Download App

Anupamaa: पाखी को शादी के लिए प्रपोज करेगा अधिक, आएगा ये ट्विस्ट

स्टार प्लस का मशहूर सीरियल ‘अनुपमा’ में  इन दिनों लगातार ट्विस्ट एंड टर्न दिखाया जा रहा है. जिससे शो में हाईवोल्टेज ड्रामा देखने को मिल रहा है. शो के बिते एपिसोड में दिखाया गया कि बरखा और अंकुश कपाड़िया मेंशन में रहने के लिए साजिश रचते हैं और दोनों अनुपमा को इमोशनली ब्लैकमेल करते हैं, तभी वहां अनुज आता है और वह दोनों के सामने शर्त रख देता है. शो के अपकमिंग एपिसोड में खूब धमाल होने वाला है. आइए बताते है, शो के नए एपिसोड के बारे में…

शो में आप देखेंगे कि अनुज, बरखा और अंकुश से कहेगा कि अगर उन्हें घर में रहना है तो उन्हें अनुपमा के सामने घुटने टेककर हाथ जोड़कर माफी मांगनी होगी. दोनों अनुज की शर्त मान लेते हैं और अनुपमा के सामने घुटने टेक कर माफी मांगते हैं. अनुपमा को ये सब देखकर उनके लिए बुरा लगता है. तो वहीं अनुज उन्हें वनराज के पास भी माफी मांगने के लिए भेजता है.

 

बरखा और अंकुश शाह हाउस भी माफी मांगने के लिए जाते हैं लेकिन वनराज कहता है कि वह उन्हें कभी माफ नहीं करेगा. वह आगे ये भी कहता है कि वह उनके साथ-साथ अधिक को भी माफ नहीं करेगा, क्योंकि अधिक भी उनके साथ मिला हुआ था. तो दूसरी तरफ पाखी को वनराज की बातें चुभ जाती हैं.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Mahi Jain ? (@prachijain211995)

 

शो में आप देखेंगे कि अनुज और अनुपमा छोटी अनु के साथ बैडमिंटन खेलते हैं. अनुज रैकेट पकड़ने की कोशिश करता है, लेकिन वह ऐसा नहीं कर पाता है. तो दूसरी तरफ अधिक पाखी को शादी के लिए प्रपोज करेगा.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Mahi Jain ? (@prachijain211995)

 

शो में दिखाया जाएगा कि अनुज और अनुपमा घर पर गणपति बप्पा की स्थापना करते हैं और इस पूजा में शाह परिवर भी शामिल होता है। इसी बीच किंजल दर्द से बुरी तरह चिल्लाती है.

अनसेफ सेक्स के कितने दिनों बाद पिल लेना चाहिए?

सवाल

मेरी उम्र 28 साल है. मेरा अपनी गर्लफ्रैंड के साथ लास्ट टाइम अनसेफ सैक्स हुआ, जिस कारण 2 दिनों बाद उस ने पिल 72 ले ली. एक हफ्ते बाद उस का पीरियड शुरू होना था लेकिन वह शुरू नहीं हुआ. क्या आप बता सकती हैं कि पीरियड कब तक शुरू हो जाएगा? वरना मुझे क्या करना चाहिए?

जवाब

अनसेफ सैक्स करना यह बहुत बड़ी गलती है. सिर्फ इसलिए नहीं कि इस से अनवांटेड चाइल्ड होने का खतरा रहता है, बल्कि इसलिए भी कि इस से कई तरह के यौन संक्रमण होने का खतरा बना रहता है.

अगर आप ने अपनी गर्लफ्रैंड के साथ अनसेफ सैक्स किया तो अनवांटेड चाइल्ड की रोकथाम के लिए पिल्स लेनी पड़ती हैं. बाजार में कई तरह की पिल्स हैं. आप बता रहे हैं आप की गर्लफ्रैंड ने 2 दिनों बाद ही यानी 72 घंटे से पहले पिल 72 ले ली थी पर अभी तक उस का पीरियड सही क्रम में शुरू नहीं हुआ है.

देखिए, आईपिल या 72 लेने के बाद पीरियड नौर्मल होने में समय लगता है, बहुत संभावना होती है कि पीरियड का रूटीन प्रभावित हो जाए. इन पिल्स के कुछ साइड इफैक्ट्स भी हैं. इन पिल्स में बहुत मात्रा में हार्मोंस होते हैं जो बौडी में जा कर हमारे सिस्टम को गड़बड़ कर देते हैं. इस से लेट पीरियड या ब्लीडिंग की शिकायत आ सकती है.

पीरियड कब आए, यह इस पर भी निर्भर करता है कि महिला ने अनवांटेड 72 लास्ट पीरियड आने के कितने दिन बाद ली है. चिंता मत करो, अगर सैक्स के 72 घंटों से पहले दवाई ले ली तो चीजें नियंत्रण में हैं. बस पीरियड डिसबैलेंस वाली बात है.

पर जरूरी यह है कि इस तरह की गलतियां दोबारा न दोहराई जाएं क्योंकि इस तरह की इमरजैंसी पिल का बारबार सेवन लड़कियों के लिए खतरनाक हो सकता है.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

अगर आप भी इस समस्या पर अपने सुझाव देना चाहते हैं, तो नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स में जाकर कमेंट करें और अपनी राय हमारे पाठकों तक पहुंचाएं.

वे बातें जो एक एमबीए को सीखनी चाहिए

बीस्कूल आप को जरूरी ज्ञान और कौशल दे कर कौर्पोरेट दुनिया का सामना करने के लिए तैयार करते हैं. हालांकि सौफ्ट स्किल्स भी महत्त्वपूर्ण होती हैं और आप को एक कामयाब मैनेजर एवं लीडर बनने में मदद करती हैं. ये मूल्य आप की अवधारणाओं, आप के व्यवहार, क्रियाओं और फैसलों को मार्गदर्शन प्रदान करते हैं, जो आप के नियोक्ताओं के लिए बेहद महत्त्वपूर्ण होते हैं.

स्ट्राइविंग फौर एक्सीलैंस (उत्कृष्टता के लिए प्रयास) : आप के काम के क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन करना आप के पेशे का सब से महत्त्वपूर्ण हिस्सा है और जरूरी है कि इस मूल्य को आप अपने जीवन में जल्द से जल्द सीख लें. इस के लिए आप जो भी करते हैं, उस में गुणवत्तापूर्ण प्रयासों को जारी रखें जब तक यह आप की आदत में शामिल न हो जाए. फिर चाहे आप खेलों की बात करें, पाठ्येत्तर गतिविधियों की, अकादमी की, क्लब में शामिल होने की, सोसाइटी या किसी अन्य सामाजिक कार्य की, आप को अपने सभी कार्यों में गुणवत्तापूर्ण प्रयासों को जारी रखना चाहिए.

हालांकि अगर आप औसत प्रदर्शन कर रहे हैं तो हो सकता है कि आप आरामदायक महसूस करें. लेकिन अगर आप अपनेआप को इस जोन से बाहर निकाल कर नई संभावनाओं की तलाश करें तो आप अपनी प्रतिभा को पहचान सकेंगे और इस का इस्तेमाल सही दिशा में कर सकेंगे.

इंटिग्रिटी (वफादारी) : आप की प्रतिष्ठा को बनाने में सालों लग जाते हैं लेकिन इसे खोने में सिर्फ एक सैकंड लगता है. इसे मैनेजमैंट के एक क्लास में नहीं सिखाया जा सकता. इसे आप को खुद सीखना होता है. सभी परिस्थितियों में वफादारी यानी इंटिग्रिटी को बनाए रखना एक मैनेजर के लिए बहुत जरूरी है. इंटिग्रिटी का तात्पर्य है, पूरी तरह से ईमानदार, सच्चा और भरोसेमंद होना. कोई आप को देख रहा है या नहीं, आप को इन गुणों को हमेशा बनाए रखना चाहिए. ये गुण न केवल आप के कार्यस्थल पर होने चाहिए बल्कि तब भी आप में रहने चाहिए जब आप अपने परिवार, दोस्तों या किसी और के साथ हों.

शेयरिंग (सा   झेदारी) : यह सम   झना बेहद जरूरी है कि एक कंपनी में काम करने वाले सभी लोग एकदूसरे से स्वतंत्र नहीं होते, वे एकदूसरे से जुड़े होते हैं, ऐसे में शेयरिंग अपरिहार्य हो जाती है. आप से उम्मीद की जाती है कि आप अपने संसाधनों, विचारों और ज्ञान को अपने सहकर्मियों एवं सहयोगियों के साथ बांटेंगे. इसी को हम ‘टीमवर्क’ कहते हैं. इसलिए बहुत जरूरी है कि विद्यार्थी टीम में काम करना सीखे ताकि वह आसानी से सब के साथ मिल कर काम कर सके और अपने कौशल व ज्ञान को टीम के सभी सदस्यों के साथ बांट सके.

इनोवेशन : आउट औफ बौक्स एक ऐसा मुहावरा है जिस का अकसर सही अर्थ नहीं सम   झा जाता. इस का तात्पर्य किसी बड़ी खोज या बड़ी सफलता से नहीं है. इनोवेशन हमारी दैनिक प्रक्रियाओं का हिस्सा हो सकते हैं. जब हम हमारी नियमित प्रक्रियाओं को चुनौती के रूप में देखते हैं, तभी हम उन चीजों को नए तरीके से करने की कोशिश करते हैं और अपने अंदर नए मूल्यों को विकसित कर पाते हैं.

ओनरशिप यानी जिम्मेदारी : मैनेजर से उम्मीद की जाती है कि वे जो काम कर रहे हैं उस की पूरी जिम्मेदारी लें. शुरू से ले कर अंत में उस काम को जिम्मेदारी से पूरा करें, क्योंकि इस के लिए आप पर भरोसा किया जाता है. इस के परिणामों के लिए आप ही जवाबदेह होते हैं. जब भी आप को कोई परियोजना या अतिरिक्त जिम्मेदारी दी जाती है तो आप से कुछ उम्मीद भी होती है. मैनेजर के रूप में किसी भी कमी का दोष आप किसी और को नहीं दे सकते.

जौब या नौकरी : आप का सकारात्मक दृष्टिकोण आप के व्यक्तित्व में    झलकता है. एक खुशमिजाज व्यक्ति अपने काम में खुशी ढूंढ़ता है, वह अपने आसपास के माहौल को भी खुशनुमा बना देता है. कार्यस्थल पर खुशी का माहौल तब बनता है जब आप अपने काम से प्यार करते हैं और 100 फीसदी आउटपुट देते हैं. आप अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए हमेशा अपनेआप को प्रोत्साहित करते रहते हैं. अपनी नौकरी को सिर्फ एक काम न मानें, बल्कि यह आप के लिए जनून होना चाहिए. तभी आप इस से प्यार कर सकेंगे और इस में मौजूद अनगिनत संभावनाओं को खोज सकेंगे.

