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शिवानी- भाग 3: फार्महाउस पर शिवानी के साथ क्या हुआ

शिवानी उन के पास ही बैठी सोच रही थी कि बस अब 2-3 दिन में वह अबौर्शन करवा लेगी. अचानक उसे चक्कर सा आया. उलटी आने को हुई. वह बाथरूम में भागी. लता भी वहीं थीं, उमा ने उठने की कोशिश करते हुए कहा, ‘‘लता, देखना, बहू को क्या हुआ है?’’

लता ने बाथरूम में झांका, शिवानी उलटी के बाद पस्त थी. वह शिवानी को सहारा देते हुए बाहर लाईं. उसे चेयर पर बिठा कर पानी पिलाया.

शिवानी के पीले पड़े चेहरे को देखते हुए उमा ने कहा, ‘‘क्या हो गया? ठीक तो हो न?’’

‘‘हां मां, यों ही चक्कर आ गया था.’’

लता मुसकराई, ‘‘यों ही या कोई खास बात है?’’

‘‘नहीं चाची, बस जी मिचला रहा था बहुत देर से.’’

‘‘यों ही थोड़े जी मिचलाता है बहूरानी. चलो यहां हमारी पुरानी डाक्टर हैं मनाली, उन्हें दिखा लेते हैं. मुझे तो खुशखबरी की उम्मीद लग रही है, दीदी.’’

उमा ने कहा, ‘‘जाओ लता, अभी दिखा आओ. मैं तो अब ठीक ही हूं.’’

शिवानी ने बहुत आनाकानी की पर उस की एक न चली.

डाक्टर मनाली ने शिवानी के गर्भवती होने की पुष्टि कर दी. शिवानी के चेहरे का रंग उड़ गया. लता चहक उठी. शिवानी को बाहों में भर गले से लगा लिया, ‘‘बधाई हो बहू… वाह इतने सालों बाद घर में कोई नन्हा मेहमान आएगा,’’ खुशी के मारे लता की आवाज कांप रही थी.

उमा ने सुना तो वह बैड से उठ खड़ी हुईं. ‘‘इस खुशखबरी ने तो सारी कमजोरी ही खत्म कर दी,’’ उन्होंने शिवानी को बधाई देते हुए गले से लगा लिया.

गौतम, विनय और अजय आए तो सब यह सुन कर चहक उठे. उमा की बीमारी भूल सब एकदूसरे को बधाई देने में व्यस्त थे. शिवानी की उड़ी रंगत की तरफ किसी का ध्यान नहीं गया. वह बहुत परेशान थी. वह अब कैसे अबौर्शन करवा पाएगी, वह अपनी सोच में इतनी गुम थी कि सब के खुशी से भरे स्वर उस के कानों तक पहुंच भी नहीं रहे थे.

अचानक लता ने उसे झकझोरा, ‘‘क्या हो गया? घबरा रही हो? अरे, बड़ी खुशी का दिन है आज, तुम किसी बात की चिंता न करना. हम सब तुम्हारा बहुत ध्यान रखेंगे.’’

शाम को उमा के डिस्चार्ज होने के बाद सब घर लौट आए. उमा को कमजोरी तो थी पर इस खबर ने उन के अंदर एक उत्साह भर दिया था. उन्होंने रमेश और सुधा को भी फोन पर बधाई दी. वे दोनों भी बहुत खुश हुए.

सुधा ने रमेश से कहा, ‘‘तो यह बात थी. इसलिए शिवानी इतनी ढीलीढीली लग रही थी. मैं तो पता नहीं क्याक्या सोचने लगी थी. चलो, सब ठीक है.’’

शिवानी की अजीब हालत थी. वह तो अबौर्शन की सोच रही थी. अब कहां जश्न मनाया जा रहा था, हर समय सब आने वाले नन्हे मेहमान की बातें करते रहते थे. इतना स्नेह, इतना प्यार देने वाले परिवार से झूठ बोलने के अपराधबोध से वह मुक्त नहीं हो पा रही थी.

अजय ने एक दिन कहा भी, ‘‘शिवानी, अब तुम पहले जैसी नहीं रहती हो. तुम्हारी वह हंसी जैसे कहीं खो सी गई है, पता नहीं क्या सोचती रहती हो. मुझ से भी पहले की तरह बातें नहीं करती हो. क्या हुआ है शिवानी?’’

शिवानी का मन हुआ अपने मन पर पड़ा बोझ अजय से बांट ले, बता दे उसे जिस नन्हे मेहमान की खुशी सब मना रहे हैं, उसे खुद ही नहीं पता कि वह किस की संतान है. यह सोचते ही शिवानी के आंसू बहते ही चले गए. अजय घबरा गया. फौरन उसे सीने से लगा लिया.

अजय ने परेशान होते हुए कहा, ‘‘चलो, डाक्टर को दिखा लेते हैं.’’

‘‘नहीं, बस ऐसे ही तबीयत बहुत सुस्त रहती है आजकल…यों ही मन घबरा जाता है.’’

‘‘हां, मां भी कह रही थीं, ये सब प्रैगनैंसी की वजह से ही होगा, ठीक हो जाएगा. तुम आराम करो.’’

शिवानी आखें बंद कर चुपचाप लेटी रही. अजय उस का सिर सहलाता रहा. अजय ने मन ही मन शिवानी को खुश करने के लिए उसे एक सरप्राइज देने की सोची. वह शिवानी के सब दोस्तों को जानता था. अपने विवाह में सब से अच्छी तरह मिल चुका था. बाद में भी अकसर मिलते रहे थे. उस के पास रमन का फोन नंबर भी था. उस ने उसे ही फोन पर कहा, ‘‘भई, तुम्हारी फ्रैंड खुशखबरी सुनाने वाली है… एक पार्टी हो जाए?’’

‘‘वाह, बधाई हो, बिलकुल हो जाए पार्टी.’’

‘‘चलो, तुम बाकी सब से बात कर लो. शिवानी के लिए सरप्राइज है सब का आना. सब हमारे घर पर संडे को डिनर के लिए आ जाओ, शिवानी अभी कुछ सुस्त चल रही है. बाहर जाने पर शायद उसे परेशानी हो.’’

‘‘हांहां, मैं सब से बात कर लूंगा.’’

‘‘अपनी पत्नी और रीता के पति को भी इन्वाइट करना मेरी तरफ से.’’

‘‘हां, ठीक है. सब आएंगे.’’

रमन की पत्नी मंजू भी इस पार्टी का कारण सुन कर खुश हुई. रमन ने अपने पूरे गु्रप को इस पार्टी की सूचना दे दी. सब तैयार थे. अजय ने घर में सब को बता दिया था पर शिवानी को कुछ पता न था. गौतम के कुछ मेहमान आएंगे, उसे यही पता था. वह लता और उमा के साथ हलकेफुलके काम करती रही.

शाम को लता ने कहा, ‘‘जाओ बेटा, तैयार हो जाओ. अब सब आते ही होंगे.’’

शिवानी तैयार होने चली गई. 7 बजे रमन और मंजू, रीता अपने पति सुजय के साथ आए तो शिवानी उन्हें देख हैरान भी हुई और खुश भी, ‘‘वाह, इतने दिन बाद तुम लोगों को देख कर अच्छा लगा.’’

उन चारों ने भी अभी और आने वाले दोस्तों के बारे में कुछ नहीं बताया. वे घर के बाकी सदस्यों का अभिवादन कर आराम से ड्राइंगरूम में बैठ गए. शिवानी को चारों ने गुड न्यूज सुनाने की बधाई दी. शिवानी का मन फिर उदास हो गया. पल भर के लिए चारों को देख कर उस अनहोनी को भूल गई थी. अजय भी आ गया था.

इतने में रेखा, अनिता, सुमन, मंजू, सोनिया, रीता, संजय, अनिल और कुणाल भी आ गए. तब शिवानी को समझ आया अजय ने उस का मन ठीक करने के लिए उस के दोस्तों को इन्वाइट किया है. सब को सामने देख कर शिवानी को उस रात की याद आ गई जब इन्हीं में से किसी ने उस के साथ विश्वासघात किया था.

उस की उड़ी रंगत को सब ने प्रैगनैंसी का कारण समझा. सब मस्ती के मूड में थे. हंसीमजाक शुरू हो गया था. लता और उमा मेड माया के साथ मिल कर सब को वैलकम ड्रिंक्स और स्नैक्स सर्व कर रही थीं. गौतम और विनय भी आ गए. सब ने उन का अभिवादन किया. फिर सब को थोड़ी आजादी देते हुए गौतम, विनय, लता और उमा सब अंदर चले गए. अजय सब से हिलमिल चुका था.

शिवानी के दिल में एक बवंडर सा उठ रहा था. वह रमन, कुणाल, संजय और अनिल का चेहरा बारबार देखती, अंदाजा लगाती कहीं संजय तो नहीं, नहींनहीं संजय तो उस का बालसखा है, उस ने कभी कोई हरकत नहीं की थी. अनिल या फिर कुणाल या रमन नहीं, रमन तो मैरिड है, अनिल, कुणाल तो बहुत ही मर्यादा में रहने वाले दोस्त हैं. बचपन से घर आतेजाते रहे हैं, फिर इन में से कौन था उस रात. सोचतेसोचते शिवानी को सिर की नसें फटती महसूस हो रही थीं.

उसे चैन नहीं आ रहा था. उस का मन कर रहा था चीखचीख कर पूछे इन लड़कों से कौन था उस रात… इन में से किस का अंश पल रहा है उस की कोख में, उसे तो कुछ पता ही नहीं है.

सब खाना खा कर वाहवाह कर ही रहे थे कि शिवानी अपनी मनोदशा को नियंत्रण में रखने की कोशिश करते हुए भी निढाल होती चली गई, उठने की कोशिश की पर बेहोश होती चली गई. पास बैठी रेखा ने ही उसे फौरन संभाला. अजय को आवाज दी, सब बहुत परेशान हो गए. पल भर में ही माहौल बदल गया. लता ने कहा, ‘‘फौरन डाक्टर मनाली को बुलाओ अजय.’’

जीने की राह- भाग 5: उदास और हताश सोनू के जीवन की कहानी

‘‘सोनू, मैं तुम्हें बताना चाहूंगा कि मैं ने तुम्हें अपनी रिया ही समझा है तथा मेरी दिली ख्वाहिश है कि मैं तुम्हारा कन्यादान करूं. रिया का कन्यादान करने का सुख तो इस जन्म में नहीं मिल सका, किंतु तुम्हारा कन्यादान कर इस सुखानुभूति को पाना चाहता हूं, वैसे तुम्हें मैं बाध्य नहीं कर सकता इस हेतु.

‘‘मैं तुम्हें नीता के बारे में क्या बताऊं, अद्भुत महिला थी मेरी पत्नी नीता. उस के साथ मैं ने भरपूर आनंदमय जीवन जीया है. रूपरंग की तो धनी थी ही, साथ ही व्यवहारकुशल और गुणी भी थी. उस ने मेरे जीवन को इतना संबल दिया है कि उस के सहारे मैं जीवन जी लूंगा. ‘‘मेरा मानना है कि हम अपने, अपनों के आदर्श एवं विचारों को सदैव याद रखें. यह नहीं कि उन के जाते ही हम विपरीत कृत्य कर उन का उपहास उड़ाएं. ‘‘सोनू, एक बात बताना चाहूंगा कि तुम से मिलने के बाद ऐसा एहसास हुआ कि मुझे मेरी रिया मिल गई. मैं तुम्हें बेटा ही कह कर पुकारना चाहता था किंतु तुम ने सोनू पुकारने की इच्छा जाहिर की थी. इस के अलावा जीवन में 2-4 बार तुम्हारी उम्र की युवतियों से झिड़क भी सुन चुका था. उन लोगों का कहना था कि बेटा क्यों पुकारते हैं. हमारा नाम है, हमें हमारे नाम से पुकारिए. क्या अलगअलग उम्र के दोस्त नहीं हो सकते? कई बार इच्छा हुई तुम से कहने की, फिर सोचा सोनू भी पुकारने में बड़ा प्यारा लगता है. सो, क्या हर्ज है.

‘‘ठीक है सोनू, मैं चलता हूं, मेरी सलाह है कि शांत मन से सुमन के संबंध में विचार करो. यह सत्य है कि हम दोनों जीवनसाथी नहीं बन सकते. हां, हम दोस्त तो हैं ही और सदा बने रह सकते हैं. ‘‘सुमन के विषय में तुम्हारी सहमति हो तो तुम मुझे फोन से बता देना. अगर तुम शाम तक फोन नहीं करोगी तो मैं तुम्हारी असहमति समझ लूंगा.’’ मैं घर लौट आया था, किंतु असमंजस की स्थिति थी मेरी. इसलिए मैं बड़े भैया एवं सुमन से कुछ भी कहने में असमर्थ था. दोनों से बचने के लिए मैं ने स्वयं को अन्य कामों में व्यस्त कर लिया. मेरी गंभीर स्थिति देख दोनों यही समझ रहे थे कि मैं नीता और रिया की कमी महसूस कर रहा हूं, इसलिए दोनों मुझे बहलाने के बहाने ढूंढ़ रहे थे. साढ़े 10 बजे तक ही सोनू का फोन आ गया. मैं ने अधीरता से हैलो कहा. उस ने बहुत आत्मीयता से कहा, ‘‘मैं आप को पापा कह सकती हूं न? आप मेरा कन्यादान करेंगे न?’’

मैं ने भावविह्वल होते हुए कहा, ‘‘हां बेटा, हां, मैं ही तेरा कन्यादान करूंगा. मैं ही तो तेरा पापा हूं. मैं नहीं तो कौन करेगा यह कार्य.’’ मेरी आंखें खुशी के आंसुओं से छलक उठीं. उस ने कहा, ‘‘आप जैसे सचरित्र से मेरा संबंध बना, मैं बहुत खुश हूं. अब मैं अनाथ नहीं रही.’’ मैं ने कहा, ‘‘बेटा, तुम्हारे कारण मैं भी तो बेऔलाद न रहा. बेटा, भैया और सुमन के साथ शाम को तुम्हारे घर पहुंचता हूं, रोके की रस्म कर लेंगे.’’

