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धर्म का धंधा

धर्म का धंधा अपनेआप में धोखेबाजी का है जिस में कल्पित भगवान, देवी, देवता, अवतार बना दिए है और कहां गया है कि इन को पूजोगे तो ही सुखी रहोगे, पैसा आएगा और इस के लिए उन के दर्शन भी करने जाना होगा और वहां दान भी देना होगा. इस महाप्रचार का लाभ अब ही नहीं सदियों से चोरउचक्के भी उठाने लगे हैं. चारधाम यात्रा का बड़ा गुणगान किया गया है और उत्तराखंड की कमजोर पहाडिय़ों पर चौड़ी सडक़ें, होटल, धर्म यात्राएं, ढांबे, पाॄकगे, एम्यूजमैंट सैंटर, रोय वे बनने लगे हैं. अब यहां ले जाने के लिए फर्जी ट्रैवल एजेंसियों भी इंटरनेट पर छा गई हैं.

बहुत सी ट्रैवल एजेंसियां बहुत सस्ते पैकेज देने लगी हैं और एक बार पैसा अकाउंट में आया नहीं कि वे गायब. चारधाम की भव्य तस्वीरों, देवीदेवताओं की मूॢतयां, संस्कृत क्लोकों व मंत्रों से भरपूर ये वैवसाइटें शातिर लोग बनाते है और आमतौर पर खुद को किसी संतमहंत का शिष्य बनाते हैं. जिन्हें वैसे ही मूर्ख बनाना आसान है, वे सस्ते पैकेज के चक्कर में और आसानी से मूख बन रहे हैं.

अब यह काम इतने बड़े पैमाने पर हो रहा है कि पुलिस भी सिर्फ चेतावनी देने के अलावा कुछ नहीं कर सकती. इंटरनेट पर जाओ, गूगल खर्र्च करो तो इन के एड वाले रिजल्ड सब से पहले आ जाते हैं, गूगल को पैसे लेने से मतलब और वह कमी भी विज्ञापनदाता की बैकग्राउंड चैक नहीं करता. यह काम यूजर का है. यूजर की जाति गुम है नई को वह चारधाम यात्रा कर के पुण्य कमा कर अपना वर्तमान और भविष्य बिना काम किए  गारंटिड करना चाहता है, वह जल्दी ही झांसे में आ जाता है और जब स्टेशन या बस स्टैंड पर सामान व परिवार के साथ पहुंचता है तो पता चलता है कि फंस गया.

इन फंसने वालों से लंबीचौड़ी सहानुभूति नहीं हो सकती क्योंकि जो हमेशा फंसने को तैयार रहते है, उन्हें कोई समझा भी कैसे सकता है. तो लाखों में छपी तस्वीर से पैसा मिलने की आशा करते हैं वे भला कब और कैसे उम्मीद करेंगे कि इंटरनेट की स्क्रीन पर जहां देवीदेवताओं की तस्वीरें हैं, भव्य मंदिर दिख रहे हैं, निर्मल जल बह रहा है, वहां नकली होटलों के फोटो हैं, नकली रिव्यू हैं, झूठे वादे हैं. ये बेवकूफ तो शिकार होने का निमंत्रण खुलेआम देते हैं. अब घर्म के दुकानदार उन्हें लूटें या दुकानदारों की आड़ में शातिर, क्या फर्क पड़ता है.

कंबल ओढ़ो, महसूस करो ठंड है

अयोध्या जा कर ‘जय श्रीराम’ का नारा लगाने का समय आ गया है. बेहतर जीवन जीने लायक कामधाम रहा नहीं. नौकरियों की इच्छा वैसे ही देश के युवा पहले ही छोड़ चुके हैं, सो अब उन्होंने काम के लिए बाहर निकलना भी बंद कर दिया है. सोशल मीडिया पर धर्म के मैसेज, ‘मातारानी पाप लगाएगी अगर आगे 10 लोगों को फौरवोर्ड नहीं किया तो..’ के डर से युवाओं में पहले ही पूरे दिन व्यस्तता बनी रहती है, इसलिए धार्मिक मैसेज ठेलनेठिलाने का काम जोरों पर है. सुहागा यह कि मंदिरमसजिद के धार्मिक विवादों ने हर दंगाई हाथ को सशक्त करने का काम किया है और वे रोजगार संपन्न सा महसूस कर रहे हैं.

भई, टीवी पर धर्म की बहस से दालरोटी न सही, नफरत तो भरपूर मिल ही रही है. इस आध्यात्मिक मन को और चाहिए भी क्या? भूखप्यास तो भौतिक सुख हैं, इस से तो ध्यान भटकता है, असल जरूरत तो धर्म है, जो जातिवाद सिखाएगा, नफरत सिखाएगा, भेदभाव सिखाएगा, हिंसा सिखाएगा. अब बताओ अपनी संस्कृति न सीखें? इसलिए बहुत से युवा दंगाई बने फिर रहे हैं और बहुत उसी राह पर हैं. मानो तो 45 डिग्री की इस गरमी में मोटा कंबल ओढ़ो और सोचो कि ठंड पड़ रही है, क्योंकि भारत के युवाओं को इस बेरोजगारी युग में दंगाई वाले रोजगार का अभ्यास और आभास हर दिन हो रहा है.

आप पूछेंगे कि धर्म को ले कर इतनी मीठी बातें क्यों कही जा रही है? भई, हम कुछ नहीं कह रहे, रोजरोज के ऊलजलूल विवाद आप के सामने हैं. हम तो मुद्दे पर बात करेंगे. मुद्दा यह है कि भारतीय रेलवे ने बीते 6 सालों में 72 हजार से अधिक पदों को ख़त्म कर दिया है. उपलब्ध दस्तावेजों के हिसाब से ख़त्म किए गए पद ग्रुप सी और डी के हैं. रेलवे का कहना है कि इन पदों को समाप्त किया गया क्योंकि अब आधुनिक तकनीक आ गई है, इसलिए अब इन पदों पर लोगों की जरूरत नहीं है.

अब समस्या यह है कि इन पदों में एक अच्छीखासी संख्या दलितपिछड़ों की रहती है. इन पदों पर ही सब से ज्यादा भरतियां निकलती भी हैं, दलितपिछड़े सब से ज्यादा रेलवे की इस श्रेणी के लिए कम्पीट करते हैं. यही नौकरियां हैं जिन में पहुंच कर वे समाज में बराबरी का दम भरा करते हैं. तकनीक तो आएगी ही, तकनीक और विज्ञान का काम इंसान को राहत देना है, उसे बेरोजगार करना तो पूंजीवादी और अब सरकारी काम हो चला है. अब समस्या यह आ गई है कि दलितपिछड़े क्या करें, जो अपनी पुरानी सी जिंदगी जी रहे हैं. खैर, यह सोचना अब सरकार का काम नहीं है. वह अलग बात है कि दलितपिछड़ों के लिए भी इस समस्या का बंदोबस्त सरकार ने अच्छे से किया है. ज्ञानवापी मसजिद विवाद पौपकौर्न के साथ रोज टीवी पर चल ही रहा है, कुछ दिन बाद तेजोमहल और विष्णु स्तंभ भी टाइमपास के लिए आ ही जाएंगे.

परिवार: मां की जिम्मेदारी अनमोल

मां की जगह कोई नहीं ले सकता. मां ऐसी दौलत है जो अनमोल है. जिस के पास यह दौलत है वह सब से धनी है. जन्म से ही बच्चा मां को पहचानने लगता है क्योंकि उस के दिल की धड़कन मां की धड़कन से मिलती है. यही वजह है कि बच्चे की किसी मुश्किल घड़ी में मां को सब से पहले उस का एहसास हो जाता है. चाहे सैलिब्रिटी मां हो या साधारण मां, हर मां में वही प्यार, दुलार, अपनापन समाया रहता है जिस का वर्णन करना आसान नहीं.

मांबेटी का रिश्ता बहुत ही प्यारा रिश्ता है

बेटाबेटा करती हैं और कितनी ही औरतें गर्भ में बेटी को जान से मार डालती हैं. एक बेटी मां के जितना करीब होती है शायद कोई और नहीं. बातें शेयर करना, एकजैसे कपड़ेगहने पहनना सबकुछ एकजैसा होता है.

कुछ मांएं अपनी सब बातें बेटी से शेयर करती हैं तो कोई कुछ बातें अपनी सहेलियों के साथ शेयर करना पसंद करती हैं, पर जब बेटी शादीशुदा हो जाती हैं उसे मां की सारी बातें सम?ाने में आसानी होती है. फिर जहां जेनरेशन गैप होता है वहां बच्चे मां की बातों को गंभीरता से नहीं ले पाते. उन्हें अजीब लगता है. आज की बेटियां जल्दी गुस्सा भी हो जाती हैं और वह गुस्सा बाप पर उतरेगा या मां पर, कहा नहीं जा सकता.

मदर्स डे तो एक तरह से दीवाली और करवाचौथ से भी ज्यादा महत्त्वपूर्ण है. इस दिन की एक विशेष खासीयत है जो एक मां को दासी या देवी से अलग बनाती है.

मां के साथ रह कर बातचीत करना, एकदूसरे की भावना को सम?ाना प्रमुख है. मां की आर्थिक स्थिति सम?ाना तो बहुत जरूरी है. कई बार जब मां बेटों को ज्यादा भाव दे तो बेटियों को कठिनाई होती है कि मां को कैसे दुलारें. अगर संपत्ति मां के नाम हो तो कई भाई मां को बेटी से मिलने नहीं देते कि कहीं वह संपत्ति अपने नाम न करा ले.

एक मेधावी बेटी की मां का सीना ज्यादा चौड़ा होता है, इसलिए मांबेटी के रिश्ते में बेटी की पढ़ाई पर कहीं कोई आंच नहीं आनी चाहिए. मां पार्टी में जाए तो वहां बेटी की प्रशंसा सुनना मां के लिए सब से ज्यादा सुखदायी होता है. बेटी को सही राह का ज्ञान हो, इसलिए उसे पढ़ते रहने की सलाह दी जानी चाहिए. वह मोबाइल में ही न घुसी रहे.

