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Mother’s Day 2022- एक मां का पत्र: रेप पर बेटे से क्या कहना चाहती है मां?

‘‘प्रियविभोर,

‘‘शुभाशीष,

‘‘जब तुम्हें मेरा यह पत्र मिलेगा तो तुम्हें हैरानी अवश्य होगी कि मुझे अचानक क्या हो गया जो मैं ने तुम्हे यह पत्र भेजा है, जबकि रोज ही तो हम दोनों की बात फोन पर होती और समय मिलने पर तुम वैबकैम पर भी मुझ से बात कर लेते हो. फिर ई मेल और व्हाट्सऐप के इस जमाने में पत्र लिखता ही कौन है. चैट करना आसान है. इसलिए तुम्हारे चेहरे पर आए आश्चर्य के भावों को बिना देखे भी मैं महसूस कर पा रही हूं.

‘‘तुम्हें होस्टल गए अभी मात्र 2 महीने ही हुए हैं. इस से पहले 19 साल तक तुम मेरे पास थे. लेकिन मुझे यह लगता है कि आज जो मैं तुम से कहना चाहती हूं उसे कहने का यही उपयुक्त समय है, जब तुम मुझ से और परिवार से दूर रहे हो. जब तुम पास थे तब शायद इन बातों को तुम सही तरीके से समझ भी नहीं पाते. हर बात समय पर ही समझ आती है, हालांकि बचपन से ही मैं ने तुम्हें अच्छे संस्कार देने की कोशिश की है और मैं जानती भी हूं कि तुम उन संस्कारों का मान भी करते हो.

‘‘मेरे बेटे मुझे लगता है कि समाज इस समय जिस दौर से गुजर रहा है और आधुनिकीकरण की एक अलग ही तरह की परिभाषा गढ़ जिस तरह से आज की पीढ़ी ऐक्सपैरिमैंट करने के चक्कर में अपने संस्कारों को धूल चटा रही है, ऐसे में तुम्हें सही दिशा दिखाना मेरा कर्तव्य है.

‘‘होस्टल का माहौल घर जैसा नहीं होता और फिर वहां तुम्हारे नएनए दोस्त भी बन गए होंगे. उस के अपने आदर्श होंगे, सोच होगी, जिन के साथ हो सकता है तुम तालमेल न बैठा पाओ और सही मार्गदर्शन के अभाव में अपने लक्ष्य से भटक जाओ. भिन्न परिवेश से आए और बच्चों के जीवन जीने के पैमाने तुम से अलग हो सकते हैं.

‘‘हो सकता है तुम्हें उन की सोच पसंद न आए, हो सकता है उन्हें तुम्हारे विचार दकियानूसी लगें या वे तुम्हारी परवरिश का मजाक उड़ाएं. इस तरह का माहौल जब होता है तो भटक जाने की संभावना ज्यादा होती है.

‘‘यह तुम्हारा अपनी पढ़ाई पर ध्यान देने और उस के बाद कैरियर पर फोकस करने का वक्त है. बस इसीलिए तुम से कुछ कहना चाहती हूं. तुम्हें मेरी बातें अजीब लग सकती हैं पर एक मां होने के नाते मैं उन बातों को अनदेखा नहीं कर सकती हूं.

‘‘मैं तुम्हें समझाना चाहती हूं कि क्यों जरूरी है हर लड़की का सम्मान करना. उसे उस के शरीर के परे जा कर देखना. बुरी संगत में पड़ कर कोई ऐसी हरकत मत करना जिस से तुम खुद से नजरें न मिला सको. हां, मैं रेप जैसी वहशीपन की बात कर रही हूं. कुछ पल का मजा लेने के लिए एक लड़की की पूरी जिंदगी बरबाद करना. उस के परिवार को दुख और अपमान में जीने को विवश कर देना कैसा सुख है?

‘‘जब किसी लड़की के साथ बलात्कार होता है तो एक पूरा परिवार, एक पूरी पीढ़ी उस के दंश का शिकार होती है. कभीकभी तो उम्र निकल जाती है उस पीड़ा से बाहर आने में. फिर भी उस लड़की के जीवन में पहले जैसा कुछ भी सामान्य नहीं हो पाता है.

‘‘विडंबना तो यह है कि जो पुरुष एक पिता, एक भाई, एक बेटा

और पति होता है वह अपने जीवन में आने वाली हर औरत की रक्षा करने की कोशिश करता है, उस के प्रति प्रोटैक्टिव रहता है तो फिर किसी अन्य औरत के साथ वह कैसे रेप करने की हिम्मत जुटा पाता है? क्या तुम अपनी बहन व दूसरे किसी की बहन में इस तरह का भेदभाव कर पाओगे?

‘‘बचपन में जब तुम देखते थे कि कोई तुम्हारी छोटी बहन को तंग कर रहा है तो कितना गुस्सा आता था तुम्हें. एक बार किसी लड़के ने खेलखेल में उस की चोटी खींच दी थी तो तुम आगबबूला हो गए थे कि आखिर उस की हिम्मत कैसे हुई ऐसा करने की? जब तुम किसी लड़की के साथ बुरा व्यवहार होते देखो या कभी तुम्हीं कुछ करना चाहो तो याद रखना वह भी किसी की बहन है और तब तुम खुद ही रुक जाओगे.

‘‘बेटा, रेप जैसा घिनौना कृत्य केवल औरतों से ही नहीं जुड़ा है, यह केवल उन की ही समस्या नहीं है, क्योंकि इस में 2 पक्ष शामिल होते हैं-एक दोषी और दूसरा पीडि़ता. मुझे यकीन है तुम्हें दिल्ली में हुए निर्भया गैंग रेप की बात याद होगी. जिस तरह की क्रूरता और वहशीपन देखने को मिला था उसे भूल पाना किसी केलिए संभव ही नहीं है. तब एक आश्चर्यजनक बात हुई थी. पूरा देश उस के विरोध में खड़ा हो गया था और विरोध करने वालों में पुरुष भी थे. तब कितने सवाल मन को झिंझोड़ गए थे कि आखिर ऐसा वहशीपन कहां से जन्म लेता है?

‘‘मानती हूं कि कामवासना ऐसा करने के लिए प्रेरित करती है. औरत को मात्र भोग की वस्तु मानने से जन्म लेती है, उस पर पुरुष का अपना एकाधिकार मानने से जन्म लेती है. पुरुष जब उस के शरीर को रौंदता है तो वह उस की घृणा का पर्याय होता है तो यह घृणा आती कहां से है. जबकि हर पुरुष का जन्म एक औरत से ही होता है, वही उस का पालन करती है और उस के सुखदुख के पलों की साक्षी व बांटने वाली भी होती है.

‘‘जब सही समय आएगा तब तुम औरतपुरुष के सही संबंधों को खुद ही महसूस कर लोगे. सैक्स शब्द से तुम अपरिचित नहीं होगे बेटे, लेकिन इस खूबसूरत संबंध का रेप जैसे घिनौनेपन का सहारा लेना क्या तुम सही मान सकते हो…नहीं न…इसीलिए अगर अपने आसपास कभी ऐसा होते देखो तो बिना एक भी पल गंवाए उस का विरोध करना.

‘‘हमारे नेता, हमारे बुद्धिजीवी, हमारे समाज के तथाकथित सुधारक यह मानते हैं कि रेप के लिए खुद औरत ही जिम्मेदार होती है, क्योंकि वह देह दिखाने वाले कपड़े पहनती है, वह रात को देर तक बाहर रहती है, वह पुरुषों से दोस्ती करती है, जिस की वजह से बेचारे पुरुष बहक जाते हैं और उन से रेप हो जाता है.

‘‘औरत जिस तरह के कपड़े चाहे पहन कर आजादी से घूम सके, अपना मनचाहा कर सके, खुशी से जी सके और उन्मुक्त हो सांस ले सके. आखिर क्यों नहीं वह ताजा हवा को अपने भीतर उतरने दे सकती. सिर्फ इसलिए कि वह एक औरत है, क्योंकि उस की देह के कुछ हिस्से पुरुषों को आकर्षित करते हैं…

‘‘जब किसी लड़की के साथ बलात्कार होता है तो उस के ही चरित्र पर सवाल खड़ा कर उसे कठघरे में खड़ा कर दिया जाता है. मानसिक व शारीरिक रूप से टूटी लड़की को ही इस के लिए दोषी माना जाता है और रेपिस्ट या तो कुछ दिनों में जेल से छूट जाता है या फिर उस का जुर्म साबित ही नहीं हो पाता है. त्रासदी तो यह है कि खुला घूमता वह रेपिस्ट फिर किसी मासूम को अपनी हवस का शिकार बनाता है.

‘‘लड़की अपनी इज्जत बचाने की खातिर चुप रहती है, वह अगर इस के खिलाफ शिकायत करती है तो अदालत में तरहतरह से उसे प्रताडि़त किया जाता है मानो एक बार बलात्कार हो गया तो अब किसी के साथ कभी भी संबंध बना लेने में हरज ही क्या है. उस से पूछा जाता है कहांकहां बलात्कारी ने तुम्हें छूआ था? क्या उस वक्त तुम्हें भी मजा आया था? तुम्हारी बिना मरजी के कोई तुम्हें हाथ नहीं लगा सकता. इस का मतलब है तुम ने ऐसा होने की छूट दी होगी…

‘‘मैं चाहती हूं कि तुम औरतों का सम्मान करो. उन्हें देखते समय उन के शरीर के उभारों पर नजर डालने के बजाय उन की योग्यता की प्रशंसा करो…अपनी मां से यह सब सुनना तुम्हें अजीब लग रहा होगा. सकुचाहट भी हो रही होगी.

‘‘प्रकृति ने स्त्री को भावुक, संवेदनशील, सहिष्णु व कोमल बनाया है और यही उस की सुंदरता व आकर्षण है और उस के इसी गुण को पुरुष अपने शारीरिक बल के आधार पर उस को स्त्री की कमजोरी समझ कर, अपने अहंकार व दंभ से उसे दबाना अपनी बहादुरी समझ बैठता है.

‘‘बलात्कार का सब से दुखद पहलू यह है कि पीडि़ता को शारीरिक और मानसिक कष्ट ही नहीं सामाजिक लांछन भी सहना पड़ता है. यह भयानक प्रताड़ना है. इसलिए मजबूरी में अकसर यह चुपचाप सह लिया जाता है. इस के लिए बदलाव मात्र कानूनों में ही नहीं सामाजिक मान्यताओं में भी लाना जरूरी है और आज की पीढ़ी को ही इस बदलाव को लाना होगा. यानी तुम भी उस बदलाव का एक हिस्सा बनोगे…

‘‘जब भी इस तरह की घटना देखो तो तुम्हारे अंदर रोष पैदा होना चाहिए. जिस समाज में रोष नहीं होता उस के लोग भुगतते रहते हैं, खासकर औरत…

‘‘आज मैं तुम से अपना एक सीक्रेट शेयर करना चाहती हूं. जानती हूं किसी भी मां के लिए अपने बेटे के सामने ऐसा राज रखना कितना अपमानजनक व पीड़ादायक हो सकता है. पर आज मुझे लगता है कि तुम्हारे साथ इसे बांटना जरूरी है. हो सकता है तुम यह जानने के बाद आक्रोश से भर जाओ या तुम इसे बरदाश्त न कर पाओ. वहां तुम्हें संभालने के लिए मैं नहीं हूं, पर मुझे विश्वास है कि तुम इतने लायक तो हो कि खुद को संभालोगे और इस बात को समझोगे भी. मुझे इस बात का भी डर है कि कहीं यह जानने के बाद मेरे प्रति तुम्हारे व्यवहार में अंतर न आ जाए. पर बेटा ये सब जानने के बाद कोई गलत कदम मत उठाना… संयम से काम लेना.

