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शेष शर्त- भाग 2 : अमित के मामाजी क्यों गुस्साएं?

‘‘आप को मेरा खानदान शादी के पहले देखना था, बाबूजी.’’

मामाजी भड़क उठे, ‘‘मुझ से जबान मत चलाना, वरना ठीक न होगा.’’ बात बढ़ती देख अमित पत्नी को धकियाते हुए अंदर ले गया.

मैं लज्जा से गड़ी जा रही थी. पछता रही थी कि आज रुक क्यों गई. अच्छा होता, जो शाम की बस से घर निकल जाती. यों बादल बहुत दिनों से गहरातेघुमड़ते रहे होंगे, वे तो उपयुक्त अवसर देख कर फट पड़े थे. थोड़ी देर बाद मामी ने नौकरानी की सहायता से खाना मेज पर लगाया. मामी के हाथ का बना स्वादिष्ठ भोजन भी बेस्वाद लग रहा था. सब चुपचाप अपने में ही खोए भोजन कर रहे थे. बस, मामी ही भोजन परोसते हुए और लेने का आग्रह करती रहीं. भोजन समाप्त होते ही मामाजी और अमित उठ कर बाहर वाले कमरे में चले गए. मैं ने धीरे से मामी से पूछा, ‘‘विभा…?’’

‘‘वह कमरे से आएगी थोड़े ही.’’

‘‘पर?’’

‘‘बाहर खातीपीती रहती है,’’ उन्होंने फुसफुसा कर कहा.

मैं सोच रही थी कि विभा बहू की जगह बेटी होती तो आज का दृश्य कितना अलग होता.

‘‘देखा, सब लोगों का खाना हो गया, पर वह आई नहीं,’’ मामी ने कहा.

‘‘मैं उसे बुला लाऊं?’’

‘‘जाओ, देखो.’’

मैं उस के  कमरे में गई. उस की आंखों में अब भी आंसू थे. मुझे यह जान कर आश्चर्य हुआ कि अमित उसे मेरे कारण औफिस का काम बीच में ही छुड़वा कर ले आया था और ऐसा पहली बार नहीं हुआ था. जब भी कोई मेहमान आता, उसे औफिस से बुलवा लिया जाता.

‘‘तुम ने अमित को समझाने की कोशिश नहीं की?’’

‘‘कई बार कह चुकी हूं.’’

‘‘वह क्या कहता है?’’

‘‘औफिस का काम छोड़ कर आने में तकलीफ होती है तो नौकरी छोड़ दो.’’

क्षणभर को मैं स्तब्ध ही रह गई कि जब नए जमाने का पढ़ालिखा युवक उस के काम की अहमियत नहीं समझता तो पुराने विचारों के मामामामी का क्या दोष.

‘‘चिंता न करो, सब ठीक हो जाएगा. शुरू में सभी को ससुराल में कुछ न कुछ कष्ट उठाना ही पड़ता है,’’ मैं ने उसे धैर्य बंधाते हुए कहा.

फिर घर आ कर इस घटना को मैं लगभग भूल ही गई. संयुक्त परिवार की यह एक साधारण सी घटना ही तो थी. किंतु कुछ माह बीतते न बीतते, एक दिन मामाजी का पत्र आया. उन्होंने लिखा था कि अमित का तबादला अमरावती हो गया है, परंतु विभा ने उस के साथ जाने से इनकार कर दिया है.

पत्र पढ़ कर मुझे पिछली कितनी ही बातें याद हो आईं…

 

हिम्मत- भाग 3 : सही दिशा दे पाने की सोच

जब रांची में था. लगता है जैसे यहां किसी गलत सोहबत में है. शादी को राजी नहीं और घर पर भी रहता नहीं,’’ कहती हुई रोने लगी थीं अम्मां और हम तीनों सहयोगी एकदूसरे का मुंह देखते रहे.परेशान अम्मां मेरे कमरे से चली गईं. क्या करते हम. केशव के साथ हमारा रिश्ता सरकारी था और अम्मां के साथ भावनात्मक.

फिर कुछ ऐसा हुआ कि अम्मां ने हमारे पास आना छोड़ दिया. 2-3 दिन तक तो हम ने संयम रखालेकिन चौथे दिन खाना बनाने वाली बाई से बात की, ‘‘दीदीजरा पता करेंगी आपअम्मां नजर नहीं आतीं. वह तो इस समय रोजाना आती थीं हमारे पास.’’

‘‘वही तो पसंद नहीं आया न अम्मां के सपूत को. बेचारीभूखीप्यासी पड़ी रहती हैं घर में. सुबह मैं जो खाना बना जाती हूं वह भी वैसा ही पड़ा रहता है. मेरी तो यह समझ में नहीं आता कि अगर बाबू साहब के पास मां के लिए समय नहीं था तो उन्हें लाए क्योंवहां भरापूरा परिवार है अम्मां का. वहां से उठा कर यहां ला पटका बेचारी को. शुगर की बीमारी है उन्हेंइसी तरह भूखीप्यासी पड़ी रही तो कौन जाने कब कुछ हो जाए,’’ बाई ने कहा.

‘‘लेकिनहमारे पास अम्मां का आना उन्हें बुरा क्यों लगा?’’‘‘अरे भैयाजीबुरा तो लगेगा नजब अम्मां पूछताछ करेंगी. यह बात अलग है कि बाबू साहब की रासलीला बच्चाबच्चा जानता है. उसी रीना के पास रहते हैं न साहब दिनरात. दुनिया जानती हैबसअम्मां न जान पाएं. डरते होंगे लोगों से कि हिलेगीमिलेगीपासपड़ोस से जानपहचान होगी तो कच्चाचिट्ठा न खुल जाए.’’

‘‘क्यां अम्मां सब जानती हैंवह रोती क्यों हैं?’’‘‘हांभैयाजीकल झगड़ा हुआ था मांबेटे में. बेशर्म ने इतनी लंबी जबान खोली मां के आगे कि क्या बताऊं. मैं तो काम छोड़ कर जाने वाली थीपर अम्मां को देख रुक गई. ऐसी औलाद से तो बेऔलाद रहे इनसान. साहब पढ़लिखे हैं नअरेउन से तो मेरा अनपढ़ पति अच्छा थाजो कम से कम मां के आगे जबान तो नहीं खोलता था.’’

यह सुन कर हम तीनों सहयोगी सन्न रह गए थे.‘‘भैयाजीआप के पास अगर साहब के घर का पता हो तो उन के पिता को बुला दीजिएबहुत उपकार होगा आप का.’’‘‘नहींनहींदीदीहम किसी के घर में दखल नहीं दे सकते. यह तो उन की अपनी समस्या है,’’ मेरे सहयोगी ने इनकार कर दिया.बाई आंखें पोंछ खाना बनाने में लग गई. बेमन से मैं भी दिनचर्या में व्यस्त हो गया.

शाम 7 बजे के करीब बाई आई. चुपचाप खाना बनाती रही. नाराज सी लगी वहतो पूछ ही बैठा, ‘‘अम्मां कैसी हैंदीदी?’’‘‘जिंदा हैं अभी. मर जाएंगी तो पता चल ही जाएगा.’’‘‘ऐसा क्यों कहती होदीदी?’’‘‘तो और क्या कहेंभैया. अनपढ़ हैं न हमऊपर से औरत जात. ऐसी ही भाषा आती है हमें. पढ़ेलिखे अफसर लोगों के तौरतरीके हम जानते जो नहीं.’’

‘‘क्या केशव अभी तक लौटे नहीं?’’‘‘लौटे थे न. अम्मां ने चायनाश्ता परोसा थापर भूख नहीं हैकह कर चले गए उसी चुड़ैल के घर,’’ बड़बड़ाती हुई बाई काम निबटा कर जाने लगीतब सहसा बोली, ‘‘अम्मां का रोना हम से सहा नहीं जाताभैयाजी. हम अभी उस चुड़ैल के घर से उन्हें ले आते हैं. अगर कुछ हो जाए तो देखा जाएगा.’’

‘‘सुनोदीदी… रुको.’’बाई की हिम्मत पर अवाक रह गया मैं. मुझ से तो बाई ही भलीजिस में बुरे को बुरा कहने की हिम्मत तो है. अनुशासन का मारा मैं अपनी सीमारेखा में बंधा एक लाचार औरत की पीड़ा भी नहीं बांट पा रहा था.‘‘आप साथ चलिएभैयाजीबाहर ही खड़े रहना. बात मैं ही करूंगी. अगर वह हाथ उठा दें तो ही आप सामने आना.’’

‘‘वह आप पर कैसे हाथ उठा सकता है?’’ सहसा मेरे दोनों सहयोगी भी अंदर आते हुए बोले, ‘‘हमारे परिवार की सदस्या हैं आपहाथ तोड़ देंगे उस के. हम ने अभीअभी देखा वह रीना के घर ही गया है. हम सभी चलते हैं आप के साथ,”

“चलिए तो…’’असमंजस में पड़ गया मैं. सहसा दोनों सहयोगी भी साथ हो लिए थे.‘‘कोई फसाद तो नहीं हो जाएगा न. अगर उस ने कहा कि यह उस के घर का मामला हैहम कौन होते हैंतो…’’‘‘उस के घर का मसला तब तक थाजब तक वह उस के घर में था. जब कहानी दीवारें लांघ कर बाहर चली आए तब वह सब का मसला बन जाता है.’’

झटपट हो गया सब. बाई आगे थोड़ी दूरी पर थी और पीछेपीछे हम तीनों भी चल पड़े.अंधेरा घिर आया था. रीना दुकानों के ऊपर बने चौबारे में रहती थी. 20-25 सीढ़ियां चढ़ कर उस के कमरे में आते थे. अंधेरा था सीढ़ियों में.‘‘भैयाजीआप इधर ही खड़े रहना. मैं बाहर ही बुलाऊंगी उसे,’’ निर्देश सा दे कर बाई ने सीढ़ियों का दरवाजा खटखटा दिया.

