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रणबीर कपूर की गोद में दिखी नन्ही परी, आलिया के फेस पर दिखा ग्लो

बॉलीवुड एक्ट्रेस आलिया भट्ट हाल ही में एक बेटी की मां बनी हैं, मां बनने के बाद से एक्ट्रेस सोशल मीडिया पर छाई हुईं हैं, मां बनने के बाद से लगातार बॉलीवुड से लेकर हॉलीवुड तक के स्टार उन्हें बधाई दे रहे हैं.

अब तो सिर्फ आलिया भट्ट के फैंस उनकी बेटी की एक झलक पाने के लिए परेशान हैं, मां बनने के बाद से आलिया ना तो सोशल मीडिया पर सामने आई है ना ही उनकी कोई तस्वीर सामने आई है लेकिन जब आलिया हॉस्पिटल से डिस्चार्ज होकर घर जा रही थी तब की उनकी तस्वीर सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रही है.

 

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वायरल हो रहे वीडियो में रणबीर कपूर गोद में बेटी को लिए नजर आ रहे हैं. हालांकि इस तस्वीर में बेटी का चेहरा साफ नजर नहीं आ रहा है. वह बेटी को पूरी तरह से ढ़के हुए हैं, हालांकि आलिया भट्ट की यह तस्वीर लोगों को खूब पसंद आ रही है. उनके फैंस का कहना है कि आलिया पहले से ज्यादा ग्लोविंग नजर आने लगी हैं.

आलिया और ऱणबीर के परिवार के लिए यह जश्न का माहौल है, कपूर परिवार से लेकर भट्ट परिवार तक खुशियां मना रहा है. दोनों परिवार के सदस्य आलिया से मिलने अस्पताल गए थें. वहीं जब नीतू कपूर से पूछा गया कि बेबी का चेहरा किसके जैसा दिखता है तो वह बोली कभी कहना मुश्किल है अभी वह बहुत छोटी  है.

आलिया और रणबीर कपूर  पेरेंट्स बनने के बाद से काफी खुश नजर आ रहे हैं.

मुख्य न्यायाधीश धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ होने का मतलब

देश की 50 वें मुख्य न्यायाधीश उच्चतम न्यायालय, धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ अपने आप में अलग इसलिए है कि आपने ऐसे ऐसे अनेक फैसले लिए हैं जिससे यह कहा जा सकता है कि आप सच्चे अर्थों में भारत के आम लोगों के जनमानस की आवाज बन कर देश के मुख्य न्यायाधीश की कुर्सी पर विराजमान हुए है. अपने ही पिता के लगभग 50 साल पहले दिए गए फैसले को बदलने और महिलाओं के अधिकार को लेकर के हौसले को देने के साथ-साथ हाल ही में दिल्ली में ट्विन टावर को गिराए जाने का फैसला भी आप ही के नाम दर्ज है. आज जो भारत की परिस्थितियां हैं निसंदेह वह और भी ज्यादा चुनौतीपूर्ण है और देश की उच्चतम न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश के रूप में देश आपकी और बड़ी ही आशाओं के साथ देख रहा है.
न्यायमूर्ति धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ ने 9 नवंबर को देश के 50वें प्रधान न्यायाधीश के रूप में शपथ ली है राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने राष्ट्रपति भवन के दरबार हाल में आयोजित एक समारोह 10 बजे उन्हें प्रधान न्यायाधीश की शपथ दिलाई . जैसा कि इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम की गरिमा के अनुरूप इस अवसर पर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण सहित अन्य लोग मौजूद थे.

प्रधान याधीश के रूप में न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ का कार्यकाल 10 नवंबर, 2024 तक रहेगा. न्यायमूर्ति लगभग 2 वर्ष तक देश के प्रधान न्यायाधीश के रूप में आगामी समय में अपनी सेवाएं देंगे. आपके संपूर्ण कार्य व्यवहार को देखकर आशा की जा सकती आने वाले समय में बहुतेरे फैसले ऐसे होंगे जो देश को लोकतंत्र को और भी ज्यादा मजबूत बनाएंगे आम लोगों अधिकारों की रक्षा करेंगे.

शपथ ग्रहण करने के तुरंत बाद न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा- “शब्दों से नहीं, काम करके दिखाएंगे. आम आदमी के लिए काम करेंगे. बड़ा मौका है, बड़ी जिम्मेदारी है. आम आदमी की सेवा करना मेरी प्राथमिकता है. आगे आप देखते जाइए, हम चाहे तकनीकी रिफार्म हो, रजिस्ट्री रिफार्म हो, ज्यूडिशियल रिफार्म हो, उसमें नागरिक को प्राथमिकता देंगे.”

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने शपथ ग्रहण करने के बाद सुप्रीम कोर्ट परिसर में लगी महात्मा गांधी की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया.न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि आप धैर्य से सुनवाई करते हैं. देश ने देखा कि किस तरह कुछ दिन पहले न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने लगातार दस घंटे तक सुनवाई की थी. और बात नहीं किया कहा था कि काम ही तो ईश्वर की पूजा है जिससे आपके संपूर्ण दर्शन को समझा जा सकता है.
कानून और न्याय प्रणाली की अलग समझ की वजह से यहां आपको यह जानना बहुत जरूरी है कि न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने दो बार अपने पिता पूर्व प्रधान न्यायाधीश यशवंत विष्णु चंद्रचूड़ के फैसलों को भी पलटा है. जिसमें सबसे महत्वपूर्ण है इंदिरा गांधी के शासन काल में जब इमरजेंसी लगाई गई थी तो आम लोगों के मौलिक अधिकारों को स्थगित कर दिया गया था जिस पर उनके पिता ने मुहर लगाई थी मगर जब समय आया तो आपने अपने पिता के फैसले को पलट दिया और यह फैसला दिया कि किसी भी हालत में संविधान द्वारा दिए गए निजता के मौलिक अधिकार को स्थगित नहीं किया जा सकता.

इसी तरह गर्भपात को लेकर के आपका फैसला क्रांतिकारी माना जा रहा है जो पहले के फैसलों और पूर्व कानून के वितरित है. इस संदर्भ में अपने निर्णय में उन्होंने अविवाहित महिलाओं के 24 हफ्ते तक के गर्भपात की मांग के अधिकारों को बरकरार रखने वाला दिया था. वे उस संविधान पीठ का भी हिस्सा रहे, जिसने सहमति से समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया और अनुच्छेद 21 के तहत निजता को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी है. वे सबरीमाला मंदिर में प्रवेश करने के लिए सभी उम्र की महिलाओं के अधिकार को बरकरार रखने वाले फैसले का हिस्सा भी रहे.

