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Crime: लिफ्ट का बहाना, कहीं लुट न जाना

अगर आप राष्ट्रीय राजमार्गों पर अपने या अनजान वाहनों से सफर करते हैं और लिफ्ट लेने या देने में यकीन रखते हैं तो सावधान हो जाइए. क्योंकि इन दिनों राह चलते लूटमारी करने वाले गैंग विविध वेशों और परिस्थितियों में आप को लूट या हत्या का शिकार बनाने के लिए मंडरा रहे हैं. पढि़ए नितिन सबरंगी का लेख.

आप घर से दफ्तर, किसी टूर या अन्य काम से निकलते हैं तो घर सुरक्षित वापस आ जाएंगे या किसी अनहोनी का शिकार नहीं होंगे, इस बात की कोई गारंटी नहीं. वाहन नहीं है तो हो सकता है रास्ते में कहीं लिफ्ट लें और यदि वाहन है तो हो सकता है दयाभाव मन में आए और आप किसी को लिफ्ट दे दें लेकिन लिफ्ट का चक्कर कई बार माल और जान दोनों पर भारी पड़ जाता है. राहजनी करने वालों की गिद्ध दृष्टि सड़कों पर शिकार तलाशती रहती है और आप को पता भी नहीं चलता. जो जाल में फंसता है उसे कोई नहीं बचा सकता.

राष्ट्रीय राजमार्गों पर ऐसे कई खतरनाक गिरोह सक्रिय हैं जो लिफ्ट दे कर लोगों को लूटते हैं. मामूली लालच में वे हत्या करने से भी नहीं चूकते. चारपहिया वाहन चालकों से लिफ्ट लेने में भी ये माहिर खिलाड़ी होते हैं. वाहन चालक झांसे में आ जाए, इस के लिए वे अपने साथ महिला व बच्चों को भी रखते हैं. लूटने वालों ने अनोखे तरीके ईजाद किए हुए हैं. अनजाने में लोग इन के शिकार हो जाते हैं.

डा. सुमन त्यागी, उत्तर प्रदेश के कसबा किठौर में निजी क्लीनिक चलाती थीं. एक दिन वे क्लीनिक के लिए निकलीं, लेकिन रहस्यमय हालात में लापता हो गईं. उन का मोबाइल भी स्विच औफ हो गया. परिजनों को चिंता हुई. इंतजार के बाद गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज हुई. जम कर खोजबीन हुई. पार्षद पति डा. ब्रजेश त्यागी व उन से जुड़े लोगों ने हंगामा किया, जाम लगाया और पुलिस पर नाकामी का आरोप लगाया.

पुलिस ने अपहरण की धाराओं में मामला भी दर्ज कर लिया. सुमन को जमीन निगल गई थी या आसमान, कोई नहीं जानता था. कई महीने तक भी उन के जिंदा या मुर्दा होने का कुछ पता न चला. परिजनों ने सूचना देने वाले को 5 लाख रुपए का इनाम देने के पोस्टर भी कई स्थानों पर चस्पां कराए. डेढ़ साल के बाद भी सुमन का कोई सुराग नहीं लगा. परिजन व पुलिस दोनों ही थक कर शांत बैठ गए थे कि अचानक 13 जून को इस का राज खुल गया.

गाजियाबाद जिले के साहिबाबाद पुलिस ने बावरिया गिरोह के 5 बदमाशों को गिरफ्तार किया. उन्होंने राजमार्गों पर होने वाली लूट व हत्याओं की कई वारदातों का इकबाल किया. इसी गिरोह ने कुबूल किया कि डा. सुमन त्यागी को भी उस ने ही अपनी जीप में लिफ्ट दे कर पहले लूट का शिकार बनाया और फिर गला दबा कर हत्या कर के शव को नहर में फेंक दिया.

फेंक देते थे नहर में शव

बेहद खूंखार इस गैंग ने दिल्ली, गाजियाबाद, मेरठ, बुलंदशहर, बागपत, अलीगढ़, नोएडा व हापुड़ जैसे स्थानों को अपने निशाने पर रखा हुआ था. गिरोह का लूट का तरीका बिलकुल अलग था. ये लोग अपने पास बोलेरो जीप रखते थे. बस अड्डों पर बस के इंतजार में खड़े लोगों को बैठा लेते थे. लोग आसानी से झांसे में आ जाएं, इस के लिए अपनी पत्नी व बच्चों को भी बैठा कर रखते थे. रास्ते में लूटपाट कर के उन्हें सड़क पर हत्या कर के किसी जंगल या नहर में शव फेंक देते थे. गिरोह ने इसी तरह 100 से ज्यादा वारदातें कीं. पकड़े जाने के डर से ये इलाका बदलते रहते थे. हत्या व लूट के कई मामलों से परदा तो उठ गया, लेकिन इस के सरगना को पुलिस नहीं पकड़ सकी.

गाजियाबाद के तत्कालीन एसएसपी नितिन तिवारी का कहना है, ‘‘लोगों को अनजान लोगों व डग्गामारी करने वालों के वाहनों में बैठने से बचना चाहिए. पकड़े गए बदमाशों के अलावा और भी बदमाश हैं जो ऐसी ही वारदातें करते हैं. हम उन्हें पकड़ने की कोशिश कर रहे हैं.’’

नएनए हथकंडे

हाईवे पर लूट के कई तरीके हैं. कोई लिफ्ट दे कर लूटता है तो कोई ले कर. कोई पंक्चर होने की बात कर के तो कोई पैर पर गाड़ी चढ़ने की बात कह कर. कुश शर्मा नोएडा की एक मोबाइल कंपनी में जौब करता है. अपने परिजनों से मिल कर वह स्विफ्ट कार में सवार हो कर मेरठ से औफिस जा रहा था. वह जैसे ही मुरादनगर पहुंचा तो हलका जाम लग गया. इसी बीच एक युवक शीशे पर हाथ मार कर बाईं ओर से चिल्लाया कि मेरे पैर पर गाड़ी चढ़ा दी. कुश घबराहट में गाड़ी रोक कर नीचे उतर गया. युवक ने बेवजह शोर मचाया, ऐसा कुछ हुआ ही नहीं था. वह वापस सीट पर आ कर बैठ गया. लेकिन इसी बीच डैशबोर्ड पर रखे उस के 2 महंगे मोबाइल गायब हो चुके थे. गाड़ी पैर पर चढ़ने की बात करने वाला युवक भी पलक झपकते ही नदारद हो गया.

दरअसल, कुश लूटपाट करने वाले गिरोह का शिकार हो गया था. यूपी के नैशनल हाईवे पर पड़ने वाले मोदीनगर व मुरादनगर थाने में इसी तरह के कई मामले दर्ज हैं. लूट करने वालों का दूसरा तरीका होता है आप की कार में पंक्चर बता कर. यह गिरोह कार में चलता है और उस के कुछ सदस्य पैदल होते हैं. गिरोह के सदस्य चालक को बताते हैं कि उस की कार के पिछले पहिए में पंक्चर हो गया है या पैट्रोल लीक हो रहा है. चालक नीचे उतर कर देखता है तो लूट का शिकार हो जाता है. एनसीआर के इंदिरापुरम थाने की पुलिस ने ऐसे गिरोह के 4 सदस्यों को गिरफ्तार कर के कुछ मामलों का खुलासा किया. बकौल इंस्पैक्टर राजेश द्विवेदी, ‘‘हम ने जिस गिरोह को पकड़ा वह लोगों की कार के डैशबोर्ड पर रखे महंगे मोबाइल फोन लूटता था. यह गिरोह उन्हीं को निशाना बनाता था जो अधिकांश अकेले होते थे या जिन के डैशबोर्ड पर मोबाइल रखे होते थे. महंगे मोबाइल को डैशबोर्ड पर रखना लुटेरों को न्यौता देने जैसा साबित हो रहा है.’’