पैशन फौर लर्निंग यानी सीखने का जनून : कुछ नया सीखने की जिज्ञासा व्यक्ति में अंत तक रहनी चाहिए. जो लोग हमेशा कुछ नया सीखने और अपनेआप में सुधार लाने की कोशिश करते हैं, उन का ग्राफ हमेशा ऊपर की ओर ही जाता है. यह जनून आप में तभी पैदा होता है जब आप अपने काम में रुचि बनाए रखते हैं. साथ ही, आप अपने आसपास की दुनिया के लिए अपने आंख और कान खुले रखते हैं. अगर आप में यह जनून है तो आप की कौशल और विशेषज्ञता में हमेशा सुधार होता है.

सहानुभूति : सहानुभूति प्रबंधन कौशल के लिए जरूरी है. एक प्रबंधक के लिए बेहद जरूरी है कि वह दूसरों के दृष्टिकोण को सम   झे. दूसरे लोगों के काम को सम   झना, उसे स्वीकार करना और उस की सराहना करना आप को आना चाहिए. लीडरशिप के बहुत से सिद्धांतों के अनुसार एंपैथी लीडरशिप का अभिन्न अंग है.

करेज यानी बहादुरी : हो सकता है कि बहादुरी को आप वीरता या बलिदान सम   झें. एक सफल प्रबंधक के लिए बहादुरी जरूरी है. यह बहादुरी मैनेजर को सभी चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार करती है. उसे अपने आइडिया को इंपलीमैंट करने में मदद करती है. कार्यस्थल पर इस बहादुरी का तात्पर्य है कि आप कुछ अलग सोचने की कोशिश करें, इनोवेट करें, कोई नया विचार रखें. इसी की मदद से एक कंपनी और इस के लोग विकसित हो सकते हैं. यह कम्युनिकेशन को बढ़ावा देती है. एक संगठन में पारदर्शिता व निष्पक्षता लाती है, इसलिए कंपनी के सभी लोगों के लिए बहादुर होना जरूरी है.

रिस्पौन्सिवनैस यानी जवाबदेही : एक मैनेजर से उम्मीद की जाती है कि वह अपने आसपास की स्थिति और अपने उपभोक्ताओं के लिए जवाबदेह हो. इस के लिए उसे तुरंत फैसला लेने में सक्षम होना चाहिए. उस में अवसरों को पहचानने की क्षमता होनी चाहिए. उस में समस्याओं के प्रभावी समाधान खोजने की क्षमता होनी चाहिए और उन क्षेत्रों की पहचान की क्षमता होनी चाहिए जिन में सुधार की संभावना हो.

रैशनलिस्ट होना : एक एमबीए को भावनाओं और धार्मिक प्रचार से उठ कर सोचना चाहिए क्योंकि उस के लिए देश का हर नागरिक बराबर का है और हरेक की परचेजिंग ग्रोथ है, कम या ज्यादा. उसे व्हाट्सऐप का ज्ञान तो बिलकुल दिमाग में घुसने नहीं देना चाहिए. चुनौतियों के लिए सही लोगों का चयन करें, अपने धर्म या जाति का नहीं. अपनी टीम में कभी धर्म या जाति को ले कर विवाद खड़ा न होने दें और हमेशा एकदो रैशनिलस्ट विचारकों की किताबें बैड के सिराहने रखनी चाहिए.

तीज 2022: त्यौहार में बनाएं ये हेल्दी मल्टीग्रेन थाली पीठ

त्योहार के दिनों में अगर आप स्पेशल थाली बनाने की प्लानिंग कर रहे हैं तो इस मल्टीग्रेन थाली से स्पेशल आपके लिए कुछ हो ही नहीं सकता है. ऐसे में आप नीचे दिए हुए रेसिपी पर ट्राई कर सकती हैं.

  1. मल्टीग्रेन थाली पीठ

सामग्री

– 11/2 कप आटा

– 1/2 कप बाजरा

– 1/2 कप ज्वार

– 300 ग्राम खीरा कसा

– 50 ग्राम दही

– 2 बड़े चम्मच अलसी के बीज

– 1/4 बड़ा चम्मच हलदी पाउडर

– 2 बड़े चम्मच सरसों दाना

– चुटकी भर हींग

– थोड़ा सा भुना जीरा

– 1/4 बड़ा चम्मच बेकिंग सोडा

– 10 ग्राम कसा अदरक

– 30 एमएल तेल

– नमक स्वादानुसार.

विधि

आटे में बेकिंग सोडा, अलसी व सरसों के बीज, हलदी पाउडर, हरीमिर्च, नमक, हींग, जीरा और अदरक मिलाएं. फिर दही में खीरा मिलाएं. अब इस मिश्रण को आटे के मिश्रण में धीरे से मिलाएं और अच्छी तरह आटा गूंध लें. गुंधे आटे को 15 मिनट के लिए अलग रख दें. अब एक पैन में तेल गरम करें. आटे का लगभग 30 ग्राम हिस्सा ले कर हथेली से गोल आकार दें और तेल में दोनों तरफ से सेंकें. फिर थाली पीठ को धीमी आंच पर ही सेंकें. इसे धनिए की चटनी, मराठी लहसुन की चटनी या फिर रायते के साथ परोसें.

2. स्टिर फ्राइड टोफू विद विंटर वैजिटेबल ऐंड स्पिनैच

सामग्री

– 400 ग्राम टोफू

– 100 ग्राम पालक

– 150 ग्राम बींस कटी

– 50 ग्राम गाजर कटी

– 50 ग्राम लालमिर्च कटी

– 15 ग्राम ऐस्परैगस

– 5 ग्राम लालमिर्च कटी

– 30 एमएल तिल का तेल

– 50 ग्राम स्प्रिंग ओनियन

– 20 एमएल डार्क सोया सौस

– 10 ग्राम अदरक कसा

– 10 ग्राम लहसुन कटा

– 25 ग्राम कौर्नस्टार्च पानी में मिला.

विधि

टोफू को क्यूब्स में काटें. टोफू को बटरपेपर पर रखें और 15 मिनट के लिए ओवन में बेक करें. फिर एक बरतन में तिल के तेल को धीमी आंच पर गरम कर उस में अदरकलहसुन डालें. इस के बाद सब्जियां डालें और 2-3 मिनट तक पकने दें. अब सोया सौस और थोड़ा पानी डालें. सौस में उबाल आने पर कौर्नस्टार्च डालें. फिर इस मिश्रण में टोफू डालें. मिश्रण को 1 मिनट तक पकने दें. जरूरतानुसार सीजनिंग, नमक और पैपर डालें. मिश्रण को ज्यादा न चलाएं वरना टोफू टूटने की संभावना बन सकती है. पकने के बाद गरमगरम सर्व करें.

3. एग ऐंड पोरिज भुरजी

सामग्री

– 6 अंडे

– 1 कप पका दलिया

– 1/2 हरीमिर्च कटी

– 1/4 कप लो फैट मिल्क

– 2 प्याज कटे

– 2 बड़े चम्मच घी या मक्खन

– 1/2 इंच ताजा अदरक कटा

– 4 हरीमिर्चें कटी

– थोड़ी सी धनियापत्ती कटी

– 1/2 छोटा चम्मच जीरा

– 2 छोटे टमाटर मिंस्ड

– 1/4 छोटा चम्मच हलदी पाउडर

– नमक स्वादानुसार.

विधि

एक बड़े बाउल में अंडे फोडें. अब इन में नमक और दूध डालें और हलका सा फेंट लें. अब एक फ्राइंगपैन में घी गरम कर प्याज को सुनहरा होने तक फ्राई करें. अब इस में अदरक डालें और फ्राई करें. इस मिश्रण में हरीमिर्चें, टमाटर, जीरा, धनियापत्ती और हलदी पाउडर डाल कर अच्छी तरह मिक्स करें और 5 मिनट तक पकाएं. फिर इस में दलिया मिलाएं. अब मिश्रण को आंच से उतार कर ठंडा होने के लिए रख दें. अब इस मिश्रण में अंडे का मिश्रण मिला दें और धीमी आंच पर तब तक पकाएं जब तक कि अंडे की भुरजी न बन जाए. गरमगरम परोसें.

व्यंजन सहयोग : शैफ अपूर्व भट्ट कौरपोरेट शैफ, बरगरन होटल्स

तीज 2022: खुली छत- कैसे पति-पत्नी को करीब ले आई घर की छत

काम की व्यस्तता अधिक होने के कारण रमेश और नीना की दुनिया घर की चारदीवारी तक सिमट गई थी. उन के पास अपने घर की छत पर जाने का समय नहीं था जहां पर उन के प्रकृति प्रेमी पापा ने एक बढि़या सा बगीचा बनाया था.

रमेश का घर ऐसे इलाके में था जहां हमेशा ही बिजली रहती थी. इसी इलाके में राजनीति से जुड़े बड़ेबड़े नेताओं के घर जो थे. पिछले 20 सालों से रमेश अपने इसी फ्लैट में रह रहा है. 15 वर्ष मातापिता साथ थे और अब 5 वर्षों से वह अपनी पत्नी नीना के साथ था. उन का फ्लैट बड़ा था और साथ ही 1 हजार फुट का खुला क्षेत्र भी उन के पास था.

7वीं मंजिल पर उन के पास इतनी खुली जगह थी कि लोग ईर्ष्या कर उठते थे कि उन के पास इतनी ज्यादा जगह है.

रमेश के पिता का बचपन गांव में बीता था और उन्हें खुली जगह बहुत अच्छी लगती थी. रिटायर होने से पहले उन्होंने इसी फ्लैट को चुना था, क्योंकि इस में उन के हिस्से इतना बड़ा खुला क्षेत्र भी था. दोस्तों और रिश्तेदारों ने उन्हें समझाया था कि इस उम्र में 7वीं मंजिल पर घर लेना ठीक नहीं है. यदि कहीं लिफ्ट खराब हो गई तो बुढ़ापे में क्या करोगे पर उन्होंने किसी की भी नहीं सुनी थी और 1 लाख रुपए अधिक दे कर यह फ्लैट खरीद लिया था.

पत्नी ने भी शिकायत की थी कि अब बुढ़ापे में इतनी बड़ी जगह की सफाई करना उन के बस की बात नहीं है. नौकरानियां तो उस जगह को देख कर ही सीधेसीधे 100 रुपए पगार बढ़ा देतीं. पर गोपाल प्रसाद बहुत प्रसन्न रहते. उन की सुबह और शामें उसी खुली छत पर बीततीं. सुबह का सूर्योदय, शाम का पहला तारा, पूर्णिमा का पूरा चांद, अमावस्या की घनेरी रात और बरसात की रिमझिम फुहारें उन्हें रोमांचित कर जातीं.