राहें जुदा जुदा : क्या रिश्ता था निशा और मयंक का

‘‘निशा….’’ मयंक ने आवाज दी. निशा एक शौपिंग मौल के बाहर खड़ी थी, तभी मयंक की निगाह उस पर पड़ी. निशा ने शायद सुना नहीं था, वह उसी प्रकार बिना किसी प्रतिक्रिया के खड़ी रही. ‘निशा…’ अब मयंक निशा के एकदम ही निकट आ चुका था. निशा ने पलट कर देखा तो भौचक्की हो गई. वैसे भी बेंगलुरु में इस नाम से उसे कोई पुकारता भी नहीं था. यहां तो वह मिसेज निशा वशिष्ठ थी. तो क्या यह कोई पुराना जानने वाला है. वह सोचने को मजबूर हो गई. लेकिन फौरन ही उस ने पहचान लिया. अरे, यह तो मयंक है पर यहां कैसे?

‘मयंक, तुम?’ उस ने कहना चाहा पर स्तब्ध खड़ी ही रही, जबान तालू से चिपक गई थी. स्तब्ध तो मयंक भी था. वैसे भी, जब हम किसी प्रिय को बहुत वर्षों बाद अनापेक्षित देखते हैं तो स्तब्धता आ ही जाती है. दोनों एकदूसरे के आमनेसामने खड़े थे. उन के मध्य एक शून्य पसरा पड़ा था. उन के कानों में किसी की भी आवाज नहीं सुनाई दे रही थी. ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो पूरा ब्रह्मांड ही थम गया हो, धरती स्थिर हो गई हो. दोनों ही अपलक एकदूसरे को निहार रहे थे. तभी ‘एक्सक्यूज मी,’ कहते हुए एक व्यक्ति दोनों के बीच से उन्हें घूरता हुआ निकल गया. उन की निस्तब्धता भंग हो गई. दोनों ही वर्तमान में लौट आए.

‘‘मयंक, तुम यहां कैसे? क्या यहां पोस्टेड हो?’’ निशा ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘नहीं, मेरी कंपनी की ओर से एक सैमिनार था उसी को अटैंड करने आया हूं. तुम बताओ, कैसी हो, निशा,’’ उस ने तनिकआर्द्र स्वर में पूछा.

‘‘क्यों, कैसी लग रही हूं?’’ निशा ने थोड़ा मुसकराते हुए नटखटपने से कहा.

अब मयंक थोड़ा सकुंचित हो गया. फिर अपने को संभाल कर बोला, ‘‘यहीं खड़ेखड़े सारी बातें करेंगे या कहीं बैठेंगे भी?’’

‘‘हां, क्यों नहीं, चलो इस मौल में एक रैस्टोरैंट है, वहीं चल कर बैठते हैं.’’ और मयंक को ले कर निशा अंदर चली गई. दोनों एक कौर्नर की टेबल पर

बैठ गए. धूमिल अंधेरा छाया हुआ था. मंदमंद संगीत बज रहा था. वेटर को मयंक ने 2 कोल्ड कौफी विद आइसक्रीम का और्डर दिया.

‘‘तुम्हें अभी भी मेरी पसंदनापंसद याद है,’’ निशा ने तनिक मुसकराते हुए कहा.

‘‘याद की क्या बात है, याद तो उसे किया जाता है जिसे भूल जाया जाए. मैं अब भी वहीं खड़ा हूं निशा, जहां तुम मुझे छोड़ कर गई थीं,’’ मयंक का स्वर दिल की गहराइयों से आता प्रतीत हो रहा था. निशा ने उस स्वर की आर्द्रता को महसूस किया किंतु तुरंत संभल गई और एकदम ही वर्षों से बिछड़े हुए मित्रों के चोले में आ गई.

‘‘और सुनाओ मयंक, कैसे हो? कितने वर्षों बाद हम मिल रहे हैं. तुम्हारा सैमिनार कब तक चलेगा. और हां, तुम्हारी पत्नी तथा बच्चे कैसे हैं?’’ निशा ने प्रश्नों की झड़ी लगा दी.

‘‘उफ, निशा थोड़ी सांस तो ले लो, लगातार बोलने वाली तुम्हारी आदत अभी तक गई नहीं,’’ मयंक ने निशा को चुप कराते हुए कहा.

‘अच्छा बाबा, अब कुछ नही बोलूंगी, अब तुम बोलोगे और मैं सुनूंगी,’’ निशा ने उसी नटखटपने से कहा.

मयंक देख रहा था आज 25 वर्षों बाद दोनों मिल रहे थे. उम्र बढ़ चली थी दोनों की पर 45 वर्ष की उम्र में भी निशा के चुलबुलेपन में कोई भी कमी नहीं आई थी जबकि मयंक पर अधेड़ होने की झलक स्पष्ट दिख रही थी. वह शांत दिखने का प्रयास कर रहा था किंतु उस के मन में उथलपुथल मची हुई थी. वह बहुतकुछ पूछना चाह रहा था. बहुतकुछ कहना चाह रहा था. पर जबान रुक सी गई थी.

शायद निशा ने उस के मनोभावों को पढ़ लिया था, संयत स्वर में बोली, ‘‘क्या हुआ मयंक, चुप क्यों हो? कुछ तो बोलो.’’

‘‘अ…हां,’’ मयंक जैसे सोते से जागा, ‘‘निशा, तुम बताओ क्या हालचाल हैं तुम्हारे पति व बच्चे कैसे हैं? तुम खुश तो हो न?’’

निशा थोड़ी अनमनी सी हो गई, उस की समझ में नहीं आ रहा था कि मयंक के प्रश्नों का क्या उत्तर दे. फिर अपने को स्थिर कर के बोली, ‘‘हां मयंक, मैं बहुत खुश हूं. आदित्य को पतिरूप में पा कर मैं धन्य हो गई. बेंगलुरु के एक प्रतिष्ठित, संपन्नपरिवार के इकलौते पुत्र की वधू होने के कारण मेरी जिंदगी में चारचांद लग गए थे. मेरे ससुर का साउथ सिल्क की साडि़यों का एक्सपोर्ट का व्यवसाय था. कांजीवरम, साउथ सिल्क, साउथ कौटन, बेंगलौरी सिल्क मुख्य थे. एमबीए कर के आदित्य भी उसी व्यवसाय को संभालने लगे. जब मैं ससुराल में आई तो बड़ा ही लाड़दुलार मिला. सासससुर की इकलौती बहू थी, उन की आंखों का तारा थी.’’