‘‘बेटा, जब मैं कालेज में पढ़ती थी तो एक लड़का मुझे चाहने लगा था. यह

एकतरफा प्यार था. मैं ने उसे खूब समझाया कि मैं उसे पसंद नहीं करती और वह मुझ से दूर रहे. पर शायद उस का मेरे प्रति वह प्यार एक जनून बन गया था. उस ने मुझ से कहा कि वह मेरी हां सुनने के लिए इंतजार करेगा. पर उस ने मेरा पीछा करना नहीं छोड़ा. मैं उसे देख रास्ता बदल लेती. मेरी तरफ से कोई पौजीटिव रिस्पौंस न पा वह आगबबूला हो गया और एक दिन जब मैं कालेज जा रही थी तो उस ने जबरदस्ती मुझे अपने स्कूटर पर बैठा लिया.

‘‘वह मुझे अपने किसी दोस्त के घर ले गया. मैं ने उस से बहुत अनुनयविनय की कि वह मुझे छोड़ दे पर वह नहीं माना बस एक ही बात कहता रहा कि अगर तुम मेरी नहीं हो सकती तो मैं तुम्हें किसी और की भी नहीं होने दूंगा. मेरा विरोध बढ़ता देख उस ने मुझे मारना शुरू कर दिया. फिर मेरी अर्धबेहोशी की हालत में मेरा रेप किया.

‘‘तभी उस का दोस्त वहां आ गया. यह देख उस ने उसे बहुत मारा. उसे पता नहीं था कि यह दुष्कर्म करने के लिए उस ने उस के घर की चाबी ली थी. वह स्वयं को दोषी मान रहा था. मुझे उसी ने घर छोड़ा, जानते हो वह दोस्त कौन था…तुम्हारे पापा…हां बाद में उन्होंने ही मुझ से शादी की…पर उस दिन के बाद से आजतक कभी उस हादसे का जिक्र तक नहीं किया.

‘‘यह समझ लो मैं ने पत्र में जो भी कुछ तुम्हें कहना चाहा है, वह मेरा ही भोगा हुआ सच और पीड़ा है…

‘‘आशा है तुम्हें मेरी बातें समझ आ गई होंगी और एकदम साफसुथरी व सुलझी हुई दृष्टि के साथ तुम अब संबंधों को समझ पाओगे और लड़कियों का सम्मान भी करोगे. और यह भी आशा करती हूं कि मेरे प्रति तुम्हारे व्यवहार में कोई अंतर नहीं आएगा.

‘‘ढेर सारा प्यार

‘‘तुम्हारी मां.’’

Mother’s Day 2022: मां की डांट, बेटी का गुस्सा

बेटी को ले कर मां उस के बचपन से ही ओवर प्रोटैक्टिव होती है. मां नहीं चाहती जो परेशानी उस ने झेली, वह उस की बेटी भी झेले. यही कारण है कभी प्यार तो कभी डांट के जरिए वह बेटी को अपनी बात समझाती है. इस अनमोल रिश्ते की अहमियत मांबेटी दोनों को समझनी चाहिए.

अकसर बच्चे अपनी मां के सब से करीब होते हैं. उन के लिए मां सब से ऊपर होती हैं. लेकिन फिर भी मां की जरा सी डांट उन्हें गुस्से से आगबबूला कर देती है. मां और बेटी का रिश्ता घर में सब से अनूठा होता है. वे एकदूसरे के बाल बनाती हैं, साथ शौपिंग करती हैं, एकदूसरे को सौंदर्य टिप्स देती हैं और बीमार होने पर एकदूसरे का खयाल भी रखती हैं.

मां के लिए उस की बेटी अपने दूसरे जन्म के समान होती है, वह उसे जीवन की हर वह खुशी देना चाहती है जो उसे नहीं मिल पाई. बेटी के लिए मां आदर्श होती है, मां का स्नेह, प्यार बेटी की सब से बड़ी ताकत होती है. मां और बेटी का रिश्ता नोंकझोंक से भी भरा हुआ होता है. मां के पास डांट का हथियार होता है तो बेटी के पास मुंह फुलाने का. जब मां की चिंता व क्रोध, कठोर शब्दों में बदल कर बेटी पर अंगारे समान गिरता है तो इस वार के जवाब में वह गुस्से का सहारा लेती है. बेटी का गुस्सा भी कई स्तरों का होता है. पहला स्तर है, ‘नर्म गुस्सा.’ इस गुस्से में वह थोड़े नखरे दिखाती है, ना-नु करती है पर जल्दी मान जाती है. दूसरे स्तर का गुस्सा ‘ताने वाला गुस्सा’ होता है. इस गुस्से में वह मां से झगड़ती है, थोड़ा बुराभला कहती है और अपना नाम मां के मुंह से निकलता सुन भी ले तो राशनपानी ले कर उन पर चढ़ जाती है, ‘‘हां, मैं ही बेवकूफ हूं, भईया ही अच्छे हैं बस,’’ ‘‘मुझ से तो कोई प्यार नहीं करता. सब भईया को ही करते हैं,’’ कहकह कर कानों में दर्द करती है. तीसरे स्तर का गुस्सा ‘अनशन गुस्सा’ है. इस में बेटी भूखहड़ताल पर बैठती है. पूरा दिन उपवास और शाम को पापा के सामने से पानी पीपी कर निकलती है, तब तक जब तक पापा खाना खाने को नहीं बोलते. आखिर में मम्मीपापा के मनाने पर ही बेटी का उपवास टूटता है.

गुस्से का आखिरी पड़ाव थोड़ा चिंताजनक है. यह पड़ाव अकसर मांबेटी के रिश्तों में दूरियां पैदा करता है. कभीकभी मां अपनी बेटी से कुछ ऐसे शब्द बोल देती है जो बेटी के अंतर्मन को चोट पहुंचाते हैं. गुस्सा जब तक मुंह फुलाने, बातें सुनाने या शिकायत करने तक ही सीमित रहे तब तक सुरक्षित है, परंतु जब गुस्सा अपना आखिरी पड़ाव ले लेता है तो यह रिश्तों के लिए असुरक्षा पैदा कर देता है.

बेटी अगर मां से बात करना छोड़ देती है तो चाहे वह खाना खाए, दो शब्द बोले लेकिन उस की चहचहाहट, उस का लड़कपन कहीं खोने लगता है. बेटी का यह गुस्सा मां को दिखता तो है पर वह बातें सुना कर या उसे हलकाफुलका प्यार जता कर मना नहीं सकती.

इस नाराजगी और गुस्से को दूर करने के लिए बेटी को मां से और मां को बेटी से बैठ कर सभी कही गई बातों पर विचार करने की जरूरत होती है. जब तक आप बैठ कर अपनी मां से बात नहीं करेंगी तो शायद यह गुस्सा तो उड़ जाए लेकिन उस की बनाई दूरियां हमेशा वक्त के साथ गहराती रहेंगी.

अकसर जिन छोटीमोटी लड़ाइयों को हम नजरअंदाज कर देते हैं वे आगे बढ़ कर अपराध का रूप ले सकती हैं. आप अपनी मां से गुस्सा हैं, तो आप के मस्तिष्क में उन के लिए कड़वाहट भरना मुश्किल नहीं है, और कई बार यह कड़वाहट अपराधों का रूप ले लेती है.

जनवरी 2017 : मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के हबीबगंज इलाके के निवासी की 17 वर्षीया बेटी एक चिट्ठी छोड़ कर घर से भाग गई. घर से भागने का कारण मातापिता का बेटे को अधिक प्यार करना था. चिट्ठी में लड़की ने लिखा, ‘मुझे तलाशने की कोशिश मत करना, अब अपने बेटे को ही प्यार करना.’

अप्रैल 2018 : दिल्ली के कविनगर एरिया में एक बेटी ने अपनी ही मां की पीटपीट कर हत्या कर दी. हत्या का कारण बेटी के अपनी ही टीचर के साथ समलैंगिक संबंध थे, जिस का विरोध करने पर बेटी रश्मि राणा ने प्रेमिका टीचर निशा गौतम के साथ मिल कर मां को पीटपीट कर मार डाला.

दिसंबर 2018 : तमिलनाडु के थिरूवल्लूर में बेटी ने अपनी मां की चाकुओं से गोद कर केवल इसलिए हत्या कर दी क्योंकि उस की मां उसे घर छोड़ कर भागने के लिए मना कर रही थी. बेटी देवी प्रिया को फेसबुक पर बने दोस्त विवेक से प्यार हो गया. उस ने विवेक और उस के दोस्तों के साथ घर छोड़ कर भागने का इरादा कर लिया था. मां के रोकने पर प्रिया ने उन का कत्ल कर दिया.

उपरोक्त मामले इस बात के गवाह हैं कि किस तरह मांबेटी के आपसी मतभेद विकराल रूप ले लेते हैं और सनसनीखेज अपराधों में बदल जाते हैं. इन मामलों में मां और बेटी के बीच पड़ी दरारों को साफसाफ देखा जा सकता है. पहले मामले में यदि बेटी ने अपनी मां से अपने मन की बात कही होती और उस की मां ने अपनी बेटी की बात सुनी होती तो शायद उसे घर छोड़ कर भागना नहीं पड़ता.

अकसर मातापिता के बेटे की तरफ झुकाव से बेटियां खुद को अनचाहा महसूस करने लगती हैं, परंतु अगर मां अपनी बेटी की व्यथा समझ उसे गले से लगा ले और उसे उतना ही प्यार दे जितना अपनी दूसरी संतान को दे रही है तो शायद वह अपनी बेटी को समय रहते रोक सकती.

दूसरे और तीसरे मामले में मां और बेटी के बीच बातचीत की कमी साफसाफ देखी जा सकती है. बेटी के प्रेम संबंधों पर मां ने उसे आराम से समझाने की कोशिश की होती या बेटी ने अपने प्रेम में अंधे न हो कर मां की बात समझी होती तो शायद मां को अपनी जिंदगी से हाथ न धोना पड़ता.

क्या ज्यादा सेक्स करना हानिकारक होता है?

सवाल

मेरी उम्र 26 वर्ष है और मैं 2 महीने से बौयफ्रैंड के साथ लिवइन में रह रही हूं. हमारे बीच सैक्स रोज बल्कि रोजाना दोतीन बार हो जाता है. मैं ने सुना है कि ज्यादा सैक्स करने से वैजाइना फैल जाती है. क्या यह सच है? और वैजाइना को साफ करने के लिए वैजाइनल प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल करना चाहिए क्या?

जवाब

बौयफ्रैंड के साथ रोजाना सैक्स करने के कारण शायद यह बात आप के मन में आई है कि कहीं ज्यादा सैक्स करने से आप की वैजाइना ढीली या फैल न जाए.

वैजाइना को ऐसे सम?िए कि जैसे और्गेंजा साड़ी किसी छोटे से डब्बे में बंद है. डब्बा खोला जाए तो वह फूलने लगती है. लेकिन उसे दोबारा फोल्ड कर के डब्बे में बंद किया जा सकता है. उसी तरह वैजाइना दोबारा अपनी पोजीशन में सिकुड़ जाती है और यह एक मिथक है कि वैजाइना बहुत फैल जाती है, बाकी यह दूसरी बात है कि सब की अपनीअपनी बौडी होती है.