उस छत पर उन्होंने एक छोटा सा बगीचा भी बना लिया था. उन के पास 50 के करीब गमले थे, जिस में  तुलसी, पुदीना, हरी मिर्च, टमाटर, रजनीगंधा, बेला, गुलाब और गेंदा आदि सभी तरह के पौधे लगा रखे थे. हर पेड़पौधे से उन की दोस्ती थी. जब वह उन को पानी देते तो उन से मन ही मन बातें भी करते जाते थे. यदि किसी पौधे को मुरझाया हुआ देखते तो बड़े प्यार से उसे सहलाते और दूसरे दिन ही वह पौधा लहलहा उठता था. वह जानते थे कि प्यार की भाषा को सब जानते हैं.

मातापिता के गुजर जाने के बाद से घर की वह छत उपेक्षित हो गई थी. रमेश और नीना दोनों ही नौकरी करते थे. सुबह घर से निकलते तो रात को ही घर लौटते. ऐसे में उन के पास समय की इतनी कमी थी कि उन्होंने कभी छत वाला दरवाजा भी नहीं खोला. गमलों के पेड़पौधे सभी समाप्त हो चुके थे. साल में एक बार ही छत की ठीक से सफाई होती. उन का जीवन तो ड्राइंगरूम तक ही सिमट चुका था. छुट्टी वाले दिन यदि यारदोस्त आते तो बस, ड्राइंगरूम तक ही सीमित रहते. छत वाले दरवाजे पर भी इतना मोटा परदा लटका दिया था कि किसी को भी पता नहीं चलता कि इस परदे के पीछे कितनी खुली जगह है.

नीना भी पूरी तरह से शहरी माहौल में पली थी, इसलिए उसे कभी इस बात का एहसास ही नहीं हुआ कि उस के ससुर उन के लिए कितना अमूल्य खजाना छोड़ गए हैं. काम की व्यस्तता में दोनों ने परिवार को बढ़ाने की बात भी नहीं सोची थी पर अब जब रमेश को 40वां साल लगा और उसे अपने बालों में सफेदी झलकती दिखाई देने लगी तो उस ने इस ओर ध्यान देना शुरू किया. अब नीना भी उस से सहमत थी, पर अब वक्त उन का साथ नहीं दे रहा था. नीना को गर्भ ठहर ही नहीं रहा था. डाक्टरों के भी दोनों ने बहुत चक्कर लगा लिए. काफी दवाएं खाईं. डी.एम.सी. कराई. स्पर्म काउंट कराया. काम के टेंशन के साथ अब एक नया टेंशन और जुड़ गया था. दोनों की मेडिकल रिपोर्ट ठीक थी फिर भी उन्हें सफलता नहीं मिल रही थी. अब उन के डाक्टरों की एक ही सलाह थी कि आप दोनों तनाव में रहना छोड़ दें. आप दोनों के दिमाग में बच्चे की बात को ले कर जो तनाव चल रहा है वह भी एक मुख्य कारण हो सकता है आप की इच्छा पूरी न होने का.

इस मानसिक तनाव को दूर कैसे किया जाए? इस सवाल पर सब ओर से सलाह आती कि मशीनी जिंदगी से बाहर निकल कर प्रकृति की ओर जाओ. अपनी रोजमर्रा की पाबंदियों से निकल कर मुक्त सांस लेना सीखो. कुछ व्यायाम करो, प्रकृति के नजदीक जाओ आदि. लोगों की सलाह सुन कर भी उन दोनों की समझ में नहीं आता था कि इन पर अमल कैसे किया जाए.

इसी तरह की तनाव भरी जिंदगी में वह रात उन के लिए एक नया संदेश ले कर आई. हुआ यों कि रात को 1 बजे अचानक ही बिजली चली गई. ऐसा पहली बार हुआ था. ऐसी स्थिति से निबटने के लिए वे दोनों पतिपत्नी तैयार नहीं थे, अब बिना ए.सी. और पंखे के बंद कमरे में दोनों का दम घुटने लगा. रमेश उठा और अपने मोबाइल फोन की रोशनी के सहारे छत के दरवाजे के ताले की चाबी ढूंढ़ी और दरवाजा खोला. छत पर आते ही जैसे सबकुछ बदल गया.

ये भी पढ़ें-प्रेम कबूतर

खुली छत पर मंदमंद हवा के बीच चांदनी छिटकी हुई थी. आधा चंद्रमा आकाश के बीचोंबीच मुसकरा रहा था. रमेश अपनी दरी बिछा कर सो गया. उस ने अपनी खुली आंखों से आकाश को, चांद को और तारों को निहारा. आज 20-25 वर्षों बाद वह ऐसे खुले आकाश के नीचे लेटा था. वह तो यह भी भूल चुका था कि छिटकी हुई चांदनी में आकाश और धरती कैसे नजर आते हैं.

बिजली जाने के कारण ए.सी. और पंखों की आवाज भी बंद थी. चारों ओर खामोशी छाई हुई थी. उसे अपनी सांस भी सुनाई देने लगी थी. अपनी सांस की आवाज सुननेके लिए ही वह आतुर हो उठा. रमेश को लगा, जिन सांसों के कारण वह जीवित है उन्हीं सांसों से वह कितना अपरिचित है. इन्हीं विचारों में भटकतेभटकते उसे लगा कि शायद इसे ही ध्यान लगाना कहते हैं.

उस के अंदर आनंद का इतना विस्तार हो उठा कि उस ने नीना को पुकारा. नीना अनमने मन से बाहर आई और रमेश के साथ उसी दरी पर लेट गई. रमेश ने उस का ध्यान प्रकृति की इस सुंदरता की ओर खींचा. नीना तो आज तक खुले आकाश के नीचे लेटी ही नहीं थी. वह तो यह भी नहीं जानती थी कि चांदनी इतनी धवल भी होती है और आकाश इतना विशाल. अपने फ्लैट की खिड़की से जितना आकाश उसे नजर आता था बस, उसी परिधि से वह परिचित थी.

रात के सन्नाटे में नीना ने भी अपनी सांसों की आवाज को सुना, अपने दिल की धड़कन को सुना, बरसती शबनम को महसूस किया और रमेश के शांत चित्त वाले बदन को महसूस किया. उस ने महसूस किया कि तनाव वाले शरीर का स्पर्श कैसा अजीब होता है और शांत चित्त वाले शरीर का स्पंदन कैसा कोमल होता है. दोनों को मानो अनायास ही तनाव से छुटकारा पाने का मंत्र हाथ लग गया.

वह रात दोनों ने आंखों ही आंखों में बिताई. रमेश ने मन ही मन अपने पिता को इस अनमोल खजाने के लिए धन्यवाद दिया. आज पिता के साथ गुजारी वे सारी रातें उसे याद हो आईं जब वह गांव में अपने पिता के साथ लेट कर सुंदरता का आनंद लेता था. पिता और दादा उसे तारों की भी जानकारी देते जाते थे कि उत्तर में वह ध्रुवतारा है और वे सप्तऋषि हैं और  यह तारा जब चांद के पास होता है तो सुबह के 3 बजते हैं और भोर का तारा 4 बजे नजर आता है. आज उस ने फिर से वर्षों बाद न केवल खुद भोर का तारा देखा बल्कि पत्नी नीना को भी दिखाया.

प्रकृति का आनंद लेतेलेते कब उन की आंख लगी वे नहीं जान पाए पर सुबह सूर्यदेव की लालिमा ने उन्हें जगा दिया था. 1 घंटे की नींद ले कर ही वे ऐसे तरोताजा हो कर उठे मानो उन में नए प्राण आ गए हों.

अब तो तनावमुक्त होने की कुंजी उन के हाथ लग गई. उसी दिन उन्होंने छत को धोपोंछ कर नया जैसा बना दिया. गमलों को फिर से ठीक किया और उन में नएनए पौधे रोप दिए. बेला का एक बड़ा सा पौधा लगा दिया. रमेश तो अपने अतीत से ऐसा जुड़ा कि आफिस से 15 दिन की छुट्टी ले बैठा. अब उन की हर रात छत पर बीतने लगी. जब अमावस्या आई और रात का अंधेरा गहरा गया, उस रात को असंख्य टिमटिमाते तारों के प्रकाश में उस का मनमयूर नाच उठा.

धीरेधीरे नीना भी प्रकृति की इस छटा से परिचित हो चुकी थी और वह भी उन का आनंद उठाने लगी थी. उस ने  भी आफिस से छुट्टी ले ली थी. दोनों पतिपत्नी मानो एक नया जीवन पा गए थे. बिना एक भी शब्द बोले दोनों प्रकृति के आनंद में डूबे रहते. आफिस से छुट्टी लेने के कारण अब समय की भी कोई पाबंदी उन पर नहीं थी.

सुबह साढ़े 4 बजे ही पक्षियों का कलरव सुन कर उन की नींद खुल जाती. भोर के टिमटिमाते तारों को वे खुली आंखों से विदा करते और सूर्य की अरुण लालिमा का स्वागत करते. भोर के मदमस्त आलम में व्यायाम करते. उन के जीवन में एक नई चेतना भर गई थी.

छत के पक्के फर्श पर सोने से दोनों की पीठ का दर्द भी गायब हो चुका था अन्यथा दिन भर कंप्यूटर पर बैठ कर और रात को मुलायम गद्दों पर सोने से दोनों की पीठ में दर्द की शिकायत रहने लगी थी. अनायास ही शरीर को स्वस्थ रखने का गुर भी वे सीख गए थे.

ऐसी ही एक चांदनी रात की दूधिया चांदनी में जब उन के द्वारा रोपे गए बेला के फूल अपनी मादक गंध बिखेर रहे थे, उन दोनों के शरीर के जलतत्त्व ने ऊंची छलांग मारी और एक अनोखी मस्ती के बाद उन के शरीरों का उफान शांत हो गया तो दोनों नींद के गहरे आगोश में खो गए थे. सुबह जब वे उठे तो एक अजीब सा नशा दोनों पर छाया हुआ था. उस आनंद को वे केवल अनुभव कर सकते थे, शब्दों में उस का वर्णन हो ही नहीं सकता था.

अब उन की छुट्टियां खत्म हो गई थीं और उन्होंने अपनेअपने आफिस जाना शुरू कर दिया था. फिर से वही दिनचर्या शुरू हो गई थी पर अब आफिस से आने के बाद वे खुली छत पर टहलने जरूर जाते थे. दिन हफ्तों के बाद महीनों में बीते तो नीना ने उबकाइयां लेनी शुरू कर दीं. रमेश पत्नी को ले कर फौरन डाक्टर के पास दौड़े. परीक्षण हुआ. परिणाम जान कर वे पुलकित हो उठे थे. घर जा कर उसी खुली छत पर बैठ कर दोनों ने मन ही मन अपने पिता को धन्यवाद दिया था.

