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विंटर स्पेशल: अदरक, लहसुन से लेकर गाजर तक, सर्दियों में जरूर खाएं ये 19 चीजें

कड़ाके की सर्दी पड़ रही है. सारे लोग स्वेटर्स, मफलर, कोट, जैकेट्स, मोजे, ग्लव्ज लपेटे सर्दी को भगाने की जुगत में लगे हैं, मगर ये सर्दी है कि हड्डियों में घुसी जा रही है. हाड़ कंपा रही है, दांत बजा रही है. दोस्तों, सिर्फ गर्म कपड़ों में घुसने से सर्दी नहीं जाएगी, इसको भगाने के लिए अन्दर गर्मी जगानी होगी. आपको अपने भोजन में ऐसी चीजों को शामिल करना पड़ेगा जो आपको अंदर से गर्मी दे. आज हम आपको सर्दी से बचने के लिए और शरीर को गर्म रखने के लिए क्या खाना चाहिए? इसके बारे में बताने जा रहे हैं.

किन-किन चीजों के सेवन से सर्दियों में अन्दर से गर्म रहा जा सकता है, आइये जानें 

  1. हल्दी

घर की पिसी हुई हल्दी का प्रयोग करें. अगर आप ठण्ड के मौसम में बीमारियों से बचे रहना चाहते हैं तो हल्दी का सेवन जरूर करिये. आप दूध में हल्दी मिला कर पकाएं और पिएं. इस हल्दी वाले दूध को रात को सोने से 1 घंटा पहले या फिर दिन में कभी भी पिएं. इससे आपकी रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ेगी और सर्दी से भी राहत मिलेगी.

  1. अदरक

सर्दी से बचने के लिए और शरीर को गर्म रखने के लिए अदरक से सस्ता उपाय और कोई नहीं हैं. सर्दी भगाने के लिए आप अपनी चाय में सूखी और कच्ची अदरक दोनों का इस्तेमाल कर सकते हैं. अदरक के सेवन से बॉडी की इम्युनिटी बढ़ती हैं. सर्दी जुकाम को दूर करने के लिए अदरक के रस में शहद मिला कर लेने से फायदा होता हैं. अदरक के सेवन से आप गले की खराश भी दूर कर सकते हैं.

  1. गुड़

सर्दियों के दिनों में गुड़ का सेवन जरूर करें. सर्दियों के दिनों में तिल और गुड़ से बनी तिलकुट और रेवड़ी खाने से शरीर में गर्मी आती हैं. मूंगफली और गुड़ से बनी गजक खाने से भी ठण्ड से बचा जा सकता हैं. इससे सीने में जमी कफ बाहर निकल जाता हैं.

  1. गाजर

सर्दियों में बाजार में गाजर खूब आता है. गाजर का गर्मागरम हलुआ सर्दियों में ही खाया जाता है. गाजर को खाने से आंखों की रोशनी बढ़ती हैं. इससे रोग-प्रतिरोधक क्षमता में भी बढ़ोतरी होती हैं, जिससे सर्दियों के मौसम में आपको ठंड नहीं लगती हैं. सर्दियों के दिनों में गाजर का हलवा जरूर खाना चाहिए. इससे अंदरूनी तौर पर गर्मी मिलेगी और सर्दी से बचाव होगा.

  1. बादाम

ज्यादातर यही कहा जाता हैं की बादाम खाने से दिमाग का विकास होता हैं और याददाश्त अच्छी होती हैं. लेकिन सर्दियों में बादाम खाने से कब्ज की समस्या दूर होती हैं और सर्दी से भी बचाव होता हैं. इसमें विटामिन ई पाया जाता हैं जो हमे सर्दियों में होने वाले स्किन प्रॉब्लम से बचाता हैं. सर्दियों में बनने वाले हलुए, पंजीरी आदि में बादाम का खूब इस्तेमाल होता है.

  1. लहसुन

हाई कोलेस्ट्रॉल के मरीजों को लहसुन खाने की सलाह दी जाती हैं. लेकिन ठण्ड के मौसम में लहसुन खाने से हमारे शरीर को अंदरूनी रूप से गर्मी मिलती हैं. लहसुन में एंटीबैक्टीरियल गुण पाए जाते हैं जो हमें बैक्टीरिया और वायरस के हमले से बचाते हैं. गले में खराश होने पर 2-3 कच्ची लहसुन की कलियां खाने से आराम मिलता हैं. ठण्ड से बचने के लिए लहसुन बहुत ही फायदेमंद माना जाता हैं.

  1. ड्राई फ्रूट

ठण्ड से बचने से के लिए आपको ड्राई फ्रूट का सेवन जरूर करना चाहिए. इसके लिए आप अखरोट, मूंगफली और बादाम को खा सकते हैं. यह विटामिन, फाइबर से भरपूर होते हैं जो आपको गर्मी प्रदान करते हैं.

  1. लौंग

लौंग के सेवन से शरीर में गर्मी आती हैं. लौंग का इस्तेमाल ठण्डे इलाको में सबसे ज्यादा किया जाता हैं. लौंग का इस्तेमाल आप चाय में डाल कर भी कर सकते हैं.

  1. मूंगफली

सर्दी के मौसम में मूंगफली को जरूर खाना चाहिए. मूंगफली को खाने से शरीर में गर्मी आती हैं और सर्दी से बचाव होता हैं.

  1. बाजरा

बाजरा को खाने से शरीर में गर्मी आती हैं. कई ग्रामीण इलाको में बाजरे की रोटी और टिक्की का इस्तेमाल सर्दी से बचने के लिए किया जाता हैं. दूसरे अनाजों के मुकाबले बाजरे में प्रोटीन सबसे ज्यादा पाया जाता हैं. ठंड से बचने के लिए बाजरा जरूर खाएं, आप छोटे बच्चों को भी बाजरे की रोटी खिला सकते हैं.

  1. तिल

जाड़ों के दिनों में तिल के लड्डू, गजक, पट्टी, रेवड़ी खूब बिकने लगती है. सर्दियों में तिल की बनी चीजें खाना खूब पसन्द किया जाता है. इसके पीछे कारण भी है. तिल का सेवन करने से शरीर को गर्मी मिलती हैं. तिल के तेल से मालिश करने से भी ठण्ड से बचाव होता हैं. तिल और मिश्री का काढ़ा बना कर पीने से खांसी-जुकाम ठीक होता है और कफ फेफड़ों से बाहर निकलता है.

  1. दालचीनी

दालचीनी को भोजन का स्वाद बढ़ाने के लिए उपयोग किया जाता हैं. दालचीनी स्वाद में मीठी और शरीर को गर्मी देने वाली होती हैं. दालचीनी को आप खाना बनाने के अलावा चाय, कौफी में डाल कर इस्तेमाल कर सकते हैं.

  1. शहद

जब भी आपकी खांसी या जुकाम होता हैं तो एक चम्मच शहद खाने की सलाह दी जाती हैं. यह शरीर की इम्युनिटी बढ़ाने का एक नेचुरल तरीका हैं. शहद आपको सर्दी लगने से बचाता हैं. शहद एक नेचुरल स्वीटनर माना जाता हैं, आप चीनी की जगह इसका इस्तेमाल करें. शहद आपकी कैलोरी को भी कम करने में मदद करता हैं. सर्दी से बचने के लिए और शरीर को गर्म रखने के लिए सर्दियों में शहद को जरूर खाएं.

  1. मेथी का साग

मेथी के साग में आयरन और फोलिक एसिड ज्यादा मात्रा में पाया जाता हैं. मेथी के साग को खाने से शरीर में खून की वृद्धि होती हैं और शरीर में गर्मी पैदा होती हैं.

  1. अमरुद

खट्टे फले की तरह अमरूद में भारी मात्रा में विटामिन सी होता हैं जो शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता हैं. इसमें मैग्नीशियम और पोटैशियम भी पाया जाता हैं जो हड्डियों को मजबूत बनाता हैं और दिल के लिए भी अच्छा माना जाता हैं.

  1. खट्टे फल

खट्टे और पीले फल जैसे संतरा, कीनू, मोसम्मी सर्दियों में खूब आते हैं. इन फलों में विटामिन सी और फ्लावोनोइड पाए जाते हैं जो शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हैं. यह शरीर को गर्म रखने में भी मदद करते हैं. इसके अलावा खट्टे फलों को खाने से गुड कोलेस्ट्रॉल का लेवल भी बढ़ता है.

  1. हरी मिर्च

हरी मिर्च को खाने से शरीर में गर्मी पैदा होती हैं. इसका तीखापन शरीर का तापमान बढ़ाने में मदद करता हैं. इसलिए ठण्ड के मौसम में शरीर को गर्म रखने के लिए हरी मिर्च को जरूर खाए.

  1. अनार

अनार में एंटीऔक्सीडेंट, विटामिन सी और पॉलीफिनोल्स पाए जाते हैं, जो आपको बुखार कम करने में मदद करते हैं और सर्दी लगने से भी बचाते हैं. अनार को खाने से खून साफ होता हैं और धमनियों की ब्लॉकेज को खोला जा सकता हैं.

  1. प्याज

प्याज खाने से बॉडी का टेम्परेचर बढ़ जाता हैं और पसीना आने लगता हैं. इससे बॉडी की इम्युनिटी भी बढ़ती हैं.

धरा : धरती पर बोझ नहीं बेटियां

Manohar Kahaniya: पहली मोहब्बत का तूफान

गीता के मायके की 120 बीघा जमीन गांव का ही नीरज बंटाई पर जोतता था. उसी दौरान पूजा को बंटाईदार नीरज से प्यार हो गया था. गीता की शादी निपेंद्र पाल से होने के बाद भी उस का प्रेमी नीरज से मिलना बदस्तूर जारी रहा.

6मई, 2022 की सुबह 10 बजे मुरादाबाद के थाना सिविल लाइंस के थानाप्रभारी रविंद्र प्रताप सिंह रोजाना की भांति अपने औफिस में बैठे कामकाज देख रहे थे. उन्हें औफिस के बाहर किसी महिला के रोने की आवाज आई तो उन्होंने घंटी बजा कर पहरे पर तैनात सिपाही को बुला कर पूछा कि कौन रो रहा है.

सिपाही ने बताया कि साहब गांव मेहलकपुर से एक महिला आई है कह रही है कल से उस का आदमी गायब है. उस का फोन भी नहीं लग रहा है. थानाप्रभारी रविंद्र प्रताप सिंह ने सिपाही से कहा कि महिला को अंदर भेजो.

महिला ने थानाप्रभारी को बताया, ‘‘साहब, मेरा नाम गीता उर्फ कुसुम पाल है. मैं मेहलकपुर में रहती हूं. मेरे पति निपेंद्र कल अकेले ही गिरिजा देवी मंदिर, जोकि रामनगर उत्तराखंड में है, घूमने गए थे.’’