‘‘विवाह के 15 दिनों बाद मुझे थोड़ाथोड़ा चक्कर आने लगा था और जब मुझे पहली उलटी हुई तो मेरी सासूमां ने मुझे डाक्टर को दिखाया. कुछ परीक्षणों के बाद डाक्टर ने कहा, ‘खुशखबरी है मांजी, आप दादी बनने वाली हैं. पूरे घर में उत्सव का सा माहौल छा गया था. सासूमां खुशी से फूली नहीं समा रही थीं. बस, आदित्य ही थोड़े चुपचुप से थे. रात्रि में मुझ से बोले,’ ‘निशा, मैं तुम्हारा हृदय से आभारी हूं.’

‘क्यों.’

मैं चौंक उठी.

‘क्योंकि तुम ने मेरी इज्जत रख ली. अब मैं भी पिता बन सकूंगा. कोई मुझे भी पापा कहेगा,’ आदित्य ने शांत स्वर में कहा.

‘‘मैं अपराधबोध से दबी जा रही थी क्योंकि यह बच्चा तुम्हारा ही था. आदित्य का इस में कोई भी अंश नहीं था. फिर भी मैं चुप रही. आदित्य ने तनिक रुंधी हुई आवाज में कहा, ‘निशा, मैं एक अधूरा पुरुष हूं. जब 20 साल का था तो पता चला मैं संतानोत्पत्ति में अक्षम हूं, जब दोस्त लोग लड़की के पास ले गए, अवसर तो मिला था पर उस से वहां पर कुछ ज्यादा नहीं हो सका. नहीं समझ पाता हूं कि नियति ने मेरे साथ यह गंदा मजाक क्यों किया? मांपापा को यदि यह बात पता चलती तो वे लोग जीतेजी मर जाते और मैं उन्हें खोना नहीं चाहता था. मुझ पर विवाह के लिए दबाव पड़ने लगा और मैं कुछ भी कह सकने में असमर्थ था. सोचता था, मेरी पत्नी के प्रति यह मेरा अन्याय होगा और मैं निरंतर हीनता का शिकार हो रहा था.

‘मैं ने निर्णय ले लिया था कि मैं विवाह नहीं करूंगा किंतु मातापिता पर पंडेपुजारी दबाव डाल रहे थे. उन्हें क्या पता था कि उन का बेटा उन की मनोकामना पूर्र्ण करने में असमर्थ है. और फिर मैं ने उन की इच्छा का सम्मान करते हुए विवाह के लिए हां कर दी. सोचा था कि घरवालों का तो मुंह बंद हो जाएगा. अपनी पत्नी से कुछ भी नहीं छिपाऊंगा. यदि उसे मुझ से नफरत होगी तो उसे मैं आजाद कर दूंगा. जब तुम पत्नी बन कर आई तब मुझे बहुत अच्छी लगी. तुम्हारे रूप और भोलेपन पर मैं मर मिटा. ‘हिम्मत जुटा रहा था कि तुम्हें इस कटु सत्य से अवगत करा दूं किंतु मौका ही न मिला और जब मुझे पता चला कि तुम गर्भवती हो तो मैं समझ गया कि यह शिशु विवाह के कुछ ही समय पूर्व तुम्हारे गर्भ में आया है. अवश्य ही तुम्हारा किसी अन्य से संबंध रहा होगा. जो भी रहा हो, यह बच्चा मुझे स्वीकार्य है.’ कह कर आदित्य चुप हो गए और मैं यह सोचने पर बाध्य हो गई कि मैं आदित्य की अपराधिनी हूं या उन की खुशियों का स्रोत हूं. ये किस प्रकार के इंसान हैं जिन्हें जरा भी क्रोध नहीं आया. किसी परपुरुष के बच्चे को सहर्ष अपनाने को तैयार हैं. शायद क्षणिक आवेग में किए गए मेरे पाप की यह सजा थी जो मुझे अनायास ही विधाता ने दे दी थी और मेरा सिर उन के समक्ष श्रद्धा से झुक गया.

‘‘9 माह बाद प्रसून का जन्म हुआ. आदित्य ने ही प्रसून नाम रखा था. ठीक भी था, सूर्य की किरणें पड़ते ही फूल खिल उठते हैं, उसी प्रकार आदित्य को देखते ही प्रसून खिल उठता था. हर समय वे उसे अपने सीने से लगाए रखते थे. रात्रि में यदि मैं सो जाती थी तो भी वे प्रसून की एक आहट पर जाग जाते थे. उस की नैपी बदलते थे. मुझ से कहते थे, ‘मैं प्रसून को एयरफोर्स में भेजूंगा, मेरा बेटा बहुत नाम कमाएगा.’ ‘‘मेरे दिल में आदित्य के लिए सम्मान बढ़ता जा रहा था, देखतेदखते 15 वर्ष बीत चुके थे. मैं खुश थी जो आदित्य मुझे पतिरूप में मिले. लेकिन होनी को शायद कुछ और ही मंजूर था. अकस्मात एक दिन एक ट्रक से उन की गाड़ी टकराई और उन की मौके पर ही मौत हो गई. तब प्रसून 14 वर्ष का था.’’

मयंक निशब्द निशा की जीवनगाथा सुन रहा था. कुछ बोलने या पूछने की गुंजाइश ही नहीं रह गई थी. क्षणिक मौन के बाद निशा फिर बोली, ‘‘आज मैं अपने बेटे के साथ अपने ससुर का व्यवसाय संभाल रही हूं. प्रसून एयरफोर्स में जाना नहीं चाहता था, अब वह 25 वर्ष का होने वाला है. उस ने एमबीए किया और अपने पुश्तैनी व्यवसाय में मेरा हाथ बंटा रहा है या यों कहो कि अब सबकुछ वही संभाल रहा है.’’ थोड़ी देर की चुप्पी के बाद मयंक ने मुंह खोला, ‘‘निशा, तुम्हें अतीत की कोई बात याद है?’’

‘‘हां, मयंक, सबकुछ याद है जब तुम ने मेरे नाम का मतलब पूछा था और मैं ने अपने नाम का अर्थ तुम्हें बताया, ‘निशा का अर्र्थ है रात्रि.’ तुम मेरे नाम का मजाक बनाने लगे तब मैं ने तुम से पूछा, ‘आप को अपने नाम का अर्थ पता है?’

