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ये प्यार न कभी होगा कम -भाग 4: अनाया की रंग लाती कोशिश

सौम्या को अब हर पल उस के संदेश का इंतजार रहने लगा. कुछ और आगे बढ़े तो वे कभी कौफी शौप या फिर आइसक्रीम पार्लर में मिल लेते.

एक दिन किसी आइसक्रीम पार्लर की शीशे वाली दीवार के पार से रूपक और सौम्या की एक झलक सी जीतेश की बीवी निशा ने देखी, जो अपनी कार से कहीं जा रही थी. उस ने बिना सोचेसमझे अरुणेश भैया से सौम्या की शिकायत कर दी.

न असली हाल जानने की कोशिश की, न नलिनी या मितेश को बताया.

अरुणेश भैया अपने स्वभाव के अनुरूप छोटे भाई मितेश पर चढ़ बैठे.

मितेश तो इस धक्के से ठगे से रह गए. बेटी सौम्या के बारे में वे यह क्या सुन रहे थे.

रूपक और सौम्या इन 3-4 महीनों में बहुत कम सा ही खुले थे. मसलन, उन की पढ़ाई, कैरियर, शौक, परिवार, सपने आदि के बारे में एकदूसरे को शालीनता से बताने की कोशिश करते, और आधे घंटे में जैसेतैसे वे अपने घर लौट जाते.

मितेश ने जब परिवार को एक जगह बुला कर सौम्या से पूछताछ की, तो घर के सारे सदस्य सदमे में थे.
अरुणेश ने कहा था कि मितेश की गरीबी ने उस की बेटी को बाजार का रास्ता दिखा दिया. गिटार बजा कर पैसे भी आ रहे हैं, और छोकरे भी. हमारे पुश्तैनी घर को चौपट कर रहा है मितेश.

इतना कह कर वे अपने कमरे में चले गए और दरवाजा अंदर से बंद कर लिया.

नलिनी घबरा कर मितेश के पीछे गई, लेकिन तब तक उस के सामने ही दरवाजा बंद हो चुका था.

अपनी मां नलिनी का पीला पड़ा चेहरा देख कर सौम्या ने तुरंत निर्णय लिया, और सारा मोहमाया त्याग कर पापा के दरवाजे के पास जा कर बड़े जोर से चिल्ला कर कहा, “पापा, दुनिया एक तरफ और मेरे पापा मेरे लिए एक तरफ. आज से गिटार क्लास बंद. और मैं ने एक लड़के के साथ बाहर आइसक्रीम खाई जरूर थी, लेकिन वह एक सामान्य सी मुलाकात थी. अब नहीं मिलूंगी. लड़का अपने भाई को छोड़ने क्लास आता था, पढ़ने में बहुत होशियार था, इसलिए जानपहचान हुई थी, और कोई बात नही.

“पापा, आप तो जानते हैं हमारे बड़े पापा को. क्या आप उन की बातों में आ कर मुझ पर भरोसा नहीं रखेंगे?”

नलिनी ने साहस कर के बाहर से दरवाजा पीटना शुरू किया, बाहर से स्निग्धा भी ‘पापा’ कह कर हल्ला करने लगी, तो मितेश ने चुपचाप दरवाजा खोल दिया और उन से कहा कि उसे वे लोग अभी अकेला छोड़ दें.

गिटार क्लास बंद करने में अभी 4-6 महीने बाकी ही थे, लेकिन सौम्या की पढ़ाई बता कर क्लास को बंद कर दिया गया.

सौम्या ने रूपक को छोटा सा संदेश लिखा.

“छोटी सी एक मुलाकात ने घर में कोहराम कर दिया, मेरी खुशी ऐसी भी क्या मायने रखती है कि मुलाकातों का सिलसिला जारी रखा जाए. हमारा आगे मिलना अब संभव नहीं है. जिंदगी आप की खुशियों भरी हो, इसी तमन्ना के साथ जिंदगीभर यादों में आप को सुरक्षित रखूंगी.”

रूपक ने संदेश देख कर कोई प्रत्युत्तर नहीं दिया. सौम्या को अफसोस हुआ कि एक पत्थर पर सिर फोड़ने के लिए वह जमाने में मुफ्त बदनाम हुई.

सौम्या जहां तक संभव था, अपनी पढ़ाई में ध्यान लगा रही थी, लेकिन उस के भटके ध्यान और जिंदगी के प्रति अरुचि पर स्निग्धा की बराबर नजर थी.

एक दिन उस ने दीदी के फोन से टटोल कर रूपक का नंबर अपने फोन में लिया और अपना परिचय देते हुए रूपक को सौम्या का सारा दिल का हाल कह सुनाया.

रूपक ने मिनटों में जवाब दिया, “अपनी दीदी को कह देना, रूपक के दिल में अगर कोई एक बार आ कर बसा है तो जिंदगीभर वो शख्स वहीं रहेगा.

“तुम्हारी दीदी को यह भी कहना कि सही समय आने तक अपना कैरियर बना ले, मैं वक्त आने पर ही उस से फिर से संपर्क करूंगा.”

सौम्या की मुंबई के एक नामी फैशन डिजाइनिंग कालेज में अब भरती प्रक्रिया पूरी हो गई थी. अब सारी समस्या सौम्या के मुंबई शहर में अकेले रहने पर टिक गई थी.

खैर, कुछ मशक्कत के बाद सौम्या को अपने कालेज के पास ही एक पीजी मिल गया और वह वहां रहने चली गई.

पीजी में कई सारी व्यक्तिगत परेशानियां तो थीं, लेकिन सौम्या जैसी सीधीसादी, जिंदगी में आगे बढ़ने की चाह रखने वाली लड़की इन परेशानियों को भाव नहीं देती.

अरुणेश ने बेटी अनाया को एक दिन फोन पर बताते हुए खुद की पीठ ठोंकी, “सौम्या को मितेश तुम्हारे फ्लैट में डालना चाह रहा था, भई. कामकाजी जवान लड़की है, उस का अपना शेड्यूल है. उसे क्यों डिस्टर्ब करना? प्राइवेट लाइफ में दूसरों की ताकाझांकी… मैं ने उन्हें सख्ती से खारिज कर दिया.”

अनाया ने अपने पापा को कुछ कहा नहीं, और उसी रात सौम्या को फोन किया,
“पीजी में मेरे पापा के कहने से धकेला गया तुम्हें?”

“कोई बात नहीं. मैं यहां ठीक हूं.”

 

विंटर स्पेशल: सर्दी के दिन में रखें गले का खास ख्याल

सर्दी के दिनों अपने गला का विशेष ख्याल रखे,आपकी थोड़ी सी लापरवाही आपको बड़े परेशानी में डाल सकता है, इस मौसम में हर पल गले में खराश होते रहता है. खराश बहुत होने के कारण टॉन्सिल्स या गले का संक्रमण भी हो सकता है. इससे आपके गले में कांटे जैसी चुभन, खिचखिच और बोलने में तकलीफ जैसी समस्याएं आती हैं. यह सब बैक्टीरिया एवं वायरस के कारण होता है,तो कई बार एलर्जी और धूम्रपान के कारण भी गले में खराश की समस्या होती है. कई बार गले की संक्रमण खुद-ब-खुद ही ठीक हो जाते हैं, लेकिन कुछ मामलों में इलाज की जरूरत पड़ती है.

आमतौर पर लोग गले की खराश की बात को अनदेखी कर देते है जो बाद में परेशानी का मुख्य कारण बन जाता है और कभी-कभी यह अनदेखी के कारण कई गंभीर बीमारी का रूप के में सामने आता है. किसी खाने की वस्तु, पेय पदार्थ या दवाइयों के विपरीत प्रभाव के कारण भी गले में संक्रमण हो सकता है. इसके अलावा गले में खराश की समस्या अनुवांशिक भी हो सकती है. खान-पान में बरती गयी गलती एवं अच्छी तरह मुंह व दांतों की साफसफाई न रखने के कारण भी संक्रमण की आशंकाएं बढ़ती हैं.

