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Winter 2023 : आज से ही खाने में रोज शामिल करें ये 10 चीजें, हमेशा रहेंगी फिट

महिलाओं, जो घरबाहर दोनों की जिम्मेदारी संभालती हैं, की सेहत के लिए पौष्टिक व हैल्दी खानपान अत्यंत जरूरी है. बदलती भूमिका के चलते वे सेहत संबंधी कई परेशानियों को भी आमंत्रित करने लगी हैं. सुबह जल्दीजल्दी घर की जिम्मेदारियों को पूरा कर के औफिस भागना और दिनभर औफिस की जद्दोजेहद के बाद शाम को फिर घर की जिम्मेदारी. इस सब के बीच कहीं न कहीं महिलाओं की सेहत की अनदेखी हो ही जाती है. इसलिए जरूरी है कि वे अपने दैनिक भोजन में कुछ ऐसे बेहतरीन खा- पदार्थों को शामिल करें जिन से वे अच्छी सेहत की दिशा में आगे बढ़ सकें.

लहसुन

– रक्तचाप कम करने में मददगार होती है.

– विटामिन बी6, विटामिन सी, मैग्नीशियम, सैलेनियम के साथ अत्यधिक पोषणयुक्त होती है.

– कोलैस्ट्रौल के स्तर में कमी होती है.

– एंटीऔक्सीडैंट की खूबी है.

– हड्डियों को मजबूत करती है.

अदरक

– जलन और दर्द में कमी लाता है.

– सर्दी और फ्लू से बचाव करता है.

– डायबिटिक नेफ्रोपैथी से बचाव करता है.

– कोलोन कैंसर से बचाव करती है.

संतरा

– विटामिन सी का बेहतरीन स्रोत होता है.

– प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है.

– त्वचा की कांति बनाए रखता है.

– आंखों की रक्षा करता है.

– एचडी, कैंसर से रक्षा करता है.

– अत्यधिक फाइबर डायबिटीज नियंत्रित करने में मददगार होता है.

अलसी के बीज

– फाइबर का अच्छा स्रोत और लैक्सेटिव की तरह काम करते हैं.

– अलसी के बीजों का तेल ओमेगा-3 एफए का अच्छा स्रोत है जो कोलैस्ट्रौल नियंत्रण के लिए लाभदायक है.

-मैग्नीशियम का अच्छा स्रोत है.

आंवला

– कम कैलोरी वाला फल है.

– कार्बोहाइडे्रट, फाइबर, विटामिन सी और खनिजों का अच्छा स्रोत है.

– एंटीऔक्सीडैंट का अच्छा स्रोत है.

– बालों की जड़ों को मजबूत बनाता है.- कोलैस्ट्रौल कम करता है.

– कैंसर से बचाता है

– रक्तचाप को कम करता है.

चुकंदर

– सर्वश्रेष्ठ एंटीऔक्सीडैंट है.

– रक्तचाप कम करता है.

– कोलैस्ट्रौल नियंत्रित करता है.

– फोलिक एसिड, आयरन, जिंक, मैग्नीशियम, पोटैशियम, विटामिन सी, फाइबर, कार्बोहाइड्रेट का शानदार स्रोत है.

– मधुमेह को नियंत्रित करता है.

– वजन नियंत्रण में मददगार होता है.

फलियां

हृदय के लिए लाभदायक होती हैं.

– वसा कम, फाइबर अधिक होता है.

– प्रोटीन का स्रोत है.

– रक्त में शुगर की मात्रा को नियंत्रित करती हैं.

– कैंसर के जोखिम को कम करती हैं.

शकरकंद

– फाइबर का स्रोत, पाचन तंत्र को सेहतमंद बनाता है.

– हृदय के लिए लाभदायक है.

– बीटा कैरोटीन युक्त है.

– विटामिन सी और विटामिन ई एवं एंटीऔक्सीडैंट से भरपूर है.

– बीमारियों से बचाव और लंबे जीवन में अहम भूमिका निभाता है.

पालक

– विटामिन, खनिज और अन्य फाइटोन्यूट्रिएंट के अहम स्रोत के साथ कम कैलोरी का भोजन है.

– एंटी औक्सीडैंट से युक्त है.

– हृदय के लिए लाभदायक है.

– आंखों की बीमारियों से बचाता है.

दही

– कैल्शियम और विटामिन डी की जरूरत पूरी करता है.

– हड्डियों और दांतों को मजबूती देता है.

– रक्तचाप को सामान्य रखने में मदद करता है.

– पाचन प्रणाली को स्वस्थ रखता है.

– रक्त में कोलैस्ट्रौल की मात्रा को कम रखता है.

इस प्रकार रोजाना के भोजन में इन बेहतरीन खा- पदार्थों को शामिल कर महिलाएं न सिर्फ स्वस्थ रह सकती हैं बल्कि अपने स्वास्थ्य को बेहतर बना भी सकती हैं.

Makar Sankrati 2023 : आटा-सूजी मेवा लड्डू से त्यौहार बनाएं खास

लड्डू हिंदुस्तानी मिठाईखोरों की कमजोरी होते हैं. बेसन के लड्डू, मोतीचूर के लड्डू, मावे के लड्डू वगैरह खाने के शौकीन हर भारतीय घर में मिल जाएंगे. शौकीनों के लिए एक खास सौगात है आटासूजी मेवा लड्डू. आटा हमेशा से खाने की सब से अच्छी चीजों में गिना जाता रहा है. यह केवल रोटी बनाने भर के काम नहीं आता, बल्कि मिठाई बनाने में भी इस का काफी इस्तेमाल होता है. आटे से तैयार मिठाई जल्दी खराब नहीं होती. बहुत समय पहले से आटे से पूए और मीठी गोलियां जैसी मिठाइयां तो बनती ही रही हैं. अब आटे के साथ सूजी और मेवे मिला कर बहुत ही अच्छे और स्वादिष्ठ लड्डू तैयार किए जाने लगे हैं. इन का सेवन करने से शरीर को भरपूर ताकत भी मिलती?है.

सर्दियों के मौसम में ये लड्डू बेहद फायदेमंद साबित होते हैं. आटासूजी के लड्डू बनाने में माहिर ज्योति जुल्का कहती हैं, ‘आटा और सूजी ऐसी चीजे?हैं, जो हर किसी के पास मौजूद होती हैं. इन से लड्डू बनाना बहुत आसान है.

आटासूजी के लड्डू को सस्ता करने के लिए इस में मेवों का इस्तेमाल कम किया जा सकता है. मेवे मिलने से ये लड्डू बहुत महंगे हो जाते हैं.’ इन लड्डुओं का कारोबार करने वाले प्रिमेश लाल कहते हैं, ‘आज के समय में लोग खानेपीने में पुराने स्वाद को याद करने लगे हैं. ऐसे में आटासूजी और मेवे के लड्डू तेजी से प्रचलन में आ रहे हैं.

घर में बनने वाली यह मिठाई अब बाहर आ गई है और दुकानों में बिकने लगी है. इस के प्रचलन में आने से गेहूं की खेती करने वाले किसानों को भी लाभ होगा. वे इस का कारोबार कर सकते हैं. सब से अच्छी बात यह है कि ये लड्डू जल्दी खराब नहीं होते. इन को ले जाने के लिए किसी खास तरह की पैकिंग की जरूरत नहीं होती. कई बड़े होटल इन को अपने फूड फेस्टिवल में शामिल करने लगे?हैं.

लड्डू बनाने की सामग्री

गेहूं का आटा 1 किलोग्राम, सूजी 150 ग्राम, देसी घी 600 मिलीलीटर, बूरा या पिसी हुई चीनी 500 ग्राम. इस के अलावा काजू, बादाम, किशमिश, घिसा हुआ नारियल और मखाने इच्छानुसार.

बनाने की विधि

आटे को कड़ाही में गैस पर धीमी आंच पर भूरा होने तक भून लें. एक दूसरी कड़ाही में थोड़ा घी डाल कर काजू, बादाम व मखाने डाल कर तल लें व उन को पीस लें. अब उसी कड़ाही में सूजी को भून लें व उस में बाकी घी, किशमिश, नारियल व पिसे हुए मेवे मिलाएं. अब गैस से उतार कर भूना हुआ आटा, सूजी का मिश्रण व चीनी या बूरा अच्छी तरह मिलाएं और थोड़ा ठंडा कर के लड्डू के आकार में बांध लें.

अगर तुम न होते -भाग 1 : अपूर्व ने संध्या मैडम की तस्वीर को गले से क्यों लगाया?

मौसम के बदलते मिजाज के कारण सुबह की हवा सर्द होने लगी थी. लेकिन मौसम साफ होने के कारण गुनगुनी धूप सुहानी लग रही थी. संध्या अपनी सुबह की चाय के साथ अखबार का आनंद लेने के लिए बालकनी में पड़ी कुरसी खींच कर बैठने ही लगी कि उस का मोबाइल बज उठा. मोबाइल लेने को वह उठती, उस से पहले चंद्रा फोन ले कर पहुंच गई.

‘इतनी सुबहसुबह किस का फोन आ गया?’ अपना चश्मा ठीक करते हुए संध्या बुदबुदाई. लेकिन जैसे ही स्क्रीन पर अपूर्व का नाम देखा, उस का चेहरा चमक उठा. लेकिन दूसरे ही पल उस ने एक छोटी बच्ची की तरह मुंह फुला लिया.

“प्रणाम मां. कैसी हैं आप?” उधर से अपूर्व बोला. लेकिन संध्या ने कुछ जवाब नहीं दिया. “बात नहीं करेंगी मां, गुस्सा हैं अभी भी मुझ से?”

“मैं होती ही कौन हूं तुम से गुस्सा करने वाली,” फोन को स्पीकर मोड पर रख ठंडी चाय सुड़कती हुई संध्या बोली. संध्या की आदत थी चाय ठंडी कर के पीने की.

