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अनोखी सजा: रमेश बूढ़ें व्यक्ति को गाड़ी में देखकर क्यों चौक गया?

दुकान का काम समाप्त कर के रमेश तेजी से घर की ओर चला जा रहा था. आसमान में कालेकाले बादल छाए हुए थे अत: वर्षा आने से पहले ही वह घर पहुंच जाना चाहता था. तभी अचानक तेज वर्षा होने लगी. रमेश वर्र्षा से बचने के लिए फुटपाथ के पास बनी अपने मित्र राकेश की दुकान की ओर दौड़ा. दुकान के बाहर लगी परछत्ती के नीचे एक बूढे़ सज्जन पहले से ही खड़े थे. परछत्ती बहुत छोटी थी. वर्षा के पानी से उन का केवल सिर ही बच पा रहा था. रमेश का ध्यान उस बूढे़ आदमी की ओर नहीं गया. वह सीधा दौड़ता हुआ आया और राकेश के  पास जा कर दुकान में बैठ गया.

थोड़ी देर में वर्षा और तेज हो गई. रमेश का ध्यान उन बूढ़े सज्जन की ओर गया. वह तुरंत उठा और उन के पास आ कर विनम्रता से बोला, ‘‘यहां तो आप पूरी तरह भीग जाएंगे. कृपया भीतर आ कर बैठिए.’’ बूढे़ आदमी को ठंड भी लग रही थी, पर उन्होंने भीतर चलने से मना किया, लेकिन रमेश के बारबार आग्रह करने पर वे भीतर आ गए और अंदर आ कर एक कुरसी पर बैठ गए.

रमेश ने सामान्य शिष्टाचार के नाते उन्हें चाय भी पिला दी तथा उन की भीगी कमीज को सुखाने का भी प्रयास किया.

बूढ़े सज्जन ने रमेश से पूछा, ‘‘क्यों भाई, क्या आप मुझे जानते हो?’’

रमेश ने जवाब दिया, ‘‘जी नहीं, मैं ने तो आप को कभी देखा भी नहीं. वैसे मैं एक दुकान पर काम करता हूं. वहां भी मैं ने कभी आप को नहीं देखा.’’ धीरेधीरे बातचीत का सिलसिला चल निकला. बातोंबातों में बूढ़े ने रमेश की दुकान का पता, उस का वेतन, घर के हालात आदि का पता किया. लेकिन उस ने अपना परिचय नहीं दिया. केवल इतना ही कहा, ‘‘टहलने निकला था, बरसात होने लगी. यहां पानी से बचने के लिए रुक गया.’’ धीरेधीरे पानी कम हुआ. रमेश और बूढ़े सज्जन दोनों निकल कर सड़क पर आ गए. दोनों कुछ दूर तक एकसाथ चले. मानो दोनों को अलगअलग दिशाओं में जाना था. रमेश ने कहा, ‘‘मैं आप को घर तक छोड़ देता हूं. रात का समय है. देर भी काफी हो गई है.’’

बूढे़ ने रमेश को धन्यवाद देते हुए कहा, ‘‘मैं अकेला ही चला जाऊंगा, आप को कष्ट करने की आवश्यकता नहीं है.’’

बात आईगई हो गई. रमेश अपने स्वभाव अनुसार समय पर दुकान पर जाता और मेहनत व लगन से काम करता. एक दिन वह दुकान के बाहर खड़ा, दुकान खुलने का इंतजार कर रहा था कि  वही बूढ़े सज्जन वहां से निकले. दोनों ने एकदूसरे को देखा और एकदूसरे को अभिवादन किया. रोज की तरह दुकान खुली. रमेश ने अपना काम शुरू कर दिया. वह 10वीं कक्षा तक पढ़ा था, पर दुकान पर हर तरह का काम, जैसे सफाई, सामान तोलना, सामान उठाना और हिसाबकिताब करना पड़ता था. लेकिन वह सब काम पूरी निष्ठा से करता था. उस के काम से दुकान का मालिक बड़ा संतुष्ट था. शाम को दुकान बंद होने का समय हो गया था. तभी एक सज्जन दुकान पर आए. उन के आते ही दुकान का मालिक खड़ा हो गया और उन की बड़ी आवभगत करने लगा. रमेश के साथ काम करने वाले लड़कों ने बताया, ‘‘यह नगर के बहुत बड़े उद्योगपति का लड़का सुरेश है.’’

सुरेश ने दुकानदार से पूछा, ‘‘आप के यहां कोई रमेश नाम का लड़का काम करता है?’’

‘‘जी हां, काम करता है, वह है, रमेश,’’ दुकानदार ने झट इशारा करते हुए उत्तर दिया.

सुरेश ने कुछ तेज स्वर में कहा, ‘‘आप को रमेश को अपने यहां से नौकरी से निकालना होगा.’’ दुकानदार ने आव देखा न ताव, तुरंत रमेश को अपने पास बुला कर आदेश दिया, ‘‘रमेश, कल से तुम नौकरी पर मत आना, अपना हिसाब आज ही कर लो.’’ रमेश भौचक्का रह गया. उस ने साहस जुटा कर पूछा, ‘‘पर मेरी गलती क्या है?’’ दुकानदार नाराज हो कर बोला, ‘‘गलतीवलती कुछ नहीं. सुरेशजी ने कहा और हम ने तुम्हें नौकरी से तुरंत निकाल दिया.’’ सुरेश ने दुकानदार को बीच में टोकते हुए कहा, ‘‘तुम ने हमारे पिताजी के साथ कुछ गड़बड़ की है. उस की तुम्हें सजा भी मिलेगी. पिताजी सामने गाड़ी में बैठे हैं.’’ रमेश कुछ समझ न पाया, ‘‘मैं ने तो कभी किसी के साथ बुरा बरताव किया ही नहीं. आखिर, मुझे किस बात की सजा मिल रही है? नौकरी छूट जाने पर मेरी बूढ़ी मां का क्या होगा, जिस का मैं एकमात्र सहारा हूं?’’ रमेश की आंखों के सामने अंधेरा छा गया.

सुरेश ने रमेश का हाथ पकड़ा और लगभग खींचते हुए सड़क के उस पार ले गया, जहां उस की कार खड़ी थी और उस में एक बूढ़े सज्जन बैठे हुए थे. रमेश ने देखा कि वह बूढ़े सज्जन वही हैं, जो उस दिन राकेश की दुकान पर मिले थे.

रमेश ने संयमित हो कर पूछा, ‘‘मैं ने तो आप के साथ कोई बुरा बरताव नहीं किया. फिर मुझे यह सजा क्यों दी जा रही है?’’

बूढ़े सज्जन ने कहा, ‘‘बेटे, सजा अभी मिली कहां है. सजा तो अब मिलेगी. कल से आप की नौकरी हमारे यहां और वेतन भी 10 हजार रुपए महीना.’’

रमेश ने फौरन कहा, ‘‘मैं इस योग्य नहीं हूं. कृपया मुझे क्षमा करें.’’

बूढ़े सज्जन ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘आप की योग्यता मैं ने परख ली है. उस योग्यता की सजा के रूप में यह नौकरी दे रहा हूं. अब दुकानदार से अपना हिसाब कर लीजिए और मेरे साथ चलिए. आज हम आप के घर चलेंगे. आप की माताजी से मिलेंगे और आप की सुयोग्यता उन्हें बताएंगे.’’ उस के बाद रमेश के पास उस अनोखी सजा को सहर्ष स्वीकार करने के अलावा कोई चारा न था.

