताओं ने भी इसी स्कूल से शिक्षादीक्षा ली है. दरअसल उन का प्रारंभिक ज्ञान इसी स्कूल से हुआ है. वे सभी जितनी श्रद्धा से अपने गांव के मंदिरों की देखभाल करते हैं उतना इस स्कूल की करते तो सचमुच यह शिक्षा का मंदिर इस हालत में न होता.’’

डेहरी ओन सोन के एक सामाजिक कार्यकर्ता अवधेश कुमार ने बताया, ‘‘दरअसल अभिभावकों की उपेक्षा के कारण भी सरकारी स्कूलों में पढ़ाईलिखाई ठीक से नहीं हो पा रही है. आम लोग धार्मिक कार्यों के प्रति तो खूब बढ़चढ़ कर हिस्सा लेते हैं और मंदिर, मसजिद, मठ, गुरुद्वारा, चर्च आदि को खूब पल्लवितपुष्पित करते रहते हैं. उस के लिए चंदा वगैरह इकट्ठा करते रहते हैं. जबकि, इन चीजों से गांव के भविष्य का निर्माण नहीं होता है. जिन चीजों से उन के बच्चों का भविष्य संवरता है, उस ओर लोगों का ध्यान बिलकुल नहीं है. अगर समाज के लोगों द्वारा स्कूल को सिर्फ समर्थन मिलता तो शिक्षा का बंटाधार न होता.

‘‘जबकि, दिनोंदिन गांवगांव में मंदिर, मसजिद, मठ, गुरुद्वारा, चर्च आदि फलफूल रहे हैं और समाज में गहरी पैठ बनाते जा रहे हैं. इस से समाज का भला होने वाला नहीं है. धार्मिक स्थलों और धार्मिक कार्यों से कुछ खास वर्गों को लाभ जरूर हो सकता है लेकिन किसी भी सूरत में धार्मिक दुकानों से आम लोगों का कल्याण होने वाला नहीं है. सदियों से काल्पनिक ईश्वर और ईश्वरीय शक्ति के बारे में ऐसी पट्टी पढ़ाई जा रही है कि लोग आज भी गुमराह होते जा रहे हैं और समाज में यह फैलाया जा रहा है कि इसी से सभी का कल्याण होने वाला है. इसी से मोक्ष की प्राप्ति होगी.’’

होना तो यह चाहिए था कि शिक्षा के मंदिरों को आज के मंदिरों की तरह लोग श्रद्धाभाव से देखते, पूजा करते और सभी बच्चे बिना भेदभाव के शिक्षा ग्रहण करते. लेकिन, शिक्षा के मंदिर को उपेक्षित किया जा रहा है और सरकार के भरोसे पर छोड़ दिया गया.

पैसे वाले लोग व्यावसायिक यानी प्राइवेट स्कूलों में शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं तो गरीबगुरबों के बच्चे इन टूटेफूटे स्कूलों में पढ़ाई कर रहे हैं और अपने भविष्य को संवारने में जुटे हुए हैं.

आम लोगों को आज भी सम झ नहीं आ रहा है कि पढ़ाईलिखाई से ही सभी का भला होने वाला है. इस से भविष्य का निर्माण होने वाला है. पूजापाठ और धार्मिक कार्यों से पंडितों, पुजारियों, मठाधीशों, मौलवियों को जरूर फायदा होने वाला है, आम इंसानों को कुछ भी नहीं मिलने वाला. इस से सिर्फ आम लोगों के समय और धन की बरबादी होती है.

लोगों को एक बार जरूर सोचने की जरूरत है कि जो ऐसे धार्मिक स्थलों के निर्माण के लिए दान दे रहे हैं, उस से समाज को क्या फायदा मिलने वाला है? क्या इस से समाज के किसी वंचित वर्ग को फायदा होने वाला है? अगर नहीं तो फिर उस दान को ऐसी जगह क्यों न लगाएं जिस से समाज के किसी जरूरतमंद को फायदा मिले बजाय मंदिरमसजिद के, जो समाज के लोगों के बीच नफरत पैदा कर रहे हैं, पाखंड, ढकोसला, अंधविश्वास और मूर्खता को बढ़ावा दे रहे हैं.

माफी- भाग 1: क्या सुमन भाभी के मुस्कुराहट के पीछे जहर छिपा था?

‘‘आज दफ्तर में राकेश भाईसाहब का फोन आया था,’’ जूतों के फीते खोलते हुए अरुण ने अंजलि को बताया.

‘‘वे कोई खास बात कह रहे थे?’’ कहते हुए अंजलि की आवाज में फौरन अजीब सा खिंचाव पैदा हुआ था.

‘‘वे और सुमन भाभी शनिवार को यहां दिल्ली आ रहे हैं.’’

‘‘किसी खास वजह से आ रहे हैं?’’ कहते हुए अंजलि के माथे पर बल पड़े.

‘‘हां, भाईसाहब अपना चैकअप यहां के किसी बड़े अस्पताल में कराना चाहते हैं. सप्ताहभर रुकेंगे. तुम शिखा और सोनू के कमरे में उन के रहने की व्यवस्था कर देना. शिखा ड्राइंगरूम में सो जाया करेगी और सोनू हमारे पास.’’

