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मुहरे-भाग 1 : विपिन के लिए रश्मि ने कैसा पैंतरा अपनाया

मैं शाम की सैर से घर लौटी ही थी. पसीने से तरबतर थी. तभी डोरबैल बजी. विपिन औफिस से आ गए थे. मुझे देखते ही बोले, ‘‘रश्मि, क्या हुआ?’’

मैं ने रूमाल से पसीना पोंछते हुए कहा, ‘‘कुछ नहीं, बस अभीअभी सैर से लौटी हूं.’’ ‘‘हूं,’’ कहते हुए विपिन बैग रख फ्रैश होने चले गए.

मैं 10 मिनट फैन के नीचे खड़ी रही. फिर मैं विपिन के लिए चाय चढ़ा कर थोड़ा लेटी ही थी कि विपिन ने पूछा, ‘‘क्या हुआ?’’ ‘‘आज गरमी में हालत खराब हो गई. अजीब सी थकान हो रही है.’’

विपिन छेड़छाड़ के मूड में आ गए थे. मुसकराते हुए बोले, ‘‘हां, उम्र भी तो हो रही है.’’ एक तो गरमी से परेशान ऊपर से विपिन की बात से मैं और तप गई.

तुनक कर बोली, ‘‘कौन सी उम्र हो रही है? अभी 50 की भी नहीं हुई हूं. हर समय उम्र का राग अलापते रहते हो.’’ विपिन ने और छेड़ा, ‘‘सच बहुत कड़वा होता है रश्मि.’’

मैं ने जलतेकुढ़ते उन्हें चाय का कप पकड़ाया. मैं इस समय चाय नहीं पीती हूं. फिर शीशे में जा कर खुद पर नजर डाली, ‘‘हुंह, कहते हैं उम्र हो रही है… सभी कौंप्लिमैंट देते हैं… इतनी फिट हूं… और विपिन कुछ भी हो जाए उम्र की बात करेंगे… सब से बड़ी बात यह कि जब मैं खुद को यंग महसूस करती हूं तो यह जरूरी है क्या कि कभी कुछ हो जाए तो उम्र ही कारण होगी? हुंह, कुछ भी बोलते रहते हैं. इन की बातों पर कौन ध्यान दे. गुस्सा अपनी ही हैल्थ के लिए ठीक नहीं है… बोलने दो इन्हें.

थोड़ी देर में हमारे बच्चे वान्या और शाश्वत भी कोचिंग से आ गए. सब अपने रूटीन में व्यस्त थे. डिनर करते हुए अचानक मुझे कुछ याद आया, तो मैं अपने माथे पर हाथ रखते हुए बोली, ‘‘उफ, गरमी लग रही थी तो सैर से सीधी घर आ गई. कल सुबह के लिए सब्जी लाना ही भूल गई.’’ विपिन को फिर मौका मिला तो फिर अपना तीर छोड़ा, ‘‘होता है, उम्र के साथ याद्दाश्त कमजोर होती ही है.’’

एक तो सुबह क्या बनेगा, इस की टैंशन, ऊपर से फिर उम्र का व्यंग्यबाण, मैं सचमुच नाराज हो गई. मुंह से तो कुछ नहीं बोला पर विपिन को जलती नजरों से घूरा तो बच्चे समझ गए कि मुझे गुस्सा आया है, पर हैं तो ऐसी शरारतों में अपने पापा के चमचे ही न, अत: शाश्वत ने कहा, ‘‘मम्मी, आप सच ऐक्सैप्ट क्यों नहीं कर पा रहीं? कभी भी आप का बैक पेन बढ़ जाता है, कभी भी कुछ भूल जाती हो, मान लो मम्मी उम्र हो रही है.’’ वान्या को लगा कि कहीं मेरा गुस्सा न

बढ़ जाए. अत: फौरन बात संभाली, ‘‘चुप रहो शाश्वत मम्मी, सब्जी नहीं है तो कोई बात नहीं, हम तीनों कैंटीन में खा लेंगे. आप बस अपना खाना बना लेना.’’ मैं ने जल्दी से अपना खाना खत्म किया और फिर पर्स उठा, कर बोली, ‘‘देखती हूं पनीर मिल जाए तो ले आती हूं.’’

 

दिशाएं और भी हैं -भाग 2: नमिता को कमरे में किसकी आहट आ रही थी

तभी फोन की घंटी बजने लगी. लोग अफसोस जताने के बहाने कुछ सुनना चाहते थे.

मांपापा बोले, ‘‘हमें अपनी बेटी की बहादुरी पर नाज है… पेपर झूठ बता रहे हैं.’’

शाम होतेहोते इंदौर से योगेशजी का फोन आ गया जहां नमिता की सगाई हुई थी. दिसंबर में उस की शादी होने जा रही थी.

‘‘पेपर में आप की बेटी के बारे में पढ़ा, अफसोस हुआ… मैं फिर आप से बात करता हूं.’’

योगेशजी के लहजे से भयभीत हो उठे नमिता के पिता विमल. पत्नी से बोले, ‘‘पेपर में छपी यह खबर हमें कहीं का नहीं छोड़ेगी. योगेशजी का फोन था. उन के आसार अच्छे नजर नहीं आ रहे. कह रहे थे अभी आप परेशान होंगे, आप की और परेशानी बढ़ाना नहीं चाहता, बाद में बात करते हैं.’’

पुलिस और मीडिया वाले फिर घर के चक्कर लगा रहे थे, ‘‘हम नमिता का इंटरव्यू लेने आए हैं.’’

‘‘क्यों इतना कुछ छाप देने के बाद भी आप लोगों का जी नहीं भरा? लड़की ने अपनी सुरक्षा स्वयं कर ली, इतना काफी नहीं है?’’

‘‘नहीं सर, हम तो अपराधी को सजा दिलाना चाहते हैं… नमिता उस की पहचान बयां करती तो अच्छा था.’’

पापा बोले, ‘‘पुलिस में रिपोर्ट कर के तुम ने अच्छा नहीं किया बेटी. कितनी जलालत का सामना करना पड़ रहा है…’’

‘‘आप ने अन्याय के खिलाफ बोलने की आजादी दी है पापा,’’ नमिता उन्हें परेशान देख बोली, ‘‘मैं ने आप दोनों को सहीसही सारी घटना बता दी… मुझ पर भरोसा कीजिए.’’

‘‘नहीं बेटी, तू ने केस फाइल कर अच्छा नहीं किया. अब देख ही रही है उस का परिणाम… सब तरफ खबर फैल गई है… ऐसे हादसों को गुप्त रखने में ही भलाई होती है.’’

पापा की दलीलें सुन कर नमिता का सिर घूमने लगा, ‘‘यह क्या कह रहे हैं पापा? सत्यवीर, कर्मवीर पापा में कहां छिपी थी यह ओछी सोच जो मानमर्यादा के रूढ़ मानदंडों के लिए अन्याय सहने, छिपाने की बात कर रहे हैं? यही पापा कभी गर्व से कहा करते थे कि अपनी बेटियों को दहेज में दूंगा तो केवल शिक्षा, जो उन्हें आत्मनिर्भर बनाएगी. ये अपनी ऊंचनीच, अपने अधिकार और अन्याय के खिलाफ खुद ही निबटने में सक्षम होंगी. और आज जब मैं ने अपनी आत्मरक्षा अपने पूरे आत्मबल से की तो बजाय मेरी प्रशंसा के अन्याय को सहन करने, उसे बल देने की बात कह रहे हैं… मुझ पर गर्व करने वाले मातापिता अखबार में मेरी संघर्ष गाथा पढ़ कर यकायक संवेदनशून्य कैसे हो गए?’’

ग्वालियर मैडिकल कालेज में पढ़ने वाली नमिता की छोटी बहन रितिका ने भी पेपर में पढ़ा तो वह भी आ गई. अपनी दीदी से लिपट कर उसे धैर्य बंधाने लगी. दीदी के प्रति मांपापा के बदले व्यवहार से वह दुखी हुई. ऐसी उपेक्षा के बीच नमिता को बहन का आना अच्छा लगा.

मम्मीपापा जिस भय से भयभीत थे वह उन के सामने आ ही गया. फोन पर योगेशजी ने बड़ी ही नम्रता से नमिता के साथ अपने बेटे की सगाई तोड़ दी. मम्मी के ऊपर तो जैसे वज्रपात हुआ. वे फिर नमिता पर बरसीं, ‘‘अपनी बहादुरी का डंका पीट कर तुझे क्या मिला? सुरक्षित बच गई थी, चुप रह जाती तो आज ये दिन न देखने पड़ते. अच्छाभला रिश्ता टूट गया.’’

‘‘अच्छा रहा मां उन की ओछी मानसिकता पता चल गई. सोचो मां यही सब विवाह के बाद होता तब क्या वे लोग मुझ पर विश्वास करते जैसे अभी नहीं कर रहे? मैं उन लोगों को क्या दोष दूं, मेरे ही घर में जब सब के विश्वास को सांप सूंघ गया,’’ नमिता भरे स्वर में बोली.

अविश्वास के अंधेरे में घिरी थी नमिता

कि क्या होगा उस का भविष्य? अंगूठी उस के मंगेतर ने सगाई की बड़ी हसरत और स्नेह से पहनाई थी. वह छुअन, वह प्रतीति उसे स्नेह

में डुबोती रही थी. रोमांचित करती रही थी. क्याक्या सपने बुना करती थी वह. उस ने अपनी अनामिका को देखा जहां हीरे की अंगूठी चमक रही थी. वही अंगूठी अब चुभन पैदा करने लगी थी. रिश्ते क्या इतने कमजोर होते हैं, जो बेबुनियाद घटना से टूट जाएं?

इस छोटी सी घटना ने विश्वास के सारे भाव जड़ से उखाड़ दिए. नमिता सोच रही थी कि केवल प्रांजल के मांबाप की बात होती तो मानती, अपनेआप को अति आधुनिक, विशाल हृदय मानने वाला उस का मंगेतर कितन क्षुद्र निकला. एक बार मेरा सामना तो किया होता, मैं उस को सारी सचाई बताती.

नमिता के साहस की, उस की बहादुरी की, उस की सूझबूझ की तारीफ नहीं हुई. उस के इन गुणों को उस के मांबाप तक ने कोसा. 1 सप्ताह से घर से बाहर नहीं निकली. आज वह यूनिवर्सिटी जाएगी. देखना है उस के मित्रसहयोगी की क्या प्रतिक्रिया होती है? कैसा व्यवहार होता है उस के साथ?

तैयार हो कर नमिता जब अपने कमरे से निकली तो मां ने टोक दिया, ‘‘बेटा, तू तैयार हो कर कहां जा रही है? कम से कम कुछ दिन तो रुक जा, घटना पुरानी हो जाएगी तो लोग इतना ध्यान नहीं देंगे.’’

नमिता बौखला उठी, ‘‘कौन सी घटना? क्या हुआ है उस के साथ? बेवजह क्यों पड़ी रहतीं मेरे पीछे मां? तुम कोई भी मौका नहीं छोड़तीं मुझे लहूलुहान करने का… कहां गई तुम्हारी ममता?’’ फिर शांत होती हुई बोली, ‘‘मां, तुम्हें चिंता करने की जरूरत नहीं, जो होगा मैं निबट लूंगी,’’ और फिर स्कूटी स्टार्ट कर यूनिवर्सिटी चली गई.

परम संतुष्ट भाव से उस ने फैसला किया कि वह पीएचडी के साथसाथ भारतीय प्रशासनिक सेवा परीक्षा की भी तैयारी करेगी. निष्ठा और दृढ़ इरादे से ही काम नहीं चलता, समाज से लड़ने के लिए, प्रतिष्ठा पाने के लिए, पावर का होना भी अति आवश्यक है.

जो वह ठान लेती उसे पा लेना उस के लिए कठिन नहीं होता है. उस का परिश्रम, उस की

दृढ़ इच्छाशक्ति रंग लाई. आज वह खुश थी अपनी जीत से. देश के समाचार पत्रों में उस का यशोगान था, ‘‘डा. नमिता शर्मा भारतीय प्रशासनिक सेवा परीक्षा में प्रथम रहीं.’’ मम्मीपापा ने उसे गले लगाना चाहा पर वे संकुचित हो गए. उन के बीच दूरियां घटी नहीं वरन बढ़ती गईं. जिस समय मां के स्नेह, धैर्य और सहारे की सख्त जरूरत थी तब उन के व्यंग्यबाण उसे छलनी करते रहे. कठिन समय में अपनों की प्रताड़ना वह भूल नहीं सकती.