‘‘तुम ने बड़े गर्व से कहा, ‘हांहां, क्यों नहीं, मेरा नाम मयंक है जिस का अर्थ है चंद्रमा, जिस की चांदनी सब को शीतलता प्रदान करती है’ बोलो याद है न?’’ निशा ने भी मयंक से प्रश्न किया. मयंक थोड़ा मुसकरा कर बोला, ‘‘और तुम ने कहा था, ‘मयंक जी, निशा है तभी तो चंद्रमा का अस्तित्व है, वरना चांद नजर ही कहां आएगा.’ अच्छा निशा, तुम्हें वह रात याद है जब मैं तुम्हारे बुलाने पर तुम्हारे घर आया था. हमारे बीच संयम की सब दीवारें टूट चुकी थीं.’’ मयंक निशा को अतीत में भटका रहा था. ‘‘हां,’’ तभी निशा बोल पड़ी, ‘‘प्रसून उस रात्रि का ही प्रतीक है. लेकिन मयंक, अब इन बातों का क्या फायदा? इस से तो मेरी 25 वर्षों की तपस्या भंग हो जाएगी. और वैसे भी, अतीत को वर्तमान में बदलने का प्रयास न ही करो तो बेहतर होगा क्योंकि तब हम न वर्तमान के होंगे, न अतीत के, एक त्रिशंकु बन कर रह जाएंगे. मैं उस अतीत को अब याद भी नहीं करना चाहती हूं जिस से हमारा आज और हमारे अपनों का जीवन प्रभावित हो. और हां मयंक, अब मुझ से दोबारा मिलने का प्रयास मत करना.’’

‘‘क्यों निशा, ऐसा क्यों कह रही हो?’’ मयंक विचलित हो उठा.

‘‘क्योंकि तुम अपने परिवार के प्रति ही समर्पित रहो, तभी ठीक होगा. मुझे नहीं पता तुम्हारा जीवन कैसा चल रहा है पर इतना जरूर समझती हूं कि तुम्हें पा कर तुम्हारी पत्नी बहुत खुश होगी,’’ कह कर निशा उठ खड़ी हुई.

मयंक उठते हुए बोला, ‘‘मैं एक बार अपने बेटे को देखना चाहता हूं.’’

‘‘तुम्हारा बेटा? नहीं मयंक, वह आदित्य का बेटा है. यही सत्य है, और प्रसून अपने पिता को ही अपना आदर्श मानता है. वह तुम्हारा ही प्रतिरूप है, यह एक कटु सत्य है और इसे नकारा भी नहीं जा सकता किंतु मातृत्व के जिस बीज का रोपण तुम ने किया उस को पल्लवित तथा पुष्पित तो आदित्य ने ही किया. यदि वे मुझे मां नहीं बना सकते थे, तो क्या हुआ, य-पि वे खुद को एक अधूरा पुरुष मानते थे पर मेरे लिए तो वे परिपूर्ण थे. एक आदर्श पति की जीवनसंगिनी बन कर मैं खुद को गौरवान्वित महसूस करती हूं. मेरे अपराध को उन्होंने अपराध नहीं माना, इसलिए वे मेरी दृष्टि में सचमुच ही महान हैं. ‘‘प्रसून तुम्हारा अंश है, यह बात हम दोनों ही भूल जाएं तो ही अच्छा रहेगा. तुम्हें देख कर वह टूट जाएगा, मुझे कलंकिनी समझेगा. हजारों प्रश्न करेगा जिन का कोई भी उत्तर शायद मैं न दे सकूंगी. अपने पिता को अधूरा इंसान समझेगा. युवा है, हो  सकता है कोई गलत कदम ही उठा ले. हमारा हंसताखेलता संसार बिखर जाएगा और मैं भी कलंक के इस विष को नहीं पी सकूंगी. तुम्हें वह गीत याद है न ‘मंजिल वही है प्यार की, राही बदल गए…’

‘‘भूल जाओ कि कभी हम दो जिस्म एक जान थे, एक साथ जीनेमरने का वादा किया था. उन सब के अब कोई माने नहीं है. आज से हमारी तुम्हारी राहें जुदाजुदा हैं. हमारा आज का मिलना एक इत्तफाक है किंतु अब यह इत्तफाक दोबारा नहीं होना चाहिए,’’ कह कर उस ने अपना पर्स उठाया और रैस्टोरैंट के गेट की ओर बढ़ चली. तभी मयंक बोल उठा, ‘‘निशा…एक बात और सुनती जाओ.’’ निशा ठिठक गई. ‘‘मैं ने विवाह नहीं किया है, यह जीवन तुम्हारे ही नाम कर रखा है.’’ और वह रैस्टोरैंट से बाहर आ गया. निशा थोड़ी देर चुप खड़ी रही, फिर किसी अपरिचित की भांति रैस्टोरैंट से बाहर आ गई और दोनों 2 विपरीत दिशाओं की ओर मुड़ गए.

चलतेचलते निशा ने अंत में कहा, ‘‘मयंक, इतने जज्बाती न बनो. अगर कोई मिले तो विवाह कर लेना, मुझे शादी का कार्ड भेज देना ताकि मैं सुकून से जी सकूं.’’

मैं जानना चाहता हूं कि फोरप्ले किसे कहते हैं, सैक्स में इसका क्या महत्व है?

सवाल
मैं जानना चाहता हूं कि फोरप्ले किसे कहते हैं? सैक्स में इसका क्या महत्व है?

जवाब
सैक्स की इच्छा जगाने, हमबिस्तरी को ज्यादा मजेदार बनाने और 2 लोगों को एकदूसरे के नजदीक लाने में फोरप्ले मददगार होता है. फोरप्ले से दोनों पार्टनर हमबिस्तरी के लिए बेहतर ढंग से तैयार हो पाते हैं. इस में एकदूसरे को चूमना, नाजुक हिस्सों जैसे होंठ, जांघ वगैरह को छूना शामिल होता है. इस से उन में झिझक कम होती है और आपसी भरोसा बढ़ता है.

कोई कार में सेक्स करने के बारे में कैसे सोच सकता है? वहां जगह की कमी होती है, चलती गाड़ी हिचकोले भी खाती है, जिससे रगड़ लगने का भी डर रहता है और तो और पकड़े जाने का खतरा, वो अलग. इस सबके बावजूद सन 1930 से, मतलब कि जब से गाड़ियों की पिछली सीटें गद्दीदार हुई हैं, तब से लड़के-लड़कियां उस पर कूदे जा रहे हैं.

वैसे तो पिछली शताब्दी में खड़ी गाड़ियां कई गरमा-गर्म मुलाकातों का पसंदीदा स्थान रहा करती थी, लेकिन आजकल के युवा इस बारे में क्या सोचते हैं इस बारे में ज्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं  थी.

अमेरिकी शोधकर्ताओं के एक दल को लगा कि इस विषय पर और शोध की ज़रुरत है और इस बारे में और जानने के लिए उन्होंने 700 कौलेज विद्यार्थियों से ‘कार में  सेक्स’ के उनके अनुभवों के बारे में बात की.