अंजलि अपने जेठजेठानी के इस तरह रहने आने पर एतराज प्रकट करना चाहती थी, लेकिन कर न पाई. कुछ महीने पहले ही उस के जेठ राकेश की हालत रक्तचाप बहुत बढ़ जाने के कारण बिगड़ गई थी. सहारनपुर के एक नर्सिंगहोम में उन्हें भरती रहना पड़ा था. डाक्टरों ने रक्तचाप नियंत्रण में न रहने की स्थिति में दिल पर बुरा प्रभाव पड़ने की आशंका जताई थी.

अब वे अपना इलाज कराने के लिए दिल्ली आना चाहते थे. अगर मामला स्वास्थ्य संबंधी न हो कर कुछ और रहा होता तो अंजलि यकीनन उन के अपने घर आने को ले कर एतराज प्रकट करती. फिलहाल उस ने अपने अधरों तक आए विरोध व शिकायत के शब्दों को भीतर ही दबा लिया.

वैसे भी उस के दिल में जेठ के नहीं, बल्कि जेठानी सुमन के प्रति नफरत व गुस्से के भाव व्याप्त थे. उस की शक्ल तक देखना अंजलि को गवारा न था. अतीत में घटी सिर्फ एक घटना के कारण उस ने जेठानी को सदा के लिए अपना पक्का दुश्मन मान लिया था.

‘‘बच्चों के इम्तिहान सिर पर आ गए हैं. उन्हें ज्यादा दिन नहीं रुकना चाहिए,’’ शिकायतीभाव से सिर्फ ऐसा कह कर अंजलि रसोई में चाय बनाने चली गई.

अरुण अपनी पत्नी के मनोभाव समझ रहा था. सुमन भाभी के प्रति अंजलि के मन में जो नफरत भरी हुई थी उस के लिए वह अपनी पत्नी को दोषी भी नहीं मानता था, लेकिन बड़े भाई को घर आ कर ठहरने के लिए इनकार करना भी उस के लिए संभव न था. ऐसी बेरुखी दिखाने के संस्कार उस के अंदर मौजूद नहीं थे.

वह तो बस, इतना चाह रहा था कि भैयाभाभी के आने पर कोई अनहोनी न घटे. सुमन भाभी के कारण अंजलि अतीत में बहुत अपमानित हुई थी. कहीं घर आई भाभी से बदला लेने की कोशिश तो अंजलि नहीं करेगी. इस सवाल ने अरुण को बहुत बेचैन व परेशान कर दिया.

हमारे जीवन में जो तनाव है उस की जड़ में मन की इच्छाएं होती हैं. मन की चाह और यथार्थ में अगर मेल नहीं बैठता तो शारीरिक व मानसिक परेशानियों को जन्म लेने से रोका नहीं जा सकता.

अंजलि सुमन को अपने घर में मेहमान के रूप में नहीं देखना चाहती थी. इस से वह जबरदस्त तनाव का शिकार हो गई. शनिवार के दिन उस के लिए बिस्तर से उठना भी मुश्किल हो गया.

दोपहर को 3 बजे जब राकेश व सुमन सहारनपुर से उन के घर पहुंचे तब उन के खाने के लिए रसोई में सिर्फ पीले चावल तैयार थे और वे भी अरुण ने बनाए थे. इस कारण अरुण जरूर मन ही मन शर्मिंदगी महसूस कर रहा था, लेकिन अंजलि के दिल में ऐसा कोई भाव पैदा नहीं हुआ. भैयाभाभी के लिए उस के दिल में प्रेम व आदरसम्मान का अभाव था और इस कारण बीमारी की हालत में उन के लिए खाना तैयार करने की उस ने कोई जरूरत ही नहीं समझी.

अरुण को सुमन का संतुलित व्यवहार देख कर अवश्य हैरानी हुई. अंजलि की बीमारी व घर में फैली अव्यवस्था देख कर उस की आंखों में पलभर को भी शिकायत या नाराजगी के भाव नहीं उभरे, बल्कि वह तो सफर की थकावट नजरअंदाज कर के बच्चों व बड़ों की भूख मिटाने को रसोई में घुस गई थी.

वह ढेर सारे फल लाई थी. आननफानन उन्होंने फलों की चाट तैयार कर के सब के सामने पेश कर दी. फिर अंजलि व अपने लिए चाय बनाई. बहुत प्रेम से आग्रह कर के उस ने चाय के साथ अपनी देवरानी को बिस्कुट भी खिला दिए.

अंजलि को सुमन का मीठा व अपनत्वभरा व्यवहार चुभ रहा था. ‘अपनी गरज से आई हैं तो कितनी मीठी बन रही हैं. इन की मुसकराहट के पीछे कितना जहर छिपा हुआ है, क्या मैं नहीं जानती,’ मन में ऐसे विचारों की उथलपुथल के चलते अंजलि का सिरदर्द और ज्यादा बढ़ गया.

