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हौसला: प्रदीप जैसे युवाओं की दौड़ शोर में धीमी न पड़ जाए

निश्चित तौर पर प्रदीप मेहरा की मेहनत अद्भुत है. उस का आत्मविश्वास और संघर्ष आश्चर्यजनक है, पर प्रदीप की इस मेहनत पर टीवी जिस तरह टीआरपी की होड़ मचा कर जरूरत से ज्यादा एक्सपोजर दे रहा है, उस से प्रदीप जैसे युवाओं के सपने चकनाचूर न हो जाएं.

‘‘अभी से पांव के छाले न देखो,

अभी यारो, सफर की इब्तिदा है.’’

यह शेर मशहूर शायर एजाद रहमानी ने लिखा था, पर आज लगता है यह प्रदीप मेहरा जैसे नवयुवकों के लिए लिखा गया है. 19 साल का प्रदीप आर्मी की तैयारी के लिए आधी रात को नोएडा की सड़कों पर दौड़ रहा था. यह दौड़ उस के लक्ष्य की थी. उस की अपनी थी. लेकिन जैसे ही सोशल मीडिया पर वायरल हुई तो एक अजीब सी सेंधमारी इस दौड़ पर टीवी चैनलों की तरफ से देखने को मिली, जिस पर बात बाद में की जाएगी, पहले बात प्रदीप की.

19 साल के प्रदीप मेहरा ने इस देश के नेताओं, मीडिया और सम झदार लोगों को अपनी उस सचाई से रूबरू कराया है जिसे ये सब मिल कर जोश, हिम्मत, जज्बे और लगन जैसे फरेबी शब्दों से ढक देना चाहते हैं, क्योंकि प्रदीप मेहरा की यह दौड़ उच्चवर्ग से पलेपढ़े युवाओं की तरह हिम्मत या जज्बा साबित करने की नहीं है, बल्कि खुद के सर्वाइवल की है.

हम किस प्रदीप की बात कर रहे हैं? हौसले और जनूनी वाले प्रदीप की बात तो बिलकुल भी नहीं. एक 19 साल की कच्ची उम्र का लड़का जिस के सिर इतनी छोटी उम्र में परिवार के भरणपोषण की जिम्मेदारी आ गई है, जो पढ़ाई करने की जगह मैकडोनल्ड में आधीआधी रात तक नौकरी कर रहा है, जो दोस्तों के साथ खेलकूद की जगह अमीरों के सामान का बो झा लिए यहांवहां डिलीवरी का काम कर रहा है, वह किसी भी हाल में हौसले व जनूनी वाला नहीं बल्कि मजबूर कहलाया जाना चाहिए. लेकिन लोगों की मजबूरियों को और उन की कठिनाइयों को सड़ागला समाज अपने हिसाब से पेश करता आया है, ताकि इन हालात के पीछे उन की जवाबदेही न मांग ली जाए. लेकिन चूंकि बात निकल गई है तो इस पर कुछ सवाल तो जरूर बनेंगे ही, चाहे सारी दुनिया एक रट लगाए हो.

वायरल हुआ वीडियो

सोशल मीडिया से ले कर टीवी चैनल तक में हर तरफ दौड़ते हुए प्रदीप मेहरा की चर्चा हो रही है. प्रदीप मेहरा का यह वीडियो घूमफिर कर सब के पास आया भी होगा. वीडियो फिल्ममेकर विनोद कापड़ी द्वारा शूट किए गए नोएडा की सड़कों पर दौड़ लगाते उत्तराखंड के रहने वाले 19 वर्षीय प्रदीप मेहरा का है.

20 मार्च को विनोद कापड़ी ने अपने ट्विटर अकाउंट से 2 मिनट 20 सैकंड की एक वीडियो क्लिप पोस्ट की थी. इस वीडियो में प्रदीप कंधे पर बैग टांगे रोड के किनारे तेजी से दौड़ रहा था. वह पसीने से भीगा हुआ था. मेहनत उस के चेहरे से टपक रही थी.

यह वीडियो सोशल मीडिया से ले कर नोएडा स्थित फिल्मसिटी के न्यूज स्टूडियो तक में छाया हुआ है. हर तरफ इस वीडियो की बात हो रही है, प्रदीप के लगन और जज्बे की चर्चा हो रही है. इस वायरल वीडियो से जुड़े कुछ अहम सवालों पर हम आगे बात करेंगे लेकिन उस से पहले यह सम िझए कि आखिर इस लड़के का यह वीडियो इतना वायरल क्यों हो रहा है?

प्रदीप की दौड़

दरअसल, विनोद कापड़ी ने जब वीडियो शूट किया था तब उन्होंने प्रदीप से कुछ सवाल किए थे. प्रदीप से पूछा गया कि तुम दौड़ते हुए क्यों जा रहे हो? तो युवक ने कहा, ‘मैं रोज दौड़ लगा कर ही जाता हूं.’ दौड़ने की वजह पूछी तो पता चला वह आर्मी में भरती होने के लिए रोज इसी तरह औफिस से घर तकरीबन 10 किलोमीटर दौड़ लगाता है. वीडियो में उस ने अपनी मां की खराब सेहत और नौकरी करने के कारण के बारे में भी बताया. यह वीडियो जैसे ही सोशल मीडिया में आया, मात्र 24 घंटे में वायरल हो गया. देशविदेश से लोग प्रदीप की मेहनत को सलाम करने लगे.

दरअसल, प्रदीप इंडियन आर्मी में बतौर सिपाही भरती होना चाहता है लेकिन घर की आर्थिक तंगी ने उसे उस के होमटाउन अल्मोड़ा से नोएडा तकरीबन साढ़े तीन सौ किलोमीटर ला खड़ा किया है. प्रदीप बताता है कि वह नोएडा में अपने बड़े भाई के साथ रहता है. आर्मी में जाना उस का लक्ष्य है पर घर चलाने के लिए उसे काम करना पड़ रहा है.

जौब करते हुए तैयारी के लिए समय मिल नहीं पाता, क्योंकि रोज सुबह उठ कर खाना भी बनाना होता है और जल्दी जौब साइट पर पहुंचना भी होता है. इस कारण उसे तैयारी का समय नहीं मिल पाता. इसलिए रात को शिफ्ट पूरी होने के बाद घर वापस लौटते वक्त वह नोएडा सैक्टर 16 से बुराला तक 10 किलोमीटर दौड़ता है.

बुधिया न बन जाए प्रदीप

वीडियो के वायरल होने के बाद मीडिया में प्रदीप को स्टूडियो में बुलाया जा रहा है. उस का इंटरव्यू किया जा रहा है. चलो बुलाना, बातविचार करना एक तरफ, पर जिन हालात में वह अपनी जिंदगी जी रहा है, जिन कठिनाइयों को उसे सहना पड़ रहा है, उस की तह में जाने की जगह उसे स्टूडियो के भीतर ही भगाया जाना या सड़क पर दौड़ते हुए उस के पीछे गाड़ी ले जाने से, उस के या उस जैसे बाकी युवाओं के जीवन में कौन से बदलाव आने वाले हैं?

आनंद महिंद्रा जैसे उद्योगपति या अन्य खातेपीते लोगों का तबका उसे आत्मनिर्भर बता रहा है लेकिन कोई यह सवाल नहीं पूछ रहा कि आखिर प्रदीप जैसे लाखों युवाओं को नौकरी कब मिलेगी? सवाल बनता है कि आखिर क्यों प्रदीप जैसे युवाओं की मजबूरियों को हिम्मत का नाम दिया जा रहा है?

जाहिर है, ऐसा कर के ये लोग प्रदीप जैसे युवाओं की दिक्कतों को सुल झाने की जगह उन के दिमाग में यह बात आसानी से घुसाने की कोशिश कर रहे हैं कि तुम्हारी दिक्कतों का कारण तुम खुद ही हो. तुम्हारी गरीबी, पिछड़ेपन, बेरोजगारी का कारण तुम खुद ही हो, इस के लिए तुम्हें ही अतिविशिष्ट लगन, जोश, जनून और जज्बा लाना होगा.

कोई यह नहीं पूछ रहा कि आखिरकार देश के युवाओं को यों लाचार क्यों होना पड़ रहा है? कोई यह सवाल भी नहीं पूछ रहा कि हर साल 2 करोड़ रोजगार देने वाले कहां हैं? सरकारी नौकरियों का बंटाधार क्यों हुआ पड़ा है? क्यों छात्र समय पर एग्जाम होने को ले कर आवाज उठा रहे हैं और लाठीडंडा खा रहे हैं. आखिर क्यों प्रदीप को बेरोजगारी के सवाल से न जोड़ा जाए?

उत्तराखंड में जिस दौरान भरती प्रक्रिया शुरू होती है, तब के हालात देखने वाले होते हैं. हजारों की संख्या में युवा आर्मी की नौकरी के लिए आते हैं. उन युवाओं की संख्या इतनी होती है कि कई बार भगदड़ जैसी नौबत आ जाती है. कई बार भीड़ को संभालने के लिए लाठीडंडों का इस्तेमाल करना पड़ जाता है. उन युवाओं का सवाल क्या प्रदीप के बहाने उठाने का फर्ज इस मीडिया का नहीं था? जाहिर है देश में सिर्फ जज्बा, लगन, हिम्मत पर ही नहीं बल्कि बेरोजगारी पर भी बड़ी चर्चा होनी चाहिए.