 

दिशाएं और भी हैं -भाग 1: नमिता को कमरे में किसकी आहट आ रही थी

दोपहर से बारिश हो रही थी. रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी. घर सुनसान था. कमरा खामोश था. कभीकभी नमिता को नितांत सन्नाटे में रहना भला लगता था. टीवी, रेडियो, डैक सब बंद रखना, अपने में ही खोए रहना अच्छा लगता था.

वह अपने खयालों में थी कि तभी उसे लगा कि साथ वाले कमरे में कुछ आहट हुई है. वह ध्यान से सुनने लगी, पर फिर कोई आवाज नहीं हुई. शायद उस के मन में अकेलेपन का भय होगा. कमरे में शाम का अंधेरा वर्षा के कारण कुछ अधिक घिर आया था.

नमिता खिड़की से निहार रही थी. इसी बीच उसे फिर लगा कि कमरे में आहट हुई है. अंधेरे में ही उस ने कमरे में नजर दौड़ाई. जब उस ने दरवाजा बंद किया था तब चारों ओर देख कर बंद किया था. कहीं सिटकिनी लगाना तो नहीं भूल गई.

जाते वक्त मां ने कहा था, ‘‘घर के खिड़कीदरवाजे बंद रखना, शाम ढलने के पहले घर लौट आना.’’

मां की इस हिदायत पर नमिता हंसी थी, ‘‘मैं छुईमुई बच्ची नहीं हूं मां. कानून पढ़ चुकी हूं और अब पीएचडी कर रही हूं. जूडोकराटे में भी पारंगत हूं. किसी भी बदमाश से 2-2 हाथ कर सकती हूं.’’

बावजूद इस के मां ने चेतावनी देते हुए कहा था, ‘‘मत भूल बेटी कि तू एक लड़की है और लड़की को ऊंचनीच और अपनी इज्जतआबरू के लिए डरना चाहिए.’’

‘‘मां तुम फिक्र मत करो. मैं पूरा एहतियात और खयाल रखूंगी,’’ वह बोली थी.

आज तो वह घर से बाहर निकली ही नहीं थी कि कोई घर में आ कर छिप गया हो. मां को गए अभी पूरा दिन भी नहीं गुजरा था. वह अभी इसी उधेड़बुन में थी कि उसे लगा जैसे कमरे में कोई चलफिर रहा है. हाथ बढ़ा कर नमिता ने स्विच औन किया. पर यह क्या लाइट नहीं थी. भय से उसे पसीना आ गया.

वह मोमबत्ती लेने के लिए उठी ही थी कि लाइट आ गई. बारिश फिर शुरू हो गई थी. वह सोचने लगी शायद बारिश के कारण आवाज हो रही थी. वह बेकार डर गई. अंधेरा भी डर का एक कारण है. अभी रात की शुरुआत थी. केवल 7 बजे थे.

नमिता को प्यास लग रही थी. किचन की लाइट औन कर जैसे ही फ्रिज की ओर बढ़ी कि उस की चीख निकल गई. सप्रयास वह इतना ही बोल पाई, ‘‘कौन हो तुम?’’

पुरुष आकृति के चेहरे पर नकाब था. उस ने बढ़ कर उस का मुंह अपनी हथेली से दबा दिया. बोला, ‘‘शोर करने की कोशिश मत करना वरना अंजाम ठीक नहीं होगा.’’

‘‘क्या चाहते हो? कौन हो तुम?’’

‘‘नासमझ लड़की कोई मनचला जवान पुरुष लड़की के पास क्यों आता है? तुझे मैं आतेजाते देखता था. मौका आज मिला है.’’

‘‘अपनी बकवास बंद करो… मैं इतनी कमजोर नहीं कि डर जाऊंगी. तुरंत निकल जाओ यहां से वरना मैं पुलिस को खबर करती हूं.’’

वह फोन की ओर बढ़ ही रही थी कि उस ने पीछे से उसे दबोच लिया. अचानक इस स्थिति से वह विवश हो गई. नकाबपोश ने उसे पलंग पर पटक दिया और कपड़े उतारने की कोशिश करने लगा.

‘‘वासना के कीड़े हर औरत को इतना कमजोर मत समझ. एक अकेली औरत अपने बल से एक अकेले पुरुष का सामना न कर पाए, यह संभव नहीं.’’ कहते हुए उस गुंडे की गिरफ्त से बचने के लिए नमिता अपना पूरा जोर लगा रही थी.

जैसे वह दरिंदा उस पर झुका नमिता ने उस की दोनों टांगों के मध्य अपने दोनों पैरों से जबरदस्त प्रहार किया. इस अप्रत्याशित प्रहार से वह तिलमिला उठा और दूर जा गिरा. वह उठ पाता उस से पहले ही नमिता भागी और कमरे का दरवाजा बंद कर ड्राइंगरूम में पहुंच गई. उस ने पुलिस को फोन कर दिया. तुरंत पुलिस घटनास्थल पर पहुंच गई. दरवाजा खोला गया पर दरिंदा खिड़की की राह भागने में कामयाब हो गया. चारों ओर बिखरी चीजें. अस्तव्यस्त कमरे से सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता था कि नमिता को कितना संघर्ष करना पड़ा होगा.

खबर मिलते ही नमिता के मम्मीपापा रातोंरात टैक्सी कर के आ गए. नमिता मां से लिपट कर बहुत रोई.

मां सहमी बेटी को सहलाती रहीं. उस के पूरे शरीर में नीले निशान और खरोंचें थीं.

‘‘बेटा, पूरी घटना बता… डर छोड़… तू तो बहादुर बेटी है न.’’

‘‘हां मां, मैं ने उस दरिंदे को परास्त कर दिया,’’ कह नमिता ने पूरी घटना बयां कर दी.

 

सुबह का पेपर आ चुका था. जंगल की आग की तरह कल रात की घटना पड़ोसियों और परिचितों में फैल चुकी थी.

छात्रा के साथ बलात्कार की घटना छपी थी. मां को पढ़ कर सदमा लगा कि यह सब तो बेटी ने नहीं बताया.

मां को परेशान देख नमिता बोली, ‘‘मां, तुम परेशान क्यों होती हो… मेरे तन पर वह दरिंदा अभद्र हरकत करता उस के पहले ही मेरे अंदर की शक्ति ने उस पर विजय पा ली थी. मेरा विश्वास करो मां,’’ कह कर नमिता अंदर चली गई.

मां पापा से कह रही थीं, ‘‘घरघर में पढ़ी जा रही होगी हमारी बेटी के साथ हुई घटना की खबर… मुझे तो बहुत डर लग रहा है.’’

लव ऐट ट्रैफिक सिग्नल – भाग 2: ट्रैफिक सिग्नल पर मिली लड़की से क्या रिश्ता था?

‘मैं गनी को लावारिस नहीं बनने दूंगी. मैं भी तो इस की कुछ लगती हूं. मैं सौतेली ही सही, मगर इस की मां हूं. जब यह मुझे प्यार से अम्मी कह कर पुकारता है तब मेरे दिल में ममता कैसे उमड़ आती है. ‘नहींनहीं, गनी को मेरी सख्त जरूरत है. मैं गनी को अपने से जुदा नहीं कर सकती. मेरी तो कोई संतान है ही नहीं. मैं इसे ही देख कर जी लूंगी.

‘मैं गनी को पढ़ालिखा कर एक नेक इनसान बनाऊंगी. इस की जिंदगी को संवारूंगी. यही अब जिंदगी का मकसद है.’ और कनीजा बी ने गनी की खातिर अपना सुखचैन लुटा दिया, अपना सर्वस्व त्याग दिया. फिर उसे एक काबिल और नेक इनसान बना कर ही दम लिया.

गनी पढ़लिख कर इंजीनियर बन गया. उस दिन कनीजा बी कितनी खुश थीं जब गनी ने अपनी पहली तनख्वाह ला कर उन के हाथ पर रख दी. उन्हें लगा कि उन का सपना साकार हो गया, उन की कुरबानी रंग लाई. अब उन्हें मौत भी आ जाए तो कोई गम नहीं.

फिर गनी की शादी हो गई. वह नदीम जैसे एक प्यारे से बेटे का पिता भी बन गया और कनीजा बी दादी बन गईं.

कनीजा बी नदीम के साथ स्वयं भी खेलने लगतीं. वह बच्चे के साथ बच्चा बन जातीं. उन्हें नदीम के साथ खेलने में बड़ा आनंद आता. नदीम भी मां से ज्यादा दादी को चाहने लगा था. उस दिन ईद थी. कनीजा बी का घर खुशियों से गूंज रहा था. ईद मिलने आने वालों का तांता लगा हुआ था.

गनी ने अपने दोस्तों तथा दफ्तर के सहकर्मियों के लिए ईद की खुशी में खाने की दावत का विशेष आयोजन किया था. उस दिन कनीजा बी बहुत खुश थीं. घर में चहलपहल देख कर उन्हें ऐसा लग रहा था मानो दुनिया की सारी खुशियां उन्हीं के घर में सिमट आई हों.

गनी की ससुराल पास ही के शहर में थी. ईद के दूसरे दिन वह ससुराल वालों के विशेष आग्रह पर अपनी बीवी और बेटे के साथ स्कूटर पर बैठ कर ईद की खुशियां मनाने ससुराल की ओर चल पड़ा था. गनी तेजी से रास्ता तय करता हुआ बढ़ा जा रहा था कि एक ट्रक वाले ने गाय को बचाने की कोशिश में स्टीयरिंग पर अपना संतुलन खो दिया. परिणामस्वरूप उस ने गनी के?स्कूटर को चपेट में ले लिया. पतिपत्नी दोनों गंभीर रूप से घायल हो गए और डाक्टरों के अथक प्रयास के बावजूद बचाए न जा सके.

लेकिन उस जबरदस्त दुर्घटना में नन्हे नदीम का बाल भी बांका नहीं हुआ था. वह टक्कर लगते ही मां की गोद से उछल कर सीधा सड़क के किनारे की घनी घास पर जा गिरा था और इस तरह साफ बच गया था. वक्त के थपेड़ों ने कनीजा बी को अंदर ही अंदर तोड़ दिया था. मुश्किल यह थी कि वह अपनी व्यथा किसी से कह नहीं पातीं. उन्हें मालूम था कि लोगों की झूठी हमदर्दी से दिल का बोझ हलका होने वाला नहीं.

उन्हें लगता कि उन की शादी महज एक छलावा थी. गृहस्थ जीवन का कोई भी तो सुख नहीं मिला था उन्हें. शायद वह दुख झेलने के लिए ही इस दुनिया में आई थीं. रशीद तो उन का पति था, लेकिन हलीमा बी तो उन की अपनी नहीं थी. वह तो एक धोखेबाज सौतन थी, जिस ने छलकपट से उन्हें रशीद के गले मढ़ दिया था.

गनी कौन उन का अपना खून था. फिर भी उन्होंने उसे अपने सगे बेटे की तरह पालापोसा, बड़ा किया, पढ़ाया- लिखाया, किसी काबिल बनाया. कनीजा बी गनी के बेटे का भी भार उठा ही रही थीं. नदीम का दर्द उन का दर्द था. नदीम की खुशी उन की खुशी थी. वह नदीम की खातिर क्या कुछ नहीं कर रही थीं. कनीजा बी नदीम को डांटतीमारती थीं तो उस के भले के लिए, ताकि वह अपने बाप की तरह एक काबिल इनसान बन जाए.

‘लेकिन ये दुनिया वाले जले पर नमक छिड़कते हैं और मासूम नदीम के दिलोदिमाग में यह बात ठूंसठूंस कर भरते हैं कि मैं उस की सगी दादी नहीं हूं. मैं ने तो नदीम को कभी गैर नहीं समझा. नहीं, नहीं, मैं दुनिया वालों की खातिर नदीम का भविष्य कभी दांव पर नहीं लगाऊंगी.’ कनीजा बी ने यादों के आंसू पोंछते हुए सोचा, ‘दुनिया वाले मुझे सौतेली दादी समझते हैं तो समझें. आखिर, मैं उस की सौतेली दादी ही तो हूं, लेकिन मैं नदीम को काबिल इनसान बना कर ही दम लूंगी. जब नदीम समझदार हो जाएगा तो वह जरूर मेरी नेकदिली को समझने लगेगा. ‘गनी को भी लोगों ने मेरे खिलाफ कम नहीं भड़काया था, लेकिन गनी को मेरे व्यवहार से जरा भी शंका नहीं हुई थी कि मैं उस की बुराई पर अमादा हूं.

अब नदीम का रोना भी बंद हो चुका था. उस का गुस्सा भी ठंडा पड़ गया था. उस ने चोर नजरों से दादी की ओर देखा. दादी की लाललाल आंखों और आंखों में भरे हुए आंसू देख कर उस से चुप न रहा गया. वह बोल उठा, ‘‘दादीजान, पड़ोस वाली चचीजान अच्छी नहीं हैं. वह झूठ बोलती हैं. आप मेरी सौतेली नहीं, सगी दादीजान हैं. नहीं तो आप मेरे लिए यों आंसू न बहातीं. ‘‘दादीजान, मैं जानता हूं कि आप को जोरों की भूख लगी है, अच्छा, पहले आप खाना तो खा लीजिए. मैं भी आप का साथ देता हूं.’’

नदीम की भोली बातों से कनीजा बी मुसकरा दीं और बोलीं, ‘‘बड़ा शरीफ बन रहा है रे तू. ऐसे क्यों नहीं कहता. भूख मुझे नहीं, तुझे लगी है.’’

‘‘अच्छा बाबा, भूख मुझे ही लगी है. अब जरा जल्दी करो न.’’ ‘‘ठीक है, लेकिन पहले तुझे यह वादा करना होगा कि फिर कभी तू अपने मुंह से अपने अम्मीअब्बू के पास जाने की बात नहीं करेगा.’’

‘‘लो, कान पकड़े. मैं वादा करता हूं कि अम्मीअब्बू के पास जाने की बात कभी नहीं करूंगा. अब तो खुश हो न?’’ कनीजा बी के दिल में बह रही प्यार की सरिता में बाढ़ सी आ गई. उन्होंने नदीम को खींच कर झट अपने सीने से लगा लिया.

अब वह महसूस कर रही थीं, ‘दुनिया वाले मेरा दर्द समझें न समझें, लेकिन नदीम मेरा दर्द समझने लगा है.’

क्या ब्रेन स्ट्रोक का रोग पारिवारिक रोग है, इस से बचे रहने के लिए क्या क्या उपाय करने चाहिए?

सवाल

मेरे पति की उम्र 52 साल है. उन के परिवार में उन के पिता और बहन दोनों की मृत्यु ब्रेन स्ट्रोक की वजह से हुई थी. पिता 66 साल की उम्र में और बहन 62 साल की उम्र में चल बसी. मुझे इसी कारण से उन के स्वास्थ्य के बारे में अत्यधिक चिंता रहती है. क्या ब्रेन स्ट्रोक का रोग पारिवारिक रोग है? इस से बचे रहने के लिए उन्हें क्याक्या उपाय करने चाहिए?

जवाब

वर्तमान वैज्ञानिक जानकारी के अनुसार ब्रेन स्ट्रोक या मस्तिष्क का दौरा उन्हीं जोखिमकारी तत्त्वों से प्रेरित होता है, जिन से दिल का दौरा पड़ने का रिस्क पैदा होता है. इन जोखिमों में 5 तत्त्व विशेष रूप से प्रमुख हैं- बढ़ा हुआ ब्लडप्रैशर, डायबिटीज, धूम्रपान, बिगड़ा हुआ लिपिड प्रोफाइल और परिवार में रोग के जींस.

अत: बचाव के लिए अच्छा यह है कि वे अपने रक्तचाप पर नजर रखें और उसे 130/80 तक रखने का प्रयत्न करें, ब्लड शुगर नियंत्रण में रखें और फास्टिंग ब्लड शुगर 110 मिलीग्राम और लाकोसिलेटेड हीमोग्लोबीन 6.5 के भीतर रखें, धूम्रपान करते हों, तो छोड़ दें, कोलैस्ट्रौल पर नियंत्रण बनाए रखें, संतुलित भोजन लें, मोटापे से बचें, नियम से व्यायाम करें और टैंशन तथा तनाव से बच कर रहें. डाक्टर से सलाह लें रोजाना बेबी स्प्रिन लेना भी उन के लिए लाभकारी साबित हो सकता है. बेबी ऐस्प्रिन लेने से धमनियों में खून का दौरा चुस्त बना रहता है और धमनियों में खून का थक्का न बनने में मदद मिलती है.

फिर भी कभी अचानक उन्हें किसी प्रकार के अंगघात के क्षणिक लक्षण भी दिखाई दें, तो उचित होगा कि उन्हें बिना समय गंवाए किसी अस्पताल की इमरजैंसी में तुरंत दिखाएं. मस्तिष्क के दौरे के बहुत से मामलों में समय से सही इलाज मिलने से स्थिति को संभाला जा सकता है और पैरालिसिस और दूसरी कौंप्लीकेशंस से बचा जा सकता है.

नजरिया-भाग 2: निखिल की मां अपनी बहू से क्या चाहती थी?

2 दिन से मेरे व निखिल के पीछे बच्चे के लिंग की जांच कराने के लिए पड़ी हैं.’’

‘‘यह तो गंभीर स्थिति है… तुम सास की बातों में मत आ जाना… निखिल को समझा दो कि तुम अपने बच्चे का लिंग परीक्षण नहीं करवाना चाहती,’’ मैं ने कहा.

15 दिन और बीत गए. आशी की सास रोज घर में आशी के बच्चे का लिंग परीक्षण करवाने के लिए कहतीं. निखिल की बहन भी फोन कर निखिल को समझाती कि आजकल तो उन की जातबिरादरी में सभी गर्भ में ही बच्चे का लिंग परीक्षण करवा लेते हैं ताकि यदि गर्भ में कन्या हो तो छुटकारा पा लिया जाए.

पहले तो निखिल को ये सब बातें दकियानूसी लगीं, पर फिर धीरेधीरे उसे भी लगने लगा कि यदि सभी ऐसा करवाते हैं, तो इस में बुराई भी क्या है?

उस दिन आशी अचानक फिर से मेरे घर आई. इधरउधर की बातों के बाद मैं ने पूछा, ‘‘कैसा महसूस करती हो अब? मौर्निंग सिकनैस ठीक हुई या नहीं? अब तो 4 महीने हो गए न?’’

‘‘ऋचा क्या बताऊं. आजकल न जाने निखिल को भी क्या हो गया है. कुछ सुनते ही नहीं मेरी. इस बार जब चैकअप के लिए गई तो डाक्टर से बोले कि देख लीजिए आप. पहले ही हमारी 2 बेटियां हैं, इस बार हम बेटी नहीं चाहते. ऋचा मुझे बहुत डर लग रहा है. अब तक तो बच्चे में धड़कन भी शुरू हो गई है… यदि निखिल न समझे और फिर से लड़की हुई तो कहीं मुझे गर्भपात न करवाना पड़े,’’ वह रोतेरोते कह रही थी, ‘‘नहीं ऋचा यह तो हत्या है, अपराध है… यह बच्चा गर्भ में है, तो किसी को नजर नहीं आ रहा. पैदा होने के बाद तो क्या पता मेरी दोनों बेटियों जैसा हो और उन जैसा न भी हो तो क्या फर्क पड़ता है. उस में भी जान तो है. उसे भी जीने का हक है. हमें क्या हक है अजन्मी बेटी की जान लेने का… यह तो जघन्य अपराध है और कानूनन भी यह गलत है. यदि पता लग जाए तो इस की तो सजा भी है. लिंग परीक्षण कर गर्भपात करने वाले डाक्टर भी सजा के हकदार हैं.’’

आशी बोले जा रही थी और उस की आंखों से आंसुओं की धारा बहे जा रही थी. मेरी आंखें भी नम हो गई थीं.

अत: मैं ने कहा, ‘‘देखो आशी, तुम्हें यह समय हंसीखुशी गुजारना चाहिए. मगर तुम रोज दुखी रहती हो… इस का पैदा होने वाले बच्चे पर भी असर पड़ता है. मैं तुम्हें एक उपाय बताती हूं. यदि निखिल तुम्हारी बात समझ जाए तो शायद तुम्हारी समस्या हल हो जाए… तुम्हें उसे यह समझाना होगा कि यह उस का भी बच्चा है. इस में उस का भी अंश है… एक मूवी है ‘साइलैंट स्क्रीम’ जिस में पूरी गर्भपात की प्रक्रिया दिखाई गई है. तुम आज ही निखिल को वह मूवी दिखाओ. शायद उसे देख कर उस का मन पिघल जाए. उस में सब दिखाया गया है कि कैसे अजन्मे भू्रण को सक्शन से टुकड़ेटुकड़े कर दिया जाता है और उस से पहले जब डाक्टर अपने औजार उस के पास लाता है तो वह कैसे तड़पता है, छटपटाता है और बारबार मुंह खोल कर रोता है, जिस की हम आवाज तो नहीं सुन सकते, किंतु देख तो सकते हैं. किंतु यदि उस के अपने मातापिता ही उस की हत्या करने पर उतारू हों तो वह किसे पुकारे? जब उस का शरीर मांस के लोथड़ों के रूप में बाहर आता है तो बेचारे का अंत हो जाता है. उस का सिर क्योंकि हड्डियों का बना होता है, इसलिए वह सक्शन द्वारा बाहर नहीं आ पाता तो किसी औजार से दबा कर उसे चूरचूर कर दिया जाता है… उस अजन्मे भू्रण का वहीं खात्मा हो जाता है. बेचारे की अपनी मां की कोख ही उस की कब्र हो जाती है. कितना दर्दनाक है… यदि वह भू्रण कुछ माह और अपनी मां के गर्भ में रह ले तो एक मासूम, खिलखिलाता हुआ बच्चा बन जाता है. फिर शायद सभी उसे बड़े प्यार व दुलार से गोद में उठाए फिरें. मुझे ऐसा लगता है कि शायद निखिल इस मूवी को देख लें तो फिर शायद अपनी मां की बात न मानें.

‘‘ठीक है, कोशिश करती हूं,’’ कह आशी थोड़ी देर बैठ घर चली गई.

मैं मन ही मन सोच रही थी कि एक औरत पुरुष के सामने इतना विवश क्यों हो जाती है कि अपने बच्चे को जन्म देने में भी उसे अपने पति की स्वीकृति लेनी होती है?

खैर, आशी ने रात को अपने पति निखिल को ‘साइलैंट स्क्रीम’ मूवी दिखाई. मैं बहुत उत्सुक थी कि अगले दिन आशी क्या खबर लाती है?

अगले दिन जब आशी बेटियों को स्कूल बस में बैठाने आई तो कुछ चहक सी रही थी, जो अच्छा संकेत था. फिर भी मेरा मन न माना तो मैं उसे सैर के लिए ले गई और फिर एकांत मिलते ही पूछ लिया, ‘‘क्या हुआ आशी, निखिल तुम्हारी बात मान गए? तुम ने मूवी दिखाई उन्हें?’’

वह कहने लगी, ‘‘हां ऋचा तुम कितनी अच्छी हो. तुम ने मेरे लिए कितना सोचा… जब रात को मैं ने निखिल को ‘साइलैंट स्क्रीम’ यूट्यूब पर दिखाई तो वे मुझे देख स्वयं भी रोने लगे और जब मैं ने बताया कि देखिए बच्चा कैसे तड़प रहा है तो फूटफूट कर रोने लगे. फिर मैं ने कहा कि यदि हमारे बच्चे का लिंग परीक्षण कर गर्भपात करवाया तो उस का भी यही हाल होगा… अब निखिल ने वादा किया है कि वे ऐसा नहीं होने देंगे. चाहे कुछ भी हो जाए.’’

मैं ने सोचा काश, आशी जो कह रही है वैसा ही हो. किंतु जैसे ही निखिल ने मां को अपना फैसला सुनाया कि चाहे बेटा हो या बेटी उसे कोई फर्क नहीं पड़ता. वह अपने बच्चे का लिंग परीक्षण नहीं करवाएगा तो उस की मां बिफर पड़ीं. कहने लगीं कि क्या तू ने भी आशी से पट्टी पढ़ ली है?’’

 

बुलडोजर राज: पौराणिक नीति

बुलडोजर इमारतों पर ही नहीं बल्कि लोगों की आजादी सहित कला और फिल्मों पर भी चल रहा है क्योंकि मौजूदा सरकार बुलडोजर को एक विचार की शक्ल में भी स्थापित कर चुकी है. इस बवंडर में वास्तविक मुद्दे दोयम दर्जे के और दोयम दर्जे के मुद्दे वास्तविक लगने लगते हैं. इमारतों वाले बुलडोजरों पर गुवाहटी हाईकोर्ट के फैसले ने सरकारों की मंशा पर पानी तो फेर दिया है लेकिन विध्वंसक विचारों वाला बुलडोजर बेकाबू है जैसे पुराणों में भस्म करने का श्राप देते थे वैसे ही बुलडोजर विध्वंस करने की सजा दे रहे हैं. ?

बुलडोजर अब उस दैत्याकार मशीन का नाम नहीं रह गया है जिस का जायजनाजायज ?ांपड़ों से ले कर बड़ीबड़ी इमारतों को ढहाने में इस्तेमाल किया जाता है बल्कि बुलडोजर अब एक सरकारी नीति बन गई है जो हर उस आवाज को कुचल देना चाहता है जो उस के मिशन में आड़े आती है. साल 2022 के आखिरी महीने में ऐसी कई घटनाएं हुईं जिन्होंने यह साबित कर दिया कि बुलडोजर संस्कृति अब विकराल विकृति की शक्ल ले चुकी है. अब जो भी सनातन या भगवा गैंग की मंशा व मनमानी पर असहमति या एतराज जताता है उस का अंजाम अच्छा तो कतई नहीं होता. दिसंबर के तीसरे हफ्ते में शाहरुख खान अभिनीत फिल्म ‘पठान’ का एक गाना क्या रिलीज हुआ, भगवा बुलडोजर विचार मंच के कर्ताधर्ताओं ने देश सिर पर उठा लिया. इस गाने में अभिनेत्री दीपिका पादुकोण भगवा रंग की बिकिनी पहने शाहरुख से लिपटी नजर आ रही हैं.

यह कहीं से भी किसी भी धर्म या संस्कृति का अपमान नहीं था लेकिन चूंकि भगवा सोच के अनुसार एक खूबसूरत और सैक्सी हिंदू ऐक्ट्रैस एक मुसलमान अभिनेता के गले लिपटी थी, इसलिए भगवा ठेकेदारों के सीनों पर सांप लोट गए. विरोध का सार यह था कि हिंदू या सनातन धर्म या संस्कृति, कुछ भी कह लें, पर एक मुसलमान ऐक्टर ने प्रहार किया है, इसलिए इसे बरदाश्त नहीं किया जाएगा. जिस के मुंह में जो आया वह उस ने बका. इस पर कोई सैंसरशिप नहीं थी. भोपाल से लोकसभा के लिए चुनी गईं सांसद व कट्टरवादी हिंदू साध्वी प्रज्ञा सिं?ह भारती तो शाहरुख खान जैसे अभिनेता के हाथमुंह तोड़ने की धमकी देती नजर आईं. यह बुलडोजर मानसिकता का एक अलोकतांत्रिक नमूनाभर था. अच्छा तो उन का यह न कहना रहा कि जिन सिनेमाघरों में ‘पठान’ फिल्म प्रदर्शित होगी उन पर भी बुलडोजर चलवा दिया जाएगा. आने वाले वक्त में आप को और हमें ऐसे बुलडोजरी वक्तव्यों को सुनने को तैयार रहना चाहिए. ऐसे दृश्य देखने की अपनेआप में हिम्मत पैदा कर लेनी चाहिए. ‘पठान’ के बेमतलब लेकिन प्रायोजित विरोध को ले कर जो दहशत फैलाई गई उस के अपने माने भी थे कि खामोश रहो, जुबान सिल लो, वरना तो देश छोड़ दो.

अगर इस देश में रहना है तो उस की कीमत बहुत मामूली है कि आप भी मुट्ठीभर सनातनी ठेकेदारों के सामने सिर ?ाका कर चलो नहीं तो किसी न किसी बुलडोजर से कुचल दिए जाओगे. लोकतांत्रिक तार्किक और वामपंथियों व दूसरी विचारधाराओं वाले दलों व चिंतकों को ईडी एजेंसी जैसे बुलडोजर ‘लगभग’ नेस्तनाबूद कर चुके हैं. ?ारखंड के स्टेन स्वामी जैसे फक्कड़ों, जिन के पास सिवा विचारों के कुछ नहीं था, को इसी हथियार से जेल में सड़ा कर मार दिया गया. बाकी जो अर्बन नक्सली बचे हैं वे भी कराह रहे हैं. लेकिन जो चलफिर रहे हैं, बख्शा उन्हें भी नहीं जा रहा. तवांग मसले पर जैसे ही राहुल गांधी ने राजस्थान से केंद्र सरकार को चीन की बदनीयती की बाबत आगाह कराया तो समूचा मंत्रिमंडल तिलमिला उठा मानो देश से जुड़े किसी मसले पर विपक्ष को कुछ बोलने का हक ही नहीं.

‘भारत जोड़ो’ यात्रा में लगे राहुल को तरहतरह से लताड़ा गया और तरहतरह से, हमेशा की तरह, उन का मजाक भी बनाया गया. राहुल गांधी न डर रहे और न ?ाक रहे तो यह उन की खूबी ही है. इन्हीं दिनों में उन्होंने एक भाषण में कहा भी कि वे आरएसएस या भाजपा से डरते नहीं हैं लेकिन उन से नफरत भी नहीं करते. जो डरते हैं वे जुल्म करते हैं और जिन के दिल में डर होता है वे मोहब्बत कर ही नहीं सकते. भगवा गैंग शाहरुख खान से भी डरता है और राहुल गांधी से भी और हर उस नेता व कलाकार से भी डरता है जो उन की हकीकत जानता है और कलई उधेड़ने का माद्दा रखता है. इसी डर के चलते उस ने हर मोरचे पर तरहतरह के छोटेबड़े बुलडोजर फिट कर रखे हैं जो हैडक्वार्टर से निर्देश मिलते ही धर्म और संस्कृति के नाम पर भोंपू की तरह चिल्लाने लगते हैं. अब तो इन की नजरें न्यायपालिका पर भी चस्पां हो गई हैं जिस की वजह से 15-20 फीसदी डैमोक्रेसी वजूद में बची लगती है. अब इसे जीरो पर लाने की कोशिशें शुरू हो गई हैं. निशाने पर न्यायपालिका भी न्यायपालिका की मुश्कें कसने के लिए सरकारी बुलडोजर की भूमिका कानून मंत्री किरण रिजिजू निभा रहे हैं लेकिन हर बार उन्हें मुंह की खानी पड़ रही है क्योंकि सामने कोई फिल्म अभिनेता या अभिनेत्री, विपक्ष का कोई नेता या कलाकार, लेखक, पत्रकार नहीं बल्कि सुप्रीम कोर्ट है जिस पर सरकार का फिलहाल कोई जोर नहीं चल रहा.

कानून मंत्री और सुप्रीम कोर्ट के कुछ जस्टिसों का विवाद भी पिछले साल के आखिरी 2 महीने कम सुर्खियों में नहीं रहा था जिस के तहत सरकार चाहती यह है कि न्यायपालिका भी उस के इशारों पर नाचे. लोकसभा द्वारा चुने गए प्रधानमंत्री के हाथों में ही सब अधिकार हैं, यह सोच बुलडोजरी है क्योंकि कुछ अधिकार संविधान ने कार्यपालिका को दिए ही नहीं हैं पर आज सरकार उन अधिकारों को ढहा देना चाहती है. एक उदाहरण उस विवाद का उभर कर उस वक्त सामने आया था जब सरकार ने पंजाब कैडर के 1985 के बैच के आईएएस अधिकारी अरुण गोयल को चुनाव आयुक्त नियुक्त किया गया था जिन्होंने नियुक्ति के 2 दिनों पहले ही स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ली थी. जब इस हैरतंगेज और पूर्व नियोजित नियुक्ति को सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण द्वारा चुनौती दी गई तो सब से बड़ी अदालत ने इस पूरी नियुक्ति प्रक्रिया का ब्योरा मांगा और कहा कि 24 घंटे से भी कम वक्त में यह फैसला कैसे ले लिया गया. देश को इस वक्त टी एन शेषन जैसे मुख्य चुनाव आयुक्त की जरूरत है. जस्टिस अजय रस्तोगी, अनिरुद्ध बोस, ऋषिकेश राय और सी टी रवि कुमार की बैंच ने आगे कहा कि जमीनी स्थिति खतरनाक है. अब तक कई सीईसी रहे हैं मगर टी एन शेषन जैसा कोई नहीं रहा.

हम नहीं चाहते कि कोई उन्हें ध्वस्त करे, तीनो लोगों (सीईसी और दो चुनाव आयुक्तों) के नाजुक कंधों पर बड़ी शक्ति निहित है. हमें सीईसी की पोस्ट के लिए सब से अच्छा व्यक्ति खोजना होगा. वर्तमान में जो व्यवस्था है उस के तहत अगर केंद्र में कोई भी सत्ताधारी दल खुद को सत्ता में बनाए रखना चाहता है तो वह इस पद पर अपने यस मैन की नियुक्ति कर सकता है. इतना सुनना भर था कि किरण रिजिजू के तनबदन में आग लग गई क्योंकि इस टिप्पणी से आम लोगों में सरकार की मनमानी करने की मंशा का मैसेज गया था. लिहाजा, कानून मंत्री ने कोर्ट को ही विवादों में घसीट लिया. उन्होंने इस टिप्पणी पर पलटवार करते कहा, यह कैसा सवाल है, अगर ऐसा है तो आगे लोग यह भी पूछ सकते हैं कि कौलेजियम किस तरह जजों को चुनता है.

जजों को अपने फैसलों के जरिए बोलना चाहिए और इस तरह की टिप्पणी करने से बचना चाहिए. कौलेजियम यह नहीं कह सकता कि सरकार उस की तरफ से भेजे हर नाम को तुरंत मंजूरी दे. विवाद को हवा तब और मिली जब 28 नवंबर को जजों की नियुक्ति के मामले में कौलेजियम की तरफ से भेजे गए नामों में सरकार की तरफ से कोई फैसला नहीं लिया गया. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्ती दिखाते कहा कि सरकार ने फैसला नहीं लिया तो न्यायिक आदेश देना पड़ सकता है. कुछ नाम डेढ़ साल से भी ज्यादा वक्त से सरकार के पास हैं. इस तरह सिस्टम कैसे चल सकता है.

 

अच्छे वकीलों को जज बनने के लिए सहमत करना आसान नहीं होता लेकिन सरकार ने नियुक्ति इतनी कठिन बना रखी है कि देरी से परेशान लोग खुद अपना नाम वापस ले लेते हैं. सरकार अपनी मरजी से नाम चुन रही है, यह भी गलत है. और भी कई बातें हुईं लेकिन उन में भद्द सरकार और किरण रिजिजू की ही पिटी क्योंकि लोग कोर्ट को उन के मुकाबले सही मानते हैं. दरअसल सुप्रीम कोर्ट और सरकार के बीच विवाद पहले भी होते रहे हैं लेकिन इस दफा बात कुछ ज्यादा ही बिगड़ी जिस में साबित यह हुआ कि सुप्रीम कोर्ट अभी तक बुलडोजरप्रूफ है क्योंकि वह कानूनी बारीकियों से बेहतर तरीके से वाकिफ है. लेकिन सम?ाने वाले ही सम?ा पाए कि सरकार सुप्रीम कोर्ट के मई महीने में दिए उस फैसले पर खार खाए बैठी है जिस में कोर्ट ने बहुत तल्खी से साफ कर दिया था कि राजद्रोह नाम के कानून यानी इंडियन पीनल कोड की धारा 124 ए का इस्तेमाल न हो सकेगा, साथ ही यह भी कहा था कि जब तक पुनर्विचार होगा तब तक इस धारा के तहत कोई नया मामला दर्ज नहीं किया जा सकता.

एक तरह से सुप्रीम कोर्ट ने कुछ बुलडोजरों के पहियों को जंजीरों से जकड़ा है, जिस पर सरकार तिलमिला कर रह गई थी क्योंकि अब राजद्रोह कानून, जिसे वह बुलडोजर की तरह इस्तेमाल कर रही थी, के तहत विरोधियों को हर कभी हर कहीं जेल में नहीं डाल सकती थी. उस के बाद अब आया गुहावटी हाईकोर्ट का फैसला जिस ने तो बुलडोजर संस्कृति और विचारों को ही कटघरे में खड़ा कर दिया. यह कहा गुवाहटी हाईकोर्ट ने कानून और व्यवस्था दोनों के अलगअलग ध्येय हैं. संविधान ने कोर्ट और पुलिस को 2 अलगअलग जिम्मेदारियां दी हैं. अगर पुलिस खुद ही फैसला करने लगेगी तो यह ठीक नहीं होगा. अपराध रोकने के लिए बुलडोजर जैसी नीतियां 18वीं और 17वीं सदी में सही मानी जा सकती थीं. 21वीं सदी में इस की बात करना उचित नहीं है. बड़ी मुश्किल से देश के अंदर रूल औफ लौ यानी कानून का राज स्थापित हो पाया है. पिछले 75 वर्षों से यह चलता भी रहा है.

इसे और बेहतर बनाया जाना है. इसे तोड़ा नहीं जा सकता. गुवाहाटी हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस आर एम छाया ने असम के नगांव जिले में आगजनी की घटना के आरोपी के मकान को गिराए जाने के संबंध में सुनवाई के दौरान जोर दे कर कहा, ‘भले ही कोई एजेंसी किसी बेहद गंभीर मामले की ही जांच क्यों न कर रही हो, किसी के मकान पर बुलडोजर चलाने का प्रावधान किसी भी आपराधिक कानून में नहीं है. हम एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में रहते हैं. मकानों पर इस तरह से बुलडोजर चलाने की घटनाएं फिल्मों में होती हैं और उन में भी इस से पहले तलाशी वारंट दिखाया जाता है.’ गुवाहाटी के मछली व्यापारी शफीकुल इसलाम की कथित रूप से पुलिस हिरासत में मौत के बाद भीड़ ने बीती 21 मई को बटाद्रवा थाने में आग लगा दी थी. इसलाम को एक रात पहले ही पुलिस ले कर गई थी.

उस के एक दिन बाद जिला प्राधिकारियों ने इसलाम सहित कम से कम 6 लोगों के मकानों को उन के नीचे कथित तौर पर छिपाए गए हथियारों और नशीले पदार्थों की तलाशी के लिए ध्वस्त कर दिया था. इस के लिए बुलडोजर का इस्तेमाल किया गया था. कोर्ट ने कहा कि, ‘किसी के घर की तलाशी लेने के लिए भी अनुमति की आवश्यकता है. भले ही तलाशी लेने वाला वह एक एसपी हो और यहां तक कि उच्चअधिकारी को कानून के दायरे से गुजरने की जरूरत है. केवल इसलिए कि वे पुलिस विभाग के प्रमुख हैं, वे किसी का घर नहीं तोड़ सकते. अगर इस तरह की कार्रवाई की अनुमति दी जाती है तो इस देश में कोई भी सुरक्षित नहीं है.’ यही नहीं, कोर्ट ने बेहद तल्ख लहजे में यह भी कहा, ‘कल अगर आप को कुछ चाहिए होगा तो आप मेरे अदालत कक्ष को ही खोद देंगे. आखिरकार देश में एक लोकतांत्रिक व्यवस्था है.’ पीठ ने जानना चाहा कि क्या कार्रवाई के लिए कोई पूर्वअनुमति मांगी गई थी?

जिस पर राज्य के वकील ने जवाब दिया कि यह घरों की तलाशी के लिए है. न्यायमूर्ति छाया ने आश्चर्य व्यक्त किया और कहा, ‘‘यह (कार्रवाई) अनसुनी है कम से कम मेरे अब तक के कैरियर में. मैं ने किसी पुलिस अधिकारी को तलाशी वारंट के रूप में बुलडोजर चलाते हुए नहीं देखा है.’ न्यायमूर्ति छाया ने कहा, ‘यहां तक कि अगर एक एजेंसी द्वारा एक बहुत ही गंभीर मामले की जांच की जा रही है तो भी किसी भी आपराधिक कानून के तहत घर पर बुलडोजर चलाने का प्रावधान नहीं है.’ कोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा है कि किस कानून के तहत ऐसी बुलडोजर कार्रवाई की गई? गुवाहाटी होईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश आर एम छाया और न्यायमूर्ति सौमित्र साइकिया ने पुलिस अधीक्षक की ओर से 5 आरोपियों के मकानों पर की गई बुलडोजर कार्रवाई को ले कर राज्य सरकार से जवाब मांगा है. जिन आरोपियों के मकानों पर बुलडोजर चला, उन पर एक पुलिस थाने में आग लगाने का आरोप है.

राज्य सरकार के वकील ने एसपी की ओर से कार्रवाई को ले कर एक रिपोर्ट कोर्ट में सौंपी. इस पर कोर्ट ने सरकार के वकील से कहा, ‘आप हमें कोई आपराधिक कानून दिखाएं जिस के तहत अपराध की जांच करते हुए बिना किसी आदेश के पुलिस बुलडोजर से किसी व्यक्ति के घर को उखाड़ सकती है.’ इस पर सरकार के वकील ने स्पष्ट करने का प्रयास किया कि यह कार्रवाई किसी व्यक्ति को उखाड़ने के लिए नहीं थी. यूपी समेत देश के कई राज्यों में अपराधियों के घरों पर बुलडोजर चलाए जाने की कार्रवाई के बीच गुवाहाटी हाईकोर्ट ने यह अहम टिप्पणी की है. हाईकोर्ट ने जोर दे कर कहा कि किसी भी आपराधिक कानून के तहत मकानों पर बुलडोजर चलाने का प्रावधान नहीं है. भले ही कोई जांच एजेंसी किसी भी बेहद गंभीर मामले की जांच कर रही हो. गुवाहाटी हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश आर एम छाया ने असम के नगांव जिले में आगजनी के एक मामले में आरोपी का घर गिराए जाने के इस मामले का स्वत: संज्ञान लिया था. जस्टिस छाया ने सवाल किया कि कानून और व्यवस्था शब्दों का एकसाथ उपयोग क्यों किया जाता है? बुलडोजर चलाना कानून और व्यवस्था को नियंत्रित करने का तरीका नहीं है. उत्तर प्रदेश से शुरू हुआ यह रोग विरोधियों पर बुलडोजर का प्रयोग उत्तर प्रदेश से शुरू हुआ. यह पहली बार चर्चा में तब आया जब ‘कानपुर का बिकरूकांड’ हुआ.

अपराधी विकास दुबे के साथ मुठभेड़ में आधा दर्जन पुलिस वालों की हत्या होती है. बदले की कार्रवाई में पुलिस ने बुलडोजर से विकास दुबे का पूरा घर गिरा दिया. इस के बाद मुख्तार अंसारी, अतीक अहमद जैसे तमाम अपराधियों पर यह बुलडोजर चला. एक के बाद एक घरों पर बुलडोजर चलने लगा. सीएए और एनआरसी का विरोध करने वालों के खिलाफ भी यह कदम उठाया गया. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का नाम ही ‘बुलडोजर बाबा’ पड़ गया. 2022 के विधानसभा चुनाव में योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के इतिहास में पहले ऐसे मुख्यमंत्री बन कर उभरे जो लगातर दूसरी बार मुख्यमंत्री बनने में सफल रहे. इस जीत का श्रेय उन की कड़क कानून व्यवस्था को दिया गया. इस में बुलडोजर ब्रैंड बन कर उभरा. तमाम चुनावी रैलियों में बुलडोजर को भी ला कर रखा जाने लगा था. धीरेधीरे उत्तर प्रदेश से चला बुलडोजर देश के दूसरे राज्यों में भी असर करने लगा.

मध्य प्रदेश, दिल्ली और गुजरात जैसे तमाम राज्यों से होता यह बुलडोजर असम तक पहुंच गया. जहां गुवाहाटी होईकोर्ट को इस की लगाम खींचनी पड़ी. अगर यह सम?ों कि बुलडोजर संस्कृति क्यों बढ़ती जा रही है तो पता चलता कि यह नेताओं की छवि गढ़ने के लिए प्रयोग की जा रही है. विरोधी भले ही इसे गलत मान रहे हों लेकिन जनता का एक वर्ग इस को सही मानती हुई नेता की छवि को मजबूत सम?ाता है. सोशल मीडिया के जमाने में इस भ्रम को बड़ी आसानी से गढ़ा जाता है कि बुलडोजर अपराधों को कम करता है. उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावप्रचार को देखें तो पता चलता है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 2022 के विधानसभा चुनाव में अपनी 58 रैलियों में बुलडोजर शब्द का इस्तेमाल किया. पार्टी ने इन सभी सीटों पर जीत दर्ज की. उत्तर प्रदेश में योगी को ‘बुलडोजर बाबा’ के बाद मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को ‘बुलडोजर मामा’ का नाम दिया गया. उत्तर प्रदेश हाईकोर्ट ने भी उठाए सवाल उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में दोमंजिले घर में जावेद मोहम्मद अपनी पत्नी और 2 बेटियों के साथ रहते थे.

सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन की वजह से प्रदेश सरकार ने उन के घर पर बुलडोजर चला दिया. सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीशों और वरिष्ठ वकीलों ने योगी सरकार के इस कदम पर सवाल उठाते हुए सर्वोच्च अदालत से मामले पर स्वत: संज्ञान लेने की अपील की है. मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने ट्वीट कर के लिखा है कि- अपराधियों/माफियाओं के विरुद्ध बुलडोजर की कार्रवाई सतत जारी रहेगी. किसी गरीब के घर पर गलती से भी कोई कार्रवाई नहीं होगी. यदि किसी गरीब, असहाय व्यक्ति ने कतिपय कारणों से अनुपयुक्त स्थान पर आवास निर्माण करा लिया है तो पहले स्थानीय प्रशासन द्वारा उस का समुचित व्यवस्थापन किया जाएगा.’ लेकिन योगी आदित्यनाथ यह नहीं बता पाए कि ऐसा हो ही क्यों और इस दौरान जो सजा गरीब, असहाय आदमी की औरतें भुगतेंगी, सरकार उस की भरपाई कैसे करेगी. उन की मानसिक यंत्रणा का तो कोई मोल हो ही नहीं सकता . ऐसे में सवाल उठता है कि बुलडोजर से घर ढहाए जाने की कार्रवाई कानूनी है या गैरकानूनी? अपराधियों के खिलाफ त्वरित कार्रवाई के नाम पर उत्तर प्रदेश के बाद मध्य प्रदेश में भी बुलडोजर का इस्तेमाल शुरू हो गया. 4 बार मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बन चुके शिवराज सिंह चौहान ने कहा, ‘गुंडे, बदमाश, और दबंग को छोड़ने वाला नहीं हूं. चकनाचूर कर के मिट्टी में मिला कर रहेंगे हम और बेटी की तरफ अगर गलत नजर उठी तो जमींदोज कर दिए जाएंगे, मकानों का पता नहीं चलेगा, दुकानों का पता नहीं चलेगा. ऐसे बदमाशों पर बुलडोजर चलेगा.’ दूसरे नेताओं को लगने लगा कि इस तरह से वे भी योगी की तरह से सफल हो जाएंगे.

लेकिन फिलौसफी से एमए करने वाले शिवराज सिंह भी न सोच पाए और न बता पाए कि गुंडेबदमाशों की गलती की सजा उन के बीवीबच्चों को देना कहां का इंसाफ है जिन्हें बुलडोजर चलने के बाद अपने उजड़े आशियाने के अवशेष भी नहीं बीनने दिए जाते और वजह कोई भी हो, किसी भी जायदाद को नष्ट करना कौन से अर्थशास्त्र के किस अध्याय में लिखा है. मध्य प्रदेश सरकार के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्र ने खुल्लमखुल्ला कहा कि जिन घरों से पत्थर आए हैं उन घरों को पत्थर का ढेर बनाएंगे. इस बयान के बाद खरगौन जिले में प्रशासन ने कई लोगों के घर गिरा दिए. सरल शब्दों में उस का मतलब यह है कि किसी व्यक्ति द्वारा किए गए किसी अपराध की सजा के रूप में उस का घर गिराया जा सकता है. चाहे अदालत का फैसला आना बाकी क्यों न हो. भारत का कानून ऐसे कदम उठाने की इजाजत कतई नहीं देता है? गुवाहाटी होईकोर्ट की टिप्पणी इस मसले पर बेहद खास है.

धर्म देता है इजाजत कानून ऐसे कदम उठाने की इजाजत दे न दे लेकिन पौराणिक ग्रंथों में इफरात से ऐसे किस्से भरे पड़े हैं जिन में विध्वंस महज प्रतिशोध की भावना और इरादे से किया गया. ताकत व्यक्तिगत हो या अर्जित की गई, उस का बेजा इस्तेमाल त्रेता और द्वापर युग में भी किया गया है. चूंकि तब बुलडोजर नहीं थे, इसलिए ऋषिमुनि और देवीदेवता श्राप नाम के बुलडोजर से काम चला लेते थे. उन्हें जो ‘दिव्य शक्तियां’ मिली होती थीं वे भी किसी बुलडोजर से कम विध्वंसक नहीं थीं. हनुमान जब सीता को खोजने लंका गए तो अशोक वाटिका को उन्होंने तहसनहस कर रावण को अपनी ताकत का एहसास कराया था. हालांकि इस बुलडोजर प्रवृत्ति का इस्तेमाल राक्षस भी इफरात से करते थे, वे जंगलों में तपस्या और यज्ञ, हवन करने वाले ऋषिमुनियों के आश्रम उजाड़ देते थे, जिस से आएदिन ?ाड़पें होती रहती थीं. राम से इन ऋषिमुनियों ने याचना की तो उन्होंने राक्षसों का समूल नाश कर दिया. श्राप शक्ति की तो महिमा ही अपरंपार थी. वाल्मीकि रामायण के उत्तरकांड में दुर्वासा ऋषि जब राम से मिलने पहुंचते हैं तो लक्ष्मण उन्हें रोकते हैं क्योंकि ऐसा आदेश उन्हें राम से ही मिला था. दुर्वासा बातबात में श्राप देने के लिए कुख्यात थे.

वे लक्ष्मण सहित भरत और रघुकुल की अगली पीढ़ी को भी श्राप देने को उतारू हो गए तो लक्ष्मण को लगा कि इस श्रापरूपी बुलडोजर से ज्यादा नुकसान हो, इस से तो अच्छा है कि मैं राम को दुर्वासा के आने की खबर कर दूं जोकि उन्होंने की. इस के बाद जो हुआ वह हर कोई जानता है. महाभारत काल में पांडवों के अज्ञातवास के दौरान लाक्षागृह में लगी आग का उदाहरण भी बुलडोजर सरीखा ही है जिस का मकसद पांडवों को खदेड़ कर बाहर निकालना था. जब असली मशीनी बुलडोजर बन गए तो हिंदी फिल्मकारों ने हकीकत दिखाना शुरू की कि कैसे अमीर लोग गरीबों की बस्तियां बुलडोजर से उजाड़ते हैं और ऐन वक्त पर हीरो आ कर उन्हें बचा लेता है. जब डायरैक्टर को लगा कि हीरो और विलेन के गुर्गों के बीच मारधाड़ कहानी से मेल नहीं खा रही है तो उस ने हीरो के हाथ में कोर्ट का स्टे और्डर थमाना शुरू कर दिया. सुभाष घई निर्देशित फिल्म ‘मेरी जंग’ में जैसे ही खलनायक के गुर्गे गरीब बस्ती को तहसनहस करने के लिए बुलडोजर ले कर पहुंचते हैं तो हीरो फट से कोट की जेब से स्टे और्डर निकाल कर डायलौग बोलने लगता है. यह फिल्मी बात है, नहीं तो अभी तक जिन लोगों के घरों पर बुलडोजर चले हैं उन्हें अदालत तक पहुंचने का वक्त ही नहीं दिया गया.

ऐसी तोड़फोड़ अकसर अलसुबह की जाती है जिस से कि पीडि़त कुछ सोचसम?ा ही न पाए. बेचारा यह सच भी नहीं बोल पाता कि मैं ने तो महज 4 फुट पर नाजायज निर्माण किया था, आप के बुलडोजर ने तो जायज हिस्सा भी गिरा दिया. यही पौराणिक काल से ले कर अभी तक के बुलडोजरों की खूबी है कि वे सोचने या कुछ करने की भी मोहलत नहीं देते जबकि कानून कहता है कि उन्हें मौका मिलना चाहिए. बदले की भावना से किए जा रहे फैसले विरोधियों का आरोप है कि इस तरह घर गिराए जाने जैसे कदम गैरकानूनी और बदले की भावना से उठाए जा रहे हैं. कानून के जानकार भी मानते हैं कि मौजूदा कानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि किसी संदिग्ध के घर पर बुलडोजर चलाया जाए. सरकार यह कहती है कि बुलडोजर नगर निगम से जुड़े कानून के उल्लंघन के लिए चलाया गया है.

यहां यह गौर करना चाहिए कि नगर पालिकाओं के अपराधों के मामलों में कोई अधिकार नहीं होते. नगर पालिका अगर सभी अतिक्रमण करने वालों के मकान गिरा रही है तो वह उस का हक माना जा सकता है पर वह केवल अपराधी माने गए व्यक्ति का घर नहीं गिरा सकती. नगर निगम को नोटिस और नोटिस के बाद सुनवाई का मौका देना चाहिए. यहां जो कुछ हो रहा है, वह नगर निगम के कानून के उल्लंघन की वजह से नहीं हो रहा है. यह किसी व्यक्ति का केंद्र या राज्य सरकार की राजनीतिक नीति के खिलाफ प्रोटैस्ट या अन्य किसी घटना में शामिल होने के संदेह होने पर की गई बदले की कार्रवाई है. यह सरासर गैरकानूनी है. यही नहीं, इंडियन पीनल कोड में भी कोई ऐसी व्यवस्था नहीं है कि किसी व्यक्ति को दोषी पाए जाने पर उस का घर गिरा दिया जाए.

कानून में सिर्फ इतना प्रावधान है कि दोषी ठहराए गए व्यक्ति पर जुर्माना लगाया जा सकता है जिस के लिए बाद में पीडि़त पक्ष को समय दिया जा सकता है. अगर वह समय पर जुर्माना नहीं दे पाता तो घर को नीलाम करने का कदम उठाया जाता है. लेकिन आज तक कोई ऐसा कानून नहीं बना है जिस के आधार पर अगर कोई व्यक्ति दोषी पाया जाता है तो उस का घर गिराया जाए. यहां तो दोषी पाए जाने से पहले ही घर बुलडोजर से गिराए जा रहे हैं. अपराध रोकने के नाम पर कानून का उल्लंघन नहीं किया जा सकता. इस तरह की बुलडोजर गलतियां अगर सरकार करती रही तो जनता में हाहाकार मच सकता है जिस के बाद मसले को हल करना कठिन हो जाएगा. लोकतंत्र में जनता का विद्रोह आमतौर पर वोट के जरिए प्रकट होता है. लेकिन जनता आमतौर पर ही बारीक और खुद के हितों से जुड़े मुद्दों पर वोट नहीं डालती और बाद में हाथ मलती रह जाती है. इधर कट्टर सरकारें अपनी कमजोरियां ढकने के लिए भगवा बिकिनी जैसे गैरजरूरी व बेकार के विवाद को ही मुद्दा बना दें तो यह सब तो होता रहेगा यानी बुलडोजर मकानों और दुकानों सहित व्यक्तिगत स्वतंत्रता व विचारों को भी रौंदता रहेगा ठीक वैसे ही जैसे नोटबंदी ने आम लोगों और जीएसटी जैसे बुलडोजरी फैसलों ने कारोबारियों को रौंदा था.

Crime Story: एक और द्रौपदी

कानपुर शहर का एक घनी आबादी वाला मोहल्ला है जूही बम्हुरिया. इसी मोहल्ले के रहने वाले रामलाल के परिवार में पत्नी पार्वती के अलावा 2 बेटियां रूपा, विमला और 2 बेटे रूपेश व विमलेश थे. दोनों बेटे छोटामोटा काम कर रहे थे, जिस से रामलाल के परिवार की गुजरबसर आराम से हो रही थी.

2 साल पहले रूपा की शादी सोनू से हुई थी. सोनू ड्राइवर था. हंसीखुशी से 2 साल कब बीत गए, दोनों को पता ही नहीं चला. इन 2 सालों में रूपा एक बेटी की मां बन गई थी. बेटी के जन्म के बाद खर्चा तो बढ़ गया लेकिन आमदनी नहीं बढ़ सकी. घर में आर्थिक परेशानी होने लगी, जिस से सोनू का रूपा से झगड़ा होेने लगा. दरअसल सोनू शराब का लती था.

वह अपनी कमाई के आधे पैसे अपने खानेपीने में खर्च कर देता था. रूपा उस की आधी कमाई से जैसेतैसे करके घर का खर्च चलाती थी, जिस से दोनों में तकरार होने लगी. इसी तकरार में सोनू रूपा की पिटाई भी कर देता था.सोनू का एक दोस्त प्रदीप प्रजापति था. वह लक्ष्मीपुरवा का रहने वाला था और डिप्टी पड़ाव स्थित एक होटल में काम करता था. सोनू अकसर उसी के होटल पर खाना खाता था. वहीं पर दोनों की जानपहचान हो गई. एक शाम को प्रदीप सोनू के घर के सामने से गुजर रहा था तो सोनू ने उसे रोक लिया और चाय पी कर जाने को कहा.

प्रदीप को यही चाय पिलाना सोनू को भारी पड़ गया. सोनू की पत्नी रूपा प्रदीप चाय ले कर आई, तो उस पर नजर पड़ते ही वह उस का दीवाना हो गया. इस पहली मुलाकात में प्रदीप को रूपा का बोलनाबतियाना इतना अच्छा लगा कि वह कोई न कोई बहाना बना कर सोनू की गैरहाजिरी में उस के घर आने लगा. वह रूपा को भाभी कहता था.

वह जब भी आता, रूपा के पास बैठ कर हंसीमजाक करता रहता. रूपा को भी उस का उठनाबैठना और हंसनाबोलना अच्छा लगता था. लगातार उठनेबैठने और हंसनेबोलने का नतीजा यह हुआ कि रूपा और प्रदीप एकदूसरे को चाहने लगे.

प्रदीप की उम्र यही कोई 20 वर्ष थी. उस ने जवानी की दहलीज पर कदम रखा था, इस उम्र में रूपा का अपनापन और प्यार पा कर वह बेकाबू होने लगा. लेकिन वह अपने मन की बात रूपा से कह नहीं पा रहा था. जबकि रूपा चाहती थी कि प्रदीप ही पहल करे.

प्रदीप रूपा के लिए पागल था, तो रूपा भी कुंवारे प्रदीप को पाने के लिए लालायित थी. दरअसल रूपा अपने पति की शराबखोरी और मारपीट से ऊब चुकी थी. ये दूरियां ही रूपा को प्रदीप की ओर आकर्षित करने लगी थीं. जब रूपा ने देखा कि प्रदीप अपने मन की बात सीधे नहीं कह पा रहा है, तो उसी ने एक दिन उसे छेड़ते हुए कहा, ‘‘प्रदीप, तुम तो मुझे दीवानों की तरह देखते हो.’’

‘‘भाभी, मैं तुम्हारा दीवाना हूं, तो दीवानों की ही तरह देखूंगा न. अब तुम्हारे अलावा मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लगता. सोतेजागते मैं सिर्फ तुम्हारे बारे में ही सोचता रहता हूं.’’ रूपा के उकसाने पर प्रदीप ने अपने मन की बात कह दी.‘‘कुछ ऐसा ही हाल मेरा भी है. लेकिन तुम मुझ से छोटे हो, इसलिए मैं अपने मन की बात तुम से कह नहीं पा रही थी.’’ रूपा बोली.

‘‘लेकिन भाभी, प्यार उम्र और जाति नहीं देखता. वह सिर्फ मन देखता है.’’ प्रदीप ने कहा  ‘‘मुझे बहुत लोग मिले, लेकिन मैं ने किसी को करीब नहीं आने दिया. तुम्हारे अंदर न जाने क्या है कि तुम से अलग होने का मन नहीं करता.’’ रूपा ने प्रदीप पर नजरों के तीर चलाते

हुए कहा. ‘‘भाभी, लगता है कि हमारा पिछले जन्म का रिश्ता है.’’ प्रदीप बोला.‘‘तुम सच कह रहे हो, क्योंकि तुम्हें देखते ही मेरा दिल तुम पर आ गया था.’’ रूपा ने मन की बात कह दी. इस तरह प्यार का इजहार करने के बाद पहली बार दोनों ने दिल खोल कर बातें की.

इस के बाद तो प्रदीप रूपा के लिए इस तरह पागल हुआ कि होटल से घर आते ही आराम करने के बजाय सीधे रूपा के यहां पहुंच जाता और वहां घंटों तक बैठा रहता. उस समय सोनू घर में नहीं होता था, इसलिए रूपा घर के कामकाज छोड़ कर उस के पास बैठ कर बातें करती रहती.

धीरेधीरे उन के बीच की दूरी कम होती गई और फिर एक रोज दोनों ने अपनी हसरतें भी पूरी कर लीं.कहा जाता है कि अगर किसी कुंवारे लड़के को विवाहित औरत से शारीरिक सुख मिलने लगता है तो वह उस के प्यार में पागल हो जाता है. उस के बाद उन्हें अलग करना आसान नहीं होता. ठीक उसी तरह प्यार के प्यासे प्रदीप को रूपा के रूप में प्यार का सागर मिला तो वह उस का ऐसा दीवाना हुआ कि उसे किसी की परवाह नहीं रही.

प्रदीप और रूपा को मिलतेजुलते अभी 2 महीने भी नहीं हुए थे कि मोहल्ले में उन के प्यार की चर्चाएं होेने लगीं. किसी ने इस बारे में रूपा के पति सोनू को बताया तो एकबारगी उसे विश्वास ही नहीं हुआ, क्योंकि प्रदीप उस का दोस्त था और उसे उस पर भरोसा था.

बात सच रही हो या झूठ, इस चर्चा से उस की और पत्नी की बदनामी तो हो ही रही थी. इसलिए उस रात वह घर लौटा तो उस ने रूपा से प्रदीप से उस के संबंधों को ले कर होने वाली चर्चा के बारे में पूछा.

रूपा पति की बात सुन कर सकते में आ गई. वह जल्दी से कुछ बोल नहीं पाई तो प्रदीप ने कहा, ‘‘तुम उसे घर आने से मना कर दो, बात खत्म. ‘‘ठीक है.’’ रूपा ने बेहद मायूसी से कहा.‘‘लगता है तुम्हें मेरी बात बुरी लग गई.’’ सोनू ने रूपा के चेहरे को पढ़ने की कोशिश करते हुए कहा.

‘‘इस में बुरा लगने वाली क्या बात है, आप कह रहे हैं तो मना कर दूंगी.’’ रूपा ने रूखेपन से कहा.सोनू ने प्रदीप को रोकने के लिए कहा जरूर, लेकिन न तो रूपा ने उसे मना किया और न ही प्रदीप ने उस के यहां आना बंद किया. हां, वे थोड़ी सतर्कता जरूर बरतने लगे थे. लेकिन लाख कोशिश के बाद भी उन का प्यार छिप नहीं सका.

एक महीना भी नहीं बीता था कि किसी ने प्रदीप और रूपा के मिलने के बारे में सोनू से शिकायत कर दी. फिर क्या था, सोनू बुरी तरह तिलमिला उठा. उस आदमी से तो उस ने कुछ नहीं कहा, लेकिन कामधाम छोड़ कर वह सीधे घर पहुंच गया. वह दबेपांव घर में घुसा. कमरे के बैड पर प्रदीप और रूपा एकदूसरे से लिपटे पड़े थे. सोनू को देखते ही प्रदीप फुरती से उठा और अपने कपड़े ठीक कर के वहां से भाग गया.

रूपा को उस स्थिति में देख कर वह आगबबूला हो उठा. गुस्से में उस ने रूपा की पिटाई की. उस के बाद चेतावनी देते हुए बोला, ‘‘प्रदीप का घर आनाजाना तो दूर रहा, अगर तुझे उस से बातचीत करते भी देख लिया तो तेरी बोटीबोटी काट कर चीलकौवों को खिला दूंगा.’’

उस दिन के बाद से रूपा के प्यार पर पहरा लग गया. इस के बाद दोनों वियोग की पीड़ा में छटपटाने लगे. दोनों एकदूसरे को बेहद प्यार करते थे. उन की चाहत रोमरोम में समा गई थी. इसलिए वे एकदूसरे के बिना जिंदगी की कल्पना नहीं कर सकते थे.

रंगेहाथों पकड़ी जाने के बाद रूपा पति की नजरों से गिर गई थी. सोनू अब उस पर जरा भी विश्वास नहीं करता था. प्रदीप को ले कर अब सोनू और रूपा के बीच रोज ही विवाद और मारपीट होती. इस तरह उन के बीच मतभेद इस कदर बढ़ गए कि दोनों एक ही छत के नीचे रहते हुए अपरिचित से हो गए थे.

सोनू रूपा के अवैध संबंधों की वजह से काफी तनाव में रहता था. इस का नतीजा यह निकला कि जराजरा सी बात पर उन दोनों के बीच झगड़ा और मारपीट होने लगी. स्थिति यह आ गई कि रूपा को उस घर में एक पल भी काटना मुश्किल लगने लगा. उधर प्रदीप की हालत भी पागलों जैसी हो गई थी.

जब प्रदीप से वियोग की वेदना नहीं सही गई तो उस ने फोन पर मैसेज भेज कर रूपा को बारादेवी मंदिर बुलाया. निर्धारित समय पर रूपा मंदिर पहुंच गई. वहां दोनों एकदूसरे को देख कर भावुक हो उठे. उन की आंखों से आंसू टपकने लगे.मन का गुबार आंसू बन कर निकल गया तो रूपा ने कहा, ‘‘प्रदीप तुम्हें परेशान होने की जरूरत नहीं है. यह रूपा तुम्हारी है और तुम्हारी ही रहेगी.’’

‘‘रूपा, तुम्हारे बिना मेरा एक पल नहीं कटता. अगर यही स्थिति रही तो मैं किसी दिन जहर खा कर जान दे दूंगा. क्योंकि अब मैं तुम्हारे बगैर नहीं रह सकता.’’ प्रदीप ने अपनी पीड़ा व्यक्त की  ‘‘मेरा भी यही हाल है. लेकिन मजबूर हूं, क्योंकि मैं औरत हूं.’’ निराश हो कर रूपा बोली. ‘‘रूपा, मुझे तुम्हारे साथ की जरूरत है. अगर तुम साथ दोगी तो हम दोनों सुकून की जिंदगी बिता सकेंगे.’’ प्रदीप बोला.

‘प्रदीप, शरीर के साथसाथ मैं ने अपनी जिंदगी भी तुम्हें सौंप दी है. तुम जैसा कहो, मैं तुम्हारा साथ देने को तैयार हूं.’’ रूपा ने विश्वास दिलाते हुए कहा. ‘‘तो फिर मेरे घर चलो. वहां मैं तुम्हें अपनी मां से मिलवाता हूं. वह राजी हो गईं तो मैं जल्द ही तुम से शादी कर अपनी जीवनसंगिनी बना लूंगा.’’ प्रदीप बोला.

प्रदीप की बात सुन कर रूपा थोड़ी सकुचाई. उस ने बहाना भी बनाया, लेकिन बाद में वह राजी हो गई. फिर प्रदीप रूपा को लक्ष्मीपुरवा स्थित अपने घर ले गया और मां मुन्नी देवी से मिलवाया. रूपा ने अपने और प्रदीप के रिश्तों की जानकारी मुन्नी देवी को दे कर प्रदीप से शादी की इच्छा जताई.

मुन्नी देवी यह जान कर विचलित हो उठीं कि उन का कुंवारा और कमउम्र का बेटा एक शादीशुदा और उस से बड़ी उम्र की औरत के प्रेम जाल में फंस गया है. मां मुन्नी देवी ने रूपा से साफ कह दिया कि वह शादीशुदा और एक बच्चे की मां बन चुकी औरत से अपने कुंवारे बेटे की शादी हरगिज नहीं कर सकती.

रूपा का पक्ष ले कर प्रदीप ने कुछ कहना चाहा, तो मुन्नी देवी ने उसे डपट दिया  मुन्नी देवी ने प्रदीप से शादी रचाने से इनकार किया तो रूपा निराश हो गई. उस की आंखों से आंसू टपकने लगे. रूपा के आंसुओं ने मुन्नी देवी का दिल पिघला दिया.

वह उस के सिर पर हाथ रख कर बोली, ‘‘रूपा, अगर तू मेरे घर की बहू बनना ही चाहती है तो प्रदीप के बजाए उस के बड़े भाई सुजीत से शादी कर ले. वह ईरिक्शा चलाता है. उस से शादी कर लेगी, तब मैं बच्ची सहित तुझे अपना लूंगी.’’

‘‘क्याऽऽ..’’ रूपा चौंकी, ‘‘मांजी, आप यह क्या कह रही हैं. मैं तो प्रदीप से प्यार करती हूं. फिर भला उस के बड़े भाई से कैसे ब्याह कर सकती हूं.’’मुन्नी देवी और रूपा में बातचीत हो ही रही थी कि सुजीत कुमार भी आ गया. उस ने अजनबी युवती को घर में देखा, तो मां से पूछताछ की. मुन्नी देवी ने तब सुजीत को सारी बात बताई और यह भी बताया कि वह रूपा से उस का विवाह कराना चाहती है. यह सुन कर सुजीत गदगद हो गया और वह रूपा से ब्याह रचाने को तैयार हो गया.

रूपा से सुजीत कई साल बड़ा था. इसलिए वह कोई निर्णय न कर सकी और वापस घर लौट आई. घर आ कर वह असमंजस में पड़ गई. प्रदीप उस का प्यार था, जबकि शादी की शर्त उस के बड़े भाई से रखी जा रही थी. वह कई रोज तक कशमकश में रही. आखिर उस ने प्रदीप से मिल कर कोई हल निकालने का निर्णय लिया.

प्रदीप से मिल कर रूपा ने इस बाबत बात की तो प्रदीप ने सुझाव दिया कि वह भाई से शादी कर ले. इसतरह वह घर में उस के साथ रहेगी और उस का प्यार भी बरकरार रहेगा.यानी मुझे तुम्हारे घर में द्रोपदी बन कर रहना पड़ेगा.’’ रूपा ने कटाक्ष किया.‘मुझे तो यही सही लग रहा है. बाकी तुम्हारी मरजी. तुम जो भी फैसला लोगी, मुझे मानना पड़ेगा.’’ प्रदीप बोला.

रूपा अपने पति सोनू से प्रताडि़त थी. उस का पति के साथ रहना मुश्किल था, यही सब देखते हुए उस ने सुजीत से ब्याह रचाने का फैसला कर लिया.इस के बाद रूपा ने 11 अगस्त, 2020 को जन्माष्टमी के दिन अपने प्रेमी प्रदीप के बड़े भाई सुजीत के साथ मंदिर में विवाह कर लिया और पहले पति सोनू का घर छोड़ कर सुजीत के साथ लक्ष्मीपुरवा में रहने लगी.

रूपा ने अपनी मांग में सुजीत के नाम का सिंदूर तो सजा लिया था, लेकिन वह पूर्णरूप से प्रदीप को समर्पित थी. वह रात में पति का बिस्तर सजाती थी और दिन में प्रेमी प्रदीप की बांहों में झूलती थी. मुन्नी देवी सब कुछ जानते हुए भी अपनी आंखों पर पट्टी बांधे रहती थी. इस तरह रूपा द्रोपदी बन कर घर में रहने लगी.

इधर सोनू को जब पता चला कि रूपा ने प्रदीप के भाई सुजीत से विवाह रचा लिया है तब उसे बहुत गुस्सा आया. वह मन ही मन दोनों भाइयों को सबक सिखाने की सोचने लगा.इस के लिए उस ने प्रदीप से फिर से दोस्ती कर ली और उस के साथ दारू पीने लगा. कभीकभी वह अपनी मासूम बेटी से मिलने के बहाने उस के घर भी पहुंच जाता था.

26 सितंबर, 2020 को रूपा अपने पति सुजीत व देवर प्रदीप के साथ अपने मायके जूही बम्हुरिया आई. खाना खाने के बाद सुजीत अपना ईरिक्शा ले कर निकल गया. तभी प्रदीप रूपा के साथ एक कमरे में कैद हो गया.इधर सोनू को पता चला कि रूपा मायके आई है तो वह बेटी से मिलने पहुंच गया. वहां उस ने कमरे में प्रदीप व रूपा को आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया. उस का खून खौल उठा. उस ने उसी समय प्रदीप को ठिकाने लगाने की योजना बना ली.

देर शाम वह प्रदीप को किसी बहाने स्वदेशी कौटन मिल कैंपस में ले गया. वहां बैठ कर दोनों ने शराब पी. अधिक नशा होने पर प्रदीप वहीं पड़े पत्थर पर लेट गया. उसी समय सोनू ने पत्थर से कूंच कर उस की हत्या कर दी.उस ने प्रदीप के शरीर से खून सने कपड़े उतारे और वहीं झाडि़यों में छिपा दिए. खून से सना पत्थर भी उस ने वहीं छिपा दिया. इस के बाद वह फरार हो गया.

शाम को सुजीत घर आया. वहां प्रदीप नहीं दिखा तो उस ने रूपा से प्रदीप के बारे में पूछा. रूपा ने बताया कि उस के जाने के बाद सोनू आया था. वही प्रदीप को अपने साथ ले गया था. प्रदीप जब देर शाम तक घर नहीं आया तो सुजीत ने खोज शुरू की. जब वह नहीं मिला तो सुजीत ने भाई की गुमशुदगी थाना जूही में लिखा दी.

27 सितंबर, 2020 की सुबह 8 बजे थाना जूही पुलिस को स्वदेशी कौटन मिल कैंपस में एक युवक की नग्न अवस्था में लाश पड़ी होेने की सूचना मिली. सूचना पाते ही थानाप्रभारी संतोष कुमार आर्या घटनास्थल पर पहुंच गए.उन की सूचना पर एसएसपी प्रीतिंदर सिंह तथा एसपी (साउथ) दीपक भूकर भी आ गए. चूंकि थाने में सुजीत ने प्रदीप की गुमशुदगी दर्ज कराई थी, अत: आर्या ने सुजीत को भी कैंपस बुलवा लिया. सुजीत ने भाई का नग्न शव देखा तो वह रो पड़ा.

उस ने पुलिस अधिकारियों को बताया कि शव उस के भाई प्रदीप का है. शव की शिनाख्त हो जाने के बाद पुलिस ने उसे पोेस्टमार्टम के लिए हैलट अस्पताल भिजवा दिया.थानाप्रभारी संतोष कुमार आर्या ने सुजीत की तहरीर पर भादंवि की धारा 364/302 के तहत सोनू के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली और उस की तलाश में जुट गए. उन्होंने सोनू को कई संभावित जगहों पर खोजा, लेकिन जब वह नहीं मिला तो उन्होंने मुखबिर लगा दिए.

29 सितंबर की सुबह 7 बजे उन्हें मुखबिर से सूचना मिली कि सोनू सोनेलाल इंटर कालेज के पास मौजूद है.इस सूचना पर वह पुलिस टीम के साथ वहां पहुंच गए और घेराबंदी कर सोनू को हिरासत में ले लिया. उसे थाने ला कर प्रदीप की हत्या के संबंध में पूछा गया तो उस ने सहज ही हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. यही नहीं उस ने आलाकत्ल पत्थर तथा मृतक के खून सने कपड़े भी कौटन मिल कैंपस से बरामद करा दिए.

पूछताछ में सोनू ने बताया कि प्रदीप के कारण ही उस की पत्नी रूपा उसे छोड़ कर गई थी. प्रदीप ने ही उस के घर में आग लगाई थी, जिस से उसे मजबूरी में उस की हत्या करनी पड़ी.सोनू से पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे 30 सितंबर, 2020 को कानपुर कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया गया.

Winter 2023: सर्दियों में मेथी से बनाएं ये 3 डिश

सर्दियों के मौसम में मेथी खूब मिलती है और इससे कई तरह की डिश आप बना सकते हैं तो इस मौसम में आप मेथी से बने डिश को जरूर ट्राय करें.

  1. मेथी बेसन कढ़ी बनाने की विधि

सामग्री :

– बेसन (01 कप)

– मेथी के पत्ते (250 ग्राम)

– टमाटर  (01 बारीक कटा हुआ)

– हरी मिर्च (02 बारीक कटी हुई)

– प्याज  (01 कटा हुआ)

– लहसुन (05 कली कुटा हुआ)

– अदरक (01 टुकड़ा कुटा हुआ)

– तेल (02 बड़े चम्मच)

– राई (01 छोटा चम्मच)

– जीरा (01 छोटा चम्मच)

– हल्दी पाउडर (1/2 छोटा चम्मच)

– अमचूर (1/2 छोटा चम्मच)

– नमक (स्वादानुसार)

मेथी बेसन कढ़ी बनाने की विधि :

– सबसे पहले एक कढ़ाही मे तेल गर्म करें.

– तेल गर्म होने पर उसमें राई ज़ीरा का तड़का दें.

– उसके बाद प्याज, लहसुन, अदरक डाल कर अच्छी तह से भून लें.

– मसाला भुन जाने पर इसमें हरी मिर्च डाल का थोडा सा और भूनें.

– उसके बाद टमाटर डाल दें, साथ में हल्दी और नमक भी मिला दें और चलाते हुए भूनें.

– टमाटर के गल जाने पर कड़ाही में मेथी के पत्ते डाल दें और 2 मिनट के लिये ढक दें.

– इसके बाद एक कप बेसन में आठ कप पानी डालकर उसे अच्छी तरह से घोल लें और उस घोल को कढ़ाही में मेथी के साथ मिला दें.

– इसके बाद अमचूर डाल दें और चम्मच से चलाते हुए गाढ़ी होने तक पकाएं.

– लीजिए आपकी मेथी बेसन कढ़ी बनाने की विधि कम्‍प्‍लीट हुई.

– गाढ़ी होने पर कढ़ाही को उतार लें और रोटी चावल के साथ कढ़ी को परोसें.

2. मेथी पनीर बनाने की विधि

सामग्री :

– पनीर (250 ग्राम)

– मेथी (250 ग्राम)

– टमाटर प्‍यूरी (1/2 कप)

– लाल मिर्च (01 नग)

– गरम मसाला (01 छोटा चम्मच)

– धनिया पाउडर (01 छोटा चम्मच)

– लाल मिर्च पाउडर (01 छोटा चम्मच)

– तेल (फ्राई करने के लिये)

– नमक (स्‍वादानुसार)

मेथी पनीर बनाने की विधि :

– सबसे पहले मेथी के पत्तों को धो लें.

– उसके बाद पत्तों को भाग में बराबर-बराबर बांट दें.

– अब एक भाग वाले पत्‍तों को उबाल लें.

– उबालने के बाद उन्हें मिक्‍सर में महीन पीस लें.

– बाकी बचे मेथी के पत्तों को बारीक काट लें.

– अब पनीर को मनचाहे टुकड़े में काट लें.

– फिर एक पैन में तेल गर्म करें और उसमें पनीर को फ्राई कर लें.

– फ्राई करने के बाद पनीर के टुकड़ों को पानी में भिगो दें.

– इससे पनीर के टुकड़े नरम हो जायेंगे.

– अब एक कढ़ाई में दो छोटे चम्मच तेल डाल कर गरम करें.

– तेल गरम होने पर उसमें लाल मिर्च डाल कर तल लें.

– तली हुई मिर्चों को बाहर निकाल कर रख दें.

– उसके बाद तेल में टमाटर की प्यूरी डालें और थोड़ा सा फ्राई कर लें.

– अब कढ़ाई में नमक, गरम मसाला पाउडर, धनिया पाउडर और लाल मिर्च पाउडर डालें और थोड़ा सा भून लें.

– जब मसाला अच्छी तरह से भुन जाए, कढ़ाई में पिसी हुई मेथी और मेथी की पत्‍तियों को डालें और     चलाते हुए पकायें.

– मेथी अच्छी तरह से भुन जाने पर कढ़ाई में पनीर के टुकड़े डालें.

– अब इसे धीमी आंच में 2-3 मिनट पकायें और फिर गैस बंद कर दें.

– स्वादिष्ट मेथी पनीर की सब्जी तैयार है, इसे गर्मा-गरम निकालें और रोटी या पराठों के साथ पेश करें.

3. मेथी के चावल बनाने की विधि

सामग्री

– 1 कटोरी चावल (पानी में भींगे हुए)

– मेथी के पत्ते (1 कप)

-1 टमाटर (कटा हुआ)

–  स्वीटकौर्न (2 बड़े चम्मच)

–  हरीमिर्च  (1कटी हुई)

– 3 छोटे बैगन (कटे हुए)

– हल्दी पाउडर (1/4 छोटा चम्मच)

–  धनिया पाउडर (1/2 छोटा चम्मच)

– गरममसाला (1/4 छोटा चम्मच)

– नमक (स्वादानुसार)

– तेल (2 बड़े चम्मच)

–  जीरा (1 छोटा चम्मच)

बनाने की विधि

– कढ़ाई में तेल गरम कर जीरा, हल्दी पाउडर, धनिया पाउडर, गरममसाला, हरीमिर्च  भूनें

– फिर मेथी के पत्ते, टमाटर और बैगन मिला कर कुछ देर पकाएं.

– अब चावल, नमक और स्वीटकौर्न मिला कर धीमी आंच पर ढक कर पकाएं.

– चावल पक जाने पर धनिया पत्ती से सजा कर परोसें.

नायिका-भाग 2: जाटपुर की सुंदरी की क्या कहानी थी?

जगप्रसाद तो सुंदरी की यह हालत देख कर वहीं गश खा कर गिर पड़ा. एक बुजुर्ग ने अपनी पगड़ी खोल कर सुंदरी की आबरू को ढंका. गांव वालों ने सुंदरी के हाथपैर खोले, उस के मुंह में ठुंसा दुपट्टा निकाला और उसे लेकर जल्दी से गांव पहुंचे. वहां गांव का डाक्टर बापबेटी को होश में लाने में कामयाब रहा.

यह खबर गांव में आग की तरह फैल गई. हर कोई खबर सुन कर जगप्रसाद के घर की तरफ भागा जा रहा था. बलात्कारियों के परिवार वालों को खबर लगी तो वे गांव वालों के आक्रोश से बचने के लिए गांव छोड़ कर भाग खड़े हुए.

उधर ग्राम प्रधान मखना ने मामले की खबर पुलिस को कर दी थी. पुलिस ने आते ही अपनी काररवाई शुरू कर दी. बलात्कारियों के घर तोड़फोड़ की और सुंदरी को मैडिकल जांच के लिए बिजनौर के जिला अस्पताल भेजा.

जल्दी ही बलात्कारी गिरफ्तार कर लिए गए और सलाखों के पीछे भेज दिए गए. कानून अपना काम करता रहा लेकिन एक मुकदमा गांव में भी चलता रहा. इस मुकदमे की अदालत गांव थी. इस में वकील, जज और गवाह सब गांव वाले थे. अपराधी भी गांव की ही एक लड़की थी और वह थी सुंदरी. वह बिना किसी अपराध की अपराधी थी.

यह अपराध भी ऐसा था जो उस ने कभी किया ही नहीं था. लेकिन समाज के ठेकेदार उसे गुनहगार बनाने पर तुले हुए थे. समाज के ठेकेदारों ने सुंदरी पर अपराध की जो धाराएं लगाईं, वे न तो कानून की किताबों में कहीं मिलती हैं और न सभ्य समाज में. समाज के ठेकेदारों ने उस पर अपनी धाराएं लगाईं- बलात्कार की शिकार, पापिन, अछूत और अपशकुनी.

गांव वालों ने अपनी बेटियों को सुंदरी से दूर रहने की हिदायत दी. गांव के लड़के सुंदरी को छेड़ने के बजाय उसे ‘बेचारी’ कह कर पुकारने लगे थे. गांव की औरतों ने उसे ‘अछूत’ का दरजा दे दिया था. वह उन के लिए अपशकुनी बन गई थी. उस की परछाई से भी उन के सतीत्व के भंग होने का डर था. यहां तक कि जिन औरतों ने गांव में कईकई खसम पाल रखे थे, वे औरतें भी उस अपशकुनी से दूर ही रहती थीं क्योंकि सब से ज्यादा पतिव्रता का ढोंग ये ही औरतें करती थीं।

जगप्रसाद का घर गांव में अलगथलग पड़ चुका था. इस हादसे के बाद सुंदरी गुमसुम सी रहने लगी थी. गांव वालों के उपेक्षित व्यवहार से उसे ऐसा आभास होता था कि वह न जाने कितनी बड़ी अपराधी है. इस अपराधबोध ने सुंदरी को अंदर तक आहत कर दिया था. यह वह सजा थी जो सुंदरी को किसी कानूनी अदालत ने नहीं बल्कि सामाजिक अदालत ने बिना मुकदमे और बिना बहस के सुनाई थी. सुंदरी को समाज का यह असामान्य बहिष्कार बुरी तरह से अखर रहा था. उसे समझ में ही नहीं आ रहा था कि आखिर उस की गलती क्या है?

कुछ महीनों के बाद खबर मिली कि चारों बलात्कारी नकटू, शाकिब, कलवा और टिपलू जमानत पर जेल से बाहर आ गए हैं. यह सुनते ही सुंदरी के अंदर आक्रोश का लावा उबलने लगा. वह यह सोच कर बौखला गई कि आखिर ऐसे दरिंदों को अदालत कैसे जमानत पर छोड़ सकती है? इस से उस की मानसिक स्थिति विचलित होने लगी.

अब सुंदरी बातबात पर गुस्सा करती. कोई उस के खिलाफ कुछ कहता तो वह उस से भिड़ जाती, कोई उसे घूरता तो उसे गालियां बकने लगती. कई बार गुस्से में वह इतनी हिंसक हो जाती कि किसी पर कुछ भी उठा कर फेंक देती. वह इतनी हिंसक हो गई कि एक दिन गांव वालों को जगप्रसाद से कहना पड़ा, “जगप्रसाद, या तो सुंदरी को घर में बांध कर रखो या फिर इस का किसी पागलखाने भेज कर इस का इलाज करवाओ. नहीं तो तुम्हारी बेटी किसी दिन किसी का सिर फोड़ देगी, फिर उस का परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहना.”

जब जगप्रसाद ने सुंदरी को समझाने की कोशिश की तो वह अपने बाप से ही उलझ बैठी. बापबेटी में तकरार इतनी बढ़ गई कि सुंदरी ने घर छोड़ने का ही पक्का इरादा कर लिया.

पास के गांव में ही एक ईंटभट्ठा था. सुंदरी ने सुन रखा था कि वहां पर बहुत सी महिला मजदूर काम करती हैं उस ने वहीं जाने का निर्णय किया. वहां काम करने वाली महिलाओं को रहने के लिए झोंपड़ी भी मिलती थी। अपने परिवार के विरुद्ध जा कर सुंदरी उसी भट्ठे पर काम करने लगी. वहीं अन्य महिलाओं की तरह उसे रहने का ठिकाना भी मिल गया.

 

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