शाम को सुमन सोनू को ले कर बाजार चली गई. कई तरह की सब्जियां व पनीर खरीद कर लाई. रात के भोजन में मटरपनीर की सब्जी के साथ गरमगरम परांठे बना कर उस ने सब को खिलाए. उस की जिद के सामने मजबूर हो कर अंजलि को भी एक परांठा खाना पड़ा था.

मुनव्वर फारुकी की राह पर चलीं अंजलि अरोड़ा, बॉयफ्रेंड से करवाया ये काम

टीवी शो ‘लॉकअप’ से अपनी जबरदस्त पहचान बनाने वाली अंजलि अरोड़ा इन दिनों सुर्खियों में छाई हुई हैं. वह अपने लव लाइफ को लेकर चर्चा में बनी हुई हैं. अब अंजली अरोड़ा और उनके बॉयफ्रेंड का वीडियो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है. आइए बताते हैं, क्या है इस वीडियो में.

‘कच्चा बादाम’ गर्ल अंजलि अरोड़ा अक्सर अपने बॉयफ्रेंड आकाश के साथ नजर आती हैं. दोनों एक-दूसरे पर खूब प्यार भी लुटाते हुए दिखाई देते हैं. सोशल मीडिया पर एक वीडियो सामने आया है, जिसमें दोनों ज्वैलरी शॉप में साथ नजर आए.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Viral Bhayani (@viralbhayani)

 

आकाश ने अंजलि को एक खूबसूरत सा पेंडेंट भी तोहफे में दिया. आकाश और अंजलि अरोड़ा का यह वीडियो विरल भयानी ने अपने इंस्टाग्राम एकाउंट से शेयर किया है. वीडियो में आकाश अपने हाथों से अंजलि को पेंडेंट पहनाते दिखाई दे रहे हैं.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Anjali Arora (@anjimaxuofficially)

 

तो वहीं अंजलि अरोड़ा के चेहरे पर खुशी झलक रही है. अंजलि अरोड़ा और आकाश का यह वीडियो देख फैंस भी खूब कमेंट कर रहे हैं. एक यूजर ने  अंजलि अरोड़ा को शुभकामनाएं देते हुए लिखा, खुश रहो यार बस. सब खुश रहो अपनी-अपनी जिंदगी में, वही सबसे अच्छी बात है फैंस के लिए.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Anjali Arora (@anjimaxuofficially)

 

एक इंटरव्यू के अनुसार अंजलि अरोड़ा ने मुनव्वर के साथ बढ़ती उनकी नजदीकीयों आकाश का रिएक्शन शेयर किया था. उन्होंने कहा, जलन महसूस करना आम बात है. जब आप किसी से प्यार करते हो और उस इंसान की बॉन्डिंग किसी और के साथ हो तो आपको अजीब महसूस होगा. लेकिन मैं कहूंगी कि आकाश बहुत समझदार है और उनकी इसी खासियत पर मुझे फक्र होता है.

बंगले वाली- भाग 3: नेहा को क्यों शर्मिंदगी झेलनी पड़ी?

मेरा ध्यान पढ़ाई से पूरी तरह हट चुका था. 10वीं में लगातार तीन वर्ष फेल होने के बाद परेशान हो कर पिताजी ने मेरी पढ़ाई छुड़वा दी. मेरी छोटी बहन ही 11वीं में पहुंच गई थी, अब तो स्कूल जाते मुझे भी बहुत शर्म आने लगी थी. पढ़ाई छूटने पर मैं ने चैन की सांस ली और शायद स्कूल के शिक्षकों ने भी… अब तो मैं पूरी तरह आजाद थी, पत्रिकाओं में से खूबसूरती के नुसखे पढ़ कर उन्हें आजमाना, हीरोइनों के फोटो कमरे में चिपकाना और सपनों के राजकुमार का इंतजार करना, ये ही मेरे जीवन का ध्येय बन गए थे.

पर, एकएक कर के सपनों के महल चकनाचूर होने लगे. सुंदरता की वजह से एक से बढ़ कर एक रिश्तों की लाइन लग गई, पर जैसे ही उन्हें पता चलता कि लड़की 10वीं तक भी नहीं पढ़ी, सब पीछे हट जाते, न पिताजी के पास देने के लिए भारीभरकम दहेज था. मेरी वजह से पूरे घर में मातमी सा सन्नाटा पसर गया था, सब मुझ से कटेकटे से रहने लगे. पिताजी भी चारों तरफ से निराश हो चुके थे. तब इन का रिश्ता आया. एकलौता लड़का था, वो भी सरकारी औफिस में क्लर्क. मांबाप गांव में रहते थे, थोड़ीबहुत खेतबाड़ी थी. उन्हें लड़की की पढ़ाई से कोई मतलब नहीं था, वे तो बस सुंदर लड़की चाहते थे. और जैसेतैसे पिताजी ने मेरी नैया पार लगा दी.

फोन की घंटी की आवाज से नेहा हड़बडा कर उठ बैठी. वह फोन उठाती, तब तक फोन बंद हो चुका था. घड़ी पर नजर पड़ते ही नेहा चौंक उठी. उफ, एक बज गया, सोचतेसोचते कब आंख लग गई, पता ही नहीं चला. बच्चों के आने का वक्त होने वाला है, ऐसा लग रहा है जैसे शरीर में जान ही नही है. अपने को लगभग घसीटती हुई वह किचन में पहुंची. प्लेटफार्म पर पड़ा फैलारा, सिंक में पड़े झूठे बरतन, पलकपावड़े बिछाए उसी का इंतजार कर रहे थे.

