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नोट बंदी: आवाम नरेंद्र मोदी को कभी माफ नहीं करेगी…

नोटबंदी की घटना उसकी त्रासदी को देश शायद कभी भुला नहीं पाएगा.औचक और बेवजह की गई यह नोटबंदी नरेंद्र दामोदरदास मोदी के व्यक्तिगत इतिहास पर एक ऐसा काला धब्बा है जिसके लिए आज तक उन्होंने कभी देश से माफी नहीं मांगी है और न ही इसे अपनी कोई गलती बताया है. मगर नोटबंदी की त्रासदी को कभी भुलाया नहीं जा सकता. इसके कारण जाने कितने लोग मारे गए, तबाह हो गए. मगर मानो मोदी मुस्कुराते रहे अट्टहास लगाते रहे. मानो यह कहावत भारत में भी चरितार्थ हो रही थी -” जब रोम जल रहा था नीरो बंसी बजा रहा था”.

जब-जब नवंबर का महीना आएगा आवाम 8 नवंबर का वह दिन याद करेंगी और उसके बाद देश की जनता के सामने नरेंद्र दामोदरदास मोदी का चेहरा आ जाएगा. इस दिन रात को 8 बजे अचानक नरेंद्र मोदी देश की टेलीविजन पर अवतरित हुए थे उन्होंने अपने संक्षिप्त भाषण में यह कहा कि आज से देश में चल रही नोट करेंसी लीगल टेंडर नहीं रही.

इस घोषणा के बाद मानो देश में अंधेरा छा गया मगर मोदी लोगों को देश की आवाम को यह ढाढस बंधाते रहे- देश के लिए कुछ तो कुर्बानी आपको देनी चाहिए क्योंकि इस नोट बंदी से आतंकवाद समाप्त हो जाएगा काला धन समाप्त हो जाएगा यह सुनकर के देश वासियों ने मानो खून का घूंट पी लिया. दरअसल, देश का आम नागरिक भी यह मानने को तैयार नहीं था कि नोटबंदी से आतंकवादी और नक्सलवाद समाप्त हो जाएगा, काला धन समाप्त हो जाएगा. जब प्रधानमंत्री कह रहे हैं तो भला लोगों को पास रास्ता क्या था और आखिर हुआ भी वही. आज भी आतंकवाद और नक्सलवाद , काला धन सब कुछ विद्यमान है. याद है तो बस वह नोटबंदी के दो-तीन महीने जब लोग तड़प तड़प कर जी रहे थे और यह सोच रहे थे कि हमने कैसी भारत सरकार बनाई है जो अपने ही देशवासियों के साथ घनघोर अत्याचार कर रही है.

नोट बंदी आर्थिक जन सहार सिद्ध हुआ

दरअसल, देश और दुनिया के बौद्धिक वर्ग ने यह माना है कि भारत में 2016 में लगाई गई नोटबंदी एक तरह से आर्थिक जनसंहार था . इस दरमियान देश में जो बेवजह तबाही हुई उसका कोई रिकॉर्ड नहीं है.
8 नवंबर 2022 को नोटबंदी की वर्षगांठ पर पहले की तरह नरेंद्र दामोदरदास मोदी इस दफा यह साहस नहीं कर पाए की सरकारी खजाने से विज्ञापन जारी करके अपनी पीठ थपथपाते कि आज ही के दिन देश में हमारे द्वारा नोटबंदी लगाई गई थी और हमारी यह सफलता है. इसके बजाय नरेंद्र मोदी की सरकार इस मामले में शुतुरमुर्ग बन गई. मगर विपक्ष यह मौका भला हाथ से जाने कैसे दे सकता था.
अब विपक्षी दलों ने भाजपा नीत केंद्र सरकार द्वारा 2016 में की गई नोटबंदी को आर्थिक जनसंहार और आपराधिक कृत्य करार दे दिया है. तृणमूल कांग्रेस के प्रवक्ता और राज्यसभा में पार्टी के नेता डेरेक ओ ब्रायन ने कहा -” यह कदम एक ‘नौटंकी’ था .”

एक ट्वीट में कहा -” 6 साल पहले, आज ही के दिन एक नौटंकी जो आर्थिक जनसंहार साबित हुई. इस बारे में मैंने 2017 में मेरी किताब इनसाइड पार्लियामेंट में विस्तार से लिखा है. मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव सीताराम येचुरी ने सरकार पर निशाना साधते हुए आरोप लगाया कि – ” नरेंद्र मोदी सरकार नोटबंदी के आपराधिक कृत्य पर अपना ढोल पीट रही है.”

इस तरह कहा जा सकता है कि नरेंद्र मोदी का यह व्यक्तिगत फैसला इतिहास में दर्ज हो चुका है उनका पीछा कभी नहीं छोड़ेगा यह जन सहार उन्हें एक खलनायक के रूप में लोगों को याद रह जाएगा.
देश की प्रमुख विपक्षी पार्टी अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने 8 नवंबर की नोटबंदी पर कड़ा प्रहार करते हुए कहा है कि आठ नवंबर 2016 का दिन सबको याद होगा. इतने दिनों के बाद भी सरकार ने नोटबंदी का नाम तक नहीं लिया है. कांग्रेस ने नोटबंदी के छह साल पूरा होने पर केंद्र सरकार से श्वेत पत्र लाने की मांग की है. पार्टी ने कहा कि केंद्र सरकार के इस कदम के बाद चलन में नगदी 72 फीसद बढ़ गई. कांग्रेस मुख्यालय में नवंबर 2016 को नोटबंदी के माध्यम से आयोजित प्रेस वार्ता में कहा गया अगर नरेंद्र मोदी सरकार देश के प्रति जवाबदेह है तो श्वेत पत्र लाना ही चाहिए.

