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Satyakatha: तांत्रिक का इंद्रजाल

35साल का योगेश उर्फ पप्पू नामदेव अपनी 32 वर्षीय पत्नी सुनीता व 12 साल के बेटे दिव्यांश के साथ मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले के बानापुरा के वार्ड नंबर 3 दुर्गा कालोनी में रहता था. योगेश पान की दुकान चलाता था, जबकि पत्नी सुनीता घर पर ही आटा चक्की और किराना दुकान चलाती थी.

4 नवंबर की सुबह को कालोनी के लोग अपनी जरूरत का सामान लेने किराना दुकान पर आ रहे थे, लेकिन अभी तक योगेश की दुकान का दरवाजा नहीं खुला था. पड़ोसी और कालोनी के लोग इस बात को ले कर आश्चर्य भी व्यक्त कर रहे थे कि आज योगेश की दुकान क्यों नहीं खुली. क्योंकि अकसर योगेश सुबह जल्दी उठ कर किराना दुकान खोल लेता था.

आसपास रहने वाले लोग अपने घरों में दीवाली की तैयारियों में जुटे थे. योगेश के घर के सामने किसी तरह की हलचल न देख कर लोगों ने यह अनुमान लगाया कि आज अमावस्या है और योगेश शायद अपने परिवार के साथ नर्मदा नदी में स्नान करने आंवली घाट गया होगा.

कालोनी के लोगों को पता था कि योगेश के मातापिता आंवली घाट में पूजन सामग्री की दुकान चलाते हैं. अकसर ही पूर्णिमा और अमावस्या पर योगेश अपने परिवार के साथ वहां जाता रहता था. पिछले पखवाड़े ही वह अपने 8 साल के बेटे को भी वहां छोड़ आया था.

दीवाली की शाम करीब 4 बजे थे. तभी योगेश के घर के सामने एक बाइक आ कर रुकी. उन्होंने दरवाजे पर दस्तक दी. दरअसल, योगेश के घर के सामने उस की दुकान की शटर लगा हुआ था. वहीं से हो कर उस के घर के अंदर जाने का रास्ता था.

काफी देर तक योगेश के घर का दरवाजा (शटर) खटखटाया, मगर किसी ने शटर नहीं खोला. आवाज सुन कर पड़ोसी भी आ गए.

बाइक पर सवार लोगों ने उन्हें बताया कि वे बनापुरा के ही रहने वाले हैं, आज आंवली घाट नर्मदा स्नान करने गए थे. वहां पर नारियल प्रसाद खरीदते समय योगेश के पिता से परिचय हुआ तो उन्होंने कहा, ‘‘आज दीपावली का दिन है योगेश और बच्चों के लिए देवी मां का प्रसाद ले जाना.’’

योगेश के पिता के भेजे प्रसाद को देने के लिए वे काफी देर से शटर खटखटा रहे हैं, मगर कोई अंदर से उन की बात सुन ही नहीं रहा.

उन दोनों युवकों की बात सुन कर आसपास रहने वाले लोग आ गए और उन्होंने शटर को जोरजोर से पीटना शुरू कर दिया. अंदर से कोई जवाब न मिलने पर एक युवक ने खिड़की से झांक कर देखा तो उस की आंखें फटी रह गईं.

अंदर का मंजर खौफनाक था. कमरे के अंदर योगेश, उस की पत्नी और बेटे के रक्तरंजित हालत में पलंग पर पड़े हुए थे.

जैसे ही कालोनी में यह खबर फैली तो योगेश के घर के सामने कालोनी के लोग जमा होने लगे. इसी बीच किसी ने सिवनी मालवा पुलिस थाने में फोन कर के मामले की जानकारी दे दी.

सिवनी मालवा पुलिस थाने के टीआई जितेंद्र सिंह यादव को जैसे ही इस घटना की सूचना मिली, उन्होंने जिले के आला अधिकारियों को सूचना दी और पुलिस बल के साथ बनापुरा की दुर्गा कालोनी पहुंच गए.

योगेश के मकान में सामने की तरफ 2 शटर लगे हुए थे. एक शटर में किराना दुकान, जबकि दूसरी में आटा चक्की लगी हुई थी. आटा चक्की वाले तरफ से ही योगेश के मकान में अंदर जाने का रास्ता था.

पुलिस के वहां पहुंचते ही जब आटा चक्की दुकान का शटर खोल कर देखा तो वह अंदर से बंद नहीं था. जैसे ही पुलिस टीम ने शटर को उठाया, वह आसानी से खुल गया. उसी रास्ते से पुलिस टीम ने योगेश के घर के अंदर प्रवेश किया.

अंदर बैडरूम में एक पलंग पर योगेश नामदेव उर्फ पप्पू, पत्नी सुनीता नामदेव और दूसरे पलंग पर उस के 12 साल के बेटे दिव्यांश के शव पड़े हुए थे. तीनों के सिर पर चोट के साथ गले पर किसी धारदार हथियार के निशान साफ दिख रहे थे.

पलंग समेत आसपास दीवार पर खून के छींटे साफ दिखाई दे रहे थे. घर के कमरे में सामान बिखरा हुआ था. एक कमरे में जलता हुआ दीपक और पूजा की सामग्री रखी हुई थी.

इस दिल दहला देने वाली घटना की खबर सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो चुकी थी. खबर मिलते ही होशंगाबाद जिले के एसपी डा. गुरुकरन सिंह, एएसपी अवधेश प्रताप सिंह, एसडीपीओ सौम्या अग्रवाल, फोरैंसिक टीम और डौग स्क्वायड मौके पर आ चुकी थी.

घटना की खबर आंवली घाट में रहने वाले योगेश के पिता को दी गई. योगेश का एक बेटा अपने दादादादी के पास रहता था. खबर मिलते ही आंवली घाट से योगेश के मातापिता उस के बेटे को ले कर आ चुके थे. अपने बेटे, बहू और पोते की मौत के सदमे से उन का रोरो कर बुरा हाल था.

पुलिस ने तीनों शवों को बरामद कर दूसरे दिन सुबह सिवनी मालवा के सरकारी अस्पताल में पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया, जिस के बाद तीनों शवों को योगेश के 70 साल के बूढ़े पिता विनोद कुमार नामदेव को सौंप दिया गया.

घर से तीनों की अर्थियां एक साथ निकलीं तो दुर्गा कालोनी के रहवासियों की आंखें नम हो गईं. दीवाली पर रोशनी की जगह कालोनी में चारों तरफ सन्नाटा पसरा रहा.

एसपी गुरुकरण सिंह, एएसपी अवधेश प्रताप सिंह ने मौके पर जा कर जांचपड़ताल कर घटनास्थल के कमरे को पूरी तरह सील करने का आदेश दिया. और हत्यारों की तलाश के लिए एसडीपीओ सौम्या अग्रवाल, टीआई जितेंद्र सिंह यादव, जिला पुलिस लाइन से इंसपेक्टर उमाशंकर यादव, गौरव सिंह बुंदेला के नेतृत्व में 4 अलगअलग टीमें गठित कीं.

खोजी कुत्ते के द्वारा घटनास्थल का निरीक्षण कराया गया. खोजी कुत्ते के बानापुरा रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म-1 तक जा कर रुकने से यह अनुमान लगाया गया कि शायद हत्या के आरोपी वारदात को अंजाम देने के बाद किसी ट्रेन से या प्लेटफार्म से गुजरे होंगे.

दुर्गा कालोनी में दीपावली का त्यौहार मातम में बदल चुका था. एक साथ हुए 3 मर्डर की वजह से कालोनी के लोग दहशत में थे. पुलिस ने दुर्गा कालोनी के लगभग दरजन भर महिला पुरुषों के बयान दर्ज कर हत्या के कारणों को जानने की कोशिश की.

नामदेव परिवार के 3 सदस्यों की हत्या की वजह जानने के लिए पुलिस ने मृतक योगेश के पिता विनोद नामदेव, माता रुकमणी एवं 8 साल के बेटे से आंवली घाट में जा कर गहन पूछताछ की.

‘‘आप के बेटे की किसी से कोई रंजिश थी क्या?’’ टीआई जितेंद्र सिंह ने विनोद नामदेव से पूछा.

‘‘नहीं साहब, पप्पू की किसी से कोई रंजिश नहीं थी, वह तो दिन भर अपनी दुकान पर ही रहता था.’’ विनोद ने कहा.

‘‘तो फिर किसी पर शक है तुम्हें?’’

‘‘नहीं साहब, कुछ समझ नहीं आ रहा. हां, इतना जरूर है कि पिछले 2 महीने से पप्पू के घर पर अजीब तरीके से चोरी हो रही थी.’’

‘‘तो फिर चोरी की रिपोर्ट दर्ज क्यों नहीं कराई.’’

‘‘साहब, पप्पू बताता था कि घर की अलमारी से बहू सुनीता के गहने और रुपए चोरी हो रहे थे, जिस का पता लगाने के लिए योगेश ने घर पर एक तांत्रिक से तांत्रिक क्रियाएं जरूर कराई थीं.’’

विनोद नामदेव के मुंह से तांत्रिक क्रियाएं कराने की बात सुन कर पुलिस टीम के कान खड़े हो गए. पुलिस ने घटनास्थल पर जलते हुए दीपक और पूजन सामग्री को देखा था, इस से पुलिस इस नतीजे पर पहुंची कि दीपावली के एक दिन पहले तंत्रमंत्र का खेल हुआ था.

‘‘तांत्रिक क्रियाएं करने वाला तांत्रिक कौन था?’’ पुलिस ने विनोद से पूछा.

‘‘साहब, हरदा जिले का गणेश काशिव अकसर योगेश के घर पर आ कर तंत्रमंत्र करता रहता था. वह चोरी गई वस्तुओं को वापस दिलाने के लिए तंत्रमंत्र का सहारा लेता था. घटना वाले दिन भी गणेश मुझ से बाइक में पैट्रोल भरवाने के लिए पैसे ले कर आया था.’’ विनोद नामदेव ने साफसाफ बता दिया.

पुलिस ने योगेश के घर सहित दुर्गा कालोनी में सुरक्षा बढ़ा कर आरोपियों की तलाश शुरू की तो कालोनी के लोगों से पता चला कि योगेश के घर तांत्रिक क्रियाओं को हरदा जिले के आदमपुर गांव का तांत्रिक गणेश काशिव अंजाम देता था.

तांत्रिक पिछले कुछ दिनों से मृतक के घर बारबार आ रहा था. दीपावली के एक दिन पहले भी लोगों ने उसे योगेश के घर पर देखा था.

पुलिस को तीनों मृतकों योगेश नामदेव, पत्नी सुनीता बाई व बच्चे दिव्यांश के शवों पर चोटों के निशान मिले थे. मृतकों के पास पूजा का स्थान एवं उस के पास पड़े खून के छींटे, जलता हुआ दीपक ये सभी साक्ष्य पुलिस के लिए तांत्रिक क्रियाओं की तरफ इशारा कर रहे थे.

योगेश के मौसेरे भाई से भी तांत्रिक गणेश के पूजा करने की बात पुलिस को पता चली. पुलिस की एक टीम हरदा जिले के हंडिया थाना क्षेत्र के गांव आदमपुर पहुंची और शक के आधार पर तांत्रिक गणेश काशिव को ले कर सिवनी मालवा आ गई.

गणेश ने तांत्रिक क्रियाएं करने की बात तो स्वीकार कर ली, मगर हत्या की बात से अंजान बनने की कोशिश करता रहा. पुलिस ने जब उस से सख्ती से पूछताछ की तो वह जल्दी ही टूट गया.

पुलिस पूछताछ में तांत्रिक गणेश काशिव ने अपने साथी मोनू उर्फ मोहन बामने के साथ मिल कर 3-4 नवंबर, 2021 की रात 12 बजे अमावस्या को मृतक के घर पूजा करने और उन की हत्या करने का जुर्म कुबूल कर लिया.

आरोपी गणेश ने बताया कि उस ने इंद्रजाल नामक पुस्तक से तंत्र विद्या सीखी थी. उस ने पुलिस के सामने दावा किया कि वह गायब पैसा और गायब सामग्री को वापस दिलाने की तंत्र विद्या अच्छी तरह जानता है.