पिता की दी हुई छत ने उन्हें आज वह प्रसाद दिया था जिसे पाने के लिए वह वर्षों से तड़प रहे थे. यही छत उन्हें प्रकृति के निकट ले आई थी. इसी छत ने उन्हें तनावमुक्त होना सिखाया था. इसी छत ने उन्हें स्वयं से, अपनी सांसों से परिचित करवाया था. वह छत जैसे उन की कर्मस्थली बन गई थी. रमेश ने मन ही मन सोचा कि यदि बेटी होगी तो वह उस का नाम बेला रखेगा और नीना ने मन ही मन सोचा कि अगर बेटा हुआ तो उस का नाम अंबर रखेगी, क्योंकि खुली छत पर अंबर के नीचे उसे यह उपहार मिला था.

तीज 2002: मुआवजा- राकेश की पत्नी उसे आखिर क्या दे गई

अचानक दिल्ली में जब उस हवाई दुर्घटना के बारे में सुना तो एकाएक विश्वास ही नहीं हुआ. मैं तो बड़ी बेसब्री से कमला की प्रतीक्षा कर रही थी कि अचानक यह हादसा हो गया.

कमला शादी के बाद पहली बार दिल्ली अपने मातापिता के पास आ रही थी. 5 साल पहले उस की शादी हुई थी और शादी के कुछ महीने बाद ही वह अपने पति के पास मांट्रियल चली गई थी. इसी बीच उस की गोद में एक बेटी भी आ गई थी. दिल्ली में उस का मायका हमारे घर से थोड़ी ही दूरी पर था.

मैं पिछले 8 महीने से अपने पति और बच्चों के साथ दिल्ली में ही थी. मेरे पति भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, दिल्ली में अतिथि प्राध्यापक के रूप में काम कर रहे थे. कमला से मिले काफी दिन हो गए थे. मैं मांट्रियल की सब खोजखबर कमला से जानने के लिए उस की बड़ी उत्सुकता से प्रतीक्षा कर रही थी.

कमला के पिता के घर हम अफसोस जाहिर करने गए. उस के मातापिता और परिवार के अन्य सदस्यों का बुरा हाल था. वे तो उसे पति के घर जाने के बाद एक बार देख भी नहीं पाए थे और अब क्या से क्या हो गया था.

कमला के पति राकेश को एअर लाइंस ने दुर्घटना स्थल तक जाने की सब सुविधाएं प्रदान की थीं. वह चाहता तो उस कंपनी के खर्चे पर भारत आ कर पत्नी और बेटी का दाहसंस्कार कर सकता था पर वह नहीं आया.

राकेश ने जब कमला के पिता को फोन किया, तब हम उन के घर पर ही थे. बेचारे राकेश से आग्रह कर के हार गए, पर वह दिल्ली आने को राजी नहीं हुआ. खैर, वह करते भी क्या. जमाई पर किस का हक होता है और अब तो उन की बेटी भी इस दुनिया में नहीं रही थी तो फिर वह उस को किस अधिकार से दिल्ली आने के लिए बाध्य करते.

एअर लाइंस के अधिकारी दुर्घटना में मरे यात्रियों के निकट संबंधियों से मुआवजे के बारे में बातचीत कर रहे थे. यह विषय कितना दुखद हो सकता है, इस का अनुमान तो वही लगा सकते हैं जो कभी ऐसी परिस्थिति से गुजरे हों. कैसे किसी विधवा स्त्री को समझाया जाए कि उस के पति की मृत्यु का मुआवजा चंद हजार डालर ही है. कैसे किसी पति को सांत्वना दें कि उस की पत्नी का मुआवजा इसलिए कम होगा, क्योंकि वह अपने पति पर निर्भर थी. जो इनसान हमें प्राणों से भी प्यारे लगते हैं, उन के जीवन का मूल्य एअरलाइंस कुछ हजार डालर ही लगाती है.

राकेश से जब एअरलाइंस के अधिकारियों ने उस की पत्नी और बच्ची की मृत्यु पर मुआवजे की बातचीत की तो वह क्रोध और दुख से कांप उठा. उस ने साफसाफ कह दिया कि इस दुर्घटना के लिए हवाई जहाज का पायलट जिम्मेदार था. वह अपनी बच्ची और पत्नी की मृत्यु के लिए मुआवजे की एक कौड़ी भी नहीं चाहता परंतु वह एअरलाइंस पर मुकदमा चलाएगा, चाहे उसे इस के लिए भीख ही क्यों न मांगनी पड़े. वह कचहरी में कंपनी को हवाई दुर्घटना के लिए जिम्मेदार ठहरा कर ही रहेगा.

एअरलाइंस के अधिकारी राकेश को धीरज बंधाने की कोशिश कर रहे थे. अगर वास्तव में राकेश कानून का सहारा लेगा तो मुकदमा जीत जाने पर कंपनी की कहीं अधिक हानि हो सकती थी. कंपनी के अधिकारी उस के इर्दगिर्द घूमते रहे, पर उस ने मुआवजे के फार्म पर हस्ताक्षर नहीं किए. शेष जितने भी यात्रियों की मृत्यु हुई थी, लगभग हर किसी के परिवार के सदस्यों ने मुआवजे के फार्म भर दिए थे. शायद राकेश ही ऐसा था जो बिना फार्म भरे मांट्रियल वापस आ गया था. एअरलाइंस के मांट्रियल कार्यालय के अधिकारियों को राकेश को राजी करने का काम सौंप दिया गया था.

राकेश और कमला से हमारी मुलाकात कुछ वर्ष पहले हुई थी. कमला तो काफी खुशमिजाज थी, पर राकेश हमें अधिक मिलनसार नहीं लगा. वैसे तो उसे कनाडा में रहते हुए कई साल हो गए थे और मांट्रियल में भी वह पिछले 7 सालों से था, पर उस की यहां पर इक्कादुक्का लोगों से ही मित्रता थी.

एक बार बाजार में कमला मिल गई.

मैंने जब उस से कहा कि मेरे घर चलो तो वह आनाकानी करने लगी. खैर, मैं आग्रह कर के उसे अपने घर ले आई. बातों ही बातों में पता चला कि बचपन में हम दोनों एक ही स्कूल में पढ़ती थीं. वह मुझ से मिल कर बहुत खुश हुई.

यह सुन कर मुझे बहुत अजीब लगा जब कमला ने बताया कि वह जब से भारत से आई है, किसी भी भारतीय के घर नहीं गई है और न ही उस ने कभी किसी को अपने घर बुलाया है. मैं ने जब उन को अपने घर खाने का निमंत्रण दिया तो वह आनाकानी करने लगी. कहने लगी, ‘‘पता नहीं, राकेशजी शाम को खाली भी होंगे या नहीं.’’

मैंने जिद की तो वह मान गई परंतु यह कह कर कि अगर नहीं आ सके तो हम बुरा नहीं मानें. उस की बातों से लगा कि जैसे बेचारी पति की आदतों से परेशान है. पति अगर मिलनसार न हो तो पत्नी तो बेचारी बस जीवनभर घुटघुट कर ही मर जाए.

शाम को पतिपत्नी हमारे घर खाने पर आए. कमला तो बहुत खुश थी. मेरे साथ रसोई में हाथ बंटा रही थी, परंतु राकेश कुछ खिंचाखिंचा सा था. हमें ऐसा लगा कि वह कनाडा में अपनेआप को किसी विदेशी सा ही समझता है.

कमला और राकेश के यहां हमारा कभीकभार आनाजाना होने लगा. हम तो उन दोनों को पार्टियों में ही बुलाते थे, पर वे हमें बस अकेले ही सपरिवार आमंत्रित करते थे. हमारे घर की पार्टियों में उन की मुलाकात हमारे बहुत से मित्रों से होती थी. उन में से कुछ ने तो कमला और राकेश को खाने पर भी बुलाया था, पर वे नहीं गए. कोई बहाना बना कर टाल गए थे. जब उन की बच्ची पैदा हुई तो उस के लिए हमारे अलावा शायद ही किसी और ने उपहार दिया हो. हम भी बस एक ही बार जा पाए थे.

दिल्ली से जब हम मांट्रियल वापस आ रहे थे, सारे रास्ते मन उखड़ाउखड़ा सा था. इतने महीने दिल्ली में बिताने के बाद घर वालों से बिछुड़ने का दुख भी था. दिल के एक कोने में अपने घर जल्दी पहुंचने की इच्छा भी थी. कमला और उस की बच्ची रीता का खयाल भी रहरह कर दिल में उठ रहा था. बेचारा राकेश किस तरह कमला और रीता के बिना जीवन बिता रहा होगा. हमारे बच्चे तो रीता से कितना हिलमिल गए थे. उन को तो वह गुडि़या सी लगती थी.

मांट्रियल पहुंचने के अगले दिन हम दोनों राकेश से मिलने गए. मैं ने कमला के पिता का दिया हुआ पत्र राकेश को दे दिया. राकेश काफी उदास दिखाई दे रहा था. वह बेचारा बहुत कम लोगों को जानता था. थोड़े से लोग ही उस के घर पर अफसोस करने आए थे.

वह गंभीर स्वर में बोला, ‘‘हर समय कमला और रीता की याद सताती रहती है. कुछ दिल बहलेगा, इसलिए 1-2 दिन में वापस काम पर जाने की सोच रहा हूं.’’

राकेश के पास हम कुछ देर बैठ कर लौट आए.

दोचार दिन में हमारे सब मित्रों को मालूम हो गया कि हम वापस आ गए हैं. फिर क्या था, फोन पर फोन आने लगे. मेरी लगभग सभी सहेलियां मुझ से मिलने आईं. वे सब इस बात से परेशान थीं कि कनाडा के डाक कर्मचारियों की हड़ताल के कारण पत्र आदि आने भी बंद हो गए हैं.

एक शाम दीपक हमारे घर आए. उन्हें अकेले देख कर मैं ने शिकायत के लहजे में कहा, ‘‘क्यों भाई साहब, अकेले ही आ गए. भाभीजी को भी साथ ले आते.’’

‘‘मैं तो राकेश के घर जा रहा था. सोचा, आप लोगों से मिलता जाऊं और दिल्ली की मिठाई भी खाता जाऊं. तुम्हारी भाभी तो मुझे मिठाई को हाथ भी नहीं लगाने देंगी.’’

‘‘मैं भी बस आप को थोड़ी सी मिठाई चखाऊंगी. मुझे भाभीजी से डांट नहीं खानी है.’’

