नए-नए मुख्य न्यायाधीश उदय उमेश ललित उच्चतम न्यायालय के पदभार ग्रहण करते ही मंगलवार 30 अगस्त को, देश के दो महत्वपूर्ण मामले- बाबरी मस्जिद और गोधरा कांड में जो फैसले आए हैं वह देश के लिए एक नजीर बन जाएंगे. आने वाले समय में ऐसे बहुत से मामले जो राजनीति और समाज को प्रभावित करने वाले हैं जिनमें 1984 का दंगा भी है अब चाहे सरकार भारतीय जनता पार्टी की हो अथवा अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस या किसी अन्य दल की आगे भी ऐसे संवेदनशील मामलों में "फैसलों के राजमार्ग" बन गए हैं.
दरअसल, इससे कई सवाल उठ खड़े हुए हैं सबसे पहला सवाल है न्याय का. देश की उच्चतम न्यायालय तक किसी व्यक्ति या मामले का पहुंचना कोई आसान बात नहीं है. यह न्यायालय भी जानती है. जब नीचे के सारे कोर्ट, सरकार मौन हो जाते हैं तब कोई मामला देश की उच्चतम न्यायालय की देहरी पर पहुंचता है. और अगर वहां 20 और 30 साल तक अगर न्याय मिल सके तो अनेक सवाल खड़े हो जाते हैं. वस्तुत: जिनका जवाब न्यायालय को और देश की संसद को ढूंढने चाहिए.
क्योंकि कहा गया है कि देर से मिला न्याय भी न्याय नहीं होता. ऐसे में गोधरा कांड जैसे गंभीर मामले कि अगर फाइल ही बंद कर दी जाए तो जो पीड़ित लोग, जो उस त्रासदी से गुजरे हैं उन्हें तो न्याय नहीं मिला, उन पर क्या गुजरेगी.
आइए, आपको पहले बाबरी मस्जिद के मामले में जानकारी दें-
उमा भारती, मुरली मनोहर जोशी , विनय कटियार आदि के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही को उच्चतम न्यायालय में मंगलवार को बंद कर न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की पीठ ने कहा कि अवमानना मामले में याचिकाकर्ता का निधन हो चुका है.