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ठगनी: किस सच से अनजान था वो?

घर के बगीचे में बैठा मैं अपने मोबाइल फोन के बटनों पर उंगलियां फेर रहा था. चलचित्र की तरह एकएक कर नंबरों समेत नाम आते और ऊपर की ओर सरकते जाते. उन में से एक नाम पर मेरी उंगली ठहर गई. वह नंबर परेश का था. मेरा पुराना जिगरी दोस्त. आज से तकरीबन 10 साल पहले आदर्श कालोनी में परेश अपने मातापिता व भाईबहनों के साथ किराए के मकान में रहता था. ठीक उस से सटा हुआ मेरा घर था. हम लोग एकसाथ परिवार की तरह रहते थे. फिर मेरी शादी हो गई. अचानक पिता की मौत के बाद मैं अपने आदर्श नगर वाला मकान छोड़ कर पिताजी द्वारा दूसरी जगह खरीदे हुए मकान में रहने चला गया.

कुछ दिनों के बाद मैं एक दिन परेश से मिला था, तो मेरे घर वालों का हालचाल जानने के बाद उस ने बताया था कि वे लोग भी आदर्श नगर वाला किराए का मकान छोड़ कर किसी दूसरी जगह रहने लगे हैं.काम ज्यादा होने के चलते फिर हम लोगों की मुलाकातें बंद हो गईं. हमें मिले कई साल गुजर गए. बचपन की वे पुरानी बातें याद आने लगीं. हालचाल पूछने के लिए सोचा कि फोन लगाता हूं. फोन का बटन उस नंबर पर दबते ही घंटी बजनी शुरू हो गई.मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा कि चलो, फोन तो लग गया, क्योंकि इन दिनों क्या बूढ़े, क्या जवान, सभी में एक फैशन सा हो गया है सिम कार्ड बदल देने का. आज कुछ नंबर रहता है, तो कल कुछ.

थड़ी देर बाद ही उधर से किसी औरत की आवाज सुनाई दी, ‘हैलो… कौन बोल रहा है? देखिए, यहां लाउडस्पीकर बज रहा है. कुछ भी ठीक से सुनाई नहीं पड़ रहा है.’ मैं ने अंदाजा लगाया, शायद परेश की भी शादी हो गई है. हो न हो, यह उसी की पत्नी है. मैं फोन पर जरा ऊंची आवाज में बोला, ‘‘हैलो, मैं मयंक बोल रहा हूं… हैलो… सुनाई दे रहा है न… परेश ने मुझे यह नंबर दिया था. यह उसी का ही नंबर है न… मुझे उसी से बात करनी है. वह मेरे बचपन का दोस्त है. आदर्श नगर में हम लोग एकसाथ रहते थे.’’ उधर से फिर आवाज आई, ‘देखिए, कुछ सुनाई नहीं दे रहा है, आप…’ मैं ने फोन काट दिया. मैं हैरान सा था. पक्का करने के लिए दोबारा फोन लगाया कि सही में वह औरत परेश की पत्नी ही है या कोई और, मगर साफ आवाज न मिल पाने के चलते दिक्कत हो रही थी. वैसे, यह नंबर खुद परेश ने मुझे एक बार दिया था. जब वह बाजार में मिला था. यह औरत यकीनन उस की पत्नी ही होगी. आवाज से ऐसा लग रहा था, जैसे वह मेरा परिचय जानने की कोशिश कर रही थी.

रात के 8 बजे मैं खापी कर कुछ लिखनेपढ़ने के खयाल से बैठ ही रहा था कि मेरे मोबाइल फोन पर एक फोन आया. किसी मर्द की आवाज थी, जिसे मैं पहचान नहीं पा रहा था. फोन पर उस ने मेरा नाम पूछा. मैं ने जैसे ही अपना नाम बताया, तो वह तपाक से बोल पड़ा, ‘हैलो, मयंक भैया. आप का फोन था? सवेरे आप ने ही फोन किया था?’

मैं ने कहा, ‘‘हां.’’

उधर से फिर आवाज आई, ‘अरे भैया, मैं परेश बोल रहा हूं. देखिए न, मैं जैसे ही घर आया, तो मेरी पत्नी ने बताया कि किसी मयंक का फोन आया था. मैं ने सोचा कि कौन हो सकता है? यही सोचतेसोचते फोन लगा दिया. ‘और भैया, कैसे हैं? आप तो आते ही नहीं हैं. आइए, घर पर और अपनी भाभी से भी मिल लीजिएगा. बहुत मजा आएगा मिल कर.’

‘‘सचमुच…’’

‘एक बार आ कर तो देखिए.’

मैं ने कहा कि जरूर आऊंगा और फोन कट गया. बहुत दिनों से छूटी दोस्ती अचानक उफान मारने लगी. बहुत सारी बातें थीं, जो फोन पर नहीं हो सकती थीं. बचपन के वे दिन जब हम परेश के भाईबहनों के साथ उस के घर में बैठ कर खेलते थे. उस की मां मुझे बहुत मानती थीं. मैं उन्हें ‘काकी’ कहता था. एक बार वे बहुत बीमार पड़ गई थीं. मैं अपने मामा की शादी में गांव चला गया था. वहां से महीनों बाद आया, तो पता चला कि काकी अस्पताल में भरती थीं. उन्हें आईसीयू में रखा गया था. वे किसी को पहचान नहीं पा रही थीं. आईसीयू से निकलते वक्त मैं उन के सामने खड़ा था. जब सिस्टर ने पूछा कि आप इन्हें पहचानते हैं, तो उन्होंने तपाक से मेरा नाम बता दिया था. उन के परिवार में खुशियां छा गई थीं. बचपन के वे दिन चलचित्र की तरह याद आ रहे थे. मैं परेश और उस के परिवार से मिलना चाहता था, खासकर परेश की पत्नी से. वह दिखने में कैसी होगी? मिलने पर खूब बातें करेंगे.

एक दिन सचमुच मैं ने उस के घर जाने का मन बना लिया. घर के पास पहुंच कर मैं ने फोन लगाया. फोन उस की पत्नी ने उठाया था. इस बार आवाज दोनों तरफ से साफ आ रही थी. उस की आवाज मेरे कानों में पड़ते ही मेरी सांसें जोरजोर से चलने लगीं. शरीर हलका होने लगा. आवाज कांपने और हकलाने लगी. पानी गटकने की जरूरत महसूस होने लगी. मैं ने फोन पर अपनेआप को ठीक करते हुए कहा, ‘‘हैलो, मैं मयंक…’’

उधर से परेश की पत्नी की आवाज आई, ‘अरे आप, हांहां पहचान गई, कहिए, कैसे हैं?’ मेरे मुंह से आवाज निकलने का नाम ही नहीं ले रही थी. किसी तरह गले को थूक से थोड़ा गीला किया और कहा, ‘‘हां, मैं मयंक. इधर ही आया था एक दोस्त के घर. सोचा, आया हूं तो मिलता चलूं. आप को भी देखना है कि कैसी लगती हैं?’’ मैं ने एक ही सांस में अपनी इच्छा जाहिर कर दी. उस ने तुरंत कहा, ‘हांहां, आप ठीक जगह पर हैं. मैदान के बगल में सड़क है, जो नदी तक जाती है. उसी पर आगे बढि़एगा. सामने एक मकान दिखेगा, उस में एक नारियल का पेड़ है. याद रखिएगा. आइए.’ ऐसा लग रहा था, जैसे मैं हवा में उड़ता जा रहा हूं और उड़ते हुए उस का घर खोज रहा हूं, जिस में एक नारियल का पेड़ है. जल्द ही घर मिल गया.

मैं ने घर के सामने पहुंच कर दरवाजा खटखटाया. एक खूबसूरत औरत बाहर निकली. मेरा स्वागत करते हुए वह मुझे घर के अंदर ले गई. थोड़ी औपचारिकता के बाद मैं ने इधरउधर गरदन हिलाई और पूछा, ‘‘परेश कहीं दिख नहीं रहा है… और काकी?’’

‘‘परेश आता ही होगा, काकी गांव गई हैं,’’ यह कहते हुए वह मेरे बगल में ही थोड़ा सट कर बैठ गई. इतना करीब कि हम दोनों की जांघें उस के जरा से हिलने से सटने लगी थीं.

मैं रोमांचित होने लगा. यहां आने से थोड़ी देर पहले मैं उसे ले कर जो सोच रहा था, वह सब हकीकत लगने लगा था. मैं उस से हंसहंस कर बातें कर रहा था कि इतने में दरवाजे पर दस्तक हुई. मैं जलभुन गया कि अचानक यह कबाब में हड्डी बनने कहां से आ गया. दरवाजा खुलते ही सामने एक अजनबी आदमी दिखा. चेहरे से दिखने में खुरदरा, उस के तेवर अच्छे नहीं लग रहे थे. मैं ने परेश की पत्नी की तरफ देखते हुए उस आदमी के बारे में पूछा, तो उस ने सपाट सा जवाब दिया, ‘‘यही तो है परेश,’’ और उस की एक कुटिल हंसी हवा में तैर गई.

मैं सकपका गया. यह परेश तो नहीं है. क्या मैं किसी अजनबी औरत के पास…

अभी मन ही मन सोच ही रहा था कि वह आदमी मेरे सामने आ गया और कमर से एक देशी कट्टा निकाल कर उस से खेलने लगा. फिर मुझे धमकाते हुए बोला, ‘‘तुम्हारी हर हरकत मेरे मोबाइल फोन में कैद हो गई है. अब तुम्हारी भलाई इसी में है कि बदनामी से पिंड छुड़ाना चाहते हो, तो तुम्हें 50 हजार रुपए देने होंगे. ‘‘तुम्हें कल तक के लिए मुहलत दी जाती है, वरना परसों ये तसवीरें तुम्हारे घर के आसपास बांट दी जाएंगी.’’

मुझे काटो तो खून नहीं. मैं ने हिम्मत कर के कहा, ‘‘मगर, यह तो परेश का घर है और यह उस की पत्नी है.’’ वे दोनों एकसाथ हंस पड़े. उस आदमी ने कहा, ‘‘गलत नंबर पर पड़ गए बरखुरदार. होगा तुम्हारे किसी दोस्त का नंबर, लेकिन अब यह नंबर मेरे पास है. यह मेरी पार्टनर लीना है और हम दोनों का यही धंधा है.’’ वह औरत जो अब तक मुझ से सट कर बैठी थी, मुझ से छिटक कर उस के बगल में जा खड़ी हुई. वह मुझे धमकाते हुए बोली, ‘‘किसी से कहना नहीं, चल फटाफट निकल यहां से और जल्दी से पैसों का इंतजाम कर.’’ मैं सहमा सा उस खूबसूरत ठगनी का मुंह देखता रह गया.

एनडीटीवी भी बना गोदी

ट्विटर पर एनडीटीवी के बिक जाने और गुजरात के उद्योगपति गौतम अडानी द्वारा खरीद लिए जाने पर बहुत रोनाधोना चल रहा है. एनडीटीवी उन चैनलों से अलग रहा है जो नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी की पिछले 8 सालों से अंधभक्ति कर रहे हैं. टीवी चैनल कड़वा सच नहीं दिखा रहे, जबकि सफेद झूठ को सफेद कपड़े पहना कर परोस रहे हैं और हजार आलोचनाओं के बाद भी टस से मस नहीं हो रहे.

मीडिया पर नियंत्रण आज ही नहीं, हमेशा से धर्म और सत्ता के लिए जरूरी रहा है. कोई राजा अपनी पोल खोले जाने वाले किसी शब्द को बोलने या लिखने नहीं देता था, कोई धर्म अपनी गलतियों को उजागर करने की इजाजत नहीं देता था.

लेकिन जब जनता ने चाहा है उस ने हर तरह की कट्टर और क्रूर सत्ता का विरोध किया है. कई बार सत्ताधारियों ने इसे समझ लिया है और समाज को ढील दे दी, कई बार नहीं समझा पर अपने को सुधार लिया. ज्यादातर धर्म या राजसत्ता जिन के हाथों में थीं उन्होंने तख्ता पलटने तक कोई छूट नहीं दी और आखिरकार जनता ने झूठा सुनने, बारबार सुनने के बाद भी झूठ को नकार दिया.

भारत में जो आज हो रहा है वह पिछले कई दशकों तक नहीं हुआ क्योंकि अखबार, आमतौर पर, आजादी से खुल कर सरकार की आलोचना करते रहे थे. धर्म के मामले में जरूर अखबारों ने अंधविश्वासों और धार्मिक लूट को नजरअंदाज किया. पहले जब टीवी आया वह सरकारी ही था. रेडियो भी सरकार ही चलाती थी और दोनों वही कहते थे जो सरकार कहती थी. लोकतंत्र फिर भी फलाफूला. जमीन पर कोई किसी को बोलने से रोक न पाया.

वर्ष 1947 से पहले भी कम ही अखबारों को अंगरेजों के कोप का निशाना बनना पड़ा पर अखबार निकालना बहुत ही कठिन था, सरकार की दखल इतनी थी कि ज्यादा कुछ कहने को न था. वर्ष 1947 के बाद अखबार आजाद हो गए पर आमतौर पर सूचनाएं सरकार से ही मिलती थीं. जवाहरलाल नेहरू ने कभी अखबारों को दुश्मन नहीं समझा. इंदिरा गांधी बहुतों से चिढ़ती या डरती थीं और लाइसैंस कोटे का इस्तेमाल करने लगी थीं. अखबारों की पहुंच बहुत नहीं थी पर उन का ध्यान था. वे आजाद थे पर उन्होंने सरकार के खिलाफ मोरचा खोला हो, ऐसा कभी नहीं लगा.

पर इस का मतलब यह नहीं कि देश में विरोध की आवाज बंद हो गर्ई है. सरकार को आज भी सांसदों, विधानसभाओं में, मंचों पर, सभाओं में विरोध झेलना पड़ रहा है, अपनी करतूतों का परदाफाश होते देखना पड़ रहा है. हां, ये बातें सब चैनलों पर नहीं बिखरतीं.

असल में यह जिम्मेदारी आम जनता की है कि वह अपनी जानने की स्वतंत्रता को बरकरार रखे. आमजन सरकार समर्थक टीवी चैनल ही देख रहे हैं. उन्होंने भक्तिभाव में बह कर अपनी जानने की स्वतंत्रता को गिरवी रख दिया और उन्हें एनडीटीवी के बिक जाने से कोई फर्क नहीं पड़ता. जिन्हें फर्क पड़ता है वे एक तो कम हैं, और दूसरे वे भी टीवी के अतिरित दूसरे स्रोतों से सच पता कर लेते हैं.

सवाल यह है कि उस जनता को क्या कहें जो सच और झूठ के बारे में भेद करना न जानती है न इच्छुक है. जो पैदा होते ही कट्टरपंथी रीतिरिवाजों, सोचविचार, मान्यताओं की फैलती दीवारों में खुद को कैद कर लेती है. स्वतंत्र और निर्भीक पत्रकारिता के विचार उस दीवार की खिड़कियों से जितना पहुंचते हैं वह भी उन्हें मंजूर नहीं. वे इन दीवारों के अंदर पनपती बदबू, बदइंतजामी को जीवनशैली मान लेते हैं. उन्हें फर्क नहीं पड़ता कि मीडिया आजाद है या किसी की गोद में बैठा है क्योंकि वे तो खुद में न आजाद हैं, न हिम्मत रखते हैं कि अपनी बनाई गोंद से बाहर निकलें.

क्राइम स्टोरी: रिस्क वाला इश्क

राजस्थान की खूबसूरत अरावली की पहाडि़यों से घिरे अजमेर जिले से मात्र 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है देराठू गांव. यह गांव सामरिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण मानी जाने वाली देश की प्रमुख नसीराबाद सैन्यछावनी के निकट नैशनल हाईवे के किनारे बसा है. करीब 10 हजार की आबादी वाला यह एक बड़ा और विकसित गांव है.

वैसे कहने को ही यह गांव है क्योंकि यहां रहने वाले लोगों की जीवनशैली आधुनिक है. गांव के लड़केलड़कियां नसीराबाद और अजमेर के स्कूलोंकालेजों में पढ़ने जाते हैं, जिस से उन का उठनाबैठना दिन भर शहरी क्षेत्र में ही रहता है. इसलिए इन के दोस्त भी ज्यादातर शहर के हैं.
इसी गांव का रहने वाला 22 वर्षीय पिंटू सिंह रावत एक गबरू जवान था, जो ग्रैजुएट होने के साथ ही आकर्षक व्यक्तित्व का था, जिस से वह दूसरों से अलग दिखाई देता था. उसे दोस्तों के साथ बाइक पर घूमना और अच्छे कपड़े पहनना बेहद पसंद था.

गांव की ज्यादातर लड़कियां नसीराबाद पढ़ने जाती थीं. इन्हीं में एक 16 वर्षीय पिंकी भी थी, जिस ने 10वीं के बाद पढ़ाई छोड़ दी थी. वह भले ही नाबालिग थी, लेकिन उसे दुनियादारी की अच्छी समझ हो चुकी थी.पिंटू सिंह उस के भाई सुरेंद्र का दोस्त होने के कारण उस के घर आताजाता था और अकसर उस के भाई सुरेंद्र के साथ बैठ कर शराब भी पीता था. पिंटू दरअसल पहले सुरेंद्र का दोस्त नहीं था, पर जब उस की नजर सुरेंद्र की छोटी बहन पर पड़ी तो उस ने उस से दोस्ती कर ली.
चोरीछिपे मिलने के बजाय इस दोस्ती के कारण अब उस की पहुंच पिंकी के घर तक हो गई थी. अब जब भी मौका मिलता, उस से मिलने उस के घर पहुंच जाता. उधर पढ़ाई छोड़ कर घर बैठी पिंकी को भी उस से मिलना अच्छा लगने लगा था.

प्यार की खनखनाहट पहुंची घर वालों के कानों तक

दोनों के बीच सब कुछ ठीकठाक चल रहा था. वहीं खर्चे पूरे करने के लिए पिंटू ने आगे पढ़ाई का विचार छोड़ कर अजमेर के इंडस्ट्रीयल एरिया माखूपुरा स्थित एक फैक्ट्री में नौकरी कर ली थी. पैसे आने लगे तो उस ने एक मोबाइल फोन खरीद कर प्रेमिका पिंकी को गिफ्ट कर दिया था, जिस से उस से बातचीत हो जाती थी और घर में उस के अकेले होने की सूचना भी मिल जाती थी. ये दोनों इस मौके का फायदा उठाने से नहीं चूकते थे.

अब तक पिंटू के कुछ दोस्तों को भी उन की प्रेम कहानी पता चल चुकी थी. इस के बाद उन के संबंधों की बात भी फैल कर जाट समाज के कुछ लोगों तक पहुंची तो पिंकी के घर वालों को समाज की बदनामी होने का उलाहना दे कर चेताया जाने लगा. घर वालों को पहले तो विश्वास ही नहीं हुआ, पर बाद में उन्होंने दोनों की निगरानी शुरू कर दी.

पिंटू इस सब से बेखबर था और आतेजाते सुरेंद्र से मिलने के बहाने उस के घर के चक्कर लगा लेता था. इसी दौरान घर वालों से नजरें बचा कर प्रेमी युगल की इशारों में ही बातें हो जाती थीं. इस से पिंकी के घर वालों को शक हो गया. इस के बाद वे गुस्से का घूंट पी कर रह गए. वे उस पर नजर रखने के साथ मौके की तलाश में जुट गए. लेकिन इस बात से पिंटू अनजान था.

शारदीय नवरात्रि चल रही थीं और गुजरात की तरह ही नसीराबाद तथा आसपास के गांवों मे भी गरबा डांस आदि के मंडप बन कर तैयार हो गए थे. वहां युवकयुवतियों द्वारा रात को गरबा खेला जाता. गरबा स्थलों पर खासी चहलपहल हो रही थी और देवी भक्ति से जुड़ा कार्यक्रम होने के कारण कोई विरोध नहीं करता.3 अक्तूबर, 2022 की रात थी. पिंटू सिंह रावत फैक्ट्री से घर आ कर खाना खाने के बाद गरबास्थल पर पहुंचा.रात के 10 बजे के आसपास गरबास्थल पर गांव भर के लड़केलड़कियां गरबा कर रहे थे. कुछ उन्हें देख कर आनंद ले रहे थे. परंतु उस समय गरबा देखने में पिंटू का मन नहीं लग रहा था. इस की एक वजह यह थी कि कई दिनों से वह पिंकी से मिल नहीं पाया था.

प्रेमिका ने फोन कर के बुलाया पिंटू को

करीब 11 बजे उस ने घर जाने के लिए कदम बढ़ाया तभी उस के मोबाइल की घंटी बजने लगी. उस ने बेमन से फोन रिसीव किया तो उस की आंखें खुशी से चमक उठीं. वह अपने दोस्त रवि के साथ बाइक से गांव की तरफ बढ़ चला. फोन उस की प्रेमिका पिंकी का था, जो उसे फोन देने के बहाने घर बुला रही थी.
गांव में हर तरफ सन्नाटा था. बस गरबा के डीजे की आवाज या फिर गांव के आवारा कुत्तों के भौकने की आवाजें सुनाई दे रही थीं, जिन को नजरअंदाज करते वह अपने जानेपहचाने घर अपने दोस्त सुरेंद्र के घर पहुंच गया. घर के पास पहुंचने पर उस ने अपने दोस्त रवि को वापस भेज दिया.

रवि के साथ वह जिस बाइक से पिंकी के घर गया था, वह भी किसी दोस्त की थी. घर के गेट पर खड़ी पिंकी ने उसे घर में बुलाते हुए बताया कि घर में कोई नहीं है तो वह अंदर चला गया और एकांत का फायदा उठाने के लिए उन्होंने कमरा अंदर से बंद कर लिया.लेकिन उस रात हुआ यह कि देर रात तक चलने वाला गरबा कार्यक्रम जल्दी खत्म हो गया. क्योंकि गांव में किसी युवक की मौत हो गई थी, जिस से गांव वाले उस रात जल्दी घर लौट गए. पिंकी के घर वाले भी जल्दी घर आ गए. पिंकी के पिता गिरधारी ने कपड़े बदलने के लिए कमरे का दरवाजा खटखटाया.

देर तक खटखटाने पर दरवाजा न खुला तो घर के अन्य लोग दरवाजे पर आ गए. काफी देर बाद पिंकी ने दरवाजा खोला और बोली, ‘‘नींद आ गई थी.’’‘‘ठीक है,’’ कह कर गिरधारी कपड़े ले कर वापस जाने लगा तभी उस की नजर पलंग के नीचे रखे मरदाना जूतों पर पड़ी तो उस का माथा ठनका. उस ने कमरे की तलाशी लेनी शुरू की तो कूलर के पीछे घबराहट में छिपा बैठा पिंटू सिंह दिख गया.
उसे देखते ही गिरधारी सारा माजरा समझ कर गुस्से से आगबबूला हो गया. इस के बाद उस ने पिंकी को दूसरे कमरे में बंद कर दिया और अपने भाई प्रधान और हनुमान जाट को फोन कर बुला लिया, जो खेत के कुएं पर बने कमरे में ही सोते थे.

तड़पातड़पा कर मारा पिंटू को

डर के मारे पिंटू के हाथपांव फूल गए. उसे भागने का कोई मौका नहीं मिला. उधर भाई प्रधान जाट और हनुमान जाट के आते ही गुस्से से पागल हो रहे पिंकी के घर वालों ने मिल कर पिंटू के मुंह में कपड़ा ठूस कर हाथपैर बांध दिए. इस के बाद उन्होंने उस की बेरहमी से पिटाई शुरू कर दी. इस दौरान पिंकी की मां ने भी इलैक्ट्रिक प्रैस पिंटू की पीठ पर सटा कर चमड़ी झुलसा दी.

पिंटू सिंह असहनीय दर्द से तड़पता रहा और सभी लोग उसे तरहतरह की यातनाएं देते रहे. मुंह में कपड़ा ठूंसे जाने के कारण उस की चीख भी बाहर नहीं निकल सकी. इस दौरान दूसरे कमरे में बंद पिंकी ने पिंटू को बचाने की कोशिश करते हुए उस के 2 दोस्तों तथा अपनी सहेली को फोन कर बताने की कोशिश
भी की.

लेकिन आधी से ज्यादा रात गुजर जाने के कारण किसी ने भी उस का फोन रिसीव नहीं किया. गुस्से से उबल रहे गिरधारी ने पिंकी की मां को भी पिंकी के कमरे में ही बंद कर दिया. इस के बाद गिरधारी, प्रधान, सुरेंद्र और हनुमान जाट चारों पिंटू को पीटते हुए अपना आपा खो बैठे. इस दौरान दरिंदगी की सारी हदें पार करते हुए आरोपियों ने पिंटू की कमर के नीचे के अंगों पर घातक प्रहार किए, जिस से असहनीय दर्द के कारण वह बेहोश हो गया तो उसे आरोपियों ने गली में फेंक दिया.

उधर रात का तीसरा प्रहर शुरू होने के बावजूद पिंटू के घर नहीं आने से घर वाले परेशान हो रहे थे. क्योंकि गरबा तो काफी देर पहले ही बंद हो चुका था. वे बारबार पिंटू को फोन करने लगे लेकिन दूसरी तरफ से कोई जवाब नहीं मिलने से घर वालों की चिंता बढ़ती जा रही थी.पिंटू के चचेरे भाई रामराज सिंह ने भी उसे अनेक बार फोन किया, पर कोई जवाब नहीं मिला तो गांव का एक चक्कर लगाने के लिए वह घर से बाहर निकला. कुछ सोच कर उस ने फिर एक बार पिंटू को फोन किया तो इस बार दूसरी तरफ से फोन रिसीव कर लिया गया.

गुस्से में उलाहना देते हुए रामराज बोला, ‘‘फोन क्यों नहीं उठा रहा था? रात खत्म होने वाली है कहां पर है तू?’’बोलतेबोलते वह रुक गया. दूसरी तरफ से पिंटू की कराहती आवाज सुन कर वह घबरा गया. पिंटू ने उसे बताया कि गांव के ही मिलने वालों ने बुरी तरह मारपीट कर उसे सड़क पर फेंक दिया है, उस की हालत बेहद खराब हो रही है. जल्द आ कर उसे ले जाए.यह सुन कर रामराज सिंह बाइक से फौरन बताए गए पते पर पहुंचा तो देखा कि गांव के गिरधारी जाट के घर से कुछ आगे गली के चबूतरे के पास बुरी तरह से घायल पिंटू मरणासन्न पड़ा था. उसे बेहोशी की हालत में ले कर रामराज सिंह और अन्य दोस्त उसे नसीराबाद राजकीय चिकित्सालय ले गए.

डाक्टर द्वारा पूछने पर उस ने बताया कि छत से गिर कर घायल हो गया है. चूंकि पिंटू की हालत गंभीर थी, इसलिए प्राथमिक उपचार के बाद उसे तत्काल अजमेर रेफर कर दिया. तब रामराज सिंह ने पिंटू के घर वालों को खबर कर बुला लिया और पिंटू सिंह को अजमेर के लिए रवाना हो गए.लेकिन पिंटू सिंह की आधे रास्ते पहुंच कर बीर घाटी में ही सांसें टूटने लगीं और अजमेर के रास्ते में थोड़ी देर के लिए होश में आने पर उस ने भाई रामराज सिंह को बताया, ‘‘मुझे पिंकी ने फोन वापस करने के बहाने घर पर बुलाया फिर उस के पापा गिरधारी ने मेरे मुंह में कपड़ा ठूंस दिया. इस के बाद गिरधारी, उस के बेटे सुरेंद्र, उस के भाई प्रधान और हनुमान जाट ने बेरहमी से मारपीट की है. साथ ही मेरे शरीर को गर्म सलाखों तथा इलैक्ट्रिक प्रैस से जगहजगह दागा गया है. अब मेरा बचना मुश्किल है.’’

मरतेमरते पिंटू रावत ने अपने भाई से कहा कि उस के साथ नाइंसाफी हुई है. धोखे से घर बुला कर मारा गया है. उसे इंसाफ जरूर दिलाना. कहतेकहते अस्पताल पहुंचने से पहले रास्ते में ही पिंटू सिंह ने दम तोड़ दिया. रोते हुए घर वाले पिंटू सिंह को उम्मीद के सहारे अजमेर के जवाहरलाल नेहरू राजकीचिकित्सालय ले गए, जहां पर मौजूद डाक्टर ने पिंटू सिंह रावत को चैकअप के बाद मृत घोषित कर दिया.
अगले दिन अजमेर अस्पताल में पोस्टमार्टम के बाद परिजन उस का शव अपने गांव ले आए तो भारी भीड़ उमड़ पड़ी. उधर जंगल की आग की तरह पिंटू हत्याकांड की खबर दिन उगने से पहले ही रावत समाज के लोगों तक पहुंच गई.जबकि मृतक पिंटू सिंह के चचेरे भाई ने गांव वालों के साथ जा कर सदर थाने में 4 आरोपियों गिरधारी जाट, उस के बेटे सुरेंद्र तथा भाई प्रधान और हनुमान जाट के खिलाफ घर में बुला कर बेरहमी से मारपीट कर कत्ल करने की नामजद रिपोर्ट लिखा दी.

इसी बीच जब मृतक पिंटू रावत की शवयात्रा निकाली गई तो उस में रावत महासभा के पदाधिकारियों के साथ सैकड़ों सदस्य मौजूद रहे. इस दौरान रावत समाज के लोगों में रोष व्याप्त था. महासभा के नेताओं द्वारा सभी नामजद आरोपियों की गिरफ्तारी की मांग को ले कर सदर थाने का घेराव किया गया.
भारी दबाव के बाद पुलिस ने नामजद आरोपियों में से 3 आरोपियों गिरधारी जाट, प्रधान जाट तथा सुरेंद्र जाट को गिरफ्तार कर लिया. लेकिन हत्याकांड के चौथे आरोपी हनुमान जाट को पुलिस द्वारा क्लीन चिट देते हुए हत्याकांड से बाहर ही रखा. पुलिस ने उसे गिरफ्तार नहीं किया.

इस पर आक्रोशित हो कर रावत महासभा के प्रदेशाध्यक्ष डा. शैतान सिंह रावत ने अन्य पदाधिकारियों के साथ कलेक्टर अंशदीप सिंह तथा एसपी चूनाराम जाट को ज्ञापन दे कर चौथे आरोपी हनुमान जाट को भी गिरफ्तार करने की मांग की.इसी मांग को ले कर उन्होंने अन्य सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ अजमेर रेंज के आईजी रूपिंदर सिंह से मुलाकात कर पुलिस जांच में पक्षपात करने का आरोप लगाया. उन्होंने मामले की जांच सदर थाने के एसएचओ हेमराज सिंह गुर्जर के बजाए अन्य किसी पुलिस अधिकारी से कराए जाने की गुजारिश की.

इस पर आश्वासन देते हुए आईजी रूपिंदर सिंह ने पिंटू हत्याकांड की जांच टोंक के नवनियुक्त एडिशनल एसपी भवानी सिंह को तुरंत स्थानांतरित कर दी.हनुमान जाट अपने पिता की मृत्यु के बाद अनुकंपा के आधार पर जलदाय विभाग के अजमेर कार्यालय में कार्यरत है. शुरुआती पुलिस जांच में सामने आया कि गिरधारी जाट, उस के भाई प्रधान तथा बेटा सुरेंद्र जाट ने मिल कर पिंटू की हत्या की थी. पुलिस का कहना है कि वह जांच कर रही है. अगर हनुमान इस हत्याकांड में किसी तरह से शामिल रहा होगा तो उसे जरूर गिरफ्तार किया जाएगा.

जांच में यह भी पता चला कि आरोपी प्रधान जाट आपराधिक प्रवृत्ति का है. करीब डेढ़ साल पहले नकली आरटीओ बन कर वाहन चालकों से वसूली कर रहा था, तभी सूचना मिलने पर उसे अजमेर पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था.सामाजिक स्तर पर गिरधारी जाट का परिवार गांव के संपन्न परिवारों में गिना जाता है जबकि पिंटू सिंह रावत गरीब परिवार से है. मृतक पिंटू सिंह के परिवार में छोटा भाई पढ़ रहा है. 2 छोटी बहनें हैं, जिन का बचपन में ही बाल विवाह हो चुका है. मां मजदूरी करती है. बाप ज्यादातर बेरोजगार रहता है.
कुल मिला कर घर का खर्च पिंटू सिंह ही चला रहा था. उस के निधन से पीडि़त परिवार के सामने आर्थिक संकट खड़ा हो गया है.

देराठूं गांव में जाटों की आबादी 60 प्रतिशत से ज्यादा है जबकि रावत बिरादरी की आबादी बहुत कम है. इसलिए उन का वहां दबदबा रहता है.

नाबालिग पिंकी के प्यार में पिंटू सिंह को बेशक अपनी जान गंवानी पड़ी, लेकिन हकीकत तो यही है उम्र के नाजुक दौर से गुजर रहे युवाओं को मिली ज्यादा आजादी किसी से भी गुनाह करवा सकती है, जिस का अंजाम बेहद खौफनाक हो सकता है.

लेखक-दिलीप राय

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मोहल्ले के कई लोग अचरज भरी निगाहों से उस कमरे को देख रहे थे जहां पर कोई नया किराएदार रहने आ रहा था और जिस का सामान उस छोटे से कमरे में उतर रहा था. सामान इतना ही था कि एक सवारी वाले आटोरिशा में पूरी तरह से आ गया था. सब यही सोच रहे थे और आपस में इसी तरह की बातें कर रहे थे कि तभी एक साइकिल रिक्शा से एक लड़की उतरी जो अपने पैरों से चल नहीं सकती थी, इसीलिए बैसाखियों के सहारे चल कर उस कमरे की तरफ जा रही थी.

अब महल्ले की औरतें आपस में कानाफूसी करने लगीं… ‘क्या इस घर में यह अकेले रहेगी?’, ‘कौन है यह?’, ‘कहां से आई है?’ वगैरह. कुछ समय बाद उस लड़की ने उन सवालों के जवाब खुद ही दे दिए, जब वह अपने पड़ोस में रहने वाली एक औरत से एक जग पानी देने की गुजारिश करने उस के घर गई.

घर में घुसते ही शिष्टाचार के साथ उस ने नमस्ते की और अपना परिचय देते हुए बोली, ‘‘मेरा नाम दिव्यांशी है और मैं पास के कमरे में रहने आई हूं. क्या मुझे पीने के लिए एक जग पानी मिल सकता है? वैसे, नल में पानी कब आता है? मैं उस हिसाब से अपना पानी भर लूंगी.’’

‘‘अरे आओआओ दिव्यांशी, मेरा नाम सुमित्रा है और पानी शाम को 5 बजे और सुबह 6 बजे आता है. कहां से आई हो और यहां क्या करती हो?’’ पानी देते हुए सुमित्रा ने पूछा. ‘‘आंटी, आप मेरे कमरे पर आइए, तब हम आराम से बैठ कर बातें करेंगे. अभी मुझे बड़ी जोरों की भूख लगी है. वैसे, मैं शहर के नामी होटल रामभरोसे में रिसैप्शनिस्ट का काम करती हूं, जहां मेरा ड्यूटी का समय सुबह 6 बजे से है. मेरा काम दोहपर के 3 बजे तक खत्म हो जाता है.’’

बातचीत में सुमित्रा को दिव्यांशी अच्छी लगी और उस के परिवार के बारे में ज्यादा जानने की उत्सुकता में शाम को पानी आने की सूचना ले कर वह दिव्यांशी के कमरे पर पहुंच गई. दिव्यांशी अब अपने बारे में बताने लगी, ‘‘आज से तकरीबन 16 साल पहले मैं अपने मातापिता के साथ मोटरसाइकिल से कहीं जा रही थी कि तभी एक ट्रक से भीषण टक्कर होने से मेरे मातापिता मौके पर ही मर गए थे.

‘‘चूंकि मैं दूर छिटक गई थी इसलिए जान तो बच गई, पर पास से तेज रफ्तार से गुजरती बाइक मेरे दोनों पैरों पर से गुजर गई और मेरे दोनों पैर काटने पड़े. तभी से चाचाचाची ने अपने पास रखा और पढ़ायालिखाया.

‘‘उन के कोई बच्चा नहीं है. इस वजह से भी वे मुझ से बहुत स्नेह रखते हैं. चाचा की माली हालत ज्यादा अच्छी नहीं है, फिर भी वे मेरी नौकरी करने के खिलाफ हैं, पर मैं अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती हूं, इसीलिए शहर आ कर मैं ने इस नौकरी को स्वीकार कर लिया.

‘‘इस होटल की नौकरी के साथसाथ मैं सभी प्रतियोगी परीक्षाओं में हिस्सा लेती हूं ताकि कोई सरकारी नौकरी लग जाए. मैं अपनी योग्यता पर विश्वास रखती हूं इसी कारण किसी तरह की कोचिंग नहीं लेती हूं, बल्कि 3 बजे होटल से आ कर बच्चों को ट्यूशन पढ़ाती हूं. इस से मेरी प्रतियोगिता की तैयारी भी हो जाती है और कुछ कमाई भी.

‘‘इस महल्ले में कोई बच्चा अगर ट्यूशन लेना चाहता हो तो उन्हें मेरे पास भेजिए न भाभी,’’ दिव्यांशी ने अपनेपन से सुमित्रा से कहा. ‘‘जरूर. मैं अपने सभी मिलने वालों से कहूंगी…’’ सुमित्रा ने पूछा, ‘‘और तुम अपने खाने का क्या करती हो?’’ ‘‘सुबह का नाश्ता और दोपहर का खाना तो मैं होटल की पैंट्री में ही खा लेती हूं और शाम को इस आटोमैटिक हौट प्लेट पर दालचावल या खिचड़ी जैसी चीजें पका लेती हूं.’’

यह सुन कर सुमित्रा मन ही मन दिव्यांशी की हिम्मत की तारीफ कर रही थी. तकरीबन आधा घंटे तक दिव्यांशी के साथ बैठने के बाद वह अपने घर वापस आ गई. सुबह साढ़े 5 बजे वही साइकिल रिक्शा वाला जो दिव्यांशी को छोड़ने आया था, लेने आ गया. साफ था, दिव्यांशी ने उस का महीना बांध कर लाने व छोड़ने के लिए लगा लिया था.

सुमित्रा ने भी अपना काम बखूबी निभाया और महल्ले में सभी को दिव्यांशी के बारे में बताया. तकरीबन सभी ने उस की हिम्मत की तारीफ की. हर कोई चाहता था कि कैसे न कैसे कर के उस की मदद की जाए.

कई घरों के बच्चे दिव्यांशी के पास ट्यूशन के लिए आने लगे थे. दिव्यांशी को इस महल्ले में आए अभी पूरा एक महीना होने में 2-3 दिन बचे थे कि एक दिन महल्ले वालों ने देखा कि दिव्यांशी किसी लड़के के साथ मोटरसाइकिल पर आ रही है.

सभी को यह जानने की इच्छा हुई कि वह लड़का कौन है. पूछने पर पता चला कि उस का नाम रामाधार है और उसी के होटल में कुक है और आज ही उस ने यह सैकंड हैंड बाइक खरीदी है. 1-2 दिन के बाद ट्यूशन खत्म होने पर दिव्यांशी ने एक बच्चे को भेज कर महल्ले की 4-5 औरतों को अपने कमरे में बुलवा लिया और कहने लगी, ‘‘मैं इतने दिनों से आप लोगों के साथ रह रही हूं इसलिए आप लोगों के साथ एक बात करना चाहती हूं.

रामाधार हमारे होटल में कुक है और वह चाहता है कि मैं रोज उस के साथ औफिस जाऊं. ‘‘वैसे भी रिक्शे वाला 2,000 रुपए महीना लेता है. अगर आप लोगों को कोई एतराज न हो तो मैं उस के साथ आनाजाना कर लूं?’’

‘‘जब तुम पूछ कर सभी के सामने आनाजाना कर रही हो तो हमें क्या दिक्कत हो सकती है और पिछले एक महीने में इतना तो हम तुम्हें समझ ही गए हैं कि तुम कोई गलत काम कर ही नहीं सकती. तुम निश्चिंत हो कर रामाधार के साथ आजा सकती हो, ‘‘सुमित्रा बाकी सब औरतों की तरफ देख कर बोली. सभी औरतों ने अपनी सहमति दे दी.

रामाधार 26-27 साल का नौजवान था. उस की कदकाठी अच्छी थी. फूड और टैक्नोलौजी का कोर्स करने के बाद दिव्यांशी के होटल में ही वह कुक का काम करता था. वह दिव्यांशी को लेने व छोड़ने जरूर आता था, पर कभी भी दिव्यांशी के कमरे के अंदर नहीं गया था.

अब तक 3 महीने गुजर चुके थे. ट्यूशन पढ़ रहे सभी बच्चों के मासिक टैस्ट हो चुके थे और तकरीबन सभी बच्चों ने कहीं न कहीं प्रगति की थी. इस कारण दिव्यांशी का सम्मान और ज्यादा बढ़ गया था. एक दिन अचानक दिव्यांशी ने फिर से सभी औरतों को अपने घर बुलवा लिया. इस बार मामला कुछ गंभीर लग रहा था.

सुमित्रा की तरफ देख कर दिव्यांशी बोली, ‘‘मैं ने आप सभी में अपना परिवार देखा है, आप लोगों से जो प्यार और इज्जत मिली है, उसी के आधार पर मैं आप लोगों से एक बात की इजाजत और चाहती हूं. मैं और रामाधार शादी करना चाहते हैं. ‘‘दरअसल, रामाधार को दुबई में दूसरी नौकरी मिल गई है और उसे अगले 3 महीनों में कागजी कार्यवाही कर के वहां नौकरी जौइन करनी है. वहां जाने के बाद वह वहां पर मेरे लिए भी जौब की जुगाड़ कर लेगा.

जाने से पहले वह शादी कर के जाना चाहता है, ताकि पतिपत्नी के रूप में हमें एक ही संस्थान में काम मिल जाए. ‘‘मैं ने अपने चाचा को भी बता दिया है. वे भी इस रिश्ते से सहमत हैं, पर यहां आने में नाकाम हैं, क्योंकि उन के साले का गंभीर ऐक्सिडैंट हो गया है.’’

सभी औरतें एकदूसरे की तरफ देखने लगीं. 16 नंबर मकान में रहने वाली कमला ताई दिव्यांशी की हमदर्द बन गई थीं. उन की आंखों में सवाल देख दिव्यांशी बोली, ‘‘ताईजी, रामाधार की कहानी भी मेरे ही जैसी है. उस के मातापिता की मौत बचपन में ही हो गई थी. कोई और रिश्तेदार न होने के कारण पड़ोसियों ने उसे अनाथ आश्रम में दे दिया था. वहीं पर रह कर उस ने पढ़ाई की और आज इस लायक बना.’’

अब तो सभी के मन में रामाधार के प्रति हमदर्दी के भाव उमड़ पड़े. ‘‘शादी कब करने की सोच रहे हो,’’ 10 नंबर वाली कल्पना भाभी ने पूछा. ‘‘इसी हफ्ते शादी हो जाएगी तो अच्छा होगा और कागजी कार्यवाही करने में भी आसानी होगी.’

‘‘इतनी जल्दी तैयारी कैसे होगी?’’ सुमित्रा ने सवाल किया. ‘‘तैयारी क्या करनी है, हम ने सोचा है कि हम आर्य समाज मंदिर में शादी करेंगे और शाम का खाना रामभरोसे होटल में रख कर आशीर्वाद समारोह आयोजित कर लेंगे.

दूसरे दिन सुबह रामाधार अपनी कागजी कार्यवाही के लिए दिल्ली चला जाएगा और 10-12 दिन बाद जब वापस आएगा तो मैं उस के घर चली जाऊंगी. ‘‘मैं आप लोगों से अनुरोध करूंगी कि आप मुझे ट्यूशन की फीस अगले 3 महीने की एडवांस में दे दें.

सामान के बदले में मुझे कैश ही दें क्योंकि सामान तो मैं साथ ले जा नहीं पाऊंगी.’’ सभी को दिव्यांशी की भविष्य के प्रति गंभीरता पसंद आई. 11 नंबर मकान में रहने वाली चंदा चाची उत्सुकतावश बोली, ‘‘बिना जेवर के दुलहन अच्छी नहीं लगती इसलिए शादी के दिन मैं अपना नया वाला सोने का सैट, जो अपनी बेटी की शादी के लिए बनवाया है, उस दिन दिव्यांशी को पहना दूंगी.’’

‘‘जी चाचीजी, रिसैप्शन के बाद मैं वापस कर दूंगी,’’ दिव्यांशी बोली. अब तो होड़ मच गई. कोई अंगूठी, तो कोई पायल, कोई चैन, तो कोई कंगन दिव्यांशी को देने को तैयार हो गया. सुधा चाची ने अपनी लड़की का नया लहंगा दे दिया. कुल 50-55 घरों वाले इस महल्ले में कन्यादान करने वालों की भी होड़ लग गई.

कोई 5,000 रुपए दे रहा था, तो कोई 2,100 रुपए. शादी के दिन महल्ले में उत्सव जैसा माहौल था. सभी छुट्टी ले कर घर पर ही थे. अपनेअपने वादे के मुताबिक सभी ने अपने गहनेकपड़े दिव्यांशी को दे दिए थे.

शादी दोपहर 12 बजे होनी थी. इसी वजह से दिव्यांशी को सुबह 9 बजे ब्यूटीपार्लर पहुंचना था और वहीं से आर्य समाज मंदिर. लेकिन सब से बड़ा सवाल यह था कि दिव्यांशी को ब्यूटीपार्लर ले कर जाएगा कौन?

इतनी सुबह उस के साथ जाने का मतलब था कि खुद को बिना तैयार किए शादी में जाना, इसलिए यह निश्चित हुआ कि सुमित्रा के पति दिव्यांशी को अपने साथ ले कर जाएंगे और ब्यूटीपार्लर की जगह पर छोड़ देंगे. जैसे ही पार्लर का काम पूरा हो जाएगा, दिव्यांशी फोन कर के उन्हें बुलवा लेगी और वहीं से सभी आर्य समाज मंदिर चले जाएंगे.

तय समय के मुताबिक ही सारा कार्यक्रम शुरू हो गया. सुबह साढ़े 8 बजे सुमित्रा के पति अपनी कार ले कर दिव्यांशी के दरवाजे पर पहुंच गए और उस के बताए ब्यूटीपार्लर पर सारे सामान के साथ ले गए.

पार्लर अभीअभी खुला ही था. वह उसे पार्लर पर छोड़ कर चले गए. अब सभी तैयार होने लगे. चूंकि रिसैप्शन शाम को होना था इसीलिए तकरीबन सभी घरों में या तो सिर्फ नाश्ता बना या खिचड़ी. तकरीबन साढ़े 11 बजे सुमित्रा सपरिवार दिव्यांशी को लेने के लिए पार्लर पहुंची, पर दिव्यांशी तो वहां थी ही नहीं.

ज्यादा जानकारी लेने पर पता चला कि पार्लर तो साढ़े 10 बजे खुलता है. 9 बजे तो सफाई वाला आता है जो पार्लर के कर्मचारियों के आने के बाद चला जाता है. आज सुबह 9 बजे किसी का भी किसी तरह का अपौइंटमैंट नहीं था.

सुमित्रा को चक्कर आने लगे. वह किसी तरह चल कर कार तक पहुंची और पति को सारी बात बताई. पति तुरंत पार्लर के अंदर गए और उन के अनुरोध पर उस सफाई वाले को बुलवाया गया, ताकि कुछ पता चल सके. सफाई वाले ने जो बताया, उसे सुन कर सभी के होश उड़ गए.

उस ने बताया, ‘‘सुबह जो लड़की पार्लर में आई थी, उस ने बताया था कि वह एक नाटक में एक विकलांग भिखारी का रोल कर रही है. उसे हेयर कट और मेकअप कराना है. ‘‘तब मैं ने बताया कि पार्लर तो सुबह साढ़े 10 बजे खुलेगा, तो वह कहने लगी कि तब तक मेरा पैर फालतू ही मुड़ा रहेगा, मैं वाशरूम में जा कर पैरों में लगी इलास्टिक को निकाल लूं क्या? जब तक पार्लर खुलेगा, मैं नाश्ता कर के आ जाऊंगी.

‘‘मैं ने कहा ठीक है. देखिए, इस कोने में उस की बैसाखियां और निकला हुआ इलास्टिक रखा है.’’ सभी ने देखा, बैसाखियों के साथ एक छोटी सी थैली रखी थी. इस में चौड़े वाले 2 इलास्टिक और दिव्यांशी के फोन का सिम कार्ड रखा हुआ था. आर्य समाज मंदिर में सभी लोग अपनेआप को ठगा सा महसूस करते हुए एकदूसरे की तरफ देख रहे थे.

विंटर स्पेशल : बाजरे से बनाएं ये 4 टेस्टी डिश

बाजरा उत्पादन में राजस्थान अग्रणी राज्य है. बाजरा उत्पादन के लिए शुष्क व उष्ण जलवायु की जरूरत होती है. राजस्थान की जलवायु बाजरे की खेती के लिए ठीक है. बाजरा खाने में स्वादिष्ठ और पौष्टिक होता है. इस में लौह तत्त्व, प्रोटीन, कैल्शियम व कार्बोहाइडे्रट की अच्छी मात्रा पाई जाती है. प्रति 100 ग्राम बाजरे में तकरीबन 361 किलो कैलोरी ऊर्जा, 68 ग्राम कार्बोहाइडे्रट, 12 ग्राम प्रोटीन, 8 मिलीग्राम लौह तत्त्व, 5 मिलीग्राम वसा व 42 मिलीग्राम कैल्शियम जैसे पोषक तत्त्व पाए जाते हैं.

अगर बाजरे के व्यंजन घरों व बाजार में मिलने लग जाएं, तो पोषण के लिहाज से इसे आहार में मुख्य स्थान दिया जा सकता है, क्योंकि बाजरे से कुछ ही व्यंजन बनाए जाते हैं, जैसे बाजरे की रोटी, खिचड़ी, राबड़ी व चूरमा आदि, जो ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं द्वारा बनाए जाते हैं, जबकि शहरों में इन विशेष व्यंजनों के बनाने के तरीके की कमी के चलते बाजरे के व्यंजन ज्यादा प्रचलित नहीं हैं.

पोषण के साथसाथ गुणवत्ता भी भरपूर आमतौर पर घरों में जिन व्यंजनों को अन्य अनाज (गेहूं) से बनाने का प्रचलन है, अगर उस की जगह पर बाजरे का इस्तेमाल किया जाए तो व्यंजन के पोषक तत्त्व भी बढ़ जाएंगे और कुपोषण की स्थिति भी नहीं आएगी. यहां कुछ इस तरह के व्यंजन बताए जा रहे हैं, जिन में मैदा, सूजी, बेसन व गेहूं के आटे के बजाय बाजरे का उपयोग किया जाएगा व उस व्यंजन के स्वाद, रूप व गुण में कोई फर्क नहीं आता, बल्कि उस के पोषक मूल्य बढ़ जाते हैं. महिलाओं व बच्चों में पाई जाने वाली खून की कमी पर कंट्रोल करने के नजरिए से इस प्रोजैक्ट के द्वारा बाजरे की नई किस्म के क्लस्टर प्रदर्शन भी किसानों को दिए गए हैं.

बाजरे से बनाए जाने वाले कुछ खास व्यंजनों की विधि इस प्रकार है:

1 बाजरा बिसकुट

सामग्री :

बाजरे का आटा, पिसी चीनी, रिफाइंड तेल/घी, दूध, बेकिंग पाउडर, अमोनिया पाउडर, इलायची, वनिला एसैंस 3-4 बूंदें. बाजरा बिसकुट का पोषक मूल्य : ऊर्जा 346.25 कैलोरी, प्रोटीन 4.07 ग्राम, लौह तत्त्व (आयरन) 3 मिलीग्राम.

विधि :

बाजरे के आटे में बेकिंग पाउडर डाल कर अच्छी तरह छानें.  तेल या घी ले कर उस में पिसी चीनी मिला कर फेंटें. जब तक कि चीनी पिघल कर मिक्स न हो जाए तब तक.

घी व चीनी के तैयार मिश्रण में छना हुआ बाजरे का आटा मिलाएं. वनिला एसैंस व अमोनिया पाउडर डाल कर दूध की मदद से आटा गूंदें.

मोटाई रखते हुए बिसकुट कटर से अंडाकार, गोल या चौकोर आकार में काटें व चिकनाई लगी ट्रे में बिसकुट रखें.

ओवन में 190 डिगरी सैंटीग्रेड तापमान पर 14-15 मिनट तक बेक करें.

2 बाजरे का केक

सामग्री :

बाजरे का आटा, मैदा, चीनी, मिल्क पाउडर, घी/तेल, वनिला एसैंस 5-6 बूंदें, बेकिंग पाउडर, सोडा. बाजरे के केक का पोषक मूल्य : ऊर्जा 685.2 कैलोरी, प्रोटीन 14.52 ग्राम, लौह तत्त्व (आयरन) 3.41 मिलीग्राम.

विधि : 

मैदा, बाजरे का आटा, मिल्क पाउडर, बेकिंग पाउडर व सोडा को मिला कर एकसाथ अच्छी तरह छानें.  घी या तेल में चीनी मिला कर अच्छे से फेंटें, ताकि चीनी व घी एकसार हो जाएं, फिर आटे का मिश्रण मिलाएं. द्य घोल को चम्मच से गिराने पर रिबिन 1 बैल्ट जैसी परत बने तो घोल तैयार है.

केक के टिन में चिकनाई लगा कर घोल उस में डालें व पहले से गरम किए ओवन में 170 डिगरी सैंटीग्रेड तापमान पर 40 मिनट तक बेक करें.

केक को ठंडा कर के ही परोसें.

3 बाजरे की मठरी

सामग्री :

बाजरे का आटा, मैदा, हरी मेथी के पत्ते, अजवाइन, नमक स्वाद के मुताबिक, तेल तलने के लिए. बाजरे की मठरी का पोषक मूल्य : ऊर्जा 390.25 कैलोरी, प्रोटीन 1.6 ग्राम, लौह तत्त्व (आयरन) 3.5 मिलीग्राम.

विधि : 

बाजरे का आटा व मैदा को छान कर उस में नमक, हरी मेथी के पत्ते व अजवाइन को मिला लें. आटे में थोड़े तेल का मौयन डाल कर पानी से सख्त आटा गूंदें.

आटे के छोटेछोटे गोले बना कर पतली रोटी बेल कर चाकू से मठरी काट लें. द्य तेल गरम कर कम आंच पर मठरियों को सुनहरा होने तक तलें. ठंडा कर मठरियों को एयर टाइट डब्बों में रखें.

4 बाजरे का खाखरा

सामग्री :

बाजरे का आटा, गेहूं का आटा, नमक व लाल मिर्च स्वादानुसार, सूखी हरी मेथी के पत्ते. बाजरे के खाखरा का पोषक मूल्य : ऊर्जा 105.3 कैलोरी, प्रोटीन 3.55 ग्राम, लौह तत्त्व (आयरन) 2 मिलीग्राम.

विधि :

बाजरे का आटा व गेहूं के आटे को मिला कर छान लें.

आटे में लाल मिर्च, नमक व हरी मेथी के पत्ते मिला कर सख्त आटा गूंद लें.  आटे का छोटा गोला बना कर पतली रोटी बेल लें.

अब तवे पर इस रोटी को कम आंच पर कपड़े के दबाव से करारी सेंकें. और ठंडा होने पर एयर टाइट डब्बे में पैक कर लें.

इसलिए ज्यादा पॉपुलर नहीं है बाजरा

बाजरे के अधिक प्रचलित न होने की खास वजह इस में पाई जाने वाली ज्यादा वसा है. बाजरे का आटा व इस से बने उत्पाद जल्दी खराब हो जाते हैं.

बाजरे का आटा लंबे समय तक सुरक्षित रखने के लिए ब्लांचिंग तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है. इस तकनीक में बाजरे को कपड़े की पोटली में बांध कर 1-2 मिनट तक उबलते हुए पानी में डुबोएं व तत्काल ठंडे पानी में डुबो कर निकालें. पानी पूरा निकालने के बाद उसे धूप में सुखा कर काम में लें. इस प्रक्रिया से उच्च ताप के कारण एंजाइमों के बुरे असर रुक जाते हैं और बाजरे के आटे को लंबे समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है.

अंकुरण द्वारा भी बाजरे को अधिक पौष्टिक, स्वादिष्ठ व पाचक बनाया जा सकता है. बाजरे को अंकुरित कर के फ्रिज में 4-5 दिन तक सुरक्षित भी रखा जा सकता है. बाजरे के अलगअलग व्यंजन बना कर उन्हें खाने में शामिल कर लौह तत्त्व की कमी को दूर किया जा सकता है.

लेखक-राजाराम बुनकर, प्रतिभा, विनय कुमार

औषधीय व सुगंधित पौधों की जैविक विधि से खेती

पौधों की जैविक विधि से खेती सभ्यता की शुरुआत से ही इनसान दूसरे जीवों की तरह पौधों का इस्तेमाल भोजन व औषधि के रूप में करता चला आ रहा है. आज भी ज्यादातर औषधियां जंगलों से उन के प्राकृतिक उत्पादन क्षेत्र से ही लाई जा रही हैं. इस का मुख्य कारण तो उन का आसानी से उपलब्ध होना है, पर इस से भी बड़ा कारण जंगल के प्राकृतिक वातावरण में उगने के चलते इन पौधों की अच्छी क्वालिटी का होना है.

वर्तमान में आयुर्वेदिक हर्बल दवाओं का इस्तेमाल तेजी से बढ़ा है, जिस से इन का जंगलों से दोहन और भी बढ़ रहा है और मांग को पूरा करने के लिए कई औषधीय व सुगंधीय पौधों की खेती भी की जा रही है. चूंकि औषधियां रोगों को ठीक करने के लिए व सुगंधीय फसलों में से सुगंधित पदार्थ निकालने में काम आते हैं, इसलिए उत्पादन ज्यादा करने के बजाय अच्छी क्वालिटी के लिए उत्पादन करना जरूरी व बाजार की मांग के मुताबिक है. अच्छी क्वालिटी हासिल करने के लिए जैविक या प्राकृतिक तरीके से उत्पादन ही एकमात्र तरीका है,

क्योंकि :

* प्राकृतिक या जैविक तरीके से उत्पादन करने पर औषधीय पौधों में क्रियाशील तत्त्व व सुगंधित पौधों में तेल की मात्रा में बढ़ोतरी होती है, जबकि रासायनिक उर्वरकों जैसे यूरिया, डीएपी आदि के इस्तेमाल से उन की क्वालिटी घटती जाती है.

* रासायनिक कीटनाशकों के इस्तेमाल से औषधि नहीं जहर बनता है यानी कीटनाशकों के अवशेष रोगी के रोग को ठीक करने के बजाय उसे और ज्यादा बढ़ा सकते हैं, इसलिए सिर्फ प्राकृतिक तरीकों से रोग, कीट नियंत्रण ही औषधीय पौधों की खेती में न केवल बाजार के लिए जरूरी है, बल्कि यह एक सामाजिक जवाबदेही भी है.

* इस के अलावा कई दूसरी तरह की हानियां, जो रासायनिक खेती से जुड़ी हैं, वे सभी इन फसलों की खेती में भी होती हैं. जैसे लागत का बढ़ना, भूमि की उर्वरता का कम होना, कीटनाशकों में प्रतिरोधकता पैदा होना और गांवखेत में प्रदूषण का बढ़ना आदि. लिहाजा, उचित यही है कि औषधीय और सुगंधीय पौधों की जैविक खेती की जाए. जैविक खेती जरूरी भी और मजबूरी भी पर्यावरण व भूमि को बचाने के लिए और उपभोक्ता की सेहत के लिए जैविक खेती बेहद जरूरी है. कर्ज के बोझ को कम करने व कम होते भूजल से ही खेती करने के लिए जैविक खेती मजबूरी है.

भविष्य में पैट्रोलियम पदार्थों के निरंतर बढ़ते दाम व घटती उपलब्धता से उवर्रक व कीटनाशकों की उपलब्धता (पैट्रोलियम से ही बनते हैं) ही खतरे में पड़ जाएगी, तब जैविक खेती ही मुमकिन होगी, इसलिए वर्तमान या भविष्य की जरूरत या मजबूरी को समझ कर जैविक खेती करना ही एकमात्र रास्ता है. औषधीय व सुगंधीय पौधों की जैविक खेती के सुझाव

* औषधीय और सुगंधित पौधों की खेती सदैव जंगल जैसे वातावरण बना कर ही की जाए यानी खेत में कुछ पेड़, कुछ झाडि़यां, कुछ लताएं व कुछ शाकीय फसलें हों. इस में मृदा की उर्वरता, सूरज की रोशनी, मृदा में नमी में जो संतुलन होगा, उस से इन की क्वालिटी बढ़ेगी. दूसरे, कई फसलों के होने से बाजार में मांग व पूर्ति में संतुलन हो सकेगा, जिस से किसान को हानि होने की संभावना भी कम होगी.

* वर्मी कंपोस्ट या केंचुआ खाद का इस्तेमाल 10-12 टन प्रति हेक्टेयर की दर से हर साल जरूर किया जाना चाहिए, जिस में ज्यादा मात्रा निराईगुड़ाई के समय दी जानी चाहिए. इस से न केवल अच्छा उत्पादन हासिल होगा, इस के साथ ही क्वालिटी भी बहुत अच्छी होगी, किंतु वर्मी कंपोस्ट खुद के खेत अथवा ग्राम स्तर पर बना कर नमीयुक्त अवस्था में छायादार स्थान पर भंडारण कर 15-20 दिन में इस्तेमाल कर लेना चाहिए. प्लास्टिक के बोरों में पैक सूखा या 15 दिन से ज्यादा पुराने वर्मी कंपोस्ट के गुण बहुत कम हो जाते हैं.

* रोग व कीट नियंत्रण के लिए नीम+गोमूत्र का छिड़काव 15-20 दिन के अंतराल पर करते रहना चाहिए. * भूमि के रोग व कीटों को नष्ट करने के लिए नीम की खली या पिसी हुई निंबोली 4-5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से भूमि में 2 साल में एक बार जरूर देनी चाहिए.

* अग्निहोत्र, अमृत पानी, पंचगव्य आदि का प्रयोग मृदा में लाभकारी सूक्ष्म जीवों की संख्या बढ़ाने व जलवायुजनित कीट व रोग से बचाव करने के लिए किया जा सकता है.

* कुछ औषधीय फसलों की खेती सामान्य फसल चक्र या अन्य के रूप में भी की जा सकती है. जैसे धान के साथ बच की खेती से कई कीटों से छुटकारा मिलता है. इसी तरह सब्जियों की खेती के अंतराशस्य के रूप में सुगंधित घासों/मसालों की खेती से कई रोग व कीट कम लगते हैं.

* औषधीय पौधों में क्वालिटी सब से अहम है, इसलिए सही समय पर कटाईतुड़ाई और छाया में सुखा कर भंडारण/विक्रय करना चाहिए.

* थोड़े बीज या पौध को बाजार से ला कर उस का खुद के खेत में जैविक तरीके से उत्पादन करना चाहिए. इस से हासिल बीज को ही पूरे खेत में लगाने के लिए इस्तेमाल करना चाहिए.

* बीज से बाजार तक की पूरी जानकारी होने पर ही औषधीय पौधों की खेती बड़े पैमाने पर करनी चाहिए. * अनाज वाली फसलों की मांग हमेशा रहेगी और औषधीय व सुगंधित फसलों की मांग व बाजार भाव से तेजी से ऊपरनीचे होते रहते हैं, इसलिए किसान अनाज वाली फसलों को न हटाएं, बल्कि औषधीय व सुगंधीय फसलों को फसल चक्र अंतराशस्य के रूप में स्थान दें. इस से बाजार के अनुसार तालमेल बिठाने में आसानी रहेगी. जैविक खेती है कुदरत का एक मुफ्त उपहार जैविक खेती के लिए इस्तेमाल की जाने वाली खाद खेती के अवशेष व पशु अपशिष्ट से बनती है, जिस में लागत के नाम पर सिर्फ मेहनत ही होती है.

इन के इस्तेमाल से भूमि उपजाऊ और जल की बचत होती है. इसी प्रकार जैविक कीट नियंत्रण नीम व गोमूत्र से बनाए जाते हैं, जिन का कोई गलत असर नहीं होता है. जैविक उत्पाद, स्वादिष्ठ, अच्छी गंध व रूप वाले और ज्यादा समय तक भंडारण करने के लायक होते हैं और इन का बाजार भाव भी अधिक मिलता है. इस तरह जैविक खेती प्रकृति का एक मुफ्त उपहार है, जिस के लिए केवल मेहनत और कुदरत से तालमेल बिठाने की जरूरत होती है. एक बीघा जमीन, सिर्फ एक गाय और एक नीम एक हेक्टेयर (100 मीटर × 100 मीटर) भूमि में लगभग 6 बीघा होते हैं.

अकसर किसान बीघा नाप को ही आधार मान कर खेती की सभी गणनाएं (नापतोल) आदि क्रियाएं करते हैं, इसलिए एक बीघा में जितनी खाद्य व जैविक कीट नियंत्रक की जरूरत होती है, उसी के हिसाब से गणना की जाए तो समझने में आसानी रहेगी. एक गाय : सालभर में एक गाय तकरीबन 3-3.5 टन गोबर देती है. अगर सिर्फ गोबर से ही खाद बने, तो तकरीबन 2 टन खाद तो बनेगी ही, जो कि एक बीघा जमीन में अगर फसलें या सब्जियों की फसल भी लगाई जाए तो भी काफी रहता है. इसी तरह एक गाय तकरीबन 1,000 लिटर मूत्र पैदा करती है, जिस में से आधा तो खाद या सिंचाई के साथ दे देने के बाद भी 500 लिटर गोमूत्र व नीम की पत्ती से इतना कीट नियंत्रक बन सकता है कि एक बीघा जमीन में सालभर में हर 15 दिन बाद तकरीबन 20 छिड़काव किए जा सकते हैं.

एक नीम : नीम की पत्तियां तो गोमूत्र आधारित कीटनाशक व भूमि में हरी खाद के रूप में काम आ ही जाती हैं. साथ ही, एक नीम से हर साल कम से कम 50-60 किलोग्राम निंबोली मिलती है, जिस का तकरीबन 10-15 लिटर नीम तेल निकालने के बाद 40 किलोग्राम खल को जमीन में मिलाने से पोषक तत्त्व तो मिलते ही हैं, साथ ही साथ जमीन से पैदा होने वाली फसलों के कीड़े व रोग भी कम हो जाते हैं. जैविक खेती को आसान बनाने के लिए प्रति बीघा जमीन के हिसाब से एक गाय का पालन और एक नीम लगाएं, तो बाहर से शायद कुछ भी लाने की जरूरत नहीं पड़ेगी. साथ ही नीम की छाया और गाय का शुद्ध दूध मिलेगा.

पेड़ों का सहारा जरूरी है जैविक खेती में : औषधीय पौधों की खेती के लिए जंगल जैसा वातावरण बनाने के लिए खेत में पेड़ों को उचित संख्या का उचित प्रणाली का होना बहुत जरूरी हो जाता है. ये पेड़ औषधीय उपयोग के लिए भी हो सकते हैं. पेड़ों को फसलों के साथ लगाने का तरीका नया नहीं है और शस्य वानिकी या एग्रोफोरैस्ट्री के नाम से जाना जाता है.

इस में निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए :

* खेत को जंगल बनाने का मतलब एक उचित संख्या में पेड़ लगाने से है, जो कि एक हेक्टेयर (1000 मी2) में से 10 से 20 तक हो सकती है. ज्यादा पेड़ लगाने पर वे फसल के साथ धूप, पानी और पोषक तत्त्व के लिए होड़ कर सकते हैं, जिस से फसल की बढ़वार में उपज पर उलटा असर पड़ सकता है.

* जैविक खेती के लिए औषधीय पेड़ों को लगाना ज्यादा उपयोगी रहता है. दी गई तालिका में औषधीय पेड़, लताओं, झाडि़यों की सूची दी गई है. यह सूची एक उदाहरण मात्र है. अलगअलग क्षेत्रों के आधार पर इस में पौधों को निकाला गया है, शामिल किया जा सकता है.

* कुछ थोड़े से प्रयास से किसान खुद की पौधशाला में पौधे तैयार कर सकते हैं. खेत के पास पौधशाला में तैयार किए गए पौधे ज्यादा सेहतमंद, विकसित जड़ वाले और अच्छे से पनपते हैं.

* पेड़ की प्रजाति ऐसी होनी चाहिए, जिस से सालभर थोड़ीथोड़ी पत्तियां झड़ती रहें, जो भूमि पर गिर कर मल्च का काम करें (भूमि को ढक कर रखें) और बाद में खाद के रूप में पोषण दें. कभी भी सफेदा (यूकेलिप्टस) जैसा पेड़ खेत में न लगाएं, क्योंकि इन की पत्तियां न तो सड़ती हैं और साथ ही भूमि की अन्य क्रियाओं में अवरोध पैदा करती हैं.

* बड़े पेड़ों को खेत की बाड़ पर वायु अवरोधक के रूप में व छोटे वृक्षों या फलदार पौधों जैसे आंवला, बेल, किन्नू व बेर आदि को फसल की कतारों के बीच कम से कम 8 से 10 मीटर की दूरी पर लगाना चाहिए, ताकि फसलों से होड़ न हो. कुछ कांटेदार झाडि़यों जैसे कांटा-करंज (औषधीय पौधा) आदि को खेत की सुरक्षा के लिए बाढ़ के रूप में भी लगाया जा सकता है.

* खेत की मेंड़ या गौशाला या चौपाल में कम से कम 2 से 3 पेड़ नीम, बकायन, करंज, सहजन आदि जरूर लगाएं, जो औषधीय पौधे होने के साथसाथ रोग के नियंत्रण में भी सहयोगी होते हैं.

* पेड़ों की नियमित रूप से काटछांट करते रहना चाहिए, ताकि वे सीधे तने वाले बने रहें और खेती के काम में बाधक न बनते हों.

* सुबह की धूप सभी पौधों के लिए लाभकारी होती है, इसलिए पेड़ों को हमेशा ऐसी दिशा में लगाना चाहिए, ताकि फसल को सुबह सूरज की रोशनी जरूर मिलती रहे.

* सुरक्षा के लिए चारों ओर उन की छाया के बराबर थाला बना देना चाहिए, जिस में नियमित रूप से खाद व पानी देते रहना चाहिए. इस से फसल और पेड़ों में किसी भी तरह की होड़ नहीं होगी और दोनों का विकास अच्छा होगा. थालों में घासफूस की मल्च बिछाने से पानी का नुकसान कम होता है.

* दीमक से बचाव के लिए पौधे लगाने से पहले गड्ढा भरते समय सड़ी हुई गोबर की खाद में आंक, नीम के पत्तों व निंबोली का चूरा मिला कर भरना चाहिए और हर साल खाद के साथ ही नीम व आंक के पत्ते मिलाने चाहिए.

तानाशाही प्रवृत्ति

जो ज्यादा बोलते हैं, तानाशाही फैसले लेते हैं, अपने देश की जनता को निरर्थक विवादों में झोंक देते हैं उन का या उन के उद्देश्य का अंत हिटलर, मुसोलिनी और ओसामा बिन लादेन जैसा होता है. यह सोचना कि प्रारंभिक जीत सदा की हो जाएगी कई बार बड़ी गलतफहमी हो जाती है. बहुत सी फिल्में, बहुत से उपन्यास यही बात बारबार दोहराते हैं कि प्रारंभ में खलनायक की जीत अंत में उस के लिए एक दर्दनाक अंत साबित होती है.

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का रूस को महान शक्ति बना कर सोवियत संघ की तरह विशाल करने की कोशिश वर्षों की तमन्ना है और उन्होंने पहले रूस में अपने को अपनी गुप्तचर पृष्ठभूमि के सहारे मजबूत किया, जनता का पैसा कुछ अमीरों को दिया जिन्होंने दुनियाभर में आलीशान महल, नौकाएं, होटल खरीदे, अपनी पार्टी को बेहद कमजोर किया और फिर अपनी ताकत दिखाने के लिए पहले 2014 में यूक्रेन का एक हिस्सा क्रीमिया हथिया लिया और फिर 24 फरवरी, 2022 को यूक्रेन पर हमला कर दिया कि 3 दिनों में उस पर कब्जा हो जाएगा.

आज 8 माह बाद रूसी सैनिक जीती जमीन, सैनिक सामग्री छोड़ कर वापस लौटने लगे हैं क्योंकि एक कौमेडियन पप्पू टाइप राष्ट्रपति ब्लादिमिर जेलेंस्की ने देश का नेतृत्व इस तरह संभाला कि विशाल रूस की दुनियाभर में मिट्टी पलीत होने लगी.

कारण यही रहा है कि अपनी ताकत बढ़ाने और अपने बड़बोलेपन के अलावा पुतिन ने पिछले 22 सालों में रूस की जनता का कोर्ई भला नहीं किया. रूसी जनता वादों और झूठे दावों से इतनी प्रभावित है कि वह उसे पूजती है पर वह पूजा किसी भी तरह जनता के काम नहीं आती. सोवियत संघ का आर्थिक विकास स्टालिन नहीं कर पाया, माओत्से तुंग चीन का नहीं कर पाया, हिटलर ने जरमनी समेत पूरे यूरोप को अपनी हिटलरी की पूजा करवाने के चक्कर में बरबाद कर दिया और अब व्लादिमीर पुतिन ने पूरे रूस को पूरी दुनिया का दुश्मन बना दिया है.

यूक्रेनियों को यहूदी और नाजी कहकह कर पुतिन ने उसी तरह रूसी जनता को भरमाया है जैसे भारत में मुसलमानों को 5 के 25 कह कर, पाकिस्तानी कह कर, आतंकवादी कह कर बहकाया गया है और 2014 के बाद आज देश यह दावा नहीं कर सकता कि यहां कुछ भी ठीक है सिवा गौतम अदानी और मुकेश अंबानी के फैलते व्यापारों और मंदिरों की बढ़ती बाढ़ के.

बड़बोले पुतिन को अब दूसरे बड़बोले नेताओं से सुनना पड़ रहा है कि जो कुछ यूक्रेन में हो रहा है वह दुनिया की अर्थव्यवस्था, भूख, क्लाइमेट चेंज के लिए खतरनाक है. यह बंद किया जाए. शायद सभी बड़बोलों को एहसास हो गया है कि उन के बोल नहीं, जनता की मेहनत देश को समृद्ध बनाती है. नेता तो अड़चनें डालते हैं.

विंटर स्पेशल : सर्दी के मौसम में कई रोगों की एक दवा है तेल मालिश

शरीर को खूबसूरत बनाने  के लिए तेल मालिश बहुत महत्वपूर्ण है. खासतौर से सर्दियों के मौसम में जब सर्द हवाएं  त्वचा को रुखा बना देतीं हैं. जिसके कारण त्वचा खिची-खिची सी लगती है ऐसे में  त्वचा को नम करने के लिए तेल मालिश बहुत आवश्यक हो जाती है.  मांसपेशियों को हस्तपुष्ट बनाने त्वचा को चमकदार एवं सॉफ्ट रखने के लिए तेल मालिश बहुत जरूरी है. वैसे तो  हर मौसम में शरीर को तेल से मालिश करना आवश्यक होता है. आप चाहे तो मालिश के लिए  सरसों का तेल, बादाम का तेल अरंडी का तेल या जैतून का तेल किसी भी तेल का इस्तेमाल कर सकते है.

मालिश के क्या है लाभ

सर्दियों के मौसम में व्यायाम एवं सैर कम  होने और औयली डाइट ज्यादा लेने के कारण शरीर में फैट जम जाता है. फैट को कम करने के लिए शरीर की नियमित रूप से तेल मालिश करना बहुत जरूरी है. इससे फैट कम होने के साथ हीं त्वचा मुलायम और हाइड्रेटड रहती हैं. और चमक भी बनी रहती है.

सर्दी के मौसम में तेल मालिश से रुखी हुई त्वचा पर जमी डेड स्किन सेल्स निकल जाती हैं. जिससे त्वचा मुलायम बनती है और रूखेपन के कारण त्वचा सम्बन्धी रोग दाद, खुजली आदि रोग नहीं होती है.

सर्दियों के मौसम में तेल मालिश करवाने से शरीर में ब्लड सर्कुलेशन नियंत्रित रहता है. रक्त परिसंचरण सुचारू रूप से होने के कारण ब्लडप्रेशर नियंत्रित होता है. शरीर में चुस्ती एवं फूर्ती बनी रहती है.

सर्दी के मौसम में शरीर की प्रतिदिन  तेल मालिश करवाने से स्वास्थ ठीक रहता है. शरीर में ठंड लगने का खतरा कम होता है. जिससे सर्दी-जुखाम एवं खाँसी से शरीर की सुरक्षा होती है.

शरीर की तेल मालिश किसी मसाज एक्सपर्ट से करवाई जानी चाहिये क्योंकि उसे एक्यूप्रेशर पॉइंट की जानकारी होती है  जिसके कारण शरीर के दर्द और सूजन को पूरी तरह से दूर किया जा सकता है. अक्सर कर  बड़े बूढों के जोड़ों में दर्द सर्द हवाओं के कारण बढ़ जाता है. जिससे शरीर के जोड़ों में सूजन आ जाती है. ऐसे में यदि सर्दी के मौसम की शरुआत से हीं नियमित रूप से शरीर की मालिश की जाए तो जोड़ों के दर्द और सूजन से राहत पाया जा सकता है.

शरीर की तेल मालिश करवाने से बंद रोमछिद्र खुल जाते हैं. और शरीर के विषैले पदार्थ बाहर निकल जाते हैं. जिससे त्वचा में चमक आ जाती है.

शरीर की तेल मालिश करवाने से मांसपेशियाँ के दर्द से राहत मिलती है. जिससे मानसिक तनाव कम होता है और तनाव उत्पन्न करने में सहायक हरमोन कार्टिसोल का स्तर कम हो जाता है. जिसके कारण नींद अच्छी आती है और पाचन तंत्र ठीक तरह से काम करता है.

मालिश के दौरान ध्यान देने वाली बातें

हमेशा ध्यान रखे कि मालिश हल्के-हल्के हाथों से करें  और गुनगुने तेल का इस्तेमाल करें मालिश ऊपर से यानी सिर से शुरू करते हुए नीचे की तरफ जाएं. सबसे पहले सिर की मालिश करनी चाहिए फिर चेहरे और गर्दन की मालिश करें. फिर हाथों पर उंगलियों की  मालिश करें. कोहनियों और कलाइयों पर भी गोल-गोल मसाज करें. इसके  बाद सीने और पेट की मालिश हाथों से करें. कमर पर नीचे से ऊपर की ओर मालिश थोड़ा दम लगा कर करना सही रहता है.  फिर मालिश जांघ से पैर की ओर करनी चाहिए. घुटनों पर गोल-गोल मालिश करें. तलुवों पर ऐड़ी से उंगलियों की ओर मालिश करें.  मालिश कराने के करीब 30 मिनट बाद  गुनगुने पानी से नहाए.

भ्रम : आखिर क्या वजह थी प्रभाकर के इनकार की

‘हां, मैं तुम से प्यार करता हूं, सुकेशी, इसीलिए तुम से विवाह नहीं कर सकता.’ मैं अपने बंगले की वाटिका में एकांत में बैठी डा. प्रभाकर की इस बात के मर्म को समझने का प्रयास कर रही थी, ‘वे मुझ से प्यार भी करते हैं और विवाह के प्रस्ताव को इनकार भी करते हैं.’

उन्होंने जिस दृढ़ता से ये शब्द कहे थे, उस के बाद उन के कमरे में बैठे रहने का मेरा साहस समाप्त हो चुका था. मैं कितनी मूर्ख हूं, उन के सामने भावना में बह कर इतना बड़ा प्रस्ताव रख दिया. हालांकि, वे मेरे इतने निकट आ चुके थे कि यह प्रस्ताव बड़ा होते हुए भी उतना बड़ा नहीं रह गया था.

गत वर्ष के सत्र में मैं उन की कक्षाओं में कई महीने तक सामान्य छात्रा की भांति ही रही थी, किंतु जब उन्होंने मेरी रुचियों को जाना तो…

कालेज के उद्यान में पहुंच कर जब वे विभिन्न फूलों को बीच से चीर कर उस की कायिक प्रक्रिया को बताते तो हम सब विस्मय से नर और मादा फूलों के अंतर को समझने का प्रयास करते.

वह शायद मेरी धृष्टता थी कि एक दिन प्रभाकरजी से उद्यान में ही प्रश्न कर दिया था कि क्या गोभी के फूल में भी नर व मादा का अंतर आंका जा सकता है?

उन्होंने उस बात को उस समय अनसुना कर दिया था, किंतु उसी दिन जब कृषि विद्यालय बंद हुआ तो उन्होंने मुझे गेट पर रोक लिया. मैं उन के पीछेपीछे अध्यापक कक्ष में चली गई थी. उन्होंने मुझे कुरसी पर बिठाते हुए प्रश्न किया था, ‘क्या तुम्हारे यहां गोभी के फूल उगाए जाते हैं?’

‘हां, हमारे बंगले के चारों ओर लंबीचौड़ी जमीन है. मेरे पिता उस के एक भाग में सब्जियां उगाते हैं. कुछ भाग में गोभी भी लगी है.’

‘तुम्हारे पिता क्या करते हैं?’

‘अधिवक्ता हैं, एडवोकेट.’

‘क्या उन्हें फूल, पौधे लगाने का शौक है?’

‘हमारे यहां फूलों के बहुत गमले हैं. एक माली है, जो सप्ताह में 2 दिन हमारी फुलवारी को देखने आता है.’

‘कहां है तुम्हारा बंगला?’

‘जौर्ज टाउन में, पीली कोठी हमारी ही है.’

‘मैं तुम्हारी बगिया देखने कभी आऊंगा.’

‘अवश्य आइए.’

उन्होंने स्वयं से मुझे रोका था. उन्होंने स्वयं ही मेरे घर आने की बात कही थी और दूसरे ही दिन आ भी गए थे. उन के आगमन के बाद ही तो मैं उन की विशिष्ट छात्रा बन गई थी.

मैं गत दिनों के संपूर्ण घटनाक्रम के बारे में सोचती चली जा रही थी. गतवर्ष गरमी की छुट्टियों में जब वे अपने गांव जाने लगे थे तो बातबात में बताया था कि उन के घर में खेती होती है. बड़े भाई खेती का काम देखते हैं.

उस के बाद तो वे बिना बुलाए मेरे घर आने लगे. क्या यह मेरे प्रति उन का आकर्षण नहीं था? मैं ने अपनी दृष्टि वाटिका के चारों ओर फेरी तो हर फूल और पौधे के विन्यास के पीछे डा. प्रभाकर के योगदान की झलक नजर आई. लौन में जो मखमली घास उगाई गई थी, वह प्रभाकरजी की मंत्रणा का ही फल था. उन्होंने जंगली घास को उखाड़ कर, नए बीज और उर्वरक के प्रयोग से बेरमूडा लगवाई. उन्होंने ही बैडमिंटन कोर्ट के चारों ओर कंबरलैंड टर्फ लगवाई.

प्रभाकरजी ने जब से रुचि लेनी शुरू की थी, हमारी बगिया में गंधराज गमक उठा, हरसिंगार झरने लगा, रजनीगंधा महकने लगी. यह सब उन के प्यार को दर्शाने के लिए क्या पर्याप्त नहीं था? हम अंगरेजी फूलों के बारे में अधिक नहीं जानते थे, स्वीट पी और एलाईसम की गंध से परिचय उन के द्वारा ही हुआ. केवल 8 महीने में प्रभाकरजी ने हमारे इस रूखेसूखे मैदान का हुलिया बदल कर रख दिया था.

मैं अपनी वाटिका के सौंदर्य के परिप्रेक्ष्य में डा. प्रभाकर को याद करते हुए उन के साथ बीते हुए उन क्षणों को भी याद करने लगी, जिन्होंने मेरे अंदर यह भाव जगा दिया था कि डा. प्रभाकर भी शायद अपने जीवन में मेरे साहचर्य की आकांक्षा रखते हैं. इधर, मैं तो उन के संपूर्ण व्यक्तित्व से प्रभावित हो गई थी.

मेरी टूटीफूटी कविताओं की प्रशंसा और कभीकभार रेखाचित्रों की अनुशंसा अथवा जलरंगों से निर्मित लैंडस्केप के प्रयास क्या सचमुच उन के हृदय को नहीं छू रहे थे. उन्होंने ही तो कहा था, ‘सुकेशी, तुम्हारी बहुआयामी प्रतिभा किसी न किसी रूप में यश के सोपानों को चढ़ते हुए शिखर पर पहुंचेगी.’

एक दिन बातोंबातों में मैं ने उन से यह भी बता दिया था कि मैं इस संपूर्ण बंगले की अकेली उत्तराधिकारी हूं, फिर भी मेरे प्रस्ताव को उन्होंने ठुकरा दिया? क्या मैं कुरूप हूं? लेकिन ऐसा तो कुछ नहीं.

उन के एक कमरे के फ्लैट में मैं कई बार गई थी. उन्होंने अनेक फूलों की एक मिश्रित वाटिका की पेंटिंग अपने प्रवेशद्वार पर ही लगा रखी थी, जो कि उन्हीं की बनाई हुई थी. यह बात उन्होंने जानबूझ कर मुझे बताई थी. आखिर इस बात का क्या अभिप्राय था? मेरी वाहवाह पर मुसकराए थे और मेरी परख की प्रशंसा में उन्होंने मेरे मस्तक पर एक चुंबन दिया था. और मैं बाहर से अंदर तक झंकृत हो उठी थी.

उस दिन एकांत के क्षणों में जो प्रस्ताव मैं ने उन के सामने रख दिया था, शायद उस चुंबन द्वारा ही प्रेरित था. उन्हें मेरा प्रस्ताव अस्वीकृत नहीं करना चाहिए था. किंतु उन्होंने तो मुझ से आंखें बचा कर कहा, ‘मैं तुम से प्यार करता हूं, इसीलिए तुम से विवाह नहीं कर सकता.’

मुझे प्रभाकरजी की बात से एक झटका सा लगा था. मैं ने कृषि विद्यालय जाना छोड़ दिया था और अंदर ही अंदर मुरझाने लगी थी.

सप्ताह में एक बार अवश्य ही आने वाले प्रभाकरजी जब 16 दिनों तक नहीं आए तो मैं बीते दिनों की संपूर्ण घटनाओं का निरूपण करने के बाद सोचने लगी, ‘मुझ से कौन सी भूल हुई? प्रभाकरजी नाराज हो गए क्या… लेकिन क्यों?’

आज ठीक 16 दिनों बाद अचानक संध्या समय प्रभाकरजी पधारे. मैं बाहर के कमरे में अकेले ही बैठी थी. मैं ने तिरछी दृष्टि से उन्हें देखा और एक मुसकान बिखेर कर स्वागत किया.

‘‘क्या बिलकुल अकेली हो?’’ उन्होंने गंभीर स्वर में पूछा.

‘‘हां.’’

‘‘बाबूजी?’’

‘‘वे अभी कोर्ट से नहीं आए, शायद किसी के यहां रुक गए हैं.’’

‘‘और अम्माजी?’’

‘‘वे पड़ोस में गई हैं. आप कहां रहे इतने दिन?’’

‘‘मैं तो मात्र एक सप्ताह के लिए अपने गांव गया था. तुम ने विद्यालय जाना क्यों छोड़ दिया? पिछले सोमवार से तुम मुझे अपनी क्लास में दिखाई नहीं दीं. तुम्हारी सहेली सुरभि से पूछने पर ज्ञात हुआ कि तुम कई दिनों से विद्यालय नहीं जा रही हो, शायद जब से मैं छुट्टी पर गया?’’

लेकिन मैं ने कोई जवाब नहीं दिया.

‘‘बोलो, चुप क्यों हो?’’ वे हौले से बोले.

‘‘सच बताऊं? मैं तो दर से मुरझा गई हूं. कोई उल्लास ही नहीं रह गया. आप ने उस दिन इतना रूखा उत्तर दिया कि…’’

‘‘रूखा उत्तर नहीं, गुरु और शिष्य के बीच जो संबंध होने चाहिए, वही यदि रहें तो…’’

‘‘आप इतने दकियानूसी हैं. आज के युग में…’’

‘‘दुनिया में जाने क्याक्या होता है, किंतु मैं जिसे जीवन की सफलता की ऊंचाइयों पर देखना चाहता हूं, उसे धोखा नहीं दे सकता.’’

‘‘धोखा, कैसा धोखा?’’

‘‘तुम शायद अभी तक भ्रम में थीं कि मैं कुंआरा हूं, लेकिन मैं विवाहित हूं. मेरे 2 बच्चे हैं. अभी दूसरे बच्चे के जन्म पर ही गांव गया था.’’

यह बात सुन कर मेरी गरदन झुक गई. किंतु साहस बटोर कर प्रश्न कर बैठी, ‘‘यह कोई गढ़ी हुई कहानी तो नहीं? आप इतना अच्छा वेतन पाते हैं. यदि विवाहित हैं तो परिवार को अपने साथ क्यों नहीं रखते?’’

प्रभाकरजी मुसकराते हुए बोले, ‘‘मैं अपने गांव से उखड़ कर शहर में रहना नहीं चाहता. यहां छोटा सा फ्लैट है, जो मेरे लिए पर्याप्त है. पौधों के शौक मैं जिस विपुलता से अपने गांव में पूरा कर लेता हूं, यहां 5 हजार रुपए मासिक पर भी वैसी जमीन नहीं मिल सकती.’’

उन के इस उत्तर के बाद कुछ देर को सन्नाटा छा गया. मैं समझ ही न सकी कि अब क्या बोलूं.

प्रभाकरजी कुछ समय तक मेरी मुखमुद्रा को पढ़ते रहे, फिर बोले, ‘‘मेरे गांव का विकास हो गया है-नहर आ गई है, अस्पताल है, समाज कल्याण कार्यालय है, बच्चों को इंटर तक पढ़ाने के लिए कालेज है. एक पक्की सड़क है. मैं अपने घरपरिवार को गांव से उखाड़ कर शहर में रोपना नहीं चाहता.’’

यह सब सुन कर मैं थोड़ी देर को चुप हो गई, किंतु फिर धीरे से बोली, ‘‘आप ने जिस अनौपचारिक रूप से मेरे घर आना शुरू कर दिया था, मैं ने उसे आप का आकर्षण मान लिया था.’’

मेरी बात सुन कर प्रभाकरजी ने कहा, ‘‘हां, मैं यह भूल गया था कि तुम ऐसा भी सोच सकती हो. दरअसल, तुम्हारे यहां निरंतर आने का कारण तो तुम्हारे बंगले से जुड़ा हुआ यह मैदान है, जो अब एक सुंदर वाटिका में बदल गया है. यहां मैं अपनी योजनाओं का प्रैक्टिकल प्रयोग कर सकता था. मैं ने तो सोचा भी नहीं था कि एक दिन तुम विवाह का प्रस्ताव भी…’’

मैं एक बार फिर चुप हो गई. पूर्व इस के कि मैं फिर कोई प्रश्न करती, प्रभाकरजी वहां से अचानक लौट पड़े.

प्रभाकर के मस्तिष्क में सुकेशी के प्रस्ताव की बात घुमड़ती रही और उन्हें अपने उस चुंबन की बात याद आई, जो उन्होंने सुकेशी के मस्तक पर दिया था. शायद उस चुंबन ने ही प्रेरित कर दिया था कि वह ऐसा प्रस्ताव रख गई थी. उसे पता नहीं, मस्तक के चुंबनों में और कपोलों अथवा होंठों के चुंबन में क्या अंतर होता है. काश, वह भारतीय परंपराओं से अवगत होती.

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