‘‘जब घूमने गए थे तो तुम्हें साथ क्यों नहीं ले गए?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘साहब, दरअसल बात यह है कि मेरा 11 साल का एक बेटा बिराज है, जो मुरादाबाद के कांठ रोड पर स्थित कौन्वेंट स्कूल में पढ़ता है. स्कूल से लाने ले जाने के कारण मैं उन के साथ नहीं जा सकती थी.’’ महिला ने बताया.

थानाप्रभारी ने गीता से कहा, ‘‘देखो, तुम अपने रिश्तेदारों से मालूम करो कि वह रिश्तेदारी में तो कहीं नहीं है.

अगले दिन तक निपेंद्र घर नहीं लौटा तो गीता घर के कुछ लोगों के साथ एसएसपी हेमंत कुटियाल के पास पहुंची और पति निपेंद्र के गुम होने की बात बताई. एसएसपी ने मामले की गंभीरता को देखते हुए एसपी (सिटी) अखिलेश भदौरिया को निर्देश दिए.

कप्तान का निर्देश मिलते ही एसपी (सिटी) अखिलेश भदौरिया थाना सिविल लाइंस पहुंच गए. उन्होंने थानाप्रभारी रविंद्र प्रताप सिंह से गीता के पति निपेंद्र की गुमशुदगी दर्ज करवा दी.

एसपी (सिटी) ने सीओ आशुतोष तिवारी को अपनी निगरानी में इस मामले की जांच करने के निर्देश दिए. सीओ आशुतोष तिवारी ने एक दिन पहले ही अपना कार्यभार ग्रहण किया था. निपेंद्र के लापता होने के मामले में एसपी (सिटी) अखिलेश भदौरिया को पता चला कि मामला गंभीर है. इसलिए उन्होंने निपेंद्र के घर वालों को औफिस बुलाया.

8 मई, 2022 को निपेंद्र की मां कुशमेश देवी व छोटा भाई पविंदर कुमार एसपी (सिटी) के पास पहुंच गए. उन्होंने बताया कि साहब, हमें निपेंद्र के लापता होने का शक उस की पत्नी गीता उर्फ कुसुम पाल पर ही है. उस के अवैध संबंध शादी से पहले गांव मेहलकपुर मायके में नीरज नाम के युवक से थे. यह जानकारी मिलते ही एसपी (सिटी) अखिलेश भदौरिया ने थाना प्रभारी रविंद्र प्रताप सिंह को गीता और नीरज के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर गीता उर्फ कुसुम पाल व नीरज को गिरफ्तार करने को कहा.

थानाप्रभारी रविंद्र प्रताप सिंह भी हरकत में आ गए. वह टीम के सहयोग से गीता और नीरज को हिरासत में ले कर थाने लौट आए. उन्होंने गहनता से दोनों से पूछताछ की.

वह दोनों अपने को निर्दोष बताते रहे. तब पुलिस ने दोनों के मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई तो दोनों के बीच घंटों तक बात करने का ब्यौरा मिला.

5 मई, 2022 को निपेंद्र गायब हुआ था. उसी रात 12 बजे नीरज की काल गीता उर्फ कुसुम पाल के मोबाइल पर आई थी. पुलिस ने गीता से पूछा कि रात में नीरज ने क्या बात की थी, हमारे पास तुम्हारे द्वारा बात करने की सारी रिकौर्डिंग है. तुम दोनों में क्या बात हुई, हमें मालूम है.’’

इतना सुनते ही दोनों घबरा गए. उन्हांने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया. दोनों ने जो कुछ बताया एसपी (सिटी) व अन्य पुलिसकर्मियों के भी होश उड़ गए.

नीरज ने बताया, ‘‘साहब, निपेंद्र अब इस दुनिया में नहीं है. मैं ने व मेरे साथ 2 अन्य साथियों ने उस की हत्या कर लाश को जिम कार्बेट नैशनल पार्क के जगंल में फेंक दिया.

निपेंद्र की हत्या की बात सुन कर पुलिस भी चौंक गई. नीरज और गीता से पूछताछ करने के बाद निपेंद्र की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार निकली—

जिला बिजनौर के कस्बा धामपुर टीचर कालोनी निवासी निपेंद्र की शादी गीता उर्फ कुसुम पाल निवासी गांव मेहलकपर निजामपुर, थाना सिविल लाइंस मुरादाबाद के साथ हुई थी.

मृतक निपेंद्र के पिता सुरेश पाल सिंह सिंचाई विभाग में उच्च पद पर कार्यरत थे. इन की पत्नी कुशमेश पाल है. सुरेश पाल सिंह के 2 बेटे थे. बड़े बेटे का नाम निपेंद्र पाल छोटे बेटे का नाम परविंदर था.

निपेंद्र पाल की शादी के साल भर बाद बेटा पैदा हुआ था. जिस का नाम बिराज रखा था. कुछ साल पहले सुरेश पाल सिंह का निधन हो गया था. मृत्यु के समय सुरेश पाल सिंह सर्विस में थे. मृत्यु के बाद उन की नौकरी कंपनसेशन ग्राउंड पर उन के बेटे परविंदर को मिल गई.

पिता सुरेश पाल सिंह को जो पैसा मिला, उस का बड़ा  बेटा निपेंद्र हकदार होगा. पिता सुरेश पाल सिंह के विभाग से 25 लाख रुपए मिले जो निपेंद्र को मिले. वह पैसे उस ने अपनी पत्नी गीता उर्फ कुसुम पाल के खाते में डलवा दिए थे.

गीता उर्फ कुसुम पाल अधिकतर समय अपने मायके मेहलकपुर, मुरादाबाद में ही बिताती थी. गीता की मां ने उस के लिए गांव मेहलकपुर में ही नया मकान बनवा कर दिया था, जिस में वह रहती थी.

गीता व उस की 4 बहनों के नाम 120 बीघा जमीन थी. गीता ही उसे जोतवा रही थी. मृतक निपेंद्र इंटर पास था, जबकि गीता बीएससी पास थी. निपेंद्र बेरोजगार था.

घटना से करीब 2 महीने पहले निपेंद्र धामपुर, बिजनौर से गांव मेहलकपुर में स्थित अपनी ससुराल में आ कर रहने लगा था. गीता ने अपनी व बहनों की 120 बीघा जमीन मेहलकपुर गांव के ही नीरज को बंटाई पर दे दी थी. जिस कारण नीरज गीता के घर आनेजाने लगा था. तभी उस के संबंध गीता से हो गए थे.

जब निपेंद्र मेहलकपुर गांव आया था, तब उस को खेत बंटाईदार नीरज व गीता के संबंधों का पता चला. निपेंद्र ने पत्नी गीता को बहुत समझाया कि गांव में मुझे तरहतरह की बातें सुननी पड़ रही हैं.

गीता ने कहा कि गांव वाले मुझ से रंजिश रखते हैं मुझे पहले भी तथा अब भी बदनाम करने से नहीं चूकते हैं. इस बात को ले कर निपेंद्र का पत्नी से आए दिन झगड़ा होने लगा था.

निपेंद्र ने अब ज्यादा ही शराब पीनी शुरू कर दी थी. अकसर निपेंद्र का नीरज को ले कर झगड़ा होता था कि वह घर क्यों आता है.

निपेंद्र अकसर खोयाखोया और उदास सा रहने लगा था. निपेंद्र जब शराब पी कर घर आता था तो गीता से मारपीट करने लगा था. उधर निपेंद्र के वहां रहने की वजह से नीरज व गीता की हसरतें पूरी नहीं हो पा रही थीं.

निपेंद्र हमेशा यही सोचता रहता था कि मैं ने बहुत बड़ी गलती कर दी जो पिता के मिले 25 लाख रुपए गीता के खाते में जमा कर दिए.

नीरज गीता का पहला प्यार था. शादी के बाद भी गीता नीरज को भूली नहीं थी. शादी के बाद भी नीरज का धामपुर अकसर आनाजाना था. निपेंद्र नीरज और गीता के संबंधों से बिलकुल अनभिज्ञ था. जब वह 2 महीने पहले मेहलकपुर आया तो इन संबंधों का पता चला था. नीरज जब भी गीता के घर आता तो गीता नीरज की बहुत आवभगत करती थी. निपेंद्र मन मसोस कर रह जाता था.

निपेंद्र के ससुराल में रहने की वजह से नीरज व गीता का मिलनाजुलना बिलकुल बंद हो गया था. नीरज व गीता अपनी हसरतें पूरी नहीं कर पाते थे.

घर में आए दिन होने वाले झगड़ों से निजात पाने के लिए नीरज व गीता ने एक खतरनाक योजना बना डाली. इस योजना में नीरज ने अपने चचेरे भाई मिथुन व भतीजे सौरभ को भी शामिल कर लिया था.

योजना के अनुसार 5 मई, 2022 की शाम 5 बजे निपेंद्र पेपर मिल चौराहे से घर का सामान लेने के लिए निकला, तभी गीता ने अपने प्रेमी नीरज को फोन किया कि निपेंद्र शराब पीने के लिए ठेके पर जाने के लिए निकला है. इस के बाद नीरज अपने 2 साथियों के साथ स्कौर्पियो कार से निकला. रास्ते में उसे निपेंद्र मिला गया.

नीरज ने गाड़ी रोक कर पूछा, ‘‘जीजा कहां जा रहे हो? आओ, हम तुम्हें बाजार तक छोड़ देंगे.’’

निपेंद्र गाड़ी में बैठ गया था.

‘‘क्या लेने जा रहे हो दारू?’’ नीरज बोला.

‘‘नहीं, मैं घर का सामान लेने निकला था.’’ निपेंद्र ने बताया.

निपेंद्र गाड़ी को शराब के ठेके के पास ले गया तभी नीरज का चचेरा भाई मिथुन भाग कर ठेके से एक बोतल शराब, 4 गिलास, पानी की एक बोतल, नमकीन, सिगरेट की डब्बी, पान मसाला ले कर आ गया था.

नीरज बोला, ‘‘यहां चौराहे पर पुलिस रहती है क्यों न चड्ढा पुल के आगे वहीं एकांत में गाड़ी खड़ी कर आराम से पिएंगे. चड्ढा पुल से हो कर रामनगर, उत्तराखंड के लिए रास्ता है. चारों ने गाड़ी में बैठ कर शराब पी.

ज्यादा शराब निपेंद्र को दी. जब निपेंद्र नशे में हो गया तो नीरज गाड़ी को रामनगर से ऊपर पर्यटनस्थल गिर्जिया देवी मंदिर से 7 किलोमीटर दूर वन विभाग की मुहान चौकी के पास जिम कार्बेट नैशनल पार्क के जंगल में ले गया.

वहां तीनों ने मिल कर निपेंद्र की गला घोट कर हत्या कर दी. जब तीनों ने यह देख लिया कि निपेंद्र मर चुका है तो उन्होंने उस की लाश गहरी खाई में फेंक दी.

निपेंद्र को ठिकाने लगाने के बाद नीरज ने 5 मई, 2022 की रात करीब 12 बजे अपनी प्रेमिका गीता को बता दिया कि काम हो गया है.

इतना सुनते ही गीता खुशी से झूम उठी. फोन को चूम कर बोली, ‘‘आई

लव यू.’’

उस के बाद रात में ही तीनों अपने गांव मेहलकपुर आ गए थे. नीरज अपने घर न जा कर आम के बाग में रखवाली करने वाले चौकीदार की झोपड़ी में जा कर सो गया था.

योजना के मुताबिक, गीता उर्फ कुसुम पाल 6 मई, 2022 की सुबह 10 बजे अपने पति निपेंद्र की गुमशुदगी दर्ज करवाने थाना सिविल लाइंस पहुंच गई और थानाप्रभारी को पति के गायब होने की सूचना दी.

अब मुरादाबाद पुलिस को निपेंद्र की लाश बरामद करनी थी. लिहाजा पुलिस उसे ले कर रामनगर पहुंची. नीरज पुलिस को जगहजगह घुमाता रहा. गहरी खाइयां थीं. नीचे जंगली जानवरों का डर.

जिम कार्बेट नैशनल पार्क की वन विभाग की पुलिस ने भी मुरादाबाद पुलिस को सहयोग किया. निपेंद्र का शव बरामद कराने के लिए नीरज पुलिस को कभी इधर तो कभी उधर घुमाता रहा लेकिन उस का शव बरामद नहीं हो सका था.

हार कर पुलिस ने अभियुक्त नीरज व उस की प्रेमिका गीता उर्फ कुसुम पाल को 13 मई, 2022 को कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया. पुलिस ने निपेंद्र की हत्या में शामिल 2 अभियुक्तों मिथुन व सौरभ को भी 14 मई, 2022 को गिरफ्तार कर लिया. उन्होंने भी निपेंद्र की हत्या में साथ देने का अपराध स्वीकार कर लिया. निपेंद्र का शव बरामद करने के लिए पुलिस इन दोनों अभियुक्तों को भी रामनगर ले गई.

सौरभ और मिथुन की निशानदेही पर पुलिस ने उस जगह को ढूंढ निकाला, जहां पर निपेंद्र की हत्या कर लाश फेंकी गई थी. वहां से मुरादाबाद पुलिस ने ऊंची पहाड़ी के नीचे जा कर मृतक निपेंद्र का मोबाइल फोन, खून से सनी पैंट,

लाल शर्ट, उस की एक चप्पल, पत्थरों पर लगे बाल, अभियुक्त नीरज की दोनों चप्पलें, हत्या में प्रयुक्त स्कौर्पियो कार बरामद की.

मृतक निपेंद्र की लाश को जंगली जानवर खा गए थे. वह इलाका जंगली जानवरों का है. 10 दिन से पड़ी लाश जंगली जानवरों का निवाला बन चुकी थी. जो कपडे़ मिले थे, उन में जंगली जानवरों के दांतों के निशान (छेद) मिले थे. इस से लगा कि लाश जंगली जानवर खा चुके थे.

हत्या की आरोपी गीता उर्फ कुसुम पाल ने अपने पति निपेंद्र की हत्या के बाद अभियुक्त प्रेमी नीरज से दूसरी शादी का प्लान तैयार किया था. जो कशिश प्रेमी नीरज में थी, वह पति निपेंद्र में नहीं मिली. क्योंकि गीता के संबंध नीरज से शादी से पहले से थे.

नीरज गीता का पहला प्यार था. शादी के बाद भी वह नीरज को भुला नहीं पाई थी. वैसे प्रेमी नीरज भी शादीशुदा था. प्रेमी नीरज को यह भी पता था कि गीता के पास काफी बड़ी प्रौपर्टी है.

पुलिस ने मृतक निपेंद्र की हत्या में 2 अन्य अभियुक्तों मिथुन व सौरभ को 15 मई, 2022 को जेल भेज दिया था. पुलिस ने मृतक निपेंद्र के 11 साल के बेटे बिराज को उस की मौसी को सौंप दिया था. कथा लिखने तक उस की देखभाल मौसी कर रही थी.

2 रातें : रोहित से क्यों नफरत करने लगी श्रेया

सुबह के 9 बज रहे थे जब मेरी नींद लगातार बजती डोरबेल से खुली। आदतन मैं ने अनामिका को आवाज लगानी चाही लेकिन मुझे याद आया कि वह अब कभी नहीं आएगी। अभी 3 दिन पहले ही तो हमारा तलाक हुआ था। मैं उठा, दरवाजा खोला तो देखा एक 18-20 साला अनजान लड़की बदहवास सी खड़ी थी,”नानी को अटैक आया है, प्लीज हैल्प मी…”

पहले तो मुझे कुछ समझ नहीं आया, जब समझा तो मेरे मुंह से निकला,”तुम हो कौन? नानी कहां है तुम्हारी?”

“नवीनजी की भांजी हूं, मामामामी दिल्ली गए हैं…”

नवीन मेरे पड़ोसी हैं. सरकारी अफसर हैं और हमउम्र होने के कारण अच्छी मित्रता भी है उन से। मैं ने भीतर जा कर अपना पर्स लिया, पैर में चप्पलें डालीं और चल पड़ा उस के साथ। वहां जा कर देखा तो पाया कि आंटी सोफे पर पसीने से लथपथ अपने सीने को दबाए बैठी थीं। मैं ने तुरंत पास के अस्पताल में फोन किया। लड़की बेहद घबराई हुई थी। मैं ने उसे सांत्वना देते हुए कहा,”चिंता मत करो, अभी ऐंबुलैंस आ रही है।”

अस्पताल पहुंचते ही उन का ट्रीटमैंट शुरू हो गया, फिर मैं ने लड़की से पूछा कि नवीन को फोन किया, तो उस ने बताया कि बात हो गई है। मामामामी अभी वापस रवाना हो रहे हैं। मैं ने अंदाज लगाया कि दिल्ली से जयपुर बाई रोड 4 से 5 घंटे तो लग ही जाएंगे। इसी बीच डाक्टर ने आ कर बताया कि चिंता की बात नहीं है माइल्ड अटैक है, अब वे ठीक हैं। कुछ दवाएं, रजिस्ट्रैशन इत्यादि काम मैं ने निबटा दिए थे। तभी आईसीयू से एक नर्स आ कर बोली,”श्रेया से उस की नानी मिलना चाहती है।”

लड़की यानी श्रेया अंदर गई और 20 मिनट के बाद लौटी तो शांत व आश्वस्त लग रही थी। उस ने कहा कि माफी चाहती हूं आप को परेशान करना पड़ा। मैं ने कहा,”नवीन की मां भी मेरी मां जैसी है, इस में क्या परेशानी है। बस, चाय नहीं पी है तो…”

वह फिर हंसती हुई बोली,”आप चाय पी कर आइए।”

“ठीक है,” कह कर मैं जाने लगा, तो अचानक मुझे याद आया कि श्रेया ने भी चाय नही पी होगी। मैं ने कहा, “तुम भी चलो, यहां कुछ काम तो नहीं है हमारा, कुछ होगा तो मेरे पास फोन आ जाएगा।”

“चलिए…”

कैंटीन में चाय पीते वक्त मैं ने ध्यान दिया, श्रेया बेहद सुंदर थी। लंबी व छरहरी और सिंदूर मिले दूधिया वर्ण की। मैं ने उस से कई सवाल पूछ डाले कि कहां रहती हो, क्या कर रही हो, यहां कब आई वगैरह। उस ने बताया कि जोधपुर से है, कल शाम को ही आई है, ग्रैजुएशन हुआ है आगे की पढ़ाई यहीं से करनी है। मामा कल रात ही दिल्ली गए हैं। जैसाकि मैं जानता था कि नवीन का ससुराल है दिल्ली।

अब कुछ अपनी बातें…
मैं 35 साल का हूं और म्यूजिशियन हूं। अपने पेशे में ज्यादा सफल नहीं हूं, पत्नी अनामिका से लव मैरिज की थी। वह सरकारी स्कूल में टीचर है और मेरा ससुराल यहीं जयपुर में ही था। वह चाहती थी कि मैं म्यूजिक को छोड़ कुछ कामधंधा करूं। वह बच्चा भी चाहती थी और इन्हीं 2 बातों को ले कर झगड़े होते रहते थे। अपने भीतर मैं समझता था कि वह सही है लेकिन अपना पैशन और अपना मेल ईगो छोड़ते नहीं बना।

खैर, इसी बीच श्रेया ने कहा कि वह 10 मिनट में आती है तो लगा कि वाशरूम गई होगी। मुझे सिगरेट की तलब उठ रही थी। मैं अस्पताल से बाहर चला आया। वहां बाहर ही एक दुकान से मैं ने सिगरेट ली और उसी के पीछे चला गया पीने। वहां मैं ने देखा कि श्रेया खड़ी सिगरेट पी रही है। मुझे देख कर वह एकबारगी सकपका गई लेकिन मुसकराते हुए बोली,”मामा को मत बताना…”

मैं ने पूछ लिया,”कौनसा ब्रैंड पीती हो? रूटीन में पीती हो?” मैं जानता हूं कि यह एक गंदी लत है मगर चाह कर भी इसे छोङ नहीं पा रहा था। कह सकते हैं कि सिगरेट ने मुझे अपनी गिरफ्त में ले लिया था। यह भी सही है कि सिगरेट की लत पहले फैशन में लोग करते हैं और फिर यह एक गंदी लत बन जाती है, यह जानते हुए कि यह स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह है।

खैर, वह बोली,”हां… कोई सी भी ब्रैंड पी लेती हूं…” सिगरेट खत्म कर हम अस्पताल गए। करीब 2 घंटे बाद नवीन और उस की पत्नी पंहुच गए और मैं और श्रेया घर लौट आए। नहा कर, खाना औनलाइन मंगवा कर शाम को करीब 4 बजे मैं श्रेया को ले कर वापस अस्पताल गया। तय हुआ कि नवीन और भाभी घर जा कर रैस्ट करेंगे और रात को वापस आएंगे। तब मैं और श्रेया घर चले जाएंगे। नवीन के घर पर मेड थी तो चिंता की कोई बात नहीं थी। रात को करीब 11 बजे श्रेया का फोन आया,”सिगरेट है आप के पास? ले कर छत पर आओ,” उस ने अधिकारपूर्ण स्वर में कहा।

नवीन और मेरे घर की छतों की मुंडेर एक ही थी। अपनी छत की दीवार कूद कर मैं गया तो वह छत पर बिछे एक बिस्तर पर बैठी थी। सिगरेट पीतेपीते उस ने मुझ से बेशुमार सवाल कर डाले,”बीवी कहां है, मामी बता रही थी कि लव मैरिज की है, प्यार कैसे हुआ, शादी कैसे की, तुम्हारे शौक क्याक्या हैं…”

मैं ने बिना लागलपेट के सब कह सुनाया। यह भी कि अनामिका से पहले भी मेरी कई आशनाई थी और यह भी कि मेरा उस से तलाक हो गया है। बस यह बात यहां किसी को पता नहीं है। अब सवाल करने की मेरी बारी थी। मैं ने पहले पढ़ाई से संबंधित सवाल पूछे, फिर उस की हौबीज के बारे में जाना, परिवार के बारे में जाना, अचानक से मैं ने पूछा,”कोई बौयफ्रैंड नहीं है…”

उस ने जवाब दिया,”अभी तो नहीं पर कई रह चुके, किसी को मैं ने छोड़ दिया, किसी ने मुझे। चलता रहता है… तुम को बनना है?”