छात्र बन कर लेते हैं लिफ्ट

युवकों का ऐसा भी गिरोह होता है जो छात्र बन कर पहले लिफ्ट लेता है फिर लूटता है. चैकिंग के दौरान गाजियाबाद पुलिस ने शादाब, वसीम व अंकित को गिरफ्तार किया. इन तीनों बदमाशों के पास चोरी की 2 बाइकें व कुछ हथियार मिले. यह गिरोह रात को पीठ पर बैग लटका कर छात्रों की ड्रैस पहन कर खड़ा हो जाता था और कार चालकों से लिफ्ट लेता था. लिफ्ट देने वालों को लूट लिया जाता था. कई बार मोटरसाइकिल से कार को ओवरटेक कर के भी लूटपाट करते थे. जब अंकित से पूछा गया कि यह आइडिया कहां से आया तो उस ने बताया कि कार चालक जल्दी विश्वास करें, इसलिए वे छात्र बन कर रहते थे, ताकि लिफ्ट मिल जाए.

अंडामार लुटेरे

वाहन चालकों को लूट का शिकार बनाने के लिए अनोखे तरीके अपनाए जाते हैं. सड़कों पर अंडामार लुटेरे भी होते हैं. आप की चलती कार के शीशे पर यदि कोई मुरगी का अंडा फेंक दे तो उसे साफ करने के लिए कार रोकने, पानी डाल कर वाइपर चलाने की तत्काल गलती न करें. इस से लुटेरे आप को अपना शिकार बना सकते हैं. दरअसल, जैसे ही अंडे की जर्दी को साफ करने के लिए वाइपर चलाया जाता है, उस की सफेदी पूरे शीशे पर फैल जाती है. इस से शीशा बुरी तरह धुंधला हो जाता है मजबूरन कार रोकनी पड़ती है और इसी बीच पीछा करता गिरोह लूटपाट शुरू कर देता है.

लुटेरी हसीनाएं

सुनसान सड़क या बस स्टौप पर, कोई जींसटौप पहने खूबसूरत युवती आप से मोहक मुसकान के साथ लिफ्ट मांगे तो कई बार सोच लें, क्योंकि यह नुकसानदेह हो सकता है. ऐसी युवतियां लूट करने वाले गिरोह की सदस्य भी हो सकती हैं. कई बार वे अपने साथियों से लुटवा देती हैं तो कई बार हथियार की नोंक व इज्जत से खिलवाड़ करने का आरोप लगाने की धमकी दे कर खुद ही लूट लेती हैं. मामला लड़की का होता है, इसलिए शर्मिंदगी में कई बार लूट का शिकार व्यक्ति किसी से कुछ कह भी नहीं पाता. कई हाईवेज पर ऐसी लड़कियां सक्रिय हैं जिन्हें हर वक्त अपने शिकार की तलाश रहती है.

रिटर्न गिफ्ट- भाग 3: अंकिता को बर्थडे पर क्या गिफ्ट मिला

ये अगर कोई उलटीसीधी बात मुंह से न निकालें तो कितना अच्छा हो. तब मैं इन से अपने संबंध सदा के लिए तोड़ने की पीड़ा से बच जाऊंगी. मुझे अपनी प्रेमिका बनाने की इच्छा को जबान पर मत लाना, प्लीज. मन ही मन ऐसी प्रार्थना करते हुए मैं राकेशजी के साथ पार्क में प्रवेश कर गई थी.

मेरा हाथ पकड़ कर कुछ दूर चलने के बाद उन्होंने मुसकराते हुए पूछा, ‘‘अपने जन्मदिन पर क्या तुम मुझे एक रिटर्न गिफ्ट दोगी?’’

‘‘मेरे बस में होगा तो जरूर दूंगी,’’ आगे पैदा होने वाली स्थिति का सामना करने के लिए मैं गंभीर हो गई.

कुछ पलों की खामोशी के बाद उन्होंने कहा, ‘‘अंकिता, जिंदगी में कभी ऐसे मौके भी आते हैं जब हमें पुरानी मान्यताओं और अडि़यल रुख को त्याग कर नए फैसले करने पड़ते हैं. नई परिस्थितियों को स्वीकार करना पड़ता है. क्या तुम्हें थोड़ाबहुत अंदाजा है कि मैं तुम से रिटर्न गिफ्ट में क्या चाहता हूं?’’

‘‘आप के मन की बात मैं कैसे बता सकती हूं,’’ मैं ने उन्हें आगे कुछ कहने से रोकने के लिए रूखे लहजे में जवाब दिया.

‘‘इस का जवाब मैं तुम्हें एक छोटी सी कहानी सुना कर देता हूं. किसी राज्य की राजकुमारी रोज सुबह भिखारियों को धन और कपड़े दोनों दिया करती थी. एक दिन महल के सामने एक फकीर आया और गरीबों की लाइन से हट कर चुपचाप एक तरफ खड़ा हो गया.

‘‘राजकुमारी के सेवकों ने उस से कई बार कहा कि वह लाइन में न भी लगे पर अपने मुंह से राजकुमारी से जो भी चाहिए उसे मांग तो ले. फकीर ने तब सहज भाव से उन लोगों को जवाब दिया था, ‘क्या तुम्हारी राजकुमारी को मेरा भूख से पिचका हुआ पेट, फटे कपड़े और खस्ता हालत नजर नहीं आ रही है? मुझे उस के सामने फिर भी हाथ फैलाने पड़ें या गिड़गिड़ाना पड़े तो बात का मजा क्या. और फिर मुझे ऐसी नासमझ राजकुमारी से कुछ नहीं चाहिए.’

‘‘अंकिता, जब कभी तुम्हें भी एहसास हो जाए कि मुझे रिटर्न गिफ्ट में क्या चाहिए तो खुद ही उसे मुझे दे देना. उस फकीर की तरह मैं भी कभी तुम्हें अपने मन की इच्छा अपने मुंह से नहीं बताना चाहूंगा,’’ उन्होंने बड़ी चालाकी से सारे मामले में पहल करने की जिम्मेदारी मेरे ऊपर डाल दी थी.

‘‘जब मुझे आप की पसंद की गिफ्ट का एहसास हो जाएगा तो मैं अपना फैसला आप को जरूर बता दूंगी, अब यहां से चलें?’’

‘‘हां,’’ उन के चेहरे पर एक उदास सी मुसकान उभरी और हम वापस गेट की तरफ चल पड़े थे.

‘‘अब आप मुझे मेरे घर छोड़ दो, प्लीज,’’ मेरी इस प्रार्थना को सुन कर वह अचानक जोर से हंस पड़े थे.

‘‘अरे, अभी एक बढि़या सरप्राइज तुम्हारे लिए बचा कर रखा है. उस का मजा लेने के बाद घर जाना,’’ वह एकदम से सहज नजर आने लगे तो मेरा मन भी तनावमुक्त होने लगा था.

मुझे सचमुच उन के घर पहुंच कर जबरदस्त सरप्राइज मिला.

उन के ड्राइंगरूम में मेरी शानदार बर्थडे पार्टी का आयोजन शिखा ने बड़ी मेहनत से किया था. उस ने बड़ी शानदार सजावट की थी. मेरी खास सहेलियों को उस ने मुझ से छिपा कर बुलाया हुआ था.

‘‘हैप्पी बर्थडे, अंकिता,’’ मेरे अंदर घुसते ही सब ने तालियां बजा कर मेरा स्वागत किया तो मेरा मन खुशी से नाच उठा था.

अचानक मेरी नजर अपनी मम्मी पर पड़ी तो मैं जोशीले अंदाज में चिल्ला उठी, ‘‘अरे, आप यहां कैसे? इस शानदार पार्टी के बारे में आप को तो कम से कम मुझे जरूर बता देना चाहिए था.’’

‘‘हैप्पी बर्थडे, माई डार्लिंग. मुझे ही शिखा ने 2 घंटे पहले फोन कर के इस पार्टी की खबर दी तो मैं तुम्हें पहले से क्या बताती?’’ उन्होंने मुझे छाती से लगाने के बाद जब मेरा माथा प्यार से चूमा तो मेरी पलकें भीग उठी थीं.

कुछ देर बाद मैं ने चौकलेट वाला केक काटा. मेरी सहेलियों ने मौका नहीं चूका और मेरे गालों पर जम कर केक मला.

खाने का बहुत सारा सामान वहां था. हम सब सहेलियों ने डट कर पेट भरा और फिर डांस करने के मूड में आ गए. सब ने मिल कर सोफे दीवार से लगाए और कमरे में डांस करने की जगह बना ली.

मस्त हो कर नाचते हुए अचानक मेरी नजर राकेशजी पर पड़ी. वह मंत्रमुग्ध से हो कर मेरी मम्मी को देख रहे थे. तालियां बजा कर हम सब का उत्साह बढ़ा रही मम्मी को कतई अंदाजा नहीं था कि वह किसी की प्रेम भरी नजरों का आकर्षण केंद्र बनी हुई थीं.

उसी पल में बहुत सी बातें मेरी समझ में अपनेआप आ गईं, राकेशजी पिछले दिनों मम्मी को पाने के लिए मेरा दिल जीतने की कोशिश कर रहे थे और मैं कमअक्ल इस गलतफहमी का शिकार हो गई कि वह मुझ से इश्क लड़ाने के चक्कर में थे.

‘तो क्या मम्मी भी उन्हें चाहती हैं?’ अपने मन में उभरे इस सवाल का जवाब पाना मेरे लिए एकाएक ही बहुत महत्त्वपूर्ण हो गया.

‘‘मैं पानी पी कर अभी आई,’’ अपनी सहेलियों से यह बहाना बना कर मैं ने नाचना रोका और सीधे राकेशजी के पास पहुंच गई.

‘‘तो आप मुझ से और ज्यादा गहरे और मजबूत संबंध मेरी मम्मी को अपनी जीवनसंगिनी बना कर कायम करना चाहते हैं?’’ मेरा यह स्पष्ट सवाल सुन कर राकेशजी पहले चौंके और फिर झेंपे से अंदाज में मुसकराते हुए उन्होंने अपना सिर कई बार ऊपरनीचे हिला कर ‘हां’ कहा.

‘‘और मम्मी क्या कहती हैं आप को अपना जीवनसाथी बनाने के बारे में?’’ मैं तनाव से भर उठी.

‘‘पता नहीं,’’ उन्होंने गहरी सांस छोड़ी.

‘‘इस ‘पता नहीं’ का क्या मतलब है, सर?’’

‘‘सारा आफिस जानता है कि तुम उन की जिंदगी में अपने सौतेले पिता की मौजूदगी को स्वीकार करने के हमेशा से खिलाफ रही हो. फिलहाल तो हम बस अच्छे सहयोगी हैं. अब तुम्हारी ‘हां’ हो जाए तो मैं उन का दिल जीतने की कोशिश शुरू करूं,’’ वह मेरी तरफ आशा भरी नजरों से देख रहे थे.

‘‘क्या आप उन का दिल जीतने में सफल होने की उम्मीद रखते हैं?’’ कुछ पलों की खामोशी के बाद मैं ने संजीदा लहजे में पूछा.

‘‘अगर मैं ने बेटी का दिल जीत लिया है तो फिर यह काम भी कर लूंगा.’’

‘मेरा तो बाजा ही बजवा दिया था आप ने,’ मैं मुंह ही मुंह में बड़बड़ा उठी और फिर उन के बारे में अपने मनोभावों को याद कर जोर से शरमा भी गई.

‘‘क्या कहा तुम ने?’’ मेरी बड़बड़ाहट को वह समझ नहीं सके और मेरे शरमाने ने उन्हें उलझन का शिकार बना दिया था.

‘‘मैं ने कहा है कि मैं अभी ही आप के सवाल पर मम्मी का जवाब दिलवा देती हूं. वैसे क्या शिखा को आप के दिल की यह इच्छा मालूम है, अंकल?’’ बहुत दिनों के बाद मैं ने उन्हें उचित ढंग से संबोधित किया था.

‘‘तुम ने हरी झंडी दिखा दी तो उस की खुशी का ठिकाना नहीं रहेगा,’’ उन्होंने बड़े अधिकार से मेरा हाथ पकड़ा और मुझे उन के स्पर्श में सिर्फ स्नेह और अपनापन ही महसूस हुआ.

‘‘आप चलो मेरे साथ,’’ उन्हें साथ ले कर मैं मम्मी के पास आ गई.

मैं ने मम्मी से थोड़ा इतराते हुए पूछा, ‘‘मौम, अगर अपने साथ के लिए मैं एक हमउम्र बहन बना लूं तो आप को कोई एतराज होगा?’’

‘‘बिलकुल नहीं होगा,’’ मम्मी ने मुसकराते हुए फौरन जवाब दिया.

‘‘राकेश अंकल रिटर्न गिफ्ट मांग रहे हैं.’’

‘‘तो दे दो.’’

‘‘आप से पूछना जरूरी है, मौम.’’

‘‘समझ ले मैं ने ‘हां’ कर दी है.’’

‘‘बाद में नाराज मत होना.’’

‘‘नहीं होऊंगी, मेरी गुडि़या.’’

‘‘रिटर्न गिफ्ट में अंकल आप की दोस्ती चाहते हैं. आप संभालिए अपने इस दोस्त को और मैं चली अपनी नई बहन को खुशखबरी देने कि उस की जिंदगी में बड़ी प्यारी सी नई मां आ गई हैं,’’ मैं ने अपनी मम्मी का हाथ राकेशजी के हाथ में पकड़ाया और शिखा से मिलने जाने को तैयार हो गई.

‘‘इस रिटर्न गिफ्ट को मैं सारी जिंदगी बड़े प्यार से रखूंगा,’’ राकेशजी के मुंह से निकले इन शब्दों को सुन कर मम्मी जिस अंदाज में लजाईंशरमाईं, वह मेरी समझ से उन के दिल में अपने नए दोस्त के लिए कोमल भावनाएं होने का पक्का सुबूत था.

क्या आपको पता है गरमी के मौसम में शहतूत खाने के ये फायदे

गरमी के मौसम में बाजार में शहतूत की आवक खूब होती?है और इस के स्वाद के दीवानों की भी कमी नहीं है. खट्टामीठा, रसीला शहतूत स्वाद में तो मजेदार है ही, सेहत के लिए भी बेहद फायदेमंद है.  शहतूत 2 प्रकार के पाए जाते हैं, एक काला और दूसरा हरा. हरे शहतूत के फायदों में हड्डियों को मजबूत करना, दिल की सुरक्षा करना और मूत्रवर्धक प्रभाव शामिल है. यह बहुत पौष्टिक भी होता है. यह एंटीऔक्सीडैंट का एक अच्छा स्रोत है.

  1. शहतूत में प्रोटीन और विटामिन ए, विटामिन ई, विटामिन सी भरपूर होता है.
  2. यह कैल्शियम, आयरन, फोलेट, थायमिन और नियासिन का अच्छा स्रोत है.
  3. दिल के लिए शहतूत के सेवन से एचडीएल (अच्छा कोलैस्ट्रोल) बढ़ता है और कुल कोलैस्ट्रोल कम होता है.
  4. इस प्रकार यह एथोस्क्लेरोसिस यानी दिल का दौरा, स्ट्रोक और कोरोनरी हार्ट रोग के जोखिम को कम करता है.
  5. शहतूत में पाए जाने वाले रेस्वेराट्रोल के बारे में माना जाता है कि यह शरीर में फैले प्रदूषण को साफ कर के संक्रमित चीजों को बाहर निकालता है.
  6. अगर आप झुर्रियों से परेशान हैं, तो अब चिंता करने की कोई बात नहीं. इस के लिए शहतूत का जूस पीजिए. आप का चेहरा चमकदार और ताजा हो जाएगा.
  7. शहतूत में एंटी एज यानी उम्र को रोकने वाला गुण होता है. साथ ही, यह त्वचा को जवानी की तरह जवां बना देता है और झुर्रियों को चेहरे से गायब कर देता है.
  8. यह आप के तनाव को दूर करता है.
  9. साथ ही, शरीर में रक्त के थक्के बनने से रोकता है, जिस से खून का बहाव निर्बाध रूप से सभी अंगों तक होता है.
  10. खून में मौजूद शर्करा पर भी यह नियंत्रण करता है.
  11. इतना ही नहीं, शहतूत में और भी कई गुण पाए जाते हैं, जैसे इस के नियमित प्रयोग से आंखों की गड़बड़ी, फेफड़े के कैंसर और प्रोस्टेट कैंसर से बचा जा सकता है.
  12. शहतूत खाने से पाचनशक्ति अच्छी रहती है.
  13. ये सर्दीजुकाम में भी बेहद फायदेमंद है.
  14. यूरिन से जुड़ी कई समस्याओं में भी शहतूत बेहद फायदेमंद होता है.
  15. शहतूत खाने से आंखों की रोशनी बढ़ती?है.
  16. गरमियों में शहतूत के सेवन से लू लगने का खतरा कम हो जाता है.
  17. शहतूत खाने से लिवर से जुड़ी बीमारियों में राहत मिलती है.

वैसे, गरमी के मौसम में खीरा, तरबूज,  लस्सी और छाछ का प्रयोग ज्यादा से ज्यादा करना चाहिए. इस के प्रयोग से हमारे शरीर में जल तत्त्व बढ़ता है. जल तत्त्व के चलते यह सभी रोगों को नियंत्रित करता है. गरमियों के मौसम में जल ही जीवन है.

डा. नवीन सिंह  

एक गलती- भाग 3: क्या उन समस्याओं का कोई समाधान निकला?

फिर अंजन बोला, ‘‘पर कोई बात नहीं. सारी परिस्थितियों को देखते हुए अंकल और आप को इतना दोषी भी नहीं ठहराया जा सकता है. हां, गलती आप की सिर्फ इतनी है कि आप ने यह बात इतने दिनों तक पापा से छिपा कर उन का विश्वास तोड़ा है, जो वे आप और अंकल पर करते थे. आप को यह बात उसी समय पापा को बता देनी चाहिए थी.’’

अमिता बोली, ‘‘भैया, तुम भी कैसी बात करते हो. क्या पापा आज जिस बात को सुनने के लिए तैयार नहीं हैं उसे उस समय सहजता से सुन लेते?’’

अंजन बोला, ‘‘सुन लेते, इस समय उन्हें ज्यादा धक्का इस बात का लगा है कि मम्मी ने यह सच उन से इतने दिनों तक छिपाया.’’

‘‘तुम गलत कह रहे हो. अगर मम्मी न छिपातीं तो यकीनन दोनों परिवारों का विघटन हो जाता. पापा और आंटी दोनों ही इस बात को सहजता से न ले पाते.’’

अंजन बोला, ‘‘शायद तुम ठीक कह रही हो, मम्मी ने ठीक ही किया. चलो, हम लोग पापा को समझाते हैं और संकर्षण को भी.’’

‘‘मम्मी, आप संकर्षण के पास हौस्पिटल जाओ हम लोग थोड़ी देर में आते हैं.’’

मेरे हौस्पिटल जाने के बाद अंजन आशीष के पास जा कर बोला, ‘‘मम्मी ने हम लोगों को सारी बात बता दी है. अब आप यह बताइए कि आप को मम्मी की किस बात पर अधिक गुस्सा है, मम्मी और अंकल के बीच जो कुछ हुआ उस पर अथवा उन्होंने यह बात आप से छिपाई उस पर?’’

‘‘दोनों पर.’’

‘‘अधिक किस बात पर गुस्सा है?’’

‘‘बात छिपाने पर.’’

‘‘अगर वे उस समय सच बता देतीं तो क्या आप मम्मी और अंकल को माफ कर देते?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘तो कितनी जिंदगियां बरबाद हो जातीं, यह आप ने कभी सोचा है? यह सत्य आज पता चला है. तब भी संकर्षण, आप और मम्मी मानसिक यंत्रणा से गुजर रहे हैं जबकि आप को मम्मी और अंकल पर कभी शक तक नहीं हुआ. इतना तो तय है कि वह क्षणिक गलती मात्र थी. उस गलती की आप मम्मी को और स्वयं को इतनी बड़ी सजा कैसे दे सकते हैं?’’

आशीष बोले, ‘‘पता नहीं. दिमाग तो तुम्हारी बात मान रहा है, पर दिल नहीं.’’

‘‘दिल को समझाएं. पापा, देखिए मम्मी कितनी परेशान हैं.’’

मैं हौस्पिटल में अमिता और अंजन का बेसब्री से इंतजार कर रही थी. ऐसा लग रहा था मेरी परीक्षा का परिणाम निकलने वाला है. तभी अमिता और अंजन मुझे आते दिखाई दिए. पास आए तो मैं ने पूछा, ‘‘क्या हुआ?’’

‘‘धैर्य रखें समय लगेगा,’’ अंजन ने कहा और फिर संकर्षण से बोला, ‘‘क्या हालचाल है?’’

संकर्षण ने बिना उन लोगों की ओर देखे कहा, ‘‘ठीक हूं.’’

अमिता और अंजन ने मुझे घर जाने को कहा. बोले, ‘‘आप घर जा कर आराम करिए हम लोग संकर्षण के पास हैं.’’

अमिता और अंजन के समझाने और मनोचिकित्सक के इलाज से संकर्षण पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा और वह दवा लेने लगा. साथ ही यह भी पता चला कि उस की बीमारी जेनेटिक न हो कर उस दवा की ऐलर्जी है, जो दवा वह खा रहा था. हालांकि उस दवा से ऐलर्जी के चांसेज .001% होते हैं, पर संकर्षण को थी. कारण पता चल जाने पर उस का इलाज सही होने लगा और वह स्वस्थ होने लगा. आशीष भी ऊपर से सामान्य दिखने लगे.

संकर्षण को हौस्पिटल से छुट्टी मिल गई. उसे घर ले जाने का समय आ गया. हम सभी बहुत बड़े चक्रवात से निकल आए थे. घर जाने से पूर्व आशीष हौस्पिटल का बिल भरने गए थे और मैं मैडिकल स्टोर से संकर्षण की दवा खरीदने. तभी गेट पर मुझे संन्यासी की वेशभूषा में एक आदमी मिला जो मुझे देख कर बोला, ‘‘संकर्षण कैसा है?’’

मैं ने चौंक कर उस की ओर देखा तो पता चला कि वह संन्यासी कोई और नहीं गगन ही हैं.

‘‘ठीक है, आप इतने दिनों तक कहां थे?’’

वे बोले, ‘‘यह सब न पूछिए. आप का ई-मेल पूरे ग्रुप में घूम रहा है. पता चला तो चला आया. आशीष सब कुछ जान गए होंगे? क्या प्रतिक्रिया रही उन की? मैं तो उन से नजरें मिलाने के काबिल भी न रहा. संकर्षण की जिंदगी का सवाल नहीं होता तो मैं यहां कभी न आता. चलिए डाक्टर से कह कर डीएनए टैस्ट करवा लूं.’’

‘‘नहीं, अब उस की कोई जरूरत नहीं है. उस की बीमारी जेनेटिक नहीं थी.’’

‘‘क्या संकर्षण भी जान गया है कि मैं उस का पिता हूं?’’

‘‘हां.’’

‘‘संकर्षण को कब तक हौस्पिटल से छुट्टी मिलेगी? कितना समय लगेगा उस के ठीक होने में?’’

‘‘अब संकर्षण बिलकुल ठीक है. बस थोड़ी कमजोरी है. आज हम लोग उसे घर ले जा रहे हैं.’’

‘‘ठीक है फिर मैं चलता हूं,’’ कह कर गगन जाने को तैयार हो गए.

मैं ने कहा, ‘‘संकर्षण से मिलेंगे नहीं?’’

‘‘नहीं, जो उथलपुथल इस सत्य को जान कर आप सभी की जिंदगी में मची होगी और किसी प्रकार सब कुछ शांत हुआ होगा, वह सब मुझे देख कर पुन: होने की संभावना है. वैसे भी मैं मोहमाया का परित्याग कर चुका हूं और एक एनजीओ में गांव के बच्चों के लिए काम कर रहा हूं. संकर्षण को मेरा प्यार कहिएगा और आशीष से कहिएगा कि हो सके तो मुझे क्षमा कर दें,’’ इतना कह कर वे वहां से चले गए. मैं उन्हें जाते हुए तब तक देखती रही जब तक नजरों से ओझल नहीं हो गए.

व्यवहार: शहरों के पढ़े लिखे गंवार! हर जगह है मौजूद

गंवार सिर्फ गांवों में रहते हैं और गंवार शब्द गांव से ही उद्धृत है, ऐसा कहा व माना जाता है, परंतु शहरों में भी आप के आसपास गंवारों की कमी नहीं है. ट्रेन, बस, अस्पताल, बिल्ंिडग, रास्ते हर जगह यहां तक कि किराने की दुकान, मौल, सिनेमाहौल में भी आप की रोज कई गंवारों से मुलाकात हो ही जाएगी. ये पढ़ेलिखे, व्हाइट कौलर, जौब वाले हो सकते हैं पर इन की हरकतें होती हैं गंवारों जैसी अनपढ़, असभ्य, अपनी हांकने वाले, लड़ने पर उतारू.

मुंबई की लोकल ट्रेन को अगर आप लें तो वहां रोज भीड़भरी ट्रेन में से एक या दो जने प्लेटफौर्म पर अचानक गिरते हुए दिखाई पड़ेंगे. इन में औरतें भी होती हैं. होता यों है कि भीड़भाड़ वाली ट्रेन जिस में पांव रखने की भी जगह नहीं, ऐसे में लोग उस पर पांव रखने की कोशिश करते हैं जब ट्रेन प्लेटफौर्म छोड़ने वाली होती है.

जब वे भाग कर जल्दी से ट्रेन में चढ़ने की कोशिश करते हैं तो अंदर से धक्का खा कर या तो प्लेटफौर्म पर या फिर ट्रेन के नीचे जा कर अपनी इहलीला समाप्त कर डालते हैं. जबकि मुंबई में ट्रेन हर 3 मिनट या 5 मिनट बाद आती है अगर ऐसे में थोड़ा रुक कर अपनी ट्रेन पकड़ ली जाए तो ऐसा कभी भी न हो.

ट्रेन में ही दूसरे गंवार लोग, जो सीट पर बैठते हैं, अगर सामने की सीट खाली हो तो पैर पसार कर बैठ जाते हैं. किसी ने टोक दिया तो उस की शामत आ गई सम?ा. ट्रेन में बैठ कर मूंगफली या भेलपुरी या वड़ापाव कुछ भी खाया व कचरा सीट के नीचे फेंक दिया. किसी ने कुछ कह दिया तो ?ागड़ा शुरू.

इन गंवारों को कौन सी भाषा सम?ा आएगी, सम?ा में नहीं आता. आगे चले तो प्लेटफौर्म पर ये गंवार जहां खड़े हैं वहीं थूक दिया. थूकदान, पीकदान तो आसपास पड़े हैं पर वहां जाए कौन. सम?ाने पर पढ़ेलिखे व्यक्ति आप की तरफ ऐसे ताकेंगे मानो उन्हें हमारी भाषा सम?ा में नहीं आ रही. कोविड के दिनों में ये थोड़े कंट्रोल में रहे, मास्क लगे रहे. पर जैसे ही ढील मिली, फिर गंवारपन चालू.

अगला कदम बस की तरफ बढ़ाते हैं. बस के लिए कतार में खड़े लोग ज्यों ही बस आई भागमभाग, आगे चढ़ने और सीट में बैठने की होड़. ऐसे में न तो जल्दी चढ़ने को मिलता है और न ही सीट बैठने को मिलती है. जल्दी चढ़ने के चक्कर में आपस में धक्कामुक्की, मारपीट, यह गंवारपंथी का एक और नमूना. यह तो मुंबई का सीन है जहां थोड़ा अनुशासन है, देश के दूसरों शहरों में तो हालात और बुरे हैं.

इस तरह अगले गंवार वे हैं जो बड़ेबड़े ऊंचे टावरों में रहते हैं, पर जिन्हें फ्लैट में रहना नहीं आता. अगर वे ऊपर की मंजिल में रहते हैं तो वहीं से सीधा कचरा नीचे फेंक देते हैं. अगर उन्हें कुछ कहा जाता है तो वे बड़ी ही आसानी से कहते हैं कि उन के फ्लैट में भी ऊपर वाले फ्लैट से कचरा आता है. मतलब यह हुआ कि वे भी उन गंवारों के समूह में शामिल हो गए.

अगर सुरक्षा या कोविड से बचने के लिए कोई नियम निकाले गए तो वे सीना ठोक कर उन का विरोध करते हैं जबकि वे भी गंवारों में शामिल हो चुके हैं.

इतना ही नहीं, किराने की दुकान पर हर किसी को हायतोबा मची है. हर किसी को जल्दबाजी है. सब अपना हाथ आगे कर देंगे. ऐसे में दुकानदार भी एक का सामान किसी को कभी दूसरे किसी को भी दे देता है. कुछ बेकार खड़े रह जाते हैं. किसी को भी जल्दी कोई सामान नहीं मिल रहा है, पर इसे सम?ो और सम?ाए कौन, सारे ही गंवार हैं.

ऐसा मान लेना ही ठीक है जो काम 5 मिनट में हो सकता है वह 15 मिनट में हो रहा है. सुपर मार्केटों में बड़ी मुश्किल से लाइन न तोड़ने का अनुशासन सिखाया जा सकता है.

गंवारों की नई पौध

स्कूल में जब बच्चों को लेने मातापिता स्कूल के बाहर खड़े होते हैं तो पहले वे लाइन में खड़े रहते हैं, ज्यों ही बच्चों की छुट्टी हुई, बच्चे बाहर निकलने लगे, हर कोई आगे बढ़ कर अपने बच्चे को लेने की होड़ में लग जाता है. फलस्वरूप, बच्चों को निकालने में परेशानी तो होती है साथ ही मातापिता अपने बच्चे को खोजने में भी परेशान हो जाते हैं. एक बार तो एक मां को अपना बेटा ही नहीं मिल रहा था. मिले तो कैसे, रोल नंबर के अनुसार बच्चे निकल रहे थे पर भागदौड़ में वह पीछे रह गया. गंवारों का यह उदाहरण भी आम है.

कालेज में गंवारों की श्रेणी दूसरे तरह की है. वहां सब से पहले ‘रैगिंग’ होती है. इस में सभी पढ़ेलिखे वे उच्च कोटि के गंवार आते हैं, जो थोड़े दिनों बाद हमारे देश और समाज के कर्णधार बनेंगे. ‘रैंगिग’ के नाम पर हर काम गंवारों जैसा करेंगे. कपड़े उतारना, एक पांव पर खड़े करवाना, भद्दी गालियां निकालना और गंदे आचरण का प्रयोग करना. इस के बाद क्लासरूम में बैठे छात्रशिक्षकों से बदसलूकी करना, उन की खिल्लियां उड़ाना. अभी एक वीडियो वायरल हुआ है जिस में कई लड़कों के सिर मुंड़ा कर, हाथ बांध कर परेड कराई गई.

अब बारी है पांचसितारा होटलों में जाने वाले गंवार, जो बूफे लेते समय खाने की मेज पर ऐसे खाएंगे कि उन का जूठा खाना आप की प्लेट पर आ गिरे या फिर यहां काम करने वाले वेटरों को सीटी या किसी अद्भुत आवाज से अपने पास बुलाना. सिनेमाघरों में गंवार आप को देखने को अवश्य मिलेंगे. अपनी सीट पर वे अवश्य बैठेंगे पर पांव आप की सीट के किनारे रखेंगे. अगर आप ने कुछ कहा, तो ?ागड़ा शुरू- ‘क्या टिकट के साथसाथ सीट भी खरीद ली है?’

ट्रेन की सीट का भी यही हाल है. आप ने 3 महीने पहले से टिकट बुक करवाई है. आप जब अपनी सीट पर जाते हैं तो पहले से कुछ गंवार बैठे हुए दिखेंगे. आप ने खुद बैठने की इच्छा जाहिर की तो उन का उत्तर होगा कि ‘अगले स्टेशन पर उतर जाऊंगा.’

पता चला, सीट आप की है पर मरजी उन की. आप उन गंवारों के आगे हार मान कर कहीं धक्के खा कर खड़े हो जाएंगे. नियम और नियमावली इन गंवारों को रास नहीं आती. हवाई जहाज में ये गंवार विंडो सीट ले लेंगे पर 3 बार टौयलेट जाएंगे या ऊपर केबिन से अपना बैग निकालेंगे, रखेंगे, कुछ तो लगातार आगे की सीट पर पैर मारते रहेंगे.

आगे मोबाइल फोन वाले भी हैं. ये मुआ हमेशा ही बजता रहता है बैंक, थिएटर, हौल या सिनेमाघरों या फिर किसी कौन्फ्रैंस में. विनती कर बंद या फिर साइलैंट मोड पर रखने को कहा जाता है, पर जब कार्यक्रम जोरों पर होता है तो शुरू होती है मोबाइल की घंटी. कभी इस कोने से कभी उस कोने से, आप शांति से कुछ देख या सुन नहीं पाते हैं. ये एक अलग तरीके के गंवार होते हैं जिन्हें कोई बात या अनुरोध का कोई असर नहीं होता. जूम मीटिंग में ऐसों की कमी नहीं जो अपने पीछे के शोर से बेखबर रहते हैं, जो सब को परेशान करता है.

पार्क तो आजकल बड़े शहरों के लिए बहुत जरूरी हैं जहां सभी को छोटेछोटे फ्लैट्स में रहना पड़ता है. ऐसे पार्क में कुत्तों को हाथ में लिए लोग टहलाते फिरते हैं. कुत्ते को तो जहां जगह मिलेगी वहीं अपना पेट साफ कर लेता है. गलती उस की नहीं, गलती तो उस के मालिक की है क्योंकि बड़े बोर्ड पर बड़े अक्षरों में लिखा होता है- ‘कुत्ते को पार्क में लाना मना है, पार्क को साफ रखें.’ फिर भी वे उसे नजरअंदाज करने से बाज नहीं आते. आप ही बताएं इन गंवारों का क्या किया जाए.

इस तरह हर दिन जब आप थोड़ा ‘अलर्ट’ रहेंगे और गंवारों की गिनती करेंगे तो पता नहीं कितने ही ऐसे गंवार आप को मिल जाएंगे, जिन की एक लंबी सूची होगी. ऐसे गंवार दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई से ले कर हर बड़े शहर में मिलते हैं. इन को कैसे शिक्षित किया जाए, इस विषय पर विचार जरूरी है, वरना ये किसी संक्रमण से कम नहीं.

फसल अवशेष प्रबंधन: खाद बनाएं, इन्हें जलाएं नहीं

फसल अवशेष जलाने से निकलने वाले धुएं में मौजूद जहरीली गैसों से इनसान की सेहत पर विपरीत प्रभाव के साथसाथ वायु प्रदूषण का स्तर भी बढ़ता?है.

* फसल अवशेष को जलाने से केंचुए, मकड़ी जैसे मित्र कीटों की संख्या कम हो जाती है. वहीं, इस से हानिकारक कीटों का प्राकृतिक नियंत्रण नहीं हो पाता है. नतीजतन, महंगे कीटनाशकों का इस्तेमाल करना बहुत ही आवश्यक हो जाता है.

* फसल अवशेष जलाने से मिट्टी में मौजूद लाभदायक सूक्ष्मजीवों की संख्या व उन के काम करने की क्षमता कम हो जाती है.

* जीवांश पदार्थ की मात्रा कम हो जाने से मिट्टी की उत्पादन क्षमता कम हो जाती?है.

फसल अवशेषों को खेत की मिट्टी में मिलाने के लाभ

* जैविक कार्बन की मात्रा बढ़ती है. फसल अवशेष से बने खाद में पोषक तत्त्वों का भंडार होता है. इस से भूमि की उर्वराशक्ति बढ़ने से फसलों की पैदावार बढ़ती है और फसल को पोषक तत्त्व अधिक मात्रा में मिलते हैं.

* भूमि में नमी बनी रहती है.

* भूमि में खरपतवारों के अंकुरण व बढ़वार में कमी होती?है.

* फसल अवशेष भूमि के तापमान को बनाए रखते हैं. गरमियों में छायांकन प्रभाव के कारण तापमान कम होता है और सर्दियों में गरमी का प्रवाह ऊपर की तरफ कम होता है, जिस से तापमान बढ़ता है.

* मिट्टी की ऊपरी सतह पर छेड़छाड़ न होने के कारण केंचुए आदि सूक्ष्मजीवों की क्रियाशीलता बढ़ जाती है.

* मिट्टी भुरभुरी बनने से उस की जल धारण क्षमता बढ़ती है.

* भूमि से पानी के भाप बन कर उड़ने में कमी आती?है.

ऐसे करें फसल अवशेष का प्रबंधन

* गेहूं, जौ, सरसों, धान आदि फसलों की कटाई के बाद खेत में शेष रहे फसल अवशेष के साथ ही जुताई कर हलकी सिंचाई करें. इस के बाद ट्राइकोडर्मा का भुरकाव करना चाहिए. ऐसा करने से फसल अवशेष 15 से 20 दिन बाद कंपोस्ट में बदल जाएंगे, जिस से अगली फसल के लिए मुख्य एवं सूक्ष्म पोषक तत्त्व अधिक मात्रा में प्राप्त होंगे.

* ट्रैक्टरचालित कल्टीवेटर में जाली फंसा कर फसल अवशेष को आसानी से इकट्ठा कर गड्ढे में गोबर का छिड़काव कर दबाने के बाद ट्राइकोडर्मा आदि डाल कर बढि़या कंपोस्ट तैयार किया जा सकता?है.

* फसल अवशेषों के रहते बोआई में कठिनाई आती है, परंतु आधुनिक मशीनों जैसे जीरो ड्रिल, बीज व खाद ड्रिल, हैप्पी सीडर, टर्बो सीडर और रोटरी डिस्क द्वारा सीधी बोआई आसानी से की जा सकती है. इस से भूमि में नमी बनी रहने के कारण 2 फसलें आसानी से ली जा सकती हैं.

अधिक जानकारी के लिए निकटतम कृषि कार्यालय में संपर्क करें अथवा किसान काल सैंटर के नि:शुल्क दूरभाष नंबर पर बात करें.

जीने की राह- भाग 3: उदास और हताश सोनू के जीवन की कहानी

मैं और उत्तम साथसाथ खा भी रहे थे तथा कुछ बातें भी कर रहे थे. एकाएक मुझे सोनू का खयाल आया, मैं ने उत्तम को सोनू के बारे में बताते हुए कहा, ‘‘क्या बताऊं यार, मेरे ऊपर तो जो बीती सो तो असहनीय है ही, दुर्घटनास्थल का दृश्य हृदयविदारक था, रहरह कर चलचित्र की भांति आंखों के सामने आ जाता है. एक लड़की सोनू, लगभग अपनी रिया की उम्र की ही होगी, बेचारी इस दुनिया में अकेली हो गई है. उस के मातापिता दोनों ही इस दुर्घटना में खत्म हो गए. वह 15 दिन पहले ही पटना आई है, अपनी कालोनी के सामने वाले गर्ल्स स्कूल में उसे नौकरी मिली है, यहीं अपने स्कूल के आसपास ही रहने का ठिकाना चाहती है. मैं ने उसे आश्वासन दिया है कि मैं जल्दी ही उसे अपनी कालोनी में फ्लैट पता कर बताऊंगा, तेरी नजर में है कोई एक बैडरूम का फ्लैट?’’ ‘‘अरे यार, मेरा ऊपर वाला फ्लैट मैं उसे दे सकता हूं क्योंकि मेरे दोनों किराएदार विनीत और मुकेश को जौब मिल गई है. वे दोनों आजकल में चले जाएंगे.’’

मैं ने खुश होते हुए कहा, ‘‘तेरा फ्लैट मिल जाने से सोनू बहुत राहत महसूस करेगी क्योंकि तुम से और भाभीजी से तो उसे बहुत स्नेहप्यार मिलेगा. मैं उसे फोन कर बता देता हूं. वह आ कर फ्लैट देख लेगी. तुम लोगों से मिल कर बात भी कर लेगी.’’ मैं ने सोनू को फोन लगाया, उस ने कहा, ‘‘मनजी, मैं आप के फोन का इंतजार कर रही थी, अच्छा हुआ आप ने फोन कर लिया.’’ मैं ने कहा, ‘‘सोनू, तुम्हें एक ऐसे छोटे फ्लैट की तलाश थी न जो परिवार के साथ भी हो और अलग भी. मुझे ऐसा ही फ्लैट मिल गया है. मेरे भाईसमान मित्र उत्तम का फ्लैट है. तुम समय निकाल कर आ कर देख लो.’’ सोनू ने कहा, ‘‘यह तो अच्छी खबर है. मैं आज ही फ्लैट देख लेना चाहती हूं. आप मुझे पता दे दीजिए.’’

मैं ने कहा, ‘‘तुम अपने स्कूल पहुंचो. मैं वहां से तुम्हें साथ ले कर फ्लैट दिखा दूंगा. ऐसा करना, तुम स्कूल पहुंच कर मुझे फोन कर देना.’’ ‘‘जी अच्छा, मैं अभी निकलती हूं किंतु मुझे पहुंचतेपहुंचते लगभग 2 घंटे तो लग ही जाएंगे,’’ सोनू ने कहा.

सोनू ने फोन किया. मैं उसे ले कर उत्तम के घर पहुंच गया, वह फ्लैट देख कर बोली, ‘‘मैं जल्दी से जल्दी शिफ्ट हो जाना चाहूंगी, जल्दी से जल्दी स्कूल भी जौइन करना होगा, नईनई नौकरी है, ज्यादा छुट्टी लेना ठीक नहीं होगा.’’ उत्तम ने कहा, ‘‘कल सुबह फ्लैट खाली हो जाएगा. मैं रंगरोगन करवा दूं. फिर आप शिफ्ट हो जाइए.’’ सोनू ने कहा, ‘‘रंगरोगन सब ठीक है. आप तो खाली होने पर सिर्फ सफाई करवा दीजिए. मैं कल ही शिफ्ट होना चाहूंगी.’’ सोनू अगले ही दिन 12 बजतेबजते शिफ्ट हो गई. मैं ने तथा उत्तम ने सामान की व्यवस्था करने में उस की पूरी मदद की. शाम के समय सोनू मेरे घर पर आई, कहने लगी, ‘‘मनजी, फ्लैट भी बहुत अच्छा है, स्कूल भी एकदम पास है तथा सब से अच्छी बात है कि आप मेरे निकटतम पड़ोसी हैं,’’ एक पल सोच कर वह फिर बोली, ‘‘मनजी, आप का फ्लैट तो काफी बड़ा है, 2 फ्लोर हैं, आप भी तो मुझे एक फ्लोर किराए पर दे सकते थे.’’

मैं ने कहा, ‘‘सोनू, पहली बात तो यह है कि मेरा फ्लैट तुम्हारी जरूरत के लायक नहीं था क्योंकि बात तो यह है कि तुम्हें एक बैडरूम का फ्लैट चाहिए था, इस के अलावा नीचे के फ्लैट में नीता 10+2 के स्टूडैंट्स की ट्यूशन लेती थी, जिस में उस की 2 सहयोगी भी थीं, नीता तो अब नहीं है किंतु मैं चाहता हूं कि उस की दोनों सहयोगी ट्यूशन क्लासेस पूर्ववत चलाती रहें, क्योंकि इन क्लासेस से नीता को बेहद लगाव था.’’ इधरउधर की बातें होती रहीं. सोनू ने उत्तम और उस की पत्नी की काफी तारीफ करते हुए कहा, ‘‘मनजी, इन के बच्चे कहां हैं?’’ मैं ने उसे बताया, ‘‘उत्तम के 2 बेटे हैं. दोनों नौकरी के सिलसिले में अमेरिका गए थे. वे वहीं के हो कर रह गए. अब तो दोनों घरगृहस्थी वाले हो गए हैं. दोनों का भारत आने का मन नहीं है क्योंकि दोनों की पत्नियां विदेशी हैं और उन्हें भारत सूट नहीं करता.

‘‘कुछ साल पहले एक बार उत्तम और भाभीजी अपने बेटों के पास गए थे. दोनों ही सोच कर गए थे कि बहुएं विदेशी हैं, सो सामंजस्य बिठाने में अड़चनें तो आएंगी पर इस तालमेल में उन के बेटे तो उन्हें सहयोग देंगे. वहां जा कर देखा कि उन के अपने बेटे ही उन से अजनबियों सा व्यवहार कर रहे हैं. उन में मांपापा से मिलने का न उल्लास न कोई खुशी. ये दोनों गए थे इत्मीनान से बेटों के साथ रहेंगे किंतु जल्दी ही वापस आ गए. बहुत दुखी मन से लौटे थे. उस समय नीता और रिया ने उन्हें बहुत सहारा दिया. ये दोनों अपने बेटों के व्यवहार से इतने गमगीन थे कि नीता ने कसम दे कर दोनों को हमारे घर पर ही रोक लिया था. उस दौरान हमारे मध्य की सारी औपचारिकताएं समाप्त हो गईं. उस समय से समझो, हम एक परिवार ही बन गए. आज नीता और रिया को खोने का जितना दुख मुझे है, उन्हें भी मुझ से कम नहीं है.

‘‘उत्तम एवं भाभीजी घर में किराएदार घर को मात्र गुलजार करने के लिए ही रखते हैं. पैसा तो उन के पास पर्याप्त है, उस की कोई कमी नहीं है. उत्तम और भाभी तो अपने किराएदार को खानानाश्ता ज्यादातर अपने साथ ही करवाते हैं. वैसे तुम तो खुद ही सब देखोगी. हां, इतना जरूर आश्वस्त करना चाहूंगा कि दोनों बहुत नेकदिल इंसान हैं.’’ सोनू के जाने के बाद मैं अपना दिल बहलाने की कोशिश में लग गया किंतु नीता और रिया के बिना घर मानो काटने को दौड़ता. घर का हर कोना, हर वस्तु, हर लमहा नीता और रिया से जुड़ा हुआ था. कैसे जिंदगी कटेगी दोनों के बगैर, सोचसोच कर मैं हैरानपरेशान था. अचानक सोनू पर आ कर सोच को बे्रक लगा. मैं इस उम्र में अपनों से बिछड़ कर इतना घबरा रहा हूं. जबकि सारी कालोनी मेरी परिचित है, कुछ परिवारों से तो घनिष्ठ पारिवारिक संबंध हैं, शहर भी पूरी तरह जानापहचाना है. किंतु बेचारी सोनू, कम उम्र की युवती, उस के लिए शहर भी अजनबी, न वह किसी को जानती है और न ही कोई उसे पहचानता है. हां, मैं अवश्य उसे जानने लगा हूं तथा वह भी मुझे पहचानने लगी है. मुझे अवश्य उस का हाल लेना चाहिए.

मैं उस के घर पहुंचा. वह उदास, गुमसुम बैठी हुई थी. मैं ने पूछा, ‘‘कैसी हो, सोनू?’’ रोंआसी सोनू ने कहा, ‘‘मनजी, दिलोदिमाग पर वह ट्रेन दुर्घटना ही हावी रहती है. अपने मम्मीपापा की दर्दनाक मौत असहनीय है, कैसे जिंदगी काटूंगी, समझ में नहीं आता. जब तक आप से बातें करती हूं, मन कुछ बहल जाता है वरना समय कटता ही नहीं है.’’ मैं और सोनू बातें कर ही रहे थे कि उत्तम और भाभीजी भी आ गए. भाभीजी ने आते ही कहा, ‘‘सोनू पुत्तर, डिनर हम सब साथ ही हमारे घर पर करेंगे, तू ने बनाया नहीं न?’’ सोनू झटपट बोली, ‘‘भाभीजी, आप क्यों तकलीफ करिएगा, मैं बना लूंगी.’’ भाभीजी ने समझाते हुए कहा, ‘‘पुत्तर, तू इतनी फौर्मल क्यों होती है? अरे, मैं ने मनजी को भी बोल दिया है कि 10-15 दिन हमारे साथ ही लंचडिनर करेंगे. अरे, साथ मिल कर कुछ बातचीत भी होगी और खा भी लेंगे. जी कुछ हलका होगा वरना सब दुखी और गमगीन रहेंगे. धीरेधीरे मन संभल जाएगा,’’ फिर एक पल बाद वे बनावटी गुस्से के साथ बोलीं, ‘‘तू मेरे घर के डिनर से इतना घबरा क्यों रही है? अरे, कोई बेस्वाद खाना थोड़े ही बनाती हूं.’’

भाभी की बात पर हम सभी हंसने के प्रयास में मुसकरा दिए. अतीत की यादों को दिल से लगाए दिन तो किसी तरह काट लेता किंतु रात काटना बहुत कठिन होता था. विचारों की शृंखला के कारण नींद जल्दी आती नहीं थी, आने पर भी कुछ देर बाद उचट कर टूट जाती. नीता, रिया के साथ बिताए लमहे चलचित्र की भांति आंखों के सामने आ जाते.   

मेरे बाल सफेद होने लगे हैं, क्या बालों को कुदरती रूप से काला करना संभव है?

सवाल

मेरी उम्र 26 वर्ष है. अगले साल विवाह होने वाला है. मेरी समस्या मेरे बालों को ले कर हैं. मेरे बाल सफेद होने लगे हैं. मैं मेहंदी लगाती हूं तो सफेद बाल लाल दिखते हैं. क्या बालों को कुदरती रूप से काला करना संभव है? साथ ही सिर की त्वचा में खुजली भी होती है और बाल बेजान, शुष्क व कमजोर भी हो रहे हैं. मुझे हेयर केयर के टिप्स बताएं जिन से कि मेरे बाल मजबूत और चमकदार हो जाएं?

जवाब

सफेद बालों को कुदरती रूप से काला नहीं किया जा सकता. मेहंदी से बालों को अस्थाई रूप से काला करने के लिए उस में आंवला पाउडर मिलाएं और साथ ही मेहंदी को लोहे की कड़ाही में भिगोएं. इस से मेहंदी लगाने के बाद बाल कम लाल दिखेंगे. साथ ही बालों की नियमित औयलिंग करें. सिर की त्वचा पर खुजली की समस्या के समाधान व मजबूत, चमकदार बालों के लिए एक हेयर पैक बनाएं, जिस में मेथी पाउडर में काले तिल का पाउडर बराबर मात्रा में मिला कर उस में दही मिलाएं और फिर इस पेस्ट को बालों में लगाएं. आधे घंटे बाद बालों को सादे पानी से धो कर शैंपू कर लें. नियमित ऐसा करने से बाल घने, मजबूत व चमकदार हो जाएंगे.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

अगर आप भी इस समस्या पर अपने सुझाव देना चाहते हैं, तो नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स में जाकर कमेंट करें और अपनी राय हमारे पाठकों तक पहुंचाएं.

वन स्‍टॉप सेंटर और महिला शक्ति केन्‍द्र समन्‍वय स्‍थापित कर करेंगी काम

प्रदेश की महिलाओं और बेटियों को बेहतर सुविधाएं देने और उनकी समस्‍याओं का तेजी से निराकरण करने के लिए अब वन स्‍टॉप सेंटर और महिला शक्ति केन्‍द्र समन्‍वय के साथ काम करेंगे. ऐसे में योगी सरकार की ओर से प्रदेश की महिलाओं और बेटियों की सुरक्षा, स्‍वावलंबन और सम्‍मान के लिए जो संकल्‍प लिया गया है वो सभी वादे समय सीमा से पहले पूरे हो सकेंगे.  वन स्टॉप सेन्टरों का महिलाओं से संबंधित विभिन्न गतिविधियों के हब के रूप में विकास किया जाएगा. उनको सुरक्षा व सशक्तिकरण के लिए एक ही छत के नीचे समस्त सेवाएं मिलेंगी. महिलाओं और बेटियों को आर्थिक सहायता, रोजगार/स्वरोजगार, कौशल प्रशिक्षण से जुड़ी समस्त योजनाओं की जानकारी दी जाएगी. योजनाओं का लाभ दिलाने के लिए सम्बन्धित विभाग और अधिकारी से समन्वय स्‍थापित कर काम करेंगे.

महिला कल्‍याण विभाग की ओर से 100 दिवसों की कार्ययोजना को तैयार किया गया है. जिसके तहत हर 15 दिवसों में ब्लॉक स्तर पर भव्य स्वावलंबन कैम्पों का आयोजन कर सरकार द्वारा संचालित योजनाओं जैसे मुख्यमंत्री कन्या सुमंगला योजना, उप्र मुख्यमंत्री बाल सेवा योजना, पति की मृत्युपरांत निराश्रित महिला पेंशन योजना आदि के फार्म भरवाएं और स्वीकृत कराए जाएंगे. इसके साथ ही मानसिक मंदित महिलाओं के लिए गृह की स्‍थापना की जाएगी. जिसके तहत स्वयंसेवी संस्थाओं के जरिए लखनऊ में 100-100 बेड की क्षमता के 02 गृहों का संचालन किया जाएगा. जिसकी कुल लागत 4.57 करोड़ है. बता दें कि सामान्य महिलाओं के लिए संचालित विभागीय संस्थाओं में 203 मानसिक मंदित महिलाओं को आश्रय दिया गया है.

महिलाओं को दिया जाएगा कौशल विकास प्रशिक्षण

विभाग की ओर से आने वाले 06 माह की कार्ययोजना को तैयार कर लिया गया है. महिला संरक्षण तथा बाल देखरेख संस्थाओं में निवासित बच्चों व महिलाओं का कौशल विकास प्रशिक्षण दिया जाएगा. संस्थाओं में आवासित महिलाओं और 16 वर्ष से अधिक आयु के बच्चों को उनकी अभिरूचि के अनुरूप कौशल विकास प्रशिक्षण से जोड़ने हेतु उनकी अभिरूचि की मैपिंग व मैपिंग उपरांत प्रशिक्षण दिया जाएगा. इसके साथ ही संविदा तथा सेवा प्रदाता के जरिए से भरे जाने वाले पदों में से रिक्त पदों पर कार्मिकों का चयन किया जाएगा. जिसमें मिशन वात्सल्य के तहत कुल 136 रिक्त पद और वन स्टॉप सेंटर के तहत 26 जिलों में कुल 252 रिक्त पदों को भरा जाएगा.

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