भारतीय जनता पार्टी के लिए ईरान की फुटबौल टीम का कतर में व्यवहार एक चेतावनी है. ईरान अपने देश में धार्मिक शरीयती कानून लागू करने की ऐसी ही कोशिश कर रहा है जिस तरह भारत में भगवाई गैंग हिंदू पौराणिक पुरोहिताई समाज बनाना चाहता है.
10-15 साल इसलामी पंडों, खुमैनी-खामेनाई की जबरदस्ती बरदाश्त करते और सरकारी मोरल पुलिस के अत्याचारों को सहतेसहते ईरानवासी तंग आ गए थे और आखिर एक लड़की महसा अमीनी की पुलिस वालों के हाथों हुई मौत ने सब बदल कर रख दिया.
जनआक्रोश के चलते 2 महीने से ईरान उबल रहा है. तकरीबन 300 लोग मारे जा चुके हैं. उन में 70-80 बच्चे तक शामिल हैं. जेलें ऐक्टरों, लेखकों से भर दी गईर् हैं, पुलिस सैल बर्बरता दिखा रही है पर फिर भी जनता चुप नहीं बैठ रही.
हाल यह हो गया कि कतर में वर्ल्ड कप फुटबौल में जो ईरानी टीम फुटबौल खेलने गई, वह राष्ट्रपति से मिल कर उन की दुआ ले कर गई पर असल में उस के मन में कुछ और था. पहले ही मैच, जो इंगलैंड से हुआ, में ईरानी टीम ने अपने देश की राष्ट्रीय धुन बजने पर अपना मुंह सी लिया. यह बहुत गंभीर विद्रोह है. खिलाड़ी जानते हैं कि ईरान लौटते ही उन्हें जेल में डाल दिया जाएगा. अगर मैचों के बाद उन्होंने किसी देश में पनाह ले ली तो भी ईरानी पुलिस उन्हें अपने गुप्तचरों के हाथों मरवा सकती है.
खिलाडि़यों ने यह खतरा क्यों मोल लिया, क्योंकि धर्म से भी ऊपर व्यक्तिगत स्वतंत्रताएं हैं. भारत में धर्म के नाम पर एकएक कर के व्यक्तिगत स्वतंत्रताएं छीनी जा रही हैं. औरतों को घरों में दुबक कर रहने को कहा जा रहा है. बलात्कारियों को जेलों से रिहा ही नहीं किया जा रहा उन्हें संस्कारी कह कर उन का स्वागत भी किया जा रहा है. इस का मतलब साफ है कि अगर आप जय श्रीराम बोलोगे तो आप का हर गुनाह माफ है और नहीं बोलोगे तो आप की हर शराफत देशद्रोह है.
सरकार ने कितने ही लोगों को गिरफ्तार कर रखा है कि उन के घर से लैफ्टिस्ट लिटरेचर मिला है. कितनों को जेलों में ठूंसा हुआ है कि वे उस भीड़ का हिस्सा थे जो सरकार के आतंकी कानून का विरोध कर रही थी.
सरकार औरतों, दलितों, पिछड़ों के फायदे के लिए न कानून बना रही, न योजनाएं बना रही, वह अपना गुणगान केवल पुरोहितों की दुकानों को बनवाने को गिनवा कर कर रही है जिस का खमियाजा आम औरतों को और ज्यादा आरतियों और ज्यादा पूजापाठ में लग कर उठाना पड़ रहा है. अगर वे किसी माता की चौकी, देवी के जागरण में न जाएं तो भगवा गैंग उन्हें जाति से बाहर कर देते हैं.
औरतों को घूंघट, बिंदी, सिंदूर, मंगलसूत्र जबरन पहनाए जा रहे हैं. यह ईरान के हिजाब की तरह ही है. वहां मोरल पुलिस है. यहां भगवा गमछे डाले लठैतों के गैंग हैं. ईरानी पुलिस को सरकार पैसा देती है, भगवा गैंग चंदा जमा करते हैं. सड़कों पर बैरियर लगा कर, गाडि़यों को रोक कर 500-1,000 रुपए ?ाटके जाते हैं, दुकानदारों से तो लाखलाख रुपए तक वसूल कर लिए जाते हैं कि धार्मिक आयोजन होना है, मंदिर सजाना है.
जैसे ईरान आज विद्रोह की कगार पर है, जैसे उस के फुटबौल खिलाड़ी पूरी दुनिया के सामने विद्रोह पर उतर आए वैसा भविष्य में भारत में भी हो तो बड़ी बात नहीं. यहां सरकारी अंकुश साफ दिख नहीं रहा, छिपा है, यहां ब्रेनवाश से काम लिया जा रहा है. लेकिन, कब जनता का व्रिदोह फट जाए, पता नहीं.
सरकार के दबाव में कोर्ट
इलाहाबाद उच्च न्यायालय का आदेश कि सभी रेलवे स्टेशनों, सड़कों, पार्कों व अन्य सार्वजनिक स्थानों पर बने नितांत गैरकानूनी मंदिर हटा कर उत्तर प्रदेश सरकार व केंद्र सरकार न्यायालय को सूचित करें, अच्छा ही नहीं बहुत अच्छा है पर इसे मान लिया जाएगा, इस में संदेह है. मंदिर, मजार, क्रौस चौराहों व सार्वजनिक स्थानों पर बना कर चांदी काटना एक अच्छा धंधा है और धर्म के दुकानदार इस धंधे को चौपट नहीं होने देंगे. अगर किसी एक न्यायाधीश ने संविधान व कानून को लागू करते हुए ऐसा आदेश दिया भी तो भी उस की नहीं सुनी जाएगी.
राममंदिर के फैसले में मुख्य न्यायाधीश ने बाबरी मसजिद को गिराया जाना अवैध माना लेकिन फिर भी वह जमीन राममंदिर बनाने के लिए दे दी. जब सुप्रीम कोर्ट मंदिरों के आगे इस तरह ?ाक सकती है तो उच्च न्यायालयों की क्या हिम्मत कि वे अवैध मंदिर हटवा सकें. दिल्ली में चांदनी चौक में सड़क के बीच बने मंदिर का उदाहरण भी सामने है कि लाख कोशिशों के बाद भी वह जमीन लोगों के लिए चलने लायक नहीं बनी है.
मंदिर, मसजिद, चर्च तो जब जहां बन जाएं, वे हमेशा के लिए हो जाते हैं. ऐसा माहौल धर्म के दुकानदारों ने बनाया है ताकि वे भक्तों को बहका सकें कि भगवान का कोई बाल बांका नहीं कर सकता और मंदिर जहां भी बने वह सम?ा हमेशा के लिए बन गया.