वैज्ञानिक अविष्कारों के बावजूद भी पढ़ेलिखे परिवार द्वारा रुपए और गहने वापस पाने के लिए अंधविश्वास के चक्कर में पड़ कर तांत्रिक से तंत्रमंत्र कराने की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार निकली—

70 साल के विनोद नामदेव मूलत: होशंगाबाद जिले के आंवली घाट के निवासी हैं. नर्मदा नदी के तट पर पूजन सामग्री की दुकान से उन के परिवार की रोजीरोटी चलती है. विनोद का एकलौता बेटा योगेश पढ़लिख कर जवान हुआ तो वह काम की तलाश में गांव से 30 किलोमीटर दूर बनापुरा आ गया. बनापुरा में योगेश ने पान की दुकान खोल ली.

योगेश के बनाए पान के लोग दीवाने हो गए. योगेश की पान की दुकान चल पड़ी तो रोजाना हजारों रुपए की कमाई होने लगी. सन 2008 में योगेश की शादी सुनीता से हो गई. शादी के कुछ समय बाद ही बनापुरा की दुर्गा कालोनी में योगेश और सुनीता ने प्लौट ले कर मकान बना लिया.

2 बेटे दिव्यांश और अक्षांश के जन्म के बाद सुनीता के कहने पर योगेश ने घर पर आटा चक्की और छोटी सी किराना दुकान खोल ली. योगेश घर के बाहर पान की दुकान चलाता और सुनीता घर पर रह कर आटा चक्की और किराना दुकान चलाने लगी. सुबह बच्चों को स्कूल भेज कर वह दिन भर दुकान चलाने में व्यस्त रहती.

2021 के सितंबर महीने की बात है. सुनीता अपनी अलमारी में रखे गहने देख रही थी, मगर उसे उस की सोने की बालियां और अंगूठी नहीं मिल रही थी. परेशान हो कर उस ने अपने पति योगेश को यह बात बताई तो योगेश ने कहा, ‘‘अच्छे से देख लो सुनीता, तुम ने ये चीजें कहीं दूसरी जगह रख दी होंगी.’’

सुनीता ने अलमारी का कोनाकोना छान कर देख लिया, मगर उसे अंगूठी और कान की बालियां नहीं मिलीं. इस के हफ्ते भर बाद जब सुनीता ने अपना पर्स खोल कर देखा तो उस के करीब 5 हजार रुपए पर्स से गायब थे.

सुनीता इस बात को ले कर परेशान रहने लगी. उस ने योगेश से कहा, ‘‘देखो, घर से रुपए और अंगूठी, कान की बालियां गायब हो गई हैं, जरूर कोई हमारे ऊपर जादूटोना कर रहा है.’’

‘‘तुम कैसी दकियानूसी बातें कर रही हो, घर से कैसे कोई चीज गायब हो सकती है, तुम्हें कुछ याद रहता नहीं. कहीं रख दी होगी.’’ योगेश ने उसे झिड़कते हुए कहा.

सुनीता के दिमाग में शक का कीड़ा घुस गया था, उसे लग रहा था कि किसी ने उस के रुपए और गहने गायब कर दिए हैं.

इसी दौरान जब योगेश की मौसी का लड़का मनीष उस के घर आया तो सुनीता ने उसे रुपए और गहने गायब होने की बात बताई तो मनीष बोला, ‘‘भाभी, मैं एक तांत्रिक बंजारा बाबा को जानता हूं, वह लोगों के गुम हो गए सामान को वापस दिला देता है.’’

‘‘भैया, तुम बंजारा बाबा से बात कर लो न, मुझे भी मेरे रुपए और गहने वापस चाहिए.’’ सुनीता के तो जैसे मन की मुराद पूरी हो गई, उस ने चहकते हुए मनीष से कहा.

मनीष 2-3 दिन बाद बंजारा बाबा को ले कर योगेश के घर आ गया. बंजारा बाबा का असली नाम गणेश काशिव था. 25 साल का गणेश काशिव हरदा जिले के हंडिया थाना क्षेत्र के गांव आदमपुर का रहने वाला था.

गणेश को जिस उम्र में स्कूल की किताबें पढ़नी चाहिए थीं, उस उम्र में वह तंत्रमंत्र की किताबें पढ़ने लगा था. तंत्रमंत्र और झाड़फूंक में उस का नाम आसपास के इलाकों में प्रसिद्ध हो गया था.

गणेश झाड़फूंक और तांत्रिक साधना के लिए बनापुरा आता रहता था. वह लोगों को बताता था कि उस के पास इंद्रजाल नाम की पुस्तक है, जिस में जमीन में गड़े धन का पता लगाने और चोरी किया धन वापस करने के लिए तंत्रमंत्र करने के उपाय बताए गए हैं.

बंजारा बाबा अकसर अमावस्या की रात को सुनसान जगह पर तंत्र साधना करता था. उस के इस काम में मोहन बामने उर्फ मोनू उस की मदद करता था. 30 साल का मोनू भी उस के गांव के पास रीझगांव का रहने वाला था.

हमारे समाज में अंधविश्वास की जड़ें भी अमरबेल की तरह इस तरह फैली हुई हैं कि पढ़ेलिखे लोग भी इसे छोड़ने को तैयार नहीं हैं. सुनीता और योगेश भी तांत्रिक के बिछाए इंद्रजाल में फंस ही गए.

गणेश अकसर योगेश के घर आ कर कहता कि उस के घर में किसी प्रेत का साया है, इसी वजह से घर का सामान गायब हो रहा है. गणेश ने योगेश को 6 ताबीज बना कर देते हुए कहा था कि इन्हें घर के सभी लोग अपने गले में हमेशा पहन कर रखें तो प्रेत का साया उन का कुछ नहीं बिगाड़ सकता.

दीपावली के सप्ताह भर पहले गणेश ने सुनीता को बताया कि दीपावली के एक दिन पहले की रात में वह उस के घर आ कर तांत्रिक साधना करेगा, इस से उस के घर से गायब सभी सामान घर में आ जाएगा.

उस ने तांत्रिक साधना के लिए कुछ सामान की लिस्ट बना कर उसे दी थी. योगेश काफी मशक्कत के बाद तांत्रिक क्रिया में उपयोग होने वाले सामान जुटा पाया था. तांत्रिक गणेश के बनाए प्लान के मुताबिक वह अपने सहयोगी मोनू को ले कर योगेश के घर रूप चौदस की शाम ही पहुंच गया.

गणेश ने इंद्रजाल नाम की तंत्रमंत्र से संबंधित पुस्तक में पढ़ा था कि अमावस्या की मध्यरात्रि में किसी की बलि चढ़ाने से उसे तांत्रिक शक्तियां प्राप्त हो जाती हैं. इन शक्तियों के द्वारा वह जमीन में गड़े धन का पता लगाने के साथ खोए हुए रुपए, जेवरात वापस ला सकते हैं.

गणेश तंत्रमंत्र के जरिए उन शक्तियों को हासिल करना चाहता था. इसलिए उस ने अपने साथी मोनू की मदद से दीपावली के एक दिन पहले की मध्यरात्रि में तांत्रिक अनुष्ठान कर के बलि चढ़ाने का प्लान बनाया था.

योजना के मुताबिक, वे रात 9 बजे ही पूजापाठ की तैयारियों में लग गए थे. योगेश के घर में बने एक कमरे में दीपक जला कर पूजा में उपयोग होने वाले सामान को सजा कर रख लिया गया था.

सुनीता पूजा की तैयारियों के साथ खाना बनाने की तैयारी भी कर रही थी, क्योंकि गणेश ने सुनीता से बोल दिया था कि खाना तैयार कर परिवार के लोग खा लें, तांत्रिक अनुष्ठान के बाद वह खाना खा कर ही घर जाएगा.

गणेश ने एक कागज की पुडि़या सुनीता को देते हुए कहा था कि इसे सब्जी में डाल देना, इस में अभिमंत्रित भभूत (भस्म) है, जो हर बला से सब को बचा कर रहेगी.

सुनीता बहुत खुश थी, उसे भरोसा था कि बंजारा बाबा के द्वारा किए जाने वाले तांत्रिक अनुष्ठान से उस के गहने वापस मिल जाएंगे. बाबा द्वारा दी गई भभूत उस ने सब्जी में डाल दी.

रात के 11 बजने वाले थे तभी बाबा ने सुनीता को बुला कर कहा, ‘‘आप तीनों खाना खा कर थोड़ा आराम कर लें, तांत्रिक अनुष्ठान में 2 घंटे से भी ज्यादा का समय लगेगा.’’

तांत्रिक अनुष्ठान देखने को बाबा ने पहले ही मना कर दिया था, इसलिए सुनीता, योगेश और दिव्यांश ने एक साथ बैठ कर खाना खाया और अपनेअपने पलंग पर लेट गए. बिस्तर पर पहुंचते ही वे कब बेहोश हो गए, उन्हें पता ही नहीं चला.

इधर जैसे ही तांत्रिक अनुष्ठान खत्म हुआ तो बाबा ने मोनू को अंदर जा कर देखने को कहा. मोनू ने घर के अंदर जा कर देखा तो तीनों सो चुके थे. उस ने तसल्ली के लिए आवाज दे कर पुकारा, मगर योगेश का परिवार सब्जी में मिलाई गई जहरीली भभूत के असर से बेहोश हो चुका था.

मौके का फायदा उठा कर दोनों ने तांत्रिक क्रिया में इस्तेमाल की गई धारदार कुल्हाड़ी निकाल ली. देखते ही देखते तीनों के सिर पर जोरदार प्रहार कर उन का गला भी रेत दिया.

कुल्हाड़ी के वार से खून के छींटे दोनों के कपड़ों पर पड़ चुके थे. तीनों का काम तमाम कर गणेश और मोनू ने अलमारी में रखे गहने और रुपए निकाले और सारा सामान समेट कर वे बाइक से भाग गए.

जिस ढंग से दोनों ने घटना को अंजाम दिया था, उन्हें पकड़े जाने का जरा भी खौफ नहीं था. इसलिए वे रात को ही अपनी बाइक से हरदा जिले के अपनेअपने गांव पहुंच गए थे. पुलिस की सघन पूछताछ में जब इस बात का खुलासा हुआ कि गणेश और मोनू तंत्रमंत्र के लिए बनापुरा आते थे, वे पुलिस की नजरों से ज्यादा दिन छिप नहीं सके.

सिवनी मालवा पुलिस ने तांत्रिक गणेश और मोनू को उन के गांव से गिरफ्तार कर लिया. आरोपियों के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201, 460, 380 के तहत अपराध दर्ज कर 8 नवंबर, 2021 को दोनों को कोर्ट में पेश कर एक दिन के पुलिस रिमांड पर ले कर पूछताछ में सारे मामले का खुलासा हुआ.

तांत्रिक की निशानदेही पर घटना में प्रयुक्त कुल्हाड़ी, खून से सने हुए कपड़े और योगेश के घर से चुराए हुए रुपए, सोने का मंगलसूत्र बरामद कर लिया. 10 नवंबर को दोनों को कोर्ट में पेश किया गया, जहां से उन्हें होशंगाबाद जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों और मीडिया रिपोर्ट पर आधारित.

वो क्या जाने पीर पराई: हेमंत की मृत्यु के बाद विभा के साथ क्या हुआ?

पापा ने चीतल के बाद गाड़ी रोकी नहीं, आप तो आते ही बस…’’ मेरा बड़ा बेटा मुंह बिचका कर बोला. छोटे से तो कोई उम्मीद वैसे भी नहीं थी.

वो क्या जाने पीर पराई- भाग 1: हेमंत की मृत्यु के बाद विभा के साथ क्या हुआ?

आखिर किस का सहारा शेष बचा था ममता के लिए. हम दशहरे की छुट्टियां मसूरी में बिता कर लौटे. विमल ने कार से सामान निकाल कर बैडरूम में रखा और फिर लैटरबौक्स से अपनी डाक निकाल कर सोफे में धंस गए.

बहुत लगाव है उन्हें अपनी डाक से. प्रत्येक डाक का जैसे उन्हें सदियों से इंतजार रहता हो.

बच्चे आते ही टीवी चालू कर बैठ गए.