निश्चित तौर पर प्रदीप मेहरा की मेहनत की कहानी अद्भुत है. उस का आत्मविश्वास और संघर्ष आश्चर्यजनक है, पर प्रदीप की इस मेहनत पर टीवी वाले जिस तरह टीआरपी बटोर रहे हैं और सोशल मीडिया एंफ्लुएंसर फौलोअर्स बटोरने की होड़ में हैं उस से प्रदीप के जीवन में मूल बदलाव आने की जगह, जरूरत से ज्यादा मिला यह एक्सपोजर कहीं उस के सपने को ही चकनाचूर न कर दे.

हम ने पहले भी देखा है, इस मीडिया को अपनी टीआरपी बढ़ाने के लिए समयसमय पर बुधिया और प्रदीप जैसे लोग भाते हैं, जिन की कहानी पेश कर उन का अपना धंधा चलाया जा सके. वे इन्हें लाते हैं ताकि युवाओं में नौकरियों की निराशा को दूर किया जा सके, सवाल है कि आखिर क्या हुआ बुधिया का? 2007 में चमका वह काबिल लड़का, जिस ने मात्र 7 घंटे में 65 किलोमीटर दौड़ लगाई, आखिर कौन सी गुमनामी में खो गया. वह आगे क्यों नहीं बढ़ा. उस पर फिल्म बनाने वाले निर्देशक, लेखक, ऐक्टर अपना पैसा बनाया और चल पड़े. मीडिया टीआरपी ले गया. लेकिन बुधिया, वह कहां गया.

असल यह है कि हिम्मत और जज्बे के नाम पर सिर्फ यहां कहानी बेचीखरीदी जा रही है, जो उन दिक्कतों से जू झ रहा है उन के हल नहीं खोजे जा रहे.

फिर अमीरों के बच्चे क्यों नहीं हिम्मत वीर

जिस आर्थिक पृष्ठभूमि से प्रदीप जैसा युवा आया है वह सलाम करने योग्य बनता है, मसलन भारत में इस उम्र की इस दहलीज में जो भी युवा कठिनाइयों से लड़भिड़ कर आ रहे हैं वे प्रदीप के परिश्रम से प्रेरणा ले रहे हैं, हालांकि उन के लिए प्रदीप की कहानी बहुत हद तक उन से अलग नहीं.

अकसर गांव की सड़कों, शहर के स्टेडियम और पब्लिक पार्कों में सुबहशाम इसी तबके के युवक दौड़ते मिल जाते हैं. ये नवयुवक लड़के पसीने से भीगे, पैरों में सस्ते जूते या कुछेक बार वह भी नहीं, कईकई किलोमीटर दौड़ लगाते हैं. इन में अधिकतर युवा बेहद गरीब पृष्ठभूमि से होते हैं, जिन के लिए सरकारी नौकरी घर कीमाली हालत सुधारने का टर्निंग पौइंट होती है.

ये दौड़ते हैं कि इन्हें बस एक मौका मिले आर्मी में भरती होने का, क्योंकि ये युवा आर्मी में भरती होने को अपना पैशन और बहुत हद तक अपनी पारिवारिक जरूरत मानते हैं, क्योंकि आर्मी में भरती होने के लिए शारीरिक मेहनत के अलावा 10वीं पास योग्यता चाहिए होती है, जिसे पाने के लिए ये युवा जीजान लगा देते हैं. लेकिन क्या कभी किसी नेता, उद्योगपति, मीडियाकर्मी या एंकरों के बच्चों को इस तरह की हिम्मत और जज्बा दिखाते देखा है? नहीं, क्योंकि उन के हिस्से इस तरह की मजबूरियां हैं ही नहीं. वे संसाधनों से लैस हैं. वे बड़े स्कूलों और फिर विदेश में महंगे कालेजों में पढ़ कर अपने मातापिता की पदवी संभालते हैं. फिर वापस स्वदेश लौट कर लगन, जज्बा और हिम्मत का ज्ञान देश के गरीबों में बांटते हैं. यही इन की सत्ता और एकाधिकार को बनाए रखता है, जिसे देश के बहुसंख्यक गरीब सम झ नहीं पाते.

उस एक दिन की बात: क्या हुआ था उस दिन?

उस एक दिन की बात- भाग 1: क्या हुआ था उस दिन?

पीयूषजी ने स्कूटर कंपाउंड में पार्क करते हुए घड़ी की ओर देखा. 7 बज रहे थे. उफ, आज फिर देर हो गई. ट्रैफिक जाम की वजह से हमेशा देर हो जाती है. ऊपर से हर दस कदम पर सिग्नल की फटकार. रैड सिग्नल पर फंसे तो समझिए कि सिग्नल के ग्रीन होने में जितना समय लगेगा उतने में आप आराम से एक कप कौफ़ी सुड़क सकते हैं. मेन रोड के जाम से पिंड छुड़ाने के लिए आसपास की गलियों-उपगलियों को भी आजमाया. वहां समस्याएं अजब तरह की मिलीं. रास्ते के बीचोंबीच गाय, भैंस और सांड जैसे मवेशी बेखौफ हांडते दिखे, मानो गलियां संसद का गलियारा हों जहां नेतागण छुट्टे मटरगश्ती करते रहते हैं.

किसी मवेशी को जरा छू भी गई गाड़ी कि बवाल शुरू. एक महीने पहले तक पीयूषजी को शाम को घर लौटने की इतनी हड़बड़ी नहीं रहती थी. औफिस समय के बाद भी साथियों से गपशप चलती रहती. औफिस से दस कदम पर तिवाड़ी की चाय की गुमटी थी, जायके वाली स्पैशल चाय के लिए मशहूर. चाय के बहाने मिलनेजुलने का शानदार अड्डा. औफिस से निकल कर खास साथियों के साथ वहां चाय के साथ ठहाके चलते.

पीयूषजी पीडब्लूडी में जौब करते हैं. काम का अधिक दबाब नहीं. पुरानी बस्ती में घर है. पति,पत्नी और 6 साल का बेटा आयुष. छोटा परिवार. पत्नी तीखे नाकनक्श और छरहरे बदन की सुंदर युवती. शांत और संतुष्ट प्रकृति की घरेलू जीव. दोनों के बीच अच्छी कैमिस्ट्री थी. शाम को घर लौटने पर पीयूष जी के ठहाकों से घर खिल उठता. पत्नी के इर्दगिर्द बने रहने और उस से चुहल करने के ढेरों बहाने जेहन में उपजते रहते.

पत्नी चौके में व्यस्त रहती, वे बैठक से आवाज लगाते, ‘उर्मि, एक मिनट के लिए आओ,जरूरी काम है.’  पत्नी का जवाब आता, ‘अभी टाइम नहीं. सब्जी बना रही हूं.’  वे तुर्की बतुर्की हुंकारते, ‘ठीक है, मैं ही वहां आ जाता हूं. दोनों मिल कर रागभैरवी में गाते हुए सब्जी बनाएंगे.’ फिर लपकते हुए चौके में आते और उर्मि को बांहों में समेट लेते. उर्मि पति के प्रेमिल जनून पर निहाल हो उठती. टीवी देखते, बंटी के साथ खेलतेबतियाते और उस का होमवर्क करातेकराते समय कब बीत जाता, पता ही न चलता. सुबह उठते और स्वयं बाजार जा कर घर का सौदासुलफ के अलावा दूर सब्जीमंडी से ताजा सब्जी भी लाते, शौक से बिना ऊबे.

सबकुछ ठीक चल रहा था कि एक महीने पहले ऐसा क्या हो गया कि उन की सारी दिनचर्या ही उलटपुलट गई. पीयूषजी की शिक्षादीक्षा कसबे में हुई थी. कसबाई संस्कार से अभी तक मुक्त नहीं हो पाए थे. शहर के लटकेझटके से पूरे अभ्यस्त भी नहीं. सोशल मीडिया का नाम सुना था. यह होता क्या है, बिलकुल नहीं जानते थे. सहकर्मियों के बीच आपसी बातचीत में फेसबुक, व्हाट्सऐप जैसे जुमले उड़ते हुए कानों में पड़ते जरूर पर उन्होंने इन सब पर कभी ध्यान देने की कोशिश नहीं की. उन के पास मोबाइल छोटा वाला था.

औफिस में मिश्रा से उन की ज्यादा पटती. एक दिन शाम को औफिस से निकलते हुए उन्होंने मिश्रा से कहा, ‘आज पुचका खाने का मन कर रहा. चलो, पुचका खाते हैं. अहा हा हा, इमली के खट्टेमीठे पानी की याद आते ही मुंह मे पानी भर आया.’

मिश्रा हिनहिनाते हुए हंसा, ‘सौरी सर, फिर कभी. आज जरूरी काम है.’

ऐसा क्या जरूरी काम आ गया कि दस मिनट भी स्पेयर नहीं कर सकते?’

‘सुगंधा को चैटिंग का टाइम दिया हुआ है 6 बजे का,’ मिश्रा खींसे निपोरा.

‘सुगंधा…?’

