केंद्रीय वित्त मंत्री का एक प्रैस कौन्फ्रैंस में अपनी नीतियों को सही बताते हुए कहना कि- रुपए की कीमत नहीं गिरी है, रुपया कमजोर नहीं हुआ है, बल्कि डौलर मजबूत हो गया है- सोशल मीडिया पर चुटकुलों को एक नई जान दे गया है. निर्मला सीतारमन के इस ‘महान’ कथन से प्रेरणा ले कर सक्रिय जनों ने हजारों पर्याय बना दिए हैं. देश में भूखे ज्यादा नहीं हुए हैं, दूसरे देशों के लोग ज्यादा खाने लगे हैं; मैं देर तक नहीं सोया था, आप जल्दी उठ गए; हम मैच नहीं हारे, दूसरी टीम जीत गई थी; क्लाईमेट चेंज नहीं हुआ है, हम चेंज हो गए हैं; निर्माला सीतारमन: मैं बेवकूफ नहीं हूं, दूसरे बेवकूफ हैं जिन्होंने मुझे चुना आदि जैसे सैकड़ों मैसेज इंटरनैट पर दौडऩे लगे.
जहां यह आम लोगों की सूझबूझ को दर्शाता है, वहीं यह भी दिखाता है कि अब मोदी के मंत्रियों की अनापशनाप बोली को जनता सह नहीं पा रही है. अब हर मंत्री और यहां तक कि नरेंद्र मोदी के बयानों, भाषणों तक में चूक होने पर फटाफट मीम, वीडियो बन कर इंटरनैट पर छा जाते हैं.
ये धर्मभीरुओं व अंधभक्तों के इनबौक्सों में पहुंचते हैं या नहीं, लेकिन आमजन की यह प्रतिक्रिया यह जरूर दर्शाती है कि कम से कम तार्किक व मेहनती जनता अब नेताओं, सत्ताधारियों के जुमलों को सहने में अचकचा रही है और वोट के जरिए वह कुछ कर पाए या न कर पाए लेकिन ट्विटर, फेसबुक, यूट्यूब, इंस्टाग्राम पर अपनी भड़ास निकाल रही है और वह भी तुरंत.
अब तक यह काम भारतीय जनता पार्टी की सोशल मीडिया टीम, धर्म के धंधेबाज, आरएसएस के लाखों स्वयंसेवक व जाति के अहंकार में लिपटे लोग ही करते रहे हैं जो उस सनातन धर्म को दोबारा थोपना चाहते थे जिस में एक जाति के पास पैसा व पावर हो और बाकी सब सेवक हों या अंधविश्वासी भक्त. भाजपा ने न तो कभी दिल से दलितों के हक़ में सवाल उठाए न उन शूद्र, पिछड़ों के हक़ में जो उन के लठैत बन कर उत्पात मचाते रहे हैं.
अब सरकारी निकम्मेपन, धौंस, बुलडोजरी नीतियों से परेशान जनता का एक बड़ा वर्ग अपनी बात कहने के लिए खड़ा हो गया है और निर्मला सीतारमन उस की एक बड़ा निशाना बन गई हैं. यह वाक्य निर्मला सीतारमन को महीनों तक हौंट करता रहेगा, यह पक्का है.
वैसे निर्मला सीतारमन ने जो कहा वह गलत नहीं है पर जिस तरह से उसे अपने बचाव में कहां गया, वह गलत था. प्रैस कौन्फ्रैंस में आप इस तरह का जवाब दे कर उन पत्रकारों का तो मुंह बंद कर सकते हैं जो पौराणिक युग की वापसी में रातदिन एक कर रहे हैं लेकिन उन का नहीं जो देश को समृद्ध व सुखी ही नहीं, स्वतंत्र भी देखना चाहते हैं, जहां कानून का राज हो, 2 व्यक्तियों का नहीं, जहां महिलाओं के बलात्कारियों का हारों से स्वागत न हो.