‘‘हाय, क्या जिंदगी हो गई है… सारी उम्र चौकाबरतन में निकली जा रही है. पर काम तो किसी भी हाल में करना ही पड़ेगा,’’ ऐसा सोच कर वह जैसेतैसे हाथ चलाने लगी.

शाम को पतिदेव ने चाय पीते हुए गौर किया कि रोज की अपेक्षा आज उस के चेहरे पर कुछ ज्यादा ही मायूसी छाई हुई है, तो चुटकी लेते हुए बोल पड़े, ‘‘क्या हुआ…? तुम्हारी वो बंगले वाली नहीं आई क्या, जो चेहरे पर मातम छाया  हुआ है?’’

‘‘नहींनहीं, ऐसी बात नहीं है. वो तो आ गई है… आप को पता है कि वो कौन है?’’

‘‘अरे भाई, मैं अंतर्यामी थोड़े ही हूं, जो मुझे औफिस में बैठेबैठे पता चल जाएगा.’’

‘‘वो मेरे बचपन की सहेली कांची है.’’

‘‘अरे वाह, ये तो खूब रही, तुम्हारे बंगले वाले पचड़े का अंत तो हुआ. तुम हमेशा बंगले वाली से दोस्ती करना चाहती थी, लो, तुम्हारी दोस्त ही आ गई, फिर भी चेहरा लटका हुआ है?’’

‘‘आप को कुछ भी तो पता नहीं है, इसलिए आप ऐसा बोल रहे हैं. स्कूल के दिनों में उस से मेरी लड़ाई हो गई थी, किस मुंह से उस के सामने जाऊंगी.’’

इतना सुनना था कि पतिदेव चाय का प्याला टेबल पर पटकते हुए चीखे, ‘‘ऊपर वाला बचाए तुम से… क्या बच्चों जैसे बातें कर रही हो… उस के सामने नहीं जा सकती तो क्या घर में छुप कर रहोगी? बंगले वाली यहां घूमने नहीं आई, रहने आई है.

“कान खोल कर सुन लो, खबरदर, जो आज के बाद मेरे सामने बंगले वाली का जिक्र भी किया तो मुझ से बुरा कोई नहीं होगा,’’ सुबह से पति की डांट, कांची को देख कर सारे दिन का तनाव, शाम को फिर पति की फटकार, नेहा के सब्र का बांध टूट गया. बाथरूम में घुस कर वह रो पड़ी. सब के सामने तो रो भी नहीं सकती. आंसू देखते ही पतिदेव हत्थे से ही उखड़ जाते हैं, उन्हें कुछ भी समझाना उस के बस के बाहर है.

कांची को सामने आए दो दिन हो चुके थे. दो दिनों से अंदर ही अंदर घुटन और तनाव से उस की हालत ऐसी हो गई थी जैसे वह बरसों से बीमार हो. रात को खाने की थाली में दाल देखते ही जैसे घर में तूफान आ गया. पति ने थाली उठा कर रसोईघर में पटक दी और गुस्से से दहाड़ पड़े, ‘‘तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है क्या? या सारे सब्जी वाले मर गए हैं, या फिर घर में इतनी कंगाली आ गई है कि सब्जी खरीदने के पैसे नहीं बचे? दो-तीन दिन हो गए, इनसान कब तक सब्र करे, सुबह आलू, टिफन में आलू, रात को दाल… इनसान कब तक खाएगा? हद होती है किसी बात की. एक सब्जी खरीदने का काम तुम्हारे जिम्मे है, क्या वो भी नहीं कर सकती?  तुम्हारा ये खाना… तुम ही खाओ, हम लोग अपना इंतजाम कर लेंगे,’’ गुस्से में बच्चों को ले कर पैर पटकते हुए घर से निकल गए.

CANNES 2022: TV सितारों के साथ भेदभाव को लेकर हिना खान और हेली शाह ने तोड़ी चुप्पी

बॉलीवुड और टीवी इंडस्ट्री को लेकर अक्सर ये अफवाह उड़ती है कि बॉलीवुड सितारे  टीवी सितारों को खुद से छोटा समझते हैं. टीवी सितारे कई बार दावा कर चुके हैं कि बॉलीवुड उनके साथ भेदभाव करता है. हाल ही में कांस फिल्म फेस्टिवल के दौरान टीवी सितारों का इस मामले को लेकर दर्द छलका है. आइए बताते हैं पूरी खबर.

