कल मुझे कान के डाक्टर के पास जाने की सख्त आवश्यकता महसूस हुई. हुआ यों था कि कल शाम को
गलती से मेरे कमरे की खिड़कियां खुली रह गईं. इस कारण पूरे कमरे में मच्छरों का साम्राज्य हो गया. कमरे में जब मैं 'मच्छर की आत्मकथा' कविता पढ़ रहा था, तभी मच्छरों के दल ने मेरे शरीर के खुले हिस्सों पर हमला बोल दिया. कुछ पैर में काट रहे थे तो कुछ हाथ में काटने को तत्पर थे, पर कुछ ऐसे भी थे जो मेरे कान पर भी बैठ कर हमला बोल रहे थे, लेकिन मुझे भनक तक नहीं लग रही थी.
मच्छरों के विषय में यह सर्वविदित है कि वह हमला करने से पूर्व अपने होने या आने की सूचना देते हैं जैसे युद्ध शुरू होने से पूर्व शंख बजाया जाता है. लेकिन कल मुझे ताज्जुब हुआ जब मच्छरों की आवाज मुझे सुनाई ही नहीं दी जबकि मुझे कान में चुभन महसूस हो रही थी.
मैं ने कविता पढ़ना छोड़ कर मच्छरों की आवाज पर ध्यान केंद्रित किया, पर तब भी मुझे मच्छरों की भिनभिनाहट सुनाई नहीं पड़ी. अब मुझे न तो मच्छरों के काटने की चिंता थी और न ही मुझे मच्छरों को भगाने की. अब मुझे चिंता खाए जा रही थी कि क्या ध्वनि प्रदूषण के असर से मच्छरों की भिनभिनाहट सुनाई नहीं पड़ रही है या मेरे कानों में कोई खराबी आ गई है या फिर आजकल मच्छरों ने भिनभिनाना ही बंद कर दिया है?
कुछ समय पूर्व तक मच्छरों की भिनभिनाहट से मैं सचेत हो जाया करता था और गले के ऊपर के हिस्से को मच्छरों के प्रकोप से बचाने का पूर्ण प्रयास करता था लेकिन कल जब कान के कई हिस्सों पर सूजन
हो गई, तब मुझे लगा इस में मच्छरों का दोष नहीं है. मुझे सचेत करने में मेरे कान सक्षम नहीं हो पा रहे, यह जान कर मैं ने डाक्टर से संपर्क करना ज्यादा मुनासिब समझा.