‘‘आते ही टीवी,’’ मैं ने ?ाल्ला कर कहा, ‘‘तुम लोग हफ्ताभर पूरी तरह मस्ती करते रहे. थोड़ा मेरे साथ भी हाथ बंटा दो तो घर जल्दी संभल जाए.’’

‘‘मम्मी, मैं पूरी तरह थका हूं. बैठेबैठे बोर हो गया. पापा ने चीतल के बाद गाड़ी रोकी नहीं, आप तो आते ही बस…’’ मेरा बड़ा बेटा मुंह बिचका कर बोला. छोटे से तो कोई उम्मीद वैसे भी नहीं थी.

‘‘अच्छा ठीक है,’’ मैं ने बरामदे का दरवाजा खोलते हुए कहा, ‘‘गमलों में पानी ही डाल दो, पौधे कैसे सूख गए हैं.’’

परंतु मु?ो मालूम था, मेरी बात सब अनसुनी ही कर देते हैं. जोर से बोलूंगी तो दोनों भागते हुए यहां चले आएंगे. फर्श पर पड़े सूखे पत्तों और धूल की मोटीमोटी परतों ने हिला कर रख दिया. छुट्टियों से पहले और बाद का सारा काम सारी मौजमस्ती को ?ाठला कर रख देता है. न जाने कितना समय लगेगा फिर से घर को ढंग से चलाने में.

‘‘विभा,’’ विमल ने जोर से आवाज दे कर पूछा, ‘‘कहीं से चाय मिल सकती है क्या? गाड़ी चलातेचलाते थक गया हूं. चाय मिल जाती तो थोड़ा आराम कर लेता.’’

‘‘अभी भला दूध कहां मिलेगा?

5 बजे से पहले तो दुकानें खुलती ही नहीं हैं. फिर भी सामने वाली से पूछती हूं,’’ मेरा इशारा पड़ोसिन की तरफ था.

गिलास ले कर पड़ोसिन के यहां गई तो उस ने कोरियर द्वारा आया एक लिफाफा और तार भी दिया.

‘‘एचडीएफसी से तुम्हारे लिए कोरियर है… शायद स्टेटमैंट होगी,’’ मैं ने विमल के हाथ में लिफाफा पकड़ाते हुए कहा, ‘‘और कानपुर से ममता का तार आया है.’’

‘‘तार?’’ विमल ने चौंकते हुए पूछा, ‘‘इस जमाने में भला लोग तार भेजते हैं, क्याक्या लिखा है?’’

मैं ने तार पढ़ा, उलटपलट कर 2-3 बार देखा और सवालिया भाव से विमल की ओर कांपते हाथों से बढ़ा कर कहा, ‘‘तुम्हीं पढ़ो, मु?ो तो सम?ा में नहीं आ रहा.’’

तार पढ़ते ही विमल के माथे पर पसीने की बूंदें चमकने लगीं. वे धीमी आवाज में बोले, ‘‘हेमंत नहीं रहा, 18 को डैथ हो गई है, आज चौथा था.’’

विमल ने मेरी तरफ देखते हुए आगे कहा, ‘‘ऐसा कैसे हो सकता है? 40 साल भी पूरे नहीं किए उस ने. अगली 25 तारीख को जन्मदिन था उस का.’’

यह सुन कर मेरा गला भर आया.

‘‘मसूरी जाने से पहले मेरी उस से बात हुई थी. क्रिसमस की छुट्टियों पर यहां आने का वादा था उस ने,’’ विमल संजीदा हो कर बोले, ‘‘तुम कहीं और पता करो. सीधा ममता से क्यों नहीं बात कर लेतीं.’’

‘‘नहींनहीं, यह मु?ा से नहीं होगा,’’ कहतेकहते मेरा कंठ अवरुद्ध हो गया और आंसू छलक आए. मैं ने फिर भी हिम्मत कर के हेमंत की भाभी से नोएडा में बात की. पता चला, सोते हुए ही अस्थमा का अटैक पड़ा और फिर दूसरी सांस न ले सका.

‘‘ऐसा भी होता है क्या?’’ मैं ने भावशून्यता से विमल से पूछा, ‘‘इतना तो बीमार नहीं था वह,’’ कहतेकहते मेरे शब्द बर्फ की तरह जम गए और अश्रुप्रवाह था कि रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था. चुन्नी के पल्लू से देर तक मुंह ढके मैं सोफे पर पड़ी रही. मरघट का सन्नाटा भी शायद इतना भयानक न हो जो अब हो चला था. विमल भी कुछ नहीं बोले, बस, मु?ो रो लेने दिया. उन की आंखों की कोरों से छलकते आंसू भी मु?ा से छिप न सके.

पौधों वाले माड़साब का मिशन हरियालो रेगिस्तान

बाड़मेर जिले की ग्राम पंचायत इंद्रोई निवासी अध्यापक और पर्यावरण कार्यकर्ता भेराराम भाखर द्वारा जुलाई, 1999 से पश्चिमी राजस्थान में मरुस्थलीकरण रोकथाम के लिए पारिवारिक वानिकी मुहिम को बढ़ावा देने के लिए ‘पौधे लगाओ जीवन बचाओ’ अभियान से वृक्षारोपण किया जा रहा है. इन के द्वारा हर साल एक माह का वेतन पौधारोपण और पर्यावरण संरक्षण पर खर्च किया जा रहा है. अब तक अपने वेतन व आमजन के सहयोग से 2 लाख, 72 हजार से अधिक पौधे लगाने का काम किया है.

बाइक पर 22 हजार किलोमीटर पर्यावरण चेतना यात्रा निकाल कर उन्होंने लाखों लोगों को अभियान से जोड़ा है और पर्यावरण संरक्षण के प्रति लोगों को जागरूक किया है.

इस साल दीर्घजीवी और विपरीत परिस्थितियों में भी हराभरा रहने वाला पेड़  जाल के 7 लाख बीज एकत्रित कर 8 जिलों बीकानेर, गंगानगर, हनुमानगढ़, सीकर, चूरू, जैसलमेर, बाड़मेर में बीज वितरण कर गांवगांव जाल के पौधे लगाने का अभियान शुरू किया है.

भेराराम भाखर ‘लैंड फौर लाइफ’ अवार्ड विजेता प्रोफैसर श्याम सुंदर ज्याणी द्वारा चलाए ‘पारिवारिक वानिकी’ अभियान के मजबूत स्तंभ हैं.

पर्यावरण के क्षेत्र में बेहतरीन काम करने के उपलक्ष्य में इन्हें 26 जनवरी, 2022 को गणतंत्र दिवस पर जिला प्रशासन बाड़मेर द्वारा जिला स्तर पर सम्मानित किया गया.

शिक्षक भेराराम भाखर छुट्टियों के दौरान अपने घर पर नहीं बैठते हैं, बल्कि अपनी बाइक पर गांवगांव लोडिंग प्लांटों का भ्रमण करते हैं और ग्रामीणों को पर्यावरण संकट से बचने, नुकसान से बचने और मुफ्त पौधों को वितरित करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं.

उन्होंने इस अभियान की शुरुआत वर्ष 1999 में अपने छात्र जीवन के दौरान की थी. पहली बार उन्होंने जिला मुख्यालय पर 50 पौधे लगा कर अभियान की शुरुआत की थी. इस के बाद उन्होंने ग्लोबल वार्मिंग से होने वाले नुकसान का अध्ययन किया और इस से बचने के लिए वृक्षारोपण और पर्यावरण संरक्षण के अभियान को जारी रखा.

23 साल की छुट्टियों में शिक्षक भेराराम भाखर खुद नर्सरी से पौधे खरीद कर लोगों के साथ खड़े हो कर उन को रोपते हैं और शपथपत्र भर कर उन की सुरक्षा की जिम्मेदारी लेते हैं, ताकि पौधों की सही देखभाल हो सके. अब तक वे 2.72 लाख पौधे अपने हाथों से लगा चुके हैं, जिन में से ज्यादातर पेड़ बन चुके हैं.

शिक्षक भेराराम भाखर की बाइक के पीछे हमेशा पौधों से भरा कैरेट होता है. इस वजह से गांव के लोग और शिक्षक इन्हें ‘पौधों वाले माड़साब’ के नाम से भी पुकारते हैं. हाल ही में उन्होंने पर्यावरण जागरूकता यात्रा के तहत राज्य के विभिन्न जिलों में 22 हजार किलोमीटर की यात्रा की और लोगों को वृक्षारोपण के प्रति जागरूक किया.

शिक्षक भेराराम भाखर ने सीमावर्ती क्षेत्र के गांवों सहित 689 ग्राम पंचायतों और स्कूलों का दौरा किया और सर्दी में और अन्य राज्य की छुट्टियों के दौरान नीम, गिलोय और सहजन सहित दर्जनों पौधे लगाए. इस दौरान उन्होंने प्रत्येक ग्राम पंचायत मुख्यालय में नुक्कड़ सभाएं की और लोगों को पर्यावरण संकट और इस के संरक्षण की आवश्यकता से अवगत कराया.

इस दौरान सैकड़ों की संख्या में ग्रामीणों ने पेड़पौधों व वन्यजीवों की सुरक्षा के लिए संकल्पपत्र भर कर उन का साथ दिया. इस तरह उन्होंने ग्राम पंचायतों और स्कूलों में ढाई लाख से ज्यादा पौधे लगाए. मरुस्थलीकरण रोकने और पर्यावरण को संतुलित करने के लिए अब

7 रेगिस्तानी जिलों में 5 लाख पेड़ लगाने का लक्ष्य रखा गया है.

उन्होंने पर्यावरण संरक्षण के लिए

5 राज्यों में पर्यावरण जागरूकता यात्राएं भी की हैं. इस के तहत उन्होंने राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और दिल्ली का दौरा किया और लोगों को पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक किया.

बंगले वाली- भाग 2: नेहा को क्यों शर्मिंदगी झेलनी पड़ी?

उसी प्यारे से अपने से महल्ले में उस की पड़ोसी थी कांची. दोनों के पिता एक सरकारी स्कूल में टीचर थे, वे दोनों भी उसी स्कूल में, एक ही कक्षा में पढ़ती थीं. दांतकाटी रोटी थी, फर्क बस इतना था कि जहां कांची कक्षा में प्रथम आती थी, वहीं नेहा सब से आखिरी स्थान पर. यों समझो, बस जैसेतैसे नैया पार हो जाती थी. एक फर्क और था दोनों में, कांची साधारण नाकनक्श की सांवली सी लड़़की थी, वहीं नेहा एकदम गोरीचिट्टी, तीखे नैननक्श, लंबे बाल. ऐसा लगता था जैसे बड़ी फुरसत से बनाया है. पर इन सब के परे उन की दोस्ती थी, उसे कांची की पढ़ाई से या कांची को उस की सुंदरता से कोई फर्क नहीें पड़ता था. एकदूसरे को देखे बिना उन का गुजारा न था. पर हाय री किस्मत, उन की दोस्ती को जाने किस की नजर लग गई ?

नजर क्या लग गई? उम्र का 16वां, 17वां साल होता ही दुखदायी है, पता नहीं कितने रिश्तों की बलि चढ़ा देता है, यही तो उस के साथ हुआ. 16वां साल लगतेलगते उस का रूप ऐसा निखरा कि देखने वाला पलक झपकाना ही भूल जाए और बस यही रूप उस के सिर चढ़ कर बोलने लगा. उसे लगने लगा कि दुनिया में उस0से सुंदर कोई है ही नहीं. पहले जब कांची उसे पढ़ाई करने की सलाह देती थी, तो उस के साथ बैठ कर वो थोड़ाबहुत पढ़ लेती थी और शायद उसी की बदौलत वह 10वीं तक जैसेतैसे पहुंच गई थी. पर अब उसे कांची का टोकना अच्छा न लगता था, जिस की भड़ास वो उस के रंगरूप का मजाक उड़ा कर निकालती.

