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आयुष्मान खुराना संग रोमांस करेंगी तेजस्वी प्रकाश!

‘बिग बॉस 15’ की विनर और ‘नागिन 6’ फेम तेजस्वी प्रकाश (Tejasswi Prakash) अक्सर सुर्खियो में छायी रहती हैं. एक्ट्रेस छोटे पर्दे पर अपनी एक्टिंग से दर्शकों का दिल जीत रही है अब वह जल्द ही बॉलिवुड में डेब्यू  कर सकती हैं. जी हां सही सुना आपने. वह आयुष्मान खुराना संग स्क्रीन पर रोमांस  करती नजर आ सकती हैं.

रिपोर्ट के अनुसार, तेजस्वी ‘ड्रीम गर्ल 2’ में लीड ऐक्ट्रेस बनेंगी. उन्होंने इसके लिए ऑडिशन भी दे दिया है और मेकर्स संग उनकी बातचीत चल रही है. पहली फिल्म की तरह ही सीक्वल में आयुष्मान खुराना नजर आएंगे. मूवी में नुसरत भरूचा, अनू कपूर जैसे स्टार्स भी नजर आए थे.

 

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बताया जा रहा है कि ‘तेजस्वी को एकता कपूर के ‘रागिनी एमएमएस’ के अगले प्रोजेक्ट के लिए भी ऑफर किया गया था, लेकिन ऐक्ट्रेस ने ऑफर ठुकरा दिया था. इस समय वो ‘ड्रीम गर्ल 2’ के लिए बातचीत कर रही हैं. उन्होंने ऑडिशन भी दिया है. ये उनका पहला बॉलिवुड डेब्यू भी होगा.

 

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एक इंटरव्यू के अनुसार, तेजस्वी ने फिल्मों में अपनी दिलचस्पी दिखाई थी. उन्होंने कहा था कि वो प्रोफेशनली बहुत खुश हैं और कभी भी संतुष्ट नहीं हो सकती हैं. अभी एक्सप्लोर करने के लिए ओटीटी और फिल्में हैं. बता दें कि तेजस्वी इन दिनों टीवी सीरियल ‘नागिन 6’ में नजर आ रही है.

 

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अनुपमा को फिर से मां बनाना मेकर्स को पड़ा भारी, फैंस ने सुनाई खरी-खोटी  

टीवी सीरियल ‘अनुपमा’ में इन दिनों  फुल एंटरटेनमेंट देखने को मिल रहा है. हाल ही में अनुज और अनुपमा की शादी हुई है. और शादी के बाद अनुज-अनुपमा हनीमून मनाने के लिए मुंबई गये हैं. जहां अनुज अपने अतीत के बारे में अनुपमा से बताता है. वह अनुपमा को अनाथालय ले जाता है, जहां उन्हें एक छोटी बच्ची मिलती है. यहां से शो के मेकर्स ने एक नए ट्रैक की शुरुआत कर दी है. आइए बताते है, क्या है पूरा मामला.

शो में आप देखेंगे कि जल्द ही अनुज और अनुपमा अनु नाम की एक लड़की को गोद लेंगे. फिर से अनुपमा मां बनेगी. इससे शो की कहानी में नया मोड़ देखने को मिलेगा. मेकर्स के इस ट्विस्ट ने फैंस नाराज है.

 

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फैंस ने मेकर्स को सोशल मीडिया पर ट्रोल करना शुरू कर दिया है. शो के फैंस दावा कर रहे हैं कि सीरियल अनुपमा के मेकर्स पूरे मुद्दे को भटकाने की कोशिश कर रहे हैं.

 

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फैंस का कहना है कि जैसे अनुज-अनुपमा पेरेंट्स बनेंगे कहानी कE फोकस अनुपमा की बेटी पर चला जाएगा. ये बात फैंस को हजम नहीं हो रही है. फैंस लगातार सोशल मीडिया पर अनुपमा के मेकर्स की लताड़ लगा रहे हैं.

फैंस का कहना है कि घुमा-फिराकर मेकर्स अनुपमा का बचकाना अंदाज दिखाकर बोर करने से बाज नहीं आते हैं. एक फैन ने सोशल मीडिया पर  लिखा है कि  दर्शकों को घटिया चीजें दिखानी बंद करो. आप लोग शो के लिए काफी मेहनत कर रहे हैं. कुछ लोगों ने तो अनुपमा के मेकर्स को धमकी देनी शुरू कर दी है.

 

तो वहीं दूसरे फैन ने अनुपमा के बारे में बात करते हुए लिखा, अनुज और अनुपमा की शादी को ज्यादा समय नहीं हुआ है. शादी के तुरंत बाद अडॉप्शन ट्रैक शुरू कर दिया गया है. लेकिन कुछ फैंस अनुपमा के मेकर्स को सपोर्ट भी कर रहे हैं. लोगों का कहना है कि शो में होने जा रही अनुज कपाड़िया के भाई-भाभी की एंट्री दिलचस्प होगी.

आम में जैली सीड का बनना: वजह और प्रबंधन

भारत में आम की विभिन्न किस्मों की खेती की जाती है, लेकिन पसंद के मामले में दशहरी पहले नंबर पर है, खासकर उत्तर प्रदेश में दशहरी फल का आकार मध्यम होता है. आकार लंबे पीले रंग के फलों के साथ होता है, लेकिन दशहरी आम (सिंह एट अल, 2006) में टिश्यू सौफ्टनिंग (जैली सीड) विकार की समस्या बहुत अधिक होती है.

भारत में कई व्यावसायिक रूप से उगाई जाने वाली आम की किस्में जैसे दशहरी, लंगड़ा, चौसा, बाम्बे ग्रीन (सिंह 2011, श्रीवास्तव एट अल, 2015) या विदेशी किस्में जैसे ‘टोमी एटकिंस’, ‘सैंसेशन’, ‘जिल’ और ‘कैंट’ (हृशह्यह्लद्धह्व4ह्यद्ग 1993) जैली सीड विकार के लिए अतिसंवेदनशील होते हैं.

इन किस्मों में दशहरी में जैली सीड (बीज के चारों ओर के गूदे के ऊतकों का बहुत ज्यादा गलना) की घटना बहुत ज्यादा है, इसलिए इस पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है. इस ने इस किस्म की निर्यात क्षमता को कम कर दिया है. इस के कारण दशहरी फलों की शैल्फ लाइफ कम हो जाती है.

आम में जैली सीड क्या है

आम से जुड़े विकार (मैंगिफेरा इंडिका एल) न केवल भारत में, बल्कि दुनियाभर में उत्पादकों को प्रभावित करते हैं. ये विकार फलों की गुणवत्ता को कम कर के भारी नुकसान पहुंचा सकते हैं. शारीरिक विकारों में, स्टैम ऐंड कैविटी, जैली सीड और सौफ्ट नाक आम के फलों को प्रभावित कर रहे हैं और फल के विभिन्न भागों (रेमंड एट अल, 1998) को प्रभावित करते हैं.

जैली सीड का वर्णन सब से पहले वैन लेलीवेल्ड और स्मिथ (1979) द्वारा किया गया था, जिन का कहना था कि इस विकार में, सीड (बीज) के आसपास के क्षेत्र में मेसोकार्प का टूटना होता है. प्रभावित भाग स्वादहीन हो जाता है और बाद के चरणों में फीका पड़ सकता है.

