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आर्थिक: गिरता बाजार, डरना जरूरी

केंद्र सरकार की आर्थिक (कु)नीतियों के चलते देश की अर्थव्यवस्था दिनोंदिन गिरती जा रही है जिसे कंट्रोल करना फिलहाल अब उस के खुद के वश में भी नहीं है. वहीं, अपनी तानाशाही प्रवृत्ति के चलते सत्ता पर काबिज भगवा सरकार विशेषज्ञों से सलाह लेने से भी हिचक रही है. ऐसे में देशवासियों को चौकन्ना होना बहुत जरूरी हो गया है.

भारतीय अर्थव्यवस्था इस समय दोहरे संकट से जू?ा रही है. कोविड महामारी का असर कम होने के बाद, बुरी तरह लड़खड़ाई देश की अर्थव्यवस्था के संभलने की उम्मीद थी, लेकिन महंगाई और तेजी से गिरते रुपए ने अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने का काम और मुश्किल कर दिया है. एक्सपर्ट कितनी भी बातें कर लें, लेकिन इस के संभलने के आसार फिलहाल न के बराबर हैं. देखा जाए तो यह समस्या साल 2016 के 8 नवंबर को घोषित डिमोनिटाइजेशन से शुरू हुई और अब यह विकराल रूप धारण कर रही है. वर्तमान में अमीर और गरीब के बीच की खाई दिनोंदिन बढ़ती जा रही है.

जो कुछ चहलपहल मार्केट में आम जनता को दिख रही है, उस की वजह देश की बड़ी जनसंख्या का होना है, जिस के फलस्वरूप विदेशी भी देश में इन्वैस्ट कर रहे हैं. बनी आम जनता अपराधी अर्थव्यवस्था के गिरने की शुरुआत डिमोनिटाइजेशन से हुई है जब पूरे देश के नागरिक खुद को अपराधी मान लंबी कतारों में खड़े रहने व कुछ अपनी जान गंवाने को विवश थे. इस बारे में औल इंडिया बैंक औफिसर्स कन्फैडरेशन के पूर्व अध्यक्ष व वर्तमान में औल इंडिया पंजाब नैशनल बैंक औफिसर्स एसोसिएशन के जनरल सैक्रेटरी दिलीप साहा, जिन्होंने 37 साल बैंक में मैनेजर के रूप में काम किया है, का कहना है कि नोटबंदी के उद्देश्य, जो देश की गरीब जनता को गिनाए गए थे जिन में गरीब को अभी मुश्किल होगी पर बाद में चैन की नींद सो सकेंगे जबकि अमीरों की परेशानी बढ़ेगी जिन्हें दवाई लेनी पड़ेगी, नकली नोटों और टैरेरिज्म का अंत होगा आदि शामिल थे,

में से कोई भी उद्देश्य पूरा नहीं हुआ. भारतीय रिजर्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार, बहुत कम मात्रा में आम लोगों के पैसे वापस नहीं आए. उस के अनुसार, 99.4 प्रतिशत लोगों के पास से पैसे आ गए. इस का अर्थ यह हुआ कि करीब 100 प्रतिशत लोगों से कालाधन आ गया है और यह व्हाइट मनी में बदल चुका है. लक्ष्य रहा अधूरा बैंकर दिलीप साहा कहते हैं कि डिमोनिटाइजेशन के अगले साल ही रिपोर्ट में 2 हजार रुपए के जाली नोटों में वृद्धि हो गई, टैरेरिज्म में भी बढ़त हो गई. इस से सरकार का लोगों को नोटबंदी के बारे में सम?ाने का कोई भी लक्ष्य पूरा नहीं हुआ. इस के तुरंत बाद डिजिटलाइजेशन शुरू हुआ, जिस में कम कैश को मनी सर्कुलेशन में लागू किया गया.

समय के साथ इस में बढ़त होना था, लेकिन जितना कहा गया, उतनी बढ़त नहीं हुई. इस तरह से केवल गरीब लोगों ने लाइन में खड़े हो कर घंटों इंतजार करतेकरते अपनी जानें ही नहीं गंवाईं बल्कि बैंक कर्मचारियों को भी अधिक समय तक इन पैसों के एक्सचेंज में समय लगा और रोजमर्रा के काम कम हुए, साथ ही, जिन लोगों ने लाइनें लगाईं और पैसे एक्सचेंज नहीं कर पाए, उन्होंने बैंक वालों पर घोटाला करने का आरोप लगाया. हालांकि पैट्रोल पंप और कई जगहों पर एक्सचेंज करने की व्यवस्था की गई थी पर उस का फायदा जनसाधारण को नहीं मिला. अहमदाबाद के कोऔपरेटिव बैंक ने हर दिन 2 से 3 करोड़ रुपए का ट्रांजैक्शन किया, लेकिन कुछ दिनों बाद बैंकों को भी आरबीआई ने एक्सचेंज करने से मना कर दिया. जनता के सैंटिमैंट से हुआ खेल दिलीप साहा कहते हैं कि आम जनता को लगने लगा कि इस से अमीरों को अधिक समस्या होगी क्योंकि उन के द्वारा छिपाया हुआ कालाधन बाहर निकलेगा. आम जनता को कोई समस्या नहीं होगी, लोगों को कुछ ऐसे ही सम?ाया गया था.

इस तरह डिमोनिटाइजेशन आम जनता के सैंटिमैंट से खेला गया एक खेल था, जिसे जनता सम?ा न पाई. आज गिरती अर्थव्यवस्था, जरूरत के सामान के बढ़ते दाम, गैस और पैट्रोल के बढ़ते दाम आदि कुछ भी कम नहीं हो रहे हैं. सब्सिडी को कायम रखने और गरीबों को कम दाम में गैस मुहैया कराने की बात भी बेमानी हो गई है. पहले आमजन को गैस के सिलिंडर कम दाम में दिए गए, लेकिन सिलिंडर के 200 प्रतिशत से अधिक बढ़ते दाम ने जनता को फिर से लकड़ी के चूल्हे पर काम करने को विवश कर दिया. बिना प्लानिंग के हुए काम देश की सत्ता पर काबिज भारतीय जनता पार्टी की सरकार द्वारा कोई भी काम ईमानदारी से प्लानिंग के साथ नहीं किया गया.

यही वजह है कि देश की अर्थव्यवस्था लगातार गिरती जा रही है. जीडीपी की अगर बात करें तो वह घट कर 6.75 प्रतिशत से भी कम हो गई है. हालांकि इस से देश की इकोनौमी ग्रोथ का कोई संबंध नहीं है क्योंकि इस ग्रोथ का वितरण बहुत ही असमान है. साहा कहते हैं कि देश का एक व्यक्ति विश्व का तीसरा सब से धनी कहे जाने पर लोग बहुत खुश हैं, लेकिन मैं यह कहना चाहता हूं कि यह सैलिब्रेट करने की बात नहीं है. यह तो दिखाता है कि गरीब और धनवानों के बीच की खाई दिनोंदिन बढ़ती जा रही है, जो देश के लिए खराब है. इसलिए जीडीपी के बढ़ने को किसी प्रकार से रियल डैवलपमैंट नहीं कहा जा सकता, क्योंकि ग्रोथ वर्टिकल होता है, जबकि विकास, ग्रोथ से अलग होता है. क्या कहती है अंतर्राष्ट्रीय रिपोर्ट एक इंटरनैशनल रिपोर्ट के अनुसार, देश के केवल एक प्रतिशत लोग 10 प्रतिशत नैशनल इनकम को होल्ड किए हुए हैं, 10 प्रतिशत जनसंख्या 57 प्रतिशत नैशनल इनकम होल्ड कर रही है, नीचे की 10 प्रतिशत जनसंख्या 13 प्रतिशत नैशनल इनकम को होल्ड किए हुए है. इस की जिम्मेदारी गवर्नमैंट औफ इंडिया की है जो सारी पौलिसी निकालती है.

कोविड से पहले कौर्पोरेट टैक्स को कम कर दिया गया था, जबकि पर्सनल टैक्स कम नहीं किया गया. सरकार को लगा कि टैक्स बचाने के लिए लोग पैसे खर्च करेंगे, लेकिन इस का नतीजा सोच के हिसाब से नहीं मिला. विकास भी देखने को नहीं मिला. इस के अलावा यदि कोई कंपनी दिवालिया होती है तो प्रमुख रूप से यह मामला नैशनल कंपनी लौ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) के पास जाता है. इस प्रोसैस द्वारा भी लोगों को लूटा गया. बैंक एसोसिएशन के बारबार कहने पर भी उन लोगों के नाम बताए नहीं गए जो इस के जिम्मेदार थे. आम इंसान को सामना जरूरी आम इंसान चीजों को समय नहीं पाते. देश की तरक्की किसी भी तरह से हो नहीं रही है. खरीदारी के बढ़ने की वजह हमारी जनसंख्या है और विदेशी यहां इन्वैस्ट भी कर रहे हैं. सरकार सबकुछ कंट्रोल करती है, अब यह डैमोक्रेटिक देश नहीं रह गया है. हर कोई सही बात कहने से डरता है. रियल स्टोरी आम जनता को पता नहीं चलती और कोई बात खुल कर सामने नहीं आती. जब जेब कटती है तो आम इंसान को समय में आता है कि कुछ गलत हो रहा है. इसलिए आम जनता को ही सुधारना पड़ेगा. इस के अलावा इस में सुधार की कोई गुंजाइश नहीं.