“लेकिन मां, सुनिए तो,” अपूर्व को हंसी भी आई कि उस की मां सच में बच्ची ही है, “अच्छा, यह तो बताइए कि आप के स्कूल का काम कैसा चल रहा है?” अपूर्व ने बात को बदलना चाहा.

“जैसा भी चल रहा हो, तुम्हें क्या? अगर तुम्हें मां की इतनी ही फिक्र होती न, तो फोन करता. यों तरसाता नहीं मुझे. पता भी है, कान तरस गए तेरी आवाज सुनने को. और कहता है गुस्सा हो मां. हां हूं गुस्सा,” बोलती हुई संध्या का गला भर आया.

“अच्छा, सौरी मां,माफ कर दो मुझे,” कान पकड़ते हुए अपूर्व बोला. लेकिन वह अपनी मां को कैसे बताता कि उस का ऐक्सिडैंट हो गया था, इस कारण वह संध्या से बात नहीं कर पा रहा था. बात करता तो हमेशा की तरह अपनी कसम खिला कर पूछती कि कैसा है वह? तबीयत तो ठीक है उस की? खुद का ध्यान तो रख रहा है न वह? उस से भी मन न भरता, तो वीडियो कौलिंग करने को कहती. फिर तो सब पता चल ही जाता न. इसलिए अपूर्व ने इतने दिनों तक अपनी मां से बात नहीं की और झूठ बोल गया कि काम की व्यस्तता के चलते उसे फोन नहीं कर पाया.

“मां, मैं इंडिया आ रहा हूं” अपूर्व के मुंह से इंडिया आने की बात सुनते ही संध्या का सारा गुस्सा एक पल में हवा हो गया. लेकिन फिर लगा, कहीं वह उसे खुश करने के लिए झूठ तो नहीं बोल रहा?

“अरे, नहीं मां, मैं सच में इंडिया आ रहा हूं और कुछ दिनों के लिए नहीं, बल्कि इस बार हमेशा के लिए आप के पास आ रहा हूं.”

अपूर्व का हमेशा के लिए इंडिया आने की बात सुन कर संध्या की रुलाई फुट पड़ी. उसे तो लगा था औरों की तरह वह भी अमेरिकन लड़की से शादी कर के हमेशा के लिए वहीं का हो कर रह जाएगा. लेकिन आज अपूर्व ने अपने आने की बात कह कर उस के जीवन के कुछ दिन और बढ़ा दिए.

“मां, आप रो रही हो? एक मिनट एक मिनट, कहीं आप को यह तो नहीं लगा कि आप का बेटा बदल गया है और वह भी औरों की तरह अमेरिकन लड़की से शादी कर के हमेशा के लिए यहीं बस जाएगा? मां, आप ने ऐसा सोच भी कैसे लिया. क्या आप अपने बेटे को इतना ही जानती हैं? अच्छा, एक बात बताइए, आप की बहू का चुनाव मैं कैसे कर सकता हूं? वह तो आप का काम है,” बड़ी मासूमियत से अपूर्व बोला.

संध्या अपने आंसू पोंछती हुई बोली, “तू सच कह रहा है, बेटा?”

“हां मां, आप की कसम और मैं कभी आप की झूठी कसम नहीं खाता, पता है न आप को?” भावुक होते हुए अपूर्व बोला, “मां, मैं कैसे भूल सकता हूं कि अगर आप न होतीं, तो मैं न होता. आज मैं जो कुछ भी हूं, आप की वजह से हूं. और सच कहूं मां, आप से ज्यादा मैं बेचैन हूं आप से मिलने को. अब कुछ दिनों की बात है. फिर मैं और आप साथ चाय पिएंगे.”

जैसे सूखी धरती पर बारिश का पानी पड़ते ही उस से सोंधीसोंधी खुशबू आने लगती है, उसी तरह अपूर्व की बातों से संध्या का रोमरोम खिल उठा. अपूर्व के पूछने पर कि वहां गांव में सब कैसे हैं और उसे याद करते हैं कि नहीं, संध्या बोली, “यहां सब ठीक है और सब उसे बहुत याद करते हैं.”

कुछ देर और बात कर संध्या ने फोन रख दिया और सोचने लगी कि अगर अपूर्व न होता तो आज उस की ज़िंदगी कितनी बेरंग होती. अपूर्व ने ही उस की ज़िंदगी में ममता के रंग भरे. उस ने ही उस के दिल में ममता का दीप जलाया. उस की वजह से ही उसे एक मां होने का एहसास प्राप्त हुआ.

उधर फोन रख अपूर्व यह सोच कर मुसकरा उठा कि अब वह हमेशा के लिए अपनी मां के साथ जा कर रहेगा. गांव, घर और वहां के लोग, सब फिर अपने होंगे. फिर सुखदुख बांट कर हम सब साथ मिल कर होलीदीपावली मनाएंगे. “तुम इतना क्यों मुसकड़ा रहे हो, क्या गम है जिस को हाइड कर रहे हो…” जौन का गाना सुन कर अपूर्व की हंसी छूट गई. “व्हाई आर लौफिंग यू, यार? तुम्हारा हिंडी गाना…मेरी समझ से बाहर है,” जौन ने सफाई देनी चाहिए.

“तो फिर गाते ही क्यों हो?” अपनी हंसी पर लगाम लगाते हुए अपूर्व बोला, “कितनी बार कहा, गाने के बोल मत बिगाड़ो. लेकिन तुम तो हमारे हिंदी गाने की ऐसी की तैसी कर डालते हो.” अपूर्व की बात पर जौन ने अपनी गलती मानी और कहा, “आगे से वह अच्छे से गाएगा”.

दर्द-भाग 2 : जिंदगी के उतार चढ़ावों को झेलती कनीजा

तंगदस्ती के बावजूद मां ने कनीजा बी की पढ़ाईलिखाई की ओर खासा ध्यान दिया था. कनीजा बी ने भी अपनी बेवा, बेसहारा मां के सपनों को साकार करने के लिए पूरी लगन व मेहनत से प्रथम श्रेणी में 10वीं पास की थी और यों अपनी तेज बुद्धि का परिचय दिया था. मैट्रिक पास करते ही कनीजा बी को एक सरकारी दफ्तर में क्लर्क की नौकरी मिल गई थी. अत: जल्दी ही उन के घर की तंगदस्ती खुशहाली में बदलने लगी थी.

कनीजा बी एक सांवलीसलोनी एवं सुशील लड़की थीं. उन की नौकरी लगने के बाद जब उन के घर में खुशहाली आने लगी थी तो लोगों का ध्यान उन की ओर जाने लगा था. देखते ही देखते शादी के पैगाम आने लगे थे. मुसीबत यह थी कि इतने पैगाम आने के बावजूद, रिश्ता कहीं तय नहीं हो रहा था. ज्यादातर लड़कों के अभिभावकों को कनीजा बी की नौकरी पर आपत्ति थी.

वे यह भूल जाते थे कि कनीजा बी के घर की खुशहाली का राज उन की नौकरी में ही तो छिपा है. उन की एक खास शर्त यह होती कि शादी के बाद नौकरी छोड़नी पड़ेगी, लेकिन कनीजा बी किसी भी कीमत पर लगीलगाई अपनी सरकारी नौकरी छोड़ना नहीं चाहती थीं.

कनीजा बी पिता की असमय मृत्यु से बहुत बड़ा सबक सीख चुकी थीं. अर्थोपार्जन की समस्या ने उन की मां को कम परेशान नहीं किया था. रूखेसूखे में ही बचपन से जवानी तक के दिन बीते थे. अत: वह नौकरी छोड़ कर किसी किस्म का जोखिम मोल नहीं लेना चाहती थीं. कनीजा बी का खयाल था कि अगर शादी के बाद उन के पति को कुछ हो गया तो उन की नौकरी एक बहुत बड़े सहारे के रूप में काम आ सकती थी.

वैसे भी पतिपत्नी दोनों के द्वारा अर्थोपार्जन से घर की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ हो सकती थी, जिंदगी मजे में गुजर सकती थी. देखते ही देखते 4-5 साल का अरसा गुजर गया था और कनीजा बी की शादी की बात कहीं पक्की नहीं हो सकी थी. उन की उम्र भी दिनोदिन बढ़ती जा रही थी. अत: शादी की बात को ले कर मांबेटी परेशान रहने लगी थीं.

एक दिन पड़ोस के ही प्यारे मियां आए थे. वह उसी शहर के दूसरे महल्ले के रशीद का रिश्ता कनीजा बी के लिए लाए थे. उन के साथ एक महिला?भी थीं, जो स्वयं को रशीद की?भाभी बताती थीं. रशीद एक छोटे से निजी प्रतिष्ठान में लेखाकार था और खातेपीते घर का था. कनीजा बी की नौकरी पर उसे कोई आपत्ति नहीं थी.

महल्लेपड़ोस वालों ने कनीजा बी की मां पर दबाव डाला था कि उस रिश्ते को हाथ से न जाने दें क्योंकि रिश्ता अच्छा है. वैसे भी लड़कियों के लिए अच्छे रिश्ते मुश्किल से आते हैं. फिर यह रिश्ता तो प्यारे मियां ले कर आए थे. कनीजा बी की मां ने महल्लेपड़ोस के बुजुर्गों की सलाह मान कर कनीजा बी के लिए रशीद से रिश्ते की हामी?भर दी थी.?

कनीजा बी अपनी शादी की खबर सुन कर मारे खुशी के झूम उठी थीं. वह दिनरात अपने सुखी गृहस्थ जीवन की कल्पना करती रहती थीं. और एक दिन वह घड़ी भी आ गई, जब कनीजा बी की शादी रशीद के साथ हो गई और वह मायके से विदा हो गईं. लेकिन ससुराल पहुंचते ही इस बात ने उन के होश उड़ा दिए कि जो महिला स्वयं को रशीद की भाभी बता रही थी, वह वास्तव में रशीद की पहली बीवी थी.