इजिप्ट के शहर लक्सर में कर्णक टैंपल नाम का एक भव्य भवनों का कौंप्लैक्स है जिस का निर्माण ईसा पूर्व 1550 से 1069 में अलगअलग तब के राजाओं ने किया और उंगली दांतों तले दबाने लायक पत्थर के विशाल स्तंभ, राजाओं की मूर्तियां, दीवारों पर चित्र बनवाए. मानव इतिहास में इन की तुलना कम जगहों से की जा सकती है. रैमसैस द्वितीय और आमेनोटेप तृतीय के नाम से अब जाने जाने वाले राजाओं ने नील नदी के किनारे यह कैसा भव्य निर्माण किया था जो कई वर्ग मील में फैला हुआ एक अजूबा है.
यहां एक मसजिद भी 11वीं सदी की है, यानी
यह रैमसैस के मंदिरों के 1200-1300 साल बाद की है और यह ऊंचाई पर है क्योंकि तब तक रेगिस्तान के फैलाव व फैरो राजाओं के राज्यों के पतन के बाद इन मंदिरों में रेत भर गई थी.
किसी ने सपाट जमीन पर पत्थरों की कतार देख कर वहां मसजिद बना ली. अब 2 सदी पहले कर्णक इलाके की पुरातत्त्व विशेषज्ञों ने खुदाई की तो मसजिद से 20 फुट नीचे तक जमीन पर बनी रैमसैस युग का निर्माण देखा गया. पुरातत्त्व की दृष्टि से मसजिद के नीचे भी कुछ होगा पर पुरातत्त्व विशेषज्ञों की लाख कोशिशों के बाद मसजिद न हटी. यह आज भी भव्य भवनों में पैबंद की तरह है.
हमारे देश में हर मील पर इस तरह के मंदिरमसजिद दिख जाएंगे जो जनता की इस्तेमाल की जमीन पर बने हैं और जनता के काम में रुकावट हैं पर उन्हें इजिप्ट के लक्सर की मसजिद की तरह कोई हटा नहीं पा रहा.
देश में तो अब हर मंदिर चमकने लगा है, गुरुद्वारों पर सोने की परतें लगने लगी है, कहींकहीं मसजिदों की भी मरम्मत हो रही है, चर्च सीधेसादे ही हैं क्योंकि हिंदू बिग्रेड मसजिदों और चर्चों को ठीक करने पर भी उन के फैलाव का हल्ला करने लगती है.
जब ऐसा माहौल हो तो सिर्फ इलाहाबाद कोर्ट के आदेश पर देशभर के हजारों मंदिर, जो रेल की संपत्ति पर बैठे हैं, हट जाएंगे, असंभव है. खासतौर पर तब जब आज की सरकार का विकास का मंत्र मंदिरों का विकास हो और जनता उसे ही अपना विकास मानती हो.
सवाल
मेरी बहन को एक लड़के से प्यार हो गया है. वह उसे फेसबुक पर मिली थी. अब वह उस से शादी करना चाहती है. क्या हमें उस लड़के से बहन की शादी कर देनी चाहिए?
जवाब
आप ने समस्या पूरी तरह से नहीं लिखी है. जहां तक आप की समस्या को समझ पा रहे हैं तो वह है कि लड़का कहीं धोखेबाज तो नहीं. शादी के नाम पर आप की बहन के साथ कोई फ्रौड तो नहीं कर रहा. देखिए, शादी कोई छोटी बात तो है नहीं. यदि बहन उस लड़के से शादी करना चाहती है तो सिलसिलेवार सारी बातें साफ करें.
सब से पहले तो लड़के को घर बुलाइए. परिवार सहित दोनों परिवार मिल कर बात करें. पूरी जानकारी लीजिए. जरूरत पड़े तो किसी के जरिए लड़के और उस के घरवालों के बारे में और अधिक जानकारी लें कि कहीं वे कुछ छिपा तो नहीं रहे.
अकसर ऐसे केस में फ्रौड बहुत होते हैं. लड़का नकली मांबाप भी बना कर ले आता है. पूरी तहकीकात करनी जरूरी है.
वाकई यदि लड़का सही है, ठीकठाक नौकरी करता है. अच्छा घरपरिवार है तो शादी करने में कोई एतराज नहीं. हां, छानबीन पूरी कर लें. –कंचन
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पता : कंचन, सरिता
ई-8, झंडेवाला एस्टेट, नई दिल्ली-55.
समस्या हमें एसएमएस या व्हाट्सऐप के जरिए मैसेज/औडियो भी कर सकते हैं.
दौड़तेदौड़ते मेरी सांस भर आई थी और पुलिस लाइन के सामने जा कर मैं रुका था. अब डर तो जाता रहा था, पर देर तक सोचता रहा था कि वह कौन था, जो मुझे इशारे से बुला रहा था.
अगले दिन अब्दुल को मेरी बातों पर विश्वास नहीं हुआ था. स्कूल से लौटते समय वह मुझे खींच कर मसजिद में फिर से ले गया था. हमेशा की तरह मसजिद के किवाड़ बंद थे और सांकल बाहर से चढ़ी हुई थी. उस ने सांकल उतार कर दरवाजा खोला. मसजिद के अंदर भी ऐसा कोई निशान नजर नहीं आया कि कल यहां कोई आया होगा? उस दिन से मैं अब्दुल की निडरता का कायल हो गया था.
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वर्ष गुजरते गए और हम दोनों अब महाविद्यालय के विद्यार्थी हो गए थे. दोस्तों ने मिल कर अब्दुल को कालेज यूनियन के प्रेसिडेंट पद के लिए चुनाव में उतारा था. चुनाव प्रचार में हम लोगों ने दिनरात एक कर दिया था. जीत की पूरी उम्मीद थी कि अंतिम क्षणों में प्रतिद्वंद्वी गुट ने अब्दुल का अपहरण कर उस के बारे में दुष्प्रचार की अफवाह फैलाने की योजना बना ली थी. उन की इस योजना की भनक लगते ही हम लोग अंडरग्राउंड हो गए थे. एक पूरी रात हम लोगों ने भुतहा मसजिद में गुजारी थी, जिस के सामने से कभी गुजरते हुए हम भयभीत हो जाया करते थे. दूसरे गुट वाले रातभर अब्दुल को जगहजगह खोजते रहे थे, उन्हें कल्पना भी नहीं थी कि कोई भुतहा मसजिद में छिपा हो सकता है. फिर अंतिम समय प्रतिद्वंद्वी गुट ने हिंदूमुसलिम कार्ड खेल कर जीत हासिल कर ली थी.