‘‘कौन है?’’ रीना का स्वर था.दरवाजे से अंदर झांकते हुए बाई ने पूछा, ‘‘केशव साहब हैं क्या यहांउन्हें बाहर भेजिएमुझे बात करनी है.’’‘‘क्या बात करनी है?’’‘‘मैं ने कहा नमुझे साहब से बात करनी है. तुम साहब को बाहर भेजोसुना नहीं तुम ने.’’

‘‘तू इस तरह बात करने वाली कौन होती है…?’’‘‘मैं जो भी हूंहट पीछे. केशव साहब…’’ कहती हुई बाई ने रीना को धक्का दिया, ‘‘हाथ मत लगाना मुझेसमझी न. तेरे पास नहीं आई मैं. 25 साल हो गए मुझे इस गांव मेंआज तक मैं ये सीढ़ियां नहीं चढ़ीसमझी न तू. थूकूं भी न ऐसी चौखट परजहां तुझ जैसी औरत रहती है,’’ कहती हुई बाई अंदर घुस गई और केशव से बोली, ‘‘केशवजीआप बाहर आइए. अरेवाह साहबधन्य हो आप. वहां मां मर रही हैं. चायनाश्ता परोस कर अपने बच्चे का इंतजार कर रही थीं. भूख नहीं थी वहां और यहांपूरीभाजी उड़ा रहे हो. शर्म बेच खाई है क्या…आप बाहर आइएसुना कि नहीं.’’

‘‘यह क्या बदतमीजी हैबाई?’’ कहता हुआ दनदनाता केशव दरवाजे के पास चला आया था.‘‘अब तो बदतमीजी ही होगीसाहब. आप को पता है कि आप की मां भूखी पड़ी रहती हैं. सुबह का खाना दोपहर को और दोपहर का रात को फेंकती हूं. शुगर की बीमारी है न उन को. अगर अंदर पड़ी मर गईं वह तो क्या कर लोगेसाहब. क्या जवाब दोगे अपने बाप कोइलाज कराने लाए थे नयही इलाज हो रहा है.’’

‘‘केशवइस बाई की इतनी हिम्मत…?’’ रीना का स्वर फूटाजिस पर बाई का अंदर से उत्तर सुनाई दिया, ‘‘हाथ मत लगाना मुझे. सुना नहीं तुम नेघाटघाट का पानी पीने वालीतेरी इतनी औकात नहींजो मुझ से मुंह लगाए. तेरी तरह इज्जत नहीं बेच खाई मैं ने45 साल उम्र है मेरी. मेरे सामने तू इस बच्चे का सर्वनाश कर रही है. मैं ने कुछ नहीं कहा. यह दूधपीता बच्चा नहीं है न इसलिएलेकिन इस की मां का रोना मैं नहीं देख सकती. अभी घर चलो साहबमेरे साथअपनी मां को संभालो.’’

‘‘केशवतुम कुछ बोलते क्यों नहीं…?’’ रीना तिलमिला गई.रीना का तिलमिलाना हम साफ समझ रहे थे. मेरी जिंदगी का यह पहला अवसर थाजब मैं ऐसी स्थिति का सामना कर रहा था.‘‘साहबसीधेसीधे मेरे साथ चलोवरना मैं घसीट कर ले जाऊंगी. इनसानियत के नाते ही उस औरत को खाना खिलाओवरना वह मर जाएगी. तुम्हारी मां है वह. अरेअगर यह लड़की इतनी ही प्यारी है तो ब्याह कर घर क्यों नहीं ले जाते इसेक्यों पढ़लिख कर बैंक में अफसर बन कर भी खुद को इतना नीचे गिरा रहे होअपनी इज्जत संभालोसाहबअपना सर्वनाश मत करो. घर चलोसाहब.’’

तभी हमें धक्के जैसा आभास हुआ. क्या केशव ने बाई को धक्का दियासोचते हम तीनों झट से सीढ़ियां चढ़ गएमगर दृश्य कुछ और ही था. शायद रीना बाई पर झपटी थीजिस पर बाई ने ही उसे धक्का दे दिया था.‘‘हाथ मत लगानामैं ने कहा था न कलमुंही. अरीतू नौकरी छोड़ कर कोठे पर क्यों नहीं जा बैठती. 6 साल से तुझे देख रही हूं. हर 2 साल बाद एक नया लड़का फंसा लेती है. औरत है या…’’ भद्दी सी गाली दी थी उसे बाई ने.

केशव और रीना हम तीनों को सामने देख सन्न रह गए थे. शायद उन्हें पता थाउन की कथा कोई नहीं जानता. जो भाषा बार्ई ने बोलीवह हम तो नहीं बोल सकते थेमगर यह भी सच था कि वे दोनों ऐसी ही भाषा सुनने लायक थे.

रीना नीचे फर्श पर पड़ी रही और केशव गरदन झुकाए सीढ़ियां उतर गया. बाई हंस पड़ी. फिर बोली, ‘‘औरत बनी है तो औरत होने का हक भी अदा कररीना. अरी क्या मजबूरी है तुझे. अच्छीखासी नौकरी हैफिर क्यों वेश्या की तरह इज्जत बेचती हैयह कैसा शौक है भईहमारी तो समझ से भी परे है.’’

‘‘बस कीजिएदीदी. आइएचलिए.’’शर्म आ रही थी मुझेकैसे बैंक जा कर रीना और केशव से आंखें मिला पाऊंगा. अनैतिक जीवन ये दोनों जी रहे थेशरमा मैं रहा था.‘‘दीदीआइए,’’ मैं ने पुन: पुकारा.‘‘देखा न तू नेकैसे छोड़ गया तुझे केशवजरा सोचवह तेरा आदमी या सगा होता तो यों मेरे हाथ उठाते भी चुप रहता. क्या लगता है वह तेरा. कुछ भी तो नहीं. छोड़ दे उसे और अपना घर बसा. पढ़लिख कर भी क्यों गंदगी में पड़ी है तू.’’‘‘दीदीअब आप चलिए न,’’

इस बार मैं ने बाई का हाथ ही पकड़ लिया. स्वर भीग गया था मेरा. हम तीनों बाई को उस के घर तक छोड़ आए. पहली बार मैं ने बाई का घर देखा. साफसुथरा घर था उस का.‘‘आ जाओबेटाअंदर आ जाओ,’’ बार्ई ने बहुत ही आदर से कहा.तब वह मां जैसी ही लगी मुझे. वह अकेली थीपति नहीं था और संतान हुई नहीं. बसअपना पेट पालने को वह 3-4 घरों में खाना बनाने का काम करती थी.

बाई ने हमें अपने हाथ के लड्डू खिला कर विदा किया. काफी शांत हो चुकी थी तब तक वह.‘‘अभी रुक जानाबेटासाहब के गांव पत्र मत लिखना. क्या पतासुधर ही जाएं. अगर आंखों में रत्तीभर भी शर्म होती तो इतनी बेइज्जती काफी है. भैयाइतनी कड़वी जबान मैं ने आज तक नहीं बोली,’’ आतेआते पत्र लिखने से रोक दिया मुझे बाई ने. समय देना चाहती थी वह केशव को और हम भी चाहते थे सब सुलझ जाए और बात उस के घर तक न पहुंचे.

घर पहुंच कर हम तीनों की नजर केशव के आंगन में पड़ी. बत्ती जल रही थी और अंदर सब शांत था.‘‘चलोदेख कर आएंकेशव घर आया भी है या कहीं और चला गया. जहां इतनी बेशरमी सह लीवहां थोड़ी और सही. कहीं ऐसा न होअम्मां अभी भी अकेली हों,’’ मेरा सहयोगी बोला और उसी क्षण हम दबे पांव सामने घर में चल गए.सामने ही रसोई में केशव दिख गया. शायद खाना गरम कर रहा थाउलटे पैरों लौट आए हम. संतोष हुआ यह जान कर कि कहानी का यह मोड़ सुखद रहा.

भारी मन से खाना खाया हम ने. मेरे दोनों सहयोगी तो सो गएलेकिन मैं नहीं सो पाया. सोचने लगासंसार कितना विचित्र है न. कैसेकैसे जीव हैं हमारे आसपास. मनुष्य बन कर भी कई जानवर से जीते हैं. पढ़लिख कर भी जिन में संस्कार नहीं पनपे और बाई जैसे अनपढ़ इनसान भी हैंजो सही को सही दिशा में ले जाने से डरते नहीं.

केशव अगर सही मानता था स्वयं को तो क्यों गरदन झुकाए चुपचाप घर चला आया. कुछ अनैतिक स्वीकार किया होगा तभी तो शर्म का मारा चुप रहा. जब इतनी समझ है मनुष्य में तो क्यों ऐसा जीवन जीता है वहजिस में उसे अपने मानसम्मान की बलि देनी पड़े. और बलि भी ऐसी कि घर में काम करने वाली एक बाई ही आईना दिखा देसोचतेसोचते आंखें भारी हो गई मेरी.

सुबह जब बैंक जाऊंगा तब केशव और रीना का सामना होगा. शायद वह अपने आचरण पर लज्जित होंऐसी इच्छा जागी मन में और इसी आस में मेरी आंखें मुंद गईं.सुबहसुबह केशव हमारे पास आयाबैंक में छुट्टी की अर्जी देने. अम्मां को जालंधर ले जा रहा था डाक्टर को दिखाने. चुपचाप चला गया वह. मैं सोचने लगाकल अगर बाई हिम्मत न करती तो शायद केशव कभी न लौटता. क्या अपने जीवन में मैं भी जुटा पाऊंगा सही को सही कहने की हिम्मत. सही को सही दिशा दे पाने की हिम्मत.      