असलियत सामने आते ही कनीजा बी का सिर चकराने लगा. उन्हें लगा कि उन के साथ बहुत बड़ा धोखा हुआ है और उन्हें फंसाया गया है. प्यारे मियां ने उन के साथ बहुत बड़ा विश्वासघात किया था. वह मन ही मन तड़प कर रह गईं. लेकिन जल्दी ही रशीद ने कनीजा बी के समक्ष वस्तुस्थिति स्पष्ट कर दी, ‘‘बेगम, दरअसल बात यह थी कि शादी के 7 साल बाद?भी जब हलीमा बी मुझे कोई औलाद नहीं दे सकी तो मैं औलाद के लिए तरसने लगा.

‘हम दोनों पतिपत्नी ने किसकिस डाक्टर से इलाज नहीं कराया, क्याक्या कोशिशें नहीं कीं, लेकिन नतीजा शून्य रहा. आखिर, हलीमा बी मुझ पर जोर देने लगी कि मैं दूसरी शादी कर लूं. औलाद और मेरी खुशी की खातिर उस ने घर में सौत लाना मंजूर कर लिया. बड़ी ही अनिच्छा से मुझे संतान सुख की खातिर दूसरी शादी का निर्णय लेना पड़ा. ‘मैं अपनी तनख्वाह में 2 बीवियों का बोझ उठाने के काबिल नहीं था. अत: दूसरी बीवी का चुनाव करते वक्त मैं इस बात पर जोर दे रहा था कि अगर वह नौकरी वाली हो तो बात बन सकती है. जब हमें, प्यारे मियां के जरिए तुम्हारा पता चला तो बात बनाने के लिए इस सचाई को छिपाना पड़ा कि मैं शादीशुदा हूं.

‘मैं झूठ नहीं बोलता. मैं संतान सुख की प्राप्ति की उत्कट इच्छा में इतना अंधा हो चुका था कि मुझे तुम लोगों से अपने विवाहित होने की सचाई छिपाने में कोई संकोच नहीं हुआ. ‘मैं अब महसूस कर रहा हूं कि यह अच्छा नहीं हुआ. सचाई तुम्हें पहले ही बता देनी चाहिए थी. लेकिन अब जो हो गया, सो हो गया.

‘वैसे देखा जाए तो एक तरह से मैं तुम्हारा गुनाहगार हुआ. बेगम, मेरे इस गुनाह को बख्श दो. मेरी तुम से गुजारिश है.’ कनीजा बी ने बहुत सोचविचार के बाद परिस्थिति से समझौता करना ही उचित समझा था, और वह अपनी गृहस्थी के प्रति समर्पित होती चली गई थीं.

कनीजा बी की शादी के बाद डेढ़ साल का अरसा गुजर गया था, लेकिन उन के भी मां बनने के कोई आसार नजर नहीं आ रहे थे. उस के विपरीत हलीमा बी में ही मां बनने के लक्षण दिखाई दे रहे थे. डाक्टरी परीक्षण से भी यह बात निश्चित हो गई थी कि हलीमा बी सचमुच मां बनने वाली हैं. हलीमा बी के दिन पूरे होते ही प्रसव पीड़ा शुरू हो गई, लेकिन बच्चा था कि बाहर आने का नाम ही नहीं ले रहा था. आखिर, आपरेशन द्वारा हलीमा बी के बेटे का जन्म हुआ. लेकिन हलीमा बी की हालत नाजुक हो गई. डाक्टरों की लाख कोशिशों के बावजूद वह बच नहीं सकी.

हलीमा बी की अकाल मौत से उस के बेटे गनी के लालनपालन की संपूर्ण जिम्मेदारी कनीजा बी पर आन पड़ी. अपनी कोख से बच्चा जने बगैर ही मातृत्व का बोझ ढोने के लिए कनीजा बी को विवश हो जाना पड़ा. उन्होंने उस जिम्मेदारी से दूर भागना उचित नहीं समझा. आखिर, गनी उन के पति की ही औलाद था.

रशीद इस बात का हमेशा खयाल रखा करता था कि उस के व्यवहार से कनीजा बी को किसी किस्म का दुख या तकलीफ न पहुंचे, वह हमेशा खुश रहें, गनी को मां का प्यार देती रहें और उसे किसी किस्म की कमी महसूस न होने दें. कनीजा बी भी गनी को एक सगे बेटे की तरह चाहने लगीं. वह गनी पर अपना पूरा प्यार उड़ेल देतीं और गनी भी ‘अम्मीअम्मी’ कहता हुआ उन के आंचल से लिपट जाता.

अब गनी 5 साल का हो गया था और स्कूल जाने लगा था. मांबाप बेटे के उज्ज्वल भविष्य को ले कर सपना बुनने लगे थे. इसी बीच एक हादसे ने कनीजा बी को अंदर तक तोड़ कर रख दिया.

वह मकर संक्रांति का दिन था. रशीद अपने चंद हिंदू दोस्तों के विशेष आग्रह पर उन के साथ नदी पर स्नान करने चला गया. लेकिन रशीद तैरतेतैरते एक भंवर की चपेट में आ कर अपनी जान गंवा बैठा. रशीद की असमय मौत से कनीजा बी पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा, लेकिन उन्होंने साहस का दामन नहीं छोड़ा.

उन्होंने अपने मन में एक गांठ बांध ली, ‘अब मुझे अकेले ही जिंदगी का यह रेगिस्तानी सफर तय करना है. अब और किसी पुरुष के संग की कामना न करते हुए मुझे अकेले ही वक्त के थपेड़ों से जूझना है. ‘पहला ही शौहर जिंदगी की नाव पार नहीं लगा सका तो दूसरा क्या पार लगा देगा. नहीं, मैं दूसरे खाविंद के बारे में सोच भी नहीं सकती.

‘फिर रशीद की एक निशानी गनी के रूप में है. इस का क्या होगा? इसे कौन गले लगाएगा? यह यतीम बच्चे की तरह दरदर भटकता फिरेगा. इस का भविष्य अंधकारमय हो जाएगा. मेरे अलावा इस का?भार उठाने वाला भी तो कोई नहीं. ‘इस के नानानानी, मामामामी कोई भी तो दिल खोल कर नहीं कहता कि गनी का बोझ हम उठाएंगे. सब सुख के साथी?हैं.

‘मैं गनी को लावारिस नहीं बनने दूंगी. मैं भी तो इस की कुछ लगती हूं. मैं सौतेली ही सही, मगर इस की मां हूं. जब यह मुझे प्यार से अम्मी कह कर पुकारता है तब मेरे दिल में ममता कैसे उमड़ आती है. ‘नहींनहीं, गनी को मेरी सख्त जरूरत है. मैं गनी को अपने से जुदा नहीं कर सकती. मेरी तो कोई संतान है ही नहीं. मैं इसे ही देख कर जी लूंगी.

‘मैं गनी को पढ़ालिखा कर एक नेक इनसान बनाऊंगी. इस की जिंदगी को संवारूंगी. यही अब जिंदगी का मकसद है.’ और कनीजा बी ने गनी की खातिर अपना सुखचैन लुटा दिया, अपना सर्वस्व त्याग दिया. फिर उसे एक काबिल और नेक इनसान बना कर ही दम लिया.

गनी पढ़लिख कर इंजीनियर बन गया. उस दिन कनीजा बी कितनी खुश थीं जब गनी ने अपनी पहली तनख्वाह ला कर उन के हाथ पर रख दी. उन्हें लगा कि उन का सपना साकार हो गया, उन की कुरबानी रंग लाई. अब उन्हें मौत भी आ जाए तो कोई गम नहीं.

फिर गनी की शादी हो गई. वह नदीम जैसे एक प्यारे से बेटे का पिता भी बन गया और कनीजा बी दादी बन गईं.

कनीजा बी नदीम के साथ स्वयं भी खेलने लगतीं. वह बच्चे के साथ बच्चा बन जातीं. उन्हें नदीम के साथ खेलने में बड़ा आनंद आता. नदीम भी मां से ज्यादा दादी को चाहने लगा था. उस दिन ईद थी. कनीजा बी का घर खुशियों से गूंज रहा था. ईद मिलने आने वालों का तांता लगा हुआ था.

अनुष्का-विराट संग चलती दिखी वामिका, देखें खूबसूरत फोटो

क्रिकेटर विराट कोहली औऱ अनुष्का शर्मा आएं दिन चर्चा में बने रहते हैं. हाल ही में विराट और अनुष्का अपनी बेटी के साथ वृदावन घूमने गए थें, जहां कि तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हुई थीं. हाल ही में विराट कोहली के इंस्टाग्राम पर एक तस्वीर शेयर की गई है, जिसमें वह अनुष्का और विराट अपनी बेटी का हाथ पकड़कर चला रहे हैं.

यह तस्वीर समुंद्र के किनारे कि है, जहां अनुष्का विराट बेटी का हाथ थामे नजर आ रहे हैं, बता दें कि यह तस्वीर पीछे की तरफ से ली गई है. जिसमें किसी का चेहरा नजर नहीं आ रहा है. इस प्यारी सी तस्वीर का खूबसूरत सा नाजारा लोगों  को खूब पसंद आ रहा है.

 

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विराट कि  इस तस्वीर पर  फैंस खूब कमेंट कर रहे हैं. नजर ना लगे, रब्बा बक्शियां, तू इ्ही मेहरबािया जैसे कमेंट आ रहे हैं. विराट ने इंस्टा पर शेयर किए गए पोस्ट पर  पंजाबी में लिखा है कि भगवान इतना सबकुछ देने के लिए मैं आपका शुक्रियां करता हूं,  बताते चले कि विराट कोहली इससे पहले नीम करोली बाबा के पास भी पहुंचे थें दर्शन करने के लिए. जिसकी तस्वीर 3 दिन बाद वायरल हुई थी.