अब्दुल को इस बात से बड़ा सदमा पहुंचा था और वह बहुत निराश हो गया था. उस ने कालेज आना ही बंद कर दिया था.
कुछ दिनों बाद पता चला कि अब्दुल को जामिया मिलिया विश्वविद्यालय, दिल्ली में प्रवेश मिल गया है. प्रवेश दिलाने में हज कमेटी के अध्यक्ष खान साहब ने उस की बड़ी मदद की थी.
अब्बू ने बेमन से अब्दुल को इस शर्त पर दिल्ली जाने की इजाजत दी थी कि स्नातक की डिगरी ले कर वह वापस आ कर दुकान संभालेगा.
अब्दुल के दिल्ली चले जाने से उस समय उन की हज जाने की यात्रा भी स्थगित हो गई थी.
अब्दुल अब साल में सिर्फ एक बार ईद पर ही घर आया करता. इस दौरान भी वह बहुत कम ही घर से बाहर निकलता. साथ में लाई अपनी किताबों में ही डूबा रहता.
अम्मी जब उस से कहतीं, “पप्पू, मैं ने तुम्हारी शादी के लिए दुलहन ढूंढ़ ली है और तुम्हारी रजामंदी सुनने को बेताब हूं.” तो वह टाल जाता और कहता, “अम्मी, मुझे अभी पीजी यानी स्नातकोत्तर करना है, उसके बाद कोई अच्छी नौकरी. जब अच्छा सा कमाने लगूंगा, तो आप को बता दूंगा.”
“पप्पू बेटे, पीजी तो शादी के बाद भी कर सकते हो?”
“नहीं अम्मी, नहीं. फिर मैं अपनी पढ़ाई के साथ इंसाफ नहीं कर पाऊंगा.”
अम्मी तो चुप रह गई थीं, पर अब्बू गुस्से से बोले थे, “अब्दुल, अब तुम्हारी डिगरी हो गई है. आ कर यहां का व्यापार संभालो. नौकरी के चक्कर में ना पड़ो. अकेले दुकान से ही इतना कमाओगे कि चार नौकर रख सकते हो. खेतीबाड़ी से सालभर का दानापानी मिल ही जाता है. मैं भी थकने लगा हूं. मुझे थोड़ा आराम दो, ताकि मैं कुछ और कर सकूं. तुम आ जाओ, तो हम लोग जिंदगी के अंत समय में हज भी कर आएंगे.”
“अब्बू, मैं कोई सरकारी नौकरी की फिराक में नहीं हूं. खुद का धंधा करूंगा, कोई इज्जत का बिजनैस, पर मैं ‘शू शाप’ पर बैठने का नहीं.”
अब्बू गुस्से से बाहर निकल गए थे, यह सोच कर कि जवान लड़के से कौन जिरह करे.
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अब्दुल और रचना ने आपस में मल्टीमीडिया में स्नातकोत्तर डिगरी करने का निर्णय लिया. रचना बिहार के पूर्णिया जिले की कायस्थ लड़की थी. मांबाप की इकलौती संतान. पिता कचहरी में मुलाजिम थे और सेवानिवृत्ति के नजदीक. मां प्राथमिक विद्यालय में शिक्षिका थीं. दोनों ने बड़े लाड़प्यार से रचना को पालापोसा था. रचना प्रारंभ से ही पढ़ाई में अव्वल थी, और बिहार सरकार से मैरिट स्कालरशिप प्राप्त कर रही थी.
जामिया मिलिया से ग्रेजुएशन साथसाथ करते हुए रचना और अब्दुल एकदूसरे को पसंद करने लगे थे. अब दोनों ने तय किया था कि मल्टीमीडिया में पीजी कर के अपनी खुद की ‘एडवरटाइजिंग कंपनी’ खोलेंगे. आने वाले समय में इस का व्यापक स्कोप था.
आपसी प्यार में धीमेधीमे दोनों ऐसी अवस्था में जा पहुंचे थे, जिसे बोलचाल की भाषा में ‘लिव इन रिलेशनशिप’ कहते हैं. दोनों इस बात पर सहमत थे कि इस बार जब वे अपनेअपने घर जाएंगे, तो अपने घर वालों को रिश्ते की असलियत से वाकिफ करा देंगे और उन को मना लेंगे कि उन के इस बंधन को सामाजिक मान्यता, ‘निकाह’ करा कर प्रदान कर दें.
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हर सच्चे मुसलमान की दिली तमन्ना होती है कि जीवन में कम से कम एक बार ‘हज’ अवश्य हो जाए. अब्दुल के अब्बू रहमान की भी यही तमन्ना कई वर्षों से चली आ रही थी. उन्होंने अपनी आमदनी के एक बड़े हिस्से को जोड़जोड़ कर इसी यात्रा के लिए इकट्ठा रखा था.
अब्दुल के व्यवहार से निराश हो कर उन्होंने गफ्फार के भरोसे मकान और दुकान छोड़ कर हज जाने का निर्णय ले लिया. हालांकि यात्रा के दौरान उन्हें पूरे समय यही चिंता सताती रही कि गफ्फार दुकान संभाल पाएगा या नहीं.
हज से लौटने पर अब सभी उन्हें हाजीजी कह कर आदर देने लगे थे. वे खुश थे कि गफ्फार ने जिम्मेदारी से दुकान संभाली थी.
हाजीजी अब पहले से अधिक इबादत में मशगूल रहते. दुकान पर भी अधिकांश समय माला फेरते बुदबुदाते रहते.
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अगली ईद पर जब अब्दुल घर आया, तो उस ने अम्मी को रचना के बारे में सारी बातें सचसच बता दीं, “अम्मी,रचना सुंदर, समझदार, विनम्र और तीक्ष्ण बुद्धि वाली लड़की है. आप उस से मिल कर उस की कायल हो जाएंगी. हम दोनों साथ रहते हुए बहुत खुश हैं. आप अब्बू को समझा कर निकाह के लिए राजी कर लीजिए.”
सुनते ही अम्मी के पैरों तले की जमीन खिसक गई. उन्हें विश्वास ही नहीं हुआ कि उन का बेटा यह सब बोल रहा है. उन की आंखें भर आईं और गला रुंध गया. उन्हें वह भयानक मंजर याद हो आया, जब उन का मौत से सामना हुआ था. 1961 की बात है, उन के मायके के शहर जबलपुर में एक मुसलमान लड़का हिंदू लड़की को भगा कर ले गया था. इसे ले कर पूरे शहर मे दंगे हो गए थे. तब वे 11वीं में पढ़ रही थी. दंगाई जगहजगह मारकाट करते आगजनी कर रहे थे. हम सब दरवाजे बंद कर अब्बा के पीछे दुबके हुए थे. तभी बलवाइयों का शोर बढ़ते हुए हमारे घर की तरफ आ गया था. लोग दरवाजा पीटते हुए चिल्ला रहे थे, “मेहरुन्निसा को हमारे हवाले कर दो, नहीं तो घर में आग लगा देंगे.”