स्पा सेंटर में हुआ देहव्यापार का खुलासा

हर दूसरेतीसरे रोज पुलिस को मिली स्पा सेंटर पर रेड मारने की खबर हर शहर के अखबार में छपती रहती है और बताया जाता है कि स्पा सेंटर की आड़ में देहव्यापार चल रहा था. समाचार फिर शान से बनता है कि पुलिस ने फर्जी ग्राहक भेज कर भंडाफोड़ किया और मालिक या मालकिन देहव्यापार में लगी औरतों को पकडक़र जेल में बंद कर दिया.

इस के बाद क्या होता है. यह नहीं बताया जाता है. ये लड़कियां और मालिक मैनेजर कितने दिन बंद रहे और बाद में 2-3 साल बाद जज ने क्या फैसला सुनायायह भी पता नहीं चलता.

सब से बड़ी बात यह है कि यह कभी नहीं साबित होता कि देह व्यापार में लगी लड़कियों को क्या जबरदस्ती इस काम पर लगाया जा रहा थायह भी नहीं बताया जाता कि इस स्पा को बंद करने में समाज कितना सुधर गया. यह ढींग भी पुलिस नहीं मारती कि क्या लड़कियों को अपने घरों तक सुधार कर भेज दिया गया.

यह चटखारे वाली खबर असल में पुलिस के धंधे की पोल खुलती है पर मजेदार बात है कि लोग समझते हैं कि शायद यह अनैतिक धंधा बंद करने पर पुलिस ने तीर मारा है. देह व्यापार में आखिर खराबी क्या है. हर औरत का हक है वह जिस के साथ मर्जी हो उस के साथ सोएप्रेम में होने पर सोएशादी हो गई है इसलिए सोए या पैसे मिलते है इसलिए सोएउस के अपने बदन की जरूरत है इसलिए भी वह सोएं तो क्या हर्ज है.

अगर साथ सोने वाला खुश है तो पैसे भी दे सकता हैघर भी दे सकता है. साथ बच्चे भी पैदा कर सकता है. इसे गंदा व्यापार समझने का मतलब है आदमीऔरत के संबंध को गंदा समझता जो एकदम कुदरत के खिलाफ है.

हां जब इस काम का फायदा आदमी उठाने लगेंवे जबरन लड़कियां उठाकर लाएं और उन से धंधा कराएं और आमदनी जेब में रख लें तो गलत बात है पर जो समाचार छपते हैं उन में यह नहीं होता कि लड़कियां छुड़ाई गईउन्हें गुलामी से आजादी दिलाई गईउन्हें अपना पैसा दिलाया गया. समाजों ने कानून ऐसे बनाए हैं कि धंधा चलता रहे. पुलिस और दलाल माल बनाते रहें और औरतों को लूटा जाता रहे.

पुलिस अगर दखल न दे तो लड़कियां अपना खुद का गु्रप बना कर वेश्यावृति कर सकती हैं और  सारा पैसा बांट सकती हैं. पर वेश्याओं पर कानून और पुलिस की जंजीरें बांध कर पुलिस व मालिकों को यह दी गई कि कमाओ और लड़कियों को लूटो.

हाल इतना बुरा है कि शायद ही कोई समाचार छपना हो जिस में लडक़ी पुलिस में शिकायत दर्ज कराए कि उस का हिस्सा मालिकदलालपुलिस वाले खा गए. लड़कियों को बहला कर लाया गया और इस धंधे में जबरन ठूंसा गया इस के केस भी होते हों तो समाचार नहीं बनते. इस तरह के मामले में सुबूत जुटाने मुश्किल होते हैं इसलिए पुलिस हाथ नहीं लगाती. फिर पुलिस खुद लड़कियों को भगाने और धंधे में साथी हो तो वह लड़कियों की लूट की क्यों सुने.

देह व्यापार चल इसलिए रहा है कि इस में कानून अटका हुआ है. अगर कानून और समाज का अड़ंगा न हो तो देह व्यापार खतम हो जाएगालड़कियां अपनेआप खुद धंधा करेंगी और खुद कमाई करेंगी जैसे कोई खोमचे वाला करता है. आदमी और लडक़ी का सौदा अकेले होगाबिना कमीशन के. देह की मालकिन औरत हैवह किसे क्यों दे यह उस पर छोड़ेंइस देनलेन के जुर्म बना कर पुलिसकोठेवालोंदलालोंलड़कियों को उठाने का धंधा न बनाएं.     

व्यंग्य: मैं और मच्छर

कल मुझे कान के डाक्टर के पास जाने की सख्त आवश्यकता महसूस हुई. हुआ यों था कि कल शाम को
गलती से मेरे कमरे की खिड़कियां खुली रह गईं. इस कारण पूरे कमरे में मच्छरों का साम्राज्य हो गया. कमरे में जब मैं ‘मच्छर की आत्मकथा’ कविता पढ़ रहा था, तभी मच्छरों के दल ने मेरे शरीर के खुले हिस्सों पर हमला बोल दिया. कुछ पैर में काट रहे थे तो कुछ हाथ में काटने को तत्पर थे, पर कुछ ऐसे भी थे जो मेरे कान पर भी बैठ कर हमला बोल रहे थे, लेकिन मुझे भनक तक नहीं लग रही थी.

मच्छरों के विषय में यह सर्वविदित है कि वह हमला करने से पूर्व अपने होने या आने की सूचना देते हैं जैसे युद्ध शुरू होने से पूर्व शंख बजाया जाता है. लेकिन कल मुझे ताज्जुब हुआ जब मच्छरों की आवाज मुझे सुनाई ही नहीं दी जबकि मुझे कान में चुभन महसूस हो रही थी.

मैं ने कविता पढ़ना छोड़ कर मच्छरों की आवाज पर ध्यान केंद्रित किया, पर तब भी मुझे मच्छरों की भिनभिनाहट सुनाई नहीं पड़ी. अब मुझे न तो मच्छरों के काटने की चिंता थी और न ही मुझे मच्छरों को भगाने की. अब मुझे चिंता खाए जा रही थी कि क्या ध्वनि प्रदूषण के असर से मच्छरों की भिनभिनाहट सुनाई नहीं पड़ रही है या मेरे कानों में कोई खराबी आ गई है या फिर आजकल मच्छरों ने भिनभिनाना ही बंद कर दिया है?

कुछ समय पूर्व तक मच्छरों की भिनभिनाहट से मैं सचेत हो जाया करता था और गले के ऊपर के हिस्से को मच्छरों के प्रकोप से बचाने का पूर्ण प्रयास करता था लेकिन कल जब कान के कई हिस्सों पर सूजन
हो गई, तब मुझे लगा इस में मच्छरों का दोष नहीं है. मुझे सचेत करने में मेरे कान सक्षम नहीं हो पा रहे, यह जान कर मैं ने डाक्टर से संपर्क करना ज्यादा मुनासिब समझा.

मैं ने डाक्टर साहब से संपर्क साधा. मेरी बारी आने पर डाक्टर साहब ने बड़ी बारीकी से मेरे बांईं कान का
मुआयना किया और कान के पास फुसफुसा कर पूछा कि भई, क्या दिक्कत है? तो मैं ने चिंतित स्वर में कहा,“डाक्टर साहब, सुनने में कुछ परेशानी हो रही है.”

उन्होंने दाएं कान का भी अवलोकन किया और पिछली आवाज से कम आवाज में फिर फुसफुसा कर ही पूछा कि यह तकलीफ कितने दिनों से है? मैं ने गंभीरता से जवाब दिया, “कल से ही…” और इस के बाद मैं ने सारा वाकेआ संक्षेप में बताया कि मुझे कल मच्छरों की भिनभिनाहट सुनाई ही नहीं पड़ी, तो मैं फौरन सलाह हेतु आप के पास आ गया.

मेरी बातें सुन कर डाक्टर साहब ने मुझे प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा और फिर परचे पर मेरा नाम और पता लिखने के बाद मुझ से पूछा कि आप करते क्या हैं? मैं ने बताया कि एक सरकारी नौकर हूं और फिलहाल इसी शहर में काम करता हूं, तो उन्होंने कहा, “हो सकता है कि आप के कार्यालय का वातावरण अधिक शोरपूर्ण हो, इस कारण आप के सुनने की क्षमता कुछ कम हो गई हो, अन्यथा कान में कोई गङबङी नहीं लग रही. पर हां, मेरी सलाह होगी कि इन छोटीछोटी बातों पर ध्यान न दें. आप तो सरकारी आदमी हैं. इसलिए भलीभांति आप इस के अभ्यस्त होंगे कि छोटीछोटी बातों पर ध्यान नहीं देना चाहिए. सरकारों का फोकस तो हमेशा बड़े कामों पर होता है. इसलिए मेरा सुझाव है कि मच्छरों के विषय में ज्यादा न सोचें. आप बेकार ही परेशान हो रहे हैं. इस विषय में ज्यादा न सोचें नहीं तो आप मानसिक विकृति के भी शिकार हो सकते हैं.”

डाक्टर साहब का यह सुझाव सुन कर मेरा कान तेजी से बजने लगा और मैं आननफानन में डाक्टर साहब से विदा ले कर घर की तरफ चल दिया।

बचपन से ही सुना था कि मच्छर कानों के पास गाना गाते हैं. मच्छरों ने यह अवसर मुझे अब तक प्रदान भी किया था. मच्छर दूर भी होते थे, तब भी यह लगता था कि कान के पास ही गुनगुना रहे हैं. दूरी का सही आंकलन न होने तथा उस की चुभन होने से अपने कानों को ही जोरदार झन्नाटे से मारने का दर्द हम ने कई बार झेला है. वैसे जानकार कहते हैं कि मच्छरों के पंख काफी छोटे होते हैं, इसलिए उड़ने के लिए उन्हें काफी तेजी से फड़फड़ाना पड़ता है.