‘‘आप जैसा ठीक समझें, पापा,’’ उस ने आत्मीयता से कहा. मैं ने बड़े भैया को रोके की रस्म के बारे में बताते हुए कहा, ‘‘भैया, मैं सुमन को ले कर मार्केट से हो कर आता हूं.’’ बड़े भैया ने कहा, ‘‘बेटा मन, मुझे भी तो शगुन के रूप में सोनू को कुछ देना है. मुझे भी मार्केट ले चल, या तू ही लेता आ. हां, पैसे मैं दिए देता हूं.’’ मैं ने भैया को रोकते हुए कहा, ‘‘भैया, कुछ लाने की जरूरत नहीं है सोनू के लिए, क्योंकि नीता, रिया के लिए कुछ न कुछ गहने बनवाती रहती थी, अभी जो नया सैट बनवाया था वह घर में ही रखा है, इसी तरह उस ने रिया के लिए साडि़यां भी खरीद रखी थीं. सो सोनू को आप वह ही दे दीजिए.’’ बड़े भैया खुश होते हुए बोले, ‘‘चल, यही ठीक है, तू ने तो एक मिनट में ही मेरी उलझन सुलझा दी. जब घर में सब है ही, तब तू क्यों मार्केट जा रहा है?’’ मैं ने कहा, ‘‘भैया, आप की बहू के लिए तो शगुन का इंतजाम हो गया, किंतु मुझे अपने दामाद के लिए भी तो अंगूठी, चैन, कपड़े लेने हैं. फिर मिठाई, नारियल, पान, सुपारी आदि भी तो लाना है.’’ बड़े भैया बोले, वे बेहद आश्चर्यचकित थे, ‘‘मन बेटा, यह सुमन, तेरा दामाद कैसे हो गया? तू तो इस का छोटा पापा है न?’’ ‘‘भैया, सोनू का कन्यादान मैं करूंगा, वह मेरी रिया है. सोनू के रूप में मुझे मेरी रिया मिल गई है. इस रिश्ते से सुमन मेरा दामाद ही हुआ न. वैसे भैया, उस का छोटा पापा तो मैं सदैव रहूंगा ही.’’ मार्केट जाते समय उत्तम एवं भाभीजी से तय हो गया कि वे दोनों भी आ जाएंगे एवं सोनू को भाभीजी तैयार कर देंगी. हम शाम को सोनू के घर पर पहुंच गए. सोनू को भाभीजी ने बहुत सुंदर ढंग से तैयार किया था. वह आसमान से उतरी परी सी लग रही थी. सुमन भी ब्लू सूट में किसी राजकुमार से कम नहीं लग रहा था. दोनों की जोड़ी बड़ी प्यारी लग रही थी. सारे कार्यक्रम बड़े ढंग से हो जाने के बाद बड़े भैया ने मेरी तरफ मुखातिब हो कर कहा, ‘‘सोनू के पापा, मैं आप की बेटी सोनू को जल्दी से जल्दी अपनी बहू बना कर अपने घर ले जाना चाहता हूं. इसलिए आप जल्दी से जल्दी शादी का मुहूर्त निकलवाइए.’’

मैं ने भी बड़ी नाटकीयता से जवाब दिया, ‘‘सुमन के पापा, आप एकदम सही फरमा रहे हैं. मैं भी अपनी बेटी सोनू को अपने बेटे सुमन की बहू बना कर जल्दी से जल्दी अपने घर ले आना चाहता हूं,’’ और हम सभी ठहाका लगा कर हंस पड़े. अच्छी बात यह भी रही कि एक हफ्ते बाद का ही मुहूर्त निकल आया. एक छोटे से कार्यक्रम में सोनू और सुमन की शादी कर दी गई. सोनू का कन्यादान मैं ने ही किया. हम दोनों बेहद भावविह्वल हो रहे थे. मुझे सोनू के रूप में बेटी मिल गई थी. उसे उस के मांपापा के स्थान पर मैं मिल गया था. यह घड़ी ही ऐसी थी जिस में हमें अपने नए रिश्ते के साथ, अपने बिछड़े रिश्ते भी बहुत याद आ रहे थे. सोनू मुझ से गले लग कर फूटफूट कर रो पड़ी. मैं ने उसे संभालते हुए कहा, ‘‘बेटा, खुद को संभालो, अपनी भावनाओं पर काबू रखो, यह रोने का नहीं बल्कि खुशी का समय है. आज हम ने अपने रिश्ते को सार्थक नाम दिया है तथा आज हमारे अपने, जिन्हें हम ने खो दिया है, बेहद खुश होंगे. आज हम ने उन के सपनों को साकार कर उन्हें सही अर्थों में याद किया है, श्रद्धासुमन अर्पित किए हैं.’’ वह कस कर मेरे गले से लग गई, ठीक रिया की तरह. रिया भी जब बेहद भावुक होती थी, ऐसा ही करती थी. वह धीरे से बोली, ‘‘पापा, आप बहुत अच्छे इंसान हैं, मैं स्वयं को गौरवान्वित महसूस कर रही हूं, जो आप मुझे मिले.’’

सोनू बहू बन कर मेरे घर क्या आई मानो मेरे सूने घर में बहार आ गई. ऐसा महसूस होता मानो मरुस्थल में रिमझिमरिमझिम बारिश हो रही हो. बड़े भैया हमेशा कहते, ‘‘मन बेटा, तू ने मेरा दिल जीत लिया. तू ने मेरे ऊपर इतना बड़ा उपकार किया है, मुझे तू ने इतनी अच्छी बहू दी है, यह एहसान मैं तेरा कैसे चुकाऊंगा.’’ मैं कहता, ‘‘कैसी बातें करते हैं भैया, भला अपनोें पर कोई एहसान करता है. फिर सुमन, जैसा आप का बेटा वैसे ही मेरा भी तो बेटा है. मैं ने अपना भला किया है.’’ वे कहते, ‘‘सच कहता हूं मन, इतनी सुंदर, संस्कारी बहू मुझे मिलेगी, कभी सोचाभी नहीं था.’’ मैं, भैया को छेड़ते हुए कहता, ‘‘भैया, आप को बहू अच्छी मिली है तो मुझे भी लाखों में एक दामाद मिला है. मैं इस रिश्ते से बहुत खुश हूं.’’ वे मेरे साथ खुल कर हंस देते.

घर के बदले हुए वातावरण से मैं काफी उत्साहित था. एकाएक मेरे दिमाग में एक अद्भुत विचार आया, जिस से मेरा मनमयूर नाच उठा. मैं ने भैया को टटोलते हुए कहा, ‘‘हालांकि मैं ने कोई एहसान नहीं किया है फिर भी आप कहते हैं न कि आप मेरा एहसान कैसे चुकाएंगे. आज मैं आप को सरलतम उपाय बताता हूं जिस से आप मेरे एहसान से उऋण हो जाएंगे. पहले वादा कीजिए ‘न’ नहीं करेंगे.’’ उन्होंने तत्परता से कहा, ‘‘बोल, मन बेटा, जो कहेगा, करूंगा, यह लाला का वादा है. जो कहेगा, दे दूंगा.’’ मैं ने उन की नजरों से नजरें मिलाते हुए कहा, ‘‘भैया, अब यहीं रह जाइए, हम सब साथ रहेंगे.’’ भैया, प्रश्नवाचक दृष्टि से मुझे देखने लगे. मैं ने कहा, ‘‘आप सोच रहे होंगे, बड़ा लालची निकला, स्वयं अकेला पड़ जाएगा, इसलिए हम सब को यहां रोक लेना चाहता है. ‘‘यह विचार मुझे पहले आया नहीं, वरना मैं आप से अवश्य चर्चा करता. शायद आप दोनों का साथ एवं सोनू की विदाई के भय से मेरे दिमाग में यह विचार उपजा. कहा भी जाता है आवश्यकता ही आविष्कार की जननी होती है, सभी के साथ की लालसा ने शायद इस विचार को जन्म दिया.’’

‘‘मन बेटा, तू बहुत नेकदिल इंसान है. तुझे लालची तो मैं समझ नहीं सकता हूं, तू बोल रहा है तो जरूर सब का हित इस में होगा तभी रुकने को कह रहा है. मैं सोच रहा हूं, सुमन की नौकरी और मेरे घर का क्या किया जाए?’’ मैं ने कहा, ‘‘भैया, मैं ने सब के बारे में सोच लिया है. देखिए भैया, सुमन तो कभी भी नौकरी करना नहीं चाहता था, उस का सपना तो हमेशा से कोचिंग इंस्टिट्यूट रहा है. वह ऐसा कोचिंग इंस्टिट्यूट खोलना चाहता है जिस में शिक्षा का उत्तम स्तर होगा तथा वह व्यापार के उद्देश्य से नहीं खोला जाएगा. उस की गुणवत्ता के चलते, इतने स्टूडैंट्स आएंगे कि कम फीस में भी हमारा खर्चा आराम से निकल आएगा. आप की प्यारी बहू नीता भी ट्यूशन चलाती थी, वह छोटे स्तर पर ही यह काम कर रही थी, किंतु इन क्लासेस में उस की जान बसती थी. मैं उस के द्वारा चलाई गई इन क्लासेस को आप लोगों के सहयोग से बड़ा रूप देना चाहता हूं. ‘‘भैया, मैं और उत्तम 6 माह आगेपीछे रिटायर होने वाले हैं. हम दोनों भी इंस्टिट्यूट से जुड़ जाएंगे. पहले कालेज में पढ़ाते रहे हैं, अब कोचिंग इंस्टिट्यूट में पढ़ाएंगे. समझिए कि रिटायर होते हुए भी रिटायर नहीं होंगे. आप भी रिटायर्ड प्रोफैसर हैं, आप को भी पढ़ाने में लगना होगा. अपनी सोनू भी अध्यापिका है वह भी गणित की, वह भी साथ हो जाएगी तथा आवश्यकतानुसार बाहर से शिक्षक ले लेंगे. मैं कई अच्छे प्रोफैसर को जानता हूं, जो खुशीखुशी हमारे साथ जुड़ जाएंगे.’’

भैया बोले, ‘‘मन बेटा, तू ने सोचा तो बहुत सही है. इस तरह सुमन का सपना भी पूरा होगा व मेरी बहू नीता का सपना भी साकार होगा तथा सब से बड़ी बात है कि हम सब एकसाथ रह भी सकेंगे. सच कहूं तो इस बुढ़ापे में तेरे साथ ही रहना चाहता हूं.’’ कोचिंग इंस्टिट्यूट की बात सुन कर सोनू और सुमन बेहद खुश हो गए. सुमन ने कहा, ‘‘छोटे पापा, कल ही तो मैं ने सोनू को अपने दिल की बात बताई थी. उस ने कहा भी था कि आप जब भी इंस्टिट्यूट खोलना चाहेंगे, वह भी उस में पूरा सहयोग करेगी किंतु यह सपना इतनी जल्दी साकार होगा, यह मैं ने नहीं सोचा था.’’ सब ने मिलबैठ कर यही तय किया कि सुमन और सोनू दिल्ली जा कर मकान एवं सुमन की नौकरी का काम निबटा लें. इस बहाने इन का हनीमून भी हो जाएगा तथा घर का काम भी निबट जाएगा. सुमन ने हंसते हुए कहा, ‘‘पापा, हनीमून पर अपनी नौकरी से इस्तीफा देने वाला मैं इकलौता बंदा ही होऊंगा.’’ सुमन की बात को बढ़ाते हुए सोनू ने जोड़ दिया, ‘‘हनीमून पर अपने मकान के लिए किराएदार ढूंढ़ने वाले भी हम पहले नवविवाहित जोड़ा बन जाएंगे.’’

उन दोनों की चुहलबाजी पर हम सभी हंस पड़े. सोनू और सुमन की शादी को 5 वर्ष हो चुके हैं. हमारे द्वारा खोले गए इंस्टिट्यूट को भी लगभग 5 वर्ष हो रहे हैं. सोनू की सलाह पर इंस्टिट्यूट का नाम नीता इंस्टिट्यूट रखा गया. शहर में नीता इंस्टिट्यूट का नाम बड़े आदर के साथ लिया जाता है. बड़े भैया, मैं व उत्तम के साथसाथ मेरे कुछ मित्र भी इस में शामिल हुए हैं. नई पीढ़ी व पुरानी पीढ़ी के संयुक्त योगदान का अच्छा प्रतिफल विद्यार्थियों को मिल रहा है. सोनू और सुमन की 3 साल की प्यारी सी बिटिया है, जिस का नाम सोनू ने रिया रखा है. आज सोनू और सुमन के सहयोग से मेरे चौबीस घंटे नीता (इंस्टिट्यूट) और रिया (पोती) के साथ व्यतीत होते हैं. मेरा और सोनू का अनोखा रिश्ता हम दोनों के ही जीवन का मजबूत संबल बना रहा. इस कथन पर पूरी तरह विश्वास सा हो गया है कि जब सारे रास्ते बंद हो जाते हैं, उम्मीद का एक रास्ता अवश्य खुलता है. हिम्मत करे तो मनुष्य उस के सहारे निराशा से आशा की ओर उन्मुख हो सकता है.  

बेचारे: दिलफेंक पतियों की शामत- भाग 2

वे दोनों हैरान हो कर मुझे चिंतित नजरों से देखने लगीं, फिर वे हलकी सी मुसकराईं, थोड़ा झेंपीं और जल्दी ही मेरे साथ पलंग पर वे दोनों भी हंसी के मारे लोटपोट हो रही थीं.

“दिन में फुरसत निकाल कर मैं शालिनी से मुलाकात करूंगी. उस के बाद ही इस समस्या का समाधान खोजेंगे हम सब मिल कर,” ऐसा वादा कर के मैं ने अपनी दोनों सहेलियों को विदा किया.दोपहर को रवि का फोन आया तो मैं ने उन्हें सारी बातें हंसते हुए बताईं.

“ये पटेल और गुर्जर बिलकुल ‘टू मच’ हैं वंदना. औफिस की हर लड़की ने इन्हें डांटा हुआ है और सब इन कार्टूनों का खूब मजाक उड़ाती हैं, पर ये सुधरने को तैयार नहीं,” रवि के इन वाक्यों ने मुझे गहरे सोचविचार में डाल दिया था.

शालिनी से हुई मेरी मुलाकात के बारे में सबकुछ जानने के लिए सविता और मधु सब कामधाम छोड़ कर अगले दिन सुबह ही मेरे घर आ पहुंचीं.

“वह शालिनी तुम दोनों के पतियों को जानबूझ कर बढ़ावा नहीं दे रही है. हंसतेमुसकराते हुए खुल कर बातें करना उस का स्टाइल है,” मैं ने अपना निर्णय उन्हें बता दिया.

“तुम ठीक कह रही हो, पर हमारी मुसीबत दूर करने के लिए कुछ करो भी यार,” मधु खीज उठी.

“उस के लिए मैं ने एक प्लान तैयार किया है,” मेरी यह बात सुनते ही वे दोनों कूद कर मेरी अगलबगल में आ बैठीं.

सस्पैंस बढ़ाने के लिए मैं कुछ देर खामोश रही और फिर अकड़ कर बोली, “मेरी योजना सुनने से पहले मुझे तुम दोनों आश्वासन दो कि मेरे कहे पर चलोगी?”

“बिलकुल चलेंगीं,” पहले सविता और उस के पीछेपीछे मधु ने मेरी शर्त फौरन मान ली.

“कोई सवालजवाब नहीं करोगी?”

“नहीं करेंगी.”