मैं रसोई में चाय बनाने चली गई.

दीपक मेरे पति से बोले, ‘‘साहब, डाक कर्मचारियों की हड़ताल ने परेशान कर रखा है. देखिए, यह चेक देने मुझे राकेश के पास खुद ही जाना पड़ रहा है.’’

‘‘किस तरह का चेक है, भाई साहब,’’ मैं रसोई में चाय और कुछ मिठाई ट्रे में रख कर ले आई और चाय परोसने लगी.

‘‘राकेश ने कमला के भारत जाते समय उस का हवाई अड्डे पर 2 लाख डालर का बीमा करा लिया था. यह चेक उसी बीमे का भुगतान है. कभी हाथ पर रखा है 2 लाख डालर का चेक,’’ दीपक ने मुसकराते हुए कोट की जेब से एक लिफाफा निकाला.

लगभग आधा घंटा बैठ कर दीपक राकेश को चेक देने चले गए. उस शाम हम दोनों पतिपत्नी यही सोचते रहे कि राकेश 2 लाख डालर का क्या करेगा. हमारे जानपहचान वालों में शायद ही कोई ऐसा हो जो पत्नी का हवाई यात्रा करते समय बीमा कराता हो. पुरुष तो फिर भी करा लेते हैं, पर पत्नी के लिए तो कोई भी नहीं सोचता. खैर, यह तो राकेश और कमला की अपनी इच्छा रही होगी. यह भी तो हो सकता है कि मजाक के लिए ही उन दोनों ने ऐसा किया हो, पर राकेश हंसीमजाक के लिए तो कुछ भी नहीं करता.

हम मांट्रियल में अपने जीवन में व्यस्त हो गए थे. सोमवार से शुक्रवार तक काम और बच्चों का स्कूल. शनिवार को खरीदारी और पार्टियां तथा रविवार को बस आराम या कभीकभी किसी परिचित के घर चले जाते.

राकेश से कभीकभी फोन पर मेरे पति बात कर लेते थे. हालांकि उस की चर्चा पार्टियों में कभीकभी ही होती थी. हमारे मित्र हम से ही उस के बारे में पूछते थे. लगता था, जैसे वह बाकी सब लोगों के लिए एक अजनबी सा ही हो.

एक बार दीपक बातों ही बातों में कह गए थे, ‘‘राकेश अपनी बीवी और बच्ची के लिए एअरलाइंस से मुआवजे के रूप में बहुत बड़ी रकम की मांग कर रहा है और जिद पर अड़ा है. अब तो उस के पास 2 लाख डालर की नकद रकम भी है. एअरलाइंस के खिलाफ मुकदमा न कर दे. वैसे कंपनी इस मामले को कचहरी तक पहुंचने नहीं देना चाहती और समझौता करने की कोशिश कर रही है. राकेश शायद हवाई दुर्घटना से पीडि़त अन्य लोगों की तुलना में कई गुना मुआवजा हवाई कंपनी से हासिल करने में सफल हो जाएगा.’’

जैसा कि होता है, हम भी कमला और रीता को भूल सा गए थे. राकेश तो कभी हम लोगों के करीब आ ही नहीं पाया था. हम ने एकदो बार उसे अपने घर बुलाया भी, परंतु वह नहीं आया, हम उस से मिलने उस के घर भी गए, पर अधिक बातें न हो सकीं.

डाक विभाग के कर्मचारियों की हड़ताल काफी दिन चली. जब हड़ताल समाप्त हुई तो हमें बहुत खुशी हुई. हड़ताल खत्म होते ही डाकघरों में पड़े पुराने पत्र, टेलीफोन और बिजली आदि के बिल आने चालू हो गए.

एक दिन दिल्ली से हमारे मांट्रियल पहुंचने के पश्चात पहला पत्र आया. लिफाफा भारी लग रहा था. उस में अम्मां का काफी लंबा पत्र था. एक और लिफाफा भी था, जिसे कनाडा से ही मेरे नाम भेजा गया था. हमारे दिल्ली से चले आने के बाद वहां पहुंचा होगा, इसलिए अम्मां ने हमें भेज दिया.

मैं ने जब लिफाफा खोला तो आश्चर्यचकित रह गई. पत्र कमला का था. मेरा मन उदास हो गया क्योंकि कमला अब इस दुनिया में नहीं थी. मैं पत्र पढ़ने लगी :

प्रिय रत्ना दीदी,

आपका पत्र मिला. मेरा कुछ ऐसा कार्यक्रम बन गया है कि जब आप मांट्रियल वापस आएंगी, तब मैं दिल्ली से कानपुर पहुंच चुकी होऊंगी. मेरी माताजी से आप को मेरे दिल्ली पहुंचने की तारीख का पता चल ही गया होगा. शायद आप को यह नहीं पता कि मैं जिद कर के दिल्ली पहुंचने के एक दिन बाद ही कानपुर अपनी बड़ी बहन के पास चली जाऊंगी. इस का कारण यह है कि आप मुझ से मिलने अवश्य मेरी माताजी के घर आएंगी, पर मैं आप से मिलने का साहस नहीं जुटा पा रही हूं. अब हम शायद कभी नहीं मिल पाएंगी क्योंकि मैं अब मांट्रियल कभी नहीं लौटूंगी.

मेरे इस निर्णय का राकेश को भी पता नहीं है. हां, इस का सौ प्रतिशत उत्तरदायी वही है. हमारी शादी हुए 5 साल से ऊपर हो गए हैं, पर उस ने शायद ही कभी पति का प्यार मुझे दिया हो. राकेश ने मुझे घर की नौकरानी से अधिक कभी कुछ नहीं समझा. शादी के इतने वर्ष बीत जाने पर भी उस ने कभी मेरे लिए कोई साड़ी, गहना या छोटा सा उपहार भी नहीं खरीदा. मेरी बात को छोडि़ए रीता को भी उस ने कभी प्यार से चूमा तक नहीं, गोद में खिलाना तो दूर की बात है.

आपने देखा ही होगा कि राकेश कितना नीरस व्यक्ति है. परंतु वास्तव में वह बहुत खुशमिजाज है, और उस की यह खुशी बस अपनी महिला मित्रों तक ही सीमित है. उस ने अपने जीवन के इस रूप से मुझे हमेशा अनजान ही रखा. खुद ऐश करने के लिए उस के पास पैसे हैं, परंतु अपनी बेटी के लिए ढंग का फ्राक खरीदने के लिए पैसे की कमी है. वह हमेशा मुझे इतने कम पैसे देता है कि घर का खर्च भी मुश्किल से चलता है.

मैं कभी राकेश को पकड़ तो नहीं पाई परंतु जानती हूं कि कई लड़कियों के साथ उस का संपर्क है. मुझे प्रमाण तो नहीं मिल पाया, पर एक पत्नी को ऐसी बातें तो मालूम हो ही जाती हैं. मैं ने कई बार उसे समझाने की कोशिश की, पर हर बार उस से मार ही खाई. मेरे भारत जाने के लिए हवाई जहाज के टिकट के पैसे खर्च करने के लिए कभी वह राजी नहीं हुआ. इस बार जब पिताजी ने टिकट भेज दिया तो मैं दिल्ली आ पा रही हूं.

प्रत्येक लड़की के मातापिता अपनी बेटी के लिए अच्छे से अच्छा वर खोजने की कोशिश करते हैं. मेरे मातापिता ने भी इतना दहेज दिया था कि राकेश के घर वाले खुशी से फूले नहीं समा रहे थे. मेरे दहेज की सारी चीजों और नकद रुपयों से उन्होंने थोड़े दिनों बाद ही राकेश की छोटी बहन की शादी कर दी थी.

राकेश ने अपने घर वालों के दबाव में आ कर मुझ से शादी की थी. उसे मैं कभी भी अपने लायक नहीं लगी, क्योंकि मैं एक सीधीसादी आकर्षण- रहित महिला हूं. मुझे कहीं अपने साथ ले जाने में भी उसे आपत्ति होती थी. बेचारी रीता भी रंगरूप में मुझ पर गई है. इसी कारण उसे कभी राकेश से पिता का प्यार नहीं मिला.

मैं तो शायद किसी भी साधारण व्यक्ति को पति के रूप में पा कर प्रसन्न रहती. कम से कम मेरे जीवन में हीन- भावना तो न घर कर पाती. राकेश मेरे लिए उपयुक्त वर भी न था. उस ने मुझ से शादी खूब सारा दहेज पाने के लिए की थी. वह उसे मिल गया. उस के बाद उस के जीवन में मेरा कोई महत्त्व न था. शारीरिक आवश्यकताएं तो वह घर के बाहर पूरी कर ही लेता था. मैं तो बस रीता के लिए ही उस के साथ विवाहित जीवन की परिधि में असहाय की तरह जीवन बिताने का प्रयास कर रही थी.

अब मैंने निश्चय कर लिया है कि जब विवाहित हो कर भी अविवाहिता का ही जीवन बिताना है तो क्यों न अपने मातापिता के पास ही रहूं. कम से कम उन का प्यार और सहयोग तो मुझे मिलेगा ही. मुझे मालूम है, मेरे मातापिता मुझे समझाने की कोशिश करेंगे, पर जब मैं उन्हें अपनी पीठ पर उभरे राकेश की मार के काले निशान दिखाऊंगी तो वे शायद कुछ न कहेंगे. मेरे जीवन के पिछले 5 साल कैसे बीते हैं, यह मेरा दिल ही जानता है. पर उन दिनों आप ने जो मुझे प्यार और स्नेह दिया, उस ने मुझे मानसिक संतुलन खो देने से बचा लिया. मैं जीवन भर आप की आभारी रहूंगी.

आपकी कमला.

कमला का पत्र पढ़ कर मेरी आंखों में आंसू उमड़ आए. राकेश का जो रूप कमला के पत्र से प्रकट हुआ, उस की तो मैं कल्पना भी नहीं कर सकती थी. मांट्रियल आने के बाद राकेश से हम 2-3 बार मिले थे.

हमेशा ऐसा ही लगा, जैसे उस के ऊपर दुख का पहाड़ टूट पड़ा है. यह सब क्या उस का दिखावा था, ताकि वह एअरलाइंस से अधिक मुआवजा वसूल कर सके. 2 लाख डालर तो उस की

जेब में आ ही चुके थे. अभी पता नहीं उसे मुआवजे के रूप में और कितने मिलेंगे?

कितना दुखभरा जीवन था कमला और उस की बच्ची का. जब तक जीवित रहीं छोटीछोटी चीजों के लिए तरसती रहीं क्योंकि राकेश आमदनी का अधिक भाग अपनी ऐयाशी पर खर्च कर देता था. मृत्यु के बाद भी दोनों राकेश के लिए आशातीत मुआवजे की रकम का प्रबंध कर गईं.