इसी कारण उन से भिनभिनाने की आवाज आती है.अन्य कुछ विद्वानों का कहना है कि भिनभिनाना मच्छरों की फितरत है, जिस के जरीए वे लोगों से काफी अच्छे से घुलमिल जाते हैं. इस घुलमिल जाने की प्रवृत्ति पर ही तो किसी शायर ने कहा है,”तुम यह न सोचो कि तुम्हारी यादों ने जगाए रखा है, कभीकभी यह काम मच्छर भी कर लिया करते हैं…”

इस के अलावा कुछ वैज्ञानिक यह भी बताते हैं कि वह सिर्फ उड़ने के लिए नहीं, बल्कि प्रजनन क्रिया के लिए भी मादा मच्छर को लुभाने के क्रम में ऐसी आवाजें निकालते हैं. आश्चर्य यह है कि नर मच्छर मादा मच्छर को तब परेशान नहीं करते जब वह सो रही होती है. मच्छर प्रजनन क्रिया उड़ते वक्त ही करते हैं.

भिनभिनाना क्रिया भी इसी का एक हिस्सा है. चूंकि डाक्टर साहब ने मुझे सोचने से मना किया था इसलिए मैं ने कान के दोषों के विषय में सोचना बंद कर दिया. लेकिन अब यह मुद्दा बरकरार था कि जब मेरे कान ठीक हैं, तो मच्छरों का भिनभिनाना क्यों नहीं सुनाई पड़ रहा?

इस कारण मैं ने कोरोनाकाल में जारी कुछ शोधपत्रों का अध्ययन करना शुरू किया. इन अध्ययनों से पता चला कि कोरोनाकाल में लोग भय के कारण या तो स्वविवेक से अपना इलाज कर रहे थे या पुरानी दवाओं को ही चालू रखे हुए थे. चूंकि कोरोनाकाल में लोगों का ध्यान केवल जान बचाने पर था, इस कारण डेंगू, मलेरिया और चिकुनगुनिया जैसी बीमारियों के कारण और प्रकोप पर किसी का ध्यान नहीं जाता था.

कोरोनाकाल में मास्क के लगातार लगाए रखने के कारण कान के संवेदनहीन होने की आशंका भी कुछ शोधपत्रों में जताई गई थी. वैसे कुछ शोधपत्र यह भी बता रहे थे कि कोरोनाकाल में मच्छरों को अपना शिकार ढूंढ़ने में परेशानी होने लगी, इसलिए उन्होंने बिना भिनभिनाए अपना काम जारी रखने का हुनर विकसितकर लिया. पर इन शोधपत्रों को पढ़ कर मुझे न तो सहज विश्वास हुआ और न ही संतोष हुआ.

मैं भय से अपने मित्रों को भी इस विषय में सलाह के लिए आमंत्रित नहीं कर सकता था मगर स्वयं
के स्तर पर गहन चिंतन जारी रहा. कुछ दिनों की विचार यात्रा के बाद मुझे लगा कि मच्छरों ने शायद कोई महीन पार्टी जौइन कर ली है, जिस कारण उन्होंने भिनभिनाना बंद कर दिया है.

माननीय नेता लोग भी जब जनता को हानि पहुंचाने वाले कोई काम करते हैं तो इस की भनक तक नहीं लगने देते. मच्छरों ने भी पार्टी हित में संभवतया अपने गुणों को छिपाने की कोशिश की है. मुझे लगा कि मेरे कानों में मच्छरों की भिनभिनाहट वैसे ही सुनाई नहीं दे रही, जैसे नेताओं को जनता की आवाज और मांग सुनाई नहीं देती.

यह सब को पता होता है कि मच्छर डेंगू,मलेरिया, चिकुनगुनिया फैला सकते हैं मगर सच कहें तो मच्छर को भगाने और चुनचुन कर मारने का अपना ही मजा है. हम तो बरसों से इस का मजा ले रहे थे. पर मच्छर थे कि मुझे अब भनक लगने देना नहीं चाह रहे थे. वैसे हर व्यक्ति मच्छरों की आवाज के लिए अलग तरह से संवेदी होता है. इसलिए मच्छरों की भिनभिनाहट स्पर्श की सूचना देने वाली तंत्रिकाओं को भी उत्तेजित कर देती है. इस कारण कुछ लोग आवाज सुनने के साथ दिल मिलाते हुए प्रतिक्रिया करते हैं पर यह मच्छरों का ही कमाल है कि वह लोगों के दिमाग को अतिसक्रिय कर देता है और तुरंत प्रतिक्रिया के लिए विवश कर देता है.

अपने विचार मंथन से संतुष्ट नहीं होने पर आखिरकार मैं ने अपने एक परम मित्र को अपनी समस्या बताई, तो उस ने मजाक में कहा कि हो सकता है कि तुझे कमरे में अकेला जान कर केवल मादा मच्छर ही घुस जाती होंगी, जो भिनभिनाती नहीं. मुझे लगता है कि मादा मच्छरें तुम पर आसक्त हो गई हों, जो बिना किसी फड़फड़ाहट के तुम्हें बुखार से तमतमाने के लिए खून की तलाश कर रही होंगी.

मित्र की व्याख्या ने मुझे अपने पौरूष पर गर्व महसूस कराया, लेकिन संयोग देखिए, मुझे तभी एक मच्छर की भिनभिनाहट सुनाई दी. संभवतया वह नर मच्छर होगा. मुझे उस की उपस्थिति से जलन का अनुभव हुआ. मैं कुछ देर पहले मित्र की बात से जो खुशी महसूस कर रहा था, अचानक उस मच्छर की उपस्थिति से जलन का अनुभव करने लगा. मैं ने तेजी से उस मच्छर का दोनों हाथों से काम तमाम कर दिया. पर उस के मरते ही मुझे एहसास हुआ कि यह क्या, मुझे तो आवाज सुनाई पड़ रही थी. इस बात की मुझे खुशी हुई. पर मैं अब पूर्ण तसल्ली चाहता था.

इसलिए मच्छरों की आवाज पर ध्यान केंद्रित किया. कुछ समय बाद ही एक मच्छर मेरे कान के पास आया, जो कह रहा था,“अपनी व्यथा लिख रहे हो या हम पर व्यंग्य लिख रहे हो? साहस नहीं है कि व्यवस्था पर लिखो. चारों तरफ गंदगी पड़ी है. नगर निगम सोई पड़ी है. न जमा हुआ पानी निकलता है, न अस्पताल का कचरा उठता है और न फौगिंग होती है तो इस में हम क्या करें? तुम्हारी कुव्यवस्था से हमारा जन्म होता है. कभी उस पर भी लिखो, जिस ने मुझे पैदा किया. वही सब का कारण है, बदनाम तो मैं अकारण हो गया. तुम भी अगर मुझे बदनाम करोगे, तो सोचो किस मुंह बकरी का दूध और पपीते के पत्ते का रस पी पाओगे. अच्छा है कि मुझ से दोस्ती कर लो. सिस्टम के साजिश में फंस कर मुझे बदनाम न करो,” मच्छर की बातें सुन कर मेरा भय से स्वाभिमान जग गया और मैं ने मच्छर पर लिखना बंद कर दिया.

ऐनर्जैटिक अफसर : वह सरकारी बजट के साथ क्या कर रहा था

जिस तरह पुलिस को किसमकिसम के चोरों से वास्ता पड़ता है, उसी तरह मुझे भी सरकारी नौकरी में किसमकिसम के अफसरों से वास्ता पड़ा है.पर उन सब में से आज भी मुझे कोई याद है तो बस, एक वह.
अन्य का तो औफिस में होना या न होना एकजैसा था. बहुत कम ऐसे अफसर होते हैं जो सचमुच औफिसों में काम करने आते हैं और जातेजाते मेरे जैसों के जेहन में अपनी अमिट छाप छोड़ जाते हैं.

वाह, क्या साहब थे वे. उन के चेहरे पर साहबी का क्या नूर था। आज भी जब उन को किया याद करता हूं तो कलेजा मुंह को नहीं, मुंह से बाहर आ जाता है। तब उसे मुंह के रास्ते फिर उस की जगह बैठाना पड़ता है। आज भी उन के हौसले को दाद दिए नहीं रह पाता। कितने निडर, कितने साहसी। मानो उन के ऊपर तक संबंध न हों, ऊपर तक वे ही हों। जो कर दिया, सो कर दिया। कोई उन से पूछने वाला नहीं, कोई उन से जूझने वाला नहीं। कई बार तो उन की निडर हरकतें देख कर ऐसा लगता था, जैसे वे हर जन्म में साहब ही बने हों। जिस के पास जनमजनम का अफसरी अनुभव हो वही ऐसे बोल्ड काम कर सकता है मित्रो।

उन के चहरे से ही नहीं, उन के रंगढंग से ही नहीं, उन के तो अंगअंग से ही साहबी टपकती थी। उन के आगे शेष तो अफसरी के नाम पर कलंक थे।जब वे हमारे औफिस में तबादला हो कर आए तो उन के आने से पहले ही यह खबर आ गई कि वे बहुत ऐनर्जैटिक हैं, बहुत शक्तिशाली हैं, बहुत फुरतीले हैं, बहुत दिलेर हैं, बहुत भूखे शेर हैं, बहुत साहसी हैं, बहुत दुस्साहसिक हैं, बहुत जोरदार हैं, गजब के चिड़ीमार हैं…और भी पता नहीं क्याक्या। तब ऐसे बहुआयामी अफसर को देखने के लिए मन अधीर हो उठा था।