चाहे आज नरेंद्र दामोदरदास मोदी नोटबंदी के मामले पर मौन हैं मगर निसंदेह उन्हें अपने फैसले पर एक दिन देश से माफी मांगनी होगी.

कांटेदार कटहल की खेती

कटहल भी प्रकृति की अनोखी देन है. अगर पहली बार देखो तो भरोसा नहीं होता कि यह रसोई में पका कर खाने की चीज है. यह बेल या पौधे में नहीं पेड़ में लगता है. आमतौर पर कटहल की सब्जी बनाने के अलावा लोग इस का इस्तेमाल अचार बनाने में भी करते हैं. कटहल का फल बड़ा होने के बाद इस का भीतरी भाग पक जाता है.

तब, ये कच्चा ही खाने में बहुत स्वादिष्ठ और रसीला होता है. लोकल भाषा में इसे ‘कोआ’ कहते हैं. फल पकने के बाद इसे बिना आग पर पकाए यों भी या हलका नमक लगा कर खाया जाता है. कटहल के छिलके पर कांटे जैसा उभार होता है. यह पोषक तत्त्वों से भरपूर होता है. आयरन, कैल्शियम, विटामिन ए, विटामिन सी और पोटैशियम इस में प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं. कटहल के पेड़ से साल में 2 बार फल लिए जा सकते हैं. मूल रूप से भारत के पश्चिमी घाटों यानी केरल और तमिलनाडु में बहुतायत से पाए जाने वाले कटहल को मार्च, 2018 में केरल का राज्य फल घोषित किया गया था.

यह उष्णकटिबंधीय फल अपने प्रोटीन तत्त्वों के कारण शाकाहारी लोगों में पनीर और अंडे के विकल्प के रूप में लोकप्रिय है. फल, बीज और गूदे के उपयोग के अतिरिक्त कटहल के पत्ते, छाल, पुष्पक्रम और लैटेक्स का उपयोग पारंपरिक दवाओं में भी किया जाता है. कटहल की खेती किसी भी प्रकार की मिट्टी में हो जाती है, लेकिन फिर भी इस की बागबानी के लिए गहरी दोमट और बलुई दोमट मिट्टी उपयुक्त है. इस की खेती के लिए पानी की ज्यादा जरूरत होती है. बीज से पौधे को उगाने के तकरीबन 3 से 4 साल बाद फल लगने लगते हैं. इस के लिए बीजों को कटहल से निकालते ही मिट्टी में उगा देना चाहिए.

इस की पौध बनाने के लिए 2 विधि का उपयोग होता है. पहली, बीज अंकुरित करना और दूसरी, कलम बना कर उगाना. कटहल की कुछ उन्नत किस्में या प्रजाति ऐसी भी हैं कि यह गुच्छों में होती हैं. एक पेड़ से 80-90 क्विंटल कटहल तक पैदा हो जाता है. कटहल पेड़ के नीचे खाली पड़ी जमीन पर बैगन, मिर्च, पालक, धनिया आदि की खेती कर सकते हैं. एक बार पनप गए, तो इस के बाद कटहल के पेड़ 50 साल तक भी भरपूर पैदावार देते हैं. साल में 2 बार फसल होने के कारण कटहल की खेती किसानों को आर्थिक रूप से समृद्ध बनाती है. सब्जी, अचार और मीठे कोए के कारण कटहल की मार्केट में अच्छी डिमांड है. ऐसे में कटहल उगाने वाले किसानों को अच्छा मुनाफा होता है.

मां, ब्रेकअप क्यों न करा -भाग 1 : डायरी पढ़ छलका बेटी का दर्द

‘‘तोशी, तुम ने यह बहुत अच्छा किया कि अपने पापा को साथ ले जाने का प्लान बना लिया है. सच में उन्हें देख कर तो अब लगता है कि वह भी अपने अकेलेपन से घबरा गए हैं. जिस उम्र में जीवनसाथी की सब से अधिक जरूरत होती है, उस उम्र में उन्हें अकेले रहना पड़ रहा है.’’

‘‘हां आंटी. यहां आती हूं तो अपने परिवार की चिंता रहती है. और जब वहां होती हूं तो पापा की चिंता रहती है. इसलिए अनूप और पापामम्मी ने ही इस बात के लिए जोर दिया कि अब पापा हमारे साथ जयपुर में ही रहें.’’

‘‘तुम्हारे सासससुर ने भी इस बात में तुम्हारा साथ दिया. वाकई वे बड़े दिल के हैं, वरना अकसर मातापिता, अपने बेटे और बहू पर तो केवल अपना ही अधिकार समझते हैं.’’

‘‘हां आंटी. मां के जाने के बाद पिछले एक साल में जितना संभव हो सका, मैं पापा के साथ आ कर रही हूं. लेकिन, बच्चों के साथ और नौकरी के कारण बारबार आ पाना संभव नहीं हो पाता. और जितना संभव हुआ वह मेरी सासू मां के सहयोग से ही संभव हो पाया…

“मम्मी ने तो सेवा का कोई मौका ही नहीं दिया. उन के जाने से पहले तो यह विचार भी कभी मन में नहीं आता था कि मां के बिना भी हमें रहना होगा.

“अच्छीभली औफिस से आई थी. पापा के साथ चाय पी थी. डाक्टर को बुलाया तो उन्होंने उम्मीद ही नहीं किया. शायद मां को ब्रेन हेमरेज हुआ था. मां के जाने से हमारे परिवार को तोड़ कर रख दिया था. और अब पापा बिलकुल अकेले पड़ गए हैं. बच्चे गृहस्थी बसा कर अपनी जिंदगी में मस्त और व्यस्त हो जाते हैं. कितनी भी व्यस्तता क्यों न हो, इन का साथ और उन की फिक्र हमारी पहली जिम्मेदारी है.’’