आज की मां को हमेशा बेटी को आजादी देनी चाहिए. उस से कहें कि तुम हर बात खुद सीखो और हमेशा खुश रहो, कैरियर को खुद चुनो, बौयफ्रैंड खुद चुनो. हां, जीवन में कभी तनाव हो तो मां संभाले और अगर बेटी गलत रास्ते पर जा रही हो तो उसे सही तरफ आगे ले जाना भी मां का काम है. भाई, बहन या बहनें आपस में कभी ना न कहें. यह शिक्षा देना मां का काम है. अगर किसी बेटी के साथ दूसरे की अनबन रहे तो दोनोंतीनों के बीच सम?ाते टैक्टफुली कराने चाहिए.

कुछ बेटियां चाहती हैं कि अपनी चीज न दें जबकि दूसरे की ले लें. वे हमेशा एकदूसरे से आगे रहना चाहती हैं और यह बात आपस में तकरार को जन्म देती है जिस पर मांएं अकसर मनाने के लिए आगे आती हैं.

वे साल मांओं के लिए बड़े चुनौतीपूर्ण होते हैं जब बेटियों का अपना कैरियर चढ़ाव पर होता है. पिता ज्यादा ध्यान नहीं दे पाते और बेटी के लिए समस्याएं खड़ी हो जाती हैं. हर बच्चे को अपना दोस्त चुनने की आजादी हो पर मांएं बच्चे से उस के दोस्त के बारे में चर्चा कर अपनी राय अवश्य दें. बेटी के दोस्त, चाहे लड़कियां हों या लड़के, मां से मिल अवश्य लें.

आजकल के मातापिता बच्चों से कुछ अधिक उम्मीद रखते हैं?

पहले महिलाओं को घर से बाहर जाने की अनुमति नहीं थी, आज है, इसलिए उम्मीदें भी बढ़ी हैं. बेटी के साथ मातापिता का हमेशा दोस्ताना अंदाज होना चाहिए ताकि बेटी भी अपनी किसी बात को मां से बांट सके. जरूरत से अधिक रोकटोक बगावत को जन्म देती है. जरूरत से ज्यादा हैलिकौप्टर मौम बनना भी गलत है.

अपना घर- भाग 2: आखिर विजय के घर में अंधेरा क्यों था?

जब कभी सुरेखा विजय की बांहों में होती तो अचानक ही एक विचार से कांप उठती थी कि अगर किसी दिन विजय को विकास के बारे में पता चल गया तो क्या होगा? क्या विजय उसे माफ कर देगा. नहीं, विजय कभी उसे माफ नहीं करेगा क्योंकि सभी मर्द इस मामले में एकजैसे होते हैं. तब क्या उसे बता देना चाहिए? नहीं, वह खुद अपने पैरों पर कुल्हाड़ी क्यों मारे?

आज विजय को पता चल गया और जिस बात का उसे डर था, वही हुआ. पर वह शक, नफरत और अनदेखी के बीच कैसे रह सकती थी?

सुबह सुरेखा मम्मीपापा के पास जा पहुंची थी.

सुरेखा के कमरे से निकल जाने

के बाद भी विजय का गुस्सा बढ़ता

ही जा रहा था. वह सोफे पर पसर गया. धोखेबाज… न जाने खुद को क्या समझती है वह? अच्छा हुआ आज पता चल गया, नहीं तो पता नहीं कब तक उसे धोखे में ही रखा जाता?

2-3 दिन में ही पासपड़ोस में सभी को पता चल गया. काम वाली बाई कमला ने साफसाफ कह दिया, ‘‘देखो बाबूजी, अब मैं काम नहीं करूंगी. जिस घर में औरत नहीं होती, वहां मैं काम नहीं करती. आप मेरा हिसाब कर दो.’’

विजय ने कमला को समझाते हुए कहा, ‘‘देखो, काम न छोड़ो, 100-200 रुपए और बढ़ा लेना.’’

‘‘नहीं बाबूजी, मेरी भी मजबूरी है. मैं यहां काम नहीं करूंगी.’’

‘‘जब तक दूसरी काम वाली न मिले, तब तक तो काम कर लेना कमला.’’

‘‘नहीं बाबूजी, मैं एक दिन भी काम नहीं करूंगी,’’ कह कर कमला चली गई.

4-5 दिन तक कोई भी काम वाली बाई न मिली तो विजय के सामने बहुत बड़ी परेशानी खड़ी हो गई. सुबह घर व बरतनों की सफाई, शाम को औफिस से थका सा वापस लौटता तो पलंग पर लेट जाता. उसे खाना बनाना नहीं आता था. कभी बाजार में खा लेता. दिन तो जैसेतैसे कट जाता, पर बिस्तर पर लेट कर जब सोने की कोशिश करता तो नींद आंखों से बहुत दूर हो जाती. सुरेखा की याद आते ही गुस्सा व नफरत बढ़ जाती.

रात को देर तक नींद न आने के चलते विजय ने शराब के नशे में डूब

कर सुरेखा को भुलाना चाहा. वह जितना सुरेखा को भुलाना चाहता, वह उतनी ज्यादा याद आती.

एक रात विजय ने शराब के नशे में मदहोश हो कर सुरेखा का मोबाइल नंबर मिला कर कहा, ‘‘तुम ने मुझे जो धोखा दिया है, उस की सजा जल्दी ही मिलेगी. मुझे तुम से और तुम्हारे परिवार से नफरत है. मैं तुम्हें तलाक दे दूंगा. मुझे नहीं चाहिए एक चरित्रहीन और धोखेबाज पत्नी. अब तुम सारी उम्र विकास के गम में रोती रहना.’’

उधर से कोई जवाब नहीं मिला.

‘‘सुन रही हो या बहरी हो गई हो?’’ विजय ने नशे में बहकते हुए कहा.

‘यह क्या आप ने शराब पी रखी है?’ वहां से आवाज आई.

‘‘हां, पी रखी है. मैं रोज पीता हूं. मेरी मरजी है. तू कौन होती है मुझ से पूछने वाली? धोखेबाज कहीं की.’’

उधर से फोन बंद हो गया.

विजय ने फोन एक तरफ फेंक दिया और देर तक बड़बड़ाता रहा.

औफिस और पासपड़ोस के कुछ साथियों ने विजय को समझाया कि शराब के नशे में डूब कर अपनी जिंदगी बरबाद मत करो. इस परेशानी का हल शराब नहीं है, पर विजय पर कोई असर नहीं पड़ा. वह शराब के नशे में डूबता चला गया.

एक शाम विजय घर पर ही शराब पीने की तैयारी कर रहा था कि तभी दरवाजे पर दस्तक हुई. विजय ने बुरा सा मुंह बना कर कहा, ‘‘इस समय कौन आ गया मेरा मूड खराब करने को?’’

विजय ने उठ कर दरवाजा खोला तो चौंक उठा. सामने उस का पुराना दोस्त अनिल अपनी पत्नी सीमा के साथ था.

‘‘आओ अनिल, अरे यार, आज इधर का रास्ता कैसे भूल गए? सीधे दिल्ली से आ रहे हो क्या?’’ विजय ने पूछा.

‘‘हां, आज ही आने का प्रोग्राम बना था. तुम्हें 2-3 बार फोन भी मिलाया, पर बात नहीं हो सकी.’’

‘‘आओ, अंदर आओ,’’ विजय ने मुसकराते हुए कहा.

विजय ने मेज पर रखी शराब की बोतल, गिलास व खाने का सामान वगैरह उठा कर एक तरफ रख दिया.

अनिल और सीमा सोफे पर बैठ गए. अनिल और विजय अच्छे दोस्त थे, पर वह अनिल की शादी में नहीं जा पाया था. आज पहली बार दोनों उस के पास आए थे.

विजय ने सीमा की ओर देखा तो चौंक गया. 3 साल पहले वह सीमा से मिला था अगरा में, जब अनिल और विजय लालकिला में घूम रहे थे. एक बूढ़ा आदमी उन के पास आ कर बोला था, ‘‘बाबूजी, आगरा घूमने आए हो?’’

‘‘हां,’’ अनिल ने कहा था.

‘‘कुछ शौक रखते हो?’’ बूढ़े ने कहा.

वे दोनों चुपचाप एकदूसरे की तरफ देख रहे थे.

‘‘बाबूजी, आप मेरे साथ चलो. बहुत खूबसूरत है. उम्र भी ज्यादा नहीं है. बस, कभीकभी आप जैसे बाहर के लोगों को खुश कर देती है,’’ बूढ़े ने कहा था.

वे दोनों उस बूढ़े के साथ एक पुराने से मकान पर पहुंच गए. वहां तीखे नैननक्श वाली सांवली सी एक खूबसूरत लड़की बैठी थी.

अनिल उस लड़की के साथ कमरे में गया था, पर वह नहीं.

वह लड़की सीमा थी, अब अनिल की पत्नी. क्या अनिल ने देह बेचने वाली उस लड़की से शादी कर ली? पर क्यों? ऐसी क्या मजबूरी हो गई थी जो अनिल को ऐसी लड़की से शादी करनी पड़ी?

‘‘भाभीजी दिखाई नहीं दे रही हैं?’’ अनिल ने विजय से पूछा.

‘‘वह मायके गई है,’’ विजय के चेहरे पर नफरत और गुस्से की रेखाएं फैलने लगीं.

‘‘तभी तो जाम की महफिल सजाए बैठे हो, यार. तुम तो शराब से दूर भागते थे, फिर ऐसी क्या बात हो गई कि…?’’