अब आएगा मजा ऐसे अफसर के साथ काम करने का, नहीं तो आजतक तक तो बस जितने भी अफसरों से पाला पड़ा उन्होंने सरकारी बजट पर फूंकफूंक कर ही कदम रखवाए। सरकारी बजट मनमाफिक किसी ने फूंकने न दिया। मित्रो, वह सरकारी पैसा ही क्या जो मनमाफिक फूंका न जाए।

उन के जौइन करने के बाद उन की एक झलक पाते ही सचमुच उन में उस से भी अधिक गुण पाए जो उन के आने से पहले औफिस में आ विराजे थे। वे तो अपने गुणों से भी 10 कदम आगे थे।

उन्होंने जौइन करते ही मेरी काबिलियत को सूंघ लिया था जैसे कुत्ता किसी बम को सूंघ लेता है। तब वे शतप्रतिशत आश्वस्त हो गए कि पूरे औफिस में उन के काम का कोई बंदा है तो केवल मैं ही। शेष तो यहां घास काटने वाले हैं, साहब की थाली का बचा चाटने वाले हैं।

जौइन करते ही उन्होंने मुझे अपने कैबिन में सादर बुलाया। मुझे सिर से पांव तक निहारने के बाद बोले,”वाह, मजा आ गया। तुम मुझे पा कर धन्य हुए और मैं तुम्हें पा कर धन्य हुआ।”

“यह तो हम दोनों का परम सौभाग्य है, सर। सोने की पहचान जौहरी ही तो कर सकता है।

“गुड, खूब जमेगा रंग जब मिल कर काम करेंगे मैं, तुम और तीसरा कोई नहीं। हम औफिस को बहुत आगे तक ले जाएंगे।”

“बस सर, आप की कृपा रहनी चाहिए मुझ पर। फिर देखिए, औफिस को कहां ले जाता हूं। आप हुकूम कीजिए सर।”

“तो पहले मेरी कुरसीटेबल नई लाइए। और हां, ये परदे भी सारे बदल दीजिए। मुझे इस रंग के परदों से नफरत ही नहीं, सख्त नफरत है। औफिस के लिए नई क्रौकरी लाइए। मेरे औफिस के सारे सोफे बदलवाइए। औफिस में नया पेंट करवाइए, शेड मैं बता दूंगा। उस शेड के दीवारों पर होने से औफिस में पौजिटिव ऐनर्जी का संचार होता है। और हां, सब से पहले मेरे आवास का सारा सामान बदलवाइए। वहां मेरे लिए कितने नौकर रखे हैं?”

“सर 2 हैं।”

“औफिस में कितने चपरासी और चौकीदार हैं?”

“मुझे छोड़ 10 सर।”

“तो उन में से 5 मेरे आवास पर भेज दीजिए अभी। वहां टौयलेट कितने हैं?”

“2 सर।”

“वहां 2 की जगह 4 बनवाइए ताकि टौयलेट आने पर हमें परेशान न होना पड़े, क्योंकि साहब परेशान तो…”

“पर सर…”

“क्या औफिस में बजट की तंगी है? अपनी सरकार है। डौंट वरी, किसकिस प्रोजैक्ट में कितना बचा है ठिकाने लगाने को?”

“सर, औफिस में कुल 5 प्रोजैक्ट हैं। 4 प्रोजैक्ट का पैसा तो लगभग खत्म हो चुका है, पर एक प्रोजैक्ट का एक भी पैसा उन्होंने छुआ भी नहीं था।”

“क्यों?”

“क्योंकि इस प्रोजैक्ट में खाने का स्कोप नहीं था।”

“स्कोप तो कहीं भी नहीं होते दोस्त, निकालने पड़ते हैं। उस में कितना पैसा है?”

“सर, यही कोई 20 लाख।”

“गुड, तो ऐसा करो, उस प्रोजैक्ट का सारा पैसा मेरे आवास पर लगा दो। और हां, काम उसी को देना जो कमीशन सब से अधिक दे। जिस मिशन में कमीशन न हो, उसे मैं सपने में भी हाथ नहीं लगाता।”

“पर सर…”

“जवाब हम देंगे। तुम फिक्र न करो। हम हैं न। और हां, खुद की भी कोई चाहीअनचाही जरूरत हो तो उसे भी बेझिझक… खुश रहा करो यार…और हमारे पास गाड़ी कौन सी है?”

“जिप्सी सर।”

“कब का मौडल है?”

“2012 का सर।”

“ओह, नो… इतनी पुरानी गाङी… देखो, कुछ और करने से पहले लग्जरी मौडल का केस बना कर मंत्रीजी को भेजो। मेरे बच्चे स्कूल छोटी गाड़ी में बिलकुल नहीं जाते। सरकारी माल अपना समझा करो यार… यही ईमानदारी है। सरकारी अफसर को खुल कर जीना चाहिए। खुल कर जिओ और खुल कर जीने दो। यही है सरकारी नौकरी का रास्ता। अपनी तो लाइफ का मोटो यही है दोस्त, बाकी तुम जानो। हमारी तो जनता को समर्पित मामूली सी सेवा बस इतनी भर है।”

“जी सर, आप सचमुच ग्रेट हो सर,” और मैं ने उन के चरण छू लिए।

सेवानिवृत्त होने के बाद भी इस ऐनर्जैटिक अफसर की स्मृति को शतशत नमन है।

कसक- भाग 1: क्यों अकेले ही खुश थी इंदु

संगीता अग्रवाल

चेहरे पर मुसकान, मीठी वाणी, मेहनती और बेहद खूबसूरत… सभी गुणों से परिपूर्ण इंदू एक नेक इंसान थी. पर समाज के हिसाब से उस का समय बहुत ही खराब था क्योंकि उम्र के 40 सावन पार कर लेने के बाद भी आज तक उस की शादी नहीं हुई थी. इंदू देश की राजधानी दिल्ली में एक न्यूज चैनल में बड़ी जिम्मेदारी की पोस्ट पर थी. न्यूज चैनल में संपादक के पद तक पहुंचने तक के सफर के विषय में इंदू सोचने लगी कि कितना सुंदर था उस का बचपन जहां वह शौकिया दर्पण के सामने न्यूज एंकर की नक्ल किया करती थी. एक चुलबुली लड़की जो 3 भाइयों में अकेली बहन थी और पूरे परिवार की लाड़ली. टैलीविजन पर दिखने की उस की चाहत अब उसे पत्रकारिता की ओर ले जा रही थी. स्कूल से अब वह कालेज में आ गई थी और पहले से ज्यादा खूबसूरत दिखने लगी थी. अपने रेशमी बाल, गुलाबी गाल और आकर्षक आवाज के कारण कालेज में इंदू काफी लोकप्रिय थी. कालेज के कई अच्छे लड़के इंदू को मन ही मन बहुत पंसद करते थे. उन में से एक था अमन, जो इंदू को बेहद पंसद करता था. लेकिन उस ने कभी भी अपने प्यार का इजहार इंदू से नहीं किया.

अमन भी इंदू की ही तरह प्रतिभाशाली था. उस की कविताएं और मधुर आवाज कालेज की लड़कियों में बहुत लोकप्रिय थी, पर उस का मन था जो केवल किसी न किसी तरह इंदू के इर्दगिर्द ही अपनी खुशी तलाशता रहता था. इंदू की नजर में अमन एक अच्छा मित्र, एक अच्छा कवि और एक नेक इंसान था. इस से ज्यादा इंदू ने कभी उस के बारे में कुछ नहीं सोचा. कालेज के हर कार्यक्रम में जहां लड़कियों में इंदू को हमेशा प्रथम पुरस्कार मिलता, वहीं अमन भी अपनी कविताओं से सब को दीवाना बना देता था. कालेज की पढ़ाई अब पूरी होने वाली थी, कालेज का अंतिम साल चल रहा था. अमन सोचने लगा कि कैसे वह अपने मन की बात इंदू तक पहुंचाए?

कालेज का विदाई समारोह हो रहा था. सभी छात्र और अध्यापक आपस में मिल रहे थे. इंदू की सहेली प्रिया ने कई बार उसे अमन का नाम ले कर अमन का इंदू के प्रति प्यार समझाने की कोशिश की थी. पर उस का मन कितना नासमझ था जो उस समय अमन के प्यार और अपनी सहेली के इशारे को समझ नहीं सका.

आईफोन में फंसा इश्क

सतपुड़ा की पहाडि़यों से घिरे मध्य प्रदेश के अमला को मध्य प्रदेश का शिमला भी कहा जाता है. 5 जुलाई,
2022 की सुबह अमला पुलिस स्टेशन के टीआई संतोष पंद्रे पुराने केस की फाइल को देख रहे थे, तभी केबिन के बाहर से आई आवाज ने उन का ध्यान फाइल से हटा दिया.

‘‘साब, क्या मैं अंदर आ सकती हूं?’’ दरवाजे पर एक अधेड़ उम्र की महिला अपने पति के साथ खड़ी थी.
उन्हें देखते ही टीआई ने कहा, ‘‘आइए, अंदर आ जाइए, कहिए कैसे आना हुआ?’’ ‘‘साब, मेरा नाम लता काचेवार है. मेरे पति इस दुनिया में नहीं हैं. मेरा बेटा मानसिक रूप से बीमार है. हम लोग अमला नगर परिषद के वार्ड नंबर 10 में रहते हैं. मेरी 19 साल की बेटी मुसकान 3 जुलाई की सुबह बाजार से जरूरी सामान लेने के लिए घर से निकली थी, मगर अभी तक घर नहीं लौटी है,’’ यह कहते हुए लता फफक कर रो पड़ी.