“जब तक परिणाम न निकले, तब तक किसी तरह के अविश्वास, डर या घबराहट का शिकार नहीं बनोगी?”

“तेरी योजना में कोई मर्डर होगा क्या…?” सविता ने जोर से चौंकने का अभिनय किया.

“आजकल दूसरी औरत वाली हर फिल्म में ‘मर्डर’ जरूर होता है. अगर हमारी समस्या भी ‘मर्डर’ से हल होती हो तो चलेगा,” मधु ने लापरवाही से पहले कंधे उचकाए, पर फिर अपने बेसिरपैर की बात पर हंस पड़ी.

“तुम दोनों फालतू की बातों में टाइम बहुत खराब करती हो,” मैं आंखें तरेर कर उन्हें रास्ते पर लाई और फिर दोनों को अपना प्लान समझाया.

“रास्ता खतरनाक दिखा रही हो तुम वंदना, पर तुम्हें प्लान के सफल होने का विश्वास है, तो हम दोनों तुम्हारे साथ हैं,” सविता के इस फैसले के समर्थन में मधु ने भी अपना सिर ऊपरनीचे हिलाया और मेरी योजना स्वीकृत हो गई.

हम ने उसी दिन से अपनी योजना पर अमल करना शुरू किया, तो पटेल और गुर्जर की मानो लौटरी निकल आई. उन दोनों को शालिनी से मिलाने व उस के साथ कुछ वक्त गुजारने का अवसर उपलब्ध कराने से हम तीनों बिलकुल नहीं चूक रही थीं.

गुर्जर और पटेल हमारे प्रयासों के कारण लगभग रोज ही शालिनी के दर्शन कर लेते. उन्हें अपने सपनों की रानी से जी भर कर बातें करने का मौका भी हम खूब देती थीं.

सविता ने छोलेभटूरे बनाना सीखने के लिए शालिनी को अपने घर आमंत्रित किया. पटेलजी भी रसोई में घुस आए, तो उन की पत्नी ने रत्तीभर एतराज नहीं किया. शालिनी तो कुछ देर बाद हमारे पास ड्राइंगरूम में आ बैठी और पटेलजी ने पूरी दिलचस्पी के साथ भटूरे बनाने सीखे.

हम तीनों ने नोट किया कि गुर्जर साहब यों बेचैन हो रहे थे मानो पेट में तेज मरोड़ उठ रही हो. अपनी माशूका को अपने रकीब के साथ अकेले में हंसतेबोलते देखना उन्हें जरा भी हजम नहीं हो रहा था.

गुर्जर बेचारे ने जबजब उठ कर रसोई की तरफ जाने की कोशिश की, मधु ने उन्हें माथे पर बल डाल कर रोक दिया. उन का मूड ऐसा खराब हुआ कि पेट भर कर छोलेभटूरों का स्वाद भी नहीं ले सके.

गुर्जर साहब की लौटरी 2 दिन बाद रविवार को निकली. शाम के समय शालिनी मार्केट से कुछ सामान खरीदने निकली, तो मधु गुर्जर साहब को ले कर उस के साथ हो ली. आधे रास्ते पहुंच कर उस ने गैस पर सब्जी चढ़ा आने का बहाना बनाया और अकेली ही वापस लौट आई.

गुर्जर शालिनी को डेढ़ घंटे बाजार में घुमा कर बड़े विजयी और प्रसन्न अंदाज में वापस लौटे और घर पर उन का स्वागत करने के लिए हम सभी मौजूद थे. पटेल अपने प्रतिस्पर्धी को ऐसे घूर रहे थे मानो कच्चा चबा जाएंगे.

“मैं आज डिनर नहीं करूंगी. समीर ने टिक्की, आइसक्रीम, फ्रूट चाट और बड़ी सी चौकलेट खिला कर मेरी हालत खराब कर दी है,” शालिनी के मुंह से गुर्जर साहब की जगह ‘समीर’ नाम सुन कर पटेलजी तो अंगारों पर लौटने लगे.

वैसे तो पटेल और गुर्जर आपस में अच्छे दोस्त हैं, पर शालिनी के मामले में दोनों ही बाजी मारने के लिए एकदूसरे की टांग खींचते रहते.

सविता और मधु की अनुपस्थिति में रवि और मैं उन्हें शालिनी का नाम ले कर अकसर छेड़ते. जरा सा चढ़ा देने पर वे खुल जाते और उन के बीच खूब नोकझोंक होती.

“अबे मोटे, तू नहीं जंचता उस रूपसी के साथ,” तैश में आ कर पटेल गुर्जर से उलझ जाते, “फिल्म की हीरोइन किसी बैंड मास्टर के नहीं, बल्कि मुझ जैसे लंबे, स्मार्ट हीरो के गले में प्रेम की माला डालती है.”

“अरे, ज्यादा इतरा मत मेरे लंबे बांस,” गुर्जर साहब चिढ़ कर जवाब देते, “वह मेरी दीवानी है. मेरे साथ होती है, तो उस का हंसतामुसकराता चेहरा फूल सा खिला रहता है. मेरे सामने तेरा कोई चांस नहीं है बच्चू.”

सविता और मधु की उपस्थिति में कभी रवि उन्हें छेड़ते, तो दोनों हंस कर बात को टालने की कोशिश करते. उन्हें डर लगता कि उन की पत्नियां ऐसी चर्चा के छिड़ते ही हमेशा की तरह उन के पीछे पड़ कर झगड़ने न लगें.

सविता और मधु में आए परिवर्तन को नोट करने में उन्हें कुछ दिन लगे. शालिनी के साथ उन के ‘फ्लर्ट’ करने को ले कर दोनों की पत्नियां कोई शोर नहीं मचाती हैं, ये देख कर दोनों कभीकभी काफी हैरान नजर आते.

जब पत्नियों ने कोई अंकुश नहीं लगाया, तो दोनों के हौसले बुलंद हो गए. एकदूसरे से बढ़चढ़ कर दोनों शालिनी पर लाइन मारते. अरुण की उपस्थिति का भी धीरेधीरे उन पर नकारात्मक असर होना बंद हो गया. उस के सामने ही मजाक की आड़ में दोनों शालिनी का दिल जीतने का बेहिचक प्रयास करने लगे थे.

योजना पर अमल करना शुरू करने के करीब 2 सप्ताह बाद वह दिन आ गया, जब दोनों बकरे हलाल होने को पूरी तरह से तैयार हो चुके थे.

रविवार की उस सुबह मैं ने गुर्जर और पटेल दोनों के फ्लैट में जा कर घबराहट और चिंता से कांपती आवाज में खबर दी, “जल्दी से शालिनी के घर आइए. उस ने नींद की गोलियां खा कर आत्महत्या करने की कोशिश की है. उस की हालत बड़ी नाजुक है.”

उन के किसी सवाल का जवाब देने को मैं रुकी नहीं थी. शालिनी के घर में मेरे वापस पहुंचने के करीब 5 मिनट बाद ही वे दोनों घबराई सी हालत में भागते से वहां साथसाथ पहुंचे.

“शालिनी बैडरूम में है. तुम दोनों अंदर जाओ और अरुण की उसे होश में लाने में सहायता करो,” मैं ने फटाफट सविता और मधु को वहां से हटाया. मुझे डर था कि दोनों में से कोई अचानक हंसना शुरू कर सारी योजना पर पानी न फेर दे.

रवि ने गंभीर स्वर में जवाब दिया, “डाक्टर को बुलाया, तो वह पुलिस को सूचना जरूर देगा.”

“क्यों खा ली इस ने नींद की गोलियां?” गुर्जर ने चिंतित लहजे में पूछा.

“इस सवाल का जवाब तो आप दोनों में से कोई एक ही दे सकता है,” मैं ने क्रोधित अंदाज में दोनों को घूरा.

वे कुछ प्रतिक्रिया जाहिर करते, उस से पहले ही शालिनी की उलटी करने का प्रयास करती ऊंची आवाज हम तक पहुंची.

“अगर इसे उलटी नहीं हुई, तो हालत बहुत बिगड़ जाएगी,” मेरे पति की बात सुन कर उन दोनों के चेहरे का रंग और ज्यादा उड़ गया.

“नींद की गोलियां खाने का कारण हम कैसे बता सकते हैं?” कई बार थूक सटकने के बाद गुर्जर के मुंह से बस इतना ही निकला.

“हमें इतने भयानक अंदाज में क्यों घूर रही हो तुम?” पटेल की आंखों में मुझे भय के भाव बिलकुल साफ नजर आ रहे थे.

“शालिनी ने ‘सुसाइड नोट’ छोड़ा है,” मैं ने यह जानकारी दे कर बम के जैसा विस्फोट किया.

“और वह नोट इस वक्त अरुण के पास है,” रवि ने बात को आगे बढ़ाया.

‘‘उस नोट में लिखा है… ‘अरुण, मेरे मन में पाप आ गया है. किसी और ने मेरे दिल में जगह बना ली है. मैं उसे चाह कर भी भूल नहीं पा रही हूं और तुम से विश्वासघात कर के जीना नहीं चाहती. मेरी भूल को माफ कर देना.’

“मुझे लगता है गुर्जर साहब, तुम ने शालिनी को अपने प्रेमजाल में फंसा कर आत्महत्या करने पर मजबूर किया है,” मैं ने गुर्जर पर सीधा आरोप लगाया, तो चक्कर आ जाने के कारण वे ‘धम्म’ से सोफे पर बैठ गए.

“नहीं वंदना, तुम गलतफहमी का शिकार हो,” रवि ने मेरे आरोप का खंडन किया, “मैं ने पटेल को कल ही शालिनी के घर में तब घुसते देखा था, जब अरुण घर में नहीं था. उस के आत्महत्या करने के प्रयास के लिए यह रोमियो जिम्मेदार है.”

“नहींनहीं, कल शाम को तो मैं सिर्फ कटोरी भर चीनी लेने के लिए यहां आया था,” पटेल ने कांपती आवाज में सफाई दी.

“हम से तुम्हारी पुरानी पहचान है, तो हमारे यहां चीनी मांगने क्यों नहीं आए?” पटेल से रवि के इस सवाल का कोई जवाब देते नहीं बना.

तभी बैडरूम से अरुण ने बाहर झांका और हमारी तरफ मुंह कर के भावुक लहजे में बोला, “अगर मेरी शालिनी को कुछ हो गया, तो मैं जेल में चक्कियां पिसवा दूंगा. खून हो जाएगा मेरे हाथों.”

“कुछ चाहिए क्या?” मैं उस की तरफ बढ़ गई, नहीं तो वे दोनों जरूर देख लेते कि हंसी रोकने को मुझे कितनी कोशिश करनी पड़ रही थी.

“एक जग पानी ले आओ,” आग्नेय दृष्टि से उन दोनों को घूरने के बाद अरुण अंदर चला गया और मैं भाग कर रसोई की तरफ चली गई.

पानी भरा जग ले कर मैं बैडरूम में घुसी तो देखा कि वे चारों तकिए में मुंह छिपा कर खूब हंस रहे थे. मैं ने भी एक तकिया उठाया और बड़ी देर से रुकी अपनी हंसी को बाहर आने की छूट दे दी.

“मधु, तुम्हारे पति की डर के मारे कहीं पतलून ही खराब न हो जाए,” अरुण की आंखों से ज्यादा हंसने के कारण आंसू बह रहे थे.

“और पटेल साहब की आवाज ही नहीं निकल रही है,” मैं ने उन्हें सूचना दी.

बेटे का विद्रोह- भाग 4: क्या शिव ने मां को अपनी शादी के बारे में बताया?

रोजी को देखते ही चारों तरफ मे कौवे की तरह सब कांवकांव करने लगे, परंतु  सुशीलाजी के बदले हुए तेवर देख कर चाहे कुंवरपाल हो, चाहे सुनैना हो, सब की बोलती बंद हो गई थी.

पंडितजी शायद बेटे का ही इंतजार कर रहे थे. बेटे को देख कर तसल्ली से उन की आंखें बंद हो गई थीं. उन की जीवनलीला समाप्त हो चुकी थी.

घर में कर्मकांड को ले कर गरमागरम बहस चालू हो गई.

शिव को न ही समाज के ठेकेदारों की परवाह थी और न ही रिश्तेदारों के बकवास की…. जीजा कुंवरपाल और सुनैना जीजी ने भरसक कोशिश की  सनातन रीतिरिवाज से मृतक की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान और अन्य क्रिया भाई शिव करे, परंतु वह अपने निर्णय पर अटल रहा. उस ने तीन दिन के अंदर शांति पाठ और हवन कर के अनाथालय में बच्चों को भोजन करवा कर इस कार्यक्रम की समाप्ति कर दी.

शिव के आने के बाद घटनाएं इतनी तेजी से घटी थीं कि वह दुकान पर अपना ध्यान नहीं दे पा रहा था.

दुकान का तो बुरा हाल हो  चुका था. न ही कोई  ढंग से  हिसाबकिताब था और न ही लिखापढ़ी, क्योंकि पापा महीनों से दुकान आते नहीं थे, इसलिए कुंवरपाल ने दोनों हाथों से लूट मचा रखी थी.

सब से पहले उस ने स्टाक लिया. उस ने एक एकाउंटेंट रखा और कई कैमरे लगवा कर अपने फोन के साथ अटैच कर लिया. अब वह घर में रह कर दुकान पर भी अपनी नजर रख सकता था.

जब कुंवरपाल ने ज्यादा नाटक फैलाया, तो उस ने साफ शब्दों में कह दिया कि यह घर और दुकान पर मेरा भी हक बनता है, इसलिए मेरे हिसाब से रहना होगा, नहीं तो आप दोनों को अपना बोरियाबिस्तर समेट कर अपने गांव जाना होगा…

कुंवरपाल का नशा मुक्ति केंद्र से इलाज करवा कर उन के मन से नशा छुड़वाने की कोशिश की. जब पैसे की कमी होने लगी, तो दूसरी महिला ने किसी दूसरे से दोस्ती कर ली थी. कुंवरपाल बेबस पक्षी सा फड़फड़ा रहे थे, परंतु अब तो वह अनुशासन के पिंजरे में बंद कर दिए गए थे.

सुशीलाजी, शिव और रोजी की तिकड़ी ने किसी की  नहीं चलने दी थी. सोने पे सुहागा यह हुआ कि कोरोना के कारण  लौकडाउन लग गया और औफिस का काम औनलाइन ही होना था.

जब लौकडाउन खुला, तो वह अम्मां को ले कर दुकान गया और उन्हें समझाबुझा कर दुकान की मालिक की गद्दी पर बिठा दिया…

पहले तो वे सकुचाईं, परंतु अपना यह नया जीवन रास आने लगा था.

रोजी ने दीदी के बच्चों को अनुशासन और पढ़ाई की बागडोर संभाल ली थी. 6-8 महीने के अंदर ही घर का कायाकल्प हो चुका था. चारों बच्चे समय से पढ़ते, समय से खेलते और रोजी के इशारों पर चलते…

सुनैना ने भी बहुत हाथपैर मारे कि किसी भी तरह रोजी को न टिकने दें और उसे परेशान करें, नहीं तो सत्ता उन के हाथों से निकल जाएगी, परंतु सासबहू की इस जोड़ी ने ऐसा करिश्मा कर दिखाया, जो उस ने कभी सपने में नहीं सोचा था, लेकिन बच्चों को पढ़ते देख सुनैना खुद भी चुपकेचुपके पढ़ने की कोशिश करने लगी थी…

लगभग डेढ वर्ष के बाद जब वह गाजियाबाद के लिए लौट रहा था, तो सब की आंखों से झरझर आंसू बह रहे थे… सुशीलाजी शिव से फुसफुसा कर बोलीं कि किरिस्तानी लड़की ने तो कमाल कर दिया…

शिव ने भी रोजी को चिढ़ाते हुए कहा, “किरिस्तानी लड़की…”

Mother’s Day 2022: अब हम समझदार हो गए हैं- भाग 1

निर्मल नदी सी सुलेखा चाची, जिन्हें न कोई तमन्ना थी न ही कोई आस, ने मिलीजुली मिट्टी के गीलेअधगीले लौंदे को आकार दे कर मूर्तरूप देने की कोशिश की. विजय के रूप में चाची को भी जीने का सहारा मिल गया था. लेकिन सहसा ऐसा क्या हो गया कि चाची को विजय से कड़वे शब्दों का इस्तेमाल करना पड़ा?

‘‘तुम्हारी भाषा में प्यार किसे कहते हैं? तुम इतने नासमझ तो नहीं हो जो तुम्हें समझ में ही न आए कि सामने वाला तुम से प्यार कर रहा है या नहीं. घर में पलता पालतू जानवर तक प्यारभरा हाथ पहचान जाता है और तुम्हें इंसान हो कर भी इस बात का पता नहीं चला. वाह, धन्य हो तुम और तुम्हारा फलसफा.’’

सुलेखा चाची का स्वर इतना तीखा और कानों को भेद जाने वाला होगा, मैं ने कभी कल्पना भी नहीं की थी. ‘‘तुम्हारा कोई दोष नहीं है, बेटा. मेरा ही दोष है जो तुम्हें अपना बच्चा समझ कर तुम पर अपनी ममता लुटाती रही. सोचती रही बिना मां के पले हो, लाख कमियां हो सकती हैं तुम में क्योंकि कुछ बातें बचपन से ही सिखाई जाती हैं जन्मघुट्टी में घोल कर. जन्मघुट्टी में तुम्हें मां का सम्मान करना पिलाया ही नहीं गया तो कैसे तुम आज मेरा सम्मान कर पाते.’’

‘‘बड़ी मां,’’ विजय कुछ कह पाता, अपनी सफाई में कुछ बोल पाता इस से पहले ही सुलेखा चाची ने उसे हाथ के इशारे से रोक दिया. स्तब्ध रह गया था मैं भी. सुलेखा चाची जिन के शांत स्वभाव का सिक्का हमारा सारा खानदान मानता है वही इस तरह कैसे और क्यों बोलने लगीं? अच्छा भला तो सब चल रहा है. सुलेखा चाची ने अपनी एक सहेली की अनाथ बच्ची सीमा से विजय का रिश्ता भी पक्का कर रखा है.

विजय के पिता मेरे चाचा थे और सुलेखा मेरी चाची. सुलेखा चाची विजय की जन्मदातृ नहीं हैं लेकिन विजय की बड़ी मां हैं, विजय के पिता की पहली पत्नी. चाचा शादी के बाद विदेश चले गए थे और लगभग 20 साल बाद हमेशा के लिए देश वापस लौटे थे. शांत सुलेखा चाची सामाजिक दायरे का सम्मान करतेकरते बंधी रहीं हमारे घर की दहलीज से.

चाचा 2-3 साल बाद आते. घर पर कुछ डौलरों की वर्षा करते, कुछ तरसी आंखों में जराजरा सी आस जगाते, एहसास जगा जाते कि वे जिंदा हैं अभी. हमारी दादी चाचा का इंतजार करतीकरती थक गईं. लगभग 20 साल, सालोंसाल चाचा का आनाजाना लगा रहा. चाची की गोद कभी नहीं भरी. घर में अकसर बात चलती, चाची के कोई औलाद ही होती तो चाचा को घर की तरफ खींचती.

मैं आज भी सोचता हूं कैसे चाचा को उस की औलाद अपनी ओर खींचती. जिस चाचा को उन की मां, उन की पत्नी न खींच पाईं उन्हें उन की औलाद कैसे खींच पाती. मैं सब से बड़ा था न घर में. बड़ों में मैं बच्चा था और बच्चों में मैं बड़ा. सब से कुछकुछ सुनता रहता था. मैं बीच का था न, सो सब की तरह सोच पाता था. चाचा जब आ कर जाते तब दादी और मां की नजरें बड़ी तमन्ना से देखतीं.

‘‘क्या पता इस बार तेरी गोद भर जाए. बस, वक्त का इंतजार कर.’’

चाची मुसकरा भर देती थीं. जैसे उन्हें ऐसी न कोई तमन्ना है और न आस ही. एक शांत सी, भीनीभीनी सी मुसकान. एक दर्प सा लगता मुझे उन के चेहरे पर, जैसे सब पर हंस रही हों. कह रही हों, क्या उम्रभर तुम्हारा ही चाहा होगा?

चाची पढ़ीलिखी हैं, स्थानीय कालेज में हिंदी की प्राध्यापिका हैं. बड़ी सुलझी और परिपक्व सी. चाची से मैं 10 साल छोटा हूं. फिर भी कभीकभी लगता था उन का हमउम्र हूं. उन के स्तर तक जा कर मैं तब भी सोच सकता था और आज भी सोच सकता हूं. तब भी मुझे समझ में आता था उन की जीत हो चुकी है. उन का चाहा ही होगा. शायद वे मां बनना चाहती ही नहीं थीं.

‘‘अच्छा है न, मैं अकेली जान. भूखी भी सो जाऊं तो किसी को पता नहीं चलेगा. बच्चा होगा तो किसकिस का मुंह देखूंगी. बच्चे को क्या नहीं चाहिए. क्या उसे पिता नहीं चाहिए? मेरी तरह लावारिस जिएगा क्या वह?’’

‘‘ऐसा क्यों सोचती है री, सुलेखा. बच्चे से तेरा भी तो मन लगेगा न.’’

‘‘यह सोमू है न बीजी. यह भी तो मेरा ही बच्चा है. मेरा मन इसी से लग जाता है.’’

चाची की बातों में एक बार ऐसा सुना था और उसी दिन से मैं ने चाची को छोटी मां कहना शुरू कर दिया था. मैं तब 22 साल का था. बीकौम का नतीजा आया था, पता नहीं क्यों सब से पहले चाची के पैर छू कर आशीर्वाद मांगा था.

‘‘आज से आप मेरी छोटी मां. आप का बच्चा हूं न मैं. आशीर्वाद दीजिए, छोटी मां.’’

तब एक प्यारीसी भावना जागी थी चाची की आंखों में. मैं चाची का अच्छा दोस्त तो पहले ही था तब वास्तव में उन की संतान भी बन गया था. चाची ने गले लगा कर जो मेरा माथा चूमा था वह भाव आज भी भूला नहीं हूं. मन ही मन ठान लिया था. पति के अभाव में भी जिस तरह चाची ने दहलीज का मान रखा है उसी तरह मैं भी पुत्र बन कर चाची की रक्षा करूंगा.

मेरी शादी हुई और अपनी पत्नी से भी मैं ने यही आश्वासन मांगा कि वह चाची को अपनी मां, अपनी सखी, अपनी मित्र मानेगी सदा और वैसा ही हुआ. मेरी पत्नी ने भी सदा चाची का मान रखा है. मैं अकसर सोचता हूं, रिश्ते निभाना इतना मुश्किल होता नहीं जितना हम उन्हें बना देते हैं. गरिमा और अनुशासन में रह कर भी जटिल रिश्ता निभाया जा सकता है बशर्ते उस में दोनों तरफ से समान मेहनत की जाए. इंसान शराफत की हद में रहे और अपनी सीमाओं का अतिक्रमण न करे तो कोई भी संबंध आसान हो सकता है.

लगभग चाची और चाचा के विवाह के 20 साल बाद एक बार फिर चाचा के साथ एक नए रिश्ते का पदार्पण हमारी दहलीज पर हुआ था. काफी बीमार अवस्था में चाचा लौट आए थे और साथसाथ चला आया था उन का बेटा विजय. हमारा सारा परिवार हैरानपरेशान. बीजी ने बांहें खोल कर दोनों का स्वागत किया था.

आगे पढ़ें- बस, एक चाची थीं जो तटस्थ थीं. न कोई खुशी, न…

Mother’s Day 2022: 40+ महिलाओं के लिए बेस्ट हेल्थ टिप्स

उम्र का एक ऐसा पड़ाव आता है जब महिलाएं प्रजनन की उम्र को पार कर रजोनिवृत्ति की ओर कदम बढ़ाती हैं. यह उम्र का नाजुक दौर होता है जब शरीर कई बदलावों से गुजरता है. इस में ऐस्ट्रोजन हारमोन का लैवल कम होने से हड्डियों की कमजोरी, टेस्टोस्टेरौन हारमोन के कम होने के कारण मांसपेशियों की कमजोरी तथा वजन बढ़ने से मधुमेह व उच्च रक्तचाप होने की संभावना बढ़ जाती है.

ऐसे में चालीस पार महिलाएं कैसे अपने शरीर का ध्यान रखें?

अपनी नियमित दिनचर्या में क्या बदलाव लाएं ताकि स्वस्थ जीवन व्यतीत कर सकें?

ऐसे ही और कई प्रश्नों के उत्तरों के लिए स्त्रीरोग विशेषज्ञ डा. निर्मला से मुलाकात की:

40+ की उम्र में महिलाओं के अंदर क्याक्या बदलाव आते हैं?

40+ उम्र में शारीरिक बदलाव में प्रमुख है वजन का बढ़ना. महिलाओं के कूल्हों, जांघों के ऊपरी हिस्सों और पेट के आसपास चरबी जमा होने लगती है. वजन बढ़ने के कारण उच्च रक्तचाप व मधुमेह का खतरा भी बढ़ जाता है. इस के अलावा ऐस्ट्रोजन हारमोन का लैवल घटने से हड्डियां कमजोर होने लगती हैं, जिस से बचाव के लिए स्वस्थ आहार (कम कैलोरी का भोजन, प्रोटीन भोजन में शामिल करना, फल, सब्जियां, अंकुरित व साबूत अनाज) अपनाना चाहिए.

वजन पर नियंत्रण रखने के लिए कम से कम 30 मिनट तक नियमित व्यायाम जरूर करना चाहिए. व्यायाम कार्डियो ऐक्सरसाइज, ऐरोबिक्स आदि रूप में हो सकता है. टेस्टोस्टेरौन हारमोन स्राव की कमी मांसपेशियों पर असर डालती है, जिस के कारण फ्रोजन शोल्डर (कंधों में तेज दर्द होना व जाम की स्थिति) की परेशानी भी हो सकती है. व्यायाम के द्वारा ही इस पर काबू पाया जा सकता है.

दूसरा बदलाव मानसिक तौर पर होता है, जिस में हारमोन की गतिविधियों के कारण मूड स्विंग होता है. कभीकभी चिड़चिड़ापन बढ़ने लगता है, गुस्से पर काबू खोने लगता है. ऐसे में यदि उन के साथ सहानुभूति, प्रेम का वातावरण स्थापित न हो तो कई महिलाएं डिप्रैशन की शिकार भी हो जाती हैं.

आजकल ब्रैस्ट कैंसर व गर्भाशयमुख कैंसर के केस बहुत आम हो गए हैं. इस से बचाव व स्वयं सतर्कता जांच कैसे करें?

स्तन कैंसर का इलाज मौजूद है, बशर्ते महिलाएं इस की शुरुआत होते ही इलाज शुरू कर दें. सर्वप्रथम स्नान के समय अपने एक हाथ को ऊपर उठा कर, दूसरे से स्तन की जांच स्वयं करनी चाहिए. किसी भी प्रकार की गांठ या स्राव निकलने पर तुरंत डाक्टर से संपर्क करना चाहिए.

इसी प्रकार योनि से किसी भी प्रकार का स्राव, मासिकचक्र के अतिरिक्त समय पर होने पर सजग हो जाना चाहिए. इस की जानकारी डाक्टर को जरूर देनी चाहिए. जिन के परिवार में कैंसर के मरीज पूर्व में रहे हों जैसे नानी या मां को कैंसर हुआ हो, उन्हें नियमित तौर पर वीआईए टैस्ट, पीएपी टैस्ट जरूर करवाना चाहिए.

ऐनीमिया यानी महिलाओं में खून की कमी भी हो जाती है. इस के बचाव के क्या उपाय हैं?

हमारे देश में यह परेशानी बहुत आम हो गई है. इस के प्रमुख लक्षण हैं कमजोरी, शरीर पीला पड़ना, सांस फूलना. गर्भवती महिलाओं, स्तनपान कराने वाली महिलाओं में यह कमी ज्यादा देखने को मिलती है. सरकारी अस्पतालों में आयरन की गोलियां मुफ्त उपलब्ध कराई जाती हैं, अत: इन का सेवन कर आयरन की कमी पर काबू पाया जा सकता है, इस के अतिरिक्त हरी पत्तेदार सब्जियां, गुड़, काले चने, खजूर, सेब, अनार, अमरूद इत्यादि में आयरन की प्रचुर मात्रा होती है. लोहे के बरतनों में खाना पकाने से भी शरीर को आयरन की पूर्ति होती है. इस के अलावा 6 माह के अंतराल में कीड़ों की दवा जरूर लेनी चाहिए.

40+ महिलाओं में कैल्सियम की कमी क्यों बढ़ जाती है?

हां, स्तनपान कराने वाली महिलाओं, गर्भवती महिलाओं के अलावा यह कमी 40+ महिलाओं में ऐस्ट्रोजन हारमोन घटने के कारण भी होने लगती है. इसे दूर करने के लिए दूध, पनीर और दूध से बने पदार्थों का नियमित सेवन करना चाहिए. गर्भवती महिला को 3 माह के गर्भ के बाद से ही कैल्सियम की गोली रोज खानी शुरू कर देनी चाहिए. शिशु को स्तनपान कराने वाली मांएं 3-4 गिलास दूध का नियमित सेवन करें. 40+ महिलाओं को विटामिन डी युक्त कैल्सियम खाना चाहिए. धूप का सेवन भी लाभदायक रहता है. समयसमय पर कैल्सियम व विटामिन डी का टैस्ट भी करवाना चाहिए.

