कटहल भी प्रकृति की अनोखी देन है. अगर पहली बार देखो तो भरोसा नहीं होता कि यह रसोई में पका कर खाने की चीज है. यह बेल या पौधे में नहीं पेड़ में लगता है. आमतौर पर कटहल की सब्जी बनाने के अलावा लोग इस का इस्तेमाल अचार बनाने में भी करते हैं. कटहल का फल बड़ा होने के बाद इस का भीतरी भाग पक जाता है.

तब, ये कच्चा ही खाने में बहुत स्वादिष्ठ और रसीला होता है. लोकल भाषा में इसे ‘कोआ’ कहते हैं. फल पकने के बाद इसे बिना आग पर पकाए यों भी या हलका नमक लगा कर खाया जाता है. कटहल के छिलके पर कांटे जैसा उभार होता है. यह पोषक तत्त्वों से भरपूर होता है. आयरन, कैल्शियम, विटामिन ए, विटामिन सी और पोटैशियम इस में प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं. कटहल के पेड़ से साल में 2 बार फल लिए जा सकते हैं. मूल रूप से भारत के पश्चिमी घाटों यानी केरल और तमिलनाडु में बहुतायत से पाए जाने वाले कटहल को मार्च, 2018 में केरल का राज्य फल घोषित किया गया था.

यह उष्णकटिबंधीय फल अपने प्रोटीन तत्त्वों के कारण शाकाहारी लोगों में पनीर और अंडे के विकल्प के रूप में लोकप्रिय है. फल, बीज और गूदे के उपयोग के अतिरिक्त कटहल के पत्ते, छाल, पुष्पक्रम और लैटेक्स का उपयोग पारंपरिक दवाओं में भी किया जाता है. कटहल की खेती किसी भी प्रकार की मिट्टी में हो जाती है, लेकिन फिर भी इस की बागबानी के लिए गहरी दोमट और बलुई दोमट मिट्टी उपयुक्त है. इस की खेती के लिए पानी की ज्यादा जरूरत होती है. बीज से पौधे को उगाने के तकरीबन 3 से 4 साल बाद फल लगने लगते हैं. इस के लिए बीजों को कटहल से निकालते ही मिट्टी में उगा देना चाहिए.

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