अम्मी चीखी थीं, “भाग महरुन्निसा, भाग.”
हम सभी पीछे की छत के रास्ते दुपट्टे बांध कर नीचे कूद कर अंधेरे में मीलों भागते रहे थे. दंगाइयों ने हमारा सबकुछ आग में स्वाहा कर दिया था. हमें कई दिन सरकारी शरणार्थी कैंप में गुजारने पड़े थे.
“अब्दुल, तुम क्या अनर्थ करने जा रहे हो? उग्र हिंदू संगठन वाले मार कर फेंक देंगे तुम्हें, पता भी नहीं चलेगा. बिहारी लड़की है, बिहार वालों के लिए तो ऐसे मामलों में किसी का मर्डर कर देना बाएं हाथ का खेल होता है.”
अब्दुल ने अम्मी को बहुत समझाने की कोशिश की थी, “अम्मी, हम दोनों ने बहुत सोचसमझ कर यह निर्णय लिया है. यह कोई क्षणिक आवेश में लिया गया फैसला नहीं है. हम दोनों बालिग हैं और चाहते तो कोर्ट मैरिज भी कर सकते थे. पर हम दोनों ही चाहते हैं कि दोनों परिवार आपसी रजामंदी से शादी करा कर हमारे संबंधों को मान्यता दें. आप यह भी जान लें कि हम में से कोई अपना धर्म नहीं बदल रहा है, जिसे जो धर्म पसंद है, जिस धर्म में उस की आस्था है, उस को उसे मानने की स्वतंत्रता रहेगी. शादी भी दोनों के रीतिरिवाजों के अनुसार होगी.”
अम्मी तो चुप रह गई थीं, पर अब्बू ने जब यह सुना तो आगबबूला हो उठे थे. उन्होंने सीधे फरमान सुना दिया था कि जो गैरमुसलिम से शादी करेगा, वह उन के वास्ते काफिर के समान है. और हमारा काफिर से कोई वास्ता नहीं हो सकता. हो सके, तो मेरे मरने पर जनाजे से भी दूर रहना.”
अब्दुल दिल्ली लौट तो गया था, पर उदास हो कर. अब्बू से वह सहमत नहीं था. धर्म के बाहर शादी करना नापाक कैसे हो सकता है? जब 2 पढ़ेलिखे बालिग सोचविचार कर समझदारी से, साथ रहने का निर्णय ले रहे हैं. यह तो 2 समुदायों के बीच फैली हुई गलतफहमी को दूर करने का सब से अच्छा विचार होना चाहिए.
अब्दुल ने प्रण कर लिया था कि रचना उस की जीवनसंगिनी रहेगी, भले ही शादी की रस्में पूरी हों या ना हों.
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रचना और अब्दुल ने एडवर्टाइजिंग के अनेक प्रोजैक्ट सफलतापूर्वक पूरे किए. उन की कंपनी की प्रतिष्ठा कुछ माहों में शिखर पर पहुंच गई. 2 वर्षों के छोटे से अंतराल में उन का स्वयं का फ्लैट, बड़ी सी गाड़ी सहित समस्त सुखसुविधाएं उन के पास थीं.
अब्दुल की अब्बू से तो बात नहीं होती, पर फोन पर वह अम्मी से जरूर सुखदुख पूछता रहता. अम्मी जब बतातीं कि हाजीजी का गुस्सा अभी भी वैसा ही है और इसी गुस्से ने उन की सेहत खराब कर दी है. उन का स्वास्थ्य दिनोंदिन गिरता जा रहा है. अब दुकान भी नहीं जाते और गफ्फार के मत्थे दुकान छोड़ दी है. अब पहले की तरह दुकान भी नहीं चल पा रही है.
“अम्मी, मुझे अब्बू की बहुत चिंता है. एक बार यहां दिल्ली में विशेषज्ञ डाक्टरों को दिखा कर सलाह लेना मुनासिब रहेगा. आप अब्बू से बात कर देखिए. आप जब कहेंगी, मैं लेने आ जाऊंगा.”
उस बात को तो अब 3 साल हो रहे हैं, जब मैं ने पहली बार रचना के बारे में बात की थी. आखिर और कितने वर्ष अब्बू नाराजगी में गुजारेंगे? उन्हें अब ये रिश्ता स्वीकार कर लेना चाहिए.
अम्मी, खुदा की मरजी कह कर चुप हो गई थीं. फिर अचानक एक दिन हाजीजी को दिल का दौरा पड़ा था. डाक्टरों ने जांच कर सलाह दी थी, कि ‘बायपास’ सर्जरी के लिए किसी बड़े शहर के अच्छे अस्पताल में ले जाएं.
यह सुन कर अम्मी घबरा गई थीं और उन्होंने पहली बार मुझे फोन लगाया था. रोतेरोते उन का बुरा हाल था. मैं ने उन्हें दिलासा दी थी, “अम्मी, आप फिक्र न करें. मैं ‘एयर एंबुलेंस’ ले कर आ रहा हूं. यहां दिल्ली में दिल के मशहूर डाक्टर चेकअप कर लेंगे. और जरूरी हुआ तो दिल्ली में ही बायपास सर्जरी भी हो जाएगी. बस, आप अब्बू को यहां आने के लिए मना लीजिए.”
अब्बू को उस निरीह अवस्था में देख कर बड़ा दुख हुआ था. वे छोटे बच्चे की भांति मुझे देख बिलख उठे थे. मैं उन्हें सांत्वना देता रहा था कि सबकुछ ठीक हो जाएगा.
हम लोगों के दिल्ली पहुंचने के पहले ही रचना ने सारी व्यवस्थाएं कर ली थीं. उस की सेवा और अब्बू के प्रति उस की चिंता को देख अम्मी अभिभूत हो गई थीं. अगले दिन आपरेशन थिएटर में जाते समय अब्बू अम्मी से बोले थे, “हमारी बहू को बुलाओ, उसे आशीर्वाद तो दे दूं. पता नहीं, आपरेशन थिएटर से जिंदा लौट पाया या नहीं.”
