Download App

बच्चा अगर बिस्तर गीला करे

अगर ५-६ साल से बड़ा बच्चा बिस्तर गीला करे तो डाक्टर से तुरंत सलाह लेनी चाहिए. अकसर कई मांबाप बच्चे के बिस्तर पर पेशाब करने से परेशान होते हैं, पर छोटे बच्चे जैसेजैसे बच्चे बड़े होते हैं वे अपने मूत्राशय पर नियंत्रण रखना सीख लेते हैं.

अगर बच्चा बिस्तर पर पेशाब कर देता है तो उसे कभी डाटें नहीं. कुछ मामलों में १०-१२ साल तक की उम्र के बच्चों में भी यह समस्या देखने को मिलती है. ऐसी स्थिति में इसे एक बीमारी माना जाता है. बड़ी उम्र के बच्चे इस बीमारी के बारे में बताने में शर्म महसूस करते हैं. इस वजह से उन का समय पर उचित इलाज नहीं हो पाता है.

छोटे बच्चे अगर बिस्तर गीला करें तो उसे बीमारी नहीं मानना चाहिए. कुछ समय के बाद वे अपने मूत्राशय पर नियंत्रण रखना सीख जाएंगे और यह समस्या अपनेआप खत्म हो जाएगी.

अहम वजह

-बच्चों के पेट में कीड़े होने या कब्ज होने से.

-नींद में पेशाब करने के सपने देखने की वजह से.

-हार्मोंस की गड़बड़ी होने से.

-डायबिटीज भी एक कारण.

-ब्लैडर की मसल्स कमजोर होने की वजह से.

-डर या तनाव के चलते.

-मौसम की वजह से – जैसे की सर्दी और बरसात में.

ये वजहें भी हैं जिम्मेदार

छोटा मूत्राशय : बच्चों का शरीर पूरी तरह विकसित नहीं होता. मूत्राशय उन में से एक है. हर बच्चे के शरीर की बनावट अलगअलग होती है. कुछ बच्चे जल्दी विकसित होते हैं और कुछ बच्चे समय लेते हैं. कई बच्चे जब छोटे होते हैं तो उन का मूत्राशय सामान्य से छोटा होता है. इस वजह से वे रातभर पेशाब करते रहते हैं और बिस्तर गीला करते रहते हैं.

मूत्र संक्रमण : अगर बच्चे को मूत्र संक्रमण हो जाए तो बच्चे को बारबार पेशाब लगेगा. रात को सोते समय बच्चा पेशाब को नियंत्रित नहीं कर पाएगा. मूत्र संक्रमण में बच्चे को पेशाब में जलन, बुखार, बारबार पेशाब आना और पेशाब की मात्रा में कमी का होना भी शामिल है.

आनुवांशिकता : ७० फीसदी बच्चे ऐसे हैं जिन मे पेशाब की समस्या पाई गई है. साथ ही, यह भी पाया गया है कि  उन के मां या बाप भी बचपन में बिस्तर गीला करते थे.

हार्मोन : इनसान के शरीर में पेशाब का नियंत्रण हार्मोनों के द्वारा होता.

निदान : बच्चा बिस्तर पर पेशाब न करे इस के उपाय

-बच्चे को आदत डालिए कि सोने से पहले वह पेशाब जरूर करे.

-अगर बच्चा कभी जल्दी सो जाए तो उसे गोद में उठा कर शौच जरूर कराएं या गोदी में उठा कर खुद ही टायलेट ले जाएं.

-अगर बच्चा अकेले सोता है तो उस के कमरे में हलकी रोशनी वाला बल्ब लगाएं ताकि रात में उठ कर वह खुद भी बिना किसी मदद के शौचालय जा सके.

-जागने के बाद भी पेशाब कर ले.

-रात ८ बजे के बाद जयादा पानी पीने को न दें.

-अगर बच्चा फिर भी कभी बिस्तर पर पेशाब कर दे तो उसे मारें नहीं बल्कि प्यार से समझाएं.

-बच्चे को सोते से जगा कर कुछ भी खानेपीने को नहीं देना चाहिए.

घरेलू इलाज से निदान

तिल और गुड़  : तिल और गुड़ को साथ मिला कर उस का मिश्रण बना लें. इसे खिलाने से बच्चे का बिस्तर पर पेशाब करने का रोग खत्म हो जाएगा. तिल और गुड़ में अजवायन का चूर्ण मिला कर बच्चे को खिलाने से और भी कई फायदे होते हैं.

आंवला : १० ग्राम आंवला और १० ग्राम काला जीरा साथ मिला कर पीस लें. इस में पिसी हुई चीनी भी उतनी ही मात्रा में मिला दें. इस मिश्रण को हर दिन बच्चे को पानी के साथ खिलाने से बच्चे को बिस्तर पर पेशाब नहीं होगा.

मुनक्का : हर दिन ५-६ मुनक्का खिलाने से बच्चा बिस्तर गीला नहीं करेगा.

अखरोट और किशमिश : प्रतिदिन २-३ अखरोट और २०-२२ किशमिश बच्चों को खिलाने से बिस्तर में पेशाब करने की समस्या दूर हो जाती है.

दूध में एक चम्मच शहद : एक कप ठंडे फीके दूध में एक चम्मच शहद मिला कर सुबहशाम एकडेढ़ महीने तक बच्चे को पिलाइए और तिलगुड़ का एक लड्डू रोज खाने को दीजिए. अपने बच्चे को लड्डू चबाचबा कर खाने के लिए कहिए और फिर शहद वाला एक कप दूध पीने  को दें. बच्चे को खाने के लिए लड्डू सुबह के समय दें. लड्डू के सेवन से कोई नुकसान नहीं होता. आप जब तक चाहें बच्चे को इस का सेवन करा सकते हैं.

विवाह में शर्तें, सही या गलत

मेरी एक परिचिता की बेटी को लड़के वाले देखने आए. सारी बातें पक्की हो जाने के बाद जब लड़का व लड़की ने एकांत में औपचारिक वार्त्तालाप किया तो लड़के ने लड़की से प्रश्न किया, ‘‘विवाह के बाद यदि फेसबुक, व्हाट्सऐप जैसे सोशल मीडिया का प्रयोग करने से हम मना करेंगे तो तुम बंद कर दोगी?’’

लड़की ने उत्तर दिया, ‘‘नहीं, बिलकुल नहीं.’’ साथ ही बाहर आ कर लड़की ने विवाह करने से भी यह कह कर मना कर दिया कि लड़का संकुचित मानसिकता का है. अभी से ऐसी शर्त रखी जा रही है तो विवाह के बाद तो जीना ही मुश्किल हो जाएगा.

एक अन्य परिवार में लड़के वालों ने लड़की वालों से कहा, ‘‘हमारे लगभग सौ बराती होंगे. उन के स्वागतसत्कार में कोई कमी नहीं रहनी चाहिए. साथ ही, हरेक बराती को विदाई में सोने का सिक्का देना होगा.’’

सीमा को एक लड़का देखने आया. औपचारिक वार्त्तालाप के बाद उस के मातापिता ने कहा, ‘‘देखो बेटी, हमारे घर की सभी बहूबेटियां नौकरी करती हैं तो तुम्हें भी हम घर में बैठने नहीं देंगे. बस, शादी के बाद एमबीए कर लेना ताकि सैलरी पैकेज अच्छा हो जाए, और शान से नौकरी करना.’’

सीमा को नौकरी करने के स्थान पर आराम से घर पर रहना पसंद था, सो उस ने शादी करने से इनकार कर दिया.

आजकल अरेंज मैरिज में लड़के वाले लड़की वालों के समक्ष शर्तों का पिटारा कुछ इस प्रकार खोलते हैं मानो लड़की और उस के परिवार का कोई अस्तित्व

ही नहीं. कुछ लड़कियों और उन के मातापिता से की गई बातचीत के आधार पर हम ने जाना कि कैसीकैसी शर्तें लड़के वाले लड़की और उस के मातापिता के समक्ष रखते हैं-

–       शादी के बाद नौकरी छोड़नी पड़ेगी और यदि लड़की कामकाजी नहीं है तो यह, कि हमें कामकाजी बहू पसंद है इसलिए नौकरी करनी पड़ेगी.

–       हमारे पास मेहनत से कमाया हुआ सबकुछ है. हमें कुछ चाहिए नहीं. पर फिर भी, शादी का आप का बजट कितना है?

–       शादी के बाद मायके से कोई रिश्ता नहीं रखोगी और उन की किसी भी प्रकार की आर्थिक सहायता नहीं करोगी. जो भी कमा कर लाओगी, हमारे हाथ पर ही रखोगी.

–       तुम एमबीए नहीं हो, हमें तो एमबीए लड़की ही चाहिए. शादी के बाद एमबीए करना पड़ेगा.

–       मोटी बहुत हो, शादी से पहले 10 किलो तक वजन कम करना पड़ेगा.

–       35 साल की उम्र तक अविवाहित रहने के पीछे क्या कारण रहा.

–       नाक नहीं छिदी है, शादी से पहले छिदवानी पड़ेगी.

–       एक लड़के वाले ने यह कह कर रिश्ता करने से इनकार कर दिया कि लड़की के पिता को आंखों की लाइलाज बीमारी है.

उपरोक्त शर्तों को पढ़ कर पता चलता है कि समाज में स्त्री को किस दृष्टि से देखा जाता है. इस प्रकार की शर्तें लड़की के लिए ही क्यों? आज के समय में मातापिता लड़की और लड़के दोनों को पढ़ालिखा कर आत्मनिर्भर बनाने में समान पैसा, और परिश्रम व्यय करते हैं, फिर दोनों में असमानता क्यों? क्या अरेंज मैरिज में लड़की की अपनी इच्छा कोई माने नहीं रखती?