ईएनटी विशेषज्ञ डॉक्टर के एन सिन्हा बताते है कि गले का संक्रमण आमतौर पर वायरस और बैक्टीरिया के कारण होता है, इसके अलावा कुछ केसों में फंगल इंफेक्शन भी होता है, जिसे ओरल थ्रश कहते हैं. गले का इंफेक्शन में गले से कर्कश आवाज, हल्की खांसी, बुखार, सिरदर्द, थकान और खासकर कुछ निगलते वक्त गले में दर्द होता है. आमतौर पर गले का संक्रमण उचित देखभाल और एंटीबायोटिक से ठीक हो जाता है. लेकिन इसका खतरा तब बढ़ जाता है, जब यह संक्रमण करने वाले बैक्टीरिया की नित्य बढ़ने लगती है. बैक्टीरिया या वायरस आदि को बढ़ने से रोकने के लिए कुछ घरेलु उपचार है एवं कुछ सावधानिया बरती जा सकती हैं.   इस सर्दी के मौसम में कुछ सावधानियो को ख्याल में रख कर अपनी सुनहरी आवाज को बरक़रार रखे.

*  सर्दी और गले की खराश से बचाव के लिए कोई वैक्सीन नहीं है, इसलिए जरूरी है कि कुछ ऐसे उपाय अपनाएं जाये, ताकि इस बीमारी से बचा जा सके.
* ठंडी चीजें खासकर फ्रिज में रखी चीजें जैसे आइस्क्रीमस कोल्ड ड्रिंक, कुल्फी आदि का सेवन न करें.
* ठंडे और फ्रिज में रखे भोजन की बजाय गर्म और ताजा खाना खाएं.
* कॉफी और मीठी लस्सी की बजाए पानी और प्योर फ्रूट जूस के सेवन करें.
* गुनगुने पानी में शहद मिला कर पीने से गले की खराश में बहुत आराम मिलता है.
* गले में हल्की भी खराश होने पर नमक युक्त गुनगुने पानी से गरारे करें.
* जब गले में खराश बढ जाये तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करे.
* गले में खराश के समय अदरक, कैमोमाइल या कुठरा की चाय पिया करे,इससे गले को  आराम मिलता है

मुझे अपने बौयफ्रैंड से परेशानी है, वह बहुत शक्की है और ठीक व्यवहार भी नहीं करता, मैं क्या करूं?

सवाल

मैं 20 वर्षीय कालेज स्टूडैंट हूं. मुझे अपने बौयफ्रैंड से परेशानी है. वह बहुत शक्की है और ठीक व्यवहार भी नहीं करता. मैं कालेज में किसी भी लड़के से बात करूं तो उसे जलन होती है. मैं कहां जाती हूं किस के साथ जाती हूं वह सब जानना चाहता है. समझता है मैं उसी की बात मानूं जिस से कहे, बात करूं. कृपया बताएं मैं क्या करूं?

जवाब

आप का बौयफ्रैंड शक्की है तो शक का कोई इलाज नहीं, लेकिन आप समाधान बन सकती हैं उस पर इतना प्यार उढ़ेलिए कि किसी अन्य के पास जाने पर भी उसे न लगे कि उस का प्यार बंट रहा है. साथ ही अपनी सोच को पौजिटिव बनाइए. उस के व्यवहार को ऐसे समझिए कि वह कितना केयरिंग है. आप की कितनी परवा है उसे. किसी भी गलत व्यक्ति से बातचीत पसंद नहीं. वह आप का बुरा नहीं चाहता.

इस तरह की सोच से आप उस के प्रति समर्पित होंगी. फिर जिस से उसे शक हो उस से मिलवाइए व खुद से ज्यादा उस की तारीफ के पुल बांधिए. जब वह सब से घुलमिल जाएगा तो आप को गलत नहीं समझेगा.

हां, गलती से भी इन बातों के कारण उसे डांटिएगा नहीं, क्योंकि इस से उसे लगेगा कि आप दूसरे की वजह से उसे डांट रही हैं. इस से दूरी बढ़ेगी और अगर आप उसे प्यार से कहेंगी कि कितने केयरिंग हो तुम. कितना ध्यान रखते हो मेरा, तो उसे लगेगा कि वह भी कुछ है. इस से उस की हीनभावना भी समाप्त होगी और शक वाली बातें भी.

वेदना के स्वर-भाग 2 : शची ने राजीव का हाथ क्यों थामा

प्रशांत की मां के दकियानूसी विचारों से शची सहम जाती. यदि इस फिल्म इंडस्ट्री में उस के आचरण या चरित्र की ओर कोई उंगली उठाए तो आपत्ति दर्ज की जा सकती है पर पटकथा की मांग पर किए गए दृश्यों पर इतना एतराज क्यों? काजल की इस कोठरी में बेदाग रह जाना ही उस के पक्ष में कितना बड़ा चरित्र प्रमाणपत्र है. लेकिन कौन समाझाए उन्हें.

समय तेजी से गुजरता जा रहा था. शची की नृत्यप्रवीणता काम आई. हर फिल्म में उस का नृत्य फिल्म की सफलता का पर्याय बन गया. उस ने अभिनय की नईनई मंजिलें तय कीं. अपना सौंदर्य अत्यंत घातक बना कर प्रस्तुत करना वह सीख गई. आंखों का मासूम नौसिखियापन अब दिलकश मादकता में बदल गया. उस की मनमोहिनी मुसकान में लाखों लोगों को वश में करने का जादू आ गया. पहले से ही बला की खूबसूरती, उस पर आत्मविश्वास का तेज चढ़ गया. शची फिल्मी आकाश का सब से चमकता हुआ सितारा बन गई.

कैमरे की चकाचौंध बढ़ती गई. इस रोशनी और कोलाहलभरे वातावरण में प्रशांत का हाथ कब छूट गया, पता ही न चला. छिटपुट फिल्में प्रशांत की भी आती रहीं. थोड़ाबहुत व्यवसाय करती रहीं परंतु उल्लेखनीय कुछ भी नहीं.

प्रशांत उस की हर सफलता का जश्न मनाता. उस दिन भी शची की ‘प्यार बिना चैन कहां…’ हिट होने की खुशी में प्रशांत ने उसे अपने घर में दावत दी थी.

मनभावन एकांत में शची और प्रशांत मानो एकदूसरे में खो गए थे. इस संवादहीन स्थिति में भी एक आनंद था. तभी प्रशांत की मम्मी ने उन्हें अंदर बुलाया.

वे शची को कुछ समझा रही थीं. प्रशांत टकटकी लगाए देखे जा रहा था. तभी प्रशांत की मम्मी ने शची को उलाहना दिया, ‘सिर पर चुन्नी रखो. इस घर की बहू बनोगी तुम. रीतिरिवाज भी सीखने होंगे.’

शची शरमा कर प्रशांत के कमरे में चली आई. प्रशांत भी खाने की प्लेटें ले कर वहीं चला आया था.

‘शची, देखो, मैं तुम्हारे लिए क्या लाया हूं रोशनलाल के यहां की रबड़ी, तुम्हें बहुत पसंद है न.’

यह सुन शची खिलखिला कर हंसती हुई बोली, ‘थैंक यू, प्रशांत. तुम्हें मेरी मामूली से मामूली पसंद भी इतनी बारीकी से याद है.’

‘कैसे भूल सकता हूं. तुम तो मेरी जिंदगी हो. जन्मजन्मांतर से ऋणी हूं तुम्हारा. तुम ने मुझे प्यार करना सिखाया..’

शची खिलखिला कर हंस दी, बोली, ‘अब तक याद है तुम्हें वह संवाद.’

‘मेरी फिल्में ही कितनी आई हैं जो भूल जाऊंगा. खासतौर से इस संवाद को भूलने का तो सवाल ही नहीं उठता. और हां, एक बात और, क्या अब वक्त नहीं आया कि हम दोनों शादी कर लें.’

पहले तो शची सोच में पड़ गई, फिर कुछ क्षणों बाद बोली, ‘मम्मी राजी हो जाएंगी?’

