बात मई, 2022 महीने की है. भीलवाड़ा जिले में बागोर का एक सांसी परिवार बेटे की शादी संपन्न
होने की खुशियों से भरा था. पूरा परिवार सुंदर, सुशील और पढ़ीलिखी बहू पा कर बेहद खुश था. दूल्हा भी सुहागरात के रंगीन हसीन सपनों में खोया था, जबकि 24 साल की दुलहन कमला एक अज्ञात भय से आशंकित थी.

आशंका उस के समाज की एक पारंपरिक ‘कुकड़ी प्रथा’ को ले कर थी, उस बारे में उस ने अपने रिश्तेदारों और दोस्तों से थोड़ाबहुत सुन रखा था. उसे ससुराल में उसी सैकड़ों साल पुरानी प्रथा का सामना करना था.
दुलहन कमला 11 मई को अपनी ससुराल पहुंच गई थी. उस का पारंपरिक स्वागत किया गया. परिवार में सभी बहुत खुश थे. कुछ बुजुर्ग औरतें कमला की बलाएं लेती हुई उसे एक कमरे में ले गईं. उन में उस की सास, बुआ सास और चचिया सास थी. उन्होंने सब से पहले दुलहन को हिदायत दी कि वह तब तक घर के दूसरे हिस्से में कहीं नहीं जाएगी, जब तक ‘कुकड़ी’ पूरी नहीं हो जाती.

कमला को कमरे में लगे बैड पर बिठा दिया गया. उस पर झक सफेद चादर बिछाई गई थी. एक औरत उस के हाथ में सफेद धागे से लिपटी रूई का एक छोटा गोला पकड़ाती हुई बोली, ‘‘इसे संभाल कर रखना, जब सुहागरात खत्म॒हो॒जाए तब इस पर अपनी योनि का खून लगा लेना...

‘‘...और फिर वह गोला हमें उसी वक्त वापस कर देना. वरना...’’ दूसरी औरत बोली और इस पर बाकी औरतें खिलखिला कर हंस पड़ीं.‘‘तुम्हें कैसे क्या करना है, भाभी समझा देगी,’’ कमला की सास बोली और उस की भाभी को इशारा कर आदेश दिया कि इसे अच्छी तरह से नहलाधुला कर पहले कुछ खाना खिला दे. फिर एक को छोड़ कर बाकी औरतें वहां से चली गईं, जो उस की भाभी लगती थी.

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