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मृत होते “जोशीमठ” का संदेश

देश के उत्तराखंड का ख्यात जोशीमठ आज देश-दुनिया भर में चर्चा का सबब बना हुआ है. वहां के आम लोग शासन प्रशासन के व्यवहार से अजीज आ चुके हैं और प्रदर्शन करने को मजबूर हैं. वहीं भारत सरकार और उत्तराखंड सरकार का यह बड़ा दायित्व है कि अब इस प्राचीन नगर विस्थापन के बाद कोई भी मानव क्षति ना हो. अगर ऐसा हो गया तो सरकार के लिए यह एक ऐसा काला धब्बा होगा जिसका जवाब हमारे नेताओं और प्रशासन के पास नहीं होगा. क्योंकि संपूर्ण कार्य व्यवहार पर दृष्टिपात किया जाए तो जोशीमठ को लेकर की जा रही लापरवाही स्पष्ट देखी जा सकती है.

दरअसल, जो संवेदनशीलता भारत सरकार को जोशी मठ को लेकर दिखाई देनी चाहिए वह दिखाई नहीं देती. और मरते हुए जोशीमठ का यही संदेश है भारत सरकार या कोई भी सरकार जब तक नेशनल थर्मल पावर कारपोरेशन जैसे विशाल विद्युत जल संयंत्र से मोह नहीं त्यागेगी जोशीमठ अलग-अलग नामों से इतिहास अपने को दोहराते रहेगा. यही कारण है कि अब चमोली के जिला प्रशासन ने जोशीमठ में दरक रहे मकानों को चिन्हित करने के लिए उनमें लाल निशान लगाने का काम शुरू किया तो आपदा पीड़ित लोगों ने उनकी कार्यप्रणाली का जबरदस्त विरोध किया बड़ी तादाद में आपदा पीड़ित लोगों ने जोशीमठ बद्रीनाथ राष्ट्रीय राज मार्ग में धरना दिया और जाम लगा दिया. पीड़ित लोगों का कहना था- पहले उनके लिए स्थाई रूप से पुनर्वास की व्यवस्था की जाए तब उनके मकानों को चिन्हित करने की कार्रवाई की जाए.
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बिजली का मोह ले डूबा

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दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी की यहां की प्रकृति का दोहन करने की मंशा ने जोशीमठ को आज भूस्खलन का शिकार बना दिया है . और कुछ वर्ष पूर्व केदारनाथ की आपदा को दुनिया ने देखा है. मगर इसके बावजूद इस दिशा में कोई प्रयास भरा सरकार का दिखाई नहीं देता. शासन द्वारा बनाए गए राहत शिविरों में रहने वाले लोगों का कहना है वे अभी तक अपने मकानों से सामान निकाल नहीं पाए हैं. यही नहीं स्थानीय लोगों ने दी जा रही मात्र पांच हजार रुपए की राशि को लेकर विरोध जाहिर किया है मुआवजे की राशि भी बढ़ाने और देश की नवरत्न कंपनी एनटीपीसी जल विद्युत परियोजना को बंद करने की मांग की है. संपूर्ण व्यवस्था का सच यह है कि जब भारत सरकार इस संपूर्ण कार्य व्यवहार पर निगाह रख रही है ऐसे में लोग राहत शिविर में खाना ना मिलने के अपने परिवार के साथ सड़क पर धरने पर बैठ गए .

मुख्यमंत्री पुष्पेंद्र सिंह धामी के निर्देश पर प्रशासन के अधिकारियों ने उन्हें खाना उपलब्ध कराया और तब जाकर उनका धरना समाप्त हुआ. वहीं दूसरी ओर आज धरने पर बैठे आपदा पीड़ितों को प्रशासन के अधिकारियों ने समझा-बुझाकर धरने से उठाया. जैसा कि ऐसा अक्सर होता ही है जब वर्षों वर्षों से रहने वाले लोगों को विस्थापन का दर्द झेलना पड़ता है तब अपने घरों से सामान राहत शिविरों में ले जाते हुए लोगों की आंखों में आंसू थे और अपने मकानों की यादों में खोए हुए थे और उनके यहां आंखों से आंसू बह रहे थे. माहौल दुखद और गमगीन था. चमोली के जिलाधीश ने आपदा प्रभावित क्षेत्रों का दौरा किया.
जोशीमठ में भारत सरकार के जलशक्ति मंत्रालय की अधिकार प्राप्त कमेटी पहुंच गई है और इस कमेटी के साथ आए विभिन्न विशेषज्ञों ने आपदा ग्रस्त क्षेत्रों का दौरा किया . यह कमेटी दो-तीन दिन जोशीमठ में रहेगी और अपनी रिपोर्ट प्रधानमंत्री को देगी. महक मगध मूल मुद्दा है नेशनल थर्मल पावर कारपोरेशन एनटीपीसी के बंद करने का जो कि प्रधानमंत्री दामोदरदास मोदी का स्वप्न था और उन्हें के निर्देश पर यहां यह विद्युत प्लांट चरणबद्ध रूप से आगे बढ़ा . लोगों का यह मानना है कि एनटीपीसी के निर्माण के कारण ही जोशीमठ को क्षति पहुंची है. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के मुताबिक सरकार की पहली प्राथमिकता लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाने और क्षतिग्रस्त मकानों को चिन्हित कर लोगों का स्थाई तौर पर सुविधा मुहैया करना है.

धामी ने कहा- जोशीमठ की आपदा को लेकर किसी तरह की राजनीति नहीं होनी चाहिए. कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के मुताबिक जोशीमठ भाजपा की सरकार की लापरवाही की भेंट चढ़ गया है और राज्य सरकार पीड़ितों को 5 हजार का मुआवजा देकर उनका मजाक बना रही है. इधर मुख्यमंत्री ने कहा कि यह वक्त वाद-विवाद का नहीं है और ना ही विरोध के लिए विरोध करने का वक्त है हम सबको एक साथ एक टीम भावना से जोशीमठ को बचाने और पीड़ितों की मदद करने का काम करना चाहिए. उल्लेखनीय है कि जोशीमठ या ज्योतिर्मठ भारत के उत्तराखण्ड राज्य के चमोली ज़िले में स्थित एक प्रसिद्ध नगर है यहां हिन्दुओं की प्रसिद्ध ज्योतिष पीठ है. और आठवीं सदी में धर्म सुधारक आदि शंकराचार्य को ज्ञान प्राप्त हुआ और बद्रीनाथ मंदिर तथा देश के विभिन्न कोनों में तीन और मठों की स्थापना से पहले यहीं उन्होंने प्रथम मठ की स्थापना की थी. मगर सच तो यह है कि जब तक जमीनी ठोस कार्रवाई नहीं की जाएगी आगे भी प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर हमारे उत्तराखंड हिमाचल प्रदेश या अन्य प्रदेशों के जोशी मठ जैसे नगर, उपनगरों को नहीं बचाया जा सकेगा.

जनवरी महीने में खेती के खास काम

इस मौसम की खास फसल गेहूं है. ठंड व पाले का प्रकोप भी इस माह में चरम पर होता है. इस समय गेहूं फसल पर सब से ज्यादा ध्यान देने की जरूरत होती है. 25 से 30 दिन के अंतर पर गेहूं में सिंचाई करते रहें. इस के अलावा खरपतवारों को भी समयसमय पर निकालते रहना चाहिए. जौ की फसल का भी मुआयना करें. सिंचाई के अलावा जौ के खेतों की निराईगुड़ाई करना भी जरूरी है, ताकि तमाम खरपतवारों से नजात मिल जाए. सरसों के खेतों की निराईगुड़ाई करें.