‘तुम ने अभी सुना ही है कि मम्मी राजी हैं. बस, उन का यही कहना है कि शची शादी के बाद ऐक्टिंग छोड़ दे.’

‘तुम जानते हो कि अभिनय करना मेरे लिए सांस लेने जैसा है. मैं इस के बिना जी नहीं सकती.’

‘मैं ने ऐसा तो नहीं कहा कि यह मेरा कहना है. कुछ दिनों के लिए छोड़ देना, सबकुछ सामान्य होते ही फिर शुरू कर देना.’

‘नहीं प्रशांत, यह फरेब होगा. मम्मी से मैं झूठ नहीं बोलूंगी. दूसरी बात, इस क्षेत्र में इतनी गलाकाट प्रतियोगिता है कि कुछ दिनों के लिए हटने से मेरा अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाएगा.’

‘शची, प्लीज, मेरे लिए,’ कहते हुए प्रशांत भावातिरेक में उस के हाथ थाम कर आगे बोला, ‘मैं इतना गयागुजरा भी नहीं हूं कि तुम्हारा भरणपोषण न कर सकूं. तुम मेरी इतनी सी बात मान लो.’

‘सवाल सदियों से चली आ रही घिसीपिटी इन सब मान्यताओं का नहीं है, प्रशांत. मैं यहां पेट भरने नहीं आई हूं. मैं ने भी तुम्हारी तरह सपने देखे हैं. उन्हें पूरा करते जाना ही मेरी उपलब्धि है. तुम्हारे सपनों से मेरे सपने कम महत्त्वपूर्ण नहीं हैं. प्रशांत, यदि तुम इन बातों को समझ सको तो मेरी ओर से ‘हां’ समझना वरना…’ कहती शची अपने आंसू रोकती उठ खड़ी हुई और तेज कदमों से अपनी कार में जा बैठी.

हैरान प्रशांत जब तक उसे रोकने की कोशिश करता, गुबार उड़ाती हुई कार जा चुकी थी.

शची के मम्मीपापा ने उस की मनोदशा को समझा. सुंदर व्यक्तित्व और सरल स्वभाव का प्रशांत उन्हें पसंद तो था पर शची के कैरियर के प्रति उस के विचार जान कर उन्हें बेहद निराशा हुई.

शची फिर सितारों की दुनिया में खो गई. उस का सम्मान बढ़ता गया. प्रशंसकों की संख्या दिनदूनी रात चौगुनी बढ़ती रही. प्रशांत की फिल्मों का ग्राफ एक सरल रेखा में चलता रहा. शची के साथ प्रशांत को 2-3 फिल्में मिलीं पर वे ज्यादा चलीं नहीं, इसलिए जोड़ी टूट गई.

शची के रिश्तेदारों ने अमेरिका निवासी राजीव का रिश्ता सुझाया था. राजीव का अमेरिका में बहुत बड़ा व्यवसाय था. वह अति धनाढ्य था पर यह बात शची को विशेष आकर्षित नहीं कर पाई थी. धनाढ्य वर्ग में तो वह स्वयं भी आती थी. उस का दिल तो राजीव के सुदर्शन व्यक्तित्व और सुलझे विचारों ने जीत लिया था.

 

तलाक पर तिलमिलाहट क्यों

जब पतिपत्नी का एक छत के नीचे सहज तो सहज, असहज तरीके से रहना भी दूभर हो जाए तो एकदूसरे से तलाक ले कर छुटकारा पाना गलत नहीं. दिक्कत यह कि कोर्टकचहरी में उन्हें परामर्श केंद्र, फैमिली कोर्ट और तरहतरह की एजेंसियों में उलझा कर उन के सब्र का इम्तिहान लिया जाता है. जब साथ रहना इच्छा में नहीं तो इस का जल्द निबटारा क्यों नहीं? भोपाल से वायरल होता हुआ एक दिलचस्प इन्विटेशन कार्ड देखतेदेखते देशभर में वायरल हो गया था जिसे आम और खास दोनों तरह के लोगों ने दिलचस्पी और चटखारे ले कर पढ़ा था.

बात थी भी कुछ ऐसी ही क्योंकि लाल रंग का यह आमंत्रण पत्र विवाह समारोह का नहीं, बल्कि विवाहविच्छेद समारोह का था जिस में कार्यक्रमों की रूपरेखा बिलकुल शादी की तर्ज पर दर्ज की गई थी. इस में जयमाला विसर्जन, सद्बुद्धि, शुद्धिकरण यज्ञ, बरात विसर्जन, जैंट्स संगीत, मानव सम्मान में कार्य करने हेतु 7 कदम और 7 प्रतिज्ञा और अंत में मुख्य अतिथि द्वारा विवाह विच्छेद की डिक्री वितरण आदि कार्यक्रम प्रमुख रूप से दर्ज थे. यह अनूठा आयोजन ‘भाई’ नाम की संस्था 18 सितंबर को रायसेन रोड स्थित फ्लोरा फौर्म एंड रिसोर्ट में संपन्न करवाने वाली थी जिस में कोई 200 लोगों को आमंत्रित किया गया था. अंदाजा था कि ये सभी तलाकशुदा होंगे.

कार्ड के नीचे खासतौर से पुरुष हैल्पलाइन नंबर 8882498498 भी दिया गया था. कार्ड के वायरल होते ही एक रोमांच सा पसर गया था. हर कोई इस रोमांचकारी आयोजन को देखना चाहता था कि कैसे तलाक का जश्न मनाया जाएगा. उत्सुकता इतनी थी कि दूसरे शहरों से भी लोग इन्क्वायरी कर रहे थे कि हम भोपाल आएं तो इस आयोजन में एंट्री कैसे मिलेगी और क्या दूसरे शहरों के तलाकशुदा इस में शिरकत कर सकते हैं. ये तिलमिलाए रिस्पौंस मिलने लगा तो कट्टर हिंदूवादी और उन के संगठन तिलमिलाने लगे. उन्होंने आयोजकों की जन्मकुंडली खंगाली तो इत्तफाक से उन में से एक मुसलमान निकला. बस, हल्ला मचाने को यही एक पौइंट काफी था. सो, उन्होंने भी एक पोस्ट सोशल मीडिया पर वायरल करते प्रदेश के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा और प्रशासन से मांग कर डाली कि यह आयोजन हिंदूविरोधी है. लिहाजा, इसे न होने दिया जाए और अगर हुआ तो हम फ्लोरा फौर्म हाउस जा कर विरोध करेंगे.

भाई संस्था ने विरोध और टकराव से बचने के लिए इस चर्चित समारोह को रद्द कर दिया तो यह उस की समझदारी थी क्योंकि हंगामा तो वे हिंदूवादी मचाते ही मचाते जिन्होंने विवाहविच्छेद समारोह को सनातन धर्मविरोधी बताते अपनी पोस्ट में प्रमुखता से कहा था कि,

१. डायवोर्स इन्विटेशन भेज कर तलाक उत्सव आयोजित करना सीधासीधा हिंदू धर्म की मान्यताओं पर प्रहार है क्योंकि यह पुरखों के दिनों में आयोजित किया जा रहा है. यह कोई सामान्य आयोजन नहीं, बल्कि सनातन धर्म का मखौल उड़ाने और उसे ध्वस्त करने के लिए है.

२. इस आयोजन में हिंदू विवाह के समय दूल्हे द्वारा पहनी गई पगड़ी, जयमाला, फोटो अलबम आदि को यज्ञबेदी में जलाया जाएगा. ३. सात फेरों की जगह 7 कदम चल कर मान्यताओं से हट कर संकल्प लिए जाएंगे.

४. यह बात समझने वाली है कि आयोजक की अहमद को सिर्फ हिंदू तलाकशुदाओं की चिंता हो रही है. इस में एक भी मुसलिम, ईसाई तलाकशुदा पुरुष से उन की धार्मिक मान्यताओं की मुखालफत और अपमान नहीं कराया जाएगा.