एक कंपनी में मैनेजर के पद पर काम कर रही नेहा गोयल कहती हैं, ‘‘कोई भी रिश्ता शर्तों पर नहीं टिक सकता क्योंकि शर्तों पर तो सिर्फ बिजनैस डील होती है, रिश्ता नहीं निभाया जा सकता.’’

वरिष्ठ मैरिज काउंसलर और मनोवैज्ञानिक निधि तिवारी कहती हैं, ‘‘विवाह से पूर्व लड़की व लड़की दोनों का ही शर्त रखना कुछ हद तक सही है क्योंकि विवाह से पूर्व ही सारी बातें साफ हो जाती हैं तो भविष्य में विवाद की आशंका नहीं होती. दोनों को यदि एकदूसरे की बात पसंद है तो शादी होगी वरना नहीं.

‘‘इस की अपेक्षा, विवाह के बाद यदि कोई शर्त रखी जाती है तो कई बार विवाह जैसा पवित्र बंधन टूटने के कगार तक पहुंच जाता है. दरअसल, लड़की व लड़का मानसिक रूप से उस स्थिति के लिए तैयार नहीं होते. परंतु सिर्फ लड़के के परिवार या लड़के के द्वारा ही शर्तों का रखना पूरी तरह गलत है.’’

शर्तों में बंधा बंधन

विवाह एक प्यारा सा बंधन है जो परस्पर सहयोग, समझदारी, विश्वास और आपसी सामंजस्य पर टिका होता है. इस बंधन में भावना प्रधान होती है. ऐसे बंधन में बंधने से पूर्व ही यदि शर्तें लाद दी जाएंगी तो उस का टिकना ही संदेहास्पद हो जाएगा. इसलिए इस में किसी भी प्रकार की अनपेक्षित शर्तों का रखा जाना बेमानी है. शर्त रखने के स्थान पर दोनों परिवारों के लोग आपसी बातचीत के माध्यम से अपनी इच्छाएं साझा करें ताकि दोनों को एकदूसरे की विचारधारा का पता लग सके.

कितनी बार देखा जाता है कि विवाह के बाद समय और परिस्थिति की मांग को देखते हुए बच्चों की परवरिश की खातिर अथवा अन्य कारणों से महिलाएं नौकरी खुद ही छोड़ देती हैं, या परिवार की आवश्यकतानुसार नौकरी करती हैं. विवाहोपरांत पति, पत्नी और ससुराल के परस्पर व्यवहार व सहयोग के बाद अनेक समस्याएं खुद हल हो जाती हैं परंतु विवाह पूर्व जब उन्हीं समस्याओं को शर्त के रूप में प्रस्तुत किया जाता है तो रिश्ते की शुरुआत में ही कटुता आ जाती है जो कई बार ताउम्र भी समाप्त नहीं हो पाती.

विवाह 2 परिवारों और संस्कृतियों का मिलन होता है, नई रिश्तेदारी का सृजन होता है, लड़का व लड़की इस से अपने एक नवीन जीवन का प्रारंभ करते हैं, नवीन रिश्तों को जीना शुरू करते हैं. ऐसे

नाजुक रिश्ते में बंधने से पूर्व ही किसी भी प्रकार की शर्त रखना सरासर गलत है. वास्तविकता तो यह है कि विवाह में लड़की के मातापिता अपने खून से सींचे गए अंश को लड़के वालों के परिवार को दे कर शृंगारित करते हैं. ऐसे में लड़की वालों का स्थान लड़के वालों से ऊपर हो जाता है. सो, उन्हें हेय न समझ कर, बराबरी का मानसम्मान दिया जाना चाहिए.

विवाह में किसी भी प्रकार की शर्त का रखा जाना सर्वथा अनुचित है. बिना शर्त प्यार और सहयोग की भावना से किए गए विवाह में लड़की अपने ससुराल के प्रति प्यार, विश्वास और सम्मान की भावना ले कर सासससुर के घर में प्रवेश करती है जिस से घर में चहुंओर खुशियां रहती हैं.

आखिरी योजना : लालू को कौन से काम में महारथ हासिल थी

कानून के रखवालों और जुर्म की दुनिया में लाल मोहम्मद को लालू के नाम से जाना जाता था. लालू एक फ्रौड, ब्लैकमेलर और लुटेरा था. वह पैसों के लिए हर तरह के गैरकानूनी काम करता था. लूटमार और धोखेबाजी उस के मुख्य काम थे. लेकिन वह किसी भी हालत में खूनखराबा नहीं करता था. वह एक सोचीसमझी योजन के तहत काम करता था, जिस से उसे किसी तरह का कोई खतरा नहीं उठाना पड़ता था.

यही वजह थी कि वह कभी पकड़ा नहीं गया था. वह कोई भी काम शम्सुद्दीन उर्फ शम्सू के साथ मिल कर करता था. जहां भी उसे खतरा महसूस होता था, वह शम्सू को आगे कर देता था. क्योंकि वह हर वक्त खतरा मोल लेने को तैयार रहता था. इसीलिए मिले माल में वह आधे से ज्यादा हिस्सा लेता था.

लालू योजना बनाने में होशियार था. वह शिकार को तलाश कर बढि़या योजना बनाता था. उस के बाद दोनों मिल कर उस योजना पर अमल करते थे.

लालू का काम बढि़या चल रहा था. एक लूट में 2 दिन पहले ही उस के हाथ एक लाख 20 हजार रुपए लगे थे. लेकिन इस में उसे 40 हजार रुपए ही मिले थे. 80 हजार रुपए शम्सू ने ले लिए थे. इस की वजह यह थी कि लालू ने सिर्फ लूट की योजना बनाई थी बाकी का सारा काम शम्सू ने अकेले किया था. ज्यादातर कामों में लालू परदे के पीछे ही रहता था.

इस लूट के बाद लालू अपने कमरे में लेटा शम्सू के बारे में सोच रहा था. पिछले कई महीनों से वह काफी परेशान था. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर इस तरह वह कब तक शिकार खोज कर योजना बनाता रहेगा. सारी तैयारी वह करता है, जबकि हिस्सा ज्यादा शम्सू ले लेता है, ऐसा कर के कहीं वह गलती तो नहीं कर रहा?

इस लूट को ले कर वह काफी परेशान था. क्योंकि एक लाख 20 हजार में उसे सिर्फ 40 हजार रुपए ही मिले थे. शम्सू ने 80 हजार रुपए रख लिए थे. वह इस काम से ऊब गया था, लेकिन उस के पास इतने पैसे नहीं थे कि वह ईमानदारी वाला कोई दूसरा काम कर लेता.

इस धंधे में खतरे बहुत थे. पुलिस आए दिन किसी न किसी मामले को ले कर परेशान करती रहती थी. यह अलग बात थी कि सबूत न होने की वजह से वह बच जाता था. वह एक रेस्टोरेंट खोलना चाहता था. लेकिन उस के पास इतने पैसे नहीं थे कि वह अपना रेस्टोरेंट खोल लेता. पर शम्सू के पास काफी पैसे थे. अगर उस के पैसे उसे मिल जाते तो वह आसानी से रेस्टोरेंट खोल सकता था.

लालू का सोचना था कि अगर वह एक बार हिम्मत कर ले तो जिंदगी की गाड़ी बड़े आाम से चलने लगेगी. इस के बाद उसे कोई खतरा भी नहीं उठाना पड़ेगा. लेकिन इस के लिए शम्सू को रास्ते से हटाना होगा, तभी उसे उस के पैसे मिल सकेंगे. आखिर उस ने शम्सू को रास्ते से हटाने की योजना बना डाली. यह उस की आखिरी योजना थी, जिस में वह पहली और आखिरी बार हत्या करने जा रहा था.

अगले ही दिन लालू सुपर अपार्टमेंट जा पहुंचा, जहां मिस आलिया रहती थीं. लालू आलिया के यहां अकसर आता रहता था. कभीकभार शम्सू भी वहां पहुंच जाता था. लालू को देख कर आलिया ने दिलफरेबी अंदाज में उस का स्वागत किया. वह लालू और शम्सू के धंधे से पूरी तरह वाकिफ थी. वह लालू के लिए जाम और नमकीन ला कर उस के पास बैठ गई. फिर उस का हाथ पकड़ कर बोली, ‘‘इस बार तो बहुत दिनों बाद आए हो.’’

‘‘बहुत दिनों बाद आया हूं, लेकिन खुश कर के जाऊंगा.’’ लालू ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘अच्छा!’’ मिस आलिया की आंखें चमक उठीं.

‘‘अगर तुम्हें बिना कुछ किए 20 हजार रुपए मिल जाएं तो..?’’ लालू ने कहा.

आलिया ने होंठों पर जबान फेर कर कहा, ‘‘खयाल तो बहुत हसीन है, मगर इस की वजह…?’’

‘‘कोई खास नहीं?’’ लालू ने कहा, ‘‘मैं कल रात यहां आ रहा हूं. मैं चाहता हूं कि ऐसा जाहिर हो कि मैं यहां तुम्हारे साथ इसी कमरे में था. यही कोई रात 8 बजे से रात 2 बजे तक.’’

‘‘बहुत खूब.’’ आलिया ने अपनी भौंहें उचकाते हुए अर्थपूर्ण अंदाज में कहा, ‘‘इस के अलावा…’’

‘‘इस के अलावा दूसरा छोटा सा काम यह है कि…’’

लालू अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाया था कि आलिया ने कहा, ‘‘तुम रात 8 बजे से रात 2 बजे के बीच कहां और क्या करने जा रहे हो?’’

‘‘दूसरा काम यही हे कि तुम इस बारे में कोई सवाल नहीं करोगी. लेकिन तुम्हारे लिए कोई खतरा नहीं है. कई गवाह होंगे, जो यह साबित कर देंगे कि इस दौरान मैं ने तुम्हारे यहां तुम्हारे साथ समय बिताया है. लेकिन सब से बड़ी गवाह तुम होगी. संभव है, इस की नौबत ही न आए. ओके.’’