‘फेसबुकिया फ्रैंड… कल विस्तार से समझाऊंगा सोशल मीडिया के बारे में, ठीक?’  मिश्रा बाइक पर बैठ कर फुर्र हो गया.

दूसरे दिन औफिस औवर के बाद तिवाड़ी की गुमटी में एक भांड चाय की गुरुदक्षिणा के एवज में मिश्रा ने पीयूषजी को फेसबुक, व्हाट्सऐप, मैसेंजर, ट्विटर आदि सोशल मीडिया की विस्तार से दीक्षा दी तो पीयूषजी के ज्ञानचक्षु खुल गए.

‘देश के हर कोने से दोस्त मिलेंगे. मित्र भी और मित्राणियां भी,’  मिश्रा खिलखिलाया, परिवार के सीमित दायरे के कुएं को हिंद महासागर का विस्तार मिलेगा. यथार्थ से परे किंतु उस के समानांतर एक और विलक्षण दुनिया, जिस की बात ही निराली है. उस में एक बार प्रवेश करें, तभी जान सकेंगे, सर.’

पीयूषजी को एहसास हुआ, मिश्रा के सामने सामान्य ज्ञान के स्तर पर कैसे तो अबोध बच्चे जैसे हैं वे. इलैक्ट्रौनिक तकनीक कितनी उन्नत हो गई, उन्हें पता ही नहीं. लोग घरबैठे

विराट दुनिया का भ्रमण कर रहे हैं, वे अभी भी कुंए के मेढ़क रहे.

दूसरे दिन ही मिश्रा के संग जा कर बढ़िया मौडल का एंड्रौयड फोन खरीद लाए. फोन क्या,

जादुई चिराग ही था जैसे. बटन दबाते ही कहांकहां के तरहतरह के लोगों से संपर्क होते निमिष मात्र लगता. चिराग के व्यापक परिचालन की ट्रेनिंग भी बाकायदा मिश्रा ने उन्हें दे दी.

सोशल मीडिया से जुड़ते ही पीयूषजी की जिंदगी में क्रांतिकारी परिवर्तन आ गया. फेसबुक पर मित्रों की संख्या देखते ही देखते हनुमान की पूंछ की तरह बढ़ने लगी. विभिन्न रुचि व क्षेत्र के मित्र बने. कई ललनाओं ने ललक कर उन की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाया जिन्हें बड़ी नजाकत से उन्होंने थाम लिया. कइयों से खुद अपनी पहल पर दोस्ती गांठी.

फेसबुक के न्यूज़फीड को ऊपर खिसकाते घंटों बीत जाते. न मन भरता और न पोस्ट का ही अंत होता. ऊपर ठेलते रहो, नीचे से पोस्ट द्रौपदी के चीर की तरह निकलते रहते. व्हाट्सऐप और मैसेंजर पर चैट का सिलसिला भी खूब जमने लगा.

कुछ ही समय मे आलम यह हो गया कि हर समय  खुले  मोड में मोबाइल उन के हाथ में रहने लगा. राह में चल रहे हैं, नजरें मोबाइल पर. खाना खा रहे हैं, नजरें मोबाइल पर. किसी से बात कर रहें हैं, नजरें मोबाइल पर. न सूचनाओं का अंत होता न चैट पर विराम. हर दो मिनट पर न्यूजफीड को देर तक ऊपर सरकाने और हर तीसरे मिनट  नोटिफिकेशन चैक करने की लत लग गई. पता नहीं किस मित्र का कब और कैसा मैसेज या कमैंट आ गया हो. अपडेट रहना जरूरी है.

दोपहर ढलते ही नजरें बेसब्री से बारबार घड़ी की ओर उठ जातीं. औफिस समय खत्म होने का इंतजार रहता. लगता, जैसे किसी षड्यंत्र के तहत घड़ी के कांटे जानबूझ कर धीमी चाल से चल रहे हैं. कोफ्त से मन फनफना उठता. औफिस से निकल कर सीधे घर की ओर दौड़ते.

घर आ कर हड़बड़ करते, फ्रैश होते और मोबाइल लिए सोफे पर जो ढहते तो शाम के चायनाश्ता से ले कर रात के डिनर तक का सारा काम वहीं लेटेबैठे होता. पत्नी से संवाद सिर्फ हां-हूं तक सिमट गया. ठहाके और चुहल तो पता नहीं कहां अंतर्ध्यान हो गए थे.

पीयूषजी के पास अब घर के कामकाज के लिए समय नहीं रहा. पहले वे शाम को औफिस स लौट कर चाय पीते, टीवी देखते, आयुष का होमवर्क करा देते थे. होमवर्क कराते हुए उर्मि के साथ चुहल भी चलती रहती. अब उर्मि से साफ कह दिया कि 3 लोगों का खाना बनाने में ऐसा थोड़े ही है कि शाम का सारा समय खप जाए. उन्हें डिस्टर्ब न करें और आयुष का होमवर्क खुद करा दें. सब्जी बाजार व मेन मार्केट घर से दूर पड़ता था. पहले वे स्वयं स्कूटर से जा कर ताजा सब्जी तथा अन्य सामान ले आते थे. अब उन का सारा ध्यान सोशल मीडिया की ऐप्स पर रहता और यह काम भी उर्मि के जिम्मे आ गया.

बैड पर भी मोबाइल उन की  कंगारू-गोद  में दुबका रहता. उर्मि चौके का काम समेट कर और बेटे को सुला कर पास आ लेटती और इंतजार करती कि हुजूर को इधर नजरें इनायत करने की फुरसत मिले तो दोचार प्यार की बातें हों. पर बहुधा ऐसा नहीं हो पाता. उस समय पीयूषजी कुछ खास ललनाओं से चैट में मशगूल रहते. सूखे इंतजार के बाद आखिर उर्मि की आंखें ढलक जातीं.

कई बार ऐसा होता कि रात के 11 बजे किसी मित्र से वीडियो चैट कर रहे होते. उधर से मित्र गरम कौफ़ी की चुस्कियां लेता दिखता. कौफ़ी से उड़ती भाप आभासी होने बावजूद नथुनों में घुस कर खलबली मचाने लगती. वह खलबली कैसे शांत होती. आभासी कौफ़ी हवा से निकल कर तो नमूदार होने से रही. बगल में थकीहारी लेटी उर्मि को जगाते और कौफ़ी बना लाने का आदेश फनफना देते. पतिपरायण उर्मि को मन मार कर उठना ही पड़ता.

घड़ी की ओर नजर गई, साढ़े छह बजे थे. तेजी से कंपाउंड में स्कूटर खड़ा किया और पांच मिनट में फ्रैश हो कर सोफे पर चले आए. उर्मि चायनाश्ते की तैयारी में लग गई. पीयूषजी ने मोबाइल औन कर के पहले फेसबुक पर क्लिक किया. स्क्रीन पर गोलगोल घूमता छोटा वृत्त उभर आया. वृत्त एक लय में घूम रहा था…और घूमे जा रहा था, निर्बाध. ओह, ऐप खुलने में इतनी देर. उन्होंने मोबाइल को बंद कर के फिर औन किया.  प्रकट भये कृपाला  की तर्ज पर फिर वही वृत्त. खीझ कर औफऔन की क्रिया को कई बार दुहरा दिया. वृत्त नृत्य बरकरार रहा. इस्स… झटके से फेसबुक बंद कर के व्हाट्सऐप पर उंगली दबाई. मन में सोचा, फेसबुक बाद में देखेंगे. व्हाट्सऐप पर भी पहले जैसा वृत्त अवतरित हो आया. यह क्या हो रहा है आज. उत्तेजना में एकएक कर के मैसेंजर और ट्विटर से भी नूराकुश्ती की. पर हाय… लाली मेरे लाल की जित देखो तित लाल. हर जगह मुंह चिढ़ाता वही चक्र मौजूद.

उन का ध्यान इंटरनैट चैक कर लेने की ओर गया. धत्त तेरी… नैट तो सींग-पूंछ समेट करकुंभकर्णी नींद में सोया पड़ा है. बिना नैट के कोई भी ऐप खुले, तो कैसे. लेकिन नैट गायब क्यों हो सकता है. पिछले हफ्ते ही 3 महीने का पैक भराया था. कोई तकनीकी अड़चन है शायद. बचपन के दिनों की याद हो आई जब घर में ट्रांजिस्टर हुआ करता था. अकसर ट्रांजिस्टर अड़ियल घोड़ी की तरह स्टार्ट होने से इनकार कर देता. तब पिताजी उस पर दाएंबांए दोचार थाप लगाते तो वह बज उठता. पीयूषजी ने उत्तेजना से भरकर मोबाइल के बटनों को बेतरतीब टीपा, कि शायद नैट जुड़ जाए. पर सब बेकार.

उन्होंने आग्नेय नेत्रों से मोबाइल को घूरा. 15 हजार रुपए का नया सैट. इतनी जल्दी फुस्स. हंह… फनफना कर मिश्रा को फोन लगाया, ‘कैसा मोबाइल दिलाए मिश्राजी, नैट नहीं पकड़ रहा?’

‘मोबाइल चंगा है, सर. नैट कहां से पकड़ेगा, पूरे शहर की इंटरनैट सर्विस 3 दिनों के लिए बंद कर दी है सरकार ने.’