जिस दिन अर्द्धवार्षिक परीक्षा का परिणाम आया था, वो दिन शायद उन की दोस्ती का आखिरी दिन था. जहां कांची ने कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया, वहीं नेहा को सिर्फ पास भर होने लायक नंबर मिले थे. शिक्षकों की डांट से उस का मन पहले ही से खिन्न था, जैसे ही कांची ने उसे समझाना चाहा, वह उस पर पूरी कक्षा के सामने कितना चिल्लाई थी. क्याक्या नहीं कहा उस ने उस दिन. ‘‘अपनी शक्ल देखी है कभी आईने में? प्रथम आ कर क्या तीर मार लोगी, कोई शादी भी नहीं करेगा तुम से. चूल्हे में जाए ऐसी पढ़ाई, मुझे कोई जरूरत नहीं है. ऊपर वाले ने मुझे ऐसा रंगरूप दिया है कि ब्याहने के लिए राजकुमारों की लाइन लग जाएगी, तुम पड़ी रहो किताबों में औंधी.’’

इतने अपमान के बाद भी कांची ने इतना तो कहा था, ‘‘रंगरूप अपनी जगह है, वो हमेशा हमारे साथ नहीं रहता, पर शिक्षा हमारी आंतरिक सुंदरता को निखारती है और हमेशा हमारे साथ रहती है.’’ और उस की आंखें भर आई थीं.

आज भी वो बातें याद कर के अपनेआप पर शर्म आती है. उस दिन के बाद उस ने मुझ से बात नहीं की, मैं तो करने से रही.

उस के बाद मेरा बिलकुल ही पढ़ने में मन नहीं लगता, बस सपनों में खोई रहती, नतीजा… 10वीं में सप्लीमेंट्री आ गई, वहीं कांची ने कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया था. कभी गुस्सा न करने वाले पिताजी का गुस्सा उस दिन चरम पर पहुंच गया. इतने गुस्से में हम भाईबहनों ने पिताजी को कभी नहीं देखा था. उन का गुस्सा जायज था, स्कूल में दबीछुपी आवाज में उन्हें सुनने को मिला था कि अपनी लड़की को तो पढ़ा नहीं पाए, दूसरों के बच्चों को क्या पढ़ाएंगे ? सारे भाईबहन तो हमेशा पिताजी से ही पढ़ते थे, बस मैं ही उस वक्त कांची के साथ पढ़ने का बहाना बना कर उस के घर भाग जाती थी. तब तो मेरी शामत ही आ गई थी समझो…

पिताजी की दिनचर्या बहुत ही व्यवस्थित थी. वे सुबह 5 बचे उठ कर टहलने जाते थे. अगले दिन से उन्होंने मुझे भी अपने साथ उठा दिया और पढ़ने बैठा कर टहलने चले गए. जब वे लौट कर आए तो देखा कि मैं किताब के ऊपर सिर रख कर सो रही हूं. उस दिन उन्होंने बहुत प्यार से मुझे पढ़ाई के महत्व के बारे में समझाया था, पर मेरे कानों पर जूं तक नहीे रेंगी. जब 4-5 दिनों तक यही हाल रहा तो पिताजी ने एक नई तरकीब निकाली. उन्होंने सुबह मुझे पढ़ने बैठाया और मेरी दोनों चोटियों को एक रस्सी से बांध कर, छत के कुंदे पर अटका दिया और मेरी गरदन बस इतनी ही हिल रही थी कि मैं किताब की तरफ देख सकूं. पढ़ने की हिदायत दे कर पिताजी टहलने चले गए.

मेरा हाल तो देखने लायक था. नींद के झोंके से जैसे ही सिर झुका, बालों की जड़ें ऐसी खिंची जैसे हजारों लाल चींटियां चिपक गई हों. उस दिन मैं ने नींद को भगाने की दिल से कोशिश की थी, पर पढ़ाई में मन भी तो लगे. एक घंटे तक नींद और चोटियों के बीच युद्ध चलता रहा और आखिरकार नींद के आगे पढ़ाई ने हार मान ली. और जब दर्द सहन करने की शक्ति खत्म हो गई, तो मैं चीख मार कर जोरजोर से रोने लगी.

पिताजी की मामूली तनख्वाह में 4 बच्चों को पालती मां… पति के आदर्शों को ढोती मां… घर के अभावों को दूसरों से ढांकतीछुपाती मां…, दिनभर कामकाज से थी, गहरी नींद में सोई हुई थी.

मेरी चीख सुन कर मां बदहवास सी उठ कर दौड़ी. मेरी हालत देख कर वहीं जड़ हो गई, चोटियों के लगातार खिंचने से मेरी पूरी गरदन लाल हो गई थी. ऊपर से रंग इतना गौरा था कि नींद और रोने से पूरा चेहरा भी लाल हो गया था, ठीक उसी वक्त पिताजी का आना हुआ.

हे राम, उस वक्त मां ने पिताजी को जो फजीहत की…, बाप रे बाप. मां ने पूरी दुनिया की लानतें पिताजी को दे मारी, मेरी फूल से बच्ची का ये क्या  हाल कर दिया? खबरदार, जो आज के बाद इस को पढ़ाया तो, आप ने किताबों में इतना सिर फोड़फोड़ कर  कौन से ताजमहल बनवा दिए हमारे लिए, कौन से कलक्टर बन गए आप… जो इसे बनाने चले हो?

मेरे जरीए मां ने शायद उस दिन एक ईमानदार शिक्षक के घर के आर्थिक अभावों का गुस्सा निकाला था, जो इतने सालों से उन के अंदर किसी सुप्त ज्वालामुखी की तरह दबा हुआ पड़ा था. किसी से न डरने वाले पिताजी भी उस दिन मां का वो रूप देख कर दंग रह गए थे, कुछ भी न बोले और उस दिन के बाद पिताजी ने मुझे मेरे हाल पर छोड़ दिया. मुझे तो समझो मुंहमांगी मुराद मिल गई थी. इस के कुछ ही दिनों बाद कांची के पिताजी का ट्रांसफर दूसरी जगह हो गया. इतना सब होने के बाद भी जाने से पहले वह मुझ से आखिरी बार मिलने आई थी, पर मैं कमरे से बाहर ही नहीें निकली और वह हमेशा के लिए चली गई.

इमली के साथ अफेयर की खबरों के बीच फहमान खान ने तोड़ी चुप्पी, पढ़ें खबर

सीरियल ‘इमली’ (Imlie) स्टार सुंबुल तौकीर खान (Sumbul Touqeer Khan) और कोस्टार फहमान खान (Fahmaan Khan) इन दिनों सुर्खियों में छाये हुए हैं. बताया जा रहा था कि दोनों स्टार एक-दूसरे को डेट कर रहे हैं. अब फहमान खान ने अफेयर की खबरों पर चुप्पी तोड़ी है.

कुछ समय पहले खबर आई थी कि सुंबुल तौकीर खान अपने कोस्टार फहमान खान को डेट कर रही हैं. कुछ समय पहले ही अर्जुन कपूर  ‘रविवार विद स्टार परिवार’ में अर्जुन कपूर ने दोनों से डेटिंग के सिलसिले में भी सवाल कर लिया था.

फहमान खान और सुंबुल तौकीर खान ने इस सवाल का जवाब देने के दौरान शर्माते नजर आये थे. फहमान खान ने डेटिंग की खबरों को खारिज कर दिया था. एक्टर ने कहा था कि फहमान और सुंबुल केवल अच्छे दोस्त हैं.

 

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फहमान खान ने इमली के साथ अफेयर को लेकर एक चौंकाने वाला बयान दिया है कि सेट पर उनकी अपनी इस कोस्टार के साथ कैसे पटती है.

 

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फहमान खान ने सुंबुल तौकीर खान की जमकर तारीफ करते दिखाई दिये. फहमान खान, इमली के साथ काम करके खुश हैं. एक इंटरव्यू के अनुसार, फहमान खान ने बताया है कि सुंबुल तौकीर खान अपने हर काम को शत प्रतिशत पूरा करती है.

 

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उन्होंने बताया कि इमली मेरी बहुत अच्छी दोस्त है. हम दोनों एक अच्छा बॉन्ड शेयर करते हैं. हमारी दोस्ती की वजह से शूटिंग करना भी आसान हो जाता है.

 

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‘रविवार विद स्टार परिवार’ के सेट पर भी फहमान खान ने इमली को लेकर चुप्पी तोड़ी थी. एक्टर ने कहा था कि सुंबुल तौकीर खान की उम्र बहुत कम है और उसकी मां भी नहीं है. उन्होंने बहुत कम उम्र में काम करना शुरू कर दिया. एक्टर ने कहा, मैं उनकी केयर करता हूं और उन्हें हर तरह से सपोर्ट करता हूं.

मैं बेरोजगार हूं, क्या करूं?

सवाल

मैं 28 साल का एक कुंआरा और बेरोजगार नौजवान हूं. मेरे घर वाले अब मुझ से उम्मीद छोड़ चुके हैं. उन की नजर में मैं निठल्ला और नकारा हूं. इतना होने के बावजूद मेरे कान पर जूं तक नहीं रेंगती है. मुझे अपना निकम्मापन पसंद आने लगा है. पर अब मेरे घर वाले बोल रहे हैं कि या तो कमा कर लाओ, नहीं तो कहीं और चले जाओ. इस बात से मैं डर गया हूं. मैं क्या करूं?

जवाब

मुफ्त की रोटी की लत आप को लग चुकी है और आप अव्वल दर्जे के बेशर्म नौजवान हैं, जिस की गैरत घर वालों द्वारा लतियाए जाने के बाद भी नहीं जाग रही तो कोई आप का क्या बिगाड़ लेगा.

अब आप के सामने 3 ही रास्ते बचे हैं. पहला, बेशर्मों की तरह घर में पड़ेपड़े घर वालों की छाती पर मूंग दलते रहिए. दूसरा, बाहर कहीं जा कर दूसरों की जूठन से जिंदगी बसर कीजिए, लेकिन अगर तीसरे रास्ते पर चलेंगे, तो आप को जिंदगी के सही माने मिल जाएंगे. वह यह है कि मेहनत कीजिए, पैसा कमाइए और अपने पसीने की खाइए.

गैरत की जिंदगी जिएंगे, तो आप को लगेगा कि खाने का जायका ही बदल गया है. इस से लोगों का नजरिया बदल जाएगा. शादी के रिश्ते भी आने लगेंगे. निकम्मापन छोडि़ए और निकल पड़ें काम की तलाश में. एक बेहतर जिंदगी आप का इंतजार कर रही है.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

सातवें आसमान की जमीन: क्या सुप्रिया को उस हकीकत के बारे में पता चला?

ड्राइंगरूम में हो रहे शोर से परेशान हो कर किचन में काम कर रही बड़ी दी वहीं से चिल्लाईं, ‘‘अरे तुम लोगों को यह क्या हो गया है. थोड़ी देर शांति से नहीं रह सकते? और यह नंदा, यह तो पागल हो गई है.’’

‘‘अरे दीदी मौका ही ऐसा है. इस मौके पर हम भला कैसे शांत रह सकते हैं. सुप्रिया दीदी टीवी पर आने वाली हैं, वह भी अपने मनपसंद हीरो के साथ, मात्र उन्हीं की पसंद के क्यों. अरे सभी के मनपसंद हीरो के साथ. अब भी आप शांत रहने के लिए कहेंगी.’’ नंदा ने कहा.

सब के सब नंदा को ताकने लगे. किसी की कुछ समझ में नहीं आ रहा था. सुप्रिया को ऐसा क्या मिल गया और कौन सा हीरो इस के लिए निमंत्रण कार्ड ले कर आया है, यह सब पता लगाना घर वालों के लिए आसान नहीं था. और नंदा तो इस तरह उत्साह में थी कि घर वालों को कुछ बताने के बजाए इस अजीबोगरीब खबर को फोन से दोस्तों को बताने में लगी थी.

नंदा की इस शरारत पर बड़ी दी ने खीझ कर उसे पकड़ते हुए कहा, ‘‘तेरा यह कौन सा नया नाटक है, कुछ बता तो सही.’’

‘‘बड़ी दी, सुप्रिया दीदी एक कांटेस्ट जीत गई हैं. ईनाम में उसे अपने फेवरिट हीरो के साथ टीवी पर आना है. अब तो समझ में आ गया कि नहीं?’’ नंदा ने स्पष्ट किया.