अगर पौधों में फूल व फलियां आ रही हों, तो सिंचाई करना न भूलें. राई व सरसों की फसलों पर इस दौरान बालदार सूंड़ी का हमला हो सकता है. इस की रोकथाम के लिए उचित कीटनाशक दवा का छिड़काव करें. सरसों की फसल में इस समय चेंपा का भी प्रकोप होता है. इस की उचित तरीके से रोकथाम करें. इस माह सरसों की फसल में फलियां बनने लगती हैं, इसलिए खेत में नमी जरूरी है. नमी बनाए रखने के लिए सिंचाई जरूर करें. इस से दाने मोटे और ज्यादा लगेंगे. आलू की अगेती फसल जनवरी माह में खुदाई के लिए तैयार हो जाती है. जब पत्तियां व तने पीले पड़ने लगें, तो समझ लें कि आलू की फसल तैयार हो गई है. मजदूरों से या आलू खुदाई मशीन पोेटैटो डिगर से भी आलू की खुदाई कर सकते हैं. इस के बाद आलू की ग्रेडिंग भी कर सकते हैं. आलू के ढेर को पुआल वगैरह से ढक कर रखना चाहिए,

वरना हवापानी के संपर्क में आने पर आलू हरा हो जाता है. चने व मटर के खेतों में फूल आने से पहले सिंचाई करें. ध्यान रखें कि इन फसलों में फूल बनने के दौरान सिंचाई करना मुनासिब नहीं होता. जब फूल पूरी तरह से आ चुके हों, तब फिर से सिंचाई करें. चारा फसल बरसीम, रिजका व जई की हर कटाई के बाद सिंचाई करते रहें. इस से बढ़वार अच्छी होगी और उम्दा किस्म का चारा मिलता रहेगा. जई में कटाई के बाद यूरिया भी डालें. फूलगोभी, पत्तागोभी व गांठगोभी इस समय तैयार हो चुकी होती है. अच्छी तरह से कटाईछंटाई कर के मंडी में भेजें व आगे के लिए बीज बनाने के लिए सेहतमंद पौधों का चुनाव करते रहें. इन्हें सुरक्षित रखें, ताकि उन से बीज भी तैयार किया जा सके.

मैदानी इलाकों में जनवरी माह के अंत तक फ्रैंचबीन बोई जा सकती है. झाड़ीनुमा किस्म जैसे पूसा सरवती के 35 किलोग्राम बीज को 2-2 फुट की लाइनों में और 8 इंच की दूरी पर पौधों को रोपें. लंबी ऊंची किस्म हेमलता के 15 किलोग्राम बीज को 3-3 फुट की लाइनों में और 1 फुट की दूरी पर पौधे रोपें. पालक और मैथी की हर 15-20 दिन बाद कटाई करते रहें. पत्तेदार सब्जियों की फसल में कीट नियंत्रण के लिए दवा का प्रयोग कम से कम करें. गन्ने की पेड़ी फसल व शरदकालीन बोआई वाले गन्ने की कटाई का काम पूरा करें. गन्ने की कटाई के दौरान निकली पत्तियों को जलाएं नहीं. इन पत्तियों को जमा कर के कंपोस्ट बनाने में इस्तेमाल करें. गन्ने की पत्तियों को फसल में पलवार के लिए भी इस्तेमाल कर सकते हैं. ऐसा करने से खेत में काफी समय तक नमी बनी रहती है और खरपतवार भी ज्यादा नहीं निकलते हैं.

जनवरी के महीने में पाले से बचाव के लिए छोटे फलों वाले पौधों व सब्जियों की नर्सरी को टाट वाली बोरियों या घासफूस के छप्परों से सही तरीके से ढक दें. आम के बाग का भी ध्यान रखें. मौसम आने पर उन में कोई कमी नहीं आनी चाहिए. संतरा, किन्नू, नीबू जैसे पेड़ों की कटाईछंटाई करें और कृषि वैज्ञानिकों से सलाह ले कर इन की देखभाल के जरूरी काम निबटाएं. अंगूर की बेलों की काटछांट का काम इस महीने के आखिर तक हर हालत में निबटा लें. जगह हो, तो अंगूर की नई बेलें भी लगाएं.

नई बेल लगाने के बाद सिंचाई करना जरूरी होता है. जनवरी माह में अधिक ठंड होने के चलते पशुओं की भी देखभाल जरूरी है. उन्हें सूखी जगह पर रखें और ठंड से बचाव करें. उन को नियमित रूप से संतुलित आहार दें. पशुओं को कृमिनाशक दवाएं देना न भूलें. इस मौसम में पशुओं को गुड़ भी खिलाते रहें. मुरगियों को ठंड से बचाने के लिए खास ध्यान दें. मुरगीघरों में बिछावन को गीला न होने दें. अधिक ठंड के समय बिजली के बल्बों को जला कर रखें.

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नजरिया-भाग 1: निखिल की मां अपनी बहू से क्या चाहती थी?

आज आशी जब अपनी जुड़वां बेटियों को स्कूल बस में छोड़ने आई तो रोज की तरह नहीं खिलखिला रही थी. मैं उस की चुप्पी देख कर समझ गई कि जरूर कोई बात है, क्योंकि आशी और चुप्पी का तो दूरदूर तक का वास्ता नहीं है.

आशी मेरी सब से प्यारी सहेली है, जिस की 2 जुड़वां बेटियां मेरी बेटी प्रिशा के स्कूल में साथसाथ पढ़ती हैं. मैं आशी को 3 सालों से जानती हूं. मात्र 21 वर्ष की उम्र में उस का अमीर परिवार में विवाह हो गया था और फिर 1 ही साल में 2 जुड़वां बेटियां पैदा हो गईं. रोज बच्चों को बस में बैठा कर हम दोनों सुबह की सैर को निकल जातीं. स्वास्थ्य लाभ के साथसाथ अपने मन की बातों का आदानप्रदान भी हो जाता. किंतु उस के चेहरे पर आज उदासी देख कर मेरा मन न माना तो मैं ने पूछ ही लिया, ‘‘क्या बात है आशी, आज इतनी उदास क्यों हो?’’

‘‘क्या बताऊं ऋचा घर में सभी तीसरा बच्चा चाहते हैं. बड़ी मुश्किल से तो दोनों बेटियों को संभाल पाती हूं. तीसरे बच्चे को कैसे संभालूंगी? यदि एक बच्चा और हो गया तो मैं तो मशीन बन कर रह जाऊंगी.’’

‘‘तो यह बात है,’’ मैं ने कहा, ‘‘तुम्हारे पति निखिल क्या कहते हैं?’’

‘‘निखिल को नहीं उन की मां को चाहिए बच्चा. उन का कहना है कि इतनी बड़ी जायदाद का कोई वारिस मिल जाता तो अच्छा रहता. असल में उन्हें एक पोता चाहिए.’’

‘‘पर क्या गारंटी है कि इस बार पोता ही होगा? यदि पोती हुई तो क्या वारिस पैदा करने के लिए चौथा बच्चा भी पैदा करोगी?’’

‘‘वही तो. पर निखिल की मां को कौन समझाए. फिर वे ही नहीं मेरे अपने मातापिता भी यही चाहते हैं. उन का कहना है कि बेटियां तो विवाह कर पराए घर चली जाएंगी. वंशवृद्धि तो बेटे से ही होती है.’’

‘‘तुम्हारे पति निखिल क्या कहते हैं?’’