आसान शब्दों में कहें, तो जैली सीड को आम फल के बीज के चारों ओर गूदे के ऊतकों का अत्यधिक गलना है. यह विकार बीज और फल के गूदे के बीच अंतरापृष्ठ पर होता है, जिस में प्रभावित फल के बीज के चारों ओर जैली जैसा द्रव्यमान दिखने के अलावा कोई बाहरी लक्षण नहीं होता है. इसलिए जैली सीड से प्रभावित फलों को केवल तभी पहचाना जा सकता है, जब उन्हें काटा जाए, इसलिए जैली सीड का पता लगाने के लिए गैरविनाशकारी तरीकों की जरूरत है.

जैली सीड बनने की संभावित वजह

एक जीवित ऊतक होने के कारण आम का फल लगातार तब तक बदलता रहता है, जब तक कि उस के खराब होने की प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती. आम के फलों में होने वाले बदलाव जैसे पकने की प्रक्रिया, जो फलों की उपस्थिति, उन के स्वाद, बनावट और पोषक मूल्य को प्रभावित करती है. लेकिन जब फल खराब हो जाता है, तो फल के भीतर की सभी जैविक प्रक्रियाएं, जैसे श्वसन और एथिलीन का उत्पादन तेजी से आगे बढ़ता है, जिस से काफी गिरावट आती है.

जैली सीड का सब से ज्यादा प्रकोप जून के दूसरे हफ्ते या उस के बाद काटे गए फलों में देखा गया. इस के अलावा कृत्रिम रूप से पके फलों की तुलना में पेड़ से पकने वाले फलों में घटना ज्यादा थी. (द्विवेदी एट अल, 2021). श्रीवास्तव एट अल. (2015) ने बताया, यह प्राकृतिक और या कृत्रिम रूप से पके आम के फलों में व्यापक रूप से भिन्न होता है. हालांकि शेषाद्री एट अल. (2016) ने बताया कि आम्रपाली आम में जेएस विकासशील फल के बीज में अंकुरण से जुड़ी घटनाओं की शुरुआत में उत्पन्न हुआ.

समय से पहले बीज के अंकुरण ने बीज में बहुत लंबी सीरीज फैटी एसिड (वीएलसीएफए) के संश्लेषण को कम कर दिया. बीज में समय से पहले अंकुरण से जुड़ी घटनाओं की शुरुआत में साइटोकिनिन के उत्पादन को बढ़ावा दिया. नतीजतन, जेएस पल्प में पैक्टिनोलिटिक एंजाइमों की गतिविधियों में बड़ी वृद्धि, पैक्टिन का तेजी से नुकसान और गूदे का अत्यधिक नरम होना.

इस के अलावा फलों की जीर्णता के दौरान फल में घुलनशील कैल्शियम कम हो जाता है और फल की कोशिका भित्ति खराब हो जाती है. इस के चलते फल का शारीरिक विकार चयापचय होता है और फलस्वरूप फल सड़ जाता है. (गाओ एट अल, 2019). स्थानीयकृत कैल्शियम की कमी के कारण झिल्ली में रिसाव, कोशिका भित्ति का अनियमित नरम होना, हार्मोनल संकेतन में कमी और फलों का असामान्य विकास हो सकता है.

कैल्शियम की कमी से पैक्टिक मैट्रिक्स अस्थिर हो जाता है, जिस से कोशिका भित्ति शिथिल हो जाती है और कोशिका संसक्ति कम हो जाती है. कैल्शियम मुख्य रूप से जड़ प्रणाली से अवशोषित होता है, लेकिन कैल्शियम का केवल एक छोटा सा हिस्सा ही वास्तविक फल तक पहुंचता है. ष्टड्ड२+ की कम फ्लोएम गतिशीलता भी फलों में कैल्शियम की कमी की वजह बन सकती है.

जैली सीड का संभावित प्रबंधन

आम में इस नई समस्या को कम करने के लिए शोधकर्ता द्वारा विभिन्न रासायनिक उपचार प्रस्तावित किए गए हैं. इन समाधानों में कैल्शियम अनुप्रयोग पर सब से ज्यादा ध्यान दिया गया, क्योंकि ष्टड्ड+ आयन झिल्ली की सतह पर ष्टड्ड और फास्फोलिपिड के फास्फेट समूह और प्रोटीन के कार्बोक्सिल समूह और कोशिका अखंडता के बीच लिंक के माध्यम से झिल्ली स्थिरता में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.

कैल्शियम उपचार प्रभावी रूप से फलों की दृढ़ता बनाए रख सकता है और फलों के नरम होने और पकने में देरी कर सकता है और सैल वाल डिग्रेडिंग एंजाइमों की पहुंच को भी कम कर सकता है, पैक्टिक एसिड अवशेषों को क्रौस लिंक कर के सेल की दीवार की संरचना को मजबूत कर सकता है.

फल विकास के 3 चरणों में कैल्शियम क्लोराइड (2.0 फीसदी) का अनुप्रयोग (फल सेट, फल लगने के 30 दिन बाद और अनुमानित शारीरिक परिपक्वता के 30 दिन) जैली सीड की घटना को कम करने में अधिक प्रभावी था. (बिटांग एट अल।, 2020)

फौर्मूलेशन (हृड्डष्टद्य२, ्यष्टद्य, ॥३क्चहृ३, ष्टह्वस्हृ४, र्ंठ्ठस्हृ४, स्नद्गस्हृ४, रूठ्ठस्हृ४, और श्वष्ठञ्ज्न) का उपयोग आम्रपाली आम में जैली सीड विकार को ठीक करने के लिए किया जा सकता है. (शेषाद्री एट अल।, 2019).

पेड़ के चारों ओर की मिट्टी को ढकने के लिए काली पौलिथीन मल्च (100 माइक्रोन) का प्रयोग और मई के दूसरे हफ्ते में 2 फीसदी डाईहाइड्रेट कैल्शियम क्लोराइड का प्रयोग बहुत प्रभावी पाया गया. (सिंह, वीके 2017) समय पर फलों की तुड़ाई करने से जैली सीड का प्रकोप कम हो सकता है.

अनुसंधान की भविष्य की रेखा

एक बड़ी चुनौती यह है कि जैली सीड विकार की मात्रा निर्धारित करने के लिए गैरविनाशकारी पद्धति विकसित की जाए. दूसरे, उन के ज्ञात जैव रासायनिक और आणविक तंत्र के साथ जैली सीड के गठन के संभावित कारणों की पहचान. इस के अलावा बेहतर फल गुणवत्ता और बाजार मूल्य प्राप्त करने के लिए इस विकार के शमन के लिए सर्वोत्तम प्रबंधन प्रथाओं को विकसित करना.

Satyakatha: जाति की बलि चढ़ा बरसों का प्यार

दानेश्वरी अनुसूचित जाति की थी, जबकि उस का प्रेमी शिवकुमार कर्नाटक में मंदिरोंमठों के साथ प्रतिष्ठित पहचान रखने वाले उच्चजाति लिंगायत समाज का था.

रात के 9 बज चुके थे. तारीख थी 15 मार्च, 2022. कर्नाटक के बेंगलुरु के एक अस्पताल के बाहर शिवकुमार हिरेहला अपने खास दोस्त के साथ बेहद बेचैन था. कभी इधरउधर चहलकदमी करता तो कभी बैठ कर दोनों हाथों से अपना सिर पकड़ लेता.

वह समझ नहीं पा रहा था कि क्या करे, क्या नहीं. उस का दोस्त उसे समझाने की कोशिश कर रहा था कि गलती उस की नहीं थी. जो कुछ हुआ, वह महज एक हादसा था. दानेश्वरी को कुछ नहीं होगा, वह बच जाएगी. डाक्टर उसे बचा लेंगे.