मैं सीधा प्रश्न सुन कर हड़बड़ा गया। मैं ने उस के चेहरे की ओर देखते हुए कुछ जवाब देना चाहा तो देखा वह हंस रही थी। मुझे यह तो नहीं पता कि वह क्या सोच रही थी लेकिन कयास मेरा यही था कि वह मुझ से मजाक कर रही थी। आखिर थी ही वह इतनी जीवंत और स्वछंद। इसी तरह सिगरेट और बातें। कब रात गुजर गई पता ही नहीं चला। सुबह जब सूरज अपने पर निकालने की तैयारी में था तो उस ने मुझे कहा,” जाओ, कुछ देर सो भी लो। अस्पताल चलोगे?”

मैं स्वीकृति देते कहते हुए अपनी छत की तरफ का रुख किया। वह भी उठ कर नीचे जाने लगी। जातेजाते रुकी और बोली,”थैंक्यू, यह रात बड़ी शानदार थी…”

अगले दिन मैं 11 बजे सो कर उठा, चाय बना कर पी और तैयार हो कर नवीन के घर गया तो भाभी घर पर थीं। उन्होंने बताया कि नवीन अस्पताल ही है और श्रेया गई थी तभी मैं घर आई हूं। मैं भी अस्पताल निकल पड़ा और नवीन को मैं ने जबरदस्ती घर भेज दिया। नवीन ने बताया कि कल छुट्टी मिल जाएगी मम्मी को। सुन कर अच्छा लगा। मैं और श्रेया रात को 8 बजे अस्पताल से आए, रास्ते में वह मुझ से कह रही थी कि आज वह जल्दी सोएगी, थकान हो रही है। मुझे भी थकान हो रही थी तो मैं घर जाते ही सो गया।

रात को करीब 11 बजे अचानक से मेरी आंखें खुली, उस वक्त न जाने क्यों मुझे अनामिका की याद आई। अकेलेपन के भयावह एहसास ने मुझे जकड़ लिया, सीना भारी होने लगा, मुझे घुटन होने लगी। अनायास ही मैं ने मोबाइल उठाया और श्रेया को व्हाट्सऐप पर मैसेज किया,”सो गई क्या?”

2 मिनट बाद ही उस का जवाब आया,”नहीं, बस सोने जा रही थी।”

“तुम नहीं सोए?”

“सो गया था, बेचैनी से आंखें खुल गईं।”

“क्यों, क्या हुआ? परेशान हो?”

“नहीं, परेशान तो नहीं बस अकेला सा महसूस कर रहा हूं।”

“मैं समझती हूं, चिंता मत करो, सब सही हो जाएगा।”

अचानक से मेरे मन में जाने क्या आया, मैं ने उस से कहा,”आई नीड ए हग ऐंड किस यू…”

उधर से कोई जवाब नहीं आया, जबकि उस ने मैसेज देख लिया था। मैं ने इंतजार किया और मुझे घबराहट होने लगी कि कहीं उस की बेबाकी को मैं ने गलत समझ लिया और उस ने नवीन को अगर यह सब कह दिया तो…इस के आगे मैं सोच नहीं पाया। फिर से मैं ने उसे मैसेज किया,”हैलो, आई वाज किडिंग। आई एम रियली सौरी। डौंट माइंड प्लीज…” यह मैसेज भी सीन हुआ और रिप्लाई नहीं आया। मेरे दिल में गुड़गुड़ होने लगी। नींद तो पहले ही गायब हो गई थी। आधे घंटे बाद उस का मैसेज आया,”छत पर आओ…”

मैं डरतेझिझकते छत पर गया। वह सिगरेट पी रही थी। उस ने इशारे से कहा कि इधर आ जाओ। मैं दीवार कूद कर उस के पास गया। उस ने सिगरेट फेंकी, अपना चेहरा जरा सा उठाया और बांहें फैला दीं। मैं ने उसे अपने आलिंगन में लिया। मैं ने उस के होंठों पर होंठ रख दिए। उस को उसी तरह पकड़े मैं ने नीचे बिछे बिस्तर पर लिटा दिया। रात को 3 बजे मैं ने उठते हुए उस से कहा,”जाओ सो जाओ तुम, थकी हुई हो। वह उठी, अपने कपड़े ठीक किए और जातेजाते उस ने पलट कर मुझे देखा और बाय बोल कर नीचे चली गई।

अगली सुबह मैं 12 बजे सो कर उठा था। नवीन का फोन आया हुआ था। बात की तो पता चला कि आंटी को अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया था और वे लोग घर आ गए थे। मुझे बीती रात याद आई तो चेहरे पर मुसकान आ गई। श्रेया के बारे में सोचतेसोचते ही तैयार हो कर नवीन के घर गया। श्रेया ने मुझ से आंखें भी न मिलाई, मैं थोड़ा हैरान हुआ थोड़ा परेशान। वापस घर आ कर उसे फोन किया तो बिजी टोन सुनाई दी। कई बार फोन करने के बाद समझ आया कि उस ने मेरा नंबर ब्लैक लिस्ट में डाल दिया है। ऐसा ही व्हाट्सऐप में था। मुझे लगा कि यह क्या हुआ, क्या मैं ने जबरदस्ती कुछ किया था? अचानक मुझे लगा कि मैं उस से बेहद प्यार करने लगा हूं और उस के बिना रह नही पाऊंगा।

हर दिन मेरी बेचैनी बढ़ने लगी और उस से बात करने के लिए में रोज आंटी की तबियत पूछने के बहाने नवीन के घर जाता रहा, पूरीपूरी शाम और रात छत पर घूमता था लेकिन वह नजर नहीं आती। मेरा हाल दीवानों सा हो गया था। आखिर एक दिन मुझे वह सुपर मार्केट में मिल गई। मैं ने उस का रास्ता रोक लिया। उस का हाथ कस कर जकड़ लिया,”तुम मुझे अवाइड क्यों कर रही हो? ऐसा क्यों कर रही हो तुम मेरे साथ?”

“तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरा हाथ पकड़ने की, हो कौन तुम? मैं तुम को जानती तक नहीं,” गुस्से से तमतमाते हुए उस ने कहा तो मैं आश्चर्य से अधिक रुआंसा हो गया।

“यह क्या कह रही हो तुम श्रेया, ऐसा मत कहो, मैं तुम से प्यार करता हूं, तुम्हारे बिना मैं रह नहीं पाऊंगा, प्लीज…” मैं लगभग रोने लगा था। मैं ने एक पल के लिए उस के चेहरे पर करुणा देखी, लगा वह अभी रो देगी और मेरे सीने से आ लगेगी, लेकिन अगले ही पल उस का चेहरा पत्थर सा सपाट हो गया। उस ने शांत और स्थिर स्वर में कहा,”तुम ने मुझे प्यार नहीं किया रोहित, मैं ने प्यार नहीं किया। हां, तुम ने प्यार नहीं किया। प्यार शीतल होता है, तुम प्यासे हो, प्यार तृप्त होता है, तुम अतृप्त हो, प्यार पूरा होता है, तुम अधूरे हो…”

“यह सब तुम क्या कह रही हो, क्यों कह रही हो, मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा। हम ने बहुत प्यारे लम्हे साथ बिताए हैं, हम ने अपना सबकुछ शेयर किया है। हम ने सिर्फ 2 ही रातें साथ बिताई है रोहित, पहली रात मुझे तुम से प्यार होने लगा था, बहुत प्यारे लगे थे तुम, बिलकुल वैसे ही जिस के साथ मैं सहज रह सकूं, जिस को बता सकूं कि मेरा हर राज, हर दुख, हर सपना, लेकिन तुम ने जो कुछ मुझे दिया वह सब अगली ही रात वापस ले लिया यानी हिसाब बराबर।

मैं थके पांव वापस घर आ कर बिस्तर पर निढाल लेट गया। सच तो कह रही थी वह। मुझे खुद पर गुस्सा आ रहा था और इस सिगरेट की गंदी लत पर भी। मैं उठा और सिगरेट के डब्बे को डस्टबिन में फेंक दिया।

लेखक- सूरज नाहट

तेरे सुर और मेरे गीत: श्रुति और वैजयंति का क्या रिश्ता था

दूसरा पिता-भाग 2 : क्या कमलकांत को दूसरा पिता मान सकी कल्पना

पति के छिनते ही पद्मा की जैसे दुनिया ही छिन गई थी. कछुए की तरह अपने भीतर सिमट कर रह गई थी, अपने घर में, अपने कमरे में.

कल्पना अकसर कहा करती, ‘मां, आप का जी नहीं घबराता इस तरह गुमसुम रहतेरहते?’

वह हंसने का निष्फल प्रयास करती, ‘कहां हूं गुमसुम, खुश तो हूं.’ पर कहां थी, वह खुश? खाली हाथ, रीता जीवन, एक सतत प्यास लिए सूखा रेगिस्तान मन, उड़ती हुई रेत और सुनसान दिशाएं. औरत, पुरुष के बिना अधूरी क्यों रह जाती है?

अपने जीवन से हट कर पद्मा देखी हुई फिल्म के बारे में सोचने लगी…उसे लगा, वह खुद देवदास के किरदार में है, ‘अब तो सिर्फ यही अच्छा लगता है कि कुछ भी अच्छा न लगे,’ ‘यह प्यास बुझती क्यों नहीं’, ‘क्यों पारो की याद सताती है?’, ‘कौन कमबख्त पीता है होश में रहने के लिए? मैं तो पीता हूं जीने के लिए कि कुछ सांसें ले सकूं’, ‘मैं नहीं कर सकता. क्या सभी लोग सभीकुछ करते हैं?’ फिल्म के ऐसे कितने ही वाक्य थे, जो उस के दिलोदिमाग में ज्यों के त्यों खुद से गए थे. क्या हर दुख झेलने वाला व्यक्ति देवदास है? क्या देवदास आज की भी कड़वी सचाई नहीं है?

‘चंद्रमुखी, तुम्हारा यह बाहर का कमरा तो बिलकुल बदल गया.’

क्या जवाब दिया चंद्रमुखी ने, ‘बाहर का ही नहीं, अंदर का भी सब बदल गया है.’

क्या सचमुच वह भी बाहरभीतर से बदल नहीं गई पूरी तरह? चंद्रमुखी ने वेश्या का पेशा छोड़ दिया है. देवदास कहता है, ‘छोड़ तो दिया है, पर औरतों का मन बहुत कमजोर होता है, चंद्रमुखी.’