प्रेग्नेंट बिपाशा ने पति करण के साथ किया जमकर डांस, देखें वीडियो

बॉलीवुड एक्ट्रेस बिपासा बासु मां बनने वाली हैं, वह अपने पहले बच्चे को लेकर काफी ज्यादा एक्साइटेड है,  वह इन दिनों अपनी प्रेग्नेंसी को एंजॉय कर रही हैं.  वह अक्सर इंस्टाग्राम पर अपनी फोटो और वीडियो शेयर करती रहती हैं.

एक्ट्रेस प्रेग्नेंसी के दौरान भी जबरदस्त डांस स्टेप करती नजर आ रही हैं, वीडियो में एक्ट्रेस क्यूट सा पोज देती नजर आ रही हैं. इस वीडियो में देखा जा सकता है कि एक्ट्रेस ने ब्लैक और व्हाइट कलर का ड्रेस पहन रखा है.

 

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इसी बीच करण सिंह ग्रोवर भी पोज देते नजर आ रहे हैं. वीडियो शेयर करते हुए उन्होंने लिखा है कि बेबी रास्ते में हैं. वहीं बिपासा ने कैप्शन में लिखा है कि अब मैं हिल डूल नहीं पा रही हूं. बिपासा के इस वीडियो पर लोग खूब कमेंट करते नजर आ रहे हैं.

एक यूजर ने कमेंट किया है कि आपने तापमान बढ़ा दिया है, वहीं दूसरे ने लिखा है कि आप ग्लो कर रही हैं. बिपासा का यह वीडियो देखकर पता चल रहा है कि वह मां बनने के लिए काफी ज्यादा एक्साइटेड हैं. बता दें कि बिपासा ने फिल्म राज से अपने कैरियर की शुरुआत कि थी, जिसमें उन्हें खूब पसंद किया गया था.

Bigg Boss 16: निमृत ने प्रियंका की लव स्टोरी में लगाई आग! अंकित को दिया सरप्राइज

कलर्स टीवी के विवादित रियलिटी शो बिग बॉस 16 में आएं दिन कुछ न कुछ होते रहता है, अब इस शो में निमृत कौर अंकित और प्रियंका के रास्ते का कांटा बन रही है.

अब तो ये हर कोई जानता है कि प्रियंका निमृत को बिल्कुल पसंद नहीं करती हैं. निमृत ने प्रियंका के लव लाइफ में भी हमला बोलना शुरू कर दिया है. दरअसल, प्रियंका चौधरी और अंकित गु्प्ता के रिश्ते में दरार आ गई है.

अब बीते एपिसोड में दिखाया गया कि प्रियंका को जलाने के लिए निमृत अंकित का बर्थ डे सेलिब्रेट करेगी, जिसमें वह अंकित को सरप्राइज देती नजर आएगी.

निमृत ने जब अंकित को सरप्राइज दिया तो प्रियंका का पारा चढ़ गया, उन्हें पता है कि उसने जानबुझकर ऐसा किया है ताकी उनका पारा चढ़ सके.

जिसके बाद से प्रियंका  निमृत  और अंकित की शिकायत करती नजर आईं, उन दोनों की जमकर शिकायत की गौतम विज के साथ. प्रियंका ने कहा कि निमृत ने अंकित को भी नहीं बक्शा उसने हमारे साथ ऐसा किया . प्रियंका इस दौरान रोती हुई नजर आई.

आगे शो में इससे भी ज्यादा बवाल होने वाले हैं, देखते हैं आगे क्या होगा.

शेष शर्त- भाग 1 : अमित के मामाजी क्यों गुस्साएं?

मैं जब मामा के घर पहुंची तो विभा बाहर जाने की तैयारी में थी.

‘‘हाय दीदी, आप. आज ?जरा जल्दी में हूं, प्रैस जाने का समय हो गया है, शाम को मिलते हैं,’’ वह उल्लास से बोली.

‘‘प्रभा को तुम्हारे दर्शन हो गए, यही क्या कम है. अब शाम को तुम कब लौटोगी, इस का कोई ठिकाना है क्या?’’ तभी मामी की आवाज सुनाई दी.

‘‘नहींनहीं, तुम निकलो, विभा. थोड़ी देर बाद मुझे भी बाहर जाना है,’’ मैं ने कहा.

मामाजी कहीं गए हुए थे. अमित के स्नान कर के आते ही मामी ने खाना मेज पर लगा दिया. पारिवारिक चर्र्चा करते हुए हम ने भोजन आरंभ किया. मामी थकीथकी सी लग रही थीं. मैं ने पूछा तो बोलीं, ‘‘इन बापबेटों को नौकरी वाली बहू चाहिए थी. अब बहू जब नौकरी पर जाएगी तो घर का काम कौन करेगा? नौकरानी अभी तक आई नहीं.’’

मैं ने देखा, अमित इस चर्चा से असुविधा महसूस कर रहा था. बात का रुख पलटने के लिए मैं ने कहा, ‘‘हां, नौकरानियों का सब जगह यही हाल है. पर वे भी क्या करें, उन्हें भी तो हमारी तरह जिंदगी के और काम रहते हैं.’’अमित जल्दीजल्दी कपड़े बदल कर बाहर निकल गया. मैं ने मामी के साथ मेज साफ करवाई. बचा खाना फ्रिज में रखा और रसोई की सफाई में लग गई. मामी बारबार मना करती रहीं, ‘‘नहीं प्रभा, तुम रहने दो, बिटिया. मैं धीरेधीरे सब कर लूंगी. एक दिन  के लिए तो आई हो, आराम करो.’’

मुझे दोपहर में ही कई काम निबटाने थे, इसलिए बिना आराम किए ही बाहर निकलना पड़ा.

जब मैं लौटी तो शाम ढल चुकी थी. मामी नौकरानी के साथ रसोई में थीं. मामाजी उदास से सामने दीवान पर बैठे थे. मैं ने अभिवादन किया तो क्षणभर को प्रसन्न हुए. परिवार की कुशलक्षेम पूछी. फिर चुपचाप बालकनी में घूमने लगे. बात कुछ मेरी समझ में न आई. अमित और विभा भी कहीं दिखाई नहीं दे रहे थे. मामाजी का गंभीर रुख देख कर उन से कुछ पूछने की हिम्मत न हुई.

तभी मामी आ गईं, ‘‘कब आईं, बिटिया?’’

‘‘बस, अभी, मामाजी कुछ परेशान से दिखाई दे रहे हैं.’’

‘‘विभा अभी तक औफिस से नहीं लौटी है, जाने कैसी नौकरी है उस की.’’

कुछ देर बाद अमित और विभा साथसाथ ही आए. दोनों के मुख पर अजीब सा तनाव था. विभा बिना किसी से बोले तेजी से अपने कमरे में चली गई. अमित हम लोगों के पास बैठ कर टीवी देखने लगा. वातावरण सहसा असहज लगने लगा. किसी अनर्थकी आशंका से मन व्याकुल हो उठा. विभा कपड़े बदल कर कमरे में आई तो मामी ने उलाहने के स्वर में कहा, ‘‘खाना तो हम ने बना लिया है. अब मेज पर लगा लोगी या वह भी हम जा कर ही लगाएं?’’ मामाजी मानो राह ही देख रहे थे, तमक क बोले, ‘‘तुम बैठो चुपचाप, बुढ़ापे में मरी जाती हो. अभी पसीना सूखा नहीं कि फिर चलीं रसोई में. तुम ने क्या ठेका ले रखा है.’’

बात यहीं तक रहती तो शायद विभा चुप रह जाती, मामाजी दूसरे ही क्षण फिर गरजे, ‘‘लोग बाहर मौज करते हैं. पता है न कि घर में 24 घंटे की नौकरानी है.’’ इस आरोप से विभा हतप्रभ रह गई. कम से कम उसे यह आशा नहीं रही होगी कि मामाजी मेरी उपस्थिति में भी ऐसी बातें कह जाएंगे. उस ने वितृष्णा से कहा, ‘‘आप लोगों को दूसरों के सामने तमाशा करने की आदत हो गई है.’’

‘‘हम लोग तमाशा करते हैं? तमाशा करने वाले आदमी हैं, हम लोग? पहले खुद को देखो, अच्छे खानदान की लड़कियां घरपरिवार से बेफिक्र इतनी रात तक बाहर नहीं घूमतीं.’’

part-2

‘‘आप को मेरा खानदान शादी के पहले देखना था, बाबूजी.’’

मामाजी भड़क उठे, ‘‘मुझ से जबान मत चलाना, वरना ठीक न होगा.’’ बात बढ़ती देख अमित पत्नी को धकियाते हुए अंदर ले गया.

मैं लज्जा से गड़ी जा रही थी. पछता रही थी कि आज रुक क्यों गई. अच्छा होता, जो शाम की बस से घर निकल जाती. यों बादल बहुत दिनों से गहरातेघुमड़ते रहे होंगे, वे तो उपयुक्त अवसर देख कर फट पड़े थे. थोड़ी देर बाद मामी ने नौकरानी की सहायता से खाना मेज पर लगाया. मामी के हाथ का बना स्वादिष्ठ भोजन भी बेस्वाद लग रहा था. सब चुपचाप अपने में ही खोए भोजन कर रहे थे. बस, मामी ही भोजन परोसते हुए और लेने का आग्रह करती रहीं. भोजन समाप्त होते ही मामाजी और अमित उठ कर बाहर वाले कमरे में चले गए. मैं ने धीरे से मामी से पूछा, ‘‘विभा…?’’

‘‘वह कमरे से आएगी थोड़े ही.’’

‘‘पर?’’

‘‘बाहर खातीपीती रहती है,’’ उन्होंने फुसफुसा कर कहा.

मैं सोच रही थी कि विभा बहू की जगह बेटी होती तो आज का दृश्य कितना अलग होता.

‘‘देखा, सब लोगों का खाना हो गया, पर वह आई नहीं,’’ मामी ने कहा.

‘‘मैं उसे बुला लाऊं?’’

‘‘जाओ, देखो.’’

मैं उस के  कमरे में गई. उस की आंखों में अब भी आंसू थे. मुझे यह जान कर आश्चर्य हुआ कि अमित उसे मेरे कारण औफिस का काम बीच में ही छुड़वा कर ले आया था और ऐसा पहली बार नहीं हुआ था. जब भी कोई मेहमान आता, उसे औफिस से बुलवा लिया जाता.

‘‘तुम ने अमित को समझाने की कोशिश नहीं की?’’

‘‘कई बार कह चुकी हूं.’’

‘‘वह क्या कहता है?’’

‘‘औफिस का काम छोड़ कर आने में तकलीफ होती है तो नौकरी छोड़ दो.’’

क्षणभर को मैं स्तब्ध ही रह गई कि जब नए जमाने का पढ़ालिखा युवक उस के काम की अहमियत नहीं समझता तो पुराने विचारों के मामामामी का क्या दोष.

‘‘चिंता न करो, सब ठीक हो जाएगा. शुरू में सभी को ससुराल में कुछ न कुछ कष्ट उठाना ही पड़ता है,’’ मैं ने उसे धैर्य बंधाते हुए कहा.

फिर घर आ कर इस घटना को मैं लगभग भूल ही गई. संयुक्त परिवार की यह एक साधारण सी घटना ही तो थी. किंतु कुछ माह बीतते न बीतते, एक दिन मामाजी का पत्र आया. उन्होंने लिखा था कि अमित का तबादला अमरावती हो गया है, परंतु विभा ने उस के साथ जाने से इनकार कर दिया है.

पत्र पढ़ कर मुझे पिछली कितनी ही बातें याद हो आईं…

 

अच्छे लोग -भाग 2 :कुछ पल के लिए सभी लोग क्यों डर गए थें

प्रियांशु मांबाप से कोई बात नहीं बताता था. पता नहीं क्यों? आखिरकार, रमाकांत और शारदा ने तय किया कि वही बेटे से बात करेंगे. अलगे रविवार को सभी लोग नाश्ता कर रहे थे. अखिला उन के साथ न नाश्ता करती थी, न खाना खाती थी. प्रियांशु उस का नाश्ताखाना उस के कमरे में दे आता था.

‘‘बेटा, तुम कुछ बताते नहीं हो. आखिर बहू को इस घर से या हम से क्या परेशानी है? हम तो उसे एक शब्द भी नहीं कहते. वह अपने मन की करती है, फिर तुम्हारे बीच लड़ाईझगड़ा…?’’ इतना कह कर शारदा चुप हो गईं. रमाकांत ध्यान से प्रियांशु का मुंह ताक रहे थे.

प्रियांशु ने अपना हाथ रोक कर कहा, ‘‘मम्मी, मैं स्वयं हैरान और परेशान हूं. वह कुछ बताती ही नहीं. बस, बातबात में गुस्सा करना और बात को बढ़ाते चले जाना उस का स्वभाव है. मैं चुप रहता हूं, तब भी चिल्लाती रहती है.’’

‘‘क्या वह स्वभाव से ही गुस्सैल और चिड़चिड़ी है?’’

‘‘हो सकता है, परंतु हम कुछ भी तो ऐसा नहीं करते, जिस से उसे गुस्सा आए.’’

‘‘कुछ समझ में नहीं आता,’’ रमाकांत ने पहली बार अपना मुंह खोला, ‘‘क्या मैं उस से बात करूं?’’

‘‘कर सकते हैं, परंतु वह बहुत बदतमीज है. जब मेरी नहीं सुनती, जो आप की क्या सुनेगी? कहीं गुस्से में आप की बेइज्जती न कर दे,’’ प्रियांशु ने कहा.

‘‘तो फिर उस के मम्मीपापा से बात कर के देखते हैं. कुछ तो उस के स्वभाव के बारे में पता चले,’’ रमाकांत ने आगे सुझाव दिया.

‘‘देख लीजिए, जैसा आप उचित समझें. मुझे तो कुछ समझ में नहीं आता. हर क्षण यही भय बना रहता है कि पता नहीं किस बात पर वह भडक़ जाए.’’

सच, प्रियांशु मानसिक रूप से बहुत परेशान था. अखिला के सारे प्रत्यक्ष प्रहार वही झेलता था. शारदा और रमाकांत उसे बस धीरज बंधा सकते थे.