शोधकर्ताओं ने उनसे तरह तरह के सवाल पूछे, जैसे कि उन्होंने कार में सेक्स क्यों किया, और क्या वो उस समय अपने दीर्घकालिक साथी के साथ थे या फिर वो केवल एक बार की मुलाकात थी. वो यह भी जानना चाहते थे कि उन लोगों के बीच किस तरह का सेक्स हुआ और वो अनुभव अच्छा था या बुरा. उनको इस बात की उत्सुकता थी कि उन्होंने गाड़ी के कौनसे हिस्से में सेक्स किया और उस समय उनकी गाड़ी कहां पार्क थी.

पिछली सीट पर सेक्स

60 प्रतिशत विद्यार्थियों ने कार में सेक्स किया हुआ था. लगभग 15% की तो कौमार्यता भी गाड़ी में ही भंग हुई थी. कार आमतौर पर ग्रामीण इलाकों में खड़ी की जाती थी और लगभग 60 प्रतिशत मौकों पर ‘मौका-ए-वारदात’ गाड़ी की पिछली सीट थी.

वैसे तो योनि संभोग ही सबसे लोकप्रिय था लेकिन जननांग स्पर्श और मुखमैथुन के किस्से भी शोधकर्ताओं की नजर में आये थे. हालांकि इन पर बिताया गया समय आधे घंटे से कम ही था. अधिकांश छात्र गाड़ी में अपने दीर्घकालिक साथी के साथ या किसी ऐसे के साथ थे जिनके साथ वो एक गंभीर रिश्ते में थे. शायद अध्ययन में सम्मिलित हुए छात्र गाड़ी में अनौपचारिक सेक्स ज्यादा पसंद नहीं करते थे, या फिर शायद उन्हें अनौपचारिक सेक्स ही पसंद नहीं था.

रुका ना जाए भइया!

तो ऐसी क्या मजबूरी थी कि अपने घर के आरामदायक गद्दों और बैडरूम को छोड़कर यह लोग गाड़ी में सेक्स कर रहे थे? ज्यादातर लोगों के लिए यह कामुक जोश से ज्यादा नहीं था. कम से कम 85 प्रतिशत छात्रों का कहना था कि वो या उनका साथी एकदम से कामोत्तेजित हो गए थे और ऐसे समय में यह नहीं देखा जाता कि आप कहां है. यहां यह याद रखना भी जरूरी है कि आधे से ज्यादा छात्रों ने यह भी स्वीकारा था कि असल में उनके पास और कोई जगह भी नहीं थी.

हालांकि महिलाओं की तुलना में पुरुषों को ओर्गास्म का सुख अधिक नसीब हुआ था लेकिन मजा तो दोनों को ही आया था. तो शोधकर्ताओं को यह जानकर कतई आश्चर्य नहीं हुआ कि अजीब परिस्थितियों, कम जगह, पकड़े जाने के जोखिम, और टेढ़ी-मेढ़ी मुद्राओं के बावजूद, अधकांश लोगों की लिए यह अनुभव मजेदार ही रहा था. जाहिर है कि अगर किसी पुलिसवाले ने आपको रंगे हाथों पकड़ लिया, जैसा कि लगभग 10 प्रतिशत छात्रों के साथ हुआ भी था, तो आपके लिए यह अनुभव कटु अनुभव ही रहेगा, लेकिन उसके साथ-साथ यादगार भी रहेगा.

अनुभव : शांता को अपनी पति से क्या शिकायत थी

शादी क्या की, उन की खरीदी हुई गुलाम हो गई. जब जी में आया फोन कर देंगे, ‘डार्लिंग, आज कुछ लोगों को डिनर पर बुलाया है, खाना तैयार रखना.’ कभी कोई कोलाबा से आ रहा है तो कोई अंधेरी से. जब कहती हूं, मैं तुम्हारे बच्चे को संभालूं या खाना बनाऊं तो बड़े प्यार से कहेंगे, ‘डार्लिंग, तुम खाना ही इतना अच्छा बनाती हो कि बस, खाने वाले उंगलियां चाटते रह जाते हैं. रोहन को मैं आ कर संभाल लूंगा.’ अब मैं क्या बताऊं, लीना के यहां 3 और निर्मला के यहां 2 नौकर हैं. यहां तक कि दांत से पैसा पकड़ने वाली उमा के यहां भी चौबीसों घंटे काम करने के लिए आया है और बाजार के काम के लिए एक लड़का अलग. और एक हम हैं कि दिनरात काम की चक्की में पिसते रहते हैं.

जनाब को औफिस जाना है, सुबह 7 बजे नाश्ता चाहिए. खाना घर से बन कर जाएगा. और दिनभर रोहन का काम अलग, नहलाना, धुलाना, खिलाना, पिलाना. एक मिनट की भी फुरसत नहीं मिलती. जब कहती हूं, बच्चा संभालने को एक आया ही रख लो तो मुसकरा कर टाल जाते हैं. इन का बस चले तो ये चौकाबरतन करने वाली को भी निकाल बाहर करें. ठीक है, जब शादी की थी तब प्राइवेट कंपनी में सीए थे. शिवाजीनगर में छोटे से फ्लैट में रहते थे लेकिन आज बांद्रा में अपना 4 कमरों का फ्लैट है. घर में टैलीविजन, फ्रिज, कार है और खुद का अपना औफिस है. शादी के 7 सालों में तरक्की तो बहुत की, लेकिन सोच वही है.

अब कहती हूं कि  आप गाड़ी के लिए कोई शोफर क्यों नहीं रख लेते तो झट कहेंगे ‘डार्लिंग, तुम गाड़ी चलाना क्यों नहीं सीख लेतीं? अमेरिका में भी तो लोगों को नौकर नहीं मिलते. अपना काम खुद ही करना चाहिए.’ दिल जल कर खाक हो जाता है. आखिर तरक्की का मतलब ही क्या, जब इंसान अपना स्टैंडर्ड भी मेंटेन न रख सके. पड़ोसी क्या सोचेंगे, कम से कम इतना तो समझना चाहिए. शांता के कदम तेजी से सड़क पर बढ़तेबढ़ते अचानक पार्क की चारदीवारी के पास आ कर थम गए. वह घर से इतनी दूर चली आई, पर सोचा ही नहीं कि  जाना कहां है. वह गुस्से में रोहन को उमा के यहां छोड़ कर चल पड़ी. ठीक है, थोड़ा वक्त पार्क में ही काटा जाए. वे घर पहुंचेंगे तो अपनेआप रोहन को संभालेंगे. आखिर हद होती है हर बात की. पता चलेगा बच्चे को कैसे पालते हैं. और रोहन भी तो कितना शैतान हो गया है, बिलकुल बाप पर गया है.