‘‘बात तो ठीक लगती है,’’ मिस आलिया ने कुछ सोचते हुए कहा, ‘‘लेकिन रुपए कब मिलेंगे?’’

‘‘10 हजार अभी और 10 हजार काम के बाद.’’ लालू ने कहा.

‘‘इतने से काम के लिए 20 हजार रुपए… कोई बड़ा हाथ मारने जा रहे हो क्या?’’

‘‘कोई सवाल नहीं, मैं पहले ही कह चुका हूं.’’

‘‘ठीक है, मैं तैयार हूं. निकालो 10 हजार रुपए.’’

‘‘तुम अपनी तरफ से भी 1-2 गवाह बना लो तो अच्छी बात है. जैसे तुम किसी बहाने से अपनी किसी सहेली के कान में यह बात डाल दो कि कल रात तुम ने मुझे कंपनी दी थी.’’

‘‘तुम यह तीसरा काम बता रहे हो.’’

‘‘हां, लेकिन इस तरह तुम खुद को अधिक सुरक्षित अनुभव करोगी. चलो, बोनस के रूप में 5 हजार अलग से.’’

अगली सुबह लालू ने जो कपडे़ पहने थे वे दूसरों से अलग नजर आ रहे थे. खाकी रंग की डर्बी कैप भी उस ने सिर पर रख ली थी. खुद को अलग दिखाना उस की योजना का एक हिस्सा था, जिस से देखने वालों को यह बात याद रहे.

घटनास्थल से काफी दूर दिखाई देना अपराधी के लिए लाभदायक साबित होता है. योजना बनाने वाला तो वह था ही, अपराध करने पहली बार जा रह था. अपनी योजना के तहत लालू गेलार्ड होटल पहुंचा. उस ने होटल गेलार्ड में एक कमरा बुक कराया और वहां दोपहर का खाना खा कर बाहर निकल गया.

शाम को 4 बजे वह वापस लौटा और लौबी से गुजरता हुआ औफिस डेस्क पर रूम क्लर्क के पास जा कर बोला, ‘‘हैदराबाद से एक फोन आने वाला है. इस फोन के अलावा जो भी फोन आए, कह देना कि मैं ने होटल छोड़ दिया है. लेकिन हैदराबाद से फोन आए तो उसे बताना कि मैं मिस आलिया के साथ उस के अपार्टमेंट में हूं.’’

उस ने बेतकल्लुफी से रूम क्लर्क को आंख मारी और सौ रुपए का एक नोट उस के आगे खिसकाते हुए बोला, ‘‘अच्छा होगा कि मेरी बात लिख लो, कहीं भूल न जाना.’’

‘‘भूलने का सवाल ही पैदा नहीं होता.’’ रूम क्लर्क ने अपनी बत्तीसी दिखाते हुए कहा.

घंटे भर बाद लालू फूलों की दुकान पर था. वहां से उस ने लाल गुलाबों का गुलदस्ता बनवाया.

‘‘एक सुंदर कार्ड फूलों के साथ लगा दीजिए और उस पर लिखिए-मिस आलिया की मोहब्बत के लिए. हस्ताक्षर की जगह मेरा नाम लाल मोहम्मद लिख दें.’’ लालू ने उस में अपना पूरा पता भी लिखवाया.

वहां से संतुष्ट हो कर लालू ने टैक्सी पकड़ी. टैक्सी ड्राइवर ने उस के विचित्र कपड़ों और कैप पर नजर डाली. उस के बाद फूलों की तरफ देखा. लालू रोमांटिक स्वर में बोला, ‘‘ये फूल मेरी प्रेमिका मिस आलिया के लिए हैं. तुम ने सुपर अपार्टमेंट की इमारत देखी है न?’’

‘‘जी सर.’’

‘‘बस, वहीं ले चलो. मेरी प्रेमिका वहीं रहती है.’’ लालू ने कहा.

टैक्सी ड्राइवर ने मुसकराते हुए टैक्सी आगे बढ़ा दी. टैक्सी सुपर अपार्टमेंट पहुंची तो किराए के अलावा लालू ने टैक्सी ड्राइवर को सौ रुपए टिप में भी दिए. ताकि वह उसे याद रखे. लालू के पैसे खर्च तो हो रहे थे, लेकिन सौदा बुरा नहीं था. रूम क्लर्क, फूल वाला और टैक्सी ड्राइवर… अब तक उस ने घटनास्थल से दूर अपनी उपस्थिति के 3 गवाह बना लिए थे.

थोड़ी देर बाद लालू मिस आलिया को महकते गुलाबों का गुलदस्ता पेश करते हुए बोला, ‘‘मेरी आलिया के लिए.’’

‘‘ओह लालू, यह मेरे लिए?’’ आलिया ने पूछा.

‘‘हां, इस में कोई शक.’’

‘‘ओह लालू, सो स्वीट यू.’’

इस के बाद खानेपीने का दौर चला. लालू ने अपनी ब्रांड के कई सिगरेट पिए और उन के टोटे इधरउधर डाल दिए. उस ने अपनी जेबी कंघी बाथरूम में छोड़ दी. कई जगहों पर लालू से स्वयं अपनी अंगुलियों के निशान छाप दिए. यह सब देख कर आलिया मुसकराते हुए बोली, ‘‘तुम पहले से ज्यादा होशियार हो गए हो.’’

‘‘वक्त आदमी को सब कुछ सिखा देता है.’’ लालू ने कहा, ‘‘और अब ध्यान से सुनो, तुम्हें सिर्फ यह अदाकारी करनी है कि तुम मेरे साथ हो. इस के अलावा किसी से कुछ नहीं कहना. नीचे गार्ड ने देख लिया है कि मैं तुम्हारे पास आया हूं. मैं ने उस से कुछ अर्थपूर्ण बातें भी की थीं. अब मैं खिड़की के रास्ते फायर एस्केप के द्वारा जा रहा हूं. मैं ने अपनी कार यहां से थोड़ी दूरी पर दोपहर में ही खड़ी कर दी थी. अब मैं रात 2 बजे इसी रास्ते से अंदर आऊंगा. खिड़की खुली रखना.’’

डेढ़ घंटे बाद लालू शम्सू के फ्लैट में बैठा था. उस ने वहां की किसी भी चीज को हाथ नहीं लगाया. उस ने खानेपीने से भी इनकार कर दिया था. इस से क्रौकरी पर उस की अंगुलियों के निशान पड़ सकते थे. शम्सू लालू को उस समय देख कर हैरान था. लेकिन जब लालू ने यह कहा कि वह अगले ‘एक्शन’ के लिए योजना बना कर आया है तो शम्सू सामान्य हो गया. उस ने कहा कि उस की हर योजना कारगर होती है तो लालू ने कहा, ‘‘हां, यह बात तो है. चलो, इसी बात पर मुझे 5 हजार रुपए दे दो. कल मैं बैंक से निकाल कर तुम्हें दे दूंगा.’’

‘‘ओके बौस.’’ शम्सू एक छोटी अलमारी की तरफ बढ़ा. लालू को पता था कि शम्सू अपने रुपए कहां रखता है. शम्सू ने अलमारी खोली. दाईं ओर कपड़ों के पीछे एक गुप्त लौकरनुमा खाना था. उस में ढेर सारे नोट रखे थे. शम्सू ने 5 हजार गिन कर अलग किए.

इधर लालू दबेपांव उठा. उस के हाथ में रिवौल्वर था. इस से पहले कि रुपए ले कर शम्सू पलटता, उस के सिर पर भयंकर विस्फोट हुआ. लालू ने फायर नहीं किया था, बल्कि रिवौल्वर का वजनी दस्ता उस के सिर पर जोरों से दे मारा था.

शम्सू की खोपड़ी चटक गई और खून का फव्वारा फूट पड़ा. लेकिन लालू ने खुद को खून के छींटों से बचाए रखा. शम्सू के जमीन पर गिरतेगिरते उस ने 5 वार उस के सिर पर कर दिए. शम्सू की बेनूर आंखें उस की मौत की घोषणा कर रही थीं. शीघ्र ही लालू रात के सन्नाटे में बाहर निकला. उस ने रिवौल्वर को थोड़ी दूर चल कर गंदे नाले में फेंक दिया.

इस के बाद फ्लैटों के पास बने स्विमिंग पूल के पानी से उस ने हाथमुंह तथा अपनी कमीज की आस्तीन धोई और आस्तीनें नीचे गिरा कर बटन लगा दिए. इस के बाद वह शम्सू के फ्लैट में दोबारा गया. उस ने अपने कपड़ों का बारीकी से निरीक्षण किया. फिर छोटी अलमारी का गुप्त लौकर खोल कर उस ने सारे रुपए निकाल लिए. रुपए निकालने और गुप्त लौकर को खोलने से पहले उस ने दस्ताने पहन लिए थे. रुपयों को जेबों में भरने के बाद वह वहां से चल पड़ा. रास्ते में उस ने दस्तानों में बडे़ पत्थर डाल कर उन्हें भी गंदे नाले में उछाल दिया.

लालू अपनी कार में बैठा अपने दिलोदिमाग को सामान्य कर रहा था. यह उस का पहला कत्ल था, इसलिए उस ने सभी पहलुओं पर गौर किया कि कहीं कोई गलती तो नहीं रह गई. रुपयों को उस ने एक सुनसान स्थान पर गड्ढा खोद कर गाड़ दिया था, जहां सरकारी पोल लगा था. मगर बल्ब नहीं जल रहा था.

2 बजे से पहले वह मिस आलिया के अपार्टमेंट से कुछ दूरी पर ही था कि पुलिस की गश्ती टीम उस की कार के पीछे लग गई. उसे लगा कि शायद कार को तेज रफ्तार से चलाने के कारण पुलिस वाले उस के पीछे लग गए हैं. लालू शांत भाव से कार को तेजी से चलाता रहा.