‘‘बेटी, सुमनजी तो इस दुनिया से असमय जा कर इस परिवार को ही नहीं, बल्कि मुझे भी अकेला कर गईं. हम दोनों के बीच कुछ भी छुपा हुआ नहीं था. अपने सुखदुख की बात कर के हम अपना जी हलका कर लेते थे. एकदूसरे पर खुद से भी ज्यादा भरोसा था. हमें एकदूसरे का साथ भी था और सहयोग भी. हां, तुम्हारे पापा और तुम्हारे अंकल इतने घनिष्ठ नहीं थे. खैर, हम दोनों पड़ोसन बड़े प्रेम से रहते रहे.’’

‘‘जी, आंटी. हम ने मां को खोया है, तो आप ने भी अपनी प्रिय सखी को खोया है. मम्मी का यों अचानक जाना एक बहुत बड़ा खालीपन दे गया है.

“एक बात बताइए आंटीजी, क्या मम्मी ने अपनी किसी छोटीबड़ी बीमारी के बारे में आप से जिक्र किया था? मम्मी तो मामा के गले के कैंसर की वजह से बहुत बेचैन थीं. वे उन की जी भर कर सेवा करना चाहती थीं. हो सकता है, वे इस परेशानी में अपने बढ़ते ब्लड प्रेशर या किसी अन्य संकेत को नजरअंदाज करती रही हों और नतीजा इस तरह सामने आया हो.’’

‘‘वाकई तोशी, सुमनजी तुम्हारे मामा की बीमारी से बहुत अधिक तनाव में तो थीं. अपने भाई का इतना बड़ा कष्ट उन से देखा नहीं जा रहा था.

“एक बात बोलूं तोशी. मैं, पिछले एक साल से वह बात अपने दिल में दबाए बैठी हूं. सुमनजी पहले तो मुझे कुछ बताना ही नहीं चाहती थीं. मैं उन के तनाव की वजह सिर्फ उन के लाड़ले छोटे भाई की बीमारी ही मान रही थी. ऐसा लगता था, जैसे वे अपने मन के गुबार को अपने मन में ही रखने के लिए कशमकश कर रही हैं.

“जब उन के भाई शिवपुरी में अपने घर या यहां ग्वालियर के अस्पताल में होते थे, तब मैं ने देखा कि सुमनजी एक काली डायरी में कुछ लिख रही होती थीं. और उस वक्त उन की आंखों से लगातार आंसू बह रहे होते थे.

“मेरे अचानक आ जाने पर, अपनी डायरी बंद कर अपने आंसू पोंछ लेती थीं. इस बात का अफसोस जरूर होता था कि आखिर हम दोनों के बीच कितनी दूरी क्यों हो गई कि सुमनजी, मुझ से शेयर करने की जगह बस डायरी को अपना हमराज बना रही हैं.

“सामान्य दिखने की कोशिश में भी उन की बेचैनी झलक पड़ती थी. उस वक्त ऐसा लगता था कि वे इस बात का इंतजार कर रही हैं कि मुझे अकेला छोड़ दो. मैं तुम से न कह पाऊंगी.

“मुझे अपनी अधूरी कहानी, अपनी इस डायरी को सुनानी है. औपचारिक सी बातें कर मैं उन केे मन को समझ कर डायरी के साथ उन्हें फिर अकेला छोड़ देती थी.

आत्मग्लानि- भाग 3 : मोहिनी को किसकी शक्ल याद नहीं थी?

दोनों साथ ठहरे थे, एक ही कमरे में. जल्दी ही मोहनी और वे दोस्त बन गए, पर फिर भी मोहनी अपने दुख के कवच से निकल नहीं पा रही थी. एक रात जब वे होटल के कमरे में आईं तो मोहनी उस से पूछ बैठी, ‘‘आशी, तुम भी तो कभी देर से घर आती होंगी? तुम्हें डर नहीं लगता?’’

‘‘डर? क्यों डरूं मैं? कोई क्या कर लेगा. मार देगा या रेप कर लेगा. कर ले. मैं तो कहती हूं, जस्ट ऐंजौय.’’

‘‘क्या? जस्ट ऐंजौय…’ मोहनी का मुंह खुला का खुला रह गया.

‘‘अरे, कम औन यार. मेरा मतलब है कोई रेप करे तो मैं क्यों जान दूं? मेरी क्या गलती? दूसरे की गलती की सजा मैं क्यों भुगतूं. हम मरने के लिए थोड़ी आए हैं. वैसे भी जो डर गया समझो मर गया.’’ आशी की बात से मोहनी को संबल मिला. उसे लगा आज कितने दिन बाद दुख के बादल छंटे हैं और उसे इस आत्मग्लानि से मुक्ति मिली है. फिर दोनों खिलखिला कर हंस पड़ीं.

दुल्हन का वर्जिनीटी टेस्ट हुआ हनीमून पर

बात मई, 2022 महीने की है. भीलवाड़ा जिले में बागोर का एक सांसी परिवार बेटे की शादी संपन्न
होने की खुशियों से भरा था. पूरा परिवार सुंदर, सुशील और पढ़ीलिखी बहू पा कर बेहद खुश था. दूल्हा भी सुहागरात के रंगीन हसीन सपनों में खोया था, जबकि 24 साल की दुलहन कमला एक अज्ञात भय से आशंकित थी.

आशंका उस के समाज की एक पारंपरिक ‘कुकड़ी प्रथा’ को ले कर थी, उस बारे में उस ने अपने रिश्तेदारों और दोस्तों से थोड़ाबहुत सुन रखा था. उसे ससुराल में उसी सैकड़ों साल पुरानी प्रथा का सामना करना था.
दुलहन कमला 11 मई को अपनी ससुराल पहुंच गई थी. उस का पारंपरिक स्वागत किया गया. परिवार में सभी बहुत खुश थे. कुछ बुजुर्ग औरतें कमला की बलाएं लेती हुई उसे एक कमरे में ले गईं. उन में उस की सास, बुआ सास और चचिया सास थी. उन्होंने सब से पहले दुलहन को हिदायत दी कि वह तब तक घर के दूसरे हिस्से में कहीं नहीं जाएगी, जब तक ‘कुकड़ी’ पूरी नहीं हो जाती.

कमला को कमरे में लगे बैड पर बिठा दिया गया. उस पर झक सफेद चादर बिछाई गई थी. एक औरत उस के हाथ में सफेद धागे से लिपटी रूई का एक छोटा गोला पकड़ाती हुई बोली, ‘‘इसे संभाल कर रखना, जब सुहागरात खत्म॒हो॒जाए तब इस पर अपनी योनि का खून लगा लेना…

‘‘…और फिर वह गोला हमें उसी वक्त वापस कर देना. वरना…’’ दूसरी औरत बोली और इस पर बाकी औरतें खिलखिला कर हंस पड़ीं.‘‘तुम्हें कैसे क्या करना है, भाभी समझा देगी,’’ कमला की सास बोली और उस की भाभी को इशारा कर आदेश दिया कि इसे अच्छी तरह से नहलाधुला कर पहले कुछ खाना खिला दे. फिर एक को छोड़ कर बाकी औरतें वहां से चली गईं, जो उस की भाभी लगती थी.

असल में कमला को ‘कुकड़ी’ यानी अपने कुंवारेपन की जांच देनी थी. इस के लिए उसे दिन में ही सुहाग की सेज पर पति संग सहवास करना था. इस दौरान उसे बंद कमरे के बाहर मौजूद दूसरी औरतों की निगरानी में रहना था.इस में उस का पास होना जरूरी था, वरना परिवार सामाजिक दायरे में बंध कर दूसरा निर्णय लेने को मजबूर हो जाएगा. इस का परिणाम क्या हो सकता है, इस की उस ने कभी कल्पना तक नहीं की थी.

अंतत: वही हुआ, जिस का कमला को डर था. उसे पति के साथ कमरे में बंद कर दिया गया था. पति ने उस के साथ दिन में ही सुहागरात मनाई. सहवास पूरा होने के बाद जैसे ही पति कमरे से बाहर निकला, बाहर पहरा दे रही कुछ औरतें दनदनाती हुई कमरे में घुस गईं. एक ने अर्धनग्न कमला से कुकड़ी मांगी. दूसरी औरतें सिलवट पड़ चुकी सफेद चादर पर खून के धब्बे तलाशने लगीं.

चचिया सास चिल्लाई, ‘‘देख तेरी दुलहन तो कुलच्छिन निकली! कुकड़ी पर जरा भी खून नहीं लगा है.’’
‘‘आएं! क्या कह रही है तू?’’ दुलहन की सास बोली.‘‘हांहां मैं एकदम सही कह रही हूं, तुम्हारी बहू तो पहले से खेलीखाई निकली है. उस के कुंवारे होने के जरा भी लक्षण नहीं मिले हैं. यह बात समाज के पंचों को बतानी होगी, वरना जुल्म हो जावेगा.’’कमरे के भीतर नवविवाहित पतिपत्नी की बातें परिवार के दूसरे मर्दों के अलावा सांसी समाज के लोगों तक पहुंचते देर नहीं लगी. कमला पर तो मानो आफत ही आ गई. उसे सास सहित पति तक ने पूछा कि उस ने शादी से पहले किस के साथ रातें रंगीन कीं?

कौन उस का यार है? यह बात उस ने पहले क्यों नहीं बताई? इन सवालों के साथ कमला की बुरी तरह पिटाई भी हो गई.कमला ने बताया कि उस के साथ पड़ोस में रहने वाले एक युवक ने जबरदस्ती की थी. इसी के साथ उस ने अपने मातापिता की सौगंध खाई कि उस का किसी के साथ कोई नाजायज संबंध नहीं है. कमला का इतना कहना था कि परिवार के बुजुर्ग मर्दों ने तुरंत एक फरमान जारी कर दिया, ‘‘इस की पंचायत बुलाई जाएगी. उसी में तय हो पाएगा कि आगे दुलहन इस घर की बहू बनी रहेगी या फिर उसे हमेशा के लिए मायके भेज दिया जावेगा.’’

अगले रोज मोहल्ले के भादू माता मंदिर में सांसी समाज की पंचायत बुलाई गई. पंचायत में पंचों ने कमला को एक कोने में बैठा दिया. उस से सिर्फ हां या ना में जवाब देने को कहा गया. फिर पंचों के सवालों का जो सिलसिला शुरू हुआ, वह काफी शर्मसार करने वाला था.‘‘तुम्हारे साथ पति ने सैक्स किया?’’‘‘हां,’’ कमला सिर हिलाती हुए धीमे से बोली.‘‘तुम्हारी योनि से खून निकला?’’ एक पंच ने पूछा.‘‘नहीं.’’ कमला नीचीनिगाहें किए हुए ही बोली.‘‘पति के लिंग पर खून लगा था?’‘‘नहीं.’’‘‘क्यों नहीं था खून?’’
इस पर कमला ने कुछ भी जवाब नहीं दिया. एक पंच सवाल पूछने वाले पंच से बोला, ‘‘तुम भी गजब करते हो, जब खून निकला ही नहीं, तब कहां से खून लगा मिलेगा. यह पूछो इस ने पहली बार किस के साथ सैक्स किया?’’

‘‘अच्छा चलो, बताओ कि तुम ने पहले कहां सैक्स किया?’’ पंच ने अगला सवाल किया.
‘‘मेरे साथ रेप हुआ.’’ कमला ने बताया.‘‘किस ने किया?’’‘‘पड़ोसी ने?’’‘‘उस से तुम प्रेम करती थी?’’‘‘नहीं.’’‘‘वह तुम से प्रेम करता था?’’‘‘पता नहीं.’’कमला को पंचों के और भी बेशर्मी वाले सवालों के जवाब सभी के सामने देने पड़े. पंचायत में ससुराल वाले, औरतें, मर्द के अलावा मायके से आए हुए कुछ लोग भी थे. सभी को मालूम हो गया कि कमला कुंवारी नहीं है. वह शादी से पहले ही किसी के साथ सैक्स संबंध बना चुकी है. इस का मतलब परिवार के कुछ मर्दों ने लगाया कि वह सैक्स करने की पहले से अभ्यस्त रही है.

उस रोज पंचों ने इस गंभीर मामले को ले कर जो निर्णण लिए, उसे अगली पंचायत में सुनाने का फैसला लिया. हालांकि कमला के घर वालों ने भी पंचायत में अपनी बात रखी और कहा कि इस तरह की वारदातें बढ़ गई हैं. इस में कमला दोषी नहीं है. दोषी रेप करने वाला है. उस के खिलाफ 18 मई, 2022 को सुभाष नगर थाने में बलात्कार की शिकायत करने की भी उन्होंने पंचों को जानकारी दी.

अगली पंचायत 31 मई को दोबारा बैठी. उस रोज महत्त्वपूर्ण फैसला सुनाया गया, जो कमला और उस के मायके वालों के खिलाफ था. ससुराल में एक अनुष्ठान कराने की बात कही गई, जिस पर होने वाले खर्च के लिए 10 लाख का जुरमाना लगाया गया. इस पर कमला के घर वालों ने आपत्ति जताई और पंचायती फैसले के बारे में बागोर पुलिस से शिकायत कर दी.

पुलिस ने जांच में मामला सही पाया गया और फिर विवाहिता के पति और ससुर के खिलाफ बागोर थाने में रिपोर्ट दर्ज कर ली गई. इस मामले को भीलवाड़ा के डीएसपी सुरेंद्र कुमार ने गंभीरता से लिया और पंचायत पर परंपरा के नाम पर मानमानी करने का आरोप लगाते हुए आरोपियों के खिलाफ कानून को नजरंदाज करने से ले कर अभद्रता से पेश आने तक की धाराएं लगा दीं.इस की पुष्टि के लिए मंदिर के पुजारी, पंच और पंचायत में उपस्थित हुए अन्य लोगों के भी बयान लिए गए.

कमला के साथ हुए रेप का मामला भी भीलवाड़ा के सुभाषनगर थाने में दर्ज किया जा चुका था. उस में कमला की मां ने पड़ोसी युवक शाहिद रंगरेज पर बेटी से रेप करने का आरोप लगाया था.यह मामला नवंबर 2021 का था. रिपोर्ट के मुताबिक तब शाहिद ने कमला को इस बारे में किसी को भी नहीं बताने की धमकी दी थी. ऐसा करने पर उस के भाइयों की हत्या करवाने की धमकी दी थी. इस बारे में सुभाषनगर की थानाप्रभारी पुष्पा कसोटिया ने नए सिरे से जांच शुरू की. कसोटिया के मुताबिक शिकायत मिलने के बाद 23 मई, 2022 को कमला के साथ हुए रेप की एफआईआर दर्ज कर ली गई थी.

रिपोर्ट में 21 नवंबर, 2021 की वारदात का जिक्र किया गया. रिपोर्ट के अनुसार उस रोज कमला की मां अपने पति के साथ रिश्तेदारी में शादी में गई हुई थी. घर पर कमला और 2 बेटे थे. रात के समय कमला जब शौचालय गई थी, तब शाहिद ने उस के साथ रेप किया. शाहिद की धमकी की वजह से कमला चुप रही. इस के बाद उस की 11 मई, 2022 को शादी हो गई.रेप के मामले की वजह से कमला की जिंदगी दांव पर लग चुकी थी और उस के ससुराल वालों पर भी एक एफआईआर दर्ज हो चुकी थी. इसे देखते हुए सुभाषनगर थाने की पुलिस ने आरोपी शाहिद की गिरफ्तारी में जरा भी देरी नहीं की.

कथा लिखे जाने तक कमला अपने मायके में थी और ससुराल वालों के खिलाफ दर्ज मामले की गंभीरता से जांच जारी थी. यह मामला मीडिया में तेजी से फैलने के बाद महिला आयोग ने भी सक्रियता दिखाई. आयोग की अध्यक्ष रेहाना रियाज ने भीलवाड़ा एसपी आदर्श सिद्धू को पत्र लिख कर ‘कुकड़ी प्रथा’ में शामिल लोगों के खिलाफ सख्त काररवाई करने की मांग की.साथ ही दलित महिला संगठनों ने भी इस प्रथा के खिलाफ आवाज बुलंद करने के लिए अभियान चलाने की योजना बनाई है. एसपी ने कहा कि जातीय पंचायत कानूनी तौर पर गलत है.

निर्मला का ‘महान’ बयान

केंद्रीय वित्त मंत्री का एक प्रैस कौन्फ्रैंस में अपनी नीतियों को सही बताते हुए कहना कि- रुपए की कीमत नहीं गिरी है, रुपया कमजोर नहीं हुआ है, बल्कि डौलर मजबूत हो गया है- सोशल मीडिया पर चुटकुलों को एक नई जान दे गया है. निर्मला सीतारमन के इस ‘महान’ कथन से प्रेरणा ले कर सक्रिय जनों ने हजारों पर्याय बना दिए हैं. देश में भूखे ज्यादा नहीं हुए हैं, दूसरे देशों के लोग ज्यादा खाने लगे हैं; मैं देर तक नहीं सोया था, आप जल्दी उठ गए; हम मैच नहीं हारे, दूसरी टीम जीत गई थी; क्लाईमेट चेंज नहीं हुआ है, हम चेंज हो गए हैं; निर्माला सीतारमन: मैं बेवकूफ नहीं हूं, दूसरे बेवकूफ हैं जिन्होंने मुझे चुना आदि जैसे सैकड़ों मैसेज इंटरनैट पर दौडऩे लगे.

जहां यह आम लोगों की सूझबूझ को दर्शाता है, वहीं यह भी दिखाता है कि अब मोदी के मंत्रियों की अनापशनाप बोली को जनता सह नहीं पा रही है. अब हर मंत्री और यहां तक कि नरेंद्र मोदी के बयानों, भाषणों तक में चूक होने पर फटाफट मीम, वीडियो बन कर इंटरनैट पर छा जाते हैं.

ये धर्मभीरुओं व अंधभक्तों के इनबौक्सों में पहुंचते हैं या नहीं, लेकिन आमजन की यह प्रतिक्रिया यह जरूर दर्शाती है कि कम से कम तार्किक व मेहनती जनता अब नेताओं, सत्ताधारियों के जुमलों को सहने में अचकचा रही है और वोट के जरिए वह कुछ कर पाए या न कर पाए लेकिन ट्विटर, फेसबुक, यूट्यूब, इंस्टाग्राम पर अपनी भड़ास निकाल रही है और वह भी तुरंत.

अब तक यह काम भारतीय जनता पार्टी की सोशल मीडिया टीम, धर्म के धंधेबाज, आरएसएस के लाखों स्वयंसेवक व जाति के अहंकार में लिपटे लोग ही करते रहे हैं जो उस सनातन धर्म को दोबारा थोपना चाहते थे जिस में एक जाति के पास पैसा व पावर हो और बाकी सब सेवक हों या अंधविश्वासी भक्त. भाजपा ने न तो कभी दिल से दलितों के हक़ में सवाल उठाए न उन शूद्र, पिछड़ों के हक़ में जो उन के लठैत बन कर उत्पात मचाते रहे हैं.

अब सरकारी निकम्मेपन, धौंस, बुलडोजरी नीतियों से परेशान जनता का एक बड़ा वर्ग अपनी बात कहने के लिए खड़ा हो गया है और निर्मला सीतारमन उस की एक बड़ा निशाना बन गई हैं. यह वाक्य निर्मला सीतारमन को महीनों तक हौंट करता रहेगा, यह पक्का है.

वैसे निर्मला सीतारमन ने जो कहा वह गलत नहीं है पर जिस तरह से उसे अपने बचाव में कहां गया, वह गलत था. प्रैस कौन्फ्रैंस में आप इस तरह का जवाब दे कर उन पत्रकारों का तो मुंह बंद कर सकते हैं जो पौराणिक युग की वापसी में रातदिन एक कर रहे हैं लेकिन उन का नहीं जो देश को समृद्ध व सुखी ही नहीं, स्वतंत्र भी देखना चाहते हैं, जहां कानून का राज हो, 2 व्यक्तियों का नहीं, जहां महिलाओं के बलात्कारियों का हारों से स्वागत न हो.

वो भूली दास्तां: कुछ रिश्ते अजनबी ही रहने चाहिए

मोह भंग-भाग 1 : रिश्तों में सेंधमारी

बाहर फिर से बूंदाबांदी शुरू हो गर्ई थी. मर्ई महीने में इस बार गरमी और वर्षा आंखमिचौली खेल रही थी. सोच ही रही थी कि फोन की घंटी बज उठी. मेरा ध्यान घड़ी की ओर चला गया. ठीक 8 बजे थे. मैं ने फोन उठाया, ‘‘हां दीपक, मैं आ रही हूं. यह कह कर कमजोरी में मैं अपनेआप को चारों ओर से ढकते हुए बिस्तर से उठ गई.’’

सदे हुए कदमों से बाहर बरामदे में आ कर मैं ने देखा कि पुराना थैला चला गया था और नया थैला आ गया था. मैं ने दोनों हाथों से थैला उठाया और अंदर आ कर आवाज लगाई, ‘‘अन्नू बेटा, संजय खाना आ गया है, बाहर आ जाओ.’’

यों कह कर मैं मेज पर खाना जमाने लगी, 6 साल की अन्नू खूब चहक रही थी, फुलके, आलू की सब्जी, शिमला मिर्च, प्याजटमाटर, नमकीन और दही आया था. संजय चुपचाप कुरसी पर बैठ कर अपनी प्लेट लगाने लगे. खाना बहुत स्वादिष्ठ था.

संजय के चेहरे पर कई भाव आ रहे थे, पर कुछ बोल नहीं रहे थे. अन्नू खूब उछल रही थी, ‘‘मम्मी, यह किस होटल का खाना है. बहुत बढ़िया है.’’

मैं क्या जवाब देती, चुपचाप सब सामान समेट कर रसोर्ई में ले गई. बचा हुआ सामान फ्रिज में रखा और बरतन मांजने लगी, क्या करूं? शाम वाली बाई के पति को कोरोना हो गया था. सो, वह भी 3-4 दिन से नहीं आ रही थी. दोपहर में एक बाई जल्दीजल्दी झाड़ूपोंछा और कपड़े धो कर चली जाती थी.

टिफिन डब्बा साफ कर के मैं ने थैले सहित बाहर जाली वाले बरामदे में रख दिया. कल दोपहर में दीपक टिफिन वापस ले जाएगा. संजय अपने कमरे में चल गए और मैं दूसरे कमरे में आ गई. अन्नू अच्छी तरह मास्क लगा कर बैठती थी और मेरे पास भी नहीं आती थी. उसे सब समझा दिया था.

रात के 11 बज रहे थे, पर नींद तो मुझ से कोसों दूर थी. मैं इधरउधर करवटें बदल रही थी. कभी बाथरूम जाती तो कभी पानी के घूंट पी रही थी. मन में बहुत बेचैनी हो रही थी. घड़ी की सुइयां आगे बढ़ रही थी और मेरी जिंदगी की घड़ी पीछे की ओर झुक रही थी.

उन दिनों मैं एमबीए के दूसरे साल में पढ़ रही थी. 2-3 दिन से मम्मी की दाढ़ में बहुत दर्द हो रहा था. घरेलू इलाज करा रही थी, पर कुछ फायदा नहीं हुआ. सो, मुझ से बोली, ‘‘शीना, लगता है, डाक्टर के पास जाना ही पड़ेगा.’’

‘‘ठीक है मम्मी, मैं कालेज से आ कर आप को दिखा लाऊंगी,’’ मैं ने उन्हें सांत्वना दी.

कालेज के रास्ते में चौराहे पर एक डेंटिस्ट का बोर्ड देखती थी. सो, वहीं पर ले जाने का विचार कर लिया. मम्मी के कैप लगवानी थी. सो, मुझे कई बार मम्मी को डाक्टर के पास ले जाना पड़ा और इसी मिलनेमिलाने के चक्कर में डाक्टर मेरी आंखों में समा गया.

मम्मी का दर्द तो खत्म हो गया था, पर मेरे मन में दर्द उभर आया. मैं किसी न किसी बहाने से अस्पताल पहुंच जाती थी. मुझे देख कर संजय डाक्टर की आंखों में भी चमक आ जाती थी.

बातों ही बातों में पता चला कि संजय के 2 बच्चे हैं और अच्छी पत्नी है और संजय के पापा जानेमाने ठेकेदार हैं.

मैं एक लड़के से बहुत प्यार करती हूं लेकिन आजकल वो मुझसे नाराज है, क्या करूं?

सवाल

मैं 19 वर्षीय युवती हूं. एक लड़के से बहुत प्यार करती हूं. वह भी मुझे बहुत प्यार करता है पर आजकल मुझ से नाराज है. उस की नाराजगी की वजह भी मैं स्वयं हूं. दरअसल, वह थोड़ा शक्की स्वभाव का है. बातबात पर शक करता है. उस के इस व्यवहार से मैं बहुत परेशान हो गई थी.

बातबात पर वह मुझे कठघरे में खड़ा कर देता था. उसे सबक सिखाने के लिए मैं ने एक बेवकूफी भरा कदम उठाया. मैं ने एक लड़के से दोस्ती कर ली.

वह लड़का काफी शातिर निकला. उस ने बहलाफुसला कर मेरे साथ शारीरिक संबंध बना लिए और उस के बाद उस ने मुझ से बात करना भी बंद कर दिया. अपनी बचकाना हरकत के लिए मैं बहुत पछता रही हूं.

मेरा बौयफ्रैंड जो मेरी इतनी परवाह करता था अब मुझे भाव नहीं दे रहा. बताएं क्या करूं?

जवाब

अपने बौयफ्रैंड के शक्की स्वभाव से आप परेशान थीं तो इस के लिए आप उसे समझा सकती थीं कि दोस्ती में एकदूसरे पर भरोसा होना जरूरी है वरना दोस्ती आगे नहीं बढ़ती. आप ने नासमझी में जो गलती की उस के लिए आप को अपराधबोध हो रहा है. यही पर्याप्त है. अपने बौयफ्रैंड को मनाने का प्रयास करें. वह आप से प्यार करता है, इसलिए मान जाएगा. व्यर्थ चिंता न करें.

 

बुद्धू कहीं का- भाग 2 : कुणाल ने पैसे कमाने के लिए क्या किया?

‘’कुणाल, कल शाम को तुम ऑनलाइन नहीं थे ?’’

अब वह कैसे कहता कि उसका नेट पैक समाप्त हो गया था. और पैसाबचाने के लिये ही उसने रिचार्ज नहीं करवाया था.

“ मैं  नोट्स बनाने में लगा रहा और एक्जाम भी तो नजदीक हैं.  इसीलिये किताबों से सिर मार रहा था…’’

“बोर मत किया करो…हर समय पढाई ..पढाई …मेरी ओर देखो… मैं तुम्हें कितना मिस कर रही थी …कल मैंने नया हेयर कट करवाया  है …. देखो मेरे चेहरे पर सूट कर रहा है कि नहीं….

कुणाल ने सिर उठा कर उसकी ओर देखा तो देखता ही रह गया…..नया हेयर स्टाइल , कटे हुये सेट किये स्ट्रेट बाल …धनुषाकार ताजा तरीन सेट की हुई आईब्रो के नीचे बड़ी बड़ी आंखें जो हर समय कुछ बोलने को बेताब रहतीं थी … रेड टी शर्ट और व्हाइट पैंट में वह गजब ढा रही थी. वह एकटक उसे देखता ही रह गया था.

उसने छेड़ने के अंदाज में कहा, ‘’ये क्या तुमने अपने बालों का क्या हाल बना लिया , तुम्हारे कर्ली हेयर तो तुम्हारी पहचान थे …’’

“अच्छे नहीं लग रहे हैं… मुझे टीज कर रहे हो …मारूंगी तुम्हें…

स्ट्रेट तो सभी के होते हैं ,तुम्हारे तो घुंघराले घुंघराले बाल थे ….

हां ,कर्ली थे… मुश्किलों  में तो मम्मा से परमिशन और 2000 रु- मिले , तब तो इन्हें स्ट्रेट करवा पाई. वह अपने बालों पर अपने हाथों को फेरती है … मॉम कहती हैं कि केमिकल से बाल खराब हो जायेंगें …

वह गौर से उसकी बातें सुनता है… ‘’मॉम की बात तो सही है लेकिन स्ट्रेट करवाने की तुम्हें क्या जरूरत पड़ गई?  कर्ली बाल में तो तुम बहुत सुंदर लगती थीं’’.

“क्या कहा…तेरी वजह से तो मैंने अपने बाल स्ट्रेट करवाये…उस दिन पार्टी में तू निशू के बालों से अपनी नजर नहीं हटा रहा था ….मुझे इग्नोर कर रहा था , उसी दिन मैंने निश्चय कर लिया था कि मैं उसी की तरह अपनी हेयर स्टाइल बनवाऊंगीं….’’

“अरी पगली मेरी निगाह तो उसके ओपन बैक पर थी , बाल तो बहाना था … उस दिन उसने कितनी स्मार्ट ड्रेस पहन रखी थी … कट स्लीव ..हाइ नेक …तुम्हारी तरह फुल स्लीव और हाई नेक वह नहीं पहनती ..

Really, she was looking like a model.

वह नाराज होकर उसकी पीठ पर धौल जमा कर बोली ,’’जाओ…जाओ …उसी निशू की बाहों में खो जाओ… वह तुम्हारी तरफ निगाहें भी नहीं उठायेगी … पता है , इस साल का पांचवां ब्वायफ्रेंड होगा तू’’.. वह पैर पटकती हुई अपनी स्कूटी की ओर जाने लगी तो कुणाल ने उसके हाथ से स्कूटी की चाभी छीन ली और बोला , ‘’कहां जा रही हो? मैं तो तुम्हें यूं ही छेड़ रहा था  .।‘’

‘’कुणाल , एसाइनमेंट तुमने पूरा कर लिया ?’’

“हां यार ,कल रात भर जग कर तो पूरा किया है.‘’

“डियर ,तुम मेरी हेल्प कर दोगे ?’’

ना चाहते हुये भी संकोच और दोस्ती बचाने के लिये वह बैठ कर उसका साइनमेंट पूरा करता रहा और वह बैठ कर अपने मोबाइल पर किसी के साथ हंस हंस कर चैटिंग करती रही थी.वह मन ही मन खीझ रहा था लेकिन कुछ कह नहीं सकता था. आखिर वह उसकी गर्लफ्रेन्ड जो ठहरी …

एक दिन निया  क्लास में परेशान सी उखड़ी-उखड़ी सी बैठी हुई थी।

‘’क्या हुआ …तुम्हारा मूड क्यों खराब है?’’

“आज मेरा मूड बहुत खराब है. तुम क्लास में जाओ … मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो …’’

“मुंह से तो बोलो ..बता भी … मैं तेरी हेल्प कर दूंगा ..’’

“कल पार्लर गई तो मेरी सारी पॉकेट मनी स्वाहा  हो गई , मॉम से पैसे मांगे तो वह नाराज हो गईं .. अब बताओ मेरा फोन बंद पड़ा है … कैसे रिचार्ज हो…. तुम जाओ यार ‘’

“बस इतनी सी बात , मैं ऱिचार्ज करवा दूंगा। उसने दिलेर बनते हुये उसका फोन रिचार्ज करवा तो दिया लेकिन पैसा खर्च हो जाने पर चिंतित हो गया था.

वह निया के सामने एक मुखौटा लगाये रहना चाहता था , जिससे उसकी दोस्ती बनी रहे. वह यह दिखाना चाहता था कि वह उसके लिये कुछ भी कर सकता है.

“कुणाल , मेरा कब से मन था कि थियेटर में अमोल पालेकर का प्ले देखूं …प्लीज  टिकट बुक कर दो ‘’… उसके दिमाग में अपने जेब और बैंक के एकाउंट के पैसों के ऊपर उथल पुथल मची हुई थी .. उसने अपने दोस्त अन्वय से रुपये मांगे तो टिकट बुक करवाया था. वह निया के साथ पाने की कल्पना से बड़ा खुश और एक्साइटेड था. परंतु वह नहीं जानता था कि वह किस भंवरजाल में फंसता जा रहा था.वहां पर भी उसके दोस्त मिल गये थे …फिर कॉफी और बर्गर ,उसका तो बैण्ड बज गया ….

एक्जाम की डेट आ गई थी , वह उसी की तैयारी में लगा था कि मेसेन्जर पर नोटिफिकेशन आया तो वह बेचैन होकर तुरंत देखने लगा …’’My valentine… Happy Vallentine day’’

उसके दिल की धड़कन बढ़ गई थी , निया उसे मेरा वैलेन्टाइन कह रही थी, अब तो उसे कोई मंहगा सा गिफ्ट देना पड़ेगा. वह उस दिन उसे जबर्दस्ती पिक्चर देखनी है कह कर ,ले गई थी .. तुरंत 1000 रु खर्च हो गये. वह मन ही मन सोच रहा था कि निया को सामने क्यों शाहखर्च बन जाता है …आखिर उसे अपनी पॉकेट का वजन भी तो देखना चाहिये.

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