रमाकांत ने फोन पर अखिला के पिता अवनीश से बात की. अखिला के व्यवहार के बारे में विस्तार से बताने के बाद पूछा, ‘‘भाईसाहब, हम अपनी तरफ से कोई ऐसा काम नहीं करते कि उसे कोई कष्ट हो, परंतु पता नहीं उसे किस बात की तकलीफ है कि हर पल झगड़े के मूड में रहती है.’’

अवनीश जी ने बताया, ‘‘भाईसाहब, अखिला बचपन से ही क्रोधी और जिद्दी स्वभाव की है. हर काम में अपनी मनमानी चलाती है, चीखचिल्ला कर अपनी ही गलतसही बात मनवा लेती है. हम ने सोचा था- शादी के बाद ठीक हो जाएगी, परंतु…’’

‘‘भाईसाहब, हम तो उसे किसी बात के लिए नहीं टोकते, न उसे कुछ करने के लिए कहते हैं. हमारा बेटा तो ऊंची आवाज में भी बात नहीं करता, फिर भी…और वह कुछ बताती भी नहीं. कुछ कहे तो हम उस के मन की बात भी समझें.’’

‘‘किसी दिन मैं पत्नी के साथ आकर उसे समझाऊंगा,’’ कह कर अवनीश ने बात समाप्त कर दी.

अगले सप्ताह अवनीश पत्नी के साथ रमाकांत के घर आए. उन्होंने अकेले में अखिला से बात की और दोपहर का खाना खा कर चले गए.

उन के जाते ही जैसे घर में तूफान आ गया. अखिला ने अपना रौद्र रूप दिखाते हुए कहा, ‘‘आप लोग क्या समझते हैं अपने को. मैं क्रोधी हूं, जिद्दी हूं, झगड़ालू हूं, तो आप को क्या? यह मेरा स्वभाव है, मैं इसे नहीं बदल सकती. अगर आप को मुझ से कोई तकलीफ है, तो अपना बोरियाबिस्तर उठाइए और कोई दूसरा ठिकाना ढूंढ़ लीजिए. मेरे मम्मीपापा से मेरी शिकायत कर के आप ने अच्छा नहीं किया.’’ अखिला के वाक्यवाण सीधे रमाकांत और शारदा के ऊपर चल रहे थे.

शारदा और रमाकांत ने एकसाथ आंखें फैला कर अखिला को देखा. मन में लज्जा और ग्लानि का भाव भी उपजा. यह उन की बहू थी. कैसा सम्मान दे रही थी उन्हें? उन के मन में उस के प्रति कोई द्वेष नहीं था. आज तक उस से ओछी बात नहीं की थी, परंतु वह पता नहीं किस बात का बदला ले रही थी उन से? उन की क्या गलती थी. बस, यही न कि वह उन की पुत्रवधू थी. अगर उसे इस घर में ब्याह कर नहीं आना था, तो न आती. मना कर देती. उन्होंने कौन सी जबरदस्ती की थी. ब्याह में उस की भी सहमति थी.

रमाकांत ने कुछ कहना उचित नहीं समझा. परंतु शारदा से पति का अपमान सहन नहीं हुआ, थोड़ा तेज आवाज में बोली, ‘‘बेटा, तू बेजान गुड्डे की तरह बैठा है. तुझे दिखाई नहीं दे रहा है, यह किस तरह हमारी इज्जत उतार रही है. किस जन्म का बदला ले रही है ये? हम ने इस का क्या बिगाड़ा है?’’

प्रियांशु को मां की बात से दुख हुआ. उस ने मन में साहस की बिखरी कडिय़ां जोड़ीं और कुछ तेज आवाज में कहा, ‘‘अखिला, मम्मीपापा से इस तरह बात करते हैं? तुम्हें जो कहना है, मुझ से कहो. मम्मीपापा की बेइज्जती मैं बरदाश्त नहीं करूंगा.’’

‘‘वाह रे श्रवण कुमार,’’ अखिला ने उस का उपहास उड़ाते हुए कहा, ‘‘आज पहली बार देख रही हूं, मुंह में जबान भी है तुम्हारे. कल तक तो मेरे सामने मिमियाते रहते थे.’’

प्रियांशु को क्रोध आ गया, ‘‘अखिला, अपनी सीमा पार मत करो. कल तक बात मेरी और तुम्हारी थी. आज तुम ने मम्मीपापा को गाली दी है, उन का अपमान किया है. वह भी अकारण. मेरी समझ में नहीं आता, तुम बेवजह घर में झगड़ा क्यों करती रहती हो? इस से तुम्हें कौन सा सुख मिलता है. परंतु एक बात समझ लो, तुम्हारे कर्म तुम्हें कोई सुख नहीं देंगे. एक दिन तुम पछताओगी.’’

‘‘क्या कर लोगे तुम मेरा?’’ अखिला ने उसे चैलेंज किया.

‘‘मैं क्या करूंगा, यह मैं नहीं जानता, परंतु शांत जल के अंदर हलचल नहीं होती. उस में लहरें नहीं उठतीं, यह कभी मत भूलना.’’

‘‘ओह. तो मुझे तूफान की धमकी दे रहे हो. यही तो मैं चाहती हूं. तूफान आए, और तुम सब उस की चपेट में आ कर तहसनहस हो जाओ.’’

उन सभी के मुख पर जैसे ताले पड़ गए. उन की चुप्पी से अखिला और ज्यादा क्रोधित हो गई, ‘‘तूफान तो मैं लाऊंगी तुम सब की जिंदगी में, देखना मैं क्या करती हूं.’’ और वह पैर पटकती हुर्ई अपने कमरे में चली गई. कुछ देर बाद एक सूटकेस ले कर निकली. तब तक सभी ड्राइंगरूम में दहशत से भरे एकदूसरे का मुंह देखते हुए खड़े थे.

अखिला बाहर निकली तो प्रियांशु ने पूछा, ‘‘कहां जा रही हो?’’

‘‘तुम्हें जहन्नुम में भेजने का इंतजाम करने जा रही हूं, तैयार रहना.’’ और वह तमतमाती हुर्ई चली गई. किसी की हिम्मत न हुई कि उसे रोक ले. रोकने से भी क्या रुकती. परंतु वे सब डर गए थे. कहीं मरखप न जाए और उसे मारने का इलजाम उन के ऊपर आ लगे.

हिम्मत- भाग 2 : सही दिशा दे पाने की सोच

रीना के साथ उस का संबंध नैतिकता की हर सीमा पार कर चुका हैयह मुझे उस दिन पता चलाजब रीना 2 दिन बैंक नहीं आई. उस ने गर्भपात कराया हैयह जान कर करंट सा लगा मुझे.

‘‘अरेयह पहली बार तो हुआ नहींरीना के साथ. वह भी कहां की शरीफ हैजो हम सारा दोष केशव पर डाल दें,’’ खाना खातेखाते मेरे सहयोगी ने रहस्योद्घाटन किया.‘‘जब उसे पता हैकेशव उस से शादी नहीं करने वाला तो क्यों जाती है उस के साथ?’’ कहते हुए मैं ने हैरानी से देखातब गरदन हिला दी थी मेरे सहयोगी ने.