५. तथाकथित बुद्धिजीवी हिंदुओं का अपने धर्म और मान्यताओं के प्रति मजाकिया लहजा हमारे धर्म और संस्कृति पर चोट पहुंचाने वाले विधर्मियों के मंसूबों को सफल बनाने और उन के धर्म के प्रसार का माहौल पैदा करता आया है.

६. क्यों तलाकशुदा मुसलिम दूल्हों को बुला कर उन से कुबूल है, कुबूल है को सुपुर्द ए खाक नहीं करवाया जा रहा, क्यों दूल्हे भाई के सेहरे को पैरों के नीचे कुचलवाया नहीं जा रहा, उस की शेरवानी के चिथड़े नहीं उड़वाए जा रहे.

७. वास्तव में सनातनी हिंदू परंपरा में तलाक या तलाक का कोई स्थान था ही नहीं. इंग्लिश में कहा भी गया है कि ‘द हिंदू मैरिज इज अ सेक्रामैंट नौट अ कौन्ट्रैक्ट’ यानी हिंदू विवाह एक पवित्र संस्कार है, कोई लिखित अनुबंध नहीं. हिंदू को आजीवन निभाया जाता था, शादी के वचनों का महत्त्व था, तलाक की कोई प्रथा नहीं थी. विवाहविच्छेद शब्द कानून में है, किसी धार्मिक ग्रंथ में नहीं. सौ फीसदी सच बाकी 6 के तो कोई माने नहीं लेकिन 7वें वचन में सौ फीसदी सच बोला गया कि दरअसल हिंदू सनातन जो भी हो, धर्म में तलाक का प्रावधान ही नहीं था. यह तो हिंदू कोड बिल बनने के बाद 1947 में आया जो लागू 1951 में हुआ था और किश्तों में 1956 तक होता रहा.

नई पीढ़ी के हिंदुओं को याद दिलाना ज्यादा बेहतर और जरूरी है कि जब तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और कानून मंत्री व संविधान निर्माता डाक्टर भीमराव अंबेडकर कानून बना कर हिंदू महिलाओं को तलाक का हक दिला रहे थे तब भी तब के कट्टर हिंदूवादियों ने भी खूब हल्ला मचाया था और विरोध प्रदर्शन भी किए थे. लेकिन ये दोनों टस से मस नहीं हुए थे क्योंकि इन के सामने सवाल आधी आबादी यानी औरतों के हक, आजादी और बराबरी के दर्जे का था जो ये दिला कर ही रहे. तलाक के अधिकार के साथसाथ महिलाओं को वोट देने का और खासतौर से विधवाओं को भी जायदाद का भी हक मिला. ये बातें भी कानूनी किताबों में दर्ज हैं, किसी धर्मग्रंथ में नहीं लिखी हैं. उलटे, उन में तो यह लिखा है कि महिला को न तो संपत्ति का अधिकार है और न ही आजादी से रहने का हक है. मनु स्मृति के मुताबिक, स्त्री को बचपन में पिता, जवानी में पति और बुढ़ापे में पुत्र के संरक्षण में रहना चाहिए.

75 साल पहले टूटी ये बंदिशें मर्दों के दबदबे वाले हिंदू समाज को अब तक साल रही हैं क्योंकि उन से एक से ज्यादा शादी करने की छूट व सहूलियत छिन गई थी और वे पहले की तरह पत्नी को घर से दूध में पड़ी मक्खी की तरह नहीं निकाल सकते थे. अब महिलाएं तेजी से शिक्षित और जागरूक हो कर कलह और विवाद की नौबत आने पर तलाक के लिए अदालत जाने लगी हैं. लेकिन अभी भी ऐसी महिलाओं की संख्या बहुत कम है. इस की एक अहम वजह कानूनी खामियों के चलते तलाक मिलने में होती गैरजरूरी देरी है. कानून तो टेढ़ेमेढ़े हैं ही, साथ ही, अदालत में बैठे मुलाजिम और साहब भी नहीं चाहते कि तलाक जल्द हो क्योंकि उन्हें लगता है कि तलाक से धर्म, संस्कृति और नैतिकता छिन्नभिन्न और भ्रष्ट होती है, इसलिए तलाक चाहने वालों की हिम्मत तोड़ने के लिए वे तारीख पर तारीख देते रहते हैं.

तलाक इसलिए जरूरी है भोपाल के बवंडर से तो साबित यही होता है कि कुछ कट्टर हिंदूवादी फिर से महिलाओं से तलाक का हक छीनना चाहते हैं जिस से औरत एक बार फिर पांव की जूती, दासी और गुलाम हो जाए. हालांकि अभी भी वे बहुत बड़ी तादाद में आजाद नहीं हैं पर जितनी भी हैं उन्हें भी धर्म के लपेटे में ले लिया जाए तो पुरुषों का स्वर्णयुग वापस लाया जा सकता है. तलाक उत्सव के अपने अलग माने थे जिसे कानून के नजरिए से देखने पर एक वीभत्स सच सामने आता है कि तलाक चाहने वाले पतिपत्नी दोनों परेशान हो कर एक घुटनभरी जिंदगी जी रहे होते हैं.

अदालती प्रक्रिया न केवल इस घुटन को और बढ़ाती है बल्कि उन्हें जलील भी करती है. भोपाल में जिन तौरतरीकों से विवाहविच्छेद समारोह की बात की गई उन में ऐसा लगता है कि आयोजकों को परेशानी तुरंत या जल्द तलाक न मिलने की थी या है क्योंकि तलाक के मुकदमे सालोंसाल चलते हैं जिन में पतिपत्नी अदालतों के चक्कर लगाते जिंदगी से आजिज आ जाते हैं. अदालत में कदम रखते ही सामना बैंडबाजे वालों, टैंट हाउस वाले से या सात फेरे पढ़वाने वाले पंडित से नहीं बल्कि वकीलों, मुंशियों, क्लर्कों और जज से होता है जिन का शादी में कोई रोल ही नहीं था.

यानी तलाक की प्रक्रिया वे लोग संपन्न करवाते हैं जिन का शादी से कोई लेनादेना नहीं था. मेहमान, बराती, घराती कोई तलाक चाहने वाले के साथ नहीं होता. यह स्थिति असहज कर देने वाली होती है. तलाक क्यों होते हैं, इस सवाल का जबाब बेहद साफ है कि वजह कोई भी हो, पतिपत्नी का एक छत के नीचे सहज तो सहज, असहज तरीके से रहना भी दूभर हो चुका होता है इसलिए वे एकदूसरे से छुटकारा चाहते हैं. फिर क्यों उन्हें परामर्श केंद्र, फैमिली कोर्ट जैसी तरहतरह की एजेंसियों के पास भेज कर साथ रहने की सलाह दी जाती है. मानो वे कोई दूध पीते बच्चे हों.

जबकि होता यह है कि पतिपत्नी जब यह महसूस कर लेते हैं कि अब एकसाथ रहना और निभाना मुमकिन नहीं, तभी अदालत की शरण में जाते हैं. जहां उन्हें पहले नसीहत, मशवरा और समझाइश मिलते हैं और इस पर भी वे अडिग रहें तो सालों तक तारीखें मिलती रहती हैं. ये तारीखें जवानी को अधेड़ावस्था या बुढ़ापे में तबदील कर जिंदगी का सुनहरा वक्त दो अच्छेखासे लोगों से छीन लेती हैं. इन के साथ दोनों के परिवारजन और बच्चे अगर हों तो वे भी तनाव में जीते हैं. इस पर अदालतें खामोश रहती हैं लेकिन कोफ्त तब होती है जब उन के फैसलों से भी ‘तलाक बुरी चीज है’ की गंध आती है. लगता ऐसा है कि आगे आने वाले हैरानपरेशान पतिपत्नियों से यह कहा जा रहा है कि उसी घुटन में जी लो, यहां की घुटन भी कम सांस घोंटने वाली नहीं. अब पसंद आप की, जो चाहें चुन लें.