सीधा असर आम इंसान को हो रहा है. इस के अलावा बैंकों का प्राइवेटाइजेशन सही विचार नहीं है. हर तरीके की प्रक्रिया देश को आगे लाने की चल रही है, लेकिन अर्थव्यवस्था नीचे जा रही है. इस का प्रभाव धनी इंसान पर नहीं पड़ेगा, क्योंकि उन्हें इस बात की जानकारी नहीं है कि बाजार में आलू या प्याज की कीमत क्या है. चंद लोग कर रहे ग्रो हाउसिंग सैक्टर की अगर बात करें तो मुंबई में पहले अलगअलग तरीके के फ्लैट्स बनते थे, जिन्हें नौकरीपेशा भी खरीद सकते थे. अब सारे बिल्डर हाई एंड रैसिडैंस बना रहे हैं, क्योंकि लोअर एंड में कोई खरीदने वाला नहीं है. अफोर्डेबल हाउस की परिकल्पना अब गायब है. इस से यह पता चलता है कि मुंबई में अधिकतर लोग वर्किंग क्लास हैं और अपने वेतन से मुंबई में वे घर खरीद नहीं सकते. इस से यह पता चलता है कि इकोनौमी ग्रो नहीं कर रही है, बल्कि कुछ लोग ग्रो कर रहे हैं. केंद्र की भगवा सरकार भले ही उन अमीरों की देश के इंफ्रास्ट्रक्चर को सुधारने के लिए हैल्प कर रही है पर वे ऐसा नहीं कर रहे और सरकार से इंफ्रास्ट्रक्चर पर और ज्यादा खर्च करने को कह रहे हैं. यह पौलिसी भी काम नहीं कर रही है. सोशल सिक्योरिटी की कमी दिलीप साहा का कहना है कि सोशल सिक्योरिटी की बात करें तो यह एक बहुत बड़ा चैलेंज है. आज की जनसंख्या यंग है,

इस में सीनियर सिटिजन भी हैं जिन का ध्यान नहीं रखा जाता. हालांकि बीचबीच में पौलिसीज आती हैं जिन में गरीबों को लोन की छोटी रकम देने का प्रावधान रहता है, लेकिन उन्हें सही तरीके से सब्सिडाइज नहीं किया जाता और गरीबों को उन का हक नहीं मिल पाता. सरकार के पास पैसे नहीं हैं क्योंकि कौर्पोरेट सैक्टर द्वारा किए जाने वाले काम उसे करने पड़ते हैं. ये सब मिल कर इकोनौमी मेस हो चुकी है, क्योंकि इन्फ्लेशन आज ब्याजदर से अधिक है. इसलिए सीनियर सिटिजंस, जिन का घर केवल ब्याज के पैसे से चलता है, के लिए यह एक बड़ी समस्या हो चुकी है. पब्लिक और प्राइवेट सैक्टर बैंक के लिए यह जरूरी है कि उन्हें ब्याज दर एडवांस में देना पड़ता है. अगर 50 पैसे भी ब्याज दर बढ़ती है तो अखबार की सुर्खियों में ईएमआई की बढ़त के साथ महंगा होता कार लोन, बैंक लोन को बड़ेबड़े अक्षरों में बताया जाता है, जबकि बैंक डिपौजिट की ब्याज दर लगातार घटती रहती है, इस की जानकारी आम जनता को नहीं दी जाती, जिस के जमा पैसों को क्रैडिट के लिए प्रयोग किया जा रहा है,

जिस पर वरिष्ठ नागरिक आश्रित हैं. उन्हें कुछ पता नहीं होता. अर्थव्यवस्था को ऊपर लाने के लिए निचले तबके के लोगों की खरीदी को बढ़ाने से ही कलैक्टिवली वौल्यूम में इकोनौमी की बढ़त होगी. केवल अमीरों के अमीर बनने से देश की अर्थव्यवस्था कभी अच्छी नहीं हो सकती. विदेशों से लें सही डैमोक्रेसी का उदाहरण ब्रिटेन में दोनों प्रधानमंत्रियों ने इस्तीफा दिया, जो उन दोनों ने स्वेच्छा से नहीं, उन्हें मजबूरन देना पड़ा, क्योंकि वे देश की आर्थिक व्यवस्था संभाल नहीं पा रहे थे. हमारे देश में ऐसा न हो पाने की वजह यह है कि वहां की पार्टी के सदस्यों की खुद की एक विचारधारा होती है और वे समयसमय पर प्रधानमंत्री के काम की आलोचना करने से नहीं घबराते. यह यहां नहीं हो सकता, क्योंकि यहां पार्टी में रहने वाला भी अपनी मरजी से कुछ गलत देखने पर भी कुछ कहना नहीं चाहता, बल्कि चुप रहता है. यह केवल यूके और अमेरिका में स्ट्रौंगली पालन किया जाता है. हमारे देश में भी ऐसी डैमोक्रेसी विकसित होने की जरूरत है. केवल वोट द्वारा डैमोक्रेसी को आंका नहीं जा सकता.

जब तक किसी में अपनी बात कहने की आजादी न होगी, तब तक डैमोक्रेसी नहीं आ सकती और यह केवल आम जनता के लिए ही नहीं, लौ मेकर्स के लिए भी लागू होनी चाहिए. यूक्रेन युद्ध है बहाना यूक्रेन के युद्ध का देश पर किसी प्रकार का प्रैशर नहीं है, क्योंकि भारत उसे अधिक एक्सपोर्ट नहीं करता. पैट्रोल का भाव युद्ध से पहले ही काफी बढ़ चुका है.

असल में युद्ध एक बहाना है, इस का अर्थव्यवस्था से बहुत अधिक लेनादेना नहीं है. दोनों सरकारों के बीच अंतर बैंकर दिलीप साहा ने 37 वर्षों तक बैंक में काम किया है, इस दौरान उन के अनुभव को पूछने पर वे कहते हैं कि मैं अपने बैंक एसोसिएशन की तरफ से एक उदाहरण दे सकता हूं. पब्लिक सैक्टर बैंक के लिए एक कानून है जिस में औफिसर्स, डायरैक्टर और एक वर्कमेन्स डायरैक्टर हर बैंक बोर्ड में नियुक्त किया जाता था. यह संविधान के अंतर्गत आता है. पूर्व सरकार में सभी पब्लिक सैक्टर बैंक और स्टेट बैंक औफ इंडिया में यह लागू था. इसे लागू करने के लिए संसद द्वारा बिल भी पास किया गया था. इस सरकार के आने के बाद जिन्होंने अपना टैन्योर पूरा किया है, हमारे नाम देने से पहले ही उसे संसद में पास कर दिया जाता है.

आज तक कोई भी औफिसर और वर्कमेन्स डायरैक्टर नियुक्त नहीं किया गया. आज से 3 साल पहले बैंकों ने रेट को फाइल किया है और इधर रिजर्व बैंक औफ इंडिया कहता है कि 7 बैंकों के सारे काम पूरे हो चुके हैं लेकिन सब से बड़ी अथौरिटी द्वारा आज तक साइन नहीं किया जा सका है. असल में सत्ता पक्ष वाले सभी बैंकों को प्राइवेटाइज करना चाहते हैं. आज जो भी काम होता है, उसे तय करने वाला ट्रेड यूनियन होता है. इस के अलावा आज जो भी अमेंडमैंट लागू किए जाते हैं वे मालिक के फायदे के लिए ही होते हैं. अंतर यह है कि आज हर काम कौर्पोरेट को ध्यान में रख कर ही किया जाता है, भले ही सरकार ग्रोथ चाहती हो पर उस की पौलिसी फौर्मुलेशन प्राइवेट सैक्टर की तरफ ?ाका हुआ होता है. पहले जो भी पौलिसी संसद द्वारा पास की जाती थी, उस में सभी वर्गों को ध्यान में रखते हुए पास किया जाता रहा. सब से बड़ा अंतर दोनों सरकारों में यह है कि पहले की सरकार ने पब्लिसिटी में कमी की, क्योंकि अच्छा काम करने पर भी उस की पब्लिसिटी बहुत कम दिखाई पड़ती थी.

कालगर्ल-भाग 1 : आखिर उस लड़की में क्या था कि मैं उसका दीवाना हो गया?

मैं दफ्तर के टूर पर मुंबई गया था. कंपनी का काम तो 2 दिन का ही था, पर मैं ने बौस से मुंबई में एक दिन की छुट्टी बिताने की इजाजत ले ली थी. तीसरे दिन शाम की फ्लाइट से मुझे कोलकाता लौटना था. कंपनी ने मेरे ठहरने के लिए एक चारसितारा होटल बुक कर दिया था. होटल काफी अच्छा था. मैं चैकइन कर 10वीं मंजिल पर अपने कमरे की ओर गया.

मेरा कमरा काफी बड़ा था. कमरे के दूसरे छोर पर शीशे के दरवाजे के उस पार लहरा रहा था अरब सागर. थोड़ी देर बाद ही मैं होटल की लौबी में सोफे पर जा बैठा. मैं ने वेटर से कौफी लाने को कहा और एक मैगजीन उठा कर उस के पन्ने यों ही तसवीरें देखने के लिए पलटने लगा. थोड़ी देर में कौफी आ गई, तो मैं ने चुसकी ली. तभी एक खूबसूरत लड़की मेरे बगल में आ कर बैठी. वह अपनेआप से कुछ बके जा रही थी. उसे देख कर कोई भी कह सकता था कि वह गुस्से में थी.

मैं ने थोड़ी हिम्मत जुटा कर उस से पूछा, ‘‘कोई दिक्कत?’’

‘‘आप को इस से क्या लेनादेना? आप अपना काम कीजिए,’’ उस ने रूखा सा जवाब दिया.

कुछ देर में उस का बड़बड़ाना बंद हो गया था. थोड़ी देर बाद मैं ने ही दोबारा कहा, ‘‘बगल में मैं कौफी पी रहा हूं और तुम ऐसे ही उदास बैठी हो, अच्छा नहीं लग रहा है. पर मैं ने ‘तुम’ कहा, तुम्हें बुरा लगा हो, तो माफ करना.’’

‘‘नहीं, मुझे कुछ भी बुरा नहीं लगा. माफी तो मुझे मांगनी चाहिए, मैं थोड़ा ज्यादा बोल गई आप से.’’ इस बार उस की बोली में थोड़ा अदब लगा, तो मैं ने कहा, ‘‘इस का मतलब कौफी पीने में तुम मेरा साथ दोगी.’’ और उस के कुछ बोलने के पहले ही मैं ने वेटर को इशारा कर के उस के लिए भी कौफी लाने को कहा. वह मेरी ओर देख कर मुसकराई. मुझे लगा कि मुझे शुक्रिया करने का उस का यही अंदाज था. वेटर उस के सामने कौफी रख कर चला गया. उस ने कौफी पीना भी शुरू कर दिया था.

लड़की बोली, ‘‘कौफी अच्छी है.’’

उस ने जल्दी से कप खाली करते हुए कहा, ‘‘मुझे चाय या कौफी गरम ही अच्छी लगती है.’’

मैं भी अपनी कौफी खत्म कर चुका था. मैं ने पूछा, ‘‘किसी का इंतजार कर रही हो?’’

उस ने कहा, ‘‘हां भी, न भी. बस समझ लीजिए कि आप ही का इंतजार है,’’ और बोल कर वह हंस पड़ी. मैं उस के जवाब पर थोड़ा चौंक गया. उसी समय वेटर कप लेने आया, तो मुसकरा कर कुछ इशारा किया, जो मैं नहीं समझ पाया था.

मैं ने लड़की से कहा, ‘‘तुम्हारा मतलब मैं कुछ समझा नहीं.’’