शांता पार्क में दाखिल हुई और दोनों तरफ बनी पत्थर की बैंचों के बीच तेज कदमों से चलती हुई पार्क के बीचोंबीच बने गोलाकार घेरे तक आ पहुंची. ‘ओह, कितनी उमस है, फौआरा भी टूट गया है.’एक बार वह कई वर्षों पहले इसी पार्क में अपने पति के साथ आई थी. उस समय भी यही चने वाला दरवाजे के सामने बैठता था. लेकिन सूरज डूबने से पहले आज वह यहां पहली बार आई है.  शांता अनमनी सी हरे रंग की एक खाली आधी टूटी बैंच पर जा बैठी. टूटे हुए फौआरे के चारों तरफ लकड़ी की 7 बैंचें पड़ी हैं. सभी बैंचें भरी हुई हैं. ज्यादातर बैंचों पर वक्त गुजारने की गरज से इकट्ठे हुए रिटायर वृद्धों की जमात विराजमान है. आखिर इन्हें करना भी क्या है? जाना ही कहां है?बच्चे कहीं बैडमिंटन खेल रहे हैं तो कहीं क्रिकेट. बाईं ओर हरीहरी दूब में कई जोड़े दुनिया से बेखबर अपनेआप में खोए हुए हैं. लगता है, मुंबई में रोमांस के लिए इस से बढि़या कोई जगह नहीं है. आसमान पर छाई लाली पर अंधेरा मंडराने लगा है.  हवा थम गई है. शांता को लगा पसीना उस के ललाट से चू कर कपोल तक आ जाएगा. अजीब उमस है.

‘टाइगर, टाइगर’ की आवाज, फिर कुत्ते की भौंभौं और फिर दबी गुर्राहट. शांता ने दायीं ओर देखा. पार्क के दूसरे गेट से एक नौकरानी कुत्ते को हवाखोरी के लिए लाई थी. कुत्ता इधरउधर बेकाबू हो कर भाग रहा था और लड़की थी कि उस की जंजीर पकड़ने के लिए उस के पीछेपीछे भाग रही थी.

शांता ने ठंडी सांस ली. काश, यह नजारा कोई हमारे उन को दिखाए. लोग कुत्तों की हवाखोरी के लिए भी नौकरनौकरानियां रखते हैं और एक हमारे पति हैं जो 5,000 रुपए की साड़ी तो खुशीखुशी ला देंगे, लेकिन नौकर का जिक्र छेड़ते ही मुंह बना लेंगे. आखिर पैसा होता किसलिए है? आराम के लिए न. कांवकांव करता हुआ एक कौआ पास वाले बिजली के खंभे पर आ बैठा. शांता ने पीछे नजर घुमाई. उस के पीछे 2 झूले लगे हैं, जिन पर रंगबिरंगे कपड़े पहने बच्चे झूल रहे हैं. साड़ी पहने, बालों को बड़े फैशन से सजाए बनीठनी एक आया लाल प्रैम में एक गोलमटोल बच्चे को बिठाए उसी तरफ बढ़ रही है. बच्चा खुशीखुशी हाथपैर मार रहा है, किलकारी मार रहा है. कितना प्यारा बच्चा है. एकदम नन्हा गुलाब. रोहन भी जब इतना बड़ा था, ठीक ऐसा ही था. आया ने प्रैम खड़ी कर दी और दूसरे बच्चों को ले कर आई, पहले से जमा अपनी सहेलियों में जा मिली. बच्चे तो अपनेआप खेल ही रहे हैं. सहेलियों की महफिल गरम हो जाती है.

‘‘लिली, आज देर से आया?’’

‘‘क्या करें मेमसाब छुट्टी देर से दिया.’’

‘‘हाय, मां.’’

‘‘साब और मेमसाब कुत्तों का माफिक लड़ता और खालीपीली बोम मारता. हम तो तंग आ गया.’’

‘‘अरे, तुम बोला क्यों नहीं कि पार्क में हमारा बौयफ्रैंड वेट कर रहा होगा? हम देर से जाएगा तो वह किसी और के साथ मौज उड़ाएगा.’’

‘‘हाय, मां.’’

‘‘मालूम है, जब हमारा साब काम पर जाता तो हमारी मोटल्ली मेमसाब चालीस नंबर वाले से इश्क फरमाता है.’’

‘‘ऐसा भी होता है.’’

‘‘उस का भेजा खलास हो गया है. दिनभर फिल्मी गाने गाता. शाम होते ही साब, मेमसाब क्लब जाता और भेजा खाने कू बच्चा लोग को हमारे पास छोड़ जाता.’’

‘‘अच्छा.’’

‘‘ले, लिली, आ गया तेरा रोमियो. देख, तुझे बुला रहा है. ठाठ हैं तेरे. हमें तो कोई देखता ही नहीं.’’

लिली प्रैम छोड़ कर भागी. पीछे उस की हमउम्र और उम्र में बड़ी सभी सहेलियां खीसें निपोर रही हैं.

‘अरे, यह रोमियो तो हमारी ही बिल्ंिडग का चौकीदार है. ओह, तो यह चौकीदारी हो रही है?’ शांता मन ही मन सब सोच कर हैरान हो गई.

मासूम बच्चे को प्रैम में शायद अपने अकेले होने का एहसास हो चुका था. उधर लिली और चौकीदार बांहों में बांहें डाले मस्ती कर रहे थे. अरे, यह क्या? दोनों मेहंदी की झाडि़यों के पीछे गायब हो गए. बच्चा जोरजोर से रो रहा था. कान के परदे फटे जा रहे थे. अरे, यह क्या, बच्चा प्रैम में बैठ कर, पैर लटका कर उतरने की कोशिश करने लगा. अरे, वह तो गिर जाएगा. अरे, उसे कोई पकड़ो. लेकिन उसे कोई बचाता, तब तक धम्म की आवाज के साथ बच्चा नीचे गिर गया.झाड़ी से निकल कर छेड़ी हुई बाघिन की तरह लिली आती है और बच्चे को उठा कर तड़तड़ 2 चांटे जड़ देती है, ‘‘हम को बात भी नहीं करने देगा.’’ बच्चा सहम कर चुप हो जाता है. लेकिन शांता को गा जैसे किसी ने तड़तड़ 2 चांटे उस के गालों  पर बेरहमी से रसीद कर दिए हों और मारने वाले के हाथों के निशान उस के अपने गालों पर उभर आए हों.

‘‘मेरा रोहन…’’ एकाएक शांता चीखती हुई उठी और बदहवास पार्क के दरवाजे की तरफ भाग खड़ी हुई.