आजकल बाजार में कई तरह के वैजाइनल प्रोडक्ट्स आ गए हैं. आप को बता दें कि वेजाइना की सैल्फ क्लीनिंग होती है और अलग से प्रोडक्ट्स डाल कर उसे साफ करने की जरूरत नहीं होती है. वैजाइना फ्रैश और क्लीन स्मेल करे, इस के लिए परफ्यूम्ड प्रोडक्ट्स का भी इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन यह सही नहीं है, ये प्रोडक्ट्स वैजाइना के लिए सही नहीं होते हैं.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

अगर आप भी इस समस्या पर अपने सुझाव देना चाहते हैं, तो नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स में जाकर कमेंट करें और अपनी राय हमारे पाठकों तक पहुंचाएं.

Anupamaa: डेट पर जाएंगे अनुज-अनुपमा, देखें Video

स्टार प्लस का मशहूर सीरियल अनुपमा की कहानी में दिलचस्प मोड़ आ चुका है. शो में अनुपमा और अनुज जल्द ही शादी के बंधन में बंधने वाले है तो दूसरी तरफ वनराज अपनी आदतों से बाज नहीं आ रहा है. वह अनुपमा-अनुज की शादी रोकना चाहता है. शो के अपकमिंग एपिसोड में बड़ा ट्विस्ट आने वाला है. आइए बताते है, शो के नए एपिसोड के बारे में.

शो के बिते एपिसोड में दिखाया गया कि अनुपमा के साथ सबको मस्ती करते देख काव्या भी आती है. देविका, काव्या से कहती है कि वह मस्ती कर सकती है लेकिन गड़बड़ नहीं होनी चाहिए. अनु की मां कांता भी उनके साथ मस्ती करने के लिए तैयार हो जाती है. सबका प्यार देखकर अनुपमा इमोशनल हो जाती है.

 

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शो के अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि अनुज-अनुपमा डेट पर जाएंगे. तो दूसरी तरफ बा अनु को ताना मारेंगी कि इस उम्र में डेट पर जाना शोभा नहीं देता है. अनु बा को जवाब देती है कि कोई भी डेट पर जा सकता है और कहती है कि बा को भी बापूजी के साथ बाहर जाना चाहिए.

 

अनुपमा फिर कहती है कि अनुज के साथ बाहर जाने से पहले वह घर के सारे काम पूरा कर लेगी. किंजल अनुपमा को डेट पर जाने के लिए तैयार करती है. किंजल उसे मैरून सूट पहनने के लिए कहती है, काव्या को अनु से जलन होती है. वह वनराज से डेट पर जाने के बारे में पूछती है तो बा उसे उसके सामने ऐसी बातों के बारे में बात न करने के लिए डांटती है.

 

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शो में आप देखेंगे कि अनुज अनुपमा को शाह हाउस लेने आता है. दोनों अपने कॉलेज जाते हैं. वो दोनों अपने पुराने दिनों को याद करते हैं. अनुपमा काफी खुश होती है. तो दूसरी तरफ तोशू किंजल को डॉक्टर के पास ले जाने का फैसला करता है.

GHKKPM: विराट-सई लेंगे सात फेरे, भवानी करेगी बड़ा धमाका

टीवी सीरियल ‘गुम है किसी के प्यार में’ इन दिनों शादी का ट्रैक दिखाया जा रहा है. शो में शिवानी की शादी होने वाली है तो अब सई-विराट फिर से शादी करने वाले है. शो के आने वाले एपिसोड में खूब धमाल होने वाला है. आइए बताते है, शो के नए एपिसोड के बारे में.

शो में आप देखेंगे कि सई विराट से अपने दिल की बात कहने वाली है. सई कहेगी कि उसकी पत्नी को उससे प्यार हो गया है. इस बात को सुनकर देवी, पुलकित और राजीव खुश हो जाते हैं. सईं विराट से कहती है कि वह उससे बहुत प्यार करती है और उसके बिना अपने जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकती.

 

सई आगे कहेगी कि वह उससे लड़ना चाहती है, उसे गले लगाना चाहती है और उससे प्यार भी करती है. ऐसे में चौहान परिवार के कुछ सदस्य काफी खुश होंगे और सई के लिए ताली बजाएंगे.

 

तो दूसरी तरफ पाखी को जलन होगी. देवयानी कहेगी कि वह जानती थी कि सईं विराट को बहुत पहले से प्यार करता है. शो में ये भी दिखाया जाएगा कि सईं विराट से पूछेगी कि क्या वह भी उससे प्यार करता है?

 

तभी विराट ना कहेगा तो दूसरी तरफ पाखी, भवानी, ओंकार और सोनाली खुश हो जाएंगे. विराट कहेगा कि वह उससे प्यार नहीं करता है, लेकिन शुरू से ही उससे बहुत प्यार करता है, लेकिन जब उसने उसे कबूल किया तो उसने उसके प्यार को ठुकरा दिया.

सई विराट को गले लगाएगी. विराट घुटने टेककर सई को प्रपोज करेगा और उससे पूछेगा कि क्या वह उससे शादी करेगी. वह हां कहेगी है और उसे गले लगा लेगी. दूसरी तरफ भवानी आगबबूला हो जाएगी. शो में अब ये देखाना होगा कि भवानी सई-विराट को अलग करने के लिए कौन-सी चाल चलती है?

Mother’s Day 2022: लेबर पेन को कहें अलविदा

हर औरत के लिए मातृत्व सुख सब से बड़ा सपना होता है. इस के लिए वह किसी भी तकलीफ, सर्जरी या अन्य चिकित्सीय विकल्पों को आजमाने के लिए सहर्ष तैयार हो जाती है. अगर डिलिवरी आसानी से बिना किसी चीरफाड़ के हो जाए तो वह उस औरत के लिए एक खुशनुमा मौका होता है. हालांकि ज्यादातर गर्भवती महिलाओं को प्रसव के समय होने वाले दर्द व अन्य तकलीफों को ले कर थोड़ी चिंता रहती है, लेकिन चिकित्सा ने इतनी तरक्की कर ली है कि अब न तो डिलिवरी के लिए दाई के भरोसे रहना पड़ता है और न ही तकलीफें भरी रातें गुजारनी पड़ती हैं. वह समय गया जब प्रसव के दिनों में गांव की दाई गरम पानी के सहारे डिलिवरी करवाती थी और कौंप्लिकेशन की स्थिति में कई बार महिला की जान पर भी बन आती थी.

अब तो गर्भधारण के शुरुआती महीनों से ही डाक्टरी परामर्श शुरू हो जाता है. हर महीने जरूरी सावधानी और चिकित्सीय विकल्पों के जरीए 9 महीनों का अंतराल कब गुजर जाता है, पता ही नहीं चलता. बस जरूरत है सावधानी और सही जानकारी की. गर्भधारण से ले कर प्रसव तक सही जानकारी और चिकित्सीय जागरूकता अपनाई जाने से कैसे डिलिवरी आसानी से हो जाती है आइए जानते हैं:

नए अध्ययन और थेरैपी

हाल ही में एसएन मैडिकल कालेज के स्त्रीरोग विभाग द्वारा डिलिवरी को पूरी तरह दर्दरहित बनाने के लिए चल रही रिसर्च पूरी होने का दावा किया गया है. विभागाध्यक्ष, डा. सरोज सिंह के निर्देशन में डा. अनु पाठक ने विभाग में डिलिवरी के लिए आने वाली 120 गर्भवती महिलाओं पर अध्ययन किया, जिस के तहत सभी महिलाओं की पेनलैस डिलिवरी कराने के लिए उन्हें ऐपीड्यूरल यानी पीठ में इंजैक्शन लगाया गया. हालांकि यह इंजैक्शन तब लगाया गया जब महिलाओं को पहला दर्र्द उठा था.

ऐपीड्यूरल के दौरान महिलाओं को बैड पर लेटने की जरूरत नहीं थी. वे आराम से चलफिर सकती थीं. जैसे ही दूसरा दर्द उठता दूसरी डोज दे दी जाती. यह प्रक्रिया तब तक चलती रही जब तक डिलिवरी नहीं हो गई.

डा. अनु के अनुसार, इस तकनीक में कमर से नीचे का हिस्सा सुन्न कर दिया जाता है ताकि प्रसूता को प्रसवपीड़ा का एहसास न हो. पेनलैस डिलिवरी में बच्चे को कोई नुकसान न पहुंचे,

इस के लिए मशीन द्वारा बच्चे की धड़कन की मौनिटरिंग की जाती है. इस के अलावा कई तरह की थेरैपीज भी चलन में हैं, जो डाक्टरी परामर्श के साथ अपनाईर् जाए, तो प्रसव प्रक्रिया आसान हो जाती है. मसलन, हिप्नो थेरैपी, ब्रीदिंग थेरैपी और हिप्नोटिक थेरैपी. हिप्नोथेरैपी तकनीक में सबकौंशस माइंड को ऐक्सैस किया जाता है, जिस में रिसैप्टिव और रिस्पौंसिवनैस की हाई डिग्री होती है. इस पूरी प्रक्रिया में 40 से 50 मिनट लगते हैं.

ब्रीदिंग प्रक्रिया में गर्भवती महिला को लिटा कर रिलैक्स म्यूजिक और वर्बल इंस्ट्रक्शन से सांस छोड़ना और लेना सिखाया जाता है. इस से शरीर रिलैक्स मोड में आ जाता है. हिप्नोटिक प्रोसैस में माइंड रिवर्स काउंटिंग तकनीक से ऐक्सैस किया जाता है. इस में थेरैपी देने वाला विशेषज्ञ गर्भवती महिला को होने वाले शिशु से भावनात्मक तौर पर जोड़ने की कोशिश करता है. यह प्रक्रिया आमतौर पर 1 घंटे का समय लेती है.

सामान्य सिजेरियन, वाटर बर्थ

हर महिला चाहती है कि उस का प्रसव सामान्य विधि से हो यानी किसी भी तरह की सर्जरी के बिना. इस के पीछे कई कारण हैं. पहला तो यह कि सामान्य प्रसव में महिला को कई दिनों तक बिस्तर पर लेटे नहीं रहना पड़ता और दूसरा है खर्चा. गौरतलब है कि अस्पताल में सामान्य डिलिवरी में क्व15 से 20 हजार का खर्च होता है और सर्जरी में यही खर्च 50 हजार से 1 लाख के ऊपर तक चला जाता है. इसी के चलते आजकल निजी अस्पतालों में सर्जरी को ज्यादा महत्त्व दिया जाता है.

सर्जरी के मामले बढ़ने का कारण शुभ मुहूर्त के अलावा आर्थिक भी है. ज्यादा पैसे की चाह के चलते कई बार डाक्टर भी जटिलता बता कर सर्जरी कर देते हैं. कारण चाहे जो भी हो, बिना वजह कराईर् गई सर्जरी से मां और शिशु को सब से ज्यादा परेशानी झेलनी पड़ती है. इसलिए सभी पहलुओं पर गौर करने के बाद ही कोई विकल्प चुनें. अंधविश्वास में पड़ कर कभी कोई निर्णय न लें अन्यथा उस से मां व शिशु की सेहत पर असर पड़ सकता है.

जब प्रसव सामान्य स्थिति में हो:

आमतौर पर सिजेरियन के बाद महिला को 1 हफ्ते तक अस्पताल में रहना पड़ता है, जबकि सामान्य प्रसव में महिला को 24 घंटे में अस्पताल से छुट्टी दे दी जाती है. इस के अलावा सामान्य डिलिवरी के बाद महिला बहुत जल्दी रोजमर्रा के कामकाज कर सकती है, जबकि सिजेरियन में यह संभव नहीं. इतना ही नहीं सिजेरियन पर पेट के ऊपरी हिस्से में स्ट्रैच मार्क्स भी आते हैं, इसलिए ज्यादातर गर्भवती महिलाएं सिजेरियन डिलिवरी के बजाय नौर्मल डिलिवरी करवाना पसंद करती हैं. जो महिलाएं थोड़ाबहुत दर्द सहने की क्षमता रखती हैं उन्हें चिकित्सक सामान्य डिलिवरी के लिए कई सावधानियां अपनाने की सलाह देते हैं. मसलन, गर्भावस्था के दौरान डाक्टर के कहे अनुसार ही भोजन करें. सामान्य डिलिवरी में आप के शरीर से 3-4 सौ एमएल ब्लड जाता है. इसलिए ताकत और पोषण के लिए ज्यादा से ज्यादा पोषक तत्त्व युक्त भोजन करें. रोजाना 8-10 गिलास पानी पीना आवश्यक है.

अगर गर्भावस्था के पहले से महिला कोई व्यायाम करती रही हो, तो सामान्य प्रसव के अवसर बढ़ जाते हैं. इन तमाम उपायों को आजमाने से आप को स्वस्थ गर्भावस्था तो मिलेगी ही, साथ ही आप का प्रसव भी काफी आरामदेह तरीके से होगा. अगर महिला और शिशु दोनों का स्वास्थ्य ठीक है तो सर्जरी के बजाय सामान्य डिलिवरी को ही चुनें.

जब सिजेरियन की स्थिति हो:

कई बार मां या बच्चे की सेहत को खतरा देख कर की जाने वाली प्रसव सर्जरी प्रक्रिया को सिजेरियन की स्थिति कहते हैं. इस प्रक्रिया में गर्भवती महिला का औपरेशन करना पड़ता है. स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ इसे सामान्य डिलिवरी के बाद का सब से सुरक्षित तरीका मानते हैं. इस प्रक्रिया ने प्रसव प्रक्रिया को इतना आसान बना दिया है कि ज्यादातर औपरेशन 30-40 मिनट में निबट जाते हैं. इस प्रक्रिया में पेट पर चीरा लगा कर बच्चे को गर्भाशय से बाहर निकाला जाता है. सिजेरियन तभी किया जाता है जब गर्भवती महिला के ब्लडप्रैशर बढ़ने, दौरा पड़ने, छोटे कद वाली महिलाओं की कूल्हे की हड्डी छोटी होने, ज्यादा खून बहने, बच्चे की धड़कन कम होने या गले में गर्भनाल लिपटी होने, बच्चे का उलटा होने, कमजोरी, खून का दौरा कम होने, शिशु के पेट में मलमूत्र छोड़ देने आदि स्थितियों में सिजेरियन करना जरूरी हो जाता है.

विशेषज्ञ उन तमाम भ्रमों से दूर रहने को कहते हैं, जिन के सिजेरियन के बाद होने की आशंका जताई जाती है. मसलन, सिजेरियन से पैदा हुए बच्चे बीमार रहते हैं, सर्जरी के दौरान अतिरिक्त खून की जरूरत पड़ती है, 6 माह तक बिस्तर पकड़ना पड़ता है आदि. आमतौर पर औपरेशन के बाद घर की महिलाएं प्रसूता को टांके पकने के डर से नहाने के लिए मना करती हैं, जोकि गलत है. इस से संक्रमण होने का खतरा बढ़ता है. इसलिए डाक्टर के बताए अनुसार साफसफाई का ध्यान रखें. औपरेशन के

4-5 दिन बाद से महिला घर का काम कर सकती है. लेकिन वजन उठाने जैसे काम 6 माह के बाद ही करें. नियमित दवा और पौष्टिक खानपान पर पूरा ध्यान दें.

वाटर बर्थ:

यह तकनीक विदेशों में ज्यादा लोकप्रिय है. हालांकि यह अपने शुरुआती दौर से ही विवादों में रही है. इसे ले कर डाक्टरी तबका 2 धड़ों में बंटा है. एक धड़ा इसे अपनाने की सलाह देता है, तो दूसरा इनकार करता है. लेकिन यह प्रक्रिया भी डिलिवरी को सुरक्षित और झटपट बनाती है. वाटर बर्थ टैक्नोलौजी एक नया चिकित्सकीय तरीका है जिस में गर्भवती महिला के डिलिवरी पेन को कम करने के लिए पानी में डिलिवरी करवाई जाती है. डाक्टर मानते हैं कि इस प्रक्रिया में बच्चे और महिला को इन्फैक्शन का खतरा कम हो जाता है. भारत में राजस्थान राज्य में सब से पहली बार इस तरीके से प्रसव मीनाक्षी सिसोदिया का हुआ था.

वाटर बर्थ के दौरान कुनकुने पानी का बर्थिंग पूल होता है, जिस में पानी का तापमान एक स्तर पर रखने के लिए इन्फैक्शन विरोधी प्रणाली और वाटरप्रूफ उपकरणों का उपयोग किया जाता है. इस तकनीक का लाभ यह है कि इस में महिला को सामान्य की तुलना में 40% तक दर्द कम होता है. कुनकुना पानी तनाव से संबंधित हारमोन को कम कर देता है, इसलिए तनाव का लैवल भी कम हो जाता है और ऐंड्रोफिन हारमोन बनने से डिलिवरी के समय दर्द कम होता है. ऐनेस्थीसिया  देने की संभावना भी कम हो जाती है.

शुभ मुहूर्त का बढ़ता चलन

पहले बच्चे की डिलिवरी सर्जरी से होना काफी बड़ी बात मानी जाती थी, लेकिन अब सर्जरी आम बात हो गई है. अब तो आलम यह है कि सर्जरी कराने का समय भी परिवार के लोग शुभ मुहूर्त देख कर करते हैं. बच्चे के पैदा होने से पहले पंडितजी से निश्चित तारीख और समय पूछा जाता है और फिर उसी समय और तारीख को सर्जरी कराई जाती है. परिवार की इस तरह की डिमांड के चलते कईर् बार डाक्टर भी परेशान हो जाते हैं.

डा. पूनम कहती हैं, ‘‘हमारे पास कईर् बार इस तरह की सिफारिश आती है कि निश्चित समय और दिन पर ही सर्जरी करानी है. कई बार जब शिक्षित परिवार भी इस तरह का अनुरोध ले कर आते हैं, तो बड़ा अजीब लगता है. कई बार मैं परिवार को समझाती भी हूं कि किसी भी तरह के मुहूर्त का कोई भी वैज्ञानिक आधार नहीं है. फिर भी अनुरोध किया जाता है तो मैं महिला व शिशु के स्वास्थ्य को ध्यान में रख कर ही इस तरह के निर्णय लेती हूं.’’

शुभ मुहूर्त का चलन इतना ज्यादा बढ़ गया है कि अगर पंडितजी ने रात में कोई शुभ मुहूर्त बता दिया तो लोग रात को उसी निश्चित समय  पर सर्जरी कराने की जिद करते हैं. अब लोग सामान्य डिलिवरी कराने को ज्यादा तवज्जो नहीं देते. गौरतलब है कि गर्भ में बच्चे के कम से कम 36 हफ्तों में फेफड़े पूरी तरह से विकसित होते हैं. इसलिए सर्जरी कराने से पहले इन सभी बातों का खास खयाल रखें. अगर महिला सामान्य दर्द सहने में असमर्थ हो तो सर्जरी का विकल्प अपनाया जा सकता है. लेकिन यह विकल्प भी डाक्टर की सलाह पर लेना चाहिए.

ताकि डिलिवरी हो आसान

आजकल की भागदौड़ भरी जीवनशैली में न ही व्यायाम के लिए किसी के पास समय है और न ही सही खानपान है. यही कारण है कि ज्यादातर महिलाएं सामान्य और सेहतमंद तरीके से बच्चे को जन्म देने में असमर्थ रहती हैं. आधुनिकता के नाम पर भले ही औपरेशन को आसान और दर्दरहित विकल्प माना जाता हो, लेकिन प्राकृतिक तरीका ही सही होता है. डिलिवरी को आसान व दर्दरहित बनाने के लिए प्रैगनैंट महिलाओं को स्क्वैट्स यानी कमर व थाइज की मसल्स को मजबूत बनाने वाली ऐक्सरसाइज करनी चाहिए. इस से बेबी नीचे की ओर जाता है और उस का सिर बर्थ कैनल में फिट हो जाता है. इस सब से डिलिवरी आसानी से हो जाती है.

सर्जरी के बाद महिलाएं रखें यह ध्यान

– साफसफाई का खास ध्यान रखें.

– ज्यादा से ज्यादा तरल पदार्थ लें.

– तलेभुने खाने से परहेज करें.

– पौष्टिक भोजन लें.

– डाक्टर द्वारा सुझाई गई दवा जरूर लें.

– सर्जरी के बाद कम से कम 2 महीने तक मालिश न कराएं.

– टांकों में दर्द हो तो डाक्टर को जरूर दिखाएं.

Mother’s Day 2022: बदल रहा मां का लाडला, आखिर क्या है वजह?

पहले अधिकतर और अब भी कहींकहीं हमारे समाज में मांएं बेटों से घर में कोई काम नहीं करवातीं हैं. यह एक अतिरिक्त स्नेह होता है, जिसे वे बेटियों से चुरा कर बेटों पर लुटाती हैं. पर सच पूछा जाए तो ऐसी मानसिकता उन्हें अपने बेटों का सब से बड़ा दुश्मन ही बनाती है. एक ओर तो वे बेटियों को आत्मनिर्भरता का पाठ सिखा एक ऐसी शख्शीयत के रूप में तैयार करती हैं, जो हर परिस्थिति में सैट हो जाती हैं, अपने छोटेमोटे काम निबटा लेती हैं, तो वहीं दूसरी ओर उन के  लाड़ले के हाथपांव फूलने लगते हैं जब उस की बीवी मायके जाती है, क्योंकि उसे खाना बनाना तो दूर खुद निकाल कर खाना भी शायद ही आता हो. ऐसी मांएं अपने बेटों की दुश्मन ही हुईं न?

अतिरिक्त बोझ नहीं

सौम्या और शुभम दोनों कामकाजी हैं. घर में शुभम के वृद्घ पिता और 1 बेटा भी है, परंतु उन के घरेलू कार्य आसानी से संपन्न होते हैं, क्योंकि दोनों सारे काम मिल कर करते हैं और घर को सुव्यवस्थित रखते हैं. शुभम को जरा भी परेशानी नहीं होती है जब कभी सौम्या टूअर पर या मायके गई होती है. नतीजा यह है कि दोनों ही अपने कार्यस्थल पर अच्छा परफौर्म कर रहे हैं. औरत होने के नाते सौम्या पर कोई अतिरिक्त बोझ भी नहीं है.

सौम्या का कहना है कि हम रसोई में बतियाते हुए सारे काम निबटा लेते हैं. वहीं शुभम ने बताया कि उस ने अपनी कामकाजी मां को हमेशा दोहरी जिम्मेदारियों के बीच पिसते देखा था, इसलिए वह नहीं चाहता है कि उस की पत्नी भी वैसे ही रहे.

शादी के बाद पत्नी पर निर्भर

हर्षित हमेशा मां का लाड़ला रहा था. जहां उस की छोटी बहन दौड़दौड़ कर उस की छोटीमोटी जरूरतों तक को पूरा करती वहीं उस की मां ने अपने लाड़ले को कभी बना हुआ खाना भी खुद निकाल कर खाने नहीं दिया. नतीजा उस के पहली बार होस्टल जाने पर दिखने लगा था जब वह अपना बिस्तर तक ठीक नहीं कर पाता था. कपड़े धोना और कमरे की सफाई करना तो दूर की बात थी. किसी तरह रोधो कर उस के पढ़ाई के दिन गुजरे.

शादी के बाद वह हर काम के लिए अपनी पत्नी पर निर्भर रहने लगा. कभी उस की पत्नी को कहीं जाना होता तो उस की हालत खराब हो जाती.

वक्त के साथ सामाजिक ढांचे में भी बदलाव आ रहा है तो सोच का परिवर्तनशील होना भी लाजिम है. मांएं जब खुद नौकरीपेशा होती हैं तो बच्चों को चाहे बेटा हो या बेटी आत्मनिर्भर होना ही पड़ता है. मांएं अब बेटों को भी होस्टल भेजने से पूर्व इतना सक्षम बना देती हैं कि वे अपने रोजमर्रा के कार्य खुद कर सकें. बेटियों के साथ बेटों को भी रसोई के कार्यों से परिचित कराती हैं.

बदलनी होगी सोच

घरेलू कार्य सिर्फ महिलाओं की ही जिम्मेदारी हैं, ऐसी सोच के साथ वयस्क हुए लड़के होस्टल, नौकरी और शादी के बाद घर के कामों में बराबरी से हिस्सेदारी बंटा समझदारी का परिचय देते हैं. आज जब दोनों कामकाजी होते हैं, तो और भी जरूरी है कि मिल कर काम निबटाया जाए. इस से आपसी प्यार और सामंजस्य की भावना बलवती होती है.

एक मजे से टीवी देखता रहे और दूसरा रसोई, बच्चों में ही अकेला जूझता रहे तो रिश्तों में असंतुलन और असंतुष्टि ही बढ़ेगी. परंतु अब पढ़ाई और नौकरी के लिए घर से दूर जाने वाले बेटों को भी माएं खाना बनाने और घरेलू बातों के टिप्स देती रहती हैं. नतीजतन बाद में वे मालिक की जगह एक मित्र की तरह अपनी पत्नी से रिश्ता रखते हैं. वे दिन हवा हो रहे हैं जब महिलाएं घर से बाहर काम करने नहीं जाती थीं. तो मांओं के लाड़लों को भी अब बदलना ही होगा और खुशी की बात है कि वे बदल भी रहे हैं.

Mother’s Day 2022: ममता की कीमत- भाग 1

सभी की नजरें मुझ पर टिकी हुई हैं, यह मैं अच्छी तरह से जान गई थी. मेरे पति मुझे अकेला छोड़ कर कहीं भी नहीं जा रहे थे. मुझे एहसास हुआ कि मेरे पति के मन में यह डर था कि कहीं मैं टूट कर रो न पड़ूं. उन का यह अटूट विश्वास था कि अगर वे मेरे साथ रहें तो मैं किसी भी परिस्थिति का सामना कर पाऊंगी. उन की यह सोच गलत भी नहीं थी. हमारी शादी के 15 सालों में जब भी मैं बहुत दुखी होती थी तब मैं अपने पति के सिवा और किसी को अपने पास आने नहीं देती. समस्या क्या है, उस के बारे में जानेंगे तो जरूर हंसेंगे. हमारे पड़ोस के फ्लैट में रहने वाले कल उस फ्लैट को खाली कर रहे हैं. अच्छा, तो क्या इसी बात के लिए एक 40 वर्ष की उम्र की औरत रोएगी, यही सोच रहे हैं न आप? एक और बात, उस फ्लैट में वे पिछले 2 सालों से ही रह रहे हैं. हमारे बीच कोई गहरी दोस्ती भी नहीं है. उस फ्लैट में रोशनी नाम की एक औरत उस के पति और उन की डेढ़ साल की बच्ची रहते हैं. जब वे इस फ्लैट में आए थे तब रोशनी मां बनने वाली थी.

‘‘आंटी, आंटी,’’ मनोहर ने मुझे आवाज दी. उस की उम्र लगभग 25 साल की होगी. वह एक कंपनी में साधारण नौकरी पर था और उस की तनख्वाह बहुत कम थी. रोशनी अपनी बच्ची का पालन करने के लिए जो काम करती थी उसे छोड़ दिया था. फ्लैट का किराया समय पर न देने के कारण मालिक ने उन्हें फ्लैट खाली करने के लिए कहा था और वे कल खाली करने वाले थे.

‘‘क्या है मनोहर, कुछ चाहिए तुम्हें,’’ मैं ने जानबूझ कर ‘तुम्हें’ को जोर से कहा. ‘‘आप की सोना को आप के पास आना है. वह न जाने कब से आप के पास जाने की कोशिश कर रही है. आप की आवाज जिस दिशा से आ रही है वह वहां अपने हाथों को फैला कर रो रही है,’’ ऐसा कह कर उस ने मेरी ओर देखा. वह मेरी भावना को पढ़ने की कोशिश कर रहा था. मैं उसे अच्छी तरह समझ सकती थी. मगर वह मेरे चेहरे से कुछ भी नहीं पढ़ सका. मैं अपने जज्बातों को बाहर दिखाने वाली औरत नहीं.

डेढ़ साल की बच्ची ने अपने पापा की गोद से मेरी ओर अपने दोनों हाथों को फैलाया. मैं ने भी बड़े ही चाव से उस बच्ची को अपने हाथों में ले लिया. मेरे पास आते ही उस ने अपने नन्हे हाथों से मुझे गले लगाया. मनोहर ने हंस कर कहा, ‘‘बस आंटी, यह अब किसी के पास नहीं जाएगी. आप की गोद में बैठ कर उसे लगता है कि वह बहुत ही सुरक्षित है. कोई इस का कुछ नहीं कर सकता.’’

‘‘हर दिन की तरह आज भी श्वेता का खाना आप की जिम्मेदारी है. क्या देख रही हो?’’ अपनी बेटी की ओर देख कर कहा, ‘‘आंटी के हाथ का खाना आज आखिरी है. कल से…’’ ऐसा कह कर उस ने मेरी ओर देखा, मेरी प्रतिक्रिया को देखना चाहा. इतने में रोशनी भी वहां आ पहुंची.

‘‘अरे, मेरी सोना, आज मैं ने तुम्हारे लिए टमाटर का सूप बनाया है. मम्मा को न बोलो.’’ मेरे कहने पर उस बच्ची ने अपनी मां को देख कर सिर न में हिलाया.

‘‘देखा आंटी, इस की होशियारी को,’’ ऐसा कहते हुए अपनी बच्ची को देख कर कहा, ‘‘हांहां, तुम्हें क्या लगा, आंटी सदा तुम्हारे पास रहेंगी. आंटी तुम्हारे साथ अब सिर्फ 24 घंटे के लिए ही हैं, याद रखना.’’ मैं अच्छी तरह समझ गई कि वह यह बात अपनी बच्ची से नहीं, मुझ से कह रही है.

श्वेता को मैं ने डाइनिंग टेबल पर बिठा कर चांदी की कटोरी में चांदी का चम्मच ले कर (ये दोनों चांदी के बरतन मैं ने श्वेता के लिए ही खरीदे थे) मैं रसोई की ओर चल पड़ी. उस बरतन में चावल डाल कर उस में टमाटर सूप को मिला दिया. श्वेता के पास आ कर मैं ने उस से कहा, ‘‘अब आंटी आप को खाना खिलाएंगी और आप अच्छी बच्ची की तरह चुपचाप खाएंगी, ठीक है.’’ मैं श्वेता को खाना खिलाने लगी और वह बिना किसी नखरे के खाती रही. मेरे पति आ कर श्वेता के पास बैठ गए. श्वेता उन्हें देख कर हंसी.

‘‘आज आप ने छुट्टी ले ली क्या? आप भी सोना के साथ थोड़ा वक्त बिताना चाहते हैं क्या?’’ जब मैं ने उन से पूछा तो उन्होंने हैरान हो कर मुझे देखा.

सिर्फ मेरे पति ही नहीं, रोशनी, उस के पति मनोहर तीनों मुझे हैरान हो कर देख रहे थे सुबह से. क्योंकि इस वातावरण में कोई और औरत होती, वह जरूर रो पड़ती.

‘‘नहीं अनु, मैं तुम्हें आज अकेले छोड़ना नहीं चाहता. तुम…’’ अपने पति को मैं ने रोका और कहा, ‘‘अगर आप सोना के साथ वक्त बिताना चाहते हैं तो आप ठहरिए, मेरी खातिर आप को घर में रहने की कोई जरूरत नहीं. मैं बिलकुल ठीक हूं. अगर मुझे आप का साथ चाहिए होता तो मैं ने पहले ही आप को बता दिया होता,’’ ऐसा कहते हुए मैं सोना को खाना खिलाती रही.

पति एक बड़ी कंपनी में ऊंचे पद पर हैं. बहुत ही जिम्मेदार पद पर रहने वाले अचानक छुट्टी नहीं ले सकते. इसलिए उन्होंने कल ही सोचसमझ कर मेरा साथ देने के लिए छुट्टी ले ली. उन्होंने अपने आप तय कर लिया कि मैं सोना के चले जाने पर जरूर टूट जाऊंगी और उन के साथ की मुझे जरूरत पड़ेगी.

मेरे पति का ऐसा सोचना गलत नहीं था. 15 साल पहले जब शहर के सभी बड़े डाक्टरों ने कह दिया कि मैं मां नहीं बन सकती, उस समय मैं फूटफूट कर रो पड़ी थी. उस के बाद कभी मैं ने किसी के सामने आंसू नहीं बहाए. जिस तरह मैं ने खुद को संभाला, उसे देख कर मेरे पति के साथ हमारे रिश्तेदार, दोस्त सभी आश्चर्यचकित रह गए.

हमारे देश में बच्चों को ले कर लोग बहुत अधिक भावुक हो जाते हैं. मैं इस मामले में बहुत ही सावधान थी. किसी दोस्त या रिश्तेदार के घर में बच्चा पैदा होता तो मैं उन के मुंह पर साफ कह देती थी, ‘आप मुझे गलत मत समझना. यह तो बहुत ही भावुक विषय है. पहले सभी लोग बच्चे को देख कर अपना प्यार दे दें, उस के बाद मैं आऊंगी.’ इस तरह मेरे साफसाफ कहने का ढंग देख कर मुझे बांझ कह कर कोई तमाशा खड़ा करने का मौका ही मैं ने किसी को नहीं दिया.

Mother’s Day 2022- दो पौधे: क्या मां की रस्में निभा रहे थे पिताजी

आंगन में आम का पेड़ चारों ओर फैला था. गरमी के इस मौसम में खटिया डाल कर इस के नीचे बैठने का आनंद ही असीम होता है. पेड़ पर बड़ीबड़ी कैरियां लटकी हुई हों और डालियों पर कोयल कूक रही हो.

मैं अकसर दोपहर में इस के नीचे ही बैठना पसंद करती हूं. यह पेड़ बाहर सड़क से भी दिखलाई देता है. आनेजाने वाले कई राहगीर उस पर लटकती बड़ीबड़ी कैरियों को ऐसे निहारते हैं मानो आंखों से ही खा जाएंगे. पिछले दिनों मैं बैठी थी कि एक राहगीर अपनी पुत्री को साइकिल पर लिए जा रहा था. उस लड़की ने कैरियों को लटकते हुए देखा तो मचल पड़ी. ‘मैं अपने हाथ से एक फल तोड़ूंगी,’ कह कर वह वहीं लोटपोट होने को तैयार.

मैं दरवाजे पर खड़ी थी. मैं ने गेट खोला और उस राहगीर से बच्ची के रोने का कारण पूछा तो उस ने बड़े संकोच के साथ बताया, ‘‘बिटिया आम के पेड़ से एक कैरी तोड़ने की जिद कर रही है.’’
बच्ची की आंखों में मोटेमोटे आंसू आ कर ठहर गए थे.

‘‘मैं मात्र एक ही कैरी तोड़ने की इजाजत दूंगी,’’ यह कह कर मैं ने आने के लिए रास्ता दे दिया. बेटी खुश हो गई और उस ने पूरी ईमानदारी से एक ही कैरी तोड़ी. राहगीर ‘धन्यवाद’ कह कर चला गया.

मेरी बिटिया नेहा इन दिनों कोई ग्रीष्मकालीन कोर्स कर रही है इसलिए वह होस्टल में है. वह थोड़े दिनों के लिए आई थी और फिर चली गई थी. घर सुनसान सा हो गया था.

मैं आम के पेड़ के नीचे बैठ कर अकसर अपने बचपन को याद करती थी जो अब कभी लौट कर नहीं आएगा. अचानक गेट खुलने की आवाज आई, मैं ने देखा कि अनूप यानी मेरे पति गेट से अंदर आ रहे हैं. कैसे असमय आ गए, आने का समय तो शाम 5 बजे का है, यह सोचती हुई मैं तेजी से उठी.

‘‘क्या बात है? तबीयत तो ठीक है?’’

‘‘हां, ठीक है, तुम्हारे पापा का फोन आया था कि मम्मीजी की तबीयत खराब है. बुलाया है,’’ अनूप ने कहा.

यह सुनते ही मेरा दिल जोरों से धड़क उठा. अनूप ने फिर कहा, ‘‘तुम जल्दी से सामान लगा लो, मैं आटोरिकशा ला रहा हूं. 2 बजे ट्रेन है जावरा के लिए.’’

मैं अंदर गई और फटाफट अटैची में कपड़े डाले, पड़ोस में सुशीला आंटी के पास जा कर बोला कि कैरियों की देखरेख करना, घर भी देखती रहना, मम्मी की तबीयत खराब है कह कर मेरा गला भर आया. सुशीला आंटी ने मुझे सांत्वना दी और मैं घर लौटी तब तक ये आटोरिकशा ले आए थे.

मैन गेट पर ताला लगाया कि अचानक आम के पेड़ पर नजर पड़ गई. वह खामोशी के साथ तेज धूप को सहता खड़ा था.

मैं आटो में बैठी तो तेज गरम हवा के झोंके ने स्वागत किया. मैं अनूप के चेहरे को पढ़ने का पूरा प्रयास कर रही थी. शायद वे कुछ छिपा रहे थे. ‘तो क्या मेरी मम्मी इस दुनिया में नहीं रहीं?’ सोचते ही आंखों से आंसू की धार निकलने लगी.

‘‘शांत भी रहो. हम 2-3 घंटे में पहुंच तो रहे हैं,’’ अनूप ने सांत्वना देते हुए कहा.

हम स्टेशन पर पहुंचे. थोड़ी देर में गाड़ी भी आ गई. गाड़ी चलते ही पसीने को गरम हवा मिली. हलकी सी ठंडक महसूस हुई. मैं खिड़की में सिर रखे बैठी थी. मेरे मन में बारबार एक ही बात आ रही थी कि जावरा कब आएगा? मम्मी से कब मिलूंगी? समय काटना दुरूह लग रहा था. अतीत धीरे से मां के आंचल की तरह मेरे पास फड़फड़ाने लगा.

मां अपने मायके से एक आम का पौधा लाई थीं. विवाह के अवसर पर एक पौधा मायके में रोप कर आई थीं और एकसाथ ले आई थीं. मां उसे जान से ज्यादा चाहती थीं. उस आम के वृक्ष ने भी प्रेम की खाद पा कर बढ़ना प्रारंभ किया. जब मैं पैदा हुई थी तब तक वह इतना बड़ा हो चुका था कि मेरे लिए झूला उस की डाल पर ही डाला गया था. धीरेधीरे वह पौधा वृक्ष बन चुका था. उस में रसीले, मीठे आम लगते थे.

पिताजी थोड़े कड़क स्वभाव के थे. वे कम बोलते थे. घर में निर्णायक भूमिका उन्हीं की होती थी. मैं ने एकदो बार उन्हें मां पर बरसते हुए भी देखा था. मां नीची नजरें किए सब सुनती रहती थीं. उन के जाने के बाद आंखों से निकले आंसुओं को आंचल से पोंछ कर घर के कामों में लग जाती थीं.

मुझे परिवार के बाद यदि कुछ प्रिय था तो आंगन में लगा यह हराभरा वृक्ष जिस पर कोयल होती थी, गिलहरी होती थी. और भी न जाने कौनकौन से परिचित और अपरिचित जीवजंतु होते थे.

मेरी निपुणता पेड़ पर चढ़ने की हो गई थी. मां बहुत मना करतीं. घर की इकलौती थी, इसलिए मार कम पड़ती थी. पिताजी भी मना करते थे कि पेड़ पर न चढ़ा करूं लेकिन सुनता कौन? मेरी सहेलियां आतीं तो मैं अपनी कुशलता वृक्ष पर चढ़ कर बताती और उन सब को बौना साबित कर देती थी.

एक दिन ऊंची डाल पर बैठी थी कि पांव फिसल गया और मैं चीखतीचिल्लाती धड़ाम से नीचे गिर कर बेहोश हो गई. आवाज सुन कर मां भी आ गईं. मुझे बेहोश देख कर रोने लगीं. पिताजी को खबर दी, वे भी जल्दी से आ गए. पहले उन्होंने मां को बहुत बुराभला कहा और फिर मुझे अस्पताल ले जा कर एक्सरे कराया. पांव की हड्डी टूट गई थी.

डा. रत्तीलालजी बूढ़े से व्यक्ति थे. उन्होंने मुझे बड़े प्रेम से हिम्मत रखने को कहा, फिर पांव पर प्लास्टर बांध दिया. पूरे 2 माह बाद खुलना था, तब तक के लिए घूमनाफिरना, दौड़ना, पेड़ पर चढ़ना सब बंद हो गया.

स्कूल जाने से मुक्ति मिली थी. मैं खुश भी थी और दुखी भी. घर पर मेरा बिस्तर खिड़की के पास लगा दिया गया था जहां से हराभरा आम का पेड़ फलों से लदा हुआ दिखलाई देता लेकिन दुख की बात यह थी कि मुझे ले कर हर रोज पिताजी मां को दोषी ठहरा कर उन्हें भलाबुरा कहते रहते थे. एक दिन तो उन्होंने गुस्से में कह भी दिया कि कल रविवार है. मैं इस पेड़ को कटवा ही डालूंगा.

मां चुप थीं.

‘मेरी बेटी की टांग तोड़ दी,’ पिताजी ने कहा.

मां ने एक शब्द भी नहीं कहा. मां को बारबार प्रताडि़त होते देखना मुझे अच्छा नहीं लग रहा था.

अगले दिन रविवार था. पिताजी कहीं से 2 व्यक्तियों को पेड़ काटने के लिए ले आए. मां अंदर रसोई में थीं. आंगन में फल लदे पेड़ पर जैसे ही पहली कुल्हाड़ी का वार हुआ मैं चीख पड़ी. मां दौड़ कर आईं. आंगन में 2 व्यक्तियों को देख कर मुझे छोड़ कर आम के पेड़ के पास जा पहुंचीं. मां गुस्से में लाल हो रही थीं, ‘तुम्हारी हिम्मत कैसे पड़ी इस पर वार करने की?’

दोनों व्यक्ति सहम गए. मैं खिड़की से देख रही थी.

मां ने नाराजगी और क्रोधभरे स्वर में कहा, ‘तुम्हारी हिम्मत हो तो अब चलाओ इस पर कुल्हाड़ी.’

‘हट जाओ बीच से,’ पिताजी गरजे.

मां तेजी से आम के पेड़ के तने के आगे ढाल की तरह खड़ी हो गईं, ‘बहुत सुन ली तुम्हारी. यदि इस वृक्ष को कुछ हो गया तो समझो मैं भी जिंदा नहीं रहूंगी,’ मां क्रोध में कांप रही थीं.

पिताजी को पहली बार निराशा हाथ लगी थी. बड़ा निरीह, अपमानित सा उन्होंने स्वयं को अनुभव किया था और दोनों व्यक्तियों से जाने को कह दिया.

शायद जीवन में पहली बार हार क्या होती है उन्होंने जाना था. उन के चले जाने के बाद मां बाथरूम में गईं, हाथमुंह धो कर मेरे पास आईं और मेरे माथे पर हाथ फेर कर कहने लगीं, ‘बेटी, अपनी शक्ति को पहचानना चाहिए. अच्छे कार्यों में अपनी पूरी ऊर्जा लगा देनी चाहिए ताकि उस के अच्छे परिणाम आएं,’ इतना कह कर वे रसोई में चली गईं.

पिताजी और मां का अनबोला पूरे 1 माह रहा था. मां ने भी बातचीत की पहल नहीं की थी. आखिर पिताजी ने ही इस बात को स्वीकार किया कि उन से गलती हो गई थी, पेड़ से गिरने पर वृक्ष का क्या दोष? तुम ने अपना रौद्र रूप दिखा कर एक फलदार वृक्ष को कटने से बचा लिया. यह सब देखसुन कर मुझे भी अच्छा लगा.

सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति वही होता है जो स्वयं ही अपनी गलती का निर्णायक भी हो और क्षमा मांगने में संकोच भी न करे.

जीवन तेजी से बढ़ता जा रहा था. बचपना और शरारतें पीछे छूटती जा रही थीं. कब मैं बड़ी हो गई, मुझे नहीं मालूम पड़ा. मुझे पसंद भी कर लिया गया और विवाह की तारीख भी पक्की हो गई. अपनी मां का घर छूट जाने का मुझे प्रतिक्षण दर्द अनुभव होने लगा था. कार्ड छपे, बंटे और एक रात घर के आगे बरात भी आ गई. आंगन में ही सब रस्मों को उसी आम के पेड़ तले निबटाया गया. रस्में निबटतेनिबटते सुबह हो गई थी.

विदाई की बेला में मैं बहुत दुख से भरी थी, उसी समय मां मुझे एक ओर ले गईं और आम का एक पौधा देते हुए कहा, ‘इसे आंगन में लगा दे, तेरी याद हमेशा ताजा रहेगी,’ मेहमान सब इस बात पर आश्चर्य कर रहे थे. मैं ने उसी बड़े आम के पेड़ से दूर आम का पौधा अपने हाथों से लगा दिया.

मां ने मुझे आम का एक और पौधा दे कर कहा, ‘इसे अपने ससुराल में लगाना ताकि वहां छांव, मीठे फल मिलते रहें.’

मैं ने बड़ी श्रद्धा से वह पौधा ले लिया था. उसे ससुराल में आने के बाद लगाया था और दिनरात उस की देखरेख की थी. वही पौधा आज विशाल फलदार आम का वृक्ष बन गया था. इस बीच दर्जनों बार मायके आई तो यहां मेरे हाथ का रोपा पौधा भी वृक्ष बनता जा रहा था. मैं उस के तने पर बड़े प्रेम से हाथ फेरती थी.

गाड़ी के ब्रेक लगते ही मेरी तंद्रा टूटी.  स्टेशन आ गया था. जावरा में उतरने के बाद तांगा किया और घर के लिए रवाना हुए.

घर आया तो बाहर भीड़ लगी थी. मैं ने तांगे के रुकने की प्रतीक्षा भी नहीं की और दौड़ कर घर में जा पहुंची. आम के दोनों पेड़ों के मध्य मां का शव मेरी प्रतीक्षा के लिए रखा हुआ था. मैं जोर से रो पड़ी. मां का सौम्य रूप, शांत चेहरा, मांग में सिंदूर, माथे पर बड़ी सी गोल बिंदी. मैं रोए चली जा रही थी. पिताजी एक ओर खड़े थे. चचेरे भाई व भाभी ने मुझे मां से अलग किया. संध्या हो रही थी, मां का शव केवल मेरी प्रतीक्षा के लिए रखा गया था.

मां को ले जाया गया. मैं रोती रह गई. ऊपर नजर डाली तो आम का विशाल वृक्ष उदास खड़ा था और मेरे द्वारा रोपा गया वह पौधा  बढ़ कर उस को छू रहा था, मानो वंदनवार बन गया हो. चारों ओर उदासी थी. मां के बिना घर कितना सूना, अकेला हो गया था.

दिन आवारा बादल की तरह उड़ते चले गए. मृत्यु उपरांत की रस्में पूरी हो गईं और अनूप को अपनी ड्यूटी, मुझे अपने घर, नेहा की याद आने लगी थी. जीवन कब ठहरता है, युगोंयुगों से वह इसी क्रम से चलता आ रहा है. मैं ने पिताजी को अगली सुबह जाने की बात कही.

अगले दिन अनूप आटोरिकशा ले आए. मैं भैयाभाभी को पिताजी का ध्यान रखने का कह कर आगे बढ़ी तो पिताजी ने मुझे कुछ देर ठहरने को कहा. मैं रुक गई. पिताजी हाथों में आम के 2 पौधों को ले कर आए और बोले, ‘तेरी मां ने तेरे लिए रखे थे.’

‘क्यों?’

‘बेटी नेहा के लिए, उस के विवाह में वह एक ससुराल ले जाएगी और एक अपने आंगन में लगवा लेना. उस की याद हमेशा हरीभरी रहेगी. बेटी की पूंजी मायके में भी बढ़ेगी और ससुराल को भी संपन्न बनाएगी.’

मैं ने दोनों पौधे ले लिए और आटो रिकशा में बैठ गई. हवा के हलके से झोंके के साथ उन के पत्ते हिलने लगे, मानो पिताजी को हाथ हिलाहिला कर विदाई के लिए टाटा कह रहे हों.

Mother’s Day 2022- मत जाओ मां: शुभांगी की मां क्यों घबरा गई थी?

सुबह स्कूल जाने के लिए शुभांगी तैयार हो रही थी कि टेलीफोन  की घंटी घनघना उठी. मां का फोन था. बोलीं, ‘‘अस्पताल से बोल रही हूं. तेरे बाबूजी सीढि़यों से फिसल गए हैं, कमर में चोट आ गई है.’’

शुभांगी घबरा गई. अस्पताल का पता पूछ कर फोन रख दिया और नीरज को प्रश्नवाचक नजरों से देखने लगी. उन्होंने भी जाने की मौन स्वीकृति दे दी. बच्चों को बस स्टाप पर छोड़ती हुई शुभांगी सीधी मां के पास पहुंची और पूछा तो पता चला कि डाक्टर ने फ्रेक्चर बताया है, आपरेशन करना पड़ सकता है.

‘‘आपरेशन?’’ शुभांगी ने घबरा कर पूछा तो डाक्टर ने उस के चेहरे की घबराहट देख कहा, ‘‘हां, बहुत छोटा सा आपरेशन है किंतु उन का ब्लडप्रेशर अधिक है इस कारण आज यह संभव नहीं है. तब तक इन को हम वार्ड में शिफ्ट कर देते हैं.’’

वार्ड में आते ही मां ने चिंतित होते हुए कहा, ‘‘परेश को संदेश भिजवा दो.’’

‘‘छोटा सा तो आपरेशन है, मां,’’ शुभांगी बोली, ‘‘इस में भैया को तकलीफ देने की क्या जरूरत है. फिर नीरज भी तो हैं यहां. मैं अभी उन्हें बुलवा लेती हूं.’’

जब मां ने जिद की तो आगे शुभांगी कुछ नहीं बोली. बाबूजी शांत हो बिस्तर पर लेटे रहे फिर अनमने भाव चेहरे पर लाते हुए बोले, ‘‘जैसा मां कहती हैं कर लो, बेटी. एक फोन ही तो करना है…’’

बाबूजी का ब्लडप्रेशर सामान्य नहीं हो रहा था इसलिए अगले दिन भी आपरेशन टाल दिया गया. शाम को नीरज के साथ दोनों बच्चे बाबूजी से मिलने आए. दरवाजा खुलते ही उन की नजरें उधर ही जा टिकीं. फिर धीरे से तकिए पर सिर रख कर बोले, ‘‘मैं ने समझा परेश आया है… उस को फोन तो कर दिया था न…परेश आ जाता तो अच्छा था.’’

उन की आवाज में उदासी और वेदना के मिलेजुले भाव थे. शुभांगी नाराज हो कर बोली, ‘‘क्यों बाबूजी, मैं और नीरज तो हैं न यहां. क्या हमारे होने का कोई अर्थ नहीं है. इतना सब करने के बाद भी बेटे का ही इंतजार है. उसे आप से इतना ही प्यार होता तो यों बुढ़ापे में छोड़ कर न जाता.’’

मां की अनुभवी नजरों ने बेटी के चेहरे के सारे भाव पढ़ लिए थे. बात संभालते हुए बोलीं, ‘‘नहीं बेटी, तेरे बाबूजी के कहने का यह मतलब नहीं था. परेश आ जाता तो तेरी अस्पताल की भागदौड़ कम हो जाती. तू सिर पर खड़ी हो गई क्या यह कम है,’’ मां ने बात तो संभाल ली पर उन्हें उस घटना और समय की याद आ गई जिस के चलते उन्हें अपनी बेटी शुभांगी के सामने सफाई देनी पड़ी थी.

बाबूजी का छोटा सा परिवार था. उन के रिटायर होने वाले दिन सभी लोग जमा हुए थे. इतने साल कालिज में काम करने के बाद जब शाम को ढेर सारे उपहारों और गुलदस्तों के साथ बाबूजी लौटे तो मां की आंखें भर आई थीं. वह बरामदे में आरामकुरसी पर टांगें फैला कर बैठ गए.

‘मां, यह तो खुशी की बात है. बड़ी इज्जत से बाबूजी रिटायर हुए हैं वरना आज के समय में तो…’ शुभांगी बाबूजी के पास बैठती हुई बोली, ‘बस, अब तो आप आराम कीजिए बाबूजी…’

परेश बात काटता हुआ बोला, ‘अकेले जीवन काटतेकाटते बाबूजी आप थक गए होंगे. अब मेरी बारी है. मैं आप को लेने आया हूं.’

बाबूजी कुछ नहीं बोले. बस, सोच में पड़ गए थे.

‘यह तो ठीक है बाबूजी,’ शुभांगी ने समर्थन देते हुए कहा, ‘इस उम्र में बेटे के सहारे से बड़ा और क्या हो सकता है. इतने प्यार से बेटा बुला रहा है, 2 मंजिल का घर है. एकदम आजादी रहेगी.’

कुछ सोच कर बाबूजी बोले, ‘आज ही तो रिटायर हुआ हूं. बहुत सी औपचारिकताएं अभी बाकी हैं…पहले उन्हें तो पूरी कर लूं.’

‘ठीक है, बाबूजी,’ परेश बोला, ‘मैं 10 दिन बाद आप को लेने आ जाऊंगा.’

बच्चों के जाने के बाद वे सोच में पड़ गए. फिर निर्णय लिया कि प्रेम से बुला रहा है तो चले जाना चाहिए. अब उस के पास जाने की जरूरत इसलिए भी थी कि कहीं अपना स्वार्थ भी छिपा हुआ था.

मांबाबूजी का सारा सामान बेटे के घर आ गया. उन की उम्र को देखते हुए नीचे के हिस्से में उन का सारा सामान करीने से लगा दिया गया. उन का 4 वर्षीय पोता दिन भर अपने दादादादी का मन लगाए रखता. बाबूजी सुबह बीते समय की तरह ही लंबी सैर करते और सामने बैठ कर ही दूध निकलवा कर घर लौटते. शाम को भी यही क्रम रहता. अपने जीवन की अभी तक की एक ही ढर्रे पर चलने वाली नीरसता को समाप्त होते देख बाबूजी को अच्छा लगने लगा था.

परेश ने आते ही पहले दिन मां से अनुनय भरे स्वर में प्रार्थना की थी, ‘मां, एक ही रसोई में खाना बनेगा. आप को यहां कुछ भी करने की जरूरत नहीं है. खाने के अलावा जिस भी सामान की जरूरत होगी नीचे पहुंच जाएगा.’

किंतु बहू के व्यवहार में धीरेधीरे आता बदलाव मां की अनुभवी नजरों से छिप न सका. परेश के आफिस जाने के बाद उस के व्यवहार में काफी परिवर्तन आ जाता. वह कई बातें अनसुनी भी कर देती.

बाबूजी ने एक दिन नाश्ता करते समय बहू को बताया कि दोपहर को खाने

पर उन के कुछ पुराने साथी मिलने आ रहे हैं इसलिए जरा अच्छा सा इंतजाम

कर लेना.

प्रीति की आंखें फैल गईं. उस से रहा नहीं गया. बोली, ‘बाबूजी, आएदिन कोई न कोई तो आता ही रहता है. मेरी अपनी जिंदगी तो रह ही नहीं गई. मैं एकदम नौकरानी बन कर रह गई हूं.’

बाबूजी भौचक्के हो कर बहू के इस व्यवहार को देखने लगे. मां ने संयतता बरतते हुए कहा, ‘बहू, यह जीवन अभी तक तुम्हारे सहारे तो चला नहीं है, फिर हम लोग जहां रहेंगे वहां हमारे मिलने वाले भी आएंगे ही. भला इतना सब कहने की क्या जरूरत है. तुम छोड़ दो, हम अपना काम कर लेंगे,’ उन के अंतिम स्वर में कठोरता उभर आई.

‘यह बात नहीं है, मां,’ परेश बात संभालते हुए धीरे से बोला, ‘दरअसल, काम की अधिकता के कारण यह घबरा सी गई है…सब ठीक हो जाएगा.’

‘मैं घबरा नहीं गई,’ प्रीति पलट कर बोली, ‘दिन में कईकई बार चाय, समयअसमय नाश्ते की फरमाइश. मेरा तो सहेलियों से मिलना ही छूट गया है, आप तो यहां होते नहीं…’

‘अच्छा, तुम दोनों चुप हो जाओ,’ बाबूजी कड़े शब्दों में बोले, ‘मैं सब बाजार से ले आऊंगा,’ और नाश्ता बीच में ही छोड़ कर वह नीचे आ गए. उन को अपना वजूद बिखरता सा नजरआने लगा.