‘‘सबकुछ यहीं जान लेंगे. क्यों न आराम से चल कर बातें करें,’’ बोल कर वह खड़ी हो गई.

फिर जब हम लिफ्ट में थे, तब मैं ने फिर पूछा, ‘‘तुम गुस्से में क्यों थीं?’’

‘‘पहले रूम में चलें, फिर बातें होंगी.’’ हम दोनों कमरे में आ गए थे. वह अपना बैग और मोबाइल फोन टेबल पर रख कर सोफे पर आराम से बैठ गई. मैं ने फिर उस से पूछा कि शुरू में वह गुस्से में क्यों थी, तो जवाब मिला, ‘‘इसी फ्लोर पर दूसरे छोर के रूम में एक बूढ़े ने मूड खराब कर दिया.’’

‘‘वह कैसे?’’

‘‘बूढ़ा 50 के ऊपर का होगा. मुझ से अननैचुरल डिमांड कर रहा था. उस ने कहा कि इस के लिए मुझे ऐक्स्ट्रा पैसे देगा. यह मेरे लिए नामुमकिन बात थी और मैं ने उस के पैसे भी फेंक दिए.’’ मुझे तो उस की बातें सुन कर एक जोर का झटका लगा और मुझे लौबी में वेटर का इशारा समझ में आने लगा था. फिर भी उस से नाम पूछा, तो वह उलटे मुझ से ही पूछ बैठी, ‘‘आप मुंबई के तो नहीं लगते. आप यहां किसलिए आए हैं और मुझ से क्या चाहते हैं?’’

‘‘मैं तो बस टाइम पास करना चाहता हूं. कंपनी के काम से आया था. वह पूरा हो गया. अब जो मरजी वह करूं. मुझे कल शाम की फ्लाइट से लौटना है. पर अपना नाम तो बताओ?’’

‘‘मुझे कालगर्ल कहते हैं.’’

‘‘वह तो मैं समझ सकता हूं, फिर भी तुम्हारा नाम तो होगा. हर बार कालगर्ल कह कर तो नहीं पुकार सकता. लड़की दिलचस्प लगती हो. जी चाहता है कि तुम से ढेर सारी बातें करूं… रातभर.’’

 

मैं एक गृहणी हूं मैं इन दिनों ब्लू टी के बारे में सुनी हूं यह कैसा है प्लीज मुझे बताएं?

सवाल

मैं गृहिणी हूं. अपनी सेहत के प्रति सजग रहती हूं. रोज ग्रीन टी पीती हूं. आजकल ब्लू टी के बारे में सुनने को मिल रहा हैक्या यह ज्यादा फायदेमंद है?

जवाब

जी हां, ब्लू टी सेहत और ब्यूटी के लिए बेहद फायदेमंद है. यह चाय अपराजिता के खूबसूरत नीले फूलों को उबाल कर बनाई जाती है, इसलिए इस का रंग नीला होता है. इसे बटरफ्लाई टी भी कहा जाता है.

इस में नमक या शक्कर डालें और कुछ बूदें नीबू की डाल कर छान लें, फिर पिएं. यह चाय आप के शरीर से अवांछित तत्त्वों को बाहर निकाल कर बौडी को डिटौक्स करती है. यह एक बेहतरीन इम्यूनिटी बूस्टर की तरह काम करती है. यह नीली चाय डायबिटीज के रोगियों के लिए भी फायदेमंद है. यह शुगर लैवल को मैंटेन करने में मददगार होती है.

खूबसूरती को और निखारना चाहते हैं तो नीली चाय एक बढि़या विकल्प है. चेहरे के दाग, धब्बे और झाइंयों को मिटा कर रंगत निखारने में यह सहायक है. माइग्रेन के मरीजों के लिए भी यह फायदेमंद है. यह दर्द दूर करने के अलावा दिमागी थकान को भी दूर करती है.

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पता : कंचनसरिता

ई-8झंडेवाला एस्टेटनई दिल्ली-55.

समस्या हमें एसएमएस या व्हाट्सऐप के जरिए मैसेज/औडियो भी  कर सकते हैं . 08588843415

दिशाएं और भी हैं -भाग 3 : नमिता को कमरे में किसकी आहट आ रही थी

स्त्री सुलभ गुणों को ले कर क्या करेगी वह अब. स्त्री सुलभ लज्जा, संकोच, सेवा,

ममता जैसे भावों से मुक्त हो जाना चाहती है, कठोर हो जाना चाहती है. उस के प्रिय जनों ने उस की अवहेलना की. आज उस की सफलता, उपलब्धियां, सम्मान देख उस के सहयोगी, उस के मातहत सहम जाते हैं. फिर भी वह संतुष्ट क्यों नहीं? शायद इसलिए कि उस की सफलता का जश्न मनाने उस के साथ कोई नहीं.

उसे याद है उस के मन में भी उमंग उठी थी, सपने संजोए थे. आम भारतीय नारी की तरह एक स्नेहमयी बेटी, बहू, पत्नी और मां बनना चाहती थी. वह अपना प्यार, अपनी ममता किसी पर लुटा देना चाहती थी. रात के अकेलेपन में पीड़ा से भरभरा कर कई बार रोई है. एक आधीअधूरी जिंदगी उस ने खुद वरण की है… उसे भरोसा ही नहीं रहा है रिश्तों पर.

ढेरों रिश्ते आ रहे थे. मांबाप विवाह के लिए जोर डाल रहे थे कि वह विवाह के लिए हां कर दे. वह नकार देती, ‘‘मां, इस विषय पर कभी बात न करना और फिर तुम देख ही रही हो मुझे फुरसत ही कहां है घरगृहस्थी के लिए… मैं ऐसे ही खुश हूं… विवाह करना जरूरी तो नहीं?’’

किस्सेकहानियों और सिनेमा की तर्ज पर वास्तविक जिंदगी में भी ऐसे संयोग आ सकते हैं. विश्वास करना पड़ता है. देशप्रदेश के दौरे नमिता के पद के आवश्यक सोपान थे. ऐसे ही एक कार्य से नमिता दिल्ली जा रही थी. अपनी सीट पर व्यवस्थित हो उस ने पत्रिका निकाली और टाइम पास करने लगी.

गाड़ी चलने में चंद क्षण ही शेष थे कि अचानक गहमागहमी का एहसास हुआ. नमिता की पास वाली सीट पर सामान रखने में एक सज्जन व्यस्त थे. नमिता ने पत्रिका को हटा कर अपने सहयात्री पर ध्यान केंद्रित किया, तो उस के आश्चर्य की सीमा न रही. वे प्रांजल थे. क्षणांश में उस ने निर्णय ले लिया कि सीट बदल लेगी.

विपरीत इस के प्रांजल खुशी से उछल पड़ा. बिना किसी भूमिका के बोला, ‘‘नमिता, मैं बरसों से ऐसे ही चमत्कार के लिए भटक रहा था.’’

नमिता किसी तरह उस से वार्त्तालाप नहीं करना चाहती थी, पर प्रांजल आप बीती कहने के लिए बेताब था.

प्रायश्चित का हावभाव लिए नमिता को कोई मौका दिए बिना ही बोलता चला गया, ‘‘तुम आईएएस में प्रथम आईं उस दिन चाहा था तुम्हें बधाई दूं, पर हिम्मत नहीं हुई. मैं तुम्हारा अपराधी था, कायर. मैं ने भी इस परीक्षा में बैठने का निर्णय लिया. तनमन से जुट गया. मन ही मन चाहा कि एक न एक दिन हम अवश्य मिलेंगे और आज तुम्हारे सामने हूं. मैं तुम्हारा अपराधी हूं नमिता, मैं कुछ भी नहीं कर सका.

‘‘मां ने पापा से कहा था कि मुझे इस तरह की दुस्साहसी बहू नहीं, मुझे तो सौम्य, सरल, सीधीसादी बहू चाहिए. मैं तुम से मिलने आना चाहता था पर मां ने जान देने की धमकी दी थी. बस मैं ने तभी निश्चित कर लिया था कि मैं तुम्हारे अलावा किसी से विवाह नहीं करूंगा. मां मेरी प्रतिज्ञा से परेशान हैं. उन्हें अपनी गलती का एहसास हो चुका है पर मैं तुम से मिलने की हिम्मत नहीं जुटा सका.’’

नमिता बुत बनी बैठी थी. मन में विचारों के बवंडर न जाने कहां उड़ाए लिए जा रहे थे. नमिता प्रांजल से कह देना चाहती थी कि उस का अंतर रेगिस्तान हो चुका है. प्रेम की धारा सूख चुकी है. अंतर की सौम्यता, सहजता, सरलता सब खो चुकी है. प्रांजल बात यहीं खत्म कर दे. फिर कभी मिलने की कोशिश न करे. वे अपने काम में सब कुछ भूल चुकी है.

प्रांजल की उंगली में आज भी सगाई की अंगूठी चमक रही थी. प्रांजल सब कुछ कह चुका था. नमिता खामोश ही रही. यात्रा का शेष समय खामोशी में कट गया.

सप्ताह के अंतराल बाद शाम जब नमिता कार्यालय से लौटी तो देखा कि प्रांजल के मम्मीपापा बैठक में बैठे हैं और लंबे अरसे बाद मां की उल्लासित आवाज सुनाई दी, ‘‘नमिता, यहां तो आ बेटा. देख कौन आया है.’’

‘लगता है उन दोनों ने मां के मन से कलुष धो दिया है, पिछले अपमान का,’ नमिता ने मन ही मन सोचा. वह जिन की शक्ल तक नहीं देखना चाहती थी, विवश सी उन लोगों के बीच आ खड़ी हुई.

प्रांजल की मां ने नमिता के दोनों हाथ स्नेह से अपनी हथेलियों में भर लिए और फिर भावुक होती हुई बोलीं, ‘‘मुझे माफ कर दो बेटी. मैं हीरे की पहचान नहीं कर पाई. मैं बेटे का दुखसंताप नहीं सह पा रही हूं. मेरी भूल, मेरे अहंकार का फल बेटा भोग रहा है. तुम्हारी अपराधी मैं हूं बेटा, मेरा बेटा नहीं… मुझे एक अवसर नहीं दोगी बेटी?’’

नमिता रुद्ररूप न दिखा सकी और फिर बिना कुछ बोले वहां से चली आई.

उस दिन आधी रात बीत जाने पर भी वह जागती रही. सप्ताह में घटी घटना पर विचार करती रही. ट्रेन में प्रांजल की क्षमायाचना याद आती रही, ‘‘बोलो, बताओ मुझे क्षमा किया? मेरे परिवार ने तुम्हारा अपमान किया, मैं स्वयं को तुम्हारा अपराधी मानता हूं.’’

प्रांजल, यह अलाप अब नमिता को धोखा या बकवास नहीं लग रहा था. पर उस के मन में कई प्रश्न घुमड़ रहे थे. स्पष्ट पूछना चाहती थी कि अब कौन सा प्रयोग करना चाहते हो हमारी जिंदगी में… क्या उस समय इतना साहस नहीं था कि अपनी मां को समझा पाते? उस दिन वह भी तो उन की मां के सामने चुप ही रही. संस्कार की बेडि़यों ने उस की जबान पर ताला लगा दिया था. फिर आंसुओं की राह सारा विद्रोह न जाने कैसे बह गया.

एक दिन निकट बैठी मां बोलीं, ‘‘बेटा,

इतने दिन तुझे सोचने को समय दिया… योगेशजी के यहां से बारबार फोन आ रहे हैं. मैं क्या जवाब दूं?’’

एक सहज सी नजर मां पर डाल नमिता यह कहती हुई उठ खड़ी हुई, ‘‘तुम जैसा चाहो करो मां.’’

मां निहाल हो गईं. घर में फिर से खुशियों ने डेरा डाल दिया था. अगले ही दिन मांपापा विवाह की तिथि तय करने इंदौर चले गए.

मिल गई मंजिल-भाग 2: सविता ने कौनसा रास्ता चुना?

सच जान कर आगे की सीट पर बैठे लड़के ने अपना पैन उसे दे दिया. पेपर के आखिर में जब सविता ने उसे उस का पैन लौटाया, तब  बातचीत के दौरान पता चला कि वह तो उसी के महल्ले में रहता है और उस ने अपना नाम रोहित बताया.

अंतिम पेपर देने के लिए सविता स्कूल गई तो स्कूल के बाहर नोटिस लगा था कि बोर्ड की सभी परीक्षाएं कैंसिल हो गई हैं. वहां अफरातफरी का सा माहौल था. कोई कुछ भी बताने को राजी न था. गेट पर ताला लगा था. सुरक्षागार्ड भी नदारद था.

सविता हताश होते हुए बस पकड़ने के लिए कुछ ही कदम चली होगी, तभी उसे उस की एक सहेली निशा मिल गई. उस ने सहीसही बताया कि पूरे देश में कोरोना वायरस फैल जाने के चलते ऐसा हुआ है. इस वजह से लौकडाउन भी लगाया गया है. तू जल्दी से घर जा और अपना खयाल रख. इधरउधर मत घूमना.

ऐसा कह कर सहेली निशा तो अपने रास्ते चली गई, पर उस का मन अभी भी आशंकित था. वह बस पकड़ने के लिए पैदल ही जा रही थी, तभी रास्ते में रोहित मिल गया, जो पेपर देने जा रहा था.

सविता को देखते ही उस का चेहरा खिल उठा. सविता भी उसे देख मुसकराई. रोहित ने लौटने की वजह पूछी तो सविता बोली, ‘‘रोहित, तुम्हें पता नहीं कि सभी पेपर कैंसिल हो गए हैं. आज पेपर नहीं होगा.’’

‘‘अच्छा… मुझे तो इस बारे में बिलकुल भी नहीं पता था. मैं तो पेपर देने जा रहा था. तुम्हें लौटते देखा तो सोचा कि आखिर क्या वजह हो गई कि तुम इस समय वापस लौट रही हो.’’

‘‘बस, यही बात हो गई है. अब पता नहीं, कब पेपर होगा?’’ सविता ने कहा.

‘‘जब होगा तब अखबारों में आ जाएगा. तुम चिंता मत करो,’’ रोहित उसे समझाते हुए बोला.

‘‘इस पेपर की मैं ने खास तैयारी की थी. और आज तो समय से पहले भी आ गई थी. अब क्या किया जा सकता है,’’ निराश होते हुए सविता बोली.

बातचीत के दौरान उस ने सविता को एक खत दिया. सविता पूछ बैठी, ‘‘क्या है यह?’’

‘‘घर जा कर देख लेना,’’ रोहित मुस्कान बिखेर कर बोला.

सविता ने नजर बचा कर वह खत बैग में डाला और चल पड़ी घर की ओर.

घर पहुंचते ही मां ने हैरान होते हुए सविता से पूछा, ‘‘अरे सविता, आज बड़ी जल्दी आ गई. क्या बात है… कुछ हुआ क्या…?

‘‘अच्छा, पहले यह बता कि तेरा पेपर कैसा हुआ?’’ मां ने उतावलेपन से पूछा.

‘‘मम्मी, आज का तो पेपर ही कैंसिल हो गया. कइयों के तो और भी पेपर छूट गए हैं. मेरा तो यह आखिरी था,’’ निराश भरे लहजे में सविता बोली.

‘‘क्यों… ऐसा कैसे?’’ मम्मी ने हैरान होते हुए पूछा.

‘‘क्योंकि मम्मी, कोरोना महामारी पूरे देश में फेल गई है. इस वजह से लौकडाउन लगा दिया गया है. आज तो मैं जैसेतैसे आ गई, पर अब आने वाले दिनों में और सख्ती बरती जाएगी. ऐसा मुझे एक सहेली ने बताया है,’’ सविता निराश भरे लहजे में मां को बता रही थी.

‘‘अच्छा…’’ यह सुन कर मां का मुंह खुला का खुला रह गया.

खाना खा कर सविता अपने कमरे में गई और रोहित का दिया खत पढ़ने लगी. खत के अंत में उस ने अपना रोल नंबर व मोबाइल नंबर लिखा था.

रोहित का खत पढ़ने के बाद सविता ने अपनी अलमारी में उसे रख दिया.

शाम को सविता ने टैलीविजन देखा तो उस की आंखें हैरानी से फटी रह गईं, क्योंकि सरकार ने पहले तो भारत बंद के नाम पर एक दिन का लौकडाउन किया और शाम को 5 बजे तालीथाली बजवाई, फिर अगले दिन से ही एक हफ्ते का और फिर 19 दिन का, फिर दीवाली जैसा उत्सव रात 9 बजे 9 दीए जला कर घर की चौखट या छत पर लगाने की गुहार के बाद 21 दिन का और लौकडाउन बढ़ा दिया. अभी तो पता नहीं कि कितने दिनों का और लौकडाउन चलेगा.

एक ओर लौकडाउन का सख्ती से पालन हो रहा था, वहीं कोरोना भी अस्पतालों में अपने पैर पसार रहा था. कोरोना मरीजों की तादाद दिनोंदिन बढ़ती जा रही थी. कोरोना को ले कर लोग डरे हुए थे, वहीं मास्क पहन कर निकलना अब उन की मजबूरी हो गया था.

यहां तक कि कोरोना के चलते सभी को घरों में कैद कर दिया गया था. जो जहां था, वहीं का हो कर रह गया. कइयों की तो रोजीरोटी छिन गई. स्कूल बंद, औफिस बंद, कारखाने बंद. बसें बंद, रेलें बंद, सड़कें सूनी. हर चौकचौराहों पर पुलिस मुस्तैदी से अपनी ड्यूटी निभा रही थी. बाहर काम पर जाने वालों से पुलिस सख्ती के साथ पूछताछ कर रही थी.

वहीं कोरोना ज्यादा न फेले, इसलिए बुजुर्गों को खासतौर से हिदायत दी गई थी कि घर से बाहर बिलकुल न जाएं. साथ ही, यह भी कहा जा रहा था कि यदि जरूरी काम से बाहर जाना ही हो, तो चेहरे पर मास्क लगाएं, लोगों से 2 मीटर की दूरी रखें. जब भी बाहर से आएं तो नहाएं भी. साफसफाई का खास ध्यान रखें वगैरह. यह वायरस खासा खतरनाक है. बचाव ही बेहतर इलाज है. जितना बच सकें, बचें.

 

मोहब्बत के लिए सहेलियों में ऐलान-ए-जंग

अभी सूर्योदय भी नहीं हुआ था. एक युवक अजमेर के ट्रांसपोर्टनगर थाने में हड़बड़ाता हुआ दाखिल हुआ.
वह हांफ रहा था. थाने में मौजूद एसएचओ विक्रम सिंह ने उस के भागते हुए आने का कारण पूछा, ‘‘अरेअरे, इतनी तेजी से क्यों आ रहे हो? बात क्या है? तुम तो हांफ भी रहे हो, पहले पानी पी लो.’’
‘‘जी जी, साहब जी… बात ही कुछ ऐसी है. जल्दी से आप मेरे साथ चलिए. नहीं तो…’’
‘‘नहीं तो क्या?’’ एसएचओ आश्चर्य से बोले.

‘‘…नहीं तो वह भाग जाएगी.’’
‘‘कौन भाग जाएगी? आराम से बताओ, बात क्या है, पहले पानी पी लो.’’ एसएचओ ने टेबल पर रखा पानी का गिलास हाथ में उठा कर युवक की तरफ बढ़ा दिया था.
युवक ने एसएचओ से गिलास ले कर दोनों हाथों से पकड़ लिया और गटागट पानी पी गया. एक लंबी सांस ली फिर बोला, ‘‘सरजी, मेरा नाम सूरज सिंह है. मैं यहीं पाली का रहने वाला हूं. साधु बस्ती, अजमेर की अनुराधा नायक अपनी सहेली ज्योति धानका की हत्या कर पाली भाग आई है. ज्योति की लाश अनुराधा के कमरे में ही पड़ी है. इस वक्त अनुराधा पाली नहर पुलिया पर अहमदाबाद जाने वाली बस के इंतजार में खड़ी है. आप जल्दी चलिए…’’

यह बात 8 सितंबर, 2022 की है. विक्रम सिंह युवक की बात सुन कर चौंक गए. फिर भी उन्होंने पूछा, ‘‘तुम्हें कैसे पता कि अनुराधा ने अपनी सहेली ज्योति का मर्डर किया है?’’
‘‘सर जी, पहले उसे पकड़ लीजिए मैं आप को सब कुछ रास्ते में बता दूंगा.’’ युवक बोला.
‘‘चलो ठीक है, बात गलत हुई तो सोच लो तुम पर ही काररवाई हो सकती है.’’ कहते हुए विक्रम सिंह कुछ सिपाहियों को ले कर युवक के साथ उस की बताई जगह नहर पुलिया की तरफ चल दिए.
रास्ते में युवक ने बताया कि वह अनुराधा का परिचित है. उस ने रात में अजमेर से पाली आने के बाद उसे बुलाया था. वह उस से होटल में मिला और वहां उन्होंने जम कर शराब पी.

शराब के नशे में अनुराधा ने रोते हुए ज्योति के मर्डर की बात बताई. उस ने यह भी बताया कि वह उस की लाश को अपने कमरे में ही छोड़ कर आई है. अब वह अहमदाबाद भाग जाना चाहती है.
पुलिस युवक द्वारा बताई जगह से थोड़ी दूरी पर रुकी. युवक ने पुलिस को खड़ी युवती की ओर इशारा कर बताया कि वही अनुराधा है. इस बीच युवती की नजर भी पुलिस वैन पर पड़ गई. वह भागने की कोशिश करने लगी. तब तक महिला पुलिस ने उसे दबोच लिया था.

पुलिस गिरफ्त में आई युवती साथ आए युवक पर चीखी, ‘‘अरे! सूरज तुम? तुम पुलिस को साथ लाए, मुझे पकड़वा दिया. बहुत गलत किया, मैं ने इसीलिए तुम्हें शराब पिलाई थी. एहसान फरामोश?’’
कुछ समय में युवती थाने में थी. उस से एसएचओ विक्रम सिंह पूछताछ करने लगे. थोड़ी देर तक युवती नशे में अनापशनाप बकती रही. युवक को गलियां देती रही, खुद को बेकुसूर बताती रही, यहां तक कि पुलिस को भी धमकाती रही.

महिला पुलिस ने युवती से उस का नाम और पता पूछ लिया था. पता चला कि अनुराधा नायक अजमेर के रामगंज थानाक्षेत्र की रहने वाली थी. तब विक्रम सिंह ने रामगंज के एसएचओ सतेंद्र सिंह नेगी से संपर्क कर अनुराधा के घर जा कर तहकीकात करने को कहा.एसएचओ सतेंद्र सिंह नेगी दलबल के साथ देरी किए बगैर ज्योति धानका की लाश होने की सूचना पर अनुराधा के घर साधु बस्ती गए. वहां उस के कमरे में ताला लगा हुआ था, लेकिन उस के आसपास बदबू फैल रही थी. कमरे का ताला तोड़ कर पुलिस कमरे में दाखिल हुई.

कमरे में वास्तव में एक युवती की लाश जमीन पर औंधे मुंह पड़ी हुई थी. पहली नजर में पता चला कि युवती का गला घोंट कर हत्या कर दी गई है. वह लाश 2 दिन पुरानी लग रही थी.
उस के बारे में एसएचओ नेगी को जानकारी पाली थाने की पुलिस द्वारा हिरासत में ली गई अनुराधा से मिली. मृतका अजमेर के केसरगंज धानका बस्ती की रहने वाली ज्योति थी. उस की उम्र करीब 32 साल थी और उस के पति का नाम अनिल कुमार धानका है.

घटनास्थल पर पुलिस ने एफएसएल टीम को भी बुलवाया. टीम ने कई तरह के साक्ष्य एकत्रित किए और शव को पोस्टमार्टम के लिए जवाहरलाल नेहरू चिकित्सालय अजमेर भेज दिया गया. उसी दिन पोस्टमार्टम कर लाश 8 सितंबर, 2022 को उन के परिजनों के सुपुर्द कर दी गई. परिजनों ने उस का अंतिम दाहसंस्कार कर दिया.रामगंज की पुलिस उसी दिन पाली के ट्रांसपोर्ट नगर थाने गई, जहां अनुराधा पुलिस की हिरासत में थी. वहां से उसे रामगंज थाने लाया गया. पुलिस के आला अधिकारियों ने अनुराधा से सख्ती से पूछताछ करने के बाद उस के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली.

मृतका ज्योति के पिता रमेशलाल धानका की तहरीर पर हत्या का मामला दर्ज किया गया. मुख्य आरोपी अनुराधा नायक को बनाया गया, जो विधवा है. उस का पति गोकुल नायक अजय नगर, साधु बस्ती का निवासी था.साधु बस्ती में 2 दिन पुरानी लाश बरामद होने पर पूरी कालोनी में सनसनी फैल गई. पूछताछ में पता चला कि अनुराधा और ज्योति अच्छी सहेलियां थीं. अनुराधा पिंटू नाम के व्यक्ति से ब्याज पर पैसे ले कर जरूरतमंद महिलाओं को ब्याज पर देती थी.

अनुराधा के पड़ोसियों से मालूम हुआ कि ज्योति का उस के घर अकसर आनाजाना लगा रहता था. ज्योति भी अनुराधा के साथ मिल कर ब्याज पर पैसा उठाने का काम करती थी.जांच में अनुराधा ने बताया कि ज्योति उस से महीने भर से अपने दिए हुए डेढ़ लाख रुपए मांग रही थी. लेकिन अनुराधा नहीं चुका पा रही थी. इसी सिलसिले में 6 सितंबर, 2022 को उन के बीच तीखी बहस हो गई थी. यहां तक कि उन में हाथापाई तक की नौबत आ गई थी.

इस झगड़े में अनुराधा ने ज्योति के सिर पर रसोई में पड़े बरतन मारे. इस के बाद ज्योति जख्मी हो कर जमीन पर गिर पड़ी थी. उस के बाद अनुराधा ने उस का गला घोट दिया था.अनुराधा ने उस की मौत हो जाने के बाद उस के स्कूटी, मोबाइल फोन, जूते आदि को बड़ी चालाकी से ठिकाने लगा दिए. उस के बाद पड़ोसियों के घर रात बिताई. वहीं उस ने रात का खाना भी खाया. रात अधिक होने पर वह पड़ोसी के घर पर ही रुक गई.

अगले रोज 7 सितंबर की सुबह करीब 8 बजे वह अपने कमरे पर आई. वहां अपना सामान वगैरह समेटा और अहमदाबाद जाने की योजना बनाई. …और फिर वह उसी दिन देर शाम को पाली जा पहुंची. उस ने रात पाली में गुजारने का मन बनाया और अगले रोज सुबहसुबह अहमदाबाद फरार होने का कार्यक्रम बना लिया.

उस ने पाली में रह रहे परिचित युवक सूरज सिंह को फोन कर मिलने के लिए बुलाया. उस ने उस के साथ रात गुजारने के लिए एक होटल में कमरा ले लिया. वहां दोनों ने कमरे में जम कर शराब पी. नशे में धुत अनुराधा ने ज्योति की हत्या के बारे में भी बता दिया और पुलिस से बचने के लिए उस से मदद मांगी.
जब अनुराधा नशे की हालत में बेसुध सो गई, तब सूरज चुपके से वहां से निकल गया और सीधा थाने में आ कर अनुराधा के अपराध की जानकारी दे दी.

दूसरी तरफ ज्योति के पिता रमेशलाल धानका ने भी उस के घर वापस नहीं लौटने पर पुलिस में लापता होने की शिकायत दर्ज करवा दी थी. उन्होंने 7 सितंबर, 2022 को थाने में दी गई अपनी शिकायत में कहा था कि उन की बेटी 6 सितंबर की सुबह ही अपनी स्कूटी से निकली थी.उस की स्कूटी उसी दिन शाम को जौंसगंज में मिली थी. जबकि मोबाइल अजयनगर में ही एक राहगीर को मिला था, जिसे उस ने रामगंज पुलिस चौकी में जमा करवा दिया था.

बरामद स्कूटी राकेश शर्मा के नाम पर थी. पुलिस ने जब राकेश शर्मा से उस की स्कूटी और ज्योति से संबंध के बारे में पूछताछ की, तब पता चला कि फाइनेंसर पिंटू से अनुराधा और ज्योति दोनों के प्रेम संबंध थे. दोनों बिजनैस की सहेलियां थीं और एक ही युवक पिंटू से प्रेम करती थीं.इस मामले ही तहकीकात के बाद रामगंज थाने की पुलिस ने अनुराधा को 9 सितंबर, 2022 को अजमेर कोर्ट में पेश किया. वहां से अनुराधा को एक दिन की रिमांड पर ले कर कड़ी पूछताछ की गई. उस के बाद जो कहानी उभर कर आई, वह काफी चौंकाने वाले नारी अपराध की निकली—

ज्योति धानका अपने पिता के साथ अजमेर शहर के घंटाघर थाना क्षेत्र के तीसरी गेट रावण की बगीची में रहती थी. उस की शादी कई साल पहले केसरगंज, धानका बस्ती निवासी अनिल कुमार के साथ हुई थी. उस से ज्योति 2 बच्चों की मां भी बन गई थी, किंतु उस की ससुराल वालों से नहीं बनती थी, इस कारण वह बीते 2 सालों से मायके में ही रह रही थी.एक दिन उस की मुलाकात अजमेर के रहने वाले फाइनेंसर पिंटू से हुई. वह ब्याज पर पैसा देने का काम करता था. ज्योति उस से पैसा ले कर दूसरी जरूरतमंद महिलाओं को अधिक ब्याज पर देने का काम करने लगी. इस तरह से उसे कुछ प्रतिशत के ब्याज की रकम मिल जाती थी. इसे उस ने अपनी आजीविका का एक साधन बना लिया था.

पिंटू के संपर्क में ज्योति की तरह ही अजमेर की रहने वाली 36 वर्षीया अनुराधा नायक भी थी. वह गोकुल नायक की तीसरी पत्नी थी, जिस की कुछ साल पहले मौत हो जाने के बाद वह अकेली रहने लगी थी.
ज्योति और अनुराधा एक ही व्यक्ति पिंटू से ब्याज पर पैसा उठाती थीं और दूसरों को ज्यादा ब्याज पर देती थीं. इस कारण उन की आपस में जानपहचान हो गई. जल्द ही दोनों पक्की सहेलियां बन गईं.
दोनों में एक समानता और थी कि दोनों पुरुष संसर्ग से वंचित थीं. अनुराधा विधवा थी, जबकि ज्योति का पति साथ नहीं रहता था. दोनों अतृप्त कामवासना से पीडि़त थीं. जबकि उन के शौक रंगीनमिजाज वाले थे. दोनों को शराब की लत थी. वे घूमनेफिरने और अच्छा खानेपहनने की भी शौकीन थीं.

उन के तमाम शौक के इंतजाम पिंटू ही कर दिया करता था. दोनों ने कब पिंटू से यौन संबंध कायम कर लिए, उन्हें पता ही नहीं चला. अनुराधा अकेली रहती थी और पिंटू कई बार आधी रात के बाद उस के कमरे पर आता था और वहीं रुक जाता था.एक बार ज्योति जब सुबह में अनुराधा के घर आई और पिंटू को उस के कमरे पर हमबिस्तर होते देखा तो चिढ़ गई. उस वक्त दिन के 10 बज रहे थे.
उस रोज उस ने दोनों को काफी डांट लगाई. डांटते हुए उस ने अनुराधा को कहा कि बहुत बेशर्म हो गई है. पड़ोसी उस के बारे में बहुत बुरा कहेंगे. जिन्हें वह बयाज पर पैसा देती है उन्हें इस बारे में मालूम होगा, तब उन का धंधा चौपट हो जाएगा. उस वक्त पिंटू चला गया. उस के जाने के बाद दोनों के बीच काफी देर तक तूतूमैंमैं होती रही.

अनुराधा ने भी ज्योति पर कई आरोप मढ़ दिए. उस ने कहा कि वह भी कोई दूध की धुली नहीं है. वह भी तो उस के नहीं रहने पर पिंटू के साथ गुलछर्रे उड़ाती है.उस रोज अनुराधा और ज्योति के बीच बहस इतनी बढ़ गई कि अनुराधा से ज्योति बाकी पैसे का हिसाबकिताब तक मांग बैठी. गुस्से में अनुराधा उस के साथ हाथापाई पर उतर आई. जिसे जो हाथ लगा, वही एकदूसरे पर फेंकने लगीं.
उन की तेज आवाजें सुन कर कुछ पड़ोसी आ गए, तब दोनों शांत हुईं. पड़ोसियों के पूछने पर ज्योति ने ही बात संभाली.

दरअसल, ज्योति पति से अलग रहने के कारण अपना दूसरा घर बसाना चाहती थी. उस की दोस्ती फाइनेंसर पिंटू से हो गई थी, जिस से ज्यादा दिनों तक संबंध नहीं बन पाया. क्योंकि वह अनुराधा की ओर आकर्षित हो गया था.पिंटू ने इस बारे में ज्योति को समझाने के लिए कहा कि वह शादीशुदा है इसलिए उस के संबंध नहीं बन सकते हैं. अनुराधा ने यही बात ज्योति को समझाई, लेकिन ज्योति इस पर अनुराधा से खिन्न रहने लगी.

इस मुद्दे को ले कर दोनों के बीच कई बार बहस हो चुकी थी. ज्योति ने अनुराधा को डेढ़ लाख रुपए दे रखे थे. जब भी पिंटू से संबंध तोड़ने की बात आती, तब ज्योति अपना पैसा मांगने लगती थी.
अनुराधा चाहती थी कि पिंटू से उस का संपर्क बना रहे. वह निकट भविष्य में उसे अपना जीवनसाथी बनाने का मन बना चुकी थी. जबकि पिंटू से ज्योति फोन पर बातें कर उसे अपने पक्ष में करने की कोशिश करती रहती थी.ज्योति और अनुराधा की दोस्ती में पिंटू की कामवासना के प्रेम संबंधों से दरार पड़ गई. दोनों नाममात्र की सहेलियां थीं. आमनासामना होते ही दोनों तुरंत झगड़ पड़ती थीं.

ज्योति 6 सितंबर, 2022 की दोपहर में अनुराधा के यहां आई थी. उस वक्त अनुराधा अकेली बैठी थी. अनुराधा ने ज्योति का गर्मजोशी के साथ स्वागत किया. कामधंधे की बातें करने के सिलसिले में ज्योति ने अनुराधा पर ब्याज पर दिए गए पैसे की वसूली में अनदेखी का आरोप लगा दिया.इस पर जैसे ही अनुराधा ने पिंटू का नाम लिया, ज्योति भड़क गई. उस के बाद जो हुआ उसे ले कर अनुराधा के सामने पछताने के अलावा और कुछ नहीं था.

उन के बीच के हंगामे की आवाजें पड़ोसियों ने सुनीं, लेकिन उन्हें पता था कि उन के बीच इस तरह की तूतूमैंमैं आए दिन की बात है. इसलिए उन्होंने उस ओर ध्यान नहीं दिया.अनुराधा शाम को कुछ मकान छोड़ कर एक पड़ोसन के यहां चली गई. उसे भी ब्याज पर पैसा देती थी. उस ने पड़ोसन को बताया कि आज उस का मूड ठीक नहीं लग रहा है, इसलिए वह उस के साथ ही रहना चाहती है.

संयोग से वह पड़ोसन भी उस वक्त घर में अकेली थी. अनुराधा ने पुलिस को बताया कि उस ने शाम के 4 बजे गुस्से में ज्योति का रस्सी से गला घोट दिया था. वह थोड़ी देर गला दबने से ही मर गई थी. करीब 5 बजे नहाधो कर तैयार हुई और ज्योति की स्कूटी, मोबाइल, चप्पल और रस्सी ले कर इधरउधर ठिकाने लगा दिया.

पुलिस ने ज्योति की हत्या में इस्तेमाल रस्सी बरामद कर ली. उस के बाद आरोपी अनुराधा नायक को अजमेर न्यायालय में पेश कर दिया गया. वहां से उसे जेल भेज दिया गया.

अंतर्राष्ट्रीय मुद्दा: महिलाओं ने हिला दीं ईरानी सत्ता की जड़ें

ईरान की औरतों के लिए मोरल पुलिस के खत्म हो जाने से मुश्किलें कम हो जाएंगी, यह कहना थोड़ी जल्दबाजी होगी क्योंकि अभी यह साफ नहीं है कि हिजाब पहनने की अनिवार्यता से औरतों को आजादी मिली है या नहीं. फिर भी सलाम है ईरान की औरतों को जिन्होंने अपने हिजाब को क्रांति की पताका बना दिया और धार्मिक कट्टरता एवं जुल्म के खिलाफ फतह हासिल की.

13 सितंबर, 2022, तेहरान की एक सड़क पर अपने भाई के साथ हंसती और बातें करती जा रही एक कुर्दिश महिला महसा अमीनी को ईरान की मोरल पुलिस ने इस आरोप में गिरफ्तार कर लिया कि उस ने अपने सिर को हिजाब से ठीक तरीके से नहीं ढका था, उस के बाल हिजाब के बाहर दिख रहे थे. पुलिस महसा को वैन में बिठा कर ले गई. कुछ देर बाद महसा को कोमा की हालत में एक अस्पताल में भरती कराया गया जहां 3 दिनों बाद उस की मौत हो गई. सिर को हिजाब से न ढकने पर पुलिस ने महसा को इतनी यातना दी कि लड़की की मौत हो गई. महसा की मौत ने ईरान समेत दुनिया के कई देशों में तूफान खड़ा कर दिया. औरत परदा करे या न करे, इस का फैसला सत्ता नहीं कर सकती, इस संदेश को सत्ता के सुन्न दिमाग तक पहुंचाने के लिए पिछले 3 महीने से हजारों की संख्या में ईरानी औरतें वहां की सड़कों पर हैं. वे हिजाब को परचम बना कर अपना विरोध प्रकट कर रही हैं.

जगहजगह हिजाब की होली जला रही हैं. अपने केश कटवा रही हैं. खुलेसिर नारे लगा रही हैं और वह सबकुछ कर रही हैं जिसे रोकने के लिए ईरान की सरकार ने मोरल पुलिस का गठन कर रखा है. महसा अमीनी की मौत ने औरतों को जबरदस्त तरीके से उद्वेलित कर दिया. इस कदर उद्वेलित किया कि अब उन्हें किसी सजा का तो क्या, अपनी जान तक का खौफ नहीं है. उन के विरोध को सत्ता ने कठोरता से कुचलने की भरपूर कोशिश की. तीन महीने से चल रहे विरोध प्रदर्शनों में अब तक 300 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. इस घटना को अंतर्राष्ट्रीय चर्चा का विषय बनते देर नहीं लगी. दुनियाभर में ईरान सरकार और उस की मोरल पुलिस की निंदा की जा रही है. अमेरिका ने 23 सितंबर को ईरान की मोरल पुलिस ‘गश्त-ए-इरशाद’ को ब्लैक लिस्ट कर दिया. अमेरिकी टैजरी विभाग ने साफ कहा कि मोरैलिटी पुलिस महसा अमीनी की मौत के लिए जिम्मेदार है. व्हाइट हाउस के प्रवक्ता ने कहा कि सही तरीके से हिजाब न पहनने की वजह से पुलिस कस्टडी में महसा अमीन की मौत हो जाना मानव अधिकारों का बड़ा अपमान है. ईरान में महिलाओं को बिना किसी हिंसा और प्रताड़ना के खुद की पसंद से कपड़े पहनने का अधिकार होना चाहिए. अमेरिका सहित दुनिया के कई मुल्क इस वक्त ईरानी औरतों के विरोध प्रदर्शन में उन के साथ हैं.

3 महीने बाद आखिरकार औरतों की क्रांति रंग लाई है और ईरान की ताकतवर कट्टरपंथी इसलामिक सरकार को ?ाकना पड़ा है. महिलाओं के उग्र तेवरों ने सरकार को घुटने के बल ला दिया है और लंबे व कड़े संघर्ष के बाद ईरान सरकार को ‘गश्त-ए-इरशाद’ यानी मोरैलिटी पुलिस को खत्म करने के लिए मजबूर होना पड़ा है. इसे महिलाओं की बड़ी जीत माना जा रहा है. यह निश्चित तौर पर उन तमाम महिलाओं के जीवट और हिम्मत की जीत है जिन्होंने दमन की एक घटना की अनदेखी करने के बजाय उसे समूचे ईरान में एक बड़ा मुद्दा बना दिया और पूरी दुनिया को सोचने व अपने साथ आने के लिए मजबूर कर दिया. ईरान के शासन में धार्मिक नियमकायदों के प्रभाव की अब तक जैसी छवि रही है, उस में यह उम्मीद कम ही थी कि सरकार इस मसले पर ?ाकेगी. लेकिन जब ईरान में महिलाओं ने हिजाब की वजह से एक महिला की मौत के बाद इस समूची जड़ परंपरा के खिलाफ बिगुल फूंक दिया तो सरकार को ?ाकना पड़ा.

‘नैतिक पुलिस’ की इकाइयों को भंग किए जाने का फैसला उन महिलाओं और आम लोगों की जीत है जिन्होंने अपनी इच्छा से हिजाब न पहनने के अधिकार के समर्थन में लड़ना चुना और लंबे समय से चली आ रही इस व्यवस्था के खिलाफ आवाज उठाई. दरअसल कोई भी जड़ परंपरा तब तक कायम रहती है जब तक उस पर कोई सवाल न उठे. इस घटना ने यह साफ संदेश दिया है कि सत्ता के दमन के जोखिम के बावजूद जब आमलोग किसी दमघोंटू चलन के विरुद्ध मोरचा लेने का फैसला कर लेते हैं तो उस से राहत या आजादी का रास्ता निकल ही आता है. ईरान की महिलाओं और उन के साथ भारी तादाद में खड़े लोगों ने यह उदाहरण दुनिया के हर उस मुल्क के सामने रखा है जो अपनी औरतों को दोयम दरजे का नागरिक मानता है और धर्म के नाम पर उन के पहननेओढ़ने, आनेजाने पर अपनी मनमानी राय थोपता है.

गौरतलब है कि ईरान में 1979 की इसलामी क्रांति के बाद से ‘नैतिक पुलिस’ के कई रूप देखने को मिले हैं. लेकिन 2006 में गठित ‘गश्त ए इरशाद’ सब से ज्यादा चर्चा में रहा, जो महिलाओं के हिजाब पहनने के अलावा अन्य इसलामी कानूनों का सख्ती से पालन कराना सुनिश्चित कर रहा था. यह न्यायपालिका और इसलामी रिवोल्यूशनरी गार्ड्स कौर्प्स से जुड़े बल ‘बासिज’ के साथ मिल कर काम करता था. हालांकि इस तंत्र को भंग करने के बाद यह नहीं कहा जा सकता कि महिलाएं धार्मिक संकीर्णता के दायरे से मुक्त हो गई हैं या हिजाब पहनने के कानून में कोई बदलाव होगा अथवा उदार मूल्यों के खिलाफ माहौल अचानक ही पूरी तरह खत्म हो जाएगा, लेकिन इस के बावजूद हिजाब के मसले पर महिलाओं के आंदोलन को जैसी जीत मिली है, वह लोकतांत्रिक भावनाओं में यकीन रखने वाले दुनियाभर के लोगों का उत्साह बढ़ाने वाली है और इस से दुनिया के किसी भी हिस्से में दमघोंटू रीतिरिवाजों को हिम्मत के साथ खारिज करने का रास्ता तैयार हुआ है.

ईरान में औरतों पर जबरन हिजाब लादे जाने के खिलाफ शुरू हुआ आंदोलन न केवल व्यापक रूप ले चुका है बल्कि इस की मांगों का दायरा भी काफी बड़ा हो गया है. सरकार के कामकाज से जुडे़ अन्य मुद्दे भी इस में शामिल हो चुके हैं. जाहिर है, ईरान के हालात आगे क्या मोड़ लेते हैं, यह स्पष्ट होने में थोड़ा वक्त लगेगा, लेकिन जो कुछ हो चुका है, उस का लेखाजोखा इतना तो बता ही देता है कि ईरान की बहादुर महिलाओं ने पूरी दुनिया के सामने संघर्ष की नई मिसाल पेश की है. मालूम हो कि 1979 से पहले शाह रजा पहलवी के शासन में महिलाओं के कपड़ों के मामले में ईरान काफी आजादखयाल था. रजा शाह पहलवी के शासनकाल का एक दौर वह भी था जब समाज को आधुनिक बनाने के उद्देश्य से हिजाब को बैन कर दिया गया था.

तब महिलाएं स्वेच्छा से सार्वजनिक स्थानों पर आधुनिक वस्त्रों में आतीजाती थीं. वे उच्चशिक्षा पा रही थीं, नौकरियां कर रही थीं. लेकिन 1979 की क्रांति ने अमेरिका समर्थित राजशाही को उखाड़ फेंका और इसलामिक गणराज्य की स्थापना की. शाह रजा पहलवी को देश छोड़ कर जाना पड़ा और ईरान इसलामिक रिपब्लिक हो गया. शियाओं के धार्मिक नेता आयतुल्लाह रूहुल्लाह खोमैनी को ईरान का सुप्रीम लीडर बनाया गया. तभी से ईरान दुनिया में इसलाम का गढ़ बन गया. खोमैनी ने महिलाओं के अधिकार काफी कम कर दिए. शरिया कानून के सख्ती से लागू होने के बाद ईरान में औरतों के लिए हिजाब अनिवार्य कर दिया गया. यहीं से ईरान की महिलाओं के लिए मुश्किलें बढ़नी शुरू हो गईं. इसलामी क्रांति के बाद से ही ईरान में तरहतरह की नैतिक पुलिस अस्तित्व में आती रही जो पूरे वक्त औरतों पर नजर रखने लगी कि वे सिर से पांव तक बुर्के में ढकी हुई हैं या नहीं. शरिया कानून ने उन की आजादी पर तमाम तरह की पाबंदियां लगा दीं और वहां धार्मिक कट्टरता बढ़ती चली गई.

सार्वजनिक रूप से यह बात भी तय है कि जहां भी धार्मिक कट्टरता जैसे ही बढ़नी शुरू होती है, महिलाओं के लिए मुश्किलें बढ़ जाती हैं. धर्म के नाम पर सब से पहले महिलाओं के हक से उन्हें महरूम किया जाता है. धर्म के नाम पर उन्हें घरों में कैद करने की कोशिश शुरु हो जाती है. यानी, एक तरह से उन्हें गुलाम बनाने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है भारत में भी धार्मिक कट्टरता की वजह से औरतों पर बंधन बढ़ रहे हैं.

ईरान की औरतों को सलाम है कि उन्होंने धार्मिक कट्टरता के सामने हार नहीं मानी और उस के खिलाफ संघर्ष किया. यह संघर्ष दबेछिपे तरीके से बीते कई सालों से जारी था, मगर महसा अमीनी की मौत के बाद यह उभर कर सामने आ गया. हालांकि ईरान की औरतों के लिए मोरैलिटी पुलिस के खत्म होने जाने से मुश्किलें कम हो जाएंगी, यह कहना थोड़ी जल्दबाजी होगी क्योंकि अभी यह साफ नहीं है कि हिजाब पहनने की अनिवार्यता से औरतों को आजादी मिली है कि नहीं. फिर भी हिम्मत है ईरान की औरतों को जिन्होंने अपने हिजाब को क्रांति की पताका बना दिया और धार्मिक कट्टरता एवं जुल्म के खिलाफ फतह हासिल की.

चुनावी तिकड़म

इस बार दिसंबर के चुनावों और उपचुनावों के नतीजों ने फिर साबित कर दिया है कि सरकार में बने रहने के लिए चुनावी कौशल ज्यादा जरूरी है बजाय चुनाव के बाद किसी सरकार को चलाने का कामकाज देखने के. नरेंद्र मोदी ने जिस तरह गुजरात में ताबड़तोड़ चुनावी सभाएं कीं उस से भारतीय जनता पार्टी को रिकौर्ड वोट भी मिले और रिकौर्ड सीटें भी. साफ है कि चुनाव जीतने का सही सरकार चलाने से कोई सीधा संबंध नहीं है.

दिल्ली के अरविंद केजरीवाल ने भी यही किया. उन्होंने भी अपना कामधाम छोड़ कर गुजरात और दिल्ली में चुनावी सभाएं कीं और गुजरात में चाहे सीटें 5 मिली हों, वोट इतने मिल गए कि प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस को भारी नुकसान पहुंचा.

कांग्रेस के 3 दिग्गज नेताओं में से सोनिया गांधी लगभग अस्वस्थ हैं. राहुल गांधी ‘भारत जोड़ों’ यात्रा में व्यस्त रहे और प्रियंका गांधी आधेअधूरे मन से हिमाचल गईं. दिल्ली म्यूनिसिपल कौर्पोरेशन के चुनाव में कोई बड़ा कांग्रेसी नेता हाथ डालने भी नहीं आया. गुजरात में जहां पिछली बार राहुल की मेहनत की वजह से कांग्रेस ने बहुत अच्छा प्रदर्शन किया था, इस बार वे नदारद थे जिस का नुकसान सामने है.

अब यह साफ दिख रहा है कि चुनाव जीतना और सही शासकीय नीतियां बनाना 2 अलग चीजें हैं. लोकतंत्र का मतलब अब अच्छी सरकार चलाना नहीं है, अच्छा चुनावप्रचार करना रह गया है. जो पार्टी जम कर प्रचार कर सके और दूसरी पार्टियों के आर्थिक स्रोत सुखा सके वह जीत सकती है उस की नीतियां चाहे कुछ भी हों. हिमाचल प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी को भ्रम था कि उस की नीतियों के कारण वह जीत जाएगी, इसलिए वहां के ढुलमुल मुख्यमंत्री और नरेंद्र मोदी का प्रचार फीका रहा और पार्टी हार गई.

पर क्या यह सही दिशा है लोकतंत्र की. लोकतंत्र का मतलब चुनाव नहीं, चुनाव बाद शासन है. जो पार्टी सरकार बनाने के बाद अपना कार्यकाल पूरा करने तक जनता में सुख और सुरक्षा का एहसास भी न बना पाए लेकिन चुनावों में अति सक्रीय हो बढ़चढ़ कर हिस्सा ले उसे सत्ता तो मिलती रहेगी पर देश का भला नहीं हो सकता. चुनावों में अच्छा वक्ता चाहिए, दमखम चाहिए जबकि शासन करने में दूरदर्शिता चाहिए, जनता के दुखों को समझने की योग्यता होनी चाहिए, नीतियों के परिणामों के आकलन जानने की क्षमता होनी चाहिए.

चुनावी मैदान में जीत जाना लड़ाकुओं द्वारा हथियारों के बल पर जीत जाना जैसा है. इतिहास उन्हीं की दास्तानों से भरा है जिन्होंने युद्ध जीते पर महान उन्हें कहा जाता है जिन्होंने जीतने के बाद शांति कायम की, जनता के सुख के लिए काम किए.

तालिबानियों ने अफनानिस्तान में रूसियों और अमेरिकियों को हरा तो दिया पर अब क्या वे सही शासन दे पा रहे है. व्लादिमीर पुतिन ने तिकड़म से रूसी चुनाव एक के बाद एक जीत लिए पर क्या वे युद्ध करने की आदत से बच पाए जिस का नतीजा आज एक महंगा रूसयूक्रेन युद्ध हो रहा है. अमेरिका में पिछले राष्ट्रपति डोनाल्प ट्रंप पैसे के बल पर चुनाव जीत गए पर एक टूटाफूटा देश अपने बाद वालों के लिए छोड़ गए. लोकतंत्र की यह बड़ी खामी हो गई है कि चुनाव जीतना टूथपेस्ट और शैंपू बेचना जैसा हो गया है. जो ज्यादा हल्ला मचा ले, वह आगे, चाहे उत्पाद कैसा भी हो.

महिलाओं में मोटापे की वजह

नए दौर में युवाओं के काम का एनवायरमैंट कुरसी पर बैठने वाला अधिक हो गया है. इस मौडर्न लाइफ स्टाइल के साथ अस्वास्थ्यकर खुराक, भारी स्टार्चयुक्त भोजन, फलों तथा सब्जियों रहित खाना और शारीरिक श्रम का अभाव उन्हें मोटापे की तरफ धकेल रहा है. दिल्ली की 32 वर्षीया गृहिणी शुचिका चौहान बढ़ते वजन को अपनी शारीरिक सुंदरता में एक बड़ी कमी मानती हुई कहती है,

‘‘खाने की अधिकता और शारीरिक क्षमता की कमी के कारण बढ़ा यह मोटापा मेरी परेशानी की वजह है और मु?ो डर है कि कहीं आगे यह और न बढ़ जाए, इसलिए मैं ने इसे नियंत्रित करने पर ध्यान देना शुरू कर दिया है.’’ परंतु उच्च रक्तचाप, कैंसर, मधुमेह और हृदय संबंधी रोग आदि भयंकर बीमारियों को बुलावा देने वाले इस मोटापे की चपेट में आने के कई कारण हो सकते हैं जिन्हें नजरअंदाज कर लोग बढ़ते वजन की समस्या का शिकार होते चले जाते हैं.

इस की असल वजह है अस्वास्थ्यकर खुराक, भारी स्टार्चयुक्त भोजन, फलों तथा सब्जियों रहित खाना और शारीरिक श्रम का अभाव. महिलाओं के लिए भी खतरा कम नहीं है. देश में पुरुषों से ज्यादा स्त्रियां, खासकर 35 से ज्यादा की आयु वाली, अधिक वजन की हैं. कारण महिलाओं में मोटापे के कारणों पर गौर किया जाए तो इस के प्रमुख कारणों में सब से अहम कारण है आरामतलबी होना और परिश्रम न करना, जिसे इस परिप्रेक्ष्य में देखा जा सकता है कि घरों में रहने वाली साधनसंपन्न महिलाएं अधिकतर कामों के लिए नौकरों पर निर्भर रहती हैं तथा घर में ही बैठेबैठे मनोरंजन के साधनों टीवी, मोबाइल और इंटरनैट आदि से दिनभर का टाइम पास करती हैं और इसी के साथ ही जब चाहे खाने का मन होने पर अपने मनपसंद भोजन का लुत्फ उठाना भी उन की रोजमर्रा की आदतों में शुमार हो जाता है जिस का नतीजा होता कि मोटापा शरीर के कुछ अंगों, जैसे पेट, जांघ, हाथ, नितंब कमर आदि को अनावश्यक रूप से फुलाते हुए अपने आसपास के अंगों को दबाता चला जाता है.

इस तरह पूरे शरीर को वह अपने कब्जे में ले लेता है. स्वास्थ्य के लिए शारीरिक श्रम को महत्त्वपूर्ण बताते हुए कई डाइटीशियनों का कहना है कि जितनी मात्रा में प्रतिदिन भोजन से कैलोरी प्राप्त की जाती है उस का उतनी मात्रा में उपयोग न हो पाने के कारण शरीर में कैलोरी की मात्रा बढ़ती चली जाती है और फैट जमा होने लगता है. यही कारण है कि एक ही जगह बैठ कर काम करते रहने वाले ऐसे लोग जो ज्यादा वर्कआउट नहीं करते मोटे होते चले जाते हैं.

मौडर्न लाइफ स्टाइल समय की कमी होने की वजह से जहां नौकरीपेशा व पढ़ाई में व्यस्त युवकयुवतियों को मजबूरी में ज्यादातर जंकफूड या बाहर के खाने का सहारा लेना पड़ता है, वहीं कालेज स्टूडैंट्स आदि के लिए भूख लगने पर उन के पसंदीदा भोजन के रूप में पिज्जा, बर्गर, चाउमीन आदि फास्ट फूड ही लेना होता है. इस के अतिरिक्त ज्यादा से ज्यादा घर से बाहर रैस्टोरैंट आदि और फूड डिलिवरी पर निर्भर रहने वालों में खाना खाने का शौक रखने वाली महिलाएं स्वाद लेने के चक्कर में उस औयली खाने के दुष्प्रभावों की ओर भी ध्यान नहीं देतीं जिस का परिणाम बहुत महंगा पड़ता है.

कोविड के दिनों में रैस्टोरैंटों का खाना घर पर पहुंचने लगा है और एक तरह से अब यह फैशन हो गया है. डिलीवरी ऐप्स के खाने का पोर्शन बड़ा होता है और ज्यादा खाया जाता है. हमारे यहां गर्भवती होने पर स्त्रियों को गर्भवती के नाम पर अनावश्यक खिलाते रहना एक दस्तूर सा बना हुआ है. प्रसव के बाद भी मेवों का अधिक सेवन कराना और शारीरिक श्रम कम करना व कहीं बाहर जाने के बजाय घर में ही बने रहना आदि भी वजन बढ़ने के कारण हैं.

  1. स्त्रियों में 3 बार बड़े शारीरिक बदलाव होते हैं- मासिकधर्म पर, गर्भधारण पर और मासिकधर्म बंद होने पर. इन तीनों मौकों पर उन के शरीर का वजन आमतौर पर बढ़ता ही है. इस विषय में डाक्टर कहते हैं, ‘‘यदि कोई महिला डिलीवरी के बाद अधिक रैस्ट करती है या फिर उस समय संतुलित मात्रा में सही भोजन का सेवन नहीं करती तो उसे वजन बढ़ने की समस्या का सामना करना पड़ सकता है. इसी तरह मासिकधर्म होने के समय हारमोनल डिस्टरबैंस की वजह से पीरियड्स लेट होने या अनियमित होने व मेनोपौज (मासिकधर्म बंद होने पर) के बाद भी वजन बढ़ सकता है.

ऐसी स्थिति में जब तक ऐक्सरसाइज न की जाए तब तक मोटापा कम नहीं होता. वैसे, इस के अतिरिक्त भी अगर वजन बढ़ने के कारणों पर ध्यान दिया जाए तो मोटापे का एक कारण जैनेटिक प्रौब्लम भी हो सकती है. मोटापा खानदानी भी हो सकता है लेकिन ऐसे में यह पता लगा पाना बहुत मुश्किल हो सकता है कि इस में वंशातुओं की कितनी भूमिका है. मांबाप से आने वाले डीएनए के वे छोटेछोटे हिस्से भी जो बालों या आंखों का रंग निर्धारित करते हैं, वजन बढ़ाने में भी अहम भूमिका निभा सकते हैं. आजकल और्गेनिक फूड के नाम पर कुछ भी खा लेना एक खतरा बनता जा रहा है. और्गेनिक फूड नुकसान नहीं करेगा, यह सोच खाने की क्वांटिटी को भी प्रभावित कर डालती है.

दर्द-भाग 1 : जिंदगी के उतार चढ़ावों को झेलती कनीजा

कनीजा बी करीब 1 घंटे से परेशान थीं. उन का पोता नदीम बाहर कहीं खेलने चला गया था. उसे 15 मिनट की खेलने की मुहलत दी गई थी, लेकिन अब 1 घंटे से भी ऊपर वक्त गुजर गया?था. वह घर आने का नाम ही नहीं ले रहा था. कनीजा बी को आशंका थी कि वह महल्ले के आवारा बच्चों के साथ खेलने के लिए जरूर कहीं दूर चला गया होगा.

वह नदीम को जीजान से चाहतीं. उन्हें उस का आवारा बच्चों के साथ घर से जाना कतई नहीं सुहाता था. अत: वह चिंताग्रस्त हो कर भुनभुनाने लगी थीं, ‘‘कितना ही समझाओ, लेकिन ढीठ मानता ही नहीं. लाख बार कहा कि गली के आवारा बच्चों के साथ मत खेला कर, बिगड़ जाएगा, पर उस के कान पर जूं तक नहीं रेंगी. आने दो ढीठ को. इस बार वह मरम्मत करूंगी कि तौबा पुकार उठेगा. 7 साल का होने को आया है, पर जरा अक्ल नहीं आई. कोई दुर्घटना हो सकती है, कोई धोखा हो सकता है…’’

कनीजा बी का भुनभुनाना खत्म हुआ ही था कि नदीम दौड़ता हुआ घर में आ गया और कनीजा की खुशामद करता हुआ बोला, ‘‘दादीजान, कुलफी वाला आया है. कुलफी ले दीजिए न. हम ने बहुत दिनों से कुलफी नहीं खाई. आज हम कुलफी खाएंगे.’’ ‘‘इधर आ, तुझे अच्छी तरह कुलफी खिलाती हूं,’’ कहते हुए कनीजा बी नदीम पर अपना गुस्सा उतारने लगीं. उन्होंने उस के गाल पर जोर से 3-4 तमाचे जड़ दिए.

नदीम सुबकसुबक कर रोने लगा. वह रोतेरोते कहता जाता, ‘‘पड़ोस वाली चचीजान सच कहती हैं. आप मेरी सगी दादीजान नहीं हैं, तभी तो मुझे इस बेदर्दी से मारती हैं. ‘‘आप मेरी सगी दादीजान होतीं तो मुझ पर ऐसे हाथ न उठातीं. तब्बो की दादीजान उसे कितना प्यार करती हैं. वह उस की सगी दादीजान हैं न. वह उसे उंगली भी नहीं छुआतीं.

‘‘अब मैं इस घर में नहीं रहूंगा. मैं भी अपने अम्मीअब्बू के पास चला जाऊंगा. दूर…बहुत दूर…फिर मारना किसे मारेंगी. ऊं…ऊं…ऊं…’’ वह और जोरजोर से सुबकसुबक कर रोने लगा. नदीम की हृदयस्पर्शी बातों से कनीजा बी को लगा, जैसे किसी ने उन के दिल पर नश्तर चला दिया हो. अनायास ही उन की आंखें छलक आईं. वह कुछ क्षणों के लिए कहीं खो गईं. उन की आंखों के सामने उन का अतीत एक चलचित्र की तरह आने लगा.

जब वह 3 साल की मासूम बच्ची थीं, तभी उन के सिर से बाप का साया उठ गया था. सभी रिश्तेदारों ने किनारा कर लिया था. किसी ने भी उन्हें अंग नहीं लगाया था. मां अनपढ़ थीं और कमाई का कोई साधन नहीं था, लेकिन मां ने कमर कस ली थी. वह मेहनतमजदूरी कर के अपना और अपनी बेटी का पेट पालने लगी थीं. अत: कनीजा बी के बचपन से ले कर जवानी तक के दिन तंगदस्ती में ही गुजरे थे.

 

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