जीत नामुमकिन नहीं -भाग 1 : जो सोचा वो किया

मुंबई के एलटीटी रेलवे स्टेशन पर मैं अपनी बेटी के साथ प्लेटफार्म पर ट्रेन की प्रतीक्षा कर रही थी. अपनी आदत के मुताबिक आसपास बैठे यात्रियों का मुआयना भी करती जा रही थी. अचानक मेरी नजर एक व्यक्ति पर पड़ी. उस की उम्र तकरीबन 45 वर्ष लग रही थी. कपड़ों से किसी अच्छे घर का जान पड़ता था. सामान के नाम पर एक छोटा सा बैग था, जिसे उस ने सीने से चिपका रखा था. बालदाढ़ी बेतरतीब तरीके से बढ़े हुए थे. वह चारों तरफ ऐसे देख रहा था मानो कोई उस के पीछे लगा हुआ हो और वह छुप रहा हो. चेहरे पर पसीने के साथसाथ डर और घबराहट भी स्पष्ट दिख रहे थे. मुझे उस का चेहरा कुछ जानापहचाना सा लग रहा था, मगर ठीक से याद नहीं आ रहा था. उस ने एक छड़ी भी कुरसी से टिका कर रखी थी. मैं ने उस के पैर देखे, मगर पैर तो सहीसलामत हैं और छड़ी ले कर चलने की यह कोई उम्र भी नहीं थी उस की.

तभी ट्रेन के आने की अनाउंसमेंट होने लगी और चारों तरफ अफरातफरी मच गई. मेरा भी ध्यान उस व्यक्ति की तरफ से हट गया. अगले ही पल ट्रेन आ गई और मैं भी अपनी बेटी के साथ अपनी सीट पर जा बैठी.

स्लीपर क्लास डब्बा था, इसलिए मैं ने बैठते ही खिड़की खोल दी. वैसे भी शाम होने वाली थी. तभी मेरी नजर खिड़की के बाहर गई. वह व्यक्ति उस छड़ी के सहारे मुश्किल से चल पा रहा था. मुझ से रहा नहीं गया और मैं नीचे उतर गई.

“आप का सीट नंबर क्या है मुझे बताइए…. मैं आप की मदद कर देती हूं,” मैं ने उस के सामने आते हुए कहा.

“गोरखपुर जाना है मुझे… अपने घर जाना है मुझे,” यह दो वाक्य उस ने कई बार दोहराया और मैं सुनती रही…. बाकी कुछ और पूछना ही भूल गई, क्योंकि यह आवाज तो सुंदर की थी.

‘हां… हां, यह तो सुंदर है. मेरा अपना सुंदर, जिस के साथ मैं ने जिंदगी के खूबसूरत समय को जिया,’ मैं ने ध्यान से उस के चेहरे को देखा, जो अभी भी भावविहीन सा ट्रेन को ही देखे जा रहा था.

“सुंदर… तुम सुंदर ही हो ना?” इतना कहते हुए मेरी आवाज भर्रा गई और आंखें डबडबा आईं.

“हां, मैं सुंदर… घर जाना है मुझे,” उस ने फिर दोहराया.

ट्रेन खुलने वाली थी, इसीलिए मैं ने झट से उस का हाथ पकड़ा और पास खड़े एक व्यक्ति से मदद मांगी. क्योंकि उस के पैरों में शायद कोई तकलीफ थी. वह ट्रेन में अकेले तो बिलकुल भी नहीं चढ़ पाता. उस व्यक्ति की मदद से मैं ने सुंदर को ट्रेन में चढ़ा दिया. उस के पास जनरल क्लास की टिकट थी, जो उस के शर्ट की पौकेट से मैं ने खुद निकाली. टीटी से बात कर के और पेनाल्टी भर कर मैं ने उसे उसी स्लीपर क्लास डब्बे में सीट दिलवा दी. मेरे इस क्रियाकलाप पर बेटी बेहद खीझ रही थी, “क्या है मां? तुम जहां भी जाती हो, मरीज ही खोजने लगती हो.”

हालांकि वह मेरी आदत से वाकिफ थी. मैं सिर्फ पेशे से ही नर्स नहीं थी, मैं तो दिल से भी नर्स थी, और कभी भी कहीं भी किसी की भी सेवा करने से पीछे नहीं हटती थी.

उस की बात सुन कर मैं ने कोई जवाब नहीं दिया और मुसकराते हुए खाने का बैग टटोलने लगी. ट्रेन अब तक अपनी रफ्तार पकड़ चुकी थी. मैं ने थोड़ा खाने का सामान लिया और जा कर सुंदर को दिया. साथ ही, पानी की एक बोतल भी. वह खाना देखते ही जल्दीजल्दी खाने लगा.

“सुंदर, तुम्हारी ये हालत कैसे हो गई? और तुम्हारे पैरों को क्या हुआ है?” मैं ने दो बार अपना सवाल दोहराया, मगर सुंदर ने कोई जवाब नहीं दिया. जैसे कि वह मेरी बात ही नहीं सुन रहा हो.

मैं अपनी सीट पर जा कर बैठ गई. ट्रेन गंतव्य की ओर आगे बढ़ रही थी और मैं अपने अतीत की ओर पीछे जा रही थी.

25 साल पहले जब मैं और सुंदर गोरखपुर के एक कसबाई इलाके में पड़ोसी हुआ करते थे. बचपन से ले कर कालेज तक हम दोनों प्यार की राह पर ही चलते रहे, मगर जब बात शादी की आई तो सुंदर ने साफ इंकार करते हुए कहा, ” देखो नीता, इस प्यारमुहब्बत को बचपन का खेल समझो बस…. सारी जिंदगी हम यह खेल नहीं खेल सकते. हम दोनों ही गरीब परिवार से हैं. आपस में शादी कर के हम दोनों जिंदगीभर गरीब ही रहेंगे. मैं किसी अमीर परिवार की लड़की से शादी करना चाहता हूं और मेरी मानो तो तुम भी किसी पैसे वाले घर में शादी करने की कोशिश करो.”

सुंदर का प्यार के प्रति यह दृष्टिकोण देख कर मैं तो दंग रह गई थी. उस के बाद फिर मैं सुंदर से कभी नहीं मिली.

मातापिता ने मेरी शादी एक मामूली से शिक्षक हेमंत के साथ कर दी. हेमंत और उस का परिवार बहुत अच्छे इनसान थे. उन्होंने ही मुझे नर्स की ट्रेनिंग करवाई और शहर के मैडिकल कालेज में मुझे नर्स की नौकरी भी मिल गई.

मैं जब अपने अतीत से बाहर आई तो रात काफी हो चुकी थी. मैं फिर सुंदर के पास गई, देखा तो वह सो चुका था. उस ने अपना बैग अभी भी सीने से दबा रखा था. मैं ने धीरे से वह बैग लिया और अपनी सीट पर आ गई.

बैग में कुछ कागज थे. मैं ने लाइट जलाई और उन कागजों को पढ़ने लगी. नर्स होने के नाते मुझे समझने में देर नहीं लगी कि सुंदर मधुमेह की गंभीर अवस्था से जूझ रहा था. उस के पैरों में गैंग्रीन हो चुका था और वह डिमेंशिया नामक एक मानसिक बीमारी का शिकार भी हो चुका था. उस के यह सारे रिपोर्ट मुंबई के एक सरकारी अस्पताल के थे. मेरी समझ में आ गया कि हो ना हो, सुंदर अपने सारे रिपोर्ट ले कर गोरखपुर जा रहा था और मतिभ्रम के कारण उसे ज्यादा कुछ याद नहीं है. अब उस के अतीत के बारे में तो मैं कुछ भी नहीं जानती थी. बैग में भी उस के परिवार के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. मुंबई का एक पता लिखा हुआ था. मोबाइल नंबर भी था. मैं ने सोचा कि अभी तो बहुत रात हो चुकी है, कल सुबह इस नंबर पर फोन करूंगी.

सुबह उठ कर मैं ने सुंदर को चायनाश्ता कराया. मुझे कोई आश्चर्य नहीं हुआ कि वह मुझे अभी भी नहीं पहचान रहा था, क्योंकि अब मैं उस की बीमारी समझ चुकी थी. मधुमेह के कारण ही सुंदर डिमेंशिया का शिकार हुआ था. मैं ने उक्त नंबर पर फोन भी किया, मगर मोबाइल बंद था. अभी गोरखपुर आने में काफी समय था, लेकिन मैं सुंदर को ले कर परेशान हो रही थी.

आखिर कहां जाएगा वह? गोरखपुर के उस के घर में कोई होगा भी या नहीं?
काफी सोचविचार के बाद मैं ने फैसला किया कि सुंदर जब तक पूरी तरह ठीक नहीं हो जाता, तब तक मैं उसे अपने घर में ही रखूंगी. मैं ने हेमंत से भी इस विषय पर बात कर लिया.

उन्होंने हमेशा मेरे फैसले का मान रखा है तो फिर इस बार कैसे मना कर सकते थे.

लेकिन हां, मैं ने अपने और सुंदर के रिश्ते के बारे में हेमंत से कुछ नहीं कहा. बस इतना बताया कि वह मेरे मायके में मेरा पड़ोसी हुआ करता था.

घर आ कर मैं ने सुंदर को अस्पताल में दिखलाया, उस के पैरों की जांच करवाई और भी कई जांच करवाने के बाद मुझे पता चला कि सुंदर गलत खानपान, अव्यवस्थित जीवनशैली और मानसिक अवसाद के कारण डायबिटीज टाइप 2 बीमारी का शिकार हो चुका है.

इलाज के अभाव में उस का पूरा शरीर इस बीमारी से प्रभावित हो चुका था. गनीमत यह थी कि उस के गुर्दों पर ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ा था, वरना उस का मस्तिष्क, उस की आंखें और उस के पैर का तो बुरा हाल था.

 

ऋतिक रौशन के घर बजेगी शहनाई, साल के आखिर में करेंगे दूसरी शादी!

ऋतिक रौशन आज अपना 49वां जन्मदिन मना रहे हैं, इस खास दिन पर ऋतिक के फैंस भी उन्हें बधाइयां देते हुए नजर आ रहे हैं. ऋतिक रौशन ऐसे एक्टर हैं जो अपनी फिल्मों के साथ-साथ अपनी पर्सनल लाइफ को लेकर भी चर्चा में बने रहते हैं.

ऋतिक रौशन का नाम इन दिनों सबा आजाद के साथ जोड़ा जा रहा है, ऋतिक का नाम इन दिनों सबा के साथ जोड़ा जा रहा है. पिछले कुछ दिनों से इन दोनों के कई जगह एक साथ स्पॉट किया गया है. जिससे यह साफ पता चल रहा है कि यह दोनों एक दूसरे को डेट कर रहे हैं.

 

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पिछले दिनों एक तस्वीर सामने आई थी, जिसमें सबा ऋतिक के परिवार के साथ में नजर आईं थी. अब इन दोनों को लेकर एक बड़ी खबर सामने आ रही है कि जल्द दोनों शादी करने वाले हैं. हालांकि अभी तक सबा और ऋतिक ने इस पर खुलकर बात नहीं कि है.

इसके साथ ही यह भी खुलासा हुआ है कि इन दोनों की शादी ज्यादा ग्रैंड नहीं होने वाली है, इसमें परिवार के कुछ सदस्य ही मौजूद रहेंगे.  ऋतिक और सबा जल्द इसको लेकर बात करने वाले हैं.खैर ऋतिक के फैंस को भीइनकी दूसरी शादी का इंतजार है.

अगर वर्कफ्रंट कि बात करें तो ऋतिक रौशन ने कुछ बताया नहीं है.

मनचला-भाग 2 : किस वजह से हुआ कपिल का मन बेकाबू

कपिल ने अपने पास का दरवाजा खोलते हुए कहा, ‘‘पीछे नहीं, यहां बैठो. लोग मुझे कहीं तुम्हारा ड्राइवर न समझ बैठें.’’ लड़की फिर हंस पड़ी और अगली सीट पर जल्दी से बैठ गई.

हरीबत्ती हो चुकी थी और पीछे वाले बेचैनी से हौर्न पर हौर्न बजा रहे थे. कपिल ने जल्दी से कार आगे बढ़ा दी. कपिल के दिमाग में बहुत सारी बातें एकसाथ चल रही थीं. कुछ दिनों पहले ही समाचारपत्रों में यौन अपराध संबंधी कई समाचार आए थे. साउथ दिल्ली और रोहिणी में कई लड़कियां धंधा करते रंगेहाथों पकड़ी गई थीं. इन में से अधिकतर लड़कियां शिक्षित व अच्छे घरों की थीं. यही नहीं, एक तो 2-3 वर्ष पहले मिस इंडिया भी रह चुकी थी. कालेज की लड़कियों को फैशन या मादक द्रव्यों की आदत के कारण ऊपरी आमदनी के अतिरिक्त कमाई का आसान रास्ता और क्या हो सकता है?

जब से फिल्म ‘आस्था’ परदे पर आई है, तब से पता चला कि शादीशुदा औरतें भी मौका पा कर, अपना जीवन स्तर ऊंचा करने के लिए, देहव्यापार करने लगी हैं.

कपिल ने सोचा, तो क्या यह लड़की भी उन में से एक है? क्या यह उपलब्ध है? क्यों न जानने की कोशिश की जाए? शारीरिक रिश्तों में विविधता का अपना अलग ही आकर्षण होता है. टोह लेने के लिए कपिल ने पूछा, ‘‘तुम्हारा नाम क्या है?’’

‘‘मारिया,’’ लड़की ने कहा. ‘‘अच्छा नाम है,’’ कपिल मुसकराया, ‘‘पढ़ती हो?’’

‘‘पढ़ती थी, पर अब कालेज छोड़ दिया,’’ मारिया ने नीचे देखते हुए कहा. ‘‘क्यों?’’ कपिल ने पूछा

‘‘पिता टीबी के मरीज हैं, नौकरी नहीं करते,’’ मारिया ने कहा, ‘‘और मां को दमा है. छोटा भाई स्कूल में पढ़ता है. सारे घर की जिम्मेदारी मुझ पर आ पड़ी है.’’ ‘‘बड़े दुख की बात है,’’ कपिल ने देखा, मारिया बहुत उदास दिखाई दे रही है.

अचानक मारिया मुसकरा दी, ‘‘सर, दुनिया है, सब चलता है… दुखी होने से क्या होगा?’’ ‘‘सो तो ठीक है,’’ कपिल ने पूछा, ‘‘पर फिर करती क्या हो?’’

‘‘बस, ऐसे ही,’’ मारिया ने खिड़की से बाहर देखते हुए कहा, ‘‘गुजारा कर लेती हूं…कुछ न कुछ काम मिल ही जाता है.’’ ‘‘कैसा काम?’’ कपिल ने कुरेदा.

‘‘सर,’’ मारिया ने एक क्षण रुक कर कपिल को देखा और धीरे से कहा, ‘‘क्या आप 500 रुपए उधार देंगे?’’ कपिल का अनुमान सही था कि वह लड़की उपलब्ध है. उस के जीवन में यह पहला अनुभव है. शरीर में फुरफुरी दौड़ गई. जो केवल पढ़ा और सुना था, वास्तविक बन कर सामने आ गया था.

‘‘यह क्या तुम्हारी फीस है?’’ कपिल ने पूछा. ‘‘नहीं, हजार, 2 हजार रुपए भी मिल जाते हैं, पर आज बहुत जरूरत है. 500 रुपए से काम चला लूंगी…राशन नहीं लूंगी तो खाना नहीं बनेगा.’’

कपिल ने मारिया के शरीर पर नजर दौड़ाई. जो कुछ देखा, बहुत अच्छा लगा, फिर पूछा, ‘‘कोई ठिकाना है क्या?’’ ‘‘है तो,’’ मारिया ने कहा, ‘‘साउथ दिल्ली में एक गैस्टहाउस है, पर किराए के अतिरिक्त वहां के प्रबंधकों को भी कुछ अलग से देना पड़ता है.’’

कपिल ने मन ही मन अनुमान लगाया कि ऐसे सौदे में क्रैडिट कार्ड से काम नहीं चलेगा. इस समय जेब में लगभग 1,200 रुपए हैं, क्या इतना काफी होगा? इस से पहले कि कपिल आगे पूछता, उस के मोबाइल फोन की ‘पिप…पिप… पिप…’ ने चौंका दिया.

‘‘हैलो,’’ उस ने कहा. ‘‘हाय पप्पा,’’ बेटी मृदुला के स्वर में उत्साह था.

‘‘हाय, मेरी प्यारी गुडि़या,’’ कपिल ने मुसकरा कर पूछा, ‘‘कैसे याद आ गई? अभीअभी तो घर से निकला हूं. रुपए चाहिए तो मां से ले लो.’’ ‘‘अरे, नहीं पप्पा,’’ मृदुला ने कहा, ‘‘आप को याद दिला रही थी, मम्मा का जन्मदिन आ रहा है, एक सुंदर सा कार्ड और एक बहुत बढि़या उपहार खरीदने चलना है. आज चलेंगे न?’’

कपिल ने मारिया की ओर देखा. वह चुपचाप बैठी थी. बेटी मृदुला भी इतनी ही बड़ी होगी. अचानक एक अपराधबोध की भावना ने जन्म लिया, क्या जो वह करने जा रहा है, उचित है?

‘‘पापा,’’ मृदुला ने बेसब्री से पूछा, ‘‘सुन रहे हैं?’’ ‘‘सुन रहा हूं, गुडि़या रानी,’’ कपिल ने उत्तर दिया, ‘‘पर आज नहीं, कल चलेंगे.’’

‘‘ठीक है.’’ कपिल ने फोन बंद कर दिया. कुछ देर तक कार चलती रही. दोनों चुप थे.

‘‘सर,’’ सहसा मारिया ने चुप्पी तोड़ी, ‘‘आप ने क्या सोचा?’’ ‘‘तुम्हारे गैस्टहाउस वाले मैनेजर को कितना रुपया देना होगा?’’ कपिल ने पूछा. मारिया से संबंध बनाने की

इच्छा ने फिर जोर मारा. सोचा, क्या उचित है और क्या अनुचित, बाद में देखा जाएगा. मारिया ने कहा, ‘‘कुछ ज्यादा रुपया नहीं लगेगा.’’

‘‘फिर भी,’’ कपिल ने कहा, ‘‘वहां पहुंच कर मूर्ख नहीं बनना है, वैसे जगह सुरक्षित तो है न?’’ यह प्रश्न वह रोज सुनती थी और उत्तर उस ने तोते की तरह रट रखा था. इस से पहले कि वह उत्तर देती, कपिल का मोबाइल फोन फिर से रिंग हुआ.

‘‘हैलो,’’ कपिल ने आहिस्ता से कहा. ‘‘हाय,’’ पत्नी नूमा का परिचित स्वर सुनाई दिया.

‘‘हाय,’’ कपिल ने पूछा, ‘‘क्या कोई आदेश देना बाकी रह गया?’’ ‘‘एक अच्छी खबर है,’’ नूमा ने पुलकित स्वर में कहा, ‘‘सोचा, तुम्हें दफ्तर पहुंचने से पहले ही सुना दूं.’’

‘‘तुम से अच्छी खबर की उम्मीद तो नहीं है,’’ कपिल ने मंद मुसकान से कहा, ‘‘मुझे बहुत डर लगता है.’’ ‘‘हिश्श…’’ नूमा ने कहा, ‘‘बेशर्म कहीं के. बल्लू का फोन अभीअभी आया था.’’

‘‘बल्लू का?’’ कपिल के स्वर में हर्ष और आश्चर्य का मिश्रण था, ‘‘क्या कहा, उस ने?’’ ‘बल्लू’ यानी बलराम, उन का पुत्र सेना में कप्तान था और जोधपुर के पास सीमा पर तैनात था.

‘‘बोला…’’ नूमा ने गद्गद कंठ से कहा, ‘‘इस बार मेरे जन्मदिन पर अवश्य आएगा. एक सप्ताह की छुट्टी मिल गई है.’’ ‘‘वाह,’’ कपिल ने खुश हो कर कहा, ‘‘ठीक है, खूब जश्न मनाएंगे.’’

‘‘सुनो,’’ नूमा ने कहा. ‘‘हां, सुन रहा हूं, पर जल्दी कहो, ट्रैफिक बहुत है,’’ कपिल ने कहा.

‘‘तो ठीक है, जब घर आओगे, तभी कहूंगी.’’ ‘‘अब कह भी दो,’’ कपिल ने कहा.

‘‘बल्लू के लिए जो लड़कियां हम ने चुनी हैं, उन के अभिभावकों से हम मिलने का समय ले लेते हैं.’’ ‘‘ठीक है,’’ कपिल ने कहा, ‘‘तुम जो ठीक समझो, वही करो. अब फोन बंद करता हूं.’’

कपिल ने फोन बंद कर दिया और सोचा, इतना सुनहरा अवसर मिला है और सब बाधाएं खड़ी कर रहे हैं. खैर, दफ्तर भी फोन करना है कि आने में देर होगी. इतना दुर्लभ अवसर चूकना नहीं चाहिए?

‘‘तो फिर किधर चलना है?’’ कपिल ने कहा, ‘‘मुझे खेद है. यह फोन बहुत तंग कर रहा है.’’ मारिया ने मादक मुसकान से कहा, ‘‘तो फिर फोन बंद कर दीजिए या बैटरी निकाल लीजिए.’’

‘‘बहुत समझदार और चतुर हो,’’ कपिल ने हंसते हुए कहा, ‘‘बस, एक फोन दफ्तर में करना है, ताकि बाकी समय चैन से गुजरे.’’ इस से पहले कि कपिल दफ्तर का नंबर लगाता, फोन बज उठा.

‘‘अब कौन है?’’ कपिल ने नाराजगी दिखाते हुए कहा, ‘‘हैलो.’’ ‘‘सर,’’ उधर से आवाज आई, ‘‘मैं मनोहर बोल रहा हूं.’’

मनोहर महाप्रबंधक का निजी सचिव था. उस के स्वर में घबराहट थी. ‘‘हां, बोलो मनोहर, क्या बात है?’’ कपिल ने कहा, ‘‘जल्दी बोलो, मुझे

एक जरूरी काम है, आने में देर हो सकती है.’’ ‘‘सर, आप तुरंत यहां आ जाइए,’’ मनोहर ने जरा ऊंचे स्वर में कहा, ‘‘मजदूरों ने साहब का घेराव कर रखा है और नारे लगा रहे हैं.’’

‘‘ओह,’’ कपिल ने क्रोध से कहा, ‘‘क्या सबकुछ आज ही होना है? ठीक है, मैं आ रहा हूं. तुम पुलिस को सूचना दे दो. शायद जरूरत पड़ जाए.’’ ‘‘जी, सर,’’ मनोहर ने कहा, ‘‘पर आप जल्दी से जल्दी आइए.’’

कपिल ने खेदपूर्वक एक बार फिर मारिया को देखा और सोचा, क्या गजब की लड़की है, क्या फिर मुलाकात होगी? ‘‘मुझे खेद है,’’ कपिल ने सिर हिलाते हुए कहा, ‘‘आज का मुहूर्त शायद ठीक नहीं है. तुम्हें कहां छोड़ दूं?’’

मारिया के चेहरे से कुछ पढ़ पाना कठिन था, न तो मायूसी का भाव था और न ही खेद का. उस ने हौले से कहा, ‘‘यहीं उतार दीजिए.’’

 

Winter 2023 : छोटी सी लौंग, बड़े काम की !

सर्दी हो या गर्मी हर मौसम में लौंग का सेवन फायदेमंद होता है. कड़ाके की सर्दियों में अदरक , दालचीन और लौंग की चाय सभी को पसंद आती है. एक लौंग कई दर्द को भगाने का काम करता है. एक अच्छे एंटी औक्सीडेंट का काम करती है लौंग. यह एक बेहद स्वादिष्ट एवं सुगंधित मसाले के रूप में देखा जाता है परन्तु वास्तव में यह दवा भी साबित होती है. इसमें कैल्शियम, आयरन, फास्फोरस, सोडियम, पोटैशियम, विटामिन ए और सी पाया जाता है. एंटीसेप्टिक गुणों के कारण लौंग चोट, घाव, खुजली और संक्रमण में काफी उपयोगी होती है. इसका उपयोग कीटों के काटने या डंक मारने पर किया भी जाता है. इसे किसी पत्थर आदि पर पानी के साथ घिस कर लगाया जाता है. नाजुक त्वचा पर इसे नहीं लगाना चाहिए.

भारत के दक्षिण भाग में बहुतायत मात्रा में उगाई जाने वाली लौंग का वृक्ष यूं तो बहुत ही हरे रंग का होता है लेकिन इसके बावजूद एक खासियत जो दिखलाई देती है वह यह है कि जहां पतझड़ के मौसम में सभी वृक्ष अपने समस्त पत्तों का परित्याग कर देते हैं वहीं लौंग का वृक्ष इस मौसम में भी पूरी हरियाली धारण किये रहता है. इतना ही नहीं, इसमें से बहुत ही अच्छी मनमोहक सुगंध भी आती रहती है जो अधिकांश आते-जाते लोगों का अनायास ही मनमोह लेती है. और तो और, जब लौंग के वृक्ष की कलियां लाल हो उठती हैं, तब इन्हें तोड़कर सूर्य की किरणों में कुछ दिनों तक रख दिया जाता है और जब कलियां सूखने के उपरांत काली पड़ जाती हैं तो इसे लौंग के नाम से पुकारने लगते हैं जिसका हम प्राय: घरों में इस्तेमाल कभी मसाले के रूप में तो कभी औषधि के रूप में करते हैं. आयुर्वेद में लौंग को एक महत्वपूर्ण औषधी के रूप में बताया गया है.  तो आईये जानते है लौंग को एक महत्वपूर्ण औषधीय गुणों के बारे में –

* मसूड़ों को मजबूत बनाता है लौंग-  अगर आप भी मसूड़ों को लेकर परेशान हैं तो लौंग द्वारा निर्मित दंत मंजन का उपयोग करके समाधान ढूंढ़ सकते हैं क्योंकि ऐसा करने पर जहां व्यक्ति के दांत बहुत ज्यादा चमकने लगते हैं वहीं दूसरी ओर यह मसूड़ों को विशेष शक्ति प्रदान करने में भी अपनी एक खास भूमिका दर्ज कराता है. इस प्रकार, लौंग का मंजन एक पंथ दो काज की कहावत को चरितार्थ करता हुआ लोगों के लिए बहुत अधिक फायदेमंद साबित हो रहा है.

* अस्थमा में लौंग का सेवन काफी लाभदायक होता है – इस समय 4 -5 लौंग लें और 125 मिली पानी में 5 मिनट तक उबालें. इस मिश्रण को छानकर इसमें एक चम्मच शुध्द शहद मिलाएं और गरम-गरम पी लें. रोज दो से तीन बार यह काढ़ा पीने से लाभ होगा.

* प्राय: लौंग से बने लवंगादि चूर्ण को नियमित खाने से व्यक्ति का सिर दर्द पल भर में ही छूमंतर हो जाता है और पुरानी खांसी से भी निजात मिल जाती है.

*  वैसे तो छोटी सी लौंग रोचक द्रव्यों से उत्पन्न होने वाले शूल में भी काफी मदद करती है किन्तु, इसके अलावा आप आंखों की ज्योति बढ़ाने, दमा, हिचकी, तपेदिक, दांत दर्द तथा कमर दर्द इत्यादि रोगों के समाधान हेतु भी लौंग का बखूबी इस्तेमाल कर सकते हैं. इस तरह आप देखेंगे कि एक छोटी सी लौंग के वाकई कई फायदे हैं जो भगवान रूपी देन अनमोल शरीर के कई रोगों का नाश कर हमें स्वस्थ बना देती है. डाक्टरों की भी यही नेक सलाह है कि हमारे द्वारा रोजाना एक लौंग का उपयोग अवश्य किया जाना चाहिए. निस्संदेह इससे भविष्य में काफी लाभ मिलेगा.

*  चिकित्सकों की राय में हमारे घरों में मौजूद लौंग से शरीर में तेजी से दौड़ने वाले रक्त को भी शुद्ध किया जा सकता है जबकि यह मस्तिष्क को मजबूत करने में भी काफी सक्षम होता है.

*  यदि किसी व्यक्ति को दिनभर में अधिक प्यास लगती है या फिर हर वक्त उल्टी आने की शिकायत रहती है तो ऐसी स्थिति में लौंग का उबला हुआ पानी पिलाएं. यकीनन, लाभप्रद होगा.

*  यूं तो व्यक्ति के चेहरे पर फोड़े-फुंसी सदैव दस्तक देते ही रहते हैं लेकिन यदि आप लौंग को सिल पर घिसकर अपनी त्वचा पर लगाएंगे तो बेशक  फोड़े-फुंसी से निजात पाएंगे और चेहरा बिना दाग-धब्बों के सुंदर दिखाई देने लगेगा.

विक्की : आखिर कैसे सबका चहेता बन गया अक्खड़ विक्की

नई कामवाली निर्मला का कामकाज, रहनसहन, बोलचाल आदि सभी घरभर को ठीक लगा था. उस में उन्हें दोष बस यही लगा था कि वह अपने साथ अपने बेटे विक्की को भी लाती थी. निर्मला का 3-4 वर्षीय बेटा बहुत शैतान था. नन्ही सी जान होते हुए भी वह घरभर की नाक में दम कर देता था. गजब का चंचल था, एक मिनट भी चैन से नहीं रहता था. और कुछ नहीं तो मुंह ही चलाता रहता था. कुछ न कुछ बड़बड़ाता ही रहता था. टीवी या रेडियो पर जो संवाद या गाना आता था, उस को विक्की दोहराने लगता था. घर में कोई भी कुछ बोलता तो वह उस बात का कुछ भी जवाब दे देता. घर के जिस किसी भी प्राणी पर उस की नजर पड़ती, वह उस से बोले बिना नहीं रहता था. दादाजी को वह भी दादाजी, मां को मां, पिताजी को पिताजी एवं छोटे बच्चों को उन के नाम से या ‘दीदी’, ‘भैया’ आदि कह कर पुकारता रहता था. घर के पालतू कुत्ते सीजर को भी वह नाम ले कर बुलाता था.

जब आसपास कोई न होता तो विक्की अपने बस्ते में से किताब निकाल कर जोरजोर से पाठ पढ़ने लगता. फिर पढ़ने में मन न लगने पर अपनी मां से बतियाने लगता. मां जब डांट कर चुप करातीं तो कहने लगता, ‘‘मां विक्की को डांटती हैं… मां विक्की को डांटती हैं. मां की शिकायत पिताजी से करूंगा. मां बहुत खराब हैं.’’ इस बड़बड़ाहट से झुंझला कर उस की मां जब उसे जोर से डांटतीं तो विक्की कुछ देर के लिए चुप हो जाता. मगर थोड़ी देर बाद उस का मुंह फिर चलने लगता था. कभी वह मुंडेर पर आ बैठी चिडि़या को बुलाने लगता तो कभी पौधों से बातें करने लगता था. कहने का मतलब यह कि उस का मुंह सतत चलता ही रहता था. सिर्फ मुंह ही नहीं, विक्की के हाथपांव भी चलते थे. वह काम कर रही अपनी मां की आंख बचा कर घर में घुस जाता था. दादाजी के कमरे में घुस कर उन से पूछने लगता, ‘‘दादाजी, सो रहे हो? दिनभर सोते हो?’’

पिताजी को दाढ़ी बनाते देखते ही प्रश्न करता, ‘‘दाढ़ी बना रहे हो, पिताजी?’’ मां को जूड़ा बांधते देख उस का प्रश्न होता, ‘‘इतना बड़ा जूड़ा? मेरी मां का तो जरा सा जूड़ा है.’’ गुड्डी और मुन्ने को पढ़ते या खेलते देख वह उन के पास पहुंच कर कभी बोल पड़ता या ताली पीटने लगता. सीजर के कारण ही वह थोड़ा सहमासहमा रहता था, नहीं तो सारे घर में धमाल करता रहता. फिर भी कुत्ते को चकमा दे कर वह घर में घुस ही जाता था. सीजर यदि उस पर लपकता तो वह चीखता हुआ अपनी मां के पास भाग जाता. वहां पहुंच कर वह जाली वाले द्वार के पीछे से सीजर से बतियाता था. कहने का मतलब यह कि वह न तो एक स्थान पर बैठ पाता था, न उस का मुंह ही बंद होता था. उस का स्वर घर में गूंजता ही रहता था.

विक्की की इन शरारतों से तंग हो कर सभी ने उस की मां को आदेश दिया, ‘‘तुम इस बच्चे को यहां मत लाया करो.’’ निर्मला ने अपनी विवशता जाहिर करते हुए स्पष्ट शब्दों में हर किसी को कहा, ‘‘घर पर कोई संभालने वाला होता तो न लाती, मजबूरी में लाती हूं.’’ वैसे निर्मला ने पहले दिन ही बता दिया था, ‘‘मेरा घरवाला दिन निकलते ही काम पर जाता है. उस के अलावा घर में और कोई है नहीं, इसीलिए विक्की को साथ लाना पड़ता है. घर में किस के सहारे छोड़ूं. रिश्तेदार यदि पासपड़ोस में होते तो उन के यहां छोड़ आती. अगर एक दिन का मामला होता तो पड़ोसियों की मदद ले लेती, पर यह तो रोज का ही झमेला है, इसीलिए विक्की को साथ लाना पड़ता है. 3-4 साल की इस जरा सी जान को किसी के भरोसे छोड़ने का मन भी नहीं होता क्योंकि यह बड़ा शैतान है. एक पल चैन से नहीं बैठता. ‘‘एक रोज गलियों से निकल कर सड़क पर जा पहुंचा था. वहां ट्रक के नीचे आतेआते बचा. एक बार कुएं में झांकने पहुंच गया था. इस के कारण सब को परेशानी होती है. पर करूं क्या? यह मुआ मार से भी नहीं सुधरा. इस के पिता तो डांटतेफटकारते ही रहते हैं.’’

निर्मला की इस विवशता से भलीभांति परिचित होते हुए भी घरभर के सदस्य उस से कहते ही रहते, ‘‘तू कुछ भी कर के इस शैतान से हमें बचा.’’ बारबार के इन तकाजों से परेशान हो कर निर्मला उन लोगों से ही पूछ बैठती थी, ‘‘आप ही बताइए, मैं क्या करूं?’’

तब लेदे कर एक ही मार्ग सभी को सूझता था. वे यही सलाह देते थे, ‘‘तू पीछे वाले आंगन में ही इसे बंद रखा कर. घर में न घुसने दिया कर.’’ निर्मला को पता था कि यह सलाह निरर्थक है, क्योंकि बरतन, कपड़े, सफाई आदि काम करने में उसे लगभग दोढाई घंटे लग जाते थे. इतनी देर तक विक्की को वहां कैद रखना संभव नहीं था. कैद रखने पर भी उस का मुंह तो चलता ही रहता था. वह जाली वाले द्वार के पीछे खड़ाखड़ा शोर मचाता ही रहता और दरवाजा भड़भड़ाता रहता. घर के किसी भी प्राणी पर नजर पड़ते ही विक्की उसे पुकारने लगता. टैलीफोन की घंटी बजते ही ‘हैलोहैलो’ कहने लगता. दादाजी को जाप करते देख वह भी उन के सुर में सुर मिलाने लगता. सीजर को देखते ही उसे छेड़ कर भूंकने या गुर्राने पर विवश कर देता. तब दोनों में खासा दंगल सा छिड़ जाता. जाली के पीछे बड़े मजे से खड़ा विक्की क्रोध से उबलते सीजर का खूब मजा लेता रहता. उस के कहकहे फूटते रहते. तब उस की मां की गुहार मचती. वे काम छोड़ कर विक्की को डांट कर दरवाजे से दूर भगातीं. थोड़ी देर शांति हो जाती. किंतु कुछ देर बाद ही विक्की का ‘वन मैन शो’ फिर शुरू हो जाता.

रोज की इस परेशानी से क्षुब्ध हो कर सभी ने बारबार विचार किया कि निर्मला को काम से छुट्टी दे दें और कोई दूसरी कामवाली रख लें. किंतु उस की साफस्वच्छ छवि, उस के कामकाज का सलीका, विनम्र स्वभाव, वक्त की पाबंदी, कम से कम नागे करने की प्रवृत्ति जैसे गुणों के कारण वे ऐसा साहस न कर पाए. वैसे भी कामवालियों का उन का अभी तक का अनुभव अच्छा नहीं रहा था. किसी ने बरतनों में चिकनाई छोड़ी थी तो किसी ने घर को ढंग से बुहारा नहीं था. किसी ने कपड़ों का मैल नहीं छुड़ाया था तो किसी ने आएदिन नागे करकर के उन्हें परेशान किया था. कोई बारबार पेशगी मांगती रही थी तो कोई पेशगी में ली गई रकम ले कर भाग गई थी. ऐसे कई कटु अनुभव हुए थे उन लोगों को. लेकिन निर्मला के काम से सभी प्रसन्न थे. वह हाथ की भी सच्ची थी. कई बार उस ने नोट व गहने स्नानघर एवं शयनकक्ष से उठाउठा कर दिए थे. लेकिन विक्की के कारण सभी परेशान रहते थे. किंतु एक रोज अनपेक्षित हो गया. हुआ यों कि विक्की टैलीफोन कर रहे पिताजी के पास जा पहुंचा एवं अपनी बाल सुलभ हंसी के साथ बीचबीच में ‘हैलोहैलो’ कहने लगा.

पिताजी ने टैलीफोन पर बात जारी रखते हुए उसे संकेतों से दूर भगाने का प्रयास किया, मगर वह वहां से टला नहीं. मुसकराते हुए ‘हैलोहैलो’ कहता रहा. पिताजी ने सहायता के लिए चारों तरफ नजर दौड़ाई मगर कोई दिखा नहीं. इसी उधेड़बुन में वे चोंगे को आधा दबा कर ही विक्की पर चीखे. यह चीख टैलीफोन में चली गई. उस ओर उन के साहब थे. उन्होंने टैलीफोन बंद कर दिया. पिताजी ने फिर से फोन मिला कर साहब को सारा मामला समझाते हुए क्षमायाचना की. किंतु उन को लगा कि साहब के मन में गांठ पड़ गई है. इसी झुंझलाहट में पिताजी ने विक्की को एक चांटा मारा. उस की मां को उसी क्षण घर से जाने का आदेश दे दिया.