‘‘क्या खाक बचा लेंगे डाक्टर. वह 76 फीसदी जल चुकी है. केवल आधा चेहरा, सिर और एक बांह ही तो बची है, शरीर का बहुत हिस्सा बुरी तरह से झुलस गया है. गरदन ऐंठ गई है. बड़ी मुश्किल से सांस ले पा रही है. उस की देखभाल करने वाला भी कोई नहीं है. मैं कैसे उस के मांबाप को फोन करूं, नहीं समझ पा रहा हूं. किस मुंह से कहूं कि उन की बेटी जल गई है और अस्पताल में मौत से जूझ रही है,’’ शिवकुमार परेशानी की हालत में बोला.

‘‘लाओ फोन दो, मैं काल करता हूं उस के बाप को. वह बेंगलुरु में ही तो रहते हैं. किसी को तो बुलाना ही होगा,’’ कहते हुए शिवकुमार के दोस्त ने उस के हाथ से फोन ले लिया.

‘‘इस में दानेश्वरी की बहन का नंबर है, उसे फोन कर दो…’’

शिवकुमार के कहने पर उस का दोस्त फोन मिलाने लगा. 2-3 बार डायल करने के बाद दानेश्वरी की बहन का फोन लग गया. उसे तुरंत बेंगलुरु जाने वाले हाईवे के पास पैट्रोल पंप से 200 मीटर  की दूरी पर मथरू अस्पताल आने के लिए कहा.

फोन डिसकनेक्ट होते ही एक अनजान काल आई. वह शिवकुमार ने रिसीव की. फोन अस्पताल से था.

‘‘पेशेंट की हालत बिगड़ती जा रही है, तुरंत 40 हजार रुपए जमा करवाइए. बर्न डाक्टर को बुलाया गया है.’’

‘‘जी 40 हजार रुपए? अभी तुरंत? मैम, अभी करवाता हूं,’’ शिवकुमार बोला.

‘‘कहां से करेगा अभी? तुम्हारे पास पैसे हैं, जो बोल दिया. और देख मेरे पास भी नहीं हैं,’’ शिवकुमार का दोस्त बोला.

‘‘तू यहीं ठहर मैं 1-2 घंटे में घर जा कर पैसे ले कर आता हूं. अरे, उस की जिंदगी का सवाल है, मैं ने उस से प्रेम किया है. उसे पैसे के लिए कैसे मरता छोड़ सकता हूं,’’ यह कह कर शिवकुमार वहां से चला गया.

शिवकुमार के जाने के बाद अगले रोज 16 मार्च की दोपहर में ही अस्पताल में भरती दानेश्वरी का परिवार पहुंच गया. डाक्टर ने उन्हें बताया कि दानेश्वरी को काफी जली अवस्था में शिवकुमार नाम के युवक ने भरती करवाया था.

वह पैट्रोल से जल चुकी है. ऐसा लगता है किसी ने उस पर पैट्रोल डाल कर आग लगा दी है. उसे ही 40 हजार रुपए जमा करवाने के लिए भी कहा गया है, लेकिन अभी तक आया नहीं है.

आंखों के सामने अपनी जली हुई जवान बेटी को देख कर उस के पिता व्याकुल हो गए. उस का पूरा शरीर एक बड़े से कपड़े से ढंका हुआ था. केवल चेहरा बाहर निकला हुआ था. वह कुछ भी नहीं बोल पा रही थी. मुंह पर औक्सीजन लगी हुई थी. उस की यह हालत किस ने की होगी, इस का अंदाजा उन्हें था.

साथ आई बहन तेजस्विनी उस की हालत देख कर भीतर ही भीतर सुलग उठी थी. उस ने डाक्टर से पूछा, ‘‘किसी के खिलाफ एफआईआर लिखवाई या नहीं?’’

‘‘मैम एफआईआर लिखवा दी गई है, लेकिन हादसे की है. किसी के खिलाफ नहीं है. उस वक्त से ही पीडि़ता बेहोश है, कुछ बता नहीं पाई थी. पुलिस ने कहा है होश में आने पर उन्हें सूचित कर दें.’’ देखभाल करने वाले एक डाक्टर ने बताया.

‘‘हादसा कैसे हो सकता है? वह भी पैट्रोल से? उस के पास पैट्रोल कहां से आया? वह लड़का कहां गया, जिस ने भरती करवाया? उस  के बयान लिखे गए या नहीं?’’ तेजस्विनी गुस्से में सवाल पर सवाल करने लगी.

‘‘मैम, यह सब आप पुलिस से ही पूछ लीजिए. प्लीज मुझे यहां पेशेंट का इलाज करने दीजिए. उस की हालत बहुत ही नाजुक है, उस के लिए अगले 36 घंटे बहुत इंपौर्टेंट हैं. आप जितनी जल्द हो सके, हौस्पिटल की फार्मेलिटी पूरी कर दें तो अच्छा होगा,’’ डाक्टर ने समझाया.

प्राइवेट अस्पताल के बर्न वार्ड में विजयपुरा जिले के डिप्टी तहसीलदार अशोक शर्मा की 23 वर्षीया बेटी दानेश्वरी शर्मा जीवनमौत से जूझ रही थी. डाक्टर उसे बचाने की कोशिश में लगे थे.

उस के पिता और बहन के गले यह बात नहीं उतर रही थी कि दानेश्वरी की यह हालत एक हादसे के कारण हुई है.

वे इस के लिए शिवकुमार को ही जिम्मेदार ठहरा रहे थे. वह इस वक्त अस्पताल में भी मौजूद नहीं था. और न ही उस का वह दोस्त ही नजर आ रहा था.

वे डाक्टरों के कहे अनुसार सब कुछ करते रहे, फिर भी दानेश्वरी को बचाया नहीं जा सका. तेजस्विनी को पता था कि शिवकुमार और दानेश्वरी सालों से लिवइन रिलेशन में थे. वे एकदूसरे से बेइंतहा मोहब्बत करते थे. शादी भी करना चाहते थे, लेकिन पिछले कुछ दिनों से उन के बीच शादी को ले कर ही तकरार हो रही थी.

दानेश्वरी 2 दिनों तक बेसुध पड़ी रही. कुछ समय के लिए होश आता था, लेकिन आवाज नहीं निकल पाती थी. उस का इलाज चलता रहा.

18 मार्च, 2022 को तड़के उस की मौत हो गई. उस की मौत से पिता अशोक शर्मा विक्षिप्त से हो गए. बहन तेजस्विनी गुस्से में आ गई. उस ने थाने जा कर शिवकुमार के खिलाफ दानेश्वरी को पैट्रोल से जला कर मार डालने की एफआईआर लिखवा दी.

आरोप लगाया कि वह अनुसूचित जाति की है, जबकि शिवकुमार ऊंची जाति का. जातीय भेदभाव के कारण दोनों की शादी में बाधा आ रही थी.

अशोक शर्मा और उन की दूसरी बेटी तेजस्विनी ने आरोप लगाया कि दानेश्वरी को उस के प्रेमी शिवकुमार चंद्रशेखर हिरेहला ने आग लगा दी थी, जब उस के परिवार ने शादी करने से आपत्ति जताई थी. हम उसे बचाने के लिए कुछ नहीं कर पाए. मेरी प्रतिभाशाली बेटी ने मेरी आंखों के सामने ही दम तोड़ दिया.

अशोक शर्मा ने आरोप लगाया कि शिवकुमार (23) के मातापिता, जो प्रमुख लिंगायत जाति समूह से ताल्लुक रखते हैं, ने उन के रिश्ते से मना कर दिया था.

इस बात की जानकारी उन्हें फरवरी में ही हो गई थी. मामला अनुसूचित जाति/जनजाति कानून से संबंधित एक गैरजमानती का भी था.

इस पर बेंगलुरु पुलिस ने तत्काल काररवाई की और दानेश्वरी शर्मा पर हमला करने एवं उस की हत्या करने के आरोप में 19 मार्च को शिवकुमार को गिरफ्तार कर लिया. डाक्टर ने भी मैडिकल रिपोर्ट में 76 प्रतिशत की थर्ड डिग्री से जलने के कारण दम तोड़ने के तथ्य दर्ज किए गए थे.

उन की प्रेम कहानी की शुरुआत पढ़ाई के दौरान ही हुई. विजयपुरा के एक निजी इंजीनियरिंग कालेज में साल 2018 का शिक्षण सत्र शुरू हो चुका था. वहीं एक फैकल्टी में बेंगलुरु से चंद्रशेखर हिरेहला और विजयपुरा से दानेश्वरी शर्मा ने भी दाखिला लिया था.

क्लास शुरू होने के चंद दिनों में ही दोनों की अच्छी दोस्ती हो गई थी. जैसेजैसे पढ़ाई आगे बढ़ती गई, वैसेवैसे उन के बीच दोस्ती और मजबूत होती चली गई.

शिवकुमार और दानेश्वरी मेधावी और प्रतिभाशाली थे. उन के विचार आपस में बेहद मिलते थे. क्लास के अलावा लाइब्रेरी से ले कर लेबोरेटरी आदि में घंटों साथ होते थे. समय रहने पर वे शहर के खूबसूरत इलाकों में घूमने भी निकल जाया करते थे.

वे एकदूसरे के काफी करीब आ गए थे. इस का एहसास उन्हें तब हुआ, जब उन के दोस्तों ने छेड़ना शुरू कर दिया और उन पर शादी कर लेने का दबाव बनाया.

2 साल के लौकडाउन में उन का मिलनाजुलना बंद हो गया था. इस दौरान उन्होंने तन्हाई में पुरानी यादों के सहारे समय गुजारा. उन की केवल फोन से ही बातें होती थीं.

उस के बाद जब नए सिरे से कालेज जाना शुरू हुआ, तब वे सीधे फाइनल एग्जाम में ही मिले. बीते साल उन का रिजल्ट भी आ गया और वे बीटेक इंजीनियर बन गए. संयोग से उन्हें बेंगलुरु में बीटीएम लेआउट के बाहर की कंपनियों में जौब मिला.

अलगअलग कंपनियों में प्लेसमेंट की खुशी में उन्होंने कुछ दोस्तों के साथ बेंगलुरु में एक छोटी सी पार्टी भी दी. उस के बाद दोनों ने इस साल जनवरी में शादी की योजना बनाई. इस के लिए वे अपनेअपने मातापिता की सहमति चाहते थे.

तब तक दोनों को एहसास हो गया था कि वे जिन विरोधी जातियों से आते हैं, उसे परिवार वाले मुश्किल से स्वीकार पाएंगे. फिर भी सामाजिकता के नाते उन की सहमति जरूरी थी.

पहल शिवकुमार ने की. उन को अपने प्रगतिशील परिवार पर भरोसा था. उसे यह विश्वास था कि परिवार वाले एक शिक्षित और नौकरी करने वाली बहू के आगे जातिबिरादरी की बात को नजरंदाज कर देंगे. फिर भी बात संवेदनशील थी.

इस का ध्यान रखते हुए शिवकुमार ने 2 फरवरी को दानेश्वरी के बारे में मां को बताया. परिवार में सदस्यों के बारे में बताया. उस की सुंदर सी तसवीर दिखाई और जाति भी बता दी. जाति का नाम सुनते ही मां बिदक गई.

फिर भी उन्होंने शिवकुमार के पिता से भी उस के प्रस्ताव के बारे में बात की. पिता तो सुनते ही भड़क गए. उन्होंने कहा, ‘‘तुम्हें पता है कि हम लिंगायत समाज से आते हैं. कर्नाटक में जितने भी मठ और मंदिर हैं सभी हमारे समाज की देखरेख में हैं. हमारे ऊपर ही देवीदेवताओं की पूजापाठ और धार्मिक आयोजन हैं. हमारी सामाजिक प्रतिष्ठा धार्मिक महत्त्व की है. ऐसे में अनुसूचित जाति की लड़की को बहू बनाना छि..छि…’’

‘‘किंतु पिताजी, अब जमाना बदल गया है, देश कानून से चलता है, जाति से नहीं.’’ शिवकुमार झिझकते हुए बोला.

‘‘गलत, आज भी धर्म से ही परिवार और समाज के संस्कार बनते हैं. कानून किताबों में है, हमारा प्रतिष्ठित लोगों के साथ समाज में उठनाबैठना है. उसी से रुतबा और ओहदा मिला है.’’

‘‘हमारी शादी से इस में कौन सी कमी आ जाएगी?’’ शिवकुमार ने प्रश्न किया.

‘‘कमी तो इतनी बड़ी आ जाएगी कि तुम उस बारे में सोच ही नहीं सकते हो. जो आज भी हमारे स्वागत में हाथ बांधे खड़े रहते हैं, हम उस का अपने घर में स्वागत कैसे करेंगे? उस के हाथ का बनाया खाना कैसे खाएंगे? मेरे जीते जी यह शादी नहीं हो सकती.’’ शिवकुमार के पिता ने भी अपना अंतिम फैसला सुनाते हुए कहा.

उस के बाद शिवकुमार हफ्ते तक घर पर ही उदास पड़ा रहा. जौब पर भी नहीं गया. एक दिन उस के दोस्त का फोन आने पर औफिस गया. वहां उस ने अपने दोस्त को पिता॒का॒निर्णय॒बताया.॒वह॒बहुत॒दुखी॒था.

दोस्त ने कहा कि वह एक बार दानेश्वरी से भी बात कर ले. शायद वही कोई दूसरा रास्ता बताए. इस पर खीझता हुआ बोला, ‘‘वह क्या रास्ता निकालेगी, उस की जाति बदल जाएगी क्या?’’

शिवकुमार भारी मन से दानेश्वरी से मिला. उस ने दुखी मन से अपने मातापिता का निर्णय उसे भी सुना दिया. दानेश्वरी चुपचाप उस की बात सुनती रही. किंतु जब उस ने भी अपना निर्णय सुनाया कि आज से हमारेतुम्हारे रास्ते अलग हो गए, तब वह एकदम से बिफर उठी.

‘‘तुम ने तो मिडल क्लास वाले बच्चों जैसी बातें कर दी. क्या हम ने इसीलिए बीटेक तक की पढ़ाई की? तुम ने मेरे दिल से खिलवाड़ किया, मेरी भावनाओं को कुचला और अब मेरी इच्छाओं को जिस तरह आग में झोंक रहे हो, मैं उस में नहीं जल सकती हूं.’’

दानेश्वरी की आंखों से आंसू निकल आए थे. वह अपने दुपट्टे से आंसू पोंछने को हुई, तभी शिवकुमार ने उस का चेहरा हथेलियों में लेने की कोशिश की. लेकिन दानेश्वरी ने तेजी से उसे झटक दिया, ‘‘अब कैसी सहानुभूति? मत छुओ मुझे,’’ चीखती हुई बोली.

शिवकुमार सहम गया और उस वक्त वहां से चला आया. उसी रोज उन की फोन पर भी बात हुई. जो तीखी बहस में बदल गई.

उस के अगले रोज 15 मार्च, 2022 को शिवकुमार ने अपने दोस्तों के साथ रात 8 बजे इलैक्ट्रौनिक सिटी में एक पैट्रोल पंप के पास दानेश्वरी को मिलने के लिए बुलाया. दानेश्वरी वहां अकेली आई थी. बताते हैं वहां भी उन के बीच तीखी बहस होने लगी.

उस वक्त उस का दोस्त दूर जा कर बैठ गया था. उस ने आग की लपटें उठती देखीं तो भाग कर वहां पहुंचा. दानेश्वरी जल रही थी, शिवकुमार मिट्टी फेंक कर आग बुझाने की कोशिश कर रहा था.

आग बुझने पर शिवकुमार दानेश्वरी को अधजली अवस्था में रात साढ़े 8 बजे कुडलू गेट के पास मथरू अस्पताल ले गया. उस वक्त दानेश्वरी के शरीर पर जलने के घाव उस की पीठ, हाथ और पैर पर थे. शरीर के सामने के हिस्से में जलने के घाव नहीं थे.

स्थानीय लोगों द्वारा आग लगने की सूचना तेजी से फैल गई. कुछ लोग भी वहां आ जुटे, जिसे बाद में पुलिस ने हादसा कह कर हटा दिया. बाद में पुलिस के मुताबिक दानेश्वरी को अस्पताल ले जाने के तुरंत बाद शिवकुमार फरार हो गया था.

हालांकि इस बारे में गिरफ्तारी के बाद, उस ने दावा किया कि वह दानेश्वरी को बचा रहा था, जब उस ने खुद को आग लगाने की कोशिश की थी.

पीडि़ता की बहन तेजस्विनी द्वारा शिवकुमार के खिलाफ दर्ज करवाई गई शिकायत के अनुसार, अत्याचार निवारण अधिनियम और आईपीसी की धारा 302 (हत्या) के तहत मामला दर्ज किया गया है.

कथा लिखने तक पुलिस मृतका के पे्रमी शिवकुमार चंद्रशेखर हिरेहला से पूछताछ कर रही थी.

—कथा पलिस सूत्रों और जनचर्चा पर पर आधारित

जनसंख्या नियंत्रण कानून

जनसंख्या नियंत्रण के मामले एक झूठ जो बहुत जोर से नरेंद्र मोदी से ले कर नुक्कड़ वाले मंदिर के पुजारी फैलाते हैं कि मुसलिमों की आबादी तेजी से बढ़ रही है और निकट भविष्य में वे बहुमत में आ जाएंगे. यह एक कोरा झूठ है क्योंकि राष्ट्रीय प्रजनन दर यानि फर्टिलिटी दर जो 2 है के मुकाबले में मुसलिम फर्टिलिटी  दर 2.36 अवश्य है और  हिंदु  दर 1.94, यह अंतर इतना नहीं कि मुसलिम जनसंख्या जल्दी ही बहुमत में आ जाए. 1 साल दर साल  हिंदुऔर मुसलिम प्रजनन दर दोनों तेजी से गिर रही हैं और परिवार नियोजन धर्म से ज्यादा औरतों का निजी मुद्दा है.

ङ्क्षचता की बात तो यह है कि अनुसूचित जातियों और अनूसूचित जनजातियों में यह न बहुत ज्यादा है. 2015-16 के सर्वे विवाहित औरतों में जो बच्चे पैदा करने की आयु वर्ग में है. 3 बच्चे वाली 21′ अनुसूचित जातियों की हैं और 4 से ज्यादा बच्चों वाली 22′. जो लोग मुसलमानों के 5 के 25 की बात करते हैं उन्हें इन 22′ शड्यूल्ड कास्ट युवतियों की ङ्क्षचता करनी चाहिए जो 1 से 4-5 हो रही हैं.

उत्तर प्रदेश में जहां जनसंख्या नियंत्रण कानून की बहुत बात होती है, 2015-2020 के आंकड़े बताते हैं कि मुसलिम औरतों का प्रजनन दर 3.1 प्रति महिला है तो शेड्यूल्ड कास्ट हिंदु की भी 3.1 और शेड्यूल्ड कास्ट की 3.6 पिछड़ों जातियों में यह दर 2.8 और केवल ऊंची जातियों में 2.3 है. यह दर सर्व धर्मों व जातियों में तेजी से गिर रही है बिना किसी कानून के.

जैसे-जैसे औरतों में शिक्षा आ रही है और उन के कला के अवसर बढ़ रहे हैं, उन की प्रजनन दर फानि  रेट घट रहा है. 2022 के आकंड़े तो और आशवस्त करने लगते हैं कि हम किसी जनसंख्या वर्क पर नहीं बैठे हैं, असल में जल्द ही हमें चीन और जापान की तरह बच्चों की कमी दिखने लगेगी और सारी आबादी सफेद होने लगेगी यानि बूढ़े ज्यादा होने लगेंगे.

धाॢमक विवाद खड़ा कर के जो वैमनस्य का माहौल बनाए रखा जा रहा है यह एक धंधे के लिए लाभवाचक हैं. धर्म का धंधा. इसी के कारण देश भर में नए मंदिर तेजी से बन रहे हैं और पुरानों में पूजापाठ बढ़ रही है, दानदक्षिणा बढ़ रही है, समय को बर्बादी बढ़ रहही है जहां कम बच्चे युवा मातापिता को और उत्पादक बना रहे हैं वहीं इस जनसंख्या के विषय को ले कर धाॢमक जहर उन्हें समय और शक्ति बना कर करने पर मजबूर कर रहा है.

दहेज उत्पीड़न: हम सब अपराधी

25 वर्षीय रितु यादव ने अपने घर में खुद को फांसी लगा ली, पर क्यों? भई, यह तो तभी जाना जा सकता है जब धर्म और नफरत में डूबी जनता अपने आसपास क्या घट रहा है, कम से कम इस के लिए ही सही अपनी आंख खोल ले.

मामला दहेज उत्पीड़न का है. अब कई लोग तो इस मुद्दे पर इसलिए सुनतेबोलते कम हैं क्योंकि वे या तो दहेज़ देने वाले होते हैं या लेने वाले. हर घर की यही कहानी है. बेटी के समय दहेज़ गया तो बेटे के समय कैसे दुगना रिकवर हो, इसी की उधेड़बुन घरपरिवार में चल रही होती है. लेकिन इस के परिणाम कितने खतरनाक हैं, यह रितु यादव के मामले से समझा जा सकता है.

एक पढ़ीलिखी बीकौम, एमबीए ग्रेजुएट लड़की, महज 25 साल की. रिश्ता सरकारी लड़के का आया तो घर वालों की भी बांछें खिल गईं, बेटी सरकारी बाबू के साथ हंसीखुशी रहे तो धूमधाम से अरेंज मैरिज करा दी. 18 लाख की टाटा सफारी, गोल्ड सिल्वर की ज्वैलरी, सोफा-फर्नीचर, इलैक्ट्रौनिक आइटम्स, कपड़ेलत्ते, कुल मिला कर 70 लाख रुपए का दहेज खुशीखुशी दे दिया, क्यों, क्योंकि लड़का सरकारी नौकरी वाला है, बेटी को खुश रखेगा.

पर लड़के की दिलचस्पी तो रितु से ज्यादा दहेज़ पर थी. 70 लाख तक का अच्छाख़ासा दहेज़ शादी के दौरान पहले ही ससुरालिए हड़प चुके थे. शादी के महज 3 महीने बाद और दहेज़ लाने का दबाव वे रितु पर बनाने लगे. तंग आ कर रितु अपने मायके आ गई. ससुरालियों का दबाव इतना था कि अपने घर में आत्महत्या करने पर मजबूर हो गई. साथ में एक सुसाइड नोट और अपनी हथेली पर उस दर्द को बयां कर इस दुनिया को छोड़ गई जिस में ससुरालियों की कारस्तानी थी.

जिस में उस ने लिखा, ‘“मेरे पति ने मुझ से सिर्फ दहेज़ के लिए शादी की, मुझे घर की नौकरानी बना दिया. मैं काम करना चाहती थी, मैं ने इस के लिए रिक्वैस्ट भी की, लेकिन वह नहीं माना. तलाक लेना चाहती थी जिस पर वह एग्री नहीं हुआ.’”

अब असल माजरा समझो, सरकारी नौकरी वाला आप की बेटी को खुश रखना ही चाहता तो उस के पास सबकुछ होने के बाद भी आप से दहेज़ लेता क्या? इतना दहेज़ लेने वाले परिवार के मन में ही लालच भरा पड़ा है. शादी के बाद भी यह परिवार क्या चैन से बैठता?

अव्वल, समझा जाता है कि संपन्न और पढ़ेलिखे घरों के लोग तो समझदार हैं, ये दहेज़ नहीं लेते होंगे, पर असल यह कि दहेज़ के लिए सब से ज्यादा मारामारी इन्हीं परिवारों में होती है. संपन्न लड़के या उस के परिवार की चाहत रहती है कि बेटे पर हुए बचपन में पढ़ाई, कपड़ेलत्ते इत्यादि से ले कर जवानी तक के तमाम खर्चों की उगाही लड़की वालों से एक बार में हो जाए. संपन्न परिवारों में ही दहेज़ का टंटा ज्यादा होता है, गरीबों को तो वैसे ही कोई अपनी बेटी ब्याहना नहीं चाहता.

यह बात लड़की वालों को भी समझनी चाहिए थी. एक होनहार लड़की, जिस के आगे उस का अपार कैरियर पड़ा था, जो अपने जीवन में बहुत अच्छा कर सकती थी, की अरेंज मैरिज इसलिए करा देना कि लड़का अच्छाखासा सैटल है, बात जमती नहीं है. इस से बढ़िया तो होता कि लड़की को ही सैटल होने का मौका दिया जाता, जितना खर्चा दहेज़ में लगा उस का आधा लड़की के जीवन पर कर दिया होता.

साथ ही, लड़की का ऐसे लम्पट ससुरालियों के चक्कर में जान देने से बढ़िया अपने जीने के लिए कोई बेहतर विकल्प खोजना था. उस के आगे पूरा जीवन था, और जान देने से बेहतर कई विकल्प थे. खैर, आत्महत्या के ऐसे मामले से यह तो दिखता है कि हम दोगले ही नहीं, मर भी चुके हैं, जिन्हें अब इन तरह के मुद्दों से रत्तीभर फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि टीवी के आगे चौबीसों घंटे धर्म की बहस में घुसे रहने से हमारे दिमाग में जंग लग गया है.

जीने की राह: उदास और हताश सोनू के जीवन की कहानी

क्या शराब न पीने से सेक्स के प्रति उत्तेजना कम हो जाती है?

सवाल

मेरी उम्र 42 वर्ष है. मुझे शराब पीने की आदत हद से ज्यादा थी. नशा मुक्ति केंद्र जा कर मेरी शराब पीने की आदत छूटी. घरवालों और पत्नी के पूरेपूरे सहयोग से मैं शराब से अब दूर ही रहता हूं लेकिन मुझे ऐसा महसूस होने लगा कि शराब न पीने से मेरी सैक्स के प्रति उत्तेजना कम होने लगी है. क्या वाकई शराब न पीने से ऐसा महसूस कर रहा हूं या यह मेरे दिमाग का फितूर है?

जवाब

कम मात्रा में शराब का सेवन दिमाग को रिलैक्स करता है और व्यक्ति स्ट्रैसफ्री हो जाता है और ऐसे माहौल में इंसान पूरे आत्मविश्वास के साथ सैक्स कर सकता है. वहीं, शराब का अत्यधिक सेवन व्यक्ति की उत्तेजना को कम कर देता है.

आप शराब के आदी थे और बहुत ज्यादा शराब पीते थे तो हो सकता है इस का आप के नर्वस सिस्टम पर बुरा असर पड़ा हो जिस से व्यक्ति में नामर्दानगी आ सकती है.

शराब का अधिक सेवन लिवर को भी खराब करता है और इस से भी कामेच्छा और कामशक्ति पर बुरा असर पड़ सकता है. शराब के ज्यादा सेवन से सैक्स हार्मोन में भी कमी हो जाती है.

खैर, फिर भी दिमाग को स्ट्रैसफ्री रखें और खाने में प्रोटीन की मात्रा बढ़ा दें. डाक्टर से परामर्श ले कर शरीर की ताकत बढ़ाने वाले सप्लिमैंट और विटामिंस लेना शुरू करें. इन उपायों से हो सकता है आप को फायदा हो. शराब छोड़ दी है तो अब दोबारा शुरू करने के बारे में सोचिए भी मत.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

अगर आप भी इस समस्या पर अपने सुझाव देना चाहते हैं, तो नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स में जाकर कमेंट करें और अपनी राय हमारे पाठकों तक पहुंचाएं.

बेचारे: दिलफेंक पतियों की शामत- भाग 3

“इश्क का भूत इस बार ऐसा सिर से उतरेगा कि तोबा बोल जाएंगे दोनों,”

अपनी हंसी पर कंट्रोल करने के बाद मैं बाहर ड्राइंगरूम में पहुंची तो देखा कि पटेल और गुर्जर एकदूसरे को गुस्से से घूर रहे थे.

किसी के कुछ कहने से पहले ही शालिनी की उलटी करने की आवाज हम तक पहुंची, तो उन दोनों का गुस्सा छूमंतर हुआ और रंग फिर से पीला पड़ गया.

मैं मुड़ कर खड़ी हुई. अपनी हंसी उन की आंखों से छिपाने के लिए वैसा करना जरूरी था.

उधर पटेलजी गुर्जर साहब को लताड़ रहे थे, “अबे, मैं तो हलका सा हंसीमजाक उस से करता था, पर मेरे दिल में पाप नहीं था. तुम ने उस से प्यार का गहरा चक्कर चला कर गुनाह किया है.”

“बेकार की बात मत करो,” गुर्जर ने गुस्से से भर कर जवाब दिया, “तुम ने शालीनता की सीमा हमेशा तोड़ी है. आतेजाते तुम उसे टक्कर मारते थे. मेज के नीचे पैर से पैर टकराते थे. सोने के बुंदे उसे कौन खरीद कर देना चाहता था?”

पटेलजी कुछ कहते, इस से पहले ही अरुण बैडरूम से बाहर आ कर फोन की तरफ बढ़ा.

रवि ने फौरन उसे टोका, “नहीं यार, पुलिस को फोन मत करो. शांति से बातें करने से सब समस्याएं हल हो जाती हैं.”

पुलिस का नाम आते ही गुर्जर और पटेल आपस में झगड़ना भूल कर अरुण की तरफ लपके.

“तुम पूछ लेना शालिनी से, वह मुझे गुनाहगार नहीं बताएगी,” पटेल ने भावुक लहजे में अपने लिए सफाई दी.

“हंसीमजाक की बात और है, पर शालिनी को मैं ने हमेशा इज्जत की नजर से देखा है,” गुर्जर साहब ने दोस्ताना अंदाज में अपनी सफाई दी.

अरुण फर्श को फाड़ खाने वाले अंदाज में घूरता खामोश खड़ा रहा.

“हम दिल के बुरे नहीं हैं अरुण.”

“हमारे व्यवहार से तुम्हें भविष्य में कोई शिकायत नहीं होगी.”

“गुस्सा थूक दो, नहीं तो हमारी बड़ी बदनामी होगी,” कहते हुए पटेलजी रोंआसे हो उठे.

“पुलिस वाले बड़ी कुत्ताघसीट करेंगे हमारी यार,” गुर्जर ने हाथ ही जोड़ दिए अरुण के सामने.

अरुण ने अचानक अपने गले से अजीबअजीब सी आवाज निकालनी शुरू की. फिर उस ने उन दोनों को जोर से धक्का दिया और भागते हुए बैडरूम में घुस गया.

मैं उस के पीछे भागी. फिर उन दोनों को हक्काबक्का सा छोड़ रवि भी हमारे पीछे बैडरूम में घुस आया.

हम तीनों अपनी हंसी उन दोनों से छिपाने में बड़ी मुश्किल से ही सफल हो पाए थे. मैं ने बैडरूम का दरवाजा बंद न किया होता तो वे दोनों अंदर घुस आते और हमारा सारा बनाबनाया खेल बिगड़ जाता.

हम अपनी जिंदगी में कभी इतना नहीं हंसे थे. बारबार पटेल और गुर्जर की शक्लें हमें ध्यान आती और हंसी का फव्वारा अंदर से फिर फूट पड़ता.

जब हंसी का तूफान कुछ थमा तो सविता ने अचानक मुझ से पूछा, “वंदना, यह तो बता कि हमारी योजना में शालिनी और अरुण को कैसे और कब शामिल किया?”

“शुरू से ही,” मैं ने मुसकरा कर जवाब दिया, “तुम दोनों को यह जान कर खुशी होगी कि शालिनी और मैं पुरानी कालेज की सहेलियां हैं और मैं ने सारा प्लान आरंभ में इन्हीं दोनों के साथ बैठ कर बताया था.

“और क्या शानदार प्लान रहा हमारा,” मैं ने अपनी पीठ खुद ही थपथपाई, ‘‘रवि, तुम ही उन दोनों को जा कर संभालो. कह देना कि शालिनी की तबीयत सुधर रही है, पर उन्हें डरानाधमकाना चालू रखना. उन दोनों की मजबूरी का आज जनाजा निकल ही जाना चाहिए.”

“मैं जाता हूं,” रवि ने गंभीर सा चेहरा बनाया और दरवाजा खोल कर बाहर निकल गए.

सचमुच उन दोनों बेचारों की हम ने डर के मारे जान निकाल दी थी. वे सही रास्ते पर आ गए थे, इस का एहसास हमें उसी शाम को ही हो गया.

वे दोनों सपत्नियां हमारे घर में बैठे थे, शालिनी और अरुण भी वहीं आ पहुंचे.

“शालिनी बहनजी, अब कैसी तबीयत है आप की?” पटेल के स्वर में हालचाल पूछते हुए सहानुभूति टपक पड़ रही थी.

“मुझे एक जरूरी फोन करना है,” कह कर गुर्जर साहब झटके से उठे और अपने घर की तरफ भागते से चले गए.

हम 6 के 6 लोगों के लिए अपनी हंसी रोकना कितना मुश्किल रहा होगा, इस का अंदाजा अब शायद कभी नहीं लगा सकेंगे.

जीने की राह- भाग 1: उदास और हताश सोनू के जीवन की कहानी

एक हफ्ते बाद कल पत्नी नीता व बेटी रिया घर लौट आएंगी, यह सोच कर मन बेहद उत्साहित था, दोनों के बिना घर काटने को दौड़ता था. नित्य की भांति मैं ने न्यूज देखने के लिए टीवी औन कर लिया था. जिस ट्रेन से दोनों लौट रही थीं वह बुरी तरह दुर्घटनाग्रस्त हो गई थी. टीवी पर बहुत भयानक दृश्य दिखाया जा रहा था. ट्रेन के कुछ डब्बे पानी में गिर गए थे, कुछ पुल से लटके हुए थे और कुछ उलटपलट कर दूर गिर गए थे. मैं टीवी के सामने जड़वत बैठा हुआ था, मानो दिलोदिमाग ने काम करना बंद कर दिया हो. मेरा निकटतम पड़ोसी उत्तम हांफता हुआ मेरे पास पहुंचा. उस ने भी टीवी पर यह भयंकर दृश्य देख लिया था, उसे भी नीता और रिया के लौटने की खबर थी.

वह हांफता हुआ बोला, ‘‘मन, यह कैसी खबर है?’’

उस की बात सुन कर मैं दहाड़ मार कर रो पड़ा. वह मुझे संभालते हुए बोला, ‘‘नहीं मन, खुद को संभाल, हम यह क्यों सोचें कि नीता और रिया सुरक्षित नहीं होंगे. अरे, सब थोड़े ही हताहत हुए होंगे. तू विश्वास रख, नीता और रिया एकदम ठीक होंगी. हम जल्दी से जल्दी वहां पहुंचते हैं और उन्हें अपने साथ लिवा लाते हैं. मेरे दोस्त हिम्मत रख, सब ठीक रहेगा.’’ मैं ने कहा, ‘‘अच्छा हो कि तेरी बात सही निकले, वे दोनों सहीसलामत हों. किंतु मैं अकेला ही जाऊंगा, तू भाभीजी की देखभाल कर, कल ही तो उन का बुखार उतरा है, अभी वे काफी कमजोर हैं.’’ थोड़ी नानुकुर के बाद उत्तम मान गया. मैं अकेला ही घटनास्थल पर पहुंचा. भयानक एवं वीभत्स दृश्य था. चंद लोगों के अलावा सब खत्म हो चुके थे. चंद जीवित लोगों में नीता और रिया नहीं मिलीं. उन्हें लाशों में से तलाशना बेहद मुश्किल काम था. दो कदम आगे बढ़ चार कदम पीछे हट जाता, मन चीत्कार कर कहता, ‘नहीं होगा यह कार्य मुझ से,’ किंतु उन्हें बिना देखे भी तो वापस नहीं जा सकता था. पागलों की तरह मैं अपनों की लाशें ढूंढ़ रहा था.

विचित्र दृश्य था, अजीब तरह की अफरातफरी मची हुई थी, कई समाज सेवी संस्थाएं व स्थानीय जनता तो सहयोग कर ही रही थी, सरकारी तंत्र भी सहयोग में लगा हुआ था. मेरी नजर अचानक रिया पर पड़ी. वहीं बगल में नीता भी थी. बिलकुल क्षतिविक्षत हालत में. मेरी आंखों के आगे अंधेरा छाने लगा किंतु अपनेआप को संभाला. मैं अपनी नीता एवं रिया की लाशें समेटे खड़ा था, वहीं निकट एक युवती, मेरी रिया की हमउम्र

2 लाशों के मध्य बैठी रोए जा रही थी. मेरा दिल रोरो कर गुहार लगा रहा है, इन निर्दोषों ने ऐसा क्या अपराध किया था जो जान गंवा बैठे या हम ने ऐसा क्या कर दिया जो अपनों को गंवा बैठे. थोड़ी देर में सार्वजनिक रूप से दाहसंस्कार किया जाने वाला था. कई लोग उस में शामिल हो रहे थे, कुछ लोग अपनों की लाशें अपने साथ लिए जा रहे थे, कुछ लाशें अपनों का इंतजार कर रही थीं, कुछ ऐसे भी थे जिन्हें अपनों की लाशें भी नसीब नहीं हुई थीं, वे पागलों की तरह उन्हें खोज रहे थे, रो रहे थे, चिल्ला रहे थे. इंसान कभी कल्पना भी नहीं करता है कि जीवन में उसे ऐसे दर्दनाक दौर का सामना करना पड़ जाएगा. भयानक दृश्य था, एकसाथ इतनी लाशें जल रही थीं, इतनी भारी संख्या में लोग विलाप कर रहे थे. ऐसे अवसर पर मानवीय चेतना विशेष जागृत हो उठती है तथा मनमस्तिष्क में सवालों की झड़ी लग जाती है, ‘हमारे साथ ही ऐसा क्यों हुआ, किस गलती की सजा मिली है, ऐसी तो कोई गलती की हो, याद ही नहीं आता. हम अपनों से बिछड़ कर जीने के लिए क्यों अभिशप्त हुए वगैरवगैरा.’ दाहसंस्कार के बाद मैं नीता और रिया के सामान को समेट कर इधरउधर घूम रहा था. काफी भिखारी भी पहुंच गए थे, काफी कुछ तो उन्हें दे दिया यह सोच कर कि जिन का सामान है वे तो चले गए, चलो किसी के तो काम आएगा, किंतु इस सोच के बाद भी सब न दिया जा सका. कुछ सामान समेट कर अपने साथ रख लिया, मानो इस बहाने नीता और रिया मेरे साथ हों.

मैं नीता और रिया की यादों के समुद्र में गोते लगा रहा था, दुख का दर्द असहनीय था. लगता था मानो वह कलेजे को चीर कर निकल जाएगा. पटना वापस लौटना था, मन होता कहीं भाग जाऊं, क्या करूंगा पत्नी और बेटी के बिना घर में, उन के बिना जीने की कल्पना से ही कलेजा मुंह को आता था, फिर भी लौटना तो था ही. अचानक उस युवती पर नजर ठहर गई. वह भी अपने मातापिता का दाहसंस्कार कर सामान समेटे एक बैंच पर गुमसुम बैठी थी. मैं ने उस के समीप पहुंच, उस से पूछा, ‘‘तुम कहां से हो?’’

‘‘जी पटना से,’’ उस ने उदास नजरों से देखते हुए संक्षिप्त सा उत्तर दिया.

मैं ने पूछा, ‘‘रात की पटना जाने वाली ट्रेन से जाने वाली हो?’’

उस ने सहमति में सिर हिला दिया. अभी ट्रेन के लिए लगभग 3 घंटे शेष थे. मैं ने कहा, ‘‘चलो, स्टेशन ही चलते हैं.’’ वह आज्ञाकारी बच्चों की तरह साथ चल दी. मैं महसूस कर रहा था कि अत्यधिक उदासीनता के बावजूद इस युवती से जुड़ता जा रहा हूं. एक अजीब सा अपनापन महसूस करने लगा हूं इस अजनबी युवती से कुछ ही घंटों की बातचीत में ऐसा लग रहा था जैसे मैं उसे वर्षों से जानता हूं. फिर हम दोनों ट्रेन पकड़ने के लिए चल दिए. हम दोनों ट्रेन में पहुंच चुके थे. दिनभर के थकेहारे थे, सो अपनीअपनी बर्थ पर चले गए. सुबहसुबह मेरी नींद खुली. मैं ने पाया, वह भी जाग चुकी है. पटना स्टेशन आने में अभी लगभग 1 घंटा शेष था. हम दोनों की विदा होने की घड़ी नजदीक आ पहुंची थी. मैं ने उस से कहा, ‘‘मेरा नाम मानव है, वैसे नजदीकी लोग मुझे ‘मन’ पुकारते हैं. क्या मैं तुम्हारा नाम जान सकता हूं?’’

उस ने कहा, ‘‘मेरा नाम सुनयना है. मुझे मेरे नजदीकी ‘सोनू’ कहते हैं.’ कठिन समय में हम दोनों की आत्मीयता, जीवन संजीवनी का काम कर रही थी. मैं ने कहा कि मैं तुम्हें अपना मोबाइल नंबर दे देता हूं. हम मोबाइल के माध्यम से संपर्क बनाए रख सकते हैं. हम दोनों ने एकदूसरे से अपने नंबर शेयर कर लिए. हम फिर अपनों की याद में खोए गुमसुम से बैठ गए. मैं ने ही चुप्पी तोड़ते हुए कहा, ‘‘सोनू, मैं कृष्णपुरी कालोनी में शांतिपार्क अपार्टमैंट में रहता हूं. मुझे तो पटना में रहते हुए 32 साल हो गए हैं.’’ ‘‘मुझे पटना में रहते हुए मात्र 15 दिन ही हुए हैं. मैं ने यहां गर्ल्स हाई स्कूल जौइन किया है. मेरे मम्मीपापा  बहुत उत्साहित थे, विशाखापट्टनम से वे मेरी ही व्यवस्था देखने आ रहे थे. मेरा ही कुसूर है. न ही मैं यहां जौइन करती और न ही वे लोग यहां आने की सोचते और न ही इस दुर्घटना में फंसते. उन लोगों की मौत की जिम्मेदार मैं ही हूं,’’ वह भावविह्वल हो रो पड़ी.

मैं ने समझाते हुए कहा, ‘‘स्वयं को दोषी नहीं समझो. यहां प्रत्येक के आने और जाने की तिथि तय है. इस में तुम्हारा कोई दोष नहीं है. जिस को जितना मिलना है उतना ही मिलता है. हमें सदैव सकारात्मक दृष्टिकोण रखना चाहिए.’’ मेरी बातों का सोनू पर कुछ असर हुआ. उस ने स्वयं को संभाल लिया. कुछ पल शांत रहने के बाद वह बोली, ‘‘मनजी, आप कृष्णपुरी में रहते हैं न, मेरा स्कूल भी तो वहीं है.’’ मैं ने याद करते हुए कहा, ‘‘हांहां, हमारी कालोनी के सामने एक गर्ल्स स्कूल है तो, वैसे उस की 3-4 शाखाएं हैं पटना में.’’

सोनू ने कहा, ‘‘हां, शाखाएं तो हैं, किंतु मेरा अपौइंटमैंट कृष्णपुरी शाखा में हुआ है. मैं ने जौइन भी कर लिया है. अभी मैं अपनी एक फ्रैंड के साथ रहती हूं. वहां से स्कूल काफी दूर है. मैं स्कूल के आसपास ही रहने की व्यवस्था करना चाहती हूं.’’ मैं ने कहा, ‘‘हमारी कालोनी में तो काफी फ्लैट्स हैं. तुम्हें अवश्य पसंद का फ्लैट मिल जाएगा. मैं तुम्हें जल्दी से जल्दी पता कर बताता हूं.’’

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