“नहीं अब्बू, आप हिम्मत बनाए रखिए. बायपास सर्जरी आज के समय में एक साधारण सा आपरेशन है, यहां के डाक्टरों के लिए. विश्वास रखिए, कुछ नहीं होगा आप को,” रचना पास आ कर बोली थी.
अब्बू ने रचना के सिर पर हाथ रखते हुए आशीषों की झड़ी लगा दी थी. फिर वे मुसकराते हुए अब्दुल की अम्मी से बोले थे, “निकाह की तैयारी रखना. मैं अभी गया और अभी आया.”
यह सुन कर डाक्टर भी मुसकरा पड़ा था.
अब्दुल की अम्मी के चेहरे पर भी सहसा मुसकराहट फैल गई थी. वह तो जैसे मुसकराना भूल ही बैठी थीं.
हमारे यहां मक्के का ज्यादातर इस्तेमाल रोटी बनाने, भुट्टा, सत्तू, दलिया आदि के रूप में किया जाता है. अब मक्के की कुछ प्रजातियों को विकसित कर के बेबीकौर्न का रूप दे दिया गया है. इस का इस्तेमाल बड़े शहरों में अनेक व्यंजनों में किया जाने लगा है.
वैज्ञानिकों द्वारा विकसित क्वालिटी प्रोटीन मक्का में कार्बोहाइड्रेट, वसा, प्रोटीन, विटामिन और खनिज होते हैं, जो सेहत के लिए बहुत ही फायदेमंद होते हैं.
कुछ लोग तो मक्के को किसी न किसी रूप में बड़े चाव से खाते हैं, लेकिन कुछ शहरी लोग ऐसे भी हैं, जो इसे खाना कम पसंद करते हैं. पर मक्के के बने व्यंजनों को बड़े ही चाव से खाते हैं.
जिस तरह से ज्वारबाजरे से अनेक व्यंजन बनाए जाते हैं, उसी तरह मक्का से भी अनेक तरह के पौष्टिक और उम्दा क्वालिटी के व्यंजन बनाए जा सकते हैं.
मट्ठी को आमतौर पर गेहूं की मैदा से बनाया जाता है लेकिन यहां हम मक्का के आटे से मट्ठी बनाने के बारे में जानकारी दे रहे हैं.
जरूरी सामान :
मट्ठी बनाने के लिए मक्का का आटा 300 ग्राम, गेहूं की मैदा 200 ग्राम, देशी घी 100 ग्राम, अजवायन 1 से 2 चम्मच और नमक स्वादानुसार रखें.
बनाने का तरीका :
आटा व मैदा छान लें. उस में नमक, घी, अजवायन मिला कर सख्त गूंदें, उस के बाद उस आटे की छोटीछोटी लोइयां बना कर मट्ठी के आकार में बेल लें और सुनहरा होने तक घी में तल लें. इन्हें आप कई दिनों तक इस्तेमाल कर सकते हैं.
मक्का के आटे से नमकीन सेव बनाने के लिए मक्का का आटा 300 ग्राम, बेसन 200 ग्राम, अजवायन
1 से 2 चम्मच, लाल मिर्च पाउडर, नमक स्वादानुसार और तेल.
बनाने का तरीका :
मक्का का आटा, बेसन, नमक, मिर्च, अजवायन और थोड़ा तेल मिला कर आटा गूंद लें और फिर मशीन की मदद से सेव बनाते हुए सीधा गरम तेल में डालें, फिर उन्हें तल लें. आप के नमकीन सेव तैयार हैं.
इसी तरह से मक्का के आटे से दूसरे व्यंजन भी बनाए जा सकते हैं जैसे लड्डू बनाना. इस के लिए मक्का के आटे में उस की आधी मात्रा में बेसन भी लें और दोनों को हलकी आंच पर भून लें.
इसी तरह से लड्डू में दूसरी सामग्री जैसे मूंगफली, तिल, नारियल आदि डालना चाहें तो डाल सकते हैं. इन सब सामान को थोड़ा दरदरा पीसें या मोटा रखें. सभी को अच्छी तरह मिला लें और आखिर में बूरा व देशी घी मिला कर लड्डू बना लें. मक्का से इसी तरह के अनेक प्रकार के व्यंजन बनाए जाते हैं.
मक्का या दूसरे अनाजों से व्यंजन बनाने की ट्रेनिंग आप चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के खाद्य एवं पोषक विभाग, गृह विज्ञान महाविद्यालय, हिसार से ले सकते?हैं. ट्रेनिंग ले कर आप इस काम को अपने रोजगार का जरीया भी बना सकते हैं.
इसी बीच मौका पा कर वह सारी बातें अपनी सास को बता आई. वसुधा एक बार फिर अंदर से आ कर सब के साथ बैठ गईं और कनिका को देखती रहीं. वे मान रही थीं कि पूरी गलती उन के बेटे की है, लेकिन उन का अनुभव कह रहा था कि लड़की भी कुछ ठीक नहीं है. उन्होंने सोचा जब अपना ही सिक्का खोटा हो तो दूसरे को क्या दोष देना. वे ये सब सोच ही रही थीं कि सब लोग जाने लगे.
रुचिता राघव से सब को दरवाजे तक छोड़ने के लिए कह कर वसुधा को एक कोने में ले गई और उन से बोली, ‘‘मांजी अभी आप राघव से कुछ मत कहना. मैं इस लड़की के बारे में कुछ और भी पता करना चाहती हूं तब तक हम घर में हमेशा की तरह शांत रहेंगे.’’
वसुधा ने रुचिता के सिर पर हाथ रख कर कहा, ‘‘बेटा तुम जैसा चाहो वैसा करो मैं पूरी तरह तुम्हारे साथ हूं. मेरे बेटे की गलती है और मैं ने इस बात को स्वीकार कर लिया है,’’ कह कर वसुधा सोने अपने कमरे में चली गईं.
मगर उन की आंखों में नींद कहां. उन्हें लगा जैसे एक बार फिर इतिहास अपनेआप को दोहरा रहा है, जो राघव के पिता ने उन के साथ किया वही राघव रुचिता के साथ कर रहा है… आखिर यह अपने बाप की ही औलाद निकला. उन का मन लगातार राघव के प्रति गुस्से से भर रहा था. दूसरी तरफ डर भी लग रहा था कि रुचिता क्या करेगी, इतनी अच्छी लड़की राघव को और इस घर को कभी नहीं मिलेगी. इसी ऊहापोह में उस की आंख लग गई.
सुबह राघव नाश्ता करते हुए रुचिता से कह रहा था, ‘‘कल तो तुम ने मेरी इज्जत में चार चांद लगा दिए. सब मेरी बीवी को देख कर जलफुक गए. मैं बहुत खुश हूं कि मां ने मेरी शादी तुम से करवाई.’’
ये सब सुन कर वसुधा का पारा 7तें आसमान पर था. उन्होंने एक नजर रुचिता की तरफ देखा तो उस ने उसे चुप रहने का इशारा किया. वसुधा चुप बैठी नाश्ता करती रहीं और फिर सिरदर्द का बहाना बना कर अपने कमरे में चली गईं. थोड़ी देर में राघव भी दफ्तर चला गया. अब रुचिता जा कर अपनी सास के पास बैठ गई और उन की गोद में सिर रख कर खूब रोई. रात से सुबह तक का वक्त उस ने कैसे काटा यह वही जानती थी. बारबार उस की इच्छा हो रही थी कि राघव का कौलर पकड़ कर उस से पूछे कि उस ने उस के साथ ऐसा क्यों किया. लेकिन कुछ न कह कर चुप रहने का फैसला उस का अपना था. वसुधा भी रोती हुईं बहू को कोई दिलासा न दे सकीं. बस उस के सिर पर प्यार से हाथ फेरती रहीं और बोलीं कि बेटा मैं तेरे साथ हूं.
जब रो कर रुचिता का मन हलका हो गया तब वसुधा ने उस से पूछा, ‘‘अब तुम क्या करने की सोच रही हो? तुम ने राघव से कुछ कहा क्यों नहीं?’’
इस पर रुचिता बोली, ‘‘मेरी मां हमेशा कहती हैं कि एक औरत घर बिगाड़ भी सकती है और बना भी सकती है, मैं उन की बात को आजमा कर देखना चाहती हूं. मैं कोई भी फैसला सोचसम झ कर ठंडे दिमाग से करना चाहती हूं. इसीलिए मैं ने एक जासूस से बात की है. मैं पहले राघव और कनिका के बीच के संबंधों की गंभीरता जानना चाहती हूं और ये भी कि यह कनिका कैसी लड़की है, जो एक शादीशुदा आदमी से चक्कर चला रही है. अगर राघव को वापस लाने का कोई भी रास्ता है तो मैं उस पर चलना चाहती हूं, क्योंकि मैं ने आज तक सिर्फ उसी से प्यार किया है.’’
उस की बातें सुन कर वसुधा का दिल उस के लिए असीम स्नेह और सम्मान से भर गया और उस ने फिर रुचिता को गले लगा कर कहा, ‘‘बेवकूफ है मेरा बेटा जो हीरे जैसी पत्नी को छोड़ कर किसी और लड़की के पीछे भाग रहा है. एक बात हमेशा याद रखना मैं ने तुम्हें बहू नहीं बेटी माना है और मैं हमेशा ठीक उसी तरह तुम्हारा साथ दूंगी जैसे मुसीबत में अपनी बेटी का देती.’’
2-3 दिन यों ही निकल गए. वसुधा रुचिता के साथ एक मजबूत स्तंभ की तरह खड़ी रहीं ठीक वैसे ही जैसे उस की अपनी मां उस के साथ रहतीं. चौथे दिन राघव के औफिस जाने के बाद वह जासूस रुचिता से मिलने आया और उसे कुछ चित्रों के साथ कनिका के बारे में सारी जानकारी दे गया. उस ने ध्यान से वे सारे कागज देखे और एक प्लान बना कर वसुधा को उस में शामिल कर लिया.
रुचिता जानती थी कि राघव की कंपनी में सब की तनख्वाह के खाते ऐक्सिस बैंक में हैं सो उस ने एक नए नंबर से ऐक्सिस बैंक कर्मचारी बन कर कनिका को फोन लगाया और उस से कहा कि लकी ड्रा में उस का एक लंच कूपन निकला है. 2 महिलाओं के लिए और अगर वह आना चाहती है तो बैंक ताज होटल में उस के लिए जगह आरक्षित करेगा.
ताज का नाम सुन कर कनिका फंस गई और उस ने हां कह दिया. रुचिता ने अगले
दिन के लिए दो टेबल बुक करवाईं और सब से पहले ताज पहुंच गई. कनिका भी शर्त के अनुसार अपनी एक सहेली को ले कर पहुंची. इधर वसुधाजी राघव को लंच ताज में करने के लिए यह कह कर ले गईं कि रुचिता बाहर गई है सहेलियों के साथ और वे बोर हो रही है.
राघव को उन की बात अजीब तो लगी थी, लेकिन मां ने कहा है, यह सोच कर उस ने ज्यादा दिमाग नहीं लगाया. जैसे ही रुचिता ने देखा कि सब आ गए हैं उस ने वसुधा को फोन मिलाया और खुद जा कर कनिका के बराबर बैठ गई. उस ने वसुधा को पहले ही सम झा दिया था कि फोन का स्पीकर चला कर सारी बातें राघव को सुनवा दें.
बच्चे बहुत बार मातापिता से मिली आजादी का गलत इस्तेमाल कर बैठते हैं. ऐसे में जरूरी है कि मांबाप बच्चों को इतनी भी आजादी न दें कि वे उन्हीं से कटने लगें, उन की डोर अपने हाथों थामे रहें. जैसे ही मुझे पता चला कि मेरी सहेली सुधा की बेटी रीवा ने सल्फास खा कर अपनी जान देने की कोशिश की है, मैं सकते में आ गई. रीवा बहुत ही जिंदादिल और जिंदगी को भरपूर जीने वाली ऊर्जा से भरपूर लड़की थी. उस से इस तरह के कायरतापूर्ण कदम की उम्मीद मुझे बिलकुल भी नहीं थी.
हकीकत तो सुधा से मिल कर ही पता चलेगी. मुझे इस मुश्किल घड़ी में अपनी दोस्त के साथ होना चाहिए, यही सब सोचते हुए मैं सुधा और रीवा से मिलने सिटी अस्पताल चल दी. रीवा की नाजुक हालत देख कर मैं भी अपनेआप को नहीं संभाल सकी. इस कली को मुर?ाने मत देना, मन ही मन विचारती हुई मैं ने सुधा के कंधे पर हाथ रखा. मेरा स्पर्श पाते ही सुधा के भीतर रुका हुआ सैलाब अपने बांध तोड़ कर बह निकला. वह मेरे कंधे से लग कर फफक पड़ी. मैं ने उसे शांत कर के पूरी घटना बताने को कहा. सुधा रोतेरोते बोली, ‘‘सारी गलती मेरी ही है. काश, मैं ने रीवा को ढील देते समय डोर को अपने हाथों से थामे रखा होता तो आज यह यहां इस हाल में न होती.’’ सुधा ने बताया कि रीवा अपने कालेज के फर्स्ट ईयर में पहली बार उन के स्वागत में दी गई फ्रैशर पार्टी में गई थी. वहां कुछ सीनियर्स के साथ उस की दोस्ती हो गई. वे बुक्स और नोट्स आदि से भी खूब मदद करते थे.