‘‘यह तो रीना ही बता सकती हैहम क्यों जानें. हम तो बस इतना ही जानते हैं कि रीना के साथ यह पहली बार नहीं हुआ,’’ दूसरे ने उत्तर दिया.एक नया अनुभव था यह मेरे लिए एक स्त्री का ऐसा चालचलन मेरे गले में फांस जैसा अटक गया था.

तीसरेचौथे दिन रीना पहले की तरह ही केशव के साथ घुलमिल कर बातें कर रही थीजिसे देख कर मुझे स्वयं पर ही घिन आने लगी कि कैसे गंदे लोगों के साथ काम करता हूं.एक  सुबह केशव आया नहींपता चला बिहार गया है अपने गांव.15-16 दिन बाद लौटातब अपनी मां को भी साथ लेता आया. सामने घर में एक औरत को देख घर जैसी अनुभूति हुई. मुझे लगा जैसे मेरे घर में मेरी मां हो.

केशव की मां हैयह सोच कर तनिक झिझका था मैंलेकिन जब केशव ने मुसकरा कर पुकार लियातो अनायास ही मैं ने जा कर उन के चरण छू लिए.‘‘जीते रहोबेटे. क्या नाम है तुम्हारा. कहां से हो तुम…’’कई प्रश्न पूछ डाले केशव की मां ने. उत्तर दिया मैं ने और उस के बाद उन से मेरी जरा सी दोस्ती हो गई.

केशव बैंक में देर तक रहता थाइसलिए जैसे ही हम तीनों आते केशव की मां हमारे पास आ जातीं. हमारा हालचाल पूछतीं. कभीकभी वह हमारे लिए गुझियामठरी और कभी पकौड़े भी ले आतीं.‘‘बहुत काम रहता है क्या केशव को बैंक मेंजो सुबह का गया देर रात आता हैकहां रहता है यह?’’सुन कर चकित था मैंक्योंकि मेरे सामने ही तो वह रीना के साथ निकला था हर रोज की तरह. क्या उत्तर देता मैं उन्हेंमैं ने गरदन हिला कर कंधे उचका दिए.

‘‘किसी जरूरी काम से गया होगाइतना मैं जानती हूंलेकिन वह जरूरी काम क्या हैमेरी समझ में नहीं आता,’’ स्वयं ही उत्तर भी दिया अम्मां ने, ‘‘वहां से तो लाया था यह कह कर कि अम्मां को जालंधर में किसी अच्छे डाक्टर को दिखाऊंगा और यहां आए 15 दिन हो गए मुझेउसे तो इतना भी खयाल नहीं कि सुबह की छोड़ी मां वापस लौटने तक भूखी तो नहीं बैठी रह गई. वैसे तो खाना बनाने वाली दोपहर को भी आती है मुझे खाना खिलानेलेकिन बिहार से यहां मैं बाई के हाथ की रोटी तो खाने नहीं आई थी.’’

‘‘आप केशवजी की शादी क्यों नहीं कर देतींशादी की उम्र तो हो चुकी है न उन की. पत्नी होगी घर में तो समय पर चले ही आएंगे,’’ मैं ने कहा.‘‘बाहर क्या पत्नी के साथ घूमता रहता है जो,’’ सहसा पूछा अम्मां नेजिस पर मैं बगलें झांकने लगा. क्या उत्तर देता मैं.‘‘कोई है क्याजिस के पास रहता है इतनी देरसचसच बताना बेटामैं भी तुम्हारी मां जैसी हूं न.’’

‘‘पता नहींअम्मांजी. सचमुझे पता नहीं,’’ मैं सफेद झूठ बोल गया. ऐसा झूठजिस से अम्मां का विश्वास बना रहे.‘‘पहले कबअम्मांजी?’’ जिज्ञासावश पूछा मैं ने.

तेरे सुर और मेरे गीत-भाग 5: श्रुति और वैजयंति का क्या रिश्ता था

“ज्यादा बको मत. बहुत इंग्लिश जान गई हो? एक तो गैरजाति की, ऊपर से तलाकशुदा. क्या अपने एकलौते बेटे के लिए ऐसी ही बहू का सपना देखा था मैं ने?” बोल कर उन्होंने फोन पटक दिया. समझ गई मैं, आ गयी मेरी शामत, नहीं छोड़ेंगी दीदी अब मुझे. इसलिए मैं ने जीजा जी को फोन लगाया कि वे दीदी को समझाएं. लड़की बहुत अच्छी और गुणी है. पूरी दुनिया में उन्हें ढूंढने से भी ऐसी लड़की नहीं मिलेगी. उस पर जीजा जी ने कहा कि मेरी बात सही है, पर उस की दीदी को कौन समझाए? ‘वैसे, क्या उसे हिंदी में बात करना आता है?’ जीजा जी ने पूछा. “हांहां जीजा जी, उसे हिंदी आती.” यह बोल कर मैं सकपका गई और सुधार कर बोली कि उसे हिंदी में बात करना आता है. हंसते हुए जीजा जी बोले कि उसे भले ही हिंदी में बात करना आता हो, पर लगता है तुम्हारी हिंदी बिगड़ रही है. अगले हफ्ते ही जीजा जी के साथ दीदी भी आ धमकीं. मैं दीदी को देख उन से लिपट पड़ी. रोना आ गया मुझे इतने दिनों बाद दीदी को देख कर. आज इतने सालों बाद छोटी बहन को देख दीदी की भी आंखें भर आईं. लेकिन अगले ही पल वे मुंह फुला कर कहने लगीं कि अब वेदांत यहां नहीं रहेगा. वह अपना तबादला पटना में ही करवा लेगा या कहीं और मगर यहां नहीं रहेगा अब.

“लेकिन दीदी…, मैं बोल ही रही थी कि जीजा जी ने इशारों से मुझे चुप रहने को कहा. दोनों सफर से थकेमांदे आए थे, सो खाना खा कर सोने चले गए. लेकिन मेरे मन में एक धुकधुकी सी लगी हुई थी कि जाने अब क्या होगा. क्योंकि वेदांत का फैसला तो मैं सुन ही चुकी थी कि अगर दीदी ने उस के साथ जबरदस्ती करने की कोशिश की तो वह अपनी जान दे देगा. जो भी हो पर मैं वेदांत के साथ थी.

लेकिन दीदी का अगला कदम क्या होगा, नहीं पता था मुझे. बेचारे जीजा जी, उन की चलती ही कितनी है. दीदी के सामने वैसे ही वे भीगी बिल्ली बन जाते हैं. दीदी तो गुस्से से मुझे कच्चा चबाने पर आमादा थीं. लेकिन मैं ही उन से बची चल रही थी. लेकिन बात तो करनी ही थी कैसे भी कर के. “क्या बच्चों की खुशियों से बढ़ कर जातपांत और ऊंचनीच है? क्या हुआ अगर वैजंती तलाकशुदा है तो? हमारे पिताजी ने भी तो हमारी मां से दूसरी शादी की थी. जब उन की पहली पत्नी उन्हें छोड़ कर चली गई थी तब क्या हमारे पिताजी मां को ब्याह कर नहीं ले आए थे? फिर एक औरत के लिए समाज का रवैया अलग क्यों बन जाता है?” मैं ने कहा, लेकिन फिर भी दीदी को मेरी बातों से कोई फर्क नहीं पड़ा. वे वैसे ही अपनी जिद पर अड़ी हुई थीं. मुझे गुस्सा आ गया. इसलिए मैं ने वेदांत से बोल दिया कि वह वैजंती को भगा कर ले जाए और ब्याह कर ले उस से. बाद में जो होगा, देखा जाएगा. पर मां का लाड़ला बेटा, ऐसा भी करने से मना कर रहा था.

“तो फिर क्या किया जाए बता….क्योंकि तेरी मां तो कुछ सुनने को तैयार ही नहीं हैं और तू है कि मां के आशीर्वाद के बिना शादी नहीं करेगा. तो बैठा रह उम्रभर कुंआरा,” यह बोल कर मैं दनदनाती हुई कमरे से बाहर निकल ही रही थी कि देखा, दीदी बाहर खड़ी हमारी बातें सुन रही हैं. उन्हें देख डर से मैं कांप उठी कि अब मेरी खैर नहीं. लेकिन उन्होंने कड़कती आवाज में कहा-

“कल उस लड़की को चाय पर बुलाओ. मिलना चाहती हूं.”

मैं दंग थी. एकदम से यह कायापलट कैसे हो गया. मैं ने झट से हेमा जी को फोन लगाया. लेकिन वे रिक्वैस्ट करने लगीं कि हम सब उन के घर आएं चाय पर. यह भी ठीक है, मैं ने सोचा.

दीदी ने जाना कि दीवार पर टंगी सारी पेंटिंग्स वैजंती ने बनाई हैं तो वे एकटक दीवार पर टंगी पेंटिंग्स निहारने लगीं. लेकिन जब वैजंती ने उन के पांव छूए तो अकबका कर वे उन्हें देखने लगीं, तो देखने ही लगीं. कुछ देर उन की नजरें वहीं वैजंती पर ही ठहर गईं. एकएक कर वैजंती की सारी खूबियां जानने के बाद तो वे वैजंती को बहू बनाने के लिए एकदम उतावली हो गईं. कड़क आवाज में बोलीं, “मुझे यह रिश्ता मंजूर है.”

दीदी की इस बात पर हम सब खुशी से झूम उठे और एकदूसरे को मिठाई खिलाने लगे. लेकिन जब दूसरे ही पल उन्होंने कहा, “लेकिन मेरी एक शर्त है.” तो मुंह की मिठाई मुंह में ही अटक गई, लगा, अब क्या दीदी दहेज लेंगी. लेकिन फिर वे हंसती हुई बोलीं, “मैं अपनी होने वाली बहू को वैजंती नहीं, विधा कह कर बुलाऊंगी, चलेगा?” दीदी की बात पर हम सब खिलखिला कर हंस पड़े. मैं ने वेदांत को चिकोटी काटी और फुसफुसाते हुए कहा, ‘खुश है न, उस के सुर और तेरे गीत एक हो गए न. लेकिन शादी के बाद मुझे मत भूल जाना.’

वेदांत ने कान पकड़ कर कहा कि ‘कभी नहीं.’

सगाई के कुछ दिनों बाद ही वेदांत वैजंती एक हो गए.

कसक- भाग 3: क्यों अकेले ही खुश थी इंदु

इंदु की जिंदगी, बस, घर और दफ्तर के बीच पिस कर रह गई थी. इस बीच, अब होली का पर्व समीप था. इंदु के अपने सूने जीवन में अमन की याद होली पर्व में बहुत आती थी क्योंकि अमन ही उस का ऐसा दोस्त था जो उस से प्यार करता था. पर लोकलाज में उस ने इंदु से कभी अपने प्यार का इजहार नहीं किया. इंदु को याद आ रहे थे अमन की कविताओं के सुंदर शब्द, उस की मधुर आवाज और आंखों में उस के लिए बरसता प्यार. इंदु सोचने लगी, अगर हम दोनों ने लोकलाज की परवा न की होती तो आज शायद हमारा भी एक खुशहाल परिवार होता. खैर, अब इन सब बातों का क्या फायदा.

इंदु को लगा कि लंबा अरसा हो गया है मातापिता के साथ छुट्टी मनाए, सो, इस होली पर दफ्तर से छुट्टी ले कर रंगों का महोत्सव मनाया जाऐ. इंदु ने दफ्तर में होली पर छुट्टी की बात अपने बौस से कही.

बौस ने कहा, ‘कोई परेशानी नहीं, इंदू, इस बार तुम होली पर छुट्टी ले लो.’

इंदू ने ‘धन्यवाद सर’, कह बोली, ‘आप की भी होली खुशहाल रहे.’

यह कर कह इंदु अपनी केबिन में लौटी ही थी कि उस के साथ काम करने वाली रमा ने इंदु को कटाक्ष करते हुए कहा, ‘तुम्हें होली पर छुट्टी का क्या करना है. शादी तो तुम्हारी हुई नहीं…तो तुम्हें कौन सा बच्चों के लिए पिचकारी खरीदनी है. तुम्हारे लिए तो औफिस ही सब कुछ है. तो हमेशा की तरह इस बार भी यहीं होली मनाओ. कम से कम इस से हमारी टीम में से मुझे तो होली की छुट्टी मिल जाएगी. वैसे भी, तुम तो जानती हो कि मेरी बेटी की यह पहली होली है.’

रमा की ये बातें इंदु को ऐसी लगीं मानो किसी ने उस के कानों में शीशा घोल दिया हो. इंदु सोचने लगी कि क्या जीवन में शादी और बच्चों वालों को ही खुशियां मनाने का अधिकार है. क्या कोई अपने मातापिता के साथ या फिर अकेले खुशियां मनाने का अधिकार नहीं रखता. इंदु के मस्तिष्क में अभी यह सब चल ही रहा था कि इतने में रमा फोन पर रोनेचीखनेचिलाने लगी. पता चला कि उस के पति को सड़क दुर्घटना में बहुत गंभीर चोट आई है और उन्हें अस्पताल ले जाया जा रहा है. आननफानन रमा भी औफिस से अस्पताल के लिए निकली.

होली की वजह से अधिकतर स्टाफ छुट्टी पर था. पर न्यूज चैनल को तो दर्शकों तक 24 घंटे और 7 दिन खबरें पहुंचानी है. इस के चलते अब जो स्टाफ इन दिनों औफिस आ रहा था, उन पर काम का दायित्व अत्यधिक बढ़ गया था. इस सब उधेड़बुन के बीच करीब 15 दिन बीत चुके थे. रमा ने अब तक औफिस जौइन नहीं किया था. इंदु जवानों की विधवाओं पर जो कार्यक्रम बना रही थी, उस की टीम में रमा भी शामिल थी. वैसे ही पिछले कुछ समय से कम स्टाफ के चलते अत्यधिक काम के दबाव की वजह से इंदु पर काफी प्रैशर था. एक दिन जब कार्यक्रम की एडिटिंग के लिए इंदू काम कर रही थी, तो कई लोगों ने उस से रमा की शिकायत की और कहा कि रमा को अपनी जिम्मेदारियों का बिलकुल भी एहसास नहीं है. हमेशा कोई न कोई बहाना बनाती रहती है. अगर एक बार भी उस की न सुनो तो हायतोबा मचा देती है. अभी पिछले 2-3 हफ्तों से छुट्टी पर है. अब मैडम कह रही हैं कि उन्हें खुद बुखार है, तो औफिस नहीं आ पाएंगी.

इंदु के साथ भी कौन सा रमा ने अच्छा व्यवहार किया था, पर शायद यह इंदु के संस्कार ही थे कि अपने साथियों की ऐसी बातें सुन कर भी उसे गुस्सा नहीं आया, बल्कि उसे रमा की चिंता होने लगी. फिर क्या था, एक दिन अपने साप्ताहिक अवकाश वाले दिन इंदु रमा के घर जा पहुंची. रमा की हालत देख कर इंदु रोंआसी हो गई. एक तरफ बिस्तर पर रमा का पति कराह रहा था. सड़क हादसे में उसे लगी चोट से अभी वह पूरी तरह ठीक नहीं हो पाया था. दूसरी तरफ बच्चे भूख से रो रहे थे, क्योंकि बच्चों की आया कई दिनों से छु्ट्टी पर थी. इन सब के बीच बुखार में तड़पती रमा जैसेतैसे घर के काम को समेटने में लगी थी. रमा की यह स्थिति इंदु से देखी नहीं गई. उस ने रमा को गले लगाते हुए कहा कि तुम आराम करो. तुम्हें आराम की सख्त जरूरत है. तभी खुद को और अपने परिवार को संभाल पाओगी. तुम औफिस की चिंता मत करो. जब तक तुम ठीक नहीं हो जातीं और तुम्हारी कामवाली नहीं आ जाती, मैं तुम्हारा काम संभाल लूंगी. इंदु की ये बातें सुन कर रमा की आंखों में अब पछतावे के आंसू थे. उसे अपनी करनी याद आ रही थी…उस ने न जाने कितनी बार इंदु को उस की शादी न होने के ताने दिए थे और इंदू के व्यक्तिगत जीवन पर टीकाटिप्पणी की थी.

उसे अपनी गलती का एहसास हुआ और वह सोचने लगी कि किसी की शादी होना या न होना किसी व्यक्ति का अपनी निजी फैसला है. इस पर किसी को टीकाटिप्पणी करने का कोई अधिकार नहीं. क्या मदर टेरेसा और लता मंगेशकर के जीवन से हमें प्रेरणा नहीं लेनी चाहिए. रमा की आंखों में पछतावे के आंसू थे. इंदू ने रमा की आंखों में अपने प्रति पछतावे के आंसू देख लिए थे. दोनों एकदम मौन थीं. लेकिन दोनों एकदूसरे की भाषा समझ चुकी थीं. इंदु ने रमा की ओर प्यारभरे अंदाज से देखा और फिर वहां से चल दी.

आज बहुत सालों बाद इंदु की आंखों में भी खुशी के आंसू थे. इंदु ने भी अपने अकेलेपन में खुशियां तलाश ली थीं. उसे समझ आ गया था कि शादी ही सबकुछ नहीं है. बल्कि खुश रहना भी एक कला है चाहे आप अकेले खुश रहें या फिर अपने मातापिता या फिर किसी के साथ शादी के बंधन में बंध कर. मुश्किलों से लड़ना और हर हालत में खुशी बनाए रखना ही जिंदगी है. आज पहली बार इंदु को अपने अकेलेपन पर तरस नहीं, बल्कि एक सूकून था कि वह एक अच्छी इंसान बन पाई.

धरा – भाग 2: धरती पर बोझ नहीं बेटियां

शिखा आज तनमन दोनों से कमजोर महसूस कर रही थी. दुख तो उसे इस बात का हो रहा था कि एक मां हो कर भी वह अपनी बच्ची को बचा नहीं पा रही है. और सब से ज्यादा दुख उसे इस बात का हो रहा है कि एक बाप हो कर भी कैसे अरुण अपनी ही बेटी को मारने के लिए तत्पर है. क्या जरा भी मोह नहीं है उसे अपनी इस अजन्मी बच्ची से? यही अगर बेटा होता तो इस घर के लोगों की खुशियों का ठिकाना नहीं होता. लेकिन, बेटी जान कर कैसे इन सब के मुंह सूज गए. जल्द से जल्द ये लोग इस बच्ची से छुटकारा पाना चाहते हैं. कैसा समाज है ये, जहां बेटे का स्वागत तो होता है, पर बेटियों का नहीं. लेकिन, अगर बेटी ही नहीं रहेगी, फिर बहू कहां से आएगी? यह क्यों नहीं समझते लोग? अपने पेट पर हाथ फिराते हुए शिखा फफक कर रो पड़ी. वह अपनी अजन्मी बच्ची को मारना नहीं चाहती थी, बल्कि उसे जन्म देना चाहती थी. लेकिन समझ नहीं आ रहा था कि कैसे अपनी अजन्मी बच्ची को इन हत्यारों से बचाए.

शिखा का मन करता कभी यहां से कहीं दूर भाग जाए, ताकि उस की बच्ची को कोई मार न सके. जो बच्चा अभी इस दुनिया में आया भी नहीं है, उसे उस की मां की कोख में ही मारने की तैयारी करने वाला कोई और नहीं, बल्कि इस के पापा और दादी हैं. लेकिन, एक मां हो कर कैसे शिखा अपनी ही बच्ची को मरते देख सकती थी?

शिखा अपनी 3 बेटियों के साथ बहुत खुश थी. लेकिन सुमित्रा को ही एक पोता चाहिए था, जिस के लिए उसे चौथी बार मां बनने के लिए मजबूर किया गया. शिखा तो सोनोग्राफी करवाना ही नहीं चाहती थी. लेकिन, सुमित्रा के आगे उस की एक न चली. सुमित्रा चाहती थी कि जांच में अगर लड़की निकलीbतो उसे खराब करवा देंगे, क्योंकि और लड़की नहीं चाहिए थी उसे इस घर में. लड़कियों को पालना घाटे के सौदे की तरह देखती थी सुमित्रा. उस की नजर में तो बेटा ही वंश कहलाता है और बेटा ही अपने मातापिता को मोक्ष दिलाता है.

हमेशा वह शिखा को कड़वी गोलियां पिलाती रहती, यह कह कर कि बड़ी बहू ने बेटे के रूप में उसे 2-2 रत्न दिए. लेकिन, इस करमजली ने सिर्फ बेटी ही पैदा की है. उसे अपने बेटे अरुण के वंश की चिंता हो चली थी. कैसे भी कर के वह शिखा से एक बेटा चाहती थी. लेकिन, सुमित्रा को नहीं पता कि बेटा या बेटी होना अपने हाथ की बात नहीं है. और एक मां के लिए तो बेटा और बेटी दोनों अपनी ही संतान होती है. लेकिन पता नहीं सुमित्रा को यह बात समझ क्यों नहीं आती थी.

आएदिन सुमित्रा यह बोल कर शिखा को ताना मारती कि 3-3 बेटियां पैदा कर के नातेरिश्तेदारों में उस ने उस की नाक कटवा दी. जब कोई कहता कि छोटी बहू तो एक बेटा तक पैदा नहीं कर पाई, तो सुमित्रा का कलेजा जल उठता था. पोते के लिए आएदिन वह कोई न कोई कर्मकांड कराती ही रहती थीं और जिस में उस के हजारों रुपए स्वाहा हो जाते थे. मगर सुमित्रा को इस बात का कोई गम न था. उसे तो बस कैसे भी कर के एक पोता चाहिए था. इस के लिए वह कई पोतियों का बलिदान करने को भी तैयार थी. जूही के समय जांच कर डाक्टर ने बताया था कि शिखा के पेट में लड़का है. लेकिन पैदा हो गई लड़की, तो डाक्टर पर से भी सुमित्रा का विश्वास उठ गया. इसलिए इस बार उस ने कोई अच्छे डाक्टर से जांच करवाने की ठानी थी, ताकि फिर कोई भूल न हो सके.

लेकिन शिखा को डर था कि जांच में अगर कहीं लड़की निकली, तो ये लोग उस के बच्चे की कब्र उस की मां की कोख में ही बना देंगे. इसलिए वह जांच करवाने से टालमटोल कर रही थी. मगर टालमटोल कर के भी क्या हो गया? जांच तो करवानी ही पड़ती और शिखा को जिस बात का डर था, वही हुआ. बेटी का नाम सुनते ही सुमित्रा के कलेजे पर सांप लोट गया. अरुण का भी एकदम से मुंह लटक गया.

सुमित्रा तो उसी वक्त यह बच्चा गिरवा देना चाहती थी. मगर, डाक्टर ने मना कर दिया कि वह यह सब काम नहीं करता. अब रूल इतना कड़ा बन गया है कि पता चलने पर डाक्टर की डिगरी तो जब्त होती ही है, जेल की भी हवा खानी पड़ती है. लेकिन चोरीछिपे कहींकहीं अब लिंग परीक्षण तो होता ही है.

इधर, अरुण ऐसे किसी डाक्टर की खोज में था, जो इस मुसीबत से छुटकारा दिला सके और उधर शिखा यह सोच कर बस रोती रहती कि कैसे भी कर के अरुण और सुमित्रा इस बच्चे को न मारें, विचार बदल लें अपना.

कानून: न्यायालय और देश

देर से मिला न्याय, न्याय नहीं होता और गोधरा कांड जैसे गंभीर मामले की अगर फाइल बंद कर दी जाए तो पीडि़तों के न्याय का क्या होगा? नएनए मुख्य न्यायाधीश उदय उमेश ललित उच्चतम न्यायालय के पदभार ग्रहण करते ही 30 अगस्त को देश के 2 महत्त्वपूर्ण मामले ‘बाबरी मस्जिद’ और ‘गोधरा कांड’ के संबंध में जो फैसले आए हैं वे देश के लिए एक नजीर बन जाएंगे. आने वाले समय में ऐसे बहुत से मामलों, जो राजनीति और समाज को प्रभावित करने वाले हैं जिन में 1984 का दंगा मामला भी है, में ये फैसले ‘फैसलों के राजमार्ग’ साबित होंगे. दरअसल, इस से कई सवाल उठ खड़े हुए हैं.

पहला सवाल है न्याय का. देश की उच्चतम न्यायालय तक किसी व्यक्ति या मामले का पहुंचना आसान नहीं है. यह न्यायालय भी जानता है. जब नीचे के सारे कोर्ट, सरकार मौन हो जाते हैं तब कोई मामला देश की उच्चतम न्यायालय की देहरी पर पहुंचता है और अगर वहां 20 और 30 साल तक न्याय न मिल सके तो अनेक सवाल खड़े हो जाते हैं, जिन का जवाब न्यायालय को और देश की संसद को ढूंढ़ना चाहिए. शायद सच ही कहा गया है कि देर से मिला न्याय भी न्याय नहीं होता. ऐसे में गोधरा कांड जैसे गंभीर मामले की अगर फाइल ही बंद कर दी जाए तो पीडि़त लोगों, जो उस त्रासदी से गुजरे हैं, को तो न्याय नहीं मिला. सो, उन पर क्या गुजरेगी? यहां पहले बाबरी मसजिद के मामले जानते हैं. उमा भारती, मुरली मनोहर जोशी, विनय कटियार आदि के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही को उच्चतम न्यायालय में मंगलवार को बंद कर न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की पीठ ने कहा कि अवमानना मामले में याचिकाकर्ता का निधन हो चुका है.

अब इस मामले में कुछ नहीं है जब अयोध्या फैसले की पीठ पहले से बड़े मुद्दे पर फैसला कर चुकी है. अवमानना का यह मामला 1992 का है. पीठ ने कहा, ‘‘उत्तर प्रदेश सरकार के खिलाफ मोहम्मद असलम द्वारा सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी.’’ लोकतांत्रिक देश भारत में अवाम यह पूछ रही है कि 1992 का मामला आखिर 30 वर्षों तक कैसे और क्यों चलता रहा? गोधरा कांड और सुलगते सवाल गुजरात के गोधरा में दंगा भड़क उठने के इस मामले को ले कर केंद्र सरकार ने एक आयोग नियुक्त किया था जिस का मानना था कि यह महज एक दुर्घटना थी. इस निष्कर्ष से बवाल खड़ा हो गया और आयोग को असंवैधानिक घोषित कर दिया गया. गोधरा कांड में 28 फरवरी, 2002 को 71 ‘दंगाई’? गिरफ्तार किए गए थे. गिरफ्तार लोगों के खिलाफ आतंकवाद निरोधक अध्यादेश (पोटा) लगाया गया था. जबकि, 25 मार्च, 2002 को सभी आरोपियों पर से पोटा हटा लिया गया था.

सुनवाई के दौरान एसआईटी की ओर से वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने पीठ को बताया कि नरोदा गांव क्षेत्र से संबंधित केवल एक मामले की सुनवाई अभी लंबित है और अंतिम बहस के चरण में है. अन्य मामलों में ट्रायल पूरे हो गए हैं और मामले हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपीलीय स्तर पर हैं. पीठ ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ताओं की ओर से वकीलों अपर्णा भट, एजाज मकबूल और अमित शर्मा ने एसआईटी के बयान को निष्पक्ष रूप से स्वीकार किया है. महत्त्वपूर्ण तथ्य सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘‘सभी मामले अब निष्फल हो गए हैं. हमारा विचार है कि इस न्यायालय को अब इन याचिकाओं पर विचार करने की आवश्यकता नहीं है.

इसलिए मामलों को निष्फल होने के रूप में निबटाया जाता है और यह निर्देश दिया जाता है कि नरोदा गांव के संबंध में मुकदमे का कानून के अनुसार निष्कर्ष निकाला जाए और उस हद तक इस अदालत द्वारा नियुक्त विशेष जांच दल निश्चित रूप से कानून के अनुसार उचित कदम उठाने का हकदार होगा.’’ अपर्णा भट ने कोर्ट को बताया कि सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़, जिन के एनजीओ सिटिजन फौर पीस एंड जस्टिस ने दंगों के मामलों में उचित जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट में आवेदन किया था,

की सुरक्षा की मांग करने वाली एक याचिका लंबित है. अपर्णा ने कहा कि उसे सीतलवाड़ से निर्देश नहीं मिल सका है क्योंकि वे इस समय गुजरात पुलिस द्वारा दर्ज एक नए मामले में हिरासत में हैं. हालांकि यह सच है कि देश का उच्चतम न्यायालय विद्वान न्यायाधीशों के अधीन है और लोगों की आशा व आकांक्षाओं का प्रतिबिंब जाहिर करता है मगर इस फैसले से आने वाले समय में पुराने कई मामले, जिन में 1984 का दंगों का मामला भी है, क्या प्रभावित नहीं होंगे, सवाल यह पैदा हुआ है.

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