एक दिन खाने की मेज पर प्रीति और परेश की खाली प्लेटें देखीं तो बाबूजी ने पूछ लिया, ‘क्या बात है, तुम दोनों कहीं बाहर खा कर आए हो?’

‘नहीं, बाबूजी,’ परेश थोड़ा हिचक कर बोला, ‘हम ने पिज्जा का आर्डर दिया है. बस, आता ही होगा.’

तभी दरवाजे की घंटी बजी. मां उठने लगीं तो परेश बोला, ‘मां, आप बैठो. मैं ले कर आता हूं.’

‘अरे नहीं, तू क्यों उठेगा. बैठा रह,’ कह कर मां दरवाजे तक गईं.

‘मां इसे हाथ न लगाना,’ परेश की आवाज में कंपन था.

‘क्यों? गरम है क्या?’

‘नहीं, मां, यह नानवेज है,’ परेश बोला, ‘मैं तो मीटमछली खाता नहीं हूं, कभीकभी प्रीति खा लेती है.’

‘नानवेज,’ मां सिर पकड़ कर सोफे पर बैठ गईं और कहने लगीं, ‘जिस घर

में प्याजलहसुन तक नहीं खाया जाता वहां अब नानवेज आ रहा है.’

‘मांजी, मैं ने घर में तो नहीं बनाया,’ प्रीति ने धीरे से कहा.

‘वह भी कर के देख लो, बहू,’ मां रो पड़ीं और नीचे अपने कमरे में चली गईं.

मां ने बाबूजी के कहने पर इन झंझटों और बढ़ते मनमुटाव से छुटकारा पाने के लिए अपनी रसोई अलग कर ली. परेश ने भी कोई विरोध नहीं किया. सुबह साथसाथ बैठने का जो क्रम बना था वह भी टूट गया.

शुभांगी माह में 1-2 बार आती. प्रीति का रूखा व्यवहार अब शुष्क हो कर सामने आने लगा था. यहां आने की सारी खुशी सूखी रेत की तरह मुट्ठी से सरक रही थी. जल्दी ही बाबूजी को एहसास हो गया कि इस देहरी पर अब और सुख नहीं तलाशा जा सकता.

संबंधों में गहराती दरार और प्रीति की शिकायतों से परेश गंभीर बना रहा. अचानक घर में आए इस अनपेक्षित व्यवहार से उसे घुटन सी होने लगी. बातोंबातों में प्रीति की सारी बातें अनसुनी करते हुए एक दिन परेश बोला, ‘मां, बाबूजी को कुछ भी कहने की मेरी हिम्मत नहीं है. तुम्हारी सिर्फ सुनता रहता हूं, इस से तो बेहतर है मैं कहीं और तबादला करा लूं.’

पिछले सप्ताह बाबूजी ने 2 बार परेश को कालिज ले जाने को कहा तो वह टाल गया. बाबूजी को यह अच्छा नहीं लगा. स्वयं ही एक दिन आटो ले कर कालिज चले गए. शाम को उन के आने से पहले परेश घर पर था.

‘इतनी जल्दी भी क्या थी, बाबूजी?’

‘जल्दी है. कब से कह रहा हूं… 2 बार कालिज से बुलावा आ गया है. लाइव सर्टीफिकेट देना है.’

‘बाबूजी, आप तो रिटायर हो चुके हैं और मुझे छुट्टी लेनी पड़ेगी.’

बाबूजी बेटे का चेहरा देखते रहे. कईकई छुट्टियां ले कर उस के प्रवेश के लिए चक्कर लगाए थे. पहली बार जब पढ़ाई के लिए होस्टल भेजा था तो कितने ही दिन धर्मशाला की टूटी चारपाई पर बिताए.

‘तुम्हारे पास मेरे लिए समय ही कहां है,’ बाबूजी बिफर पडे़, ‘बहू आएदिन किटी पार्टियों पर चली जाती है और मेरा सारा दिन मुन्ना और घर की रखवाली में बीत जाता है. क्या इस उम्र में यही काम रह गया है मेरा? क्या इसीलिए हमें यहां लाए थे?’

इस से पहले कि बाबूजी कोई फैसला लेते परेश ने बताया कि उस का तबादला जयपुर हो गया है. उस ने शायद अपने बाबूजी का मन पढ़ लिया था. जयपुर जाने से पहले परेश ने बेहद आत्मीयता से प्रार्थना की कि वे यहां से न जाएं.

परेश के जाने के बाद बाबूजी मां के साथ अकेले रह गए थे.

शुभांगी को भैयाभाभी का यह व्यवहार न्यायसंगत नहीं लगा था. वह कर भी क्या सकती थी. जब किसी के अंदर अपने बड़ों के प्रति भावना न हो तो उसे उस में ठूंसा तो नहीं जा सकता.

बचपन की खट्टीमीठी यादों की छाया में पली शुभांगी का मन बरबस मांबाबूजी में रमा रहा. ‘क्यों परेश इस उम्र में उन्हें इस तरह अकेला छोड़ कर चला गया. इतनी मिन्नतों के साथ यहां लाया था. भला बाबूजी को क्या कमी थी वहां. कितना दुख हुआ होगा उन्हें बरसों पुराने पासपड़ोसियों का, संगीसाथियों का साथ छोड़ते हुए…शायद उस से भी ज्यादा अब…’ शुभांगी सोचती रहती. शायद इसी तनाव में मां को मधुमेह ने आ घेरा.

एक दिन शुभांगी छुट्टी ले कर स्कूल से आ गई तो मां ने उलाहना भरे स्वर में कहा, ‘ऐसे भी भला कोई काम छोड़ कर आ जाता है. तेरा भी स्कूल है, बच्चे हैं और नीरज क्या कहेंगे. अब आगे से इस तरह कोई बात तुझे नहीं बताऊंगी.’

‘मां, नीरज ने ही यहां आने पर जोर दिया है,’ फिर बाबूजी की तरफ मुंह कर शुभांगी बोली, ‘बाबूजी, नीरज और मैं यही चाहते हैं कि अब आप हमारे साथ चल कर रहें. मैं आप को यहां अकेले नहीं रहने दूंगी…आप को लेने आई हूं, बाबूजी.’

बाबूजी ने समझाया कि यह इतनी बड़ी बीमारी नहीं है जितना तू समझती है. उन का सांत्वना भरा हाथ शुभांगी की पीठ पर फिरा तो उस का कंठ अवरुद्ध हो गया.

‘नहीं, बाबूजी, मां को डायबिटीज है. आप पहले से ही ब्लडप्रेशर के रोगी हैं.’

बाबूजी देर तक समझाते रहे कि बेटी के घर जाना ठीक नहीं. भरे कंठ से शुभांगी घर वापस आ गई किंतु मांबाबूजी की चिंता उसे सदैव सताती रहती.

मां के मना करने पर भी शुभांगी ने भैया को बाबूजी की हालत के बारे में बताया था परंतु उस ने अपनी व्यस्तताओं का ब्योरा देते हुए मां का खयाल रखने को कहा था. भाई के मांबाबूजी के प्रति ऐसे निष्ठुर व्यवहार की शुभांगी को आशा नहीं थी. इसीलिए आज मां ने जब अस्पताल में परेश को फोन करने के लिए कहा तो वह नाराज हो गई थी.

सुबह आपरेशन के लिए जातेजाते भी बाबूजी की निगाहें दरवाजे पर परेश को देखने के लिए लगी रहीं. बाबूजी आपरेशन के लिए क्या गए फिर लौट कर न आ सके. मां का सिंदूर देखते ही देखते पुंछ गया. किसी को क्या पता था कि इस छोटे से आपरेशन में बाबूजी सदा  के लिए रूठ कर चले जाएंगे. मां का करुण क्रंदन संभलने में नहीं आ रहा था. किसी तरह नीरज ने धैर्य रख कर अस्पताल की सारी औपचारिकताएं पूरी कीं और बाबूजी का मृत शरीर घर आ गया.

देर रात तक परेश भी प्रीति और मुन्ना के साथ जयपुर से आ गया. फटी आंखों से बाबूजी के शांत शरीर को देखता रहा. फूटफूट कर रो पड़ा वह. असमय ही अस्त हुए सूरज ने उसे भीतर तक अंधकार में ढकेल दिया था.

‘‘तू ने बहुत देर कर दी, बेटा…कितना इंतजार करते रहे बाबूजी तेरा… 5 घंटे की दूरी पर 5 दिन लगा दिए,’’ मां भावुक हो कर बोलीं.

‘‘मां, पहले पता होता तो उसी दिन आ जाता,’’ परेश बोला.

‘‘मैं ने तो भाभी को बता दिया था,’’ शुभांगी ने हैरानगी से कहा, ‘‘क्या भाभी ने तुम्हें नहीं बताया?’’

सभी एकटक प्रीति की तरफ देखने लगे. वह धीरे से बोली, ‘‘शुभांगी ने बताया था कि बाबूजी सीढि़यों से गिर पडे़ हैं. मैं ने सोचा थोड़ीबहुत चोट आई होगी, ठीक हो जाएंगे.’’

पिछली बातों को ले कर मां के मन में गहरा अवसाद तो था ही किंतु अपनी सारी वेदनाओं को भूल कर कठोर हो कर बोलीं, ‘‘लानत है तुम दोनों पर. इसी दिन के लिए पालपोस कर बड़ा किया था तुम को. रोटी का एकएक टुकड़ा काट कर ऊंची से ऊंची शिक्षा दिलवाई थी. न आने के बहाने थे और आने के लिए निमंत्रण देना पड़ा. शरम आनी चाहिए. ऐसा बेटा भी किस काम का जो बाबूजी को ऐसे हाल में छोड़ कर चला गया. पता नहीं तुम्हारे बाबूजी तुम्हारा क्यों इंतजार करते रहे?’’ मां फफक कर रो पड़ीं. उन की तड़प से आहत हो कर परेश का मन अपराधबोध से पीडि़त हो उठा.

सभी क्रियाकर्म पूरा होने के बाद एक दिन मां रोंआसी हो कर बोलीं, ‘‘मैं अब यहां नहीं रहना चाहती, मुझे कहीं और छोड़ आ.’’

‘‘क्यों, मां,’’ परेश रो पड़ा, ‘‘क्या मैं इस योग्य भी नहीं रहा अब? बाबूजी तो रहे नहीं. किस से माफी मांगू. कम से कम आप यों छोड़ कर तो मत जाओ.’’

मां ने बाबूजी की फूल चढ़ी फोटो की ओर बड़ी कातर आंखों से देखा, जैसे पूछ रही हों यह किस धर्मसंकट में डाल कर चले गए आप. अंतिम समय मिल तो लिया होता…क्या करूं, कहां जाऊं…आप के बिना तो कहीं नहीं गई. फिर शुभांगी के घर जाने का मन बना कर बाबूजी का फोटो दीवार से उतार ही रही थीं कि प्रीति पांव में गिर पड़ी.

‘‘मां, मत जाओ…एक बार, सिर्फ एक बार और मेरे कहने से रुक जाओ. हम वापस यहीं आ जाएंगे आप के पास.’’

उस का विलाप मां और शुभांगी दोनों को रुला गया. साड़ी के पल्लू से शुभांगी ने आंसू पोंछते हुए कहा, ‘‘मां, भाभी की बात मान लो…अब यहीं रह जाओ.’’

परेश पास ही विनीत भाव से हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया.

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