विक्की को पीटती हुई निर्मला बाहर हो गई. निर्मला ने आना बंद कर दिया. घरभर को नई परेशानियों ने आ घेरा. उस के स्थान पर आई नई कामवालियों से सभी को असंतोष रहने लगा. कोई बरतन में चिपकी चिकनाई की शिकायत करने लगा, किसी को गर्द व जालों की मौजूदगी खलने लगी तो किसी को उस की गंदी आदतें बुरी लगने लगीं. सब से बड़ी समस्या तो सीजर को ले कर हुई. वह नई कामवालियों से अपरिचित होने के कारण उन पर लपकता था. इसलिए उसे बांध कर रखना पड़ता था. 3 कामवालियां 3 कामों के लिए अलगअलग समय पर आती थीं. इसलिए उन के आते ही एक व्यक्ति को सीजर को बांधने की तत्परता दिखानी पड़ती थी. उधर सीजर को यह नई कैद खलने लगी थी, वह मुक्ति के लिए शोर मचाता था. सुबहशाम घरभर की शांति भंग होने लगी. काम भी संतोषप्रद नहीं था और मगजपच्ची भी करनी पड़ती थी.

इसीलिए निर्मला सभी को याद आने लगी. बातबात पर उस का उल्लेख होने लगा. जब देखो तब उस के काम, व्यवहार और आदतों आदि की तुलना नई कामवालियों से होने लगी. ऐसे क्षणों में पिताजी को पश्चात्ताप होता कि उन्होंने तैश में व्यर्थ ही निर्मला को भगा दिया. बच्चे तो चंचल होते ही हैं. उन्हें विक्की की चंचलता पर इस तरह क्रोधित नहीं होना चाहिए था. इसी पश्चात्ताप से क्षुब्ध हो कर पिताजी ने बारबार कहा, ‘‘निर्मला को बुलवा लो.’’ किंतु उन की इस आज्ञा का पालन कोई भी नहीं कर पाया. वैसे सभी मन से यह चाहते थे कि निर्मला फिर से यहां पर काम करने लग जाए. किंतु उसे बुलाना किसी को भी उचित नहीं लग रहा था. सभी की यह दलील थी कि इस तरह बुलाने से वह सिर पर चढ़ेगी. विक्की इस घर में खुल कर शैतानी करेगा. किंतु ऐसी दलीलें होते हुए भी सभी की यह कामना थी कि निर्मला किसी तरह लौट आए.

संयोग कुछ ऐसा हुआ कि 20-21 दिन बाद ही एक रोज दिन ढले छरहरी, सांवली, मंझोले कद की निर्मला द्वार पर आ खड़ी हुई. स्वच्छ धानी साड़ी वाली इस नारी ने आते ही मुख्यद्वार खोला, सीजर भूंकता हुआ उस की ओर लपका. उस समय केवल मां ही घर में थीं. उन्होंने दरवाजे की ओर नजर दौड़ाई. निर्मला के सामने सीजर पूंछ हिला रहा था. यह दृश्य देख कर मां को सुखद आश्चर्य हुआ. उस के साथ विक्की को न देख कर उन्हें आश्चर्य हुआ. इतने दिनों बाद आई निर्मला के तन पर अगली दोनों टांगें रख कर सीजर प्रेम प्रदर्शन कर रहा था. उस से जैसेतैसे छुटकारा पा कर वह मुसकराती हुई भीतर गई.

मां ने पूछा, ‘‘कैसी हो, निर्मला?’’

‘‘अच्छी हूं, मांजी,’’ उस ने सहज स्वर में कहा.

‘‘विक्की मजे में है?’’

‘‘जी हां, मजे में है.’’ इधरउधर की बातें होने लगीं. मां मन ही मन तौलती रहीं कि यह क्यों आई है. अच्छा हो, यदि यह यहां काम फिर से कर ले. तभी निर्मला ने सकुचाते हुए कहा, ‘‘मांजी, मेरा काम मुझे फिर से दे दो. विक्की को संभालने के लिए मैं ने अपनी सास को गांव से बुलवा लिया है. वह अब मेरे साथ नहीं आएगा.’’ मां को जैसे मुंहमांगी मुराद मिल गई. उन्होंने अपने हर्ष को छिपाते हुए संयत स्वर में कहा, ‘‘रखने को तो तुम्हें फिर से रख लें, मगर तुम्हारी सास का क्या भरोसा, वे यदि अपने गांव चली गईं तो फिर विक्की की समस्या हो जाएगी.’’

‘‘नहीं होगी, मांजी. मेरी सास अब यहीं रहेंगी, मैं पक्का वादा करा के उन्हें लाई हूं. मेरा सारा काम मुए विक्की के कारण छूट गया था. इसलिए यह पक्का इंतजाम करना पड़ा. आप बेफिक्र रहिए, आप को मेरा विक्की अब परेशान नहीं करेगा. मैं यहां उसे कभी नहीं लाऊंगी. आप तो मुझे बस काम देने की मेहरबानी कीजिए,’’ वह अनुनयभरे स्वर में बोली.

‘‘ठीक है, सोचेंगे,’’ मां ने नाटक किया.

‘‘सोचेंगे नहीं, मुझे काम देना ही होगा. मैं ने अपने घर की तरह यहां काम किया है.’’

‘‘इसीलिए तो कहा कि देखेंगे.’’

‘‘ऐसी गोलमोल बातें मत कीजिए, मांजी. मुझे कल से ही काम पर आने की मंजूरी दे दीजिए.’’

‘‘यह कैसे हो सकता है? तेरी जगह पर 3 औरतें हम ने रखी हैं. महीना पूरा होने पर उन्हें बंद करेंगे.’’

‘‘नहीं, कल 15 तारीख है, कल से ही उन्हें बंद कर दीजिए. मैं कल से ही काम संभाल लूंगी.’’ मां मन ही मन प्रसन्न हुईं कि चलो, घरभर की इच्छा पूरी हो जाएगी. किंतु अपने मन की यह बात जाहिर न करते हुए बोलीं, ‘‘गुड्डी के पिताजी से पूछ कर फैसला करूंगी. तू इतनी जल्दबाजी मत कर.’’ ‘‘जल्दबाजी बिना हमारा गुजारा कैसे होगा. इसलिए मैं तो कल से ही काम पर आ जाऊंगी,’’ यह कहते हुए निर्मला उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना ही चली गई. मां प्रसन्न हुईं कि मामला आसानी से निबट गया. निर्मला द्वारा काम संभालते ही घरभर का असंतोष दूर हो गया. विक्की के न आने से सभी को दोहरी प्रसन्नता हुई. किंतु कुछ दिनों बाद ही सभी को जैसे विक्की की याद आने लगी. वे लोग निर्मला से उस का हालचाल पूछने लगे. प्रश्न होने लगे, ‘विक्की को उस की दादी संभाल लेती है?’, ‘विक्की उन्हें परेशान तो करता होगा?’, ‘वे ज्यादा बूढ़ी होंगी, तब तो वह उन को चकमा दे कर बाहर निकल जाता होगा?’, ‘बुढि़या को वह शैतान बहुत तंग करता होगा?’, ‘कुएं के पास या सड़क पर वह फिर तो नहीं गया न?’ निर्मला इन प्रश्नों के उत्तर देती रहती थी. किंतु उस के जवाब से किसी को संतोष नहीं होता था. सभी का मन था कि विक्की कभी यहां आए तो उस से सारी बातें पूछें. उस के महीन स्वर को सुनने को जैसे सभी लालायित हो उठे थे. सांवले रंग के, प्रशस्त ललाट एवं बड़ीबड़ी आंखों वाले उस हाथभर ऊंचे बालक की छवि सभी के मनमस्तिष्क में तैरती रहती थी. उस की शरारतों की चर्चा करकर के सभी प्रसन्न होते थे.

एक रोज पिताजी ने निर्मला से कहा, ‘‘उस शैतान को किसी दिन लाना, उसे टैलीफोन सुनवाऊंगा.’’

दादाजी बोले, ‘‘एक बार जाप करवाऊंगा उस से.’’

मां बोलीं, ‘‘मेरे जूड़े की अब कोई तारीफ ही नहीं करता.’’

गुड्डी ने बताया, ‘‘उस के लिए मैं ने पहली कक्षा की किताब और पट्टी रखी हुई है.’’

मुन्ना बोला, ‘‘मैं उसे खिलौने दूंगा.’’ सभी ने अपनेअपने मन की बताई. केवल सीजर ही इस संदर्भ में न कह पाया. किंतु जिस रोज निर्मला विक्की को ले कर आई, उस रोज उस मूक पशु ने अपने मन की बात अपनी भाषा में कह दी. विक्की को देखते ही वह पहले झपटता था, किंतु अब उसे देखते ही वह दुम हिलाने लगा. सीजर को यों दुम हिलाते देख निर्मला अपने बेटे को ले कर आगे बढ़ी. सीजर तो जैसे प्रेम में बावला हो रहा था. उस ने दुम हिलातेहिलाते विक्की का मुंह चाट लिया तो वह डर के कारण रो पड़ा. यह देख सभी के ठहाके फूट पड़े. बड़े बच्चों वाले घर में नन्हे विक्की का यह रुदन मां को बड़ा भला लगा. वे भावविह्वल स्वर में बोलीं, ‘‘मुए सीजर ने यह अच्छा राग शुरू करा दिया.’’

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