‘‘तुम्हारा मतलब सुप्रिया टीवी पर अपने ड्रीम बौय के साथ, फैंटास्टिक.’’ संदीप ने किताब बंद करते हुए नंदा की बात का समर्थन किया. नंदा ने आगे कहा, ‘‘भैया इतना ही नहीं, वह हीरो, सुप्रिया दीदी के लिए परफोर्म करेगा, गाना गाएगा. डांस करेगा. अब और क्या चाहिए? पर है कहां अपनी गोल्डन गर्ल?’’

‘‘नहा रही है लकी गर्ल, लेकिन उस ने तो मुझ से कुछ बताया ही नहीं, पर बाकी लोग तो हैं. सुप्रिया दीदी को लग रहा होगा, पता नहीं किसे बुरा लग जाए. इसीलिए किसी से कुछ कहने की जरूरत नहीं है. और जीतना तो एक सपना था. उसे कहां पता था कि सच हो जाएगा.’’

तभी परदे के पीछे से सुप्रिया आती दिखाई दी. अपार आनंद में डूबी सुप्रिया के चेहरे पर अजीब तरह की चमक थी. नंदा ने दौड़ कर सुप्रिया को बांहों में भर लिया, ‘‘सुप्रिया दी…लकी…लकी गर्ल.’’

दोनों एकदूसरे का हाथ पकड़ कर नाचने लगीं. थक गईं तो निढाल हो कर सोफे पर गिर पड़ीं. इस बीच किसी को भी एक भी शब्द बोलने का मौका नहीं मिला. दोनों के सोफे पर बैठते ही बड़ी दी बोलीं, ‘‘यह क्या पागलपन है, सुप्रिया, घर में किसी को कुछ बताए बगैर तुम कांटेस्ट के फाइनल तक पहुंच गईं. चलो जो किया, ठीक किया. अमित को इस बारे में बताया है?’’

सुप्रिया आंखों से मधुर मुसकान मुसकराईं, उस के बजाए नंदा बोली, ‘‘बड़ी दी, इस तरह के काम कोई पूछ कर करता है? मान लीजिए आप से पूछने आती तो आप कांटेस्ट में हिस्सा लेने देतीं? दीदी अब छोड़ो इसे टीवी पर देखने के लिए तैयार हो जाइए. कमर कस कर तैयारी शुरू कर दीजिए.’’

‘‘तैयारी किस बात की. कोई ब्याह थोड़े ही करने जा रही हैं,’’ वह थोड़ा नाराज हो कर बोलीं, ‘‘आजकल के बच्चे भी न पागल… नादान…’’

‘‘दीदी, ब्याह क्या, यह तो उस से भी जबरदस्त है. लाखों दिलों की धड़कन, चार्मिंग, अमेजिंग लवर बौय अपनी सुप्रिया के साथ…’’

नंदा की बात पूरी होती, उस के पहले ही शैल, सुकुमार और नेहा का झुंड आ पहुंचा. इस के बाद तो जो हंगामा मचा. कान तक पहुंचने वाला शब्द भी ठीक से सुनाई नहीं दे रहा था. बड़ी दी, भैयाभाभी और घर के अन्य लोग परेशान थे. हवा रंगबिरंगी और सुगंधित हो गई थी. कौन सी डे्रस, कैसी हेयरस्टाइल, स्किनकेयर, फुटवेयर, परफ्यूम, डायमंड या पर्ल, गोल्ड या सिलवर… बातों की पतंगें उड़ती रहीं और सुप्रिया उन पर सवार विचारों में डूबी थी कि जीवन इतना भी सुंदर और अद्भुत हो सकता है.

वह असाधारण और अविस्मरणीय घटना घटी और विलीन हो गई. वह दृश्य देखते समय सुप्रिया के मित्रों में जो उत्तेजना थी, उस का वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता. फिर भी इस पागल उत्साह में बड़ी दीदी ने थोड़ा अवरोध जरूर पैदा किया था. इस के बावजूद उन्होंने सभी को आइस्क्रीम खिलाई थी. सुप्रिया की ठसक देख कर सभी ने अनुभव किया कि अमित कितना भाग्यशाली है. उस की अनुपस्थिति थोड़ा खल जरूर रही थी. पता नहीं, चेन्नै में उस ने यह प्रोग्राम देखा या नहीं. सुप्रिया ने उसे कांटेस्ट की बात बताई भी थी या नहीं?

सुप्रिया के राजकुमार ने अपनी अत्यंत लोकप्रिय फिल्म का प्रसिद्ध गाना पेश किया था. उस ने उस का हाथ पकड़ कर डांस भी किया. एक प्रेमी की तरह चाहत भरी नजरों से उसे निहारा भी और घुटनों के बल बैठ कर उसे गुलाब भी दिया.

‘‘इस समय आप को कैसा लग रहा है?’’ कार्यक्रम खत्म होने पर कार्यक्रम प्रस्तुत करने वाले ने पूछा था. खुशी में पागल हो कर उछल रही सुप्रिया कुछ पल तो बोल ही नहीं सकी. उस आनंद में उस की आंखों की पलकें तक नहीं झपक रही थीं. खुशी में आंसू आ जाते हैं. इस के बारे में उस ने पढ़ा और सुना था. पर सचमुच वह क्या होता है. उस दिन उसे पता चला. सातवां आसमान मतलब यही था, आउट आफ दिस वर्ल्ड. दिल से अनुभव किया था उस ने. उसे ऐसा भाग्य मिला. इस के लिए उस ने उस अदृश्य शक्ति को हाथ जोड़े और इसी के साथ तालियों की गड़गड़ाहट…

मेघधनुष लुप्त हो गया. सुप्रिया ने यह सप्तरंगी सपना समेट कर यादों के पिटारे में रख लिया कि जब मन हो पिटारा खोल कर देख लेगी. आखिर सुप्रिया पूरी तरह जमीन पर आ गई. इस की मुख्य वजह चेन्नै से अमित वापस आ गया था. आते ही उस ने फोन कर के यात्रा और अपने काम की सफलता की कहानी सुना कर पूछा, ‘‘तुम्हारा क्या हाल है, कुछ नया सुनाओ?’’

‘‘कुछ खास नहीं, बस चल रहा है.’’

‘‘नथिंग एक्साइटिंग?’’

‘‘कुछ नहीं, यहां क्या एक्साइटिंग हो सकता है. बस सब पहले की तरह…’’ सुप्रिया ने कहा. कांटेस्ट जीतने की परीकथा उस के होंठों तक आ कर लौट गई. शायद मन में कुछ खटक रहा था.

‘थाटलेस और मीनिंगलेस… चीप इंटरटेनमेंट…’ अमित टीवी के ज्यादातर प्रोग्रामों के लिए यही कहता था. जबकि उस की इस मान्यता का सुप्रिया से कोई लेनादेना नहीं था.

‘‘क्यों कोई लेनादेना नहीं है. उस के साथ शादी करने जा रही है. पूछ तो सही उस से कि उस ने तेरे कार्यक्रम की डीवीडी देखी थी या नहीं? वह देखना चाहता है या नहीं? दुनिया ने उस प्रोग्राम को देखा है. ऐसा भी नहीं कि उसे पता न हो. तब इस में उस से छिपाना क्या?’’ नंदा ने पूछा.

देखा जाए, तो एक तरह से उस का कहना ठीक भी था. सुप्रिया बारबार खुद से पूछती थी कि आखिर उस ने अमित से इस विषय पर बात क्यों नहीं की? किसी न किसी ने तो उसे बताया ही होगा. यह कोई छोटीमोटी बात नहीं थी. चारों ओर चर्चा थी. फिर यह कौन सी चोरी की बात है, जो उस से छिपाई जाए. पर अमित ने भी तो उस से इस बारे में कुछ नहीं पूछा.

सुप्रिया ने सब को पार्टी दी. सभी इकट्ठे हुए. बड़ी दी ने सब का स्वागत किया. क्योंकि मम्मीपापा के बाद इस समय घर में वही सब से बड़ी थीं. धमालमस्ती में उन्होंने कोई रुकावट नहीं डाली थी. अमित को भी आना था, इसलिए सुप्रिया पूरी एकाग्रता से तैयार हुई थी.

‘‘गौर्जियस?’’

उस दिन उस के प्रिय अभिनेता ने भी यही शब्द कहा था और उस समय सुप्रिया को जो सुख प्राप्त हुआ था, वह उसे अभी अमित तक पहुंचा नहीं सकी थी. अमित उस स्वप्नलोक जैसा कहां था. यह तो देखने की बात है, वर्णन करने की नहीं. नंदा तो जैसे मौका ही खोज रही थी. अन्य दोस्त भी कहां पीछे रहते.

सभी ने उसे छेड़ते हुए कहा, ‘‘यार अमित, यू रियली मिस्ड समथिंग. क्या ठसक थी सुप्रिया की. वह जैसे सचमुच प्रेम कर रहा हो और प्रपोज कर रहा हो… इस तरह घुटने के बल बैठ कर… मान गए यार.’’

‘‘अरे इन एक्टरों के लिए तो यह रोज का खेल है. दिन में दस बार प्रपोज करते हैं ये. यही अभिनय करना तो उन का काम है. यह उन के लिए बहुत आसान है.’’

‘‘सुप्रिया की आंखों में आंखें डाल कर अपलक ताक रहा था और बैकग्राउंड में वह गाना बज रहा था… कि तुम बन गए हो मेरे खुदा…ही वाज सो इंटेंस, सो इमोशनल, माई गौड. अमित, तुम देखते तो पता चलता. उस सब को शब्दों में नहीं व्यक्त किया जा सकता.’’

‘‘इस का मतलब अमित ने उसप्रोग्राम की डीवीडी नहीं देखी. इसे जलन हो रही होगी.’’ रौल ने कहा.

‘‘नो यंगमैन, जलन किस बात की. मुझे इन नाटकों में जरा भी रुचि नहीं है. यह सब दिखावा है. इस सब के लिए मेरे पास जरा भी समय नहीं है.’’

अमित की इन बातों पर सुप्रिया एकदम से उदास हो गई. उस का चेहरा एकदम से उतर गया.

‘‘अमित, तुम जिसे पल भर का नाटक कह रहे हो, उसी पल भर के नाटक में सुप्रिया किस तरह आनंद समाधि में समा गई थी, इस से पूछो. इस का हाथ पकड़ कर जब उस ने अपने होंठों से लगाया तो यह सहम सी गई. सच है न सुप्रिया?’’

सुप्रिया ने हां में सिर हिलाया.

नंदा ने उस के सिर पर ठपकी मार कर कहा, ‘‘चिंता में क्यों पड़ गई, अमित तुझे खा नहीं जाएगा. यह कोई 18वीं सदी का मेलपिग नहीं है.’’

अमित ने नंदा के कंधे पर हाथ रख कर कहा, ‘‘थैंक्यू.’’

सुप्रिया उस समय बड़ी दी को याद कर रही थी. उन्होंने कहा, ‘‘लड़की के व्यवस्थित होने तक तमाम चीजों का ध्यान रखना पड़ता है. हर चीज बतानी पड़ती है. कांटेस्ट में भाग लिया है, इस में क्या बताना. भूल हो गई, कह देना. पर यह झूठ है. कांटेस्ट में हिस्सा लेने के लिए किसी ने जबरदस्ती तो नहीं की थी. अपनी मरजी से हिस्सा लिया था और जीतने की इच्छा के साथ. यह भी सच है कि जीतने की तीव्र इच्छा थी जीत का नशा भी चढ़ा था, इस में कोई झूठ भी नहीं, अब बचाव में कुछ कहना भी नहीं. जो अच्छा लगा, व किया. कोई अपराध तो नहीं किया. साथ रहना है तो यह स्पष्टता होनी ही चाहिए.’’

मन नहीं था, फिर भी सुप्रिया अमित के साथ इंडिया गेट आ गई थी. अब आ ही गई तो इस बारे में क्या सोचना, आने से पहले ही उस ने काफी सोचविचार कर तय कर लिया था कि उसे अपनी बात किस तरह कहनी है. इस के बावजूद काफी गुणाभाग और सुधार कर उस ने कहा, ‘‘अमित, तुम्हें मेरा यह निर्णय खराब तो नहीं लगा?’’

‘‘खराब, किस बारे में?’’

‘‘वही टीवी और कांटेस्ट वाली बात.’’

‘‘छोड़ो न, डोंट टाक रबिश, तुम्हें यह पूछना पड़े, इस का मतलब तुम ने मुझे अभी जानापहचाना नहीं.’’

‘‘ऐसा नहीं है अमित, तुम मुझे मूडलेस लगते हो. तुम ने मुझ से कांटेस्ट की कोई बात तक नहीं की. घर में किसी ने प्रोग्राम देखा हो और किसी को कुछ न अच्छा लगा हो.’’

‘‘तुम्हें पता है मेरे यहां कोई रुढि़वादी या पुरानी सोच वाला नहीं है.’’

‘‘भले ही पुराने विचारों वाला नहीं है. पर कुछ न अच्छा लगा हो.’’

‘‘नहीं ऐसी कोई बात नहीं है.’’

अमित ने दोनों हाथ ऊपर की ओर कर के सूरज की ओर देखते हुए कहा, ‘‘सूर्यास्त देख कर चलना है न?’’

सुप्रिया थोड़ा खीझ कर बोली, ‘‘सूर्यास्त को छोड़ो, तुम अपनी बात करो. चेन्नै से आने के बाद तुम काफी गंभीर हो गए हो. ऐसा क्यों?’’

‘‘नथिंग पार्टिक्युलर. तुम्हें ऐसे ही लग रहा है. तुम्हें इस चिंतित अनुभव के बाद तुम्हें सब कुछ डल और लाइफलेस लग रहा है.’’

‘‘अब आए न लाइन पर. सो यू डिड नाट लाइक इट. सही कहा जा सकता है.’’

‘‘तुम्हें जो अच्छा लगा. तुम ने वह किया. इस में मुझे अच्छा या खराब लगने का कोई सवाल ही नहीं उठता. हमारे संबंधों के बीच अब ये बातें नहीं आनी चाहिए.’’

‘‘सवाल है न. कुछ दिनों बाद हमें साथ जीना है. इसलिए यह महत्त्वपूर्ण है.’’

‘‘तुम बेकार में पीछे पड़ी हो, फारगेट इट. कोई दूसरी बात करते हैं. कुछ खाते हैं.’’

‘‘अमित, तुम बात बदलने की कोशिश मत करो. मैं आज तुम्हारा पीछा छोड़ने वाली नहीं. चलो, दूसरी तरह से बात करती हूं. तुम ने डीवीडी क्यों नहीं देखी? वैसे तो तुम मुझ में बहुत रुचि लेते हो, भले ही इस बात को तुम चीप इंटरटेनमेंट मानते हो, इस के बाद भी तुम्हें मेरा प्रोग्राम देखना चाहिए था. मेरा प्रोग्राम देखने का तुम्हारा मन क्यों नहीं हुआ? मेरी खातिर तुम्हारे पास इतना समय भी नहीं है?’’

‘‘इस में समय की बात नहीं है. तुम्हें पता है, मुझे ऐसावैसा देखना पसंद नहीं है.’’

‘‘ऐसावैसा मतलब? अमित ऊपर देख कर चलने की जरूरत नहीं है और जिसे तुम चीप कह रहे हो, उसी तरह के अन्य प्रोग्राम तुम देखते हो. यह जो तुम क्रिकेट देखते हो, वह क्या है.’’

‘‘जाने दो न सुप्रिया, बेकार की बहस कर के क्यों शाम खराब कर रही हो.’’

‘‘शाम खराब हो रही है, भले हो खराब. आज मैं यह जान कर रहूंगी कि आखिर तुम्हारे मन में मेरे प्रति क्या है. सचसच बता दो. बात खत्म.’’

अमित ने एक लंबी सांस ली. शाम को पंक्षी अपने बसेरे की ओर जाने लगे थे. उस ने सुप्रिया की आंखों में आंखें डाल कर कहा, ‘‘तुम ने कांटेस्ट में हिस्सा लिया, तुम्हारी मरजी. ठीक है न?’’

‘‘एकदम ठीक.’’

‘‘तुम्हें जीतना था, जिस की मुख्य वजह यह थी कि जीतने पर तुम्हारा फेवरिट हीरो तुम्हारे साथ परफोर्म करता. सच है न?’’

‘‘एकदम सच.’’

‘‘तुम जीतीं और तुम्हारा सपना पूरा हुआ, जिस से तुम्हें खुशी हुई. यह स्वाभाविक भी है. आई एम राइट?’’

‘‘एकदम सही, पर यह क्या मुझे गोलगोल घुमा रहे हो. मुद्दे की बात करो न. शाम हो रही है, मुझे घर भी जाना है. दीदी की तबीयत ठीक नहीं है. उन्हें आराम की जरूरत है.’’

‘‘चलो मुद्दे की बात करते हैं. वह अभिनेता, जो इस जीवन में कभी नहीं मिलने वाला तुम से झूठमूठ में प्रपोज किया, तुम से मिलने को आतुर हो इस तरह का नाटक किया, मात्र नाटक, इस झूठमूठ के नाटक में तुम मारे खुशी के रो पड़ीं. सचमुच में रो पड़ीं. तुम्हारी खुशी कोई एक्टिंग नहीं थी. सच कह रहा हूं न?’’

‘‘हां, मैं एकदम भावविभोर हो गई थी. वह खुशी… इट वाज जस्ट टू मच. अकल्पनीय आनंद की अनुभूति हुई थी मुझे.’’

‘‘तुम ने जो कहा, यह सब… अब याद करो, मैं ने तुम्हें प्रपोज किया, अंगूठी पहनाई, गुलाब दिया, हाथ में हाथ लिया, मेरे लिए तुम्हारी आंखें कभी भी एक बार भी प्यार में नहीं छलकीं. सो आई वाज जस्ट थिंकिंग कि यह सब क्या है? सचमुच, मैं यही सोचते हुए यहां आया था. तब से यही सोचे जा रहा हूं. खैर, चलो अब चलते हैं.’

बेवफाई रास न आई: ज्योति और संतोष का प्यार

उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के अहिरौली थानाक्षेत्र का एक गांव है शंभूपुर दमदियावन. इसी गांव में हरिदास यादव अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के 2 बेटे थे संतोष यादव और विनोद यादव. संतोष बड़ा था. अपनी मेहनत और लगन की बदौलत वह सन 2015 में उत्तर प्रदेश पुलिस में सिपाही के पद पर भरती हो गया था. उस की पहली पोस्टिंग चंदौली जिले के चकिया थाने में हुई थी. नौकरी लग जाने पर घर वाले भी बहुत खुश थे. जब लड़का कमाने लगा तो घर वालों ने उस का रिश्ता भी तय कर दिया.

30 दिसंबर, 2017 को उस का बरच्छा था, इसलिए वह एक सप्ताह की छुट्टी ले कर अपने गांव आया था. बरच्छा का कार्यक्रम सकुशल संपन्न हो गया था. अगली सुबह 8 बजे के करीब संतोष अपने 2 दोस्तों राहुल यादव और सुरेंद्र के साथ टहलते हुए गांव से बाहर की ओर निकला. शादी को ले कर राहुल और सुरेंद्र दोनों ही संतोष से हंसीमजाक कर रहे थे, तभी संतोष के मोबाइल पर किसी का फोन आ गया.

संतोष ने अपने मोबाइल स्क्रीन पर नजर डाली तो वह नंबर उस के किसी परिचित का निकला. काल रिसीव कर के उस ने उस से बात करनी शुरू की. अपने दोनों दोस्तों से वहीं रुकने और थोड़ी देर में लौट कर आने की बात कह कर वह वहां से चला गया. संतोष के इंतजार में राहुल और सुरेंद्र वहां काफी देर तक खड़े रहे. जब 2 घंटे बाद भी वह नहीं लौटा तो दोनों दोस्त यह सोच कर घर लौट गए कि हो सकता है संतोष अपने घर चला गया हो.

संतोष के यहां मांगलिक कार्यक्रम था. घर में मेहमान आए हुए थे. दोस्तों ने सोचा कि हो सकता है वह उन के सेवासत्कार में लग गया हो और उसे लौटने का समय न मिला हो. संतोष को घर से निकले 3 घंटे बीत चुके थे. घर वाले उसे ले कर काफी परेशान थे कि सुबह का निकला संतोष आखिर कहां घूम रहा है. सब से ज्यादा परेशान उस के पिता हरिदास थे.

उन्होंने छोटे बेटे विनोद को संतोष का पता लगाने के लिए भेज दिया. विनोद को पता चला कि 3 घंटे पहले संतोष को राहुल और सुरेंद्र के साथ गांव से बाहर जाते देखा गया था. यह जानकारी मिलते ही विनोद राहुल और सुरेंद्र के घर पहुंच गया. दोनों ही अपनेअपने घरों पर मिल गए. विनोद ने उन से संतोष के बारे में पूछा तो वह यह सुन कर चौंक गए कि संतोष अब तक घर पहुंचा ही नहीं था. आखिर वह कहां चला गया.

राहुल ने विनोद को बताया कि वे तीनों साथ में गांव से बाहर निकले थे तभी संतोष के मोबाइल पर किसी का फोन आया था. वह कुछ देर में वापस आने की बात कह कर चला गया था. जब 2 घंटे बीत जाने के बाद भी वह नहीं लौटा तो वे दोनों यह सोच कर लौट आए कि शायद वह घर चला गया होगा.

संतोष को ले कर जितना ताज्जुब दोस्तों को हो रहा था, विनोद भी उतनी ही हैरत में डूबा हुआ था कि बिना किसी को कुछ बताए भाई आखिर गया कहां. इस से भी बड़ी बात यह थी कि उस का मोबाइल फोन भी स्विच्ड औफ था. संतोष का नंबर मिलातेमिलाते विनोद भी परेशान हो चुका था.

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संतोष का जब कहीं पता नहीं चला तो विनोद घर लौट आया और पिता हरिदास को सब कुछ बता दिया. अचानक संतोष के लापता हो जाने की बात सुन कर हरिदास ही नहीं, बल्कि पूरा परिवार स्तब्ध रह गया.

संतोष की गांव भर में तलाश की गई, लेकिन उस का कहीं पता नहीं चला. संतोष को तलाशते हुए पूरा घर और नातेरिश्तेदार परेशान हो गए. विनोद भी मोटरसाइकिल ले कर संतोष को खोजने गांव के बाहर निकल गया था. लेकिन उस का कहीं पता नहीं चला.

दोपहर 2 बजे के करीब गांव के कुछ चरवाहे बच्चे गांव से करीब आधा किलोमीटर दूर अरहर के खेत के पास अपने पशु चरा रहे थे. भैंसें चरती हुई अरहर के खेत में घुस गईं तो चरवाहे खेत में गए. चरवाहे जैसे ही बीच खेत पहुंचे तो वहां दिल दहला देने वाला दृश्य देख कर उन के हाथपांव फूल गए.

अरहर के खेत के बीचोबीच संतोष यादव की खून से सनी लाश पड़ी थी. लाश देखते ही चरवाहे जानवरों को खेतों में छोड़ कर चीखते हुए उल्टे पांव गांव की ओर भागे. वे दौड़ते हुए सीधे हरिदास यादव के घर जा कर रुके और एक ही सांस में पूरी बात कह डाली.

बेटे की हत्या की बात पर एक बार तो हरिदास को भी विश्वास नहीं हुआ. उन्होंने उन बच्चों से कहा, ‘‘बेटा, किसी और की लाश होगी. तुम ने ठीक से पहचाना नहीं होगा.’’

बच्चे पासपड़ोस के थे, इसलिए वे संतोष को अच्छी तरह जानतेपहचानते थे. बच्चों ने जब उन्हें फिर से बताया कि लाश किसी और की नहीं बल्कि संतोष चाचा की ही है तो हरिदास के घर में रोनापीटना शुरू हो गया.

हरिदास छोटे बेटे विनोद को ले कर अरहर के खेत में उस जगह पहुंच गए, जहां संतोष की लाश पड़ी होने की सूचना मिली थी. बेटे की रक्तरंजित लाश देख कर हरिदास गश खा कर वहीं गिर पड़े. कुछ ही देर में यह बात पूरे गांव में फैल गई तो वहां पूरा गांव उमड़ आया.

यह सूचना थाना अहरौला के थानाप्रभारी चंद्रभान यादव को दे दी गई थी. चूंकि हत्या एक पुलिसकर्मी की हुई थी, इसलिए आननफानन में थानाप्रभारी एसआई रमाशंकर यादव, कांस्टेबल महेंद्र कुमार, अखिलेश कुमार पांडेय, ओमप्रकाश यादव और महिला कांस्टेबल अनीता मिश्रा के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने इस की सूचना एसपी अजय कुमार साहनी और एसएसपी नरेंद्र प्रताप सिंह को भी दे दी.

सूचना मिलने के कुछ ही देर बाद दोनों पुलिस अधिकारी भी मौके पर पहुंच गए. पुलिस ने घटनास्थल का निरीक्षण किया. जिस जगह लाश पड़ी थी, वहां आसपास अरहर की फसल टूटी हुई थी. इस से लग रहा था कि मृतक ने हत्यारों से संघर्ष किया होगा.

संतोष की हत्या कुल्हाड़ी जैसे तेज धारदार हथियार से की गई थी. हथियार के वार से उस का जबड़ा भी कट कर अलग हो गया था. गले पर कई वार किए गए थे. इस के अलावा उसे 2 गोली भी मारी गई थीं. इस से साफ पता चलता था कि हत्यारे नहीं चाहते थे कि संतोष जिंदा बचे. इसलिए मरते दम तक उस पर वार पर वार किए गए थे.

मौकेमुआयने के दौरान पुलिस को वहां कारतूस का एक खाली खोखा भी मिला. संतोष के पास मोबाइल फोन था, जो उस के पास नहीं मिला. इस का मतलब था कि हत्यारे उस का मोबाइल अपने साथ ले गए थे. बहरहाल, पुलिस ने कागजी काररवाई कर के लाश पोस्टमार्टम के लिए सरकारी अस्पताल भिजवा दी.

पुलिस ने मृतक के पिता हरिदास यादव की तहरीर पर अज्ञात हत्यारों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया. थानाप्रभारी चंद्रभान यादव ने सब से पहले संतोष के फोन नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई.

काल डिटेल्स खंगाली तो पता चला कि संतोष के सेलफोन पर 30 दिसंबर, 2017 की सुबह आखिरी काल आजमगढ़ के छितौना गांव की रहने वाली ज्योति यादव की आई थी. पुलिस ने ज्योति को पूछताछ के लिए थाने बुला लिया. ज्योति से पूछताछ में पुलिस को पता चला कि वह मृतक संतोष यादव की प्रेमिका थी.

पुलिस ने जब ज्योति से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने संतोष की हत्या की पूरी कहानी बता दी. उस ने कहा कि संतोष को उस ने ही फोन कर के गांव से बाहर अरहर के खेत में मिलने के लिए बुलाया था. वहां पहले से छिपे बैठे उस के घर वालों ने उसे मौत के घाट उतार दिया. पुलिस ने वारदात में शामिल अन्य आरोपियों की तलाश में दबिश दी तो वे सभी अपने घरों से गायब मिले.

पुलिस ने सिपाही संतोष यादव हत्याकांड का खुलासा 60 घंटों में कर दिया था. ज्योति से विस्तार से पूछताछ की गई तो उस ने अपने प्रेमी की हत्या की जो कहानी बताई, वह रोमांचित कर देने वाली थी—

22 वर्षीया ज्योति उर्फ रजनी मूलरूप से आजमगढ़ के अहरौला थाने के छितौना गांव के रहने वाले रामकिशोर यादव की बेटी थी. 3-4 भाईबहनों में वह दूसरे नंबर की थी. रामकिशोर यादव की खेती की जमीन थी, उसी से वह अपने 6 सदस्यों के परिवार की आजीविका चलाते थे. सांवले रंग और सामान्य कदकाठी वाली ज्योति बिंदास स्वभाव की थी. वह एक बार किसी काम को करने की ठान लेती तो उसे पूरा कर के ही मानती थी.

ज्योति ने 12वीं तक पढ़ाई के बाद आगे की पढ़ाई नहीं की. आगे की पढ़ाई में उस का मन नहीं लग रहा था. हालांकि मांबाप ने उसे आगे पढ़ाने की कोशिश की, लेकिन उन की कोशिश बेकार गई थी.

ज्योति जिस स्कूल में पढ़ने जाया करती थी, उस स्कूल का रास्ता शंभूपुर दमदियावन गांव हो कर जाया करता था. ज्योति सहेलियों के साथ इसी रास्ते से हो कर आतीजाती थी. इसी गांव का रहने वाला संतोष कुमार यादव ज्योति के स्कूल आनेजाने वाले रास्ते में खड़ा हो जाता और उसे बड़े गौर से देखता था. ज्योति भले ही सांवली थी, लेकिन उस में गजब का आकर्षण था. यही आकर्षण संतोष को उस की ओर खींच रहा था.

संतोष ने ज्योति के बारे में जानकारी हासिल की तो पता चला कि वह पड़ोस के गांव छितौना के रहने वाले रामकिशोर यादव की बेटी है और उस का नाम ज्योति है. ज्योति के बारे में सब कुछ पता लगाने के बाद संतोष उस के पीछे पागल दीवानों की तरह घूमने लगा.

ज्योति के घर से स्कूल जाते समय और स्कूल से लौटते समय वह गांव के बाहर खड़ा हो कर उस का इंतजार करता था. ज्योति ने संतोष की प्रेमिल नजरों को पढ़ लिया था. वह जान चुकी थी कि संतोष उस से बेपनाह मोहब्बत करता है. इस के बाद ज्योति के दिल में भी संतोष के प्रति चाहत पैदा हो गई.

ज्योति और संतोष दोनों एकदूसरे को चाहने जरूर लगे थे, लेकिन अपनी मोहब्बत का इजहार नहीं कर पा रहे थे. एक दिन ज्योति घर से स्कूल के लिए अकेली निकली. संतोष पहले से ही गांव के बाहर एक सुनसान जगह पर खड़ा उस का इंतजार कर रहा था.

जब उस ने देखा कि ज्योति अकेली है तो उस ने पक्का मन बना लिया कि कुछ भी हो जाए, आज उस से अपने दिल की बात कह कर ही रहेगा. ज्योति उस के नजदीक पहुंची तो संतोष उस के सामने आ कर खड़ा हो गया.

ज्योति के दिल की धड़कनें भी तेज हो गईं. जब वह रिलैक्स हुई तो संतोष बोला, ‘‘ज्योति, मैं तुम से कुछ कहना चाहता हूं.’’

ज्योति कुछ बोले बिना साइड से निकल कर आगे बढ़ गई.

‘‘रुक जाओ ज्योति, एक बार मेरी बात सुन लो, फिर चली जाना.’’ वह बोला.

‘‘जल्दी बताओ, क्या कहना चाहते हो. किसी ने देख लिया तो जान पर बन आएगी.’’ ज्योति घबराई हुई थी.

‘‘नहीं, मैं तुम्हारी जान पर आफत नहीं आने दूंगा.’’ संतोष ने कहा.

‘‘क्या मतलब?’’ ज्योति चौंक कर बोली.

‘‘यही कि आज से इस जान पर मेरा अधिकार है.’’

‘‘होश में तो हो तुम, क्या बक रहे हो, कुछ पता भी है.’’ ज्योति ने हलके गुस्से में कहा.

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‘‘मुझे पता है कि तुम पड़ोस के गांव छितौना के रामकिशोर यादव की बेटी हो,’’ संतोष कहता गया, ‘‘जानती हो, जिस दिन से मैं ने तुम्हें देखा है, अपनी सुधबुध खो बैठा हूं. न दिन में चैन मिलता है और रात को नींद आती है. बस तुम्हारा खूबसूरत चेहरा मेरी आंखों के सामने घूमता रहता है. मैं तुम से इतना प्यार करता हूं कि अब मैं तुम्हारे बिना नहीं जी पाऊंगा.’’

‘‘लेकिन मैं तो तुम से प्यार नहीं करती.’’ ज्योति ने तुरंत कहा.

‘‘ऐसा मत कहो ज्योति, वरना मैं सचमुच मर जाऊंगा.’’ संतोष गिड़गिड़ाया.

‘‘ठीक है तो मर जाओ, किस ने रोका है.’’ कहती हुई ज्योति होंठ दबा कर मुसकराती हुई स्कूल की ओर बढ़ गई. संतोष तब तक उसे निहारता रहा, जब तक वह उस की आंखों से ओझल नहीं हो गई. ज्योति की तरफ से कोई सकारात्मक उत्तर न पा कर वह मायूस हो कर घर लौट आया.

ज्योति ने संतोष के मन की टोह लेने के लिए अपने मन की बात जाहिर नहीं की थी, जबकि वह संतोष से दिल की गहराई से प्रेम करने लगी थी. ज्योति का नहीं में उत्तर सुन कर संतोष को रात भर नींद नहीं आई, इसलिए अगले दिन वह फिर उसी जगह जा कर खड़ा हो गया था, जहां उस की ज्योति से मुलाकात हुई थी.

ज्योति नियत समय पर घर से निकली. उस दिन उस के साथ उस की कई सहेलियां भी थीं. जैसे ही ज्योति संतोष के करीब आई, उस ने चुपके से एक कागज गिरा दिया और आगे बढ़ गई. संतोष ने जल्दी से कागज उठा कर अपनी कमीज की जेब में रख लिया. फिर ज्योति को वह तब तक निहारता रहा, जब तक उस की आंखों से ओझल नहीं हो गई.

इस के बाद वह जल्दी में जेब से कागज निकाल कर पढ़ने लगा. वह प्रेमपत्र था. ज्योति का प्रेमपत्र पढ़ने के बाद संतोष ऐसे उछला, जैसे उसे दुनिया का सब से बड़ा खजाना मिल गया हो. उस दिन के बाद से संतोष की हिम्मत और बढ़ गई. स्कूल की छुट्टी के बाद अकसर दोनों रास्ते में ही मिल जाया करते थे.

उन दिनों संतोष कोई काम नहीं करता था, लेकिन उस की ख्वाहिश थी कि उसे पुलिस विभाग में नौकरी मिल जाए. इसलिए वह तैयारी में जुट गया. साथ ही ज्योति के साथ उस की प्यार की उड़ान भी जारी रही. प्यार की बातें चाहे कोई कितनी भी छिपाने की कोशिश करें, छिपती नहीं हैं. लिहाजा इन दोनों के प्रेम के चर्चे दोनों के गांवों में होने लगे. उड़ती हुई यह खबर जब ज्योति के पिता रामकिशोर यादव तक पहुंची तो वह गुस्से से उबल पड़े. उन्होंने ज्योति का घर से बाहर निकलना बंद कर दिया.

इतना ही नहीं रामकिशोर ने शंभूपुर दमदियावन पहुंच कर संतोष के पिता हरिप्रसाद से शिकायत की. उन्होंने कहा, ‘‘आप अपने बेटे संतोष को संभाल लें. वह मेरी बेटी का स्कूल आतेजाते पीछा करता है. याद रखो, भविष्य में अगर उस ने मेरी बेटी से मिलने की कोशिश की तो इस का अंजाम बहुत बुरा होगा. ठीक से समझ लो, मैं अपनी मानमर्यादा और इज्जत से किसी को भी खिलवाड़ नहीं करने दूंगा.’’

हरिप्रसाद को बेटे की करतूतों के बारे में पता चला तो उन्हें बड़ा दुख हुआ. उन्होंने जब संतोष से यह बात पूछी तो उस ने सब सचसच बता दिया. हरिप्रसाद ने उसे समझाया कि पहले वह अपने भविष्य को देखे, नौकरी की तैयारी करे. समय आने पर वह किसी अच्छी लड़की से उस की शादी करा देंगे.

पिता ने संतोष को ठीक से समझाया तो उस पर उन की बातों का गहरा असर हुआ. लिहाजा वह अपने भविष्य की तैयारी में जुट गया. उस की मेहनत रंग लाई और उस की नौकरी उत्तर प्रदेश पुलिस में सिपाही के पद पर लग गई.

सन 2015 में उस की चंदौली जिले के चकिया थाने में पहली पोस्टिंग हुई. ये बात उस ने सब से पहले ज्योति को बताई. यहां यह बताना जरूरी है कि रामकिशोर ने भले ही संतोष के पिता को धमकी दी थी. लेकिन संतोष और ज्योति पर इस का कोई खास असर नहीं हुआ.

