ऊंचे मकानों, चमचमाती सड़कों, विशाल कारखानों, फैलते शहरों, रेलों, हवाईजहाजों, भरपूर खानेपीने व पहनने के सामान के बावजूद आज दुनियाभर की जनता एक भय से भरी हुई है. आज कमी है सही नेताओं की. हर देश अपने यहां युवा, भरोसेमंद नेता का अभाव ?ोल रहा है. हर नेता के न केवल पांव कीचड़ में सने हुए हैं बल्कि वह नाक तक गंदे पानी में डूबा भी है. कोई भी देश ऐसा नहीं जहां लोग रात में चैन की नींद सोते होंगे क्योंकि उन का नेता सब संभाल लेगा.
अमेरिका सब से समृद्ध देश है पर उस का भरोसा न आज का बूढ़ा होता राष्ट्रपति जो बाइडेन पैदा करता है न पिछला डोनाल्ड ट्रंप करता था. गलत फैसलों से अमेरिका चर्च का गुलाम, संकीर्णवादी सा बन रहा है और वहां वे स्वतंत्रताएं धीरेधीरे खत्म हो रही हैं जिन पर गर्व किया जाता था.
चीन के नेता शी जिनपिंग दिखने में चाहे जितना सौम्य लगें, उन की सरकार बेहद क्रूर है. कोविड में उस ने जो तानाशाही अपनाई है उस से जनता भयभीत है. चीन की प्रगति की गति रुक गई है.
रूस के नेता व्लादिमीर पुतिन ने रूस को एक छोटे से देश यूक्रेन के साथ अनावश्यक युद्ध में ?ांक दिया और इस चक्कर में पूरे यूरोप को सैनिक तैयारी फिर से करने को मजबूर कर दिया. रूसी जनता अब सेना में शामिल नहीं होना चाहती और अकेले कजाखिस्तान में
90 हजार रूसी युवक शरण ले चुके हैं ताकि इस गलत नेता के गलत युद्ध में उन्हें जुड़ना न पड़े.
इंगलैंड के नए प्रधानमंत्री ऋषि सुनक भी कोई संतोष देने वाले नहीं हैं. फ्रांस के मैक्रों की हालत ढुलमुल है. इटली और स्वीडन दक्षिणपंथी, जो कट्टरपंथी भी हैं, के हाथों में हैं जहां धौंस चलती है, शांति या सौहार्द नहीं.
भारत का तो कहना क्या. पिछली यूपीए सरकार भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरी थी तो यह सरकार मंदिर उद्योग के अलावा बाकी सब को तारतार कर रही है, समाज को तोड़ रही है, रातदिन हिंदूमुसलिम, हिंदूमुसलिम करती रहती है. नरेंद्र मोदी पर भरोसा कट्टर हिंदू समर्थक ही करते हैं. उन की पार्टी का एक ही एजेंडा है- धर्म का धंधा.
जापान, अफ्रीका, आस्ट्रेलिया कहीं का नाम ले लें, कहीं भी ऐसा नेता नहीं है जिस पर कुछ भरोसा किया जा सके. ऐसा कोई उद्योगपति नहीं बचा जो अपने मुनाफे के बाहर जनता का भला सोच रहा हो. एलन मस्क, बिल गेट्स, मार्क जुकरबर्ग आम लोगों के दिमाग को जकड़ रहे हैं, बहका रहे हैं, उन्हें नया सोचने की जमीन नहीं दे रहे बल्कि भड़का कर एकदूसरे से लड़ने की जमीन मुहैया कर रहे हैं.
सारी दुनिया आज कैमरों के चंगुल में है और कैमरे उन के हाथों में हैं जिन्हें सिर्फ काला दिखता है और वे हर सफेद कपड़े वाले को रंगा हुआ सम?ाते हैं और रंगा साबित करने का टूल हाथ में रखते हैं.
अच्छे युवा नेताओं के अभाव के पीछे इंटरनैट की कारस्तानी है जिस ने दुनिया को एक तो किया पर शांति, सद्भाव के लिए नहीं. इस ने समाज, परिवार को तोड़ने और गालीगलौज दूरदूर तक भेजने के लिए भी प्लेटफौर्म दिया है. इंटरनैट ने लोगों को अंतर्मुखी बना डाला. बच्चे होते ही पड़ोसियों की तो छोडि़ए, भाईबहन, मातापिता को भी भूलने लगे हैं. वे और उन का मोबाइल जिस पर वे एकदूसरे पर भड़ास ज्यादा निकालते हैं, दूसरों के आगे दोस्ती का हाथ कम बढ़ाते हैं.
इंटरनैट ने और मोबाइल व लैपटौप ने एक पीढ़ी पैदा कर दी है जो दूसरों की चिंता ही नहीं करती क्योंकि आज के लोग आंख उठा कर दूसरों को देखते ही नहीं. इस पीढ़ी के लोग 24 घंटे में से 8 घंटे सोते हैं जबकि 8 घंटे स्क्रीन पर आंख गड़ाए रहते हैं और उन्हें वही भाता है जो भड़काऊ हो, गालियों से भरा हुआ हो, घृणा सिखाता हो, छिपने की छूट देता हो और दूसरों की गंद को बाहर सड़क पर एक्जीबिट करने का मौका देता हो.
इंटरनैट आज नेता बना हुआ है आंधी की तरह का जो सब को उड़ा ले जा रहा है, तोड़ रहा है, गिरा रहा है और नेता के गुण किसी में पनपें, इस से पहले वह उस को बाहर ले जाता है. इस इंटरनैट युग की चलती हवा में कोई नेता नहीं बच रहा.