लेकिन पुलिस की गश्ती टीम ने अपने वैन लालू की कार से आगे निकाल कर रोक दी. लालू ने सोचा कि वह अच्छे शहरी की तरह चालान भर कर अपने रास्ते चला जाएगा. लेकिन यहां तो कुछ अलग ही बात थी.

‘‘चलिए जनाब, नीचे उतर कर हमारी वैन में बैठ जाइए. हम आप को बहुत देर से ढूंढ रहे थे.’’ एक पुलिस वाले ने कहा, ‘‘आप को दारोगाजी ने बुलाया है.’’

‘‘यह क्या बकवास है? ऐसा क्या कर दिया है मैं ने जो मुझे पुलिस स्टेशन पर बुलाया गया है.’’ लालू ने कहा.

थोड़ी देर बाद लालू थाने में दारोगा के सामने खड़ा था. उस ने पूछा, ‘‘मुझे यहां क्यों लाया गया है?’’

‘‘तुम रात 10 बजे के बाद कहां थे?’’ दारोगा ने घूरते हुए पूछा.

‘‘मैं अपनी प्रेमिका मिस आलिया से मिलने गया था. लेकिन बात क्या है?’’ लालू ने सब कुछ जानते हुए पूछा.

‘‘तुम ठीक कह रहे हो, लेकिन यह कत्ल का मामला है, जिस में तुम पूरी तरह फंस चुके हो.’’ दारोगा ने कहा.

‘‘कत्ल… किस का कत्ल? मैं ने तो किसी का कत्ल नहीं किया. तुम मुझ पर झूठा आरोप नहीं लगा सकते. अगर रात में किसी का कत्ल हुआ है तो तुम जानते हो कि मैं कहां था. मैं गवाह भी पेश कर सकता हूं.’’ लालू नाराज हो कर बोला.

‘‘गवाह मुझे सब मिल गए हैं, गवाहों की वजह से ही तो हमें कोई परेशानी नहीं हुई.’’ दारोगा ने कहा, ‘‘हम तुम्हें मिस आलिया के कत्ल के इल्जाम में गिरफ्तार कर रहे हैं. रात में आलिया का कत्ल कर के उस का अपार्टमेंट लूटा गया है.’’

यह सुन कर लालू के दिमाग में बम जैसा धमाका हुआ और उस की निगाहों के सामने अंधेरा फैल गया.

जाग सके तो जाग : साध्वी माला को कैसे मिली असली शिक्षा

घर के ठीक सामने वाले मंदिर में कोई साध्वी आई हुई थीं. माइक पर उन के प्रवचन की आवाज मेरे घर तक पहुंच रही थी. बीचबीच में ‘श्रीराम…श्रीराम…’ की धुन पर वे भजन भी गाती जा रही थीं. महिलाओं का समूह उन की आवाज में आवाज मिला रहा था.

अकसर दोपहर में महल्ले की औरतें हनुमान मंदिर में एकत्र होती थीं. मंदिर में भजन या प्रवचन की मंडली आई ही रहती थी. कई साध्वियां अपने प्रवचनों में गीता के श्लोकों का भी अर्थ समझाती रहती थीं.

मैं सरकारी नौकरी में होने की वजह से कभी भी दोपहर में मंदिर नहीं जा पाती थी. यहां तक कि जिस दिन पूरा भारत गणेशजी की मूर्ति को दूध पिला रहा था, उस दिन भी मैं ने मंदिर में पांव नहीं रखा था. उस दिन भी तो गांधीजी की यह बात पूरी तरह सच साबित हो गई थी कि भीड़ मूर्खों की होती है.

एक दिन मंदिर में कोई साध्वी आई हुई थीं. उन की आवाज में गजब का जादू था. मैं आंगन में ही कुरसी डाल उन का प्रवचन सुनने लगी. वे गीता के एक श्लोक का अर्थ समझा रही थीं…

‘इस प्रकार मनुष्य की शुद्ध चेतना उस के नित्य वैरी, इस काम से ढकी हुई है, जो सदा अतृप्त अग्नि के समान प्रचंड रहता है. मनुस्मृति में उल्लेख है कि कितना भी विषय भोग क्यों न किया जाए, पर काम की तृप्ति नहीं होती.’

थोड़ी देर बाद प्रवचन समाप्त हो गया और साध्वीजी वातानुकूलित कार में बैठ कर चली गईं.

दूसरे दिन घर के काम निबटा, मैं बैठी ही थी कि दरवाजे की घंटी बजी, मन में आया कि कहला दूं कि घर पर नहीं हूं. पर न जाने क्यों, दूसरी घंटी पर मैं ने खुद ही दरवाजा खोल दिया.

बाहर एक खूबसूरत युवती और मेरे महल्ले की 2 महिलाएं नजर आईं. उस खूबसूरत लड़की पर मेरी निगाहें टिकी की टिकी रह गईं, लंबे कद और इकहरे बदन की वह लड़की गेरुए रंग की साड़ी पहने हुए थी.

उस ने मोहक आवाज में पूछा, ‘‘आप मंदिर नहीं आतीं, प्रवचन सुनने?’’

मैं ने सोचा, यह बात उसे मेरी पड़ोसिन ने ही बताई होगी, वरना उसे कैसे पता चलता.

मैं ने कहा, ‘‘मेरा घर ही मंदिर है. सारा दिन घर के लोगों के प्रवचनों में ही उलझी रहती हूं. नौकरी, घर, बच्चे, मेरे पति… अभी तो इन्हीं से फुरसत नहीं मिलती. दरअसल, मेरा कर्मयोग तो यही है.’’

वह बोली, ‘‘समय निकालिए, कभी अकेले में बैठ कर सोचिए कि आप ने प्रभु की भक्ति के लिए कितना समय दिया है क्योंकि प्रभु के नाम के सिवा आप के साथ कुछ नहीं जाएगा.’’

मैं ने कहा, ‘‘साध्वीजी, मैं तो साधारण गृहस्थ जीवनयापन कर रही हूं क्योंकि मुझे बचपन से ही सृष्टि के इसी नियम के बारे में सिखाया गया है.’’

मालूम नहीं, साध्वी को मेरी बातें अच्छी लगीं या नहीं, वे मेरे साथ चलतेचलते बैठक में आ कर सोफे पर बैठ गईं.

तभी एक महिला ने मुझ से कहा, ‘‘साध्वीजी के चरण स्पर्श कीजिए और मंदिरनिर्माण के लिए कुछ धन भी दीजिए. आप का समय अच्छा है कि साध्वी माला देवी स्वयं आप के घर आई हैं. इन के दर्शनों से तो आप का जीवन बदल जाएगा.’’

मुझे उस की बात बड़ी बेतुकी लगी. मैं ने साध्वी के पैर नहीं छुए क्योंकि सिवा अपने प्रियजनों और गुरुजनों के मैं ने किसी के पांव नहीं छुए थे.

धर्म के नाम पर चलाए गए हथकंडों से मैं भलीभांति परिचित थी. इस से पहले कि साध्वी मुझ से कुछ पूछतीं, मैं ने ही उन से सवाल किया, ‘‘आप ने संन्यास क्यों और कब लिया?’’

साध्वी ने शायद ऐसे प्रश्न की कभी आशा नहीं की थी. वे तो सिर्फ बोलती थीं और लोग उन्हें सुना करते थे. इसलिए मेरे प्रश्न के उत्तर में वे खामोश रहीं, साथ आई महिलाओं में से एक ने कहा, ‘‘साध्वीजी ने 15 बरस की उम्र में संन्यास ले लिया था.’’

‘‘अब इन की उम्र क्या होगी?’’ मेरी जिज्ञासा बराबर बनी हुई थी, इसीलिए मैं ने दूसरा सवाल किया था.

‘‘साध्वीजी अभी कुल 22 बरस की हैं,’’ दूसरी महिला ने प्रवचन देने के अंदाज में कहा.

मैं सोच में पड़ गई कि भला 15 बरस की उम्र में साध्वी बनने का क्या प्रयोजन हो सकता है? मन को ढेरों सवालों ने घेर लिया कि जैसे, इन के साथ कोई अमानुषिक कृत्य तो नहीं हुआ, जिस से इन्हें समाज से घृणा हो गई या धर्म के ठेकेदारों का कोई प्रपंच तो नहीं.

कुछ माह पहले ही हमारे स्कूल की एक सिस्टर (नन) ने विवाह कर लिया था. कुछ सालों में उस का साध्वी होने का मोहभंग हो गया था और वह गृहस्थ हो गई थी. एक जैन साध्वी का एक दूध वाले के साथ भाग जाने का स्कैंडल मैं ने अखबारों में पढ़ा था.

‘जिंदगी के अनुभवों से अनजान इन नादान लड़कियों के दिलोदिमाग में संन्यास की बात कौन भरता है?’ मैं अभी यह सोच ही रही थी कि साध्वी उठ खड़ी हुईं, उन्होंने मुझ से दानस्वरूप कुछ राशि देने के लिए कहा.

मैं ने 100 रुपए दे दिए.

थोड़ी सी राशि देख कर, साध्वी ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘तुम में तो इतनी सामर्थ्य है, चाहे तो अकेले मंदिर बनवा सकती हो.’’

मैं ने कहा, ‘‘साध्वीजी, मैं नौकरीपेशा हूं. मेरी और मेरे पति की कमाई से यह घर चलता है. मुझे अपने बेटे का दाखिला इंजीनियरिंग कालेज में करवाना है. वहां मुझे 3 लाख रुपए देने हैं. यह प्रतियोगिता का जमाना है. यदि मेरा बेटा कुछ न कर पाया तो गंदी राजनीति में चला जाएगा और धर्म के नाम पर मंदिर, मसजिदों की ईंटें बजाता रहेगा.’’

तभी मेरी सहेली का बेटा उमेश घर में दाखिल हुआ. साध्वी को देखते ही उस ने उन के चरणों का स्पर्श किया.

साध्वी के जाने के बाद मैं ने उसे डांटते हुए कहा, ‘‘बेशर्म, उन के पैर क्यों छू रहा था?’’

‘‘अरे मौसी, तुम पैरों की बात करती हो, मेरा बस चलता तो मैं उस का…अच्छा, एक बात बताओ, जब भक्त इन साध्वियों के पैर छूते होंगे तो इन्हें मर्दाना स्पर्श से कोई झनझनाहट नहीं होती होगी?’’

मैं उमेश की बात का क्या जवाब देती, सच ही तो कह रहा था. जब मेरे पति ने पहली बार मेरा स्पर्श किया था तो मैं कैसी छुईमुई हो गई थी. फिर इन साध्वियों को तो हर आम और खास के बीच में प्रवचन देना होता है. अपने भाषणों से तो ये बड़ेबड़े नेताओं के सिंहासन हिला देती हैं, सारे राजनीतिक हथकंडे इन्हें आते हैं. भीड़ के साथ चलती हैं तो क्या मर्दाना स्पर्श नहीं होता होगा? मैं उमेश की बात पर बहुत देर तक बैठी सोचती रही.

रात को कोई 8 बजे साध्वी माला देवी का फोन आया. वे मुझ से मिलना चाहती थीं. मैं उन के चक्कर में फंसना नहीं चाहती थी, इसलिए बहाना बना, टाल दिया. पर कोई आधे घंटे बाद वे मेरे घर पर आ गईं, उन्हीं गेरुए वस्त्रों में. उन का शांत चेहरा मुझे बरबस उन की तरफ खींच रहा था. सोफे पर बैठते ही उन्होंने उच्च स्वर में रामराम का आलाप छेड़ा, फिर कहने लगीं, ‘‘कितनी व्यस्त हो सांसारिक झमेलों में… क्या इन्हें छोड़ कर संन्यास लेने का मन नहीं होता?’’

मैं ने कहा, ‘‘माला देवी, बिलकुल नहीं, आप तो संसार से डर कर भागी हैं, लेकिन मैं जीवन को जीना चाहती हूं. आप के लिए जीवन खौफ है, पर मेरे लिए आनंद है. संसार के सारे नियम भी प्रकृति के ही बनाए हुए हैं. बच्चे के जन्म से ले कर मृत्यु, दुख, आनंद, पीड़ा, माया, क्रोध…यह सब तो संसार में होता रहेगा, छोटी सी उम्र में ही जिंदगी से घबरा गईं, संन्यास ले लिया… दुनिया इतनी बुरी तो नहीं. मेरी समझ में आप अज्ञानवश या किसी के छल या बहकावे के कारण साध्वी बनी हैं?’’

वे कुछ देर खामोशी रहीं. जो हमेशा प्रवचन देती थीं, अब मूक श्रोता बन गई थीं. वे समझ गई थीं कि उन के सामने बैठी औरत उन भेड़ों की तरह नहीं है जो सिर नीचा किए हुए अगली भेड़ों के साथ चलती हैं और खाई में गिर जाती हैं.

मेरे भीतर जैसे एक तूफान सा उठ रहा था. मैं साध्वी को जाने क्याक्या कहती चली गई. मैं ने उन से पूछा, ‘‘सच कहना, यह जो आप साध्वी बनने का नाटक कर रही हैं, क्या आप सच में भीतर से साध्वी हो गई हैं? क्या मन कभी बेलगाम घोड़े की तरह नहीं दौड़ता? क्या कभी इच्छा नहीं होती कि आप का भी कोई अपना घर हो, पति हो, बच्चे हों, क्या इस सब के लिए आप का मन अंदर से लालायित नहीं होता?’’

मेरी बातों का जाने क्या असर हुआ कि साध्वी रोने लगीं. मैं ने भीतर से पानी ला कर उन्हें पीने को दिया, जब वे कुछ संभलीं तो कहने लगीं, ‘‘कितनी पागल है यह दुनिया…साध्वी के प्रवचन सुनने के लिए घर छोड़ कर आती है और अपने भीतर को कभी नहीं खोज पाती. तुम पहली महिला हो, जिस ने गृहस्थ हो कर कर्मयोग का संन्यास लिया है, बाहर की दुनिया तो छलावा है, ढोंग है. सच, मेरे प्रवचन तो उन लोगों के लिए होते हैं, जो घरों से सताए हुए होते हैं या जो बहुत धन कमा लेने के बाद शांति की तलाश में निकलते हैं. इन नवधनाढ्य परिवारों में ही हमारा जादू चलता है. तुम ने तो देखा होगा, हमारी संतमंडली तो रुकती ही धनाढ्य परिवारों में है. लेकिन तुम तो मुझ से भी बड़ी साध्वी हो, तुम्हारे प्रवचनों में सचाई है क्योंकि तुम्हारा धर्म तुम्हारे आंगन तक ही सीमित है.’’

एकाएक जाने क्या हुआ, साध्वी ने मेरे चरणों को स्पर्श करते हुए कहा, ‘‘मैं लोगों को संन्यास लेने की शिक्षा देती हूं, पर तुम से अपने दिल की बात कह रही हूं, मैं संसारी होना चाहती हूं.’’

उन की यह बात सुन कर मैं सुखद आश्चर्य में डूब गई.

आखिर कितना घूरोगे: गांव से दिल्ली आई वैशाली के साथ क्या हुआ?

बंटी-भाग 1: क्या अंगरेजी मीडियम स्कूल दे पाया अच्छे संस्कार?

सुधा मायके गई है और शाम को जब वह वापस आएगी तो बंटी के स्कूल को ले कर फिर से उस के साथ चिकचिक होगी, सुधीर को इस बात की पूरी आशंका थी.

सुधा के मायके वाले अमीर थे. करोड़ों में फैला उन का कारोबार था. सुधा के सारे भतीजेभतीजियां महंगे अंगरेजी स्कूलों में पढ़ते थे और फर्राटे से अंगरेजी बोलते थे. सुधा की परेशानी की असली वजह यही थी. बंटी के स्कूल को ले कर वह अपनी दोनों भाभियों के सामने जैसे छोटी और हीन पड़ जाती थी. दूसरे शब्दों में कहें तो, कौंपलैक्स की शिकार हो जाती थी. बंटी का किसी छोटे स्कूल में पढ़ना जैसे सुधा के लिए अपमान की बात थी.

अपना ज्यादा वक्त किटी पार्टियों और ब्यूटीपार्लर में बिताने वाली सुधा की अमीर और फैशनपरस्त भाभियां सबकुछ जानते हुए बंटी के स्कूल को ले कर जानबूझ कर सवाल करतीं और अपनेपन व हमदर्दी की आड़ में बंटी के स्कूल को तुरंत बदल देने की सलाह भी देती थीं. सुधा की दुखती रग को दबाने में शायद उन्हें मजा आता था. इस मामले में सुधा को नादान ही कहा जा सकता था. भाभियों की असली मंशा को वह समझ नहीं पाती थी.

मायके से आ कर बंटी के स्कूल को ले कर हमेशा बिफर जाती थी सुधा और इस बार भी ऐसा ही होने वाला था. जैसी सुधीर को आशंका थी, वैसा हुआ भी.

इस बार सुधा के बिफरने का अंदाज पहले से कहीं अधिक उग्र था. अब की बार बंटी के मामले में जैसे वह कुछ ठान कर ही आई थी.

आते ही उस ने ऐलान कर दिया, ‘‘बस, बहुत हो चुका, मैं कल ही बंटी को किसी अच्छे से अंगरेजी स्कूल में दाखिला दिलवा दूंगी. इस निकम्मे से देसी स्कूल में वह कुछ नहीं सीख सकेगा, सिवा गंदी गालियों के.’’

‘‘लेकिन मैं ने तो कभी उस के मुंह से गंदी गाली निकलती हुई नहीं सुनी. हां, सुबह स्कूल जाते हुए वह हम दोनों के पांवों को जरूर छूता है. यह एक अच्छी चीज है और ऐसा करना बंटी ने जरूर उस स्कूल में ही सीखा होगा जिस को अकसर तुम निकम्मा और देसी कहती हो,’’ मुसकराते हुए सुधीर ने कहा.

‘‘मैं तुम्हारे साथ किसी बेकार की बहस में नहीं पड़ना चाहती. कल से बंटी किसी दूसरे अंगरेजी स्कूल में ही जाएगा. तुम नहीं जानते बंटी के कारण ही मुझ को कितने कड़वे घूंट पीने पड़ते हैं. भैया के बच्चों की तरह बंटी में आत्मविश्वास ही नहीं है. हर समय मेरी गोद में ही दुबके रहना चाहता है. कहीं भी नहीं ठहर पाता बंटी उन के सामने.’’

‘‘मगर इन सारी बातों का इलाज स्कूल बदलने से ही हो जाएगा क्या?’’ सुधीर ने पूछा.

‘‘जरूर होगा. भैया के बच्चों में आत्मविश्वास और हाजिरजवाबी केवल उन के स्कूल की वजह से ही है. वे किसी भी सवाल पर न तो बंटी की तरह झेंपते हैं और न ही घबराते हैं. उन की मौजूदगी में तो बंटी के मुंह से बात तक नहीं निकलती. नीरू भाभी तो कुछ नहीं कहतीं, लेकिन आरती भाभी की आदत को तो तुम जानते ही हो, वे कोई न कोई ऐसी बात कहने से बाज नहीं आतीं, जो तनबदन में आग लगा दे. एक ही तो बेटा है हमारा. फिर हमारे पास कमी किस चीज की है? हम भी तो बंटी को किसी अच्छे स्कूल में पढ़ा सकते हैं?’’

‘‘बंटी अपनी पढ़ाई में तो ठीक ही है सिवा इस के कि वह फर्राटे से अंगरेजी नहीं बोल सकता. फिर वह अभी काफी छोटा है. इस समय उस का स्कूल बदलना ठीक नहीं होगा,’’ सुधीर ने उस को समझाना चाहा.

‘‘नहीं, इस बार मैं तुम्हारी एक भी नहीं सुनूंगी. कल से बंटी किसी दूसरे स्कूल में ही जाएगा,’’ सुधा का स्वर निर्णायक था.

सुधा ने जैसा कहा वैसा किया भी. स्कूल का रिकशा आया तो उस ने बंटी को स्कूल नहीं भेजा.

इस के बाद सुधा ने मायके फोन किया और अपनी भाभियों से उन स्कूलों की लिस्ट मांगी जिन में से किसी एक में बंटी का दाखिला करवाने के बाद वह अपनी हीनभावना से मुक्त हो सकती थी.

दोनों भाभियों ने कई महंगे अंगरेजी स्कूलों के नाम सुधा को सुझाए.

भाभियों द्वारा सुझाए गए स्कूलों में से किसी एक को चुनने के लिए जब सुधा ने सुधीर से सलाह मांगी तो उस ने कहा, ‘‘अब इस के बारे में भी तुम अपनी किसी भाभी से ही पूछ लो तो बेहतर रहेगा, क्योंकि मुझ को इन सारे स्कूलों के बारे में कोई ज्यादा जानकारी नहीं.’’

इस पर सुधा का मुंह बन गया. वह बोली, ‘‘तुम से तो बात करना ही बेकार है. मेरे मायके वालों की किसी भी बात से तो तुम्हें वैसे ही चिढ़ है.’’

पत्नी की इस पुरानी शिकायत पर सुधीर के पास मुसकराने के अलावा कोई रास्ता नहीं था.

हर बात में मायके का राग अलापना कुछ औरतों के स्वभाव में शामिल होता है और सुधा उन्हीं में से एक थी.

सुधीर के दफ्तर जाने से पहले ही सुधा बंटी को ले कर उसे अंगरेजी स्कूल में दाखिला करवाने के अभियान पर निकल पड़ी.

सुधीर ने उस से पैसों के बारे में पूछा तो उस ने कहा, ‘‘मेरे पास हैं. कल रमेश भैया ने भी काफी रुपए दे दिए थे. मैं ने लेने से इनकार भी किया था मगर वे

नहीं माने.’’

‘‘हां, बंटी के अंगरेजी स्कूल में दाखिले का सवाल था, तुम भी इनकार कैसे करतीं,’’ सुधीर ने व्यंग्यपूर्वक कहा.

‘‘मैं जानती थी, तुम कोई ताना मारने से बाज नहीं आओगे,’’ मुंह बनाती हुई सुधा ने कहा और बंटी को ले कर बाहर निकल गई.

शाम को सुधीर जब दफ्तर से वापस आया तो सुधा के चेहरे पर रौनक थी.

उस के चेहरे की रौनक से स्पष्ट था कि बंटी का ऐडमिशन किसी अंगरेजी स्कूल में हो गया था. जैसे कोई बड़ा किला फतह कर लिया हो, कुछ ऐसी ही हालत थी सुधा की.

सुधीर के कुछ पूछने से पहले ही वह खुद बंटी के ऐडमिशन में पेश आई मुश्किलों की सारी कहानी उसे बताने लगी. कहानी के अंत में बंटी को ऐडमिशन का सारा श्रेय अपने भाई को देना नहीं भूली, सुधा.

‘‘रमेश भैया की सिफारिश नहीं होती तो बंटी को बिना डोनेशन के कभी भी ऐडमिशन नहीं मिलता.’’

‘‘चलो, जैसे भी है बंटी को अंगरेजी स्कूल में ऐडमिशन मिल गया. अब कम से कम उस के कारण अपनी भाभियों के सामने तुम्हारी नाक नीची नहीं होगी,’’ चुटकी लेते हुए सुधीर ने कहा. सुधा का मुंह बन गया.

अपनी मम्मी और पापा की बातों से एकदम उदासीन बंटी अपने नए वाले स्कूल की किताबों को उलटपलट कर देख रहा था. वह परेशान सा नजर आ रहा था.

आहुति -भाग 4 : नैनीताल में क्या हुआ था आहुति के साथ

वृंदा मिश्रा

आखिर जिया अभी तक पापा की मौत के सदमे से बाहर न निकली थी, या यों वह प्रदर्शित कर रही थी पर प्रथम ने मु?ो सम?ाया कि यह वक्त मेरे कैरियर के लिए कितना कीमती है और मु?ो इसे गंवाना नहीं चाहिए. ‘‘पापा के रहतेरहते ही प्रथम हमारे घर का सदस्य बन गया था और अकसर ही उस का आनाजाना होता था. कई बार होता कि मैं औफिस के लिए निकलने वाली होती और प्रथम घर आ जाता और मेरे और जिया के साथ हंसीठिठोली कर उन का और मेरा मन बहलाता. उस की यह बात मु?ो बेहद पसंद आने लगी थी कि वह जिया और मेरी कितनी परवा करता है.

पर, मैं ही बेवकूफ थी.’’ और वह एक कड़वी हंसी हंसने लगी. ‘‘क्या हुआ आहु?’’ मैं ने आगे पूछा. ‘‘एक रात मैं जब औफिस पहुंची तो पता चला कि किन्हीं आपातकालीन परिस्थितियों की वजह से हमारी छुट्टी कर दी थी. मैं खुश हो कर घर लौट आई, क्योंकि पापा की बरसी पास आ रही थी और मैं ने बहुत दिनों से जिया के साथ समय नहीं बिताया था. ‘‘मैं ने सोचा कि घर जा कर उसे ढांढ़स बंधाऊंगी, आखिर यह वक्त हम दोनों के लिए मुश्किल था. जिया को क्या डिस्टर्ब करना, ?इसलिए मैं अपनी चाबी से दरवाजा खोल कर अंदर चली गई. मैं अपने कमरे की तरफ जा रही थी कि तभी मैं ने देखा, जिया के कमरे की बत्ती चालू है और अंदर से अजीब आवाजें आ रही हैं. मु?ो लगा कि वह कहीं रो तो नहीं रही और इसीलिए मैं उसे सांत्वना देने उस के कमरे में चली गई. ‘‘पर पता है प्रियल,

वहां क्या हो रहा था. जिया और प्रथम, दोनों एक बिस्तर में थे.’’ और उस की आंखें गुस्से से भर आईं. ‘‘मैं सम?ा गई थी और इसलिए मैं ने उस से कहा, ‘‘तु?ो कुछ कहने की जरूरत नहीं है आहुति, मैं सब सम?ा गई. ‘‘पर जिया और प्रथम इतना नीच कैसे?’’ ‘‘मु?ो खत्म करना होगा यह वाक्य, प्रियल. अपने लिए, वर्षों बाद इस जहर को मैं अपने गले से निकाल रही हूं, मु?ो निकालने दे. बहुत दिन इस विष के साथ जी लिया मैं ने,’’ वह थोड़ा संभलते हुए बोली. ‘‘वे दोनों जिस अवस्था में थे, मैं देख कर स्तब्ध रह गई थी. मु?ो सम?ा नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं, क्या कहूं और किस से? उस दिन पहली बार मु?ो बहुत अकेलापन महसूस हुआ. ‘‘खैर, प्रथम की आंखें मु?ा से जा मिलीं और उस की नजर फटी की फटी रह गई पर मजे की बात पता है प्रियल, उन आंखों में चोरी पकड़े जाने का भय था पर ग्लानि, कहीं भी नहीं. ‘‘मैं कमरे से बाहर निकल आई,

यह सोच कर कि मु?ो देख वे दोनों भी बाहर आ जाएंगे पर हद तो तब हुई, जब वे दोनों करीब आधे घंटे बाद मेरे सामने आए. ‘‘मैं कान बंद किए बाहर बैठी रही, मैं उन की माफी का इंतजार करती रही, मैं इस दुस्वप्न से जागने का इंतजार करती रही पर ऐसा कुछ न हुआ.’’ वह थोड़ा रुकी, फिर बोली, ‘‘इसी बीच मु?ो पड़ोस वाली आंटी की वे बातें भी याद आईं, जहां इशारोंइशारों में उन्होंने मु?ो सम?ाना चाहा था. शायद पड़ोस के लोग इन बातों को जल्दी सम?ा जाते हैं. पर, मैं ही नादान थी.’’ ‘‘बाहर आ कर जिया के चेहरे पर जो भाव थे, वे किसी सौतेली मां से भी भयंकर थे. मैं पूछना चाहती थी, क्यों? पर मेरे पूछने के पहले ही उस ने जवाब दे दिया. जवाब यह था कि उस ने मेरे पिता से विवाह सिर्फ पैसों के लिए किया था और पिता के मरणोपरांत वह पैसा उसे मिल गया था. ‘‘और रही बात प्रथम की तो यह उन की पहली रात नहीं थी. इस से पहले भी कई दिन, कई रातें दोनों ने एकदूसरे की बांहों में गुजारी थीं.

‘‘मैं मौन हो कर जिया की बातें सुनती रही और फिर प्रथम की ओर रुख किया. उस ने पता है क्या कहा. उस ने कहा कि मेरे जैसी काली से विवाह वह क्यों करेगा? विवाह का उस का मुख्य उद्देश्य था, मेरे पिता की संपत्ति, जो अब जिया के पास थी. जिया की सुंदरता, उस का खिला बदन और संपत्ति, उस के लिए ये सब से अच्छी डील थी.’’ ‘‘वे प्रेम कहां करते थे? उन्हें एकदूसरे से शारीरिक संबंध की चाह थी और शारीरिक संबंध में उम्र की दीवार उन के लिए अदृश्य थी. हां, उस ने मु?ा से यह भी कहा कि अगर मैं चाहूं तो वह मु?ा से विवाह अवश्य करेगा पर मु?ो उस के और जिया के संबंध को भी स्वीकारना होगा. ‘‘तब मैं सम?ा थी कि प्रथम हर वक्त मु?ा से यह क्यों कहता था कि विवाहोपरांत जिया हमारे साथ ही रहेगी. इसे मैं उस का अपनी सौतेली मां के प्रति आदर सम?ाती थी पर उस के इरादे तो कुछ और ही थे.’’ वह एक व्यंग्यात्मक मुसकान से हंस पड़ी. यह व्यंग्य उन दोनों के ऊपर नहीं, अपने ऊपर था, उस की नादानी पर. ‘‘इतना सुन कर मु?ो याद आई वकील अंकल की दी हुई सलाह और मैं फौरन अपना सामान बांध उस घर से निकल गई. ‘‘जब मैं वकील अंकल के पास पहुंची तो उन्होंने कहा कि मु?ो पता था,

तुम पर ऐसा वक्त आएगा, इसीलिए मैं ने तुम्हें जिया या प्रथम को प्रौपर्टी के बारे में बताने से मना कर दिया था. ‘‘उन्हीं की सलाह पर शहर में मैं ने पापा की सारी प्रौपर्टी बेच दी और सारा पैसा ले कर यहां नैनीताल चली आई. ‘‘जिया को पापा की सैक्रेटरी होने के नाते, प्रौपर्टी एंड इन्वैस्टमैंट के बारे में मालूम था, इसलिए मैं उस के किसी हथकंडे के लिए वहां एक भी सुराग नहीं छोड़ना चाहती थी. ‘‘मैं ने सबकुछ वकील अंकल की मदद से बेच दिया. अंकल तो मु?ो वह घर भी दिलाना चाहते थे पर मैं ने उस घर को उन दोनों के लिए छोड़ दिया, जिन्होंने उसे अपवित्र किया था. वैसे भी यह वह घर नहीं था जिस में मेरी, पापा और मम्मी की यादें बसी थीं, यह तो अब जिया और प्रथम के दागों का संसार था.’’ ‘‘एक बार मु?ो कौन्टैक्ट तो किया होता? इतना कुछ तू ने अकेले कैसे ?ोल लिया,’’ मैं ने पूछा. ‘‘मन तो बहुत किया पर सब से पहले मु?ो उन के वे सारे द्वार बंद करने थे जिन के माध्यम से वे मु?ा तक पहुंच सकें. मु?ो मालूम था कि सत्य का ज्ञान होते ही जिया और प्रथम मु?ो खोजने लगेंगे. इसलिए मैं ने अपने नंबर बदल दिए, अपने सभी सोशल मीडिया अकाउंट को डिलीट कर दिया और यहां नैनीताल आ गई. जिया पापा के जितनी भी करीब आई हो, वह उन के इतनी करीब कभी नहीं आ पाई जहां से वह उन की और मम्मी की यादों को टटोल सके. ‘‘नैनीताल मम्मी की मनपसंद जगह थी तो मैं उन की यादों को समेटे यहीं आ गई. यह जो छोटा सा घर है, यह भी पापा का एक इन्वैस्टमैंट था,

जिस के बारे में उन्होंने कभी किसी को नहीं बताया था. वे और मम्मी अपने स्वप्निल पल यहीं बिताते थे. ‘‘जब मैं बैग बांधे शहर छोड़ने को तैयार थी, तब वकील अंकल ने मु?ो पापा की इस धरोहर के बारे में बताया. मैं यहां जब आई तो कुछ दिन तो पापा के पैसों पर काटे और फिर यह दुकान बिकने वाली थी, सो मैं ने इसे खरीद लिया. व्यापार का ज्ञान तो मु?ो पापा से मिला ही था और फिर मेरी पढ़ाई भी थी तो सब काम में आ गया,’’ कह कर वह मुसकरा दी. ‘‘तू सच में फाइटर है, आहुति. आई एम सो प्राउड औफ यू. तू बिलकुल नहीं बदली मेरी पंजाबन,’’ मैं ने उसे कस के गले से लगा लिया.

‘‘अब आगे क्या आहुति, क्या कभी तू शादी…’’ ‘‘क्यों नहीं करूंगी. जरूर करूंगी. विश्वास मेरा छला जरूर गया है पर टूटा नहीं है. दुनिया में अगर प्रथम और जिया हैं तो नितिन जीजाजी जैसे अच्छे लोग भी. मु?ो भी मेरी हैप्पी बिगनिंग जरूर मिलेगी. उस दिन ढेरों बातें कीं हम ने पर रहरह कर जो बात मेरे दिलोदिमाग में चल रही थी, वह थी कि आहुति किस तरह जिया और प्रथम के स्वार्थ की अग्नि में आहुति बन कर चढ़ गई. यह तो मेरी आहुति थी जो अग्नि में जल कर भी राख नहीं हुई, बल्कि तप कर सोना बन गई. वरना आज इस देश में कितनी लड़कियां किसी के स्वार्थ के यज्ञ में आहुति बन कर चढ़ जाती हैं और फिर उन का अस्तित्व भस्म हो जाता है.

भारती सिंह के बेटे के साथ यूं दिखीं शहनाज गिल, मैनेजर की शादी में साड़ी में ढाया कहर

पंजाब की कैटरीना कैफ कहे जाने वाली शहनाज हुसैन आए दिन अपने लुक्स को लेकर चर्चा में बनी रहती हैं. हाल ही में उनका गाना घनी सयानी रिलीज हुआ है जिसे लोगों ने खूब सारा प्यार दिया है. इन सभी के बीच शहनाज गिल अपने मैनेजर कौशल की शादी में सज धज के पहुंची.

शहनाज का लुक लोगों को खूब पसंद आ रहा था, फैंस उनकी लुक्स की जमकर तारीफ कर रहे हैं, लेकिन सबसे खास बात यह है कि शहनाज पूरी पार्टी में भारती सिंह के बेटे लक्ष्य के साथ घूमती नजर आ रही थी. इससे जुड़ी फोटो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रही है.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Shehnaaz Gill (@shehnaazgill)

शहनाज गिल ग्रे कलर की साड़ी में बला की खूबसूरत लग रही थीं. फैंस को उनका ट्रेडिशनल लुक काफी ज्यादा पसंद आ रहा है. उनकी इस लुक की तारीफ फैंस भी पार्टी में हो रही थी.

दरअसल, पार्टी में शहनाज गिल की नजर जैसे ही भारती सिंह के बेटे पर पड़ी वह तुरंत आकर उसे लेकर गई और उसपर खूब सारा प्यार लुटाया, जिसे सभी पार्टी में मौजूद सदस्य देख रहे थें.

शहनाज गिल की सादगी फैंस को काफी ज्यादा पसंद आ रही थी, एक यूजर ने शहनाज की तस्वीर पर कमेंट करते हुए लिखा की शहनाज जिसे भी प्यार करती है एकदम दिल से करती है. इस पर उनकी तारीफ भी हुई है. वहीं भारती सिंह का बेटा लक्ष्य भी शहनाज के साथ खुश नजर आ रहा था.

गुम है किसी के प्यार में आएगा नया ट्विस्ट, जानें क्या होगा आगे

सीरियल गुम है किसी के प्यार में इन दिनों खूब ड्रामा चल रहा है, विराट और पाखी और सई अपने बच्चों के साथ पिकनिक मनाने जा रहे हैं लेकिन पिकनिक के दौरान बस एक्सीडेंट हो जाता है.

वहीं बच्चें को बचाने के बाद से विराट सई को बचाने में लग जाता है, पाखी जब देखती है कि विराट सई को बचा रहा है तो यह देखकर पाखी की दिल टूट जाता है. जिसके बाद से वह खुद के बचाने की कोशिश छोड़ देती है, जिसके बाद से परिवार वाले सई को ब्लैम करेंगे. हालांकि इस सीरियल में बार बार सई को दोषी दिखाया जाता है, जिससे दर्शक नाराज भी हो रहे हैं.

वह बचाने की जगह खुद सदमें में आकर बस में बैठ जाती है, जिसके बाद से बस का बैलेंस बिगड़ जाता है और फिर बस गिर जाता है. आने वाले एपिसोड़ में दिखाया जाएगा कि पाखी की मौत नहीं होती है वह कहीं गुम हो जाती है, वही इसी बीच सई और विराट के करीब आ जाएंगे.

इसके बाद से इस सीरियल में लंबा लीप आने वाला है, जिसके बाद से इस सीरियल में दिखाया जाएगा कि विराट इस वजह से बहुत ज्यादा गिल्ट में रहेगा कि वह पाखी को नहीं बचा पाया. जिस वजह से वह सदमें में रहेगा.

इन सबके बाद से सई अपनी जीवन की शुरुआत करेगी. वह सभी पुरानी चीजों को ठीक करेगी.

विंटर स्पेशल : सर्दी के मौसम में भी जरूरी है पानी, जानें कब पिएं और कब नहीं

सर्दी शुरू होते ही खानपान की खपत भले ही बढ़ जाती हो पर पानी की खपत काफी कम हो जाती है. सर्दी में त्रिशला अकसर बीमार हो जाती है. उसे कब्ज, गैस व ऐसी ही अन्य समस्याओं से दोचार होना पड़ता है. उसे ताज्जुब है कि कोई समस्या ऐसी नहीं है जो खासतौर पर सर्दी में होने वाली अथवा सर्दी में हावी हो जाने वाली हो. फिर यह सब उसे क्यों हो रहा है? एक कौर्पोरेट कंपनी में काम करने वाले सुशील कुमार कहते हैं कि उन का खानापीना, घूमना ठंड में ज्यादा होता है. वे सर्दी को मन से पसंद करते हैं. पता नहीं क्या बात है कि सर्दी में वे बुखार, संक्रमण आदि की चपेट में ज्यादा ही आते हैं. कई बार तरहतरह की डाक्टरी जांच करवाई. तब जा कर पता चला कि पानी की कमी से वे तरहतरह के संकट से घिरते व जूझते हैं.

जल बिन सब सून

पानी या जल को जीवन माना व कहा जाता है. शरीर की बनावट में 55 से 75 फीसद जल है. शरीर जितना कम फैटमय होगा, मांसपेशियों में जलधारण की क्षमता उतनी ही ज्यादा होती है. इसीलिए मोटे लोगों की तुलना में पतले लोगों के शरीर में जल ज्यादा पाया जाता है. शरीर अपनी गतिविधियों के चालनसंचालन में काफी पानी खर्च करता है. उदाहरणार्थ दिनरात सांस लेने तथा छोड़ने में ही करीब सवा गिलास पानी खर्च हो जाता है. पसीने और मूत्र के रूप में शरीर की गंदगी को बाहर निकालने में पानी की महत्त्वपूर्ण मात्रा खर्च होती है. बारबार पानी पीपी कर हम उपयोग में आ चुके जल की क्षतिपूर्ति करते हैं.

शरीर से 10 फीसदी तरल पदार्थ कम हो जाने पर किसी भी मौसम में डिहाड्रेशन का खतरा बढ़ जाता है. इसीलिए शरीर को स्वस्थ, ऊर्जामय रखने तथा किडनी जैसे अंगों के सम्यक चालन के लिए बारबार पानी पीते रहना जरूरी है.

कितना पिएं पानी

शरीर का सिस्टम ही इतना मुस्तैद है कि जब भी शरीर को पानी की जरूरत होती है, तो वह प्यास के द्वारा बता देता है. फिर भी कई लोग काम की व्यस्तता में पानी पीना भूल भी जाते हैं. कुछ को पानी स्वादिष्ट नहीं लगता. वैसे कितना पानी लिया जाए, यह हमारी शारीरिक संरचना, काम के तौरतरीकों तथा वातावरण पर निर्भर करता है अमेरिकन इंस्टिट्यूट औफ मैडिसिन ने शरीर के लिए पानी की पर्याप्त ग्राह्यता पर रिसर्च की है. इस में एक दिन में महिलाओं के लिए 2.2 लिटर पानी तथा पुरुषों के लिए 3 लिटर पानी की सिफारिश की गई है.

क्या है पानी के विकल्प

आहार तथा पोषण विज्ञानी इशी खोसला कहती हैं, ‘‘चाय, कौफी व ऐसे ही तरल पदार्थों से शरीर को कुछ पानी मिलता है पर वे पानी की क्षतिपूर्ति नहीं कर सकते. कम कैलोरी वाले तरल पदार्थ से शरीर ज्यादा अच्छी तरह चुस्तदुरुस्त रहता है.’’ यूनिवर्सिटी औफ मेरीलैंड मैडिकल सैंटर ने शोध में पाया है कि पानी के बाद चाय विश्व में सब से ज्यादा पसंद किया जाने वाला पेय है परंतु यह पानी का विकल्प नहीं है.

कब पिएं, कब न पिएं

कब पानी पीया जाए कब नहीं, इसे ले कर लोगों में तरहतरह के भ्रम व्याप्त हैं. कुछ भोजन से आधे घंटे पहले व आधे घंटे बाद तक पानी न पीना पाचनतंत्र के लिए श्रेष्ठ बताते हैं तो कुछ लोग मानते हैं कि भोजन के पहले या करते ही अथवा बीचबीच में पानी पीते रहने से ही वे पूरी तरह स्वस्थ हैं. नए शोध इस क्षेत्र में काफी मददगार हैं.

अमेरिकन कैमिकल सोसाइटी ने इस संबंध में शोध करने पर पाया कि खाने के पहले पानी पी लेने से 3 महीने में करीब सवा 2 किलो वजन कम होने के परिणाम दिखे क्योंकि भोजन से पहले ग्रहण किया गया पानी भोजन में 75 से 90 फीसदी कैलोरी कम ग्रहण करने में मददगार साबित होता है. खाने के बाद छोटी आंत में भोजन पहुंचता है. वहां भोजन से विटामिन मिनरल, कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन आदि के अलग होने की प्रक्रिया आरंभ हो जाती है. इस प्रक्रिया में पानी प्रौपर लुब्रिकैंट का काम करता है. इस तरह यह शोध भोजन के बीच में पीए गए पानी को भोजन पाचन में मददगार साबित करता है. फल सेवन के समय पानी पीना ठीक नहीं क्योंकि पेट में मौजूद एसिड फलों के बैक्टीरिया का मुकाबला करते हैं, ऐसे में पानी एसिड की ऊर्जा तथा ताकत को घटा देता है. इशी खोसला के अनुसार पानी कैसा पीया जाए, आप मौसम के हिसाब से तय कर सकते हैं. कैलोरी बर्न करने में गरम या ठंडा पानी अलग से कोई खास भूमिका नहीं निभाता. लेकिन शरीर को डिटौक्सिफाई करने में गुनगुना पानी मददगार है.

सौंदर्यवर्द्धन में अहम भूमिका

पानी थकान तथा तनावहारी होता है. तरोताजा रखने के साथ ही वह त्वचा की चमकदमक में बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है. पानी प्राकृतिक पोषक और नैचुरल क्लींजर है. बेजान त्वचा को जानदार बनाता है, वहीं झुर्रियों से भी मुक्ति दिलाता है. पानी त्वचा की कोशिकाओं के लिए प्रमुख तत्त्व है. त्वचा की बाहरी नमी में मौइश्चराइजर की भूमिका की तरह यह भीतरी नमी व पोषण देता है.

कैलिफोर्निया विश्व विद्यालय के प्रोफैसर हार्वर्ड ने ‘वाटर सीक्रेट : दि सैल्युलर बे्रकथू्र’ नामक अपने जल विषयक शोध में पाया कि पर्याप्त जलसेवन से आप ज्यादा साल तक जवान व सुंदर दिख सकते हैं.

स्नान करने की सौंदर्य के साथसाथ स्वस्थता में महत्त्वपूर्ण भूमिका है. शरीर के भीतर के पानी को शरीर विभिन्न गतिविधियों के द्वारा उपयोग में ला कर बाहर निकाल देता है. बाहरी पानी को हमें समय पर पोंछ कर सुखाना चाहिए. हाथ धोने के बाद उन्हें पोंछना चाहिए. इस से हाथों में बीमारीवाहक बैक्टीरिया हाथ से दूर हो जाते हैं वरना हाथों में ही रहने से इन की संख्या घटने के बजाय बढ़ जाती है. इसी तरह जांघों, बगलों तथा घुटनों व उंगलियों की खोह में घुसा पानी कई बार फंगल इन्फैक्शन का मुख्य कारण बन जाता है. इसलिए जिस्म से पानी को पोंछना भी आवश्यक है.

शुद्ध जल की कमी भी कई रोगकारक है, इसलिए स्वच्छ जल का सेवन किया जाए. भोजन निर्माण में आंच की गरमी से जल के कीटाणु मर जाएंगे, यह सोच ठीक नहीं. भोजन निर्माण भी स्वच्छ जल से करना चाहिए.

पानी की कमी स्वास्थ्य के लिए खतरनाक

सर्दी के दिनों में प्यास कम लगने के कारण लोग पानी कम पीते हैं. शरीर में पानी की कमी स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है. इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल, दिल्ली की प्रमुख डायटीशियन डा. अनिता जताना का कहना है कि अपने दैनिक आहार में कम से कम 2-3 लिटर पानी या तरल पदार्थ जैसे नीबू पानी, नारियल पानी, ग्रीन टी, लस्सी आदि शामिल करें.

पानी पीने के फायदे

  1. पानी शरीर के बेकार पदार्थ को पेशाब या पसीने के साथ बाहर निकालने में सहायता करता है.
  2. पानी त्वचा में नमी की मात्रा बनाए रखने में सहायता करता है और त्वचा को खिलीखिली बनाए रखने में सहायता करता है जिस की कोशिश हमसब करते हैं.
  3. यायाम के बाद विशेष ध्यान रखना चाहिए ताकि पानी की कमी न हो.
  4. हमारे शरीर में 60-80 प्रतिशत पानी है और जब कभी हम कुछ करते हैं, खाते या सांस लेते हैं तो पानी का उपयोग करते हैं. इसलिए सर्दियों में भी गरमी की ही तरह पर्याप्त पानी पीना हमारे स्वास्थ्य के लिए जरूरी है.
  5. पाचन संबंधी समस्याओं से बचने के लिए और शरीर के कामकाज को सपोर्ट करने के लिए पानी जरूरी है.

पानी कम पीने से नुकसान

  1. पानी की कमी से किडनी (गुरदे) में पथरी, मांसपेशियों में अकड़न और कब्जियत की आशंका रहती है.
  2. शरीर में पानी की आपूर्ति में महज 2 प्रतिशत की कमी होने से डिहाइड्रेशन के संकेत शुरू हो सकते हैं. पानी हमारे शरीर की सभी प्रक्रियाओं के लिए अति महत्त्वपूर्ण है.
  3. जब हम अच्छी तरह हाइड्रेटेड रहते हैं तो हमारी भूख बेहतर ढंग से नियंत्रित रहती है.
  4. शरीर में जब पानी कम हो जाता है तो यह सांस लेने, पेशाब, पसीना बनाने और पाचन जैसी भिन्न क्रियाओं में होने वाले पानी के खर्च को सीमित करने का प्रयास करता है.
  5. शरीर में पानी की कमी हो जाए तो तनाव या गुस्सा ज्यादा आता है.
अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें