देश के उत्तराखंड का ख्यात जोशीमठ आज देश-दुनिया भर में चर्चा का सबब बना हुआ है. वहां के आम लोग शासन प्रशासन के व्यवहार से अजीज आ चुके हैं और प्रदर्शन करने को मजबूर हैं. वहीं भारत सरकार और उत्तराखंड सरकार का यह बड़ा दायित्व है कि अब इस प्राचीन नगर विस्थापन के बाद कोई भी मानव क्षति ना हो. अगर ऐसा हो गया तो सरकार के लिए यह एक ऐसा काला धब्बा होगा जिसका जवाब हमारे नेताओं और प्रशासन के पास नहीं होगा. क्योंकि संपूर्ण कार्य व्यवहार पर दृष्टिपात किया जाए तो जोशीमठ को लेकर की जा रही लापरवाही स्पष्ट देखी जा सकती है.
दरअसल, जो संवेदनशीलता भारत सरकार को जोशी मठ को लेकर दिखाई देनी चाहिए वह दिखाई नहीं देती. और मरते हुए जोशीमठ का यही संदेश है भारत सरकार या कोई भी सरकार जब तक नेशनल थर्मल पावर कारपोरेशन जैसे विशाल विद्युत जल संयंत्र से मोह नहीं त्यागेगी जोशीमठ अलग-अलग नामों से इतिहास अपने को दोहराते रहेगा. यही कारण है कि अब चमोली के जिला प्रशासन ने जोशीमठ में दरक रहे मकानों को चिन्हित करने के लिए उनमें लाल निशान लगाने का काम शुरू किया तो आपदा पीड़ित लोगों ने उनकी कार्यप्रणाली का जबरदस्त विरोध किया बड़ी तादाद में आपदा पीड़ित लोगों ने जोशीमठ बद्रीनाथ राष्ट्रीय राज मार्ग में धरना दिया और जाम लगा दिया. पीड़ित लोगों का कहना था- पहले उनके लिए स्थाई रूप से पुनर्वास की व्यवस्था की जाए तब उनके मकानों को चिन्हित करने की कार्रवाई की जाए.
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बिजली का मोह ले डूबा
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दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी की यहां की प्रकृति का दोहन करने की मंशा ने जोशीमठ को आज भूस्खलन का शिकार बना दिया है . और कुछ वर्ष पूर्व केदारनाथ की आपदा को दुनिया ने देखा है. मगर इसके बावजूद इस दिशा में कोई प्रयास भरा सरकार का दिखाई नहीं देता. शासन द्वारा बनाए गए राहत शिविरों में रहने वाले लोगों का कहना है वे अभी तक अपने मकानों से सामान निकाल नहीं पाए हैं. यही नहीं स्थानीय लोगों ने दी जा रही मात्र पांच हजार रुपए की राशि को लेकर विरोध जाहिर किया है मुआवजे की राशि भी बढ़ाने और देश की नवरत्न कंपनी एनटीपीसी जल विद्युत परियोजना को बंद करने की मांग की है. संपूर्ण व्यवस्था का सच यह है कि जब भारत सरकार इस संपूर्ण कार्य व्यवहार पर निगाह रख रही है ऐसे में लोग राहत शिविर में खाना ना मिलने के अपने परिवार के साथ सड़क पर धरने पर बैठ गए .
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