‘‘ऐसी कोई खास बात नहीं. बस, वैसे ही पीने का मन कर रहा था. सोचा कि 2 पैग ले लूं…’’ विजय उठता हुआ बोला, ‘‘मैं तुम्हारे लिए खाने का इंतजाम करता हूं.’’

‘‘अरे भाई, खाने की तुम चिंता न करो. खाना सीमा बना लेगी और खाने से पहले चाय भी बना लेगी. रसोई के काम में बहुत कुशल है यह,’’ अनिल ने कहा.

विजय चुप रहा, पर उस के दिमाग में यह सवाल घूम रहा था कि आखिर अनिल ने सीमा से शादी क्यों की?

सीमा उठ कर रसोईघर में चली गई. विजय ने अनिल को सबकुछ सच बता दिया कि उस ने सुरेखा को घर से क्यों निकाला है.

अनिल ने कहा, ‘‘पहचानते हो अपनी भाभी सीमा को?’’

‘‘हां, पहचान तो रहा हूं, पर क्या यह वही है… जब आगरा में हम दोनों घूमने गए थे?’’

‘‘हां विजय, यह वही सीमा है. उस दिन आगरा के उस मकान में वह बूढ़ा ले गया था. मैं ने सीमा में पता नहीं कौन सा खिंचाव व भोलापन पाया कि मेरा मन उस से बातें करने को बेचैन हो उठा था. मैं ने कमरे में पलंग पर बैठते हुए पूछा था, ‘‘तुम्हारा नाम?’’

‘‘यह सुन कर वह बोली थी, ‘क्या करोगे जान कर? आप जिस काम से आए हो, वह करो और जाओ.’

‘‘तब मैं ने कहा था, ‘नहीं, मुझे उस काम में इतनी दिलचस्पी नहीं है. मैं तुम्हारे बारे में जानना चाहता हूं.’

‘‘वह बोली थी, ‘मेरे बारे में जानना चाहते हो? मुझ से शादी करोगे क्या?’

‘‘उस ने मेरी ओर देख कर कहा तो मैं एकदम सकपका गया था. मैं ने उस से पूछा था, ‘पहले तुम अपने बारे में बताओ न.’

‘‘उस ने बताया था, ‘मेरा नाम सीमा है. वह मेरा चाचा है जो आप को यहां ले कर आया है. आगरा में एक कसबा फतेहाबाद है, हम वहीं के रहने वाले हैं. मेरे मातापिता की एक बस हादसे में मौत हो गई थी. उस के बाद मैं चाचाचाची के घर रहने लगी. मैं 12वीं में पढ़ रही थी तो एक दिन चाचा ने आगरा ला कर मुझे इस काम में धकेल दिया.

यह तो पागल है: इस औरत से क्या कोई बचा सकता है

अपनी पत्नी सरला को अस्पताल के इमरजैंसी विभाग में भरती करवा कर मैं उसी के पास कुरसी पर बैठ गया. डाक्टर ने देखते ही कह दिया था कि इसे जहर दिया गया है और यह पुलिस केस है. मैं ने उन से प्रार्थना की कि आप इन का इलाज करें, पुलिस को मैं खुद बुलवाता हूं. मैं सेना का पूर्व कर्नल हूं. मैं ने उन को अपना आईकार्ड दिखाया, ‘‘प्लीज, मेरी पत्नी को बचा लीजिए.’’

डाक्टर ने एक बार मेरी ओर देखा, फिर तुरंत इलाज शुरू कर दिया. मैं ने अपने क्लब के मित्र डीसीपी मोहित को सारी बात बता कर तुरंत पुलिस भेजने का आग्रह किया. उस ने डाक्टर से भी बात की. वे अपने कार्य में व्यस्त हो गए. मैं बाहर रखी कुरसी पर बैठ गया. थोड़ी देर बाद पुलिस इंस्पैक्टर और 2 कौंस्टेबल को आते देखा. उन में एक महिला कौंस्टेबल थी.

मैं भाग कर उन के पास गया, ‘‘इंस्पैक्टर, मैं कर्नल चोपड़ा, मैं ने ही डीसीपी मोहित साहब से आप को भेजने के लिए कहा था.’’

पुलिस इंस्पैक्टर थोड़ी देर मेरे पास रुके, फिर कहा, ‘‘कर्नल साहब, आप थोड़ी देर यहीं रुकिए, मैं डाक्टरों से बात कर के हाजिर होता हूं.’’

मैं वहीं रुक गया. मैं ने दूर से देखा, डाक्टर कमरे से बाहर आ रहे थे. शायद उन्होंने अपना इलाज पूरा कर लिया था. इंस्पैक्टर ने डाक्टर से बात की और धीरेधीरे चल कर मेरे पास आ गए.

मैं ने इंस्पैक्टर से पूछा, ‘‘डाक्टर ने क्या कहा? कैसी है मेरी पत्नी? क्या वह खतरे से बाहर है, क्या मैं उस से मिल सकता हूं?’’ एकसाथ मैं ने कई प्रश्न दाग दिए.

‘‘अभी कुछ नहीं कहा जा सकता. डाक्टर अपना इलाज पूरा कर चुके हैं. उन की सांसें चल रही हैं. लेकिन बेहोश हैं. 72 घंटे औब्जर्वेशन में रहेंगी. होश में आने पर उन के बयान लिए जाएंगे. तब तक आप उन से नहीं मिल सकते. हमें यह भी पता चल जाएगा कि उन को कौन सा जहर दिया गया है,’’ इंस्पैक्टर ने कहा और मुझे गहरी नजरों से देखते हुए पूछा, ‘‘बताएं कि वास्तव में हुआ क्या था?’’

‘‘दोपहर 3 बजे हम लंच करते हैं. लंच करने से पहले मैं वाशरूम गया और हाथ धोए. सरला, मेरी पत्नी, लंच शुरू कर चुकी थी. मैं ने कुरसी खींची और लंच करने के लिए बैठ गया. अभी पहला कौर मेरे हाथ में ही था कि वह कुरसी से नीचे गिर गई. मुंह से झाग निकलने लगा. मैं समझ गया, उस के खाने में जहर है. मैं तुरंत उस को कार में बैठा कर अस्पताल ले आया.’’

‘‘दोपहर का खाना कौन बनाता है?’’

‘‘मेड खाना बनाती है घर की बड़ी बहू के निर्देशन में.’’

‘‘बड़ी बहू इस समय घर में मिलेगी?’’

‘‘नहीं, खाना बनवाने के बाद वह यह कह कर अपने मायके चली गई कि उस की मां बीमार है, उस को देखने जा रही है.’’

‘‘इस का मतलब है, वह खाना अभी भी टेबल पर पड़ा होगा?’’

‘‘जी, हां.’’

‘‘और कौनकौन है, घर में?’’

‘‘इस समय तो घर में कोई नहीं होगा. मेरे दोनों बेटों का औफिस ग्रेटर नोएडा में है. वे दोनों 11 बजे तक औफिस के लिए निकल जाते हैं. छोटी बहू गुड़गांव में काम करती है. वह सुबह ही घर से निकल जाती है और शाम को घर आती है. दोनों पोते सुबह ही स्कूल के लिए चले जाते हैं. अब तक आ गए होंगे. मैं गार्ड को कह आया था कि उन से कहना, दादू, दादी को ले कर अस्पताल गए हैं, वे पार्क में खेलते रहें.’’

इंस्पैक्टर ने साथ खड़े कौंस्टेबल से कहा, ‘‘आप कर्नल साहब के साथ इन के फ्लैट में जाएं और टेबल पर पड़ा सारा खाना उठा कर ले आएं. किचन में पड़े खाने के सैंपल भी ले लें. पीने के पानी का सैंपल भी लेना न भूलना. ठहरो, मैं ने फोरैंसिक टीम को बुलाया है. वह अभी आती होगी. उन को साथ ले कर जाना. वे अपने हिसाब से सारे सैंपल ले लेंगे.’’

‘‘घर में सीसीटीवी कैमरे लगे हैं?’’ इंस्पैक्टर ने मुझ से पूछा.

‘‘जी, नहीं.’’

‘‘सेना के बड़े अधिकारी हो कर भी कैमरे न लगवा कर आप ने कितनी बड़ी भूल की है. यह तो आज की अहम जरूरत है. यह पता भी चल गया कि जहर दिया गया है तो इसे प्रूफ करना मुश्किल होगा. कैमरे होने से आसानी होती. खैर, जो होगा, देखा जाएगा.’’

इतनी देर में फोरैंसिक टीम भी आ गई. उन को निर्देश दे कर इंस्पैक्टर ने मुझ से उन के साथ जाने के लिए कहा.

‘‘आप ने अपने बेटों को बताया?’’

‘‘नहीं, मैं आप के साथ व्यस्त था.’’

‘‘आप मुझे अपना मोबाइल दे दें और नाम बता दें. मैं उन को सूचना दे दूंगा.’’ इंस्पैक्टर ने मुझ से मोबाइल ले लिया.

फोरैंसिक टीम को सारी कार्यवाही के लिए एक घंटा लगा. टीम के सदस्यों ने जहर की शीशी ढूंढ़ ली. चूहे मारने का जहर था. मैं जब पोतों को ले कर दोबारा अस्पताल पहुंचा तो मेरे दोनों बेटे आ चुके थे. एक महिला कौंस्टेबल, जो सरला के पास खड़ी थी, को छोड़ कर बाकी पुलिस टीम जा चुकी थी. मुझे देखते ही, दोनों बेटे मेरे पास आ गए.

‘‘पापा, क्या हुआ?’’

‘‘मैं ने सारी घटना के बारे में बताया.’’

‘‘राजी कहां है?’’ बड़े बेटे ने पूछा.

‘‘कह कर गई थी कि उस की मां बीमार है, उस को देखने जा रही है. तुम्हें तो बताया होगा?’’

‘‘नहीं, मुझे कहां बता कर जाती है.’’