टीआई ने उसे ढांढस बंधाते हुए कहा, ‘‘आप चिंता मत कीजिए, पुलिस आप की हरसंभव मदद करेगी. मुसकान का हुलिया बताइए और अगर उस की कोई फोटो हो तो मुझे दे दीजिए. पुलिस उसे जल्द ही खोज निकालेगी.’’‘‘साब, मुसकान के हाथ पर 3 स्टार वाला एक टैटू बना हुआ है और उस के बाल सुनहरे हैं और ये रही उस की फोटो,’’ लता ने अपनी बेटी की फोटो पर्स से निकालते हुए कहा.टीआई संतोष पंद्रे ने फोटो पर नजर डाली तो सुनहरे बालों की खूबसूरत नाकनक्श की मुसकान को देख क र समझ गए कि उम्र के इस मोड़ पर अकसर लड़केलड़कियों के कदम फिसल ही जाते हैं.

‘‘यदि तुम्हें किसी पर शक हो तो खुल कर बताओ, पुलिस तुम्हारे साथ है.’’ टीआई ने कहा.
‘‘साब, मेरी बेटी कभी घर और दुकान के अलावा कहीं नहीं जाती थी. किसी लड़के के साथ उस की दोस्ती भी नहीं थी. साब, पिछले 2 सालों से वह अमला के कृष्णा ज्वैलर्स के यहां सेल्सगर्ल का काम कर रही है.’’ लता ने टीआई को बताया.

टीआई ने मुसकान की जल्द ही पतासाजी का आश्वासन देते हुए लता को घर जाने को कहा.
लता जानती थी कि मुसकान अकसर खरीददारी के लिए कृष्णा ज्वैलर्स के मालिक पुनीत सोनी के साथ नागपुर आतीजाती थी और कई बार काम के सिलसिले में वहीं होटल में रुक भी जाती थी. लेकिन अब तो उस का पता ही नहीं चल पा रहा था.

दूसरे दिन सुबह तक मुसकान न तो घर लौटी और न ही उस से फोन पर संपर्क हो पाया तो लता ने कृष्णा ज्वैलर्स के मालिक पुनीत सोनी को फोन लगा कर बेटी के संबंध में जानकारी ली.पुनीत ने लता को बताया कि मुसकान तो कल दुकान पर आई ही नहीं थी. इतना ही नहीं, पुनीत ने यह भी बताया कि वह 2-3 दिन छुट्टी पर जाने की बात भी कह रही थी.

पुनीत की बातें सुन कर लता के पैरों तले से जमीन खिसक गई. उसे समझ नहीं आ रहा था कि आखिर मुसकान कहां चली गई.उधर पुलिस ने मुसकान की गुमशुदगी दर्ज करने के बाद उस की पतासाजी के लिए सोशल मीडिया पर उस की सूचना प्रसारित कर दी. इस के अलावा विभिन्न थानों में भी उस की फोटो भेज दी. मगर मुसकान के बारे में कोई भी सुराग पुलिस के हाथ नहीं लगा.

अमला शहर की सीमा महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ से भी लगी हुई हुई है. ऐसे में आपराधिक घटनाओं की सूचनाओं के आदानप्रदान के लिए पुलिस विभाग का अंतरराज्यीय वाट्सऐप ग्रुप बना हुआ है.
7 जुलाई, 2022 को उसी वाट्सऐप ग्रुप में नागपुर काटोल पुलिस ने एक नौजवान युवती की लाश मिलने की पोस्ट शेयर की तो बैतूल जिले की एसपी सिमाला प्रसाद की नजर उस पोस्ट पर ठहर गई.

वह लाश महाराष्ट्र के नागपुर के पास काटोल पुलिस थाने के अंतर्गत चारगांव इलाके में ईंट भट्ठे के पास मिली थी. वह पीले रंग की टीशर्ट पहने थी, जिस पर अंगरेजी में लव लिखा हुआ था. उस के हाथ पर 3 स्टार का टैटू बना हुआ था. युवती के सिर पर हमले की वजह से चेहरे की पहचान आसानी से नहीं हो पा रही थी.एसपी ने यह पोस्ट अमला पुलिस के सोशल मीडिया एकाउंट पर शेयर की तो अमला पुलिस थाने के टीआई संतोष पंद्रे ने फोटो को गौर से देखा. मुसकान की मां लता ने उन्हें जो फोटो दिया था, उस से उस की कदकाठी काफी मेल खा रही थी.

टीआई ने मुसकान की मां लता को थाने बुला कर वह फोटो दिखाई तो उस के होश उड़ गए. पीली टीशर्ट और हाथ पर बने टैटू को देख कर वह जोर से चीखी, ‘‘मेरी बेटी कहां है और उस का ये हाल किस ने कर दिया?’’इस के बाद पुलिस लता को ले कर नागपुर के काटोल पहुंच गई. काटोल पुलिस थाने के टीआई महादेव आचरेकर ने लता को युवती की लाश के कपड़े, अंगूठी और मोबाइल फोन दिखाया तो उस ने बताया कि ये सब उस की बेटी मुसकान के हैं.

महाराष्ट्र के किसी भी थाने में इस तरह के हुलिए वाली किसी लड़की की गुमशुदगी दर्ज नहीं थी.
इस वजह से पुलिस ने अंदाजा लगाया कि युवती शायद पड़ोसी राज्यों में से किसी शहर की रहने वाली हो.
इस पर नागपुर क्राइम ब्रांच ने मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ आदि राज्यों की पुलिस से संपर्क किया और फोटो सोशल मीडिया पर शेयर कर दी. पोस्टमार्टम के बाद लाश की शिनाख्त न होने से काटोल पुलिस ने लाश दफना दी थी.

नागपुर (ग्रामीण) पुलिस के काटोल थाने में मुसकान की हत्या का मामला कायम कर लता से पूछताछ की और मुसकान के मोबाइल में मिले फोटो के आधार पर यह बात सामने आई कि मुसकान का प्रेम प्रसंग कृष्णा ज्वैलर्स के मालिक पुनीत सोनी से चल रहा था. लिहाजा काटोल पुलिस केस की जांच के लिए अमला आ गई.पुलिस ने पुनीत सोनी से मुसकान की हत्या के संबंध में पूछताछ की तो पहले तो वह पूरे घटनाक्रम से अंजान बना रहा. पुलिस ने जब उस के मोबाइल की काल डिटेल्स रिपोर्ट सामने रखी तो वह बगलें झांकने लगा.

पुलिस ने उस के शोरूम पर काम करने वाले 17 साल के किशोर अन्नू से पूछताछ की तो वह डर गया और उस ने पल भर में ही पूरे रहस्य से परदा हटा दिया. पुलिस टीम ने पुनीत से सख्ती से पूछताछ की तो मुसकान की हत्या की सारी कहानी सामने आ गई.अमला के सरदार वल्लभभाई पटेल वार्ड में रहने वाली मुसकान महत्त्वाकांक्षी थी, मगर परिवार की माली हालत के चलते उसे हायर सेकेंडरी परीक्षा पास करते ही सेल्सगर्ल की नौकरी करनी पड़ी.

कोरोना काल में मुसकान के पिता की मौत हो जाने के बाद परिवार की माली हालत खराब हो गई थी. मुसकान का बड़ा भाई आपराधिक किस्म का था. आए दिन उस के झगड़े होते रहते थे. इसी के चलते पिछले साल उस का किसी ने मर्डर कर दिया था.बड़े भाई की मौत के बाद घर चलाना मुश्किल हो गया था. ऐसे में मुसकान कृष्णा ज्वैलर्स शोरूम पर सेल्सगर्ल की नौकरी करने लगी.

मुसकान को कृष्णा ज्वैलर्स शोरूम पर काम करते हुए बमुश्किल महीना भर ही बीता था, मगर इस एक महीने में ही उसे एक बात साफ समझ में आ गई थी कि शोरूम के मालिक पुनीत की नजरें उसे ही घूरा करती हैं. 28 साल का पुनीत सोनी अपने पिता सुनील सोनी की एकलौती संतान होने के साथ हैंडसम भी था. मध्य प्रदेश के बैतूल जिले में अमला नगर परिषद की गणेश कालोनी में रहने वाले पुनीत का ज्वैलरी का कारोबार आसपास के इलाकों में खूब चलता है.

19 साल की खूबसूरत मुसकान जब पुनीत के पास काम मांगने आई तो वह पहली ही नजर में पुनीत के दिल में उतर गई. वैसे तो पुनीत शादीशुदा होने के साथ एक बेटे का बाप भी था, लेकिन खूबसूरत लड़की को अपने सामने पा कर उस की चाहत इस कदर बढ़ चुकी थी कि वह अपने आप को रोक नहीं सका.
एक दिन शोरूम पर जब ग्राहक नहीं थे तो पुनीत ने अपने दिल का हाल मुसकान से कह ही दिया, ‘‘मुसकान, तुम बहुत खूबसूरत हो, तुम्हें देखता हूं तो मैं अपने दिल को काबू में नहीं रख पाता हूं.’’

कम उम्र में घरपरिवार के खर्च की जिम्मेदारी संभालने वाली मुसकान भी उस के प्यार के इजहार को नकार न सकी. ज्वैलरी शोरूम पर ही उन का प्यार परवान चढ़ने लगा.पुनीत मुसकान की हर ख्वाहिश और जरूरतों का खयाल रखने लगा. पुनीत मुसकान को अपने प्यार के जाल में फंसा चुका था. वह आए दिन मुसकान को तरहतरह के गिफ्ट की पेशकश करता था. दुकान में 17 साल का एक लड़का अन्नू (परिवर्तित नाम) भी काम करता था. पुनीत और मुसकान के बीच मीडिएटर का काम अन्नू करता था.
पुनीत मुसकान के साथ संबंध बनाने को उतावला हो रहा था, मगर मुसकान अपने मातापिता के डर से इस के लिए राजी नहीं थी.

पिछले साल दीपावली के पहले की बात है. एक दिन मौका पा कर पुनीत मुसकान के घर जा कर उस की मां से बोला, ‘‘मांजी दीपावली के बाद सीजन शुरू होने वाला है. ज्वैलरी की खरीदारी के लिए मुसकान को नागपुर साथ ले जाना है, मुसकान को ग्राहकों की पसंदनापसंद का खूब अनुभव हो गया है.’’
बेटी की तारीफ सुन कर लता ने यह सोच कर हामी भर दी कि आखिर पुनीत उस का मालिक जो ठहरा, उस के साथ जाने में हर्ज ही क्या है.

मुसकान के घर वालों की सहमति मिलते ही एक दिन कार से पुनीत और मुसकान नागपुर के लिए चल पड़े. रास्ते में कार के सफर के दौरान उन्होंने खूब मस्ती की. नागपुर पहुंच कर दिन भर ज्वैलरी की खरीदारी की और पुनीत ने मुसकान को नए स्टाइलिश कपड़े दिलाए तो उस की खुशी दोगुनी हो गई.
मुसकान अपने आप पर फख्र कर रही थी कि पुनीत उस का कितना खयाल रखता है. शाम को एक होटल में कमरा ले कर दोनों ठहर गए. कमरे में पहुंचते ही पुनीत के सब्र का बांध टूट चुका था. उस ने मुसकान को अपनी बाहों में भरते हुए कहा, ‘‘तुम्हारा प्यार पाने के लिए मैं कब से तड़प रहा था मेरी जान, आज मुझे अपनी प्यास बुझा लेने दो.’’

मुसकान ने भी हौले से पुनीत के सिर पर हाथ घुमाते हुए कहा, ‘‘थोड़ा सब्र करो. मैं तो पूरी रात तुम्हारे साथ हूं. मैं भी अपना सब कुछ तुम्हें लुटा दूंगी.’’प्यार के जोश और वासना की आग में 2 जिस्म कब एक जान हो गए, उन्हें पता ही नहीं चला. रात भर होटल में अपनी हसरतों को पूरा करने के बाद दूसरे दिन सुबह दोनों अमला पहुंच गए.

एक बार शुरू हुआ वासना का खेल धीरेधीरे रफ्तार पकड़ चुका था. पुनीत ज्वैलरी की खरीदारी का बहाना बना कर मुसकान को अकसर ही नागपुर और दूसरे शहरों में ले जाने लगा.मुसकान भी यह बात समझ चुकी थी कि शादीशुदा जिंदगी जीने वाला उस का प्रेमी पुनीत केवल उस के जिस्म से ही खेल रहा था, लिहाजा वह भी पुनीत से अपनी हर जायजनाजायज मांग रखने लगी थी.धीरेधीरे वह पुनीत को ब्लैकमेल भी करने लगी. पुनीत यदि मुसकान की मांग पूरी करने में आनाकानी करता तो वह उसे बदनाम करने की धमकी देने लगती.

देखते ही देखते मुसकान की लाइफस्टाइल काफी मौडर्न हो चुकी थी. महंगे कपड़े और मोबाइल का शौक उस के सिर चढ़ कर बोल रहा था. बदनामी के डर से मुसकान की हर डिमांड पूरी करना पुनीत की मजबूरी बन चुकी थी.जून महीने के अंतिम सप्ताह की बात है. रात के करीब 9 बजे जब मुसकान अपने घर जाने लगी तो उस ने पुनीत से कहा, ‘‘मेरा मोबाइल बारबार हैंग हो जाता है, मुझे एक आईफोन दिला दो.’’
‘‘चलो देखते हैं, अभी तो घर निकलो बाद में बात करते हैं.’’ पुनीत ने उस समय तो बात टालने के मकसद से यह कह कर बात खत्म कर दी थी.

धीरेधीरे पुनीत को यह बात समझ आ गई थी कि दुकान की आमदनी का बहुत बड़ा हिस्सा वह मुसकान पर खर्च कर रहा है. पुनीत यह सोच कर हैरान था कि इसी तरह चलता रहा तो किसी दिन उस का ज्वैलरी का कारोबार ठप्प हो जाएगा.प्रेमिका की आए दिन बढ़ने वाली डिमांड उस की परेशानी का सबब बन चुकी थी. इस बार 60-70 हजार के आईफोन की डिमांड से पुनीत मन ही मन तिलमिला गया था. उसे अब रातरात भर नींद नहीं आ रही थी.

आखिर में पुनीत ने मुसकान से छुटकारा पाने का कठोर निर्णय ले लिया था. अपनी इस योजना में उस ने दुकान पर काम करने वाले नौकर अन्नू को रुपयों का लालच देते हुए शामिल कर लिया था.
योजना के मुताबिक पुनीत ने 3 जुलाई की सुबह अचानक मुसकान को फोन किया, ‘‘हैलो मुसकान, जल्दी से तैयार हो जाओ, आईफोन लेने के लिए नागपुर चलना है.’’मुसकान आईफोन मिलने की खुशी में पागल हो गई और जल्दी से तैयार हो कर घर से बाहर निकलते हुए मां से केवल इतना ही कह पाई, ‘‘मैं बाजार जा रही हूं, कुछ देर में वापस आती हूं.’’

कुछ ही देर में पुनीत और अन्नू कार ले कर बाजार आ चुके थे. बाजार से मुसकान को कार में बिठा कर वे नागपुर के लिए रवाना हो गए.कार पुनीत ही ड्राइव कर रहा था और मुसकान अगली सीट पर बैठी थी, जबकि पिछली सीट पर बैठा अन्नू मोबाइल पर गेम खेलने का नाटक कर रहा था.कार से सफर के दौरान मुसकान को बीयर की पेशकश की गई, लेकिन उस ने इंकार कर दिया. पुनीत और अन्नू ने मिल कर शराब पी. कुछ ही घंटों में कार मध्य प्रदेश की सीमा से बाहर निकल चुकी थी.

रास्ते में सुनसान जगह पर पुनीत ने कार रोकी और बराबर की सीट पर बैठी मुसकान के गले में हाथ डाल कर प्यार का नाटक करने लगा. इसी दौरान पीछे बैठे हुए अन्नू ने उस का जोर से गला दबा दिया. मुसकान ने जोर से चीखने की कोशिश की, मगर पुनीत ने उस का मुंह हथेली से बंद कर दिया.
कुछ ही देर में जब वह बेहोश हो गई तो दोनों ने उसे कार से बाहर खींच लिया और सड़क पर पड़े पत्थर से उस का सिर कुचल कर मौत के घाट उतार दिया. मुसकान की लाश को सड़क के किनारे लुढ़का कर दोनों कार से अमला वापस आ गए.

पुनीत ने मुसकान की ब्लैकमेलिंग से तंग आ कर उसे प्रदेश के बाहर खत्म करने की योजना इसलिए बनाई ताकि किसी को उस पर शक न हो. मगर पुलिस की नजरों से वह ज्यादा दिन तक बच नहीं सका.
महाराष्ट्र के काटोल पुलिस के टीआई महादेव आचरेकर और मध्य प्रदेश के अमला पुलिस के टीआई संतोष पंद्रे की सूझबूझ से 11 जुलाई को मुसकान की हत्या के राज से परदा हट गया.

महाराष्ट्र पुलिस ने पुनीत सोनी और अन्नू को मुसकान की हत्या के जुर्म में भादंवि की धारा 302 और 201 के तहत दर्ज कर कोर्ट में पेश किया, जहां से पुनीत को नागपुर सैंट्रल जेल और अन्नू को बाल सुधार गृह भेज दिया.

विंटर स्पेशल : बढ़ता प्रदूषण बेऔलाद न कर दे

Writer- स्नेहा सिंह

भारत के कुछ शहर दुनिया में प्रदूषण की रैंकिंग में टौप पर हैं. इस समस्या को गंभीरता से विचारने की सख्त जरूरत है, क्योंकि प्रदूषण न सिर्फ स्वास्थ्य संबंधी बीमारियों को जन्म दे रहा है बल्कि याद्दाश्त और प्रजनन शक्ति को भी घटा रहा है.

बहुत कम लोगों को पता है कि उच्च वायु प्रदूषण वाले इलाकों में रहने वाली बुजुर्ग महिलाओं को अल्जाइमर यानी याद्दाश्त कमजोर होने की बीमारी हो सकती है. शोध से पता चला है कि प्रदूषित वायु में सांस लेने से महिलाओं के दिमाग में सिकुड़न होती है, जैसा अकसर अल्जाइमर में होता है. वैज्ञानिकों के अनुसार, कम दिमागी वौल्यूम डिमैंशिया और अल्जाइमर के मुख्य कारकों में से एक है. प्रदूषित वायु दिमागी तंत्र में बदलाव पैदा कर नर्व सैल नैटवर्क को बाधित करती है. इस से अल्जाइमर की बीमारी के लक्षण बढ़ते हैं.

वायु प्रदूषण स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, यह तो हम सभी जानते हैं, पर यह प्रजनन संबंधित समस्याएं भी खड़ी करता है, इस की जानकारी बहुत कम लोगों को है. प्रदूषित हवा में औक्सीजन की मात्रा बहुत कम होती है, जिस से यह शुक्राणुओं और अंडाणुओं को नुकसान पहुंचा सकती है. अगर कोई अधिक समय तक प्रदूषण में रहता है तो शुक्राणुओं और अंडाणुओं की संख्या को तो नहीं, पर उस की गुणवत्ता निश्चित रूप से प्रभावित हो सकती है. खराब हो रही एयर क्वालिटी इंडैक्स (एक्यूआई) धीरेधीरे बहुत ज्यादा गंभीर मामला बनता जा रहा है, जो फेफड़े की प्रणाली, हृदय और आंखों को प्रभावित करने के साथसाथ हार्मोंस में बदलाव भी लाता है.

प्रदूषण के कारण महिलाओं को बंधत्व का खतरा

महिलाओं का प्रजनन तंत्र वायु प्रदूषण के कारण खतरे में पड़ता जा रहा है. प्रदूषण अंडाणुओं का जहां विकास होता है, उस अंडाशय की कोशिकाओं पर प्रतिकूल असर डालता है. अगर कोई महिला लंबे समय तक वायु प्रदूषण के संसर्ग में रहती है तो फोलिक्स की गुणवत्ता में ही नहीं, अंडाणुओं के जैनेटिक मेकअप में भी समस्या पैदा हो सकती है.

प्रदूषित हवा में ऐसे तमाम प्रदूषक हैं, जो खासकर प्रजनन संबंधित स्वास्थ्य के लिए हानिकारक साबित हो सकते हैं. इस में माइक्रोंस (पीएम 10) से छोटे सूक्ष्म कण, नाइट्रोजन औक्साइड और सल्फर डायोऔक्साइड का समावेश होता है. ये प्रजनन क्षमता पर प्रतिकूल असर डालते हैं और ये असमय डिलीवरी तक करा सकते हैं.

ये प्रदूषक आईवीएफ ट्रीटमैंट की दर में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं परंतु इस संबंध को स्थापित करने के लिए अभी तक औपचारिक अध्ययन नहीं किया गया है. पर बंधत्व के मामले की संख्या में धीरेधीरे अधिकता देखने को मिल रही है, जो पर्यावरण संबंधित वातावरण में गेटटुगेदर होने के कारण हो सकते हैं.

पुरुषों में देखने को मिल रहा बंधत्व के पीछे का वातावरण

शुक्राणुओं की कोशिकाओं के विकृत होने और कमजोर पड़ने के साथ जुड़े यंत्ररचना एंडोक्राइन डिसरप्टर एक्टिविटी (हार्मोन संबंधित असंतुलन) के रूप में भी जानी जाती है. हम सांस के रूप में जो हवा अंदर लेते हैं, उस में छोटेछोटे कण (मनुष्य के बाल से भी छोटे) होते हैं. जिन में कौपर, जिंक, सीसा आदि होता है और जो एस्ट्रोजनिक और एंटी एंड्रोजनिक होते हैं. अगर इन्हें लंबे समय तक सांस में लिया जाए तो ये टैस्टोस्टेरौन और शुक्राणुओं के कोष के उत्पादन में अवरोध पैदा कर सकते हैं.

इस समस्या के मूल में तथ्य यह है कि इस प्रकार की जहरीली हवा को सांस में लेने से ये शुक्राणुओं को अवनति और शुक्राणुओं के काउंट के गर्भ के लिए आदर्श रूप में जरूरी संख्या की अपेक्षा एक निश्चित स्तर तक नीचे ले जाता है. इतने कम काउंट, गतिशीलता और संकेंद्रण के साथ शुक्राणु फैलोपिन ट्यूब के अंदर पहुंचने के लिए सक्षम नहीं रहते. परिणामस्वरूप, असंख्य प्रयासों के बावजूद जीवनसाथी गर्भ नहीं धारण कर सकता.

टैस्टोस्टेरौन के स्तर में कमी होने से सहवास की इच्छा भी कम हो रही है. इस तरह वैवाहिक जीवन असफल हो जाता है. डीजल का उत्सर्जन और ओजोन के बढ़ रहे स्तर तथा हवा में मिश्रित सल्फर डायोऔक्साइड और छोटेछोटे कण रक्त में रासायनिक प्रतिक्रिया पैदा करते हैं, जिस के कारण मुक्त मूलक (फ्री रैडिकल्स) में वृद्धि होती है, जो प्रजनन की क्षमता रखने वाले पुरुष के भी शुक्राणुओं की गुणवत्ता को परोक्ष रूप से प्रभावित करते हैं. अधिक वायु प्रदूषण के स्तर के संसर्ग में आने वाले नवजात का कम वजन, कमजोर विकास, नियत समय से पहले प्रसूति और नवजात की मौत होना स्वाभाविक है, जो शुक्राणुओं की खराब गुणवत्ता का परोक्ष परिणाम है.सुरक्षित रहें

पीएम 10 क्षमता वाले सुगंधित हाइड्रोकार्बंस शरीर में हार्मोन संबंधित बदलाव के लिए प्रत्यक्ष रूप से जिम्मेदार हैं. टैस्टोस्टेरौन और एस्ट्रोजन की अवनति वाले स्तर समागम की इच्छा कम करने के साथसाथ प्रजनन क्षमता को कम करते हैं.

प्रदूषण को पूरी तरह तो टाला नहीं जा सकता, पर जीवनशैली में कुछ बदलाव कर के और खानपान पर नियंत्रण कर के गर्भधारण के लिए आदर्श माने जाने वाले शुक्राणुओं का काउंट उचित स्तर का बनाने के लिए मददगार हो सकता है. ये बताई गई विधि अपनाने से तंदुरुस्त शुक्राणु विकसित करने के लिए, शुक्राणुओं की गुणवत्ता, मात्रा, संकेद्रण और गतिशीलता बनाने में मददगार हो सकती है.

आहार में विटामिंस, खनिज और जरूरी पोषक तत्त्वों का समूह हो. इस तरह के एंटीऔक्सिडैंट की मात्रा बढ़ाएं जो शुक्राणुओं को स्वस्थ रखने में मददगार होने के लिए जाने जाते हैं. एंटीऔक्सिडैंट के सेवन को बढ़ाने से शुक्राणुओं की गुणवत्ता सुधरने के साथसाथ कोशिकाओं की लंबी उम्र के लिए शरीर में जहां भी मुक्त मूलक

(फ्री रैडिकल्स) होते हैं, उन्हें ये नष्ट कर के शरीर में सुरक्षा यंत्ररचना के रूप में काम करते हैं.

बंधत्व को दूर करने वाले डाक्टर अपने रोगियों को मास्क पहनने, अपने घर में ही नहीं वाहनों में भी प्यूरीफायर्स इंस्टौल करने की सलाह देते हैं. वे कहते हैं कि जहां तक संभव हो, घर के अंदर ही रहें. सब से उचित उपाय प्रदूषित क्षेत्र को छोड़ देना है, पर लोग इस के लिए कोई प्रयास नहीं करते. इस के लिए लोगों को जाग्रत होना चाहिए और औफिसों में भी एयर प्यूरीफायर इंस्टौल करवाना चाहिए.

सलमान खान कि इस एक्ट्रेस का हुआ भयानक एक्सीडेंट

बॉलीवुड एक्ट्रेस रंभा को लेकर एक बुरी खबर आरही है कि उनका कार एक्सीडेंट हो गया है, जिसके बाद से उनके फैंस काफी ज्यादा परेशान नजर आ रहे हैं. बता दें कि उनके कार में उनकी बेटी और नैनी मौजूद थी.

खबर है कि इस एक्सीडेंट के दौरान एक्ट्रेस और उनकी बेटी को काफी गंभीर चोट आई है, जिससे वह दोनों काफी ज्यादा परेशान  हैं. रंभा की बेटी को तुरंत अस्पताल में भर्ती करवाया गया है. इस हादसे की जानकारी एक्ट्रेस ने अपने सोशल मीडिया के जरिए दिया है.

 

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इस खबर के सामने आते ही सभी फैंस काफी ज्यादा परेशान हैं. साथ ही रंभा भी काफी ज्यादा परेशान नजर आ रही हैं. एक्ट्रेस ने इंस्टाग्राम पर फोटो शेयर किया है जिसमें उनकी बेटी अस्पताल में नजर आ रही हैं. इसके साथ ही एक्ट्रेस ने कार की भी तस्वीर शेयर कि है जो कि पूरी तरह से डैमेज हो गई है.

बॉलीवुड एक्ट्रेस रंभा ने सलमान खान के साथ कई सारी हिट फिल्मों में काम किया है. इसके साथ ही वह गोविंदा के साथ भी कई हिट फिल्मों में काम कर चुकी हैं.

खैर अभी रंभा के परिवार को दुआ की जरुरत है कि जल्द उनकी बेटी स्वस्थ होकर वापस घर लौटे.

Bigg Boss 16: अंकित और प्रियंका की दोस्ती टूटी, जानें क्या है कारण

सलमान खान का शो बिग बॉस 16 इन दिनों टीआरपी लिस्ट में सबसे आगे है, शो में अब्दूरोजिक से लेकर प्रियंका चहर चौधरी तक को खूब पसंद किया जा रहा है.

आए दिन बिग बॉस 16 के कंटेस्टेंट ट्विटर पर ट्रेंड किया जा रहा है, वीडियो के प्रीकैप ने लोगों को हैरान करके रख दिया है, अंकित गुप्ता और प्रियंका चहर चौधरी गेम को लेकर काफी ज्यादा बहस कर रहे हैं. अब इन दोनों में बात इतनी ज्यादा बढ़ गई की दोनों बैठकर रोने लगें.

 

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प्रियंका ने अंकित को मुंह पर बोल दिया कि वह उन्हें झेल रही है, इस शो में दिखाया जा रहा है कि प्रियंका और अंकित की लड़ाई खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है. अंकित भी प्रियंका को जवाब देने में पीछे नहीं हटते हैं वह कहते हैं कि मत दो मेरा साथ.

बता दें कि वह पहले भी कई बार बिग बॉस 16 में लड़ाई कर चुके हैं, उन्हें परेशान किया जा चुका है.  लेकिन इससे पहले प्रियंका उनका साथ देती नजर आईं थी लेकिन अब बिल्कुल भी साथ नहीं दे रही है. दोनों एकदम से खिलाफ हो गए हैं एक दूसरे के.

बता दें कि प्रियंका और अंकित एक साथ सीरियल उदारिया में काम कर चुके हैं. जिसमें इन दोनों को खूब पसंद किया गया था.

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