दरअसल कांस फिल्म फेस्टिवल में टीवी सितारे और बॉलीवुड सितारे दोनों पहुंचे थे. टीवी सितारों को कांस में बॉलीवुड ने जरा सा भी भाव नहीं दिया. अब हिना खान और हेली शाह ने इस मामले पर चुप्पी तोड़ी है.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by HK (@realhinakhan)

 

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार हिना खान ने बताया था कि उनको इंडियन पवेलियन ने इनविटेशन नहीं दिया था. बॉलीवुड ने हिना खान को पूरी तरह से नजरअंदाज किया. हिना खान ने ये भी बताया कि किस तरह से टीवी सितारों को बॉलीवुड नजरअंदाज करता है. हालांकि भेदभाव होने के बाद भी हिना खान अपने देश से बहुत प्यार करती हैं.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by HK (@realhinakhan)

 

इस साल हेली शाह ने कांस में डेब्यू किया था. अपने डेब्यू के बारे में बात करते हुए हेली शाह ने बताया, टीवी एक्टर होने की वजह से बॉलीवुड ने उनको नजरअंदाज किया.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Helly Shah (@hellyshahofficial)

 

एक महीना पहले ही मैंने डिजाइनर्स के साथ डेट फिक्स की थी. समय आने पर हर किसी ने मुझे मना कर दिया. कोई भी मेरी मदद करने के लिए राजी नहीं था. ऐसे में मेरे मैनेजर को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा. कोई इतना लापरवाह कैसे हो सकता है.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Helly Shah (@hellyshahofficial)

 

कांस का हिस्सा बनने के बाद हिना खान ने बताया था कि इंडियन डिजाइनर उनके कपड़े देने से कतरा रहे थे. इस दौरान हिना खान ने जमाने को बॉलीवुड का असली चेहरा दिखाया था.

हमारी बहू इवाना- भाग 3: क्या शैलजा इवाना को अपनी बहू बना पाई?

“मैडम, मैं यह काम अपनी इच्छा से नहीं कर रहा हूं. कोविड के कारण सुखीरामजी दो साल से अपने मातापिता से नहीं मिले थे. अब पाबंदियां हटीं और सबकुछ खुला तो वे उन से मिलने गांव चले गए. मुझ से उन्होंने कुछ दिनों के लिए मंदिर की देखभाल करने काआग्रह किया था. इसलिए ही मैं मंदिर का कार्यभार संभाल रहा हूं.”

“लेकिन, तुम सुखीरामजी के इतने करीबी कैसे हो गए कि तुम्हें यहां रख कर वे अपने गांव चले गए?”

“मैडम, सुखीरामजी की कोरोना काल में मंदिर बंद रहने पर क्या दशा हो गई थी, यह जानने कोई भी भक्त नहीं आया, जबकि मंदिर में उस के पहले खूब भीड़ रहती थी. सुखीरामजी के परिवार की भूखों मरने की नौबत आ गई थी. उस समय न तो चढ़ावा आ पा रहा था और न ही किसी प्रकार का दान. मेरा घर मंदिर के बगल में ही है. पंडितजी की ऐसी दशा मुझ से देखी न गई. यों तो मैं भी कोई मोटा वेतन नहीं पाता, किंतु सोचा कि जितना भी पाता हूं, उस में अपने परिवार के अतिरिक्त 4 लोगों का पेट तो भर ही सकता हूं. पंडितजी, उन की पत्नी, 10 वर्षीय पुत्र व 5 वर्षीया पुत्री इन दो वर्षों में मुझ पर ही निर्भर थे. आप बताइए कि मुझ से अधिक कौन निकट हो सकता था उन के?”

शैलजा ने कुछ कहने के लिए मुंह खोला ही था कि माधव पुनः बोल उठा, “सुखीरामजी का कहना था कि किसी और पंडित को यदि वे यह काम दे कर जाएंगे तो लौटने पर संभव है मंदिर वह हथिया ले.

“उन्होंने बारबार मुझ से यह निवेदन भी किया था कि मैं पुजारी की वेशभूषा धारण कर ही मंदिर में पूजा आदि का कार्य करूं, ताकि कोई हंगामा न खड़ा कर दे.”

शैलजा के रुके शब्द बाहर आ गए. तनिक कुपित स्वर में वह बोली, “क्या तुम संतुष्ट हो ऐसा कर के? अपना यह बहरूपियापन अच्छा लग रहा है क्या तुम्हें?”

“मैडम, आप सच बताइए कि क्या बहरूपिया मैं हूं? मेरे विचार से बहरूपिए तो वे लोग हैं, जो मेरे साथ दोगला व्यवहार करते हैं. जब मैं एक सफाई कर्मचारी के रूप में उन के सामने होता हूं, तो उन का व्यवहार बेहद रूखा और उपेक्षापूर्ण होता है, लेकिन मुझे मंदिर में पुजारी के रूप में देख कर मेरे आगे हाथ जोड़ते हैं, मेरे पैर छूते हैं.”

“लेकिन, वे हाथ तुम्हारे आगे नहीं जोड़ते, बल्कि तुम्हें मंदिर का पुजारी समझ वे ऐसा करते हैं.”

“तब तो वे लोग मूर्ख हुए. जब मैं साफसफाई द्वारा उन की मदद और सेवा करता हूं तो वे मुझे दुत्कारते हैं, लेकिन यहां मैं मूर्ति के आगे खड़ा हुआ केवल उन के लाए प्रसाद और फूल को प्रतिमा के आगे रख वापस लौटा देता हूं तो मेरा सम्मान करते हैं. दरअसल, वे मुझे देख ही नहीं रहे. अलगअलग जगहों पर मैं उन के लिए किसी जाति विशेष का प्रतिनिधित्व कर रहा हूं.

“मैडम, आप ही बताइए कि क्या यह सही है कि किसी व्यक्ति की पहचान उस की जाति या वेशभूषा के आधार पर हो? क्या व्यक्ति के गुण उस की कोई पहचान नहीं है?

“एक बात और है मेरे मन में. यदि ऐसे लोगों से पूछा जाए कि किसी जाति का सम्मान और दूसरी का वे अपमान क्यों कर रहे हैं, तो उन के पास कोई जवाब नहीं होगा.”

अतार्किक सी शैलजा गहरी सोच में डूब गई. कुछ देर बाद वह इतना ही बोल सकी, “माधव, सच है व्यक्ति की पहचान उस के जन्म से नहीं, बल्कि कर्मों से होनी चाहिए. और हां, जाति के भेदभाव को मन से निकालना बहुत जरूरी है.”

मंदिर से वापस आते हुए शैलजा माधव द्वारा कहे शब्दों पर जैसे स्वयं को परख रही थी. घर पहुंच कर दिनेश को सब बताते हुए बोली, “इवाना ने इतनी अच्छी यूनिवर्सिटी से एमएस किया है और अब रिप्युटिड कंपनी में सीनियर एनैलिस्ट की पोस्ट पर काम कर रही है. एक हम हैं कि उसे उस की जाति से जोड़ रहे हैं. उस के पापा ऊंची जाति के होते तो भी क्या होता? न तो तब वे बदले हुए होते और न ही इवाना. तो क्या रखा है इस जातिपांति के फेर में?”

“मेरा मन भी खिन्न सा था. शायद इस का कारण यह बेतुका नजरिया ही था, जो बिना सोचेसमझे हम भी अपनाए थे, आंखें बंद कर चल रहे थे, लोगों ने जिस राह पर धकेल दिया था. चलो, विशाल को फोन कर कहते हैं कि इवाना जैसी बहू का ही सपना देखते थे हम.”

दिनेश के हृदय पर रखा मनों बोझ जैसे आज उतर गया हो.

रजनीगंधा की खेती

महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर में पिछले दिनों आयोजित एक कार्यक्रम में कुलपति प्रो. नरेंद्र सिंह राठौड़ ने रजनीगंधा पुष्प की 2 किस्में प्रताप रजनी 7 और प्रताप रजनी -7 (1)  का विमोचन किया. वर्तमान में रजनीगंधा फूलों की इन दोनों किस्मों का परीक्षण 14 अखिल भारतीय पुष्प अनुसंधान केंद्रों पर किया जा रहा है.

रजनीगंधा की इन 2 नई किस्मों की विशेषताएं

रजनीगंधा की इन दोनों किस्मों का उपयोग लैंडस्केपिंग, टेबल डैकोरेशन, भूमि सौंदर्य एवं फ्लावर ऐक्जीबिशन, कम ऊंचाई के गुलदस्ते बनाने में किया जा सकता है. साथ ही, इन दोनों किस्मों में ज्यादा सुगंधित होने के चलते घर के अंदर का माहौल भी खुशबूनुमा बन जाता है.

इन किस्मों के फूलों  में तकरीबन 35 तरह के फ्लोरैंस पाए जाते हैं.

प्रताप रजनी-7 की ऊंचाई 38 सैंटीमीटर और प्रताप रजनी-7 (1) की ऊंचाई

42 सैंटीमीटर रहती है और कली अवस्था पर लाल रंग पाया जाता है.

रजनीगंधा की खेती के लिए सरकार से सब्सिडी भी मिलती है. उद्यान व खाद्य प्रसंस्करण विभाग, उत्तर प्रदेश की तरफ से राष्ट्रीय औद्यानिक मिशन के तहत किसानों की माली मदद भी दी जाती है.

छोटे और सीमांत किसानों के लिए कुल लागत का 50 फीसदी या अधिकतम 35,000 रुपए प्रति हेक्टेयर लाभ दिया जाता है और एक लाभार्थी को सिर्फ 2 हेक्टेयर जमीन तक ही लाभ दिया जाता है.

दूसरे किसानों के लिए कुल लागत का 33 फीसदी या अधिकतम 23,100 रुपए प्रति हेक्टेयर दिया जाता है और एक लाभार्थी को सिर्फ 4 हेक्टेयर जमीन पर ही लाभ दिया जाता है.

अगर आप के यहां की आबोहवा भी रजनीगंधा के फूलों की खेती करने के मुताबिक है, तो आप भी इस का लाभ ले सकते हैं. एक तरफ पारंपरिक खेती से जहां सीमित आमदनी होती है, तो वहीं दूसरी तरफ फूलों की खेती से आप अच्छी आमदनी ले कर अपने और घरपरिवार की जिंदगी को भी महका सकते हैं. इस के लिए जरूरी है कि आप इस की खेती वैज्ञानिक तरीके से करें और खेती करते समय कृषि ऐक्सपर्ट की राय लें.

रजनीगंधा के फूल लंबे समय तक सुगंधित और ताजा बने रहते हैं, इसलिए इन की मांग बाजार में काफी है. भारत में इस की खेती पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश सहित दूसरे राज्यों में की जाती है और इस के फूलों की खेती तकरीबन 20,000 हेक्टेयर क्षेत्र में हो रही है.

रजनीगंधा की खेती के लिए जलवायु व भूमि

रजनीगंधा की खेती हर तरह की मिट्टी में की जा सकती है, लेकिन यह बलुईदोमट या दोमट, अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी में आसानी से की जा सकती है.

रजनीगंधा की खेती के लिए खेत को तैयार करने के लिए मिट्टी को भुरभुरा करना जरूरी है. इस के लिए 2 से 3 बार खेती की जुताई जरूरी है.

रजनीगंधा एक शीतोष्ण जलवायु का पौधा है. यह पूरे साल मध्यम जलवायु में भी उगाया जाता है. 20 से 35 डिगरी सैंटीग्रेड तापमान रजनीगंधा के विकास और वृद्धि के लिए सही होता है. हलकी धूप वाली खुली जगहों में इसे अच्छी तरह से उगाया जा सकता है. छायादार जगह इस के लिए सही नहीं होती है.

रंजनीगंधा के पौधे 60 से 120 सैंटीमीटर  लंबे होते हैं, जिन में 6 से 9 पत्तियां, जिन की लंबाई 30-45 सैंटीमीटर और चौड़ाई 1.3 सैंटीमीटर होती है. पत्तियां चमकीली हरी होती हैं और पत्तियों के नीचे लाल बिंदी होती है. फूल लाउडस्पीकर के चोंगे के आकार के एकहरे व दोहरे सफेद रंगों के होते हैं.

रजनीगंधा की उन्नत किस्में

रजत रेखा, श्रीनगर, सुभाषिणी, प्रज्वल, मैक्सिकन सिंगल रजनीगंधा की उन्नत किस्में हैं. ये रजनीगंधा की इकहरी किस्में हैं. इस के अलावा इस की दोहरी किस्मों में कलकत्ता डबल, स्वर्णरेखा, पर्ल वगैरह आती हैं.

फूलों की खेती से लाभ

रजनीगंधा के फूलों को माला बनाने, सजावट के काम में लेने में ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है. इस के अलावा इस के फूलों से  तेल भी मिलता है, जिस का इस्तेमाल इत्र या परफ्यूम बनाने में किया जाता है.

रजनीगंधा की खेती कैसे करें

फसल से अच्छी  पैदावार लेने के लिए उस में जरूरी मात्रा में जैविक खाद या कंपोस्ट खाद का होना जरूरी है. इस के लिए एक एकड़ जमीन में 25-30 टन गोबर की सड़ी खाद बराबरबराबर मात्रा में देनी चाहिए.

रोपाई के लिए इस के कंद का आकार

2 सैंटीमीटर व्यास का या इस से बड़ा होना चाहिए और हमेशा सेहतमंद और ताजे कंदों को ही रोपना चाहिए. कंदों को 4-8 सैंटीमीटर की गहराई पर और 20-30 सैंटीमीटर लाइन से लाइन और 10-12 सैंटीमीटर कंद से कंद के बीच की दूरी पर रोपणा चाहिए.

कंदों को रोपते समय भूमि में सही नमी होनी चाहिए. एक हेक्टेयर क्षेत्रफल में तकरीबन 1,200-1,500 किलोग्राम कंदों की जरूरत होती है.

खाद व उर्वरक

फसल से बेहतर पैदावार लेने के लिए एक एकड़ जमीन में 25-30 टन गोबर की सड़ी खाद डालें. बराबरबराबर मात्रा में नाइट्रोजन

3 बार दें. एक तो रोपाई से पहले, दूसरी इस के तकरीबन 60 दिन बाद और तीसरी मात्रा तब दें, जब फूल निकलने लगें.

तकरीबन 90 से 120 दिन बाद कंपोस्ट खाद दें और फास्फोरस और पोटाश की पूरी खुराक कंद रोपने के समय ही दे दें.

समय पर सिंचाई व निराईगुड़ाई

रजनीगंधा कंद की रोपाई के समय पर्याप्त नमी हो. जब कंद के अंकुर निकलने लगें, तब सिंचाई से बचना चाहिए. गरमी के मौसम में फसल में 5-7 दिन और सर्दी में 10-12 दिन के अंतराल पर जरूरत के मुताबिक सिंचाई करना उचित रहता है. इस के बाद भी मौसम की दशा, फसल की वृद्धि अवस्था और जमीन के प्रकार को ध्यान में रख कर सिंचाई व्यवस्था का निर्धारण करना चाहिए.

फसल में खरपतवार की रोकथाम भी जरूरी है, इसलिए समयसमय पर निराईगुड़ाई का काम करना चाहिए, जिस से रजनीगंधा के पौधों को अच्छी बढ़वार मिल सके.

फसल में कीट व रोग की रोकथाम

अगर फसल में कीट व रोगों का प्रकोप दिखाई दे, तो फसल को बचाने के लिए जरूरी दवाओं का इस्तेमाल करें. रजनीगंधा में तना गलन रोग लगने का डर रहता है. इस रोग के कारण पत्तों की सतह पर फंगस और हरे रंग के धब्बे भी देखे जा सकते हैं. कई बार पौधों से पत्ते ?ाड़ भी जाते हैं.

रजनीगंधा में धब्बा और ?ालसा रोग भी लगता है. ये रोग अकसर बरसात के मौसम में फैलता है. इस रोग के चलते फूलों पर गहरे भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं. रोगों से रजनीगंधा को बचाने के लिए समयसमय पर कृषि विशेषज्ञों से सलाह ले कर उचित उपाय करें.

कीट व रोग से बचाव भी जरूरी

रजनीगंधा में कीट व रोग लगने का डर रहता है. चेंपा, थ्रिप्स और सूंड़ी का सब से ज्यादा प्रकोप इन पौधों पर हो सकता है.

चेंपा और थ्रिप्स से बचाव के लिए फसल पर उचित कीटनाशक दवाओं का सीमित मात्रा में छिड़काव करना चाहिए.

फूलों की तुड़ाई

तकरीबन 3-4 महीने बाद फसल में फूल आने लगते हैं, लेकिन फूलों को पूरी तरह खिलने पर ही तोड़ना चाहिए. जिस तरह से फलसब्जी की तुड़ाई का काम सुबह या शाम के समय करते हैं, उसी तरह फूलों को चुनने का अच्छा समय भी सुबह या शाम का ही होता है. तुड़ाई के बाद फूलों की पैकिंग कर उन्हें बाजार में भेजें.

धर्म के धंधे का पहला हथियार

उत्तर प्रदेश सरकार ने लाउडस्पीकरों के नियमों को न मानने की वजह से 10,900 लाउडस्पीकर हटवा दिए हैं जो आबादी को नाहक परेशान करते थे. वैसे तो इस का मकसद मसजिदों से लाउडस्पीकर हटाना था जहां से अजान पढ़ी जाती थी पर देश में अभी इतना लोकतंत्र बचा हुआ है कि मंदिरों से भी लाउडस्पीकरों को हटाया गया है. जैसे रूस यूक्रेन युद्ध में रूस की आॢथक नाकाबंदी करने के लिए उस के विदेशी लेनदेन बंद कर देने से यूरोप को गैस का संकट झेलना पड़ रहा है वैसे ही मसजिदों के लाउडस्पीकर उतरवाने के चक्कर में मंदिरों और गुरूद्वारों के लाउडस्पीकर भी फिलहाल उतर गए हैं.

फिलहाल शब्द बहुत जरूरी है क्योंकि धर्र्म के दुकानदार अपना प्रचार किसी भी हालत में कम नहीं होने देगें और इस नियम को तोड़मरोड़ कर फिर लागू कर दिया जाएगा. पुलिस की इजाजत के नाम से मंदिरों और गुरुद्वारों विशेष अवसरों की आड़ में 100-200 दिन की इजाजत मिल जाएगी और मसजिदों को नहीं दी जाएगी.

लाउडस्पीकर धर्म के धंधे का पहला हथियार है. हर प्रवचक आजकल बढिय़ा साउंड सिस्टम लगवाता है ताकि उनकी कर्कश आवाज भी मधुर होकर देश के कोनेकोने में पहुंच जाए. यही लाउडस्पीकरों का होगा. कनफोडू लाउडस्पीकरों की जरूरत इसलिए होती है कि इन्हीं पूजापाठ के फायदों का झूठा लाभ घरघर पहुंचाया जाता है और भक्तों की गिनती भी बढ़ाई जाती है और जेब भी खाली कराई जाती है.

हनुमान चालिसा का पाठ जो नया शगूफा भारतीय जनता पार्टी ने शुरू किया है वह लाउडस्पीकरों पर हो तो आधारित है. लाउडस्पीकर न हो तो चाहे जितनी रामायण, महाभारत, हनुमान चालिसा, आरतियां गाइए, जनता को फर्क नहीं पड़ेगा. जिस युग में लाउडस्पीकर नहीं थे, उस में धर्म के दुकानदार आमतौर पर फटेहाल ही होते थे क्योंकि खुले मैदान में अपनी कपोल कल्पित कहानी 10-20 को सुनाई जा सकती है. लाखों की भीड़ के लिए तो लाउडस्पीकर चाहिए ही.

धर्म का धंधा एक तरफ बात के आधार पर चलता है जिस में आप कहें और सुनने वाला न सवाल पूछे और न अपनी बात कहे और न ही आप की बात को काट सके. लाउडस्पीकर के युग में तर्क और तथ्य की बात बंद करना बहुत ही आसान है.

उत्तर प्रदेश सरकार को अभी तो मुसलिम समाज को संदेश देना था जो दे दिया. अब मंदिरों और गुरूद्वारों से वह कैसे निपटती है देखना है. यह मुसीबत सारे देश की है और इस तरह से सारी जनता की है जो धर्म प्रचारकों के लाउडस्पीकरों के सामने चुप रहने को मजबूर रहते हैं.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें