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अनुष्का-विराट संग चलती दिखी वामिका, देखें खूबसूरत फोटो

क्रिकेटर विराट कोहली औऱ अनुष्का शर्मा आएं दिन चर्चा में बने रहते हैं. हाल ही में विराट और अनुष्का अपनी बेटी के साथ वृदावन घूमने गए थें, जहां कि तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हुई थीं. हाल ही में विराट कोहली के इंस्टाग्राम पर एक तस्वीर शेयर की गई है, जिसमें वह अनुष्का और विराट अपनी बेटी का हाथ पकड़कर चला रहे हैं.

यह तस्वीर समुंद्र के किनारे कि है, जहां अनुष्का विराट बेटी का हाथ थामे नजर आ रहे हैं, बता दें कि यह तस्वीर पीछे की तरफ से ली गई है. जिसमें किसी का चेहरा नजर नहीं आ रहा है. इस प्यारी सी तस्वीर का खूबसूरत सा नाजारा लोगों  को खूब पसंद आ रहा है.

 

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विराट कि  इस तस्वीर पर  फैंस खूब कमेंट कर रहे हैं. नजर ना लगे, रब्बा बक्शियां, तू इ्ही मेहरबािया जैसे कमेंट आ रहे हैं. विराट ने इंस्टा पर शेयर किए गए पोस्ट पर  पंजाबी में लिखा है कि भगवान इतना सबकुछ देने के लिए मैं आपका शुक्रियां करता हूं,  बताते चले कि विराट कोहली इससे पहले नीम करोली बाबा के पास भी पहुंचे थें दर्शन करने के लिए. जिसकी तस्वीर 3 दिन बाद वायरल हुई थी.

जीत नामुमकिन नहीं -भाग 1 : जो सोचा वो किया

मुंबई के एलटीटी रेलवे स्टेशन पर मैं अपनी बेटी के साथ प्लेटफार्म पर ट्रेन की प्रतीक्षा कर रही थी. अपनी आदत के मुताबिक आसपास बैठे यात्रियों का मुआयना भी करती जा रही थी. अचानक मेरी नजर एक व्यक्ति पर पड़ी. उस की उम्र तकरीबन 45 वर्ष लग रही थी. कपड़ों से किसी अच्छे घर का जान पड़ता था. सामान के नाम पर एक छोटा सा बैग था, जिसे उस ने सीने से चिपका रखा था. बालदाढ़ी बेतरतीब तरीके से बढ़े हुए थे. वह चारों तरफ ऐसे देख रहा था मानो कोई उस के पीछे लगा हुआ हो और वह छुप रहा हो. चेहरे पर पसीने के साथसाथ डर और घबराहट भी स्पष्ट दिख रहे थे. मुझे उस का चेहरा कुछ जानापहचाना सा लग रहा था, मगर ठीक से याद नहीं आ रहा था. उस ने एक छड़ी भी कुरसी से टिका कर रखी थी. मैं ने उस के पैर देखे, मगर पैर तो सहीसलामत हैं और छड़ी ले कर चलने की यह कोई उम्र भी नहीं थी उस की.

तभी ट्रेन के आने की अनाउंसमेंट होने लगी और चारों तरफ अफरातफरी मच गई. मेरा भी ध्यान उस व्यक्ति की तरफ से हट गया. अगले ही पल ट्रेन आ गई और मैं भी अपनी बेटी के साथ अपनी सीट पर जा बैठी.

स्लीपर क्लास डब्बा था, इसलिए मैं ने बैठते ही खिड़की खोल दी. वैसे भी शाम होने वाली थी. तभी मेरी नजर खिड़की के बाहर गई. वह व्यक्ति उस छड़ी के सहारे मुश्किल से चल पा रहा था. मुझ से रहा नहीं गया और मैं नीचे उतर गई.

“आप का सीट नंबर क्या है मुझे बताइए…. मैं आप की मदद कर देती हूं,” मैं ने उस के सामने आते हुए कहा.

“गोरखपुर जाना है मुझे… अपने घर जाना है मुझे,” यह दो वाक्य उस ने कई बार दोहराया और मैं सुनती रही…. बाकी कुछ और पूछना ही भूल गई, क्योंकि यह आवाज तो सुंदर की थी.

‘हां… हां, यह तो सुंदर है. मेरा अपना सुंदर, जिस के साथ मैं ने जिंदगी के खूबसूरत समय को जिया,’ मैं ने ध्यान से उस के चेहरे को देखा, जो अभी भी भावविहीन सा ट्रेन को ही देखे जा रहा था.

“सुंदर… तुम सुंदर ही हो ना?” इतना कहते हुए मेरी आवाज भर्रा गई और आंखें डबडबा आईं.

“हां, मैं सुंदर… घर जाना है मुझे,” उस ने फिर दोहराया.

ट्रेन खुलने वाली थी, इसीलिए मैं ने झट से उस का हाथ पकड़ा और पास खड़े एक व्यक्ति से मदद मांगी. क्योंकि उस के पैरों में शायद कोई तकलीफ थी. वह ट्रेन में अकेले तो बिलकुल भी नहीं चढ़ पाता. उस व्यक्ति की मदद से मैं ने सुंदर को ट्रेन में चढ़ा दिया. उस के पास जनरल क्लास की टिकट थी, जो उस के शर्ट की पौकेट से मैं ने खुद निकाली. टीटी से बात कर के और पेनाल्टी भर कर मैं ने उसे उसी स्लीपर क्लास डब्बे में सीट दिलवा दी. मेरे इस क्रियाकलाप पर बेटी बेहद खीझ रही थी, “क्या है मां? तुम जहां भी जाती हो, मरीज ही खोजने लगती हो.”

हालांकि वह मेरी आदत से वाकिफ थी. मैं सिर्फ पेशे से ही नर्स नहीं थी, मैं तो दिल से भी नर्स थी, और कभी भी कहीं भी किसी की भी सेवा करने से पीछे नहीं हटती थी.

उस की बात सुन कर मैं ने कोई जवाब नहीं दिया और मुसकराते हुए खाने का बैग टटोलने लगी. ट्रेन अब तक अपनी रफ्तार पकड़ चुकी थी. मैं ने थोड़ा खाने का सामान लिया और जा कर सुंदर को दिया. साथ ही, पानी की एक बोतल भी. वह खाना देखते ही जल्दीजल्दी खाने लगा.

“सुंदर, तुम्हारी ये हालत कैसे हो गई? और तुम्हारे पैरों को क्या हुआ है?” मैं ने दो बार अपना सवाल दोहराया, मगर सुंदर ने कोई जवाब नहीं दिया. जैसे कि वह मेरी बात ही नहीं सुन रहा हो.

मैं अपनी सीट पर जा कर बैठ गई. ट्रेन गंतव्य की ओर आगे बढ़ रही थी और मैं अपने अतीत की ओर पीछे जा रही थी.

25 साल पहले जब मैं और सुंदर गोरखपुर के एक कसबाई इलाके में पड़ोसी हुआ करते थे. बचपन से ले कर कालेज तक हम दोनों प्यार की राह पर ही चलते रहे, मगर जब बात शादी की आई तो सुंदर ने साफ इंकार करते हुए कहा, ” देखो नीता, इस प्यारमुहब्बत को बचपन का खेल समझो बस…. सारी जिंदगी हम यह खेल नहीं खेल सकते. हम दोनों ही गरीब परिवार से हैं. आपस में शादी कर के हम दोनों जिंदगीभर गरीब ही रहेंगे. मैं किसी अमीर परिवार की लड़की से शादी करना चाहता हूं और मेरी मानो तो तुम भी किसी पैसे वाले घर में शादी करने की कोशिश करो.”

सुंदर का प्यार के प्रति यह दृष्टिकोण देख कर मैं तो दंग रह गई थी. उस के बाद फिर मैं सुंदर से कभी नहीं मिली.

मातापिता ने मेरी शादी एक मामूली से शिक्षक हेमंत के साथ कर दी. हेमंत और उस का परिवार बहुत अच्छे इनसान थे. उन्होंने ही मुझे नर्स की ट्रेनिंग करवाई और शहर के मैडिकल कालेज में मुझे नर्स की नौकरी भी मिल गई.

मैं जब अपने अतीत से बाहर आई तो रात काफी हो चुकी थी. मैं फिर सुंदर के पास गई, देखा तो वह सो चुका था. उस ने अपना बैग अभी भी सीने से दबा रखा था. मैं ने धीरे से वह बैग लिया और अपनी सीट पर आ गई.

बैग में कुछ कागज थे. मैं ने लाइट जलाई और उन कागजों को पढ़ने लगी. नर्स होने के नाते मुझे समझने में देर नहीं लगी कि सुंदर मधुमेह की गंभीर अवस्था से जूझ रहा था. उस के पैरों में गैंग्रीन हो चुका था और वह डिमेंशिया नामक एक मानसिक बीमारी का शिकार भी हो चुका था. उस के यह सारे रिपोर्ट मुंबई के एक सरकारी अस्पताल के थे. मेरी समझ में आ गया कि हो ना हो, सुंदर अपने सारे रिपोर्ट ले कर गोरखपुर जा रहा था और मतिभ्रम के कारण उसे ज्यादा कुछ याद नहीं है. अब उस के अतीत के बारे में तो मैं कुछ भी नहीं जानती थी. बैग में भी उस के परिवार के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. मुंबई का एक पता लिखा हुआ था. मोबाइल नंबर भी था. मैं ने सोचा कि अभी तो बहुत रात हो चुकी है, कल सुबह इस नंबर पर फोन करूंगी.

सुबह उठ कर मैं ने सुंदर को चायनाश्ता कराया. मुझे कोई आश्चर्य नहीं हुआ कि वह मुझे अभी भी नहीं पहचान रहा था, क्योंकि अब मैं उस की बीमारी समझ चुकी थी. मधुमेह के कारण ही सुंदर डिमेंशिया का शिकार हुआ था. मैं ने उक्त नंबर पर फोन भी किया, मगर मोबाइल बंद था. अभी गोरखपुर आने में काफी समय था, लेकिन मैं सुंदर को ले कर परेशान हो रही थी.

आखिर कहां जाएगा वह? गोरखपुर के उस के घर में कोई होगा भी या नहीं?
काफी सोचविचार के बाद मैं ने फैसला किया कि सुंदर जब तक पूरी तरह ठीक नहीं हो जाता, तब तक मैं उसे अपने घर में ही रखूंगी. मैं ने हेमंत से भी इस विषय पर बात कर लिया.

उन्होंने हमेशा मेरे फैसले का मान रखा है तो फिर इस बार कैसे मना कर सकते थे.

लेकिन हां, मैं ने अपने और सुंदर के रिश्ते के बारे में हेमंत से कुछ नहीं कहा. बस इतना बताया कि वह मेरे मायके में मेरा पड़ोसी हुआ करता था.

घर आ कर मैं ने सुंदर को अस्पताल में दिखलाया, उस के पैरों की जांच करवाई और भी कई जांच करवाने के बाद मुझे पता चला कि सुंदर गलत खानपान, अव्यवस्थित जीवनशैली और मानसिक अवसाद के कारण डायबिटीज टाइप 2 बीमारी का शिकार हो चुका है.

इलाज के अभाव में उस का पूरा शरीर इस बीमारी से प्रभावित हो चुका था. गनीमत यह थी कि उस के गुर्दों पर ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ा था, वरना उस का मस्तिष्क, उस की आंखें और उस के पैर का तो बुरा हाल था.

 

ऋतिक रौशन के घर बजेगी शहनाई, साल के आखिर में करेंगे दूसरी शादी!

ऋतिक रौशन आज अपना 49वां जन्मदिन मना रहे हैं, इस खास दिन पर ऋतिक के फैंस भी उन्हें बधाइयां देते हुए नजर आ रहे हैं. ऋतिक रौशन ऐसे एक्टर हैं जो अपनी फिल्मों के साथ-साथ अपनी पर्सनल लाइफ को लेकर भी चर्चा में बने रहते हैं.

ऋतिक रौशन का नाम इन दिनों सबा आजाद के साथ जोड़ा जा रहा है, ऋतिक का नाम इन दिनों सबा के साथ जोड़ा जा रहा है. पिछले कुछ दिनों से इन दोनों के कई जगह एक साथ स्पॉट किया गया है. जिससे यह साफ पता चल रहा है कि यह दोनों एक दूसरे को डेट कर रहे हैं.

 

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पिछले दिनों एक तस्वीर सामने आई थी, जिसमें सबा ऋतिक के परिवार के साथ में नजर आईं थी. अब इन दोनों को लेकर एक बड़ी खबर सामने आ रही है कि जल्द दोनों शादी करने वाले हैं. हालांकि अभी तक सबा और ऋतिक ने इस पर खुलकर बात नहीं कि है.

इसके साथ ही यह भी खुलासा हुआ है कि इन दोनों की शादी ज्यादा ग्रैंड नहीं होने वाली है, इसमें परिवार के कुछ सदस्य ही मौजूद रहेंगे.  ऋतिक और सबा जल्द इसको लेकर बात करने वाले हैं.खैर ऋतिक के फैंस को भीइनकी दूसरी शादी का इंतजार है.

अगर वर्कफ्रंट कि बात करें तो ऋतिक रौशन ने कुछ बताया नहीं है.

मनचला-भाग 2 : किस वजह से हुआ कपिल का मन बेकाबू

कपिल ने अपने पास का दरवाजा खोलते हुए कहा, ‘‘पीछे नहीं, यहां बैठो. लोग मुझे कहीं तुम्हारा ड्राइवर न समझ बैठें.’’ लड़की फिर हंस पड़ी और अगली सीट पर जल्दी से बैठ गई.

हरीबत्ती हो चुकी थी और पीछे वाले बेचैनी से हौर्न पर हौर्न बजा रहे थे. कपिल ने जल्दी से कार आगे बढ़ा दी. कपिल के दिमाग में बहुत सारी बातें एकसाथ चल रही थीं. कुछ दिनों पहले ही समाचारपत्रों में यौन अपराध संबंधी कई समाचार आए थे. साउथ दिल्ली और रोहिणी में कई लड़कियां धंधा करते रंगेहाथों पकड़ी गई थीं. इन में से अधिकतर लड़कियां शिक्षित व अच्छे घरों की थीं. यही नहीं, एक तो 2-3 वर्ष पहले मिस इंडिया भी रह चुकी थी. कालेज की लड़कियों को फैशन या मादक द्रव्यों की आदत के कारण ऊपरी आमदनी के अतिरिक्त कमाई का आसान रास्ता और क्या हो सकता है?

जब से फिल्म ‘आस्था’ परदे पर आई है, तब से पता चला कि शादीशुदा औरतें भी मौका पा कर, अपना जीवन स्तर ऊंचा करने के लिए, देहव्यापार करने लगी हैं.

कपिल ने सोचा, तो क्या यह लड़की भी उन में से एक है? क्या यह उपलब्ध है? क्यों न जानने की कोशिश की जाए? शारीरिक रिश्तों में विविधता का अपना अलग ही आकर्षण होता है. टोह लेने के लिए कपिल ने पूछा, ‘‘तुम्हारा नाम क्या है?’’

‘‘मारिया,’’ लड़की ने कहा. ‘‘अच्छा नाम है,’’ कपिल मुसकराया, ‘‘पढ़ती हो?’’

‘‘पढ़ती थी, पर अब कालेज छोड़ दिया,’’ मारिया ने नीचे देखते हुए कहा. ‘‘क्यों?’’ कपिल ने पूछा

‘‘पिता टीबी के मरीज हैं, नौकरी नहीं करते,’’ मारिया ने कहा, ‘‘और मां को दमा है. छोटा भाई स्कूल में पढ़ता है. सारे घर की जिम्मेदारी मुझ पर आ पड़ी है.’’ ‘‘बड़े दुख की बात है,’’ कपिल ने देखा, मारिया बहुत उदास दिखाई दे रही है.

अचानक मारिया मुसकरा दी, ‘‘सर, दुनिया है, सब चलता है… दुखी होने से क्या होगा?’’ ‘‘सो तो ठीक है,’’ कपिल ने पूछा, ‘‘पर फिर करती क्या हो?’’

‘‘बस, ऐसे ही,’’ मारिया ने खिड़की से बाहर देखते हुए कहा, ‘‘गुजारा कर लेती हूं…कुछ न कुछ काम मिल ही जाता है.’’ ‘‘कैसा काम?’’ कपिल ने कुरेदा.

‘‘सर,’’ मारिया ने एक क्षण रुक कर कपिल को देखा और धीरे से कहा, ‘‘क्या आप 500 रुपए उधार देंगे?’’ कपिल का अनुमान सही था कि वह लड़की उपलब्ध है. उस के जीवन में यह पहला अनुभव है. शरीर में फुरफुरी दौड़ गई. जो केवल पढ़ा और सुना था, वास्तविक बन कर सामने आ गया था.

‘‘यह क्या तुम्हारी फीस है?’’ कपिल ने पूछा. ‘‘नहीं, हजार, 2 हजार रुपए भी मिल जाते हैं, पर आज बहुत जरूरत है. 500 रुपए से काम चला लूंगी…राशन नहीं लूंगी तो खाना नहीं बनेगा.’’

कपिल ने मारिया के शरीर पर नजर दौड़ाई. जो कुछ देखा, बहुत अच्छा लगा, फिर पूछा, ‘‘कोई ठिकाना है क्या?’’ ‘‘है तो,’’ मारिया ने कहा, ‘‘साउथ दिल्ली में एक गैस्टहाउस है, पर किराए के अतिरिक्त वहां के प्रबंधकों को भी कुछ अलग से देना पड़ता है.’’

कपिल ने मन ही मन अनुमान लगाया कि ऐसे सौदे में क्रैडिट कार्ड से काम नहीं चलेगा. इस समय जेब में लगभग 1,200 रुपए हैं, क्या इतना काफी होगा? इस से पहले कि कपिल आगे पूछता, उस के मोबाइल फोन की ‘पिप…पिप… पिप…’ ने चौंका दिया.

‘‘हैलो,’’ उस ने कहा. ‘‘हाय पप्पा,’’ बेटी मृदुला के स्वर में उत्साह था.

‘‘हाय, मेरी प्यारी गुडि़या,’’ कपिल ने मुसकरा कर पूछा, ‘‘कैसे याद आ गई? अभीअभी तो घर से निकला हूं. रुपए चाहिए तो मां से ले लो.’’ ‘‘अरे, नहीं पप्पा,’’ मृदुला ने कहा, ‘‘आप को याद दिला रही थी, मम्मा का जन्मदिन आ रहा है, एक सुंदर सा कार्ड और एक बहुत बढि़या उपहार खरीदने चलना है. आज चलेंगे न?’’

कपिल ने मारिया की ओर देखा. वह चुपचाप बैठी थी. बेटी मृदुला भी इतनी ही बड़ी होगी. अचानक एक अपराधबोध की भावना ने जन्म लिया, क्या जो वह करने जा रहा है, उचित है?

‘‘पापा,’’ मृदुला ने बेसब्री से पूछा, ‘‘सुन रहे हैं?’’ ‘‘सुन रहा हूं, गुडि़या रानी,’’ कपिल ने उत्तर दिया, ‘‘पर आज नहीं, कल चलेंगे.’’

‘‘ठीक है.’’ कपिल ने फोन बंद कर दिया. कुछ देर तक कार चलती रही. दोनों चुप थे.

‘‘सर,’’ सहसा मारिया ने चुप्पी तोड़ी, ‘‘आप ने क्या सोचा?’’ ‘‘तुम्हारे गैस्टहाउस वाले मैनेजर को कितना रुपया देना होगा?’’ कपिल ने पूछा. मारिया से संबंध बनाने की

इच्छा ने फिर जोर मारा. सोचा, क्या उचित है और क्या अनुचित, बाद में देखा जाएगा. मारिया ने कहा, ‘‘कुछ ज्यादा रुपया नहीं लगेगा.’’

‘‘फिर भी,’’ कपिल ने कहा, ‘‘वहां पहुंच कर मूर्ख नहीं बनना है, वैसे जगह सुरक्षित तो है न?’’ यह प्रश्न वह रोज सुनती थी और उत्तर उस ने तोते की तरह रट रखा था. इस से पहले कि वह उत्तर देती, कपिल का मोबाइल फोन फिर से रिंग हुआ.

‘‘हैलो,’’ कपिल ने आहिस्ता से कहा. ‘‘हाय,’’ पत्नी नूमा का परिचित स्वर सुनाई दिया.

‘‘हाय,’’ कपिल ने पूछा, ‘‘क्या कोई आदेश देना बाकी रह गया?’’ ‘‘एक अच्छी खबर है,’’ नूमा ने पुलकित स्वर में कहा, ‘‘सोचा, तुम्हें दफ्तर पहुंचने से पहले ही सुना दूं.’’

‘‘तुम से अच्छी खबर की उम्मीद तो नहीं है,’’ कपिल ने मंद मुसकान से कहा, ‘‘मुझे बहुत डर लगता है.’’ ‘‘हिश्श…’’ नूमा ने कहा, ‘‘बेशर्म कहीं के. बल्लू का फोन अभीअभी आया था.’’

‘‘बल्लू का?’’ कपिल के स्वर में हर्ष और आश्चर्य का मिश्रण था, ‘‘क्या कहा, उस ने?’’ ‘बल्लू’ यानी बलराम, उन का पुत्र सेना में कप्तान था और जोधपुर के पास सीमा पर तैनात था.

‘‘बोला…’’ नूमा ने गद्गद कंठ से कहा, ‘‘इस बार मेरे जन्मदिन पर अवश्य आएगा. एक सप्ताह की छुट्टी मिल गई है.’’ ‘‘वाह,’’ कपिल ने खुश हो कर कहा, ‘‘ठीक है, खूब जश्न मनाएंगे.’’

‘‘सुनो,’’ नूमा ने कहा. ‘‘हां, सुन रहा हूं, पर जल्दी कहो, ट्रैफिक बहुत है,’’ कपिल ने कहा.

‘‘तो ठीक है, जब घर आओगे, तभी कहूंगी.’’ ‘‘अब कह भी दो,’’ कपिल ने कहा.

‘‘बल्लू के लिए जो लड़कियां हम ने चुनी हैं, उन के अभिभावकों से हम मिलने का समय ले लेते हैं.’’ ‘‘ठीक है,’’ कपिल ने कहा, ‘‘तुम जो ठीक समझो, वही करो. अब फोन बंद करता हूं.’’

कपिल ने फोन बंद कर दिया और सोचा, इतना सुनहरा अवसर मिला है और सब बाधाएं खड़ी कर रहे हैं. खैर, दफ्तर भी फोन करना है कि आने में देर होगी. इतना दुर्लभ अवसर चूकना नहीं चाहिए?

‘‘तो फिर किधर चलना है?’’ कपिल ने कहा, ‘‘मुझे खेद है. यह फोन बहुत तंग कर रहा है.’’ मारिया ने मादक मुसकान से कहा, ‘‘तो फिर फोन बंद कर दीजिए या बैटरी निकाल लीजिए.’’

‘‘बहुत समझदार और चतुर हो,’’ कपिल ने हंसते हुए कहा, ‘‘बस, एक फोन दफ्तर में करना है, ताकि बाकी समय चैन से गुजरे.’’ इस से पहले कि कपिल दफ्तर का नंबर लगाता, फोन बज उठा.

‘‘अब कौन है?’’ कपिल ने नाराजगी दिखाते हुए कहा, ‘‘हैलो.’’ ‘‘सर,’’ उधर से आवाज आई, ‘‘मैं मनोहर बोल रहा हूं.’’

मनोहर महाप्रबंधक का निजी सचिव था. उस के स्वर में घबराहट थी. ‘‘हां, बोलो मनोहर, क्या बात है?’’ कपिल ने कहा, ‘‘जल्दी बोलो, मुझे

एक जरूरी काम है, आने में देर हो सकती है.’’ ‘‘सर, आप तुरंत यहां आ जाइए,’’ मनोहर ने जरा ऊंचे स्वर में कहा, ‘‘मजदूरों ने साहब का घेराव कर रखा है और नारे लगा रहे हैं.’’

‘‘ओह,’’ कपिल ने क्रोध से कहा, ‘‘क्या सबकुछ आज ही होना है? ठीक है, मैं आ रहा हूं. तुम पुलिस को सूचना दे दो. शायद जरूरत पड़ जाए.’’ ‘‘जी, सर,’’ मनोहर ने कहा, ‘‘पर आप जल्दी से जल्दी आइए.’’

कपिल ने खेदपूर्वक एक बार फिर मारिया को देखा और सोचा, क्या गजब की लड़की है, क्या फिर मुलाकात होगी? ‘‘मुझे खेद है,’’ कपिल ने सिर हिलाते हुए कहा, ‘‘आज का मुहूर्त शायद ठीक नहीं है. तुम्हें कहां छोड़ दूं?’’

मारिया के चेहरे से कुछ पढ़ पाना कठिन था, न तो मायूसी का भाव था और न ही खेद का. उस ने हौले से कहा, ‘‘यहीं उतार दीजिए.’’

 

Winter 2023 : छोटी सी लौंग, बड़े काम की !

सर्दी हो या गर्मी हर मौसम में लौंग का सेवन फायदेमंद होता है. कड़ाके की सर्दियों में अदरक , दालचीन और लौंग की चाय सभी को पसंद आती है. एक लौंग कई दर्द को भगाने का काम करता है. एक अच्छे एंटी औक्सीडेंट का काम करती है लौंग. यह एक बेहद स्वादिष्ट एवं सुगंधित मसाले के रूप में देखा जाता है परन्तु वास्तव में यह दवा भी साबित होती है. इसमें कैल्शियम, आयरन, फास्फोरस, सोडियम, पोटैशियम, विटामिन ए और सी पाया जाता है. एंटीसेप्टिक गुणों के कारण लौंग चोट, घाव, खुजली और संक्रमण में काफी उपयोगी होती है. इसका उपयोग कीटों के काटने या डंक मारने पर किया भी जाता है. इसे किसी पत्थर आदि पर पानी के साथ घिस कर लगाया जाता है. नाजुक त्वचा पर इसे नहीं लगाना चाहिए.

भारत के दक्षिण भाग में बहुतायत मात्रा में उगाई जाने वाली लौंग का वृक्ष यूं तो बहुत ही हरे रंग का होता है लेकिन इसके बावजूद एक खासियत जो दिखलाई देती है वह यह है कि जहां पतझड़ के मौसम में सभी वृक्ष अपने समस्त पत्तों का परित्याग कर देते हैं वहीं लौंग का वृक्ष इस मौसम में भी पूरी हरियाली धारण किये रहता है. इतना ही नहीं, इसमें से बहुत ही अच्छी मनमोहक सुगंध भी आती रहती है जो अधिकांश आते-जाते लोगों का अनायास ही मनमोह लेती है. और तो और, जब लौंग के वृक्ष की कलियां लाल हो उठती हैं, तब इन्हें तोड़कर सूर्य की किरणों में कुछ दिनों तक रख दिया जाता है और जब कलियां सूखने के उपरांत काली पड़ जाती हैं तो इसे लौंग के नाम से पुकारने लगते हैं जिसका हम प्राय: घरों में इस्तेमाल कभी मसाले के रूप में तो कभी औषधि के रूप में करते हैं. आयुर्वेद में लौंग को एक महत्वपूर्ण औषधी के रूप में बताया गया है.  तो आईये जानते है लौंग को एक महत्वपूर्ण औषधीय गुणों के बारे में –

* मसूड़ों को मजबूत बनाता है लौंग-  अगर आप भी मसूड़ों को लेकर परेशान हैं तो लौंग द्वारा निर्मित दंत मंजन का उपयोग करके समाधान ढूंढ़ सकते हैं क्योंकि ऐसा करने पर जहां व्यक्ति के दांत बहुत ज्यादा चमकने लगते हैं वहीं दूसरी ओर यह मसूड़ों को विशेष शक्ति प्रदान करने में भी अपनी एक खास भूमिका दर्ज कराता है. इस प्रकार, लौंग का मंजन एक पंथ दो काज की कहावत को चरितार्थ करता हुआ लोगों के लिए बहुत अधिक फायदेमंद साबित हो रहा है.

* अस्थमा में लौंग का सेवन काफी लाभदायक होता है – इस समय 4 -5 लौंग लें और 125 मिली पानी में 5 मिनट तक उबालें. इस मिश्रण को छानकर इसमें एक चम्मच शुध्द शहद मिलाएं और गरम-गरम पी लें. रोज दो से तीन बार यह काढ़ा पीने से लाभ होगा.

* प्राय: लौंग से बने लवंगादि चूर्ण को नियमित खाने से व्यक्ति का सिर दर्द पल भर में ही छूमंतर हो जाता है और पुरानी खांसी से भी निजात मिल जाती है.

*  वैसे तो छोटी सी लौंग रोचक द्रव्यों से उत्पन्न होने वाले शूल में भी काफी मदद करती है किन्तु, इसके अलावा आप आंखों की ज्योति बढ़ाने, दमा, हिचकी, तपेदिक, दांत दर्द तथा कमर दर्द इत्यादि रोगों के समाधान हेतु भी लौंग का बखूबी इस्तेमाल कर सकते हैं. इस तरह आप देखेंगे कि एक छोटी सी लौंग के वाकई कई फायदे हैं जो भगवान रूपी देन अनमोल शरीर के कई रोगों का नाश कर हमें स्वस्थ बना देती है. डाक्टरों की भी यही नेक सलाह है कि हमारे द्वारा रोजाना एक लौंग का उपयोग अवश्य किया जाना चाहिए. निस्संदेह इससे भविष्य में काफी लाभ मिलेगा.

*  चिकित्सकों की राय में हमारे घरों में मौजूद लौंग से शरीर में तेजी से दौड़ने वाले रक्त को भी शुद्ध किया जा सकता है जबकि यह मस्तिष्क को मजबूत करने में भी काफी सक्षम होता है.

*  यदि किसी व्यक्ति को दिनभर में अधिक प्यास लगती है या फिर हर वक्त उल्टी आने की शिकायत रहती है तो ऐसी स्थिति में लौंग का उबला हुआ पानी पिलाएं. यकीनन, लाभप्रद होगा.

*  यूं तो व्यक्ति के चेहरे पर फोड़े-फुंसी सदैव दस्तक देते ही रहते हैं लेकिन यदि आप लौंग को सिल पर घिसकर अपनी त्वचा पर लगाएंगे तो बेशक  फोड़े-फुंसी से निजात पाएंगे और चेहरा बिना दाग-धब्बों के सुंदर दिखाई देने लगेगा.

विक्की : आखिर कैसे सबका चहेता बन गया अक्खड़ विक्की

नई कामवाली निर्मला का कामकाज, रहनसहन, बोलचाल आदि सभी घरभर को ठीक लगा था. उस में उन्हें दोष बस यही लगा था कि वह अपने साथ अपने बेटे विक्की को भी लाती थी. निर्मला का 3-4 वर्षीय बेटा बहुत शैतान था. नन्ही सी जान होते हुए भी वह घरभर की नाक में दम कर देता था. गजब का चंचल था, एक मिनट भी चैन से नहीं रहता था. और कुछ नहीं तो मुंह ही चलाता रहता था. कुछ न कुछ बड़बड़ाता ही रहता था. टीवी या रेडियो पर जो संवाद या गाना आता था, उस को विक्की दोहराने लगता था. घर में कोई भी कुछ बोलता तो वह उस बात का कुछ भी जवाब दे देता. घर के जिस किसी भी प्राणी पर उस की नजर पड़ती, वह उस से बोले बिना नहीं रहता था. दादाजी को वह भी दादाजी, मां को मां, पिताजी को पिताजी एवं छोटे बच्चों को उन के नाम से या ‘दीदी’, ‘भैया’ आदि कह कर पुकारता रहता था. घर के पालतू कुत्ते सीजर को भी वह नाम ले कर बुलाता था.

जब आसपास कोई न होता तो विक्की अपने बस्ते में से किताब निकाल कर जोरजोर से पाठ पढ़ने लगता. फिर पढ़ने में मन न लगने पर अपनी मां से बतियाने लगता. मां जब डांट कर चुप करातीं तो कहने लगता, ‘‘मां विक्की को डांटती हैं… मां विक्की को डांटती हैं. मां की शिकायत पिताजी से करूंगा. मां बहुत खराब हैं.’’ इस बड़बड़ाहट से झुंझला कर उस की मां जब उसे जोर से डांटतीं तो विक्की कुछ देर के लिए चुप हो जाता. मगर थोड़ी देर बाद उस का मुंह फिर चलने लगता था. कभी वह मुंडेर पर आ बैठी चिडि़या को बुलाने लगता तो कभी पौधों से बातें करने लगता था. कहने का मतलब यह कि उस का मुंह सतत चलता ही रहता था. सिर्फ मुंह ही नहीं, विक्की के हाथपांव भी चलते थे. वह काम कर रही अपनी मां की आंख बचा कर घर में घुस जाता था. दादाजी के कमरे में घुस कर उन से पूछने लगता, ‘‘दादाजी, सो रहे हो? दिनभर सोते हो?’’

पिताजी को दाढ़ी बनाते देखते ही प्रश्न करता, ‘‘दाढ़ी बना रहे हो, पिताजी?’’ मां को जूड़ा बांधते देख उस का प्रश्न होता, ‘‘इतना बड़ा जूड़ा? मेरी मां का तो जरा सा जूड़ा है.’’ गुड्डी और मुन्ने को पढ़ते या खेलते देख वह उन के पास पहुंच कर कभी बोल पड़ता या ताली पीटने लगता. सीजर के कारण ही वह थोड़ा सहमासहमा रहता था, नहीं तो सारे घर में धमाल करता रहता. फिर भी कुत्ते को चकमा दे कर वह घर में घुस ही जाता था. सीजर यदि उस पर लपकता तो वह चीखता हुआ अपनी मां के पास भाग जाता. वहां पहुंच कर वह जाली वाले द्वार के पीछे से सीजर से बतियाता था. कहने का मतलब यह कि वह न तो एक स्थान पर बैठ पाता था, न उस का मुंह ही बंद होता था. उस का स्वर घर में गूंजता ही रहता था.

विक्की की इन शरारतों से तंग हो कर सभी ने उस की मां को आदेश दिया, ‘‘तुम इस बच्चे को यहां मत लाया करो.’’ निर्मला ने अपनी विवशता जाहिर करते हुए स्पष्ट शब्दों में हर किसी को कहा, ‘‘घर पर कोई संभालने वाला होता तो न लाती, मजबूरी में लाती हूं.’’ वैसे निर्मला ने पहले दिन ही बता दिया था, ‘‘मेरा घरवाला दिन निकलते ही काम पर जाता है. उस के अलावा घर में और कोई है नहीं, इसीलिए विक्की को साथ लाना पड़ता है. घर में किस के सहारे छोड़ूं. रिश्तेदार यदि पासपड़ोस में होते तो उन के यहां छोड़ आती. अगर एक दिन का मामला होता तो पड़ोसियों की मदद ले लेती, पर यह तो रोज का ही झमेला है, इसीलिए विक्की को साथ लाना पड़ता है. 3-4 साल की इस जरा सी जान को किसी के भरोसे छोड़ने का मन भी नहीं होता क्योंकि यह बड़ा शैतान है. एक पल चैन से नहीं बैठता. ‘‘एक रोज गलियों से निकल कर सड़क पर जा पहुंचा था. वहां ट्रक के नीचे आतेआते बचा. एक बार कुएं में झांकने पहुंच गया था. इस के कारण सब को परेशानी होती है. पर करूं क्या? यह मुआ मार से भी नहीं सुधरा. इस के पिता तो डांटतेफटकारते ही रहते हैं.’’

निर्मला की इस विवशता से भलीभांति परिचित होते हुए भी घरभर के सदस्य उस से कहते ही रहते, ‘‘तू कुछ भी कर के इस शैतान से हमें बचा.’’ बारबार के इन तकाजों से परेशान हो कर निर्मला उन लोगों से ही पूछ बैठती थी, ‘‘आप ही बताइए, मैं क्या करूं?’’

तब लेदे कर एक ही मार्ग सभी को सूझता था. वे यही सलाह देते थे, ‘‘तू पीछे वाले आंगन में ही इसे बंद रखा कर. घर में न घुसने दिया कर.’’ निर्मला को पता था कि यह सलाह निरर्थक है, क्योंकि बरतन, कपड़े, सफाई आदि काम करने में उसे लगभग दोढाई घंटे लग जाते थे. इतनी देर तक विक्की को वहां कैद रखना संभव नहीं था. कैद रखने पर भी उस का मुंह तो चलता ही रहता था. वह जाली वाले द्वार के पीछे खड़ाखड़ा शोर मचाता ही रहता और दरवाजा भड़भड़ाता रहता. घर के किसी भी प्राणी पर नजर पड़ते ही विक्की उसे पुकारने लगता. टैलीफोन की घंटी बजते ही ‘हैलोहैलो’ कहने लगता. दादाजी को जाप करते देख वह भी उन के सुर में सुर मिलाने लगता. सीजर को देखते ही उसे छेड़ कर भूंकने या गुर्राने पर विवश कर देता. तब दोनों में खासा दंगल सा छिड़ जाता. जाली के पीछे बड़े मजे से खड़ा विक्की क्रोध से उबलते सीजर का खूब मजा लेता रहता. उस के कहकहे फूटते रहते. तब उस की मां की गुहार मचती. वे काम छोड़ कर विक्की को डांट कर दरवाजे से दूर भगातीं. थोड़ी देर शांति हो जाती. किंतु कुछ देर बाद ही विक्की का ‘वन मैन शो’ फिर शुरू हो जाता.

रोज की इस परेशानी से क्षुब्ध हो कर सभी ने बारबार विचार किया कि निर्मला को काम से छुट्टी दे दें और कोई दूसरी कामवाली रख लें. किंतु उस की साफस्वच्छ छवि, उस के कामकाज का सलीका, विनम्र स्वभाव, वक्त की पाबंदी, कम से कम नागे करने की प्रवृत्ति जैसे गुणों के कारण वे ऐसा साहस न कर पाए. वैसे भी कामवालियों का उन का अभी तक का अनुभव अच्छा नहीं रहा था. किसी ने बरतनों में चिकनाई छोड़ी थी तो किसी ने घर को ढंग से बुहारा नहीं था. किसी ने कपड़ों का मैल नहीं छुड़ाया था तो किसी ने आएदिन नागे करकर के उन्हें परेशान किया था. कोई बारबार पेशगी मांगती रही थी तो कोई पेशगी में ली गई रकम ले कर भाग गई थी. ऐसे कई कटु अनुभव हुए थे उन लोगों को. लेकिन निर्मला के काम से सभी प्रसन्न थे. वह हाथ की भी सच्ची थी. कई बार उस ने नोट व गहने स्नानघर एवं शयनकक्ष से उठाउठा कर दिए थे. लेकिन विक्की के कारण सभी परेशान रहते थे. किंतु एक रोज अनपेक्षित हो गया. हुआ यों कि विक्की टैलीफोन कर रहे पिताजी के पास जा पहुंचा एवं अपनी बाल सुलभ हंसी के साथ बीचबीच में ‘हैलोहैलो’ कहने लगा.

पिताजी ने टैलीफोन पर बात जारी रखते हुए उसे संकेतों से दूर भगाने का प्रयास किया, मगर वह वहां से टला नहीं. मुसकराते हुए ‘हैलोहैलो’ कहता रहा. पिताजी ने सहायता के लिए चारों तरफ नजर दौड़ाई मगर कोई दिखा नहीं. इसी उधेड़बुन में वे चोंगे को आधा दबा कर ही विक्की पर चीखे. यह चीख टैलीफोन में चली गई. उस ओर उन के साहब थे. उन्होंने टैलीफोन बंद कर दिया. पिताजी ने फिर से फोन मिला कर साहब को सारा मामला समझाते हुए क्षमायाचना की. किंतु उन को लगा कि साहब के मन में गांठ पड़ गई है. इसी झुंझलाहट में पिताजी ने विक्की को एक चांटा मारा. उस की मां को उसी क्षण घर से जाने का आदेश दे दिया.

विक्की को पीटती हुई निर्मला बाहर हो गई. निर्मला ने आना बंद कर दिया. घरभर को नई परेशानियों ने आ घेरा. उस के स्थान पर आई नई कामवालियों से सभी को असंतोष रहने लगा. कोई बरतन में चिपकी चिकनाई की शिकायत करने लगा, किसी को गर्द व जालों की मौजूदगी खलने लगी तो किसी को उस की गंदी आदतें बुरी लगने लगीं. सब से बड़ी समस्या तो सीजर को ले कर हुई. वह नई कामवालियों से अपरिचित होने के कारण उन पर लपकता था. इसलिए उसे बांध कर रखना पड़ता था. 3 कामवालियां 3 कामों के लिए अलगअलग समय पर आती थीं. इसलिए उन के आते ही एक व्यक्ति को सीजर को बांधने की तत्परता दिखानी पड़ती थी. उधर सीजर को यह नई कैद खलने लगी थी, वह मुक्ति के लिए शोर मचाता था. सुबहशाम घरभर की शांति भंग होने लगी. काम भी संतोषप्रद नहीं था और मगजपच्ची भी करनी पड़ती थी.

इसीलिए निर्मला सभी को याद आने लगी. बातबात पर उस का उल्लेख होने लगा. जब देखो तब उस के काम, व्यवहार और आदतों आदि की तुलना नई कामवालियों से होने लगी. ऐसे क्षणों में पिताजी को पश्चात्ताप होता कि उन्होंने तैश में व्यर्थ ही निर्मला को भगा दिया. बच्चे तो चंचल होते ही हैं. उन्हें विक्की की चंचलता पर इस तरह क्रोधित नहीं होना चाहिए था. इसी पश्चात्ताप से क्षुब्ध हो कर पिताजी ने बारबार कहा, ‘‘निर्मला को बुलवा लो.’’ किंतु उन की इस आज्ञा का पालन कोई भी नहीं कर पाया. वैसे सभी मन से यह चाहते थे कि निर्मला फिर से यहां पर काम करने लग जाए. किंतु उसे बुलाना किसी को भी उचित नहीं लग रहा था. सभी की यह दलील थी कि इस तरह बुलाने से वह सिर पर चढ़ेगी. विक्की इस घर में खुल कर शैतानी करेगा. किंतु ऐसी दलीलें होते हुए भी सभी की यह कामना थी कि निर्मला किसी तरह लौट आए.

संयोग कुछ ऐसा हुआ कि 20-21 दिन बाद ही एक रोज दिन ढले छरहरी, सांवली, मंझोले कद की निर्मला द्वार पर आ खड़ी हुई. स्वच्छ धानी साड़ी वाली इस नारी ने आते ही मुख्यद्वार खोला, सीजर भूंकता हुआ उस की ओर लपका. उस समय केवल मां ही घर में थीं. उन्होंने दरवाजे की ओर नजर दौड़ाई. निर्मला के सामने सीजर पूंछ हिला रहा था. यह दृश्य देख कर मां को सुखद आश्चर्य हुआ. उस के साथ विक्की को न देख कर उन्हें आश्चर्य हुआ. इतने दिनों बाद आई निर्मला के तन पर अगली दोनों टांगें रख कर सीजर प्रेम प्रदर्शन कर रहा था. उस से जैसेतैसे छुटकारा पा कर वह मुसकराती हुई भीतर गई.

मां ने पूछा, ‘‘कैसी हो, निर्मला?’’

‘‘अच्छी हूं, मांजी,’’ उस ने सहज स्वर में कहा.

‘‘विक्की मजे में है?’’

‘‘जी हां, मजे में है.’’ इधरउधर की बातें होने लगीं. मां मन ही मन तौलती रहीं कि यह क्यों आई है. अच्छा हो, यदि यह यहां काम फिर से कर ले. तभी निर्मला ने सकुचाते हुए कहा, ‘‘मांजी, मेरा काम मुझे फिर से दे दो. विक्की को संभालने के लिए मैं ने अपनी सास को गांव से बुलवा लिया है. वह अब मेरे साथ नहीं आएगा.’’ मां को जैसे मुंहमांगी मुराद मिल गई. उन्होंने अपने हर्ष को छिपाते हुए संयत स्वर में कहा, ‘‘रखने को तो तुम्हें फिर से रख लें, मगर तुम्हारी सास का क्या भरोसा, वे यदि अपने गांव चली गईं तो फिर विक्की की समस्या हो जाएगी.’’

‘‘नहीं होगी, मांजी. मेरी सास अब यहीं रहेंगी, मैं पक्का वादा करा के उन्हें लाई हूं. मेरा सारा काम मुए विक्की के कारण छूट गया था. इसलिए यह पक्का इंतजाम करना पड़ा. आप बेफिक्र रहिए, आप को मेरा विक्की अब परेशान नहीं करेगा. मैं यहां उसे कभी नहीं लाऊंगी. आप तो मुझे बस काम देने की मेहरबानी कीजिए,’’ वह अनुनयभरे स्वर में बोली.

‘‘ठीक है, सोचेंगे,’’ मां ने नाटक किया.

‘‘सोचेंगे नहीं, मुझे काम देना ही होगा. मैं ने अपने घर की तरह यहां काम किया है.’’

‘‘इसीलिए तो कहा कि देखेंगे.’’

‘‘ऐसी गोलमोल बातें मत कीजिए, मांजी. मुझे कल से ही काम पर आने की मंजूरी दे दीजिए.’’

‘‘यह कैसे हो सकता है? तेरी जगह पर 3 औरतें हम ने रखी हैं. महीना पूरा होने पर उन्हें बंद करेंगे.’’

‘‘नहीं, कल 15 तारीख है, कल से ही उन्हें बंद कर दीजिए. मैं कल से ही काम संभाल लूंगी.’’ मां मन ही मन प्रसन्न हुईं कि चलो, घरभर की इच्छा पूरी हो जाएगी. किंतु अपने मन की यह बात जाहिर न करते हुए बोलीं, ‘‘गुड्डी के पिताजी से पूछ कर फैसला करूंगी. तू इतनी जल्दबाजी मत कर.’’ ‘‘जल्दबाजी बिना हमारा गुजारा कैसे होगा. इसलिए मैं तो कल से ही काम पर आ जाऊंगी,’’ यह कहते हुए निर्मला उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना ही चली गई. मां प्रसन्न हुईं कि मामला आसानी से निबट गया. निर्मला द्वारा काम संभालते ही घरभर का असंतोष दूर हो गया. विक्की के न आने से सभी को दोहरी प्रसन्नता हुई. किंतु कुछ दिनों बाद ही सभी को जैसे विक्की की याद आने लगी. वे लोग निर्मला से उस का हालचाल पूछने लगे. प्रश्न होने लगे, ‘विक्की को उस की दादी संभाल लेती है?’, ‘विक्की उन्हें परेशान तो करता होगा?’, ‘वे ज्यादा बूढ़ी होंगी, तब तो वह उन को चकमा दे कर बाहर निकल जाता होगा?’, ‘बुढि़या को वह शैतान बहुत तंग करता होगा?’, ‘कुएं के पास या सड़क पर वह फिर तो नहीं गया न?’ निर्मला इन प्रश्नों के उत्तर देती रहती थी. किंतु उस के जवाब से किसी को संतोष नहीं होता था. सभी का मन था कि विक्की कभी यहां आए तो उस से सारी बातें पूछें. उस के महीन स्वर को सुनने को जैसे सभी लालायित हो उठे थे. सांवले रंग के, प्रशस्त ललाट एवं बड़ीबड़ी आंखों वाले उस हाथभर ऊंचे बालक की छवि सभी के मनमस्तिष्क में तैरती रहती थी. उस की शरारतों की चर्चा करकर के सभी प्रसन्न होते थे.

एक रोज पिताजी ने निर्मला से कहा, ‘‘उस शैतान को किसी दिन लाना, उसे टैलीफोन सुनवाऊंगा.’’

दादाजी बोले, ‘‘एक बार जाप करवाऊंगा उस से.’’

मां बोलीं, ‘‘मेरे जूड़े की अब कोई तारीफ ही नहीं करता.’’

गुड्डी ने बताया, ‘‘उस के लिए मैं ने पहली कक्षा की किताब और पट्टी रखी हुई है.’’

मुन्ना बोला, ‘‘मैं उसे खिलौने दूंगा.’’ सभी ने अपनेअपने मन की बताई. केवल सीजर ही इस संदर्भ में न कह पाया. किंतु जिस रोज निर्मला विक्की को ले कर आई, उस रोज उस मूक पशु ने अपने मन की बात अपनी भाषा में कह दी. विक्की को देखते ही वह पहले झपटता था, किंतु अब उसे देखते ही वह दुम हिलाने लगा. सीजर को यों दुम हिलाते देख निर्मला अपने बेटे को ले कर आगे बढ़ी. सीजर तो जैसे प्रेम में बावला हो रहा था. उस ने दुम हिलातेहिलाते विक्की का मुंह चाट लिया तो वह डर के कारण रो पड़ा. यह देख सभी के ठहाके फूट पड़े. बड़े बच्चों वाले घर में नन्हे विक्की का यह रुदन मां को बड़ा भला लगा. वे भावविह्वल स्वर में बोलीं, ‘‘मुए सीजर ने यह अच्छा राग शुरू करा दिया.’’

पैकेज 24 लाख का : आशा को किस बात का गुमान था

अरुणा को जब पता चला कि उस की बहन आशा पुणे से नोएडा पिताजी के पास 4-5 दिनों के लिए रहने के लिए आ रही है, तो उस ने एक पल भी नहीं गंवाया सोचने में और उस से मिलने का मन बना लिया. हापुड़ से नोएडा दूर ही कितना था. उस के पति ने भी मना नहीं किया. 4 साल पहले मां की मृत्यु के समय ही आशा से मिलना हुआ था. मां के जाने के बाद अरुणा का उस घर में न तो कभी जाना ही हुआ और न ही कभी उस ने जाना चाहा. मां के बिना उस घर की कल्पना कर के ही वह सिहर उठती थी. लेकिन इस बार उस ने 3-4 दिनों का कार्यक्रम बना कर झटपट अटैची लगाई और बेटी के साथ बस में बैठ कर नोएडा के लिए रवाना हो गई. ;रास्तेभर जहां उसे इतने सालों बाद आशा से मिलने की खुशी हो रही थी, वहीं मांविहीन उस उजड़े घर में कैसे प्रवेश करेगी, इस की भी चिंता हो रही थी. आशा को सरप्राइज देने का मन हुआ, इसलिए अरुणा ने उसे सूचित नहीं किया और पहुंच गई. अचानक उसे आया देख कर आशा ने हमेशा की तरह बनावटी खुशी दिखाई. उस के इस स्वभाव को जानते हुए भी यह सोच कर कि पता नहीं फिर कब मिलना होगा, अपने को आने से रोक नहीं पाई. आखिर थी तो उस की छोटी और इकलौती सगी बहन.

अरुणा की बहन आशा, उस से 2 साल छोटी थी, लेकिन बचपन से ही, उस से बेहतर अपनी कदकाठी के कारण तथा अपने व्यवहार से, अपना वर्चस्व रख कर उस पर हावी रहती थी. अरुणा इस के विपरीत बहुत मृदुल स्वभाव की थी. कोई भी अनजान व्यक्ति आशा को अरुणा की बड़ी बहन समझ सकता था. पढ़ाईलिखाई में अरुणा हमेशा उस से अव्वल रही, लेकिन फिर भी आशा उसे अपने आगे कुछ भी नहीं गिनती थी. अरुणा को बहुत मानसिक कष्ट भी होता था, लेकिन आशा को कोई परवा न थी. उस का विवाह अरुणा के विवाह के सालभर बाद ही हो गया था. जहां अरुणा के पति हापुड़ जैसे छोटे शहर में छोटी सी सरकारी नौकरी करते थे, वहीं आशा के पति पुणे में किसी बहुत बड़ी कंपनी के मालिक थे. विवाह के बाद भी आशा के स्वभाव में रत्तीभर परिवर्तन नहीं आया, बल्कि ससुराल में बड़ी बहू होने के कारण और पति के ऊंचे ओहदे पर होने के कारण वह पहले से भी अधिक अभिमानी हो गई थी.

मायके में जब भी वे दोनों मिलतीं, आशा अरुणा को नीचा दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ती थी. और तो और, उस के बच्चों में और अपने बच्चों में भी बहुत अंतर रखती थी. एक दिन तो हद हो गई जब अरुणा ने अपनी मां के घर, रसोई से फुरसत पा कर कमरे में जा कर देखा कि आशा अपनी बेटी के साथ रजाई में बैठ कर टैलीविजन देख रही थी और उस की बेटी बिना रजाई के ठिठुर रही थी. उस ने अपनी बेटी को रजाई तो ओढ़ा दी, लेकिन अपना रिश्ता स्थिर रखने के लिए आशा से कुछ नहीं कहा, जानती थी कि बोलने पर बात बहुत बढ़ जाएगी. उन की मां भी यदि आशा को कुछ समझाने के लिए कुछ कहती तो वह उलट कर तुरंत उत्तर देती, ‘हां, हां, आप की लाड़ली बेटी है न. आप तो उस की तरफदारी करेंगी ही.’ मां क्या बोलती, चुप रह जाती थी. लाड़ली बेटी का ताना तो आशा अकसर देती रहती थी. उसे यह समझ नहीं थी कि मां के लिए सभी बच्चे बराबर होते हैं, वे अपने स्वभाव से ही अंतर पैदा करवाते हैं. मां की असमय मृत्यु होने पर सभी भाईबहन इकट्ठे हुए थे. अरुणा का मन हुआ कि अपनी बहन आशा के गले से लिपट कर खूब रो ले, लेकिन उस का रुख देख कर लगा ही नहीं कि उस को रत्ती भर भी मां के जाने का संताप है. वह मन मसोस कर रह गई, दोनों भाई तो विवाह के बाद पहले ही पराए हो चुके थे, सभी अपनों के असली चेहरे देख कर अरुणा का मन बहुत क्षुब्ध हुआ. उस को लगा कि वह अकेली रह गई है.

उस का बेटा और बेटी दोनों ही नानी से बहुत जुड़े हुए थे. बेटी तो समझदार थी, लेकिन बेटा छोटा होने के कारण सब क्रियाकलाप देख कर बहुत विचलित हो गया था और सब से अजीब व्यवहार करने लगा था. आशा कारण की गहराई में गए बिना सब के सामने जोरजोर से बोलने लगी, ‘मांबाप ने सिर पर चढ़ा रखा है. जरा भी तमीज नहीं सिखाई. अभी से यह हाल है तो आगे क्या करेगा.’

अरुणा यह देख कर हतप्रभ रह गई. पहले तो वह समझ नहीं पाई कि वह किस के लिए बोल रही है, समझ में आने पर उस को विश्वास ही नहीं हुआ कि उस की बहन उस के बेटे की भावना को समझने के स्थान पर उस के लिए इतना अनर्गल बोल सकती है, वह भी ऐसे मौके पर. उस की 2 बेटियां ही थीं इसलिए वह इतनी कुंठित रहती थी कि उस को अरुणा का बेटा फूटी आंख नहीं सुहाता था. मौसी को तो मां-सी माना गया है, फिर यह कैसी मौसी है, जिस ने इस रिश्ते को पराया करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. उस की बेटियों को अपनी मां का व्यवहार बिलकुल ठीक नहीं लग रहा था, यह साफ उन के चेहरे के भाव बता रहे थे. लेकिन वे अपनी मां से अत्यधिक डरती थीं, इसलिए मूकदर्शक बनी रहती थीं. अरुणा को बच्चों को इस तरह डरा कर रखना उचित नहीं लगता था. मां की तेरहवीं के अगले दिन ही वह आहत मन से वापस हापुड़ लौट गई.

उस के बाद आज मिलना हो रहा था. इतना कुछ होने के बाद भी अरुणा, उस से मिलने का लोभ संवरण नहीं कर पाई. इसी को तो खून का रिश्ता कहते हैं, जो अटूट माने जाते हैं. आशा अपनी बेटियों के साथ आई थी. बड़ी बेटी, नेहा ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई रुड़की के आईआईटी कालेज से पास की थी, आशा उसी को स्थायी रूप से वहां से ले जाने के लिए ही, रुड़की से लौटते हुए नोएडा आई थी. वह नेहा के गुणगान गाते नहीं थक रही थी कि पुणे जाते ही उसे नौकरी मिल जाएगी. फिर कंपनी अवश्य उसे अमेरिका भेजेगी. उस की शादी की वह जल्दी नहीं करेगी. उस का साथ उस के पति भी भरपूर दे रहे थे.

अरुणा उन की दंभभरी बातें सुन कर अवाक रह गई. वह तो उन की बातचीत का हिस्सा बनने लायक ही नहीं थी क्योंकि उस की बेटी, जो नेहा से कुछ ही महीने बड़ी थी, ने तो साधारण बीए किया था और टैक्सटाइल डिजाइनिंग का कोर्स, दिल्ली के किसी इंस्टिट्यूट से कर रही थी. इस बारे में सुनते ही आशा ने नाकभौं सिकोड़ ली. इस कोर्स के बाद उस को किसी फैक्टरी में ही नौकरी मिल सकती है. क्या पैकेज मिलेगा उस को, ज्यादा से ज्यादा साल का डेढ़ लाख. नेहा की तो एक महीने की इतनी सैलरी होगी,’’ उस ने अरुणा की बेटी की ओर तिरस्कारपूर्ण दृष्टि डालते हुए कहा. ‘‘लड़कियों का भविष्य अच्छा पैकेज नहीं, अच्छा ससुराल और उसे समझने वाला पति है. मैं ने उसे पैरों पर खड़ा कर दिया है, जिस से आवश्यकता पड़ने पर वह अपने परिवार की आर्थिक आवश्यकता भी पूरी कर सके, बस. और उस की पढ़ाई तो ऐसी है कि जिस से वह अपना व्यवसाय भी कर सकती है, जिस से उस का घर भी डिस्टर्ब नहीं होगा. मैं तो कोर्स पूरा होते ही उस के लिए अच्छा वर ढूंढ़ कर जल्द विवाह कर दूंगी, ससुराल जा कर जो चाहे करे. लड़कियों की प्राथमिकता घरपरिवार और बच्चे संभालना है, न कि नौकरी. पढ़ाई का सदुपयोग केवल नौकरी करना नहीं है, बल्कि पढ़ीलिखी लड़कियां, जागरूक होने के कारण अधिक अच्छी तरह, सुचारु रूप से परिवार को चला सकती हैं और बच्चे की बेहतर परवरिश कर सकती हैं,’’ अरुणा ने दो टूक जवाब देते हुए कहा. उस की बेटी के आत्मसम्मान को ठेस न पहुंचे, इसलिए बोले बिना अपने को रोक नहीं पाई.

‘‘दीदी, पढ़ीलिखी होने के बाद भी कैसी दकियानूसी बातें कर रही हैं आप. जमाना बहुत बदल गया है. पैसा हो तो घर संभालने के लिए हाउसकीपर रख सकते हैं और बच्चों के लिए, जैसा चाहो वैसे क्रेच खुले हुए हैं, उन में उन को छोड़ सकते हैं. उन को, वे जो चाहें, खरीद कर दे सकते हैं. हर उम्र के अनुसार खिलौने बाजार में आते हैं, जिन में वे बिजी रह सकते हैं. पैसे से हम बच्चों के लिए क्या नहीं उपलब्ध करा सकते…’’

आशा ने उस की बात नकारते हुए कहा, ‘‘बच्चे महंगे खिलौनों से सजे कमरे में नहीं, अपनी मां की गोद में सुरक्षित महसूस करते हैं. उन की प्रतिदिन की गतिविधियों को निहारने में जो सुख है, वह महंगी कारों में घूमने में और भोगविलास में भी नहीं है. पैसे से बच्चों के लिए भौतिक साधन तो जुटाए जा सकते हैं लेकिन अपने लिए उन के मन में जुड़ाव पैदा नहीं कर सकते. यह तभी संभव है जब हम उन्हें अपना साथ और समय देंगे, नहीं तो बड़े हो कर वे भी हमारे लिए सुखसाधन तो जुटा देंगे, लेकिन अपना समय नहीं देंगे और तुम्हें पता है, बुढ़ापे में अकेलापन किसी त्रासदी से कम नहीं होता है.’’

अरुणा को अपनी बहन की सोच पर तरस आ रहा था. लेकिन वह समझने वाली कहां थी. पलट कर थोड़ा उत्तेजित हो कर बोली, ‘‘ठीक है दीदी, आप अपनी बेटी को हाउसवाइफ बनाओ, मेरी बेटी ने इंजीनियरिंग घर में बैठने के लिए नहीं की है.’’ उस के इस तीखे जवाब से अरुणा का मन कसैला सा हो गया. उस ने चुप रहना ही उचित समझा. रात को आशा और उस के पति एक कमरे में, बाकी सभी दूसरे कमरे में सोने चले गए. आशा की बेटियां जैसे मौके की तलाश में थीं, बोलीं, ‘‘मौसी, आप तो ममा से बड़ी हैं न. फिर वे क्यों आप की बात नहीं सुनतीं? मुझे उन का आप से इस तरह का व्यवहार बिलकुल अच्छा नहीं लगता, पता है हम अपने घर में कुछ भी अपने मन का नहीं कर सकते. हमारे लिए सारे निर्णय वे ही लेती हैं, पापा की भी नहीं सुनतीं. अदिति कितनी अच्छी है न, कि उसे आप जैसी मां मिलीं.’’

‘‘नहीं बेटा, ऐसा कुछ नहीं है, अपनीअपनी सोच है, समय सब ठीक कर देगा.’’ इतना कहते ही अरुणा को नींद ने घेर लिया, लेकिन तीनों बहनों का वार्त्तालाप रातभर चलता रहा. अगले ही दिन भारी मन से अरुणा ने अपनी बहन से विदा ली. उस ने 1-2 दिन और रुकने के लिए उस से कहा. ‘‘नहीं, तेरे जीजाजी को खानेपीने की तकलीफ हो रही होगी,’’ अरुणा ने बहाना बनाया, जबकि आशा भी जानती थी कि वे बहुत अच्छा खाना पकाते हैं, फिर भी उस ने बात अनसुनी कर दी. अपनी बेटी को होस्टल छोड़ते हुए अरुणा वापस अपने घर पहुंच गई. समय बीतता गया. अरुणा की बेटी, अदिति की सगाई एक कपड़े के व्यावसायिक परिवार में हो गई. लड़का पढ़ालिखा था और अकेला होने के कारण पिता के कपड़े के व्यवसाय से ही जुड़ा हुआ था. उस ने ही अदिति को किसी समारोह में देख कर पसंद किया था. अरुणा तथा उस के पति ने उन की सामाजिक स्थिति को देखते हुए कहा कि वे उन की हैसियत के अनुसार विवाह में खर्च नहीं कर पाएंगे, तो प्रत्युत्तर में उन्होंने कहा कि उन्हें सिर्फ उन की बेटी चाहिए और कुछ नहीं.

विवाह में आशा भी अपनी दोनों बेटियों के साथ आई थी. नेहा को देख कर, कई लोगों ने उस के रिश्ते की बात चलाई, तो उस ने अहंकारभरी आवाज में उत्तर दिया कि अभी 2 साल वह और नौकरी कर ले, उस के बाद ही वह उस का विवाह करना चाहती है. तब तक उस का पैकेज 24 लाख रुपए का हो जाएगा. लेकिन शर्त यह है कि लड़का इंजीनियर हो, दूसरा, लड़के का पैकेज नेहा के पैकेज से अधिक होना चाहिए. नेहा अपनी मां की बात बड़े ध्यान से सुन रही थी. अदिति का विवाह धूमधाम से हो गया. बेटी को विदा करने के बाद सभी मेहमान एकएक कर के वापस चले गए, सिर्फ आशा अपने परिवार के साथ 2 दिनों के लिए रुकी थी. विवाह के अगले ही दिन आशा की बेटी नेहा ने कहा, ‘‘ममा, मैं थोड़े दिन मौसी के पास रहना चाहती हूं, जिस से इन को अदिति की कमी न महसूस हो. मैं औफिस से छुट्टी ले लूंगी, प्लीज ममा मना मत करना.’’

‘‘तेरा दिमाग तो नहीं खराब हो गया? यहां हापुड़ में रह कर क्या करेगी? टाइम वैस्ट होगा. न कोई घूमने की जगह…’’ इस से पहले कि आशा अपनी बात पूरी करे, नेहा बोली, ‘‘मुझे मौसी के साथ कुछ दिन रहना है, जिस से कि मैं इन से कुछ अच्छे संस्कार ले सकूं.’’

‘‘मतलब, तू अदिति जैसा जीवन जीना चाहती है. तुझे इसी दिन के लिए इंजीनियरिंग करवाई है मैं ने?’’

‘‘क्या बुराई है ममा, मैं अपने सहयोगी चेतन से विवाह करने वाली हूं और उस की मां की तबीयत ठीक नहीं रहती है, इसलिए मुझे नौकरी छोड़ कर घर पर रहना पड़ेगा. आप तो किटी पार्टी और क्लब में इतनी बिजी रहती हैं कि मुझे कुछ सीखने को मिला ही नहीं, इसलिए इन के पास रह कर कुछ लड़कियों वाले गुण सीखूंगी, जिस से चेतन और उस की मां को खुश रख सकूं.’’

‘‘चेतन, जो तेरा सबौर्डिनेट है, उस से विवाह करेगी, ऐसा तू ने सोचा भी कैसे?’’

‘‘ममा, अभी तक अपना जीवन आप के अनुसार जीती आई हूं, अब अपने विवाह का निर्णय मैं स्वयं लेना चाहती हूं. यह मेरा व्यक्तिगत मामला है.’’ आशा अवाक अपनी बेटी का मुंह देखती रह गई. नेहा, जिस ने कभी उस के सामने मुंह भी नहीं खोला था, उस को जवाबसवाल करते देख कर आशा भौचक्की रह गई थी. अरुणा ने नेहा को समझाते हुए कहा, ‘‘नहीं बेटा, ममा से इस तरह बात नहीं करते.’’ अरुणा की बात बीच में काट नेहा बोली, ‘‘यह तो मैं ने इन से ही सीखा है, नानी को और आप को भी तो ये इसी तरह जवाब देती हैं. मैं तंग आ गई हूं इन की तानाशाही से, अपने मन का कुछ कर ही नहीं सकती.’’ इतना कह कर नेहा रोंआसी हो कर सोफे पर बैठ गई. आशा को अपनी बेटी के इस अप्रत्याशित रूप को देख कर बहुत धक्का लगा, और धम्म से अपना सिर पकड़ कर सोफे पर बैठ गई तो अरुणा उसे गले लगाते हुए बोली, ‘‘आशा, मेरी बहन, आजकल के बच्चे हमारे जमाने वाले नहीं हैं. इन की डोर जितनी खींचोगे, उतनी ही दूर ये टूट कर जा गिरेंगे, आवश्यकतानुसार ही डोर खींचनी चाहिए. मैं बड़ी हूं, इसलिए समझा रही हूं, बुरा मत मानना.’’

‘‘नहीं दीदी, मेरी आंखें खुल गई हैं, मुझे माफ कर दीजिए, किसी ने सच कहा है, अपनी औलाद ही मांबाप को एक न एक दिन सबक सिखाती है,’’ आशा इतना बोल कर सुबकने लगी. आशा बीता वक्त तो लौटा नहीं सकती थी लेकिन भविष्य को तो संवार सकती थी.

लफंगे : क्या थी उन लड़कों की सच्चाई

‘‘निधि, यह स्टौल ले ले…’’ आरती की नजरें निधि के चुस्त टौप पर जमी थीं. और निधि के चेहरे पर झुंझलाहट थी.

‘‘रख लो, बाद में अपने बैग में डाल लेना.’’

‘‘ऊफ, बैग में क्या और सामान कम है जो इसे भी ढोती फिरूं.’’

‘‘यहां से निकलते वक्त थोड़ा सा ध्यान रखा करो, बाहर चाय की दुकान पर खड़े वे लफंगे…’’

‘‘अब क्या मैं मनमरजी के कपड़े भी नहीं पहन सकती हूं? और वैसे भी आज तक उन लोगों ने न कुछ कहा है, न कोई ऐसा व्यवहार किया है जिस से मुझे कोई परेशानी हो. और तो और, उस दिन मेरी स्कूटी स्टार्ट नहीं हो रही थी तो उन लड़कों ने ही ठीक कर दी थी वरना मेरा एग्जाम भी मिस हो जाता.’’

‘‘बेवकूफ है तू. जरा अपने सैंसेज को जगा कर रखा कर. सामने वाले हिमेशजी की बेटी को देख, कैसे ढंग के कपड़े पहनती है और आज तक उस ने…’’

‘‘मम्मी, प्लीज…मुझे किसी से कंपेयर मत करो,’’ कहती हुई निधि इतनी तेजी से भागी कि आरती उसे स्टौल पकड़ा ही नहीं पाई.

मांबेटी का लगभग रोज का विवाद और चिकचिक हरीश को अच्छी नहीं लगी, सो बोल उठे, ‘‘तुम क्यों मन खराब करती हो. किसी और की वजह से निधि पर इतनी रोकटोक ठीक नहीं है. महल्ले वालों की वजह से क्या वह अपनी मनमरजी से पहनओढ़ भी नहीं सकती?’’ ‘‘महल्ले वालों की परवा नहीं है, हरीश, मेरा मन तो उस चाय की गुमटी पर खड़े लड़कों को देख कर खराब होता है.’’

‘‘अरे, सुबहशाम ही तो चाय पीने का समय होता है, तुम तो ऐसे बोल रही हो जैसे ये लड़के दिनभर वहीं खड़े रहते हैं.’’ ‘‘दिनभर खड़े रहें तो ठीक है, पर उसी वक्त क्यों खड़े होते हैं जब अपनी निधि कालेज जाती और आती है.’’ आरती के तर्क का जवाब देना हरीश के बस में नहीं था.

‘‘तुम नहीं जानते, हरीश. मुझे उन की हंसी से चिढ़ होती है. आतेजाते लोगों को ताकना और धीरेधीरे बातें कर के हंसना, मेरे गुस्से को बढ़ा देता है.’’ ‘‘अब यह क्या बात हुई, किसी की हंसी से तुम उस के चरित्र पर उंगली कैसे उठा सकती हो?’’

‘‘उन लड़कों की शक्ल ही बताती है कि कितने लफंगे हैं वे.’’

‘‘अब छोड़ो, उन लड़कों की जिंदगी है जैसे बितानी है, बिताएं.’’

‘‘मुझे उन की जिंदगी से कोई लेनादेना नहीं है. लेकिन उन के जीने के ढंग की आंच खुद तक पहुंचने लगे तो कोई क्या करे.’’ बाहर चाय की चुस्कियां लेते और एकदूसरे के हाथों पर हाथ मार कर हंसते उन लड़कों को देख कर आरती का मन घृणा से भर उठा था. बात बदलने की गरज से हरीश बोले, ‘‘आज मैं फ्री हूं, तुम बहुत दिनों से हिमेशजी के यहां जाने को बोल रही थीं.’’

‘‘हां, आज हो आएंगे, बहुत दिनों से बुला रहे हैं. एक वही तो हैं, वरना यहां किसी से बात करने का मन नहीं करता है. मैं ने निधि से भी कहा है कि उन की बेटी से दोस्ती कर ले पर वह सुनती कहां है.’’ पैट्रोल पंप के मालिक हिमेशजी के सभ्य और अभिजात्य परिवार से आरती बहुत प्रभावित थी. 2 महीने पहले जब आरती का परिवार यहां शिफ्ट हो रहा था तो हिमेशजी ने ही नसीहत दी थी, ‘यहां के लोगों से बातचीत और व्यवहार ज्यादा न रखें, खासकर जब घर में लड़की हो. यहां इतना बड़ा और आलीशान मकान बनवा कर हम पछता रहे हैं. भाभीजी, जरा इन लफंगों से सावधान रहना.’ हिमेशजी की कही बात ने आरती के दिमाग में गहरी पैठ बना ली थी. आतेजाते इन लड़कों को कोसती तो हरीश समझाते, ‘इन लड़कों पर नहीं, अपने संस्कारों पर भरोसा करो,’ पर जाने क्या हो जाता था आरती को, जब भी इन लड़कों को बाहर चाय की दुकान पर हंसीमजाक करते देखती तो गुस्से के मारे बदन में आग लग जाती थी.

इधर कुछ दिनों से उन लड़कों का उठनाबैठना ज्यादा बढ़ गया था. ‘‘एक तरफ हम लड़कियों को बराबरी का दरजा दे रहे हैं, दूसरी तरफ उन की सुरक्षा को ले कर चिंतित रहते हैं. इन की वजह से इंसानियत शर्मसार होती है,’’ सहसा आरती के मुंह से निकला शब्द हरीश के कानों में पड़ गया था. ‘‘अब बस करो, आरती. तुम ओवररिऐक्ट कर रही हो. चिंता करने की कोई हद तो तय है नहीं. अब यह तो अपने ऊपर है कि चिंता करें या फिर परिस्थितियों की मांग के हिसाब से उन से मुकाबला करें.’’ ‘‘किसकिस से मुकाबला करें, अब किसी के चेहरे पर तो लिखा नहीं है कि उस के मन में क्या चल रहा है.’’

‘‘जब लिखा नहीं है तो तुम क्यों अपना दिल जलाती हो.’’

‘‘हरीश, दिल तो जलता ही है, इन लफंगों को तो देख कर कोई भी बता सकता है कि ये कितने कुत्सित विचारों के होंगे. इन के चेहरे पर तो लिखा नजर आता है कि ये सब समाज के नाम पर धब्बा बनेंगे.’’

‘‘अच्छा, अब यह बताओ अभि के लिए कुछ भेज रही हो या नहीं?’’ बात और मूड बदलने की गरज से हरीश ने एक बार फिर बातों के रुख को मोड़ा.

‘‘अरे हां, हरीश, कल ही तो आप को अहमदाबाद जाना है. मैं ने कोई तैयारी भी नहीं की है. आज मठरी और लड्डू बनाऊंगी. क्या बताऊं, निधि को अकेले नहीं छोड़ सकती वरना मेरा भी मन था कि अभि से मिल आती,’’ आरती का मन बेटे अभि को याद कर भीग सा गया था. ढेर सारी चिंता आंखों में समाए आरती उठ खड़ी हुई थी. 9 बज गए लेकिन शन्नो का कुछ पता नहीं था. आज तो उस से राशन भी मंगवाया था, पता नहीं उस ने खरीदा भी होगा या नहीं…सोचती हुई आरती के कानों में दरवाजे की घंटी की आवाज पड़ी तो उस ने जल्दी से दरवाजा खोल दिया. पर यह क्या? बाहर राशन के सामान से लदीफंदी शन्नो के पीछे बाहर चाय के अड्डे पर खड़े होने वाले 2 लफंगे आटे की बोरी पकड़े खड़े थे. ‘नमस्ते आंटी…’ सुन कर लगा जैसे कानों में कोई पिघला सीसा उड़ेल दिया हो. आरती की भावभंगिमा देख कर आटे की बोरी वहीं रख वे लड़के चलते बने. उन के जाते ही आरती शन्नो पर बुरी तरह से फट पड़ी थी, ‘‘देख शन्नो, हम बेटी वाले हैं, ऐसे में किसी को भी घर में ले कर चले आना ठीक नहीं है.’’

‘‘मेमसाब, बेटी वाले हम भी हैं. इतनी तो पहचान हमें भी है, आदमी को आदमी समझना सीखो,’’ शन्नो बड़बड़ा रही थी. उस का मूड खराब कर के आरती अपने काम को बढ़ाना नहीं चाहती थी, सो बात को वहीं छोड़ कर वह नरमी से बोली, ‘‘हमारी किसी से निजी दुश्मनी तो है नहीं, घर में लड़की है, सो चिंता बनी रहती है. तू खुद ही देख, ये लफंगे से लगने वाले लड़के सुबहशाम यहीं खड़े रहते हैं.’’ आटा माड़ते हुए शन्नो ने कहा, ‘‘ये बच्चे भी हमारेआप के जैसे परिवारों से हैं, अकेले रहते हैं, पढ़ाई करते हैं, थोड़ा बाहर हंसबोल लेते हैं तो क्या हुआ?’’

‘‘ये लड़के यहां के नहीं हैं क्या?’’

‘‘नहीं, कोई कोर्स कर रहे हैं.’’

‘‘तू इतना सब कैसे जानती है?’’

‘‘इन के लिए शाम की रोटी मैं ही बनाती हूं.’’ इस खुलासे के बाद तो आरती का मूड ही खराब हो गया. जाने शन्नो ने उन्हें क्याक्या बताया होगा. दूसरे दिन हरीश अहमदाबाद चले गए, तो आरती ने खुद को घर में कैद कर लिया. ऐसे में शन्नो एक ऐसी खबर लाई कि आरती का दिल और दिमाग दहल गया. मुंहअंधेरे नुक्कड़ पर कोई एक लड़की को कार से ढकेल गया था. आधेअधूरे कपड़ों में उस लड़की को तमाशा बना दुनिया देखती रही. इन लड़कों के कहने पर शन्नो ने खुद की ओढ़ी शौल उसे दी. चाय की गुमटी वाले अब्दुल चाचा के आश्वासन पर ही उस लड़की को उन लड़कों ने अस्पताल पहुंचाया. बेचारे डर भी रहे थे. पुलिसथाने का कोई चक्कर न हो, हिमेशजी ने तो दूर से ही हाथ जोड़ दिए थे. ‘‘आप ही बताओ मेमसाब, आदमी ही आदमी की मदद न करे तो उस की बड़ीबड़ी बातें किस काम की. हिमेशजी  के पास 2-2 गाडि़यां खड़ी रहती हैं पर जरूरत के समय साफ मना कर दिया. ऐसे मामले में सब डरते हैं पर इतना भी क्या डरना कि आदमी से गीदड़ बन जाए. सब बातों के शेर हैं, दम किसी में नहीं.’’ शन्नो ने अपने मन की भड़ास निकाली, ‘‘उस बेचारी की दुर्दशा किस के कुकर्मों का नतीजा है, कौन जानता है?’’

आरती का चेहरा पीला हो गया. दूसरे दिन शाम को आरती घर से बाहर निकली तो हिमेशजी मिल गए. हमेशा की तरह चिंता में लीन. देखते ही बोले, ‘‘भाभीजी, सुना आप ने, कल क्या हुआ?’’

‘‘जी, शन्नो ने बताया था.’’ ‘‘मैं कहता था न, आजकल जमाना लड़कियों का बाहर निकलने वाला नहीं है. मुझे देखिए 2-2 गाडि़यां घर में रख छोड़ी हैं, मजाल है जो मेरी बेटी अकेलेदुकेले कहीं निकल जाए. मैं तो कहता हूं, आप भी अपनी बिटिया को यों अकेले बाहर न जाने दिया करें. गाड़ी नहीं है तो कम से कम आटो कर दीजिए. 4-5 दिन पहले उस की स्कूटी भी शायद खराब हो गई थी.’’ आरती समझ गई थी कि उन्होंने उन लड़कों को निधि की स्कूटी स्टार्ट करते देख लिया था और अब वे एक अच्छे पड़ोसी होने का फर्ज उन दबेढके शब्दों में उसे आगाह करने की कोशिश कर निभा रहे थे. आज जाने क्यों आरती को हिमेशजी की बातों से कुछ कोफ्त सी हुई. उन्हें लगभग टालती हुई सामने बने पार्क की बैंच पर बैठ गई. सुबह से जी मिचला रहा था. शायद कल रात हुई घटना ने उस पर असर किया था. हिमेशजी की पत्नी अपनी बेटी सुप्रिया के साथ आती दिखीं. वहां खड़े दोनों लड़कों ने उसे अजीब नजरों से देखा, फिर मुंह घुमा लिया. आरती ने आज तक सुप्रिया को किसी से बातचीत करते नहीं देखा है. हिमेशजी ने बताया था कि उन की बेटी रिजर्व स्वभाव की है.

‘‘अरे भाभीजी, आज अकेले? भाईसाहब नहीं दिख रहे हैं?’’

‘‘अहमदाबाद गए हैं.’’

‘‘चलिए, किसी चीज की जरूरत हो तो बताइएगा,’’ कर्तव्य पूर्ति कर के हिमेशजी की पत्नी अपने घर के भीतर चली गईं. सामने चाय की गुमटी में बैठे उन लड़कों की ओर आरती की नजर गई. लड़के…हां लड़के ही तो थे. जाने क्यों लफंगे शब्द की अनुगूंज सुनाई नहीं दी. पार्क में खिले गुलाब के फूलों की ओर हाथ बढ़ाते बच्चों को माली ने डांटा. आरती की नजर उन फूलों की ओर गई. एक दिन सुबह की सैर करते हुए उस के आंचल में कांटे अटक गए थे तब से वह सावधान हो कर वहां से निकलती है लेकिन आज कांटों से ध्यान हट कर छिपे फूलों की ओर चला गया, जिन की महक उस के मन को छू कर निकली थी. आज शाम कुछ नई सी थी, किसी की हंसी कानों को चुभ नहीं रही थी. आरती ने एक बार फिर ध्यान से उन लड़कों को देखा. कल इन लड़कों द्वारा उस अनजान लड़की के प्रति दिखाई संवेदनशीलता ने साबित किया था कि संवेदना किसी खास चेहरे और स्तर की मुहताज नहीं होती. आरती यों ही बैठी रही. करीब आधे घंटे बाद उठी तो ऐसा चक्कर आया कि कुछ होश न रहा. आंख खुली तो देखा सामने डाक्टर बैठा था.

‘‘चलिए, आप को होश आ गया, अब मैं चलता हूं. चिंता की कोई बात नहीं है,’’ मुसकराते हुए डाक्टर ने आरती से कहा, ‘‘ये लड़के मुझे अपनी बाइक में हवाई जहाज जैसी स्पीड में ले कर आए थे.’’ ‘‘मम्मी, आप की तबीयत ठीक नहीं थी तो बता देतीं, केतन और सुनील नहीं होते तो आज पता नहीं मैं कैसे मैनेज करती. इन बेचारों ने मेरी वजह से खाना भी नहीं खाया है, तब से यहीं भूखे बैठे हैं.’’

‘‘कौन?’’ आरती अवाक् सी उन केतन और सुनील नाम वाले लफंगों को देखती रही. निधि ने धीरे से आरती के हाथ को दबा दिया, उसे डर था, इन बेचारों के प्रति चेहरे पर नफरत न आ जाए. ‘‘आंटीजी, आज हमारा पिक्चर देखने और बाहर खाना खाने का प्रोग्राम था, इसलिए शन्नो दीदी को मना कर दिया था. हम जाने ही वाले थे लेकिन देखा, आप अचानक गिर गईं. सोच ही रहे थे कि क्या करें, तब तक दीदी आ गईं. उन्होंने बताया कि आप को स्पौंडिलाइटिस की वजह से चक्कर आ जाते हैं. गिरने की वजह से आप के सिर पर चोट लग गई तो हम घबरा गए थे.’’

‘‘आज तो तुम लोगों को खाना भी नहीं मिलेगा.’’

‘‘कोई बात नहीं, केतन की मम्मी के बनाए लड्डू हैं. उन्हें खा कर हमारा मस्त काम चलेगा.’’

आरती ने पूछा, ‘‘तुम लोग यहां अकेले रहते हो?’’ ‘‘आंटीजी, यहां पास वाली गली में 4 लड़कों के साथ एक कमरे को साझा कर रहे हैं. हम दोनों बीटेक और वे दोनों लड़के एक टैक्निकल ट्रेनिंग कर रहे हैं. इम्तिहान खत्म हो गए हैं पर घर नहीं गए. यहीं 3-4 घंटे पार्टटाइम नौकरी में समय बिता रहे हैं. जेबखर्च निकल आता है. मतलब किताबों वगैरह के लिए,’’ सुनील ने सफाई दी. आरती हैरानी से उन लफंगों को देख रही थी, ‘‘निधि, देख तो जरा. अभि के लिए बनाया नाश्ता डब्बों में पड़ा है, थोड़ा दे दे, क्या भूखे सोएंगे ये बच्चे?’’ ये बोलती हुई आरती अपने शब्दों पर खुद ही अचकचा गई. आश्चर्य हुआ कि इन लड़कों के लिए ममत्व जागा कैसे? बड़े संकोच से केतन ने निधि के हाथ से पैकेट ले लिया, पर दरवाजे तक आ कर अचकचा कर रुक गया.

‘‘क्या हुआ?’’ निधि ने पूछा तो केतन ने कुछ संकोच से कहा, ‘‘1 मिनट बाद जाएंगे.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘वे हिमेश अंकल अपना गेट बंद कर रहे हैं. हमें यहां देख लिया तो…’’

‘‘तो क्या?’’

‘‘वह आप नहीं समझेंगी,’’ अपने बालों पर हाथ फेरते हुए फर्श की ओर ताकते शर्माते हुए केतन बोला, ‘‘आप लड़की हैं न, हिमेश अंकल ने आप को मेरे साथ देख लिया तो पता नहीं क्या सोचेंगे.’’

‘‘क्या सोचेंगे?’’

‘‘वे हमें लफंगा समझते हैं न इसलिए.’’ उन की मनोदशा से आरती का जी भर आया. बोली, ‘‘चलो, मैं भी चलती हूं. खुली हवा में बैठूंगी तो मन बदलेगा.’’ आरती ने धीरे से पलंग से उतर कर चप्पल पहनी. निधि के साथ बाहर आई तो केतन उस से दूरी बना कर तेज कदमों से चलने लगा. बाहर झुरमुट में हिमेशजी के लौन के पिछवाड़े एक साया देख कर आरती डर गई, तो सुनील ने कहा, ‘‘आंटी, आप घर जाइए.’’ आरती की नजर सामने हिमेशजी के लौन के पिछवाड़े पर टिकी थी. खिड़की से एक साया अंदर जाता साफ दिख रहा था.

‘‘मम्मी, हिमेश अंकल के घर इन्फौर्म करिए, कोई पीछे के रास्ते से घर में घुसने की कोशिश कर रहा है,’’ निधि बोली.

‘‘रहने दीजिए, यह हर दूसरेतीसरे दिन होता है,’’ केतन बोला.

‘‘यह कमरा तो सुप्रिया का है न? कौन है जो यों चोरी से घुस रहा है?’’ ‘‘उस कार का मालिक,’’ एक बड़ी सी कार की ओर इशारा करते हुए सुनील और केतन तेजी से सामने वाली गली में गुम हो गए थे. कुछ दूर अंधेरे में खड़ी कार को देख कर सिहर गई आरती का चेहरा स्याह था. रात की कालिमा से ज्यादा स्याह यह सभ्य लोगों का सच था. घर आ कर निधि ने चाय बना कर दी तो सहसा कानों में चाय की गुमटी में खड़े लड़कों की हंसी की आवाजें सुनाई देने लगीं. जाने क्यों, इस हंसी में खिलंदड़पन की महक आई. सामने खिड़की से हिमेशजी के लौन का कुछ हिस्सा दिख रहा था. आरती ने अपनी सोच पर रोक लगाते हुए अपनी नजर हिमेशजी के बंगले की ओर दौड़ाई तो वहां अंधेरा था. शायद हिमेशजी गहरी नींद में सो रहे थे, अलबत्ता उन की बेटी के कमरे में हलका उजाला दिख रहा था. हिमेशजी  दूसरों को असामाजिक तत्त्वों से बचने की सीख देते हैं जबकि रात के अंधेरे में वे अपने घर में पीछे की ओर से किसी लफंगे के आनेजाने से बेखबर थे. आरती ने चुपचाप अपने कमरे की खिड़की बंद कर दी थी.

गुलाम नबी आजाद की डूबती नैया

राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के पश्चात जहां कांग्रेस को एक नई ऊर्जा से भर दिया है वहीं अब भारतीय जनता पार्टी और उसके नामचीन चेहरे बैकफुट पर है. यही नहीं जिन लोगों ने राहुल गांधी को डूबती नैया समझ कर के छलांग लगा दी थी और राहुल गांधी के नेतृत्व पर प्रश्न खड़ा किया था. मगर आज वह स्वयं प्रश्नचिन्ह से घिरे हुए हैं और उनके पास कोई जवाब नहीं है. इसका सबसे बड़ा उदाहरण कांग्रेस के एक बड़े चेहरे के रूप में गुलाम नबी आजाद हैं जिनकी छवि कांग्रेस को छोड़ने के बाद भी अभी भी एक “कांग्रेस मैन” की है उन्होंने भविष्य में कश्मीर में अपने पांव जमाने के लिए कांग्रेस को ठोकर मार कर के कश्मीर की और बढ़ गए थे मगर नई परिस्थितियों में एक तरह से उनकी बोलती बंद हो गई है.

जिस तरह गुलाम नबी आजाद को उनके समर्थक छोड़ कर के कांग्रेस की ओर भाग रहे हैं वह एक कांग्रेस के लिए सुखद संकेत है वहीं भारतीय राजनीति के उस चरित्र को भी उजागर कर रहा है जिसमें स्वार्थी नेता पद और प्रतिष्ठा पाने के लिए इस तरह पार्टियों को बदलते हैं अपने नेताओं और आकाओं को बदलते हैं.

___._ गुलाम का “सबक” ________ ‌ कांग्रेस छोड़ कर के जाने वाले नेताओं में गुलाम नबी आजाद एक ऐसा चेहरा है जो लंबे समय से निष्ठावान कांग्रेसी के रूप में जाना जाता था मगर जैसे ही कांग्रेस की हालात उन्हें खराब महसूस होने लगी उन्हें अपना भविष्य अंधकार में दिखाई देने लगा. संभवत यही कारण था कि उन्होंने कांग्रेस को छोड़ कर के एक नई पार्टी बना ली मगर आज जिस तरह लोकसभा चुनाव से पूर्व देश की राजनीतिक परिस्थितियां बदल रही हैं और राहुल गांधी एक सर्वमान्य नेता के रूप में देश में अपने साथ बनाते चले जा रहे हैं तो गुलाम नबी आजाद के हाथों के तोते मानो उड़ गए हैं और उनके साथी नेता कार्यकर्ता उन्हें छोड़ कर के कांग्रेस की ओर दौड़ पड़े.

यह सच, भारतीय राजनीति का एक ऐसा चरित्र है जो इसकी सबसे बड़ी कमी है तो ताकत भी. जैसा कि आज देश को जानकारी है कांग्रेस की सरकार में केंद्रीय मंत्री रहे गुलाम नबी आजाद के नेतृत्व वाली डेमोक्रेटिक आजाद पार्टी (डीएपी) से 17 नेता इस्तीफा देकर कांग्रेस में वापस आ गए हैं. इनमें जम्मू-कश्मीर के पूर्व उप मुख्यमंत्री तारा चंद और प्रदेश कांग्रेस कमेटी के पूर्व अध्यक्ष पीराजादा मोहम्मद सईद जैसे बड़े चेहरे शामिल हैं.

कांग्रेस के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल ने कांग्रेस मुख्यालय दिल्ली में इन नेताओं का स्वागत करते हुए कहा -” पार्टी का मानना है कि ये सभी नेता कांग्रेस छोड़कर नहीं गए थे, बल्कि ये दो महीने के अवकाश पर थे और अब लौटे हैं.”

वेणुगोपाल ने आगे कहा –” भारत जोड़ो यात्रा के जम्मू-कश्मीर में दाखिल होने से पहले हमारे कई नेता घर वापस आ रहे हैं. यह बहुत खुशी की बात है.” आज लाख टके का सवाल राजनीति की फिजा में यह तैर रहा है कि क्या गुलाम नबी आजाद ने कांग्रेस में वापसी को लेकर प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से कोई संपर्क किया है .

इसका भी जवाब देते हुए
वेणुगोपाल ने कहा -” आजाद ने इससे खुद इनकार किया है.” तारा चंद और सईद के अलावा डीएपी में पदाधिकारी रहे ठाकुर बलवान सिंह, मोहम्मद मुजफ्फर परे, सहित अन्य ने कांग्रेस में वापसी की है.
कांग्रेस में वापसी करने वाले कुछ नेताओं को डीएपी से हाल ही में निष्कासित किया गया था तो कई नेताओं ने आजाद की पार्टी खुद छोड़ी है. पूर्व उप मुख्यमंत्री तारा चंद ने गांधी परिवार और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे का आभार जताते हुए कहा-” हमारी पूरी उम्र कांग्रेस में बीती है. हमने जज्बाती होकर और ( आजाद से) दोस्ती के चलते गलत कदम उठा लिया था.” रजादा मोहम्मद सईद के मुताबिक -” मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गई थी.

मैं कांग्रेस छोड़ने के लिए अपनी इस पार्टी और कश्मीर एवं देश के लोगों से माफी मांगता हूं.”इन सभी संवादों को अगर हम ध्यान से पढ़ें तो स्पष्ट हो जाता है कि राहुल गांधी के निर्णय अब फलीभूत होते दिखाई दे रहे हैं. जिस तरह उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष पद को छोड़ा और मल्लिकार्जुन खड़गे को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया उससे यह संदेश भी गया कि राहुल गांधी पद लिप्सा से दूर है सबसे बड़ी बात यह कि उन्होंने राजनीति के रास्ते पर पदयात्रा की जो एक बड़ी लकीर खींची है उससे भाजपा तो हतप्रभ है ही नीतीश कुमार, ममता बनर्जी, मायावती, अखिलेश यादव सभी चिंतित हो चले हैं. शायद यही कारण है कि नीतीश कुमार ने भी ऐलान कर दिया है कि वे स्वयं 2024 के आम चुनाव के पहले भारत की पदयात्रा बड़े स्तर पर करने वाले हैं.

आउटसोर्सिंग-भाग 2 : क्या सुबोध मुग्धा के सपनों को पूरी कर पाया?

सुबोध उस का अच्छा मित्र था. कालेज में वे दोनों सहपाठी थे. अद्भुत व्यक्तित्व था उस का. पर मुग्धा को उस के गुणों ने आकर्षित किया था. सुबोध उस के लिए आसमान से चांदतारे तोड़ कर लाने की बात करता तो वह अभिभूत हो जाती.

पर जब वह मां और अपने पिता राजवंशी से इस संबंध में बात करने ही वाली थी कि सुबोध ने अपनी शादी तय होने का समाचार दे कर उसे आकाश से धरती पर ला पटका. सुबोध बातें तो उस के बाद भी बहुत मीठी करता था. उस के अनुसार प्यार तो अजरअमर होता है. वह चाहे तो वे जीवनभर प्रेमीप्रेमिका बने रह सकते हैं. सुबोध तो अपने परिवार से छिप कर उस से विवाह करने को भी तैयार था पर वह प्रस्ताव उस ने ही ठुकरा दिया था.

उस प्रकरण के बाद वह लंबे समय तक अस्वस्थ रही थी. फिर उस ने स्वयं को संभाल लिया था. मुग्धा चारों भाईबहनों में सब से छोटी थी. सब ने अपने जीवनसाथी का चुनाव स्वयं ही किया था. अब अपने ढंग से वे अपने जीवन के उतारचढ़ाव से समझौता कर रहे थे. भाईबहनों के पास न उस के लिए समय था न ही उस से घुलनेमिलने की इच्छा. तो भला उस के जीवन में कैसे झांक पाते. मां भी सोच बैठी थीं कि वह भी अपने लिए वर स्वयं ही ढूंढ़ लेगी.

विशाल और रंजन उस के जीवन में दुस्वप्न बन कर आए. दोनों ही स्वच्छंद विचरण में विश्वास करते थे. रंजन की दृष्टि तो उस के ऊंचे वेतन पर थी. उस ने अनेक बार अपनी दुखभरी झूठी कहानियां सुना कर उस से काफी पैसे भी ऐंठ लिए थे. तंग आ कर मुग्धा ने ही उस से किनारा कर लिया था.

सूरज उस के जीवन में ताजी हवा के झोंके की तरह आया था. सुदर्शन, स्मार्ट सूरज को जो देखता, देखता ही रह जाता. सूरज ने स्वयं ही अपने मातापिता से मिलवाया. उसे भी विवश कर दिया कि वह उस का अपने मातापिता से परिचय करवाए. कुछ ही दिनों में उस से ऐसी घनिष्ठता हो गई, मानो सदियों की जानपहचान हो. अकसर सूरज उस के औफिस में आ धमकता और वह सब से नजरें चुराती नजर आती.

मुग्धा अपने व्यक्तिगत जीवन को स्वयं तक ही सीमित रखने में विश्वास करती थी. अपनी भावनाओं का सरेआम प्रदर्शन उसे अच्छा नहीं लगता था.

‘मेरे परिचितों से घनिष्ठता बढ़ा कर तुम सिद्ध क्या करना चाहते हो?’

‘कुछ नहीं, तुम्हें अच्छी तरह जाननेसमझने के लिए तुम्हारे मित्रों, संबंधियों को जानना भी तो आवश्यक है न प्रिय,’ सूरज नाटकीय अंदाज में उत्तर देता.

‘2 वर्ष हो गए हमें साथ घूमतेफिरते, एकदूसरे को जानतेसमझते. चलो, अब विवाह कर लें. मेरे मातापिता बहुत जोर डाल रहे हैं,’ एक दिन मुग्धा ने साहस कर के कह ही डाला था.

‘क्या? विवाह? मैं ने तो सोचा था कि तुम आधुनिक युग की खुले विचारों वाली युवती हो. एकदूसरे को अच्छी तरह जानेसमझे बिना भला कोई विवाहबंधन में बंधता है?’ सूरज ने अट्टहास किया था.

‘कहना क्या चाहते हो तुम?’ मुग्धा बिफर उठी थी.

‘यही कि विवाह का निर्णय लेने से पहले हमें कुछ दिन साथ रह कर देखना चाहिए. साथ रहने से ही एकदूसरे की कमजोरियां और खूबियां समझ में आती हैं. तुम ने वह कहावत तो सुनी ही होगी, सोना जानिए कसे, मनुष्य जानिए बसे,’ सूरज कुटिलता से मुसकराया था.

‘तुम्हारा साहस कैसे हुआ मुझ से ऐसी बात कहने का? मैं कोई ऐसीवैसी लड़की नहीं हूं. 2 वर्षों में भी यदि तुम मेरी कमजोरियों और खूबियों को नहीं जान पाए तो भाड़ में जाओ, मेरी बला से,’ मुग्धा पूरी शक्ति लगा कर चीखी थी.

‘इस में इतना नाराज होने की क्या बात है, मुझे कोई जल्दी नहीं है, सोचसमझ लो. अपने मातापिता से सलाहमशविरा कर लो. मैं चोरीछिपे कोई काम करने में विश्वास नहीं करता. आज के अत्याधुनिक मातापिता भी इस में कोई बुराई नहीं देखते. वे भी तो अपने बच्चों को सुखी देखना चाहते हैं.’

‘किसी से विचारविनिमय करने की आवश्यकता नहीं है. मैं स्वयं इस तरह साथ रहने को तैयार नहीं हूं,’ मुग्धा पैर पटकती चली गई थी.

उधर, काम में उस की व्यस्तता बढ़ती ही जा रही थी. किसी और से मेलजोल बढ़ाने का न तो उस के पास समय था और न ही इच्छा. इसलिए जब मां ने उस के विवाह की बात उठाई तो उस ने सारा भार मातापिता के कंधों पर डालने में ही अपनी भलाई समझी.

मुग्धा करवटें बदलतेबदलते कब सो गई, पता भी न चला. प्रात: जब वह उठी तो मन से स्वस्थ थी.

मुग्धा ने अपनी ओर से तुरुप का पत्ता चल दिया था. उस ने सोचा था कि अब कोई उसे विवाह से संबंधित प्रश्न कर के परेशान नहीं करेगा.

पर शीघ्र ही उसे पता चल गया कि उस का विचार कितना गलत था.

मानिनी और राजवंशीजी भला कब चुप बैठने वाले थे. उन्होंने युद्धस्तर पर वर खोजो अभियान प्रारंभ कर दिया था. दोनों पतिपत्नी में मानो नवीन ऊर्जा का संचार हो गया था.

मित्रों, संबंधियों, परिचितों से संपर्क साधा गया. समाचारपत्रों, इंटरनैट का सहारा लिया गया और आननफानन विवाह प्रस्तावों का अंबार लग गया.

वर खोजो अभियान का पता चलते ही मुग्धा के बड़े भाईबहन दौड़े आए.

‘‘क्यों आप अपना पैसा और समय दोनों बरबाद कर रहे हैं. मुग्धा जैसी लड़की आप के द्वारा चुने गए वर से कभी विवाह नहीं करेगी,’’ मुग्धा के सब से बड़े भाई मानस ने तर्क दिया था.

‘‘इस समस्या का समाधान तो तुम मुग्धा से मिल कर ही कर सकते हो. हम ने उस की सहमति से ही यह कार्य प्रारंभ किया है,’’ राजवंशीजी का उत्तर था.

मुग्धा के औफिस से आते ही तीनों भाईबहनों ने उसे घेर लिया था, ‘‘यह क्या मजाक है? तुम अपने लिए एक वर भी स्वयं नहीं ढूंढ़ सकतीं?’’ मुग्धा की बहन मानवी ने प्रश्न किया था.

‘‘मैं बहुत व्यस्त हूं, दीदी. वर खोजो अभियान के लिए समय नहीं है. मम्मीपापा शीघ्र विवाह करने पर जोर दे रहे थे तो मैं ने यह कार्य उन्हीं के कंधों पर डाल दिया. कुछ गलत किया क्या मैं ने?’’

‘‘बिलकुल पूरी तरह गलत किया है तुम ने. बिना किसी को जानेसमझे केवल मांपापा के कहने से तुम विवाह कर लोगी? यह एक दिन का नहीं, पूरे जीवन का प्रश्न है यह भी सोचा है तुम ने,’’ उस के बड़े भैया मानस बोले थे.

‘‘मुझे लगा मम्मीपापा हमारे हितैषी हैं. जिस प्रकार वे इस प्रकरण में सारी छानबीन कर रहे हैं, मैं तो कभी नहीं कर पाती.’’

‘‘क्या छानबीन करेंगे वे, धनदौलत पढ़ाईलिखाई, शक्लसूरत, पारिवारिक पृष्ठभूमि इस से अधिक क्या देखेंगे वे. इस से भी बड़ी कुछ बातें होती हैं,’’ छोटे भैया, जो अब तक चुप थे, गुरुगंभीर वाणी में बोले थे.

‘‘आप शायद ठीक कह रहे हैं पर आप तीनों के वैवाहिक जीवन की भी कुछ जानकारी है मुझे. मानस भैया को नियम से हर माह प्लेटें, प्याले खरीदने पड़ते हैं. नीरजा भाभी को उन्हें फेंकने और तोड़ने का ज्यादा ही शौक है. तन्वी भाभी और अवनीश जीजाजी…’’

‘‘रहने दो, हम यहां अपने वैवाहिक जीवन की कमजोरियां सुनने नहीं, तुम्हें सावधान करने आए हैं. अपने जीवन के साथ यह जुआ क्यों खेल रही हो तुम?’’  मानवी थोड़े ऊंचे स्वर में बोली.

‘‘यह जीवन जुआ ही तो है. हमारा कोई भी निर्णय गलत या सही हो सकता है, इसीलिए मैं ने अपने विवाह की आउटसोर्सिंग करने का निर्णय लिया है,’’ मुग्धा ने मानो अंतिम निर्णय सुना दिया था.

 

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