‘अरे,’  पीयूषजी घोर आश्चर्य से भर गए.

‘जामा मसजिद के पास दंगा हो गया. रैफ बुलानी पड़ी.’

जामा मसजिद तो शहर के धुर उत्तरी छोर पर है.’

हां सर, खबर है कि एक समुदाय विशेष के 2 गुटों में आपसी रंजिश से मामूली मारपीट हुई.

दंगा की आशंका से सरकार बहादुर का कलेजा कांप उठा. बस, आव देखा न ताव, ब्रह्मास्त्र

चला कर नैट सस्पैंड.’

इंटरनेट बंद, यानी डेटा बंद. डेटा बंद तो मोबाइल कोमा में जाना ही है क्योंकि इस की जान

तो डेटा नाम के अबूझ से जीव में बसती है न.

अब..?

‘अब’  सलीब की तरह जेहन में टंग गया. समय देखा, सिर्फ 6:45. 11 बजने से पहले नहीं सोते. कैसे कटेगा समय? सामने टेबल पर कछुए सा सींगपूंछ समेटे पड़ा था सैट.

पीयूषजी की आह निकल गई, ‘हाय, तुम न जाने किस जहां में खो गए, हम भरी दुनिया में

तनहा हो गए…’ आभासी दुनिया में विचरण करतेकरते समय कब बीत जाता, पता ही न चलता था. यथार्थ में क्या है…वही घरगृहस्थी, वही पत्नीबच्चे, वही चिंतातनाव. सबकुछ बासी व बेस्वाद. मन सूखे कुएं सा सायंसायं करने लगा. कुछ पल शून्य में देखते हुए निश्च्छल निश्चल बैठे रहे. फिर बुझे मन से उठे. पूरे घर का बेवजह चक्कर लगा कर वापस सोफे पर आ बैठे. रिमोट दबाकर टीवी औन किया. जल्दीजल्दी न्यूज़ व शो के पांचसात चैनल बदल डाले. मन नहीं रमा. चारपांच ऐप्स के सिवा मोबाइल के अन्य उपयोग की न तो जानकारी थी, न ही उन में रुचि. दिमाग बेचैन और जी उदास हो गया. उदासी पलकों तक चली आयी तो दबाव से कुछ पल के लिए पलकें ढलक गईं. वे अबूझ चिंतन में चले गए.

तभी उर्मि नाश्ता ले आई. बेसन के चिल्ले, साथ में गर्मागर्म चाय.

क्या तलाक के बाद दूसरी शादी करेंगी करिश्मा कपूर? जानें यहां

बॉलीवुड एक्ट्रेस करिश्मा कपूर (Karisma Kapoor) सोशल मीडिया पर कॉफी एक्टिव रहती हैं. वह फैंस के साथ अपनी फोटोज और वीडियोज शेयर करती रहती हैं. फैंस को भी करिश्मा के पोस्ट का इंतजार रहता है. हाल ही में करिश्मा ने ‘आस्क मी एनिथिंग’ सेशन किया. जिसमें उन्होंने फैंस के सवालों का जवाब दिया.

करिश्मा कपूर ने ये सेशन इंस्टाग्राम पर किया. एक्ट्रेस ने फैंस के सवालों के जवाब दिया. करिश्मा ने इंस्टाग्राम स्टोरी पर ‘आस्क मी एनिथिंग’ सेशन किया और इस दौरान फैंस ने उनकी पसंदीदा खाने से लेकर पसंदिदा कलर तक के सवाल पूछ लिए.

 

इस दौरान एक यूजर ने एक्ट्रेस से पूछा कि क्या वो फिर से शादी करेंगी? एक्ट्रेस ने इसका जवाब देते हुए लिखा, ‘डिपेंड्स’. करिश्मा के इस जवाब से अंदाजा लगाया जा सकता है कि वह भविष्य में शादी के बंधन में बंध सकती हैं.

 

आपको बता दें कि करिश्मा कपूर का नाम दिल्ली बेस्ड बिजनेसमैन संदीप तोषनीवाल के साथ जुड़ चुका है और दोनों कई बार साथ भी नजर आए. हालांकि उन्होंने कभी अपने रिश्ते को लेकर कुछ कहा नहीं. रिपोर्ट के अनुसपार करिश्मा के पिता और वेटेरन एक्टर रणधीर कपूर ने बेटी की दूसरी शादी के बारे में कहा था कि अगर वो दूसरी शादी करती हैं तो इसमे गलत क्या है?

 

अनुपमा ने दी बा को जान से मारने की धमकी! देखें Video

‘अनुपमा’ में लगातार बड़ा ट्विस्ट देखने को मिल रहा है. शो में इन दिनों दिखाया जा रहा है कि बा अनुपमा के शादी के खिलाफ है और वह कोई प्लान करती नजर आ रही है. जिससे अनुपमा की शादी टूट जाये. ऐसे में अब एक वीडियो सामने आया है, जिसमें दिखाया जा रहा है कि बा अनुपमा पर दादागिरी दिखाने की कोशिश कर रही है. आइए दिखाते है आपको वीडियो.

शो में बा और अनुपमा की जोड़ी को फैंस काफी पसंद करते हैं. फैंस को इन दोनों के बीच की नोक-झोंक काफी पसंद आती है. शो में कभी बा और अनुपमा की बॉन्डिंग स्ट्रांग दिखाई जाती है तो ये दोनों कभी एक-दूसरे की टांग खींचते नजर आती है.

 

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इस बीच एक वीडियो सामने आया है, जिसमें अनुपमा और बा का नोक-झोंक देखा जा सकता है. बा कहती है कि आज बहू को आजमा के देखती हूं. झूले पे बैठी बा अनुपमा से पूछती है, ‘अगर मैं पलंग पर बैठूंगी तो तुम कहां बैठोगी?’ इस बात का जवाब देते हुए अनुपमा कहती है कि ‘मैं सोफे पर बैठूंगी.’ फिर बा पूछती हैं कि ‘अगर मैं सोफे पर बैठ गई तो?’ तब अनुपमा कहती है ‘मैं जमीन पर बैठ जाऊंगी.’

 

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इसके बाद बा फिर पूछती है ‘अगर मैं जमीन पर बैठ गई तो?’ इस सवाल का जवाब देते हुए अनुपमा कहती है कि ‘मैं जमीन में गड्ढा खोदकर बैठ जाऊंगी.’ तब अनुपमा को आजमाते हुए बा फिर से उससे पूछती हैं कि ‘अगर मैं गड्ढे में बैठ गई तो?’ अनुपमा कहती है कि मैं गड्ढे के उपर मिट्टी डाल दूंगी और सारा किस्सा खत्म कर दूंगी.

 

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ये मजेदार वीडियो को सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहा है. फैंस को बा और अनुपमा का अंदाज काफी पसंद आ रहा है. इस वीडियो को अब तक 3 लाख से भी ज्यादा व्यूज मिले हैं. और 60 हजार से ज्यादा लोगों ने लाइक किया है.

बिना मिट्टी के आलू की खेती

बिहार के कोसी क्षेत्र में बड़े पैमाने पर आलू की खेती होती है, परंतु अब परंपरागत तरीके से हो रही आलू की खेती के बदले हवा में आलू की खेती होगी.

हरियाणा के करनाल स्थित आलू प्रौद्योगिकी केंद्र ने यह काम कर दिखाया है. अब वहां से ट्रेनिंग ले कर किसान अपने यहां एरोपोनिक तकनीक से बिना मिट्टी और जमीन के आलू की खेती करेंगे.

बताया गया है कि बिना जमीन और मिट्टी के एरोपोनिक तकनीक से हवा में आलू की खेती से कई गुना अधिक पैदावार मिलेगी. पारंपरिक तरीके से आलू की खेती में उसे जमीन से खोद कर निकाला जाता है, जबकि इस नई तकनीक से पौधे से 3 महीने तक आलू तोड़ा जा सकेगा.

ऐसा मानना है कि इस नए आधुनिक तरीके से आलू किसानों को काफी फायदा होगा. इस तकनीक से मिट्टी और जमीन दोनों की कमी पूरी की जा सकती है.

यह तकनीक हरियाणा के करनाल जिले में स्थित आलू प्रौद्योगिकी केंद्र द्वारा ईजाद की गई है. इस तकनीक में थर्मोकाल, प्लास्टिक आदि के सहयोग से आलू की हवा में खेती की जाएगी. इस से पैदावार में 10 गुना तक बढ़ोतरी होगी.

सरकार ने इस के लिए मंजूरी प्रदान कर दी है. इस एरोपोनिक तकनीक को तैयार करने वाले विशेषज्ञों का कहना है कि इस तकनीक में लटकती हुई जड़ों द्वारा पौधे को पोषण दिया जाता है. उस में मिट्टी और जमीन की जरूरत नहीं होती है. यह तकनीक पिछड़े कोसी क्षेत्र के किसानों को काफी लाभान्वित कर सकती है.

परंपरागत खेती की तुलना में यह तकनीक उन के लिए बहुत ही फायदेमंद हो सकती है. इस तकनीक के द्वारा आलू के बीज के उत्पादन की क्षमता को 3 से 4 गुना तक बढ़ाया जा सकता है. इस से हरियाणा की तरह स्थानीय किसानों की आमदनी में भी बढ़ोतरी होगी और इलाके की अर्थव्यवस्था मजबूत होगी.

हालांकि खेती करने के नए तरीकों को किसानों तक पहुंचाने का काम करना और ऐसी तकनीकों के प्रति किसानों को तैयार करना भी आसान नहीं है, क्योंकि पारंपरिक खेती सरल व सस्ती भी होती है, जबकि नई

तकनीकों का इस्तेमाल करना, उन्हें समझना थोड़ा कठिनाई भरा हो सकता है. इस के अलावा एरोपोनिक तकनीक महंगी तकनीक भी हो सकती है.

यह तकनीक उन लोगों के लिए फायदेमंद जरूर साबित हो सकती?है, जिन के पास खेती की जमीन नहीं है और वह बिना जमीन के इस तकनीक को अपना कर खेती कर सकते हैं.

हम तीन- भाग 1: आखिर क्या हुआ था उन 3 सहेलियों के साथ?

स्नेही ने कालेज से आते ही मुझे बताया, ‘‘मां, शनिवार को हमारी 10वीं कक्षा का रियूनियन है, बहुत मजा आएगा, मैं बहुत एक्साइटेड हूं. नीता, रिंकी, मोना से मिले हुए बहुत समय हो गया. वे लोग भी कोटा से इस प्रोग्राम के लिए विशेषरूप से आ रही हैं. एक

बड़े होटल में पार्टी है, डिनर है, बहुत मजा आएगा मां.’’

मैं उसे चहकते देख रही थी. उस की खास सहेलियां नीता, रिंकी, मोना कोटा में इंजीनियरिंग कर रही हैं.

स्नेहा फिर बोली, ‘‘कुछ बोलो न मां… बहुत मजा आता है पुराने दोस्तों से मिल कर… है न मां?’’

न चाहते हुए भी मेरे मुंह से ठंडी सी सांस निकली, ‘‘हां, आता तो है.’’

स्नेहा मेरे पास बैठ गई. बोली, ‘‘मां, आप की भी तो सहेलियां, दोस्त रहे होंगे… आप को उन की याद नहीं आती?’’

‘‘आती तो है, लेकिन शादी के बाद लड़कियां अपनीअपनी गृहस्थी में खो जाती हैं. चाह कर भी कहां एकदूसरे से मिल पाती हैं.’’

‘‘नहीं मां, दोस्तों से मिलना इतना मुश्किल तो नहीं है. आप नानी के यहां जाती हैं तो किसी से मिलने की कोशिश नहीं करतीं?’’

‘‘हां, मैं जाती हूं तो वे लोग थोड़े ही होती हैं वहां. वे अपने हिसाब से प्रोग्राम बना कर मायके आती हैं.’’

‘‘अरे मां, कोशिश तो करो, अपनी पुरानी सहेलियों से मिलने की. आप को भी बहुत

मजा आएगा… आप की लाइफ में भी एक चेंज होगा. मेरी मानो तो एक रियूनियन आप भी रख ही लो.’’

स्नेहा तो कह कर फ्रैश होने चली गई, 2 चेहरे मेरी आंखों के आगे तैर गए. क्यों न मैं भी सुकन्या और अनीता से मिलूं, लेकिन मैं यहां मुंबई में, सुकन्या इलाहाबाद में और अनीता दिल्ली में है. 20 साल से तो कोई संपर्क है नहीं. मां के यहां जाती हूं तो मां से ही उन के बारे में पता चल जाता है. अब थोड़ा अजीब तो लगेगा. अब किस का कितना स्वभाव बदल गया होगा, पता नहीं. कोई मिलने में रुचि दिखाएगी भी या नहीं… खैर पहल तो कर के देखनी चाहिए. एक कोशिश करने में क्या हरज है.

बस, मन इसी बात में उलझ कर रह गया. अमित औफिस से आए. मुझे थोड़ी देर देखते रहे, फिर बोले, ‘‘मीनू, क्या हुआ, किसी सोच में डूबी लग रही हो?’’

मैं ने उन्हें कुछ नहीं कह कर टाल दिया. डिनर के समय स्नेहा और राहुल ने भी मुझे टोका, ‘‘क्या हुआ मां?’’

मैं ने उन्हें भी टाल दिया. मैं अभी किसी को कुछ नहीं बताना चाहती थी. पहले अपनी सहेलियों का पता तो कर लूं.

अगले दिन सब के जाने के बाद मैं ने मुजफ्फरनगर मां को

फोन कर उन्हें अपने मन की बात बताई.

वे हंस पड़ीं. बोलीं, ‘‘बहुत अच्छा सोचा. बना लो प्रोग्राम.’’

‘‘मेरे पास उन दोनों के नंबर नहीं हैं.’’

‘‘परेशान क्यों हो रही हो? मैं उन के घर से फोन नंबर ला कर तुम्हें बता दूंगी.’’मैं बेफिक्र हो गई. आधे घंटे में ही मां ने मुझे दोनों के फोन नंबर लिखवा दिए. सुकन्या हमारी गली में ही तो रहती थी और अनीता

2 गलियां छोड़ कर. मैं दोनों से बात करने के लिए बेचैन हो गई. मेरी आवाज दोनों नहीं पहचानीं, लेकिन जब उस उम्र के खास कोडवर्ड, खास किस्सों का संकेत दिया तो दोनों चहक उठीं. हम ने कितने गिलेशिकवे किए, कभी याद न करने के उलाहने दिए और फिर मैं ने अपना प्रोग्राम बताया तो दोनों एकदम तैयार हो गईं. लेकिन परेशानी यह थी कि अनीता अब टीचर थी और सुकन्या मेरी तरह हाउसवाइफ. यह तय हुआ कि अनीता छुट्टियों में मुजफ्फरनगर आ सकेगी. रात को जब हम चारों साथ बैठे तो मैं ने कहा, ‘‘अमित, आप से कोई जरूरी बात करनी है.’’

बच्चों के भी कान खड़े हो गए.

अमित ने कहा, ‘‘कहो न, क्या हुआ?’’

‘‘मुझे भी अपनी सहेलियों से मिलने मां के यहां जाना है… मेरा भी रियूनियन का प्रोग्राम बन गया है.’’

तीनों जोर से हंस पड़े. मैं झेंप गई तो अमित ने स्नेहा से कहा, ‘‘स्नेहा, तुम अपनी मम्मी को क्या पट्टी पढ़ा देती हो… वे सीरियस हो जाती हैं.’’

‘‘क्यों, उन की भी लाइफ है. सारा दिन क्या हमारे आगेपीछे घूमती रहें? उन का भी फ्रैंड सर्कल रहा होगा. उन का भी मन करता होगा. मां, आप बताओ, क्या सोचा आप ने?’’

मैं ने तीनों को सुकन्या और अनीता से हुई बातचीत के बारे में बता दिया. हंसीखुशी मेरा प्रोग्राम बन गया.

राहुल को अलग ही चिंता हुई. बोला, ‘‘मम्मी, हमारे खाने का क्या होगा?’’

‘‘लताबाई से बात कर ली है. वह दोनों टाइम आ कर खाना बना देगी. अमित ने 2-3 दिन बाद ही मेरी फ्लाइट बुक कर दी. मैं ने सुकन्या और अनीता को भी बता दिया. अब हम तीनों फोन पर संपर्क में रहतीं. बहुत अच्छा लगने लगा है. सुकन्या के पति सुधीर बिजनैसमैन हैं. उस की भी 1 बेटी और 1 बेटा है. अनीता के पति विनय डाक्टर हैं और उन का इकलौता बेटा नागपुर में इंजीनियरिंग कर रहा है.’’

‘‘हम तीनों एक ही कालेज में पढ़ी हैं. 12वीं कक्षा तक तो हम एक ही क्लास में थीं. बाकी लड़कियां हमें 3 देवियां कहती थीं. 12वीं कक्षा के बाद बीए में हमारे विषय अलगअलग हो गए थे. सुकन्या का विवाह तो बीए के बाद ही हो गया था. अनीता और मेरा एमए करने के बाद. अनीता ने अंगरेजी में एमए किया था और मैं ने ड्राइंग ऐंड पेंटिंग में.’’

वे दिन याद आए तो साथ में और भी बहुत कुछ चाहाअनचाहा याद आने लगा. अब तो हम तीनों के विवाह को 20-22 साल हो गए थे. अब उस उम्र की बातें याद करते हुए कुछ अजीब सा लगने लगा. जब भी विनोद का खयाल आता है, मेरे मन का स्वाद कसैला हो जाता है. अच्छा ही हुआ उस लालची इंसान का सच जल्दी सामने आ गया था. मेरी टीचर मां उस के दहेज के लालच को कहां पूरा कर पातीं. पिता का साया तो मेरे सिर से मेरी 13 वर्ष की उम्र में ही उठ गया था. जब से अमित से विवाह हुआ है, कुदरत को धन्यवाद देते नहीं थकती हूं मैं.

और सुकन्या ने अनिल को कैसे भुलाया होगा. अनिल और सुकन्या बीए में एक ही सैक्शन में थे. धीरेधीरे जब दोनों के प्रेम के चर्चे होने लगे तो बात सुकन्या के घर तक पहुंच गई और फिर सुकन्या का विवाह बीए करते ही कर दिया गया. अनीता और मुझ से सुकन्या के आंसू देखे नहीं जाते थे. वह बारबार मरने की

बात करती और हम उसे समझाते रहते. उधर अनिल का हाल कालेज में एक मजनू की तरह हो गया था. हम जब भी उसे देखते उस पर तरस आता.

पहले सुकन्या, फिर मेरा विवाह भी हो गया. अनीता शुरू से जानती थी अगर उस के घर में किसी को भी उस का कोई प्यारव्यार का चक्कर सुनने को मिलेगा तो उस की पढ़ाई छुड़वा दी जाएगी, इसलिए वह हमेशा इन चक्करों से दूर रही. बस हंसते हुए हमारे किस्से सुनती और अब हम अपनीअपनी गृहस्थी में वे किस्से, वे बातें सब भूल चुके थे.

छुट्टियों तक का समय बेसब्री से बिताया. अमित और बच्चे मेरे उत्साह पर मुसकराते रहे. तय समय पर मैं एअरपोर्ट से टैक्सी ले कर पहुंच रही थी. अनीता ने कहा भी था वह मुझे लेने आ जाएगी, फिर साथ चलेंगे, लेकिन जब मुझे पता चला उस के पति को क्लीनिक छोड़ कर इतनी दूर लेने आना पड़ेगा तो मैं ने प्यार से मना कर दिया. मुझे आदत है ऐसे जाने की.

मेरा शहर आ गया था. मेरी जन्मभूमि, यहां की मिट्टी में मुझे अपनी ही खुशबू महसूस होती है. यहां की हवा में मैं मातृत्व सा अपनापन महसूस करती हूं. मेरे चेहरे पर एक गहरी मुसकान आ जाती है जैसे मैं फिर एक नवयौवना बन गई हूं. वैसे भी मायके आते ही एक धीरगंभीर महिला भी चंचल तरुणी बन जाती है.

घर पहुंच कर फ्रैश हो कर खाना खाया. मां और रेनू भाभी ने पता नहीं कितनी चीजें बना रखी थीं. मैं सब के साथ थोड़ी देर बैठ कर सुकन्या के घर जाने के लिए तैयार हो गई.

भाभी ने हंसते हुए कहा, ‘‘सहेलियों में हमें मत भूल जाना.’’

सब हंसने लगे. अनीता भी वहीं आ चुकी थी. अपनेअपने मोबाइल पर हम लगातार संपर्क में थीं. हम तीनों ने जब 20 साल बाद एकदूसरे को देखा तो मुंह से बोल ही नहीं फूटे, फिर बिना कुछ कहे भीगी आंखें लिए हम तीनों एकदूसरे के गले लग गईं. सुकन्या के मातापिता और भाई हमें एकटक देख रहे थे. फिर तो बातों का न रुकने वाला सिलसिला शुरू हो गया और कब लंच टाइम हो गया पता ही नहीं चला.

तभी सुकन्या की भाभी ने आ कर कहा,

‘‘3 देवियो, खाना लग गया है, पहले खाना खा लो… ये बातें तो अभी खत्म होने वाली नहीं हैं.’’

दिन भर साथ रह कर हम तीनों शाम को अपनेअपने घर आ गईं. मां मेरा इंतजार कर रही थीं, देखते ही बोलीं, ‘‘यह क्या बेटा, पूरा दिन वहीं बिता दिया?’’

भाभी भी कहने लगीं, ‘‘अब कल कहीं मत जाना. उन्हें यहीं बुला लेना नहीं तो हम इंतजार करते रह जाएंगे और तुम्हारा यह हफ्ता ऐसे ही बीत जाएगा.’’

भद्रा का भय

किटी पार्टी में सरोज कुछ उखड़ीउखड़ी सी लग रही थी. मीना ने उसे सहज करने के उद्देश्य से पूछा,

“अरे सरोज, तुम नितिन के लिए लड़की देखने गई थी ना… क्या हुआ? पसंद आई कि नहीं?”

“क्या बताऊं,” कहते हुए सरोज ने जो आपबीती सुनाई, उस ने हम सब को हैरत में डाल दिया. मीना को तो उस पर तरस आ रहा था. हुआ यों कि सरोज परिवार सहित अपने इंजीनियर एमबीए बेटे नितिन के लिए लड़की देखने गई थी.

लड़की का बायोडाटा और फोटो देख कर वह पहली ही नजर में पूरे परिवार को पसंद आ गई थी, मगर बायोडाटा के साथ लड़की की जन्मकुंडली नहीं थी, इसलिए वे साथ में अपने पंडितजी को भी ले कर गए, ताकि जन्मकुंडली आदि वहीं मिलान हो जाएं और सबकुछ ठीक रहा तो तुरंत ही इस रिश्ते पर मुहर लगा दी जाए.

लड़की रमा का पढ़ालिखा परिवार इस तरह के ढकोसलों को नहीं मानता था. उस के पिताजी ने कहा,  “हम ने तो रमा की कुंडली बनवाई ही नहीं.”

“कोई बात नहीं. आप बिटिया का जन्मस्थान, तारीख, वर्ष और समय बता दीजिए, कुंडली तो मैं अभी बना देता हूं,” पंडितजी ने तुरंत समस्या का समाधान सुझा दिया.

रमा की मां द्वारा दी गई जानकारी के आधार पर पंडितजी ने सारे डाटा अपने लैपटॉप में ‘कुंडली सौफ्टवेयर’ में डाले और हाथोंहाथ रिजल्ट दिखा दिया.

सब खुश थे, क्योंकि उस सौफ्टवेयर के अनुसार, नितिन और रमा के 36 में से 30 गुण मिल रहे थे.

“इस रिश्ते में कोई रुकावट नहीं है… दोनों की शादी बहुत सफल होगी,” पंडितजी ने सब को आश्वस्त किया.

“सुभष्य शीघ्रम,” कहते हुए रमा की मां मिठाई का डब्बा ले आई, तो सरोज भी तुरंत अपने पर्स में से शगुन का लिफाफा निकाल कर रमा की तरफ बढ़ी, तभी पंडितजी बोले, “थोड़ा ठहरिए यजमान, अभी भद्रा

काल है… किसी भी तरह का शुभ कार्य निषिद्ध है… आप 2-3 घंटे बाद ही ये शगुन बिटिया के हाथ में दीजिएगा.”

“क्या बकवास है? हमें इस तरह के पाखंड पर जरा भी यकीन नहीं है,” रमा के पिता ने कहा.

“नितिन, क्या तुम भी ये सब मानते हो?” उन्होंने नितिन की तरफ देखते हुए पूछा.

यह सुन कर नितिन सकपका गया. वह कभी अपनी मां की तरफ तो कभी रमा की तरफ देखने लगा. फिर धीरे से वह बोला, “बात यकीन की नहीं है… मगर यदि सवाल जिंदगीभर के रिश्ते का हो, तो 2-3 घंटे इंतजार करने में हर्जा भी क्या है…”

“माफ़ कीजिए, मगर मुझे नहीं लगता कि रमा आप के दकियानूसी परिवार में एडजस्ट कर पाएगी…

हमें ये बात यहीं खत्म कर देनी चाहिए,” कहते हुए रमा के पिता ने दोटूक शब्दों में अपना फैसला सुना दिया, तो सब के मुंह लटक गए.

“भद्रा” के भय से सरोज एक अच्छे घरपरिवार से रिश्ता जोड़ने से चूक गई.

“क्या सरोज, तुम इतनी मौडर्न हो कर भी इन सब बातों पर यकीन करती हो?” मीना ने उसे ताना दिया.

“जब बात अपनों के मंगलअमंगल की हो तो हर बात पर यकीन करना पड़ता है,” कह कर सरोज ने मीना को आगे कुछ भी कहने का मौका नहीं दिया.

हमारी सोसाइटी में सभी त्योहार मिलजुल कर मनाए जाते हैं. पिछले साल होली की ही बात है…

सोसाइटी के प्रांगण में हर साल की तरह ही होलिका दहन की तैयारियां पूरी हो चुकी थीं. हम सभी वहां इकट्ठे हो चुके थे, तभी मेरी पड़ोसन शीला की सासू मां, जो इन दिनों उस के पास आई हुई थीं और सुबह उठते ही न्यूजपेपर को पढ़ने की शुरुआत ज्योतिष और पंचांग वाले कालम देखने से करती हैं, बोलीं, “अपनी सुविधा के अनुसार शास्त्रसम्मत काम नहीं किए जा सकते… आज भद्रा काल होने के कारण होलिका दहन का शुभ मुहूर्त मध्य रात्रि के बाद ही है… दहन तो भद्रा काल की समाप्ति पर ही होगा, वरना अनिष्ट के लिए तैयार रहना…”

उन की बात सुन कर सब के चेहरे लटक गए. अब बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे… एक तो सम्मानित

बुजुर्ग महिला… ऊपर से अनजाने अनिष्ट की आशंका… सोसाइटी में उन के खिलाफ जा कर किसी की भी हिम्मत होलिका दहन करने की नहीं हुई. नतीजतन, मध्य रात्रि को जब औपचारिकतावश होलिका दहन किया गया,

तब सिर्फ गिनेचुने लोग ही उपस्थित हो सके और भद्रा के भय से एक मौजमस्ती का त्योहार महज रस्म

निभाना भर बन कर रह गया. देर रात तक जागने के कारण लोगों का कीमती समय खराब हुआ, सो अलग…

उन की बातें सुनतेसुनते मुझे भी 5 साल पहले अपने भाई की शादी का किस्सा याद आ गया, जब इसी

भद्रा दोष के कारण उस की हलदी की रस्म आधी रात के बाद लगभग 2 बजे की गई. शादी में आए सभी

मेहमानों को देर रात तक जगने के कारण खासी परेशानी का सामना करना पड़ा था. साथ ही, उन का उत्साह भी फीका पड़ गया था.

कौन है भद्रा

तो आखिर क्या है ये भद्रा काल? क्यों लोगों को इस काल में शुभ कार्य की शुरुआत या समाप्ति करने को मना किया जाता है? मैं ने इस बारे में जानकारी लेने के लिए पंडित नारायण प्रसाद तिवारी से पूछताछ की.

अपने ज्ञान पर गर्व करते हुए उन्होंने बताया, “पुराणों और धर्मग्रंथों के अनुसार भद्रा सूर्य की पुत्री और शनि की बहन है. यों तो भद्रा का शाब्दिक अर्थ ‘कल्याण करने वाली’ होता है, मगर धर्मग्रंथों में जिस तरह शनि को विकराल बताया गया है, उसी तरह भद्रा का स्वभाव भी विनाशकारी बताया गया है. इस के इसी स्वभाव को

नियंत्रित करने के लिए ब्रह्मा ने इसे पंचांग में एक प्रमुख अंग ‘करण’ में स्थान दिया है.

उन्होंने आगे बताया, “भद्रा चलायमान होती है और तीनों लोकों में भ्रमण करती रहती है. जिस काल में यह मृत्युलोक यानी पृथ्वी पर विचरती है, तभी इस का असर पृथ्वी के प्राणियों पर प्रभावी होता है और वह  अनिष्टकारी होता है.”

पंडित नारायण प्रसाद तिवारी के अनुसार, भद्रा काल में विवाह, मुंडन, गृहप्रवेश, यज्ञोपवीत, रक्षाबंधन या कोई भी अन्य काम शुरू करना वर्जित माना गया है, लेकिन इस काल में आपरेशन करना, मुकदमा करना या राजनीति से संबंधित आदि काम शुभ माने गए हैं.

“पंडितजी, यदि कोई काम करना अत्यंत ही जरूरी हो और उस दौरान भद्रा काल हो, तो क्या कोई उपाय है?” मेरा अगला प्रश्न था.

“हां, है ना… यदि ऐसा हो, तो भद्रा का व्रत कर के उस काम को करने से भद्रा दोष नहीं लगता,” पंडितजी ने व्रत करने की विधि बताते हुए उस के विधान में लगने वाली सामग्री की एक लंबी सूची बता दी.

“यदि किसी को पता ही न हो कि भद्रा काल चल रहा है और अनजाने ही काम कर लिया जाए तो…?” मैं ने अनाड़ी बनते हुए फिर प्रश्न किया.

“फिर तो क्या किया जा सकता है… यों तो कई धर्म हैं, जो इसे नहीं मानते… वे भी तो अपने काम करते

ही हैं…” पंडितजी को अब कोई सटीक उत्तर नहीं सूझ रहा था.

“यानी भद्रा काल सिर्फ धर्म विशेष पर ही लागू होता है?” मैं ने हंसते हुए पूछा, तो वे नाराज हो गए. मगर मेरे मन में ये प्रश्न मंथन करने के लिए छोड़ गए कि क्या ये संभव है कि एक ही वक्त जब पंचांग के अनुसार भद्रा काल दोष हो, तो किसी के लिए अनिष्टकारी और दूसरे के लिए प्रभावहीन हो सकता है?

मन के भीतर है भय

हमारे आसपास ऐसे बहुत से लोग मिल जाएंगे, जिन के दिन की शुरुआत अखबार में पंचांग देखने से होती है. भद्रा काल, राहु काल, राशिफल आदि देख कर ही वे अपने पूरे दिन का कार्यक्रम बनाते हैं. और तो और, दिनभर में अपने साथ होने वाले किसी भी अच्छेबुरे अनुभव को इस से जोड़ कर देखना भी कई धर्मभीरु लोगों की मानसिकता बन जाती है.

कुछ साल पहले की बात है. रक्षाबंधन के दिन शाम तक भद्रा काल का योग ज्योतिषियों द्वारा बताया  गया था. सभी लोकल समाचारपत्रों में इस की सूचना थी. भद्रा दोष के कारण त्योहार का पूरा दिन मायूसी में बीता और सारा मजा भी किरकिरा हो गया. कई बहनें जिन की वापसी की बसट्रेन उसी दिन की थी, उन्हें अपने भाइयों की कलाई सूनी ही छोड़ कर जाना पड़ा.

आखिर जिस भाई की सलामती के लिए वे राखी बांधती हैं, उसी भाई का अनिष्ट होते कैसे देख सकती हैं… बहनें या भाई इस अंधविश्वास को ना भी मानें, तब भी परिवार के अन्य सदस्य और रिश्तेदार उन्हें मानसिक दबाव डाल कर इसे मानने पर विवश करते हैं.

आशा भी ससुराल से एक दिन के लिए अपने भाई को राखी बांधने मायके आई थी और उसे उसी दिन वापस भी लौटना था, मगर भद्रा काल में यात्रा करना भी शुभ नहीं माना जाता.

आशा की मां ने उस से राखियां घर के मंदिर में रखवा दी और फोन कर के पंडितजी से सलाह मांगी. वे बोले, “जिस दिशा में भद्रा लगी है, उसे छोड़ कर अन्य दिशाओं में यात्रा की जा सकती है.”

मगर संयोग से आशा को तो उसी दिशा में यात्रा करनी थी. इस का उपाय भी पंडितजी द्वारा तुरंत निकाल दिया गया. समाधान यह था कि घर से बाहर निकलने पर कुछ दूर विपरीत दिशा में चला जाए, फिर यात्री अपना रास्ता बदल ले… इस तरह करने से ये भद्रा का दोष नहीं लगेगा.”

आशा बिफर गई. भद्रा को कोसते हुए वह कहने लगी, “तो क्या आज इस दिशा में जाने वाली सभी बसें, ट्रेनें बिना यात्रियों के चलेंगी? नहीं ना… तो फिर हम क्यों इस काल के जाल में उलझ कर अपना कीमती वक्त बरबाद करें? मैं अपने भाई को राखी भी बांधूंगी और आज ही वापस भी जाऊंगी. जो होगा देखा जाएगा…

आशा की जिद तो जीत गई, मगर जब तक वह सहीसलामत अपने घर नहीं पहुंच गई, उस की मां का दिल भद्रा के भय से धड़कता रहा.

भय छोड़ के आगे बढ़ें

आज समय इतनी तेजी से आगे बढ़ रहा है कि इन सब बातों पर सोचने के लिए किसी के पास वक्त ही नहीं है. आज की पीढ़ी वार और तिथि से नहीं, बल्कि कैलेंडर की तारीखों के हिसाब से ही चलती है. ऐसे में भद्रा काल कब होता है और कब बीत जाता है, किसी को अहसास भी नहीं होता.

युवा पीढी बेशक अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में भद्रा काल को अधिक महत्त्व नहीं देती हो, मगर जब बात किसी शुभ काम को करने की या अपनों के मंगल की आती है, तो उस के दिलोदिमाग में बरसों से जड़ें जमाए बैठी अनिष्ट की वही पुरानी आशंका अपना फन फैलाने लगती है और फिर उसे अपनी गिरफ्त में ले कर

शुभ मुहूर्त की चाह को बलवती कर किसी पंडेपुजारी के दरवाजे पर ला कर खड़ा कर देती है. धर्म के तथाकथित ठेकेदार, जो सदियों से कर्मकांड के पत्थरों को आस्था के फूलों में लपेट कर भोलेभाले लोगों के मानस पर प्रहार कर पंगु बनाते आ रहे हैं, उन्हें अनिष्ट का डर दिखा कर अपनी झोली तो भरते ही हैं, साथ ही उन का कीमती वक्त भी बरबाद करते हैं.

जिम्मेदार कौन?

हमारी इनसानी फितरत भी कहीं न कहीं इस के लिए जिम्मेदार है, क्योंकि हम में से कोई भी अपनी असफलता या अपने साथ हुए किसी भी प्रकार के अनिष्ट को अपने खुद के प्रयासों की कमी नहीं मानना चाहता.

हम सभी की प्रवृत्ति इसे किसी अन्य पर टाल कर बेफिक्र हो जाने की होती है और इसी का लाभ पाखंडियों द्वारा उठाया जाता है. किसी भी बुरी घटना को काल या ग्रहों की स्थिति से जोड़ कर ये अपने यजमान को दोषमुक्त कर देते हैं कि जो कुछ भी हुआ, उस के लिए आप नहीं, बल्कि यह समय, यह घड़ी, ये पल दोषी है… और जैसे ही ये अनिष्टकारी समय समाप्त हो जाएगा, सबकुछ अपनेआप ठीक हो जाएगा. यही तो हम चाहते हैं कि हमारे अनिष्ट का ठीकरा किसी अन्य के सिर फूटे. हमारी इसी कमजोरी का फायदा सदियों से उठाया जा रहा है.

हमें ये सच स्वीकारना होगा कि समय अपनी गति से चलता है. हमारी सफलता या असफलता के लिए जिम्मेदार हम स्वयं होते हैं. हमारे अपने प्रयास, अपनी मेहनत ही तय करते हैं कि किसी काम में हमारी सफलता का कितना प्रतिशत होगा. इस के लिए न तो कोई काल जिम्मेदार होता है और ना ही किसी ग्रह का चक्र…

भद्रा के भय के चक्रव्यूह से बाहर निकलिए… अपने शुभअशुभ की जिम्मेदारी स्वयं उठाइए… अपना कीमती वक्त बरबाद न कीजिए, बल्कि उसे किसी सार्थक काम में लगाइए… एकबारगी ये थोड़ा मुश्किल लग सकता है, मगर कहते हैं ना कि, “मुश्किल नहीं है कुछ भी अगर ठान लीजिए…”

अक्षय कुमार का तंबाकू विज्ञापन और मुआफी

अक्षय कुमार खिलाड़ी कुमार के नाम से भी बॉलीवुड में जाने जाते हैं 90 के दशक में जब वे फिल्मी दुनिया में आए तो वह अपनी नकल के कारण हाशिए पर रहते थे. मगर धीरे-धीरे उन्होंने अभिनय कला को कुछ ऐसा साधा है कि आज उनकी फिल्में 200-300 करोड़ के क्लब में बड़ी आसानी से पहुंच जाती है.

अक्षय कुमार नाम है एक ऐसे फिल्म अभिनेता का जो हमेशा सुर्खियों में बना रहता है कभी प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी का साक्षात्कार ले कर के, कभी उनका समर्थन करके और कभी अपनी फिल्मों और अपनी कार्यशैली के कारण हाल में उन्होंने विमल तंबाकू गुटखा एक ऐसा विज्ञापन किया जिसके कारण उनके फैंस ने उन्हें ट्रोल करना शुरू कर दिया, अब यह अक्षय कुमार की ही समझदारी है कि उन्होंने अपने प्रशंसकों की बात को गंभीरता से लिया और यह घोषणा कर दी है कि वह आगे ऐसे किसी भी विज्ञापन में काम नहीं करेंगे .

जैसा कि होना चाहिए था उनके प्रशंसक अक्षय कुमार की इस भलमनसाहत की भी खूब प्रशंसा कर रहे हैं.

दरअसल, अक्षय कुमार ने हाल ही में तंबाकू ऐड में अजय देवगन  और शाहरुख खान के साथ नजर आए थे. इस ऐड के सामने आते है कि अक्षय को सोशल मीडिया पर खूब खरी-खोटी सुनाई. यह विज्ञापन आते ही  कुछ प्रशंसकों ने उनका एक पुराना साक्षात्कार शेयर कर उन्हें ट्रोल करना शुरू कर दिया.

अक्षय कुमार ने खुद को ट्रोल होता देख आखिरकार संवेदनशीलता का परिचय दिया और खुद को इस विज्ञापन से अलग कर दिया और यही नहीं आधी रात को इंस्टाग्राम पोस्ट के जरिए फैन्स से माफी मांगी.

अक्षय कुमार ने लंबा चौड़ा पोस्ट लिखकर अपनी बात कही उसके बाद तो अक्षय कुमार के प्रशंसकों ने बढ़-चढ़कर उनकी भूरी भूरी प्रशंसा करनी शुरू कर दी जो स्वाभाविक है क्योंकि आज के समय में कोई भी स्टार अपनी गलती मानने को तैयार नहीं है.

खिलाड़ी कुमार की उदार माफी

खिलाड़ी कुमार यानी अक्षय कुमार पर जब प्रशंसक व्यंग बाण छोड़ने लगे तो अक्षय कुमार ने इंस्टाग्राम पर पोस्ट शेयर कर लिखा- ” मैं सभी फैन्स और अपने वेल विशर्स से माफी मांगता हूं.  आपसे मिले रिसपॉन्स ने मुझे हिलाकर कर रख दिया. मैं तंबाकू का सपोर्ट नहीं किया और आगे भी इसका समर्थन नहीं करूंगा. मैं आप सबसे इमोशन्स की कद्र करता हूं और जिस तरह से आपने मेरे विमल इलायजी के ऐड पर अपना रिएक्शन दिया, उसका मैं सम्मान करता हूं. मैं इस विज्ञापन से खुद को हटाता हू्ं और मैंने तय किया है कि इस ऐड जो फीस मुझे मिली है उस अच्छे काम में लगाऊंगा.”

अक्षय कुमार यहीं नहीं रुके उन्होंने आगे बढ़ कर लिखा

– ” चूंकि कुछ कानूनी नियमों की वजह से ये ऐड तय समय पर रिलीज करने का कॉन्ट्रेक्ट है, लेकिन मैं आप सबसे वादा करता हूं कि फ्यूचर में इस तरह का कोई काम नहीं करूंगा. मैं इसके बदला में आप सभी ने प्यार और शुभकामनाएं चाहता हूं. ”

हमने देखा है कि बॉलीवुड में ऐसी घटनाएं कम ही घटित हुई है बड़े स्टार अभिनेताओं सामने आकर के माफी मांगते हैं, ऐसा दक्षिण की फिल्मों के अभिनेता तो करते हैं मगर बालीवुड में ऐसा नजारा कभी दिखाई देता है.

आम: कैलोरी से भरपूर, कम खाएंगे तो नहीं बढ़ेगा वजन

आम न सिर्फ खाने में अच्छा लगता है, बल्कि यह स्वास्थ्यके लिए भी गुणकारी है. आम में भरपूर मात्रा में विटामिन ए, विटामिन बी, विटामिन सी, पोटैशियम और आयरन होता है. इस के अलावा आम में शर्करा भी प्रचुर मात्रा में होती है, जो शरीर में ऊर्जा बढ़ाने का काम करती है.

पाचनशक्ति और रोग प्रतिरोधक क्षमता होती है मजबूत

आम विटामिन्स की मौजूदगी के कारण आंखों के लिए अच्छा होता है. साथ ही आम में फाइबर की मात्रा भी भरपूर होती है, जिस से पाचनशक्ति मजबूत होती है. आम के सेवन से हृदय सम्बंधी बीमारियां भी नहीं होती हैं. आम खाने से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी मजबूत होती है.
आम में ऐंटीऔक्सीडेंट भी काफी मात्रा में होते हैं, इसलिए इस के नियमित सेवन से कैंसर जैसी घातक बीमारियों से भी बचा जा सकता है. लेकिन आम के नियमित सेवन से वजन भी बढ़ सकता है आइए इस बारे में जानते हैं.

आम में कैलोरी बहुत होती हैं

एक सामान्य आम में 150 कैलोरी  होती हैं. इसलिए इस के नियमित सेवन से वजन बढ़ सकता है. दरअसल, इस का मुख्य कारण यह है कि आम में कैलोरी बहुत ज्यादा मात्रा में पाई जाती है. एक सामान्य आकार के आम में 150 कैलोरी होती हैं जो वजन आसानी से बढ़ा सकती है.

डाइटिंग करते समय आम से करें परहेज

आप डाइटिंग कर रहे हैं और फलों का सेवन कर रहे हैं तो आम को बिल्कुल ही कम मात्रा में लें. क्योंकि आम में काफी मात्रा में शर्करा होने के कारण इस से वजन कम नहीं होगा. वजन कम करने के लिए लो कैलोरी वाले फल ही खाएं जैसे गर्मी के मौसम में तरबूज, संतरा, एवोकेडो और सेब आदि फलों के जूस का सेवन कर के अपना वजन कम कर सकते हैं.

यदि आम बिल्कुल ही कम मात्रा में  खाया जाए तो इस से वजन नहीं बढ़ेगा, लेकिन ज्यादा खाने से वजन बढ़ने के साथसाथ इस से सेहत को भी नुकसान हो सकता है. कई लोगों को गर्मी में भोजन के तुरंत बाद आम खाने की आदत होती है, जो गलत है. इस के अलावा मेंगो शेक शक्कर मिला कर पीने से बचना चाहिए. चूसने वाले यानी दशहरी आम ज्यादा खाने चाहिए क्योंकि इन का टेस्ट खट्टामीठा होता है और इन में शुगर भी ज्यादा नहीं होती है.

इन बातों का रखें खयाल

आम खाते समय इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि जो आम आप खा रहे हैं वे किस तरह पकाए गए हैं. इन दिनों बाजार में कार्बेट द्वारा पकाए गए फल ज्यादा मिलते हैं. कार्बेट एक तरह का रसायन होता है, जिस में फल पकाने पर इस का दुष्प्रभाव शरीर पर भी हो सकता है. अन्य फल खरीदते समय इस बात का जरूर ध्यान रखें कि वे रसायनों के जरिए न पकाए गए हों. आम के साथ इस के पत्ते भी गुणकारी होते हैं. इस के पत्तों से डायबिटीज, कोलेस्ट्रॉल, खांसी, किडनी स्टोन जैसी बीमारियों का इलाज किया जाता है.

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