कह नहीं सकती कि राकेश एकांत के क्षणों में कमला और रीता की मृत्यु पर दुखी होता है अथवा प्रसन्न. उस का निजी जीवन पहले की तरह चल रहा है या कमला के रास्ते से हमेशा के लिए हट जाने के कारण वह और भी अधिक ऐशोआराम में डूब गया है.

वैसे राकेश जैसे व्यक्ति के बारे में मैं सोचना नहीं चाहती. कमला और उस की बेटी तो शायद राकेश का अतीत बन गई होंगी, पर उन दोनों की स्मृति मेरे मन से कभी नहीं जाएगी.

राकेश को तो मुआवजा मिल ही जाएगा, पर वह जीवन भर कमला का कर्जदार रहेगा. उसे कमला  के जीवन के दुख भरे वर्षों का मुआवजा कभी न कभी किसी न किसी रूप में तो चुकाना ही पड़ेगा.

तीज 2022: कठपुतली- शादी के बाद मीता से क्यों दूर होने लगा निखिल

तीज 2022: धुंध- आखिरकर स्वाति और अनिल को अपने गलती का एहसास हुआ

स्वाति के घर मेरा अचानक चले आना महज एक इत्तफाक था, क्योंकि उन दिनों सौरभ कुछ अधिक व्यस्तता से घिरे हुए थे और मैं नन्हे धु्रव के साथ सारा दिन एक ढर्रे से बंधी रहती थी. तब सौरभ ने ही स्वाति के घर जाने का सुझाव मुझे दिया था.

उन का कहना था, वह शीघ्र अपने कामकाज निबटा लेंगे और जब मैं चाहूंगी, मुझे लिवा ले जाएंगे. सौरभ के इस अप्रत्याशित सुझाव पर मैं प्रसन्न हो उठी. वैसे भी स्वाति की छोटी सी गृहस्थी, उस का सुखी संसार देखने की लालसा मैं बहुत दिनों से मन में संजोए बैठी थी.

विवाह के पश्चात हनीमून से लौटते हुए स्वाति और अनिल 3-4 दिन के लिए मेरे पास रुके थे, किंतु वे दिन नवदंपती के सैरसपाटे और घूमनेफिरने में किस तरह हवा हो गए, पता नहीं चला. 2 वर्ष बाद धु्रव पैदा हो गया और मैं उस की देखभाल में लग गई.

उधर स्वाति भी अपने घर, अस्पताल और मरीजों में व्यस्त हो गई. अकसर हम दोनों बहनें फोन पर एकदूसरे का हाल मालूम करती रहती थीं. तब स्वाति का एक ही आग्रह होता, ‘दीदी, किसी भी तरह कुछ दिनों के लिए कानपुर चली आओ.’ और, अब यहां आने पर मेरा सारा उत्साह, सारी खुशी किसी रेत के घरौंदे के समान ढह गई जब मैं ने देखा कि नदी के एक किनारे पर स्वाति और दूसरे पर अनिल खड़े थे और बीच में थी उफनती नदी.

अनिल अपनी तरफ से यह दूरी पाटने का प्रयास भी करते तो स्वाति छिटक कर दूर चली जाती. मुझे याद आता, डाक्टर होते हुए भी अति संवेदनशील स्वाति की आंखों में कैसा इंद्रधनुषी आकाश उतर आया था इस रिश्ते के पक्का होने पर. फिर ऐसा क्या हो गया जो इस आकाश पर बदरंग बादल छा गए. शायद ही कोई ऐसा दिन होता हो, जब दोनों के बीच झगड़ा न होता हो. ऐसे में मेरी स्थिति अत्यंत विकट होती.

मेरे लिए चुप रहना असहनीय होता और बीचबचाव करना अशोभनीय.

सुबह दोनों के अस्पताल जाने के पश्चात मैं बहुत अकेलापन महसूस करती. घर के सभी कार्यों के लिए रमिया और उस का पति थे, इसलिए मुझे करने लायक खास कुछ भी काम न था. वैसे कहने को 2 वर्षीय धु्रव मेरे साथ था, जो अपनी तोतली बातों और शरारतों से मुझे उलझाए रखता था, फिर भी स्वाति के उखड़े स्वभाव और घर में व्याप्त तनाव के कारण मन बहुत उदास रहता. ऐसे में सौरभ बहुत याद आते.

दोपहर में बहुत बेमन से मैं ने धु्रव को खाना खिलाया और उस के सोने के पश्चात उपन्यास ले कर पढ़ने बैठ गई. तभी रमिया ने आ कर कहा, ‘‘बहनजी, साहब व मेमसाहब आ गए हैं. आप का भी खाना लगाऊं क्या?’’

‘‘हांहां, लगाओ. मैं भी आ रही हूं,’’ उपन्यास छोड़ कर मैं फुरती से उठी. डाइनिंग टेबल पर खाना लग चुका था और स्वाति व अनिल मेरी प्रतीक्षा कर रहे थे.

‘‘आज शाम 7 बजे डा. देशपांडे के घर जाना है, आप दोनों तैयार रहिएगा,’’ स्वाति ने सूप की प्लेट में चम्मच घुमाते हुए कहा.

‘‘आज वहां क्या है?’’ मैं ने उत्सुकता जाहिर की.

‘‘आज उन के विवाह की पहली वर्षगांठ है. भूल गईं दीदी, उस दिन शाम को पतिपत्नी हमें आमंत्रित कर गए थे.’’

‘‘स्वाति, तुम और दीदी उन के घर चले जाओ, मैं नहीं जा सकूंगा,’’ अनिल ने अपनी असमर्थता व्यक्त की.

‘‘क्यों?’’ मेरी और स्वाति की निगाहें अनिल की ओर उठ गईं.

‘‘आज रात को 6 नंबर की पेशेंट का औपरेशन है और यह चांस मुझे मिल रहा है,’’ अनिल ने उल्लासभरे स्वर में कहा.

‘‘औपरेशन डा. कपूर कर लेंगे. मैं ने डा. देशपांडे से वादा किया है कि तीनों अवश्य आएंगे,’’ स्वाति ने गंभीर स्वर में कहा.

‘‘नहीं स्वाति, तुम भलीभांति जानती हो डा. कपूर अपने मातहतों को औपरेशन का मौका नहीं देते हैं. पता नहीं कैसे आज उन्होंने यह मौका मुझे दिया है, और मैं इस सुनहरे अवसर को खोना नहीं चाहता.’’

‘‘हां अनिल, तुम्हें यह सुनहरा अवसर बिलकुल नहीं खोना चाहिए, क्योंकि 6 नंबर की रोगी महिला बहुत खूबसूरत है,’’ स्वाति ने गुस्से व व्यंग्य के स्वर में कहा.

अनिल ने आहतभाव से मेरी ओर देखा और आधा खाना छोड़ कर उठ गए. स्वाति की इस बात पर मैं भी अचंभित रह गई. अनिल के लिए कितने घटिया विचार यह लड़की मन में पाले बैठी है. सोचा, किसी दिन बैठा कर इसे अच्छी तरह समझाऊंगी कि इस तरह तो यह लड़की अपनी गृहस्थी ही चौपट कर डालेगी.

मैं ने जल्दी से दूसरी थाली लगाई और अनिल के कमरे की तरफ चल दी. अनिल पलंग पर सिर पर बांह रख कर लेटे थे. एक क्षण को मन में कुछ संकोच आया. फिर हिम्मत कर के मैं ने उन्हें आवाज दी, ‘‘अनिल, खाना खा लो.’’

‘‘नहीं दीदी, मुझे भूख नहीं है,’’ अनिल उठ कर बैठ गए.

‘‘स्वाति का गुस्सा खाने पर क्यों उतारते हो? दुनिया में कितने लोग हैं, जिन्हें भरपेट भोजन नसीब नहीं होता है. खाना बीच में छोड़ कर उठना अन्न का निरादर करना है,’’ मेरी बड़ेबूढ़ों जैसी बातें सुन कर अनिल खाना खाने बैठ गए.

कुछ क्षण मैं यों ही कुरसी की पीठ पकड़ कर खड़ी रही, फिर बोली, ‘‘अनिल, तुम्हें छोटा भाई समझ कर कह रही हूं. तुम्हारे और स्वाति के बीच जो भी गलतफहमी पैदा हो गई है, उसे ज्यादा दिन पाले रखना ठीक नहीं.’’

‘‘हम दोनों के बीच कोई गलतफहमी नहीं, दीदी,’’ अनिल ने गंभीर स्वर में कहा. फिर कुछ रुक कर बोले, ‘‘बात यह है दीदी, जिन लोगों के जीवन में कोई समस्या नहीं होती, उन्हें समस्याएं पैदा करने का शौक होता है. आप की बहन भी ऐसे ही लोगों की श्रेणी में आती है.’’

अनिल की इस बात का मेरे पास कोई उत्तर न था, इसलिए मैं चुपचाप वहां से हट गई.

उस दिन मैं और स्वाति डा. देशपांडे के घर से रात को 10 बजे वापस आए. जैसे ही हम ने घर में कदम रखा, सौरभ का दिल्ली से फोन आ गया और मैं उन की स्नेहाकुल वाणी के माधुर्य में नहा उठी.

सौरभ का बारबार यह कहना कि मेरे बिना वहां उन का दिल नहीं लग रहा, मेरे सारे अकेलेपन और उदासी को दूर कर गया. फोन रखने के बाद जब मैं स्वाति की ओर मुड़ी, देखा, उस का चेहरा इतना सा निकल आया था. ठीक भी था, मेरे विवाह को 5 वर्ष व्यतीत हो गए थे, किंतु हमारे संबंधों में वही पहले जैसी ताजगी और मधुरता कायम थी, जबकि स्वाति के विवाह को सिर्फ 2 वर्र्ष हुए थे और अभी से ये दोनों एकदूसरे से बेजार लगते थे.

अगले दिन स्वाति और अनिल दोनों की अस्पताल की छुट्टी थी. इसलिए हम तीनों दोपहर खाने के बाद ताश खेलने बैठ गए. खेलतेखेलते जब थक गए तो मैं ने झटपट खरीदारी के लिए बाजार जाने का कार्यक्रम बना डाला, जिसे अनिल ने हंसीखुशी स्वीकार कर लिया. थोड़ी सी नानुकुर के बाद स्वाति भी चलने को राजी हो गई.

थोड़ी देर बाद नीले रंग की कार सड़क पर दौड़ रही थी. हम लोगों ने जीभर कर खरीदारी की, कंपनी बाग में धु्रव को झूला झुलाया और आइसक्रीम खिलाई. फिर थकहार कर कौफी हाउस में जा बैठे. अब तक धु्रव स्वाति की गोद में सो गया था. अनिल ने पैटीज और कौफी मंगा ली. पैटीज खाते हुए हम इधरउधर की बातें कर रहे थे कि तभी जींस और टीशर्ट पहने एक युवती अनिल के करीब आई और बोली, ‘‘हाय अनिल.’’

अनिल ने चौंक कर उस की ओर देखा. एक क्षण को वे असमंजस की स्थिति में बने रहे, फिर खड़े होते हुए बोले, ‘‘अरे, कीर्ति तुम.’’ फिर तुरंत हम से परिचय कराया, ‘‘स्वाति, यह कीर्ति है. हम दोनों मैडिकल कालेज में साथ ही पढ़ते थे. बेचारी का दूसरे साल के बाद पढ़ने में दिल नहीं लगा तो शादी कर के अमेरिका चली गई,’’ अनिल ने हंसते हुए कहा.

‘‘अमेरिका न जाती तो क्या करती, तुम ने तो मौका ही नहीं दिया,’’ कीर्ति ने बेझिझक कहा. फिर बोली, ‘‘अच्छा, स्वाति तुम्हारी पत्नी है और इन का परिचय?’’ उस का संकेत मेरी ओर था.

‘‘ये स्वाति की बड़ी बहन हैं. दिल्ली से आजकल आई हुई हैं.’’

कीर्ति कुछ देर और बात कर के चली गई. इस दौरान स्वाति गंभीर बनी बैठी रही और कुछ भी न बोली. कीर्ति के जाने के बाद अनिल ने कहा, ‘‘स्वाति, तुम्हें कीर्ति से एक बार तो घर आने को कहना ही चाहिए था.’’

स्वाति तुरंत कड़वे लहजे में बोली, ‘‘ऐसी न जाने कितनी चाहने वालियां रोजरोज मिलेंगी. आखिर मैं किसकिस को घर आने का निमंत्रण देती फिरूंगी.’’

‘‘क्या बकती हो?’’ गुस्से और अपमान से जलती निगाहों से अनिल कुछ क्षण स्वाति को घूरते रहे, फिर मेज पर से कार की चाबियां उठाते हुए बोले, ‘‘दीदी, मैं घर जा रहा हूं. आप चलिएगा?’’ तुरंत मैं और स्वाति उठ खड़े हुए. स्वाति ने सोते हुए धु्रव को गोद में उठा रखा था. अनिल ने पैसे का भुगतान किया और हम लोग बाहर आ गए.

रास्तेभर कार में कोई कुछ न बोला. कुछ देर पहले कौफी हाउस में बैठी मैं मन ही मन खुश हो रही थी कि आज का पूरा दिन हंसीखुशी बीत रहा है. किंतु अंत में स्वाति की जरा सी नासमझी ने फिर सब को तनाव में ला कर खड़ा कर दिया था.

घर आ कर अनिल बिना किसी से बात किए अपने कमरे में चले गए. रमिया ने खाने को पूछा तो उन्होंने मना कर दिया. मैं ने धु्रव को पलंग पर सुलाया और कपड़े बदल कर छत पर जा बैठी. मन बहुत उदास हो उठा था. उम्र में मैं स्वाति से 2 वर्ष बड़ी थी. जिस वर्ष मैं इंटरमीडिएट में आई, मांपिताजी दोनों  की एक कार दुर्घटना में मृत्यु हो गई. स्वाति उस समय 15 वर्ष की थी. उस कच्ची उम्र में हम बिन मांबाप की बच्चियों को भाभी ने अपनी ममता के आंचल में छिपा लिया था. भैयाभाभी का हाथ सिर पर होेने के बावजूद मैं स्वाति की ओर से कभी भी लापरवाह नहीं रही थी. इसलिए आज उस की बिखरी गृहस्थी को देख कर मैं तड़प उठी थी, और उन दोनों को नजदीक लाने का उपाय ढूंढ़ रही थी.

छत पर किसी के कदमों की आहट सुन कर मैं ने मुड़ कर देखा. स्वाति भी मेरी बगल में आ कर बैठ गईर् थी. उसे देख कर मुझे कुछ देर पूर्व की घटना याद हो आई. प्रयत्न करने के बावजूद मैं अपने क्रोध को न दबा पाई, ‘‘क्या बात है स्वाति, क्या अपनी गृहस्थी पूरी तरह चौपट करने का इरादा है? ऐसे  व्यवहार से क्या तुम पति को वश में रख पाओगी? इतनी अवहेलना से तो भले से भला व्यक्ति भी हाथ से निकल जाएगा.’’

‘‘मैं क्या करूं, दीदी? मेरी कुछ समझ में नहीं आता,’’ स्वाति दोनों हाथों से अपना सिर पकड़ कर बैठ  गई.

मैं ने स्नेहपूर्वक उस की पीठ पर हाथ रखा और कहा, ‘‘स्वाति, मेरी बहन, पहले तुम अपनी दीदी से कभी कुछ नहीं छिपाती थीं, फिर आज मैं क्या इतनी पराई हो गई जो तुम अपने मन की व्यथा मुझ से नहीं कह सकतीं?’’

‘‘कैसे कहूं, दीदी? तुम भी दुखी हो जाओगी जब तुम्हें पता चलेगा कि अनिल के जीवन में पहले भी कोई लड़की आ चुकी है.’’

‘‘तुम्हें कैसे पता चला?’’ मैं ने धैर्यपूर्वक पूछा.

‘‘अनिल ने स्वयं मुझे बताया है. वे अपने कालेज की एक लड़की से प्रेम करते थे. दोनों ने जीवनभर साथ निभाने की कसमें खाई थीं, किंतु वह लड़की धोखेबाज निकली. उस ने किसी अमीर युवक से विवाह कर लिया. अनिल ने तो विवाह न करने का फैसला कर लिया था, परंतु घरवालों के विवश करने पर इन्हें मुझ से विवाह करना पड़ा. अब तुम ही बताओ दीदी, इतना बड़ा धोखा खाने के बाद कोई कैसे खुश रह सकता है.’’

‘‘अनिल ने तुम्हें कोई धोखा नहीं दिया,’’ मैं ने स्वाति की बात का विरोध किया, ‘‘उस ने यह सबकुछ विवाह से पूर्व सौरभ को बता दिया था. तब सौरभ ने उसे समझाया था कि उस के जीवन का वह एक दुखद अध्याय था जो अब समाप्त हो चुका था. अब उसे एक नए जीवन की शुरुआत करनी चाहिए. साथ ही, सौरभ ने अनिल को यह आश्वासन भी दिया था कि स्वाति के रूप में उसे मात्र एक पत्नी ही नहीं, बल्कि एक प्रेयसी, एक अच्छी मित्र भी मिलेगी. परंतु मुझे अफसोस है स्वाति कि अनिल को एक प्रेयसी, एक अच्छी मित्र तो क्या, एक अच्छी पत्नी भी न मिली.’’

‘‘दीदी, तुम भी मुझे ही दोषी ठहरा रही हो?’’

स्वाति ने आगे कहना चाहा, किंतु मैं ने उसे बीच में ही रोक दिया, ‘‘अनिल चाहते तो सबकुछ आसानी से छिपा सकते थे. आखिर उन्हें किसी को कुछ भी बताने की आवश्यकता ही क्या थी. यह तो उन की महानता है, जो उन्होंने हमें और तुम्हें सबकुछ बता दिया. किंतु बदले में क्या मिला, इतनी प्रताड़ना और तिरस्कार,’’ बोलतेबोलते मेरा स्वर कुछ तेज हो चला था. स्वाति सिर झुकाए खामोश बैठी थी. शायद उसे कुछकुछ अपनी गलती का एहसास हो रहा था. मैं भी उस के जीवन के इस कड़वे प्रसंग को आज ही समाप्त कर देना चाहती थी. इसलिए फिर बोली, ‘‘स्वाति, मुझे क्षमा करना. आज मैं तुम्हें तुम्हारे जीवन की एक घटना याद दिलाना चाहती हूं. भैया के एक मित्र डा. अवस्थी हमारे घर आते थे. यह जानते हुए भी कि वे विवाहित हैं, तुम उन के मोहजाल में फंस गई थीं. उस समय भाभी के ही वश की बात थी, जो वे तुम्हें उस मोहजाल से मुक्त करा पाई थीं. वरना भैया की तो रातों की नींद हराम हो गई थी.’’

‘‘उस समय मैं नामसझ थी, दीदी,’’ स्वाति अब बिलकुल रोंआसी हो

उठी थी.

‘‘मानती हूं, तुम नासमझ थीं, फिर भी एक गलत राह की ओर तुम्हारे कदम बढ़े थे. यह बात अनिल को पता चल जाए और वह तुम्हें लांछित करें तब? अनिल का प्रेम कोई भूल न थी, जबकि तुम ने अवश्य भूल की थी. स्वाति, विवाह मात्र प्रणय बंधन ही नहीं, उस के आगे भी बहुत कुछ है. आपसी विश्वास और एकदूसरे को सहारा देने का पक्का भरोसा भी है.’’

‘‘सच कहती हो, दीदी, अनिल ने जब अपनी पिछली जिंदगी के पन्ने मेरे सम्मुख पलटे, मैं विवेकशून्य हो उठी और अपनी जिंदगी के सुनहरे पलों को व्यर्थ गंवा दिया,’’ स्वाति की आंखों में पश्चात्ताप के आंसू थे.

‘‘रो मत स्वाति,’’ मैं उसे धीरज बंधाते हुए बोली, ‘‘समय रहते अपनी भूल सुधार लो. अनिल और तुम कहीं बाहर घूमने चले जाओ और नए जीवन की शुरुआत करो.’’

‘‘अनिल मान जाएंगे?’’

‘‘उन्हें मनाना मेरा काम है.’’

अगली सुबह स्वाति ने चाय के साथ अनिल को जगाया तो वे हतप्रभ हो उठे. पिछले 2 वर्षों से यह कार्य रमिया के जिम्मे था. ‘‘कहीं मैं स्वप्न तो नहीं देख रहा,’’ अनिल ने अपनी आंखें मलते हुए कहा.

‘‘मुझे क्षमा कर दो, अनिल. मैं ने तुम्हें बहुत दुख पहुंचाया,’’ स्वाति नजरें नीची किए हुए बोली.

‘‘किस बात की क्षमा?’’ अनिल ने स्वाति के हाथ से चाय का कप ले लिया और उसे प्यार से अपने पास बैठा लिया. तभी मैं ने कमरे में प्रवेश किया. मुझे आता देख स्वाति बाहर चली गई.

मैं ने कहा, ‘‘अनिल, शीघ्र चाय पी लो. आज तुम्हें बहुत से काम करने हैं.’’

‘‘कौन से काम, दीदी?’’

‘‘सब से पहले अपनी और स्वाति की लंबी छुट्टी मंजूर कराओ.’’

‘‘छुट्टी? वह किसलिए?’’ अनिल हैरानी से बोले.

‘‘तुम और स्वाति नैनीताल या कहीं भी घूमने जा रहे हो, अपने एक नए जीवन की शुरुआत करने के लिए.’’

‘‘स्वाति मान जाएगी?’’ अनिल शंकित हो कर बोले.

‘‘उस ने तो जाने की तैयारियां भी शुरू कर दी हैं.’’

अनिल ने एक क्षण मेरी ओर देखा. फिर अचानक उस ने मेरे दोनों हाथ पकड़े और श्रद्धापूर्वक उन्हें माथे से लगा लिया, और कहा, ‘‘दीदी, यह नया जीवन आप की ही देन है.’’

अनिल की बात सुन कर मैं भावुक हो उठी. मैं ने उन्हें दूसरे कमरे में लगभग धक्का देते हुए कहा, ‘‘अब तुम यह बड़ीबड़ी बातें छोड़ो. वहां तुम्हारी कोई प्रतीक्षा कर रहा है,’’ अनिल दूसरे कमरे में चले गए. मैं ने परदे की ओट से देखा, वे स्वाति के कान में कुछ कह रहे थे और स्वाति हंसते हुए उन्हें अंगूठा दिखा रही थी. मैं ने सोचा, प्यार का सूरज धुंध के कारण कुछ समय के लिए आंखों में ओझल भले ही हो जाए पर एकदम से खो नहीं सकता. धुंध के छंटते ही सूरज अपनी पूरी आब के साथ फिर चमकने लगता है. मैं मन ही मन खुश थी. मेरे कदम सौरभ को बुलाने के लिए फोन की ओर बढ़ गए.

तीज 2022: पति-पत्नी के रिश्ते में कायम रखें रोमांस  

पतिपत्नी के बीच अच्छे रिश्ते का होना एक सुखद एहसास होता है, जिसे दुनिया का हर व्यक्ति पाना चाहता है.  सुमित और पूजा के विवाह को हुए 10 साल बीत चुके हैं. लेकिन दोनों के बीच का प्यार देख कर लगता है जैसे कुछ ही अरसा हुआ है. दोनों का कहना है कि आज भी दोनों अपने रिश्ते में वही ताजगी और नयापन महसूस करते हैं जैसे शुरुआती दिनों में.

दरअसल, उन्होंने अपने रिश्ते को बो िझल नहीं बनने दिया. एकदूसरे की खुशी का खयाल रखा. सिर्फ शारीरिक नहीं, भावनात्मक रिश्ता इतना मजबूत बनाया हुआ है कि उस में ‘मैं’ की भावना नहीं है. लेकिन हर पतिपत्नी सुमित और पूजा की तरह खुशमिजाज नहीं होते. अकसर पतिपत्नी में विवाह के कुछ वर्षों बाद ही आपसी  झगड़े, तेरामेरा, रूठनामनाना शुरू हो जाता है. ऐसा नहीं है कि पतिपत्नी के रिश्ते के बीच में छिटपुट  झगड़े, रूठनामनाना हो ही न, लेकिन, किस तरह के हों और उन्हें कैसे खत्म किया जाए, यह माने रखता है.  खराब रिश्ते की सब से बड़ी निशानी है एकदूसरे के साथ रहने के बाद भी खुश न रह पाना. साथी को खुश करने का सिर्फ यही मतलब नहीं है कि अपने पार्टनर की सारी बात मान लें बल्कि अपने साथी के साथ हंसीमजाक करने से भी खुशी मिलती है.

देखा जाता है जिन कपल्स के बीच कुछ समय तक साथ रहने के बाद हंसीमजाक नहीं हो पाता है, उन को एकदूसरे के साथ बोरियत होने लगती है. प्यार व रोमांस की वजह से ही हर रिश्ता कामयाब होता है. आइए जानें कैसे बनते हैं पतिपत्नी के बीच मजबूत रिश्ते. बातें आसान हैं लेकिन मन को छू जाने वाली हैं.एकदूसरे को पूरा समय देना : पतिपत्नी के रिश्ते को गहरा करने के लिए एकदूसरे के साथ समय बिताएं. उन की बातें सुनें, उन्हें जानने की कोशिश करें. साथी के साथ समय बिताते समय ध्यान रखें कि आप जितना उन को सहज महसूस करवाएंगे उतना ही आप दोनों का रिश्ता करीब होगा और रिश्ते में मजबूती आएगी.  साथी की अहमियत सम झें : जिस तरह का बरताव आप अपने साथी से करेंगे वैसा ही वह भी करेगा. इसलिए एकदूसरे की रिस्पैक्ट करें.

खुद को सही साबित करने के चक्कर में अपने पाटर्नर की इंसल्ट न करें और न ही नीचा दिखाने की कोशिश करें. रिश्ते की शुरुआत में आप दोनों ने एकदूसरे को खुश रखने का वादा किया था, इसलिए दोनों को एकदूसरे की जरूरतों को पूरा करना होगा और अपने होने का एहसास कराना होगा. एकदूसरे को धोखा न देना : दांपत्य की नींव है विश्वास जिस पर पतिपत्नी का रिश्ता टिका होता है. इस में एक बार शक घर कर जाए तो नींव में ऐसा घुन लगता है कि वह चरमरा जाती है. एकदूसरे की बातों पर विश्वास करना और धोखा न देना ही रिश्ते को सफल बनाता है. रिश्ते में खुलापन रखें : पतिपत्नी के रिश्ते में खुलापन बहुत जरूरी है ताकि दोनों अपनी कोई भी बात कहने में  िझ झकें नहीं.

अगर आप की कोई फरमाइश है तो अपने पार्टनर को बताएं. यह न सोचें कि वह आप के कहे बगैर ही सम झ जाए, हर कोई अंतर्यामी नहीं होता.तारीफ जरूरी है : अपने साथी की खूबियों की तारीफ करें और इस तारीफ को हो सके तो घरवालों के सामने भी कहें. इस से आत्मविश्वास बढ़ता है. यही नहीं, उस की कमजोरियों को दूर करने में उन की मदद करें.अपशब्द न बोलें : कई बार किसी मामूली बात को ले कर भी  झगड़ा हो जाता है. ऐसे में अपने साथी को अपशब्द बोलने से बचें और बातचीत बंद न करें. इस से रिश्ता खराब होता है. इसलिए तर्कवितर्क करते समय आपा न खोएं.  माफी मांगना सीखें : ‘सौरी’ छोटा सा शब्द है. लेकिन यह बिगड़ी बात बना देता है. इसलिए, गलती होने पर माफी जरूर मांग लें. इस से  झगड़ा आगे नहीं बढ़ता.  सरप्राइज दें : अपने साथी की रुचियों को सम झें और उस में अपनी रुचि दिखाएं, इसलिए बीचबीच में पार्टनर को सरप्राइज जरूर दें. अगर आप के पार्टनर को लौंगड्राइव का शौक है तो कभीकभी उसे बिना बताए लौंगड्राइव का प्रोग्राम बना सकते हैं.

छोटे-छोटे गिफ्ट सरप्राइज भी दे सकते हैं जिस से आप का बजट भी न बिगड़े और पार्टनर भी सरप्राइज देख कर खुश हो जाए.  प्यार को कभी खत्म न होने दें : ‘आई लव यू’. 3 शब्दों का यह वाक्य सारे गुस्से को खत्म कर देता है. इसलिए, इसे कहने से न चूकें. शादी को तरोताजा, जोश से भरने के लिए डेटिंग जैसी चीज को खत्म न करें. डेटिंग आप को पुराने वाले दिन लौटा देती है. पुरानी यादें ताजा होती रहती हैं. सब परेशानी घर पर छोड़ कर रात को दोनों कभी डिनर पर जाएं. यह संभव न हो, तो दिन में दोनों कहीं साथ में वक्त गुजारें. जिंदगी में कुछ लमहे अपने लिए जीने बहुत जरूरी हैं.

बन्नी चाऊ होम डिलीवरी: मालिनी के साजिश में फंसी बन्नी! कस्टमर सुनाएंगे खरी-खोटी

टीवी सीरियल बन्नी चाऊ होम डिलीवरी काफी कम वक्त में दर्शकों का दिल जीत चुका है. शो के मेकर्स सीरियल में लोगों का इंट्रेस्ट बनाए रखने के लिए बड़ा ट्विस्ट लाते रहते हैं. इन दिनों शो की कहानी में ऐसा ही ट्विस्ट एंड टर्न दिखाया जा रहा है. जिससे दर्शकों का फुल एंटेरटेनमेंट हो रहा है. आइए बताते हैं, शो के नए अपडेट्स के बारे में…

शो के बिते एपिसोड में आपने देखा कि बन्नी (उलका गुप्ता) और युवान (प्रवीश मिश्रा) की शादी के बाद कहानी एक नया मोड़ ले चुकी है. तो वहीं दूसरी ओर मालिनी (पार्वती सहगल) युवान और बन्नी के काफी करीब हो रही हैं. ऐसा लगता है कि वह एक बड़े बदलाव से गुजरी है और बन्नी के लिए नया प्लान बना रही है.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by ˙Jabeeen. (@zabinnn._)

 

शो के अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि युवान को उसकी नयी मम्मी अच्छी लगने लगेगी. ये देखकर बन्नी और बाकी परिवारवालों का बड़ा झटका लगेगा. बन्नी को लगेगा कि कहीं मालिनी कोई नई चाल चल रही है. ऐसे में बन्नी युवान से पूछेगी कि अचानक तुम्हें मालिनी क्यों अच्छी लगने लगी तभी वह बन्नी को सीक्रेट बताने जाता है वहां मालिनी आ जाती है.

 

शो में आप ये भी देखेंगे कि युवान मालिनी से कहता है कि वह बन्नी से सीक्रेट नहीं छिपा सकता है, मालिनी उसे समझाती है और कहती है कि उसे बन्नी से कुछ नहीं बताना है.

 

शो के आने वाले एपिसोड में आप देखेंगे कि जन्माष्टमी के त्यौहार में युवान और बन्नी करीब आएँगे. इसी दौरान बन्नी के कस्टमर की एंट्री होगी. कस्टमर बन्नी पर भड़केंगे और खाने की शिकायत करेंगे, कहेंगे कि इसमें जूठा खाना है. बन्नी सफाई देगी और कहेगी कि मैंने तो टिफिन में अच्छा खाना दिया था फिर ये कहां से आया? तभी युवान कहेगा कि ये सब मैंने किया है ताकि नयी मम्मी खुश हो जाये. अब शो में ये देखना होगा कि बन्नी कैसे मालिनी के साजिश का पर्दाफाश करती है..

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें