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विंटर स्पेशल : पंजाबी चिक्की- तिल, गुड़ और मूंगफली से भरपूर

जाड़ों में खानपान के जरीए सर्दी के असर को दूर किया जा सकता है. गुड़ और मूंगफली का इस में सब से अहम रोल होता है. ये चीजें खाने से शरीर गरम रहता है. गुड़ और मूंगफली को मिला कर चिक्की तैयार की जाती है.  चिक्की पहले आम लोगों की मिठाई ही मानी जाती थी. अब यह बड़ी मिठाई की दुकानों पर भी मिलने लगी है. स्वाद में लाजवाब चिक्की को गुड़, चीनी और मूंगफली मिला कर तैयार किया जाता है. अब इस के स्वाद को और बढ़ाने के लिए इस में तिल और गुलाब की सूखी पंखुडि़यों को भी मिलाया जाता है. इसे पंजाबी चिक्की के नाम से जानते हैं. जाड़ों में पंजाब का मशहूर त्योहार लोहड़ी आता है, इस में पंजाबी चिक्की का अलग महत्व होता है. कई जगहों पर इसे गुड़ की पट्टी भी कहते हैं.

‘पंजाबी चिक्की का स्वाद प्रचलित चिक्की से अलग होता है. इस में तिल और गुलाब की पंखुडि़यां डालने से स्वाद और अंदाज दोनों में अंतर आता है. ‘पंजाबी चिक्की पूरी तरह से लोहड़ी को ध्यान में रख कर बनाई गई है.’

सर्दियों में जो लोग मेवे नहीं खा सकते, उन के लिए मूंगफली किसी मेवे से कम नहीं होती है. रात में खाने के बाद चिक्की का सेवन करने से शरीर गरम रहता है. इस से खाने को पचाने में भी मदद मिलती है. गुड़ में खास तरह का एक तत्त्व होता है, जो खाने को पचाने में मदद करता है. सही पाचन से शरीर में एंटी आक्सिडेंट्स बनते हैं. इस से शरीर में बने टाक्सिंस को बाहर निकलने में आसानी रहती है. इसे खाने से मिठाई के खाने जैसा नुकसान नहीं होता है. मूंगफली में प्रोटीन होता है, जो शरीर को मजबूत बनाने का काम करता है. शरीर में खून की कमी के शिकार लोगों के लिए चिक्की का सेवन करना लाभदायक होता है. इस में तिल मिले होने से शरीर को मजबूती मिलती है और गुलाब की पंखुडि़यों से इस में ताजगी आती है.

कैसे बनती है पंजाबी चिक्की

पंजाबी चिक्की बनाने के लिए अच्छे किस्म का गुड़ लेना चाहिए ़ चिक्की का रंग काला न हो कर पारदर्शी दिखे इस के लिए गुड़ की बराबर मात्रा में इस में चीनी मिलाई जाती है. अगर चिक्की के रंग को ज्यादा साफ दिखाना हो तो गुड़ में चीनी की मात्रा बढ़ा देनी चाहिए. वैसे सब से अच्छी चिक्की वही मानी जाती है, जिस में गुड़ और चीनी की मात्रा बराबर होती है. गुड़ को पानी में डाल कर उबाला जाता है. इस दौरान गुड़ से कुछ झाग सा निकलता है, इस को छन्नी से छान कर बाहर कर दिया जाता है. इस के बाद इस में चीनी डाल दी जाती है. इस में से अगर कोई गंदगी निकले तो उसे भी छान का बाहर कर दिया जाता है.

2 तार की चाशनी बना लेनी चाहिए.  इस में जरूरत के हिसाब से मूंगफली और तिल के दाने साफ कर के और भून कर डाल देने चाहिए. आमतौर पर 1 किलोग्राम तैयार चाशनी में 500 ग्राम मूंगफली और 100 ग्राम तिल के दाने डाले जाते हैं. जिन लोगों को गुड़ कम खाना हो, वे 750 ग्राम तक मूंगफली के दाने डाल सकते हैं. इस तैयार सामाग्री को एक बड़ी, चौड़ी और साफसुथरी जगह पर फैला लिया जाता है. जब पूरी सामाग्री सेट हो जाती है, तो उसे कटर से इच्छानुसार टुकड़ों में काट लिया जाता है. चिक्की ज्यादातर छोटेछोटे टुकड़ों में काटी जाती है.  चिक्की को कुछ लोग प्लेट में सजा कर जमा देते हैं. जिस जगह पर यह सामग्री डाली जाती है, वहां पर पहले से चिकनाई लगा दी जाती है, जिस से ठंडी होने के बाद इस को निकालने में आसानी रहे.

रोजगार का साधन

गुड़पट्टी या चिक्की को बना कर बेचना एक अच्छा रोजगार होता है. मिठाई की दुकानों के साथ ही साथ सड़कों व मेलों में ठेला लगा कर इसे बेचा जाता है. गुड़पट्टी 140 रुपए से ले कर 600 रुपए प्रति किलोग्राम तक मिलती है. महंगी वाली गुड़पट्टी चिक्की कहलाती है, क्योंकि उसे तैयार करने मेें देशी घी का इस्तेमाल किया जाता है. कारीगर रमाकांत कहते हैं, ‘चिक्की  बनाने में इस्तेमाल की जाने वाली सामग्री की क्वालिटी बहुत ही अच्छी होनी चाहिए. इसे बनाते समय साफसफाई का पूरा खयाल रखना चाहिए. इसे ऐसे रखना चाहिए, जिस से इस में हवा न लगे. हवा लगने से चिक्की कुरकुरी नहीं रहती और सील जाती है.’

वह बेमौत नहीं मरता: एक कठोर मां ने कैसे ले ली बेटे की जान

बड़बड़ा रही थीं 80 साल की अम्मां. सुबहसुबह उठ कर बड़बड़ करना उन की रोज की आदत है, ‘‘हमारे घर में नहीं बनती यह दाल वाली रोटी, हमारे घर में यह नहीं चलता, हमारे घर में वह नहीं किया जाता.’’ सुबह 4 बजे उठ जाती हैं अम्मां, पूजापाठ, हवनमंत्र, सब के खाने में रोकटोक, सोनेजागने पर रोकटोक, सब के जीने के स्तर पर रोकटोक. पड़ोस में रहती हूं न मैं, और मेरी खिड़की उन के आंगन में खुलती है, इसलिए न चाहते हुए भी सारी की सारी बातें मेरे कान में पड़ती रहती हैं.

अम्मां की बड़ी बेटी अकसर आती है और महीना भर रह जाती है. घूमती है अम्मां के पीछेपीछे, उन का अनुसरण करती हुई.

आंगन में बेटी की आवाज गूंजी, ‘‘अम्मां, पानी उबल गया है अब पत्ती और चीनी डाल दूं?’’

‘‘नहीं, थोड़ा सा और उबलने दे,’’ अम्मां अखबार पढ़ती हुई बोलीं.

मुझे हंसी आ गई थी कि 60 साल की बेटी मां से चाय बनाना सीख रही थी. अम्मां चाहती हैं कि सभी पूरी उम्र उन के सामने बड़े ही न हों.

‘‘हां, अब चाय डाल दे, चीनी और दूध भी. 2-3 उबाल आने दे. हां, अब ले आ.’’

अम्मां की कमजोरी हर रोज मैं महसूस करती हूं. 80 साल की अम्मां नहीं चाहतीं कि कोई अपनी इच्छा से सांस भी ले. बड़ी बहू कुछ साल साथ रही फिर अलग चली गई.

बेटे के अलग होने पर अम्मां ने जो रोनाधोना शुरू किया उसे देख कर छोटा लड़का डर गया. वह ऐसा घबराया कि उस ने अम्मां को कुछ भी कहना छोड़ दिया.

दुकान के भी एकएक काम में अम्मां का पूरा दखल था. नौकर कितनी तनख्वाह लेता है, इस का पता भी छोटे लड़के को नहीं था. अम्मां ही तनख्वाह बांटतीं.

छोटे बेटे का परिवार हुआ. बड़ी समझदार थी उस की पत्नी. जब आई थी अच्छे खातेपीते घर की लड़की थी लेकिन अब 18 साल में एकदम फूहड़गंवार बन कर रह गई है.

अम्मां बेटी के साथ बैठ कर चुहल करतीं तो मेरा मन उबलने लगता. गुस्सा आता मुझे कि कैसी औरत है यह. कभी उन के घर जा कर देखो तो, रसोई में वही टीन के डब्बे लगे हैं जिन पर तेल और धुएं की मोटी परत चढ़ चुकी है. बहू की क्या मजाल जो नए सुंदर डब्बे ला कर रसोई में सजा ले और उन में दालें, मसाले डाल ले.

मरजी अम्मां की और फूहड़ता का लेबल बहू के माथे पर. बड़ी बेटी जो दिनरात मां का अहम् संतुष्ट करती है, जिस का अपना घर हर सुखसुविधा से भरापूरा है, जो माइक्रोवेव के बिना खाना ही गरम नहीं कर सकती, वह क्या अपनी मां को समझा नहीं सकती? मगर नहीं, पता नहीं कैसा मोह है इस बेटी का कि मां का दिल न दुखे चाहे हजारों दिल दिनरात कुढ़ते रहे.

‘‘मेरे घर में 3 रोटियां खाने का रिवाज नहीं,’’ अम्मां ने बहू के आते ही घर के नियम उस के कान में डाल दिए थे. जब अम्मां ने देखा कि बहू ने चौथी रोटी पर भी हाथ डाल दिया तो बच्चों को नपातुला भोजन परोसने वाली अम्मां कहां सह लेती कि बहू हर रोज 1-1 रोटी ज्यादा खा जाती.

छोटा लड़का मां को खुश करताकरता ही बीमार रहने लगा था. सुबह से शाम तक दुकान पर काम करता और पेट में डलती गिन कर पतलीपतली 5 रोटियां जो उस के पूरे दिन का राशन थीं. बाजार से कुछ खरीद कर इस डर से नहीं खाता कि नौकरों से पता चलने के बाद अम्मां घर में महाभारत मचा देंगी.

‘‘किसी ने जादूटोना कर दिया है हमारे घर पर,’’ बेटा बीमार पड़ा तो अम्मां यह कहते हुए गंडेतावीजों में ऐसी पड़ीं कि अड़ोसीपड़ोसी सभी उन को दुश्मन नजर आने लगे, जिन में सब से ऊपर मेरा नाम आता था.

अम्मां का पूरा दिन हवनमंत्र में बीतता है और जादूटोने पर भी उन का उतना ही विश्वास था. पूरा दिन परिवार का खून जलाने वाली अम्मां को स्वर्ग चाहिए चाहे जीते जी आसपास नरक बन जाए. छोटा बेटा इलाज के चक्कर में कई बार दिल्ली गया था. सांस अधिक फूलने लगी थी इसलिए इन दिनों वह घर पर ही था. एक सुबह वह चल बसा. हम सब भाग कर उन के घर जमा हुए तो मेरी सूरत पर नजर पड़ते ही अम्मां ने चीखना- चिल्लाना शुरू किया, ‘‘हाय, तू मेरा बेटा खा गई, तूने जादूटोने किए, देख, मेरा बच्चा चला गया.’’

अवाक् रह गई मैं. सभी मेरा मुंह देखने लगे. ऐसा दर्दनाक मंजर और उस पर मुझ पर ऐसा आरोप. मुझे भला क्या चाहिए था अम्मां से जो मैं जादूटोना करती.

‘‘अरे, बड़की बहू तेरी बड़ी सगी है न. सारा छोटा न ले जाए इसलिए उस ने तेरे हाथ जादूटोने भेज दिए…’’

मैं कुछ कहती इस से पहले मेरे पति ने मुझे पीछे खींच लिया और बोले, ‘‘शांति, चलो यहां से.’’

मौका ऐसा था कि दया की पात्र अम्मां वास्तव में एक पड़ोसी की दया की हकदार भी नहीं रही थीं.

इनसान बहुत हद तक अपने हालात के लिए खुद ही जिम्मेदार होता है. उस का किया हुआ एकएक कर्म कड़ी दर कड़ी बढ़ता हुआ कितनी दूर तक चला आता है. लंबी दूरी तय कर लेने के बाद भी शुरू की गई कड़ी से वास्ता नहीं टूटता. 80 साल की अम्मां आज भी वैसी की वैसी ही हैं.

बहू दुकान पर जाती है और बड़ी पोती स्कूल के साथसाथ घर भी संभालती है. अम्मां की सारी कड़वाहट अब पोती पर निकलती है. 4 साल हो गए बेटे को गए. इन 4 सालों में अम्मां पर बस, इतना ही असर हुआ है कि उन की जबान की धार पहले से कुछ और भी तेज हो गई है.

‘‘कितनी बार कहा कि सुबहसुबह शोर मत किया करो, अम्मां, मेरे पेपर चल रहे हैं. रात देर तक पढ़ना पड़ता है और सुबह 4 बजे से ही तुम्हारी किटकिट शुरू हो जाती है,’’ एक दिन बड़ी पोती ने चीख कर कहा तो अम्मां सन्न रह गईं.

‘‘रहना है तो तुम हमारे साथ आराम से रहो वरना चली जाओ बूआ के साथ. दाल वाली रोटी पसंद नहीं तो बेशक भूखी रह जाओ, सादी रोटी बना लो मगर मेरा दिमाग मत चाटो, मेरा पेपर है.’’

‘‘हायहाय, मेरा बेटा चला गया तभी तुम्हारी इतनी हिम्मत हो गई…’’

अम्मां की बातें बीच में काटते हुए पोती बोली, ‘‘बेटा चला गया तभी तुम्हारी भी हिम्मत होती है उठतेबैठते हमें घर से निकालने की. पापा जिंदा होते तो तुम्हारी जबान भी इतनी लंबी न होती…’’

खिड़की से आवाजें अंदर आ रही थीं.

‘‘…अपने बेटे को कभी पेट भर कर खिलाया होता तो आज हम भी बाप को न तरसते. अम्मां, इज्जत लेना चाहती हो तो इज्जत करना भी सीखो. मुझे पापा मत समझना अम्मां, मैं नहीं सह पाऊंगी, समझी न तुम.’’

शायद अम्मां का हाथ पोती पर उठ गया था, जिसे पोती ने रोक लिया था.

तरस आता था मुझे बच्ची पर, लेकिन अब थोड़ी खुशी भी हो रही है कि इस बच्ची को विरोध करना भी आता है.

पेपर खत्म हुए और एक दिन फिर से घर में कोहराम मच गया. घबरा कर खिड़की में से देखा. चमचमाते 3 बड़ेछोटे ट्रंक आंगन में पड़े थे. जिन पर अम्मां चीख रही थीं. दुकान से पैसे ले कर खर्च जो कर लिए थे.

‘‘घर में इतने ट्रंक हैं फिर इन की क्या जरूरत थी?’’

‘‘होंगे, मगर मेरे पास नहीं हैं और मुझे अपना सामान रखने के लिए चाहिए.’’

अम्मां कुली का हाथ रोक रही थीं तो पोती ने अम्मां का हाथ झटक दिया था और बोली, ‘‘चलो भैया, टं्रक अंदर रखो.’’

छाती पीटपीट कर रोने लगी थी अम्मां, पोती ने लगे हाथ रसोई में जा कर टीन के सभी डब्बे बाहर ला पटके जिन्हें बाद में कबाड़ी वाला ले गया. पोती ने नए सुंदर डब्बे धो कर सामने मेज पर सजा दिए थे. अम्मां ने फिर मुंह खोला तो इस बार पोती शांत स्वर में बोली, ‘‘पापा कमाकमा कर मर गए, मेरी मां भी क्या कमाकमा कर तुम्हारी झोली ही भरती रहेगी? हमें जीने कब दोगी अम्मां? जीतेजी जीने दो अम्मां, हम पर कृपा करो…’’

पोती की इस बगावत से अम्मां सन्न थीं. वे सुधरेंगी या नहीं, मैं नहीं जानती मगर इतना जरूर जानती हूं कि अम्मां के लिए यह सब किसी प्रलय से कम नहीं था. सोचती हूं इतना ही विरोध अगर छोटे बेटे ने भी कर दिखाया होता तो इस तरह का दृश्य नहीं होता जो अब इस घर का है.

कुछ और दिन बीत गए. 20 साल की पोती धीरेधीरे मुंहजोर होती जा रही है. अपने ढंग से काम करती है और अम्मां का जायज मानसम्मान भी नहीं करती. हर रोज घर में तूतू मैंमैं होती है. बच्चों के खानेपीने में अम्मां की सदा की रोकटोक भला पोती सहे भी क्यों. भाई को पेट भर खिलाती है, कई बार थाली में कुछ छूट जाए तो अम्मां चीखने लगती हैं,  ‘‘कम डालती थाली में तो इतना जाया न होता…’’

‘‘तुम मेरे भाई की रोटियां मत गिना करो अम्मां, बढ़ता बच्चा है कभी भूख ज्यादा भी लग जाती है. तुम्हारी तरह मैं पेट नापनाप कर खाना नहीं बना सकती…’’

‘‘मैं पेट नाप कर खाना बनाती हूं?’’ अम्मां चीखीं.

‘‘क्या तुम्हें नहीं पता? घर में तुम्हीं ने 2 रोटी का नियम बना रखा है न और पेट नाप कर बनाना किसे कहते हैं. तुम्हारी वजह से मेरा बाप मर गया, सांस भी नहीं लेने देती थीं तुम उन्हें. घुटघुट कर मर गया मेरा बाप, अब हमें तो जीने दो. इनसान दिनरात रोटी के लिए खटतामरता है, हमें तो भर पेट खाने दो.’’

अम्मां अब पगलाई सी हैं. सारा राजपाट अब पोती ने छीन लिया है. जरा सी बच्ची एक गृहस्वामिनी बन गई.

‘‘रोती रहती हैं अब अम्मां. सभी को दुश्मन बना चुकी हैं. कोई उन से बात करना नहीं चाहता. पोती को कोसना घटता नहीं. अपनी भूल वह आज भी नहीं मानतीं. 80 साल जी चुकने के बाद भी उन्हें बैराग नहीं सूझता. सब से बड़ा नुकसान उन पंडितों को हुआ है जो अब यज्ञ, हवन के बहाने अम्मां से पूरीहलवा उड़ाने नहीं आ पाते. जब कभी कोई भटक कर आ पहुंचे तो पोती झटक देती है, ‘‘जाओ, आगे जाओ, हमें बख्शो. तुम्हारे होते हम.

दुनियादारी : किसके दोगलेपन से परेशान थी सुधा

लेखिका- ज्योति मिश्रा

उड़न परी पीटी उषा की ओलंपिक संघ अध्यक्ष की नई इबारत

कहते हैं-” देर आयद दुरुस्त आयद” यह कहावत आज भारतीय ओलंपिक संघ पर सच्चे मायने में सिद्ध हुई है. खेल एवं खेल संघों के इतिहास में यह पहली बार होने जा रहा है जब एक महिला खिलाड़ी जिसने देश का नाम दुनिया भर में रोशन किया है, पीटी उषा जो एक कहावत बन गई है भारतीय ओलंपिक संघ के अध्यक्ष बनने जा रही है. यह इस मायने में और भी महत्वपूर्ण है कि जब एक खिलाड़ी जिसने दुनिया में अपने नाम का खेल का परचम लहराया है अगर वह भारतीय ओलंपिक संघ जैसे सम्मानित संघ की अध्यक्ष बनेंगी तो निश्चित रूप से खेल और खिलाड़ियों को  एक नए आकाश का आगाज मिलेगा.

पाठकों को आज हम उन परिस्थितियों से अवगत करा दें  जिससे गुजर कर कोई एक महिला खिलाड़ी ओलंपिक संघ जैसे महत्वपूर्ण संस्थान संघ की अध्यक्ष बनने जा रही है.

दरअसल, यह सच है कि उड़नपरी नाम से  सुप्रसिद्ध पीटी उषा भारतीय ओलंपिक संघ (आइओए) का अध्यक्ष बनना लगभग तय है. आगामी 10 दिसंबर को होने वाले चुनावों में शीर्ष पद के लिए वे अकेली उम्मीदवार बनकर सामने आई  हैं. इसलिए यह लगभग आता है कि वे आइओए की पहली महिला अध्यक्ष होंगी.

 कई एशियाई खेलों की स्वर्ण पदक विजेता 58 वर्ष की पी टी उषा 1984 के ओलंपिक 400 मीटर बाधा दौड़ के फाइनल में चौथे स्थान पर रही थीं. उन्होंने रविवार को शीर्ष पद के लिए अपना नामांकन पत्र दाखिल किया.

उनके साथ उनकी टीम के 14 अन्य लोगों ने विभिन्न पदों के लिए नामांकन पत्र दाखिल किया. आइओए चुनावों के लिए नामांकन पत्र दाखिल करने की समय सीमा रविवार को समाप्त हो गई.

‘पायोली एक्सप्रेस’ के नाम से मशहूर पीटी उषा  भाजपा की उम्मीदवार बन कर सामने आई है  क्योंकि उन्हें भारत जनता पार्टी सरकार द्वारा जुलाई2022 में राज्यसभा सदस्य नामित किया है. इधर पीटी उषा ने ट्वीट करते हुए लिखा था -” अपने साथी

एथलीटों और राष्ट्रीय महासंघों के गर्मजोशी भरे समर्थन के साथ मैं भारतीय ओलंपिक संघ (आइएओ) के अध्यक्ष के नामांकन को स्वीकार करने और दाखिल करने के लिए विनम्र और सम्मानित महसूस कर रही हूं.”

भारतीय ओलंपिक संघ के चुनाव अधिकारी उमेश सिन्हा को दो दिन तलक कोई नामांकन नहीं मिला था . रविवार 28 नवंबर 2022 को  एकाएक विभिन्न पदों के लिए 24 उम्मीदवारों ने नामांकन दाखिल किए. जिनमें प्रमुख नाम पीटी उषा का था. इन चुनावों में उपाध्यक्ष (महिला), संयुक्त सचिव (महिला) के पद के लिए मुकाबला होगा. कार्यकारिणी परिषद के चार सदस्यों के लिए 12 प्रत्याशी मैदान में है. आइओए में एक अध्यक्ष, एक वरिष्ठ उपाध्यक्ष, दो उपाध्यक्ष (एक पुरुष और एक महिला), एक कोषाध्यक्ष, दो संयुक्त सचिव (एक पुरुष और एक महिला), छह अन्य कार्यकारी परिषद सदस्यों के चुनाव के लिए होंगे. जिनमें से दो (एक पुरुष और एक महिला) निर्वाचित ‘एसओएम’ से होंगे.

यह उल्लेखनीय है कि

एशियाई खेल 1982 से 1994 के बीच में चार स्वर्ण समेत 11 पदक जीत चुकी उषा ने 1986 सियोल एशियाई खेलों में 200 मीटर, 400 मीटर, 400 मीटर बाधा दौड़ और चार गुणा 400 मीटर रिले में स्वर्ण और 100 मीटर में रजत पदक जीत कर देश को गौरवान्वित किया था. दिल्ली एशियाई खेल 1982 में भी उन्होंने 100 मीटर और 200 मीटर में पदक प्राप्त किए थे. उड़न परी उषा ने लास एंजिलिस ओलंपिक 1984 में 400 मीटर बाधा दौड़ फाइनल में शिरकत की थी मगर रोमानिया की क्रिस्टीना कोजोकारू से एक सेकंड के सौवें हिस्से के अंतर से कांस्य पदक पराजित हो गई थीं.

कुल मिलाकर के उड़न परी पीटी उषा  की यह भूमिका भारतीय खेलों को एक नई दिशा देने जा रही है जिसका खेल प्रेमी बड़ी बेताबी से इंतजार कर रहे है.

मुझे दोस्त की एक्सगर्लफ्रेंड से प्यार हो गया जब उसे पता चला वह दोस्ती तोड़ दिया, क्या करूं?

सवाल

मेरी एक दोस्त है जिसे मैं बेहद प्यार करता हूं, लेकिन प्रौब्लम यह है कि वह मेरे दोस्त की एक्स गर्लफ्रैंड है. उन दोनों के रिलेशनशिप में आने से ब्रेकअप तक की पूरी कहानी मैं जानता हूं और यह भी जानता हूं कि गलती दोनों की बराबर थी. वे दोनों ही मेरे दोस्त थे, लेकिन मुझे अपना समय दोनों में बांटना पड़ा क्योंकि वे एकदूसरे के करीब नहीं रहना चाहते थे. मुझे अपनी दोस्त से प्यार हो गया और यह बात मैं ने उसे बताई तो उस ने भी यही कहा कि उसे भी मुझ से प्यार है. लेकिन मैं रिलेशनशिप में आया या यह बात अपने

दोस्त को बताई, तो हो सकता है उसे धक्का लगे और वह मुझ से अपनी दोस्ती तोड़ ले. मैं ऐसा होने नहीं देना चाहता. मुझे ऐसा महसूस हो रहा है जैसे मैं ने अपने दोस्त को धोखा दिया हो. मैं अपनी दोस्ती और प्यार में से किसी एक को नहीं चुन सकता. क्या इस समस्या का कोई साधारण हल नहीं हो सकता?

जवाब

आप के पास अपने दोस्त को सच बताने के सिवा कोई रास्ता नहीं है. आप बात को छिपाते भी हैं तो कभी न कभी तो सच उस के सामने आएगा ही और तब उसे ज्यादा धक्का लगेगा. प्यार और दोस्ती के बीच में चुनने जैसा कुछ नहीं है, आप इंसान हैं और किसी इंसान के बस में नहीं है कि उसे कब किस से प्यार हो जाए. वैसे भी वह आप के दोस्त की एक्स से पहले आप की भी तो दोस्त थी न, फिर धोखे जैसी तो कोई बात ही नहीं है.

आप अपने दोस्त को बता दीजिए कि आप दोनों को एकदूसरे से प्यार है और यह सब इंटैंशनल नहीं था. वह आज नहीं तो कल इस बात को समझ ही जाएगा. उसे बुरा लग सकता है लेकिन आप के लिए उसे सच बताना ही सही होगा.

 

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

Bigg Boss 16 : घर में एंट्री होगी नए कंटेस्टेंट की, प्रियंका और अब्दू को देगी जवाब

सलमान खान का पसंदीदा शो बिग बॉस इन दिनों टीवी पर छाया हुआ है. सलमान खान के शो में अब्दु रोजिक , प्रियंका चहर चौधरी और सौदर्या शर्मा गेम खेलने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं. हालांकि इसी बीच साजिद खान और शालीन भनोट अक्सर ट्रोलिंग का शिकार होते हैं.

इसी बीच बिग बॉस 16 को लेकर नई खबर आ रही है कि इस शो में जल्द वाइल्ड कार्ड एंट्री होने वाली है, जो हसीना एंट्री लेने वाली हैं वह पहले भी बिग बॉस 16 का हिस्सा रह चुकी हैं. दरअसल जो हसीना एंट्री लेने वाली हैं वह पहले भी इस शो का हिस्सा रह चुकी हैं वह कोई और नहीं बल्कि रिद्धिमा पंडित हैं.

 

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बता दें कि रिद्धिमा पंडित को बिग बॉस ओटीटी में भी खूब सराहा गया था, वहीं बिग बॉस 16 में उनकी एंट्री की खबर ने लोगों की धड़कन को तेज कर दिया है. फैंस का एक्साइटमेंट सातवें आसमान पर जा पहुंचा है.

हालांकि रिद्धिमा पंडित ने इस बारे में अभी तक कोई रिएक्शन नहीं दिया है, हालांकि शेफाली बग्गा को भी वाइल्ड कार्ड एंट्री को लेकर बात की  जा रही थी. हालांकि शेफाली बग्गा ने कहा था कि मौका मिलेगा तो जरूर जाएंगे.  इसके साथ ही शेफाली जारीवाला ने अब्दू रोजिक को अपना पसंदीदा कंटेस्टेंट बताया है.

सिर्फ हेल्थ नहीं इन 15 कामों के लिए भी परफेक्ट है ग्रीन टी

ग्रीन टी के बहुत से लाभ हैं, इसलिए चाय पीने के बाद टीबैग्स या फिर चायपत्ती को फेंकें नहीं, चायपत्ती को पतले मलमल के मुलायम कपड़े में लपेट कर पोटली बना कर उस का प्रयोग अपनी त्वचा और शरीर के विभिन्न अंगों की सुरक्षा के लिए करें.

आंखों के आसपास काले घेरे व सूजी हुई आंखें : आप की आंखें सूजी हुई रहती हैं और आंखों के नीचे काले घेरे दिखने लगे हैं तो चिंता की बात नहीं है. ग्रीन टी का भरपूर मजा लेने के बाद टीबैग को या फिर चायपत्ती को ठंडा होने दें और आंखें बंद कर बंद आंखों पर टीबैग्स रखें, और आंखों के आसपास काले घेरों पर टीबैग से हलकेहलके मसाज करें. ग्रीन टी में पौलीफीनौल पार्टीकल होते हैं जिन्हें टैनिन्स कहा जाता है. टेनिन्स एक प्रकार का एस्ट्रीन्जैंट है जो इंसानी त्वचा व हर प्रकार के लिविंग टिश्यू को संकुचित करता है. ग्रीन टीबैग्स या पोटली आंखों के आसपास आई सूजन को कम करते हैं और आंखों के नीचे की खून की नाडि़यों के फैलाव को कम कर आंखों के आसपास की त्वचा को टाइट करते हैं जिस से आंखों के आसपास झुर्रियां नहीं पड़तीं.

आंखों में जलन और लाली से राहत : ग्रीन टी में प्रज्वलनरोधी यानी ऐंटीइंफ्लेमेटरी गुण होते हैं जो आंखों की लाली और जलन को कम करने में सहायक हैं. उबलते हुए पानी में कुछ टीबैग्स थोड़ी देर तक भिगो कर रखें. पानी को ठंडा होने दें और एक धुले हुए साफ, मुलायम कपड़े को पानी में भिगो कर अतिरिक्त पानी को निचोड़ कर उसे अपनी आंखों के लाल हुए हिस्से पर और जहां आप को जलन का एहसास हो रहा है, रखें, तुरंत राहत मिलेगी.

फेशियल स्क्रब : ग्रीन टी में रूखी, मुरझाई और झुर्रीदार त्वचा को ताजगी प्रदान कर टाइट रखने की क्षमता होती है, इसलिए फेशियलस्क्रब के लिए इस का अवश्य प्रयोग करें. इस के लिए ग्रीन टी को पानी और सफेद चीनी के साथ मिक्स कर चेहरे पर स्क्रब की तरह लगाएं. यह मिश्रण त्वचा के बंद पोरों को खोल कर त्वचा को एक्सफोलिएट करता है और बेजान त्वचा में जान फूंकता है.

सनबर्न : ग्रीन टी सूरज की अल्ट्रावौयलेट किरणों को तो नहीं रोक पाती लेकिन यह सूर्य की रोशनी में खुली त्वचा के सैल्स को धूप से सुरक्षा प्रदान करती है. अध्ययन बताते हैं कि अगर ग्रीन टी को सीधे त्वचा पर लगाया जाए तो सनबर्न और त्वचा के कैंसर से बचाव होता है. आप ग्रीन टी एक्सट्रैक्ट या फिर बनी हुई चाय में भीगे हुए नरम मुलायम कपड़े को ठंडा कर अपने चेहरे, हाथों व बांहों पर रख सकते हैं. तेज गरमी आने से कुछ दिन पहले ग्रीन टी के नियमित सेवन से सूर्य के ताप से त्वचा को होने वाले नुकसान से बचाया जा सकता है.

झुर्रियां : ग्रीन टी में पौलिफीनौल्स नामक ऐंटीऔक्सीडैंट होता है जो फ्री रैडिकल्स को निष्क्रिय बनाते हैं जिन के प्रभाव से त्वचा असमय ही बुढ़ाने लगती है और चेहरे पर झुर्रियां दिखने लगती हैं. इस से बचाव के लिए अधिक से अधिक ग्रीन टी पिएं और त्वचा पर लगाएं. ग्रीन टी में मौजूद ऐंटीइंफ्लेमेटरी प्रौपर्टीज झुर्रियों और फाइन लाइंस को कम करने में सहायक होती हैं. ग्रीन टी के सत्त को चेहरे पर लगाने और ग्रीन टी को नियमित रूप से पीने से आप समय से पहले आने वाले बुढ़ापे व चेहरे की झुर्रियों से बच सकते हैं.

स्वस्थ दांतों के लिए :‘प्रिवैंटिव मैडिसन’ पत्रिका में प्रकाशित एक शोध के अनुसार, प्रतिदिन बिना मीठे की ग्रीन टी पीने से दांत मजबूत होते हैं. अध्ययन में यह भी कहा गया है कि 40 से 64 वर्ष की उम्र के जो लोग रोजाना ग्रीन टी पीते हैं उन के दांत आसानी से गिरते नहीं हैं और उन्हें दांतों से जुड़ी बीमारियां भी न के बराबर होती हैं.

ऐसा ग्रीन टी में पाए जाने वाले ऐंटीमाइक्रोबायल मौलीक्यूल, जिन्हें कैटेचिन कहा जाता है, के प्रभाव से होता है. ग्रीन टी उन जीवाणुओं और वायरस को नष्ट करती है जो दंतरोगों को जन्म देते हैं. ग्रीन टी के प्रभाव से मुंह में बैक्टीरिया यानी जीवाणुओं की ग्रोथ की गति धीमी हो जाती है जिस से मुंह की दुर्गंध की समस्या से छुटकारा मिलता है. टूथपेस्ट खरीदते समय भी देखें कि उस में ग्रीन टी है या नहीं. और रोजाना एक कप ग्रीन टी पीना न भूलें.

बहते खून को रोकना और घावों को भरना : ग्रीन टी में पाया जाने वाला टेनिन्स खून को गाढ़ा कर उस के प्रवाह को रोकता है. ग्रीन टी के टीबैग्स को खौलते पानी में डालें और 1 मिनट के लिए ढक दें. पानी से निकाल कर ठंडा होने दें. अब इन टीबैग्स को उस जगह पर रखें जहां से तेजी से खून निकल रहा है, देखते ही देखते खून बहना बंद हो जाएगा. इसी तरह घावों पर भी ग्रीन टी के बैग्स रखने से घाव जल्दी भरते हैं.

फ्रिज की दुर्गंध को दूर करे : फ्रिज में रखी हुई चीजों में से अजीब सी महक आने लगती है. इस महक को दूर भगाने के लिए थोड़ी सी ग्रीन टी की पत्तियों को एक पतले मलमल के कपड़े में लपेट कर फ्रिज में रखें. चाय की पत्तियां सारी बदबू को आत्मसात कर लेती हैं.

उमस से राहत : ग्रीन टी घर में फैली उमस को भी कम कर राहत प्रदान करती है. एक पतले कपड़े की थैली में हरी पत्तियां भर कर किसी कमरे में या फिर घर में किसी ऐसी जगह पर लटका दें जहां ज्यादा उमस होती है. चाय की पत्तियां सारी उमस को सोख लेंगी और राहत प्रदान करेंगी.

कारपेट क्लीनिंग : मुट्ठीभर आर्द्र (गीली नहीं) ग्रीन टी की पत्तियां कारपेट पर फैला दें. चाय की पत्तियां धूलमिट्टी को सोख लेती हैं और कारपेट की दुर्गंध को दूर भी करती हैं.

पैरों की सफाई : पैरों की दुर्गंध को दूर करने के लिए पैरों को कड़क ग्रीन टी के पानी में डुबो कर रखें. ग्रीन टी ऐंटीफंगल, ऐंटीबैक्टीरियल यानी जीवाणुरहित होते हैं, इसलिए यह हर प्रकार की बदबू दूर भगाने में सक्षम है.

पौधों के लिए लाभदायक : ग्रीन टी में बहुत से ऐंटीऔक्सीडैंट होते हैं, जो पौधों की सेहत के लिए बहुत लाभदायक हैं. ग्रीन टी की पत्तियों को कुछ दिन तक पानी में भिगो कर रखें और फिर पत्तियां निकाल कर इस पानी को पौधों में डाल कर उसे उर्वर बनाएं.

कील-मुंहासे : कीलमुंहासे आज हर युवकयुवती की समस्या है. ग्रीन टी ऐंटीइंफ्लेमेटरी, ऐंटीबैक्टीरियल, ऐंटीऔक्सीडैंट और ऐंटीफंगल होने के कारण कीलमुंहासों के उपचार में अतिउपयोगी है. चेहरे के लिए क्लींजर व मौस्चराइजर खरीदते समय ध्यान दें कि उस में ग्रीन टी एक्स्ट्रैक्ट हों. घरेलू उपचार के लिए सुबह उठने से पहले चेहरे पर हरी पत्तियों को अच्छी तरह से रब करें.

पसीने की बदबू : गरमी में अकसर पसीने की बदबू की शिकायत रहती है, विशेषरूप से कांख यानी अंडरआर्म से. ग्रीन टी के पानी को ठंडा कर उसे अपनी कांख में कौटन से लगाएं. सारा दिन पसीने की दुर्गंध नहीं आएगी.

लिंगरी फ्रैशनर : लिंगरी ड्राअर में हरी पत्तियां किसी पतले कपड़े में रख दें, फिर देखें आप के अंडरगारमैंट कैसे महकते हैं.

पौधों में सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी एवं प्रबंधन समिति

डा. प्रेम शंकर, डा. एसएन सिंह, डा. सुनील कुमार, डा. अंजली वर्मा

फसलों की अच्छी पैदावार के लिए 17 सूक्ष्म पोषक तत्त्व चाहिए. इन में से एक भी पोषक तत्त्व की कमी होने से फसल पर बुरा असर पड़ता है. पौधों की जरूरत के आधार पर इन पोषक तत्त्वों को 2 समूहों में बांटा गया है : पहला, मुख्य पोषक तत्त्व और दूसरा, सूक्ष्म पोषक तत्त्व. सूक्ष्म पोषक तत्त्व ऐसे पोषक तत्त्व हैं, जो पौधों की वृद्धि के लिए जरूरी है, लेकिन प्राथमिक पोषक तत्त्वों (नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटैशियम) की तुलना में बहुत कम मात्रा में जरूरी है. जरूरी सूक्ष्म पोषक तत्त्वों में जस्ता, बोरान, कौपर, आयरन, मैंगनीज, मौलिब्डेनम आदि शामिल हैं. सूक्ष्म पोषक तत्त्व पौधों की वृद्धि, चयापचय और प्रजनन चरण को काफी प्रभावित करते हैं.

हाल के वर्षों में भारतीय मृदा में सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की व्यापक कमी दिनोंदिन बढ़ती जा रही है. नतीजतन, फसल की पैदावार में काफी कमी हुई है. संकर और उच्च उपज देने वाली किस्म का चयन मृदा से सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की उच्च मात्रा को हटाता है और पौधों के सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की मांग को बढ़ाता है. मृदा परीक्षण और पौधों के विश्लेषण के उपयोग के माध्यम से कई मृदाओं में इन सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की कमी को सत्यापित किया गया है. कैसे करें सूक्ष्म पोषक तत्त्वों का प्रयोग सूक्ष्म पोषक तत्त्वों को बोआई से पूर्व या खड़ी फसल में प्रयोग कर सकते हैं. मृदा परीक्षण के आधार पर पोषक तत्त्वों की निर्धारित मात्रा को बारीक रेत में मिला कर बोआई से पूर्व खेत में एकसमान छिड़क दें. अगर पहले से मृदा परीक्षण नहीं करवाया गया हो और फसल में तत्त्व की कमी नजर आए, तो उस पोषक तत्त्व का पानी में घोल बना कर खड़ी फसल में छिड़क दें.

इस प्रकार उस पोषक तत्त्व की कमी को दूर किया जा सकता है. मुख्य पोषक तत्त्वों का उपयोग खेतों में अधिकांशत: करते हैं. सूक्ष्म पोषक तत्त्वों का लगभग न के बराबर उपयोग होने की वजह से कुछ वर्षों से मृदा में सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की कमी के लक्षण पौधों पर दिखाई दे रहे हैं. पौधों में सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की कमी होने पर उस के लक्षण पौधों में स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगते हैं. इन की कमी केवल संबंधित तत्त्वों का उपयोग कर के पूरी की जा सकती है. सूक्ष्म पोषक तत्त्वों का महत्त्व जस्ता (जिंक) काम : यह एंजाइम का मुख्य अवयव होता है और क्लोरोफिल बनाने में उत्प्रेरक का काम करता है. इस के साथ ही प्रकाश संश्लेषण और नाइट्रोजन के पाचन में सहायक होता है.

लक्षण : फसल में जिंक की कमी से पौधों की बढ़वार रुक जाती है, पत्तियां मुड़ जाती हैं और तने की लंबाई घट जाती है. जस्ता की कमी का दिखाई देने वाला लक्षण शार्ट इन्ट्रोड (रोसैटिंग) और पत्ती के आकार में कमी है. जस्ता की कमी होने से पौधों में फूल फलने और परिपक्व होने में देरी हो सकती है.

फसलों में जिंक तत्त्व की कमी से होने वाले रोग व समस्या : * धान में खैरा रोग. * मक्का के पौधों की नई पत्तियां सफेद रंग की निकलती हैं, जिसे ‘सफेद कली’ की समस्या कहते हैं. * आम, नीबू व लीची में लिटिल लीफ की समस्या. निदान : मृदा में जिंक की कमी को दूर करने के लिए जिंक सल्फेट का 15 से 30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से छिडकाव करें और 0.5 फीसदी जिंक सल्फेट व 0.2 फीसदी चूने के घोल को पत्तियों पर छिड़काव कर के इस की पूर्ति की जा सकती है.

तांबा (कौपर) काम : ‘कौपर’ या तांबा सब से स्थूल पोषक तत्त्व है. यह कार्बोहाइड्रेट और एंड्रोजन चयापचय के लिए आवश्यक है. तांबा प्रकाश संश्लेषण और श्वसन में नियंत्रण का काम करता है. यह एमीनो अम्ल को प्रोटीन बनाने और संशोधित करने में एक घटक के रूप में शामिल है. यह प्रोटीन के चयापचय में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है और प्लांटसेल की दीवारों में लिग्निन के निर्माण और भीगने से रोकता है.

कमी के लक्षण : इस की कमी से पौधों की नई पत्तियों में सिरा सड़न हो जाता है. बढ़वार कम होना और पत्तियों का रंग हरा होना इस के प्रमुख लक्षण हैं. इस की कमी से नीबू में डाईबैक, चुकंदर और सेब में सफेद सिरा, छाल खुरदुरा और फटने की समस्या होती है.

निदान : तांबे की कमी को दूर करने के लिए कौपर सल्फेट की 10-20 किलोग्राम मात्रा को प्रति हेक्टेयर क्षेत्रफल में जुताई के समय प्रयोग करें.

मैंगनीज काम : क्लोरोफिल के संश्लेषण के दौरान प्रकाश संश्लेषण और हृहृ२ के दौरान ष्टहृ२ को आत्मसात करने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. संश्लेषण के दौरान राइबोफ्लेविन, एस्कार्बिक एसिड, कैरोटीन और इलैक्ट्रोन परिवहन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है. यह वसा बनाने वाले एंजाइम को भी सक्रिय करता है.

कमी के लक्षण : मैंगनीज की कमी से पत्तियों में छोटेछोटे क्लोरोसिस के धब्बे बन जाते हैं. इंटर विनल क्लोरोसिस एक मैंगनीज कमी का लक्षण है. इस की कमी से चुकंदर में चित्तीदार पीला रोग और ओट में ग्रेस्पाइक नामक रोग होता है.

निदान : मैंगनीज सल्फेट का 10 से 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर का प्रयोग करना चाहिए या पर्णीय छिड़काव के लिए 0.4 फीसदी मैंगनीज सल्फेट और 0.3 फीसदी चूने के घोल का छिड़काव करें.

बोरान काम : बोरान का एक प्राथमिक काम पौधों की कोशिकाओं की दीवारों के बनने से संबंधित है और यह दलहनी फसलों में नाइट्रोजन स्थिरीकरण करने वाली ग्रंथियों को बनाने में सहायक होता है. यह पौधों द्वारा जल शोषण को नियंत्रित करता है. बोरान की कमी से शुगर ट्रांसपोर्ट, फ्लावर रिटैंशन, पराग का बनना और अंकुरण भी प्रभावित हो सकता है.

कम बोरान आपूर्ति के साथ बीज और अनाज का उत्पादन कम हो जाता है. इस की कमी मुख्य रूप से उच्च वर्षा वाले क्षेत्रों में अम्लीय, रेतीली मृदा और कम कार्बनिक पदार्थों वाली मृदा में पाई जाती है. कमी के लक्षण : बोरान की कमी से पत्तियां मोटी हो कर मुड़ जाती हैं. पौधों की वृद्धि मंद होती है और पत्तियां पीली या लाल हो जाती हैं. इस की कमी को अकसर प्रजनन अंगों के बां?ापन और अपंगता से जोड़ा जाता है. बोरान की कमी के लक्षण पहले बढ़ते बिंदुओं पर दिखाई देते हैं. यह खराब उपस्थिति, खोखले फल, पत्तों और फलने वाले निकायों को नुकसान पहुंचाता है. इस की कमी से टमाटर में फलों की कार्किंग और पैकिंग, फूलगोभी में ब्राजिंग आदि जैसी असमान्यताएं पैदा होती हैं.

आम में आंतरिक सड़न, आंवला में फल सड़न, अंगूर में हेन एवं चिकन, चुकंदर में आंतरिक गलन, शलजम, मूली और गाजर में ब्राउन हार्ट, फूलगोभी में भूरापन, फल का फटना और आलू की पत्तियों में स्थूल रोग हो जाता है. निदान : बोरान की कमी को दूर करने के लिए 0.2 फीसदी बोरैक्स या बोरिक एसिड का 150 लिटर पानी का घोल बना कर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से छिड़काव करें. सामान्य बोरान उर्वरक बोरैक्स (10.5 फीसदी) और बोरिक एसिड (20 फीसदी) है. ये उर्वरक 5.6-23.6 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर दिए जा सकते हैं. हालांकि यह दर मृदा में बोरान की मूल क्षमता पर निर्भर करती है. मौलिब्डेनम काम : मौलिब्डेनम सीधे एंजाइमों में शामिल है.

यह नाइट्रोजन के निर्धारण से संबंधित है. इस की कमी से नाइट्रोजन चयापचय, प्रोटीन संश्लेषण और सल्फर चयापचय प्रभावित हो सकता है. मौलिब्डेनम का फल और अनाज के गठन पर एक महत्त्वपूर्ण प्रभाव है. मौलिब्डेनम की आवश्यकता इतनी कम होती है कि अधिकांश पौधों की किस्में इस की कमी के लक्षणों को प्रदर्शित नहीं करती हैं. फलियों में इन की कमी के लक्षणों को मुख्य रूप से नाइट्रोजन की कमी के लक्षणों के रूप में प्रदर्शित किया जाता है. नाइट्रोजन निर्धारण में मौलिब्डेनम की प्राथमिक भूमिका होती है. अन्य सूक्ष्म पोषक तत्त्वों के विपरीत मौलिब्डेनम की कमी के लक्षण मुख्य रूप से सब से कम उम्र के पत्तों तक ही सीमित नहीं है. कमी के लक्षण : कुछ सब्जियों की फसलों में मौलिब्डेनम की कमी में अनियमित पत्ती ब्लेड का निर्माण होता है.

इस की कमी के कारण पत्तियों की शिराओं के मध्य हरिमाहीनता या क्लोरोसिस हो जाता है. इस की कमी से फूलगोभी में ह्विपटेल और नीबूवर्गीय पौधों की पत्तियों में पीला धब्बा रोग होता है. निदान : इस कमी को दूर करने के लिए सोडियम मौलिब्डेट को 0.2 से 0.6 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर भूमि में जुताई के समय डालें. अमोनियम मौलिब्डेट (54 फीसदी) और सोडियम मौलिब्डेट सामान्यत: बाजार में उपलब्ध है. इसे मृदा में 1-2.3 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर और पर्णीय छिड़काव के लिए 0.01-0.035 फीसदी का घोल बना कर उपयोग किया जा सकता है.

आयरन (लोहा) काम : यह क्लोरोफिल निर्माण में सहायक होता है. पौधों में संपन्न होने वाले औक्सीकरण और अवकरण की क्रिया में यह उत्प्रेरक का काम करता है. क्लोरोफिल के विकास और संयंत्र के भीतर ऊर्जा के हस्तांतरण के लिए यह महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है. इस में कुछ एंजाइम और प्रोटीन भी होते हैं. यह पौधे के श्वसन को नियंत्रित करता है और निर्धारण में भी शामिल होता है. आयरन को पौधों में सल्फर के साथ जोड़ा जाता है, ताकि वे यौगिक बन सकें, जो अन्य प्रक्रियाओं को उत्प्रेरित करते हैं.

कमी के लक्षण : आयरन की कमी मुख्य रूप से क्लोरोफिल के निम्न स्तर के कारण पीले पत्तों द्वारा प्रकट होती है. पत्ती का पीलापन सब से पहले ऊपरी पत्तियों पर अंत:शिरा ऊतकों में दिखाई देता है. पौधों में इस की कमी से नई पत्तियों में हरिमाहीनता हो जाती है और पौधे कमजोर हो जाते हैं. निदान : पौधों में आयरन की कमी को दूर करने के लिए 20 से 40 किलोग्राम फेरस सल्फेट मृदा में डालना चाहिए या 0.4 फीसदी फेरस सल्फेट और 0.2 फीसदी चूने के घोल का पर्णीय छिड़काव करें.

अच्छे लोग :कुछ पल के लिए सभी लोग क्यों डर गए थें

आत्मग्लानि- भाग 2 : मोहिनी को किसकी शक्ल याद नहीं थी?

पापा भी कुछ सोच कर चुप हो गए. बस, जल्दी से तबादला करवा लिया. मधु अब साए की तरह हर समय मोहनी के साथ रहती. ‘‘मोहनी बेटा, जो हुआ भूल जाओ. इस बात का जिक्र किसी से भी मत करना. कोई तुम्हारा दुख कम नहीं करेगा. मोहित से भी नहीं,’’ अब जब भी मोहित फोन करता. मां वहीं रहतीं. मोहित अकसर पूछता, ‘‘क्या हुआ? आवाज से इतनी सुस्त क्यों लग रही हो?’’ तब मां हाथ से मोबाइल ले लेतीं और कहतीं, ‘‘बेटा, जब से तुम दुबई गए हो, तभी से इस का यह हाल है. अब जल्दी से आओ तो शादी कर दें.’’

‘‘चिंता मत करिए. अगले महीने ही आ रहा हूं. सब सही हो जाएगा.’’ मां को बस एक ही चिंता थी कहीं मैं मोहित को सबकुछ बता न दूं. लेकिन यह तो पूरी जिंदगी का सवाल था. कैसे सहज रह पाएगी वह? उसे तो अपने शरीर से घिन आती है. नफरत सी हो गई है, इस शरीर और शादी के नाम से. ‘‘सुनो, हमारी जो पड़ोसिन है, मिसेज कौशल, वह नाट्य संगीत कला संस्था की अध्यक्ष हैं. उन का एक कार्यक्रम है दिल्ली में. जब उन्हें मालूम हुआ कि तुम भी रंगमंच कलाकार हो तो, तुम्हें भी अपने साथ ले कर जाने की जिद करने लगी. बोल रही थी नया सीखने का मौका मिलेगा.’’

‘‘सच में तुम जाओ. मन हलका होगा. 2 दिन की ही तो बात है,’’ मां तो बस, बोले जा रही थीं. उन के आगे मोहनी की एक नहीं चली. बाहर निकल कर सुकून तो मिला. काफी लड़कियां थीं साथ में. कुछ बाहर से भी आई थीं. उस के साथ एक विदेशी बाला थी, आशी. वह लंदन से थी.

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