भारत में आम की विभिन्न किस्मों की खेती की जाती है, लेकिन पसंद के मामले में दशहरी पहले नंबर पर है, खासकर उत्तर प्रदेश में दशहरी फल का आकार मध्यम होता है. आकार लंबे पीले रंग के फलों के साथ होता है, लेकिन दशहरी आम (सिंह एट अल, 2006) में टिश्यू सौफ्टनिंग (जैली सीड) विकार की समस्या बहुत अधिक होती है.

भारत में कई व्यावसायिक रूप से उगाई जाने वाली आम की किस्में जैसे दशहरी, लंगड़ा, चौसा, बाम्बे ग्रीन (सिंह 2011, श्रीवास्तव एट अल, 2015) या विदेशी किस्में जैसे ‘टोमी एटकिंस’, ‘सैंसेशन’, ‘जिल’ और ‘कैंट’ (हृशह्यह्लद्धह्व4ह्यद्ग 1993) जैली सीड विकार के लिए अतिसंवेदनशील होते हैं.

इन किस्मों में दशहरी में जैली सीड (बीज के चारों ओर के गूदे के ऊतकों का बहुत ज्यादा गलना) की घटना बहुत ज्यादा है, इसलिए इस पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है. इस ने इस किस्म की निर्यात क्षमता को कम कर दिया है. इस के कारण दशहरी फलों की शैल्फ लाइफ कम हो जाती है.

आम में जैली सीड क्या है

आम से जुड़े विकार (मैंगिफेरा इंडिका एल) न केवल भारत में, बल्कि दुनियाभर में उत्पादकों को प्रभावित करते हैं. ये विकार फलों की गुणवत्ता को कम कर के भारी नुकसान पहुंचा सकते हैं. शारीरिक विकारों में, स्टैम ऐंड कैविटी, जैली सीड और सौफ्ट नाक आम के फलों को प्रभावित कर रहे हैं और फल के विभिन्न भागों (रेमंड एट अल, 1998) को प्रभावित करते हैं.

जैली सीड का वर्णन सब से पहले वैन लेलीवेल्ड और स्मिथ (1979) द्वारा किया गया था, जिन का कहना था कि इस विकार में, सीड (बीज) के आसपास के क्षेत्र में मेसोकार्प का टूटना होता है. प्रभावित भाग स्वादहीन हो जाता है और बाद के चरणों में फीका पड़ सकता है.

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