उस के बाद आएदिन रीवा उन के साथ पार्टियों में जाने लगी. हम ने भी ज्यादा गौर नहीं किया. जब कोएजुकेशन है तो यह सब तो चलता ही रहता है, सोचती हुई बेटी को पूरी आजादी दे रखी थी. सबकुछ बहुत अच्छा चल रहा था. मगर पिछले 2-3 महीनों से रीवा बहुत तनाव में दिखाई देती थी. अकसर देररात को फोन पर धीरेधीरे बात करती थी. मैं जब भी पूछती, तो ‘कालेज की बातें हैं’ कह कर टाल जाती थी. फिर अचानक इस ने यह आत्मघाती कदम उठा लिया. अब मौत के मुंह से निकल कर आई है तब इस ने बताया कि किसी पार्टी में इस के सीनियर्स ने नशीला ड्रिंक पिला कर इस का अश्लील एमएमएस बना लिया था और अब उसे सोशल मीडिया पर पोस्ट करने की धमकी दे कर उसे ब्लैकमेल कर रहे थे. कुछ दिनों तक तो पैसे की मांग करते रहे और जब कैश की किल्लत हो गई तो इस की अस्मत से खिलवाड़ करने पर उतर आए. घबरा कर इस ने यह कदम उठा लिया.
प्रकृति का लाखलाख शुक्र है कि बच्ची बच गई और दोषी लड़के पुलिस की गिरफ्त में हैं. सुधा ही नहीं, बल्कि अनेक अभिभावक अपने टीनएज बच्चों की आजादी के प्रबल पक्षधर होते हैं. मेरा खुद का यही मानना है कि बढ़ते बच्चों की ऊर्जा को सीमाओं में बांध कर रखने से उस का प्रवाह अवरुद्ध हो जाता है. मगर यह देखना भी तो हमारी ही जिम्मेदारी है कि बच्चे उस ऊर्जा का प्रयोग सकारात्मक दिशा में कर रहे हैं या नहीं. प्रफुल्ल ने जब सीनियर सैकंडरी के बाद सीए करने के लिए दिल्ली में कोचिंग करने की जिद की तो उस के व्यवसायी पिता ने खुशीखुशी उसे इजाजत दे दी. प्रफुल्ल ने अपने दोस्तों के साथ दिल्ली जा कर एक नामीगिरामी इंस्टिट्यूट में अपना रजिस्ट्रेशन करवा लिया और फीस के रूप में एक मोटी रकम भी वहां जमा करवा दी.
स्कूल के अनुशासित माहौल के तुरंत बाद मिली इस आजादी ने प्रफुल्ल को बेलगाम कर दिया. दोस्तों के साथ घूमनाफिरता और मौजमस्ती करना उसे अच्छा लगने लगा. धीरेधीरे बुरी संगत में पड़ कर वह नशे के दलदल में जाने लगा. सालभर में उस के परिवार में से किसी ने भी दिल्ली जा कर यह जानने की कोशिश नहीं कि कि प्रफुल्ल आखिर वहां कर क्या रहा है. एक दिन जब इंस्टिट्यूट से उस के घर उस के ऐब्सैंट रहने की शिकायत आई तब जा कर उस के पिता की आंखें खुलीं और उन्होंने वहां जा कर अपने लाड़ले की खोजखबर ली. अपनी मेहनत की कमाई के साथसाथ अपने जिगर के टुकड़े को यों बरबाद होते देख कर वे सिर पकड़ कर बैठ गए और प्रफुल्ल को अपने साथ ले कर वापस आ गए. पिता की अनदेखी ने बेटे का भविष्य दांव पर लगा दिया. स्कूली शिक्षा के तुरंत बाद जब बच्चे कालेज में या फिर अन्य किसी प्रोफैशनल इंस्टिट्यूट में जाते हैं तब उन में नईनई मिली आजादी का खुमार होता है. शरीर भी युवा ऊर्जा से भरपूर होता है. ऐसे में उन्हें हर वर्जित काम आकर्षित करता है. टीवी, फिल्मों और अभिभावक संवादों में भी आजकल यही मुद्दा उठाया जाता है कि बच्चों में नैसर्गिक विकास होने दो,
उन्हें अपने पंख खुल कर फैलाने दो, उन्हें आसमान छूने दो आदिआदि. मगर यहीं हम चूक जाते हैं. अगर पौधे बेतरतीब ढंग से बढ़ेंगे तो ?ाड़ में तबदील हो जाएंगे. इसलिए उन्हें अंकुश की कैंची से कतर कर एक परफैक्ट आकार दिया जाना जरूरी है. ठीक वैसे ही जैसे आसमान में उड़ती पतंग तभी ऊंचाइयां छू सकेगी जब उस की डोर किसी सधे हुए हाथ में होगी वरना पतंग को कटते और फिर लुटते देर नहीं लगेगी. कालेज और यूनिवर्सिटीज का अंदरूनी हाल आज किसी से भी छिपा नहीं है. ड्रग्स और हथियारों की आवाजाही कहीं चोरीछिपे तो कहीं खुलेआम हो रही है. छात्रनेता भावी राजनीति के कर्णधार के रूप में देखे जा रहे हैं. वहीं, विज्ञापन और फिल्म इंडस्ट्री भी अपना भविष्य इन्हीं युवा प्रतिभाओं में तलाश रही है. युवाशक्ति का बहाव इतना तेज होता है कि वह अपने रास्ते में किसी भी बाधा को ठहरने नहीं देती. नदियां अगर निर्बाध बहने लगें तो वे बाढ़ आने का कारण बन जाती हैं. इसलिए उन पर बांध का बनाना निहायत जरूरी हो जाता है.