लिफ्ट से निकल कर जैसे ही तेज कदमों से शांता उमा के फ्लैट की तरफ बढ़ी कि अचानक उस के कदम रास्ते में खड़े रोहन को गोद में उठाए, मुसकराते पति को देख कर थम गए.‘‘मम्मा,’’ रोहन ने दोनों बांहें उस की तरफ फैला दीं. लपक कर शांता ने उसे अपने गले से लगा लिया और बुरी तरह चूमती हुई अपने फ्लैट की तरफ भाग खड़ी हुई.  पीछे से उस के कानों में पति की आवाज टकराई. लेकिन शांता के पास पति की बात का उत्तर देने को शब्द नहीं, आंसू थे.

शेष शर्त : अमित के मामाजी क्यों गुस्साएं?

विंटर स्पेशल : जानें, सर्दियां स्ट्रोक का खतरा कैसे बढ़ाती हैं

स्ट्रोक यानी पक्षाघात एक ऐसी स्थिति है जो मस्तिष्क की धमनियों को प्रभावित करती है. स्ट्रोक तब होता है जब मस्तिष्क तक औक्सीजन और अन्य पोषक तत्वों को ले जाने वाली रक्त वाहिका या तो टूट जाती है या अवरुद्ध हो जाती है. जिसके कारण मस्तिष्क के टिश्यू को रक्त नहीं मिल पाता है और इससे मस्तिष्क के टिश्यू मरना शुरू हो सकते हैं.

डा. कुशल बनर्जी एम डी ;(होम) एमएससी (औक्सन ) के अनुसार स्ट्रोक के लक्षणों की गंभीरता भिन्न हो सकती है. ये मामूली ;आंखों में धुंधलापन या जबान के हलके लड़खड़ाने से काफी गंभीर ;शरीर के अंगों और श्वसन जैसे महत्वपूर्ण कार्य में रूकावट हो सकते हैं.

अध्ययनों से पता चला है कि कम तापमान और वायुमंडलीय तापमान में  व्यापक उतार-चढ़ाव से लोगों में स्ट्रोक की सम्भावना बढ़ जाती है और इस स्ट्रोक द्वारा मृत्यु भी हो सकती है.

सर्दियों में स्ट्रोक की घटना बढ़ जाती है और इसके स्पष्टीकरण व्यापक रूप से भिन्न होता है. यह परिकल्पित है कि निम्न तापमान धमनियों के कसने का एक कारण है जिसके परिणामस्वरूप उच्च रक्तचाप होता है जो स्ट्रोक का एक प्रमुख कारक है. निम्न तापमान रक्त को गाढ़ा कर देता है. यह रक्त परिसंचरण को धीमा कर देता है और शरीर की छोटी धमनियों में स्वतंत्र रूप से प्रसारित होने की इसकी क्षमता को प्रभावित कर सकता है. अन्य कारक जो स्ट्रोक में अपना योगदान कर सकते हैंए वो हैं ठंड के मौसम में वसायुक्त भोजन और शराब का अत्यधिक सेवन और शारीरिक गतिविधियों की कमी. सभी या इनमें से कुछ कारकों के संयोजन द्वारा सर्दियों के महीनों में स्ट्रोक की घटना बढ़ती है.

बाहरी वातावरण के बदलाव में खुद को इस तरह से ढाल लेना संभव ही नहीं है जिससे तापमान में गिरावट का हम पर कोई असर नहीं पड़े. हालांकिए हमारे शरीर पर ठंडे तापमान के प्रभाव के बारे में पता होने के नाते हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हम दूसरे परिवर्तनीय कारकों को संबोधित करके स्ट्रोक के समग्र जोखिम को कम रखने के लिए सावधानी बरतें.

हमें व्यायाम करना जारी रखना चाहिए. हम चाहें तो घर के अंदर भी व्यायाम कर सकते हैं.

बड़ी मात्रा में वसायुक्त या नमकीन भोजन और शराब के सेवन से बचें. यह उन रोगियों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है. जिन्हें उच्च रक्तचापए मधुमेह पुराने फेफड़े के रोग जैसी मौजूदा बीमारियों और बढ़ती उम्र के कारण स्ट्रोक होने का खतरा ज्यादा है.

सर्दियों के आगमन के बाद अस्वास्थ्यकर खाने और पीने की आदतों में लिप्त होने के कारण और स्वस्थ गतिविधियों को त्यागने से ठंड के समाप्त होने से पहले ही आपको दीर्घकालिक या स्थायी विकलांगता हो सकती है.

इन चरणों के अलावा उच्च जोखिम वाले रोगियों को समय.समय पर अपने रक्तचाप की निगरानी करनी चाहिए. लक्षणों की उपस्थिति जैसे सनसनी ख़त्म होना किसी अंग में अचानक सुन्नता आ जाएं जबान का लड़खड़ाना या मुंह के छाले के अचानक सूख जाने पर तुरंत निकटतम अस्पताल को सूचित किया जाना चाहिए.

एकोनाइट और अर्निका जैसी होम्योपैथिक दवाएं स्ट्रोक के विकास को नियंत्रित करने और रक्त चाप को बहाल करने के प्रयास में बेहद प्रभावी हैं. स्ट्रोक द्वारा विकलांग रोगियों में होम्योपैथिक दवाएं जैसे कॉस्टिकम और रश टॉक्स का उपयोग अक्सर ठीक होने की अवधि को कम करने और खोई हुई कार्यक्षमता को बहाल करने के लिए किया जाता है.

पश्चात्ताप-भाग 2 :सुभाष ध्यान लगाए किसे देख रहा था?

दिल्ली के डाक्टर, विशेषतौर पर इस अस्पताल के डाक्टरों में सुपीरियरिटी कौंपलैक्स बहुत अधिक था. दूसरे प्रदेश से आए हुए व दूसरी जगह के मैडिकल कालेज से पास हो कर आए डाक्टरों को तो वे सब, डाक्टर ही नहीं समझते थे. खैर, मेरी कैजुअल्टी में नियुक्ति हुई थी और कार्य इतना अधिक था कि बात करने का समय ही नहीं मिलता था. मेरे साथी डाक्टर की नियुक्ति मुझ से कुछ पहले हुई थी और उस ने दिल्ली से ही डाक्टरी डिगरी ली थी, सो, उस में अहं भाव अधिक था. कुछ रोब दिखाने की भी आदत थी.