‘‘वैसे तो निखिल बेटेबेटी में कोई फर्क नहीं समझते. किंतु उन का भी कहना है कि पहली बार में ही जुड़वां बेटियां हो गईं वरना क्या हम दूसरी बार कोशिश न करते? एक कोशिश करने में कोई हरज नहीं… सब को वंशवृद्धि के लिए लड़का चाहिए बस… मेरे शरीर, मेरी इच्छाओं के बारे में तो कोई नहीं सोचता और न ही मेरे स्वास्थ्य के बारे में… जैसे मैं कोई औरत नहीं वंशवृद्धि की मशीन हूं… 2 बच्चे पहले से हैं और बेटे की चाह में तीसरे को लाना कहां तक उचित है?’’

 

मैं सोचती थी कि जमाना बदल गया है, लेकिन आशी की बात सुन कर लगा कि हमारा समाज आज भी पुरातन विचारों से जकड़ा हुआ है. बेटेबेटी का फर्क सिर्फ गांवों और अनपढ़ घरों में ही नहीं वरन बड़े शहरों व पढ़ेलिखे परिवारों में भी है. यह देख कर मैं बहुत आश्चर्यचकित थी. फिर मैं तो सोचती थी कि आशी का पति बहुत समझदार है… वह कैसे अपनी मां की बातों में आ गया?

आशी मन से तीसरा बच्चा नहीं चाहती थी. न बेटा न बेटी. अब आशी अकसर अनमनी सी रहती. मैं भी सोचती कि रोजरोज पूछना ठीक नहीं. यदि उस की इच्छा होगी तो खुद बताएगी. हां, हमारा बच्चों को बस में बैठा कर सुबह की सैर का सिलसिला जारी था.

एक दिन आशी ने बताया, ‘‘ऋचा मैं गर्भवती हूं… अब शायद रोज सुबह की सैर के लिए न जा सकूं.’’

उस की बात सुन मैं मन ही मन सोच रही थी कि यह शायद निखिल की बातों में आ गई या क्या मालूम निखिल ने इसे मजबूर किया हो. फिर भी पूछ ही लिया, ‘‘तो अब तुम्हें भी वारिस चाहिए?’’

‘‘नहीं. पर यदि मैं निखिल की बात न मानूं तो वे मुझे ताने देने लगेंगे… इसीलिए सोचा कि एक चांस और ले लेती हूं. अब वही फिर से 9 महीनों की परेड.’’

इस के बाद आशी को कभी मौर्निंग सिकनैस होती तो सैर पर नहीं आती. देखतेदेखते 3 माह बीत गए. फिर एक दिन अचानक आशी मेरे घर आई. उसे अचानक आया देख मुझे लगा कि कुछ बात जरूर है. अत: मैं ने पूछा, सब ठीक तो है? कोई खास वजह आने की? तबीयत कैसी है तुम्हारी आशी?’’

आशी कहने लगी, ‘‘कुछ ठीक नहीं चल रहा है ऋचा… निखिल की मम्मी को किसी ने बताया है कि आजकल अल्ट्रासाउंड द्वारा गर्भ में ही बच्चे का लिंग परीक्षण किया जाता है… लड़की होने पर गर्भपात भी करवा सकते हैं. अब मुझे मेरी सास के इरादे ठीक नहीं लग रहे हैं.

लेखिका- रुचिका शर्मा

मेरी शादी को 5 साल हुए हैं, मेरे पति मुझे मारते पीटते हैं, मुझे क्या करना चाहिए?

सवाल

मैं विवाहित महिला हूं. विवाह को 5 वर्ष हुए हैं. मेरा 2 साल का बेटा है. समस्या यह है कि मेरे पति मुझे मानसिक तौर पर प्रताड़ित करने के साथसाथ मेरे साथ मारपीट भी करते हैं. उन के इस व्यवहार से परेशान हो कर एक वर्ष पूर्व मैं अपने मायके आ गई थी. मैं अपने पति से तलाक लेना चाहती हूं पर मेरे घर वाले नहीं चाहते कि मैं पति से तलाक लूं. मैं क्या करूं?

जवाब

आप ने अपनी समस्या में न तो यह  बताया कि पति के आप के प्रति दुर्व्यवहार का कारण क्या है. क्या वे दहेज को ले कर आप को प्रताड़ित करते हैं या आप से उन को कोई शिकायत है, जिस के चलते वे आप के साथ दुर्व्यवहार करते हैं. साथ ही, आप ने यह भी नहीं बताया कि आप के परिवार वाले क्यों नहीं चाहते कि आप अपने पति से तलाक लें.

आप के परिवार वालों की मंशा आप के तलाक न लेनेदेने के पीछे अगर यह है कि वे चाहते हैं कि आप अपने पति से सुलह कर लें ताकि आप की बसीबसाई गृहस्थी में बिखराव न आए, खासकर जबकि  आप का बेटा अभी छोटा है, तो हमारी भी आप के लिए यही सलाह होगी कि आप एक बार कोई भी निर्णय लेने से पहले अपने पति से उन के आप के प्रति गलत व्यवहार का कारण जानें.

अगर आप को उन से और उन्हें आप से कोई शिकायत है तो उस का समाधान ढूंढें व रिश्ते को टूटने से बचाने का प्रयास करें, क्योंकि तलाक के परिणाम किसी भी बसेबसाए घर के लिए अच्छे नहीं होते.

वैसे भी तलाक की प्रक्रिया अत्यंत जटिल व दुरूह होती है जिस के चलते तलाक लेने वाला न केवल आर्थिक रूप से, बल्कि मानसिक व शारीरिक रूप से भी प्रभावित होता है.

उपरोक्त कोशिशों के बाद भी अगर आप को लगे कि आप अपने पति के साथ अब और नहीं निभा सकतीं तो घरेलू हिंसा कानून के अंतर्गत आप उन से तलाक ले सकती हैं और मानसिक व शारीरिक प्रताड़ना के मुआवजे की मांग भी कर सकती हैं.

 

 

नेताविहीन विश्व

ऊंचे मकानोंचमचमाती सड़कोंविशाल कारखानोंफैलते शहरोंरेलोंहवाईजहाजोंभरपूर खानेपीने व पहनने के सामान के बावजूद आज दुनियाभर की जनता एक भय से भरी हुई है. आज कमी है सही नेताओं की. हर देश अपने यहां युवाभरोसेमंद नेता का अभाव ?ोल रहा है. हर नेता के न केवल पांव कीचड़ में सने हुए हैं बल्कि वह नाक तक गंदे पानी में डूबा भी है. कोई भी देश ऐसा नहीं जहां लोग रात में चैन की नींद सोते होंगे क्योंकि उन का नेता सब संभाल लेगा.

अमेरिका सब से समृद्ध देश है पर उस का भरोसा न आज का बूढ़ा होता राष्ट्रपति जो बाइडेन पैदा करता है न पिछला डोनाल्ड ट्रंप करता था. गलत फैसलों से अमेरिका चर्च का गुलामसंकीर्णवादी सा बन रहा है और वहां वे स्वतंत्रताएं धीरेधीरे खत्म हो रही हैं जिन पर गर्व किया जाता था.

चीन के नेता शी जिनपिंग दिखने में चाहे जितना सौम्य लगेंउन की सरकार बेहद क्रूर है. कोविड में उस ने जो तानाशाही अपनाई है उस से जनता भयभीत है. चीन की प्रगति की गति रुक गई है.

रूस के नेता व्लादिमीर पुतिन ने रूस को एक छोटे से देश यूक्रेन के साथ अनावश्यक युद्ध में ?ांक दिया और इस चक्कर में पूरे यूरोप को सैनिक तैयारी फिर से करने को मजबूर कर दिया. रूसी जनता अब सेना में शामिल नहीं होना चाहती और अकेले कजाखिस्तान में

90 हजार रूसी युवक शरण ले चुके हैं ताकि इस गलत नेता के गलत युद्ध में उन्हें जुड़ना न पड़े.

इंगलैंड के नए प्रधानमंत्री ऋषि सुनक भी कोई संतोष देने वाले नहीं हैं. फ्रांस के मैक्रों की हालत ढुलमुल है. इटली और स्वीडन दक्षिणपंथीजो कट्टरपंथी भी हैंके हाथों में हैं जहां धौंस चलती हैशांति या सौहार्द नहीं.

भारत का तो कहना क्या. पिछली यूपीए सरकार भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरी थी तो यह सरकार मंदिर उद्योग के अलावा बाकी सब को तारतार कर रही हैसमाज को तोड़ रही हैरातदिन हिंदूमुसलिमहिंदूमुसलिम करती रहती है. नरेंद्र मोदी पर भरोसा कट्टर हिंदू समर्थक ही करते हैं. उन की पार्टी का एक ही एजेंडा है- धर्म का धंधा.

जापानअफ्रीकाआस्ट्रेलिया कहीं का नाम ले लेंकहीं भी ऐसा नेता नहीं है जिस पर कुछ भरोसा किया जा सके. ऐसा कोई उद्योगपति नहीं बचा जो अपने मुनाफे के बाहर जनता का भला सोच रहा हो. एलन मस्कबिल गेट्समार्क जुकरबर्ग आम लोगों के दिमाग को जकड़ रहे हैंबहका रहे हैंउन्हें नया सोचने की जमीन नहीं दे रहे बल्कि भड़का कर एकदूसरे से लड़ने की जमीन मुहैया कर रहे हैं.

सारी दुनिया आज कैमरों के चंगुल में है और कैमरे उन के हाथों में हैं जिन्हें सिर्फ काला दिखता है और वे हर सफेद कपड़े वाले को रंगा हुआ सम?ाते हैं और रंगा साबित करने का टूल हाथ में रखते हैं.

 अच्छे युवा नेताओं के अभाव के पीछे इंटरनैट की कारस्तानी है जिस ने दुनिया को एक तो किया पर शांतिसद्भाव के लिए नहीं. इस ने समाजपरिवार को तोड़ने और गालीगलौज दूरदूर तक भेजने के लिए भी प्लेटफौर्म दिया है. इंटरनैट ने लोगों को अंतर्मुखी बना डाला. बच्चे होते ही पड़ोसियों की तो छोडि़एभाईबहनमातापिता को भी भूलने लगे हैं. वे और उन का मोबाइल जिस पर वे एकदूसरे पर भड़ास ज्यादा निकालते हैंदूसरों के आगे दोस्ती का हाथ कम बढ़ाते हैं.

इंटरनैट ने और मोबाइल व लैपटौप ने एक पीढ़ी पैदा कर दी है जो दूसरों की चिंता ही नहीं करती क्योंकि आज के लोग आंख उठा कर दूसरों को देखते ही नहीं. इस पीढ़ी के लोग 24 घंटे में से 8 घंटे सोते हैं जबकि 8 घंटे स्क्रीन पर आंख गड़ाए रहते हैं और उन्हें वही भाता है जो भड़काऊ होगालियों से भरा हुआ होघृणा सिखाता होछिपने की छूट देता हो और दूसरों की गंद को बाहर सड़क पर एक्जीबिट करने का मौका देता हो.

इंटरनैट आज नेता बना हुआ है आंधी की तरह का जो सब को उड़ा ले जा रहा हैतोड़ रहा हैगिरा रहा है और नेता के गुण किसी में पनपेंइस से पहले वह उस को बाहर ले जाता है. इस इंटरनैट युग की चलती हवा में कोई नेता नहीं बच रहा.                        

Best of Manohar Kahaniya: पुखराज की ‘खूनी’ लीला

सौजन्य- मनोहर कहानियां

लीला और पुखराज का विवाह 2017 में हुआ था. पुखराज का परिवार जिला अजमेर के पीसांगन के नाड क्षेत्र में रहता था. पुखराज जाट को मिला कर उस के 5 भाई थे. यह परिवार कई पुश्तों से नाड के पास खेतों में बनी ढाणी में रह रहा था. सारे भाई खेतीबाड़ी व पशुपालन के साथ प्राइवेट नौकरी कर के अपने परिवार का लालनपालन करते थे.

पुखराज की पत्नी लीला का मायका अजमेर जिले के किशनगढ़ की बजरंग कालोनी में था. उस के परिवार में उस की मां रामकन्या और भाई किशन जाट थे. पुखराज और लीला का दांपत्य जीवन खुशहाली में गुजर रहा था. पतिपत्नी में प्यार भी था और अंडरस्टैंडिंग भी. जब दोनों के बीच बेटी अनुप्रिया आ गई तो खुशियां और भी बढ़ गईं.

लीला अपनी मासूम बेटी अनुप्रिया से बहुत प्यार करती थी. उस की वजह से वह पति को पहले की तरह समय नहीं दे पाती थी. इस बात को ले कर दोनों के अपनेअपने तर्क थे. लेकिन पुखराज लीला के तर्कों से संतुष्ट नहीं होता था.

लीला ज्यादातर अपने मायके बजरंग कालोनी, किशनगढ़ में रहती थी. पुखराज को यह अच्छा नहीं लगता था, इसलिए उस ने अपना घर छोड़ कर किशनगढ़ के वार्ड नंबर-2, गांधीनगर में किराए का मकान ले लिया और वहीं रहने लगा.

लीला कहने को तो पति पुखराज को अपना सर्वस्व मानती थी, लेकिन उस का अवैध संबंध सिमारों की ढाणी में रहने वाले रामस्वरूप जाट से था. रामस्वरूप पैसे वाला था. जब उस की नजरें लीला से टकराईं तो वह उसे पाने को बेताब हो उठा. जब तक उस ने लीला का तन नहीं भोगा, तब तक उस के पीछे पड़ा रहा.

लीला और रामस्वरूप ने एकदूसरे के मोबाइल नंबर ले रखे थे. जब भी मौका मिलता, दोनों मोबाइल पर बात कर के मिलने की जगह तय कर लेते. रामस्वरूप अपनी प्रेमिका की हर चाहत पूरी करता था. यही वजह थी कि लीला अपने पति पुखराज के बजाय रामस्वरूप को ज्यादा तवज्जो देती थी.

वैसे भी रामस्वरूप पुखराज से स्मार्ट और गठीले बदन वाला युवक था. बातें भी रसदार करता था और तन के खेल में भी माहिर था. रामस्वरूप के आगे पुखराज कुछ नहीं था. लीला ने भी अब अपने दिल में पति की जगह प्रेमी की तसवीर बसा ली थी.

कह सकते हैं कि वह रामस्वरूप पर फिदा थी. दांपत्य में जब भी ऐसा होता है, पतिपत्नी के रिश्ते में दरार आ जाती है. पुखराज लीला के रूखेपन को समझ नहीं पा रहा था. इस सब को ले कर वह मन ही मन परेशान रहने लगा.

जो लीला पुखराज को ले कर प्यार का दंभ भरती थी, उसे वही पति अब फूटी आंख नहीं सुहाता था. बहरहाल, पतिपत्नी में मनमुटाव रहने लगा तो आपसी रिश्तों में भी खटास आ गई.

पुखराज ने लिखाई रिपोर्ट

दिसंबर, 2019 में पुखराज ने रामस्वरूप जाट और उस के दोस्त सुरेंद्र के खिलाफ थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई. उस ने रामस्वरूप जाट और सुरेंद्र जाट पर पत्नी और बेटी के अपहरण और पत्नी से बलात्कार का आरोप लगाया था.

उस की रिपोर्ट के आधार पर पुलिस ने रामस्वरूप और सुरेंद्र को गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में रामस्वरूप ने बताया कि पुखराज की पत्नी लीला अपनी मरजी से उस के साथ गई थी, साथ में उस की बेटी भी थी.

पूछताछ के बाद पुलिस ने दोनों को जेल भेज दिया. गिरफ्तारी के 2 महीने बाद रामस्वरूप जमानत पर छूट गया. उसे लीला से कोई शिकायत नहीं थी. सो उस से फिर से मिलने लगा. इसी बीच रामस्वरूप ने लीला, उस की मां रामकन्या और भाई किशन जाट पर दबाव डाला कि वे पुखराज से राजीनामा करवा दें.

रामस्वरूप के कहने पर लीला, उस की मां और भाई ने पुखराज पर दबाव बना कर कहा कि रामस्वरूप और सुरेंद्र को सजा दिला कर उसे क्या हासिल होगा. बेहतर यह है कि राजीनामा कर ले. लेकिन पुखराज ने समझौते से साफ मना कर दिया.

लीला ने यह बात मां, भाई और रामस्वरूप को बता दी. इस से पतिपत्नी के रिश्ते में और भी जहर घुलने लगा. रामस्वरूप की तमाम कोशिशों के बाद भी पुखराज राजीनामे को राजी नहीं हुआ. दरअसल, रामस्वरूप को डर था कि पुखराज द्वारा दर्ज कराए गए अपहरण और दुष्कर्म के केस में उसे और सुरेंद्र को सजा हो जाएगी.

सजा के डर से ही रामस्वरूप पुखराज पर राजीनामे के लिए दबाव बना रहा था. जबकि पुखराज किसी भी कीमत पर राजीनामे के लिए तैयार नहीं था.

अपना दांव खाली जाता देख रामस्वरूप ने यह कह कर लीला की मां और भाई किशन को पुखराज के खिलाफ भड़काया कि वह कैसा दामाद है जो तुम लोगों का इतना कहना भी नहीं मानता. वह तुम सब की थाने, कचहरी में इज्जत उछाल रहा है और तुम चुप हो. उस ने यह भी कहा कि लीला को उस से अलग हो जाना चाहिए. ऐसा करने पर वह अपने आप राजीनामे को तैयार हो जाएगा.

रामस्वरूप के भड़काने से लीला भी उस की बातों में आ कर पुखराज से रिश्ता तोड़ने को तैयार हो गई. पुखराज को अपने हितैषियों से पता चल गया कि लीला और रामस्वरूप के बीच अवैध संबंध हैं. यह जान कर पुखराज को गहरा आघात लगा. उस ने लीला से इस मामले में बात की तो वह उस पर चढ़ दौड़ी.

इस के बाद पतिपत्नी में रोज झगड़ा होने लगा. दिनबदिन दोनों के बीच दूरियां बढ़ती गईं. मतभेद इतने गहरे हो गए कि लीला ने मां के कहने पर वकील के मार्फत पुखराज को तलाक का नोटिस भिजवा दिया.

पतिपत्नी ने वकील के हलफनामे के आधार पर एकदूसरे से दूर रहने का निर्णय ले लिया. फिर दोनों अलग हो गए. डेढ़ वर्षीय बेटी अनुप्रिया को पुखराज ने अपने पास रख लिया. लीला ने खूब हाथपैर मारे कि बेटी उसे मिल जाए, मगर पुखराज नहीं माना. बच्ची का वह स्वयं पालनपोषण करने लगा.

पुखराज बेटी के साथ किशनगढ़ में ही वार्ड नंबर 2 गांधीनगर में किराए के मकान में रहता था. जबकि लीला बजरंग कालोनी, किशनगढ़ में मां रामकन्या और भाई किशन के साथ रहती थी. मकान के 2 हिस्से थे, एक हिस्से में लीला रहती थी, जबकि दूसरे हिस्से में उस की मां व भाई रहते थे.

पति से अलग हो कर लीला स्वच्छंद हो गई थी. अब वह और रामस्वरूप खुल कर खेलने लगे. दोनों की मौज ही मौज थी. रामस्वरूप सिमारों की ढाणी का रहने वाला था, लेकिन टिकावड़ा गांव में किराए पर रहता था. उस का दोस्त सुरेंद्र, इसी गांव का रहने वाला था.

एक गांव में रहने और एकदूसरे से विचार मिलने की वजह से दोनों जिगरी यार बन गए थे. रामस्वरूप लीला से मिलने किशनगढ़ जाता था और रंगरेलियां मना कर टिकावड़ा लौट आता था.

मोबाइल पर भी दोनों की खूब बातें होती थीं. रामस्वरूप और लीला एकदूसरे पर जान न्यौछावर करते थे. उधर पत्नी से अलग हो कर पुखराज जैसेतैसे दिन काट रहा था.

पुखराज हुआ गायब

22 फरवरी, 2020 की रात पुखराज ने अपनी मासूम बेटी अनुप्रिया को अपने मकान मालिक को देते हुए कहा कि वह एक जरूरी काम से कहीं जा रहा है, काम होते ही लौट आएगा. लेकिन पुखराज वापस नहीं लौटा.

उस के न आने से मकान मालिक परेशान हो गया. क्योंकि उस की मासूम बेटी रो रही थी. पुखराज के भाई दिलीप जाट ने उस के मोबाइल पर काल लगाई तो फोन लीला ने उठाया. दिलीप ने पूछा कि पुखराज कहां है, इस पर लीला ने कहा कि वह मोबाइल उस के पास छोड़ कर पता नहीं कहां चला गया. वापस लौटेगा तो बता देगी.

इस पर दिलीप जाट ने 24 फरवरी, 2020 को थाना गांधीनगर, किशनगढ़ में अपने भाई पुखराज की गुमशुदगी दर्ज करा दी. गांधीनगर थाना पुलिस ने पुखराज की काफी खोजबीन की, लेकिन उस का कहीं पता नहीं चला.

पुखराज को उस के भाइयों ने भी नातेरिश्तेदारों में खूब ढूंढा. लेकिन उस के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. पूछताछ में लीला ने बताया कि पुखराज और मैं ने कागजों में भले ही तलाक ले लिया था, लेकिन पुखराज अकसर उस से मिलने आता रहता था.

पता चला कि 22 फरवरी को पुखराज लीला से मिलने बजरंग कालोनी आया था. वह अपना मोबाइल वहीं छोड़ कर कहीं चला गया था. लीला का कहना था कि उस ने सोचा वह अपना मोबाइल भूल से छोड़ गया होगा, बाद में ले जाएगा. लेकिन वह नहीं आया.

दिन पर दिन गुजरते गए, लेकिन पुखराज का कहीं कोई पता नहीं लगा. पुलिस ने उसे ढूंढने में अपनी ओर से कोई कमी नहीं रखी थी. 2 हफ्ते गुजर जाने पर भी पुलिस पुखराज का सुराग नहीं लगा सकी. उस के घर वाले भी उसे सब जगह तलाश कर चुके थे. पुखराज के भाई दिलीप जाट की समझ में नहीं आ रहा था कि वह गया तो कहां गया.

अचानक दिलीप को याद आया कि 23 फरवरी की शाम जब वह पुखराज को तलाशने उस की पूर्वपत्नी लीला के घर गया था, तब उस ने उस के घर में पुखराज की चप्पल पड़ी देखी थीं. उस ने लीला से पूछा भी था कि पुखराज के चप्पल तो यहीं हैं, वह बाहर क्या पहन कर गया? इस पर लीला कुछ नहीं बता पाई थी.

दिलीप को अब जा कर कुछकुछ कहानी समझ में आ रही थी. उस ने पुखराज के गायब होने के बाद 2-4 बार लीला के पास रामस्वरूप जाट को भी देखा था. वह इतना नादान नहीं था कि कुछ समझ नहीं पाता. उसे संदेह हुआ कि लीला और रामस्वरूप ने पुखराज को कहीं गायब कर दिया है या फिर मार डाला है. यह विचार मन में आया तो दिलीप 6 मार्च, 2020 को थाना गांधीनगर, किशनगढ़ पहुंचा.

दिलीप ने थानाप्रभारी राजेश मीणा को एक प्रार्थनापत्र दिया. अपनी अरजी में उस ने पुखराज की हत्या का संदेह जताया था. उसे पुखराज की पूर्वपत्नी लीला, प्रेमी रामस्वरूप, सुरेंद्र और रामकन्या पर संदेह था.

केस दर्ज कर के गांधीनगर थाने की पुलिस लीला और रामस्वरूप को थाने ले आई और दोनों से सख्ती से पूछताछ की. पहले तो दोनों ने पुलिस को गुमराह करने की कोशिश की, लेकिन जब पुलिस ने सख्त तेवर दिखाए तो दोनों टूट गए. लीला और रामस्वरूप ने पुखराज की हत्या करने की बात स्वीकार ली.

लीला और रामस्वरूप ने पुलिस पूछताछ में बताया कि 22 फरवरी को पुखराज लीला से मिलने बजरंग कालोनी स्थित लीला के मायके आया था. लीला ने  उसे फोन कर के बुलाया था. लीला ने पुखराज को बियर पिलाई, जिस में नींद की गोलियां मिली थीं. थोड़ी देर में वह बेसुध हो कर सो गया. तब लीला ने फोन कर के रामस्वरूप से कहा, ‘‘पुखराज को मैं ने नशीली दवा डाल कर बियर पिला दी है. अब यह बेहोश हो गया है. आओ और जो करना है, कर डालो.’’

रामस्वरूप अपनी बाइक से लीला के घर पहुंच गया. उस ने बेसुध पड़े पुखराज पर कुल्हाड़ी से घातक वार किया, जिस से पुखराज का सिर धड़ से अलग हो गया. खून का फव्वारा फूट पड़ा. फर्श, आंगन दीवारों और उन दोनों के कपड़े खून से लाल हो गए. रात में ही दोनों ने पुखराज के शव को प्लास्टिक की बोरी में भर दिया. दोनों ने रात में ही आंगन, बिस्तर, कपड़े और दीवार वगैरह धो कर खून के धब्बे मिटा दिए.

बेरहम पत्नी और उस का यार

रामस्वरूप ने सुबहसुबह पुखराज के शव को बाइक पर लादा और टिकावड़ा गांव से थोड़ी दूर जंगल में बने एक गड्ढे में डाल दिया. फिर उस ने लाश पर पैट्रोल डाल कर आग लगा दी. इस के बाद वह टिकावड़ा लौट आया.

अगले दिन रामस्वरूप पुखराज के शव की हालत देखने जंगल में गया. तब तक अधजले शव को चीलकौवों ने नोचनोच कर आधा कर दिया था. उस वक्त भी मांसाहारी पक्षी शव को नोच रहे थे. यह देख उसे दहशत सी हुई और वह घबरा कर लौट आया.

लीला और रामस्वरूप ने पुखराज के घर वालों और पुलिस को शुरू से आखिर तक रटेरटे जवाब दिए थे ताकि वे शांत रहें.

हत्या की स्वीकारोक्ति के बाद इंसपेक्टर राजेश मीणा ने घटना की पूरी जानकारी उच्चाधिकारियों को दे दी. पुलिस ने लीला और रामस्वरूप को 7 मार्च, 2020 को गिरफ्तार कर लिया. जानकारी मिलने पर एएसपी (ग्रामीण) किशन सिंह भाटी, डीएसपी गीता चौधरी, किशनगढ़ थानाप्रभारी मनीष सिंह चारण गांधीनगर थाने पहुंच गए. सभी ने पुखराज के हत्यारों से पूछताछ की.

पूछताछ के बाद पुलिस आरोपियों को टिकावड़ा के जंगल में ले गई. वहां पुखराज के शव को तलाश किया गया तो खोपड़ी और इधरउधर फैली कंकाल की हड्डियां ही मिल पाईं. पुलिस ने जंगल में करीब 2 किलोमीटर की परिधि में शव के टुकड़ों की तलाश की. पुलिस अधिकारियों ने विशेषज्ञों की टीम को मौके पर बुलाया और यह जानने की कोशिश की कि कंकाल पुरुष का है या स्त्री का.

कंकाल पुरुष का होने की पुष्टि के बाद पुलिस ने सर्च कर के मृतक के शरीर के अन्य हिस्सों को ढूंढा. आसपास के क्षेत्र में मानव शरीर के कई हिस्सों की हड्डियों के टुकड़े मिले.

पुखराज की हत्या के 14 दिन बाद यह बात साफ हो गई कि उस का कत्ल हुआ था. एफएसएल की टीम ने घटनास्थल पर आ कर जांच के लिए नमूने लिए.

एडीशनल एसपी किशन सिंह भाटी, डीएसपी गीता चौधरी, किशनगढ़ थानाप्रभारी मनीष सिंह चारण और गांधीनगर एसएचओ राजेश मीणा की उपस्थिति में हत्या का सीन रीक्रिएट कराया गया.

रामस्वरूप किशनगढ़ से 30 किलोमीटर दूर टिकावड़ा में किराए का मकान ले कर रहता था, वह किशनगढ़ आताजाता रहता था. सुनसान होने की वजह से उस ने शव फेंकने के लिए इस जंगल को हत्या से पहले ही चुन लिया था. मनरेगा का काम होने की वजह से वहां गड्ढे भी खुदे थे. पुखराज का शव पहचाना न जा सके, इसलिए रामस्वरूप ने शव पर पैट्रोल डाल कर उसे जला दिया था.

पशुपक्षियों का निवाला बना पुखराज

पक्षियों और जंगली जानवरों ने हड्डियां जगहजगह बिखेर दी थीं. पुलिस ने हड्डियों को एकत्र कर एफएसएल की जांच के लिए भेज दिया. जांच में जुटी पुलिस टीम का मानना था कि पैट्रोल से जलाने के बाद भी शव पूरा नहीं जला था. बाद में उसे पक्षियों और जंगली जानवरों ने नोचा.

पुलिस ने बताया कि लीला अपने पति से अलगाव के बाद बजरंग कालोनी, किशनगढ़ स्थित मायके में अकेली रहती थी. पुखराज कभीकभार उस से मिलने आता था. 22 फरवरी की रात लीला ने फोन कर पुखराज को घर बुलाया था. लीला ने यह जानकारी रामस्वरूप को दे दी थी.

लीला ने पुखराज को नींद की गोलियां डाल कर बियर पिलाई. ज्यादा नशा होने के कारण पुखराज सो गया. आधी रात को रामस्वरूप ने कुल्हाड़ी से पुखराज के सिर पर वार किया, जिस से उस की मौत हो गई. रामस्वरूप और लीला ने रात भर घर में फैला खून साफ किया और पुखराज की लाश को प्लास्टिक की बोरी में पैक कर दिया.

23 फरवरी की सुबह रामस्वरूप लाश को अपनी मोटरसाइकिल पर पीछे बांध कर ले गया और ठिकाने लगा आया. अपने साथ वह पैट्रोल भी ले गया. लाश को जंगल में मनरेगा के तहत खोदे गए गड्ढे में डाल कर उस पर कैन का पैट्रोल उड़ेल कर आग लगा दी.

8 मार्च, 2020 को पुलिस ने आरोपी लीला जाट और उस के प्रेमी रामस्वरूप जाट को अवकाशकालीन मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश कर दोनों को पूछताछ के लिए 2 दिन के रिमांड पर ले लिया.

इस अवधि में थाना गांधीनगर की पुलिस ने आरोपियों की निशानदेही पर खून से सने बिस्तर, कपड़े, वारदात में इस्तेमाल की गई कुल्हाड़ी और मोटरसाइकिल बरामद कर ली. इस के बाद दोनों को फिर से अदालत पर पेश कर जेल भेज दिया गया.

रामस्वरूप और लीला का सपना था कि पुखराज को रास्ते से हटाने के बाद मौज से रहेंगे. लेकिन पासा उलटा पड़ गया और दोनों अपने गुनाह से बच नहीं सके.

अक्ल वाली दाढ़ : कयामत बन कर कैसे आई दाढ़

हमबचपन से सुनतेसुनते तंग आ चुके थे कि तुम्हें तो बिलकुल भी अक्ल नहीं है. एक दिन जब हम इस बात से चिढ़ कर रोंआसे से हो गए तो हमारी बूआजी ने हमें बड़े प्यार से समझाया, ‘‘बिटिया, अभी तुम छोटी हो पर जब तुम बड़ी हो जाओगी तब तुम्हारी अक्ल वाली दाढ़ आएगी और तब तुम से कोई यह न कहेगा कि तुम में अक्ल नहीं है.’’ बूआ की बातें सुन कर हमारे चेहरे पर मुसकान आ गई और हम रोना भूल कर खेलने चले गए. अब हम पूरी तरह आश्वस्त थे कि एक न एक दिन हमें भी अक्ल आ ही जाएगी और देखते ही देखते हम बड़े हो गए और इंतजार करने लगे कि अब तो जल्द ही हमें अक्ल वाली दाढ़ आ जाएगी. इस बीच हमारी शादी भी हो गई.

अब ससुराल में भी वही ताने सुनने को मिलते कि तुम्हें तो जरा भी अक्ल नहीं. मां ने कुछ सिखाया नहीं. यही सब सुनतेसुनते वक्त बीतता चला गया पर अक्ल वाली दाढ़ को न आना था न वह आई. अब जब 40वां साल भी पार कर लिया तो हम ने उम्मीद ही छोड़ दी पर एक दिन हमारी चबाने वाली दाढ़ में बहुत तेज दर्द उठा. यह दर्द इतना बेदर्द था कि इस की वजह से हमारे गाल, कान यहां तक कि सिर भी दुखने लगा. हम दर्द से बेहाल गाल पर हाथ धरे आह उह करते फिर रहे थे. जिस ने भी हमारे दांत के दर्द के बारे में सुना उस ने यही कहा, ‘‘अरे, तुम्हारी अक्ल वाली दाढ़ आ रही होगी. तभी इतना दर्द हो रहा है.’’

हम बड़े खुश हुए कि चलो देर से ही सही पर अब हमें भी अक्ल आ ही जाएगी. पर जब हमारा दर्द के मारे बुरा हाल हुआ तो हम ने सोचा इस से हम बिना अक्ल के ही ठीक थे. डैंटिस्ट के पास गए तो उन्होंने बताया आप की अंतिम वाली दाढ़ कैविटी की वजह से सड़ चुकी है. उसे निकालना होगा. तब हम ने जिज्ञासावश पूछ लिया, ‘‘क्या यह हमारी अक्ल वाली दाढ़ थी?’’

हमारे इस सवाल पर डैंटिस्ट महोदय मुसकराते हुए बोले, ‘‘जी मैम, यह आप की अक्ल वाली दाढ़ ही थी.’’ अब बताइए देर से आई और कब आई यह हमें पता ही नहीं चला और सड़ भी गई. दर्द बरदाश्त करने से तो अच्छा यही था कि हम उसे निकलवा ही दें. डैंटिस्ट ने तीसरे दिन बुलाया था सो हम तीसरे दिन दाढ़ निकलवाने वहां पहुंच गए. वहां दांत के दर्द से पीडि़त और लोग भी बैठे थे, जिन में एक छोटी सी 5 साल की बच्ची भी थी. उस के सामने वाले दूध के दांत में कैविटी थी. वह भी उस दांत को निकलवाने आई थी. हम ने उस से उस का नाम पूछा तो वह कुछ नहीं बोली. बस अपना मुंह थामे बैठी रही.

उस की मम्मी ने बताया कि 3 दिन से दर्द से बेहाल है. पहले तो दांत निकलवाने को तैयार नहीं थी पर जब दर्द ज्यादा होने लगा तो बोली चलो दांत निकलवाने. हमारा नंबर उस बच्ची के पीछे ही था. पहले उसे बुलाया गया और सुन्न करने वाला इंजैक्शन लगाया गया, जिस से उस के पूरे मुंह में सूजन आ गई. अब हमारी बारी थी. वैसे आप को बता दें हम देखने में हट्टेकट्टे जरूर हैं पर हमारा दिल एकदम चूहे जैसा है. खैर, हमें भी इंजैक्शन लगा और 10 मिनट बाद आने को कहा गया. हम मुंह पकड़े वहीं सोफे पर ढेर हो गए.

अभी हमें चकराते हुए 10 मिनट ही बीते थे कि हमें फिर अंदर बुलाया गया और निकाल दी गई हमारी अक्ल वाली दाढ़. जब दाढ़ निकाली तो हमें दर्द का एहसास नहीं हुआ पर डैंटिस्ट ने एक रुई का फाहा हमारी निकली हुई दाढ़ वाली खाली जगह लगा दिया. उस पर लगी दवा का स्वाद इतना गंदा था कि हम ने वहीं उलटी कर दी. इस पर हमें नर्स ने खा जाने वाली नजरों से देखा तो हम गाल पकड़े बाहर आ गए. हमारा छोटा बेटा जो हमारे साथ ही था ने बताया कि डैंटिस्ट अंकल ने कहा है कि 1 घंटे तक रुई नहीं निकालनी है. बड़ी मुश्किल से यह वक्त बीता और फिर हमें आइस्क्रीम खाने को मिली. एक तरफ से सूजे हुए मुंह से आइस्क्रीम खाते हुए हम बड़े फनी से लग रहे थे. बच्चे हमारी मुद्राएं देखदेख कर हंसे जा रहे थे. अब हम ने जो दर्द सहा सो सहा पर यह तो हमारे साथ बड़ी नाइंसाफी हुई न कि जिस अक्ल दाढ़ का सालों इंतजार किया वह आई भी तो कैसी. जो भी हो हम तो आखिर रह गए न वही कमअक्ल के कमअक्ल.

Winter 2023 : आज से ही खाने में रोज शामिल करें ये 10 चीजें, हमेशा रहेंगी फिट

महिलाओं, जो घरबाहर दोनों की जिम्मेदारी संभालती हैं, की सेहत के लिए पौष्टिक व हैल्दी खानपान अत्यंत जरूरी है. बदलती भूमिका के चलते वे सेहत संबंधी कई परेशानियों को भी आमंत्रित करने लगी हैं. सुबह जल्दीजल्दी घर की जिम्मेदारियों को पूरा कर के औफिस भागना और दिनभर औफिस की जद्दोजेहद के बाद शाम को फिर घर की जिम्मेदारी. इस सब के बीच कहीं न कहीं महिलाओं की सेहत की अनदेखी हो ही जाती है. इसलिए जरूरी है कि वे अपने दैनिक भोजन में कुछ ऐसे बेहतरीन खा- पदार्थों को शामिल करें जिन से वे अच्छी सेहत की दिशा में आगे बढ़ सकें.