बीती एक सितंबर को एक चर्चित फैसले में केरल हाईकोर्ट ने कई अहम टिप्पणियां की थीं. उक्त इस मामले में पति ने अपनी पत्नी और 3 बेटियों को 9 साल पहले छोड़ दिया था. इन दोनों की शादी साल 2009 में हुई थी जो 2018 तक ठीकठाक चली. इस के बाद पत्नी का व्यवहार बदल गया और वह पति पर किसी और से अफेयर चलने के आरोप लगाने लगी. यह कोई नई या हैरानी की बात नहीं थी लेकिन इसी आधार पर निचली अदालत ने तुरंत तलाक की डिक्री क्यों नहीं दे दी, यह सोचने वाली बात है. हाईकोर्ट के फैसले में लिवइन रिलेशनशिप को कोसा जाना समझ से परे है. फैसले में प्रमुखता से यह कहा गया कि आजकल वैवाहिक संबंध यूज एंड थ्रो जैसे होते जा रहे हैं. लिवइन संबंधों में वृद्धि और तलाक का विकल्प चुनने की प्रचलित प्रवृत्ति इस का स्पष्ट प्रमाण हैं.

युवा पीढ़ी स्पष्ट रूप से विवाह को एक बुराई के रूप में देखती है. बुरा यह है फैसले में लिवइन और विवाह का तुलनात्मक अध्ययन का होना बताता है कि कानून की चिंता तलाक के बढ़ते मामले हैं लेकिन यह शायद ही कोई बताए कि तलाक के मामले अदालतों में सालोंसाल क्यों लटके, अटके और चलते रहते हैं. जिस मामले पर तल्ख टिप्पणी फैसले में की गई उस में तलाक फिर भी नहीं दिया गया. अब मुमकिन है अगर पति पैसे वाला होगा तो शायद सुप्रीम कोर्ट भी जाए. लेकिन यह समस्या या उस की परेशानी का हल नहीं होगा क्योंकि साढ़े 4 साल पति के साथ पत्नी और 3 मासूम बेटियों ने भी तनाव, अनिश्चितता और आशंका में गुजारे हैं जिस की मियाद अब और बढ़ गई है.

इसे न्याय क्या खा कर कहा जाए, बात समझ से परे है. इस में कोई शक नहीं कि नई पीढ़ी के लोग बजाय शादी के लिवइन में रहना ज्यादा पसंद कर रहे हैं तो इस में गलत क्या है. यह निहायत ही व्यक्तिगत बात है और अगर गलत किसी को लगती है तो उसे यह समझना चाहिए कि इस की जिम्मेदार बेकार की धार्मिक मान्यताएं और कानूनी खामियां हैं. आज के युवा जिंदगी में वेबजह की कोई झंझट या मुसीबत मोल नहीं लेना चाहते. स भोपाल के 42 वर्षीय अविनाश (बदला नाम) शादी नहीं कर रहे. वे कोई भी जम्मेदारी उठाने से नहीं डर रहे, बल्कि उन का डर यह है कि अगर शादी के बाद पत्नी से पटरी नहीं बैठी तो जिंदगी नरक हो कर रह जाएगी और अगर तलाक की नौबत आई तो सालों फैसला नहीं होने वाला. यह अविनाश ने बहुत नजदीकी रिश्तेदारी में देखा और भुगता है. इस डर को फोबिया, वहम या दिमागी बीमारी कह कर नजरअंदाज नहीं किया जा सकता क्योंकि यह डर कानून का है जिस में तलाक के लिए कोई मियाद ही तय नहीं है जिसे किसी भी सूरत में एक साल से ज्यादा नहीं होना चाहिए, तभी लोग कानून का सहारा लेंगे नहीं तो घुटघुट कर मरना उन की प्राथमिकता होगी.

स भोपाल के एक पत्रकार योगेश तिवारी के तलाक का मुकदमा 15 साल चला था. अब वे अधेड़ हो चुके हैं और उन की जिंदगी में सिवा पत्रकारिता के कुछ नहीं बचा है. योगेश मरी सी आवाज में कहते हैं, ‘‘अगर यही तलाक सालदोसाल में हो गया होता तो आज जिंदगी कुछ और होती…’’ योगेश सरिता का आभार व्यक्त करते हैं क्योंकि उस ने उन की आवाज और पीड़ा दोनों को राष्ट्रीय स्तर पर उठाए थे. इस से उन्हें हिम्मत और किसी के साथ होने का सहारा मिला था. लेकिन तुरंत इस के बाद वे चौंका देने वाले अंदाज में बताते हैं, ‘‘मेरी कहानी अभी खत्म नहीं हुई है. निचली अदालत से तलाक हुआ.

10 साल बाद ही सही, हाईकोर्ट ने इस पर अपनी मंजूरी की मोहर लगाई तो मुझे लगा कि अब मैं तनाव यानी मुकदमामुक्त जिंदगी जिऊंगा लेकिन पत्नी सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई जहां उस ने भरणपोषण की मांग की.’’ योगेश व्यथित हो कर बताते हैं, ‘‘सुप्रीम कोर्ट का नोटिस मिलते ही मेरी सारी खुशी और बेफिक्री फिर तनाव में तबदील हो गए. मैं ने कोर्ट को बताया कि हमारा तलाक हो चुका है और मेरा उस महिला से कोई वास्ता नहीं. रही बात भरणपोषण की तो मुकदमे के दौरान वह खुद मान चुकी है कि वह सरकारी कर्मचारी है और उसे खासी सैलरी मिलती है, इसलिए उसे भरणपोषण नहीं चाहिए.’’ अपना पक्ष रख कर योगेश भोपाल वापस आए तो कुछ दिनों बाद उन का सिर फिर भन्ना उठा जब उन्हें परिवार परामर्श केंद्र बुला कर यह पूछा गया कि क्यों वे अपनी पत्नी यानी उस महिला के साथ नहीं रह सकते.

उन्हें समझ नहीं आया कि क्यों उन के साथ कानून ऐसे भद्दे मजाक कर रहा है, चैन से क्यों नहीं रहने दे रहा. तलाक न हुआ कोई संगीन गुनाह हो गया जो मैं ने किया ही नहीं. योगेश को अब भी खटका है कि कल को कोई एडीजे या तहसीलदार या पटवारी या फिर कोटवार ही कोई कागज ले कर न आ जाए कि चलिए, आप की तलाक वाली पेशी है. शायद ही कोई बता पाए कि योगेश जैसे लोगों का अपराध क्या है. क्या यह कि उन्होंने विवाह व्यवस्था में भरोसा किया था और तलाक हो जाने के बाद भी उन्हें क्यों परेशान किया जा रहा है. सोचा यह भी जाना चाहिए कि तलाक का कोई एक कानून क्यों नहीं है? घरेलू हिंसा, गुजाराभत्ता, नपुंसकता, दहेज और अफेयर के जैसे कानून तलाक के मूल मुकदमे को और उलझाते ही हैं. ये मुकदमे तलाक की डिक्री के बाद भी चल सकते हैं लेकिन कोई जज, वकील या कोई और यह सलाह नहीं देता. उलटे, वे अपनी खुदगर्जी के लिए गलत सलाह देते हैं.

इस का खमियाजा अकसर उस पत्नी को ही भुगतना पड़ता है जो अपनों और दूसरों के बहकावे में आ कर उलटेसीधे और झूठे आरोप पति पर लगा बैठती है. यही गलती पति भी करते हैं कि पत्नी क्रूर है, साथ नहीं रहती, चरित्रहीन है, मांबाप के साथ नहीं रहने देती वगैरहवगैरह. तो फिर हल क्या इन समस्याओं का इकलौता हल बहुत आसान है कि पतिपत्नी अदालत में सिर्फ तलाक की बात करें, इधरउधर की न हांकें. सरकार का काम है कानून बनाना. वे कैसे हैं और कैसे लोगों के लिए बजाय सहूलियत के परेशानी का सबब बन जाते हैं, यह तलाक के मुकदमे लड़ने वाले पतिपत्नी बेहतर बता सकते हैं. बकौल योगेश तिवारी, यह महाभारत काल के जुए की फड़ जैसा है.

एक बार आप फंस गए तो पांडवों की तरह सबकुछ लुटापिटा कर ही उठते हैं. समझदार लोग इन झंझटों में नहीं पड़ते. वे सीधे हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 13(बी) का परस्पर सहमति वाला रास्ता चुनते हैं जिस के तहत उन्हें एक संयुक्त शपथपत्र अदालत में पेश करना होता है. आमतौर पर कोर्ट उन्हें 6 महीने का वक्त सोचने के लिए देती है (हालांकि यह भी ज्यादा है). अगर इस के बाद भी वे यह कहते हैं कि साथ रहना मुमकिन नहीं तो तलाक हो जाता है. इस धारा की सलाह न तो जज और वकील देते हैं और न ही अपने या गैर देते. कोई भी नहीं चाहता कि तलाक इतनी आसानी से हो जाए और जैसेतैसे हो जाए तो उस का जश्न भी नहीं मनाने देते क्योंकि इस से धर्म का अपमान होता है जो मुकदमे की परेशानियों के दौरान कहीं साथ नहीं था.

अनुच्छेद 142 होगा कारगर तलाक के मामलों में सब से बड़ी परेशानी यह भी होती है कोई एक पक्ष तलाक नहीं चाहता. इस पर अदालतें भी सोच में पड़ जाती हैं कि वे अब क्या करें. इस का हल निकलता दिखाई दे रहा है. 20 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने इस तरफ पहल की है कि पति या पत्नी में से कोई एक तलाक की शर्तें मानने को तैयार न हो और दोनों के दोबारा साथ रहने की भी गुंजाइश खत्म हो गई हो तो फिर क्या तलाक की अर्जी मंजूर की जा सकती है. सुप्रीम कोर्ट को संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत मिली सर्वव्यापी शक्तियों का उपयोग इस में कारगर हो सकता है.

तलाक के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट इस शक्ति का इस्तेमाल करने जा रहा है. जिस में 5 जजों की बैंच फैसला लेगी. 28 सितंबर के प्रयोग से पता चलेगा कि सब से बड़ी अदालत न्याय के प्रति कितनी गंभीर है. ऐसा यानी अनुच्छेद 142 का इस्तेमाल तलाक के मुकदमों में होना चाहिए या नहीं, इस पर लंबी बहस कानूनविदों के बीच हो चुकी है लेकिन इस पर असमंजस भी है. बेहतर तो यह होगा कि सुप्रीम कोर्ट तुरंत तलाक का प्रावधान लागू करे जिस से तलाक का मुकदमा लड़ रहे लाखों पतिपत्नी राहत की सांस लें जो अदालतों की चौखट पर एडि़यां रगड़ रहे हैं और बेहतर तो यह होगा कि ये अधिकार निचली अदालतों को दे दिए जाएं क्योंकि हर कोई सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचने में सक्षम नहीं होता.

सब्जियों की पौधशाला में कीटों से बचाव के उपाय

लेखक-सचिन तुलसा 

सब्जी की रोपाई वाली फसलों में आमतौर पर कीटों का प्रकोप पौधशाला से ही शुरू हो जाता है या कुछ कीट विषाणुजनित रोगों को आगे बढ़ाने में सहायक होते हैं, जो आगे चल कर फसल को अच्छाखासा नुकसान पहुंचाते हैं. फसल को कैसे बचाएं कीटों से? कैसे करें फसल की देखभाल? इसी विषय पर डा. अखिलेश कुमार, कृषि विज्ञान केंद्र, रीवा (मध्य प्रदेश) और डा. तपन कुमार सिंह, कृषि महाविद्यालय, रीवा (मध्य प्रदेश) ने विस्तार से जानकारी दी.

सब्जियों का अधिक उत्पादन न होने और माली नुकसान ज्यादा होने में कीटों का सब से अहम योगदान है. सब्जियों में कीटों का आक्रमण पौधशाला से ही शुरू हो जाता है. अगर सब्जी का उत्पादन बढ़ाना है, तो पौधों को स्वस्थ व कीटों से मुक्त रखना जरूरी है. स्वस्थ एवं मुक्त कीट पौध की रोपाई के बाद फसल की बढ़त अच्छी होती है और पौधशाला से खेत में कीट के फैलने व इन के द्वारा विषाणुजनित रोग बहुत कम मात्रा में लगते हैं.

कीटों के प्रकोप की मुख्य वजह

* पौधशाला में पौधों की संख्या (घनत्व) अधिक होती है, जिस से कीटों के अंडे देने और खाने के लिए उपयुक्त वातावरण मिल जाता है. अधिक पासपास पौधों के होने से कीट एक पौधे से दूसरे पौधे पर आसानी से फैल जाते हैं और कम समय में ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं.

* पौधशाला की मिट्टी में पोषक तत्त्व अधिक मात्रा में होते हैं, जिस से पौध ज्यादा लचीली एवं मुलायम हो जाती है और कीटों को ज्यादा आकर्षित करती है. सब्जी पौधशाला में लगने वाले प्रमुख कीट पौधशाला में मुख्य रूप से रस चूसने वाले कीट जैसे सफेद मक्खी, माहू, अष्टपदी कीट, थ्रिप्स, जैसिड (हरा तेला) के साथसाथ पर्ण सुरंग कीट, पत्ती भक्षक कीट और तना वेधक कीट का अधिकाधिक प्रकोप होता है.

कभीकभी दीमक व मिट्टी के भीतर पाए जाने वाले कीट भी पौधशाला को काफी नुकसान पहुंचाते हैं. नुकसान पहुंचाने वाले कीटों का प्रबंधन सब्जियों की पौधशाला में कीटों द्वारा अत्यधिक नुकसान होता है. इस समय अगर हम कीटों से होने वाले नुकसान से बचाएं, तो सब्जियों का उत्पादन बढ़ा सकते हैं. किसी भी फसल की पौध पौधशाला में स्वस्थ हो, तो आगे चल कर पौधे का विकास अच्छा होता है. स्वस्थ पौधों के विकास के लिए खास बातें

* गरमी में गहरी जुताई करें. सौंदर्यीकरण पद्धति का प्रयोग करें. पौधशाला की मिट्टी को कीटनाशी रसायनों या नीम की खली से उपचारित करें.

* पौधशाला की क्यारियों को खरपतवार से मुक्त रखें.

* बीजों को कीटनाशी रसायनों से उपचारित करें व उचित ढंग से पौधे पर छिड़काव करें.

* बीजों की लाइन में बोआई करें.

* पौधशाला को बारीक नायलौन या कपड़े की जाली से ढक कर रखें.

* पौधशाला में कीटों के अंडों, सूंड़ी व ककून (कृमि कोष) को नष्ट कर दें.

* 4 फीसदी नीम गिरी के सत प्रयोग करें.

* रोपाई से पूर्व पौध की जड़ों को कीटनाशी रसायनों से उपचारित करें. बैगन बैगन का तना व फल बेधक कीट : पौधशाला में इस का प्रकोप केवल तने पर होता है, जिस में पौध के ऊपरी भाग मुरझा कर लटक जाते हैं. इस से पौधों का विकास नहीं हो पाता है. इस कीट की सूंड़ी क्षतिकारक होती है, जो गुलाबी रंग की होती है. प्रबंधन : मिट्टी को फिप्रोनिल 0.3जी की 5 ग्राम मात्रा प्रति वर्गमीटर की दर से शोधित करना चाहिए. क्षतिग्रस्त तने को तोड़ कर सूंड़ी सहित मिट्टी में दबा देना चाहिए. एमामैक्टिन बेंजोएट 5 एसजी नामक दवा की 1 ग्राम मात्रा प्रति 2 लिटर पानी में मिला कर छिड़काव करना चाहिए.

टमाटर सफेद मक्खी : इस मक्खी द्वारा पौधों के प्रत्येक भाग से रस चूस कर नुकसान पहुंचाया जाता है. यह एक विषाणु वाहक कीट है, जो आगे चल कर पर्ण कुंचन (लीफ कर्ल) नामक रोग फैलाता है, जिस से टमाटर की पैदावार काफी प्रभावित होती है.

प्रबंधन : पौधशाला की मिट्टी को कार्बोफ्यूरान 3जी की 5 ग्राम मात्रा प्रति वर्गमीटर की दर से उपचारित करना चाहिए.

* बीज को इमिडाक्लोप्रिड 70 डब्ल्यूपी नामक रसायन से 3 ग्राम मात्रा ले कर 1 किलोग्राम बीज को उपचारित कर के बोआई कर दें.

* इमिडाक्लोप्रिड 200 एसएल की 1 मिलीलिटर दवा 2 लिटर पानी में मिला कर या फिप्रोनिल 5 फीसदी एससी नामक दवा की मात्रा 1.5 मिलीलिटर प्रति लिटर पानी में मिला कर छिड़काव करना चाहिए. * सफेद नायलौन की जाली या एग्रोनैट का प्रयोग करना चाहिए.

पर्ण सुरंगक कीट : इस कीट के मैगट क्षतिकारक होते हैं, जो पत्ती के अंदर सुरंग बना कर पत्ती के हरे भाग को नुकसान पहुंचाते हैं, जिस से पत्तियां सूख कर गिर जाती हैं. प्रबंधन : इस कीट का नियंत्रण 4 फीसदी नीम गिरी के सत का छिड़काव करने से हो जाता है यानी 40 ग्राम नीम गिरी का पाउडर 1 लिटर पानी के लिए पर्याप्त है.

गोभी हीरक पृष्ठ (पतंगा कीट) : यह हरे रंग की सूंड़ी होती है, जो पत्तियों की निचली सतह पर अधिक मात्रा में पाई जाती है. ये पत्तियों के हरे भाग को खुरचखुरच कर खाती हैं, जिस से पौधे कमजोर हो जाते हैं.

प्रबंधन : एमामैक्टिन बेंजोएट 5 एसजी की 1 ग्राम मात्रा को प्रति लिटर पानी में मिला कर छिड़काव करने से फूलगोभी और पत्तागोभी के पौध को नुकसान होने से बचाया जा सकता है. 4 फीसदी नीम गिरी का सत लाभकारी होता है.

तंबाकू की सूंडी (स्पोडोप्टेरा लिटुरा एफ.) : इस कीट की सूंड़ी क्षतिकारक होती है, जो हरे रंग की होती है. इस के अग्र भाग पर 2 काले धब्बे पाए जाते हैं, जो इस कीट की मुख्य पहचान है.

प्रबंधन : इंडोक्साकार्ब 15.8 ईसी नामक दवा की 1 मिलीलिटर मात्रा का प्रति लिटर पानी में मिला कर छिड़काव करना चाहिए.

प्याज थ्रिप्स : यह कीट छोटा व पीले रंग का होता है, जो पत्तियों का रस चूसते हैं, जिस से उन पर सफेद धब्बा बन जाता है. प्याज की पौधशाला में इस कीट का प्रकोप अधिक होता है.

प्रबंधन : इस कीट के नियंत्रण के लिए इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल 1 मिलीलिटर प्रति 2 लिटर पानी में मिला कर छिड़काव करने से नियंत्रण हो जाता है. चिपचिपी पीली पट्टी का प्रयोग करना चाहिए. हड्डा बीटल (एपिलेकना भृंग) : इस कीट से पौधशाला में काफी क्षति होती है. इस के भृंग एवं प्रौढ़ दोनों अवस्थाएं क्षतिकारक होती हैं. इस के प्रकोप से पत्तियों में जालीनुमा शिराएं दिखाई देती हैं, जिस में हरा भाग कीट खा जाते हैं. इस वजह से आगे चल कर पत्तियां सूख जाती हैं और पौध रोपाई के लिए अनुपयुक्त हो जाती हैं.

प्रबंधन : सूखी पत्तियों को एकत्र कर जला देना चाहिए. इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल की 1 मिलीलिटर दवा प्रति 2 लिटर पानी में मिला कर छिड़काव करना चाहिए.

मिर्च थ्रिप्स : यह एक छोटा और नाव के आकार का कीट होता है, जो पत्ती से रस चूस कर नुकसान पहुंचाता है. अगर इस कीट का नियंत्रण पौधशाला में न किया जाए, तो आगे चल कर पर्ण कुंचन (गुरचा) नामक रोग लग जाता है.

प्रबंधन : इमिडाक्लोप्रिड 70 डब्ल्यूपी नामक दवा की 3 ग्राम मात्रा प्रति किलोग्राम की दर से बीज को उपचारित कर लेना चाहिए. पौध अवस्था में प्रकोप होने पर इमिडाक्लोप्रिड 200 एसएल की 1 मिलीलिटर दवा प्रति 2 लिटर पानी में मिला कर छिड़काव करना चाहिए. फल अवस्था में फिप्रोनिल 5 फीसदी एससी नामक दवा की 1.5 मिलीलिटर मात्रा प्रति लिटर पानी में मिला कर छिड़काव करना चाहिए.

पीली माइट : यह एक प्रकार का अष्टपदी कीट होता है, जो पत्तियों से रस चूस कर नुकसान पहुंचाता है. प्रबंधन : नीम के तेल का 50 से 60 एमएल प्रति 15 लिटर पानी में मिला कर छिड़काव करना चाहिए. प्रोपेरागाइट 57 फीसदी की 3 मिलीलिटर ईसी प्रति लिटर पानी में मिला कर छिड़काव करना चाहिए.

ननद के रिसेप्शन में मीडिया वालों से नाराज हुईं दीपिका कक्कड़ , जानें क्या है कारण

टीवी एक्टर शोएब इब्राहिम की बहन शबा इब्राहिम शादी के बंधन में बंध चुकीं हैं, कुछ वक्त पहले ही परिवार के लोगों ने मुंबई में रिसेप्शन पार्टी रखा था, जहां सबा अपने पति के साथ शानदार अंदाज में एंट्री की थीं.

सबा का अंदाज देखकर लोगों की निगाहें थम सी गई थीं, इसी बीच सबा की रिसेप्शन की तस्वीर भी सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रही है. एक वीडियो में दीपिका कक्कड़ जमकर मीडिया वालों पर भड़कती नजर आ रही हैं.

 

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ऐसा पहली बार हुआ है जब दीपिका कक्कड़ मीडिया वालों पर भड़कती नदर आईं. ये तो सभी लोगों को पता है कि दीपिका कक्कड़ सबा की शादी की तैयारी 2 महीने पहले से तैयारी कर रही हैं. वह इस शादी में किसी तरह का कोई रुकावट और दिक्कत नहीं चाहती थीं.

दरअसल, जैसे ही शबा इब्राहिम की एंट्री हुई मीडिया वालों में हलचल होनी शुरू हो गई. भीड़ को देखते हुए दीपिका कक्कड़ ने मीडिया वालों की क्लास लगानी शुरू कर दी उन्होंने कहा कि आप लोगों की वजह से सब गड़बड़ हो जाएगा प्लीज सभी चीजों का ध्यान रखिए.

उसके बाद से शोएब इब्राहिम सभी चीजों को संभालते नजर आएं, उन्होंने कहा कि प्लीज ध्यान से करिए सभी कवरेज.

Bigg Boss 16 : साजिद खान और अर्चना गौतम में हुई लड़ाई, घरवालें हुए अर्चना के खिलाफ

छोटे पर्दे का सबसे ज्यादा चर्चित रियलिटी शो बिग बॉस 16 इन दिनों खूब चर्चा में बना हुआ है, आए दिन इस शो में कुछ न कुछ नया नया देखने को मिलते रहता है, बात करें शो में अगर अर्चना गौतम की तो उन्होंने पूरे घर को अपने सर पर उठा रखा है,

अर्चना पूरे घरवालों पर भारी पड़ रही हैं, सभी का यह मानना है कि अर्चना शांत हो गई हैं, लेकिन अर्चना अब पूरे घरवालों को परेशान कर रखी हैं. घर के कैप्टन साजिद खान और अर्चना में जमकर लड़ाई हुई, वहीं बिग बॉस 16 का नया प्रोमो तेजी से वायरल हो रहा है.

 

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आने वाले एपिसोड में दिखाया जाएगा कि अर्चना हर काम को करने से मना करती नजर आ रही हैं, वहीं पूरे घरवाले अर्चना को परेशान करते नजर आ रहे हैं. साजिद खान कहते हैं कि अगर आने वाले20 मिनट में अर्चना काम करने के लिए नहीं उठी तो मैं उनके खिलाफ एक्शन लूंगा.

प्रोमो को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि आने वाला एपिसोड काफी ज्यादा मजेदार होने वाला है. इसके बाद शिव ठाकरे कहते हैं कि अर्चना उठो और घर का काम करो,  अर्चना इस बयान से नाराज हो जाती है.

पूरे घर वाले अर्चना के समान को जेल में भेज देते हैं.

दूसरा पिता-भाग 3 : क्या कमलकांत को दूसरा पिता मान सकी कल्पना

3-4 दिनों में वह व्यक्ति चलनेफिरने लगा था.

एक सुबह पद्मा ने पूछा, ‘‘अभी तक आप ने अपना नाम नहीं बताया?’’

जवाब कल्पना ने दिया, ‘‘कमलकांत,’’ और होटल की रसीद मां की तरफ बढ़ाई, ‘‘रसीद पर इन का यही नाम लिखा है,’’ वह मुसकरा रही थी.

थोड़ी देर बाद जब वह सूटकेस में अपने कपड़े रखने लगा तो पद्मा ने पूछा, ‘‘कहां जाएंगे अब?’’

‘‘क्या बताऊं?’’ कमलकांत बोला, ‘‘इलाहाबाद ही जाऊंगा. वहां मेरा कुछ काम तो है ही, लोग परेशान हो रहे होंगे.’’

कल्पना ने उस के हाथ से सूटकेस ले लिया, ‘‘आप अभी कहीं नहीं जाएंगे. इतने ठीक नहीं हुए हैं कि कहीं भी जा सकें. दोबारा अटैक हो गया तो लेने के देने पड़ जाएंगे. यहीं रहिए कुछ दिन और, अपने दफ्तर में फोन कर दीजिए.’’

पद्मा कुछ बोली नहीं. कहना तो वह भी यही सब चाहती थी, पर अच्छा लगा, बेटी ने ही कह दिया. शायद वह समझ गई, पर क्या समझ गई होगी? देर तक चुप बैठी पद्मा सोचती रही. कहां पढ़ा था उस ने यह वाक्य- ‘प्यार जानने, समझने की चीज नहीं होती, उसे तो सिर्फ महसूस किया जाता है.’

‘क्या कमलकांत उसे अच्छे लगने लगे हैं?’ पद्मा ने अपनेआप से पूछा. एक क्षण को वह सकुचाई. फिर झेंप सी महसूस की, ‘नहीं, अब इस उम्र में फिर से कोई नई शुरुआत करना बहुत मुश्किल है. न मन में उत्साह रहा, न इच्छा. प्रभाकर के साथ जुड़ कर देख लिया. क्या मिला उसे? क्या दोबारा वही सब दोहराए? आदमी का क्या भरोसा? क्यों सोच रही है वह यह सब इस आदमी को ले कर? क्या लगता है यह उस का? कोई भी तो नहीं…क्या सचमुच कोई भी नहीं?’ अचानक उस के भीतर से किसी ने पूछा. और वह अपनेआप को भी कोई सचसच जवाब नहीं दे पाई थी. व्यक्ति दूसरे से झूठ बोल सकता है, अपनेआप से कैसे झूठ बोले?

कल्पना कालेज जाती हुई बोली, ‘‘मां, आप अभी एक सप्ताह की और छुट्टी ले लीजिए, इन की देखरेख कीजिए.’’

पद्मा बुत बनी बैठी रही, न हां बोली, न इनकार किया.

उस के जाने के बाद पद्मा ने छुट्टी की अर्जी लिखी और पड़ोस के लड़के को किसी तरह स्कूल जाने को राजी किया. उस के हाथों अर्जी भिजवाई.

शाम को जया आई, ‘‘क्या हुआ, पद्मा?’’ एक अजनबी को घर में देख कर वह भी चकराई.

जवाब देने में वह लड़खड़ा गई, ‘‘क्या बताऊं?’’

जया उसे एकांत में ले गई, ‘‘ये महाशय?’’

सवाल सुन कर पद्मा का चेहरा अपनेआप ही लाल पड़ गया, पलकें झुक गईं.

जया मुसकरा दी, ‘‘तो यह बात है… कल्पना के नए पिता?’’

पद्मा अचकचा गई, ‘‘नहीं रे, पर… शायद…’’

बाद में देर तक पद्मा और जया बातें करती रहीं. अंत में जया ने पूछा, ‘‘कल्पना मान जाएगी?’’

‘‘कह नहीं सकती. मेरी हिम्मत नहीं है, जवान बेटी से यह सब कहने की. अगर तू मदद कर सके तो बता.’’

‘‘कल्पना से कल बात करूंगी,’’ जया बोली, ‘‘और प्रभाकर ने टांग अड़ाई तो…?’’

‘‘इतने सालों से उन्होंने हमारी खबर नहीं ली. मैं नहीं समझती उन्हें कोई एतराज होगा.’’

‘‘सवाल एतराज का नहीं, कानून का है. आदमी अपना अधिकार कभी भी जता सकता है. तुम स्कूल में अध्यापिका हो, बदनामी होगी.’’

‘‘तब से यही सब सोच रही हूं,’’ पद्मा बोली, ‘‘इसीलिए डरती भी हूं. कुछ तय नहीं कर पा रही कि कदम सही होगा या गलत. एक मन कहता है, कदम उठा लूं, जो होगा, देखा जाएगा. दूसरा मन कहता है, मत उठा. लोग क्या कहेंगे. दुनिया क्या कहेगी. समाज में क्या मुंह दिखाऊंगी. यह उम्र बेटी के ब्याह की है और मैं खुद…’’ पद्मा संकोच में चुप रह गई.

‘‘ठीक है, पहले कल्पना का मन जानने दे, तब तुम से बात करती हूं और कमलकांत से भी कहती हूं,’’ जया चली गई.

पद्मा पास की दुकान से घर की जरूरत की चीजें ले कर आई तो देखा, कमलकांत के पास कल्पना बैठी गपशप कर रही है और दोनों बेहद खुश हैं.

‘‘मां, जया मौसी रास्ते में मिली थीं.’’

सुन कर पद्मा घबरा गई. हड़बड़ाई हुई सामान के साथ सीधे घर में भीतर चली गई कि बेटी का सामना कैसे करे?

अचानक कल्पना पीछे से आ कर उस से लिपट गई, ‘‘मां, आप से कितनी बार कहा है, हर वक्त यों मन को कसेकसे मत रहा करिए. कभीकभी मन को ढीला भी छोड़ा जाता है पतंग की डोर की तरह, जिस से पतंग आकाश में और ऊंची उठती जाए.’’

वह कुछ बोली नहीं. सिर झुकाए चुप बैठी रही. कल्पना हंसी, ‘‘मैं बहुत खुश हूं. अच्छा लग रहा है कि आप अपने खोल से बाहर आएंगी, जीवन को फिर से जिएंगी, एक रिश्ते के खत्म हो जाने से जिंदगी खत्म नहीं हो जाती…

‘‘मुझे ये दूसरे पिता बहुत पसंद हैं. सचमुच बहुत भले और सज्जन व्यक्ति हैं. हादसे के शिकार हैं, इसलिए थोड़े अस्तव्यस्त हैं. मुझे विश्वास है, हमारा प्यार मिलेगा तो ये भी फिर से खिल उठेंगे.’’

पता नहीं पद्मा को क्या हुआ, उस ने बेटी को बांहों में भर कर कई बार चूम लिया. उस की आंखों से अश्रुधारा बह रही थी और कल्पना मां का यह नया रूप देख कर चकित थी.

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