पावर औफ अटौर्नी यानी मुख्तारनामा ऐसा कानूनी दस्तावेज है जिस के तहत इसे देने वाला अपनी जायदाद के कानूनी अधिकार किसी भरोसेमंद व्यक्ति को ट्रांसफर कर देता है और वह व्यक्ति आमतौर पर नजदीकी रिश्तेदार ज्यादा होता है.

जो लोग बढ़ती उम्र, अशक्तता विकलांगता, बीमारी या दूसरी किसी अहम वजह के चलते कोर्टकचहरी की भागादौड़ी नहीं कर सकते उन के लिए पावर औफ अटौर्नी वाकई सहूलियत वाला जरिया है. अभी तक प्रिंसिपल यानी पावर औफ अटौर्नी देने वालों को खूब टिप्स और सलाह दी जाती रही हैं कि इसे हर किसी को न दें, इस के बेजा इस्तेमाल से बचने को यह और वह करें वगैरहवगैरह. लेकिन कभीकभी होता इस के उलट भी है कि कई बार पावर औफ अटौर्नी लेने वाले को लेने के देने पड़ जाते हैं. भोपाल के एक 35 वर्षीय भुक्तभोगी नाम आशुतोष की मानें तो उन्होंने इंदौर में रह रहे अपने 65 वर्षीय चाचा से भोपाल की एक जमीन बेचने के लिए पावर औफ अटौर्नी ली थी क्योंकि चाचा लकवाग्रस्त हैं और उन की बेटी अमेरिका में रहती है.

जब आशुतोष इंदौर के रजिस्ट्रार दफ्तर से मुख्तारनामा ले कर आए तो बड़े खुश थे कि चलो, पितातुल्य चाचा के किसी काम तो आएंगे. लेकिन जब वे जमीन पर पहुंचे तो पता चला कि उस पर कच्चेपक्के कब्जे हो चुके हैं. एकाधदो को तो उन्होंने पुलिस वालों की सहायता से हटवा दिया लेकिन बाकियों पर उन का जोर नहीं चला क्योंकि उन्होंने जमीन का टैक्स भर उसे नगरनिगम में अपने नाम करा लिया था. पुलिस वालों ने मदद करने के एवज में जो मोटा नजराना लिया उस के बाबत चाचा कुछ नहीं बोले पर जोर देने पर बोले कि जब जमीन बिक जाए तो उस में से अपना खर्च काट लेना. आज 5 साल हो गए हैं लेकिन उस जमीन का एक टुकड़ा भी विवादित होने के चलते नहीं बिका है.

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