पद्मा सोचती है, ‘क्या सचमुच औरतों का मन बहुत कमजोर होता है? क्या आदमी का मोह, आदमी की चाह, उसे कभी भी डिगा सकती है? वह कभी भी उस के मोहपाश में बंध कर अपना आगापीछा भुला सकती है?’

अचानक पद्मा हड़बड़ा गई क्योंकि आगे चलता एक व्यक्ति अचानक चकरा कर उस के पास ही फुटपाथ पर गिर पड़ा था. वह कुछ समझ नहीं पाई. बगल के पान वाले की दुकान से पद्मा ने पानी लिया और उस के चेहरे पर छींटे मारे. लोगों की भीड़ जुट गई, ‘कौन है? कहां का है? क्या हुआ?’ जैसे तमाम सवाल थे, जिन के उत्तर उस के पास नहीं थे.

लोगों की सहायता से पद्मा ने उस व्यक्ति को एक तिपहिए पर लदवाया, खुद साथ बैठी और मैडिकल कालेज के आपात विभाग पहुंची.

पद्मा ने तिपहिया चालक की सहायता से उस व्यक्ति को उतारा और आपात विभाग में ले जा कर एक बिस्तर पर लिटा दिया. कल्पना को तलाश करवाया तो वह दौड़ी आई, ‘‘क्या हुआ, मां, कौन है यह?’’

पद्मा क्या जवाब देती, हौले से सारी घटना बता दी.

‘‘तुम भी गजब करती हो, मां. ऐसे ही कोई आदमी गिर पड़ा और तुम ले कर यहां चली आईं. मरने देतीं वहीं.’’

उस ने बेटी को अजीब सी नजरों से देखा कि यह क्या कह रही है? मरने देती? सहायता न करती? यह भी कोई बात हुई? अनजान आदमी है तो क्या हुआ, है तो आदमी ही.

‘‘दूसरे लोग उठाते और किसी अस्पताल ले जाते. या फिर पुलिस उठाती. आप क्यों लफड़े में पड़ीं, मरमरा गया तो जवाब कौन देगा?’’ भुनभुनाती कल्पना डाक्टरों के पास दौड़ी.

डाक्टरों ने कल्पना के कारण उस की अच्छी देखभाल की. 2 घंटे बाद उसे होश आया. दाएं हिस्से में जुंबिश खत्म हो गई थी, लकवे का असर था.

जब उसे ठीक से होश आ गया तो पद्मा को खुशी हुई, एक अच्छा काम करने का आत्मसंतोष. उस ने उस व्यक्ति से पूछा, ‘‘आप कहां रहते हैं?’’

‘‘कहीं नहीं और शायद सब कहीं,’’ वह अजीब तरह से मुसकराया.

‘‘हम लोग आप के घर वालों को खबर करना चाहते थे, पर आप की जेब से कोई अतापता नहीं मिला. सिर्फ रुपए थे पर्स में, ये रहे, गिन लीजिए,’’ पद्मा ने पर्स उस की तरफ बढ़ाया.

कल्पना भी निकट आ कर बैठ गई थी.

‘‘मैडम, जो लोग सड़क पर गिरे आदमी को अस्पताल पहुंचाते हैं, वे उस का पर्स नहीं मारते,’’ वह उसी तरह मुसकराता रहा, ‘‘समझ नहीं पा रहा, आप को धन्यवाद दूं या खुद को कोसूं.’’

‘‘क्यों भला?’’ कल्पना ने पूछा, ‘‘आप के बीवीबच्चे आप की कुशलता सुन कर कितने प्रसन्न होंगे, यह एहसास है आप को?’’

‘‘कोई नहीं है अब हमारा,’’ वह आदमी उदास हो गया, ‘‘2 साल हुए, हत्यारों ने घर में घुस कर मेरी बेटी और पत्नी के साथ बलात्कार किया था. लड़के ने बदमाशों का मुकाबला किया तो उन लोगों ने तीनों की हत्या कर दी.’’

‘‘यह सुन कर वे दोनों सन्न रह गईं.

काफी देर तक खामोशी छाई रही, फिर पद्मा ने पूछा, ‘‘आप कहां रहते हैं?’’

‘‘कहां बताऊं? शायद कहीं नहीं. जिस घर में रहता था, वहां हर वक्त लगता है जैसे मेरी बेटी, पत्नी और बेटा लहूलुहान लाशों के रूप में पड़े हैं. इसलिए उस घर से हर वक्त भागा रहता हूं.’’

‘‘यहां लखनऊ में आप कैसे आए थे?’’ कल्पना ने पूछा.

‘‘इलाहाबाद में किताबों का प्रकाशक हूं. स्कूल, कालेजों की पुस्तकें प्रकाशित करता हूं-पाठ्यपुस्तकों से ले कर कहानी, उपन्यास, कविता, नाटक आदि तक,’’ वह बोला, ‘‘यहां इसी सिलसिले में आया था. हजरतगंज के एक होटल में ठहरा हूं. एक सिनेमाहौल में पुरानी फिल्म ‘देवदास’ लगी है, उसे देखने गया था कि रास्ते में गश खा कर गिर पड़ा.’’

डाक्टरों से बात कर के कल्पना उस व्यक्ति को मां के साथ घर लिवा लाई, ‘‘चलिए, आप यहीं रहिए कुछ दिन,’’ उस ने कहा, ‘‘हम आप का सामान होटल से ले आते हैं. कमरे की चाबी दीजिए और होटल की कोई रसीद हो, तो वह…’’

‘‘रसीद तो कमरे में ही है, चाबी यह रही,’’ उस ने जेब से निकाल कर चाबी दी.

कल्पना ने मां को बताया, ‘‘इन्हें कोई ठंडी चीज मत देना. गरम चाय या कौफी देना.’’

फिर एक पड़ोसी को साथ ले कर कल्पना चली गई.

पद्मा कौफी बना लाई. उस व्यक्ति ने किसी तरह बैठने का प्रयास किया, ‘‘बिलकुल इतनी ही उम्र थी मेरी बेटी की,’’ उस का गला भर्रा गया, आंखों में नमी तिर आई.

‘‘भूल जाइए वह सब, जो हुआ,’’ पद्मा बोली, ‘‘आप अकेले नहीं हैं इस धरती पर जिन्हें दुख झेलना पड़ा, ऐसे तमाम लोग हैं.’’

वह कुछ बोला नहीं, भरीभरी आंखों से पद्मा की तरफ देखता रहा और कौफी के घूंट भरता रहा.

‘‘सच पूछिए तो अब जीने की इच्छा ही नहीं रह गई,’’ वह बोला, ‘‘कोई मतलब नहीं रह गया जीने का. बिना मकसद जिंदगी जीना शायद सब से मुश्किल काम है.’’

‘‘शायद आप ठीक कहते हैं,’’ पद्मा के मुंह से निकल गया, ‘‘मैं ने भी ऐसा ही कुछ अनुभव किया जब कल्पना के पिता ने अचानक एक दिन मुझे छोड़ दिया.’’

‘‘आप जैसी नेक औरत को भी कोई आदमी छोड़ सकता है क्या?’’ उसे विश्वास नहीं हुआ.

‘‘मधु नामक एक लड़की पड़ोस में रहती थी. हमारे घर आतीजाती थी. वे उसी के मोह में फंस गए. कल्पना तब छोटी थी. वे चले गए मुझे छोड़ कर,’’ पता नहीं वह यह सब उस से क्यों कह बैठी.

धर्म: खरबों का भक्तिलोक

धर्म सत्ता पाने और उसे हथियाए रखने का सब से आसान जरिया है. इस के लिए जरूरत भक्ति का माहौल बनाए रखने की है. पूरे देश में मुद्दे की बात कोई नहीं कर रहा. भक्ति पर अरबों रुपए बरबाद किए जा रहे हैं और जनता अभावों को दरकिनार कर इस नशे में झूम रही है. धर्म में भक्ति आत्मा की मुक्ति का मार्ग हो सकता है लेकिन राजनीति में भक्ति या नायकपूजा पतन का निश्चित रास्ता है जो आखिरकार तानाशाही पर खत्म होता है.

-डाक्टर भीमराव आंबेडकर द्वारा 25 नवंबर, 1949 को संविधान सभा में दिए गए भाषण का अंश. आगे इसी भाषण में उन्होंने यह कहते आगाह किया था कि आम लोग किसी भी राजनेता के प्रति अंधश्रद्धा न रखें वरना इस की कीमत लोकतंत्र को चुकानी पड़ेगी. दूसरे देशों की तुलना में भारतीयों को इस से ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है. भारत की राजनीति में भक्ति या आत्मसमर्पण या नायकपूजा दूसरे देशों की तुलना में बड़े स्तर पर अपनी भूमिका निभाती है. यह वह समय था जब आम लोगों में महात्मा गांधी और पंडित जवाहर लाल नेहरू के प्रति अंधभक्ति किसी सुबूत की मुहताज नहीं थी. अंधभक्ति आज भी है, बस, उस की वजह और चेहरा बदल गए हैं.

11 अक्तूबर के तमाम दैनिक अखबारों में 2 पृष्ठों का एक सरकारी विज्ञापन छपा था जिस का टाइटल था- श्री महाकाल लोक उज्जैन. बैकग्राउंड में मंदिर की तसवीर के साथसाथ विज्ञापन के नीचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की हाथ जोड़े भक्तिमुद्रा में तसवीरें थीं. इस विज्ञापन की सब से ज्यादा आकर्षक लेकिन चिंताजनक बात श्री महाकाल लोक प्रोजैक्ट की लागत का 2-4 करोड़ नहीं, बल्कि 856 करोड़ होनी थी जिस में से कोई 250 करोड़ 11 अक्तूबर के जलसे के प्रचारप्रसार में ही खर्च किए गए या बेरहमी से फूंके गए एक ही बात है. चूंकि सभी अखबारों, न्यूज चैनल्स और दूसरे मीडिया माध्यमों को उन की हैसियत के हिसाब से शंकर का प्रसाद मिला था, इसलिए सभी ने फुरती से अपनी ड्यूटी बजाते इस दिन को खास बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. दिनभर मीडिया पर महाकाल लोक का सीधाउलटा प्रसारण होता रहा जिस में गिनाने को सरकारों का भक्तिप्रेम और एक अलौकिक काल्पनिक संसार था.

इस जलसे का लाइव प्रसारण हुआ जिसे 40 देशों के श्रद्धालुओं ने देखा. इस के बाद भाट गिरी और शिव पुराण शुरू हो गए कि श्री महाकाल लोक में भगवान शंकर के विविध रूप देखने को मिलेंगे. इस खर्चीले आयोजन को मध्य प्रदेश के 25 हजार मंदिरों में सीधे दिखाने के जिला कलैक्टरों को निर्देश थे कि वे मंदिरों में टीवी स्क्रीन का इंतजाम करें जिस से प्रदेश शिवमय दिखे. कहा यह भी गया कि इस जलसे से 50 देशों के एनआरआई जुड़ेंगे और उद्घाटन के बाद महाकाल लोक में एक लाख श्रद्धालु प्रति घंटे दर्शन कर सकेंगे. यहां रुक कर इसे सम झने की जरूरत है कि जब एक घंटे में एक लाख श्रद्धालु दर्शन करेंगे तो वे चढ़ावा भी इस लोक की भव्यता के हिसाब से चढ़ाएंगे.

वैसे तो दूसरे ब्रैंडेड मंदिरों की तरह महाकाल के मंदिर में भी सालाना अरबों का चढ़ावा आता ही आता है लेकिन कायाकल्प के बाद अगर औसतन सौ रुपए प्रति श्रद्धालु भी चढ़ावा आया तो प्रति घंटे एक करोड़ रुपया इकट्ठा होगा. मंदिर दिन में 20 घंटे भी खुला रहा तो एक दिन में 20 करोड़ यानी एक महीने में 600 करोड़ और सालभर में 7,200 करोड़ रुपया तो आना ही है. इस के बाद जिस की जैसी इच्छा और श्रद्धा खासतौर से महिलाओं की जो ऐसे ब्रैंडेड मंदिरों में जा कर अपनी सुधबुध खो बैठती हैं और शरीर के जेवर तक अर्पण कर आती हैं. ये वही महिलाएं हैं जिन्हें धर्म के नाम पर नंगेपांव कलश यात्राओं में और देवी व शंकर के पहाड़ी पर बने मंदिरों में मीलों नंगेपांव चलाया जाता है, इस के बाद भी ये अपने नाजुक पैरों और तलुवों में पड़े छालों को भगवान का प्रसाद मानती हैं.

परवान चढ़ रहा भक्ति का कारोबार चढ़ावे के लिहाज से महाकाल लोक भी घाटे का कैंपस साबित नहीं होने वाला लेकिन इस के एवज में भक्तों को मिलेगा क्या, यह न तो उन्होंने कभी पहले सोचा था और न अभी सोच रहे हैं. ऐसा भी नहीं कि सोचने लायक दिमाग या बुद्धि उन के पास न हो. दरअसल ऐसा है कि वे कुछ सोचना ही नहीं चाहते. यही नहीं, सरकार भी नहीं चाहती कि पैसे वाले ये अक्लमंद महंगाई, बेरोजगारी, जीएसटी वगैरह के बारे में सोचते अपने दिमाग को तकलीफ दें वरना उस की पोल खुलने लगेगी. इसीलिए इन्हें महाकाल लोक जैसे मंदिर प्रांगण कर के चमका कर थमाए जा रहे हैं ताकि ये इन में उल झे रहें और इन की जेब व दिमाग दोनों ढीले हों.

वे, बस, हरहर महादेव का नारा लगाते खामोशी से पैसे चढ़ाते यह सोचते रहें कि यह सब हमारे कल्याण के लिए ही तो किया जा रहा है कि जब देश ‘हिंदू राष्ट्र’ बन जाएगा तो हमारी हैसियत वही होगी जो पौराणिक युग में हुआ करती थी. इस बारे में मनुस्मृति सहित तमाम धर्मग्रंथों में इफरात से लिखा है. इस के अलावा, गारंटेड मोक्ष तो मिलना तय है ही. जनता भक्ति में लीन रहे, यह पहली प्राथमिकता है जिस के लिए देशभर के कई बड़े मंदिर चमका कर पहले ही लोकार्पित किए जा चुके हैं. इन में पहला बड़ा नाम अयोध्या के राममंदिर का है. विवादित रहे राममंदिर, जिस की हिंसा में हजारों लोग मारे गए थे, को जून 2022 तक मिला चंदा 5 हजार करोड़ रुपए की अपार धनराशि का है. नकदी के अलावा लोग सोना, चांदी, गहने और ईंटें, पत्थर तक दान में दे रहे हैं.

राममंदिर के चंदे के लिए रामभक्तों ने 15 जनवरी से 27 फरवरी, 2021 तक समर्पण निधि अभियान चलाया था. अभियान इतना बड़ा था कि 9 लाख कार्यकर्ताओं की 175 हजार टोलियों ने घरघर जा कर 10 करोड़ परिवारों से चंदा इकट्ठा किया था. 5 हजार करोड़ रुपए की समर्पण निधि के बाद भी 3,500 करोड़ रुपए से ज्यादा की धनराशि श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के बैंक खातों में जमा है. यह स्थिति या पैसा तो तब है जब कई समर्पण केंद्रों का इकट्ठा किया चंदा ट्रस्ट के पास नहीं पहुंचा है. इन 35 केंद्रों का हिसाबकिताब और ब्योरा मिलने के बाद पता चलेगा कि कितनी धनराशि समर्पण निधि के रूप में प्राप्त हो चुकी है. राममंदिर चूंकि भगवा गैंग द्वारा प्रायोजित जन आंदोलन का नतीजा था, इसलिए आम और खास जनों से चंदा लिया जा रहा है. लेकिन वाराणसी के काशी विश्वनाथ कौरिडोर का बजट 900 करोड़ रुपए था जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ही 13 दिसंबर, 2021 को लोकार्पित किया था.

लोकार्पण के बाद इस मंदिर पर भी चढ़ोत्री की बारिश होने लगी. हर साल इस मंदिर के खजाने में 20 करोड़ रुपए आते हैं. कौरिडोर बनने के बाद पंडेपुरोहितों का धंधा चमका है जो भक्तों को तिलक लगाने की भी दक्षिणा लेते हैं और अभिषेक व प्राइवेट अनुष्ठानों से भी तगड़ी कमाई करते हैं. इन्हीं कर्मकांडों से इस से ज्यादा कमाई उज्जैन के पेशवाओं, पंडितों और पुरोहितों की होनी तय है. दरअसल देशभर के मंदिरों में इन्हीं की सहूलियत और कमाई के लिए जनता की खूनपसीने की गाढ़ी कमाई को फूंका जा रहा है और दक्षिणा की शक्ल में ब्याज भी इन्हीं से अपने ही पैसों पर वसूला जा रहा है. गुजरात स्थित सोमनाथ मंदिर के लिए भी सरकार 2 किस्तों में 280 करोड़ रुपए साल 2019 में दे चुकी है.

इस के और भी प्रोजैक्ट पैंडिंग हैं. चारधाम परियोजना का बजट 12 हजार करोड़ रुपए का है. उज्जैन में अपने भाषण में नरेंद्र मोदी ने इस का जिक्र भी किया था. इसी तरह बद्रीनाथ, केदारनाथ जैसे दर्जनों मंदिरों पर भी सरकार मेहरबान है और दरियादिली से पैसा लुटाती है जिस से मंदिरों के पंडेपुजारियों की आमदनी बढ़े. मकसद यह है कि ज्यादा से ज्यादा लोग आएं और जेब ढीली करें. इस से दूसरा फायदा उन की भक्त मानसिकता बढ़ते रहने का होता है जिस से वे सरकार के कामों और फैसलों को हरि इच्छा मान कोई कुतर्क नहीं करते. ताकि भ्रम बना रहे यह बीमारी देशभर में फैलाने का जिम्मा भगवा गैंग ने नरेंद्र मोदी को दे रखा है जो दीवाली के पहले केदारनाथ और दीवाली पर अयोध्या गए.

वे अब प्रधानमंत्री कम महंत ज्यादा लगने लगे हैं. हर धार्मिक आयोजन में उन की वेशभूषा ऋषिमुनियों सरीखी रहती है. मुख्यधारा के ये लोग हल्ला इतना मचाते हैं कि बस अब पौराणिक युग की पुनर्स्थापना हो ही गई है और वे कोई पीएम नहीं, बल्कि अवतार हैं जो दुष्टों का नाश करने को अवतरित हुए हैं. ये दुष्ट हर कोई जानता है कि मुसलमान, दलित, आदिवासी और औरतों के अलावा विपक्षी दलों के वे नेता हैं जो पूरी तरह मनुवाद और वर्णव्यवस्था से सहमत नहीं. इन मुट्ठीभर लोगों के होहल्ले में मुद्दों और बाकी लोगों की आवाजें दब कर रह गई हैं और यही भीमराव अंबेडकर जैसे नेताओं की चिंता भी थी कि लोकतंत्र अपने माने खो देगा. उज्जैन हो, काशी हो, अयोध्या हो या चारधाम हो, नरेंद्र मोदी के भाषणों का धर्म और भक्ति के इर्दगिर्द ही घूमना कोई शुभ संकेत नहीं है. देश तरहतरह की समस्याओं से घिरता जा रहा है. बढ़ती महंगाई ने लोगों का जीना मुहाल कर दिया है.

लेकिन सरकार है कि धार्मिक आयोजनों, मंदिरों की मरम्मत में पैसा फूंके जा रही है जिस से रोजगार पंडेपुरोहितों को ही मिलता है. आम लोग तो और लुटतेपिटते हैं. तथाकथित बुद्धिजीवी सवर्ण अपनी खिसियाहट ढकने के लिए दलील यह देते रहते हैं कि मंदिरों के विकास से स्थानीय लोगों को भी रोजगार मिलता है. लेकिन ये लोग यह नहीं सोच पाते कि यह कोई उत्पादक काम नहीं है और न ही सेवा है. इस से पैसा बनता नहीं, बल्कि खर्च होता है जोकि फुजूल है. यही मध्यवर्गीय ज्यादा पैसा धरमकरम पर खर्चते हैं. क्यों खर्चते हैं, इस सवाल का जवाब बेहद साफ है कि सिर्फ इसलिए कि इन का यह मुगालता कायम रहे कि वे हिंदुत्व की पहली जमात के लोग हैं. यह सारी ताम झाम एक साजिश है जिस से कुछ अगड़ी जाति वालों में उन के श्रेष्ठ होने का भ्रम बना रहे. यही धर्म के जरिए सामाजिक और जातिगत भेदभाव फैलाने का वह टोटका है जिस के लिए भगवा गैंग प्रतिबद्ध है.

बढ़ती भूख और बेरोजगारी सरकार जब अरबों रुपए सब का पेट भरने वाले भगवान के मंदिरों की भव्यता पर फूंक रही है तो क्यों देश में करोड़ों लोग भूखे हैं? इसे भाग्य और पूर्वजन्म के कर्म कह कर टरकाने की कोशिश करना एक धूर्तता वाली बात है जिस का जनक धर्म ही है. सब को खाना और रोजगार मिले, इस की जिम्मेदारी तथाकथित ऊपर वाले के सिर मढ़ना अपनी जिम्मेदारियों से भागने वाली बात है जो धार्मिक भाषा में ही कहें तो अकर्मण्यता है. यह जिम्मेदारी तो सीधेतौर पर सरकार की है जिस पर वह खरा नहीं उतर पा रही. महाकाल लोक के हफ्तेभर बाद ही ग्लोबल हंगर इंडैक्स 2022 की यह रिपोर्ट हकीकत उजागर कर देने वाली थी कि 121 देशों की लिस्ट में भारत 107वें नंबर पर है. रिपोर्ट में भारत की स्थिति उस के गरीब और निरीह कहे जाने वाले पड़ोसी देशों पाकिस्तान, नेपाल, श्रीलंका और म्यांमार से भी बदतर बताई गई थी. भक्तों और गोदी मीडिया ने यह कह कर आंख बंद कर लेने की कोशिश की कि यह तो विश्वगुरु बनने जा रहे भारत को बदनाम करने की साजिश है.

‘भूखे भजन न होय गोपाला’ की तर्ज पर सरकार सहित सभी को यह सम झ लेने की जरूरत है कि करोड़ों भूखों और बेरोजगारों के चलते विश्वगुरु बनने का वेवजह का ख्वाब देखना बेतुकी और गैरजरूरी बात है. महाकाल लोक पर जो 856 करोड़ रुपए बहाए गए उन्हें सही जगह इस्तेमाल कर कुछ सौ युवाओं को तो रोजगार दिया जा सकता था जिस से देश की तरक्की ही होती. बेरोजगारी का यह वह दौर है जब हताशनिराश युवा रोजगार और नौकरियों की मांग को ले कर सड़कों पर हैं तो फिर क्यों सरकार देश के मंदिरों पर पानी की तरह पैसा बहा रही है, यह ऊपर बताया जा चुका है. हालांकि राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो’ यात्रा में बड़ी तादाद में बेरोजगार शामिल हो रहे हैं लेकिन लगता नहीं कि बगैर किसी बड़े हादसे या आंदोलन के सरकार अपनी प्राथमिकताएं बदलेगी. रही बात अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बदनामी और बदहाली की व रुपए की गिरती कीमत की तो सरकार को ऐसी कोई चिंता है,

ऐसा लगता नहीं. उस का तो पूरा ध्यान मंदिरों और मूर्तियों के विकास पर है. सो, कोई क्या कर लेगा. -भारत भूषण श्रीवास्तव द्य बौखलाए क्यों हैं शिवराज सिंह चौहान 2018 के विधानसभा चुनाव में मध्य प्रदेश की जनता ने शिवराज सिंह चौहान सरकार को चलता कर दिया था तो इस की एक बड़ी वजह उस की ऊटपटांग कार्यशैली भी थी जिस में कोई बदलाव कांग्रेस से सत्ता छीनने के बाद भी नहीं हुआ है. प्रदेश सरकार खजाने को मैनेज नहीं कर पा रही है, इस से ज्यादा चिंता की बात प्रदेश पर लगातार बढ़ता कर्ज है. हाल ही में राज्य सरकार ने भारतीय रिजर्व बैंक से एक हजार करोड़ रुपए का और कर्ज 15 साल के लिए लिया है. मार्च 2022 तक राज्य के सिर पर 2 लाख 95 हजार करोड़ रुपए का कर्ज था. अब यह कुल 3 लाख 3 हजार करोड़ रुपए का हो गया है. महाकाल लोक पर एक दिन में करोड़ों रुपए फूंक कर सरकार एक तरह से अदूरदर्शिता ही दिखा गई.

इस संबंध में वायरल हुए एक परचे पर उस की चुप्पी भी हैरान कर देने वाली है. इस चर्चित परचे के मुताबिक 11 अक्तूबर को 3,110 वाहनों का ट्रांसपोर्ट के लिए इस्तेमाल किया गया. 15 जिलों से कोई 66 हजार लोगों को ढोया गया जिन के खानेपीने पर ही 3 करोड़ 39 लाख 38 हजार 700 रुपए खर्च हुए. दीगर खर्चों का हिसाबकिताब अभी सामने नहीं आया है. 25 हजार मंदिरों में टीवी लगाने पर कितना खर्च हुआ होगा, सहज अंदाज लगाया जा सकता है. महाकाल लोक के लोकार्पण के दिन सभी विभागों के कुल 65 हजार कर्मी ड्यूटी पर लगाए गए थे. यह सब ताम झाम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को प्रसन्न करने के लिए था या बाबा महाकाल को, यह तो शिवराज सिंह ही जानें जिन के जाने की चर्चा आएदिन उन्हें परेशान करती रहती है. किसान और युवा बेरोजगार तो सरकार से खफा हैं ही,

अब सरकारी कर्मचारी भी आजिज आ चले हैं. प्रधानमंत्री के दौरे के बाद 16 अक्तूबर, इतवार को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के दौरे के दिन सभी महाविद्यालयों को निर्देश थे कि वे ज्यादा से ज्यादा तादाद में छार्त्रों को ढो कर लाएं या फिर कालेजों में औनलाइन जमावड़ा दिखाएं. हाल तो यह है कि प्रदेश की समस्याओं पर सरकार का कोई ध्यान है ही नहीं. ऊपर वाले के साथसाथ दिल्ली वालों को खुश करने के चक्कर में शिवराज सिंह इतने बौखलाने लगे हैं कि आएदिन मंच से कर्मचारियों, अधिकारियों को हटा देने और देख लेने की धमकी देते नजर आते हैं.

इसे उन की बहुत बड़ी कमजोरी के तौर पर देखा जा रहा है. यह सोचना बेमानी है कि इस से जनता खुश होती है क्योंकि उसे मालूम है कि सरकार का ध्यान उस की परेशानियों की तरफ है ही नहीं. असल में यह प्रदेश भाजपा की अंदरूनी कलह और फूट की देन है. इसे भी मुख्यमंत्री मैनेज नहीं कर पा रहे हैं. अमित शाह जब ग्वालियर में ज्योतिरादित्य सिंधिया के महल जय विलास पैलेस गए तो शिवराज गुट के हाथपांव फूल गए थे. यह अनिश्चितता अभी भी बरकरार है. नगरनिगम चुनावों में मिली असफलता को मोदीशाह ने गंभीरता से लिया है और अगले साल नवंबर में होने वाले चुनाव को ले कर वे शिवराज सिंह पर आश्वस्त नहीं हैं.

भारत भूमि युगे युगे: अपने अपने अंधविश्वास

अपने अंधविश्वास उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने नोएडा में यह कह कर उन आलोचकों के मुंह बंद करने की नाकाम कोशिश की जो उन्हें विकट का अंधविश्वासी कहते रहते हैं. 31 अक्तूबर को उत्तर प्रदेश के पहले डेटा सैंटर का उद्घाटन करने नोएडा गए योगी के चेहरे पर यह कहते भी हवाइयां ही उड़ रही थीं कि गौतमबुद्ध नगर कोई अभिशप्त जगह नहीं है.

योगीजी तनिक हाई लैवल के अंधविश्वासी हैं जो उन्होंने 5, कालिदास मार्ग, लखनऊ, स्थित मुख्यमंत्री दफ्तर, जिस में अखिलेश बैठा करते थे, का पूरे विधिविधान से शुद्धिकरण करवाया था. उन्हें डर था कि अखिलेश कहीं यहां कोई जादूटोना न कर गए हों. इस हलके अंधविश्वास के बाद उन का तगड़ा अंधविश्वास नवरात्र के दिनों में देखने में आया था जब वे पूरे 9 दिन अपने मठ में सिद्धियां हासिल करने को कैद या बंद रहते किसी उच्च कोटि की साधना में रत थे.

नमक के चमचे बुद्धिजीवी कांग्रेसी नेता उदित राज बेकारी और बेचारगी के दिनों में भी सुर्खियों में रहने का हुनर जानते हैं. उन्होंने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की गुजरात यात्रा पर तंज कस ही दिया जिस से भगवा गैंग दिल ही दिल में खुश हुआ और उसे उदित पर चढ़ाई का मौका भी मिल गया था. इधर बात राजनीति की कम नमक के क्षेत्रवार खाने को ले कर ज्यादा थी. असल में द्रौपदी मुर्मू ने कहा था कि गुजरात देश 76 फीसदी नमक की पैदावार करता है जिसे सभी भारतीय खाते हैं. उदित राज को यह अतिशयोक्ति लगी तो उन्होंने ट्वीट कर डाला कि द्रौपदी मुर्मू जैसा राष्ट्रपति किसी देश को न मिले, चमचागीरी की भी हद है, कहती हैं 70 फीसदी लोग गुजरात का नमक खाते हैं.

अच्छा तो यह होता कि उदित यह बताते कि गुजरात का नमक किनकिन मीडिया संस्थानों को तोहफे में दिया जाता है जो वे नमक हलाली करते रहते हैं. मी लौर्ड लोकतंत्र बचाइए पिछले 8 सालों से जिन लोगों को लोकतंत्र की चिंता खाए जा रही है, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी उन में से एक हैं. बीते दिनों कोलकाता स्थित राष्ट्रीय न्यायिक विज्ञान विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में देश के चीफ जस्टिस यूयू ललित से ममता का सामना हुआ तो उन्होंने बड़े मार्मिक ढंग से गुहार लगाई कि आप लोकतंत्र बचाइए क्योंकि समाज का एक वर्ग सभी लोकतांत्रिक शक्तियों को कैद कर रहा है. चीफ जस्टिस इस अपील पर खामोश ही रहे क्योंकि 8 नवंबर को उन्हें रिटायर होना था और इतने कम दिनों में वे 75-8=63 साल के लोकतंत्र को नहीं बचा सकते थे.

ममता की बात इस लिहाज से तो सटीक है कि देश में जो 15-20 फीसदी लोकतंत्र बचा है, उस का श्रेय ज्युडीशियरी को ही जाता है, बाकी का राम जाने. लक्ष्मीगणेश ही क्यों आम आदमी पार्टी यानी आप के मुखिया अरविंद केजरीवाल इन दिनों नए किस्म की राजनीति कर रहे हैं. उन्होंने नोटों पर लक्ष्मीगणेश की तसवीर छापने की मांग कर डाली और दलील यह दी कि इस से अर्थव्यवस्था सुधरेगी.

मुद्रा का धार्मिकीकरण भाजपा के लिए कोई चुनौती नहीं है लेकिन डर इस बात का है कि कहीं अब जातियों के हिसाब से यह मांग न उठने लगे. जैनियों के नोटों पर महावीर स्वामी, मुसलमानों के नोटों पर हजरत साहब और सिखों के नोटों पर गुरुनानक देव हों तो क्या हर्ज. इधर हिंदुओं के नोट वर्णव्यवस्था के हिसाब से छापे जाएं तो देश हिंदू राष्ट्र बन ही जाएगा. मजा तो तब आएगा जब ब्राह्मणों के नोटों पर परशुराम, क्षत्रियों के नोटों पर राम, वैश्यों के नोटों पर उन की जाति के देवता, मसलन यादवों के नोटों पर कृष्ण और कायस्थ के नोटों पर चित्रगुप्त छपे हों और शूद्रों के नोटों पर बुद्ध और अंबेडकर छापे जा सकते हैं. ऐसा हो पाया तो कोई हमारी अर्थव्यवस्था को हिला नहीं पाएगा.

विंटर स्पेशल: सर्दियों में बनाएं पालक के पराठे

सर्दी के मौसम में लोग ज्यादातर पालक खाना पसंद करते हैं. ऐसे में लोग पालक के कई तरह के फूड बनाकर खाना पसंद करते हैं. जैसे साग, पालक के परांठे. ऐसे में आज मैं आपरको पालक के परांठे बनाने बताउंगी.

कैसे सर्दी के मौसम में पालक के परांठे बनाएं जाते हैं. घर पर आप अपने परिवाल वालों के लिए बहुत आशान तरीके और कम समय में पालक के परांठे बनाएं जा सकते हैं.

समाग्री

पालक

सूखा आटा

गेंहू

नमक

तेल

पान एक कप

विधि

सबसे पहले पालक को अच्छे से साफ करलें उसके बाद उसे धोकर साफ करके उबले के लिए रख दें उसमें थोड़ा सा नमक भी डाल दें. जब पालक कुछ देर तक उबल जाए तो उसे निकालकर ग्राइंडर में पीस लें.

अब सबसे पहले आटा को लेकर उसमें नमक और पीसी हुई हर मिर्च डाल दें. उसके बाद से उस आटे में ग्राइंड किया हुआ पालक मिक्स कर दें. जब पालक को अच्छे से मिलाकर उसको अच्छे से गुंथ ले जब आटा गुंथ जाए तो उसके गोल- गोल लोइया बनाकार उसके परांठे बना लें.

परांठे बनाते समय दोनो तरफ आप घी या फिर रिफाइंड का इस्तेमाल कर सकती हैं. ऐसे में आपके परांठे सुंदर और फूले- फूले होंगे. आप चाहे तो किस मेहमान को भी ये परांठे दे सकत हैं.

इसके साथ आप हरी धनिया की चटनी या फिर रेड सॉस का इस्तेमाल करें परांठे अच्छे लगेंगे.

 

धार्मिक कट्टरता

भारतीय जनता पार्टी के लिए ईरान की फुटबौल टीम का कतर में व्यवहार एक चेतावनी है. ईरान अपने देश में धार्मिक शरीयती कानून लागू करने की ऐसी ही कोशिश कर रहा है. जिस तरह भारत में भगवाई गैंग हिंदू पौराणिक पुरोहिताई समाज बनाना चाहता है. 10-15 साल इसलामी पंडों, खुमैनी-खामेनाई, की जबरदस्ती बरदाश्त करते और सरकारी मोरल पुलिस के अत्याचारों को सहतेसहते ईरानवासी तंग आ गए थे और आखिर एक लडक़ी म्हासा अमीन की पुलिस वालों के हाथों हुई मौत ने सब बदल कर रख दिया.

जनआक्रोश के चलते 2 महीने से ईरान उबल रहा है. तकरीबन 300 लोग मारे जा चुके हैं. उन में 70-80 बच्चे तक शामिल हैं. जेलें ऐक्टरों, लेखकों से भर दी गर्ई हैं, पुलिस सैल बर्बरता दिखा रही है पर फिर भी जनता चुप नहीं बैठ रही.

हाल यह हो गया कि कतर में वर्ल्ड कप फुटबौल में जो ईरानी टीम फुटबाल खेलने गई, वह राष्ट्रपति से मिल कर उन की दुआ ले कर गई पर असल में उस के मन में कुछ और था. पहले ही मैच, जो इंगलैंड से हुआ, में ईरानी टीम ने अपने देश की राष्ट्रीय धुन बजने पर अपना मुंह सी लिया. यह बहुत गंभीर विद्रोह है. खिलाड़ी जानते हैं कि ईरान लौटते ही उन्हें जेल में डाल दिया जाएगा. अगर मैचों के बाद उन्होंने किसी देश में पनाह ले ली तो भी ईरानी पुलिस उन्हें अपने गुप्तचरों के हाथों मरवा सकती है.

खिलाडिय़ों ने यह खतरा क्यों मोल लिया, क्योंकि धर्म से भी ऊपर व्यक्तिगत स्वतंत्रताएं हैं. भारत में धर्म के नाम पर एकएक कर के व्यक्तिगत स्वतंत्रताएं छीनी जा रही हैं. औरतों को घरों में दुबक कर रहने को कहा जा रहा है. बलात्कारियों को जेलों से रिहा ही नहीं किया जा रहा उन्हें संस्कारी कह कर उन का स्वागत भी किया जा रहा है. इस का मतलब साफ है कि अगर आप जय श्रीराम बोलोगे तो आप का हर गुनाह माफ है और नहीं बोलोगे तो आप की हर शराफत देशद्रोह है.

सरकार ने कितने ही लोगों को गिरफतार कर रखा है कि उन के घर से लैफ्टिस्ट लिटरेचर मिला है. कितनों को जेलों में ठूंसा हुआ है कि वे उस भीड़ का हिस्सा थे जो सरकार के आतंकी कानून का विरोध कर रही थी.

सरकार औरतों, दलितों, पिछड़ों के फायदे के लिए न कानून बना रही, न योजनाएं बना रही, वह अपना गुणगान केवल पुरोहितों की दुकानों को बनवाने को गिनवा कर कर रही है जिस का खमियाजा आम औरतों को और ज्यादा आरतियों, और ज्यादा पूजापाठ में लग कर उठाना पड़ रहा है. अगर वे किसी माता की चौकी, देवी के जागरण में न जाएं तो भगवा गैंग उन्हें जाति से बाहर कर देते हैं.

औरतों को घूंघट, बिंदी, सिंदूर, मंगलसूत्र जबरन पहनाए जा रहे हैं. यह ईरान के हिजाब की तरह ही है. वहां मोरल पुलिस है. यहां भगवा गमछे डाले लठैतों के गैंग हैं. ईरानी पुलिस को सरकार पैसा देती है, भगवा गैंग चंदा जमा करते हैं. सडक़ों पर बैरियर लगा कर, गाडिय़ों को रोक कर 500-1,000 रुपए झटके जाते हैं, दुकानदारों से तो लाखलाख रुपए तक वसूल कर लिए जाते हैं कि धार्मिक आयोजन होना है, मंदिर सजाना है.

जैसे ईरान आज विद्रोह की कगार पर है, जैसे उस के फुटबौल खिलाड़ी पूरी दुनिया के सामने विद्रोह पर उतर आए वैसा भविष्य में भारत में भी हो, तो बड़ी बात नहीं. यहां सरकारी अंकुश साफ दिख नहीं रहा, छिपा है, यहां ब्रेनवाश से काम लिया जा रहा है. लेकिन, कब जनता का व्रिदोह फूट जाए, पता नहीं.

 

भारतीय जनता पार्टी के लिए ईरान की फुटबौल टीम का कतर में व्यवहार एक चेतावनी है. ईरान अपने देश में धार्मिक शरीयती कानून लागू करने की ऐसी ही कोशिश कर रहा है. जिस तरह भारत में भगवाई गैंग हिंदू पौराणिक पुरोहिताई समाज बनाना चाहता है. 10-15 साल इसलामी पंडों, खुमैनी-खामेनाई, की जबरदस्ती बरदाश्त करते और सरकारी मोरल पुलिस के अत्याचारों को सहतेसहते ईरानवासी तंग आ गए थे और आखिर एक लडक़ी म्हासा अमीन की पुलिस वालों के हाथों हुई मौत ने सब बदल कर रख दिया.

जनआक्रोश के चलते 2 महीने से ईरान उबल रहा है. तकरीबन 300 लोग मारे जा चुके हैं. उन में 70-80 बच्चे तक शामिल हैं. जेलें ऐक्टरों, लेखकों से भर दी गर्ई हैं, पुलिस सैल बर्बरता दिखा रही है पर फिर भी जनता चुप नहीं बैठ रही.

हाल यह हो गया कि कतर में वर्ल्ड कप फुटबौल में जो ईरानी टीम फुटबाल खेलने गई, वह राष्ट्रपति से मिल कर उन की दुआ ले कर गई पर असल में उस के मन में कुछ और था. पहले ही मैच, जो इंगलैंड से हुआ, में ईरानी टीम ने अपने देश की राष्ट्रीय धुन बजने पर अपना मुंह सी लिया. यह बहुत गंभीर विद्रोह है. खिलाड़ी जानते हैं कि ईरान लौटते ही उन्हें जेल में डाल दिया जाएगा. अगर मैचों के बाद उन्होंने किसी देश में पनाह ले ली तो भी ईरानी पुलिस उन्हें अपने गुप्तचरों के हाथों मरवा सकती है.

खिलाडिय़ों ने यह खतरा क्यों मोल लिया, क्योंकि धर्म से भी ऊपर व्यक्तिगत स्वतंत्रताएं हैं. भारत में धर्म के नाम पर एकएक कर के व्यक्तिगत स्वतंत्रताएं छीनी जा रही हैं. औरतों को घरों में दुबक कर रहने को कहा जा रहा है. बलात्कारियों को जेलों से रिहा ही नहीं किया जा रहा उन्हें संस्कारी कह कर उन का स्वागत भी किया जा रहा है. इस का मतलब साफ है कि अगर आप जय श्रीराम बोलोगे तो आप का हर गुनाह माफ है और नहीं बोलोगे तो आप की हर शराफत देशद्रोह है.

सरकार ने कितने ही लोगों को गिरफतार कर रखा है कि उन के घर से लैफ्टिस्ट लिटरेचर मिला है. कितनों को जेलों में ठूंसा हुआ है कि वे उस भीड़ का हिस्सा थे जो सरकार के आतंकी कानून का विरोध कर रही थी.

सरकार औरतों, दलितों, पिछड़ों के फायदे के लिए न कानून बना रही, न योजनाएं बना रही, वह अपना गुणगान केवल पुरोहितों की दुकानों को बनवाने को गिनवा कर कर रही है जिस का खमियाजा आम औरतों को और ज्यादा आरतियों, और ज्यादा पूजापाठ में लग कर उठाना पड़ रहा है. अगर वे किसी माता की चौकी, देवी के जागरण में न जाएं तो भगवा गैंग उन्हें जाति से बाहर कर देते हैं.

औरतों को घूंघट, बिंदी, सिंदूर, मंगलसूत्र जबरन पहनाए जा रहे हैं. यह ईरान के हिजाब की तरह ही है. वहां मोरल पुलिस है. यहां भगवा गमछे डाले लठैतों के गैंग हैं. ईरानी पुलिस को सरकार पैसा देती है, भगवा गैंग चंदा जमा करते हैं. सडक़ों पर बैरियर लगा कर, गाडिय़ों को रोक कर 500-1,000 रुपए झटके जाते हैं, दुकानदारों से तो लाखलाख रुपए तक वसूल कर लिए जाते हैं कि धार्मिक आयोजन होना है, मंदिर सजाना है.

जैसे ईरान आज विद्रोह की कगार पर है, जैसे उस के फुटबौल खिलाड़ी पूरी दुनिया के सामने विद्रोह पर उतर आए वैसा भविष्य में भारत में भी हो, तो बड़ी बात नहीं. यहां सरकारी अंकुश साफ दिख नहीं रहा, छिपा है, यहां ब्रेनवाश से काम लिया जा रहा है. लेकिन, कब जनता का व्रिदोह फूट जाए, पता नहीं.

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