इसी तरह सूर्य की किरणों को भी नियंत्रित कर सौर ऊर्जा में बदल कर ही उन का उपयोग विकास कार्यों में किया जा सकता है. युवा होते बच्चों को आजादी अवश्य ही दी जानी चाहिए ताकि वे खुल कर सांस ले सकें मगर उन्हें स्वतंत्रता और स्वच्छंदता में फर्क भी सम?ाने की जरूरत है. स्वतंत्रता जहां उम्मीदों और सफलताओं के नए आयाम गढ़ती है वहीं स्वच्छंदता पतन के गड्ढे की तरफ जाने वाली ढलान की पहली फिसलन होती है. एक बार जो फिसल जाता है, उसे संभलने में बहुत वक्त लग जाता है. किशोरवय को लांघ कर युवावस्था की दहलीज पर खड़े बच्चे शारीरिक और मानसिक ऊर्जा से भरपूर होते हैं, ऐसे में उन्हें किसी भी कार्य को करने से रोकनाटोकना एक तरह से उस शक्ति को चुनौती देने जैसा ही है. यहां अभिभावकों की भूमिका बांस पर बंधी रस्सी पर चलने वाले नट की तरह होती है.
जरा सा संतुलन बिगड़ते ही बात बिगड़ जाती है. यानी उन्हें बहुत ही सावधानीपूर्वक युवा होते बच्चों के साथ तालमेल बैठाने की जरूरत है. एक टीवी विज्ञापन में भी यही बात देखने को मिली कि मैं तुम्हारी मां हूं, दोस्त नहीं. यानी इस उम्र में मांबाप की भूमिका दोस्तों से ज्यादा महत्त्वपूर्ण और जिम्मेदारी वाली होती है. तुलसीदास बरसों पहले कह गए थे, ‘भय बिन होय न प्रीती’ यानी कि बच्चों के मन में एक काल्पनिक भय का माहौल बनाने की जरूरत भी है कि उन की हर गतिविधि पर बराबर निगरानी रखी जा रही है. यह उन में अनुशासित और संयमित रहने के लिए एक मनोवैज्ञानिक प्रभाव डालता है ठीक वैसे ही जैसे जब कोई कहीं लिखा देखता है कि आप कैमरे की नजर में हैं तो खुद ही वह सतर्क और अधिक संयमित हो जाता है. कहने का तात्पर्य है कि अभिभावकों का अपने युवा होते बच्चों के प्रति व्यवहार, चाहे वे लड़के हों या लड़कियां, बेहद संतुलित होना चाहिए. कभी आजादी पर थोड़ा अंकुश और कभी अंकुशों पर थोड़ी आजादी. बिलकुल पतंग की तरह. कभी थोड़ी ढील तो कभी डोर पर कसाव. उन के सपनों की पतंग सफलताओं के नएनए आयाम छुएगी जब उस की डोर आप के सधे हुए अनुभवी हाथों में होगी.
नहीं दादू, झूठी है यह लड़की। मैं सही कह रहा हूं. यह लड़की मुझे कब से ब्लैकमेल करने की कोशिश कर रही है. और आप को नहीं पता यह लड़की मुसलिम है,” अपनेआप को बचाने के लिए आदर्श कुछ भी बोले जा रहा था.
“अच्छा, लेकिन यह बात उस के साथ संबंध बनाते समय, उस के साथ चुपके से सगाई करते समय तुम ने क्यों नहीं सोचा कि वह लड़की मुसलिम है और तुम हिंदू? सिर्फ उस के शरीर के साथ खेलने के लिए तुम ने शादी की झूठी कहानी गढ़ी और उसे ब्लफ में रखा ताकि वह तुम पर विश्वास करती रहे और तुम उस का फायदा उठाते रहो? छी… कैसे किया तुम ने ऐसा और क्या यही संस्कार दिए थे हम ने तुम्हें?”
अपने लाडले आदर्श पर इलजाम लगते देख शशि ने अपने तेवर दिखाते हुए कहा,“देखिए, यहां कोई मजाक नहीं चल रहा है. यह मेरे पोते की जिंदगी का सवाल है इसलिए आप चुप ही रहिए और आप ने सोच कैसे लिया कि एक मुसलिम लड़की से हम अपने पोते का ब्याह करेंगे?”शशि की बात पर आदर्श के मम्मीपापा, यानी मेरे बेटेबहू भी कहने लगे कि वह लड़की झूठी और फरेबी है. किसी और का पाप उस के बेटे पर मढ़ना चाहती है. लेकिन वह कभी ऐसा होने नहीं देंगे. शायद, मैं भी ऐसा ही सोचता अगर अपनी कानों से दोनों की बात न सुनी होती तो.
अभी तक तो मैं ठंडे दिमाग से बात कर रहा था पर अब मेरा भी पारा गरम होने लगा इन की अनर्गल बातें सुन कर. धीरे से ही लेकिन कड़े शब्दों में मैं बोला,“मैं भी तो वही कह रहा हूं शशि…यह किसी की जिंदगी का सवाल है कोई मजाक नहीं. और जब आप का पोता उस लड़की को चीट कर रहा था, उस के शरीर के साथ खिलवाड़ कर रहा था, तब नहीं लगा उसे कि वह लड़की मुसलिम है? अब जब शादी पर बात आई, तो वह गैर जात की लड़की हो गई?”
90 की फेमस बाल कलाकार झनक शुक्ला अपने बॉयफ्रेंड से सगाई कर ली है, इन्हें सीरियल करिश्मा के करिश्मा में काफी ज्यादा लोकप्रियता मिली थी. इसके साथ ही फिल्म कल हो न हो में इन्होंने जिया का किरदार निभाया था.
छोटी जिया काफी ज्यादा बड़ी हो गई हैं, उन्होंने सगाई कर ली है, उन्होंने अपने मंगेतर स्वपिल सूर्यवंशी के साथ रोके की तस्वीर साझा की है. जो पेशे से फिटनेस ट्रेनर हैं. तस्वीर में स्वपिल और झनक सोफे पर बैठे हैं, इस मौके पर स्वपिल ने पिंक कलर का सलवार सूट पहना हुआ था.
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पिंक सलवार सूट के साथ स्वपिल ने यलो दुपट्टा ले रखा है, फोटो शेयर कर उन्होंने लिखा है, सबकुछ ऑफिशियल हो गया, बता दें कि झनक की मां सुप्रिया शुक्ला भी एक्ट्रेस हैं, उन्होंने कमेंट करके लिखा है कि खुश रहो.
एक्ट्रेस अविका गौर लिखती हैं कि बधाई बाकी अन्य सेलिब्रिटी भी झनक को बधाई दे रहे हैं. झनक ने एक्टिंग से 15 साल की उम्र में ही इस्तीफा ले लिया है, इसके बाद से वह अपनी प्राथमिकता पढ़ाई को दी हैं. झनक ने मास्टर इन ऑर्कियोलॉजी किया है. वह अपने पार्टनर के साथ काफी ज्यादा खुश नजर आ रही थी, वह अपनी लाइफ में एक्टिंग की जगह पढ़ाई को चुना है.