दानेश्वरी अनुसूचित जाति की थी, जबकि उस का प्रेमी शिवकुमार कर्नाटक में मंदिरोंमठों के साथ प्रतिष्ठित पहचान रखने वाले उच्चजाति लिंगायत समाज का था.
रात के 9 बज चुके थे. तारीख थी 15 मार्च, 2022. कर्नाटक के बेंगलुरु के एक अस्पताल के बाहर शिवकुमार हिरेहला अपने खास दोस्त के साथ बेहद बेचैन था. कभी इधरउधर चहलकदमी करता तो कभी बैठ कर दोनों हाथों से अपना सिर पकड़ लेता.
वह समझ नहीं पा रहा था कि क्या करे, क्या नहीं. उस का दोस्त उसे समझाने की कोशिश कर रहा था कि गलती उस की नहीं थी. जो कुछ हुआ, वह महज एक हादसा था. दानेश्वरी को कुछ नहीं होगा, वह बच जाएगी. डाक्टर उसे बचा लेंगे.
‘‘क्या खाक बचा लेंगे डाक्टर. वह 76 फीसदी जल चुकी है. केवल आधा चेहरा, सिर और एक बांह ही तो बची है, शरीर का बहुत हिस्सा बुरी तरह से झुलस गया है. गरदन ऐंठ गई है. बड़ी मुश्किल से सांस ले पा रही है. उस की देखभाल करने वाला भी कोई नहीं है. मैं कैसे उस के मांबाप को फोन करूं, नहीं समझ पा रहा हूं. किस मुंह से कहूं कि उन की बेटी जल गई है और अस्पताल में मौत से जूझ रही है,’’ शिवकुमार परेशानी की हालत में बोला.
‘‘लाओ फोन दो, मैं काल करता हूं उस के बाप को. वह बेंगलुरु में ही तो रहते हैं. किसी को तो बुलाना ही होगा,’’ कहते हुए शिवकुमार के दोस्त ने उस के हाथ से फोन ले लिया.
‘‘इस में दानेश्वरी की बहन का नंबर है, उसे फोन कर दो...’’
शिवकुमार के कहने पर उस का दोस्त फोन मिलाने लगा. 2-3 बार डायल करने के बाद दानेश्वरी की बहन का फोन लग गया. उसे तुरंत बेंगलुरु जाने वाले हाईवे के पास पैट्रोल पंप से 200 मीटर की दूरी पर मथरू अस्पताल आने के लिए कहा.
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