‘‘वह तुम्हारे हाथ से निकल चुकी है. मैं तुम्हें समझाता रहा कि जमाना बदल गया है. एक ही छत के नीचे रहना मुश्किल है. संयुक्त परिवार का सपना, एक सपना ही रह गया है. पर तुम ने मेरी एक बात न सुनी. तब भी जब तुम ने रोहित के साथ पार्टनरशिप की थी. तुम्हें 50-60 लाख रुपए का चूना लगा कर चला गया.

‘‘तुम्हें अपनी पत्नी के बारे में सबकुछ पता था. मौल में चोरी करते रंगेहाथों पकड़ी गई थी. चोरी की हद यह थी कि हम कैंटीन से 2-3 महीने के लिए सामान लाते थे और यह पैक की पैक चायपत्ती, साबुन, टूथपेस्ट और जाने क्याक्या चोरी कर के अपने मायके दे आती थी और वे मांबाप कैसे भूखेनंगे होंगे जो बेटी के घर के सामान से घर चलाते थे. जब हम ने अपने कमरे में सामान रखना शुरू किया तो बात स्पष्ट होने में देर नहीं लगी.

‘‘चोरी की हद यहां तक थी कि तुम्हारी जेबों से पैसे निकलने लगे. घर में आए कैश की गड्डियों से नोट गुम होने लगे. तुम ने कैश हमारे पास रखना शुरू किया. तब कहीं जा कर चोरी रुकी. यही नहीं, बच्चों के सारे नएनए कपड़े मायके दे आती. बच्चे जब कपड़ों के बारे में पूछते तो उस के पास कोई जवाब नहीं होता. तुम्हारे पास उस पर हाथ उठाने के अलावा कोई चारा नहीं होता.

‘‘अब तो वह इतनी बेशर्म हो गई है कि मार का भी कोई असर नहीं होता. वह पागल हो गई है घर में सबकुछ होते हुए भी. मानता हूं, औरत को मारना बुरी बात है, गुनाह है पर तुम्हारी मजबूरी भी है. ऐसी स्थिति में किया भी क्या जा सकता है.

‘‘तुम्हें तब भी समझ नहीं आई. दूसरी सोसाइटी की दीवारें फांदती हुई पकड़ी गई. उन के गार्डो ने तुम्हें बताया. 5 बार घर में पुलिस आई कि तुम्हारी मम्मी तुम्हें सिखाती है और तुम उसे मारते हो. जबकि सारे उलटे काम वह करती है. हमें बच्चों के जूठे दूध की चाय पिलाती थी. बच्चों का बचा जूठा पानी पिलाती थी. झूठा पानी न हो तो गंदे टैंक का पानी पिला देती थी. हमारे पेट इतने खराब हो जाते थे कि हमें अस्पताल में दाखिल होना पड़ता था. पिछली बार तो तुम्हारी मम्मी मरतेमरते बची थी.

‘‘जब से हम अपना पानी खुद भरने लगे, तब से ठीक हैं.’’ मैं थोड़ी देर के लिए सांस लेने के लिए रुका, ‘‘तुम मारते हो और सभी दहेज मांगते हैं, इस के लिए वह मंत्रीजी के पास चली गई. पुलिस आयुक्त के पास चली गई. कहीं बात नहीं बनी तो वुमेन सैल में केस कर दिया. उस के लिए हम सब 3 महीने परेशान रहे, तुम अच्छी तरह जानते हो. तुम्हारी ससुराल के 10-10 लोग तुम्हें दबाने और मारने के लिए घर तक पहुंच गए. तुम हर जगह अपने रसूख से बच गए, वह बात अलग है. वरना उस ने तुम्हें और हमें जेल भिजवाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी. इतना सब होने पर भी तुम उसे घर ले आए जबकि वह घर में रहने लायक लड़की नहीं थी.

‘‘हम सब लिखित माफीनामे के बिना उसे घर लाना नहीं चाहते थे. उस के लिए मैं ने ही नहीं, बल्कि रिश्तेदारों ने भी ड्राफ्ट बना कर दिए पर तुम बिना किसी लिखतपढ़त के उसे घर ले आए. परिणाम क्या हुआ, तुम जानते हो. वुमेन सैल में तुम्हारे और उस के बीच क्या समझौता हुआ, हमें नहीं पता. तुम भी उस के साथ मिले हुए हो. तुम केवल अपने स्वार्थ के लिए हमें अपने पास रखे हो. तुम महास्वार्थी हो.

‘‘शायद बच्चों के कारण तुम्हारा उसे घर लाना तुम्हारी मजबूरी रही होगी या तुम मुकदमेबाजी नहीं चाहते होगे. पर, जिन बच्चों के लिए तुम उसे घर ले कर आए, उन का क्या हुआ? पढ़ने के लिए तुम्हें अपनी बेटी को होस्टल भेजना पड़ा और बेटे को भेजने के लिए तैयार हो. उस ने तुम्हें हर जगह धोखा दिया. तुम्हें किन परिस्थितियों में उस का 5वें महीने में गर्भपात करवाना पड़ा, तुम्हें पता है. उस ने तुम्हें बताया ही नहीं कि वह गर्भवती है. पूछा तो क्या बताया कि उसे पता ही नहीं चला. यह मानने वाली बात नहीं है कि कोई लड़की गर्भवती हो और उसे पता न हो.’’

‘‘जब हम ने तुम्हें दूसरे घर जाने के लिए डैडलाइन दे दी तो तुम ने खाना बनाने वाली रख दी. ऐसा करना भी तुम्हारी मजबूरी रही होगी. हमारा खाना बनाने के लिए मना कर दिया होगा. वह दोपहर का खाना कैसा गंदा और खराब बनाती थी, तुम जानते थे. मिनरल वाटर होते हुए भी, टैंक के पानी से खाना बनाती थी.

‘‘मैं ने तुम्हारी मम्मी से आशंका व्यक्त की थी कि यह पागल हो गई है. यह कुछ भी कर सकती है. हमें जहर भी दे सकती है. किचन में कैमरे लगवाओ, नौकरानी और राजी पर नजर रखी जा सकेगी. तुम ने हामी भी भरी, परंतु ऐसा किया नहीं. और नतीजा तुम्हारे सामने है. वह तो शुक्र करो कि खाना तुम्हारी मम्मी ने पहले खाया और मैं उसे अस्पताल ले आया. अगर मैं भी खा लेता तो हम दोनों ही मर जाते. अस्पताल तक कोई नहीं पहुंच पाता.’’

इतने में पुलिस इंस्पैक्टर आए और कहने लगे, ‘‘आप सब को थाने चल कर बयान देने हैं. डीसीपी साहब इस के लिए वहीं बैठे हैं.’’ थाने पहुंचे तो मेरे मित्र डीसीपी मोहित साहब बयान लेने के लिए बैठे थे. उन्होंने कहा, ‘‘मुझे सब से पहले आप की छोटी बहू के बयान लेने हैं. पता करें, वह स्कूल से आ गई हो, तो तुरंत बुला लें.’’

छोटी बहू आई तो उसे सीधे डीसीपी साहब के सामने पेश किया गया. उसे हम में से किसी से मिलने नहीं दिया गया. डीसीपी साहब ने उसे अपने सामने कुरसी पर बैठा, बयान लेने शुरू किए. 2 इंस्पैक्टर बातचीत रिकौर्ड करने के लिए तैयार खड़े थे. एक लिपिबद्ध करने के लिए और एक वीडियोग्राफी के लिए.

डीसीपी साहब ने पूछना शुरू किया-

‘‘आप का नाम?’’

‘‘जी, निवेदिका.’’

‘‘आप की शादी कब हुई? कितने वर्षों से आप कर्नल चोपड़ा साहब की बहू हैं?’’

‘‘जी, मेरी शादी 2011 में हुई थी. 6 वर्ष हो गए.’’

‘‘आप के कोई बच्चा?’’

‘‘जी, एक बेटा है जो मौडर्न स्कूल में दूसरी क्लास में पढ़ता है.’’

‘‘आप को अपनी सास और ससुर से कोई समस्या? मेरे कहने का मतलब वे अच्छे या आम सासससुर की तरह तंग करते हैं?’’

‘‘सर, मेरे सासससुर जैसा कोई नहीं हो सकता. वे इतने जैंटल हैं कि उन का दुश्मन भी उन को बुरा नहीं कह सकता. मेरे पापा नहीं हैं. कर्नल साहब ने इतना प्यार दिया कि मैं पापा को भूल गई. वे दोनों अपने किसी भी बच्चे पर भार नहीं हैं. पैंशन उन की इतनी आती है कि अच्छेअच्छों की सैलरी नहीं है. दवा का खर्चा भी सरकार देती है. कैंटीन की सुविधा अलग से है.’’

‘‘फिर समस्या कहां है?’’

‘‘सर, समस्या राजी के दिमाग में है, ‘‘सर, सत्य यह भी है कि राजी महाचोर है. मेरे मायके से 5 किलो दान में आई मूंग की दाल भी चोरी कर के ले गई. मेरे घर से आया शगुन का लिफाफा भी चोरी कर लिया, उस की बेटी ने ऐसा करते खुद देखा. थोड़ा सा गुस्सा आने पर जो अपनी बेटी का बस्ता और किताबें कमरे के बाहर फेंक सकती है, वह पागल नहीं तो और क्या है. उस की बेटी चाहे होस्टल चली गई परंतु यह बात वह कभी नहीं भूल पाई.’’

‘‘ठीक है, मुझे आप के ही बयान लेने थे. सास के बाद आप ही राजी की सब से बड़ी राइवल हैं.’’

उसी समय एक कौंस्टेबल अंदर आया और कहा, ‘‘सर, राजी अपने मायके में पकड़ी गई है और उस ने अपना गुनाह कुबूल कर लिया है. उस की मां भी साथ है.’’

‘‘उन को अंदर बुलाओ. कर्नल साहब, उन के बेटों को भी बुलाओ.’’

थोड़ी देर बाद हम सब डीसीपी साहब के सामने थे. राजी और उस की मां भी थीं. राजी की मां ने कहा, ‘‘सर, यह तो पागल है. उसी पागलपन के दौरे में इस ने अपनी सास को जहर दिया. ये रहे उस के पागलपन के कागज. हम शादी के बाद भी इस का इलाज करवाते रहे हैं.’’

‘‘क्या? यह बीमारी शादी से पहले की है?’’

‘‘जी हां, सर.’’

‘‘क्या आप ने राजी की ससुराल वालों को इस के बारे में बताया था?’’ डीसीपी साहब ने पूछा.

‘‘सर, बता देते तो इस की शादी नहीं होती. वह कुंआरी रह जाती.’’

‘‘अच्छा था, कुंआरी रह जाती. एक अच्छाभला परिवार बरबाद तो न होता. आप ने अपनी पागल लड़की को थोप कर गुनाह किया है. इस की सख्त से सख्त सजा मिलेगी. आप भी बराबर की गुनाहगार हैं. दोनों को इस की सजा मिलेगी.’’

‘‘डीसीपी साहब किसी पागल लड़की को इस प्रकार थोपने की क्रिया ही गुनाह है. कानून इन को सजा भी देगा. पर हमारे बेटे की जो जिंदगी बरबाद हुई उस का क्या? हो सकता है, इस के पागलपन का प्रभाव हमारी अगली पीढ़ी पर भी पड़े. उस का कौन जिम्मेदार होगा? हमारा खानदान बरबाद हो गया. सबकुछ खत्म हो गया.’’

‘‘मानता हूं, कर्नल साहब, इस की पीड़ा आप को और आप के बेटे को जीवनभर सहनी पड़ेगी, लेकिन कोई कानून इस मामले में आप की मदद नहीं कर पाएगा.’’

थाने से हम घर आ गए. सरला की तबीयत ठीक हो गई थी. वह अस्पताल से घर आ गई थी. महीनों वह इस हादसे को भूल नहीं पाई थी. कानून ने राजी और उस की मां को 7-7 साल कैद की सजा सुनाई थी. जज ने अपने फैसले में लिखा था कि औरतों के प्रति गुनाह होते तो सुना था लेकिन जो इन्होंने किया उस के लिए 7 साल की सजा बहुत कम है. अगर उम्रकैद का प्रावधान होता तो वे उसे उम्रकैद की सजा देते.

और आंखें भर आईं- भाग 3: क्यों पछता रही थी पार्वती?

‘‘चुप, साली झूठ बालती है. मि. ईश्वर चंद्र, यह पढ़ो अपनी पत्नी और पार्वती के बीच मोवाइल पर हुई कंवरसेशन. आप की पत्नी पार्वती को अपनी सास का टेंटुआ दबाने की बात कह रही है. इस का मतलब आप समझते हैं? किसी को खून करने के लिए उकसाना. उकसाना भी खून करने के बराबर होता है. पढ़ा दो अपनी पत्नी को भी. इस डौक्यूमैंट को कोर्ट भी मानेगा. लो पढ़ो और पढ़ाओ,’’ सिद्धार्थ ने फाइल में से एक पेपर निकाल कर ईश्वर चंद्र की ओर बढ़ा दिया.

पढ़ कर ईश्वर चंद्र का चेहरा फक पड़ गया. उस ने वह पेपर अपनी पत्नी की ओर बढ़ा दिया. पार्वती ने उसे पढ़ा और कुछ कहने को उद्दत हुई. मैं ने स्पष्ट देखा, ईश्वर चंद्र ने अपनी पत्नी का हाथ दबा कर चुप रहने का संकेत किया.

‘‘मुझे समझ नहीं आया इंस्पैक्टर अमिता कि इंस्पैक्टर रजनी की इंक्वायरी रिपोर्ट पर ऐक्शन क्यों नहीं लिया गया?” सिद्धार्थ ने कहना शुरू किया, ‘‘उस समय पार्वती के पागलपन को चैक क्यों नहीं करवाया गया? यह चैक क्यों नहीं करवाया गया कि इस की पढ़ाई की डिग्रियां नकली हैं या असली? इंस्पैक्टर रजनी ने इस ओर बड़ा साफ़ संकेत किया है कि पार्वती के मांबाप ने एक पागल, अनपढ़, बदजबान व असभ्य लड़की को एक अत्यंत सुशिक्षित, सभ्य और हर तरह से समृद्ध परिवार को चेप कर बरबाद कर दिया है.’’

“सर, उस समय मुझे याद है. राजस्थान के एक डीसीपी साहब, जो इन के रिश्तेदार हैं, की व्यक्तिगत प्रार्थना पर केस रफादफा कर दिया गया था,” इंस्पैक्टर अमिता ने कहा.

‘‘तभी तो ऐसा हुआ. उस समय यदि ऐक्शन ले लिया होता तो यह नौबत न आती. फिर भी ऐसा करो, पार्वती और उस की मां के विरुद्ध एफआईआर लौज करो और…?”

“क्या मैं भीतर आ सकती हूं, सर?”

‘‘यस इंस्पैक्टर रोजी, कम इन.’’

“सर, यह है मैडम की मैडिकल रिपोर्ट और उन की स्टेटमैंट,” इंस्पैक्टर रोजी ने एक फाइल सिद्धार्थ की ओर बढ़ा दी.

सिद्धार्थ ने मैडिकल रिपोर्ट और स्टेटमैंट पढ़ी. एक बार मेरी ओर देखा. फिर फाइल में आंखें गड़ा दीं. आंखें उठाईं तो उन में क्रोध झलक रहा था. ‘‘मैडिकल रिपोर्ट साफ कहती है कि मैडम के सिर पर किसी सख्त चीज से प्रहार किया गया है. परंतु ऐसे लोग भी संसार में हैं जिन पर पूरा विश्व खड़ा है. मैडम ने स्टेटमैंट दी है, ‘पार्वती मेरे परिवार की अभिन्न अंग है. वह मेरे प्रति कोई गलती कर ही नहीं सकती. करती भी है तो वह माफी के योग्य है. मैं ने उसे माफ कर दिया है. मेरे सिर पर वाशरूम में गिरने से चोट लगी.’”

सिद्धार्थ कुछ देर चुप रहा, फिर कठोर स्वर में बोला, ‘‘मेरे पहले वाले आदेश का पालन हो.’’

“सर, सर, प्लीज. सर, प्लीज ऐसा न करें,” प्रायः सभी एकसाथ बोले.

‘‘सिद्धार्थ, इन को एक मौका दिया जाना चाहिए.’’

“सर, मेरा मन नहीं मानता. एक बार जेल जाएंगे तो सब के होश ठिकाने आ जाएंगे.”

“मैं जानता हूं. लेकिन चाहता हूं, एक बार इन को मौका दे दो.”

“ठीक है, सर. जैसा आप चाहें.” सिद्धार्थ इंस्पैक्टर अमिता को कुछ देर समझाता रहा, फिर बोला, “जब तक पेपर तैयार नहीं हो जाते, इन को लौकअप में बंद कर दो.”

थोड़ी देर बाद पेपर तैयार हो गए. सब ने हस्ताक्षर किए. सचमुच ऐसा प्रबंध कर दिया गया था कि दोबारा ऐसा न हो. उन सब को छोड़ दिया गया था. पार्वती मेरे समीप आ कर बैठ गई थी. सिद्धार्थ धीरेधीरे चल कर मेरे पास आया, “सबकुछ आप के अनुसार कर दिया है. सर, मैं जानता हूं, आप क्या सोच रहे हैं? इस देश का कानून लड़के वालों के विरुद्ध है. किंतु वे हमेशा गलत नहीं होते. यह भी सत्य है. यदि हम आप को जानते न होते तो केस का रूप कुछ और होता. ऐसा संभव था. यदि हम सब अपने विवेक से काम लेंगे तो हजारों परिवार टूटने से बच सकेंगे.”

“हां सिद्धार्थ, ऐसा ही हो पर मेरे मन के भीतर एक सवाल घुमर रहा है कि हम बहुओं के रूप में बेटियां ब्याह कर लाते हैं? वे न बहुएं बन पाती हैं, न बेटियां. क्यों?’’

“जानता हूं सर कि इस सवाल का उत्तर देना बहुत मुश्किल है. आगे चल कर समाज को इस का उत्तर देना पड़ेगा. फिलहाल इस का कोई उत्तर नहीं है. चलिए सर, मैं आप को गाड़ी में घर तक छुड़वा देता हूं. आओ पार्वती, तुम समय की बलवान हो जो तुम्हें ऐसा घरपरिवार मिला.”

मैं ने देखा, पार्वती की आंखें भर आईं हैं. पर वह कुछ बोल नहीं पाई थी.

कपड़े पहनें पर जरा स्टाइल से

टीनऐजर्स के सामने सब से मुश्किल यह होती है कि वह क्या पहने जो सभी लोग उन की चर्चा करे ? किसी भी पार्टी में जाए जो लोगों की नजरें उन के ऊपर रहे. जब सभी कपड़ों की तारीफ करते हैं तो पहनने वाले को बहुत अच्छा लगता है. अच्छे कपड़े पहन कर हम केवल दूसरों को ही अच्छे नहीं लगते, हम खुद को भी अच्छे लगते हैं. इस से हम अच्छा महसूस करते हैं. यह हमें खुशी देता है, लेकिन ज्यादातर हम कपड़े पहनते समय स्टाइल की कुछ गलतियां करते हैं.

प्रयागराज की रहने वाली फैशन एक्सपर्ट पूजा कुशवाहा लंबे समय से फैशन और स्टाइल की दुनिया में काम कर रही हैं. ‘नजाकत’ नाम से उन का औनलाइन स्टोर भी है. जहां वह सैलेब्रेटी स्टाइल्स और नए फैशन ट्रेंड्स के बारे में लड़कियों और महिलाओं को जानकारी देती है. उन का कहना है कि ड्रेस का सिलेक्शन करते समय बहुत सारी चीजों को ध्यान देना चाहिए.

ड्रेस हो बौडी शेप के अनुसार :

सभी को अलगअलग तरह के कपड़े पहनना बहुत पसंद होता है और जब हम देखते हैं कि हमारी पसंदीदा हस्ती कुछ खास अंदाज में फ्लौंट कर रही है तो हम भी उसे पहनना चाहते हैं. निश्चित रूप से हम इसे पहन सकते हैं लेकिन इस से पहले हम को अपने शरीर के आकार पर विचार करने की आवश्यकता है. हर किसी की बौडी शेप अलगअलग होती है. सैलेब्रटीज अपने शरीर के आकार के अनुसार कपड़े पहनती हैं इसलिए यह उन के शरीर पर अच्छी तरह से बैठता है. सब से पहले अपने शरीर के आकार का विश्लेशण करें और उस के अनुसार अपने कपड़े, डिजाइन, प्रिंट और कढ़ाई का चयन करें.

उदाहरण के लिए, यदि आप के हाथ भारी हैं तो बिना आस्तीन के कपड़े पहनने से बचने की कोशिश करें क्योंकि यह आप की बांह की ओर ध्यान आकर्षित करेगा. इसलिए उस भारी हिस्से को छिपाने की कोशिश करें. और यदि आप के कंधे ‘शेप्ड’ नहीं हैं तो कंधे के पैड के साथ थोड़ा कुरकुरा पोशाक पहनने का प्रयास करें. जब आप को अपने शरीर के आकार के बारे में पता चलेगा तो आप अच्छे कपड़े पहन सकते हैं. यह आप पर अच्छे लगेंगे.

चेहरा भी होता है खास :

बौडी शेप के बाद सब से महत्वपूर्ण चीज जो आपके लिए चुनी जाती है वह है आप के चेहरे का आकार. आप का चेहरा ही वह है जहां लोगों का ध्यान सब से पहले जाता है. आप को पहले अपने चेहरे के आकार के बारे में जानना होगा. एक बार जब आप चेहरे और आकार को जान लेंगे तो आप अपने गहने के डिजाइन और नैकलाइन तय कर सकते हैं जो आप के चेहरे पर अच्छे लगेंगे.

उदाहरण के लिए यदि आप के पास एक गोल चेहरा है जो भरा हुआ है, यदि हम अधिक गोल डिजाइन और नैकलाइन पहनते हैं तो यह ज्यादा अच्छा नहीं लगेगा. इसलिए गोल के बजाए कुछ कोणीय जैसे त्रिभुज आयत झुमके पहनने की आवश्यकता है. चौकर नैकलेस पहनने से बचें. कोशिश करें कि हेयरस्टाइल ऐसा चुनें जो आपके चेहरे को कवर करें.

रंग के अनुरूप को ड्रेस का कलर

सब से खास होता है बौडी का रंग. जो ड्रेस आप पहन रहे हैं उस का आप के रंग से तालमेल होना जरूरी होता है. फिर आप रंगों के साथ सब से अधिक संभव तरीके से खेल सकते हैं. विभिन्न प्रकार की रंगों के लिए अलग कलर और डिजाइन होते हैं. इस तरह से सब से अधिक आकर्षक बन सकते हैं. ये कलर स्कीम मेकअप में भी मदद करती हैं. सांवले रंग के लोग लाइट टोन के कपड़े पहन सकते हैं. बहुत ब्राइट कलर के कपडे न पहनें. मस्टर्ड कलर इन पर अच्छा लगेगा. गोरे रंग के लोगों पर हर कलर अच्छा लगता है. पर काले रंग के लोग कपड़ों का रंग सावधानी से करें. बहुत लाइट कलर न पहनें. नहीं तो बौडी का रंग अधिक उभर कर दिखेगा.

अवसर और आपकी भूमिका

जब हम कपड़े पहन रहे होते हैं तो सब से महत्वपूर्ण चीज जो हम आमतौर पर याद करते हैं वह है अवसर या घटना. हमें हमेशा घटना और आपनी भूमिका के अनुसार उचित रूप से कपड़े पहनने की जरूरत है. जैसे अगर आप शादी में गेस्ट के तौर पर जा रहे हैं तो आप का कपड़ा शादी के हिसाब से और गेस्ट के तौर पर होगा. यदि आप एक इंटरव्यू के लिए जा रहे हैं तो आप का ड्रेस कोड उसी के अनुसार होगा.

एक्सैसरीजिंग की कला

आम तौर पर जब हम एक्सैसरीज पहनना शुरू करते हैं तो हम बिना सोचेसमझे इसे पहनना शुरू कर देते हैं. एक्सैसरीज आप के पूरे लुक को बेहतर बना सकती हैं और यह आप के ओवरआल लुक को खराब कर सकती हैं. इसलिए मौका जो भी हो हमेशा बैलेंस्ड लुक हासिल करने की कोशिश करें.

उदाहरण के लिए यदि आप ने बहुत भारी हार पहना है तो बहुत भारी झुमके का चयन न करें, भले ही वह आप के गहनों के सेट के साथ आता हो. और अगर आप बहुत भारी पोशाक या साड़ी पहन रहे हैं तो बहुत भारी गहने न पहनें क्योंकि फिर से संतुलन की अवधारणा यहां काम करती है. अपने ओवरआल लुक में आप को एक ऐसा पौइंट बनाने की जरूरत है जो आप के ओवरआल लुक में बहुत महत्वपूर्ण हो.

ड्रेस से मैच खाता हो मेकअप

जब आप मेकअप करने के लिए जा रहे हों तो अपना मेकअप इस तरह से करें कि वह ड्रेस और आयोजन के अनुकूल हो. बौडी के रंग का इस में खास ख्याल रखा जाता है. जब सबकुछ अच्छा होगा और माहौल मौसम के अनुकूल होगा तभी सबकुछ मैच करेगा और लोग आप की तारीफ करेंगे. यही आप को खूबसूरत बनाएगा, जिस से लोग आप की तारीफ करेंगे. आप के कपड़े जब आप की बौडी, मेकअप के रंग से मैच करते या उस के रंग के अनुरूप होंगे तो एक अच्छा कौम्बिनेशन बन सकेगा. यही सब से अच्छा लगेगा.

Film Review- ‘3 श्याने’: बेसिर पैर की हास्य फिल्म

रेटिंग: एक स्टार

निर्माताः संजय सुन्ताकर

निर्देशकः अनीस बारूदवाले

कलाकारः प्रियांषु चटर्जी, देव शर्मा, जय मिश्रा, श्रवण, असरानी, मुकेश खन्ना, अनुप्रिया कटोच, जरीना वहाब, अर्जुमन मुगल, निशांत तंवर,कुणाल सिंह राजपूत, हिमानी शिवपुरी, राकेश बेदी, टीकू टलसानिया, ज्यूनियर महमूद व हिना पंचाल

अवधि: दो घंटे 23 मिनट

वर्तमान समय की युवा पी-सजय़ी रातों रात सफलता अर्जित करने के लिए गलत रास्ते अख्तियार करती है, जो कि उन्हें शुरूआती सफलता देती जरुर है, मगर यह उन्हें अंततः बर्बादी की ओर ही ले जाती है. इस बेहतरीन कॉन्सेप्ट पर एक बेहतरीन हास्य फिल्म बन सकती थी, लेकिन असी कॉन्सेप्ट पर लेखक व निर्देशक अनीस बारूदवाले पूरी तरह से असफल रहे हैं.

FILM

कहानी:

आर्यन( देव शर्मा) फिल्म स्टार बनने के सपने देख रहा है. और दिन में देर तक सोता रहता है. उसकी इस आदत से उसकी मां(जरीना वहाब ) परेशान रहती है. एक तरफ वह फिल्मों में अभिनेता बनना चाहता है, तो दूसरी तरफ वह अपने दोस्तो विक्की (प्रियांशु चटर्जी ) व कुणाल (कुणाल सिंह राजपूत ) संग मिलकर लोगों को मूर्ख बनाकर पैसे ठगने का काम करते रहता है.एक दिन एक अंधा भिखारी अठन्नी(जय मिश्रा ) उसके घर के सामने से भीख मांगते हुए निकलता है,तो आर्यन उसके कटोरे से पैसे गायब कर देता है. अठन्नी यह देख लेता है, मगर उस वक्त वह अंधा बना हुआ है, इसलिए रोते हुए चला जाता है. दूसरे दिन विक्की एक ट्रांसपोर्टर को मूर्ख बनाकर पचास हजार रूपए हथिया लेता है, तो वहीं वह एक सिंधी(असरानी ) के पैसे नहीं वापस कर रहा है.फिर वह अठन्नी के जोड़ीदार व भिखारी चवन्नी से देा हजार रूपए ठग लेते हैं.अब अठन्नी व चवन्नी इसकी शिकायत अपने बॉस(टीकू टलसानिया) से करते हैं. उनका बॉस इन तीनों युवकों का मजा चखाने की योजना बनाता है. मगर यह तीनों उन्हें ही मूर्ख बनकर काफी धन ऐंठ लेते हैं. अब भिखारियों के बॉस व सभी भिखारी इन तीनों युवकों के पीछे पड़ जाते हैं.फिर कई घटनाक्रम तेजी से बदलते हैं.

लेखन व निर्देशनः

फिल्मसर्जक अनीस बारूद वाले इस हास्य फिल्म को बनाने में बुरी तरह से असफल रहे हैं. फिल्म में किसी भी दृश्य में दर्शक को हंसी नहीं आती.

REVIEW

फिल्मसर्जक ने बेवजह दो दर्जन से अधिक कलाकारों को फिल्म में भर दिया है और किसी भी किरदार के साथ न्याय नहीं कर पाए. मूल कहानी के साथ कई छोटी छोटी कहानियां भी जबरन पिरो दी हैं. राकेश बेदी हो या असरानी दर्शक समझ जाता है कि इन्हे बेवजह ठूंसा गया है.या लेखक व निर्देशक इन प्रतिभाशाली कलाकारों का उपयोग नहीं कर पाया. विक्की और कुणाल कहां से आते हैं, कुछ नहीं दिखाया. अपरिपक्व लेखन व निर्देशन…फिल्म को बेवजह रबर की तरह खींचा गया है. फिल्म के कई दृश्य बेवकूफी भरे लगते हैं.

अभिनयः

अतिम कमजोर पटकथा व बकवास संवादों के चलते किसी भी कलाकार का अभिनय निखर कर नही आया.निर्देषक ‘यारियंा’ फेम देव षर्मा और ‘पिंजर’ फेम प्रियांषु चटर्जी जैसे कलाकारों से भी अभिनय नहीं करवा सके.अठन्नी के किरदार में अपने इंट्रोडक्शन वाले दृश्य में अपने अभिनय से प्रभावित करने के साथ ही दर्शकों को हंसाने में कामयाब रहने वाले अभिनेता जय मिश्रा को भी बाद में अभिनय का कारनामा दिखा सकने वाले दृश्य नहीं मिले. राकेश बेदी,असरानी, जरीनप वहाब व मुकेश खन्ना जैसे कलाकारो ने यह फिल्म क्यों की,यह बात समझ से परे है?

KK LOVE STORY: बचपन के दोस्त से की थी शादी, ऐसे शुरू हुई लव स्टोरी

बॉलीवुड के मशहूर प्लेबैक सिंगर केके यानी कृष्णकुमार कुन्नाथ (Krishnakumar Kunnath) का 53 की उम्र में निधन हो गया. रिपोर्ट के अनुसार सिंगर कोलकाता में एक इवेंट में परफॉर्म करने गए थे. वहां उनकी तबीयत बिगड़ने लगी. उन्हें हॉस्पिटल ले जाया गया. लेकिन डॉक्टर्स ने उन्हें मृत घोषित कर दिया था.

रिपोर्ट्स के मुताबिक केके की मौत हार्ट आने की वजह से हुई. जिससे बॉलीवुड इंडस्ट्री और फैंस के बीच शोक की लहर छायी हुई है.

 

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केके ने अपने कैरियर को लेकर काफी शोहरत कमाई लेकिन वो अपनी पर्सनल लाइफ को मीडिया से दूर रखते थे. वह अपनी पत्नी ज्योति कृष्णा से बेहद प्यार करते थे. रिपोर्ट्स के मुताबिक दोनों की मुलाकात पहली बार 6 क्लास में हुई थी और तभी से दोनों की दोस्ती शुरू हुई. और ये दोस्ती प्यार में तब्दिल हो गई.

 

सबसे दिलचस्प बात ये है कि केके ने अपने जिंदगी में एक ही लड़की को डेट किया था. जिससे उन्होंने शादी की. वह अपनी पत्नी और दो बच्चों के साथ रहते थे.

 

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कपिल शर्मा के शो में केके ने बताया था कि मैंने एक ही लड़की को डेट किया और वह है मेरी पत्नी ज्योति. उन्होंने ये भी बताया था कि वो शर्मिले थे, जिसके कारण ज्योति को भी ढंग से डेट नहीं कर पाये थे.

 

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केके और ज्योति ने 1991 में शादी की थी. शादी से पहले केके को अपने लिए नौकरी भी ढूढनी पड़ी थी. काफी कम समय में वो अपनी नौकरी से परेशान हो गाए. पिता और पत्नी के सपोर्ट की वजह से म्यूजिक इंडस्ट्री में उन्होंने कदम रखा.

1 करोड़ की रंगदारी: सगे भाइयों की गहरी साजिश

सौजन्य: सत्यकथा

उत्तर प्रदेश के अंतिम छोर पर बसा जिला सोनभद्र पहाड़, जंगलों, प्राकृतिक जलप्रपातों (झरनों) से घिरा एक अनूठा जिला है. यह जिला 4 राज्यों मध्य प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड की सीमाओं से सटा होने के साथ ही साथ ऐतिहासिक, पौराणिक तथा पर्यटन की असीम संभावनाओं से भरा हुआ उत्तर प्रदेश को सर्वाधिक राजस्व देने वाला जनपद है.

इसी जिले के अंतर्गत एक कस्बा है घोरावल. घोरावल सोनभद्र जिला मुख्यालय से तकरीबन 30 किलोमीटर दूर महज एक कस्बा ही नहीं, बल्कि ब्रिटिश शासन काल से पूर्व का ही व्यापारिक और धार्मिक, ऐतिहासिक एवं प्राकृतिक दृष्टिकोण से काफी महत्त्वपूर्ण कस्बा रहा है.

घोरावल कस्बा सोनभद्र जिले के अंतिम छोर पर स्थित और मिर्जापुर जिले से लगा हुआ है. इसी कस्बे के वार्ड नंबर 10 में पन्नालाल गुप्ता (60 वर्ष) का परिवार रहता है, जो पेशे से सुनार हैं.

6 फरवरी, 2022 का दिन था. पन्नालाल काम के सिलसिले में सोनभद्र जाने के लिए तैयार हो रहे थे कि अचानक उन के मोबाइल फोन की घंटी बजने लगी. जब तक वह काल रिसीव करते, तब तक वह कट चुकी थी. मोबाइल फोन की स्क्रीन पर उन्होंने नजर डाली तो पता चला कि मोबाइल नंबर 7355313333 से काल आई थी. वह नंबर अपरिचित था.

काल बैक करें या नहीं, क्योंकि नंबर अपरिचित होने के साथसाथ बिलकुल अंजाना सा लग रहा था. फिर भी उन्होंने सोचा कि काल बैक करना चाहिए. क्योंकि हो सकता है किसी ग्राहक का फोन रहा हो.

दरअसल, इस के पीछे पन्नालाल का सोचना भी बिलकुल सही था. वह यह कि अभी भी ग्रामीण हिस्सों में बहुत से ऐसे लोग हैं जो आज भी ज्यादातर लोगों से बातचीत करने के लिए मिस काल करते हैं. इस के पीछे का सब से बड़ा कारण यह है कि वे मोबाइल में मिनिमम बैलेंस डाल कर सिर्फ एक्टिव किए रहते हैं. क्योंकि उन के बस की बात नहीं है कि 200 या 300 का हर माह वह रिचार्ज करा सकें.

यही सब सोच कर पन्नालाल ने उस नंबर पर काल बैक कर बात कर लेना उचित समझा. वह अभी इसी उधेड़बुन में थे कि सहसा उसी नंबर से दोबारा काल आ गई. उन्होंने जैसे ही काल रिसीव की, दूसरी तरफ से आवाज आई, ‘‘हैलो, पन्नालाल गुप्ता बोल रहे हैं?’’

‘‘जी बोल रहा हूं, आप कौन?’’ काल करने वाले की बात उन्हें थोड़ी अटपटी जरूर लगी फिर भी उन्होंने सोचा कि कोई ग्रामीण होगा.

इस से कुछ और ज्यादा पूछ पाते कि इस के पहले ही दूसरी तरफ से फोन करने वाले ने तपाक से अपनी बात कह डाली, ‘‘सुनो, मैं कौन बोल रहा हूं, कहां से बोल रहा हूं. यह सब पता चल जाएगा. पहले जो मैं कह रहा हूं उसे सुनो, एक करोड़ तैयार कर लो वरना अंजाम बहुत बुरा होगा.

‘‘हां, एक बात और याद रखना. ज्यादा चालाक बनने की कोशिश मत करना और पुलिस को भूल कर भी मत बताना अन्यथा अंजाम बहुत बुरा होगा, इस की कल्पना भी तुम नहीं कर सकते कि…’’

इतना सुनना था कि ठंड के महीने में भी पन्नालाल गुप्ता को पसीना आने लगा. वह अपना पसीना अभी पोंछ भी नहीं पाए थे कि फोनकर्ता ने फिर रौब के साथ उन्हें धमकी देते हुए कहा, ‘‘सुनो, यह रकम कब, कहां और कैसे देनी है मैं फिर तुम्हें काल कर के बताऊंगा. लेकिन एक बात ध्यान देना कि मैं ने जो भी कहा है उसे हलके में मत लेना, वरना अंजाम भुगतने के लिए भी तुम तैयार रहना.’’ इतना कह कर उस ने काल डिसकनेक्ट कर दी.

एक करोड़ का नाम सुनते ही अचानक पन्नालाल के होश फाख्ता हो गए. वह अपना माथा पकड़ कर बैठ गए थे. उन्हें कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि अचानक उन के साथ यह हो क्या रहा है.

उन्होंने तो किसी का कुछ बिगाड़ा भी नहीं था, न ही उन का किसी से कोई विवाद हुआ था. तो भला उन से एक करोड़ रुपए वह भी किस बात के लिए कोई क्यों मांगेगा?

माथा पकड़ कर वह इसी सोच में उलझे हुए थे कि तभी अचानक घर के अंदर से पत्नी ने आवाज लगाई, ‘‘अरे, आप अभी यहीं बैठे हुए हैं. आप तो सोनभद्र जा रहे थे फिर अचानक क्या हुआ कि माथा पकड़ कर बैठ गए हैं?’’

पति द्वारा कोई जवाब न मिलने से उन की पत्नी सुनैना (काल्पनिक नाम) ने करीब में आ कर उन के सिर पर अपनत्व का हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘क्या हुआ, आप की तबीयत तो ठीक है ना. अचानक क्या हुआ आप माथा पकड़ कर बैठ गए हैं कोई बात है क्या?’’

पत्नी सुनैना का इतना कहना ही था कि पन्नालाल फफक पड़े और पूरी आपबीती पत्नी सुनैना को कह सुनाई. पति के मुंह से बदमाशों द्वारा एक करोड़ मांगे जाने की बात सुनते ही सुनैना के भी होश उड़ गए थे. वह भी माथा पकड़ कर बैठ गई थी.

दोनों पतिपत्नी को कुछ सूझ नहीं रहा था कि वह करें तो क्या करें? काफी देर तक दोनों एक ही जगह पर बैठे इसी सोच में उलझे हुए थे कि कहीं यह किसी गुंडेबदमाश की हरकत तो नहीं है?

यही सब सोच कर जहां उन का अंदर से तनमन कांपे जा रहा था, वहीं वे दोनों तमाम शंकाओंआशंकाओं में उलझे हुए थे. कुछ सूझ नहीं रहा था कि क्या करें.

किसी प्रकार 6 फरवरी इतवार का दिन बीता था. इस बीच सगेसंबंधियों तथा नातेरिश्तेदारों के सुझाव पर इस की सूचना पुलिस को देना मुनासिब समझते हुए पन्नालाल गुप्ता दूसरे दिन यानी 7 फरवरी, 2022 दिन सोमवार को कस्बे के कुछ संभ्रांत लोगों को ले कर घोरावल कोतवाली पहुंच गए, जहां उन्होंने थानाप्रभारी देवतानंद सिंह को पूरी आपबीती सुनाने के बाद सुरक्षा की गुहार लगाई.

पन्नालाल गुप्ता की तहरीर ले कर थानाप्रभारी ने उन्हें काररवाई का भरोसा दिला कर घर भेजते हुए कहा, ‘‘यदि किसी प्रकार की धमकी भरा फोन आए तो वह तुरंत सूचना पुलिस को दें तथा घबराएं नहीं. उन्हें न्याय और सुरक्षा मिलेगी.’’

थानाप्रभारी से मिले आश्वासन से आश्वस्त हो कर पन्नालाल अपने घर तो लौट आए थे, लेकिन फिर भी उन के मन में एक भय बना हुआ था.

दूसरी ओर थानाप्रभारी देवतानंद सिंह भी एक करोड़ की वसूली के इस केस में उलझे हुए थे और बिना किसी का अपहरण किए एक करोड़ रुपए की मांग करना पुलिस के लिए गंभीर बात थी. वह समझ नहीं पा रहे थे कि यह किसी की शरारत है या महज इत्तेफाक.

फिर भी उन्होंने मामले को हलके में न ले कर तुरंत अपने उच्चाधिकारियों को न केवल इस घटनाक्रम से अवगत करा दिया. इतना ही नहीं, उन्होंने अज्ञात के खिलाफ आईपीसी की धारा 34, 411, 414, 201, 384 के तहत रिपोर्ट दर्ज कर काररवाई प्रारंभ कर दी.

उन्होंने इस मामले की जांच घोरावल कस्बा चौकीप्रभारी एसआई देवेंद्र प्रताप सिंह को सौंप दी.

कई प्रमुख नक्सलवादी घटनाओं के कारण यह जिला पूरे देश में सुर्खियों में बना रहा है. ऐसे में पुलिस अधिकारी इस मामले में गंभीरता दिखाते हुए हर दृष्टिकोण से इस मामले की तहकीकात में जुट गए.

पुलिस को इस बात की भी आशंका थी कि कहीं अपनी कमजोर हो चुकी रीढ़ को मजबूत करने के लिए नक्सलियों की यह कोई सोचीसमझी साजिश तो नहीं है.

घोरावल के व्यापारी से एक करोड़ की फिरौती मांगने के मामले में अज्ञात अभियुक्तों को खोजने व शीघ्र गिरफ्तारी के लिए डीआईजी (सोनभद्र) अमरेंद्र प्रसाद सिंह द्वारा एएसपी (मुख्यालय) विनोद कुमार, एएसपी (औपरेशन) तथा सीओ (घोरावल) को जहां विशेष तौर पर निर्देश दिए गए थे, वहीं सीओ की देखरेख में अपराध शाखा की स्वाट, एसओजी, सर्विलांस टीम व प्रभारी निरीक्षक घोरावल के साथ कुल 4 संयुक्त टीमों का गठन किया गया.

जिस फोन नंबर से व्यापारी पन्नालाल को धमकी दे कर पैसे मांगे गए थे, जांच करने पर उस फोन की लोकेशन प्रतापगढ़ के थाना आसपुर देवसरा क्षेत्र स्थित सारडीह टावर क्षेत्र की मिली.

इतनी जानकारी मिलने के बाद पुलिस को अब आगे बढ़ कर उसे दबोचना था ताकि यह पता चल सके कि धमकी देने वाला व्यक्ति कौन है.

यह जानकारी मिलने के बाद पुलिस टीम सोनभद्र से जिला प्रतापगढ़ के लिए रवाना हो गई.

उस मोबाइल फोन की लोकेशन के आधार पर पुलिस टीम जब सुलतानपुर जिले के चांदा से पट्टी जाने वाली सड़क पर गांव रामनगर में पुलिया के पास पहुंची तो 2 युवकों ने पुलिस टीम को देख कर भागने का प्रयास किया. शक होने पर पुलिस ने उन्हें पकड़ लिया.

पकड़े गए व्यक्तियों के पास से चोरी के 2 फोन बरामद हुए, जिस में से एक फोन का प्रयोग धमकी दिए जाते समय किया गया था. पूछताछ के दौरान इन के द्वारा जुर्म स्वीकार किया गया. यह बात 11 फरवरी, 2022 की है.

घोरावल के ज्वैलर से एक करोड़ की फिरौती मामले में गिरफ्तार दोनों युवकों को पुलिस टीम सोनभद्र ले आई, जिन्हें 12 फरवरी, 2022 को सोनभद्र के सदर कोतवाली में एएसपी विनोद कुमार ने प्रैसवार्ता आयोजित कर मीडिया के सम्मुख केस का खुलासा किया.

ज्वैलर से एक करोड़ की फिरौती मामले में गिरफ्तार किए गए दोनों युवक जो सगे भाई थे, ने पुलिस के सामने जो खुलासा किया वह सभी को न केवल अचरज में डाल देने वाला था, बल्कि मायावी दुनिया (टीवी सीरियल) की चकाचौंध से प्रेरित हो कर अपराध की राह पर चल पड़ने से जुड़ा था, जो कुछ इस प्रकार निकला—

उत्तर प्रदेश के सुलतानपुर जिले के थाना चांदा क्षेत्र के अंतर्गत एक गांव पड़ता है रामनगर. इसी गांव के निवासी हैं राधेश्याम मिश्रा उर्फ श्यामू. राधेश्याम मिश्रा की हैसियत और पहचान गांव में बहुत अच्छी नहीं है.

उन के 2 बेटे 23 वर्षीय अंकित मिश्रा व 22 वर्षीय आयुष मिश्रा उर्फ सागर उर्फ गुड्डू भी कोई कामधाम न कर पूरे ठाटबाट से जीवन जीने का सपना देखा करते थे. यही कारण था कि उन्होंने अपराध का रास्ता अख्तियार कर लिया और चोरी इत्यादि की वारदातों को अंजाम देने के साथ ही साथ बड़ा बनने के सपने हमेशा बुनने लगे थे.

अपनी आपराधिक आदतों के चलते दोनों सगे भाई अंकित और आयुष मिश्रा कई बार जेल भी जा चुके थे. लखनऊ, सुलतानपुर जिलों में उन के खिलाफ कई मामले विभिन्न धाराओं में दर्ज हैं. उन मामलों में पुलिस इन्हें सरगर्मी से तलाश रही थी.

पकड़े गए अंकित मिश्रा व उस के भाई आयुष मिश्रा उर्फ सागर उर्फ गुड्डू ने पुलिस टीम को पूछताछ में बताया कि इस बार वे दोनों कुछ लंबा हाथ मार कर करोड़पति बनने का ख्वाब देख रहे थे.

इसी उधेड़बुन में दोनों जुटे हुए थे कि उन के हाथ चोरी का एक मोबाइल लग गया. कुछ साल पहले बनी वेब सीरीज ‘मिर्जापुर’ से प्रेरित हो कर वह ऐसे ही उसी चोरी के मोबाइल फोन नंबर से नंबर डायल कर रहे थे कि संयोग से यह नंबर सोनभद्र जिले के घोरावल के व्यापारी पन्नालाल गुप्ता का लग गया.

ट्रूकालर पर व्यापारी का नाम देख कर उन्हें लगा कि वह बड़ा व्यापारी होगा और इसीलिए उन्होंने उस से एक करोड़ रुपए की मांग रखी.

पुलिस के मुताबिक दोनों युवक पहले भी चोरी व लूट के मामले में भी आरोपी रहे हैं. पूछताछ में उन के पास से धमकी दिए जाने वाले मोबाइल और सिम को बरामद करने के बाद पुलिस टीम ने दोनों सगे भाइयों को सक्षम न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया था.

पुलिस टीम में एसओजी प्रभारी मोहम्मद साजिद सिद्दीकी, थानाप्रभारी (घोरावल) देवतानंद सिंह, एसआई सरोजमा सिंह, देवेंद्र प्रताप सिंह, अमित त्रिपाठी, हैडकांस्टेबल अरविंद सिंह, अमर सिंह, शशि प्रताप सिंह, कांस्टेबल हरिकेश यादव, रितेश पटेल आदि को शामिल किया गया.

डीआईजी/एसएसपी अमरेंद्र प्रताप सिंह ने केस का खुलासा करने वाली पुलिस टीम को 25 हजार रुपए का नकद पुरस्कार देने की घोषणा की.

—कथा पुलिस तथा समाचार पत्रों से प्राप्त जानकारी पर आधारित है

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