अब तो देश के सामने सब कुछ खुला खेल फर्रुखाबादी की तरह साफ-साफ है. महाराष्ट्र में शिवसेना नेता संजय रावत की गिरफ्तारी और लगभग 100 दिन की जेल और न्यायालय से रिहाई और सबसे बड़ी बात न्यायालय की टिप्पणी से साफ है कि केंद्र में नरेंद्र दामोदरदास मोदी की सरकार और अमित शाह का गृह मंत्रालय किस तरह काम कर रहा है. अगर हम लोकतंत्र और लोकतांत्रिक संस्थाओं की बात करें तो आज का समय एक काले अंधेरे की तरह है और देश की जनता अगर इसका अपने मतदान के माध्यम से रास्ता नहीं निकालेगी तो अंततः डंडा देश की आम जनता के पीठ पर ही पड़ने वाला है.

शिवसेना सांसद संजय राउत 100 दिन बिताकर एक विजेता की भूमिका में जेल से आ गए हैं. संजय राउत की वापसी पर शिवसेना समर्थकों ने जगह जगह ‘टाइगर इज बैक’, ‘शिवसेना का बाघ आया’ जैसे पोस्टर लगाए और यह संदेश दे दिया है कि चाहे अत्याचार कोई कितना कर ले शिवसेना और संजय राऊत झुकने वाले नहीं है.

दरअसल, शिवसेना नेता संजय राउत को प्रवर्तन निदेशालय ने पात्रा चॉल घोटाले में मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़े मामले में इस साल जुलाई में गिरफ्तार किया था. जेल से बाहर आने के बाद संजय राउत ने अपने घर के बाहर प्रेस से चर्चा की. उन्होंने कहा -” उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं है.” अपनी कलाई की ओर इशारा करते हुए संजय राउत ने कहा -” तीन महीने बाद ये घड़ी पहनी है. ये भी कलाई पर ठीक से नहीं आ रही है.”
जेल में बिताए दिनों को इससे बेहतर दर्द भरे शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता. इससे पहले संजय राऊत ने बाला साहब ठाकरे की समाधि शिवाजी पार्क पहुंचकर उन्हें नमन किया और यह संदेश दे दिया कि आने वाले समय में उनकी दिशा क्या होगी. दूसरी तरफ़ शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे से भी मुलाकात की इस अवसर पर ठाकरे ने साफ-साफ कहा कि केंद्र की जांच एजेंसियां किसी पालतू की तरह काम कर रही है.
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संजय राऊत एक नजीर बन गए
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नरेंद्र दामोदरदास मोदी और अमित शाह की खुलकर आलोचना करने वाले संजय राउत ने जेल से बाहर आते ही अपने तेवर दिखा दिए कहा, – ‘वे नहीं जानते हैं कि उन्होंने कितनी बड़ी गलती मुझे गिरफ्तार करके की है. यह उनके राजनीतिक जीवन की सबसे बड़ी गलती साबित होगी.’दरअसल, आज देश के हर एक नागरिक के लिए सोचने वाली बात है कि क्या हम तानाशाही की ओर बढ़ रहे हैं?

महाराष्ट्र की राजनीति पर अगर हम नजर डालें तो यह साफ है कि जो भी घट रहा हैं मानो उनकी पटकथा पहले ही लिखी जा चुकी है. उद्धव ठाकरे का शरद पवार और कांग्रेस के साथ हाथ मिलाकर के सत्तासीन होना केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार को रास नहीं आया और एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में विधायकों को तोड़ दिया गया. यह सच सारे देश ने देखा है और यह लोकतंत्र की हत्या से कम नहीं कहा जा सकता.

मगर, एकनाथ शिंदे की बगावत के बाद महाराष्ट्र की सत्ता और शिवसेना का नाम और निशान खोने वाले उद्धव ठाकरे के लिए यह राहत का सबब है. पहले अंधेरी ईस्ट उपचुनाव में जीत और अब संजय राउत की रिहाई ने उन्हें बड़ी राहत दी है. दशहरे की रैली में बड़ी संख्या में लोगों को जुटाने के बाद से ही उद्धव ठाकरे गुट आक्रामक अंदाज में नजर आ रहा है. वस्तुतः आज की नरेंद्र मोदी सरकार उनकी विचारधारा यह मानती है कि जो विरोधी हैं उन्हें नेस्तनाबूत का दिया जाए. चाहे बिहार हो या फिर उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र हो या फिर मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड हर एक प्रदेश में भाजपा आक्रमक है और उसके नेता चाहते हैं कि विरोधी खत्म हो जाए मगर वह भुलते हैं कि लोकतंत्र का सौंदर्य विपक्ष की उपस्थिति से ही होता है. सबसे बड़ी बात यह कि भाजपा भी कभी विपक्ष में थी अगर पंडित जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी अथवा अन्य कांग्रेस के बड़े नेता चाहते तो राष्ट्रीय स्वयं संघ और भारतीय जनता पार्टी कहां होती यह शायद अनुमान लगाया जा सकता है.

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