वे दोनों फोन के जरिए एकदूसरे के करीब बने रहे. संतोष ने ज्योति को विश्वास दिलाया कि कुछ भी हो जाए, लेकिन वह शादी उसी से करेगा. यह सुन कर ज्योति काफी खुश थी. उस ने मां के जरिए यह बात अपने पिता और परिवार वालों तक पहुंचा दी. उस की यह कोशिश रंग लाई और उस का परिवार संतोष से उस की शादी कराने के लिए राजी हो गया.

एक तो संतोष को सरकारी नौकरी मिल चुकी थी, दूसरे दोनों एक ही जातिबिरादरी के थे. जब पूरा परिवार एकमत हो गया तो रामकिशोर बेटी का रिश्ता ले कर हरिप्रसाद के पास गए और कहा कि पुरानी बातें भूल कर नए रिश्ते जोड़ते हैं.

हरिप्रसाद रामकिशोर की धमकी को भूले नहीं थे. दूसरे संतोष भी पिता के पक्ष में आ गया था, इसलिए हरिप्रसाद ने रिश्ते से इनकार कर दिया. उस ने पिता से कह दिया कि वह उसी लड़की से शादी करेगा, जिस से वह चाहेंगे. रामकिशोर शादी का प्रस्ताव ठुकराए जाने के बाद घर लौट गए.

संतोष 2 साल तक ज्योति का दैहिक शोषण करता रहा था, उसे धोखे में रखे रहा था. अंत में उस ने ज्योति से शादी करने से साफ मना कर दिया था. उस ने ज्योति से साफ कह दिया था कि घर वालों के दबाव में उसे कहीं और शादी करनी पड़ रही है. वह भी किसी अच्छे से लड़के से शादी कर ले.

यह बात ज्योति से बरदाश्त नहीं हुई. उस ने रोरो कर मां के सामने सारी सच्चाई खोल दी. यह बात जब रामकिशोर और उस के बेटे सर्वेश को पता चली तो गुस्से के मारे उन के तनबदन में आग सी लग गई. दोनों ने फैसला किया कि जिस ने ज्योति की जिंदगी बरबाद की है, उसे किसी और लड़की से शादी नहीं करने देंगे. उस ने जो गुनाह किया है, उसे उस की सजा जरूर मिलनी चाहिए.

इस बीच सर्वेश को सूचना मिल गई थी कि 29 दिसंबर, 2017 को संतोष का बरच्छा होने वाला है. इस कार्यक्रम में वह गांव आएगा. संतोष 28 दिसंबर को एक सप्ताह की छुट्टी ले कर घर आया.

तय कार्यक्रम के मुताबिक 29 दिसंबर की शाम को संतोष का बरच्छा का कार्यक्रम संपन्न हुआ. वह बहुत खुश था. 30 दिसंबर की सुबह संतोष दोस्तों के साथ गांव के बाहर निकला, तभी उस के फोन पर ज्योति का फोन आ गया. उस ने संतोष को फोन कर के छितौना गांव के अरहर के एक खेत में मिलने को बुलाया. वहां पहले से ही ज्योति के अलावा उस के पिता रामकिशोर, भाई सर्वेश के साथ गांव के मनोज यादव, संजय यादव और आनंद मौजूद थे.

संतोष के पहुंचते ही रामकिशोर यादव, संजय यादव और आनंद ने संतोष को दबोच लिया. ज्योति को उन लोगों ने वहां से हटा दिया. गुस्से में सर्वेश ने कुल्हाड़ी से संतोष के चेहरे और गरदन पर वार कर के उसे मौत के घाट उतार दिया. संतोष की हत्या करने के बाद वहां से भागते समय सर्वेश ने कुल्हाड़ी एक झाड़ी में छिपा दी. सर्वेश संतोष का फोन भी अपने साथ ले गया. रास्ते में उस ने फोन से सिम निकाल कर कहीं फेंक दी.

ज्योति के गिरफ्तार होने के 15 दिनों के भीतर गांव से एकएक कर के सभी आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया. सभी आरोपियों ने अपनेअपने जुर्म कबूल कर लिए थे. सर्वेश की निशानदेही पर पुलिस ने झाड़ी से कुल्हाड़ी भी बरामद कर ली. कथा लिखे जाने तक किसी भी आरोपी की जमानत नहीं हुई थी. पुलिस ने अदालत में सभी आरोपियों के खिलाफ आरोपपत्र दाखिल कर दिया था.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

दादी आप की तो मौज है: क्यों मिनी की बात से दादी हैरान रह गईं

एकदिन मिनी मेरे पास बैठ कर होमवर्क कर रही थी. अचानक कहने लगी, ‘‘दादी, आप को कितनी मौज है न?’’

‘‘क्यों किस बात की मौज है?’’ मैं ने जानना चाहा.

‘‘आप को तो कोई काम नहीं करना पड़ता है न,’’ उस का उत्तर था.

‘‘क्यों? मैं तुम्हारे लिए मैगी बनाती हूं, सूप बनाती हूं, हरी चटनी बनाती हूं, तुम्हारा फोन चार्ज करती हूं. कितने काम तो करती हूं?’’

तुम्हें कौन सा काम करना पड़ता है?’’ मैं ने हंस कर पूछा.

‘‘क्या बताऊं दादी… मु  झे तो बस काम

ही काम हैं?’’ उस ने बड़े ही दुखी स्वर में

उत्तर दिया.

‘‘क्या काम है, पता तो चले?’’ मैं ने पूछा.

‘‘क्लास अटैंड करो, होमवर्क करो, कभी टैस्ट की तैयारी करो, कभी कोई प्रोजैक्ट तैयार करो… दादी आप को पता है, बच्चों को कितने काम होते हैं,’’ वह धाराप्रवाह बोलती जा रही थी, जैसे किसी ने उस की दुखती रग पर हाथ रख दिया हो.

‘‘उस पर ये औनलाइन क्लासें. बस

लैपटौप के सामने बैठे रहो बुत बन कर. जरा सा

इधरउधर देखो तो मैम चिल्लाने लगती हैं. चिल्लाती भी इतनी जोर से हैं कि घर पर भी सब को पता चल जाता है, सोनम तुम ने होमवर्क क्यों नहीं किया?

‘‘राहुल तुम्हारी राइटिंग बहुत गंदी है.

महक तुम्हारा ध्यान किधर है? बस डांटती ही जाती हैं, आज मिनी पूरी तरह विद्रोह पर उतर आई थी. मैं चुपचाप उस की बातें सुन रही थी. फिर मैं ने हंस कर पूछा, ‘‘क्या स्कूल में मैम नहीं डांटती?’’ .

‘‘दादी, कैसी बात कर रही हो? वह भी डांटती हैं… मैडमों का तो काम ही डांटना है.’’

‘‘फिर?’’ मेरा प्रश्न था.

‘‘दादी, आप सम  झ नहीं रही हो?’’ उस ने बड़े भोलेपन से उत्तर दिया.

‘‘क्या नहीं सम  झ रही हूं? तू कुछ बताएगी तो पता चलेगा.’’

‘‘रुको, मैं आप को सम  झाती हूं. स्कूल में भी मैम डांटती हैं, पर हम लोगों को बुरा नहीं लगता है, ‘‘क्योंकि डांट तो सब को पड़ती है. इसलिए क्लास में सब बराबर होते हैं.

कभीकभी तो पनिशमैंट भी मिलता है, पर किसी को पता तो नहीं चलता? यहां तो अपने ही

फ्रैंड्स के पेरैंट्स तक को पता चल जाता है. सब के सामने इन्सल्ट हो जाती है न?’’ वह गंभीरतापूर्वक बोली.

‘‘हां बात तो तेरी ठीक है. हमें स्कूल में मैम से डांट पड़ी है… घर पर तो किसी को पता नहीं चलना चाहिए,’’ मैं ने मन ही मन मुसकराते हुए उस की बात का समर्थन किया.

समर्थन पा कर वह बहुत खुश हुई. शायद बचपन से ही हमारे मन में यह भावना घर कर जाती है कि हमारी गलतियों का किसी को पता नहीं चलना चाहिए.

अब वह पूरी तरह अपनी

रौ में आ चुकी थी. मु  झे अपना राजदान बनाते हुए बोली,

‘‘दादी, मैं आप को एक बहुत

ही मजेदार बात बताऊं? आप किसी को बताएंगी तो नहीं?’’

उस ने पूछा. वह आश्वस्त होना चाहती थी.

‘‘नहीं, मैं किसी को नहीं बताऊंगी. तू बेफिक्र हो कर बता.’’

मेरा उत्तर सुन कर वह बोली,

‘‘जब किसी बच्चे पर मैम

नाराज होती हैं, तो सारे बच्चे नीचे मुंह

कर के या मुंह पर हाथ रख कर हंसने

लगते हैं.’’

‘‘मैम नाराज नहीं होती.’’

‘‘मैम को पता ही नहीं चलता है.’’

‘‘और वह बच्चा?’’

‘‘बच्चों को क्या फर्क पड़ता है. रोज किसी न किसी पर मैम गुस्सा होती ही हैं.’’

यह सुन कर मु  झे हंसी आ गई. सच ही है, ‘हमाम में सब नंगे.’

‘‘एक और मजेदार बात बताऊं दादी?’’ अब वह बहुत खुश लग रही थी.

‘‘हांहां जरूर.’’

‘‘जब मैम ब्लैकबोर्ड पर लिखती हैं न तो क्लास की तरफ उनकी पीठ होती है तब हम लोग बहुत मस्ती करते हैं. कुछ लड़के तो अपनी सीट छोड़ कर उधम मचाने लगते हैं और जैसे ही मैम मुड़ती हैं सब अपनीअपनी सीट पर चुपचाप बैठ जाते हैं. मैम को कुछ पता ही नहीं चलता. हम लोग स्कूल में बहुत मजे करते हैं.

घर पर तो मैं बोर हो जाती हूं,’’ उस ने निराश हो कर कहा.

‘‘बस सारा दिन घर में बैठे रहो. इस कोरोना ने तो पागल कर दिया है.

‘‘उस पर सुबहसुबह जब अच्छी नींद आती है तो मम्मा जबरदस्ती उठा देती हैं. दोपहर को जब मु  झे नींद नहीं आती तो कहती हैं अब थोड़ी देर सो जाओ.’’

‘‘पहले भी तो ऐसा ही होता था,’’ मैं ने कहा.

‘‘दादी आप सम  झ नहीं रही हो. पहले मैं स्कूल जाती थी, इसलिए थक जाती थी. अब दिन में सो जाती हूं तो रात को नींद नहीं आती है, पर सुबहसुबह उठना पड़ता है न? और ये पापा बारबार कहते हैं बुक रीडिंग कर लो… मु  झे परेशान कर के रख दिया है सब ने,’’ उस ने दुखी स्वर में कहा. फिर कुछ देर कुछ सोचने के बाद मु  झ से पूछने लगी, ‘‘दादी, मैं कब बड़ी होऊंगी?’’

मिनी का प्रश्न सुन कर मैं हैरत से उस की ओर देखने लगी. मन सोच में डूब गया. अकसर बचपन में हम जल्दी बड़े होना चाहते हैं, पर बड़े होने पर दुनियादारी में फंस कर हमारी बचपन की निश्चिंतता, निश्छलता, भोलापन सब पता नहीं कहां गायब हो जाते हैं. उम्र बढ़ने के साथ ही जिम्मेदारियों के बो  झ तले दबते ही चले जाते हैं.

धीरेधीरे जिम्मेदारियों का निर्वाह करते हुए हम स्वयं शारीरिक, मानसिक एवं भावनात्मक रूप से कमजोर हो जाते हैं. दूसरों का बो  झ उठातेउठाते हम स्वयं सब पर बो  झ बन जाते हैं. फिर याद आती हैं उस उम्र की बातें जो लौट कर कभी नहीं आती है.

मगर मिनी को क्या पता है कि उम्र के इस पड़ाव तक पहुंचने के लिए कितना संघर्ष करना पड़ता है… वह तो बस जल्दी से जल्दी उस उम्र में पहुंचना चाहती है.

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