लहसुन

– रक्तचाप कम करने में मददगार होती है.

– विटामिन बी6, विटामिन सी, मैग्नीशियम, सैलेनियम के साथ अत्यधिक पोषणयुक्त होती है.

– कोलैस्ट्रौल के स्तर में कमी होती है.

– एंटीऔक्सीडैंट की खूबी है.

– हड्डियों को मजबूत करती है.

अदरक

– जलन और दर्द में कमी लाता है.

– सर्दी और फ्लू से बचाव करता है.

– डायबिटिक नेफ्रोपैथी से बचाव करता है.

– कोलोन कैंसर से बचाव करती है.

संतरा

– विटामिन सी का बेहतरीन स्रोत होता है.

– प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है.

– त्वचा की कांति बनाए रखता है.

– आंखों की रक्षा करता है.

– एचडी, कैंसर से रक्षा करता है.

– अत्यधिक फाइबर डायबिटीज नियंत्रित करने में मददगार होता है.

अलसी के बीज

– फाइबर का अच्छा स्रोत और लैक्सेटिव की तरह काम करते हैं.

– अलसी के बीजों का तेल ओमेगा-3 एफए का अच्छा स्रोत है जो कोलैस्ट्रौल नियंत्रण के लिए लाभदायक है.

-मैग्नीशियम का अच्छा स्रोत है.

आंवला

– कम कैलोरी वाला फल है.

– कार्बोहाइडे्रट, फाइबर, विटामिन सी और खनिजों का अच्छा स्रोत है.

– एंटीऔक्सीडैंट का अच्छा स्रोत है.

– बालों की जड़ों को मजबूत बनाता है.- कोलैस्ट्रौल कम करता है.

– कैंसर से बचाता है

– रक्तचाप को कम करता है.

चुकंदर

– सर्वश्रेष्ठ एंटीऔक्सीडैंट है.

– रक्तचाप कम करता है.

– कोलैस्ट्रौल नियंत्रित करता है.

– फोलिक एसिड, आयरन, जिंक, मैग्नीशियम, पोटैशियम, विटामिन सी, फाइबर, कार्बोहाइड्रेट का शानदार स्रोत है.

– मधुमेह को नियंत्रित करता है.

– वजन नियंत्रण में मददगार होता है.

फलियां

हृदय के लिए लाभदायक होती हैं.

– वसा कम, फाइबर अधिक होता है.

– प्रोटीन का स्रोत है.

– रक्त में शुगर की मात्रा को नियंत्रित करती हैं.

– कैंसर के जोखिम को कम करती हैं.

शकरकंद

– फाइबर का स्रोत, पाचन तंत्र को सेहतमंद बनाता है.

– हृदय के लिए लाभदायक है.

– बीटा कैरोटीन युक्त है.

– विटामिन सी और विटामिन ई एवं एंटीऔक्सीडैंट से भरपूर है.

– बीमारियों से बचाव और लंबे जीवन में अहम भूमिका निभाता है.

पालक

– विटामिन, खनिज और अन्य फाइटोन्यूट्रिएंट के अहम स्रोत के साथ कम कैलोरी का भोजन है.

– एंटी औक्सीडैंट से युक्त है.

– हृदय के लिए लाभदायक है.

– आंखों की बीमारियों से बचाता है.

दही

– कैल्शियम और विटामिन डी की जरूरत पूरी करता है.

– हड्डियों और दांतों को मजबूती देता है.

– रक्तचाप को सामान्य रखने में मदद करता है.

– पाचन प्रणाली को स्वस्थ रखता है.

– रक्त में कोलैस्ट्रौल की मात्रा को कम रखता है.

इस प्रकार रोजाना के भोजन में इन बेहतरीन खा- पदार्थों को शामिल कर महिलाएं न सिर्फ स्वस्थ रह सकती हैं बल्कि अपने स्वास्थ्य को बेहतर बना भी सकती हैं.

Makar Sankrati 2023 : आटा-सूजी मेवा लड्डू से त्यौहार बनाएं खास

लड्डू हिंदुस्तानी मिठाईखोरों की कमजोरी होते हैं. बेसन के लड्डू, मोतीचूर के लड्डू, मावे के लड्डू वगैरह खाने के शौकीन हर भारतीय घर में मिल जाएंगे. शौकीनों के लिए एक खास सौगात है आटासूजी मेवा लड्डू. आटा हमेशा से खाने की सब से अच्छी चीजों में गिना जाता रहा है. यह केवल रोटी बनाने भर के काम नहीं आता, बल्कि मिठाई बनाने में भी इस का काफी इस्तेमाल होता है. आटे से तैयार मिठाई जल्दी खराब नहीं होती. बहुत समय पहले से आटे से पूए और मीठी गोलियां जैसी मिठाइयां तो बनती ही रही हैं. अब आटे के साथ सूजी और मेवे मिला कर बहुत ही अच्छे और स्वादिष्ठ लड्डू तैयार किए जाने लगे हैं. इन का सेवन करने से शरीर को भरपूर ताकत भी मिलती?है.

सर्दियों के मौसम में ये लड्डू बेहद फायदेमंद साबित होते हैं. आटासूजी के लड्डू बनाने में माहिर ज्योति जुल्का कहती हैं, ‘आटा और सूजी ऐसी चीजे?हैं, जो हर किसी के पास मौजूद होती हैं. इन से लड्डू बनाना बहुत आसान है.

आटासूजी के लड्डू को सस्ता करने के लिए इस में मेवों का इस्तेमाल कम किया जा सकता है. मेवे मिलने से ये लड्डू बहुत महंगे हो जाते हैं.’ इन लड्डुओं का कारोबार करने वाले प्रिमेश लाल कहते हैं, ‘आज के समय में लोग खानेपीने में पुराने स्वाद को याद करने लगे हैं. ऐसे में आटासूजी और मेवे के लड्डू तेजी से प्रचलन में आ रहे हैं.

घर में बनने वाली यह मिठाई अब बाहर आ गई है और दुकानों में बिकने लगी है. इस के प्रचलन में आने से गेहूं की खेती करने वाले किसानों को भी लाभ होगा. वे इस का कारोबार कर सकते हैं. सब से अच्छी बात यह है कि ये लड्डू जल्दी खराब नहीं होते. इन को ले जाने के लिए किसी खास तरह की पैकिंग की जरूरत नहीं होती. कई बड़े होटल इन को अपने फूड फेस्टिवल में शामिल करने लगे?हैं.

लड्डू बनाने की सामग्री

गेहूं का आटा 1 किलोग्राम, सूजी 150 ग्राम, देसी घी 600 मिलीलीटर, बूरा या पिसी हुई चीनी 500 ग्राम. इस के अलावा काजू, बादाम, किशमिश, घिसा हुआ नारियल और मखाने इच्छानुसार.

बनाने की विधि

आटे को कड़ाही में गैस पर धीमी आंच पर भूरा होने तक भून लें. एक दूसरी कड़ाही में थोड़ा घी डाल कर काजू, बादाम व मखाने डाल कर तल लें व उन को पीस लें. अब उसी कड़ाही में सूजी को भून लें व उस में बाकी घी, किशमिश, नारियल व पिसे हुए मेवे मिलाएं. अब गैस से उतार कर भूना हुआ आटा, सूजी का मिश्रण व चीनी या बूरा अच्छी तरह मिलाएं और थोड़ा ठंडा कर के लड्डू के आकार में बांध लें.

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