वैसे भी आयुर्विज्ञान संस्थान की कैजुअल्टी में दम लेने की फुरसत ही कहां थी. ‘सिस्टर, इंजैक्शन बेरालगन लगाना बैड नं. 3 को’  व कभी ‘सिस्टर, 6 नंबर को चैस्ट पेन है, एक पेथीडिन इंजैक्शन हंड्रेड मिलीग्राम लगा देना.’ ‘अरे भई, सिस्टर डिसूजा, जरा इस बच्चे को ड्रिप लगेगी, गैस्ट्रोएंटरिट का मरीज है. जल्दी लाइए ड्रिप का सामान.’ सब ओर हड़बड़ाहट, भागदौड़ और अफरातफरी का माहौल. आकस्मिक दुर्घटनाओं व रोग से ग्रसित रोगी एक के बाद एक चले आते हैं.

‘सुभाष, देखो, ट्राली पर कौन है, अरे भई, यह तो गेस्प कर रहा है, औक्सीजन लगाओ जरा,’ ‘सिस्टर, इंजैक्शन कोरामिन लाना.’

इतने में 8-10 लोग आते हैं एक युवक को उठाए हुए, ‘डाक्टर साहब, देखिए इसे, इस युवक का ऐक्सिडैंट हुआ है. इस की खून की नली से बहुत खून बह रहा है, रोकने के लिए इस ने अंगूठे से दबा रखा है. देखिए, ज्यों ही वह अपना अंगूठा हटाता है दिखाने के लिए, खून का फुहारा मेरे कपड़ों व उस के कपड़ों को भी खराब करता है.’

‘अरे, यह क्या कर रहे हो?’ मैं ने जल्दी से अपने अंगूठे से दबा दिया. फिमोरल आरटरी कटी थी युवक की. उस व्यक्ति ने अपने अंगूठे से उस कटे स्थान को दबा कर काफी समझदारी का परिचय दिया था.

‘‘मांजी, मांजी,’’ एक आदमी अर्जुन की मां को झझकोर रहा है. मानो वह उन्हें सोए से जगाने का प्रयत्न कर रहा हो, ‘‘होश में आओ मांजी, यह अर्जुन है. आप का बेटा,’’ लोग अर्जुन की मां को रुलाना चाह रहे हैं, मैं वर्तमान में लौटता हूं. सब सोच रहे हैं कि यदि यह नहीं रोएगी तो इस के दिमाग पर असर होगा. पर वह वैसी ही बैठी है, अश्रुविहीन आंखें लिए हुए.

क्या रो पाई थी उस युवक की मां? मैं फिर अतीत में लौट जाता हूं. क्या उस के दिमाग पर असर नहीं हुआ होगा? कैसे जी रही होगी अब तक, या मर गई होगी? पुराना दृश्य फिर कौंधता है.

फिमोरल आरटरी दबा कर बैठा हूं और अपने साथ के दूसरे सीएमओ को कहता हूं कि जल्दी से शल्यचिकित्सक को बुलाइए. औपरेशन थिएटर में कहलवा दीजिए. एक फिमोरल आरटरी को रिपेयर करना है. इतने में एक दूसरे युवक को लोग अंदर ला रहे हैं. 3-4 व्यक्तियों ने उसे सहारा दिया हुआ है. वह लंबीलंबी सांसें ले रहा है. मेरे पास आ कर सब रुकते हैं और कहते हैं, ‘डाक्टर साहब, इस युवक को देखिए, यह इस के स्कूटर के पीछे बैठा हुआ था, पलंग पर लेटे उस युवक की ओर इशारा करते हैं जिस की फिमोरल आरटरी मैं दबा कर बैठा हूं. मैं दूसरे डाक्टर की ओर इशारा कर देता हूं क्योंकि मेरे हाथ व्यस्त हैं. डाक्टर विमल मरीज का निरीक्षण करते हैं और उस की हिस्टरी लेते हैं.

क्या कौस्मेटिक सर्जरी से ब्रैस्ट इम्प्लांट किया जाता है?

सवाल

मेरी उम्र 24 साल है. मेरे स्तनों का आकार छोटा है. इस वजह से टाइट टीशर्ट या ड्रैसेज मुझ पर अच्छी नहीं लगतीं. मैं अपने स्तनों का आकार कैसे बढ़ाऊं?

जवाब

स्तनों के छोटे होने के कई कारण हो सकते हैं, जैसे शरीर में हार्मोंस की खराबी, पौष्टिक आहार का अभाव, लंबी बीमारी, अनियमित मासिकधर्म, कई बार मां (जैसे मां के स्तन हों) का प्रभाव भी स्तनों पर पड़ता है. आप सब से पहले तो किसी अच्छे ब्रैस्ट स्पैशलिस्ट से मिलें. उन से राय लें.

इस के अलावा अब कौस्मेटिक सर्जरी से ब्रैस्ट इम्प्लांट किए जाते हैं. इस प्रक्रिया के दौरान ब्रैस्ट में सिलिकौन या सलाइन को इम्प्लांट किया जाता है ताकि ब्रैस्ट को भरा हुआ और बेहतर आकार दिया जा सके.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

BIGG BOSS 16: सुंबुंल तौकीर खान ने की शालीन भनोट की बेइज्जती, ट्विटर पर फैंस ने किया सपोर्ट

सलमान खान का पसंदीदा शो बिग बॉस 16 लोगों का दिल जीतने में कोई कसर नहीं छोड़ता है, बिग बॉस 16 में बीते दिनों नॉमिनेशन टॉस्क हुआ है. जिसमें घरवालों को अजीब तरह का टॉस्क दिया , उन्हें घरवालों को गुलाब का फूल देकर सेव करना था.

वहीं टॉस्क के बाद सुंबुंल और शालीन के बीच जमकर लड़ाई हुई. वहीं जिसके पास सबसे कम गुलाब के फूल होंगे वह नॉममिनेट हो जाता है. टॉस्क के बाद जब शालीन और सुंबुंल के बीच लड़ाई होनी शुरू हुई तो वह शालीन की धज्जियां उड़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी.

 

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सुंबुंल अपनी बात को लेकर सोशल मीडिया पर खूब ट्रेंड कर रही हैं, बीते दिन शालीन भनोट नॉमिनेशन टॉस्क के दौरान सारेे गुलाब के फूल टीना दत्ता कोे दे रहे थें.

सुंबुंल के उदास होने पर शालीन भनोट उन्हें सफाई देने पहुंचे, उन्होंने समझाने की कोशिश की दबंग शालीन के पास च्वाइस नहीं होती है, उन्होंने कहा कि सुंबुंल की मौजुदगी में 50  प्रतिशत योगदान रहा है.

 

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शालीन भनोट ने लड़ाई के दौरान कहा कि जब तुमम पैदा नहीं हुईं थी तब से मैं इस इंडस्ट्री में हूं, इस पर सुंबुल ने कहा फिर भी हम एक ही जगह पर आज हैं. लड़ाई के दौरान सुंबुंल ने शालीन को नीचा दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ा है.

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