शुगर यानी डायबिटीज भी महामारी का रूप लेती जा रही है. इस से बचाव के क्या उपाय हैं?

गर्भावस्था में उन महिलाओं को मधुमेह होने की संभावना बढ़ जाती है, जिन के माता या पिता को यह पहले से हो या महिलाओं को पौलिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम की बीमारी हो. 40+ में भी यह उन महिलाओं को होती हैं, जिन के परिवार में यह बीमारी पहले से हो. इस के अलावा खानपान में लापरवाही और शारीरिक निष्क्रियता भी इस बीमारी के होने के प्रमुख कारणों में हैं. इस के लक्षणों में प्रमुख हैं- वजन बढ़ना, अधिक भूख व प्यास लगना और बारबार पेशाब जाना.

इस के बचाव के लिए 40+ होने पर वर्ष में 1 बार अपना रूटीन चैकअप कराना चाहिए और खून की जांच (ब्लड शुगर फास्टिंग) और (ब्लड शुगर पीपी) खाना खाने के डेढ़ घंटे के बाद करवानी चाहिए.

इस समस्या के प्रकट होने पर अपने आहार एवं दिनचर्या में बदलाव ला कर इस बीमारी पर काबू पाया जा सकता है. नियमित व्यायाम व खाने में मीठी चीजों, शकरकंद, आलू, केला, आम, अरबी, चावल आदि का परहेज करना चाहिए. समस्या बढ़ने पर दवा व इंसुलिन के इंजैक्शन भी उपलब्ध हैं, जिन्हें डाक्टर की सलाह एवं निगरानी में लेना चाहिए.

थायराइड की समस्या उत्पन्न होने के क्या कारण हैं?

अकसर किशोरावस्था व गर्भवती महिलाओं में जो थायराइड की समस्या देखने को मिलती है उसे हाइपोथाइरोडिज्म कहते हैं. इस के लक्षणों में प्रमुख हैं गले में सूजन, वजन का बढ़ना, मासिकधर्म की अनियमितता आदि.

किशोर युवतियों को शारीरिक विकास के लिए आयोडीन की जरूरत होती है, जिस की कमी होने से प्यूबर्टी गोइटर हो जाता है. इस के अलावा किसी विशेष क्षेत्रवासियों में भी यह कमी देखने को मिलती है. इस का कारण वहां की जमीन में ही आयोडीन की कमी होना है.

खून की जांच कराने पर इस की कमी पता चल जाती है. आयोडीन नमक का प्रयोग एवं अपने डाक्टर की सलाह ले कर नियमित दवा का सेवन करना चाहिए. अकसर लड़कियों में यह कमी 20-21 वर्ष के बाद ठीक हो जाती है तो गर्भवती महिलाओं में प्रसव के बाद इस के लक्षण समाप्त हो जाते हैं.

मेनोपौज की शुरुआत किस उम्र से शुरू होती है?

मेनोपौज महिलाओं की उस अवस्था को कहते हैं जब अंडाशय में अंडाणुओं के बनने की क्रिया समाप्त होने लगती है और मासिकधर्म बंद हो जाता है. जब लगातार 12 महीने मासिकधर्म न आए तो इसे हम रजोनिवृत्ति कहते हैं. मेनोपौज होने का मतलब है प्रजनन क्षमता का खत्म हो जाना. यह 40 से 50 वर्ष के बीच की उम्र में हो सकती है.

सभी महिलाओं में अंडाणु के निर्माण होने और फिर इस चक्र के बंद हो जाने का एक अलग समय होता है. महिला के गर्भधारण करने के लिए प्रोजेस्टेरौन और ऐस्ट्रोजन हारमोन का बनना जरूरी होता है. जब ये दोनों हारमोन बनने बंद होने लगते हैं तो महिलाओं के मासिमधर्म और डिंबोत्सर्जन से नियंत्रण हट जाता है और मासिकधर्म अनियमितता व मासिकधर्म बंद होने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है. महिला की 40 से 50 वर्ष की उम्र भी एक कारक है.

मेनोपौज के कारण शरीर में निम्न परिवर्तन आते हैं जैसे गर्भाशय का आकार छोटा होना, शरीर में थकावट, अचानक तीव्र गरमी लगना, जोड़ों में दर्द होना, शरीर में अतिरिक्त वसा का जमाव, नींद में खलल बढ़ जाना आदि. इन लक्षणों के कारण व्यग्रता या अवसाद की स्थिति भी उत्पन्न हो जाती है.

मेनोपौज एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, जिस के लिए किसी प्रकार की दवा की जरूरत नहीं होती है, किंतु योनि के सूखेपन या बारबार होने वाली तीव्र गरमी को कम करने के लिए डाक्टर से परामर्श ले सकती हैं.

Mother’s Day 2022- मैं सास ही भली: क्या मयंक की मां को वाणी पसंद आई?

लाड़ लड़ाती बेटी जैसी बहू पा कर मैं निहाल हो गई. मांमां कर जब वह गले लग जाती तो बेटी की कमी पूरी हो जाती लेकिन कभीकभी ज्यादा मीठा भी कड़वा लगने लगता है… ‘‘वाणी, बस मु झे तुम से यही कहना है कि मेरी मम्मी को भी अपनी मां ही सम झना, उन्हें सास मत सम झना. दीदी का जब से विवाह हुआ है, उन्हें अकेलापन लगता होगा. तुम बिलकुल अपनी मां की तरह ही रहना उन के साथ, प्रौमिस करो, वाणी,’’ फोन पर दूसरी तरफ वाणी ने क्या कहा होगा, यह तो नहीं जान सकती थी लतिका, पर अपने बेटे मयंक की फोन पर यह बात सुन कर उन्हें बेटे पर गर्व हो आया, वाह, कितनी अच्छी बात कर रहा है उन का बेटा, गर्व से सीना चौड़ा हो गया, आंखों में चमक उभर आई. एक महीने बाद ही तो मयंक का विवाह होना था. वह वाणी से प्रेमविवाह कर रहा था.

मयंक ने जब मां लतिका को पहली बार वाणी से मिलवाया था, तो वाणी उन्हें पहली नजर में ही पसंद आ गई थी. सुंदर, स्मार्ट, खूब हंसमुख वाणी का घर मुंबई के एक इलाके पवई में लतिका के घर से कुछ दूरी पर ही था. वाणी और मयंक अच्छे पद पर थे. दोनों एक कौमन फ्रैंड के घर पर मिले थे. दोस्ती, प्यार, फिर अब विवाह होने वाला था. वाणी अपने मातापिता की इकलौती संतान थी. लतिका की बेटी सुनयना का विवाह 2 वर्षों पहले हुआ था. वह सपरिवार अमेरिका में थी. लतिका और उस के पति विनोद बहुत उत्साहपूर्वक विवाह की तैयारियों में व्यस्त थे. वाणी लतिका से फोन पर काफी संपर्क में रहती थी. अभी से ही वह लतिका का दिल जीत चुकी थी. और आज बेटे की फोन पर बात सुन कर तो लतिका के पैर ही जमीन पर नहीं पड़ रहे थे. विनोद जैसे ही औफिस से आए, लतिका ने उन के साथ बैठ कर चाय पीते हुए मयंक की फोन पर सुनी बात बताई. विनोद ने कहा, ‘‘वाह, तुम तो बहुत लकी हो. एक बेटी गई, दूसरी बेटी घर आ रही है. चलो, अच्छा है. मयंक सचमुच सम झदार बेटा है.’’ लतिका का वाणी को बहू बना कर लाने का उत्साह और भी बढ़ गया था. दिन गिन रही थीं. कब बहू आए और उन्हें अच्छा साथ मिले. कुछ महीनों से उन का स्वास्थ्य भी ठीक नहीं था. और वाणी बहू बन कर आ भी गई, घर की दीवारें जैसे चहक उठीं. लतिका ने खुलेदिल से उस पर स्नेह की वर्षा कर दी.

पहले ही दिन वाणी उन से लिपट गई, ‘‘मैं आप को मयंक की तरह मम्मी नहीं कहूंगी, मैं अपनी मम्मी को मां ही कहती हूं, आप को भी मां ही कहूंगी. अब आप भी मेरी मां जैसी ही तो हैं न.’’ ‘‘हां, बेटा, और क्या, मु झे अपनी मां ही सम झना, सास नहीं. यह सासबहू का रिश्ता मु झे भी कुछ डराता ही है. हम मांबेटी की तरह ही रहेंगे,’’ विनोद वाहवाह कर उठे, कहने लगे, ‘‘यह क्या? दोनों मांबेटी बन कर रहोगी तो मैं और मयंक तो बोर हो जाएंगे, क्यों मयंक?’’ मयंक सम झा नहीं, बोला, ‘‘क्यों, पापा?’’ ‘‘अरे, सासबहू का कोई ड्रामा देखने को नहीं मिलेगा, बोर नहीं होंगे?’’ मयंक हंस पड़ा, वाणी ने इतरा कर कहा, ‘‘नहीं, पापा, आप को सासबहू का कोई ड्रामा देखने को नहीं मिलेगा. ये मेरी मां हैं, सास नहीं.’’ ‘‘ओह, मेरी बच्ची,’’ लतिका ने अपनी बांहें फैला दीं, वाणी उन की बांहों में लाड़ से समा गई.

सुनयना हंसती हुई यह दृश्य देख रही थी, जो वाणी के लिए अमेरिका से आई थी. बोली, ‘‘यह तो अच्छा है, अब तो आप मु झे याद ही नहीं करेंगी.’’ वाणी ने कहा, ‘‘अरे नहीं दीदी, एक घर में 2 बेटियां भी तो होती हैं न, मां के लिए तो सब बराबर होती हैं, हैं न, मां?’’ लतिका तो ऐसी लाड़ दिखाने वाली बहू पा कर निहाल थीं, फौरन हां में सिर हिलाया. हंसीखुशी के माहौल में एक हफ्ता खूब शानदार बीता. फिर दोनों एक हफ्ते के लिए हनीमून पर चले गए. वहां से भी वाणी लतिका को मां, मां कर के लगातार संपर्क में रही. लतिका बहुत खुश थी. जिस दिन मयंक और वाणी घूम कर वापस आए, वाणी ने घर में घुसते हुए अपने बैग जमीन पर पटके और आराम से सोफे पर पसर गई, ‘‘ओह मां, थक गई, चाय चाहिए,’’ रात के 8 बज रहे थे. सुनयना का पति राजीव विवाह अटैंड कर के लौट चुका था. वहां उस के मातापिता भी राजीव और सुनयना के साथ ही रहते थे. लतिका ने कहा, ‘‘पर बेटा, अब तो खाना लग ही गया है.

तुम लोग फ्रैश हो कर खाना पहले खा लेते, चाय बाद में पी लेना.’’ ‘‘नहीं मां, चाय पीने का मन है, बना दो न,’’ वाणी ने इस तरह कहा कि सुनयना को हंसी आ गई. उस ने लतिका को देख कर आंख मारते हुए कहा, ‘‘आप की दूसरी बेटी के लिए मैं चाय बना लाती हूं,’’ चाय आने तक वाणी फ्रैश हो चुकी थी. मयंक भी सोफे पर पसरा था. लतिका मयंक से ट्रिप के बारे में पूछती रही. विनोद भी आ गए, तो सब ने खाना शुरू किया. खाना देख कर वाणी ने कहा, ‘‘मां, छोले तो ठीक हैं पर यह आलूगोभी. मां, मेरा दिमाग खराब हो जाता है आलूगोभी देख कर.’’ लतिका चौंकी, ‘‘ओह, पसंद नहीं है?’’ ‘‘न मां, बिलकुल नहीं, मु झे यह टिफिन में कभी मत देना?’’ विनोद ने कहा, ‘‘तुम्हें औफिस में टिफिन चाहिए, मैं और मयंक तो औफिस की कैंटीन में ही खा लेते हैं. लतिका के ऊपर सुबह खाने का काफी काम आ जाता था.

उस की तबीयत भी ठीक नहीं रहती.’’ ‘‘पर पापा, मां हमेशा टिफिन देती थीं. कैंटीन का खाना तो मैं रोजरोज खा ही नहीं सकती.’’ लतिका के चेहरे पर कुछ सोचने के भाव आए, फिर पूछ लिया, ‘‘क्या ले जाना पसंद करोगी, बेटा.’’ ‘‘खूब अच्छीअच्छी चीजें, मां?’’ मयंक ने कहा, ‘‘तुम एक काम करना, थोड़ा जल्दी उठ कर मम्मी के साथ किचन देख लेना कि क्या बनाना है?’’ ‘‘न बाबा, सुबह कहां किचन में जाने का मन होगा, घर में टिफिन मां ही बनाती थीं, ये भी तो अब मेरी मां हैं. अब मेरा यही घर है, यही मां, है न मां?’’ भोला चेहरा लिए वाणी ऐसे बात कर रही थी कि किसी को पलभर तो कुछ सू झा ही नहीं. विनोद और सुनयना की नजरें मिलीं, दोनों ने अपनी हंसी मुश्किल से रोकी.

सुनयना काफी स्नेहिल स्वभाव की लड़की थी, बोली, ‘‘मम्मी, आप मेरा टिफिन बनाती थीं न, अब वाणी का भी बना देना,’’ लतिका ने ठंडी सांस लेते हुए हां में सिर हिला दिया. वे रात को सोने लेटीं तो विनोद ने उन्हें छेड़ा, ‘‘कैसा लग रहा है? एक और बेटी की मां बन कर. लतिका ने उन्हें घूरा तो विनोद हंस पड़े. रात के 11 बज रहे थे. इतने में वाणी की आवाज आई, ‘‘मां, मां.’’ ‘‘अब क्या हुआ,’’ कहती हुई लतिका अपने बैडरूम से बाहर निकलीं, ‘‘क्या हुआ, बेटा?’’ ‘‘मां, बहुत दिन हो गए, गरम दूध चाहिए, सोने से पहले मु झे गरम दूध पीने की आदत है.’’ ‘‘हां, ले लो बेटा, तुम्हारा घर है, जाओ, ले लो.’’ ‘‘नहीं मां, आप दे दो, मैं थक गई हूं, प्लीज मां.’’ ‘‘अच्छा,’’ लतिका को जैसे करंट सा लगा था. अभी तो किचन समेट कर फुरसत मिली थी. और तो किसी को दूध पीने की आदत थी नहीं.

लतिका दूध गरम कर के लाई. इतनी देर में वाणी सोफे पर लेट कर अपने फोन में कुछ कर रही थी. मां, मां, सुन कर सुनयना भी आ गई थी. वाणी गटागट दूध पी गई, बोली, ‘‘थैंक्स, मां, अब अच्छी नींद आएगी. मां, मु झे रोज रात में दूध देना,’’ फिर लतिका से लिपट कर उन का गाल चूम लिया, ‘‘बाय, गुडनाइट मां, गुडनाइट दीदी.’’ उस के जाने के बाद सुनयना हंसी, ‘‘क्या हुआ, मां, शौक्ड लग रही हो,’’ सुनयना के कहने के ढंग पर लतिका को हंसी आ गई. ‘चुप रहो तुम’ कह कर हंसती हुई सोने गईं तो विनोद ने फिर छेड़ा, ‘‘क्या हुआ, तुम्हारी नई बेटी ‘मां, मां’ क्यों कर रही थी?’’ ‘‘उसे दूध पीना था.’’ ‘‘क्या?’’ जोर से हंसे विनोद. ‘‘हां, अब रोज देना है उसे गरम दूध, उसे अच्छा लगता है,’’ दोनों इस बात पर हंसीमजाक करते रहे. कुछ दिन बाद सुनयना चली गई. सब अपने रूटीन में व्यस्त थे.

देखने में तो सब बहुत अच्छा चल रहा था पर लतिका की हालत इन 3 महीनों में पस्त हो चुकी थी. प्यारी सी, लाड़प्यार से लिपटती, नखरे उठवाती बहू को किसी भी बात के लिए टोकने की लतिका की हिम्मत ही नहीं होती थी. एक दिन विनोद से कहा भी, ‘‘ऐसे नखरे तो सुनयना ने भी कभी नहीं उठवाए मु झ से.’’ एक दिन सब डिनर कर रहे थे. मयंक ने बहुत ही लगाव से पूछा, ‘‘मम्मी, अब आप को दीदी की कमी तो नहीं खलती न? वाणी तो आप के साथ अपनी मां की तरह ही रहती है न?’’ वाणी लतिका का चेहरा देख रही थी. लतिका ने उस के भोले से चेहरे पर उत्तर की प्रतीक्षारत आंखों में झांकते हुए कहा, ‘‘हां, हां, अपनी मां ही सम झती है,’’ वाणी बहुत खुश हुई, उठ कर लतिका के गले में बांहें डाल दीं, कहा, ‘‘मैं इस घर में आ कर कितनी खुश हूं, मां. बता नहीं सकती.’’ विनोद बस, लतिका को देख मुसकरा दिए. वे अपनी पत्नी के बढ़े हुए काम, उन का कमरदर्द, थकान सब सम झ रहे थे. पर वाणी को क्या, कैसे कहा जाए, सम झ ही नहीं आ रहा था. नया विवाह था. शुरू में ही कुछ कह कर मतभेद उत्पन्न नहीं करना चाहते थे. वाणी से और कोई शिकायत भी तो नहीं थी किसी को. सब को प्यार करती थी, खुश रहती थी.

पूरा दिन औफिस में रह कर शाम को मां, मां करती घर आती थी. लतिका कैसे किसी बात पर उसे टोके. वे तो बहुत शांतिपसंद और स्नेहिल स्वभाव की महिला थीं. वाणी को घर के कामों में हाथ बंटाने का कोई शौक न था, न उसे जरूरत महसूस हो रही थी. साफसफाई करने वाली मेड उमा ही लतिका का हाथ बंटा रही थी. एक दिन विनोद ने सलाह दी, ‘‘लतिका, उमा से कहो, खाना भी बना दिया करे. अपनी नई बेटी से तो तुम्हें कुछ हैल्प मिलने के आसार नजर नहीं आ रहे.’’ उमा पुरानी मेड थी, घर की सदस्या की तरह ही थी. वह अब लतिका के कहे अनुसार खाना भी बनाने लगी थी. अब लतिका को कुछ आराम हुआ, बैकपेन में कुछ राहत सी मिली. वाणी के आने से पहले वह सब संभाल तो रही थी पर जब से वाणी आई थी, उन का काम बहुत बढ़ गया था. पहले तो जो भी बनता था, तीनों खा लेते थे. पर वाणी के खानेपीने में खूब नखरे थे, उस के लिए कुछ अलग ही अचानक बनाना पड़ जाता था. मां, मां कर के कुछ फरमाइश करती तो लतिका कुछ मना कर ही न पाती थी. रात को सब डिनर कर रहे थे.

वाणी चुप सी थी. लतिका ने पूछा, ‘‘क्या हुआ, बेटा? थक गई क्या? बहुत चुप हो.’’ ‘‘मां.’’ ‘‘हां, बोलो न.’’ ‘‘एक बात कहूं?’’ ‘‘अरे, बोलो न क्या हुआ?’’ ‘‘मां, मु झे उमा आंटी के हाथ का खाना उतना अच्छा नहीं लग रहा है.’’ ‘‘पर वह वैसे ही बनाती है जैसा मैं उसे बताती हूं.’’ ‘‘पर मां, आप जैसी रोटी नहीं है उन की.’’ मयंक ने कहा, ‘‘तो क्या हुआ, ये भी काफी अच्छी हैं.’’ ‘‘पर मु झे मां के हाथ की रोटी अच्छी लगती है न.’’ ‘‘चुपचाप खा लो वाणी, खाना अच्छा है,’’ मयंक ने फिर कहा. पर वाणी तो अपनी तरह की एक ही बहू थी, बोली, ‘‘मां, बस मेरे लिए 2 रोटी बना दोगी कल से? प्लीज.’’ लतिका को धक्का सा लगा, क्या है यह लड़की. सम झ ही नहीं आया क्या कहे. वाणी ने फिर कहा, ‘‘बस, मेरी 2 रोटी बनाने में तो आप को तकलीफ नहीं होगी न, मां?’’ मयंक ने कहा, ‘‘अरे, चुपचाप खा लो जैसी बनी है. एक तो तुम कुछ भी काम नहीं करतीं, क्यों मां का काम बढ़ाती रहती हो?’’ वाणी ने उसे घूरा, ‘‘तुम चुप रहो, मैं अपनी मां से बात कर रही हूं, तुम्हें क्या परेशानी है?’’ विनोद और लतिका एकदूसरे का मुंह देख रहे थे, क्या कहें अब. लतिका ने कह दिया, ‘‘हां, बना दूंगी.’’ ‘‘ओह मां, आप कितनी अच्छी हैं, बिलकुल मेरी मां की तरह.

वे भी मेरी हर बात मान जाती हैं,’’ कहतेकहते उठ कर लतिका के गले में बांहें डाल दीं वाणी ने. सोने से पहले वाणी को गरम दूध का गिलास पकड़ा कर लतिका कमरे में आईं. आंखों पर हाथ रख कर लेट गईं. आज दिनभर उन की तबीयत ढीली ही थी. विनोद ने पूछा, ‘‘क्या हुआ?’’ ‘‘कुछ नहीं,’’ कहती वे मुसकराईं तो विनोद हंसे, ‘‘दूसरी बेटी के बारे में सोच रही हो न?’’ ‘‘सुनो.’’ ‘‘हां, बोलो न.’’ ‘‘क्या कोई उसे कह सकता है कि वह मु झे अपनी मां नहीं, सास ही सम झ ले. मैं सास ही भली,’’ दोनों हाथ जोड़ कर अपने माथे से लगा कर लतिका ने नाटकीय स्वर में कहा तो विनोद जोर से हंस पड़े.

दोस्ती में जाति का भेद

जहां दोस्ती होती है वहां भेदभाव की जगह नहीं रहती है. बहुत सारे ऐेसे उदाहरण हैं जहां दोस्ती में भेद को सही नहीं माना जाता. इस के बाद भी मनुवादी सोच और जातीय भेद के कारण दोस्ती में जाति का भेद होता है. आजादी के बाद लंबे समय तक इस का प्रभाव कम होता जा रहा था लेकिन हाल के 10-12 सालों में यह फिर से तेजी से बढ़ने लगा है. राजनीतिक बहस और सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया देने के कारण यह दिखने भी लगा है.

दोस्ती में जाति का भेद नया नहीं है. पौराणिक काल से यह होता आ रहा है. कर्ण और दुर्योधन की पुरानी कहानी है जिस की मिसाल दी जाती है. वहीं यह भी पता चलता है कि किस तरह से बाकी लोग कर्ण के साथ भेदभाव करते थे. महाभारत काल में राजा पांडू की पत्नी कुंती ने शादी से पहले ही कर्ण को जन्म दिया था. लोकलाज के कारण कर्ण को नदी में बहा दिया था. इस के बाद कर्ण का पालनपोषण नदी किनारे रहने वाले मछुआरे के घर में हुआ. इस कारण वे शूद्रपुत्र कहलाते थे. इस के कारण समाज में भेदभाव होता था.

हर कोई कर्ण को अपमानित करता था. बराबरी का योद्धा होने के बाद भी उस को सम्मान नहीं दिया जाता था. इस भेदभाव को दूर करने के लिए कौरव पुत्र दुर्योधन ने कर्ण को अंग देश का राजा बना दिया. उस के बाद कर्ण और दुर्योधन की दोस्ती जाति के भेदभाव से आगे निकल गई. कर्ण ने भी दोस्ती का पूरा हक अदा किया. महाभारत में अपने ही भाइयों के खिलाफ युद्ध किया. जातिगत भेद होने के बाद भी कर्ण और दुर्योधन की दोस्ती मशहूर है.

दोस्ती को ले कर बहुत सारी फिल्में बनीं, जिन में यह बताया गया कि दोस्ती में भेद ठीक बात नहीं होती है. जहां दोस्ती में भेद नहीं होता वहां दोस्ती मिसाल कायम करती है. ‘ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे, तोड़ेंगे दम मगर तेरा साथ न छोड़ेंगे…’ यह गाना 1975 में बनी फिल्म ‘शोले’ में अमिताभ बच्चन और धर्मेंद्र वाली जयवीरू की दोस्ती पर फिल्माया गया था. इस में ‘दोस्ती’ की भावनाओं को फिल्माया गया है. दोस्ती पर फिल्माया गया यह सब से चर्चित गीत है.

इस के पहले 1964 में ‘दोस्ती’ पर एक फिल्म भी बनी थी. इस में एक अपाहिज लड़के और एक अंधे लड़के के बीच दोस्ती हो जाती है. दोस्ती का मतलब होता है- एक प्यारा सा दिल जो कभी नफरत नहीं करता है. दोस्ती को ले कर तमाम तरह की परिभाषाएं बनी हैं. कुछ में यह कहा जाता है कि दोस्ती हमेशा समान विचार वाले लोगों के बीच होती है. कुछ लोग कहते हैं कि दोस्ती में कोई अमीरगरीब नहीं होता. दोस्ती में कोई ऊंचानीचा नहीं होता. दोस्ती में जाति और धर्म का कोई भेद नहीं होता है.

दोस्ती में जाति का भेद ठीक नहीं

हिंदी के मशहूर कहानीकार मुंशी प्रेमचंद ने दोस्ती को ले कर कई कहानियां लिखीं. उन में ‘गुल्ली डंडा’, ‘गोपाल मिट्ठू’ और ‘नादान दोस्त’ प्रमुख हैं. कई दूसरे रचनाकारों ने भी दोस्ती पर कहानियां लिखी हैं. प्रेम संबंधों के बाद सब से अधिक कहानियां दोस्ती पर ही लिखी गई हैं.

दोस्ती के महत्त्व को देखें तो यह पूरी दुनिया में मशहूर है. हर साल अगस्त के पहले रविवार को ‘मित्रता दिवस’ यानी ‘फ्रैंडशिप डे’ मनाया जाता है. इस में दोस्तीभरे संदेशों का आदानप्रदान किया जाता है. सोशल मीडिया के जमाने में दोस्ती का बाजारीकरण भी हो गया है. सोशल मीडिया का ही दोस्ती पर प्रभाव नहीं पड़ा है. जाति और धर्म का भी दोस्ती पर बहुत असर पड़ा है. भले ही कितनी कहानियां और फिल्में इस पर बनी हों पर दोस्ती में जाति भेद नजर आता है.

पहले के समय में स्कूलों में ऐसा माहौल और परिवेश रखा जाता था जहां जाति और धर्म की पहचान नहीं होती थी. आज के दौर में जाति और धर्म समाज के अंदर एक दरार डालने का काम कर रहा है. स्कूलों में धर्म की बातें होती हैं. युवा अपनी धार्मिक और जातीय पहचान न केवल मानते हैं, उस का दिखावा भी करते हैं. इस के बहाने जातीय श्रेष्ठता यानी ऊंची जाति का होने का दिखावा भी करते हैं. आज तमाम लोग अपनी गाडि़यों तक में जाति लिखवा कर चलते हैं. उत्तर प्रदेश पुलिस ने दिखावे के नाम पर जाति लिखने वाली गाडि़यों का चालान भी किया था. कहने का मतलब यह है कि जाति अब दिखावा बनती जा रही है. जातीय श्रेष्ठता के कारण दोस्ती में जाति का भेद होने लगा है. इस की वजह हमारे राजनीतिक और सामाजिक महौल का खराब होना है.

जातिगत संगठनों से बिगड़ी बात

जिस तरह से ज्यादातर लोग अपनी जाति पर गर्व करने लगे हैं. अपनी जाति के नेता को समर्थन देने लगे हैं उसी तरह से समाज में तमाम जातीय संगठन भी बनने लगे हैं, जिन में गैरजाति के दोस्त को नहीं बुलाते हैं. अपनी जाति को ऊंचा और दूसरे की जाति को कमतर सम झना जातीय भेदभाव को बढ़ावा देता है. इस वजह से जाति में भेद होने लगा है. पहले इस को छुआछूत की तरह देखा जाता था. आज समाज के देखने में तो कोई भेद नहीं करता पर असल में भेद होता है. यह पहले से ज्यादा खतरनाक बात है. जातिगत भेदभाव पुराणों के समय से चला आ रहा है. हर किसी के मन में यह बात घुसा दी जाती है कि जाति का भेद होता है.

यही वजह थी कि महात्मा गांधी ने इस भेदभाव को खत्म करने के लिए छुआछूत का विरोध किया. जब भारत आजाद हुआ तो छुआछूत को खत्म करने के लिए कानून भी बना. 1955 में अस्पृश्यता कानून बना जिस को छुआछूत कानून भी माना जाता है. इस के तहत 6 माह से 2 साल तक की सजा का प्रावधान है.

आजादी के बाद देश में एससीएसटी आरक्षण दिया गया. जिस के बाद से ऊंची जाति के लोगों को यह लगने लगा जैसे उन के हक की सरकारी नौकरी एससीएसटी छीन ले रहे हैं. यही वजह है कि ऊंची जातियों के लोग एससीएसटी के साथ भेदभाव करने लगे हैं. अब इस की  झलक दिखने लगी है.

सोशल मीडिया पर भेदभाव

पहले लोगों के विचार अपने मन के अंदर रहते थे या वे आपस में बात करते थे, जिस से दूसरों को पता नहीं चलता था. सोशल मीडिया पर विचारों को व्यक्त करने के बाद दोस्तों को एकदूसरे के विचार सम झ आने लगे, जिस के बाद दोस्ती में फर्क पड़ने लगा.

लखनऊ में 5-6 दोस्तों का एक ग्रुप बना था. उस में ऊंची जाति के अलावा एससी जाति के लोग भी थे. 2019 के लोकसभा चुनाव में जब सपा व बसपा के बीच गठबंधन हो गया और यह लगा कि दलितपिछड़ों के एकजुट होने से भाजपा और मोदी हार जाएंगे तो आपस में बहस होने लगी. पहले तो उस बहस को राजनीतिक माना गया. धीरेधीरे यह बहस गंभीर होती गई. आपस में दूरियां बढ़ती देख दोस्तों ने तय किया कि अब ग्रुप में राजनीतिक बातचीत नहीं होगी.

इस के बाद अपनीअपनी सोशल मीडिया प्रोफाइल पर जातिगत स्टेटस पोस्ट करने लगे. जिस से एकदूसरे में भेद होने लगा. धीरेधीरे आपस में बातें होनी कम हो गईं. दूरियां बढ़ने लगीं. ग्रुप टूट गया. देखा यह गया कि राजनीति और आरक्षण ने जाति के पुराने भेदभाव को फिर से उभार दिया है. पिछले 10 से 12 सालों में यह भेदभाव तेजी से बढ़ रहा है.

सोशल मीडिया के जरिए लोग प्रतिक्रिया देने लगे हैं, जिस को दूसरे लोग सम झने लगे हैं. पहले गांवों में ऊंची और नीची जाति के घर अलगअलग बनते थे. अब शहरों में भी लोगों के मन में यह इच्छा जरूर रहती है कि उन की जाति के लोग आसपास रहें. इस को प्राथमिकता दी जाने लगी है. इस भेदभाव के कारण कई बार एससीएसटी लोग भी अपने नाम के आगे ‘सरनेम’ ऐसे लगाने लगे हैं जिस से जाति का पता न चल सके.

महिलाओं ने किया कमाल, अचारपापड़ के बिजनैस ने बनाया मालामाल

बिहार के समस्तीपुर जिले के पूसा प्रखंड के गांव ठहरा गोपालपुर की रहने वाली मीना देवी के परिवार को कुछ साल पहले तक माली तंगी का सामना करना पड़ रहा था. इस की वजह यह थी कि घर के सदस्यों का खर्च घर के पुरुष सदस्यों पर ही निर्भर था और पुरुष सदस्यों की कमाई भी ऐसी नहीं थी, जिस से परिवार का भरणपोषण सही से हो सके.

ऐसे हालात केवल मीना देवी के ही नहीं थे, बल्कि गांव में ज्यादातर परिवारों की हालत भी कुछ ऐसी ही थी कि उन के घर का खर्च बड़ी मुश्किल से चल पाता था.

कुछ साल पहले घर की माली हालत से परेशान मीना देवी की मुलाकात बिहार में महिलाओं के सशक्तीकरण के मसले पर जमीनी लेवल पर काम कर रही संस्था आगा खान ग्राम समर्थन कार्यक्रम भारत यानी एकेआरएसपीआई के कार्यकर्ताओं से हुई, जिन से उन्हें पता चला कि यह संस्था ऐक्सिस बैंक के सहयोग से पूसा प्रखंड के कई गांवों की महिलाओं की हालत को सुधारने के मसले पर काम कर रही है.

मीना देवी को एकेआरएसपीआई संस्था के कार्यकर्ताओं से मिल कर लगा कि वह भी संस्था के साथ जुड़ कर अपने परिवार की माली हालत सुधार सकती है.

मीना देवी ने एकेआरएसपीआई के कार्यकर्ताओं से अपने जैसी तमाम महिलाओं की हालत को सुधारने की इच्छा जाहिर की. इस पर एकेआरएसपीआई के कार्यकर्ताओं ने मीना देवी को गांव की अपने जैसी महिलाओं को संगठित कर छोटे बचत की आदतों को बढ़ावा देने के लिए स्वयंसहायता समूह बनाने की सलाह दी और यह भरोसा दिलाया कि उन की संस्था उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के लिए जरूरी ट्रेनिंग सहित अन्य चीजें मुहैया कराने का प्रयास करेगी.

मीना देवी को यह बात जंच गई और उस ने एकेआरएसपीआई की देखरेख में अपने जैसे हालात से जूझ रही गांव की महिलाओं को एकजुट कर पहली बार बैठक कर अपनी इच्छा जाहिर की.

इस बैठक में आई महिलाओं को मीना देवी की बात जंच गई और मीना देवी जैसी 15 महिलाओं ने एकजुट हो कर अटल स्वयंसहायता समूह का गठन किया. इस के जरीए इन महिलाओं ने छोटीछोटी बचत शुरू कर दी.

महिलाओं के इस हौसले को देखते हुए एकेआरएसपीआई का समयसमय पर ऐक्सिस बैंक की मदद से ट्रेनिंग और मार्गदर्शन भी मिलता रहा. आखिरकार इन महिलाओं का समूह इसी बचत के पैसों से घर की मुसीबत में परिवार को उबारने में काफी मददगार साबित होने लगा था.

महिलाओं द्वारा बनाए गए अटल स्वयंसहायता समूह में जब कुछ पैसे इकट्ठे हो गए, तो इन महिलाओं ने समूह के जरीए छोटामोटा बिजनैस करने का विचार बनाया. फिर बैठक में तय किया गया कि इस समूह में से कुछ इच्छुक महिलाएं चाहें तो अचार, पापड़, बड़ी बनाने का काम शुरू कर सकती हैं. इस में 5 ऐसी महिलाएं आगे आईं, जो अचार, पापड़, बड़ी बना कर अपने घर की माली हालत को सुधारने की इच्छा रखती थीं.

पारंपरिक बिहारी तरीके से की शुरुआत

मीना देवी ने अपने महिला समूह से नूतन देवी और इंदू देवी सहित दूसरी महिलाओं को साथ ले कर अचार, पापड़, बड़ी बनाने का काम शुरू किया, तो जरूरी ट्रेनिंग एकेआरएसपीआई द्वारा दिलाई गई.

लेकिन इस समूह से जुड़ी महिलाओं ने अचार, पापड़, बड़ी बनाने की शुरुआत उस पारंपरिक बिहारी तरीके से ही की, जैसे गांवों में अकसर महिलाएं बनाया करती हैं, जिस से लोगों को उन के प्रोडक्ट स्वाद और शुद्धता में बाजार में मौजूद बड़े ब्रांड वाले प्रोडक्ट पर भारी पड़ने लगे.

गोपालपुर ठहरा गांव की महिलाओं द्वारा शुरू किया अचार, पापड़, बड़ी का बिजनैस जल्दी ही आसपास के गांवों में मशहूर होने लगा. जो भी उन से एक बार प्रोडक्ट खरीदता, खूब तारीफ भी करता.

इन महिलाओं द्वारा शुरू किया गया अचार, पापड़, बड़ी का बिजनैस बहुत जल्दी ही जिले में मशहूर हो गया और उस की डिमांड भी बढ़ने लगी. इस के बाद मीना देवी के समूह से जुड़ी महिलाओं का हौसला और भी बढ़ गया.

इन महिलाओं ने नैचुरल तरीके से उड़द की बड़ी, हींग सहित कई फ्लेवर में चावल आटे का पापड़, आंवला, आम आदि के अचार सहित कई चटपटी और स्वादिष्ठ चीजें बनानी शुरू कीं, जो खाने का जायका बढ़ाने के साथ ही सेहतमंद भी बनाने वाला होता है.

इस समूह की नूतन और इंदु दोनों ही बताती हैं कि हम पारंपरिक बिहारी तरीके से ही अचार बनाते हैं. इस के लिए हम वर्षों से चली आ रही दादी, सास और मां के द्वारा बनाई गई रेसिपी के अनुसार धूप में सुखा कर अचार को तैयार करते हैं.

खुद ही संभाला है मार्केटिंग का जिम्मा

एकेआरएसपीआई में डवलपमैंट और्गैनाइजर पद पर काम करने वाली अंकिता ने बताया कि अटल स्वयंसहायता समूह से जुड़ी महिलाओं के प्रोडक्ट की मांग जैसेजैसे बढ़ने लगी, तो उन्हें प्रोडक्ट के ट्रांसपोर्टेशन में कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ा.

ऐसे में एकेआरएसपीआई द्वारा ऐक्सिस बैंक के सहयोग से इस समूह की महिलाओं को ठेला मुहैया कराया गया, जिस से ये महिलाएं अपने प्रोडक्ट को दूसरे गांवों में बेच सकें.

एकेआरएसपीआई में ही डवलपमैंट और्गैनाइजर विपिन कुमार ने बताया कि गोपालपुर ठहरा गांव की ये महिलाएं खुद ही प्रोडक्ट बनाती हैं और मार्केटिंग का जिम्मा भी खुद ही संभाले हुए हैं.

इन महिलाओं द्वारा बनाया जाने वाला अचार, पापड़ सहित दूसरे प्रोडक्ट की डिमांड बड़ेबड़े फंक्शन, शादीविवाह में भी खूब है, जिसे समूह की महिलाएं खुद ही ठेले से पहुंचाने का काम करती हैं.

बैंक ने दिया साथ तो बनती गई बात

गोपालपुर ठहरा गांव की महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने में जहां एकेआरएसपीआई व ऐक्सिस बैंक सहयोग कर ही रहे थे, वहीं जिस बैंक में अटल स्वयंसहायता समूह का खाता था, उस बैंक ने महिलाओं की बचत और जज्बे को देखते हुए उन्हें एक लाख रुपए का लोन भी दिया, जिस से ये महिलाएं अपने बिजनैस को और भी आगे बढ़ा सकें.

बैंक द्वारा दिए लोन को भी समूह की महिलाओं ने समय से चुकता कर दिया  है और यह सब संभव हुआ है उन के द्वारा जायकेदार प्रोडक्ट की बदौलत.

आपसी सूझबूझ से होता है लाभ का बंटवारा

गोपालपुर ठहरा गांव की मीना, नूतन, इंदू जैसी तमाम महिलाएं, जो अचार, पापड़ बनाने और मार्केटिंग से जुड़ी हुई हैं, उन्हें इस से इतनी आमदनी हो जाती है, जिस से वे अपने परिवार का खर्च आसानी से तो निकाल लेती ही हैं, साथ में वे बचत भी कर लेती हैं. इस से उन के घर के पुरुषों की कमाई पूरी तरह से बच जाती है.

ये महिलाएं प्रोडक्ट बेचने से हुए लाभ का बंटवारा लागत को निकाल कर साप्ताहिक रूप से करती हैं, जिस में आज तक किसी तरह का कोई विवाद नहीं हुआ.

बड़ेबड़े हाट और मेलों से आता है बुलावा

गोपालपुर ठहरा गांव में बने अटल स्वयंसहायता समूह की महिलाओं के प्रोडक्ट की गूंज पूरे बिहार में है. यही वजह है कि इन महिलाओं को बड़ेबड़े हाट और मेलों में प्रोडक्ट का स्टाल लगाने का औफर आता रहता है, जहां ये महिलाएं स्टाल लगा कर अच्छी आमदनी कर लेती हैं.

इन महिलाओं द्वारा अभी तक केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा, समस्तीपुर सहित बिहार सरकार द्वारा लगाई जा रही तमाम बड़ी प्रदर्शनियों और मेलों से बुलावा आता रहा है, जहां ये महिलाएं अपने प्रोडक्ट का स्टाल लगा कर आमदनी करती हैं.

बिहार में महिलाओं के बदलते हालात के मसले पर एकेआरएसपीआई के बिहार प्रदेश के रीजनल मैनेजर सुनील कुमार पांडेय  ने बताया कि एकेआरएसपीआई बिहार की गंवई महिलाओं की सामाजिक और माली हालत सुधारने के लिए सघन रूप से काम कर रही है, जिस का बहुत ही सकारात्मक परिणाम देखने को मिल रहा है.

बिहार प्रदेश में एकेआरएसपीआई के कृषि प्रबंधक डा. बसंत कुमार ने बताया कि बिहार में गांवदेहात की महिलाओं की हालत कुछ साल पहले तक बहुत अच्छी नहीं हुआ करती थी, लेकिन एकेआरएसपीआई द्वारा ऐक्सिस बैंक के सहयोग से उन की माली और सामाजिक हालत को सुधारने के लिए शुरू गए प्रयासों का असर बहुत अच्छा रहा है.

Mother’s Day 2022: खुश रहो गुड़िया- गुड़िया के साथ कैसी घटना घटी?

एक दिन पहले गुडि़या ने फोन किया था, ‘मम्मा, जाने क्यों पिछले कुछ दिनों से आप की बहुत याद आ रही है. राजीव की 2 दिन की छुट्टी है, हम लोग आप से मिलने आ रहे हैं.’

मैं ने रात को ही दहीबडे़ और आलू की कचौडि़यों की तैयारी कर के रख दी थी. मेरी बेटी गुडि़या, दामाद राजीव और दोनों नातिनें गीतूमीतू सुबह की ट्रेन से आ रहे थे पर सुबहसुबह ही टेलीविजन पर समाचार आया कि जिस ट्रेन से वे लोग आ रहे थे वह दुर्घटनाग्रस्त हो गई.

यह खबर सुनते ही मैं गश खा कर गिर पड़ी और पूरा परिवार सकते में था. पति, बेटा और बहू सब अपने दुखों पर नियंत्रण रख कर मुझे संभाल रहे थे. मैं रहरह कर अपनी चेतना खो बैठती थी.

चेतना जागृत होने पर यह क्रूर सचाई मेरे सामने थी कि मेरी गुडि़या अपनी अबोध गीतूमीतू और पति राजीव को छोड़ कर इस संसार से जा चुकी थी. समझाने वाले मुझे समझाते रहे पर मैं यह मानने को कहां तैयार थी कि मेरी गुडि़या अब हमारे बीच नहीं है और इसे स्वीकारने में मुझे वर्षों लग गए थे.

राजीव की आंखों में कैसा अजीब सा सूनापन उभर आया था और वह दोनों नन्ही कलियां इतनी नादान थीं कि उन्हें इस का अहसास तक नहीं था कि कुदरत ने उन के साथ कितना क्रूर खेल खेला है. उन की आंखें अपनी मां को ढूंढ़तेढूंढ़ते थक गईं. आखिर में उन के मन में धीरेधीरे मां की छवि धुंधली पड़तेपड़ते लुप्त सी हो गई और उन्होंने मां के बिना जीना सीख लिया.

दादी व बूआ के भरपूर लाड़प्यार के बावजूद मुझे गीतूमीतू अनाथ ही नजर आतीं. कभी दोपहर में बालकनी में खड़ी हो जाती तो देखती नन्हेमुन्ने बच्चे रंगबिरंगी यूनीफार्म में सजे अपनीअपनी मम्मी की उंगली पकड़ कर उछलतेकूदते स्कूल जा रहे हैं. उन्हें देख कर मेरे सीने में हूक सी उठती कि हाय, मेरी गीतूमीतू किस की उंगली पकड़ कर स्कूल जाएंगी. किस से मचलेंगी, किस से जिद करेंगी कि मम्मी, हमें टौफी दिला दो, हमें चिप्स दिला दो. और यही सब सोचते- सोचते मेरा मन भर उठता था.

जब से उड़ती- उड़ती सी यह खबर मेरे कानों में पड़ी है कि राजीव की मां अपने बेटे के पुन- र्विवाह की सोच रही हैं तो लगा किसी ने गरम शीशा मेरे कानोें में डाल दिया है. कई लड़की वाले अपनी अधेड़ बेटियों के लिए राजीव को विधुर और 2 बेटियों का बाप जान कर सहजप्राप्य समझने लगे थे.

राजीव की दूसरी शादी का मतलब था मासूम कलियों को विमाता के जुल्म व अत्याचार की आग में झोंकना. इस सोच ने मेरी बेचैनी को अपनी चरमसीमा पर पहुंचा दिया था. अब राजीव के पुनर्विवाह को रोकना मेरे लिए पहला और सब से अहम मकसद बन गया.

मैं ने अपनी चचेरी बहन, जो राजीव के घर से कुछ ही दूरी पर रहती थी, को सख्त हिदायत दे डाली कि किसी भी कीमत पर राजीव की दूसरी शादी नहीं होनी चाहिए. कोई लड़की वाला राजीव या उस के घरपरिवार के बारे में जानकारी हासिल करना चाहे तो उन की कमियां बताने में कोई कोरकसर न छोडे़.

राजीव के साथ अपनी बेटी की शादी की इच्छा ले कर जो भी मातापिता मेरे पास उन के घरपरिवार की जानकारी लेने आते, मैं उन के सामने उस परिवार के बुरे स्वभाव का कुछ ऐसा चित्र खींचती कि वह दोबारा वहां जाने का नाम नहीं लेते थे और अपनी इस सफलता पर मैं अपार संतुष्टि का अनुभव करती थी.

मेरे बहुत अनुरोध पर उस दिन राजीव गीतूमीतू को मुझ से मिलाने ले आया. इस बार वह काफी खीजा हुआ सा लग रहा था. बातबात में गीतूमीतू को झिड़क बैठता. पता नहीं, मेरे कुचक्रों से या किसी और वजह से उस का विवाह नहीं हो पा रहा था और वह एकाकी जीवन जीने को विवश था.

मेरी समधिन बारबार फोन पर मुझ से अनुरोध करतीं, ‘बहनजी, कोई अच्छी लड़की हो तो बताइएगा. मैं चाहती हूं कि मेरी आंखों के सामने राजीव का घर फिर से बस जाए. कल को बेटी सुधा भी ब्याह कर अपने घर चली जाएगी तो इन बच्चियों को संभालने वाला कोई तो चाहिए न.

प्रकट में तो मैं कुछ नहीं कहती पर मेरी गुडि़या के बच्चों को सौतेली मां मिले, यह मेरे दिल को मंजूर न था. आखिर तिनकातिनका जोड़ कर बसाए अपनी बेटी के घोंसले को मैं किसी और का होता हुआ कैसे देख सकती थी.

मेरी लाख कोशिशों के बावजूद उन्हें यह पता लग गया कि राजीव का घर बसाने के मामले में जड़ काटने का काम मैं खुद कर रही हूं तो उन्हें सतर्क होना ही था और उन के सतर्क होने का नतीजा यह निकला कि राजीव ने अपनी सहकर्मी से विवाह कर लिया.

इस मनहूस खबर ने तो मुझे तोड़ कर ही रख दिया. हाय, अब मेरी गुडि़या के बच्चों का क्या होगा. अब मैं ने लगातार राजीव और उस की मां को कोसना शुरू कर दिया.

अब दिनोदिन मेरी बेचैनी बढ़ने लगी. जाने कितनी सौतेली मांओं के क्रूरता भरे किस्से मेरे दिमाग में कौंधते रहते और एक पल भी मुझे चैन न लेने देते. मन ही मन में गीतूमीतू को सौतेली मां की झिड़कियां खाते, पिटते और कई तरह के अत्याचारों को तसवीर में ढाल कर देखती रहती और अपनी बेबसी पर खून के आंसू रोती.

उस दिन मैं घर में अकेली ही थी. अचानक दरवाजे की घंटी बजी. मैं ने उठ कर दरवाजा खोला. सामने जो खड़ा था उसे देख कर मेरी त्यौरियां चढ़ गईं. मैं तो दरवाजा ही बंद कर लेती पर बगल में मुसकराती गीतूमीतू को देख कर मैं अपने गुस्से को पी गई.

राजीव ने नमस्ते की और उस के साथ जो औरत खड़ी थी उस ने भी कुछ सकुचाते हुए हाथ जोड़ कर नजरें झुका लीं.

राजीव ने कुछ अपराधी मुद्रा में कहा, ‘मांजी, मुझे माफ कीजिएगा कि आप को बिना बताए मैं ने फिर से विवाह कर लिया. मैं तो यहां आने में संकोच का अनुभव कर रहा था पर नेहा की जिद थी कि वह आप से मिल कर आप का आशीर्वाद जरूर लेगी.

मैं ने क्रोध भरी नजरों से नेहा को देखा पर उस के होंठों पर सरल मुसकान खेल रही थी. उस ने अपने सिर पर गुलाबी साड़ी का पल्लू डाला और मेरे चरण स्पर्श करने को झुकी पर उसे आशीर्वाद देना तो दूर, मैं ने अपने कदमों को पीछे खींच लिया. नेहा ने इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखाई, शायद वह इस के लिए तैयार थी.

बहुत दिनों बाद गीतूमीतू को अनायास ही अपने पास पा कर अपनी ममता लुटाने का जो अवसर आज मुझे मिला था उसे मैं किसी कीमत पर खोना नहीं चाहती थी इसलिए मजबूरीवश सब को अंदर आने के लिए कहना पड़ा.

राजीव तो बिना कहे ही सोफे पर बैठ गया और अपने माथे पर उभर आए पसीने को रूमाल से जज्ब करते हुए कहीं खो सा गया. गीतूमीतू ने खुद को टेलीविजन देखने में व्यस्त कर लिया पर नेहा थोड़ी देर ठिठकी सी खड़ी रही फिर स्वयं रसोई में जा कर सब के लिए पानी ले आई.

उस ने सब से पहले पानी के लिए मुझ से पूछा पर मैं ने बड़ी रुखाई से मना कर दिया. उस ने गीतूमीतू और राजीव को पानी पिलाया और फिर खुद पिया. इस के बाद मेरे रूखे व्यवहार की परवा न करते हुए वह मेरे पास ही बैठ गई.

पानी पी कर राजीव अचानक उठ कर बाहर चला गया. उस के चेहरे से मुझे लगा कि शायद यहां आ कर उस के मन में मेरी गुडि़या की याद ताजा हो गई थी पर अब क्या फायदा. मेरी गुडि़या से यदि वह इतना ही प्यार करता तो उस का स्थान किसी और को क्यों देता. और उस पर से मुझ से मिलाने के बहाने मेरे जख्मों पर नमक छिड़कने के लिए उसे यहां ले आया है. मेरी सोच की लकीरें मेरे चेहरे पर शायद उभर आई थीं तभी नेहा उन लकीरों को पढ़ कर अपराधबोध से पीडि़त हो उठी.

अगले ही पल नेहा ने अपने चेहरे से अपराधभाव को उतार फेंका और सहज हो कर पूछने लगी, ‘मांजी, आप की तबीयत ठीक नहीं है शायद? मैं अभी चाय बना कर लाती हूं.’

राजीव बाहर से अपने को सहज कर वापस आ गया. गीतूमीतू दौड़ती हुई राजीव की गोद में चढ़ गईं. नेहा चाय और रसोई के डब्बों में से ढूंढ़ कर बिस्कुटनमकीन भी ले आई. सब से पहले उस ने चाय मुझे ही दी, न चाहते हुए भी मुझे चाय लेनी ही पड़ी.

मीतू अचानक राजीव की गोद से उतर कर नेहा की गोद में बैठ गई. बिस्कुट कुतरती मीतू बारबार नेहा से चिपकी जा रही थी और नेहा उस के माथे पर बिखर आई लटों को पीछे करते हुए उस का माथा सहला रही थी. मीतू का इस तरह दुलार होता देख गीतू भी नेहा की गोद में जगह बनाती हुई चढ़ बैठी और नेहा ने उसे भी अपने अंक में समेट लिया तो गीतूमीतू दोनों एकसाथ खिलखिला कर हंस पड़ीं. पता नहीं उन की हंसी मेरे रोने का सबब क्यों बन गई. मैं आंखों के कोरों में छलक आए आंसुओं को कतई न छिपा सकी.

तभी नेहा ने दोनों बच्चों को गोद से उतार कर आंखों ही आंखों में राजीव को जाने क्या इशारा किया कि वह दोनों बच्चों को ले कर बाहर चला गया. नेहा खाली हो गया कप जो अभी भी मेरे हाथों में ही था, को ले कर सारे बरतन समेट रसोई में रख आई और मेरे एकदम करीब आ कर बैठ गई. फिर मेरे हाथों को अपने कोमल हाथों में ले कर जैसे मुझे आश्वस्त करती हुई बोली, ‘मांजी, मैं आप का दुख समझ सकती हूं. आप ने अपने कलेजे के टुकडे़ को खोया है और मैं यह भी जानती हूं कि मूल से ब्याज ज्यादा प्यारा होता है. आप बेहद आशंकित हैं कि कहीं सौतेली मां आ कर आप की नातिनों पर अत्याचार करना न शुरू कर दे और उन के पिता को उन से दूर न कर दे.

‘मेरा विश्वास कीजिए मांजी, जब यह बात मुझे पता चली तो मैं ने मन में यह ठान लिया कि मैं आप से मिल कर आप की आशंका जरूर दूर करूंगी. सभी ने तो मुझे रोका था कि आप पता नहीं मुझ से कैसे पेश आएंगी लेकिन मुझे यह पता था कि आप का वह व्यवहार बच्चों की असुरक्षा की आशंका से ही प्रेरित होगा.’

मेरे हाथों पर नेहा के  कोमल हाथों का हल्का सा दबाव बढ़ा और थोड़ा रुक कर उस ने फिर कहना शुरू किया, ‘मांजी, आप अपने दिल से यह डर बिलकुल निकाल दीजिए कि मैं गीतू व मीतू के साथ बुरा सुलूक करूंगी. आप निश्ंिचत हो कर रहिए ताकि आप का स्वास्थ्य सुधर सके,’ नेहा ने धीरे से अपना हाथ छुड़ा कर मेरा कंधा थपथपाया और मेरी आंखों में झांकती हुई बोली, ‘मांजी, मेरी विनती है कि मुझे भी आप अपनी बेटी जैसी ही समझें. मेरा आप से वादा है कि आप बच्चों से मिलने को नहीं तरसेंगी. हम उन्हें आप से मिलाने लाते रहेंगे.’

नेहा की बात समाप्त भी न होने पाई थी कि राजीव व बच्चे आ गए. दोनों बच्चे दौड़ कर नेहा की टांगों से लिपट गए और ‘मम्मी घर चलो,’ ‘मम्मी घर चलो’ की रट लगाने लगे.

नेहा ने उन्हें गोद में बिठाते हुए कहा, ‘चलते हैं बेटे, पहले आप नानी मां को नमस्ते करो.’

गीतूमीतू ने एकसाथ अपनी छोटीछोटी हथेलियां जोड़ कर तोतली भाषा में मुझे नमस्ते की. मेरे अंदर जमा शिलाखंड पिघलने को आतुर होता सा जान पड़ा. राजीव व नेहा ने चलने की इजाजत मांगी.

उन्हें कुछ पल रुकने को कह कर मैं अंदर गई और अलमारी से गीतूमीतू को देने के लिए 100-100 के 2 नोट निकाले तो लिफाफे के नीचे से झांकती नीली कांजीवरम् की साड़ी ने मेरा ध्यान आकृष्ट किया. साड़ी देखते ही मेरी आंखें भर आईं क्योंकि यह साड़ी मैं अपनी गुडि़या को देने के लिए लाई थी. साड़ी का स्पर्श करते ही मेरे हाथ कांपने लगे पर न जाने कैसे मैं वह साड़ी उठा लाई और टीके की थाली भी लगा लाई.

टीके के बाद मेरे पैर छू कर नेहा ने मीतू को गोद में उठाया और गीतू की उंगली पकड़ कर आटो में बैठने चल दी. आटो में बैठने से पहले नेहा ने मुझे पीछे मुड़ कर देखा. पता नहीं उस की आंखों में मैं ने क्या देखा कि मेरी आंखें झरझर बरसने लगीं. आंसुओं के सैलाब ने आंखों को इतना धुंधला कर दिया कि कुछ भी दिखना संभव न रहा.

जब धुंध छंटी तो सामने से जाती नेहा में मुझे अपनी गुडि़या की छवि का कुछकुछ आभास होने लगा. अब मुझे लगने लगा कि गुडि़या के जाने के बाद मैं जिस डर व आशंका के साथ जी रही थी वह कितना बेमानी था.

एक सवाल मन को मथे जा रहा था कि मैं जो करने जा रही थी क्या वह उचित था?

आज नेहा से मिल कर ऐसा लगा कि मेरी समधिन ने मुझ से छिपा कर राजीव का पुनर्विवाह कर के बहुत ही अच्छा काम किया, वरना मैं तो अपनी नातिनों की भलाई सोच कर उन का बुरा करने ही जा रही थी. कभी अपनी हार भी इतनी सुखदाई हो सकती है यह मैं ने आज नेहा से मिलने के बाद जाना. राजीव के चेहरे पर छाई संतुष्टि और गीतूमीतू के लिए नेहा के हृदय से छलकता ममता का सागर देख कर मैं भावविभोर थी.

मैं यह सोचने पर विवश थी, कितना बड़ा दिल है नेहा का. एक तो उसे विधुर पति मिला और उस पर से 2 अबोध बच्चियों के पालनपोषण की जिम्मेदारी. फिर भी वह मुझे मनाने चली आई. मुझे नेहा अपने से बहुत बड़ी लगने लगी.

अब मुझ से और नहीं रहा गया. बहुत दिनों बाद मैं ने राजीव के यहां फोन लगाया. रुंधे कंठ से इतना ही पूछ पाई, ‘‘ठीक से पहुंच गई थीं, बेटी?’’

‘‘जी, मम्मीजी,’’ नेहा का भी गला भर आया था. मेरे गले और दिल से एकसाथ निकला, ‘‘खुश रहो, मेरी गुडि़या.’’

 

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