जिंदगी में धीरेधीरे एक सन्नाटा सा छाने लगा था. हमारी आपस की बातचीत भी कम होती जा रही थी. 25 अप्रैल का दिन था. सुबह जब 8 बजे तक संजय अपने कमरे से बाहर नहीं आए, तो मैं ने पास जा कर देखा.